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Erotica फागुन के दिन चार

Premkumar65

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हवा मिठाई


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लेकिन गूंजा गुड्डी की असली बहन बल्कि असली बहन से भी बढ़के, हड़काने में एकदम गुड्डी की तरह, हड़काते हुए बोली,


" दीदी ठीक ही बोलती थीं, आप बुद्धू ही नहीं महा बुद्धू हो, मैंने कहा था सीने पे, दिल पे और आप मेरे टॉप पे हाथ रख के कसम खा रहे हो, ये भी नहीं मालूम की दिल कहाँ होता है। "

और जिस टीनेजर ब्रा के अंदर घुसने में मेरी ऊँगली को सात करम हो रहे थे, माथे पर पसीना आ रहा था, उस लड़की ने, सीधे मेरे दोनों हाथों को पकड़ के ब्रा को दरकाते ऊपर कर के सीधे अपने सीने पर,



मेरे दोनों हाथों में गोल गोल, हवा मिठाई
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थोड़ी देर पहले नाश्ते की टेबल पर बस मन यही कर रहा था की एक बार ऊपर से ही गलती से ही सही इस टीनेजर के ये उभार टॉप के ऊपर से ही छूने को मिल जाएँ और अब खुद उसने पकड़ के,

मैं हलके हलके से छू रहा था लेकिन अभी भी गूंजा का हाथ मेरे हाथों के ऊपर था और उसने खुद मेरे हाथ अपने उभारों पर दबा के इशारा कर दिया उसे क्या चाहिए, और बोली,


" बोल न, अभी जो बोल रहे थे, "


आवाज कहाँ मेरी निकलती है, हाथों में वो जो मुलायम मुलायम छुअन हो रही थी, कभी कभी आइस पाइस खेलने में अगर कोई लड़की जानबूझ के या गलती से ही साथ छुप गयी तो जो फीलिंग होती थी उससे हजार गुना ज्यादा।

लेकिन अब मैं उतना नौसिखिया भी नहीं था , कल चंदा भाभी के नाइट स्कूल में पढाई की, कच्ची कलियों वाला पाठ तो उन्होंने वेरी इम्पोर्टनेट कह के पढ़ाया था अपनी केस स्टडी भी कराई,

तो मेरे हाथ अब हलके हलके उन बस आते हुए उरोजों को सहला रहे थे, कभी कस के भी दबा देते तो उसकी हल्की सी सिसकी निकल जाती, तर्जनी से मैं बस उभर रहे निप्स को फ्लिक कर देता और मस्ती से जोबन पथरा रहे थे , सस्ने उसकी लम्बी लम्बी चल रही थीं, साफ़ था पहली बार किसी लड़के का हाथ वहां पड़ा था।

" बोलो न प्रॉमिस करो न " हलके हलके गूंजा की आवाज निकल रही थी।
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ये स्साली नौवीं-दसवीं वालियों के चूँचिया उठान, दुप्पटे की तीन परत के अंदर से भी अपनी महक बिखेरते हैं और यहाँ तो उसने खुद खींच के अपने जुबना पे,



अब खुल के उसके जोबन को दबाते, मसलते, रगड़ते और साथ साथ में उसके कोमल गुलाबी गालों पे अपने गाल रगड़ते, मैं बोल रहा था

" एकदम तुम्हारा वेट करूँगा, बिना तुझसे होली खेले नहीं जाऊँगा, पक्का। जब भी स्कूल से लौटोगी तब तक, प्रॉमिस, पिंकी प्रॉमिस, , फिर थोड़ा सा टोन बदल के कस के पूरी ताकत से उसकी चूँची रगड़ के मैंने पूछा उससे हामी भरवाई,

" मेरा जहाँ मन करेगा, मैं वहां रंग लगाऊंगा, फिर गाली मत देना, गुस्सा मत होना, "

और यह के कस के उसके निप्स पे चिकोटी काट के मैंने अपना इरादा साफ कर दिया की मैं कहाँ रंग लगाऊंगा,

वो जोर से खिलखिलाई, फर्श पर हजारों मोती लुढ़क गए, फिर दूध खील वाली हंसी के साथ बोली,



" जीजू गाली तो मैं दूंगी, माँ की बहन की सब की, आखिर साली हूँ, साली कौन जो गाली न दे, और गुस्सा होउंगी अगर आप मेरे आने के पहले चले गए बिना मुझसे मिले, होली खेले, और यह कह के मत डराइए की मैं यहाँ लगाऊंगा, वहां लगाऊंगा, जहाँ मन करे वहां लगाइये, लेकिन एक बात समझ लीजिये, "

उसने एक जबरदस्त पॉज दिया,


कहते हैं न की मरद की जात कमीनी होती है लालची, एकदम सही कहते हैं।

पहले तो मेरा मन कर रहा था, उन उभारों को बस जरा सा बस हलके जैसे गलती से, बस वस में चढ़ते उतरते छू जाता है, वैसे छू जाए, और अब जब दोनों लड्डू मेरे हाथ में थे, तो मेरे मूसल चंद मचल रहे थे , हाथ रस ले रहे है तो मैंने कौन सी गलती की है, एकदम फनफनाये, बौराये, स्कर्ट पहले ही एकदम छल्ले की तरह सिकुड़ी मुकडी कमर के पास सटी, सफ़ेद दो अंगुल की चड्ढी, सहमी दरार के बीच छिपी सिकुड़ी, और चंदा भाभी ने कल जो मोटे सुपाड़े की चमड़ी अपने हाथ से
खोली थी, उसके बाद ही बोल दिया था,

' खबरदार, जो इस दुल्हन का घूंघट फिर से किया तो, कपडे से रगड़ रगड़ कर, खुले सुपाड़े की हालत ऐसी हो जायेगी की एकदम ठस, जल्दी झड़ेगा नहीं और जिस लड़की की चमड़ी पर छू भर गया तो वो हरदम के लिए इसकी पागलहो जाएगी । "

तो बस वही खुला सुपाड़ा उस दर्जा नौ वाली के नितम्बो की कोमल कोमल चमड़ी पर रगड़ रहा था, बस दरार से इंच भर दूर।
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गुंजा ने पॉज के बाद एक हल्का सा टर्न लिया, और जिस काम का मेरा मन कर रहा था पर हिम्मत नहीं पड़ रही थी वो ।

हलकी सी चुम्मी सीधे लिप्पी, और अपने दोनों होंठों के बीच मेरे नीचे वाले होंठ को दबा के हलके से चूस लिया और जब छोड़ा तो वापस चेहरा सामने और बोली

" आप को जहाँ मन करेगा लगाईयेगा लेकिन मेरा भी जहाँ मन करेगा लगाउंगी, और मन भर लगाउंगी, चुप चाप लगवा लीजियेगा, "

और वो कहाँ लगाएगी ये भी उसने साफ़ कर दिया,

कहते हैं न महिलायें अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त करती हैं तो गूंजा ने, अपने कोमल नितम्बो को उस बौराये, प्यासे, पागल खुले सुपाड़े पर रगड़ रगड़ के, पांच बार दाएं बाएं कर के, और खूंटा एकदम प्रेम गली की सांकरी गली के बीच, बस वो पतली सी पैंटी न होती तो,

और प्यार से बोली,

" ये जो बहुत बौरा रहा हैंन, कम से कम पांच कोट, वो भी एकदम पक्के वाले, सबसे पहले गाढ़ा लाल, फिर काही , फिर बैगनी, फिर नीला और सबसे ऊपर पेण्ट, खूब दबा दबा के, आप भी याद करियेगा बनारस में कोई छोटी साली मिली थी।"


" लेकिन मैं भी फिर अंदर तक रंग लगाऊंगा एकदम अंदर तक, सफ़ेद वाला, सोच लो पूरा डालूंगा सोच ले "

मैंने भी अपना इरादा साफ़ कर दिया,



धक्का मुक्की में चड्ढी सरक गयी, मूसलचंद के गुलाबी फांकों तक जाने का रस्ता खुल गया , खुला सुपाड़ा अब उन कुँवारी फांको को रगड़ रहा था,
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गूंजा ने कस के अपनी टाँगे भींच ली और मूसल चंद एकदम फंस गए, वो शोख अदा से बोली,

" लगा दीजियेगा, अंदर तक, और मैं डरने वाली साली नहीं हूँ , सफ़ेद रंग से भी नहीं, आज कल हर तरह की दवा आती है, बस आप ने मेरी कसम खायी है अपनी छोटी साली की कसम बिना मुझसे होली खेले नहीं जाएंगे ये याद रखियेगा।"



और तभी कुछ खट्ट से हुआ।



---और झट्ट से, ये लड़कियां भी न, गूंजा की स्कर्ट नीचे, जुबना का ढक्क्न बंद, सब कुछ चाक चौबंद, मेरा हाथ भी बाहर, और गूंजा ने बात बदल दी,

“जी नहीं। आप, तुम उतने नहीं , उससे भी ज्यादा बुद्धू हो, और आपके असर से मैं भी। ये देखिये बरमुडा मैंने हुक पे टांग रखा था और नीचे ढूँढ़ रही थी। कल रात भर मैं इसे पहने रही, बल्कि दो दिन से यही पहने हूँ, घर में जब स्कूल की ड्रेस पहनी तो उतारकर यहीं टांग दी और नीचे ढूँढ़ रही थी…” वो बोली और उतारकर उसने मुझे पकड़ा दिया।


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उसके अन्दर से उसकी देह की महक आ रही थी। वो शर्मा गई और बोली- “असल में मैं घर में, वो, मेरा, वो नहीं…”



मैंने छेड़ा “अरे साफ-साफ बोलो ना की पैंटी नहीं पहनती घर में। तो ठीक तो है उसको भी हवा लगनी चाहिये। तुम्हारी परी को…”

और ये कहकर मैंने कसकर उसके बरमुडा को सूंघ लिया। यहाँ तक की जहाँ उसकी परी रगड़ खाती थी, उस जगह को उसे दिखा के चाट भी लिया।

“हट बदमाश। गंदे। छि। कभी लगता है एकदम सीधे हो और कभी एकदम बदमाश…मेरा क्या क्या लगा होगा इसमें , दो दिन से और इसके अंदर कुछ नहीं पहनती हूँ ”

मुझे मुक्के से मारते हुये वो बोली-

“और अगर मेरे आने से पहले गए तो मैं कभी नहीं बोलूंगी…”


“कैसे जाऊँगा? तुम मेरी छोटी साली जो हो और तुम्हारी मम्मी ने भी बोल दिया। अब तो मुझे लाइसेंस मिल गया है। बिना साली को रगड़े रंग लगाये। होली खेले…और जब इसमें से इत्ती अच्छी महक आ रही है तो तेरी परी कित्ती महकती होगी, अब तो बिना उसे सूंघे, "

बात मेरी कट गयी , नहीं गुंजा ने कुछ नहीं बोला, बस कस के एक जबरदस्त मुक्का लगाया पीठ में और बोली,

“होली तो मैं खेलूंगी आपसे, आज आपको पता चलेगा की है कोई रंग लगाने वाली…हर जगह पांच कोट ” मुझसे दूर हटकर मुश्कुराते हुए वो बोली।

तब तक नीचे से चन्दा भाभी की आवाज आई-

“हे नीना इंतजार कर रही है तुम्हारा, आओ बस आने वाली है…”

" आती हूँ मम्मी जरा जीजू को अपना बरमूडा दे दूँ।"



" एकदम, " हँसते हुए चंदा भाभी बोलीं " मैं तो अपनी साडी दस मिनट में लेलूँगी, तू नहीं देगी तो तेरे जीजू उघारे उघारे फिरेंगे "


फिर गुंजा बुदबुदाते हुए बोली,

" स्साली कमीनी नीना, बस का झूठा, बस तो अभी दस मिनट बाद आएगी,उसे यार से मिलने की देर हो रही है , गुलाबो में मोटे मोटे चींटे काट रहे होंगे, बस के नाम पे लड़को से नैन मटक्का करेगी, कित्ती बार उस की हाजिरी मैं भरवाती हूँ, क्लास में पीछे एक सीढ़ी है, वैसे तो बंद रहती है, लेकिन जरा सा झटका दो बस, क्लास एक बार शुरू हो जाए नीना महारानी उसी सीढ़ी से गायब, साल भर में छह यारों से मजे ले चुकी हैं, चार तो अभी भी हैं, और बहाना बना रही हैं क्लास का, बस का "


तभी फिर से खट्ट हुआ और हम दोनों की निगाह दीवार की ओर, एक मूषक महराज थे दीवाल के सहारे और हम लोगो के देखते ही झट्ट से बिल में गायब, मतलब पहली बार वाली खट्ट भी उन्ही की कृपा थी।

गूंजा बोली, चूहा,

और खिलखिला के 'मोटे चूहे' को पकड़ लिया। और अबकी कस के, पहले लुंगी के ऊपर से फिर लुंगी हटा के, और अबकी खुल के कस के, प्यार से भी और ताकत से भी,
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" हे ये चूहा भी बिल में घुसना चाहता है, " मैंने उस टीनेजर को छेड़ा,

" एकदम घुसेगा, आज रात को गुड्डी दीदी के बिल में, पक्का। " खिलखिलाते हए वो बोली,
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कभी वो उसे कस के दबा देती तो कभी हलके से बस पकडे रहती जैसे उसकी मोटाई का कड़ेपन का अहसास कर रही हो।

" और अगर ये गुड्डी दीदी की छोटी दीदी के बिल में घुसना चाहे तो "

मैंने फिर थाह लेने की कोशिश की।



गूंजा ने ' चूहे ' को पकडे पकडे , अपनी ऊँगली से न जाने कैसे अपनी चड्ढी सरकायी, टाँगे थोड़ी सी फैलायीं, और अगले पल चूहे का मुंह, दोनों गुलाबी फांको पर, हलकी सी पनियायी, गूंजा ने फिर टाँगे कस के ' चूहे' पर भींच ली और मुझे हड़काते हुए बोली


" चूहे की मर्जी, तुमसे मतलब, फिर चूहा है तो बिल में जाएगा ही "


लेकिन हम लोगो की मस्ती में विघ्न पड़ गया, नीचे से नीना की आवाज आयी, यार क्या कर रही है, मैं आती हूँ ऊपर, देर हो रही है, तुझसे बोलै था न आज जल्दी निकलना है थोड़ा।



" नहीं नहीं तू मत आ मैं आती हूँ नीचे बस एक मिनट, " गूंजा बोली और एक मिनट में चूहा लुंगी के अंदर, स्कर्ट टॉप दुरुस्त।



“हे टाप…” मैंने याद दिलाया।


“मैं भी। आप के चक्कर में। ये भी यहीं है…” और ऊपर से उठाकर उसने दे दिया।

तब तक जैसे उसको कुछ याद आया हो- “हे और मेरी होली गिफ्ट…”

“एकदम कहो तो आज ही…” मैं बोला।



“ना आज तो मेरी शाम को एक्स्ट्रा क्लास है। आप लौटकर आओगे ना होली के चार दिन बाद तब। और छोडूंगी नहीं “

लेकिन फिर बोली ठीक है, मंजूर और बाहर निकालने के लिए बढ़ी।



मैंने आवाज देकर रोक लिया- “बस एक मिनट। जरा मैं ये बर्मुडा ट्राई तो कर लूं कहीं अन्दर न जाए तो…”



हँसती हुई वो बोली- “जाएगा जाएगा। पूरा अन्दर जाएगा। बस ट्राई तो करिए…”


मैं समझ रहा था वो क्या इशारा कर रही है लेकिन मेरा पूरा ध्यान लुंगी के अन्दर उसे चढ़ाने में लगा था। डर ये लग रहा था की कहीं सरक के लुंगी नीचे न आ जाए और मैं उसके सामने।

वो सामने खड़ी देख रही थी।
Mast mast update Komal ji.
 

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गुड्डी और गुँजा

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तभी गुड्डी घुसी, एकदम जोश में। हम दोनों को देखकर जोर से बोली-

“अरे 10 मिनट कब के हो गए और तुमने चेंज भी नहीं किया, और ये कैसे पहन रहे हो। पहले साड़ी उतार दो…”

और ये कहकर पास में आकर साड़ी कम लुंगी खींचने लगी।



मेरे दोनों हाथ तो बरमुडा ऊपर चढ़ाने में फँसे थे। मैंने बहुत विरोध किया, लेकिन तब तक गुंजा को देखकर गुड्डी बोली-

“अच्छा तो इससे शर्मा रहे हो। क्यों देख लेगी तो बुरा लगेगा क्या?” गुंजा से उसने पूछा।

उसने ना में कसकर दायें से बाएं सिर हिलाया।



गुड्डी के एक झटके से चन्दा भाभी की साड़ी जो मैंने लुंगी की तरह पहन रखी थी उसके हाथ में। गुड्डी ने आधा पहना बर्मुडा भी नीचे खींच दिया। मेरे दोनों हाथ तो ‘वहां’ थे उसे किसी तरह छिपाने की कोशिश में और गूंजा और गुड्डी दोनों की निगाहें वहीँ, मुस्कराती छेड़तीं,

लुंगी गुड्डी के हाथ में, बारमूडा अभी घुटने तक भी नहीं पहुंचा था और इश्क मुश्क की तरह खड़ा खूंटा भी कहीं छुपता है, दोनों हाथों के पीछे से भी झांक रहा था।

ऊपर से गुड्डी और उसकी डांट,

" हे हाथ हटाओ, क्या पकड़ रखा है, शर्म नहीं आती। दो दो इत्ते मस्त माल सामने खड़े हैं और अभी भी ६१, ६२ कर रहे हो,"

और फिर जोर से घुड़की वो, "हटाओ हाथ दोनों हाथ एकदम पीछे, बोल तो दिया मेरी बहन ने बुरा नहीं मानेगी, तुरंत"

मेरे दोनों हाथ पीछे, गुड्डी की बात मेरे हाथ न माने ये हो नहीं सकता,



खुला पोस्टर निकला हीरो,
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जैसे खटके वाला चाकू होता है न, बटन दबाया नौ इंच का चाकू बाहर, बस एकदम उसी तरह, और सामने खड़ी दोनों टीनेजर्स को सलाम ठोंकता, ' बाली उमर को सलाम'

गूंजा की आँखे वहीँ चिपकी, उसने पकड़ा था सहलाया था, दुलराया था, दबाया था, मोटाई और कड़ेपन का पक्का अंदाज हो गया था उसे, लेकिन देखा तो नहीं था,

दोनों किशोरियां थोड़ी देर तक आपस में फुसफुसाई, फिर खिलखिलायीं, फिर गुड्डी ही मुझसे बोली,

" इसी के लिए इत्ता शरमा रहे थे, देखा मेरी छोटी बहन ने एकदम बुरा नहीं माना "

मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया, बुर वालियों का क्या बुरा मानना, लेकिन गूंजा तो पता नहीं गुड्डी जबरदस्त पिटाई लगा देती .



वो नौवे में पढ़ने वाली लड़की एकदम एकटक वहीँ देख रही थी, खुला मोटा सुपाड़ा, एकदम लाल भभुका, उसकी कलाई इतना मोटा खूंटा और निगाहों से नाप कर उसने अंदाज लगा लिया था उसके बित्ते से कम तो नहीं ही होगा, बड़ा भले ही हो,



मैंने बारमूडा ऊपर चढ़ाने की कोशिश की तो बड़ी बहन की डांट फिर पड़ गयी, "किसने कहा था हाथ आगे करने को और कल क्या मना किया अब तेरे हाथों की कारस्तानी बंद, हम दोनों बहने सामने खड़ी है और ये अपना हाथ जरूर,"

हाथ फिर पीछे हो गए, गूंजा मुझे देख के चिढ़ाते हुए मुस्करा रही थी, गुड्डी ने अब उससे पूछा, " क्या देख रही है इत्ते ध्यान से "

" दी बस यही सोच रही हूँ, मैंने सोचा था की पांच कोट रंग लगाउंगी इस पर, चार कोट रंग फिर पेण्ट, और अब सोच रही हूँ की और ज्यादा तो नहीं, पांच से काम नहीं चलेगा,"

" अरे यार तू मेरी छोटी बहन है, पांच दस कोट जित्ता मन करे उत्ता लगाना, हाँ इनके दोनों हाथ एकदम इसी तरह पीछे रहेंगे, तुम्हे एकदम नहीं मना करेंगे, ये गुड्डी की गारंटी, और रहा रंग छुड़ाने का तो इन्हे इनके मायके ले ही चल रही हूँ, वहां इनकी बहने हैं चूस चूस के छुड़ायेंगी। बड़ी बहन से पहले छोटी बहन का हक होता है। "



गुड्डी के पास हर सवाल का जवाब था। एकदम बड़ी बहन की तरह बोली।

लेकिन तब तक नीचे से नीना की आवाज आयी। लग रहा था उसका यार बार बार मेसेज कर रहा थ।

झट से दोनों बहनों ने मिल के मेरा मतलब गूंजा का बारमूडा ऊपर चढ़ा दिया, हाँ खूंटा पकड़ के गूंजा ने ही अंदर किया और अंदर करने के पहले, अपने कोमल किशोर हाथों से कस के दबा भी दिया, हलके से मुठिया भी दिया और अंगूठे से खुले सुपाड़े को रगड़ दिया, उसकी आँखे मेरी आँखों में लगातार झांक रही थीं, जैसे कह रही हो,

जीजू प्लीज होली खेल के जाना और अगर चूहा बिल में घुसना चाहे तो घुसे मेरी बिल को कोई परेशानी नहीं है। "

टी शर्ट मैंने खुद पहन ली। हम दोनों गूंजा के कमरे से निकल के छत पे आये जहाँ एक कोने में किचेन थ। वहीँ पास में ही नीचे जाने वाली सीढ़ी थी। हम तीनो के निकलने की आवाज सुन के चंदा भाभी भी बाहर आयी, गूंजा का टिफिन ले के। गुड्डी ने उनकी साडी वापस कर दी


" देखिये एकदम सही सलामत, और मेरी छोटी बहन ने आपकी साडी बचाने के लिए कितने त्याग बलिदान का परिचय दिया, अपना फेवरिट बारमूडा, "

लेकिन गुड्डी की आगे की बात चंदा भाभी की हंसी में खो गयी, हंसी रुके फिर चालू हो जाये, मुझे देख देख के

और अब गुड्डी भी फिर गूंजा भी, और बात साफ़ की, और किसने गुड्डी ने

" अरे इन्हे लड़कियों वाले कपडे अच्छे लगते हैं कल रात में आपकी साडी, आज दिन में मेरी बहन का बारमूडा और टी, फबते भी हैं उपपर और क्या पता लड़कियों वाली बाकी चीजें भी अच्छी लगती हों "

" एकदम सही बोल रही है तू " चंदा भाभी गुड्डी से बोलीं और फिर हंसने का दौर शुरू, फिर मुझसे वो बोलीं,

" ये मत कहना की छेद, अरे एक बार निहुरा देंगे न, लंबा छेद न सही गोल छेद सही, छेद तो छेद, बस घंटे भर में होली शुरू हो जाएगी यही छत पर, "

और अब चंदा भाभी की तोप गूंजा की ओर मुड़ गयी,

" सुबह से बोल रही थी न मेरे जीजू, मैंने क्या कहा था तेरे जीजू बुद्धू हैं एकदम बुद्धू जब अक्ल बंट रही थी अपनी बहनों के चक्कर में पड़े थे। अब तो मुझे लग रहा है तेरे जीजू बुद्धू नहीं है महा बुद्धू हैं एकदम ही बुद्धू। "

" हे मेरे जीजू को कुछ मत कहियेगा, इत्ते मुश्किल से तो एक जीजू मिले हैं होली के टाइम पे और आप भी "

गूंजा ने मुंह बनाया और एकदम मुझसे चिपक के खड़ी हो गयी, एक हाथ मेरी कमर में बाँध लिया। और फिर चमक के बोली,

" लेकिन आप ऐसे क्यूँ कह रही हैं "



चंदा भाभी पे एक बार फिर हंसने का दौर चढ़ गया था, उनकी निगाहें गूंजा के बारमूडा से जिसे मैं पहने था, चिपकी थी। फिर किसी तरह बोली,

" बुद्धू तो हैं ही, और बुद्धू बनाया तुम्ही ने, बेचारे को मिठाई का डिब्बा देकर टरका दिया, अंदर की मिठाई,, मेरे जीजू होते तो बिना अंदर की मिठाई खाये, डिब्बे के अंदर हाथ लगाए, छोड़ते नही। स्कूल की ऐसी की तैसी "

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मैं भी समझ रहा था, गूंजा और गुड्डी भी की मिठाई का डिब्बा बारमूडा को कहा जा रहा है और अंदर की मिठाई,...

लेकिन तब तक सीढ़ी से किसी के चढ़ने की आवाज आयी, हम सब समझ गए की नीना ही होगी, बस गूंजा धड़धड़ा के नीचे,

लेकिन जाने के पहले पूरा प्रोग्राम बता गयी।

" बस दो घण्टे में आती हूँ स्कूल से, जीजू को बोल दिया है मेरे आने से पहले जाएंगे नहीं, और लौट के ऐसी होली में रगड़ाई करुँगी न की ये भी याद करेंगी एक गूंजा नाम की साली मिली थी बनारस वाली । "

बोल वो चंदा भाभी से रही थी लेकिन मेसेज मुझे दे रही थी, बस ब्रेक के बाद, साली पहले की सालियों से आगे निकलेगी। मिठाई मिलेगी और मन भर मिलेगी।

गूंजा नीचे चली गयी, गुड्डी को षड्यंत्रकारियों की तरह चंदा भाभी ने किचेन में गुड्डी को बुला लिय।

बचा मैं, और मैं छत के एक कोने की मुंडेर की ओर, जहाँ से नीचे सड़क दिख रही थी और गूंजा और उसकी सहेली, की बात साफ़ सुनाई पड़ रही थी।

गुंजा उसे हड़का रही थी, " स्साली, क्यों तेरे चींटे काट , रहे थे, दस मिनट रुक नहीं सकती थी क्य। मुझे भी मालूम है बस कब आती है ।

नीना उसे समझा रही थी, " अरे यार वो स्साला चूतिया बंटीवा, मेसेज पे मेसेज ठेले जा रहा था, और बस से किसे जाना है। मुझे तो उसकी बाइक पे, होली की शॉपिंग के लिए, तू भी प्लीज मेरी हाजिरी लगा देना, मेरी अच्छी मेरी प्यारी गुंजा, लेकिन ये बता तू क्या कर रही थी, तुझे क्यों देर लग रही थी, कोई था क्या, हाय हैंडसम टाइप। "

" और क्या " गुंजा खिलखिलाते हुए बोली। फिर उससे रहा नहीं गया , उगल दी । मेरे जीजू हैं, एकदम हैंडसम स्मार्ट, बहुत प्यारे से।

और फिर दोनों लड़कियों ने कुछ फुसफुसा के बात की जो सुनाई नहीं पड़ा लेकिन जिस तरह गुंजा की सहेली ने रिएक्ट किया, मुझे थोड़ा अंदाज लग गया,

" हाय सच्ची, यार एक बार मेरे साथ भी, " वो बोली।

" कत्तई नहीं, तेरे पास तो आलरेडी चार हैं, लेकिन मेरे जीजू अकेले उन चारों के बराबर हैं " गुंजा बड़े ठसके से बोली।


" यार जस्ट एक बाइट, उसकी सहेली रिक्वेस्ट करते बोली, फिर हँसते हुए चिढ़ाया,

"यार अब तो तेरी चिड़िया भी जल्दी उड़ने लगेगी तू भी हम लोगों की बिरादरी में आ जायेगी। "

" जल्दी क्यों, आज क्यों नहीं " गुंजा ने मुंह फुला के बोला, और फिर राज खोला,

" जानती है मैंने उनसे कसम दिलवाई है वो मेरा वेट करेंगे होली के लिए, स्कूल से लौटने का वरना वो तो कल से जल्दी जाने की जिद किये थे, लेकिन मेरी बात, झट्ट मान गए। "

तब तक एक लड़का बाइक ले के दिखा और सहेली उस की बाइक पे पीछे और गुंजा पास के बस स्टैंड पे,



और मेरे पिछवाड़े तभी एक जोर की पड़ी, चटाक,



"स्साले लौंडिया ताड़ रहे हो, स्कूल की।"

और कौन होगा गुड्डी थी, उसके एक हाथ में तौलिया थी । पहले हड़काया फिर समझाया,

" इतना तो लौंडिया नहीं शर्माती जो लुंगी खोलने में लाज लग रही थी। अरे मेरी छोटी बहन है, तेरा देख लेगी तो क्या एकाध इंच कम हो जाएगा, बेवकूफों की तरह हाथ से छिपा रहे थे, और अब पीछे से उसके मटकते हुए चूतड़ देख रहे हो। चंदा भाभी सही कह रही थी , बेचारी मेरी छोटी बहन को कैसा जीजा मिला है, दूसरा जीजा होता तो अबतक साली के ताले में ताली लगा चुका होता। अभी स्कूल से लौटेगी न, उफ़ तुम भी न ।।। "

गुड्डी झुंझला रही थी,


क्या हुआ मैंने पूछा



" चलो बारमूडा उतरो, माना तेरी साली की महक है इसके अंदर लेकिन फ़ौरन ये तौलिया,

और बारमूडा और टी अब गुड्डी के हाथ में था ।

पलंग पे पड़ा एक छोटा सा तौलिया उसने मेरी ओर बढ़ा दिया और बोली- “ये कपड़े नहाने तैयार होने के बाद…”

“मतलब?” मुश्किल से पीछे मुड़कर उस तौलिये को बाँधकर मैंने पूछा।



अब खुलकर हँसती हुई उस सारंग नयनी ने कहा-

“मतलब ये है की आपकी भाभी ने आदेश दिया है की आपको चिकनी चमेली बना दिया जाय। सुबह तो सिर्फ मंजन किया था ना। तो फिर…” और हाथ पकड़कर वो मुझे चंदा भाभी के कमरे में ले आई जहां मैं रात में सोया था।

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Updates Posted, readers are requested to read, enjoy, like and comment.
Komal ji you are just too good to appreciate. Your description of events is so fabulous it gives a feeling as if i am present among the characters. Hats off to you.
 

komaalrani

Well-Known Member
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फागुन के दिन चार - भाग ७ -गुड्डी -गुड मॉर्निंग पृष्ठ 90

please, read, enjoy, like and share comments.
 
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भाग - सेवन

* गुड्डी और गुड माॅनिंग -

जिस तरह से गुड्डी ने आनंद साहब को माॅनिंग विश किया उससे भला किस मर्द का माॅनिंग ' वाह वाह ' न बन जाए !
लेकिन इस माॅनिंग विश के बाद जिस तरह से आनंद साहब का दंतमंजन के बहाने उनका बंटाधार हुआ वह उस माॅनिंग विश पर काफी भारी पड़ गया ।
बंदर छाप काला दंतमंजन और उनके पुरे चेहरे का रंग - रोगन ।
वैसे भी आनंद साहब को इसमे कुछ बुरा लगने वाली बात भी नही थी। आखिर होली का त्योहार है और साथ मे खेलने वाली कमसिन खुबसूरत हाॅट कलियां जो है ।

* गुंजा -

यह नाम पहली बार मैने " नदिया के पार " फिल्म मे सुना था । साधना सिंह जी गुंजा का किरदार निभा रही थी ।
नाम सुंदर है इसमे कोई संदेह नही लेकिन इस नाम के साथ जिस लड़की की तस्वीर आपने इस अपडेट मे डाल रखा है , वह और भी सुंदर व हसीन है ।
नो डाऊट इस स्टोरी के हर किरदार का तस्वीर माशाल्लाह है ।
होली के अवसर पर जहां हम अखबारों मे नेता - अभिनेता और गणमान्य व्यक्तियों के नाम के साथ उनका टाइटिल या उपनाम अक्सर पढ़ते आए हैं वहीं स्कूल कालेज मे भी इस तरह का उपनाम अक्सर स्टूडेंट्स अपने टीचर्स को , अपने फ्रैंड को भी देते हैं जो कि बहुत ही फनी नाम होता है ।
गुड्डी का उपनाम दर्शाता है कि उसका फिगर कितना परफेक्ट और उत्तेजक है ।


* गरम ब्रेड रोल -

इस रोल को खाकर आनंद साहब का क्या हाल हुआ होगा वह अच्छी तरह से समझा जा सकता है । एक ब्रेड रोल के भीतर चार से भी अधिक हरी मिर्च , माई गाॅड ।
फजीहत अगर यहीं तक होती तब भी कुछ ठीक ठाक था
लेकिन इसके बाद गुझिया के अंदर रंग और गुलाल !
खैर आनंद साहब , बुरा न मानो होली है । :D

* साली की शरारत -

साली की शरारत मौखिक थी लेकिन साली की मां ने तो अपने पुत्री गुंजा और गुड्डी के मौजूदगी मे उनके नजरों से छुपाकर आनंद भाई साहब के साथ प्रेक्टिकल शरारतें कर दी ।
काफी डेयरिंग एक्ट था । सेक्सुअल मजाक करना एक अलग चीज है लेकिन सेक्सुअल एक्ट करना और वह भी अपने फैमिली के इर्द-गिर्द रहते हुए बिल्कुल ही अलग चीज है ।
चंदा भाभी , तुसी सच मे ग्रेट हो ।

* छोटी साली , गुंजा और बरमूडा -

गुंजा ने छोटी साली के रूप मे सच मे कमाल कर दिया । इनकी बातें , इनकी हरकतें , इनकी शरारतें , इनका डेयरिंग नेचर सबकुछ कमाल का था ।

* हवा मिठाई -

इस अपडेट मे आपने एक जगह लिखा है - " कहते हैं न कि मर्द की जात कमीनी होती है , लालची , एकदम सही कहते हैं ।"
इसी से सम्बंधित एक फिलॉसफी है -
बीवी तो बीवी है । वह तो हसबैंड को हमेशा हासिल है । उससे जिन्सी रिश्तेदारी कायम करके आपको उस फतह का एहसास नही होता जो आपको पड़ोस की औरत का मान मर्दन करके , यहां तक कि घर मे आने वाली धोबिन या बर्तन मांजने वाली तक से हमबिस्तर होकर होता है ।
घर की मलाई छोड़कर भी वह नुक्कड की जूठन चाटने जरूर जाएगा । दो टके की छिनाल औरत के सामने वह बिछ बिछ जाएगा लेकिन घर मे मौजूद अपनी सर्वगुण सम्पन्न बीवी से वह यूं बेजार होकर दिखाएगा जैसे उसे फांसी लग रही हो ।

* गुड्डी और गुंजा -

वह कोई साधु - संत या महात्मा या बैरागी ही होगा जो इन दो खुबसूरत नमकीन बालाओं के हुस्न के आकर्षण से स्वयं को बचाकर रख सकता है ।
अगर गुड्डी जैसी पत्नी हो , गुंजा जैसी साली हो और चंदा जैसी सास हो तो फिर यही कहा जा सकता है -
" सासु तीरथ , ससुरा तीरथ , तीरथ साला साली है ।
दुनिया के सब तीरथ छोड़ो , चारो धाम घरवाली है । "

इरोटिका कैसे लिखा जाता है , यह कोई भी शख्स इस अपडेट को पढ़कर जान सकता है , सीख सकता है । इसीलिए मै बार-बार कहते आया हूं कि कोमल जी , आप इरोटिका लेखन की मल्लिका हो ।
गुंजा और आनंद का अंतरंग सीन्स क्या ही लाजवाब सीन्स था ।

आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग अपडेट ।
 

prkin

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फागुन के दिन चार भाग 1

फागुन की फगुनाहट

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भाभी की चिट्ठी

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मेरे देवर कम नंदोई,

सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो,

तुमने बोला था की इस बार होली पे जरूर आओगे और हफ्ते भर रहोगे तो क्या हुआ? देवर भाभी की होली तो पूरे फागुन भर चलती है और इस बार तो मैंने अपने लिए एक देवरानी का भी इंतजाम कर लिया है, वही तुम्हारा पुराना माल। न सतरह से ज्यादा न सोला से कम। क्या उभार हो रहे हैं उसके।

मैंने बोला था उससे की अरे हाई स्कुल कर लिया पिछले साल, अब इंटर में चली गयी हो तो अब तो इंटरकोर्स करवाना ही होगा, तो फिस्स से हँसकर बोली-

“अरे भाभी आप ही कोई इंतजाम नहीं करवाती। अपने तो सैयां, देवर, ननदोइयों के साथ दिन रात और।“

तो उसकी बात काटकर मैं बोली अच्छा चल आ रहा है होली पे एक, और कौन तेरा पुराना यार, लम्बी मोटी पिचकारी है उसकी और सिर्फ सफेद रंग डालेगा। एकदम गाढ़ा बहुत दिन तक असर रहता है।
तो वो हँसकर बोली की ,”अरे भाभी आजकल उसका भी इलाज आ गया है चाहे पहले खा लो चाहे अगले दिन। बाद के असर का खतरा नहीं रहता,”

और हाँ तुम मेरे लिए होली की साड़ी के साथ चड्ढी बनयान तो ले ही आओगे, उसके लिए भी ले आना और अपने हाथ से पहना देना। मेरी साइज तो तुम्हें याद ही होगी। मेरी तुम्हारी तो एक ही है। 34सी और मालूम तो तुम्हें उसकी भी होगी। लेकिन चलो मैं बता देती हूँ। 30बीबी हाँ होली के बाद जरूर 32 हो जायेगी…”

फागुन चढ़ गया था, फगुनाहट शुरू हो गयी थी, होली कुछ दिन बाद ही थी। भाभी की इस चिठ्ठी पर उसी का असर था, ... मैं अभी ट्रेनिंग में था, पिछले साल ट्रेनिंग में होली में छुट्टी नहीं मिल पायी थी, पर अब कुछ दिनों बाद ही ट्रेनिंग खतम होने वाली थी और मैंने बोला था की अबकी होली में जरूर आऊंगा और हफ्ते भर कम से कम,... छुट्टी मिल भी गयी थी भाभी की चिट्ठी में उसी का दावतनामा था, होली में घर आने का।

मैं समझ गया की भाभी चिट्ठी में किसका जिकर कर रही थी। मेरी कजिन, हाईस्कूल पास किया था उसने पिछले साल। अभी इंटरमीडिएट में थी. जब से भाभी की शादी हुई थी तभी से उसका नाम लेकर छेड़ती थी, आखिर उनकी इकलौती ननद जो थी। शादी में सारी गालियां उसी का बाकायदा नाम लेकर, और भाभी तो बाद में भी प्योर नानवेज गालियां। पहले तो वो थोड़ा चिढ़ती लेकिन बाद में,… वो भी कम चुलबुली नहीं थी।

कई बार तो उसके सामने ही भाभी मुझसे बोलती, हे हो गई है ना लेने लायक, कब तक तड़पाओगे बिचारी को कर दो एक दिन। आखिर तुम भी 61-62 करते हो और वो भी कैंडल करके, आखिर घर का माल घर में। पूरी चिट्ठी में होली की पिचकारियां चल रही थी। छेड़-छाड़ थी,मान मनुहार थी और कहीं कहीं धमकी भी थी। मैंने चिट्ठी फिर से पढ़नी शुरू की।



“माना तुम बहुत बचपन से मरवाते, डलवाते हो और जिसे लेने में चार बच्चों की माँ को पसीना आता है वो तुम हँस हँसकर घोंट लेते हो। लेकिन अबकी होली में मैं ऐसा डालूंगी ना की तुम्हारी भी फट जायेगी, इसलिए चिट्ठी के साथ 10 रूपये का नोट भी रख रही हू, एक शीशी वैसलीन की खरीद लेना और अपने पिछवाड़े जरूर लगाना, सुबह शाम दोनों टाइम वरना कहोगे की भाभी ने वार्निंग नहीं दी…”



लेकिन मेरा मन मयूर आखिरी लाइनें पढ़कर नाच उठा-

“अच्छा सुनो, एक काम करना। आओगे तो तुम बनारस के ही रास्ते। रुक कर भाभी के यहाँ चले जाना। गुड्डी की लम्बी छुट्टी शुरू हो रही है, उसके स्कूल में बोर्ड के इम्तहान का सेंटर पड़ा है, तो पूरे हफ्ते दस दिन की होली की छुट्टी,... वो होली में आने को कह रही थी, उसे भी अपने साथ ले आना। जब तुम लौटोगे तो तुम्हारे साथ लौट जायेगी…”



चिठ्ठी के साथ में 10 रूपये का नोट तो था ही एक पुडिया में सिंदूर भी था और साथ में ये हिदायत भी की मैं रात में मांग में लगा लूं और बाकी का सिंगार वो होली में घर पहुँचने पे करेंगी। आखिरी दो लाइनें मैंने 10 बार पढ़ीं और सोच सोचकर मेरा तम्बू तन गया

अत्यंत कामुक आरम्भ. कैसी मनेगी होली?
 

prkin

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गुड्डी -बनारस वाली
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गुड्डी- देखकर कोई कहता बच्ची है। मैं भी यही समझता था लेकिन दो बातें।

एक तो असल में वो देखने से ऐसी बच्ची भी नहीं लगती थी, सिवाय चेहरे को छोड़के। एकदम भोला। लम्बी तो थी ही, 5’3” रही होगी। असली चीज उसके जवानी के फूल, एकदम गदरा रहे थे, 30सी।


और दूसरी मेरे सामने डेढ़ साल पहले का का दृश्य नाच उठा। मेरा सेलेक्शन हो गया था, रैंक भी अच्छी थी और मैं श्योर था की कैडर भी मुझे होम कैडर यू पी का मिल जाएगा। फर्स्ट अटेम्प्ट था.पूरे घर में मेरी पूछ भी बढ़ी हुई थी। गर्मियों की छुट्टियां चल रही थी और गुड्डी भी आई थी।

सब लोग पिक्चर देखने गए। डिलाईट टाकिज, अभी भी मुझे याद है। कोई पुरानी सी पिक्चर थी। रोमांटिक। हाल करीब खाली सा था। घर के करीब सभी लोग थे। गुड्डी मेरे बगल में ही बैठी थी। हम लोग मूंगफली खा रहे थे। सामने एक रोमांटिक गाना चल रहा था, उसने मेरा हाथ पकड़कर अपने सीने पे रख लिया।

गुड्डी अच्छी तो लगती ही बल्कि बहुत अच्छी लगती थी और खासतौर से उसके चूजे से जस्ट आ रहे उभार, मैं चुपके चुपके नजर चिपकाए रहता था वही, पर जैसे गुड्डी मेरी ओर नजर करती, मैं आँखे हटा लेता। लेकिन क्या मुझे मालूम था की जवान होती लड़कियों की एड़ी में आँख होती है और कौन नजरों से उन्हें दुलरा रहा है, उनकी नजरें देख लेती। लेकिन मेरी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं पड़ती थी और ये बात वो भी समझ गयी थी।

मैं कुछ समझा नहीं और वहीं हाथ रहने दिया। अच्छा तो बहुत लग रहा था लेकिन आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। थोड़ी देर रहकर उसने दूसरे हाथ से मेरा हाथ हल्के से दबा दिया।

अब मैं इत्ता बुद्धू तो था नहीं। हाँ ये बात जरूर थी की अब तक न तो मेरी कोई गर्लफ्रेंड थी ना मैंने किसी को छुआ वुआ था। मैंने दोनों ओर देखा सब लोग पिक्चर देखने में मशगूल थे। यहाँ तक की गुड्डी भी सबसे ज्यादा ध्यान से देख रही थी।

अब मैंने हल्के से उसके उभार दबा दिए।

उसके ऊपर कोई असर नहीं पड़ा और वो सामने पिक्चर देखती रही और मुझसे बोली, हे जरा मूंगफली बगल में पास कर दो, सब तुम ही खाए जा रहे हो और मैंने बगल में जो मेरी कजिन बैठी थी उसे दे दिया।

थोड़ी देर में गुड्डी ने फिर मेरा हाथ दबा दिया। अब इससे ज्यादा सिगनल क्या मिलता। मैंने उसके छोटे-छोटे चूचियों हल्के से सहलाए फिर दबा दिए और अबकी कसकर दबा दिया। वो कुछ नहीं बोली लेकिन थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ मेरे जीन्स के ऊपर रख दिया।

लेकिन तभी इंटरवल हो गया। हम सब बाहर निकले। वो कोर्नेटो के लिए जिद्द करने लगी और मेरी कजिन ने भी उसका साथ दिया। मैंने लाख समझाया की बहुत भीड़ है स्टाल पे लेकिन वो दोनों। कूद काद के मैं ले आया। लेकिन दो ही मिली। उन दोनों को पकड़ाते हुए मैंने कहा, लो दो ही थी मेरे लिए नहीं मिली।

तब तक पिक्चर शुरू हो गई थी और मेरी कजिन आगे चली गई थी, कोरेनेटो लेकर। लेकिन गुड्डी रुक गई और अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर बोली, तुम मेरी ले लेना ना।

मैंने उसी टोन में जवाब दिया, लूँगा तो मना मत करना। इंटरवल के पहले जो हुआ मेरी हिम्मत बढ़ रही थी।

उसने भी उसी अंदाज में जवाब दिया, मना कौन करता है। हाँ तुम्ही घबड़ा जाते हो। बुद्धू

और वो हाल में घुस गई। मैं सीट पे बैठ गया तो वो मेरी कजिन को सुना के बोली, कुछ लोग एकदम बुद्धू होते हैं, है ना। और उसने भी उसकी हामी में हामी भरी और खिस से हँस दी। मैं बिचारा बीच में।

कोरेनेटो की एक बाईट लेकर उसने मुझे पास की और बोलि- देखा मैं वादे की पक्की हूं, ले लो लेकिन थोड़ा सा लेना।

मैंने कसकर एक बाईट ली उसी जगह से जहां उसने होंठ लगाए थे और हल्के से उसके कान में फुसफुसाया- मजा तो पूरा लेने में है।

जवाब उसने दिया- मेरी जांघ पे एक कसकर चिकोटी काटकर, ठीक ‘उसके’ बगल में। और मुझसे कार्नेटो वापस लेकर। बजाय बाईट लेने के उसने हल्के से लिक किया और फिर अपने होंठों के बीच लगाकर मुझे दिखाकर पूरा गप्प कर लिया।


---



अगले दिन तो हद हो गई।

क्या द्विअर्थी संवाद हैं. आग दोनों ओर लगी है. लगाने वाली कोर्नेटो खिला गयी.
 

Shetan

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गुंजा और बरमूडा

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गुंजा अपने कमरे की ओर जा रही थी। मैंने पीछे से आवाज लगाईं- “हे दे दो ना…”

वो रुकी, मुश्कुराई और बोली- “चलो तुम इत्ता कहते हो तो। "

और आगे वो और पीछे-पीछे मैं उसके कमरे में चल पड़े। कमरे में गुंजा ने अपनी वार्डरोब खोली। झुक कर वो नीचे की शेल्फ पे ढूँढ़ रही थी।

मेरी तो हालत खराब हो गई।

झुकने से उसके गोरे-गोरे भरे मांसल नितम्ब एकदम ऊपर को उठ आये थे। उसकी युनिफार्म की स्कर्ट आलमोस्ट कमर तक उठ आई थी। उसने एक बहुत ही छोटी सी सफेद काटन की पैंटी पहन रखी थी, जो एकदम स्ट्रेच होकर उसकी दरारों में घुस गई थी।

उसके भरे-भरे किशोर चूतड़ों के साथ उसके बीच की दरार भी लगभग साफ दिख रही थी।
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मेरे जंगबहादुर से नहीं रहा गया, वो एकदम 90° डिग्री हो गए और पीछे से रगड़ खाने लगे। अब जो होना है सो हो जाय, मुझसे नहीं रहा गया। मैंने उसकी कमर पकड़ ली। उसने कुछ नहीं बोला और थोड़ा और झुक गई सबसे नीचे वाली शेल्फ में देखते हुए।

मैं पहले धीरे-धीरे फिर कस-कसकर उसके नितम्बों पे अपना हथियार रगड़ने लगा। पहले तो उसने कुछ रेस्पोंड नहीं किया, लेकिन फिर जैसे दायें से बाएं देख रही हो और फिर बाएं से दायें अपनी कमर वो हिलाने लगी। इन सब में आगे से उसकी सफेद शर्ट भी थोड़ी सी स्कर्ट से बाहर निकल आई थी। मेरा एक हाथ उसके पेट पे चला गया। एकदम मक्खन मलाई।

वो कुछ नहीं बोली बस उसका अपने पिछवाड़े को मेरे पीछे रगड़ना थोड़ा हल्का हो गया। मेरी उगलियां ऊपर की ओर बढीं और फिर उसकी ब्रा के बेस पे आकर रुक गईं। थोड़ी देर में दो उंगलियों ने और जोश दिखाया और ब्रा के अन्दर घुस गईं।



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तभी वो झटके से खड़ी हो गई और मेरी ओर मुड़ गई। उसके उरोज अब मेरे सीने से रगड़ खा रहे थे। अपने आप मेरे हाथ उसके नितम्बों पे पहुँच गए।

मुश्कुराकर वो बोली- “मैं एकदम बुद्धू हूँ। तुम्हारी तरह…”

जवाब मेरे हाथों ने दिया, कसकर उसके नितम्ब दबाकर- “क्यों और मैं कैसे बुद्धू हूँ…” मैंने उसके कानों को लगभग होंठों से सहलाते पूछा।

“इसलिए,... जाने दो। गुड्डी दीदी कहती थी की आप बड़े बुद्धू हो, भले ही पढ़ाई में चाहे जित्ते तेज हो। लेकिन मुझे लगता था की आप इत्ते, ये कैसे हो सकता है की। लेकिन जब आज तुमसे मिली। मैं समझ गई की वो जो कहती थी ना आप…”

गुंजा के शब्द मिश्री घोल रहे थे।

मेरे हाथ अब खुलकर उसके चूतड़ दबा रहे थे।

“तो क्या समझा तुमने की मैं उतना बुद्धू नहीं हूँ बल्की उससे कम हूँ या एकदम नहीं हूँ…” मैंने कहा।

उसने कसकर मेरे गाल पे चिकोटी काटी। मेरी दो उंगलियां उसकी गाण्ड की दरार में धंस गई। ‘वो’ तो सामने कसकर रगड़ खा ही रहा था।

लेकिन गूंजा एक बार फिर पलट गयी, अब उसका मुंह अलमारी की ओर, सामने ही टंगा था, बारमूडा उसका,

खिलखिला के हंसी वो, " जी नहीं, गुड्डी दी जित्ता कह रही थीं न उससे भी बहुत ज्यादा, और उसका असर मेरे ऊपर भी पड़ गया, सामने टंगा बारमूडा नहीं दिख रहा , दूँगी तो मैं, अब स्साली कौन जो जीजू को मना करे दे, लेकिन पहले मेरे दिल पे, मेरे सीने पे हाथ रख के कसम खाइये की मेरा इन्तजार करेंगे स्कूल से लौटने का, और मुझसे होली खेल के ही गुड्डी दीदी के साथ जाएंगे। "
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वो बोली और खुद ही खींच के मेरा हाथ अपने उभारों पे अपने सफ़ेद टॉप के ऊपर से,"

एक बार फिर मेरा जगा हुआ मूसल उस षोडसी के नितम्बो से रगड़ खा रहा था, उसके उठने में स्कर्ट भी उसकी ऊपर उठ गयी, और लुंगीबनी साडी भी कब तक मूसल चंद का गुस्सा सहती, वो भी साली जीजा के बीच से हट गयी थी, इसलिए खूंटा अब सीधे उस दर्जा नौ वाली के नितम्बों की दरार पर, छोटी सी सफ़ेद पैंटी उसकी दरार के बीच में सिकुड़ गयी थी,

मेरी हालत खराब थी, मेरे हाथ में वो रुई के गोल गोल फाहे,

और मैं गुंजा को प्रॉमिस कर रहा था, पक्का तेरा वेट करूँगा, स्कूल से तेरे आने के बाद ही, श्योर कसम से

लेकिन गूंजा गुड्डी की असली बहन बल्कि असली बहन से भी बढ़के, हड़काने में एकदम गुड्डी की तरह, हड़काते हुए बोली,

" दीदी ठीक ही बोलती थीं, आप बुद्धू ही नहीं महा बुद्धू हो, मैंने कहा था सीने पे, दिल पे और आप मेरे टॉप पे हाथ रख के कसम खा रहे हो, ये भी नहीं मालूम की दिल कहाँ होता है। "

और जिस टीनेजर ब्रा के अंदर घुसने में मेरी ऊँगली को सात करम हो रहे थे, माथे पर पसीना आ रहा था, उस लड़की ने, सीधे मेरे दोनों हाथों को पकड़ के ब्रा को दरकाते ऊपर कर के सीधे अपने सीने पर,

मेरे दोनों हाथों में गोल गोल हवा मिठाई,

थोड़ी देर पहले नाश्ते की टेबल पर बस मन यही कर रहा था की एक बार ऊपर से ही गलती से ही सही इस टीनेजर के ये उभार टॉप के ऊपर से ही छूने को मिल जाएँ और अब खुद उसने पकड़ के,

मैं हलके हलके से छू रहा था लेकिन अभी भी गूंजा का हाथ मेरे हाथों के ऊपर था और उसने खुद मेरे हाथ अपने उभारों पर दबा के ुइशारा कर दिया उसे क्या चाहिए, और बोली, " बोल न, अभी जो बोल रहे थे, "
वाह साली हो तों गुंजा जैसी. मांगते ही दे देती है. आनंद बाबू भी गुंजा की कया देख कर रुक ही नहीं पाए. क्या जबरदस्त इरोटिक सीन बनाया कोमलजी. मेरे दिल पर हाथ रख कर कसम खाओ की मेरे आने तक नहीं जाओगे. बेचारे आनंद बाबू को पता ही नहीं की दिल कहा है. इतना बड़ा दिल है तुम्हारी साली के पास. और तुम्हे नजर ही नहीं आ रहा. सच कहती है गुड्डी. बुद्धू नहीं महा बुद्धू हो.

माझा आआ गया कोमलजी.

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Shetan

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हवा मिठाई


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लेकिन गूंजा गुड्डी की असली बहन बल्कि असली बहन से भी बढ़के, हड़काने में एकदम गुड्डी की तरह, हड़काते हुए बोली,


" दीदी ठीक ही बोलती थीं, आप बुद्धू ही नहीं महा बुद्धू हो, मैंने कहा था सीने पे, दिल पे और आप मेरे टॉप पे हाथ रख के कसम खा रहे हो, ये भी नहीं मालूम की दिल कहाँ होता है। "

और जिस टीनेजर ब्रा के अंदर घुसने में मेरी ऊँगली को सात करम हो रहे थे, माथे पर पसीना आ रहा था, उस लड़की ने, सीधे मेरे दोनों हाथों को पकड़ के ब्रा को दरकाते ऊपर कर के सीधे अपने सीने पर,



मेरे दोनों हाथों में गोल गोल, हवा मिठाई
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थोड़ी देर पहले नाश्ते की टेबल पर बस मन यही कर रहा था की एक बार ऊपर से ही गलती से ही सही इस टीनेजर के ये उभार टॉप के ऊपर से ही छूने को मिल जाएँ और अब खुद उसने पकड़ के,

मैं हलके हलके से छू रहा था लेकिन अभी भी गूंजा का हाथ मेरे हाथों के ऊपर था और उसने खुद मेरे हाथ अपने उभारों पर दबा के इशारा कर दिया उसे क्या चाहिए, और बोली,


" बोल न, अभी जो बोल रहे थे, "


आवाज कहाँ मेरी निकलती है, हाथों में वो जो मुलायम मुलायम छुअन हो रही थी, कभी कभी आइस पाइस खेलने में अगर कोई लड़की जानबूझ के या गलती से ही साथ छुप गयी तो जो फीलिंग होती थी उससे हजार गुना ज्यादा।

लेकिन अब मैं उतना नौसिखिया भी नहीं था , कल चंदा भाभी के नाइट स्कूल में पढाई की, कच्ची कलियों वाला पाठ तो उन्होंने वेरी इम्पोर्टनेट कह के पढ़ाया था अपनी केस स्टडी भी कराई,

तो मेरे हाथ अब हलके हलके उन बस आते हुए उरोजों को सहला रहे थे, कभी कस के भी दबा देते तो उसकी हल्की सी सिसकी निकल जाती, तर्जनी से मैं बस उभर रहे निप्स को फ्लिक कर देता और मस्ती से जोबन पथरा रहे थे , सस्ने उसकी लम्बी लम्बी चल रही थीं, साफ़ था पहली बार किसी लड़के का हाथ वहां पड़ा था।

" बोलो न प्रॉमिस करो न " हलके हलके गूंजा की आवाज निकल रही थी।
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ये स्साली नौवीं-दसवीं वालियों के चूँचिया उठान, दुप्पटे की तीन परत के अंदर से भी अपनी महक बिखेरते हैं और यहाँ तो उसने खुद खींच के अपने जुबना पे,



अब खुल के उसके जोबन को दबाते, मसलते, रगड़ते और साथ साथ में उसके कोमल गुलाबी गालों पे अपने गाल रगड़ते, मैं बोल रहा था

" एकदम तुम्हारा वेट करूँगा, बिना तुझसे होली खेले नहीं जाऊँगा, पक्का। जब भी स्कूल से लौटोगी तब तक, प्रॉमिस, पिंकी प्रॉमिस, , फिर थोड़ा सा टोन बदल के कस के पूरी ताकत से उसकी चूँची रगड़ के मैंने पूछा उससे हामी भरवाई,

" मेरा जहाँ मन करेगा, मैं वहां रंग लगाऊंगा, फिर गाली मत देना, गुस्सा मत होना, "

और यह के कस के उसके निप्स पे चिकोटी काट के मैंने अपना इरादा साफ कर दिया की मैं कहाँ रंग लगाऊंगा,

वो जोर से खिलखिलाई, फर्श पर हजारों मोती लुढ़क गए, फिर दूध खील वाली हंसी के साथ बोली,



" जीजू गाली तो मैं दूंगी, माँ की बहन की सब की, आखिर साली हूँ, साली कौन जो गाली न दे, और गुस्सा होउंगी अगर आप मेरे आने के पहले चले गए बिना मुझसे मिले, होली खेले, और यह कह के मत डराइए की मैं यहाँ लगाऊंगा, वहां लगाऊंगा, जहाँ मन करे वहां लगाइये, लेकिन एक बात समझ लीजिये, "

उसने एक जबरदस्त पॉज दिया,


कहते हैं न की मरद की जात कमीनी होती है लालची, एकदम सही कहते हैं।

पहले तो मेरा मन कर रहा था, उन उभारों को बस जरा सा बस हलके जैसे गलती से, बस वस में चढ़ते उतरते छू जाता है, वैसे छू जाए, और अब जब दोनों लड्डू मेरे हाथ में थे, तो मेरे मूसल चंद मचल रहे थे , हाथ रस ले रहे है तो मैंने कौन सी गलती की है, एकदम फनफनाये, बौराये, स्कर्ट पहले ही एकदम छल्ले की तरह सिकुड़ी मुकडी कमर के पास सटी, सफ़ेद दो अंगुल की चड्ढी, सहमी दरार के बीच छिपी सिकुड़ी, और चंदा भाभी ने कल जो मोटे सुपाड़े की चमड़ी अपने हाथ से
खोली थी, उसके बाद ही बोल दिया था,

' खबरदार, जो इस दुल्हन का घूंघट फिर से किया तो, कपडे से रगड़ रगड़ कर, खुले सुपाड़े की हालत ऐसी हो जायेगी की एकदम ठस, जल्दी झड़ेगा नहीं और जिस लड़की की चमड़ी पर छू भर गया तो वो हरदम के लिए इसकी पागलहो जाएगी । "

तो बस वही खुला सुपाड़ा उस दर्जा नौ वाली के नितम्बो की कोमल कोमल चमड़ी पर रगड़ रहा था, बस दरार से इंच भर दूर।
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गुंजा ने पॉज के बाद एक हल्का सा टर्न लिया, और जिस काम का मेरा मन कर रहा था पर हिम्मत नहीं पड़ रही थी वो ।

हलकी सी चुम्मी सीधे लिप्पी, और अपने दोनों होंठों के बीच मेरे नीचे वाले होंठ को दबा के हलके से चूस लिया और जब छोड़ा तो वापस चेहरा सामने और बोली

" आप को जहाँ मन करेगा लगाईयेगा लेकिन मेरा भी जहाँ मन करेगा लगाउंगी, और मन भर लगाउंगी, चुप चाप लगवा लीजियेगा, "

और वो कहाँ लगाएगी ये भी उसने साफ़ कर दिया,

कहते हैं न महिलायें अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त करती हैं तो गूंजा ने, अपने कोमल नितम्बो को उस बौराये, प्यासे, पागल खुले सुपाड़े पर रगड़ रगड़ के, पांच बार दाएं बाएं कर के, और खूंटा एकदम प्रेम गली की सांकरी गली के बीच, बस वो पतली सी पैंटी न होती तो,

और प्यार से बोली,

" ये जो बहुत बौरा रहा हैंन, कम से कम पांच कोट, वो भी एकदम पक्के वाले, सबसे पहले गाढ़ा लाल, फिर काही , फिर बैगनी, फिर नीला और सबसे ऊपर पेण्ट, खूब दबा दबा के, आप भी याद करियेगा बनारस में कोई छोटी साली मिली थी।"


" लेकिन मैं भी फिर अंदर तक रंग लगाऊंगा एकदम अंदर तक, सफ़ेद वाला, सोच लो पूरा डालूंगा सोच ले "

मैंने भी अपना इरादा साफ़ कर दिया,



धक्का मुक्की में चड्ढी सरक गयी, मूसलचंद के गुलाबी फांकों तक जाने का रस्ता खुल गया , खुला सुपाड़ा अब उन कुँवारी फांको को रगड़ रहा था,
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गूंजा ने कस के अपनी टाँगे भींच ली और मूसल चंद एकदम फंस गए, वो शोख अदा से बोली,

" लगा दीजियेगा, अंदर तक, और मैं डरने वाली साली नहीं हूँ , सफ़ेद रंग से भी नहीं, आज कल हर तरह की दवा आती है, बस आप ने मेरी कसम खायी है अपनी छोटी साली की कसम बिना मुझसे होली खेले नहीं जाएंगे ये याद रखियेगा।"



और तभी कुछ खट्ट से हुआ।



---और झट्ट से, ये लड़कियां भी न, गूंजा की स्कर्ट नीचे, जुबना का ढक्क्न बंद, सब कुछ चाक चौबंद, मेरा हाथ भी बाहर, और गूंजा ने बात बदल दी,

“जी नहीं। आप, तुम उतने नहीं , उससे भी ज्यादा बुद्धू हो, और आपके असर से मैं भी। ये देखिये बरमुडा मैंने हुक पे टांग रखा था और नीचे ढूँढ़ रही थी। कल रात भर मैं इसे पहने रही, बल्कि दो दिन से यही पहने हूँ, घर में जब स्कूल की ड्रेस पहनी तो उतारकर यहीं टांग दी और नीचे ढूँढ़ रही थी…” वो बोली और उतारकर उसने मुझे पकड़ा दिया।


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उसके अन्दर से उसकी देह की महक आ रही थी। वो शर्मा गई और बोली- “असल में मैं घर में, वो, मेरा, वो नहीं…”



मैंने छेड़ा “अरे साफ-साफ बोलो ना की पैंटी नहीं पहनती घर में। तो ठीक तो है उसको भी हवा लगनी चाहिये। तुम्हारी परी को…”

और ये कहकर मैंने कसकर उसके बरमुडा को सूंघ लिया। यहाँ तक की जहाँ उसकी परी रगड़ खाती थी, उस जगह को उसे दिखा के चाट भी लिया।

“हट बदमाश। गंदे। छि। कभी लगता है एकदम सीधे हो और कभी एकदम बदमाश…मेरा क्या क्या लगा होगा इसमें , दो दिन से और इसके अंदर कुछ नहीं पहनती हूँ ”

मुझे मुक्के से मारते हुये वो बोली-

“और अगर मेरे आने से पहले गए तो मैं कभी नहीं बोलूंगी…”


“कैसे जाऊँगा? तुम मेरी छोटी साली जो हो और तुम्हारी मम्मी ने भी बोल दिया। अब तो मुझे लाइसेंस मिल गया है। बिना साली को रगड़े रंग लगाये। होली खेले…और जब इसमें से इत्ती अच्छी महक आ रही है तो तेरी परी कित्ती महकती होगी, अब तो बिना उसे सूंघे, "

बात मेरी कट गयी , नहीं गुंजा ने कुछ नहीं बोला, बस कस के एक जबरदस्त मुक्का लगाया पीठ में और बोली,

“होली तो मैं खेलूंगी आपसे, आज आपको पता चलेगा की है कोई रंग लगाने वाली…हर जगह पांच कोट ” मुझसे दूर हटकर मुश्कुराते हुए वो बोली।

तब तक नीचे से चन्दा भाभी की आवाज आई-

“हे नीना इंतजार कर रही है तुम्हारा, आओ बस आने वाली है…”

" आती हूँ मम्मी जरा जीजू को अपना बरमूडा दे दूँ।"



" एकदम, " हँसते हुए चंदा भाभी बोलीं " मैं तो अपनी साडी दस मिनट में लेलूँगी, तू नहीं देगी तो तेरे जीजू उघारे उघारे फिरेंगे "


फिर गुंजा बुदबुदाते हुए बोली,

" स्साली कमीनी नीना, बस का झूठा, बस तो अभी दस मिनट बाद आएगी,उसे यार से मिलने की देर हो रही है , गुलाबो में मोटे मोटे चींटे काट रहे होंगे, बस के नाम पे लड़को से नैन मटक्का करेगी, कित्ती बार उस की हाजिरी मैं भरवाती हूँ, क्लास में पीछे एक सीढ़ी है, वैसे तो बंद रहती है, लेकिन जरा सा झटका दो बस, क्लास एक बार शुरू हो जाए नीना महारानी उसी सीढ़ी से गायब, साल भर में छह यारों से मजे ले चुकी हैं, चार तो अभी भी हैं, और बहाना बना रही हैं क्लास का, बस का "


तभी फिर से खट्ट हुआ और हम दोनों की निगाह दीवार की ओर, एक मूषक महराज थे दीवाल के सहारे और हम लोगो के देखते ही झट्ट से बिल में गायब, मतलब पहली बार वाली खट्ट भी उन्ही की कृपा थी।

गूंजा बोली, चूहा,

और खिलखिला के 'मोटे चूहे' को पकड़ लिया। और अबकी कस के, पहले लुंगी के ऊपर से फिर लुंगी हटा के, और अबकी खुल के कस के, प्यार से भी और ताकत से भी,
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" हे ये चूहा भी बिल में घुसना चाहता है, " मैंने उस टीनेजर को छेड़ा,

" एकदम घुसेगा, आज रात को गुड्डी दीदी के बिल में, पक्का। " खिलखिलाते हए वो बोली,
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कभी वो उसे कस के दबा देती तो कभी हलके से बस पकडे रहती जैसे उसकी मोटाई का कड़ेपन का अहसास कर रही हो।

" और अगर ये गुड्डी दीदी की छोटी दीदी के बिल में घुसना चाहे तो "

मैंने फिर थाह लेने की कोशिश की।



गूंजा ने ' चूहे ' को पकडे पकडे , अपनी ऊँगली से न जाने कैसे अपनी चड्ढी सरकायी, टाँगे थोड़ी सी फैलायीं, और अगले पल चूहे का मुंह, दोनों गुलाबी फांको पर, हलकी सी पनियायी, गूंजा ने फिर टाँगे कस के ' चूहे' पर भींच ली और मुझे हड़काते हुए बोली


" चूहे की मर्जी, तुमसे मतलब, फिर चूहा है तो बिल में जाएगा ही "


लेकिन हम लोगो की मस्ती में विघ्न पड़ गया, नीचे से नीना की आवाज आयी, यार क्या कर रही है, मैं आती हूँ ऊपर, देर हो रही है, तुझसे बोलै था न आज जल्दी निकलना है थोड़ा।



" नहीं नहीं तू मत आ मैं आती हूँ नीचे बस एक मिनट, " गूंजा बोली और एक मिनट में चूहा लुंगी के अंदर, स्कर्ट टॉप दुरुस्त।



“हे टाप…” मैंने याद दिलाया।


“मैं भी। आप के चक्कर में। ये भी यहीं है…” और ऊपर से उठाकर उसने दे दिया।

तब तक जैसे उसको कुछ याद आया हो- “हे और मेरी होली गिफ्ट…”

“एकदम कहो तो आज ही…” मैं बोला।



“ना आज तो मेरी शाम को एक्स्ट्रा क्लास है। आप लौटकर आओगे ना होली के चार दिन बाद तब। और छोडूंगी नहीं “

लेकिन फिर बोली ठीक है, मंजूर और बाहर निकालने के लिए बढ़ी।



मैंने आवाज देकर रोक लिया- “बस एक मिनट। जरा मैं ये बर्मुडा ट्राई तो कर लूं कहीं अन्दर न जाए तो…”



हँसती हुई वो बोली- “जाएगा जाएगा। पूरा अन्दर जाएगा। बस ट्राई तो करिए…”


मैं समझ रहा था वो क्या इशारा कर रही है लेकिन मेरा पूरा ध्यान लुंगी के अन्दर उसे चढ़ाने में लगा था। डर ये लग रहा था की कहीं सरक के लुंगी नीचे न आ जाए और मैं उसके सामने।

वो सामने खड़ी देख रही थी।
क्या जबरदस्त कमुख अपडेटेड है कोमलजी. माझा ही आ गया. जीजा साली के बिच की शारारत. साली ने तों जीजा का चूहा पकड़ ही लिया. और मंशा भी बता दी. चूहें की मर्जी तुम्हे क्या.
साली है आनंद बाबू. तुम्हारी मर्जी तुम जहा रंग लगाओ. उसकी मर्जी वो चाहे जहा रंग लगाए. बता भी दिया कब कोनसा रंग लगाएगी. और साली है तों गरियागी भी गएगी भी. तुम्हारी एलवल वाली की और महतारी की गालिया तों सुन नी ही पड़ेगी. माझा आ गया.


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