Premkumar65
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Mast mast update Komal ji.हवा मिठाई
लेकिन गूंजा गुड्डी की असली बहन बल्कि असली बहन से भी बढ़के, हड़काने में एकदम गुड्डी की तरह, हड़काते हुए बोली,
" दीदी ठीक ही बोलती थीं, आप बुद्धू ही नहीं महा बुद्धू हो, मैंने कहा था सीने पे, दिल पे और आप मेरे टॉप पे हाथ रख के कसम खा रहे हो, ये भी नहीं मालूम की दिल कहाँ होता है। "
और जिस टीनेजर ब्रा के अंदर घुसने में मेरी ऊँगली को सात करम हो रहे थे, माथे पर पसीना आ रहा था, उस लड़की ने, सीधे मेरे दोनों हाथों को पकड़ के ब्रा को दरकाते ऊपर कर के सीधे अपने सीने पर,
मेरे दोनों हाथों में गोल गोल, हवा मिठाई
थोड़ी देर पहले नाश्ते की टेबल पर बस मन यही कर रहा था की एक बार ऊपर से ही गलती से ही सही इस टीनेजर के ये उभार टॉप के ऊपर से ही छूने को मिल जाएँ और अब खुद उसने पकड़ के,
मैं हलके हलके से छू रहा था लेकिन अभी भी गूंजा का हाथ मेरे हाथों के ऊपर था और उसने खुद मेरे हाथ अपने उभारों पर दबा के इशारा कर दिया उसे क्या चाहिए, और बोली,
" बोल न, अभी जो बोल रहे थे, "
आवाज कहाँ मेरी निकलती है, हाथों में वो जो मुलायम मुलायम छुअन हो रही थी, कभी कभी आइस पाइस खेलने में अगर कोई लड़की जानबूझ के या गलती से ही साथ छुप गयी तो जो फीलिंग होती थी उससे हजार गुना ज्यादा।
लेकिन अब मैं उतना नौसिखिया भी नहीं था , कल चंदा भाभी के नाइट स्कूल में पढाई की, कच्ची कलियों वाला पाठ तो उन्होंने वेरी इम्पोर्टनेट कह के पढ़ाया था अपनी केस स्टडी भी कराई,
तो मेरे हाथ अब हलके हलके उन बस आते हुए उरोजों को सहला रहे थे, कभी कस के भी दबा देते तो उसकी हल्की सी सिसकी निकल जाती, तर्जनी से मैं बस उभर रहे निप्स को फ्लिक कर देता और मस्ती से जोबन पथरा रहे थे , सस्ने उसकी लम्बी लम्बी चल रही थीं, साफ़ था पहली बार किसी लड़के का हाथ वहां पड़ा था।
" बोलो न प्रॉमिस करो न " हलके हलके गूंजा की आवाज निकल रही थी।
ये स्साली नौवीं-दसवीं वालियों के चूँचिया उठान, दुप्पटे की तीन परत के अंदर से भी अपनी महक बिखेरते हैं और यहाँ तो उसने खुद खींच के अपने जुबना पे,
अब खुल के उसके जोबन को दबाते, मसलते, रगड़ते और साथ साथ में उसके कोमल गुलाबी गालों पे अपने गाल रगड़ते, मैं बोल रहा था
" एकदम तुम्हारा वेट करूँगा, बिना तुझसे होली खेले नहीं जाऊँगा, पक्का। जब भी स्कूल से लौटोगी तब तक, प्रॉमिस, पिंकी प्रॉमिस, , फिर थोड़ा सा टोन बदल के कस के पूरी ताकत से उसकी चूँची रगड़ के मैंने पूछा उससे हामी भरवाई,
" मेरा जहाँ मन करेगा, मैं वहां रंग लगाऊंगा, फिर गाली मत देना, गुस्सा मत होना, "
और यह के कस के उसके निप्स पे चिकोटी काट के मैंने अपना इरादा साफ कर दिया की मैं कहाँ रंग लगाऊंगा,
वो जोर से खिलखिलाई, फर्श पर हजारों मोती लुढ़क गए, फिर दूध खील वाली हंसी के साथ बोली,
" जीजू गाली तो मैं दूंगी, माँ की बहन की सब की, आखिर साली हूँ, साली कौन जो गाली न दे, और गुस्सा होउंगी अगर आप मेरे आने के पहले चले गए बिना मुझसे मिले, होली खेले, और यह कह के मत डराइए की मैं यहाँ लगाऊंगा, वहां लगाऊंगा, जहाँ मन करे वहां लगाइये, लेकिन एक बात समझ लीजिये, "
उसने एक जबरदस्त पॉज दिया,
कहते हैं न की मरद की जात कमीनी होती है लालची, एकदम सही कहते हैं।
पहले तो मेरा मन कर रहा था, उन उभारों को बस जरा सा बस हलके जैसे गलती से, बस वस में चढ़ते उतरते छू जाता है, वैसे छू जाए, और अब जब दोनों लड्डू मेरे हाथ में थे, तो मेरे मूसल चंद मचल रहे थे , हाथ रस ले रहे है तो मैंने कौन सी गलती की है, एकदम फनफनाये, बौराये, स्कर्ट पहले ही एकदम छल्ले की तरह सिकुड़ी मुकडी कमर के पास सटी, सफ़ेद दो अंगुल की चड्ढी, सहमी दरार के बीच छिपी सिकुड़ी, और चंदा भाभी ने कल जो मोटे सुपाड़े की चमड़ी अपने हाथ से
खोली थी, उसके बाद ही बोल दिया था,
' खबरदार, जो इस दुल्हन का घूंघट फिर से किया तो, कपडे से रगड़ रगड़ कर, खुले सुपाड़े की हालत ऐसी हो जायेगी की एकदम ठस, जल्दी झड़ेगा नहीं और जिस लड़की की चमड़ी पर छू भर गया तो वो हरदम के लिए इसकी पागलहो जाएगी । "
तो बस वही खुला सुपाड़ा उस दर्जा नौ वाली के नितम्बो की कोमल कोमल चमड़ी पर रगड़ रहा था, बस दरार से इंच भर दूर।
गुंजा ने पॉज के बाद एक हल्का सा टर्न लिया, और जिस काम का मेरा मन कर रहा था पर हिम्मत नहीं पड़ रही थी वो ।
हलकी सी चुम्मी सीधे लिप्पी, और अपने दोनों होंठों के बीच मेरे नीचे वाले होंठ को दबा के हलके से चूस लिया और जब छोड़ा तो वापस चेहरा सामने और बोली
" आप को जहाँ मन करेगा लगाईयेगा लेकिन मेरा भी जहाँ मन करेगा लगाउंगी, और मन भर लगाउंगी, चुप चाप लगवा लीजियेगा, "
और वो कहाँ लगाएगी ये भी उसने साफ़ कर दिया,
कहते हैं न महिलायें अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त करती हैं तो गूंजा ने, अपने कोमल नितम्बो को उस बौराये, प्यासे, पागल खुले सुपाड़े पर रगड़ रगड़ के, पांच बार दाएं बाएं कर के, और खूंटा एकदम प्रेम गली की सांकरी गली के बीच, बस वो पतली सी पैंटी न होती तो,
और प्यार से बोली,
" ये जो बहुत बौरा रहा हैंन, कम से कम पांच कोट, वो भी एकदम पक्के वाले, सबसे पहले गाढ़ा लाल, फिर काही , फिर बैगनी, फिर नीला और सबसे ऊपर पेण्ट, खूब दबा दबा के, आप भी याद करियेगा बनारस में कोई छोटी साली मिली थी।"
" लेकिन मैं भी फिर अंदर तक रंग लगाऊंगा एकदम अंदर तक, सफ़ेद वाला, सोच लो पूरा डालूंगा सोच ले "
मैंने भी अपना इरादा साफ़ कर दिया,
धक्का मुक्की में चड्ढी सरक गयी, मूसलचंद के गुलाबी फांकों तक जाने का रस्ता खुल गया , खुला सुपाड़ा अब उन कुँवारी फांको को रगड़ रहा था,
गूंजा ने कस के अपनी टाँगे भींच ली और मूसल चंद एकदम फंस गए, वो शोख अदा से बोली,
" लगा दीजियेगा, अंदर तक, और मैं डरने वाली साली नहीं हूँ , सफ़ेद रंग से भी नहीं, आज कल हर तरह की दवा आती है, बस आप ने मेरी कसम खायी है अपनी छोटी साली की कसम बिना मुझसे होली खेले नहीं जाएंगे ये याद रखियेगा।"
और तभी कुछ खट्ट से हुआ।
---और झट्ट से, ये लड़कियां भी न, गूंजा की स्कर्ट नीचे, जुबना का ढक्क्न बंद, सब कुछ चाक चौबंद, मेरा हाथ भी बाहर, और गूंजा ने बात बदल दी,
“जी नहीं। आप, तुम उतने नहीं , उससे भी ज्यादा बुद्धू हो, और आपके असर से मैं भी। ये देखिये बरमुडा मैंने हुक पे टांग रखा था और नीचे ढूँढ़ रही थी। कल रात भर मैं इसे पहने रही, बल्कि दो दिन से यही पहने हूँ, घर में जब स्कूल की ड्रेस पहनी तो उतारकर यहीं टांग दी और नीचे ढूँढ़ रही थी…” वो बोली और उतारकर उसने मुझे पकड़ा दिया।
उसके अन्दर से उसकी देह की महक आ रही थी। वो शर्मा गई और बोली- “असल में मैं घर में, वो, मेरा, वो नहीं…”
मैंने छेड़ा “अरे साफ-साफ बोलो ना की पैंटी नहीं पहनती घर में। तो ठीक तो है उसको भी हवा लगनी चाहिये। तुम्हारी परी को…”
और ये कहकर मैंने कसकर उसके बरमुडा को सूंघ लिया। यहाँ तक की जहाँ उसकी परी रगड़ खाती थी, उस जगह को उसे दिखा के चाट भी लिया।
“हट बदमाश। गंदे। छि। कभी लगता है एकदम सीधे हो और कभी एकदम बदमाश…मेरा क्या क्या लगा होगा इसमें , दो दिन से और इसके अंदर कुछ नहीं पहनती हूँ ”
मुझे मुक्के से मारते हुये वो बोली-
“और अगर मेरे आने से पहले गए तो मैं कभी नहीं बोलूंगी…”
“कैसे जाऊँगा? तुम मेरी छोटी साली जो हो और तुम्हारी मम्मी ने भी बोल दिया। अब तो मुझे लाइसेंस मिल गया है। बिना साली को रगड़े रंग लगाये। होली खेले…और जब इसमें से इत्ती अच्छी महक आ रही है तो तेरी परी कित्ती महकती होगी, अब तो बिना उसे सूंघे, "
बात मेरी कट गयी , नहीं गुंजा ने कुछ नहीं बोला, बस कस के एक जबरदस्त मुक्का लगाया पीठ में और बोली,
“होली तो मैं खेलूंगी आपसे, आज आपको पता चलेगा की है कोई रंग लगाने वाली…हर जगह पांच कोट ” मुझसे दूर हटकर मुश्कुराते हुए वो बोली।
तब तक नीचे से चन्दा भाभी की आवाज आई-
“हे नीना इंतजार कर रही है तुम्हारा, आओ बस आने वाली है…”
" आती हूँ मम्मी जरा जीजू को अपना बरमूडा दे दूँ।"
" एकदम, " हँसते हुए चंदा भाभी बोलीं " मैं तो अपनी साडी दस मिनट में लेलूँगी, तू नहीं देगी तो तेरे जीजू उघारे उघारे फिरेंगे "
फिर गुंजा बुदबुदाते हुए बोली,
" स्साली कमीनी नीना, बस का झूठा, बस तो अभी दस मिनट बाद आएगी,उसे यार से मिलने की देर हो रही है , गुलाबो में मोटे मोटे चींटे काट रहे होंगे, बस के नाम पे लड़को से नैन मटक्का करेगी, कित्ती बार उस की हाजिरी मैं भरवाती हूँ, क्लास में पीछे एक सीढ़ी है, वैसे तो बंद रहती है, लेकिन जरा सा झटका दो बस, क्लास एक बार शुरू हो जाए नीना महारानी उसी सीढ़ी से गायब, साल भर में छह यारों से मजे ले चुकी हैं, चार तो अभी भी हैं, और बहाना बना रही हैं क्लास का, बस का "
तभी फिर से खट्ट हुआ और हम दोनों की निगाह दीवार की ओर, एक मूषक महराज थे दीवाल के सहारे और हम लोगो के देखते ही झट्ट से बिल में गायब, मतलब पहली बार वाली खट्ट भी उन्ही की कृपा थी।
गूंजा बोली, चूहा,
और खिलखिला के 'मोटे चूहे' को पकड़ लिया। और अबकी कस के, पहले लुंगी के ऊपर से फिर लुंगी हटा के, और अबकी खुल के कस के, प्यार से भी और ताकत से भी,
" हे ये चूहा भी बिल में घुसना चाहता है, " मैंने उस टीनेजर को छेड़ा,
" एकदम घुसेगा, आज रात को गुड्डी दीदी के बिल में, पक्का। " खिलखिलाते हए वो बोली,
कभी वो उसे कस के दबा देती तो कभी हलके से बस पकडे रहती जैसे उसकी मोटाई का कड़ेपन का अहसास कर रही हो।
" और अगर ये गुड्डी दीदी की छोटी दीदी के बिल में घुसना चाहे तो "
मैंने फिर थाह लेने की कोशिश की।
गूंजा ने ' चूहे ' को पकडे पकडे , अपनी ऊँगली से न जाने कैसे अपनी चड्ढी सरकायी, टाँगे थोड़ी सी फैलायीं, और अगले पल चूहे का मुंह, दोनों गुलाबी फांको पर, हलकी सी पनियायी, गूंजा ने फिर टाँगे कस के ' चूहे' पर भींच ली और मुझे हड़काते हुए बोली
" चूहे की मर्जी, तुमसे मतलब, फिर चूहा है तो बिल में जाएगा ही "
लेकिन हम लोगो की मस्ती में विघ्न पड़ गया, नीचे से नीना की आवाज आयी, यार क्या कर रही है, मैं आती हूँ ऊपर, देर हो रही है, तुझसे बोलै था न आज जल्दी निकलना है थोड़ा।
" नहीं नहीं तू मत आ मैं आती हूँ नीचे बस एक मिनट, " गूंजा बोली और एक मिनट में चूहा लुंगी के अंदर, स्कर्ट टॉप दुरुस्त।
“हे टाप…” मैंने याद दिलाया।
“मैं भी। आप के चक्कर में। ये भी यहीं है…” और ऊपर से उठाकर उसने दे दिया।
तब तक जैसे उसको कुछ याद आया हो- “हे और मेरी होली गिफ्ट…”
“एकदम कहो तो आज ही…” मैं बोला।
“ना आज तो मेरी शाम को एक्स्ट्रा क्लास है। आप लौटकर आओगे ना होली के चार दिन बाद तब। और छोडूंगी नहीं “
लेकिन फिर बोली ठीक है, मंजूर और बाहर निकालने के लिए बढ़ी।
मैंने आवाज देकर रोक लिया- “बस एक मिनट। जरा मैं ये बर्मुडा ट्राई तो कर लूं कहीं अन्दर न जाए तो…”
हँसती हुई वो बोली- “जाएगा जाएगा। पूरा अन्दर जाएगा। बस ट्राई तो करिए…”
मैं समझ रहा था वो क्या इशारा कर रही है लेकिन मेरा पूरा ध्यान लुंगी के अन्दर उसे चढ़ाने में लगा था। डर ये लग रहा था की कहीं सरक के लुंगी नीचे न आ जाए और मैं उसके सामने।
वो सामने खड़ी देख रही थी।