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चिराग फुलवा को पकड़कर उनके कमरे में ले गया और दरवाजा हैरानी से देखती प्रिया के मुंह पर बंद कर दिया।
चिराग, “मां, तुम भूखी हो।”
फुलवा चिराग से लिपट गई और दोनों के वजन से दरवाजा बज गया।
फुलवा चिराग के कान में, “बेहद भूखी!!”
चिराग असहज होकर, “बाहर! वह लड़की!!”
फुलवा चिराग को चूमते हुए, “प्रिया!! उसे सब बता दिया है!!”
चिराग चौंक कर, “सब!!”
फुलवा, “इतना वक्त नहीं था!!… बस मेरा अतीत, मेरी बीमारी, मेरा इलाज और हमारा रिश्ता!”
चिराग, “और वह कुछ नहीं बोली?”
फुलवा ने नीचे झुककर चिराग के पैंट की चैन खोली और अंदर से उसका फूला हुआ लौड़ा बाहर निकाला। चिराग के लौड़े पर थूंक कर उसे हिलाते हुए फुलवा ने चिराग को देखा।
फुलवा, “लाचार है! उसके पास दूसरा सहारा नहीं! उसकी जान को खतरा है और मैने उसकी जान बचाई है! वह मेरे कहने पर तुझे भी चुधवा ले!!”
चिराग डांटते हुए, “मां! ऐसे मजाक में भी नहीं कहना!!”
फुलवा ने अपने बेटे की वाजिब डांट खाते हुए उसका लौड़ा चूसने लगी। चिराग ने भी सुबह से अपना माल दबाए रखा था और वह उसे अपनी मां की कोख में ही भरना चाहता था।
चिराग ने अपनी मां को उठाया और घुमाकर दरवाजे पर दबाया। चिराग की उंगलियों ने मां की साड़ी और पेटीकोट को कमर तक ऊपर उठाया और उसे मोड़ कर मां की कमर से दरवाजे पर दबा दिया। फुलवा की भूखी चूत में जमा यौन रस से भीग कर उसकी पैंटी कब की भीग चुकी थी। अब यौन रसों की पतली धारा फुलवा की जांघों पर से होते हुए नीचे बह रही थी।
चिराग ने जल्दी से फुलवा की पैंटी की बीच में बनी गीली पट्टी को खीच कर एक ओर सरका दिया। फुलवा की टपकती गरम चूत को बाहर की ठंडी हवा लगी तो उसकी यौन पंखुड़ियां फूल की तरह खिल उठी और फैल गई। चिराग ने अपने मोटे सुपाड़े को फुलवा की टपकती पंखुड़ियों पर घुमाया और फुलवा उत्तेजना वश सिसक उठी।
चिराग ने अपने लौड़े को अपनी मां की गरम बहती जवानी में धीरे धीरे भरना शुरू किया तो फुलवा ने भूख से तड़प कर उसके इस तरीके का विरोध किया।
फुलवा अपनी कमर हिलाकर दरवाजे को बजाते हुए चीख पड़ी, “नहीं!…
बेटा ऐसे नही तड़पते!!…
आह!!…
आह!!…
आ!!…
मैने तुझे भूखा रखा!!…
गुस्सा नहीं होना!!…
मेरी बात मान!!…
आह!!…”
फुलवा ने अपने हाथों से चिराग के कंधे पकड़ लिए और अपने पैरों को उठाकर चिराग के चाप लगाते कूल्हों के पीछे अपनी एडियां अटका ली। चिराग का हर चाप फुलवा की चीख निकालता और दरवाजे को बजाता। जवान फौलादी लौड़ा उबलती भूखी जवानी में समा चुका था तो अब होश तो आग में पानी चिड़कने के बाद ही आना था।
सुबह से भूखे प्रेमियों की भूख शांत होने में पूरा आधा घंटा गया जिस दौरान चिराग लगातार दो बार झड़ गया तो फुलवा की चीखों की किसीने गिनती नहीं की।
गिनती तो हुई थी पर इसकी खबर फुलवा को देर से चली। फुलवा अपने कपड़े बदलकर बाहर आई तो प्रिया चिराग को शाम का नाश्ता परोस रही थी। फुलवा को देख कर प्रिया की आंखों में इतनी हमदर्दी भर आई की फुलवा पहले समझ ही नहीं पाई।
फुलवा को नाश्ते के बाद अकेले में पकड़ प्रिया, “मर्द जात बड़ी बेरहम होती है। आप को बोलने तक का वक्त नहीं दिया!!”
फुलवा को समझने में कुछ पल लगे और फिर वह जोर से हंसने लगी। फुलवा के पेट में दर्द तो आंखों में आंसू आ गए। प्रिया नासमझ होने से देखती रह गई। फुलवा ने आखिर कार अपने आप को संभाला और प्रिया को गले लगाकर उसके गाल और माथे को चूमा।
असहज प्रिया को देख फुलवा, “मेरी मासूम बच्ची तुझे किसी की नज़र ना लगे!!”
प्रिया, “मतलब? आप दर्द से चिल्ला रही थी और वो अपनी मां को दरवाजे पर पटकते हुए तड़पा रहा था। आप की बातें मैंने सुनी! आप उसे कह रही थीं कि वह आप को ना तड़पाए पर वह लगा रहा। मां भी ग्राहकों के आने पर ऐसे ही चिल्लाती रहती!”
फुलवा समझाते हुए, “मेरी भोली बच्ची तेरी मां बहुत अच्छी थी जो उसने अपनी हालातों में भी तुझे इतनी मासूमियत में रहने दिया। अगर औरत अपनी मर्जी ना हो कर भी मर्द का साथ देने को मजबूर हो जाए तो यह दर्द वाकई बहुत बुरा होता है। पर जब औरत को अपने मर्द से प्यार हो और वह उसे अपनाना चाहती हो तो यह दर्द मज़ेदार होता है! तुम जवान हो रही हो, जल्द ही प्यार भी करने लगोगी! तब बताना!”
प्रिया मुंह बनाकर, “आप मुझे बहलाने की कोशिश कर रही हो! मैने मर्द का अंग देखा है! ऐसा गंदा मोटा कीड़े जैसा हिस्सा कोई औरत अपने अंदर अपनी मर्जी से कभी नहीं लेगी! और दर्द तो दर्द होता है। अपने दे या पराए, अच्छा क्यों लगेगा? मुझे कुछ नहीं पता! मैं बस इतना जानती हूं कि अगर कोई मर्द मुझे छूने की भी कोशिश करे तो मैं उसे मार दूंगी या मर जाऊंगी!”
फुलवा ने अपनी मासूम बच्ची के सर पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराकर बात टाल दी।