59
प्रिया को बगल के खाली कमरे में सोने को कह कर चिराग अपनी मां के कमरे में आ गया।
चिराग, “विश्वास नहीं होता कि एक साल के अंदर हमने कितना सामान इकट्ठा कर लिया है! मोहनजी ने अपने किसी दोस्त का कमरा किराए पर दिलाया है और इसी वजह से हमें आसानी होगी। सुना है मुंबई में अच्छा घर मिलना बेहद मुश्किल है!”
फुलवा, “दोस्त से? भाड़ा कितना है सुना? इतने में नया घर खरीद लो!! मुझे तो वह दोस्त अच्छा नहीं लगता! एखाद महीने में हम दूसरा घर ले लेंगे!”
चिराग अपनी मां को पीछे से पकड़ कर उसके गाल को चूमते हुए, “मां, कीमत जगह की नही जमीन की होती है। घर कहां बनाया है वह भी मायने रखता है!”
चिराग ने अपनी मां को बाहों में लेते हुए उसके भरे हुए मम्मे दबाने लगा।
फुलवा, “रुको!! मैं प्रिया को बगल के कमरे में सोने के लिए कहती हूं! फिर हम सोते हैं।”
चिराग फुलवा का गाउन उतारते हुए, “मैंने उसे बता दिया है मां! आप बस अपने इलाज पर ध्यान दो!”
फुलवा ने अपने गाउन को उड़ाया और चिराग को चूमते हुए, “कर दी ना मर्दों वाली हरकत! (चिराग की पैंट उतरते हुए) बेचारी को लगता है कि मर्द औरतों पर जबरदस्ती करते हैं और तुमने जा कर उसे कुछ ऐसे कहा होगा की वह उसे भी मनमानी समझेगी।“
चिराग फुलवा को नंगा करके बेड पर लिटाते हुए, “औरतों को समझना ना मुमकिन है। अगर अच्छे से पेश आओ तो तुम्हारी बात नही मानेंगे और कुछ बोलो तो मनमानी कहेगी!”
फुलवा ने अपनी उंगलियों से अपनी चूत के होठों को खोल कर फैलाया, “अब तो समझ रहे हो ना की मैं क्या चाहती हूं?”
चिराग चिढ़ाते हुए, “आप को गर्मी हो रही है और अंदर ठंडी हवा चाहती हैं?”
चिराग ने अपनी मां के पैरों में बैठ कर उसके तलवे चाटे और चूमे। गुदगुदी से फुलवा हंस पड़ी। चिराग ने अपनी मां के बाएं टखने को चूमकर अपने दांतों से रगड़ा और फुलवा की उत्तेजना में आह निकल गई।
चिराग को अब कोई जल्दी नहीं थी और वह धीरे धीरे अपनी मां की टांगों को चूमता चाटता उसके बदन में आग भड़काता ऊपर उठने लगा। चिराग ने अपनी मां की जांघों को अंदर से चूमा तब तक फुलवा की चूत में से रसों का सैलाब बह रहा था।
चिराग, “मां!! आप तो गद्दे को गीला कर दोगी! आओ मैं साफ कर दूं!”
चिराग ने अपने होठों को चूत के नीचे लगाकर फुलवा की गांड़ को चूमते फुलवा ने अपनी कमर उठकर उसका स्वागत किया। चिराग ने अपनी जीभ को बढ़ाकर पहले फुलवा की गांड़ को छेड़ते हुए उसके रस और अपनी लार से उसकी गांड़ को उत्तेजना वश झड़ने को मजबूर किया और फिर चूत में से बह आए रसों को पीकर ही ऊपर उठा।
फुलवा (अधीर होकर), “ बेटा!!…
अब और मत तड़पाओ!!…
आ जाओ!!…”
लेकिन चिराग नहीं माना। चिराग ने अपनी मां के निचले होठों को चूमते हुए उसकी जवानी की गरम भट्टी को अपनी जीभ से भड़काया। फुलवा ने सिरहाने की चादर को मुट्ठियों में पकड़ कर अपने सर को हिलाते हुए अपने आप पर काबू करने की नाकाम कोशिश की। फुलवा के माथे पर पसीना जमा हो गया और वह चीखते हुए कांपने लगी। फुलवा की चूत में से यौन रसों की धाराएं बहती रही को चिराग बिना सोचे उन्हें गटागट पी गया।
झड़कर लगभग बेसुध पड़ी फुलवा के ऊपर चिराग चढ़ गया और उसके रसों से भीगे मुंह से वह उसे चूमने लगा। चिराग के होठों पर से अपना स्वाद चखते हुए फुलवा ने राहत की आह भरी जब चिराग का लौड़ा उसकी भूखी जवानी में समा गया।
चिराग को अब कोई जल्दी नहीं थी और वह अपने लौड़े को सुपाड़े की नोक तक बाहर निकाल कर फिर लौड़े की जड़ को अपनी मां की चूत पर दबाकर रगड़ता। फुलवा लगातार झड़ते हुए मजे से चुधवाती रही जब तक आधे घंटे बाद चिराग ने कराहते हुए अपने गाढ़े वीर्य से फुलवा की कोख को रंग नही दिया। चिराग फुलवा के ऊपर पड़ा रहा और फुलवा ने अपने बेटे के पसीने से भीगी पीठ पर हाथ फेरा।
फुलवा ने अपनी आंख खोली तो उसे दरवाजे के खुले किनारे में एक डरी हुई आंख दिखी। दरवाजा झट से बंद हो गया और फुलवा की हंसी निकल गई। चिराग ने बगल में लेटते हुए उससे हंसने की वजह पूछी पर फुलवा ने बताने से मना कर दिया।