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चिराग ने फुलवा और प्रिया को गाड़ी में से उतारते देखा और आगे बढ़ा।
फुलवा ने सत्या को गले लगाया और मुंबई में आने पर अपनी मुंबई वाली सहेलियों से मिलाने का वादा किया। सत्या ने फुलवा के नए कपड़े देखे थे और पिछली खरीददारी के बाद मोहन का बर्ताव याद कर तुरंत मान गई।
नारायण जी ने फुलवा को एक ओर ले जा कर बताया की पहली पोटली सही घर पहुंच चुकी है। अगले महीने उनका बच्चा अपनी पैसों की कमी से अधूरी रही पढ़ाई पूरी करने दिल्ली जा रहा है। हालांकि खजाना लौटने वाले की पहचान बताने से मना कर दिया गया था पर घर वालों ने फुलवा के लिए आशीर्वाद भेजे थे।
फुलवा का दिल भर आया कि किसीने उसे जाने बगैर उसे आशीर्वाद दिए थे। आज तक लोग उसके बारे में रण्डी डकैत सुनकर बस गालियां देते थे। फुलवा ने प्रिया का हाथ पकड़ कर चिराग के पीछे चलते हुए फर्स्ट क्लास के डिब्बे में कदम रखा। TTE साहब ने तीनों के टिकट देखे और एक छोटे कमरे में उन्हें बिठाकर दरवाजा बंद कर लिया।
प्रिया और फुलवा इस छोटे से कमरे को देखने लगे।
प्रिया, “हमें इस कमरे में रहना होगा? हम बाहर नहीं जा सकते?”
फुलवा, “एक दिन का रास्ता है, कल सुबह पहुंचेंगे। खाना लिया है क्या? और पेट दर्द हुआ तो?”
चिराग को एहसास हुआ कि दोनों औरतों ने अपनी पूरी जिंदगी किसी न किसी रूप से कैद में गुजारी थी। इन्हें ट्रेन का तजुर्बा नहीं था!
चिराग ने उन्हें बताया की ट्रेन में अपना होटल है और भूख लगने पर मर्जी से खाना मिलेगा। साथ ही वह दोनों को डिब्बे के अंत में बने शौचालय में ले गया और वहां की बातें समझाई। प्रिया और फुलवा इस अनोखे सफर के लिए बहुत उत्तेजित हो गई। चिराग ने दोनों को गाड़ी के डिब्बे को देखने दिया और फिर जब दोनों बैठ गईं तो जरूरी बात करने लगा।
चिराग, “हम जितना हो सके प्रिया का नाम या कहें पूरा अस्तित्व छुपाना चाहते हैं। इस लिए मैंने टिकट निकालते हुए Mr and Mrs चिराग और Ms फुलवा लिखा। अब कागजी तौर पर मैं और प्रिया पति पत्नी हैं जो अपनी मां के साथ मुंबई जा रहे हैं। लोग एक लड़की को ढूंढ रहे होंगे न की एक परिवार की बहु को।”
प्रिया चिराग का नाम पति की जगह देख कर लाल हो गई क्योंकि उसकी जवानी उसकी आंखों के सामने चिराग का कीड़ा नचा रही थी। फुलवा प्रिया की बेचैनी पर हंस पड़ी और चिराग भी कुछ शरमा गया।
चिराग सफाई देते हुए, “ये बस इसे छुपने…”
फुलवा का मन अपने 19 वर्ष के बेटे की 18 वर्ष की लड़की के प्रति स्वाभाविक आकर्षण से उसे अतीत के एक चेहरे की ओर ले गया।
फुलवा चिराग की आवाज से वर्तमान में आई।
फुलवा, “क्या?…”
चिराग, “दोपहर के खाने की ऑर्डर देनी है। इन चीजों में से क्या पसंद करोगी?”
फुलवा पिछले एक साल में कई चीजों को आदि हो चुकी थी पर इतने तरह का खाना प्रिया के लिए नया था। फुलवा ने मां की ममता से तीन तरह के व्यंजन मंगाए और सबने मिलकर सब चखने का तय किया।
चिराग ने स्टेशन पर इंतजार करते हुए अखबार, ताश की गड्डी और कुछ खेल खरीदे थे। ट्रेन चल पड़ी तो फुलवा और प्रिया खिड़की की कांच को नाक लगाकर लखनऊ को जाते हुए देख रही थी। चिराग ने फुलवा को चिढ़ाया की वह हवाई जहाज से सफर कर चुकी थी तो फुलवा ने चिराग को बताया की ट्रेन का मजा कुछ और ही है! चिराग को इसी का डर था क्यूंकि अब अगले 24 घंटे तक या तो फुलवा को अपनी भूख पर काबू पाना होगा या फिर उसे प्रिया की आंखों के सामने अपनी मां की भूख मिटानी होगी।
खाना आने तक फुलवा और प्रिया बातें करते हुए बाहर देखती रही। प्रिया के लिए यह पहला सफर था क्योंकि ओझा जब उसे लखनऊ लाया था तब पूरे रास्ते उसकी आंखें और हाथ पैर बंधे हुए थे। प्रिया फुलवा को रास्ते की लगभग हर चीज दिखा रही थी तो फुलवा उसे मुंबई के बारे में बता रही थी।
खाने में एक पंजाबी थाली थी, चिकन थाली थी और चाइनीज भी मंगवाया था। हंसी मजाक में सबने सब कुछ बांट कर खाया जब तक खाने के बाद मिठाई खाने की बात नहीं आई।
मिठाई में 2 रसगुल्ले थे और लोग 3। प्रिया जानती थी कि मां बेटे न केवल उसके लिए खर्चा कर रहे थे पर उसके लिए अपना घर और शहर तक बदल रहे थे। प्रिया ने कहा कि उसका पेट भर चुका है और वह और नहीं खा सकती।
फुलवा गरीबी से इतने दिन दूर नहीं रही थी जो इस अनाथ बच्ची के टूटते दिल की आवाज न सुन पाए। फुलवा ने एक रसगुल्ला उठाया और चिराग को खिलाया। फिर फुलवा ने दूसरा रसगुल्ला उठाया और प्रिया को खिलाया।
प्रिया के विरोध को चुप कराते हुए फुलवा, “चुप!!…
बिलकुल चुप!!…
मां से जुबान लड़ाएगी?”
प्रिया चुपके से फुलवा की बाहों में समा गई और काफी देर तक रोती रही। चिराग अपने जीवन में आई इन दो औरतों को देख कर कुछ बोलने की हालत में नहीं था।
ट्रेन तेजी से रास्ता काट रही थी पर चिराग की नजर फुलवा पर थी। फुलवा प्रिया के साथ खेलते हुए उसके कई हुनर समझ रही थी। जैसे कि प्रिया के खिलाफ ताश खेलना बेकार था। वह हर चल में चला हर पत्ता याद रखती और इसी वजह से उसे हराना नामुमकिन था। चिराग ने प्रिया को अखबार पढ़ने को कहा और फिर उस से सवाल पूछे। प्रिया छोटी से छोटी खबर भी पन्ने के क्रमांक और जगह के साथ बता सकती थी।
फुलवा और चिराग ने प्रिया की याददाश की तारीफ की तो प्रिया बहुत खुश हो गई। कोठे पर पलते हुए अपने बढ़ते हुस्न की गंदी तारीफ सुनने को आदि प्रिया को अपनी नई मां के साथ नई खूबी पता चली थी।
रात होने लगी तो फुलवा का चेहरा लाल और सांसे तेज होने लगी। फुलवा की हालत पर चिराग के साथ साथ प्रिया की भी नजर थी। चिराग ने रात का खाना जल्दी मंगाया तो प्रिया ने खाने के तुरंत बाद थकान बताकर सोने की तयारी की। कमरे में चार लोगों की जगह थी पर सिर्फ 3 लोग होने से चुनाव करना मुमकिन था।
प्रिया ने एक ओर की ऊपरी बेड पर सोना तय किया तो फुलवा ने अपनी हालत को जानकर उसके नीचे का बेड लिया। चिराग के पास चुनाव था तो वह दूसरी ओर निचली बेड पर लेट गया।
प्रिया जल्द ही हल्के खर्राटे लेने लगी। चिराग ने भी अपनी आंखें बंद कर ली। चिराग को अपनी मां की तेज सांसों से उसकी बढ़ती भूख का एहसास हो रहा था पर साथ ही एक जवान लड़की की आंखों के सामने अपनी मां को चोदने में असहज महसूस हो रहा था। चिराग इसी विचार में डूबा हुआ था जब उसे अपने लौड़े को सहलाने का एहसास हुआ। चिराग ने चौंक कर अपनी आंखें खोली।
चिराग चौंक कर, “ मां!!”
फुलवा चिढ़ाते हुए, “किसी और का इंतजार कर रहे थे?”
चिराग फुसफुसाते हुए, “मां!! वो देख लेगी!!”
फुलवा अपने बेटे की पैंट खोल कर उसका खड़ा लौड़ा बाहर निकलते हुए, “उसे पता है।”
चिराग फुसफुसाकर, “फिर भी मां!!…”
प्रिया ने एक हल्का खर्राटा लिया और फुलवा मुस्कुराई।
फुलवा फुसफुसाकर, “बेचारी थक कर सो रही है। या शायद तुम उसके जगने का इंतजार कर रहे हो!”
चिराग ने अपनी मां को डांटने की कोशिश की पर तभी फुलवा ने अपने बेटे के मोटे सुपाड़े को अपने मुंह की गर्मी में ले कर अपनी जीभ की नोक से सहलाया। चिराग की डांट आह बनकर रह गई।
चिराग, “मां…”
फुलवा ने मुस्कुराते हुए अपने सर को हिलाकर चिराग के लौड़े से अपना मुंह चुधवाना जारी रखते हुए अपनी गाउन को कमर के ऊपर उठाया। अपनी गीली टपकती जवानी को अपने बेटे के प्यासे होठों के पास लाते हुए फुलवा चिराग के बेड पर चढ़ कर 69 की स्थिति में आ गई।
अपनी मां की गीली गर्मी को देख कर चिराग के दिमाग से बाकी सारे खयाल उड़ गए और वह आगे बढ़ कर अपनी मां की चूत चाटने लगा। फुलवा भी चिराग से हारने को तयार नहीं थी इस लिए वह चिराग के पूरे लौड़े को निगलते हुए अपनी जीभ से सहलाती और गीला करती।
चिराग पिछले एक साल में औरत की बारीकियां और कमजोरियां सीख चुका था। अपनी मां की सारी कमजोरियों पर एक साथ धावा बोल कर चिराग ने अपनी मां को हराया। चिराग के लौड़े को मुंह में गले तक दबाकर फुलवा चीख पड़ी।
फुलवा की यौन रसों की नदी बाढ़ बनकर चिराग को डुबोने की कोशिश करती रही पर चिराग ने बहादुरी से सारा रस पीते हुए फुलवा को बेसुध होने दिया। फुलवा के गले में चिराग झड़ जाता लेकिन फुलवा ने झड़ते हुए अपने होठों से चिराग के लौड़े की जड़ को दबाए रखा। चिराग मुश्किल से 4 बूंद का पारदर्शी द्रव बहा पाया और अगले दांव के लिए तुरंत तयार हो गया।
फुलवा ने अपने बेटे के ऊपर से उठते हुए एक नजर सोती हुई मासूम जवानी को देखा और अपने गाउन को उतार फैंका।
चिराग फुसफुसाकर डांटते हुए, “मां!!…”
फुलवा ने जवाब में अपनी चूत के गीले मुंह को चिराग के सुपाड़े से खोला और नीचे बैठ गई।
चिराग आह भरते हुए, “मां…”
फुलवा ने मुस्कुराकर ऊपर उठते हुए चिराग के खड़े लौड़े को लगभग अपनी चूत में से निकालते हुए उस पर झट से बैठ गई। मांस से मांस टकराया और ताली बज गई।
चिराग “आ… हा!!…” करते हुए अपनी मां की झूलते मम्मे देखता उसे अपने लौड़े पर अपनी चूत चुधवाते देखने लगा। कमसिन जवानी की मासूमियत का खयाल रखते हुए मां बेटे कम से कम आवाज करते हुए अपने बदन की आग बुझा रहे थे।
फुलवा ने दो बार अपनी चीखों को दबाते हुए अपनी हथेली में दांत गड़ाते हुए आंसू बहाए और जितनी खामोशी से हो सके ट्रेन के धक्कों के साथ अपने बेटे के लौड़े पर झड़ गई। चिराग भी अपने आप को आहें रोकने में नाकाम पाकर हवा भरे तकिए को मुंह पर दबाए अपनी मां की कोख में झड़ गया।
मां बेटे इस अनोखी चलती ट्रेन की चुधाई से थक कर एक दूसरे से लिपट कर सो गए। किसी को खबर नही हुई की हल्के खर्राटे कब खामोशी में बदल गए थे। न ही खामोशी में गरम सांसों का बनना पता चला ना ही ठंडी आहों का दबकर निकालना।
अपनी चीखे दबाते हुए तड़पती जवानी की बेचैन खामोश सिसकियां भी किसी ने नहीं सुनी। थक कर सोते हुए चैन की सांसे लेते हुए किसी के तड़पकर टपकते खामोश आंसू भी किसी को नजर नहीं आए।
प्रिया अपनी मां की चीखों को याद कर रही थी, अपनी अब्बू के हाथों हुई पिटाई याद कर रही थी। कोई भी ऐसा दर्दनाक वाकिया जो उसके बदन में जलती इस आग को बुझाए। कोई भी दर्द जो उसकी जांघों पर बहती गर्मी को रोके।
प्रिया ने बचपन में ही झूठा सोना और चुपके से जागना सीखा था। झूठे खर्राटे लेते हुए प्रिया ने अपनी नई मां को उसके बेटे से चुधवाते हुए देखा। प्रिया फुलवा को अपनी मां मान चुकी थी पर उसका मन चिराग को भाई मानने को तैयार नहीं था।
शायद यही वजह थी कि प्रिया का बदन अब बुरी तरह जल रहा था, उसकी पैंटी और जांघें गीली थी और उसकी आंखों में नींद की जगह एक लंबा मोटा कीड़ा था। प्रिया ने अपनी हथेली से अपने मुंह को दबाया और चुपके से सिसकते हुए बेबस होकर रोने लगी।
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