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पूरी तैयारी हो चुकी थी,,,रघु का मन तो जाने को बिल्कुल भी नहीं हो रहा था,,,संभोग का अद्भुत सुख जो ऊसे रोज मिल रहा था और वह भी अपनी ही बड़ी जवान बहन से,,,भला ऐसा सुख छोड़कर जाने की किस की इच्छा करती लेकिन क्या करें मजबूर था प्रताप सिंह की बात जो काट नहीं सकता था,,,। प्रताप सिंह अपनी बीवी को तांगे में बैठने में मदद करके उन्हें ठीक से तांगे में बैठा दिया,,, और रघु को आराम से ले जाने की हिदायत देकर रुखसत कर दिया,,,। रघु बेमन से घोड़े को हांकते हुए तांगा आगे बढ़ा दिया,,
थोड़ी ही देर में तांगा गांव से बाहर निकल गया कच्ची कच्ची पगडंडियों से होती हुई उबड़ खाबड़ पथरीले रास्ते से गुजरते हुए तांगा आगे बढ़ता चला जा रहा था चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी मौसम बड़ा खुशनुमा था रघु का मन ऐसे में और ज्यादा मचल रहा था उसे बार-बार अपनी बहन याद आ रही थी और खास करके आज सुबह में ही जो अपनी मां की बुर के दर्शन किए थे उस दृश्य को याद करके वह पूरी तरह से उत्तेजित हुआ जा रहा था,,,अपनी मां की बुर की फूली हुई गुलाबी पत्तियों को याद करके उसके तन बदन में उत्तेजना की आग सुलग रही थी,,,।वह मैंने यही सोच रहा था कि उसकी मां की पूरी जितनी भी पर देखा था या उन्हें चोद कर उसका सुख लिया था उससे कहीं गुना अत्यधिक लाजवाब और हसीन बुर थी उसकी मां की,,,।
उसी के ख्यालों में खोया हुआ रघू तांगा धीरे-धीरे आगे बढ़ा रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी अपना घूंघट हटा कर चारों तरफ फैली हसी वादियो में खोई हुई थी बहुत कम मौका मिलताथा उसे घर से बाहर निकलने का,,, इसलिए उसे यह पेड़ पौधे खेत खलियान ठंडी हवाएं बहुत अच्छी लग रही थी,,,। दूर दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था और आता भी कैसे गांव में किसी को इतना काम थोड़ी होता है कि काम से बाहर रोज निकलकर घूमने जाए,, तभी प्रताप सिंह की बीवी हसीन वादियों को देखते हुए खुश होते हुए बोली,,,।
कितना खूबसूरत नजारा है,,,, यह हसीन वादियां चारों तरफ हरियाली ही हरियाली और दूर-दूर बड़े बड़े पहाड़ कितना खूबसूरत नजर आ रहे हैं,,,,।
(रघु के कानों में प्रताप सिंह की बीवी की आवाज पडते ही रघु के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी एकदम मिश्री सी आवाज थी प्रताप सिंह की बीवी की और आवाज को सुनकर रघु एकदम से चौक दिया था क्योंकि आवाज कोई ज्यादा उम्र की औरत की नहीं बल्कि कम उम्र की औरत की थी,,,, उसकी आवाज रघू के कानों में शहद घोल रहा था,,,। उससे रहा नहीं गया और वह तुरंत पलट कर पीछे तांगे में देखा तो देखता ही रह गया,,, उसके सोचने के मुताबिक उससे उल्टा नजर आ रहा था स्वच्छता प्रताप सिंह जी की बीवी होगी तो कोई उम्रदराज औरत होगी लेकिन तांगे में तो चांद का टुकड़ा बैठा हुआ था,,, बेहद खूबसूरत बेहद हसीन नजर आ रही थी नजर क्या आ रही थी वह खूबसूरत थी ही उम्र भी कुछ 32 या 35 के करीब होगी,,, प्रताप सिंह की बीवी का ध्यान रखो पर बिल्कुल भी नहीं था वह तो अपने चारों तरफ फैली हुई हरियाली को देख रही थी,,, यह देख कर रघु मन ही मन एकदम खुश हो गया और खुश होता हुआ बोला,,,।
लगता है मालकिन बहुत दिनों बाद घर से बाहर निकल रही हैं,,,।
हां तुम ठीक कह रहे हो,,,, वैसे नाम क्या है तुम्हारा,,,,
रघु,,,, रघु नाम है मेरा,,,,
रघु,,,,, बड़ा प्यारा नाम है,,,,(वह नजरों को उसी तरह से चारों तरफ घुमाते हुए बोली,,,,)
वैसे रघू जब तुम्हें बुलाने के लिए आदमी गए हुए थे तो मुझे ऐसा ही लगा था कि कोई उम्र दराज आदमी होगा जो कि तांगा चलाता होगा लेकिन तुम्हें देखकर तो मैं एक दम हेरान हो गई,,,
ऐसा क्यों मालकिन,,,,(रघु घोड़े को हांकते हुए बोला)
अरे मैं तो यही सोच रही थी कि मुझे मेरे मायके ले जाने वाला कोई उम्र दराज आदमी होगा बूढ़ा सा बुजुर्ग लेकिन तुम तो एकदम जवान हो,,,, यह देख कर मुझे अच्छा लगा कि चलो कोई जवान लड़का तो साथ में है जिससे मैं तो बातें कर सकती हूं,,,,।
दो बातें क्यों मालकिन ढेर सारी बातें करो,,,
(जवाब में प्रताप सिंह की बीवी हंस दी,,, और हंसते हुए बोली)
तुम बातें बहुत अच्छी करते हो,, रघु,,,,
(उसके मुंह से अपना नाम सुनकर रघू के तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,,, रघु को अब यह सफर अच्छा लगने लगा था धीरे धीरे प्रताप सिंह की बीवी के साथ बातें करते हुए उसे सब कुछ अच्छा लगने लगा था और अब ना तो उसे अपनी बहन याद आ रही थी और ना अपनी मां की दोनों टांगों के बीच की खूबसूरत जगह जिसके अंदर कुछ घंटे पहले वह समा जाने के लिए आतुर हुए जा रहा था,,,,)
एक बात कहूं मालकिन बुरा तो नहीं मानोगी,,,।
नहीं,,,,,, मै भला क्यों बुरा मानने लगी,,।
आपसे मिलने से पहले मुझे कुछ और लग रहा था,,,,।
(इतना कह कर रघु खामोश हो गया चौकी उसके मन में डर था कि आकर मालकिन बुरा मान गई तो लेकिन उसे फिर खामोश देखकर वह बोली।)
क्या लग रहा था तुम्हें,,,,,?
मुझे लग रहा था कि जिसे तांगे में बैठा कर ले जाना है और कोई उम्र वाली औरत होगी,,,
(वह रघु की बातें सुन कर मुस्कुरा रही थी क्योंकि वह जानती थी कि जो कुछ भी उसके मन में चल रहा है वह किसी के भी मन में शंका पैदा कर सकता था,,, इसलिए रघु की बात सुनते ही वह बोली,,,)
अभी क्या लग रहा है,,,,।
सच कहूं तो आपको देखकर मेरे तो होश उड़ गए,,,
भला ऐसा क्यों,,,,?
सच कहूं मालकीन,,,(रघु घोड़े को हांकते हुए बोला,,)
नहीं तो क्या झूठ कहोगे,,,
नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है मुझे आपसे डर लगता है,,,,
डर किस बात का,,,,
आप इतने बड़े जमीदार की बीवी है कहीं बुरा मान गई तो मेरी तो हड्डी पसली एक करवा देंगी,,,
(रघु की बात सुनते ही वह खिल खिलाकर जोर से हंस पड़ी रघु पीछे मुड़कर उसको मुस्कुराता हुआ देख रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी मुस्कुराते हुए बड़ी खूबसूरत लग रही थी और रघु उसकी खूबसूरती में पूरी तरह से खोता चला जा रहा था,,, औरतों की संगत पाकर रघू इतना तो समझ ही गया था कि औरतों का दिल कैसे जीता जाता है,,, और वही तिकड़म वह प्रताप सिंह की बीवी पर आजमा रहा था,,,क्योंकि जिस तरह का उसके साथ हो रहा था किस्मत पूरी तरह से उस पर मेहरबान थी एक के बाद एक खूबसूरत औरतें उसकी झोली में आकर गिर जा रही थी,, जिस किसी की भी चाहता था वह उसकी दोनों टांगें खोलकर ले ले रहा था वह चाहे हलवाई की बीवी हो या रामू की मां या फिर अपनी खुद की बड़ी बहन हो,,,, आकर्षण तो उसे अपनी मां के ऊपर भी हो रहा था लेकिन अभी ऐसा कोई मौका हाथ नहीं रखा था कि वह अपनी मां की दोनों टांगों को अपने हाथों से खेोल सके,,,, लेकिन ना जाने क्यों उसे पूरा विश्वास था कि प्रताप सिंह की बीवी को चोदने का सुख ऊसे जरूर प्राप्त होगा,,,, और अपनी तरफ से वह पूरी कोशिश कर रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी को हंसता हुआ देखकर वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)
आप हंस क्यों रही हो,,,,
तुम बात ही कुछ ऐसी करते हो रघू कि मुझे हंसी आ गई,,,
अब लो मैं ऐसा क्या कह दिया कि जिस पर आप इतनी जोर जोर से हंसने लगी,,, लेकिन एक बात कहूं मालकिन आप हंसते हुए बहुत खूबसूरत लगती हो,,,,
(रघु की यह बात सुनते ही पल भर में ही प्रताप सिंह की बीवी के चेहरे से हंसी गायब हो गई एकदम सन्न रह गई क्योंकि रघु उसकी तारीफ कर रहा था उसकी खूबसूरती की तारीफ कर रहा था यह सुनकर उसको बेहद अच्छा लग रहा था लेकिन इस जमीदार की बीवी होने के नाते वह अजीब सा महसूस कर रही थी,,,, वह अपने मन में सोच रही थी कि वह भी इतनी खूबसूरत शब्दों के लायक थी लेकिन प्रताप सिंह की बीवी बनने के बाद उसके सारे सपने चकनाचूर हो गए एक तो सबसे पहले अपने से बेहद बड़े उम्र वाले आदमी से उसकी शादी हो गई मतलब की प्रताप सिंह से जो कि वह कभी नहीं चाहती थी एक औरत के जो अरमान होते हैं अपनी शादी को लेकर वैसे ही अरमान उसके भी थे लेकिन मां बाप की गरीबी और प्रताप सिंह के हट के कारण उसे अपने सपनों का गला बैठना पड़ा और ना चाहते हुए भी अपने मां-बाप की खुशी के खातिर प्रताप सिंह की बीवी बन कर उसके घर आना पड़ा जो कि उसे कभी मंजूर नहीं था,,,क्योंकि यह बात वह भी अच्छी तरह से जानती थी कि प्रताप सिंह की वह पहली नहीं बल्कि दूसरी बीवी बन कर घर पर आई थी पहली बीवी का देहांत हो चुका था जिससे उसे एक संतान थी जिसका विवाह लाला की लड़की के साथ हुआ था,,,,,, तभी जैसे किसी ने उसकी तंद्रा भंग की हो उसे नींद से जगाया हो इस तरह से रघु उसे होश में लाते हुए बोला,,,)
क्या हुआ मालकिन आप बुरा मान गई क्या इसीलिए मैं कुछ भी नहीं कह रहा था,,,
नहीं नहीं रघु मैं बुरा नहीं मानी हूं मुझे तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं लग रहा है,,,
तो आप इस तरह से खामोश क्यों हो गई हंसते-हंसते रुक क्यों गई,,,,
कुछ याद आ गया था,,,,
क्या याद आ गया था मालकिन,,,,
अरे कुछ नहीं यह बहुत लंबी कहानी है हां तो तू क्या कह रहा था,,,,? (प्रताप सिंह की बीवी मुख्य मुद्दे पर आते हुए बोली,, रघु भी अपनी बात कहने के लिए उतावला था बस थोड़ा सा नानू को कहकर प्रताप सिंह की बीवी के मन में उमड़ रहे भावनाओं को भांपना चाहता था,,,। और उसकी जिज्ञासा को देखकर रघू की भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी अपने मन की बात कहने के लिए,,, इसलिए वह बोला,,,।)
अब देखो मार्केट बुरा मत मानना मेरे मन में जो कुछ भी था वह में बता रहा हूं,,,।
हां तो बताओ गोल-गोल क्यों घुमा रहे हो,,,(इतना कहने के साथ ही प्रताप सिंह की बीवी मोहक अदा से चारों तरफ नजरें घुमा कर खूबसूरत नजारे का लुफ्त उठाने लगी)
गोल गोल कहां घुमा रहा हूं वहां के मैं तो बस यह कह रहा हूं कि आपको देख कर मुझे यकीन ही नहीं होता कि मालिक की बीवी है,,,
(रघु की यह बात सुनकर फिर से उसके होठों पर मुस्कान तैरने लगी लेकिन वहां अपनी मुस्कुराहट को काबू में करके जानबूझकर रघु की तरफ गुस्से से देखने लगी क्योंकि अपनी बातें कहते हुए उसकी तरफ ही देख रहा था रघु प्रताप सिंह की बीवी को गुस्से में देख कर एकदम से घबरा गया और वह माफी मांगते हुए बोला,,,)
मैं माफी चाहता हूं मैं लेकिन मैं आपसे पहले भी कह रहा था कि बुरा मत मानना,,, आपका गुस्सा देखकर मुझे डर लग रहा है,,,,।
तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं मालिक की बीवी नहीं लगती,,,
उम्र से मालकिन,,,, मालिक तो उम्र दराज लेकिन आप तो एकदम जवान है,,, मेरा मतलब है कि एकदम खूबसूरत,,,,
चलो मैं इतनी भी खूबसूरत नहीं हूं,,, जो मेरी इस तरह से तारीफ कर रहे हो,,,,
नहीं नहीं मैं सच कह रहा हूं मालकिन,,, आपको देखकर तो आईना भी शर्मा जाए,,,
(रघु की बातें उसके सीधे दिल में उतर रही थी उसे बेहद आनंद की प्राप्ति करा रही थी रघु की बातें जिंदगी में पहली बार किसी ने उसकी खूबसूरती की तारीफ किया था हालांकि वह बला की खूबसूरत थी यह बात वही अच्छी तरह से जानती थी लेकिन किस्मत के आगे वह एकदम मजबूर हो चुकी थी बस सारा दिन घर में ही अपनी जिंदगी का हर एक खुशनुमा पल जो कि अब उसके लिए किसी सजा की तरह हो चुका था वह गुजार रही थी लेकिन आज खुली हवा में सांस लेकर उसे आजादी का अनुभव हो रहा था उसे लगने लगा था कि असली जिंदगी इसी तरह की होनी चाहिए ना जाने क्यों रखो की तरफ उसका आकर्षण बढ़ने लगा था उसकी चिकनी चुपड़ी बातें बेहद मोहक लग रही थी,,,)
क्या तुम्हें में इतनी ज्यादा खूबसूरत लग रही हो,,,।
मुझे क्या मालूम तुम तो इस पृथ्वी के हर एक इंसान को खूबसूरत लगोगी पंछी को जानवर को पेड़ पौधों को इस हरे-भरे जंगल को ठंडी हवाओं को इस खुशनुमा मौसम को,, वह पागल ही होगा मालकिन जिसे आप खूबसूरत नहीं लगोगी,,,,
बाप रे तुम तो एकदम कवि की तरह बातें करते हो,,,
( रघु की बातें प्रताप सिंह की बीवी को बहुत अच्छी लग रही थी उसने आज तक इस तरह की मीठी बातें करने वाला लड़का नहीं देखी थी उसे भी रघु से बातें करने में मजा आ रहा था धीरे-धीरे सफर कट रहा था सूरज सर पर पहुंच चुका था,,, धूप एकदम तिलमिला रही थी,,,, तभी रघु को सामने नदी बहती हुई नजर आई जिसमें पानी तो बहुत कम था लेकिन उस पार जाने के लिए नदी में से ही जाना था,,, एक पल के लिए रघू घबरा गया उसे समझ में नहीं आ रहा था कि नदी पार कैसे किया जाएगा क्योंकि आज तक वह इस जगह पर कभी नहीं आया था,,,।
क्रमशः,,,,,
थोड़ी ही देर में तांगा गांव से बाहर निकल गया कच्ची कच्ची पगडंडियों से होती हुई उबड़ खाबड़ पथरीले रास्ते से गुजरते हुए तांगा आगे बढ़ता चला जा रहा था चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी मौसम बड़ा खुशनुमा था रघु का मन ऐसे में और ज्यादा मचल रहा था उसे बार-बार अपनी बहन याद आ रही थी और खास करके आज सुबह में ही जो अपनी मां की बुर के दर्शन किए थे उस दृश्य को याद करके वह पूरी तरह से उत्तेजित हुआ जा रहा था,,,अपनी मां की बुर की फूली हुई गुलाबी पत्तियों को याद करके उसके तन बदन में उत्तेजना की आग सुलग रही थी,,,।वह मैंने यही सोच रहा था कि उसकी मां की पूरी जितनी भी पर देखा था या उन्हें चोद कर उसका सुख लिया था उससे कहीं गुना अत्यधिक लाजवाब और हसीन बुर थी उसकी मां की,,,।
उसी के ख्यालों में खोया हुआ रघू तांगा धीरे-धीरे आगे बढ़ा रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी अपना घूंघट हटा कर चारों तरफ फैली हसी वादियो में खोई हुई थी बहुत कम मौका मिलताथा उसे घर से बाहर निकलने का,,, इसलिए उसे यह पेड़ पौधे खेत खलियान ठंडी हवाएं बहुत अच्छी लग रही थी,,,। दूर दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था और आता भी कैसे गांव में किसी को इतना काम थोड़ी होता है कि काम से बाहर रोज निकलकर घूमने जाए,, तभी प्रताप सिंह की बीवी हसीन वादियों को देखते हुए खुश होते हुए बोली,,,।
कितना खूबसूरत नजारा है,,,, यह हसीन वादियां चारों तरफ हरियाली ही हरियाली और दूर-दूर बड़े बड़े पहाड़ कितना खूबसूरत नजर आ रहे हैं,,,,।
(रघु के कानों में प्रताप सिंह की बीवी की आवाज पडते ही रघु के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी एकदम मिश्री सी आवाज थी प्रताप सिंह की बीवी की और आवाज को सुनकर रघु एकदम से चौक दिया था क्योंकि आवाज कोई ज्यादा उम्र की औरत की नहीं बल्कि कम उम्र की औरत की थी,,,, उसकी आवाज रघू के कानों में शहद घोल रहा था,,,। उससे रहा नहीं गया और वह तुरंत पलट कर पीछे तांगे में देखा तो देखता ही रह गया,,, उसके सोचने के मुताबिक उससे उल्टा नजर आ रहा था स्वच्छता प्रताप सिंह जी की बीवी होगी तो कोई उम्रदराज औरत होगी लेकिन तांगे में तो चांद का टुकड़ा बैठा हुआ था,,, बेहद खूबसूरत बेहद हसीन नजर आ रही थी नजर क्या आ रही थी वह खूबसूरत थी ही उम्र भी कुछ 32 या 35 के करीब होगी,,, प्रताप सिंह की बीवी का ध्यान रखो पर बिल्कुल भी नहीं था वह तो अपने चारों तरफ फैली हुई हरियाली को देख रही थी,,, यह देख कर रघु मन ही मन एकदम खुश हो गया और खुश होता हुआ बोला,,,।
लगता है मालकिन बहुत दिनों बाद घर से बाहर निकल रही हैं,,,।
हां तुम ठीक कह रहे हो,,,, वैसे नाम क्या है तुम्हारा,,,,
रघु,,,, रघु नाम है मेरा,,,,
रघु,,,,, बड़ा प्यारा नाम है,,,,(वह नजरों को उसी तरह से चारों तरफ घुमाते हुए बोली,,,,)
वैसे रघू जब तुम्हें बुलाने के लिए आदमी गए हुए थे तो मुझे ऐसा ही लगा था कि कोई उम्र दराज आदमी होगा जो कि तांगा चलाता होगा लेकिन तुम्हें देखकर तो मैं एक दम हेरान हो गई,,,
ऐसा क्यों मालकिन,,,,(रघु घोड़े को हांकते हुए बोला)
अरे मैं तो यही सोच रही थी कि मुझे मेरे मायके ले जाने वाला कोई उम्र दराज आदमी होगा बूढ़ा सा बुजुर्ग लेकिन तुम तो एकदम जवान हो,,,, यह देख कर मुझे अच्छा लगा कि चलो कोई जवान लड़का तो साथ में है जिससे मैं तो बातें कर सकती हूं,,,,।
दो बातें क्यों मालकिन ढेर सारी बातें करो,,,
(जवाब में प्रताप सिंह की बीवी हंस दी,,, और हंसते हुए बोली)
तुम बातें बहुत अच्छी करते हो,, रघु,,,,
(उसके मुंह से अपना नाम सुनकर रघू के तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,,, रघु को अब यह सफर अच्छा लगने लगा था धीरे धीरे प्रताप सिंह की बीवी के साथ बातें करते हुए उसे सब कुछ अच्छा लगने लगा था और अब ना तो उसे अपनी बहन याद आ रही थी और ना अपनी मां की दोनों टांगों के बीच की खूबसूरत जगह जिसके अंदर कुछ घंटे पहले वह समा जाने के लिए आतुर हुए जा रहा था,,,,)
एक बात कहूं मालकिन बुरा तो नहीं मानोगी,,,।
नहीं,,,,,, मै भला क्यों बुरा मानने लगी,,।
आपसे मिलने से पहले मुझे कुछ और लग रहा था,,,,।
(इतना कह कर रघु खामोश हो गया चौकी उसके मन में डर था कि आकर मालकिन बुरा मान गई तो लेकिन उसे फिर खामोश देखकर वह बोली।)
क्या लग रहा था तुम्हें,,,,,?
मुझे लग रहा था कि जिसे तांगे में बैठा कर ले जाना है और कोई उम्र वाली औरत होगी,,,
(वह रघु की बातें सुन कर मुस्कुरा रही थी क्योंकि वह जानती थी कि जो कुछ भी उसके मन में चल रहा है वह किसी के भी मन में शंका पैदा कर सकता था,,, इसलिए रघु की बात सुनते ही वह बोली,,,)
अभी क्या लग रहा है,,,,।
सच कहूं तो आपको देखकर मेरे तो होश उड़ गए,,,
भला ऐसा क्यों,,,,?
सच कहूं मालकीन,,,(रघु घोड़े को हांकते हुए बोला,,)
नहीं तो क्या झूठ कहोगे,,,
नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है मुझे आपसे डर लगता है,,,,
डर किस बात का,,,,
आप इतने बड़े जमीदार की बीवी है कहीं बुरा मान गई तो मेरी तो हड्डी पसली एक करवा देंगी,,,
(रघु की बात सुनते ही वह खिल खिलाकर जोर से हंस पड़ी रघु पीछे मुड़कर उसको मुस्कुराता हुआ देख रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी मुस्कुराते हुए बड़ी खूबसूरत लग रही थी और रघु उसकी खूबसूरती में पूरी तरह से खोता चला जा रहा था,,, औरतों की संगत पाकर रघू इतना तो समझ ही गया था कि औरतों का दिल कैसे जीता जाता है,,, और वही तिकड़म वह प्रताप सिंह की बीवी पर आजमा रहा था,,,क्योंकि जिस तरह का उसके साथ हो रहा था किस्मत पूरी तरह से उस पर मेहरबान थी एक के बाद एक खूबसूरत औरतें उसकी झोली में आकर गिर जा रही थी,, जिस किसी की भी चाहता था वह उसकी दोनों टांगें खोलकर ले ले रहा था वह चाहे हलवाई की बीवी हो या रामू की मां या फिर अपनी खुद की बड़ी बहन हो,,,, आकर्षण तो उसे अपनी मां के ऊपर भी हो रहा था लेकिन अभी ऐसा कोई मौका हाथ नहीं रखा था कि वह अपनी मां की दोनों टांगों को अपने हाथों से खेोल सके,,,, लेकिन ना जाने क्यों उसे पूरा विश्वास था कि प्रताप सिंह की बीवी को चोदने का सुख ऊसे जरूर प्राप्त होगा,,,, और अपनी तरफ से वह पूरी कोशिश कर रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी को हंसता हुआ देखकर वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)
आप हंस क्यों रही हो,,,,
तुम बात ही कुछ ऐसी करते हो रघू कि मुझे हंसी आ गई,,,
अब लो मैं ऐसा क्या कह दिया कि जिस पर आप इतनी जोर जोर से हंसने लगी,,, लेकिन एक बात कहूं मालकिन आप हंसते हुए बहुत खूबसूरत लगती हो,,,,
(रघु की यह बात सुनते ही पल भर में ही प्रताप सिंह की बीवी के चेहरे से हंसी गायब हो गई एकदम सन्न रह गई क्योंकि रघु उसकी तारीफ कर रहा था उसकी खूबसूरती की तारीफ कर रहा था यह सुनकर उसको बेहद अच्छा लग रहा था लेकिन इस जमीदार की बीवी होने के नाते वह अजीब सा महसूस कर रही थी,,,, वह अपने मन में सोच रही थी कि वह भी इतनी खूबसूरत शब्दों के लायक थी लेकिन प्रताप सिंह की बीवी बनने के बाद उसके सारे सपने चकनाचूर हो गए एक तो सबसे पहले अपने से बेहद बड़े उम्र वाले आदमी से उसकी शादी हो गई मतलब की प्रताप सिंह से जो कि वह कभी नहीं चाहती थी एक औरत के जो अरमान होते हैं अपनी शादी को लेकर वैसे ही अरमान उसके भी थे लेकिन मां बाप की गरीबी और प्रताप सिंह के हट के कारण उसे अपने सपनों का गला बैठना पड़ा और ना चाहते हुए भी अपने मां-बाप की खुशी के खातिर प्रताप सिंह की बीवी बन कर उसके घर आना पड़ा जो कि उसे कभी मंजूर नहीं था,,,क्योंकि यह बात वह भी अच्छी तरह से जानती थी कि प्रताप सिंह की वह पहली नहीं बल्कि दूसरी बीवी बन कर घर पर आई थी पहली बीवी का देहांत हो चुका था जिससे उसे एक संतान थी जिसका विवाह लाला की लड़की के साथ हुआ था,,,,,, तभी जैसे किसी ने उसकी तंद्रा भंग की हो उसे नींद से जगाया हो इस तरह से रघु उसे होश में लाते हुए बोला,,,)
क्या हुआ मालकिन आप बुरा मान गई क्या इसीलिए मैं कुछ भी नहीं कह रहा था,,,
नहीं नहीं रघु मैं बुरा नहीं मानी हूं मुझे तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं लग रहा है,,,
तो आप इस तरह से खामोश क्यों हो गई हंसते-हंसते रुक क्यों गई,,,,
कुछ याद आ गया था,,,,
क्या याद आ गया था मालकिन,,,,
अरे कुछ नहीं यह बहुत लंबी कहानी है हां तो तू क्या कह रहा था,,,,? (प्रताप सिंह की बीवी मुख्य मुद्दे पर आते हुए बोली,, रघु भी अपनी बात कहने के लिए उतावला था बस थोड़ा सा नानू को कहकर प्रताप सिंह की बीवी के मन में उमड़ रहे भावनाओं को भांपना चाहता था,,,। और उसकी जिज्ञासा को देखकर रघू की भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी अपने मन की बात कहने के लिए,,, इसलिए वह बोला,,,।)
अब देखो मार्केट बुरा मत मानना मेरे मन में जो कुछ भी था वह में बता रहा हूं,,,।
हां तो बताओ गोल-गोल क्यों घुमा रहे हो,,,(इतना कहने के साथ ही प्रताप सिंह की बीवी मोहक अदा से चारों तरफ नजरें घुमा कर खूबसूरत नजारे का लुफ्त उठाने लगी)
गोल गोल कहां घुमा रहा हूं वहां के मैं तो बस यह कह रहा हूं कि आपको देख कर मुझे यकीन ही नहीं होता कि मालिक की बीवी है,,,
(रघु की यह बात सुनकर फिर से उसके होठों पर मुस्कान तैरने लगी लेकिन वहां अपनी मुस्कुराहट को काबू में करके जानबूझकर रघु की तरफ गुस्से से देखने लगी क्योंकि अपनी बातें कहते हुए उसकी तरफ ही देख रहा था रघु प्रताप सिंह की बीवी को गुस्से में देख कर एकदम से घबरा गया और वह माफी मांगते हुए बोला,,,)
मैं माफी चाहता हूं मैं लेकिन मैं आपसे पहले भी कह रहा था कि बुरा मत मानना,,, आपका गुस्सा देखकर मुझे डर लग रहा है,,,,।
तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं मालिक की बीवी नहीं लगती,,,
उम्र से मालकिन,,,, मालिक तो उम्र दराज लेकिन आप तो एकदम जवान है,,, मेरा मतलब है कि एकदम खूबसूरत,,,,
चलो मैं इतनी भी खूबसूरत नहीं हूं,,, जो मेरी इस तरह से तारीफ कर रहे हो,,,,
नहीं नहीं मैं सच कह रहा हूं मालकिन,,, आपको देखकर तो आईना भी शर्मा जाए,,,
(रघु की बातें उसके सीधे दिल में उतर रही थी उसे बेहद आनंद की प्राप्ति करा रही थी रघु की बातें जिंदगी में पहली बार किसी ने उसकी खूबसूरती की तारीफ किया था हालांकि वह बला की खूबसूरत थी यह बात वही अच्छी तरह से जानती थी लेकिन किस्मत के आगे वह एकदम मजबूर हो चुकी थी बस सारा दिन घर में ही अपनी जिंदगी का हर एक खुशनुमा पल जो कि अब उसके लिए किसी सजा की तरह हो चुका था वह गुजार रही थी लेकिन आज खुली हवा में सांस लेकर उसे आजादी का अनुभव हो रहा था उसे लगने लगा था कि असली जिंदगी इसी तरह की होनी चाहिए ना जाने क्यों रखो की तरफ उसका आकर्षण बढ़ने लगा था उसकी चिकनी चुपड़ी बातें बेहद मोहक लग रही थी,,,)
क्या तुम्हें में इतनी ज्यादा खूबसूरत लग रही हो,,,।
मुझे क्या मालूम तुम तो इस पृथ्वी के हर एक इंसान को खूबसूरत लगोगी पंछी को जानवर को पेड़ पौधों को इस हरे-भरे जंगल को ठंडी हवाओं को इस खुशनुमा मौसम को,, वह पागल ही होगा मालकिन जिसे आप खूबसूरत नहीं लगोगी,,,,
बाप रे तुम तो एकदम कवि की तरह बातें करते हो,,,
( रघु की बातें प्रताप सिंह की बीवी को बहुत अच्छी लग रही थी उसने आज तक इस तरह की मीठी बातें करने वाला लड़का नहीं देखी थी उसे भी रघु से बातें करने में मजा आ रहा था धीरे-धीरे सफर कट रहा था सूरज सर पर पहुंच चुका था,,, धूप एकदम तिलमिला रही थी,,,, तभी रघु को सामने नदी बहती हुई नजर आई जिसमें पानी तो बहुत कम था लेकिन उस पार जाने के लिए नदी में से ही जाना था,,, एक पल के लिए रघू घबरा गया उसे समझ में नहीं आ रहा था कि नदी पार कैसे किया जाएगा क्योंकि आज तक वह इस जगह पर कभी नहीं आया था,,,।
क्रमशः,,,,,