रघु हैरान था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार नदी पार होगी कैसे वह तांगे को वही रोक कर तांगे से नीचे उतर गया,,, और अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर विचार मग्न हो गया,,,,वह अपने मन में यही सोच रहा था कि यह तो बड़ी मुसीबत आ गई है इस बारे में तो प्रताप सिंह जी ने कुछ भी नहीं बताया था कि रास्ते में नदी पड़ेगी और वैसे भी रघु के लिए यह रास्ता यह गांव यह नदी बिल्कुल अनजान थी वह पहली बार अपने गांव से बाहर निकला था,,,। वह नदी के पानी को उसकी लंबाई उसकी चौड़ाई और उसकी गहराई को अपने मन में ही नाप रहा था लेकिन कहते हैं ना कि नदी में उतरे बिना उसकी गहराई का पता नहीं चलता वैसे ही मन में लाख विचार आने पर भी पानी की गहराई का सही अंदाजा अपने मन में नहीं लगा पा रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी तांगे में बैठे-बैठे रघु की हरकत को देख रही थी उसे समझ में आ गया था कि वह नदी देखकर परेशान हो चुका है लेकिन वह देखना चाहती थी कि वह करता क्या है,,,। धीरे-धीरे रघु के प्रति आकर्षित होने लगी थी रघु बेहद जवान हट्टा कट्टा और कसरती बदन का लड़का था,,,,,, उसकी बातें उसे अच्छी लगने लगी थी उसका मासूम सा मुखड़ा उसे प्यारा लगने लगा था,,, रघु उसके बेटे की उम्र का था लेकिन ना जाने क्यों रघू के प्रति उसके मन में बेटे वाली चाहत महसूस नहीं हो रही थी इस सफर के दौरान वह रघू को अपना हमदर्द समझने लगी थी,,, जिससे वह अपने मन की बात कह सकती थी,,, वह रघु को बड़े गौर से देख रही थी,,,, जब उसे इस बात का एहसास हो गया कि रघू कुछ समझ नहीं पा रहा है तो वह खुद,,, तांगे पर से नीचे उतर गई,,, और धीरे धीरे चलते हुए रघु के बेहद करीब पहुंच गई,,, जैसे ही रघु की नजर प्रताप सिंह की बीवी पर पड़ी तो वह उसकी खूबसूरती से एकदम हैरान हो गया था,,, पहले तो वह प्रताप सिंह की बीवी को तांगे में बैठी हुई ही देखा था,,, लेकिन उसे उसके आदम कद वजूद को देखकर रघु पूरी तरह से उसके ऊपर मोहित हो गया। साड़ी के ऊपर से ही उसकी मदमस्त गोलाईया उसे साफ नजर आ रही थी,,,। जो कि उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था एक पल के लिए प्रताप सिंह की बीवी रघु की नजरों को अपने गोल गोल गोलाईयों पर धंसती हुई महसूस करके एकदम से गनगना गई,,, और मैं तुरंत अपने एक हाथ से अपनी चुचियों के नीचे वाले साड़ी के पल्लू को पकड़कर मुट्ठी में भींच ली,,,, उसके इस हरकत पर नजर पड़ते ही रघु को इस बात का एहसास हुआ कि वह अपनी नजरों को उसकी चूचियों पर गड़ाए हुए है इसलिए घबराकर हडबडाते हुए बोला,,,।
अअअअअ,,,आप,,,, तांगे से उतरकर यहां क्यों आई है,,। जाईए आप बैठ जाईए,,,,
तुम परेशान नजर आ रहे थे इसलिए मैं तांगे से उतरकर तुम्हारे पास आई हूं,,,, अच्छी तरह से समझ रही हूं कि तुम्हें समझ में नहीं आ रहा है कि नदी पार कैसे करेंगे,,,।
आप सच कह रही हैं मालकिन,,,,(इतना कहते हुए रघु नीचे झुक कर कंकड़ उठाया और उसे जोर से नदी के पानी में फेंक दिया यह उसका गुस्सा दिखाने का तरीका था जो कि वह नदी पर दिखा रहा था रघु की परेशानी को प्रताप सिंह की बीवी अच्छी तरह से समझ रही थी इसलिए मुस्कुराते हुए बोली,,,।)
लगता है रघु तुम यहां पहली बार आए हो,,,,।
आप ठीक कह रही है मालकिन,, मैं आज पहली बार अपने गांव से बाहर निकला हूं इसलिए किसी बात का किसी स्थान का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है,,,
मतलब कि बिल्कुल अनजान तांगे वाले हो,,,,(इतना कहकर वह खिलखिला कर हंसने लगी उसकी हंसी देखकर रघु के होंठों पर मुस्कुराहट आ गई,,, और वह बोला।)
आप हंसते हुए कितनी खूबसूरत लगती हैं,,,।
अब एक ही बात कितनी बार कहोगे रघू,,,,(वह शरमाते हुए बोली)
जितनी बार आप हसेंगी,,,,
मैं तो सारा दिन हंसते रहूंगी तो क्या तुम इसी तरह से मेरी तारीफ करते रहोगे,,,।
जी हां मालकिन मैं आपकी तारीफ करता रहूंगा सारा दिन क्या सारी जिंदगी क्योंकि आप सच में हंसते हुए बहुत खूबसूरत लगती हो,,,,
(रघु की बात सुनकर वह फिर से खिलखिला कर हंसने लगी,,, रघू की बातें उसे बहुत अच्छी लग रही थी,,,, और वह हंसते-हंसते एकटक रघु के मासूम चेहरे को देखने लगी,,, और उसकी आंखों में आंखें डाल कर देखते हुए बोली,,,)
तुम बहुत अच्छे हो रघू,,, एकदम मासूम एकदम निश्चल जिसके मन में बिल्कुल भी कपट नहीं है,,,, सच कहूं तो तुम मुझे अच्छे लगने लगे हो,,,,,(वह भावना मैं बहकर बोलने को तो बोल गई लेकिन अपने कहे कहे बातों का मतलब समझते ही वह शर्मा कर एकदम से बात को बदलते हुए बोली,,)
अच्छा रघु मैं तुम्हें बताती हूं नदी पार करने का अच्छा और बहुत ही सरल रास्ता,,,(इतना कहकर वह दो चार कदम आगे चलकर रुक गई और अपने हाथों की उंगली का इशारा नदी की तरफ करके बोलने लगी रघु उसके पीछे खड़ा था तेज हवा चल रही थी जिसकी वजह से उसकी साड़ी एकदम से लगाकर उसके नितंबों से चिपक जा रही थी पहली बार रघु की नजर उसकी गोलाकार और घेरावदार नितंबों पर पड़ी,,, और सुबह प्रताप सिंह की बीवी की चूतड़ों को देखता ही रहेगा,,, एकदम गोलाकार एकदम सटीक ऐसा लग रहा था कि जैसे भगवान ने अपने हाथों से उसके नितंबों को आकार दिए हो,,, एक औरत को खूबसूरत बनाने में उसके नितंबों का बहुत ही बड़ा योगदान होता है और इस समय प्रताप सिंह की बीवी के नितंब उसकी खूबसूरती को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे थे,,, रघु के मुंह में पानी आ गया था प्रताप सिंह की बीवी की गांड को देखकर,,,,,, वह उसके नितंबों को जी भर कर देख लेना चाहता था तभी प्रताप सिंह की बीपी पीछे की तरफ नजर करके रघू को अपने पास बुलाने के लिए जैसे ही अपनी नजर पीछे घूमाई तो रखो कि नजर को अपने नितंबों के नीचे के घेराव पर टिकी हुई देखकर एकदम से सन्न रह गई,,,,रघु की नजर को अपनी गांड के ऊपर महसूस करते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,, लेकिन फिर भी वह अपने इस हलचल को अपने चेहरे पर नहीं आने दी और बड़े ही स्वाभाविक और औपचारिक ढंग से,, रघु को अपने पास बुलाते हुए बोली,,,।
इधर आओ रघु मैं तुम्हें बताती हूं,,,,
(उसकी आवाज कानों में पडते ही रघु कि जैसे संतरा टूटी हो और वह तुरंत लगभग भागते हुए उसके करीब पहुंच गया,, और हडबडाते हुए बोला,,,)
जजजज,,जी ,,,, मालकीन,,,,
देखो रघु तुम पहली बार आए हो लेकिन मैं यहां बहुत बार आ चुकी हूं मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि तांगा कौन सी जगह से बड़े आराम से गुजर जाता है,,,, अगर हम यहां से सामने से जाएंगे तो बहुत लंबा जाना होगा और पानी भी गहरा मिलेगा जिसमें से तांगा आसानी से नहीं निकल पाएगा,,,।
तो क्या करना होगा मालकिन,,,,
अरे यही तो बता रही हूं,,,, वह जगह देख रहे हो,,,(बाएं हाथ को उठाकर उंगली से इशारा करते हुए वह थोड़ी दूर की जगह दिखाने लगी और ऐसा करने से रघु को उसके ब्लाउज के आकार का सही नाम पता चल रहा था क्योंकि वह उसके बाएं खड़ा था जैसे ही वह हाथ उठा करउंगली से इशारा करने लगी वैसे ही रघू की नजर उसके ब्लाउज पर गई जो कि बेहद कसी हुई थी और काफी बड़ी थी,,, कसी हुई ब्लाउज में कैद उसकी चूचियों को देख कर उसे उसके आकार का अंदाजा लग गया था,,,, पर उसके सही आकार का पता चलते ही रघु के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,,,, तभी प्रताप सिंह की बीवी की आवाज उसके कानों में पड़ी,,,)
अगर रघु हम वहां से नदी पार करेंगे तो बड़े आराम से और कम पानी से तांगा गुजर जाएगा और हम आराम से उस पार पहुंच जाएंगे,,,,
(उसकी बात सुनते ही रघु खुश होता हुआ बोला,,,)
क्या बात है मालकिन,,, आप तो हमारा दिशा-निर्देश कर दी,,,, अब आप जल्दी से चलिए और तांगे पर बैठ जाईए,,,
(इतना कहकर रघु वहीं खड़ा होकर हाथ से इशारा करके उसे आगे बढ़ने के लिए बोला तो वह मुस्कुरा कर धीरे से अपने कदम आगे बढ़ा दी उसके गोरे गोरे पैर देखकर रघु के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,, वह धीरे-धीरे बड़े संभाल कर अपने कदम रख रही थी,,,नदी का किनारा होने से वहां बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए थे जिस पर से वह इधर-उधर बड़े संभाल कर पर रखते हुए आगे बढ़ रही थी और उसकी हर एक चाल हर एक कदम के साथ-साथ उसकी गोल गोल गांड मैं बेहतरीन लचक आ रही थी जिसे देखकर रघु अपनी आंखें सेंक रहा था,,, बेहद कसा हुआ बदन होने के साथ-साथ उसने अपनी साड़ी को कसके अपनी कमर से बात रखी थी जिसकी वजह से उसके नितंबों की रूपरेखा बेहद सटीक नजर आ रही थी,,, उसकी हर एक चाल रघु के दिल पर छुरियां चला रही थी,,। देखते ही देखते वह तांगे के पास पहुंच गई,,, और तांगे पर चढ़कर बैठने के लिए अपना एक पैर उठाकर लकड़ी पर रखी तो उसका पिछवाड़ा कुछ ज्यादा ही उभर कर बाहर नजर आने लगा यह देख कर रघु के पजामे में हरकत होने लगी मन तो उसका कर रहा था कि तांगे पर चढ़ते समय ही उसको पीछे से पकड़ कर उसकी साड़ी को कमर तक उठाकर उसकी गुलाबी बुर के अंदर अपना मोटा लंड डालकर उसकी चुदाई कर दे लेकिन ऐसा करना रघु के लिए उचित नहीं था,,, छोटू के तन बदन में उत्तेजना की गर्मी फैलाकर वह तांगे पर आराम से बैठ गई थी,,, रघु भी अपना मन मसोस कर तांगे पर बैठ गया और घोड़े को हांक दिया,, घोड़ा धीरे-धीरे अपनी दिशा में आगे बढ़ने लगा प्रताप सिंह की बीवी के तन बदन में भी हलचल होना शुरू हो गई थी क्योंकि वह रघु की नजरों को थोड़ा बहुत समझ में लगी थी जो कि उसके ही बदन के उन अंगों पर घूम रहा था जिसे देखकर अक्सर मर्द अपने होशो हवास खो देते हैं और औरतों का वही अंग ऊनकी उत्तेजना का केंद्र बिंदु भी रहता है,,,,
थोड़ी ही देर में रघु का तांगा उस जगह पर आकर खड़ा हो गया था जिस जगह का निर्देश वह दूर से खड़ी होकर कर रही थी रघु पहली बार नदी पार करने जा रहा था मन में थोड़ा डर भी था पैसा नहीं था कि उसे तैरना नहीं आता था उसे करना भी आता था लेकिन उसके मन में यह डर था कि तांगा को वह सही सलामत नदी के उस पार ले जा पाएगा कि नहीं ,,,सारा दामोदार उसकी सूझबूझ और घोड़े के दम पर था,,, प्रताप सिंह की बीवी बड़े आराम से आने पर बैठी हुई थी दूर दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था एकदम वीरान जगह थी,,, हवा बड़ी तेज चल रही थी,,,। नदी के पानी को अच्छी तरह से भापकर रघु घोड़े को पानी में हांक दिया,,, घोड़ा अपने पैर आगे बढ़ाकर पानी में उतरने लगा,,,, गर्मी का समय था इसलिए ठंडे पानी में पैर पडते ही घोड़े को राहत महसूस होने लगी,,, घोड़ा धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा,,,
निकल तो जाएगा ना मालकिन,,,
बिल्कुल रघु आराम से निकल जाएगा,,, मैं पहले भी इधर से आई गई हूं इसलिए मुझे मालूम है,,,,
कहीं बीच में पानी तो ज्यादा नहीं होगा,,,
नहीं नहीं बिल्कुल नहीं अगर होगा भी तो घुटनों तक होगा इससे ज्यादा नहीं है,,,
तो ठीक है मालकिन,,,, वैसे मालकिन यह जगह बेहद खूबसूरत है,,,। मुझे तो यह जगह बेहद खूबसूरत और पसंद भी आ रही है,,,।
मुझे भी रघू,,, नदी का किनारा ठंडी हवाएं चारों तरफ घने घने वृक्ष पेड़ पौधे,,,, इंसान को इससे ज्यादा और क्या चाहिए,,,,।
सच कह रही हो मालकिन,,, मैं तो आपका शुक्रगुजार हूं कि आपकी वजह से मुझे भी एक खूबसूरत हसीन नजारा देखने को मिल रहा है,,,,(घोड़ा धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था घोड़े को भी मालूम था कि नदी में कैसे चला जाता है इसलिए बड़े आराम से बचाकर चल रहा था,,, देखते ही देखते नदी में आधा रास्ता तय हो चुका था,,, रघु अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला,,,,)
वैसे मालकिन एक बात पूछूं,,,,,
इसमें पूछने वाली क्या बात है तुम मुझसे कुछ भी पूछ सकते हो,,,,
ठीक है मालकिन मैं यह पूछना चाह रहा था कि आप इतनी खूबसूरत है मुझे तो ऐसा लगता है कि जैसे सर कैसे उतरी हुई कोई अप्सरा ईस तांगे में आकर बैठ गई हो,,,,
स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा,,,,,(इतना कहकर बा जोर-जोर से हंसने लगी,,,,)
देखी ना मालकिन आप हंसते हुए कितनी खूबसूरत लगती हैं,,,,।
फिर वही,,,,(रघु की तरफ शरारत भरी निगाहों से देखते हुए बोली,,,)
कहा था ना मालकिन जब जब आप हंसोगी तब तब मैं आपकी तारीफ करूंगा,,,,,
ठीक है रघू तारीफ करो मुझे भी अच्छा लगता है जब तुम मेरी तारीफ करते हो लेकिन सीधे स्वर्ग की अप्सरा क्या मैं तुम्हें स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लगती हूं क्या मैं इतनी खूबसूरत हुंं,,,।
हां मालकिन तुम बहुत खूबसूरत हो,, स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा ही लगती हो,,,
तो क्या तुम अप्सराओं को देखे हो,,,,
देखा तो नहीं हूं मालकीन लेकिन दावे के साथ कह सकता हूं कि आपसे ज्यादा खूबसूरत नहीं होगी,,,
(रघु की बातें प्रताप सिंह की बीवी के मन को प्रसन्न किए जा रहे थे जिंदगी में पहली बार किसी ने उसकी इतनी तारीफ किया था,,,) अच्छा मालकिनआप इतनी खूबसूरत है तो आपके माता पिता ने आपका नाम भी बहुत खूबसूरत ही रखा होगा क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं,,,,।
हां यह बात तो है मेरे माता पिता ने मेरा नाम बहुत खूबसूरत रखा था,,,,
क्या नाम है आपका,,,,
मेरा नाम,,,,( वह अपना नाम बताती ईससे पहले ही तांगे का पहिया बड़े से पत्थर से टकरा गया और तांगा वहीं का वहीं रुक गया,,,, प्रताप सिंह की बीवी गिरते-गिरते बची,,,।)
बाप रे अभी तो मैं पानी में गिरी होती,,,।
लगता है मालकिन पहिया के नीचे बड़ा पत्थर आ गया है,,,,
हां लगता तो ऐसा ही है,,,,।
आप बैठी रहिए में धक्का देकर निकालने की कोशिश करता हूं,,,,(इतना कह कर रघु तांगे से नीचे पानी में उतर गया,,,, पानी घुटनों से लगभग लगभग ज्यादा ही था उसका पूरा पैजामा घुटना तक भीग गया,,,, प्रताप सिंह की बीवी की नजर उसके पजामे पर पड़ी तो वह बोली,,,)
रघु तुम्हारा तो पजामा गीला हो गया,,,।
तो क्या हुआ मालकिन सूख जाएगा,,,,(इतना कहकर वो टांगे को पीछे से धक्का लगाने लगा,,, प्रताप सिंह की बीवी वही पीछे ही बैठी हुई थी और बड़े गौर से रघु को देख रही थी,,, रघु पूरा दम लगा दे रहा था,,,,प्रताप सिंह की बीवी बड़े गौर से उसके चेहरे को देख रही थी बड़ा ही मासूम चेहरा था रघू का,,,, रघु के ताकत लगाने पर तांगे का पहिया थोड़ा सा आगे को सर का,,, आगे से घोड़ा भी बाहर निकलने की सोच रहा था,,, इसलिए वह भी पूरी ताकत लगा कर आगे की तरफ बढ़ रहा था लेकिन पत्थर को ज्यादा ही बड़ा था इसलिए पहीया थोड़ा सा ऊपर की तरफ खसकने के साथ ही नीचे आ जा रहा था,,, रघु भी समझ गया कि उसके अकेले से यह काम होने वाला नहीं है,,, लेकिन प्रताप सिंह की बीवी से यह कहने में उसे शर्म महसूस हो रही थी कि वह क्या सोचेगी उससे एक पहिया नहीं सरक रहा था,,,,लेकिन प्रताप सिंह की बीवी तांगे पर बैठे-बैठे रघु की हालत को देखकर वह भी समझ गई थी कि रघु से यह काम अकेले होने वाला नहीं है क्योंकि पहिया बुरी तरह फस गया था इसलिए वह रघु से बोली,,,।
रघु मैं भी आकर तुम्हारी मदद करती हूं तभी तांगा बाहर निकल पाएगा,,,
नहीं नहीं मालकिन,,, यह गजब मत करो,,, मालिक को पता चल गया तो मेरी खैर नहीं कि मैंने आपसे तांगे को धक्का लगवाया है,,,,
अरे ऐसा क्यों कहते हो रघु मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि यह काम तुम्हारी जगह अगर कोई दूसरा भी होता तो उस से अकेले नहीं हो पाता,,,, तुम चिंता मत करो किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा,,,, लो मेरा हाथ पकड़ो और मुझे उतरने में मदद करो,,,(इतना कहकर अपना हाथ आगे बढ़ा दी रघु को शायद इसी पल का इंतजार था वो झट से प्रताप सिंह की बीवी का हाथ पकड़ लिया नरम नरम हथेलियों का एहसास अपनी हथेली पर होते ही उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी पहली बार वह बेहद खूबसूरत औरत का हाथ अपने हाथ मे ले रहा था,, और वह भी इतने जमीदार की बीवी का पजामे में हलचल हो रही थी,,, प्रताप सिंह की बीवी तांगे से नीचे उतरने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी एक बार फिर से रघू उसे सचेत करते हुए बोला,,,।
मालकिन पानी में आपकी साड़ी भीग जाएगी,,,
तुम चिंता मत करो मैं संभाल लूंगी,,,(इतना कहकर वह तांगे पर से नीचे उतरने लगी)