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Adultery बाबा ठाकुर (ब्लू मून क्लब- भाग 2)

कहानी का कथानक (प्लॉट)

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naag.champa

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बाबा ठाकुर
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(ब्लू मून क्लब- भाग 2)
~ चंपा नाग ~
अनुक्रमणिका

अध्याय १ // अध्याय १ // अध्याय ३ // अध्याय ४ // अध्याय ५
अध्याय ६ // अध्याय ७ // अध्याय ८ // अध्याय ९ // अध्याय १०
अध्याय ११ // अध्याय १२ // अध्याय १३ // अध्याय १४ // अध्याय १५
अध्याय १६ // अध्याय १७ // अध्याय १८ // अध्याय १९ // अध्याय २०
अध्याय २१ // अध्याय २२ // अध्याय २३ // अध्याय २४ // अध्याय २५
अध्याय २६ // अध्याय २७ // अध्याय २८ // अध्याय २९ // अध्याय ३०
अध्याय ३१ // अध्याय ३२ (समाप्ति)


प्रिय पाठक मित्रों,

बड़ी उत्साह के साथ और बड़ी खुशी के साथ मैं आपके लिए एक नई कहानी प्रस्तुत करने करने जा रही हूं| इस कहानी को मैंने बहुत ही धैर्य से और बड़े ही विस्तार से लिखा है| आशा है कि यह कहानी आप लोगों को मेरी लिखी हुई बाकी कहानियों की तरह ही पसंद आएगी क्योंकि इस कहानी को लिखने का मेरा सिर्फ एकमात्र ही उद्देश्य है वह है कि अपने पाठक बंधुओं का मनोरंजन करना|

मुझे आप लोगों के सुझाव, टिप्पणियां, कॉमेंट्स और लाइक्स का बेसब्री से इंतजार रहेगा|
PS और अगर अभी तक आप लोगों ने इस कहानी का पहला भाग नहीं पड़ा हो तो जरूर पढ़िएगा| पहले भाग का लिंक नीचे दिया हुआ है
ब्लू मून क्लब (BMC)

~ चंपा नाग ~



यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है और इसका जीवित और मृत किसी भी शख्स से कोई वास्ता नहीं। इस कहानी में सभी स्थान और पात्र पूरी तरह से काल्पनिक है, अगर किसी की कहानी इससे मिलती है, तो वो बस एक संयोग मात्र है| इस कहानी को लिखने का उद्देश्य सिर्फ पाठकों का मनोरंजन मात्र है|
 
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अध्याय ११


मैंने जमीन पर पड़ी हुई अपनी साड़ी उठाई और पलंग पर बैठ कर फिर से सुस्ताने लगी|

आज थोड़ी देर पहले ही बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ चौथे से व्यक्ति थे जिन्होंने मेरे नारीत्व और स्त्रैण यौवन सुधा को ग्रहण किया था|

सबसे पहले मेरे पति ने, उसके बाद मेरे बॉयफ्रेंड टॉम ने, फिर मुझे तालीम देते वक्त और अपना दिल बहलाने के लिए ब्लूमून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने और उसके बाद आज बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने|

जैसा कि मैंने कहा मैं कुछ घंटे पहले ही हूं गाड़ी में बैठकर एक लंबी यात्रा करके आई थी और उसके बाद मैंने बाबा ठाकुर के साथ संभोग किया... हालांकि मुझे कामना की शांति तो मिली थी... लेकिन मैं अपने आप को बहुत थका हुआ सा महसूस कर रही थी|

मेरा सामान आरती ने पहले ही बाबा ठाकुर के कमरे में पहुंचा दिया था| इसलिए मैंने अपने किट बैग का चीन खोला और उसमें से बकार्डी रम की बोतल निकाली और मैंने इधर उधर देखा कमरे के अंदर कोई गिलास या फिर पानी की बोतल वगैरह नहीं दिखी| इसलिए मैंने बोतल से ही एकदम बिना पानी मिलाएं हुए रम के एक-एक करके दो घूंट पी गई और फिर उसकी झांस से खांसने लगी और मेरे आंखों से पानी निकलने लगा|

इसके बाद मैंने किड्स बैग को खंगाला उसमें से मुझे पुदीन हरा टेबलेट के दो तीन स्ट्रिप मिल गए हैं... उनमें से मैंने दो गोलियां निकालकर उन्हें कच्चा कच्चा चबा गई ताकि रम की बदबू ना आए|

उसके बाद मुझे लगा कि मेरी योनि के आसपास का हिस्सा थोड़ा-थोड़ा चिपचिपा सा लग रहा है| मैंने झुक कर नीचे देखा और गौर किया कि बाबा ठाकुर के लिंग से उगले हुए वीर्य चार पांच चार पांच बूंदों के धब्बे मेरे यौनांग के आस -पास लगे हुए हैं और यह धीरे-धीरे सूखकर चिपचिपी से होते जा रहे हैं|

यह सब थोड़ी देर पहले किए हुए संभोग का नतीजा था और उसकी संतुष्टि को याद करके मेरे चेहरे पर एक मुस्कान खिल गई... मैं सीधे बाथरूम में गई और मैंने अपने यौनांग को अच्छी तरह से साबुन और पानी से धोया और फिर गमछे से पोछा|

उसके बाद कमरे के अंदर आकर मैंने जब नजर उठा कर देखी तो देख कर हैरान रहेगी की खिड़की के पास ही एक टेबल पर एक पानी से भरा हुआ जग रखा हुआ था और पास ही में एक गिलास भी है| यह सब मुझे पहले दिखाई नहीं दिया था क्योंकि मेरा ध्यान कहीं और था खैर जो भी हो मैं गटागट दो गिलास पानी पी गई फिर मुझे ध्यान आया कि मैं अभी तक बाबा ठाकुर के कमरे में बिल्कुल नंगी थी और उन्होंने कहा था की आरती आकर मुझे कुछ समझाने वाली है| इसलिए इससे पहले कि वह कमरे में दाखिल हो, मैंने जल्दी-जल्दी अपने बदन पर साड़ी लपेटना में शुरू कर दी और जैसे ही मैंने अपना आंचल संभाला ठीक उसी समय प्रत्याशा से उत्साहित आरती एकदम एक फुल स्पीड में धड़धड़ा कर आती हुई स्टीम इंजन की तरह कमरे के दरवाजों के किवाड़ों को झटके के साथ खुलती हुई अंदर आई और फटी फटी आंखों से और खिली खिली बाँछों से मेरी तरफ देखती हुई हूं बोली, "पीयाली दीदी? यह क्या हालत हो गई तुम्हारी? तुम्हारे बाल बिल्कुल उलझे उलझे बिखरे बिखरे से हैं... सिंदूर एकदम घिस गया है, तुम्हारी लिपस्टिक बिगड़ गई है... आखिर इस बंद कमरे के अंदर हुआ क्या?"

मेरी हालत देखकर ही वह सब कुछ समझ गई थी| उसके अंदर भरी हुई शरारत शायद उसकी आंखों से फटकर बाहर आ रही थी लेकिन वह फिर भी अनजान बनने का नाटक कर रही थी|

उसके मुंह से तो सवाल कुछ और ही निकला था लेकिन उसकी आंखें मुझसे कह रही थी, 'चुद गई हो क्या?- अच्छा हुआ मैं भी तो यही चाहती थी'

बदमाश लड़की! यह भी इसकी कच्चे आम भी पक गए हैं|

आज थोड़ी देर पहले की ही बात है; बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ चौथे से व्यक्ति थे जिन्होंने मेरे नारीत्व और स्त्रैण यौवन सुधा को भोग किया था|

सबसे पहले मेरे पति ने, उसके बाद मेरे बॉयफ्रेंड टॉम ने, फिर मुझे तालीम देते वक्त और अपना दिल बहलाने के लिए ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने और उसके बाद आज बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने|

मैंने लाचारी का नाटक करते हुए आरती कहा, "बस यह समझ ले कि भगवान ने तेरी प्रार्थना सुन ली है"

"ही ही ही ही ही ही...." वो खिलखिला कर हंस पड़ी और हवा में बार-बार हाथ जोड़कर अपने माथे पर उसे छुआ कर जिस भी देवी देवता ने उसके प्रार्थना सुन ली होगी उसको प्रणाम ठोकती रही, "हे भगवान तेरा लाख-लाख शुक्र है! पर तुम तो बिल्कुल भूतनी लग रही हो जल्दी से अपने बालों को और चेहरे को थोड़ा धो- धा कर ज़रा बालों को भी ठीक करलो... हमारे पास वक्त थोड़ा कम है"

मैंने कहा "ठीक है" यह कहकर मैंने अपने किट बैग से अपना छोटा सा टॉयलेट पाउच निकाला और बाबा ठाकुर के कमरे में लगे अटैच बाथरूम में जाकर शैंपू का एक गाढ़ा लेप अपनी मांग माथे और उसके आसपास के हिस्से पर अच्छी तरह से मला... और फिर नल खोल कर अपने बालों को सामने की तरफ फ्लिप करके अपने बालों को अच्छी तरह से धो लिया... फिर जल्दी-जल्दी साबुन से अपना चेहरा धोया और अपने गीले बालों समेट कर को अपने सर पर एक तौलिया लपेटकर बाहर आई... पर यह सब करते करते हैं जो साड़ी में नहीं पहन रखी थी बल्कि से गीली हो गई|

PAfter-Semi-Bath.jpg

अपना चेहरा पोंछ कर मैंने अपने चेहरे पर हल्का सा मेकअप किया और फिर होठों पर लिपस्टिक की है एक गाढ़ा लेप लगाया और फिर एक बड़े ना तो वाली कंगी से झटपट अपने बालों को सामने की तरफ फ्लिप करके आठ या दस बार काढ़ लिया और फिर बालों को वापस पीछे फ्लिप किया... और उसके बाद मैंने अपने किट बैग से एक नई सी साड़ी निकाली और उसे पहनने के लिए मैं बाथरूम की तरफ जाने लगी है कि इतने में आरती जो की आंखें फाड़ फाड़ कर मुझे देखे जा रही थी कि मैं करीब 10-15 मिनट में है कैसे बिल्कुल तैयार हो गई क्योंकि कोई लड़की इतनी जल्दी तैयार हो सकती है यह बात उसके लिए हजम करना थोड़ा मुश्किल हो रहा था उसने आखिरकार हिम्मत करके मुझसे कहा, "पीयाली दीदी, अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं तुम्हें साड़ी पहना दूं?"

मैंने उसकी तरफ तिरछी नजरों से झूठ मुठ का गुस्सा दिखाते हुए उसकी तरफ देखा और बोलिए, "तू जानती है कि मैंने इस अध गीली सी साड़ी के अलावा और कुछ नहीं पहना..."

"ही ही ही ही ही ही.... मैं जानती हूं दीदी... पर बुरा ना मानना जब से मैंने तुमको देखा है, न जाने मुझे भी क्यों कैसा कैसा लग रहा है... तुम्हारे जैसी सुंदर लड़की आज से पहले मैंने कभी नहीं देखी... प्लीज... मैं खुद तुमको साड़ी पहनाना चाहती हूं..."

आरती ने कहा था हमारे पास वक्त कम है और बाबा ठाकुर ने मुझसे कहा था कि उन्हें मुझसे नीचे काम भी है इसलिए मैंने बात को और नहीं बढ़ाई और मैंने आरती को अपनी साड़ी बदल कर पहनाने की इजाजत दी थी... और उसके हाथ तो बटेर लग गए क्योंकि वह मुझे इसी बहाने बिल्कुल नंगी देखना चाहती थी... और मैं इस बात को अच्छी तरह से जानती थी... पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा कि वह मुझमें अजीब सी दिलचस्पी लेने लगी है|

आरती जब मुझे साड़ी पहना रही थी तो मैंने उसे बता दिया था कि मैं साड़ी थोड़ा नीचे करके ही पहनती हूं| उसके साड़ी पहनाने के बाद जितना हो सके मैंने साड़ी के आंचल से अपनी पीठ और कंधे ढक लिए और मैंने अपने अध्-गीले और हल्का कंघी किए हुए बालों को खुला छोड़ रखा था और उन्हें अपनी पीठ पर फैला दिया था और फिर मैंने आरती से पूछा, "अच्छा बता तो आरती? मैं कैसी लग रही हूं?"

आरती मुझे फटी फटी आंखों से निहार रही थी, उसने कहा, "तुम तो इस साड़ी में और इस सजावट में और भी खूबसूरत लग रही हो... लेकिन तुम्हारा पेट का काफी हिस्सा दिख रहा है और तुम्हारी नाभि भी कितनी सुंदर है... बिल्कुल गोल गहरे कुएं की तरह"

यह कहते हुए अनजाने में ही आरती मेरी नाभि में अपनी एक उंगली डालने वाली थी लेकिन मैंने उससे रोका, "अरे धत! क्या कर रही है पगली?"

"नीचे आंगन में बाबा ठाकुर के भक्त गण इकट्ठा हो रहे हैं, पीयाली दीदी... पर दीदी मैं एक बात की दाद दूंगी... बाबा ठाकुर ने कहा था कि हम लोगों के पास तैयार होने के लिए सिर्फ आधे घंटे का वक्त है... लेकिन तुम तो उससे बहुत जल्दी ही तैयार हो गई हो... ही ही ही ही ही ही.... अब मैं तुमको समझाती हूं कि तुम्हें क्या करना है... और आज तो हमारे आश्रम के मैनेजर साहब... गुप्ता जी भी नहीं आए तो शायद उनका काम भी तुम्हें ही करना पड़ेगा... मैं तुमको सब विस्तार बताती हूं...."

क्रमशः
 

naag.champa

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अध्याय १२



आरती एक ही सांस में मुझे वह सब कुछ बोल गई- जो कि बाबा पंडित ठाकुर एकनाथ ने उसे कहने को कहा होगा कि भक्तों के बीच जाकर मुझे क्या-क्या करना है|

मैं सब कुछ समझ गई|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के भक्त गण उनके आंगन में इकट्ठा होते थे| बाबा ठाकुर के घर का आंगन उनके घर के पीछे की तरफ था और पूरे आंगन को उन्होंने टीन की छादन लगा रखी थी जिसके ऊपर मैंने गौर किया कि सुखी घास की भिगोए हुई एक मोटी सी चद्दर जैसी रखी हुई थी ताकि धूप की वजह से टीन की छादन ज्यादा गर्म ना हो जाए|

और उस टीन की छादन को सहारा देने के लिए आंगन में जगह जगह मोटे मोटे से लोहे के खंभे गढ़े हुए थे|

और पूरे आंगन भर में एक मोटी सी दरी बिछी हुई थी जिस पर भक्त लोग आकर बैठते थे और उनके सामने बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ एक आरामदायक गद्दे वाली दीवान पर बैठते थे जिसमें 2 लोगों की बैठने की जगह होती थी|

मुझे और आरती को सीढ़ियों से नीचे उतरते देखकर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ थोड़ा सा हैरान रह गए| उन्हें लगा होगा कि शायद मुझे तैयार होने में थोड़ी और देर लगेगी- क्योंकि ज्यादातर मर्द यही सोचते हैं कि औरतों को सजने धजने में काफी समय लग जाता है- लेकिन मैं उनके अनुमान के विपरीत बिल्कुल जैसा वह चाहते थे बिल्कुल वैसे ही तैयार होकर एकदम तरोताजा होकर उनके सत्संग के लिए बिल्कुल तैयार हो गई थी|

सीढ़ियों से उतरते वक्त उनका बैठक खाना साफ दिखता था- और बाबा पंडित ठाकुर एकनाथ फिलहाल कुछ विदेशी लोगों के साथ कुछ बातें कर रहे थे|

जैसा कि मैंने कहा बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की ख्याति देश विदेश में फैली हुई है| वह एक बहुत ही अच्छे ज्योतिषी ही नहीं बल्कि एक तजुर्बे दार तांत्रिक भी है| उन्होंने अपनी क्रियाओं से न जाने कितने लोगों की समस्याओं का समाधान किया है|

एक पल के लिए हम दोनों की नजर एक दूसरे से मिली और इसी में हमने एक दूसरे के मनोभाव को जान लिया|

***

घर के अंदर की तरफ से जो दरवाजा आंगन की ओर खुलता था; आरती ने आगे जाकर उसे खोला क्योंकि मेरे हाथों में पूजा की थाली थी और जैसे ही मैंने आंगन में कदम रखा; वहां मौजूद सभी भक्तों की निगाहें मुझ पर टिक गई| उन लोगों का आपस में एक दूसरे से दबी आवाज में बातें करना एकदम बंद सा हो गया| हर कदम पर मेरे स्तनों का जोड़ा थिरक रहा था और कुछ ही देर पहले मैंने बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के साथ संभोग किया था और उसकी गर्मी मेरे बदन में अभी भी बाकी थी इसलिए मेरे स्तनों चूचियां खड़ी-खड़ी सी हो रखी थी|


PWith-Puja-Thali.jpg

फिर भी मैंने हिम्मत करके नजर उठा कर देखा कि आंगन में करीब 30 या 40 वक्त गण मौजूद होंगे लेकिन उनमें ज्यादातर महिलाएं ही थी और सभी ने अपने बाल खोल रखे थे|

भले ही वह स्कूल जाने वाली सरिता हो या उसके साथ आई हुई उसकी दादी या फिर डॉक्टर चटर्जी की पत्नी... यहां तक की वहां जितनी भी आम औरतें भी बैठी हुई थी सब के बाल खुले हुए थे|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ का यह एक Fetish यानी कि अजीब वस्तु काम है- औरतों को खुले बालों में देखना पसंद करते हैं...

आंगन के सामने एक बरामदा था| उसके दूसरे छोर पर एक टेबल और कुर्सी रखी थी| यही बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के मैनेजर गुप्ता जी के बैठने की जगह थी|

बरामदे के बीचो बीच एक दीवान रखा हुआ था जिसमें एक मोटा सा गद्दा और लाल रंग की मोटी सी चादर बिछी हुई थी| मैं देखते ही समझ गई कि यहां स्वयं बाबा ठाकुर पंडित नाथ बैठकर अपने भक्तों को प्रवचन सुनाते हैं|

जैसा कि आरती ने मुझे समझाया था, मैं ठीक वैसा ही करने लगी|

सबसे पहले मैंने बाबा ठाकुर के बैठने की जगह को एक नारियल के झाड़ू से झाड़ा उसके बाद दीवान के पीछे टंगी हुई उनके गुरुदेव की तस्वीर से पुराने सूखे हुए फूलों की माला को उतारकर उसे गीले कपड़े से अच्छी तरह से पूछा और फिर पूजा की थाली में से एक नई फूलों की माला को तस्वीर पर लगाया|

उसके बाद मैंने अगरबत्ती और दिया चलाकर पूजा की थाल में सजाकर उनके गुरुदेव की तस्वीर की आरती उतारी और उसके बाद मैंने तीन बार शंख बजाया|

मेरे शंख की तीनों ताने काफी लंबी थी जिसे सुनकर वहां बैठे बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के सभी भक्तगण यहां तक की आरती भी काफी प्रभावित हुई|

इतने में बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ बरामदे में उपस्थित हुए और उनके सारे भक्तजनों ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया|

मैं भी अपना घूंघट उठा कर, घुटनों के बल बैठकर जमीन पर अपना माथा टेक कर अपने बालों को सामने की तरफ फैला दिए और गांव की भाषा में मैं बोली, "पेन्नाम हुई बाबा ठाकुर" (मैं आपको प्रणाम करती हूं, बाबा ठाकुर)

ना तो बाबा ठाकुर को और ना ही आरती को उम्मीद थी कि मैं यह सब काम इतना आसानी से और कुशलता से कर पाऊंगी... खासकर सबको मेरे शंख बजाने की लंबी तान बहुत पसंद आई थी|

बाबा ठाकुर ने मुस्कुराकर मेरे बालों पर पैर रखे और उसके बाद पीछे हटकर उन्होंने अपने हाथों से मेरा कंधा पकड़ कर मुझे उठाया और फिर खुद दीवान पर बैठकर उन्होंने बगल वाली जगह अपने हाथों से थपथपा कर इशारा किया कि मैं भी उनके बगल में आकर बैठा हूं|

मैं ने दोबारा अपनी साड़ी का पल्लू थोड़ा सा ठीक किया और फिर पूरे आत्मविश्वास के साथ जाकर उनके बगल में उनसे बिल्कुल चिपक के बैठ गई|

गांव के जो लोग थे जिन्होंने बाबा ठाकुर के पास अपनी बहू बेटियों बच्चा पैदा करवाने के लिए भेजा था वह समझ गए कि शायद मैं भी उनके यहां इसीलिए आई हूं|

अगर एक अलग वास्तविकता की बात करें तो अगर बाबा ठाकुर के घर कुछ दिन बिताने के बाद अगर मैं गर्भवती भी हो जाती; तो भी शायद गांव के लोग मुझे इज्जत की नजरों से ही देखते हैं| ऐसा होना उनके गांव में और आसपास के इलाके में बहुत ही साधारण सी बात थी|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ में ज्यादा वक्त जायर नहीं किया और उन्होंने अपना प्रवचन शुरू किया|

उनकी वाणी में सभी धर्मों का सार था... लेकिन जब उन्होंने कहा-"इंसान हमेशा चाहता है कि उसकी परिस्थितियां बदल जाएं और अनुकूल हो जाए... लेकिन परिस्थितियों को बदलना हमेशा इंसान के बस की बात नहीं है... पर इंसान एक चीज जरूर कर सकता है वह यह कि परिस्थिति के अनुसार अपने आपको जितना हो सके ढाल ले... तो परिस्थितियां अपने आप ही अनुकूल होती चली जाएगी..."

यह बात मेरे दिल में बैठ गई| न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि उनके किस वचन का सारांश मेरे पूरे जीवन और व्यक्तित्व से कोई महत्वपूर्ण संबंध रखता है|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ का प्रवचन करीब-करीब एक डेढ़ घंटा और चला| तब तक शाम ढल चुकी थी और अंधेरा हो रहा था इसलिए आरती ने आसपास की ट्यूब लाइट जला दी थी|

आरती ने यह भी बताया था कि हर सत्संग के बाद बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के भक्तगण हमेशा दान दक्षिणा देते हैं और जिसके बदले उन्हें रसीद भी मिलती है|

इसलिए जब वह वक्त आया तब मैं सेनगुप्ता जीके टेबल कुर्सी पर जाकर बैठ गई|

एक-एक करके भक्त लोग आकर अपनी दान दक्षिणा मुझे देते रहे| मैंने ठीक से पैसे गिन करके उनको पैसों की पेटी में रखकर उनका रसीद काटने लगी| इतने में दो-तीन विदेशी लोग भी आए और उन्होंने भी अपनी दक्षिणा रखी| लेकिन गांव वालों के दिए हुए सौ पचास या फिर 500 और ज्यादा से ज्यादा 2000 के मुकाबले गोरे विदेशियों ने 20-20 या फिर 25-25 हजार रुपए नकद मुझे पकड़ाए|

पहले की तरह मैंने उन्हें अच्छी तरह से गिन कर पैसों की पेटी में डाल दिया और रसीद काटकर उनके हाथों में थमाती हुई बोली, "थैंक यू- गॉड ब्लेस यू"

मेरी भूरी भूरी आंखों को और मेरा गोरा चिट्टा बदन देखकर शायद कुछ लोगों को शक था कि मैं एंग्लो इंडियन हूं... पर मैं पारंपरिक वेशभूषा में थी| बदन में सिर्फ साड़ी लपेट रखी थी मेरी मांग सिंदूर से भरी हुई थी, और दोनों हाथों में किसी बंगाली सुहागन की तरह शांखा और पौला पहन रखा था इसलिए शायद वह लोग अंदाजा नहीं लगा पा रहे थे कि आखिर मैं हूं कौन? कहीं कोई एंग्लो इंडियन से दिखने वाली गांव की आम लड़की तो नहीं? ऊपर सेमेरी अंग्रेजी बिल्कुल सटीक और सीधी सपाट थी और मेरा बोलने का लहजा और उच्चारण भी बिल्कुल सही था; इसलिए एक विदेशी से रहा नहीं गया उसने आखिरकार पूछ ही लिया "I was not expecting a young woman like you to speak such good English in a village like this (मैं आप जैसे किसी जवान लड़की को इस गांव में इतनी अच्छी अंग्रेजी बोलने की उम्मीद ही नहीं कर रहा था)"

मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "All by God's grace (यह सब ऊपर वाले की कृपा है)"

और चूँकि मैं शहर की लड़की थी और कॉल सेंटर में काम करते वक्त एक आध बार मैंने इवेंट मैनेजमेंट भी कर रखा था इसलिए मुझे इतना सब करने में कोई खास तकलीफ नहीं हुई|

यूं तो बाबा ठाकुर को अंग्रेजी आती थी, लेकिन कभी कबार अंग्रेजों के बोलने का लहजा और उनका उच्चारण कुछ ऐसा होता था कि आम आदमी के लिए समझ पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता था|

शायद इसीलिए जब सारे के सारे भक्तगण चले गए; जो विदेशी किसी विशेष कार्य के लिए बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के पास आए थे वह सीधे उनके साथ बैठक खाने की तरफ चले गए और बाबा ठाकुर ने मुझे भी अपने साथ आने का इशारा किया- क्योंकि अगर उन्हें जरूरत पड़ी तो शायद मुझे दुभाषिये का काम करना पड़ेगा...

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की फायर ब्रिगेड से मुझ जैसी एक हॉट प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल के लिए दिन के लाख रुपए दे रहे थे| पर लगता है वह अपना एक-एक पैसा बखूबी वसूल रहे थे|

विदेशी अपनी समस्याएं लेकर बाबा ठाकुर के पास आए थे| उनके हिसाब से उनकी समस्याएं बहुत ही गंभीर थी| किसी को बिजनेस की समस्या तो किसी का लंबे समय से कोर्ट कचहरी में उनका मामला फंसा हुआ था|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ जी ने उनकी समस्याओं के समाधान के लिए उन्हें कुछ ग्रह रत्न के बारे में बताया| लेकिन एक यहां बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई विदेशी लोग बहुत कम समय के लिए भारत आए हुए थे और वह चाहते थे कि बाबा ठाकुर स्वयं उनके साथ शहर जाकर के जिस ज्वेलरी की दुकान का नाम उन्होंने सुझाया था वहां गृह रत्नों को परखे और फिर विदेशी लोग उनके रत्नों को खरीदेंगे और उनकी अंगूठी बनवाएंगे- क्योंकि इसके लिए वह बहुत ही मोटी रकम खर्च कर रहे थे| अब यह काम तो कल सुबह ही हो सकता था|

लेकिन उन्हें इस काम के लिए मुझे अकेला घर में छोड़कर विदेशियों के साथ शहर जाना था|

मैं बाबा ठाकुर की मनःस्थिति को समझ शक्ति थी, वह मुझ जैसी लड़की को भोगने के लिए घर में ले आए, लेकिन भाग्य की विडंबना यह है कि उन्हें घर से बाहर जाना पड़ रहा था, अन्यथा उनकी मान और प्रतिष्ठा को नुकसान होगा।

और मैं भी यह बहुत अच्छी तरह जानती थी कि मैं यहां ब्लू मून क्लब की एक पार्ट टाइम लवर गर्ल के तौर पर आई हुई हूं... जबकि भारतीय सोचती है कि मैं दूसरी औरतों की तरह यहां बच्चा पैदा करने के लिए आई हूं... आरती इतनी बड़ी हो तो गई है कि वह समझ सके कि बच्चे कैसे पैदा किए जाते हैं... पर यहां असलियत कुछ और ही है और ऊपर से मुझे अपने क्लाइंट को क्यों न संतुष्टि देना मेरा कर्तव्य था... बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ जी ने एक बार तो मेरे साथ संभोग कर लिया था लेकिन मैं जानती थी कि मेरे साथ एक बार संभोग करने के बाद उनकी वासना की आग और भड़क चुकी है...

जब तक विदेशी लोग एक-एक करके विदा हुए तब तक करीब रात के 10:00 बज चुके थे| बाबा ठाकुर ने मुझे उनके कमरे में जाने के लिए कहा और वह ज्वेलरी की दुकान के मालिक को फोन लगाने लगे|

रसोई घर में से खटर पटर बर्तनों की आवाज आ रही थी| आरती के अंदर न जाने एक अनजानी सी खुशी सी भर गई थी और वह मस्त होकर रात का खाना लगाने की तैयारी कर रही थी|

रात अभी बाकी है और सुबह होने में काफी देर है...

क्रमशः
 
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chantu

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aap ki sahitya shaily ka prsanshk ho gya hun .
lgta hi nhi hai ki ye yh adult kahani hai ,
app ki bangla kahani agr in kahani se alg hai to hindi me padna chahta hun ,
dhanyvad
 
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manu@84

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आदरणीय manu@84 जी,


आपका मंतव्य पढ़कर सचमुच मुझे बड़ी खुशी हुई|

आपने बिल्कुल सही फरमाया, पढ़ाई तो मैंने साइंस को लेकर की है लेकिन इसी के साथ-साथ मैंने आर्ट , फिलोसोफी और साइकोलॉजी की एकाद किताबें भी पढ़ी है| इसलिए आप अंदाजा बिल्कुल सही है| एकदम Bull's eye! इसके लिए मैं आपका आभार व्यक्त करती हूं और आपको धन्यवाद भी देती हूं


जैसा कि मैंने अपनी कहानी में लिखा है,

"इन सब चीजों का बैठक खाने में होना जरूर कोई मायने रखता होगा| जो लोग बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ से मिलने आते थे शायद उनके लिए यह कोई कृतिक संदेश होगा..."

और आपने इस चीज को बहुत अच्छी तरह से अपने मंतव्य में व्यक्त किया है

जी हां, पीयाली ने खुद इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि वह बाबा ठाकुर के यहां आकर किस माहौल में मैं आपको पाएगी और सबसे बड़ी बात वह अपने आप को इस माहौल में कैसे डाल पाती है (या फिर नहीं) यह कहानी की अगली अपडेट्स में मैं आपको बताऊंगी|

और हां, आरती कभी कच्चा चिट्ठा खुलने वाला है...
मुझे बहुत खुशी हुयी जब आपने खुद के बारे में बताया। मेरी खुशी तब और बढ़ जाती है जब इस आश्लील कहानियों के फोरम पर आप जैसे सुलझे हुए, खुले विचारों वाले, परिपकव् शक्स से थोड़ी सी निजी बातचीत हो जाती है। पर एक सवाल हमेशा कचोटता है कि आप और हम जैसे बहुत से ऐसे परिपकव, पढ़े लिखे, समझदार, दुनियादारी का अनुभव रखने वाले लोग यहाँ क्यो आते हैं, क्यो लिखते, क्यो पढ़ते है, हम लोग कोई टीन एज नही है जो सेक्स की पूर्ति के लिए आश्लील काल्पनिक कहानिया पढ़ कर संतुष्टि प्राप्त करे। हमें ये भी पता है कि हम जो यहाँ लिख- पढ़ रहे है उससे कोई भी आर्थिक लाभ भी नही होने वाला है, हम यहाँ जितने भी बेस्ट राइटर, रीडर बन जाये लेकिन इस सफलता को वास्तविक जीवन में किसी से भी share नही कर सकते। फिर भी हम यहाँ क्यों है....???? क्या हम बाहर की दुनिया के लोगों से खुश नही है, क्या हम नॉर्मल पर्सन नही है, क्या हमारे मन में ऐसी desire इच्छा है जिसे हम वास्तविक जीवन में कभी पूरी नही कर सकते और जिन्हे हम शब्दों में यहाँ लिखते है। क्या हमारे मन मष्टिशक् में सिर्फ सेक्स और सेक्स ही भरा है। क्या हम दूषित सोच के व्यक्ति है और ऐसे बहुत से सवाल है जिनके जबाब मै खुद से ही पूछता हूँ लेकिन स्पष्ट रूप से जबाब नही मिलता। आपने साइक्लॉजी की किताबे पढ़ी हुयी है कृपया उचित मार्ग दर्शन दे 🙏
 
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manu@84

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अध्याय १०

मैं झटपट बिस्तर से उठी और सीधे उनके सामने जाकर दोबारा जमीन पर अपने घुटने टेक कर बैठकर अपना माथा जमीन पर टिका कर अपने बालों को दोबारा से उनके आगे फैला दिए, ताकि वह मेरा प्रणाम स्वीकार कर सकें ठीक वैसे ही जैसा मुझे ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने सिखाया था|
मेरा यह आचरण देखकर बाबा ठाकुर खुश हुए और उन्होंने दोबारा अपने दोनों पैर मेरे बालों पर रखे और फिर एक कदम पीछे हट गए| मैं अपने बालों को समेट कर जैसे ही उठने कोई वैसे ही मेरा आंचल सरक कर नीचे गिर पड़ा और मेरे शरीर का ऊपरी हिस्सा पूरी तरह से उनके सामने बिल्कुल नंगा हो गया- एक ही झलक में मेरे कंधे, स्तनों का जोड़ा पेट और नाभि- बाबा ठाकुर को दिख गया| मुझे ऐसा लगा कि शायद आंखों से ही उन्होंने अपने मन के अंदर मेरी हालत में एक तस्वीर खींच ली| मैं एकदम से बहुत सचेत हो गई और जल्दी से अपने आंचल को समेट कर अपनी छाती के पास अपनी लाज ढकने कोशिश करी|


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उन्होंने मुस्कुरा कर एक नजर मेरे ऊपर डाली, "सच बताऊं पीयाली? पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि साक्षात कामधेनु मेरे घर आई हुई है| मैंने तो सोचा था कि आज दोपहर के भोजन के बाद ही मैं तुम्हारे साथ संभोग करूंगा... लेकिन मुझसे रहा नहीं जा रहा... हालांकि बाहर आंगन में मेरे भक्तों का आना शुरू हो गया है... लेकिन आरती उनसे कह देगी कि मुझे आने में थोड़ी देर होगी| सिर्फ साड़ी में लिपटी हुई तुमको देखकर, तुम्हारा चेहरा तुम्हारी मांग में भरा हुआ सिंदूर, तुम्हारे लाल लाल लुभावने भरे भरे से होंठ, तुम्हारा उबलता और उफनता हुआ यौवन रूप- रंग और लावण्य को देखकर मुग्ध तो हो गया हूं| मेरा ध्यान बार-बार भटक रहा था... मैं अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूं... इसलिए मैं अपने अंदर की इच्छा को शांत करने के बाद ही अपने भक्तों से मिलने जाऊंगा... वरना मैं अपने प्रवचनों में अपना ध्यान नहीं लगा पाऊंगा..."
यह कहकर उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भर लिया|

मैंने मन ही मन सोचा कि मैं तो इसीलिए बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के यहां आई हुई हूं ताकि वह मेरे तन और मन से अपनी सेवा करवा सके और उनको यौन संतुष्टि देना तो मेरा काम था| साथ ही मैंने देखा कि यही मौका है कि मैं उनके मन में अपनी एक अच्छी सी छाप छोड़ सकूं इसलिए मैंने उनकी आगोश में सिमटकर उनकी छाती पर अपना सिर रखकर शर्माते हुए एकदम नादान बनने का नाटक करते हुए कहा, "अगर आरती ने हमें इस हालत में देख लिया तो?"

"आरती की चिंता मत करो| उसे अभी बहुत काम है| वह तो पहले मेरे भक्तों को पानी वगैरह पिलाएगी उसके बाद उसे रसोई का काम भी करना है... इसलिए समझ लो कुछ देर के लिए उसके पास अभी दम मारने की भी फुर्सत नहीं है और जब तक मेरा प्रवचन खत्म नहीं हो जाता उसे रसोईघर से फुर्सत नहीं मिलेगी... लेकिन फिलहाल मेरे अंदर वासना का ज्वार आया हुआ है... इसलिए हमें देर नहीं करनी चाहिए"

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के आगोश में मैं एकदम सिमटी हुई सी थी और मेरा बदन उनसे बिल्कुल चिपका हुआ था| इसलिए मैंने साफ महसूस किया कि उनका लिंग बिलकुल सख्त और खड़ा हो चुका है|

मैंने मन ही मन सोचा, 'हे भगवान! तेरी लीला अपरंपार... तूने आखिरकार आरती की प्रार्थना सुन ही ली'

"जी जैसा आप आदेश करें” यह कहकर मैं बड़ी ही कोमलता से उनके आलिंगन से मुक्त हुई और फिर उनकी तरफ पीठ करके सबसे पहले मैंने अपना आंचल हटाया और उसके बाद नाभि के नीचे लगी हुई साड़ी की गांठ को खोलिए वह धीरे-धीरे अपनी साड़ी उतारने लगी|
बाबा ठाकुर इस नजारे का पूरा लुफ्त उठा रहे थे... और मुझे मालूम था कि मैं उन्हें लुभाने में सफल हो रही थी... आखिरकार मुझे पार्ट टाइम लवर गर्ल की तालीम स्वयं ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा से मिली है|

मैंने अपने बदन को ढकने के लिए सिर्फ आरती की दी हुई साड़ी ही लपेट रखी थी अब वह भी मैंने उतार दी थी| मैं बाबा ठाकुर के सामने अपनी पीठ करके खड़ी थी और वह अब तक मुझे धीरे-धीरे साड़ी उतारते हुए देख रहे थे इसके बाद मैंने एक हाथ से अपने स्तनों को ढकने का प्रयास किया और दूसरे हाथ से यौनांग को... और उनकी तरफ तब भी अपनी पीठ करके खड़ी रही| उन्हें मेरी नंगी पीठ, पतली कमर कूल्हे और टांगे दिख रही थी
इतने में बाबा ठाकुर ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए थे और वह भी बिल्कुल नंगे होकर संभोग के लिए तैयार हो चुके थे|

मैंने भी इसी बीच उन्हें नजर भर सर से पांव तक एक बार अच्छी तरह से देख लिया|

उनका पूरा चेहरा ट्रिम की हुई दाढ़ी और मूछों से निखर रहा था- ऐसे ही वह टीवी पर आते थे- उमरी उनकी गरीब 50 साल से ऊपर की होगी, लेकिन फिर भी उनका पूरा का पूरा शरीर- गठीला, हृष्ट पुष्ट और मर्दानगी एक चमक से भरा हुआ था और सबसे खास बात मेरे बॉयफ्रेंड टॉम और पति जय के विपरीत उनका सारा का सारा शरीर- जैसे कि सीना, हाथ और पैर बालों से भरे हुए थे|

मुझे मालूम था आगे क्या होने वाला है... बाबा ठाकुर मेरी तरफ पड़े और उन्होंने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और बड़े जतन के साथ बिस्तर पर लेटा दिया|

उसके बाद वह मेरे पूरेबदन में अपने हाथ फेरने लगी जैसे कि मानो मेरे बदन से निकलती हुई जवानी की ऊष्मा को वह अपने हाथों से जितना हो सके सोख लेना चाहते थे... इतने में अनजाने में ही मेरी नज़र उनके सख्त तने हुए और तगड़े से लिंग पर जा टिकी... उसका लिंग भी लंबा मोटा और एक तलवार की तरह ऊपर की तरफ मुड़ा हुआ था... उनके बदन से एक मर्दाना गंध आ रही थी... जो मुझे बहुत अच्छी लग रही थी इतने में वह मेरे और करीब आए और उन्होंने एक गहरी सी सांस अंदर ली और बोले, "तुम्हारे बालों से और बदन से बड़ी मनमोहक से खुशबू आ रही है... और तुम्हारे फेरोमोंस पूरे माहौल को एकदम यौन मादकता से भर दिया है..."

यह कहकर वह मेरे मुंह से अपना मुंह लगाकर मेरे होठों को बड़े प्यार से चूमने लगे... मैंने उनके हर चुंबन का जवाब चुंबन से ही दिया... और हालांकि मैं यहां सर्विस देने के लिए आ रही थी और क्लाइंट को खुश करना मेरा काम था लेकिन मैं जो भी कर रही थी वह अपनी मर्जी से कर रही थी क्योंकि बाबा ठाकुर जो भी मेरे साथ कर रहे थे वह मुझे अच्छा लगने लगा था...

फिर मुझे महसूस हुआ कि धीरे-धीरे उनका एक हाथ मेरी छाती, स्तनों, पेट नाभि को सहलाते हुए हल्के से मेरी योनि तक पहुंच गया... मैं थोड़ा सिहर उठी...

बाबा ठाकुर बोले, "मैं तुम्हारी दुविधा... समझ सकता हूं कि अभी फिलहाल में तुम्हारे लिए नया हूं... और तुम ठहरी ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की बेटी... तुम्हारी योनि गीली नहीं हुई है, इसका मतलब है कि तुम फिलहाल संभोग के लिए तैयार नहीं हो... लेकिन मुझे अपने आप को शांत करना पड़ेगा इसलिए... फिलहाल मैं तुम्हारे साथ संभोग करके ही दम लूंगा"

मैंने भी कांपती हुई आवाज में जवाब दिया, "मैं तो एक नारी हूं बाबा ठाकुर| पुरुष के लिंग को अपनी योनि में आश्रय देना तो मेरा कर्तव्य है... यही तो मेरे नारीत्व का प्रतीक है... आप मुझे भोगिए... मेरी कोशिश यही रहेगी यह आपकी हर इच्छा में पूरी कर सकूं"

"लेकिन तुम्हारी योनि तो अभी कामना के रस से गिरी नहीं हुई है अगर मैं अपना लिंग तुम्हारी योनि के अंदर डालूंगा तो तुम्हें तकलीफ होगी..."

"बाबा ठाकुर, मैं काम करती हूं आप अपना पुरुषांग मुझे थोड़ी देर के लिए चूसने दीजिए... मैं अपनी लार से उससे थोड़ा सा गीला कर देती हूं इससे हम दोनों को ही आसानी होगी..."

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को मेरा यह सुझाव बहुत अच्छा लगा| मुझे लगता है शायद मुझे देखकर वह इतना मोहित हो गए थे कि शायद उनके दिमाग में यह ख्याल आया ही नहीं होगा... उन्होंने और देर नहीं की... मैंने अपनी आंखों को मूंदकर अपना मुंह हल्का सा खोलकर ही रखा था और उन्होंने बिना देर किए अपना लिंग मेरे मुंह के अंदर डाल दिया... उस वक्त मुझे अपने बॉयफ्रेंड टॉम की बहुत याद आ रही थी... मैं उसी के बारे में सोचती हुई बाबा ठाकुर के लिंग को चूस चूस कर और अपनी जीभ से जितना हो सके उस पर अपने मुंह के लार लगाने लगी...

बाबा ठाकुर एक कुशल वासना भोगी इंसान थे| इसलिए उन्हें अंदाजा हो गया कि अब देर नहीं करनी चाहिए... उन्होंने अपना लिंग मेरे मुंह से निकाल लिया और फिर मेरे ऊपर चढ़कर अपने लिंग का सुपाड़ा (मुख/ सिर) मेरी योनि से लगाया... मैंने अपनी टांगों को जितना फैला सकती थी फैला दी और मैं भी कामना की उकसाहट में अपनी कमर को ऊपर उचका दिया...

मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी के पेट में छुरा घोंपा जाता है ठीक वैसे ही उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि के अंदर घोंप दीया... साथ ही हम दोनों के मुंह से ही एक हल्की सी आवाज निकली, "अअअअह"

"उह्ह्ह्ह"

मुझे लगता है कि मेरी योनि के अंदर अपना लिंग डालने के बाद शायद बाबा ठाकुर की लिंग की चमड़ी पीछे की तरफ खिंच गई थी क्योंकि मेरी योनि काफी तंग थी... और उनका लिंग में ही काफी मोटा और लंबा था इसलिए मुझे भी थोड़ा सा दर्द हुआ...
बाबा ठाकुर अगले ही क्षण मैथुन लीला में मगन हो गए और उनकी वासना के झटकों से मेरा पूरा शरीर हिलने लगा और पूरा वातावरण फिर से कामदेव की तालियों से भर उठा|

थप! थप! थप! थप! थप! थप! थप!

मैथुन लीला का क्रम तब तक चलता रहा... जब तक मेरे अंदर कामना संतुष्टि का एक जबरदस्त विस्फोट नहीं हो गया... हालांकि शुरू शुरू में मैं संभोग के लिए तैयार नहीं थी लेकिन धीरे-धीरे मैं भी इसी यौन प्रक्रिया में ढलती चली गई थी... कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि बाबा ठाकुर का भी वीर्य स्खलन हो गया और मेरे अंदर गरम गरम तरल पदार्थ का गीलापन महसूस होने लगा...

बाबा ठाकुर ने एक गहरी सी सांस छोड़ी और उसके बाद वह मेरे शरीर से अलग हो गए...

फिर उन्होंने दीवार पर टंगी घड़ी की ओर देखा और सीधे अपने कमरे से लगे बाथरूम में चले गए... मुझे उनकी पेशाब करने की आवाज सुनाई दी और उसके बाद मैं भी उठकर उनके पीछे-पीछे बाथरूम में जा घुसी और फिर वहां ताक पर रखा साबुन मुझे दिख गया...

बाबा ठाकुर के चेहरे पर मेरी सिंदूर और लिपस्टिक का दाग लगा हुआ था...

मुझे अपने पीछे पीछे मुझे आते देखकर बाबा ठाकुर को थोड़ा विस्मय में जरूर हुआ होगा पर मैंने एक मग्गे में पानी भरा और फिर साबुन को अपने हाथों में घिस कर साबुन के झाग से उन पर लगे लिपस्टिक और सिंदूर के दाग मिटाने लगी और फिर उनके लिंग और अंडकोष साबुन का झाग लगाया.. और उसके बाद मग्गे के पानी से उनका पुरुषांग धोकर साफ करने लगी...

ऐसा मैंने क्यों किया कि मुझे भी नहीं मालूम लेकिन मन ही मन मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं अगर ऐसा करूं तूने अच्छा जरूर लगेगा और नतीजा बिल्कुल मेरे पक्ष में निकला|

बाबा ठाकुर ने कहा, "तू वास्तव में एक ताजा फूल है... सच कहूं तो इससे पहले कई औरतें और लड़कियां मेरे पास आई है... जिनको मैंने जी भर के भोगा है... पर तेरे अंदर वह बात है जो आज तक मुझे किसी भी स्त्री के अंदर नहीं दिखी... लगता है मैंने तुझे यहां बुला कर कोई गलती नहीं की... मेरा मन तो नहीं कर रहा कि मैं तुझे छोड़ कर जाऊं, लेकिन अब तक मेरे काफी सारे भक्तगण आ चुके होंगे... मुझे उन पर भी ध्यान देना होगा... लेकिन बाद में मैं उम्मीद करता हूं कि हमारा संभोग और भी फलदाई होगा"

"जैसी आपकी इच्छा बाबा ठाकुर" मैंने गमछे से उनके गुप्त अंगो को पूछते हुए कहा|

संभोग की जल्दबाजी में हमारे कपड़े जमीन पर ही पड़े रह गए थे इसलिए सबसे पहले मैंने झुक कर बाबा ठाकुर के कपड़े उठाएं... और मैं उनकी तरफ पीठ करके जानबूझकर झुकी ताकि वह मेरे कूल्हों को अच्छी तरह देख सकें और फिर मैंने उन्हें उनकी धोती है पकड़ाई|

उनके धोती पहनने के बाद मैंने उनका कुर्ता उनके हाथों में थमा दिया... और उनके सामने में बिल्कुल नंगी सर झुकाए खड़ी रही| मेरी साड़ी अभी तक जमीन पर ही पड़ी हुई थी|

"तूने अपना पूरा नाम क्या बताया था?"

"जी, पीयाली... पीयाली दास"

इतने में बाबा ठाकुर अंग्रेजी में बोल उठे, "That means an Anglo Indian woman's daughter from another father (यानी कि एक एंग्लो इंडियन औरत की बेटी किसी दूसरे पिता से)"

मैंने स्वीकृति में अपना सर हिलाया| बाबा ठाकुर मेरी भूरी भूरी आंखों को देखकर मुझे भी दूसरों की तरह एंग्लो इंडियन ही समझ रहे थे और यहां तो खास बात यह थी कि मेरी शक्ल ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा से इतना मेल खाती थी कि हम दोनों को साथ साथ देखकर हर कोई यही सोचता कि हम लोग मां बेटी हैं|

पर मुझे नहीं मालूम था कि बाबा ठाकुर की अंग्रेजी बोलने का तात्पर्य कुछ और ही था, उन्होंने मुझसे कहा, "इसका मतलब मेरा अंदाजा सही निकला| तुझे अंग्रेजी आती है"

मैंने कहा, "जी हां, मैं कॉलेज में पढ़ी लिखी ग्रेजुएट लड़की हूं... और विदेशी कॉल सेंटर में भी काम कर चुकी हूं"

"बड़ी अच्छी बात है... आज तुझे थोड़ा बहुत काम भी करना पड़ेगा... थोड़ी देर बाद आरती आकर तेरे को सब कुछ समझा देगी"

यह कहकर बाबा ठाकुर मैं दोबारा मुझे अपनी बाहों में भरा और मेरे होठों को चुम कर वह कमरे से बाहर चले गए और अपने पीछे दरवाजे को भिड़ा करके गए|

क्रमशः
मेरे लिखे शब्द आपको खुशी दे रहे है, उसी खुशियों की कड़ी में अपने नये शब्दों को पिरोते हुए शुरू करता हूँ। कहानी का update बहुत ही कामुकता, मादकता, सोंदर्यता से परिपूर्ण था। आपके लिखे गए कामुक् शब्द वियाग्रा की गोली की तरह अपना असर कर रहे थे 🙃 लिंग् में उत्तेजना का संचार शुरू हो गया था। लिंग् में इतना तनाव महसूस कर एक पल के लिए अपना हाथ जगन्नाथ करने का मन किया 😂😜 आपने पियाली और बाबा की काम क्रीड़ा को जितनी सहजता और सोम्यता से लिखा वो प्रांशिनीय है। सबसे ज्यादा काबिलेतारीफ सहवास के उपरांत बाथरूम में पियाली के बिखरे हुए सिंदूर और होंठो की लालिमा का लुट जाने के बाद किये गए कृत्य को छिपाना अथवा साबुन से धो कर मिटाने का विवरण है। "अक्सर राइटर कहानी में सेक्स तो परोस देते है लेकिन सेक्स के बाद की स्थिति से न्याय नहीं कर पाते "

पूरे update में सबसे ज्यादा पसंद आये मुझे आपके अकल्पनीय शब्द जैसे : स्तनों का जोड़ा, कामदेव की तालियों की गूँज, थप थप... इन शब्दों को पढ़कर हँसी के साथ साथ आपके कल्पना की सोच को नमन करने को दिल किया। 🙏😂

पियाली के पात्र को जितना मै महसूस कर रहा हूँ या उसको अपनी कल्पना में देखता हूँ उसकी उसी सोच को यहाँ लिखना चाहता हूँ..... कब तक किसी एक शादीशुदा स्त्री का चरित्र, केवल चूत के पैमाने से तोला जाता रहेगा? कोई स्त्री एकनिष्ठ होकर भी बहुत बुरी हो सकती है। कोई एक से अधिक मर्दों के साथ संबंध रख कर भी अपने कृतित्व से महान हो सकती है। वास्तव में औरत को पहली बार किसी गैर मर्द के पास जाने के पहले, औरत को बहुत हिम्मत जुटाना पड़ती है। कई तरह की शंका, कुशंका उसे घेरे रहती है, उसे इन आशंकाओं से बाहर निकल कर, मन को नया आनंद दिलाने के लिए प्रण करना पड़ता है। फिर जब पर पुरुष द्वारा, स्त्री की चुदाई की जाती है तो उसके साथ स्त्री की झिझक, उसका संकोच भी टूट जाता है और उसमें कभी भी, कहीं भी, किसी के भी साथ, संबंध बनाने का साहस आ जाता है।

इसी साहस के साथ पियाली की गाथा को आगे बढाइये ✍️

धन्यवाद.... 🙏
 

Tiger 786

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अध्याय १२



आरती एक ही सांस में मुझे वह सब कुछ बोल गई- जो कि बाबा पंडित ठाकुर एकनाथ ने उसे कहने को कहा होगा कि भक्तों के बीच जाकर मुझे क्या-क्या करना है|

मैं सब कुछ समझ गई|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के भक्त गण उनके आंगन में इकट्ठा होते थे| बाबा ठाकुर के घर का आंगन उनके घर के पीछे की तरफ था और पूरे आंगन को उन्होंने टीन की छादन लगा रखी थी जिसके ऊपर मैंने गौर किया कि सुखी घास की भिगोए हुई एक मोटी सी चद्दर जैसी रखी हुई थी ताकि धूप की वजह से टीन की छादन ज्यादा गर्म ना हो जाए|

और उस टीन की छादन को सहारा देने के लिए आंगन में जगह जगह मोटे मोटे से लोहे के खंभे गढ़े हुए थे|

और पूरे आंगन भर में एक मोटी सी दरी बिछी हुई थी जिस पर भक्त लोग आकर बैठते थे और उनके सामने बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ एक आरामदायक गद्दे वाली दीवान पर बैठते थे जिसमें 2 लोगों की बैठने की जगह होती थी|

मुझे और आरती को सीढ़ियों से नीचे उतरते देखकर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ थोड़ा सा हैरान रह गए| उन्हें लगा होगा कि शायद मुझे तैयार होने में थोड़ी और देर लगेगी- क्योंकि ज्यादातर मर्द यही सोचते हैं कि औरतों को सजने धजने में काफी समय लग जाता है- लेकिन मैं उनके अनुमान के विपरीत बिल्कुल जैसा वह चाहते थे बिल्कुल वैसे ही तैयार होकर एकदम तरोताजा होकर उनके सत्संग के लिए बिल्कुल तैयार हो गई थी|

सीढ़ियों से उतरते वक्त उनका बैठक खाना साफ दिखता था- और बाबा पंडित ठाकुर एकनाथ फिलहाल कुछ विदेशी लोगों के साथ कुछ बातें कर रहे थे|

जैसा कि मैंने कहा बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की ख्याति देश विदेश में फैली हुई है| वह एक बहुत ही अच्छे ज्योतिषी ही नहीं बल्कि एक तजुर्बे दार तांत्रिक भी है| उन्होंने अपनी क्रियाओं से न जाने कितने लोगों की समस्याओं का समाधान किया है|

एक पल के लिए हम दोनों की नजर एक दूसरे से मिली और इसी में हमने एक दूसरे के मनोभाव को जान लिया|

***

घर के अंदर की तरफ से जो दरवाजा आंगन की ओर खुलता था; आरती ने आगे जाकर उसे खोला क्योंकि मेरे हाथों में पूजा की थाली थी और जैसे ही मैंने आंगन में कदम रखा; वहां मौजूद सभी भक्तों की निगाहें मुझ पर टिक गई| उन लोगों का आपस में एक दूसरे से दबी आवाज में बातें करना एकदम बंद सा हो गया| हर कदम पर मेरे स्तनों का जोड़ा थिरक रहा था और कुछ ही देर पहले मैंने बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के साथ संभोग किया था और उसकी गर्मी मेरे बदन में अभी भी बाकी थी इसलिए मेरे स्तनों चूचियां खड़ी-खड़ी सी हो रखी थी|


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फिर भी मैंने हिम्मत करके नजर उठा कर देखा कि आंगन में करीब 30 या 40 वक्त गण मौजूद होंगे लेकिन उनमें ज्यादातर महिलाएं ही थी और सभी ने अपने बाल खोल रखे थे|

भले ही वह स्कूल जाने वाली सरिता हो या उसके साथ आई हुई उसकी दादी या फिर डॉक्टर चटर्जी की पत्नी... यहां तक की वहां जितनी भी आम औरतें भी बैठी हुई थी सब के बाल खुले हुए थे|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ का यह एक Fetish यानी कि अजीब वस्तु काम है- औरतों को खुले बालों में देखना पसंद करते हैं...

आंगन के सामने एक बरामदा था| उसके दूसरे छोर पर एक टेबल और कुर्सी रखी थी| यही बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के मैनेजर गुप्ता जी के बैठने की जगह थी|

बरामदे के बीचो बीच एक दीवान रखा हुआ था जिसमें एक मोटा सा गद्दा और लाल रंग की मोटी सी चादर बिछी हुई थी| मैं देखते ही समझ गई कि यहां स्वयं बाबा ठाकुर पंडित नाथ बैठकर अपने भक्तों को प्रवचन सुनाते हैं|

जैसा कि आरती ने मुझे समझाया था, मैं ठीक वैसा ही करने लगी|

सबसे पहले मैंने बाबा ठाकुर के बैठने की जगह को एक नारियल के झाड़ू से झाड़ा उसके बाद दीवान के पीछे टंगी हुई उनके गुरुदेव की तस्वीर से पुराने सूखे हुए फूलों की माला को उतारकर उसे गीले कपड़े से अच्छी तरह से पूछा और फिर पूजा की थाली में से एक नई फूलों की माला को तस्वीर पर लगाया|

उसके बाद मैंने अगरबत्ती और दिया चलाकर पूजा की थाल में सजाकर उनके गुरुदेव की तस्वीर की आरती उतारी और उसके बाद मैंने तीन बार शंख बजाया|

मेरे शंख की तीनों ताने काफी लंबी थी जिसे सुनकर वहां बैठे बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के सभी भक्तगण यहां तक की आरती भी काफी प्रभावित हुई|

इतने में बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ बरामदे में उपस्थित हुए और उनके सारे भक्तजनों ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया|

मैं भी अपना घूंघट उठा कर, घुटनों के बल बैठकर जमीन पर अपना माथा टेक कर अपने बालों को सामने की तरफ फैला दिए और गांव की भाषा में मैं बोली, "पेन्नाम हुई बाबा ठाकुर" (मैं आपको प्रणाम करती हूं, बाबा ठाकुर)

ना तो बाबा ठाकुर को और ना ही आरती को उम्मीद थी कि मैं यह सब काम इतना आसानी से और कुशलता से कर पाऊंगी... खासकर सबको मेरे शंख बजाने की लंबी तान बहुत पसंद आई थी|

बाबा ठाकुर ने मुस्कुराकर मेरे बालों पर पैर रखे और उसके बाद पीछे हटकर उन्होंने अपने हाथों से मेरा कंधा पकड़ कर मुझे उठाया और फिर खुद दीवान पर बैठकर उन्होंने बगल वाली जगह अपने हाथों से थपथपा कर इशारा किया कि मैं भी उनके बगल में आकर बैठा हूं|

मैं ने दोबारा अपनी साड़ी का पल्लू थोड़ा सा ठीक किया और फिर पूरे आत्मविश्वास के साथ जाकर उनके बगल में उनसे बिल्कुल चिपक के बैठ गई|

गांव के जो लोग थे जिन्होंने बाबा ठाकुर के पास अपनी बहू बेटियों बच्चा पैदा करवाने के लिए भेजा था वह समझ गए कि शायद मैं भी उनके यहां इसीलिए आई हूं|

अगर एक अलग वास्तविकता की बात करें तो अगर बाबा ठाकुर के घर कुछ दिन बिताने के बाद अगर मैं गर्भवती भी हो जाती; तो भी शायद गांव के लोग मुझे इज्जत की नजरों से ही देखते हैं| ऐसा होना उनके गांव में और आसपास के इलाके में बहुत ही साधारण सी बात थी|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ में ज्यादा वक्त जायर नहीं किया और उन्होंने अपना प्रवचन शुरू किया|

उनकी वाणी में सभी धर्मों का सार था... लेकिन जब उन्होंने कहा-"इंसान हमेशा चाहता है कि उसकी परिस्थितियां बदल जाएं और अनुकूल हो जाए... लेकिन परिस्थितियों को बदलना हमेशा इंसान के बस की बात नहीं है... पर इंसान एक चीज जरूर कर सकता है वह यह कि परिस्थिति के अनुसार अपने आपको जितना हो सके ढाल ले... तो परिस्थितियां अपने आप ही अनुकूल होती चली जाएगी..."

यह बात मेरे दिल में बैठ गई| न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि उनके किस वचन का सारांश मेरे पूरे जीवन और व्यक्तित्व से कोई महत्वपूर्ण संबंध रखता है|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ का प्रवचन करीब-करीब एक डेढ़ घंटा और चला| तब तक शाम ढल चुकी थी और अंधेरा हो रहा था इसलिए आरती ने आसपास की ट्यूब लाइट जला दी थी|

आरती ने यह भी बताया था कि हर सत्संग के बाद बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के भक्तगण हमेशा दान दक्षिणा देते हैं और जिसके बदले उन्हें रसीद भी मिलती है|

इसलिए जब वह वक्त आया तब मैं सेनगुप्ता जीके टेबल कुर्सी पर जाकर बैठ गई|

एक-एक करके भक्त लोग आकर अपनी दान दक्षिणा मुझे देते रहे| मैंने ठीक से पैसे गिन करके उनको पैसों की पेटी में रखकर उनका रसीद काटने लगी| इतने में दो-तीन विदेशी लोग भी आए और उन्होंने भी अपनी दक्षिणा रखी| लेकिन गांव वालों के दिए हुए सौ पचास या फिर 500 और ज्यादा से ज्यादा 2000 के मुकाबले गोरे विदेशियों ने 20-20 या फिर 25-25 हजार रुपए नकद मुझे पकड़ाए|

पहले की तरह मैंने उन्हें अच्छी तरह से गिन कर पैसों की पेटी में डाल दिया और रसीद काटकर उनके हाथों में थमाती हुई बोली, "थैंक यू- गॉड ब्लेस यू"

मेरी भूरी भूरी आंखों को और मेरा गोरा चिट्टा बदन देखकर शायद कुछ लोगों को शक था कि मैं एंग्लो इंडियन हूं... पर मैं पारंपरिक वेशभूषा में थी| बदन में सिर्फ साड़ी लपेट रखी थी मेरी मांग सिंदूर से भरी हुई थी, और दोनों हाथों में किसी बंगाली सुहागन की तरह शांखा और पौला पहन रखा था इसलिए शायद वह लोग अंदाजा नहीं लगा पा रहे थे कि आखिर मैं हूं कौन? कहीं कोई एंग्लो इंडियन से दिखने वाली गांव की आम लड़की तो नहीं? ऊपर सेमेरी अंग्रेजी बिल्कुल सटीक और सीधी सपाट थी और मेरा बोलने का लहजा और उच्चारण भी बिल्कुल सही था; इसलिए एक विदेशी से रहा नहीं गया उसने आखिरकार पूछ ही लिया "I was not expecting a young woman like you to speak such good English in a village like this (मैं आप जैसे किसी जवान लड़की को इस गांव में इतनी अच्छी अंग्रेजी बोलने की उम्मीद ही नहीं कर रहा था)"

मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "All by God's grace (यह सब ऊपर वाले की कृपा है)"

और चूँकि मैं शहर की लड़की थी और कॉल सेंटर में काम करते वक्त एक आध बार मैंने इवेंट मैनेजमेंट भी कर रखा था इसलिए मुझे इतना सब करने में कोई खास तकलीफ नहीं हुई|

यूं तो बाबा ठाकुर को अंग्रेजी आती थी, लेकिन कभी कबार अंग्रेजों के बोलने का लहजा और उनका उच्चारण कुछ ऐसा होता था कि आम आदमी के लिए समझ पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता था|

शायद इसीलिए जब सारे के सारे भक्तगण चले गए; जो विदेशी किसी विशेष कार्य के लिए बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के पास आए थे वह सीधे उनके साथ बैठक खाने की तरफ चले गए और बाबा ठाकुर ने मुझे भी अपने साथ आने का इशारा किया- क्योंकि अगर उन्हें जरूरत पड़ी तो शायद मुझे दुभाषिये का काम करना पड़ेगा...

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की फायर ब्रिगेड से मुझ जैसी एक हॉट प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल के लिए दिन के लाख रुपए दे रहे थे| पर लगता है वह अपना एक-एक पैसा बखूबी वसूल रहे थे|

विदेशी अपनी समस्याएं लेकर बाबा ठाकुर के पास आए थे| उनके हिसाब से उनकी समस्याएं बहुत ही गंभीर थी| किसी को बिजनेस की समस्या तो किसी का लंबे समय से कोर्ट कचहरी में उनका मामला फंसा हुआ था|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ जी ने उनकी समस्याओं के समाधान के लिए उन्हें कुछ ग्रह रत्न के बारे में बताया| लेकिन एक यहां बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई विदेशी लोग बहुत कम समय के लिए भारत आए हुए थे और वह चाहते थे कि बाबा ठाकुर स्वयं उनके साथ शहर जाकर के जिस ज्वेलरी की दुकान का नाम उन्होंने सुझाया था वहां गृह रत्नों को परखे और फिर विदेशी लोग उनके रत्नों को खरीदेंगे और उनकी अंगूठी बनवाएंगे- क्योंकि इसके लिए वह बहुत ही मोटी रकम खर्च कर रहे थे| अब यह काम तो कल सुबह ही हो सकता था|

लेकिन उन्हें इस काम के लिए मुझे अकेला घर में छोड़कर विदेशियों के साथ शहर जाना था|

मैं बाबा ठाकुर की मनःस्थिति को समझ शक्ति थी, वह मुझ जैसी लड़की को भोगने के लिए घर में ले आए, लेकिन भाग्य की विडंबना यह है कि उन्हें घर से बाहर जाना पड़ रहा था, अन्यथा उनकी मान और प्रतिष्ठा को नुकसान होगा।

और मैं भी यह बहुत अच्छी तरह जानती थी कि मैं यहां ब्लू मून क्लब की एक पार्ट टाइम लवर गर्ल के तौर पर आई हुई हूं... जबकि भारतीय सोचती है कि मैं दूसरी औरतों की तरह यहां बच्चा पैदा करने के लिए आई हूं... आरती इतनी बड़ी हो तो गई है कि वह समझ सके कि बच्चे कैसे पैदा किए जाते हैं... पर यहां असलियत कुछ और ही है और ऊपर से मुझे अपने क्लाइंट को क्यों न संतुष्टि देना मेरा कर्तव्य था... बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ जी ने एक बार तो मेरे साथ संभोग कर लिया था लेकिन मैं जानती थी कि मेरे साथ एक बार संभोग करने के बाद उनकी वासना की आग और भड़क चुकी है...

जब तक विदेशी लोग एक-एक करके विदा हुए तब तक करीब रात के 10:00 बज चुके थे| बाबा ठाकुर ने मुझे उनके कमरे में जाने के लिए कहा और वह ज्वेलरी की दुकान के मालिक को फोन लगाने लगे|

रसोई घर में से खटर पटर बर्तनों की आवाज आ रही थी| आरती के अंदर न जाने एक अनजानी सी खुशी सी भर गई थी और वह मस्त होकर रात का खाना लगाने की तैयारी कर रही थी|

रात अभी बाकी है और सुबह होने में काफी देर है...

क्रमशः
Mind-blowing story hai apki
Lazwaab 👏👏👏👏💯💯💯💯💯💯💯💯💯💯💯
 

naag.champa

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मेरे लिखे शब्द आपको खुशी दे रहे है, उसी खुशियों की कड़ी में अपने नये शब्दों को पिरोते हुए शुरू करता हूँ। कहानी का update बहुत ही कामुकता, मादकता, सोंदर्यता से परिपूर्ण था। आपके लिखे गए कामुक् शब्द वियाग्रा की गोली की तरह अपना असर कर रहे थे 🙃 लिंग् में उत्तेजना का संचार शुरू हो गया था। लिंग् में इतना तनाव महसूस कर एक पल के लिए अपना हाथ जगन्नाथ करने का मन किया 😂😜 आपने पियाली और बाबा की काम क्रीड़ा को जितनी सहजता और सोम्यता से लिखा वो प्रांशिनीय है। सबसे ज्यादा काबिलेतारीफ सहवास के उपरांत बाथरूम में पियाली के बिखरे हुए सिंदूर और होंठो की लालिमा का लुट जाने के बाद किये गए कृत्य को छिपाना अथवा साबुन से धो कर मिटाने का विवरण है। "अक्सर राइटर कहानी में सेक्स तो परोस देते है लेकिन सेक्स के बाद की स्थिति से न्याय नहीं कर पाते "

पूरे update में सबसे ज्यादा पसंद आये मुझे आपके अकल्पनीय शब्द जैसे : स्तनों का जोड़ा, कामदेव की तालियों की गूँज, थप थप... इन शब्दों को पढ़कर हँसी के साथ साथ आपके कल्पना की सोच को नमन करने को दिल किया। 🙏😂

पियाली के पात्र को जितना मै महसूस कर रहा हूँ या उसको अपनी कल्पना में देखता हूँ उसकी उसी सोच को यहाँ लिखना चाहता हूँ..... कब तक किसी एक शादीशुदा स्त्री का चरित्र, केवल चूत के पैमाने से तोला जाता रहेगा? कोई स्त्री एकनिष्ठ होकर भी बहुत बुरी हो सकती है। कोई एक से अधिक मर्दों के साथ संबंध रख कर भी अपने कृतित्व से महान हो सकती है। वास्तव में औरत को पहली बार किसी गैर मर्द के पास जाने के पहले, औरत को बहुत हिम्मत जुटाना पड़ती है। कई तरह की शंका, कुशंका उसे घेरे रहती है, उसे इन आशंकाओं से बाहर निकल कर, मन को नया आनंद दिलाने के लिए प्रण करना पड़ता है। फिर जब पर पुरुष द्वारा, स्त्री की चुदाई की जाती है तो उसके साथ स्त्री की झिझक, उसका संकोच भी टूट जाता है और उसमें कभी भी, कहीं भी, किसी के भी साथ, संबंध बनाने का साहस आ जाता है।

इसी साहस के साथ पियाली की गाथा को आगे बढाइये ✍️

धन्यवाद.... 🙏
आदरणीय manu@84 जी,

आपका मंतव्य पढ़कर सचमुच मुझे बहुत खुशी हुई| मैं खुद एक औरत हूं और आजकल के समाज में भी औरतों को मर्दों के मुकाबले कमजोर या फिर हीन समझा जाता है| लेकिन इस फोरम के आने के बाद मैंने अपनी मनो व्यक्ति कहानियों का रूप दिया है| और दुख की बात यह है कि अभी तक कुछ लोग यह सोचते हैं कि मेरा प्रोफाइल Fake है... खैर, में दूसरे लोगों की सोच को तो बदल नहीं सकती...

मेरी कहानियां ज्यादातर Female sexuality पर आधारित है|

इस Forum में ऐसी कहानियां लिखकर और अपनी कल्पना को व्यक्त करने के साथ-साथ मेरा उद्देश्य मेरे पाठकों का मनोरंजन करना है|और आप जैसे पाठक जो नियमित रूप से मेरी कहानियों को पढ़ते हैं और उसके साथ ही अपना मूल्यवान मंतव्य व्यक्त करते हैं- यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी अनुप्रेरणा है|

आपने पीयाली के पात्र को बहुत अच्छी तरह समझा है; इस बात की मुझे बड़ी खुशी है... और साथ ही आपके मंतव्य को पढ़कर मुझे ऐसा लगा कि आपकी सोच दूसरों से बिल्कुल अलग है... क्योंकि हमारे समाज में आज भी लोग बाग यही सोचते रहते हैं कि मर्द करे तो मर्दानगी और औरत करे तो पाप...

खैर, जैसा कि मैंने कहा मैं दूसरों की सोच को बदल नहीं सकती... लेकिन मेरी कहानियां पढ़कर अगर मेरे पाठकों का मनोरंजन होता है और मैं अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करके एक सांत्वना प्राप्त कर पा रही हूं... तो इसे मैं अपनी सफलता मानूंगी|

मुझे आप जैसे पाठकों की बहुत जरूरत है| मैं आपका धन्यवाद करती हूं|

कृपया कहानी के साथ बनी रहिएगा और आपकी समालोचना मेरे लिए शिरोधार्य है|
 
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naag.champa

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मुझे बहुत खुशी हुयी जब आपने खुद के बारे में बताया। मेरी खुशी तब और बढ़ जाती है जब इस आश्लील कहानियों के फोरम पर आप जैसे सुलझे हुए, खुले विचारों वाले, परिपकव् शक्स से थोड़ी सी निजी बातचीत हो जाती है। पर एक सवाल हमेशा कचोटता है कि आप और हम जैसे बहुत से ऐसे परिपकव, पढ़े लिखे, समझदार, दुनियादारी का अनुभव रखने वाले लोग यहाँ क्यो आते हैं, क्यो लिखते, क्यो पढ़ते है, हम लोग कोई टीन एज नही है जो सेक्स की पूर्ति के लिए आश्लील काल्पनिक कहानिया पढ़ कर संतुष्टि प्राप्त करे। हमें ये भी पता है कि हम जो यहाँ लिख- पढ़ रहे है उससे कोई भी आर्थिक लाभ भी नही होने वाला है, हम यहाँ जितने भी बेस्ट राइटर, रीडर बन जाये लेकिन इस सफलता को वास्तविक जीवन में किसी से भी share नही कर सकते। फिर भी हम यहाँ क्यों है....???? क्या हम बाहर की दुनिया के लोगों से खुश नही है, क्या हम नॉर्मल पर्सन नही है, क्या हमारे मन में ऐसी desire इच्छा है जिसे हम वास्तविक जीवन में कभी पूरी नही कर सकते और जिन्हे हम शब्दों में यहाँ लिखते है। क्या हमारे मन मष्टिशक् में सिर्फ सेक्स और सेक्स ही भरा है। क्या हम दूषित सोच के व्यक्ति है और ऐसे बहुत से सवाल है जिनके जबाब मै खुद से ही पूछता हूँ लेकिन स्पष्ट रूप से जबाब नही मिलता। आपने साइक्लॉजी की किताबे पढ़ी हुयी है कृपया उचित मार्ग दर्शन दे 🙏
आदरणीय manu@84 जी,

आपने बिल्कुल सही फरमाया| लेकिन विडंबना यह है- की आज कल की Abnormal या फिर AI की दुनिया में हम जैसे लोग बिल्कुल Normal हैं... खासकर हमारी खासियत यह है कि हमारे अंदर इतना साहस है कि हम लोग ऐसे फोरम में आकर के कहानियां लिखते हैं... पढ़ते हैं... और अपने खुले विचारों को लिखित रूप में व्यक्त करते हैं...

शायद यदि हम दूसरों से अलग हैं...

मेरी कामवाली बाई ने एक बार मेरी कहानी का कुछ हिस्सा देख लिया था...

उसका कहना था, "छी छी छी... चंपा यह क्या पढ़ रही हो?...."

कंप्यूटर की स्क्रीन पर जो था... उसे मैंने ही लिखा था... लेकिन उस औरत की सोच के अनुसार- मुझे से लड़की जोकि अपने बालों को सुखाने के लिए बालों को खोलकर कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठी हुई है... वह खुद यह सब लिख सकती है...- उसके लिए बिल्कुल अकल्पनीय है...

लेकिन मैं फिर भी कहूंगी... हम और आप जैसे लोग बिल्कुल Normal हैं... जिनके अंदर इतना साहस है कि अपने विचारों का आदान-प्रदान खुलकर कर सकते हैं...

फिर भी मेरी कामवाली बाई यही कहती है, तुम्हारे बाल लंबे हैं... अगर बाहर निकलो तो बालों को खुला मत छोड़ना, ... साथ में एक दुपट्टा ले लेना... यह वह वगैरा-वगैरा...

आपको क्या लगता है? क्या मैं abnormal हूं? अगर मैं शाम को अपने बालों को खोल कर पानी पूरी खाने जाती हूं, या फिर दुकान से सामान लेने जाती हूं, तो क्या यह गलत है?
 
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