अध्याय १४
सुबह जब मेरी नींद खुली तब मुझे एहसास हुआ कि मैं बिस्तर पर अकेली ही लेटी हुई थी और मेरा बदन एक चादर से अच्छी तरह से ढका हुआ था| मैंने मुड़कर बगल में देखा बाबा ठाकुर बिस्तर पर नहीं थे| फिर मैंने धीरे धीरे उठने की कोशिश की है मेरा पूरा बदन एक मीठे दर्द से भरा हुआ था खासकर मेरी योनि और कमर में दर्द ज्यादा था... इससे पहले कि दोबारा आरती फिर से फुल स्पीड में एक स्टीम इंजन की तरह धड़धड़ाती हुई अंदर आ जाए मैं जमीन पर अपनी साड़ी ढूंढने लगी| फिर मैंने देखा कि मेरी साड़ी बिस्तर के सिरहाने में टंकी हुई थी| शायद बाबा ठाकुर ने उसे उठाकर वहां रख दिया होगा| मैंने जल्दी-जल्दी साड़ी पहनी और उसी के साथ ही दोबारा झटके के साथ कमरे के किवाड़ खुले और और जैसे ट्रेन का इंजन धुआं छोड़ता है वैसे ही उत्सुकता अदृश्य बुलबुले फैलाती हुई आरती कमरे में दाखिल हुई लेकिन इस वक्त उसके हाथों में चाय की प्याली थी|
मैंने उसे देखकर मुस्कुरा कर कहा, "गुड मॉर्निंग"
"गुड मॉ-र्निं-ग पीयाली दीदी" उसने बिल्कुल वैसे ही कहा जैसे स्कूल में बच्चे टीचर को गुड मॉर्निंग बोलते हैं| इसका मतलब कभी ना कभी आरती स्कूल भी गई है पर अब शायद नहीं जाती|
"बाबा ठाकुर कहां है... नहा धोकर पूजा पाठ में लग गए हैं... बस कुछ ही देर में आते होंगे... आज दोपहर 12:30 उन्हें शहर के लिए निकलना है... कल जो गोरे लोग आए हुए थे उनके लिए... ग्रह रत्नों को जांच परख कर उनके लिए अंगूठी बनवानी है"
"तो क्या उन्होंने शहर जाने के लिए कोई टैक्सी या गाड़ी ठीक की है" क्योंकि जब मैं इनके घर आई थी तो इनके घर के बाहर मुझे कोई गाड़ी खड़ी दिखाई नहीं दी थी|
आरती ने अपने मुंह के अंदर अपनी जुबान चटका कर "चक्ख、" की आवाज निकाली- उसके कहने का मतलब था 'नहीं'
"तो क्या फिर विदेशी उन्हें लेने आ रहे हैं"
आरती ने फिर से अपने मुंह के अंदर अपनी जुबान चटका कर "चक्ख、" की आवाज निकाली- मतलब नहीं
"तो फिर वह जाएंगे कैसे"
"ट्रेन से... यहां से शहर तक के लिए टैक्सी वाले काफी पैसे लेते हैं... और बस का कोई भरोसा नहीं है"
अब मैं क्या बोलती? मैं चुप ही रही|
"पीयाली दीदी, फिर से तुम्हारे बाल अस्त व्यस्त हो गए हैं, तुम्हारी लिपस्टिक बिगड़ गई है... और सिंदूर भी घिस गया है..."
"हां जानती हूं... मैं जल्दी से नहा धो कर आती हूं, यह कहकर मैं अपने बैग से शैंपू और साबुन निकालने लगी"
इतने में आरती बोली, "पीयाली दीदी, पहले यह चाय पी लो इसमें अदरक, लौंग, इलायची और तेजपत्ता मिला हुआ है... इससे तुम्हारी रात की थकान दूर हो जाएगी उसके बाद तुम नहा लेना मैं तुम्हारे बाल बना दूंगी..."
"ठीक है, लेकिन तुझे और कोई काम तो नहीं है मैं यह नहीं चाहती कि मेरी देखभाल करते हुए तू बाबा ठाकुर को कोई शिकायत का मौका दें... उनका कोई काम रुकना नहीं चाहिए"
"उसकी चिंता तुम मत करो पीयाली दीदी, बाबा ठाकुर को पूजा पाठ करके उठने में अभी थोड़ी देर लगेगी कितने में सब काम हो जाएगा" यह कहकर आरती थोड़ा शरारत से मुस्कुराए और फिर थोड़ा सा हिचकते हुए उसने कहा, " पीयाली दीदी अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें नहला दूं"
अब मुझे पक्का यकीन हो गया था कि आरती की मेरे ऊपर दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी|
मैंने कहा "धत पगली"
मुझे नहा धोकर आने दे उसके बाद तू मेरे बालों में कंघी कर देना... यह कहकर मैंने अपने बैग से एक नई साड़ी निकाली औरअपने टॉयलेट पाउच से तेल साबुन शैंपू वगैरा लेकर बाथरूम में घुस गई...
बाथरूम में घुसकर मैंने अपनी साड़ी उतार दी और बिल्कुल नंगी हो गई फिर मुझे तो ख्याल आया कि एक बार आरती से पूछ लूँ, "आरती एक बात बता क्या इस घर में कोई वाशिंग मशीन है?"
आरती ने बड़े हर्ष के साथ जवाब दिया, "हां है ना... एकदम ऑटोमेटिक वाला... और उस में तरह-तरह की सेटिंग भी है जो सब कुछ मैंने सीख लिया है... तुम्हारी साड़ियां बहुत महीन है.... उसकी सेटिंग भी अलग है... मैं जानती हूं क्या करना है... बस ढक्कन खोलो, कपड़े डालो, साबुन वाले खोखे में साबुन डालो... और फिर मशीन ऑन करके सेटिंग करके... ढक्कन बंद करो और फिर बटन दबा दो... मशीन जरूरत के मुताबिक पानी भरेगा... फिर उसके अंदर का ड्रम घौं - घौं करके चलेगा... फिर वह अपने आप पानी छोड़ेगा फिर से वह पानी भरेगा और उसके बाद उसके अंदर का ड्रम घौं - घौं करके चलेगा... और फिर अंत में उसका ड्रम बहुत तेज घूमने लगेगा कपड़ों से पानी निचोड़ने के लिए के लिए... और उसके बाद टिंग टोंग टिंग टांग टिंग टांग... आवाज करेगा सारे के सारे कपड़े धुल गए... और लगभग सूख भी गए| फिर मैं उन्हें मशीन में से निकाल कर के छत पर सुखाने के लिए दे आऊंगी..."
आरती ने मुझे सब कुछ समझाया जैसे कि मैं ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन के बारे में कुछ नहीं जानती| ऐसी गलती उसकी नहीं है क्योंकि गांव की जो औरतें अब तक बाबा ठाकुर के यहां आती होंगी उन्हें शायद आटोमेटिक वाशिंग मशीन के बारे में कुछ पता ही नहीं होगा...
मैं आरती की बनाई हुई चाय पीने लगी... सचमुच चाय बहुत ही बढ़िया थी|
मुझे याद आया कि मैंने ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा से वादा किया था हर रोज उन्हें फोन करूंगी... इसलिए मैंने अपना फोन उठाया और चाय पीते पीते मेरे डिसूजा का नंबर लगाया, "हां, गुड मॉर्निंग मम्मी..." और फिर मैंने आरती की तरफ तिरछी नजर से देखा|
वह समझ गई कि शायद मुझे एकांत की जरूरत है इसलिए वह कमरे से बाहर जाते हुए बोल कर गई, "मैं नीचे जा कर देखती हूं अगर बाबा ठाकुर को किसी चीज की जरूरत पड़ जाए.... पर आप मुझे बुला लेना"
उसके जाने के बाद मैं मैरी डिसूजा से यूं ही अनायास बातें करती रही... वह मेरा हालचाल पूछती रही है और फिर उन्होंने पिछली रात का ब्यौरा भी मेरे से लिया... यह सब बोल सुनकर हम दोनों ही हंसने लगे थे...
बातें खत्म होने के बाद मैंने फोन रखा तो मेरी नजर नीचे बगीचे में एक बच्चे के ऊपर गई| वह लड़का करीब 4 या 5 साल का होगा वह अपनी पैंट उतार कर दोनों हाथों से अपने नन्हे से लिंग को पकड़कर बड़े मजे से गुलाब के फूल के पौधे पर पेशाब कर रहा था| न जाने उसे ऐसा करते हुए क्या मजा आ रहा था- लेकिन वह ऐसा कर रहा था इसलिए मैंने ऊपर से ही उसे डांटते हुए चिल्लाई, "ओए लड़के! क्या कर रहा है तू?"
मेरी आवाज सुनकर उस लड़के ने गर्दन घुमा कर नजर उठाकर मेरी तरफ देखा और फिर डर के मारे जल्दी जल्दी से अपनी पैंट चढ़ाकर अंदर की तरफ भाग आया| शायद उसकी मां भी उसके साथ आई हुई थी|
इतने में पीछे से मुझे आरती की हंसने की आवाज आई, "ही ही ही ही ही ही- पीयाली दीदी तुमने तो बच्चे को डरा ही दिया"
"अरी पगली... तू कब से मेरे पीछे ऐसे हाथ लगाए खड़ी है?"
"उसी वक्त से जब से तुमने अपनी मम्मी से बात करना खत्म किया था... वैसे एक बात बताऊं पीयाली दीदी; तुम्हारी मम्मी ने बहुत समझदारी दिखाते हुए तुम्हें बाबा ठाकुर के पास भेजा है- मैं तो उठते बैठते यह प्रार्थना करती रहती हूं कि बाबा ठाकुर तुम्हारी चुत में अपना लण्ड डालकर लगातार चोदते रहें और जितना हो सके उससे भी ज्यादा अपना सड़का तुम्हारी चुत बहाते रहे... ताकि जल्दी से जल्दी तुम्हारे पेट में बच्चा आ जाए..."
आरती अभी भी यह सोच रही है कि मैं गर्भवती होने के लिए बाबा ठाकुर के पास आई हूं| इसलिए वह मेरी मंगल कामना ही कर रही है| लेकिन उसे असलियत का पता नहीं; और उसे पता भी कैसे हो? उसने आज तक यही देखा है कि निसंतान महिलाएं परिवार में अपना स्थान बनाए रखने के लिए बाबा ठाकुर के पास गर्भवती होने के लिए चली आती है- ताकि उन्हें मातृत्व का सुख मिल सके और ससुराल और समाज से स्वीकृति|
यह गांव है| हमारा समाज इतना विकसित हो चुका है पर फिर भी गांव के इलाके में हर सुहागन का मां होना बहुत जरूरी होता है|
और सब कुछ जानते बुझते हुए भी कोई किसी से कुछ नहीं कहता| यही इस इलाके की गुप्त परंपरा है- क्योंकि यहां के लोग बाग आईवीएफ ट्रीटमेंट करवाने के या तो सक्षम नहीं है या फिर उन्हें इन सब का वैज्ञानिक उपचारों में विश्वास नहीं है|
और इसी बीच बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ भी अपनी वासना की कामना की पूर्ति कर लिया करते हैं इसलिए जो भी औरतें यहां आती हैं उन्हें अपने बालों को खुला ही रखना पड़ता है... लेकिन हैरत की बात यह है कि अभी तक मैंने आरती को अपने बालों में चोटी तो क्या जुड़ा भी बांधते हुए नहीं देखा... आखिर चक्कर क्या है?
"बदमाश लड़की... लगता है तेरी बेरी के बेर वक्त से पहले ही पक गए हैं और यह क्या भाषा है? चुत - लण्ड – सड़का??"
आरती जानबूझकर भोली और अनजान बनती हुई बोली, "चुत को चुत, लण्ड को लण्ड और सड़का को सड़का नहीं तो और क्या बोलूं?"
मैंने भी उससे प्यार से डांटने के अंदाज से कहा, "आ हा हा हा... तू तो पक्की बुढ़िया बन गई है| लगता है तुझे सब कुछ मालूम चल चुका है"
"हां पीयाली दीदी, मैंने तो यहां सब कुछ देखा है, सुना है और जाना भी है.... ही ही ही ही ही"
"बदमाश लड़की, जीतो कर रहा है तेरे बालों में टाइट कर के दो दो चुटिया कस दूं"
"वह तुम्हें जो मर्जी करना है करो ना जी... किसने मना किया है..." फिर मेरे वह पास आई और एक लंबी और गहरी सांस लेकर उसने मुझे सुंघा, "पीयाली दीदी, तुम्हारे बदन और बालों से मदहोश कर देने वाली खुशबू आती है और तुम्हारा फिगर भी कितना अच्छा है... तुम्हारे मम्मे भी कितने बड़े बड़े और सुंदर सुंदर से हैं काश मेरे भी ऐसे होते..."
इतने में बाबा ठाकुर के आने की आहट हुई| जिसे समझ कर आरती थोड़ा संभल गई नहीं तो वह जरूर कुछ शरारत भरी बातें करने जा रही थी|
बाबा ठाकुर हफ्ते में एक बार सत्संग करते थे|
आज तो वैसे भी ही उन्हें शहर जाना था विदेशी लोगों के लिए ग्रह रत्न परखने के लिए| और मुझे मालूम था, कि किसी ज्वेलरी में जाकर ग्रह रत्नों को परखना और विदेशी लोगों के लिए अंगूठियां बनवाना सिर्फ उनकी मदद करना ही नहीं बल्कि इसके बदले उन्हें उस ज्वेलरी से कमीशन भी मिलने वाला था|
और यह ज्वेलरी की दुकान शहर के सबसे बड़े और मशहूर दुकानों में से एक थी जिसका नाम था कोर डायमंड एंड गोल्ड ज्वेलरी (Core Diamond and Jewellery)
बाबा ठाकुर को अंदर आते देखकर आरती शरारत भरी निगाहों से मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुराकर मेरे पुराने कपड़े लेकर नीचे चली गई|
जानती थी कि आज बाबा ठाकुर शहर के लिए निकलने वाले हैं| शायद जाने से पहले वह अपने मन की इच्छा को शांत करने के लिए मेरे पास आए थे| इसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं थी क्योंकि ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने तो मुझे किसी काम के लिए भेजा था|
अभी वह मेरे बगल में बैठे ही थे कि उनका मोबाइल फोन जो की टेबल पर रखे रखे चार्ज हो रहा था वह बज उठा|
जब उन्होंने फोन उठाकर उसका नंबर देखा तो मैंने गौर किया क्योंकि भौंयें सिकुड़ गई| जाहिर सी बात है किसी ऐसे इंसान का फोन था जिन्हें बाबा ठाकुर शायद उतना पसंद नहीं करते|
फोन से मुझे किसी आदमी की अस्पष्ट आवाजें आ रही थी और वह कुछ ऐसा कह रहा था जिसकी वजह से मैंने देखा कि बाबा ठाकुर के चेहरे का रंग बदल रहा था और मुझे ऐसा लगा कि शायद उन्हें काफी गुस्सा आ रहा हो|
इसलिए मैं चुपचाप बिस्तर के कोने में बैठी रही; बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ बड़े ही गुस्से और कुंठाग्रस्त स्वर में किसी से कह रहे थे, "साले हरामजादे! मैंने तुमसे क्या कहा था? कि अगले हफ्ते तक मैं पूरी तरह से छुट्टी पर हूं... यहां तक कि मैंने अपने टीवी के प्रोग्राम भी पहले से ही रिकॉर्ड करवा दिए| अब तू यह कहना चाहता है कि मुझे पूरे हफ्ते उनके यहां जाकर के अपनी उपस्थिति देनी होगी?"
उसके बाद ना जाने उस आदमी ने क्या कहा तो मैंने गौर किया कि शायद बाबा ठाकुर का गुस्सा थोड़ा सा शांत हुआ है, "वैसे तेरा कहना तो ठीक है... आजकल मार्केट में जितनी कंपटीशन है... और खासकर मैं नहीं चाहता कि मेरा प्रतिद्वंदी ज्योतिष केवलराम भाटिया कोई कॉन्ट्रैक्ट मिलेगा... लेकिन तूने जब इतना किया तो तू यह नहीं कह सकता कि मैं अगले हफ्ते तक फ्री नहीं हूं.... अच्छा अच्छा हां हां ठीक है केवलराम भाटिया... समझ गया... और वैसे भी आज मैं वही जाने वाला था... फिर मैं अपनी फीस और कमीशन की बात उनसे कर लूंगा... लेकिन हफ्ते के सातों दिन मुझे वहां बैठना पड़ेगा?... क्या कहा? त्यौहार आने वाला है इसलिए अगले कुछ हफ्तों तक मुझे ज्वेलरी के शोरूम में एक अलग केबिन में 7 दिन बैठना होगा और वहां आने वाले क्लाइंट्स को अपना ज्योतिष का परामर्श देना होगा और उसके बाद हफ्ते के किसी भी 2 दिन मैं छुट्टी ले सकता हूं?..."
इतना सुनते ही मुझे सब कुछ समझ में आ गया| शहर के मशहूर और बड़ी-बड़ी ज्वेलरी की दुकाने अक्सर अपने यहां मशहूर और काबिल ज्योतिषियों को अपने आप बुलाते हैं| ताकि ग्राहक लोग उसे ज्योतिष का परामर्श ले सकें और साथ ही उन्हीं की दुकान से महंगे महंगे ग्रह रत्न भी खरीद सके... ठीक वैसे ही जैसे कुछ दवाइयों की दुकानों में डॉक्टर लोग बैठते हैं| और मैं यह भी समझ गई कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ यह नहीं चाहते थे कि उनका प्रतिद्वंदी ज्योतिष केवलराम भाटिया को यह काम मिले|
जब इतनी सारी बातें हो रही थी उस वक्त आरती बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के घर में चली आई|
मुझे तो पहले ही लगा था कि मामला कुछ गड़बड़ है इसलिए मैं उसके पीछे पीछे नहीं गई मैं जानबूझकर कमरे के बाहर चली गई थी लेकिन बाहर से मुझे उन दोनों की बातें सुनाई दे रही थी|
"क्या हुआ बाबा ठाकुर?" आरती ने उनसे पूछा
"अब मैं तुझे क्या बताऊं, आरती? मैंने अपने मैनेजर गुप्ता जी को ज्वेलरी की दुकान में इसलिए भेजा था ताकि वह मेरे लिए यह कॉन्ट्रैक्ट पक्का कर सके कि मैं कोर डायमंड एंड गोल्ड ज्वेलरी (Core Diamond and Jewellery) मैं बैठकर लोगों की समस्याओं का समाधान कर सकूं और उन्हें ग्रह रत्न वगैरा-वगैरा दिलवा सकूँ| लेकिन साथ में मैंने उससे यह भी कहा था कि मैं अगले हफ्ते से थोड़ा फुर्सत में रहूंगा- और तब से मैं यह काम शुरू करना चाहता था... लेकिन उस गधे इतना भी नहीं हो सका| मुझे कल से ही जाकर ज्वेलरी की दुकान में बैठना पड़ेगा"
"तो अच्छी बात है ना, आप वहां बैठेंगे; लोगों का उपकार करेंगे- इससे तो आपकी मान और प्रतिष्ठा और भी बढ़ेगी..." आरती ने मासूमियत से कहा|
इस पर बाबा ठाकुर एकदम झुनझुना उठे, "अरे तू समझती क्यों नहीं? हमारे घर एक पराई औरत आई हुई है... उसे मेरी जरूरत है वह कौन देखेगा?"
आरती ने फिर मासूमियत से कहा, "आप चिंता मत कीजिए बाबा ठाकुर, मैं हूं ना? मैं पीयाली दीदी का ख्याल रखूंगी"
इस बार बाबा ठाकुर ने कुछ जवाब नहीं दिया| अब वह उसे यह तो नहीं बता सकते थे कि वह मुझे शहर से एक लाख प्रतिदिन के हिसाब से मुझे यहां लेकर आए थे| आरती अब तक यही सोच रही थी कि मैं दूसरी औरतों की तरह उनके यहां गर्भवती होने के लिए आई हुई हूं... लेकिन उनका मुझे यहां लाने का मकसद कुछ और ही था... वह दिनकर लाख रुपया खर्च करके मुझे जब चाहे तब भोगना चाहते थे...
इसलिए जितना हो सके उन्होंने अपने सारे जरूरी काम पहले से ही निपटा रखे थे लेकिन सबसे पहले उनके मंसूबों पर पहला धक्का तब लगा जब उन्हें आज विदेशियों के ग्रह रत्न चुनने के लिए उनके साथ ज्वेलरी की दुकान पर जाना था और दूसरा जबरदस्त झटका तब लगा जब उनका बताओ एक ज्वेलरी की दुकान पर बैठने वाले ज्योतिष का कॉन्ट्रैक्ट अगले हफ्ते की जगह इसी हफ्ते पक्का हो गया|
इसका मतलब वह सिर्फ सुबह-सुबह और रात का समय ही मेरे साथ बिता सकते थे|
मैंने गौर किया कि बहुत ही खीज भरी निगाहों से आरती की तरफ देखने के बाद बाबा ठाकुर अपने कमरे से बाहर निकल गए|
मैं समझ गई कि मुझे यहां जाना उनके लिए अब घाटे का सौदा हो गया था और न जाने क्यों उनकी यह हालत देखकर मुझे बहुत जोर की हंसी आ रही थी| इसलिए मैं चुपचाप बाथरूम में चली गई और वहां जाकर मुंह दबा कर हंसने लगी|
लेकिन आरती बहुत खुश थी क्योंकि अब उसे मेरे साथ अकेले वक्त बिताने का मौका मिल गया था|
आज तक उसे कोई ऐसी सहेली नहीं मिली थी जिससे वह खुलकर बातें कर सके, लेकिन मुझसे मिलने के बाद उसने ऐसा लग रहा था कि वह मेरे साथ वह सब कुछ साझा कर सकती है जो पता नहीं कितने दिनों से उसके दिलो-दिमाग में दबी हुई थी|
बाथरूम में जाकर मैं दरवाजा बंद करके पेशाब करने लगी और मैंने गौर किया मेरे पेशाब के साथ हल्का चिपचिपा सा कुछ तरल पदार्थ सा भी बह निकल रहा है... मैं यह समझ गई यह तरल पदार्थ और कुछ नहीं बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ का स्खलित किया हुआ वीर्य का कुछ हिस्सा है... पैसा एक आद बार मेरे साथ पहले भी हो चुका है अपने पति जैसे संभोग करने के बाद और खासकर अपने बॉयफ्रेंड टॉम से संभव करने के बाद... और आज यह तीसरे किसी पुरुष का वीर्य का वह हिस्सा था जो शायद मेरे मूत्र के साथ बह निकल रहा था... पता नहीं क्यों मुझे थोड़ा घमंड सा महसूस होने लगा था| कुछ भी हो मैं एक नारी हूं और आज इस लायक हूं कि तीन तीन मर्द लोग मेरे रूप लावण्य और सौंदर्य के दीवाने हो चुके हैं... और मेरे मूत्र के साथ बहता हुआ यह चिपचिपा सा तरल पदार्थ उसी का प्रतीक है|
इतने में नीचे बैठक खाने से बाबा ठाकुर ने मुझे आवाज लगाई, "पीयाली, ओ पीयाली..."
क्रमशः