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Adultery बाबा ठाकुर (ब्लू मून क्लब- भाग 2)

कहानी का कथानक (प्लॉट)

  • अच्छा

    Votes: 2 12.5%
  • बहुत बढ़िया

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  • Could ठीक-ठाकbe better

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naag.champa

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बाबा ठाकुर
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(ब्लू मून क्लब- भाग 2)
~ चंपा नाग ~
अनुक्रमणिका

अध्याय १ // अध्याय १ // अध्याय ३ // अध्याय ४ // अध्याय ५
अध्याय ६ // अध्याय ७ // अध्याय ८ // अध्याय ९ // अध्याय १०
अध्याय ११ // अध्याय १२ // अध्याय १३ // अध्याय १४ // अध्याय १५
अध्याय १६ // अध्याय १७ // अध्याय १८ // अध्याय १९ // अध्याय २०
अध्याय २१ // अध्याय २२ // अध्याय २३ // अध्याय २४ // अध्याय २५
अध्याय २६ // अध्याय २७ // अध्याय २८ // अध्याय २९ // अध्याय ३०
अध्याय ३१ // अध्याय ३२ (समाप्ति)


प्रिय पाठक मित्रों,

बड़ी उत्साह के साथ और बड़ी खुशी के साथ मैं आपके लिए एक नई कहानी प्रस्तुत करने करने जा रही हूं| इस कहानी को मैंने बहुत ही धैर्य से और बड़े ही विस्तार से लिखा है| आशा है कि यह कहानी आप लोगों को मेरी लिखी हुई बाकी कहानियों की तरह ही पसंद आएगी क्योंकि इस कहानी को लिखने का मेरा सिर्फ एकमात्र ही उद्देश्य है वह है कि अपने पाठक बंधुओं का मनोरंजन करना|

मुझे आप लोगों के सुझाव, टिप्पणियां, कॉमेंट्स और लाइक्स का बेसब्री से इंतजार रहेगा|
PS और अगर अभी तक आप लोगों ने इस कहानी का पहला भाग नहीं पड़ा हो तो जरूर पढ़िएगा| पहले भाग का लिंक नीचे दिया हुआ है
ब्लू मून क्लब (BMC)

~ चंपा नाग ~



यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है और इसका जीवित और मृत किसी भी शख्स से कोई वास्ता नहीं। इस कहानी में सभी स्थान और पात्र पूरी तरह से काल्पनिक है, अगर किसी की कहानी इससे मिलती है, तो वो बस एक संयोग मात्र है| इस कहानी को लिखने का उद्देश्य सिर्फ पाठकों का मनोरंजन मात्र है|
 
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Tiger 786

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अध्याय १३


मैंने एक राहत की सांस लेते हुए जैसे ही बाबा ठाकुर के बिस्तर पर बैठी वैसे ही मेरी सांस बीच में ही अटक गई|

मैं जब से यहां आई हूं तब से एक बार भी मैंने ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा को एक बार भी फोन नहीं किया था और मेरा फोन मेरे बैग के अंदर ही था|

और जैसे ही मैंने फोन को फोन किया टिंग टिंग टिंग टिंग करते हुए फोन के अंदर कई सारे मैसेजेस घुसे| यह सब के सब मिसकॉल वाले मैसेज थे| कितनी देर में एक बार तुमने मुझे फोन किया था तो 4 बार मैरी डिसूजा ने|

मैंने जल्दी-जल्दी मैरी डिसूजा का नंबर लगाया|

"क्या बात हो गई री लड़की, आखिर मामला क्या है? पहुंचने के बाद तुम्हें एक बार भी फोन नहीं किया मुझे?"

"माफ करना मैडम... मेरा मतलब है मम्मी, यहां आकर के वक्त का पता ही नहीं चला इसलिए मैं आपको फोन नहीं कर पाई"

"... और मैं सारा दिन तेरी चिंता के मारे घुल- घुल कर मर रही थी... तुझे नहीं मालूम मैंने तुझे एक ग्राहक के घर भेजा है| हालांकि यह ग्राहक मेरी जान पहचान का जरूर है लेकिन ग्राहक के घर तो जैसे किसी जवान लड़की को भेजना भी एक बहुत बड़ा जोखिम भरा काम है- भले ही तू वहां एक पार्ट टाइम लवर गर्ल बन कर गई है... तू जानती है ना, कि यह दुनिया कितनी जालिम है?... कम से कम एक फोन तो कर लेती मुझे?" मैरी डिसूजा की आवाज के लहजे से ही मुझे लग गया कि वह वास्तव में मेरे लिए बहुत ही चिंतित थी|

"माफ करना मम्मी, अब मैं आपको रह रह कर समय पर जरूर फोन करूंगी"

"अच्छा यह बता आखिर इतनी देर तू कर क्या रही थी?"

मैंने शरमाते हुए कहा, " अब तक सिर्फ एक बार मैं बाबा ठाकुर के बिस्तर पर अपनी टांगे फैला चुकी हूँ..." उसके बाद मैंने उन्हें बाकी की दिनचर्या के बारे में बताया कि कैसे मैं उनके सत्संग में शामिल हुई और फिर दान दक्षिणा की रसीदें काटती है और फिर विदेशियों के सामने बैठकर एक दुभाषिये की भूमिका भी निभाई... लेकिन मैंने यह नहीं बताया कि उनके यहां रहने वाली लड़की- आरती भी मेरे अंदर दिलचस्पी लेने लगी है|

"ठीक है... ठीक है... सत्संग में तूने जो भी किया अच्छा किया और हां लाख टके की लड़की है इसलिए तूने अगर विदेशियों के सामने बैठकर एक दुभाषिये की भूमिका भी निभाई है- तो मैं इसे अपनी सफलता मानती हूं कि मेरी हॉट गर्ल्स की फायर ब्रिगेड में तू जैसी पढ़ी लिखी और कार्य कुशल लड़कियां भी शामिल है... इसीलिए यहां मैंने सब से कह दिया है कि तू मेरी ही बेटी है और हां पर अच्छी बात याद आई अब मेरी बात ध्यान से सुन, तू अपनी दवाएं बिल्कुल नियमित रूप से लेती रहना... क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तू इतनी जल्दी प्रेग्नेंट हो जाए... मैंने यहां एक नर्सिंग होम की नर्स दीदी से भी बात कर रखी है... मैं तेरे अंदर एक copper-t डलवा दूंगी... लेकिन यह सब तेरे यहां वापस आने के बाद ही होगा... लेकिन पीयाली, मेरी बच्ची धंधे के नियम और शर्तों के मुताबिक तुझे अपने क्लाइंट से बिना कंडोम की चुदना होगा... मैं नहीं चाहती कि मुझे तेरा अबॉर्शन (गर्भपात) करवाना पड़े इसलिए इस बीच अपनी दवाइयां बिल्कुल नियमित रूप से लेती रहना... "

मेरी डिसूजा की बातों में दम था इसलिए मैंने कहा, "जी मम्मी, अच्छा"

कि इतने में नीचे से आरती ने आवाज लगाई रात का खाना लग चुका था|

***

खाना शाकाहारी होने के बावजूद काफी लाजवाब था| आरती के हाथों में मानो जादू था|

खाना खाने के बाद जूठे बर्तनों को वापस किचन में ले जाने के लिए मैंने आरती की थोड़ी मदद की लेकिन आरती ने कहा कि मुझे बाबा ठाकुर के कमरे में जाना होगा|

बाबा ठाकुर अपने बिस्तर पर केवल लुंगी पहने बैठे हुए थे| कमरे में सिर्फ एक नाइट लैंप जल रहा था| मुझे कमरे में आते देखकर उन्होंने अपनी लूंगी को ऊपर सरकाई और अपनी नंगी जाँघ को थपथपा कर मुझे वहां आकर बैठने का इशारा किया|

मैं सर झुकाए चुपचाप उनकी जाँघ पर बैठ गई|

फिर मैंने अपनी नजरें नीची करके उसे पूछा, "बाबा ठाकुर, आशा करती हूं कि अब तक उससे कोई गलती नहीं हुई है"

बाबा ठाकुर ने मुस्कुराते हुए मेरी साड़ी का आंचल मेरे बदन से हटा दिया और मेरी नंगे स्तनों पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले, "नहीं, पीयाली- तुझ से कोई गलती नहीं हुई बल्कि तू मेरी हर उम्मीद पर खरी उतरी है... लेकिन मेरी प्यास नहीं बुझी है, पीयाली..."

"बाबा ठाकुर, मैं तो एक अबला नारी हूं... और यहां मैं आपको खुश करने के लिए आई हूं... अगर आप आज्ञा दे अपनी साड़ी उतार कर नंगी हो जाती हूं..."

"हां पीयाली, तू बिल्कुल नंगी हो जा... ईश्वर ने तुझे बड़ी फुर्सत से तराशा है... और मुझे ऐसा लगता है तू जो अपना बदन... साड़ी से टक्कर रखी हुई है, इससे तेरी सुंदरता का अपमान हो रहा है... तेरा शरीर दूसरी औरतों और लड़कियों से काफी सुंदर है और आकर्षक भी... तेरे कोमल अंगों में भी जरा भी बाल नहीं है- बिल्कुल छोटी लड़कियों की तरह- तेरा पूरा बदन एकदम मखमली और चिकना चिकना है... तेरे बाल लंबे और घने है और रेशमी भी... तेरे स्तन कितने सुडौल और बड़े-बड़े और तने तने से हैं... तेरी कमर पतली और मांसल कूल्हे... जा पीयाली उठ अपनी साड़ी उतार कर मेरे सामने बिल्कुल नंगी हो जा..."

मैं धीमे से उनकी गोद से उठी और फिर उनके सामने खड़ी होकर कमर में बंधी साड़ी की गांठ खोलकर साड़ी की लपेटन को ढीला किया और अपने हाथों से उसे धीरे-धीरे उतारने लगी| बाबा ठाकुर मेरी इस हरकत के पल पल का मजा ले रहे| आखिरकार जमे साड़ी उतार कर बिल्कुल नंगी उनके सामने खड़ी हो गई तो बिस्तर से उठ कर बिल्कुल मेरे पीछे आकर खड़े हो गए और उन्होंने मेरे बालों को मेरी गर्दन के पास समेट कर अपने हाथ की मुट्ठी में एक पोनीटेल की तरह पकड़ा... मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे बालों को इस तरह से पकड़ना उनके लिए मेरे ऊपर अपने अधिकार प्रकट करने का एक चेतन मन का या फिर अवचेतन मन का आवेग था...

वह मुझे मेरे बालों उसे पकड़कर वैसे ही बिस्तर तक ले गए और उन्होंने फिर मुझे बिस्तर पर लेटा दिया| मैं जानती थी मुझे क्या करना है इसलिए मैंने अपने दोनों हाथ दोनों तरफ फैला दी है और अपनी दोनों टांगों को जितना फैला सकती थी उतना मैंने फैला दिया ताकि मैं उन्हें संभोग का निमंत्रण दे सकूं|

बाबा ठाकुर अभी तक बिस्तर पर चढ़े नहीं थे और ना ही उन्होंने अपनी लूंगी उतारी थी| अब उन्होंने अपनी लूंगी उतार दी और मैंने देखा उनका लिंग बिल्कुल सख्त और खड़ा हो चुका था वह बिल्कुल मेरे चेहरे के पास आ गए और फिर दोबारा उन्होंने मेरे बालों को पकड़कर मेरा सर अपने यौनांग के पास ले आए...

मैंने इस बार कुछ अलग किया मैंने सबसे पहले उनके अंडकोष को चाटा और फिर इशारा समझ कर उनका लिंग अपने मुंह में लेकर चूसने लगी... मेरे शरीर, ग्रुप लावण्या और यौवन पर उनका फिलहाल पूरा अधिकार था और वह अपना ही अधिकार बखूबी वसूल रहे थे मैं जानती थी... मैं जानती थी कि मेरा उनके लिंग को चूसना उन्हें बहुत ही अच्छा लग रहा था वह सिर्फ संभोग के लिए अपने लिंग पर मेरे मुंह की लार से तैलीय नहीं बनाना चाहते थे बल्कि उससे पहले जितना हो सके लुफ्त उठाना चाहते थे....

यह सब मुझे भी काफी रोमांचकारी सा लग रहा था... एक नए आदमी के साथ इतनी घनिष्ठता... उसके शरीर का गंध... उसकी छुवन मुझे बहुत रोमांचकारी लग रहा था... ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा...

बाबा ठाकुर जल्दी ही मेरे ऊपर लेट गए... उनके वजन से दबकर मारो मेरे अंदर कामना की आग और भड़क उठी... उन्होंने ज्यादा देर नहीं की उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि में घुसा दिया मैंने हल्के दर्द की एक सिसकी ली और उधर बाबा ठाकुर ने भी ठंडी सी आह भरी.... और फिर मुझे जी भर के चूमने और चाटने लगे...

आ हा हा हा हा... यह सब कितना अच्छा लग रहा है....

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ बदन के नीचे मेरा कोमल शरीर दबा हुआ था... और उनका लिंग मेरी योनि के अंदर घुसा हुआ था... उन्होंने और देर नहीं की और वह मैथुन लीला मैं मगन हो गए और मेरा शरीर उनके मैथुन के धक्कों से हिलने लगा... इस बार मानो बाबा ठाकुर कुछ ज्यादा ही जोश में थे इसलिए उनकी मैथुन की गति भी काफी तेज थी...

मैंने अपने दोनों हाथों से बाबा ठाकुर को जकड़ कर रखा था क्योंकि मुझे बहुत अच्छा लग रहा था और अनजाने में ही मैं दबी दबी आवाज में कराह रही थी

आ-आ-आ- उम्मम्मम.... ऊ-ऊ-ऊ- उह-उह-उह... आ-आ-आ- उम्मम्मम.... ऊ-ऊ-ऊ- उह-उह-उह

मेरे कराहने की आवाज से मानो बाबा ठाकुर का जोश को और बढ़ावा मिल रहा था और उनकी मैथुन लीला को इंधन... इसलिए वह मुझ पर लगे रहे... लगे रहे... लगे रहे... मेरे अंदर कामवासना का लगभग दो बार विस्फोट हुआ... उसके बाद मैंने महसूस किया शायद बाबा ठाकुर की वासना का ज्वालामुखी भी अब फूट पड़ा है और मुझे एहसास हुआ कि मेरी योनि उनके गर्म वीर्य के सैलाब से से भर गई है....

बाबा ठाकुर कुछ देर तक मेरे ऊपर चुपचाप लेट कर सुस्ताने लगे लेकिन उन्होंने अपने शीतल पढ़ते हुए लिंग को मेरी योनि के अंदर से बाहर नहीं निकाला फिर कुछ देर बाद वह मुझे फिर से चूमने और चाटने लग गए... मैं जानती थी वह मुझसे दोबारा संभोग करने वाले हैं और मैंने महसूस किया कि उनका शीतल पड़ता हुआ लिंग दोबारा मेरी योनि के अंदर ही खड़ा और सख्त होने लग गया है...

मैं यहां आई तो थी एक पार्ट टाइम लवर गर्ल बनके अपने ग्राहक को यौन संतुष्टि देने के लिए लेकिन यहां तो मजा मुझे ही आ रहा था इसलिए मैं भी हर पल का लुफ्त उठाने लगी जल्दी ही बाबा ठाकुर ने दोबारा अपनी मैथुन लीला शुरू कर दी...

मुझे अच्छी तरह मालूम था… रात अभी बाकी है और सुबह होने में काफी देर है...

क्रमशः
Superb update
 

Tiger 786

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अध्याय १४



सुबह जब मेरी नींद खुली तब मुझे एहसास हुआ कि मैं बिस्तर पर अकेली ही लेटी हुई थी और मेरा बदन एक चादर से अच्छी तरह से ढका हुआ था| मैंने मुड़कर बगल में देखा बाबा ठाकुर बिस्तर पर नहीं थे| फिर मैंने धीरे धीरे उठने की कोशिश की है मेरा पूरा बदन एक मीठे दर्द से भरा हुआ था खासकर मेरी योनि और कमर में दर्द ज्यादा था... इससे पहले कि दोबारा आरती फिर से फुल स्पीड में एक स्टीम इंजन की तरह धड़धड़ाती हुई अंदर आ जाए मैं जमीन पर अपनी साड़ी ढूंढने लगी| फिर मैंने देखा कि मेरी साड़ी बिस्तर के सिरहाने में टंकी हुई थी| शायद बाबा ठाकुर ने उसे उठाकर वहां रख दिया होगा| मैंने जल्दी-जल्दी साड़ी पहनी और उसी के साथ ही दोबारा झटके के साथ कमरे के किवाड़ खुले और और जैसे ट्रेन का इंजन धुआं छोड़ता है वैसे ही उत्सुकता अदृश्य बुलबुले फैलाती हुई आरती कमरे में दाखिल हुई लेकिन इस वक्त उसके हाथों में चाय की प्याली थी|

मैंने उसे देखकर मुस्कुरा कर कहा, "गुड मॉर्निंग"

"गुड मॉ-र्निं-ग पीयाली दीदी" उसने बिल्कुल वैसे ही कहा जैसे स्कूल में बच्चे टीचर को गुड मॉर्निंग बोलते हैं| इसका मतलब कभी ना कभी आरती स्कूल भी गई है पर अब शायद नहीं जाती|

"बाबा ठाकुर कहां है... नहा धोकर पूजा पाठ में लग गए हैं... बस कुछ ही देर में आते होंगे... आज दोपहर 12:30 उन्हें शहर के लिए निकलना है... कल जो गोरे लोग आए हुए थे उनके लिए... ग्रह रत्नों को जांच परख कर उनके लिए अंगूठी बनवानी है"

"तो क्या उन्होंने शहर जाने के लिए कोई टैक्सी या गाड़ी ठीक की है" क्योंकि जब मैं इनके घर आई थी तो इनके घर के बाहर मुझे कोई गाड़ी खड़ी दिखाई नहीं दी थी|

आरती ने अपने मुंह के अंदर अपनी जुबान चटका कर "चक्ख、" की आवाज निकाली- उसके कहने का मतलब था 'नहीं'

"तो क्या फिर विदेशी उन्हें लेने आ रहे हैं"

आरती ने फिर से अपने मुंह के अंदर अपनी जुबान चटका कर "चक्ख、" की आवाज निकाली- मतलब नहीं

"तो फिर वह जाएंगे कैसे"

"ट्रेन से... यहां से शहर तक के लिए टैक्सी वाले काफी पैसे लेते हैं... और बस का कोई भरोसा नहीं है"

अब मैं क्या बोलती? मैं चुप ही रही|

"पीयाली दीदी, फिर से तुम्हारे बाल अस्त व्यस्त हो गए हैं, तुम्हारी लिपस्टिक बिगड़ गई है... और सिंदूर भी घिस गया है..."

"हां जानती हूं... मैं जल्दी से नहा धो कर आती हूं, यह कहकर मैं अपने बैग से शैंपू और साबुन निकालने लगी"

इतने में आरती बोली, "पीयाली दीदी, पहले यह चाय पी लो इसमें अदरक, लौंग, इलायची और तेजपत्ता मिला हुआ है... इससे तुम्हारी रात की थकान दूर हो जाएगी उसके बाद तुम नहा लेना मैं तुम्हारे बाल बना दूंगी..."

"ठीक है, लेकिन तुझे और कोई काम तो नहीं है मैं यह नहीं चाहती कि मेरी देखभाल करते हुए तू बाबा ठाकुर को कोई शिकायत का मौका दें... उनका कोई काम रुकना नहीं चाहिए"

"उसकी चिंता तुम मत करो पीयाली दीदी, बाबा ठाकुर को पूजा पाठ करके उठने में अभी थोड़ी देर लगेगी कितने में सब काम हो जाएगा" यह कहकर आरती थोड़ा शरारत से मुस्कुराए और फिर थोड़ा सा हिचकते हुए उसने कहा, " पीयाली दीदी अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें नहला दूं"

अब मुझे पक्का यकीन हो गया था कि आरती की मेरे ऊपर दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी|

मैंने कहा "धत पगली"

मुझे नहा धोकर आने दे उसके बाद तू मेरे बालों में कंघी कर देना... यह कहकर मैंने अपने बैग से एक नई साड़ी निकाली औरअपने टॉयलेट पाउच से तेल साबुन शैंपू वगैरा लेकर बाथरूम में घुस गई...

बाथरूम में घुसकर मैंने अपनी साड़ी उतार दी और बिल्कुल नंगी हो गई फिर मुझे तो ख्याल आया कि एक बार आरती से पूछ लूँ, "आरती एक बात बता क्या इस घर में कोई वाशिंग मशीन है?"

आरती ने बड़े हर्ष के साथ जवाब दिया, "हां है ना... एकदम ऑटोमेटिक वाला... और उस में तरह-तरह की सेटिंग भी है जो सब कुछ मैंने सीख लिया है... तुम्हारी साड़ियां बहुत महीन है.... उसकी सेटिंग भी अलग है... मैं जानती हूं क्या करना है... बस ढक्कन खोलो, कपड़े डालो, साबुन वाले खोखे में साबुन डालो... और फिर मशीन ऑन करके सेटिंग करके... ढक्कन बंद करो और फिर बटन दबा दो... मशीन जरूरत के मुताबिक पानी भरेगा... फिर उसके अंदर का ड्रम घौं - घौं करके चलेगा... फिर वह अपने आप पानी छोड़ेगा फिर से वह पानी भरेगा और उसके बाद उसके अंदर का ड्रम घौं - घौं करके चलेगा... और फिर अंत में उसका ड्रम बहुत तेज घूमने लगेगा कपड़ों से पानी निचोड़ने के लिए के लिए... और उसके बाद टिंग टोंग टिंग टांग टिंग टांग... आवाज करेगा सारे के सारे कपड़े धुल गए... और लगभग सूख भी गए| फिर मैं उन्हें मशीन में से निकाल कर के छत पर सुखाने के लिए दे आऊंगी..."

आरती ने मुझे सब कुछ समझाया जैसे कि मैं ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन के बारे में कुछ नहीं जानती| ऐसी गलती उसकी नहीं है क्योंकि गांव की जो औरतें अब तक बाबा ठाकुर के यहां आती होंगी उन्हें शायद आटोमेटिक वाशिंग मशीन के बारे में कुछ पता ही नहीं होगा...

मैं आरती की बनाई हुई चाय पीने लगी... सचमुच चाय बहुत ही बढ़िया थी|

मुझे याद आया कि मैंने ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा से वादा किया था हर रोज उन्हें फोन करूंगी... इसलिए मैंने अपना फोन उठाया और चाय पीते पीते मेरे डिसूजा का नंबर लगाया, "हां, गुड मॉर्निंग मम्मी..." और फिर मैंने आरती की तरफ तिरछी नजर से देखा|

वह समझ गई कि शायद मुझे एकांत की जरूरत है इसलिए वह कमरे से बाहर जाते हुए बोल कर गई, "मैं नीचे जा कर देखती हूं अगर बाबा ठाकुर को किसी चीज की जरूरत पड़ जाए.... पर आप मुझे बुला लेना"

उसके जाने के बाद मैं मैरी डिसूजा से यूं ही अनायास बातें करती रही... वह मेरा हालचाल पूछती रही है और फिर उन्होंने पिछली रात का ब्यौरा भी मेरे से लिया... यह सब बोल सुनकर हम दोनों ही हंसने लगे थे...

बातें खत्म होने के बाद मैंने फोन रखा तो मेरी नजर नीचे बगीचे में एक बच्चे के ऊपर गई| वह लड़का करीब 4 या 5 साल का होगा वह अपनी पैंट उतार कर दोनों हाथों से अपने नन्हे से लिंग को पकड़कर बड़े मजे से गुलाब के फूल के पौधे पर पेशाब कर रहा था| न जाने उसे ऐसा करते हुए क्या मजा आ रहा था- लेकिन वह ऐसा कर रहा था इसलिए मैंने ऊपर से ही उसे डांटते हुए चिल्लाई, "ओए लड़के! क्या कर रहा है तू?"

मेरी आवाज सुनकर उस लड़के ने गर्दन घुमा कर नजर उठाकर मेरी तरफ देखा और फिर डर के मारे जल्दी जल्दी से अपनी पैंट चढ़ाकर अंदर की तरफ भाग आया| शायद उसकी मां भी उसके साथ आई हुई थी|

इतने में पीछे से मुझे आरती की हंसने की आवाज आई, "ही ही ही ही ही ही- पीयाली दीदी तुमने तो बच्चे को डरा ही दिया"

"अरी पगली... तू कब से मेरे पीछे ऐसे हाथ लगाए खड़ी है?"

"उसी वक्त से जब से तुमने अपनी मम्मी से बात करना खत्म किया था... वैसे एक बात बताऊं पीयाली दीदी; तुम्हारी मम्मी ने बहुत समझदारी दिखाते हुए तुम्हें बाबा ठाकुर के पास भेजा है- मैं तो उठते बैठते यह प्रार्थना करती रहती हूं कि बाबा ठाकुर तुम्हारी चुत में अपना लण्ड डालकर लगातार चोदते रहें और जितना हो सके उससे भी ज्यादा अपना सड़का तुम्हारी चुत बहाते रहे... ताकि जल्दी से जल्दी तुम्हारे पेट में बच्चा आ जाए..."

आरती अभी भी यह सोच रही है कि मैं गर्भवती होने के लिए बाबा ठाकुर के पास आई हूं| इसलिए वह मेरी मंगल कामना ही कर रही है| लेकिन उसे असलियत का पता नहीं; और उसे पता भी कैसे हो? उसने आज तक यही देखा है कि निसंतान महिलाएं परिवार में अपना स्थान बनाए रखने के लिए बाबा ठाकुर के पास गर्भवती होने के लिए चली आती है- ताकि उन्हें मातृत्व का सुख मिल सके और ससुराल और समाज से स्वीकृति|

यह गांव है| हमारा समाज इतना विकसित हो चुका है पर फिर भी गांव के इलाके में हर सुहागन का मां होना बहुत जरूरी होता है|

और सब कुछ जानते बुझते हुए भी कोई किसी से कुछ नहीं कहता| यही इस इलाके की गुप्त परंपरा है- क्योंकि यहां के लोग बाग आईवीएफ ट्रीटमेंट करवाने के या तो सक्षम नहीं है या फिर उन्हें इन सब का वैज्ञानिक उपचारों में विश्वास नहीं है|

और इसी बीच बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ भी अपनी वासना की कामना की पूर्ति कर लिया करते हैं इसलिए जो भी औरतें यहां आती हैं उन्हें अपने बालों को खुला ही रखना पड़ता है... लेकिन हैरत की बात यह है कि अभी तक मैंने आरती को अपने बालों में चोटी तो क्या जुड़ा भी बांधते हुए नहीं देखा... आखिर चक्कर क्या है?

"बदमाश लड़की... लगता है तेरी बेरी के बेर वक्त से पहले ही पक गए हैं और यह क्या भाषा है? चुत - लण्ड – सड़का??"

आरती जानबूझकर भोली और अनजान बनती हुई बोली, "चुत को चुत, लण्ड को लण्ड और सड़का को सड़का नहीं तो और क्या बोलूं?"

मैंने भी उससे प्यार से डांटने के अंदाज से कहा, "आ हा हा हा... तू तो पक्की बुढ़िया बन गई है| लगता है तुझे सब कुछ मालूम चल चुका है"

"हां पीयाली दीदी, मैंने तो यहां सब कुछ देखा है, सुना है और जाना भी है.... ही ही ही ही ही"

"बदमाश लड़की, जीतो कर रहा है तेरे बालों में टाइट कर के दो दो चुटिया कस दूं"

"वह तुम्हें जो मर्जी करना है करो ना जी... किसने मना किया है..." फिर मेरे वह पास आई और एक लंबी और गहरी सांस लेकर उसने मुझे सुंघा, "पीयाली दीदी, तुम्हारे बदन और बालों से मदहोश कर देने वाली खुशबू आती है और तुम्हारा फिगर भी कितना अच्छा है... तुम्हारे मम्मे भी कितने बड़े बड़े और सुंदर सुंदर से हैं काश मेरे भी ऐसे होते..."

इतने में बाबा ठाकुर के आने की आहट हुई| जिसे समझ कर आरती थोड़ा संभल गई नहीं तो वह जरूर कुछ शरारत भरी बातें करने जा रही थी|

बाबा ठाकुर हफ्ते में एक बार सत्संग करते थे|

आज तो वैसे भी ही उन्हें शहर जाना था विदेशी लोगों के लिए ग्रह रत्न परखने के लिए| और मुझे मालूम था, कि किसी ज्वेलरी में जाकर ग्रह रत्नों को परखना और विदेशी लोगों के लिए अंगूठियां बनवाना सिर्फ उनकी मदद करना ही नहीं बल्कि इसके बदले उन्हें उस ज्वेलरी से कमीशन भी मिलने वाला था|

और यह ज्वेलरी की दुकान शहर के सबसे बड़े और मशहूर दुकानों में से एक थी जिसका नाम था कोर डायमंड एंड गोल्ड ज्वेलरी (Core Diamond and Jewellery)

बाबा ठाकुर को अंदर आते देखकर आरती शरारत भरी निगाहों से मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुराकर मेरे पुराने कपड़े लेकर नीचे चली गई|

जानती थी कि आज बाबा ठाकुर शहर के लिए निकलने वाले हैं| शायद जाने से पहले वह अपने मन की इच्छा को शांत करने के लिए मेरे पास आए थे| इसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं थी क्योंकि ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने तो मुझे किसी काम के लिए भेजा था|



अभी वह मेरे बगल में बैठे ही थे कि उनका मोबाइल फोन जो की टेबल पर रखे रखे चार्ज हो रहा था वह बज उठा|

जब उन्होंने फोन उठाकर उसका नंबर देखा तो मैंने गौर किया क्योंकि भौंयें सिकुड़ गई| जाहिर सी बात है किसी ऐसे इंसान का फोन था जिन्हें बाबा ठाकुर शायद उतना पसंद नहीं करते|

फोन से मुझे किसी आदमी की अस्पष्ट आवाजें आ रही थी और वह कुछ ऐसा कह रहा था जिसकी वजह से मैंने देखा कि बाबा ठाकुर के चेहरे का रंग बदल रहा था और मुझे ऐसा लगा कि शायद उन्हें काफी गुस्सा आ रहा हो|

इसलिए मैं चुपचाप बिस्तर के कोने में बैठी रही; बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ बड़े ही गुस्से और कुंठाग्रस्त स्वर में किसी से कह रहे थे, "साले हरामजादे! मैंने तुमसे क्या कहा था? कि अगले हफ्ते तक मैं पूरी तरह से छुट्टी पर हूं... यहां तक कि मैंने अपने टीवी के प्रोग्राम भी पहले से ही रिकॉर्ड करवा दिए| अब तू यह कहना चाहता है कि मुझे पूरे हफ्ते उनके यहां जाकर के अपनी उपस्थिति देनी होगी?"

उसके बाद ना जाने उस आदमी ने क्या कहा तो मैंने गौर किया कि शायद बाबा ठाकुर का गुस्सा थोड़ा सा शांत हुआ है, "वैसे तेरा कहना तो ठीक है... आजकल मार्केट में जितनी कंपटीशन है... और खासकर मैं नहीं चाहता कि मेरा प्रतिद्वंदी ज्योतिष केवलराम भाटिया कोई कॉन्ट्रैक्ट मिलेगा... लेकिन तूने जब इतना किया तो तू यह नहीं कह सकता कि मैं अगले हफ्ते तक फ्री नहीं हूं.... अच्छा अच्छा हां हां ठीक है केवलराम भाटिया... समझ गया... और वैसे भी आज मैं वही जाने वाला था... फिर मैं अपनी फीस और कमीशन की बात उनसे कर लूंगा... लेकिन हफ्ते के सातों दिन मुझे वहां बैठना पड़ेगा?... क्या कहा? त्यौहार आने वाला है इसलिए अगले कुछ हफ्तों तक मुझे ज्वेलरी के शोरूम में एक अलग केबिन में 7 दिन बैठना होगा और वहां आने वाले क्लाइंट्स को अपना ज्योतिष का परामर्श देना होगा और उसके बाद हफ्ते के किसी भी 2 दिन मैं छुट्टी ले सकता हूं?..."

इतना सुनते ही मुझे सब कुछ समझ में आ गया| शहर के मशहूर और बड़ी-बड़ी ज्वेलरी की दुकाने अक्सर अपने यहां मशहूर और काबिल ज्योतिषियों को अपने आप बुलाते हैं| ताकि ग्राहक लोग उसे ज्योतिष का परामर्श ले सकें और साथ ही उन्हीं की दुकान से महंगे महंगे ग्रह रत्न भी खरीद सके... ठीक वैसे ही जैसे कुछ दवाइयों की दुकानों में डॉक्टर लोग बैठते हैं| और मैं यह भी समझ गई कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ यह नहीं चाहते थे कि उनका प्रतिद्वंदी ज्योतिष केवलराम भाटिया को यह काम मिले|

जब इतनी सारी बातें हो रही थी उस वक्त आरती बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के घर में चली आई|

मुझे तो पहले ही लगा था कि मामला कुछ गड़बड़ है इसलिए मैं उसके पीछे पीछे नहीं गई मैं जानबूझकर कमरे के बाहर चली गई थी लेकिन बाहर से मुझे उन दोनों की बातें सुनाई दे रही थी|

"क्या हुआ बाबा ठाकुर?" आरती ने उनसे पूछा

"अब मैं तुझे क्या बताऊं, आरती? मैंने अपने मैनेजर गुप्ता जी को ज्वेलरी की दुकान में इसलिए भेजा था ताकि वह मेरे लिए यह कॉन्ट्रैक्ट पक्का कर सके कि मैं कोर डायमंड एंड गोल्ड ज्वेलरी (Core Diamond and Jewellery) मैं बैठकर लोगों की समस्याओं का समाधान कर सकूं और उन्हें ग्रह रत्न वगैरा-वगैरा दिलवा सकूँ| लेकिन साथ में मैंने उससे यह भी कहा था कि मैं अगले हफ्ते से थोड़ा फुर्सत में रहूंगा- और तब से मैं यह काम शुरू करना चाहता था... लेकिन उस गधे इतना भी नहीं हो सका| मुझे कल से ही जाकर ज्वेलरी की दुकान में बैठना पड़ेगा"

"तो अच्छी बात है ना, आप वहां बैठेंगे; लोगों का उपकार करेंगे- इससे तो आपकी मान और प्रतिष्ठा और भी बढ़ेगी..." आरती ने मासूमियत से कहा|

इस पर बाबा ठाकुर एकदम झुनझुना उठे, "अरे तू समझती क्यों नहीं? हमारे घर एक पराई औरत आई हुई है... उसे मेरी जरूरत है वह कौन देखेगा?"

आरती ने फिर मासूमियत से कहा, "आप चिंता मत कीजिए बाबा ठाकुर, मैं हूं ना? मैं पीयाली दीदी का ख्याल रखूंगी"

इस बार बाबा ठाकुर ने कुछ जवाब नहीं दिया| अब वह उसे यह तो नहीं बता सकते थे कि वह मुझे शहर से एक लाख प्रतिदिन के हिसाब से मुझे यहां लेकर आए थे| आरती अब तक यही सोच रही थी कि मैं दूसरी औरतों की तरह उनके यहां गर्भवती होने के लिए आई हुई हूं... लेकिन उनका मुझे यहां लाने का मकसद कुछ और ही था... वह दिनकर लाख रुपया खर्च करके मुझे जब चाहे तब भोगना चाहते थे...

इसलिए जितना हो सके उन्होंने अपने सारे जरूरी काम पहले से ही निपटा रखे थे लेकिन सबसे पहले उनके मंसूबों पर पहला धक्का तब लगा जब उन्हें आज विदेशियों के ग्रह रत्न चुनने के लिए उनके साथ ज्वेलरी की दुकान पर जाना था और दूसरा जबरदस्त झटका तब लगा जब उनका बताओ एक ज्वेलरी की दुकान पर बैठने वाले ज्योतिष का कॉन्ट्रैक्ट अगले हफ्ते की जगह इसी हफ्ते पक्का हो गया|

इसका मतलब वह सिर्फ सुबह-सुबह और रात का समय ही मेरे साथ बिता सकते थे|

मैंने गौर किया कि बहुत ही खीज भरी निगाहों से आरती की तरफ देखने के बाद बाबा ठाकुर अपने कमरे से बाहर निकल गए|

मैं समझ गई कि मुझे यहां जाना उनके लिए अब घाटे का सौदा हो गया था और न जाने क्यों उनकी यह हालत देखकर मुझे बहुत जोर की हंसी आ रही थी| इसलिए मैं चुपचाप बाथरूम में चली गई और वहां जाकर मुंह दबा कर हंसने लगी|

लेकिन आरती बहुत खुश थी क्योंकि अब उसे मेरे साथ अकेले वक्त बिताने का मौका मिल गया था|

आज तक उसे कोई ऐसी सहेली नहीं मिली थी जिससे वह खुलकर बातें कर सके, लेकिन मुझसे मिलने के बाद उसने ऐसा लग रहा था कि वह मेरे साथ वह सब कुछ साझा कर सकती है जो पता नहीं कितने दिनों से उसके दिलो-दिमाग में दबी हुई थी|

बाथरूम में जाकर मैं दरवाजा बंद करके पेशाब करने लगी और मैंने गौर किया मेरे पेशाब के साथ हल्का चिपचिपा सा कुछ तरल पदार्थ सा भी बह निकल रहा है... मैं यह समझ गई यह तरल पदार्थ और कुछ नहीं बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ का स्खलित किया हुआ वीर्य का कुछ हिस्सा है... पैसा एक आद बार मेरे साथ पहले भी हो चुका है अपने पति जैसे संभोग करने के बाद और खासकर अपने बॉयफ्रेंड टॉम से संभव करने के बाद... और आज यह तीसरे किसी पुरुष का वीर्य का वह हिस्सा था जो शायद मेरे मूत्र के साथ बह निकल रहा था... पता नहीं क्यों मुझे थोड़ा घमंड सा महसूस होने लगा था| कुछ भी हो मैं एक नारी हूं और आज इस लायक हूं कि तीन तीन मर्द लोग मेरे रूप लावण्य और सौंदर्य के दीवाने हो चुके हैं... और मेरे मूत्र के साथ बहता हुआ यह चिपचिपा सा तरल पदार्थ उसी का प्रतीक है|

इतने में नीचे बैठक खाने से बाबा ठाकुर ने मुझे आवाज लगाई, "पीयाली, ओ पीयाली..."


क्रमशः
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अध्याय १५



"मैरी डिसूजा, तेरे साथ कॉन्फ्रेंस में बात करना चाहती है" बाबा ठाकुर ने नीचे से ही आवाज लगाई|

"जी बहुत अच्छा" मेरे इतना कहने के साथ ही मेरा फोन बजे उठा। अब मैं समझ गई कि बाबा ठाकुर में नीचे जाकर सबसे पहले ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा को फोन लगाया था... और शायद मुझे इस बात का भी अंदाजा हो गया था कि उन्होंने ऐसा क्यों किया था...

"पीयाली, क्या तू लाइन पर है?" मैरी डिसूजा ने पूछा|

"जी, हां"

"बाबा ठाकुर, क्या आप भी लाइन पर हैं?"

"हां मैरी (मैरी डिसूजा) ... मैं भी लाइन पर हूं"

"Good (अच्छी बात है) मैं चाहती हूं कि पीयाली भी हमारी बातें सुन सके इसीलिए मैंने उसको भी कॉन्फ्रेंस में ले लिया है..." मैरी डिसूजा ने बोलना शुरू किया, "बाबा ठाकुर, आपने मुझसे कहा था कि मेरे घर एक जवान, सुंदर, और कमसिन सी लड़की भेज दो जिसे मैं 7 दिन अपने पास रखना चाहता हूं और जी भर के भोगना चाहता हूं... और वह भी बिना किसी प्रोटेक्शन यानी के कंडोम के... वह लड़की सिर्फ मेरे यहां साड़ी पहन के रहेगी... ब्लाउज, ब्रा, पैंटी, पेटिकोट वगैरह पहनना उसके लिए मना है... आपको एक ऐसी लड़की चाहिए थी जो अपने आप को गांव के परिवेश में ढाल सके और आपको मनचाही खुशी दे सके... इसीलिए मैंने चुन के आपके लिए एक ऐसी लड़की भेजी जो आपके हर उम्मीद पर खरी उतर सके... और यह लड़की और कोई नहीं मेरी ही बेटी है... और मैंने उससे अपने यहां से इतनी दूर आपके गांव में इसलिए भेजा क्योंकि मैं आपके ऊपर भरोसा करती हूं और मैं आपको बहुत दिनों से जानती हूं... इसके अलावा मैं जानती थी कि आपके लिए बिल्कुल ठीक रहेगी... क्योंकि भले ही वह शहर की लड़की हो लेकिन वह आपके यहां जाकर दिखने में बिल्कुल एक आम गांव की लड़की की तरह ही लगेगी... क्योंकि मेरी बेटी पीयाली के लंबे लंबे बाल है. वह कमसिन है, पतली कमर, मांसल कूल्हे और उसके स्तन बड़े-बड़े खड़े-खड़े और सुडौल है... ऐसे सुंदर लड़की को देखकर कोई भी मुंह मांगी कीमत देने को तैयार है... और मैं यह अच्छी तरह जानती हूं कि जब से पीयाली आपके यहां रह रही है, तब से लेकर अभी तक आपने न जाने कितनी बार उसे चोदा होगा इसका हिसाब तो आपके पास भी नहीं है... और पीयाली कोई ऐसी वैसी लड़की नहीं है... वह मेरी बेटी है और बिल्कुल ताजी टाइट और फ्रेश है... अब तक वह सिर्फ 2 लोगों से जुड़ी है... एक उसका पति और दूसरा उसका बॉयफ्रेंड... और तीसरे व्यक्ति आप है... जिन्होंने न जाने मेरी बेटी को तक कितनी बार चोदा होगा... बताइए क्या मैं गलत कह रही हूं?

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ बोले, "वह बात तो तुम सही कह रही हो... लेकिन तुम मेरी समस्या को भी तो समझो..."

"मैं आपकी समस्या समझ सकती हूं... लेकिन आप ही बताइए कि मैं क्या करूं? आपने कहा था कि आप यह भी चाहते हैं- कि जिस लड़की को मैं आपके यहां पर हूं वह आपसे अपनी गाँड़ तक मरवाने के लिए राजी हो जाए... है कि नहीं? इसलिए मैंने पीयाली को सब कुछ समझा बुझा कर ही भेजा था... और साथ ही मैंने बहुत ही सोच समझकर पीयाली जैसी लड़की को इसलिए आपके पास भेजा था कि वह किसी दूसरे प्रोफेशनल पार्ट टाइम लवर गर्ल की तरह आपके साथ पेश ना आए... बल्कि आपको यौन संतुष्टि के साथ-साथ एक मानसिक संतुष्टि भी दे सके... मेरे इतना सब कुछ करने के बावजूद... आप कह रहे हैं कि मैं अपनी रेट में थोड़ा डिस्काउंट करूं? यानी मैंने जो पीयाली को आपके पास भेजा है... मैं उसकी कम कीमत लूं?"

"तुम्हारा कहना बिल्कुल सही है..."बाबा ठाकुर कुछ कहने जा रहे थे लेकिन मेरी डिसूजा ने उन्हें मौका नहीं दिया, वह बोलती गई, "आपने जैसी लड़की मांगी थी मैंने बिल्कुल वैसी ही लड़की आपके घर भेजी... अब आप यह सोचिए कि वह भी किसी के घर की बहू है... उसका भी एक परिवार है अगर सही में उसके पेट में आपका बच्चा आ गया तो क्या आप उसकी जिम्मेदारी उठाने को तैयार है? उसके अलावा क्या आप आजकल के मार्केट में लड़कियों की गाँड़ मारने का रेट जानते हैं?... आपने तो अपनी समस्या के बारे में बता दिया... लेकिन अभी आप मेरे बारे में सोचिए... मैंने फुल टाइम के लिए आपके घर एक घरेलू लड़की भेजी है... और हां आप मेरे लिए खास है... मेरे लिए मायने रखते हैं, इसलिए मैंने खुद अपनी ही बेटी को आपके पास भेजा है... किसी रंडी या सड़क की वैश्या को नहीं... और आप अपनी समस्या के अनुसार मुझे समझा रहे हैं कि आप अपने नए काम की वजह से दिन में घर में नहीं रहेंगे सिर्फ रात को आप पीयाली के साथ रह पाएंगे... तो दिन में मैं पीयाली का क्या करूं? आपको डिस्काउंट देकर अपना नुकसान पूरा करने के लिएकिसी और के यहां भेज दूं? उसके बाद रात को आपके घर वापस भेज दूं ताकि आप अपनी सहूलियत और अपनी इच्छा से आप उसकी गाँड़ और चूत मार सके? माफ कीजिएगा बाबा ठाकुर... मैं किसी रंडी खाने की मौसी नहीं हूं... मेरी लड़कियां अपनी इच्छा से मेरे क्लब में आती हैं... और अपनी मर्जी से ही क्लाइंट के साथ अपना वक्त बताती हैं... मैंने आपसे पहले ही कहा था मैं जो लड़की आपके पास भेज रही हूं उसकी कीमत होगी दिन का एक लाख... आप मेरे साथ कॉन्ट्रैक्ट पक्का कर चुके हैं... और मैं वह औरत हूं जो अपने बिजनेस में बिल्कुल उसूलों के खिलाफ नहीं जाती... इसलिए मैंने बार-बार आपसे कहा था... मेरी लड़की की कीमत दिन का एक लाख है... यानी कि सात दिन के सात लाख... और आपने खुद ही कहा था... कि आप इस कॉन्ट्रैक्ट को नहीं तोड़ेंगे अगर आप ने तोड़ा तो आपको पूरे पैसे देने होंगे... हमारे बीच कोई दिखा पढ़िए जरूर ना हुई हो लेकिन आप जानते हैं कि हमारा मार्केट समझौते और जुबान पर चलता है... अगर आपको ऐसा लगता है कि आपकी मनोकामना नहीं पूरी हो रही है तो आप लड़की वापस भेज दीजिए... लेकिन आपने खुद पूछे वादा किया था कि कुछ भी हो आप मुझे पूरे पैसे देंगे... यानी के सात दिन के सात लाख... यह पैसे आपको देने ही होंगे"

मेरी डिसूजा के स्वर में ऐसी दृढ़ता थी जिसे सुनकर मैं भी थोड़ा सहम गई थी और जाहिर सी बात है जुबान देने के बाद स्वयं बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ भी अब मुकरने से कतरा रहे थे...

"ओहो... तुम तो बड़ी जल्दी नाराज हो जाती हो” बाबा ठाकुर ने परिस्थिति को संभालने की कोशिश की और ऐसा लग रहा था कि वह ब्लू मून क्लब की मालकिन जिसकी पहुंच बहुत ऊपर तक है उसे नाराज भी नहीं करना चाहते थे|

"मैंने आपसे कहा ना... मैंने आपके घर एक ताजा फूल भेजा है... आप दिन में काम पर चले जाएंगे मैं समझ सकती हूं लेकिन आप यकीन मानिए, मेरी बेटी पीयाली रात को आपकी पूरी की पूरी भरपाई कर देगी... आप उसे अपने घर में सिर्फ साड़ी पहनाकर कर रात को उसे अपने कमरे में बिल्कुल नंगी करके रखो... कोई दिक्कत नहीं है... आप जितनी बार चाहो उसे उतनी बार चोदो वह कभी मना नहीं करेगी... आखिर वह मेरे ब्लू मून क्लब की सिर्फ एक प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल ही नहीं- बल्कि मेरी अपनी बेटी है-कोई सड़क की भाड़े की लौंडिया नहीं| मैंने उसे ऐसी तालीम दी है कि मेरा कोई भी क्लाइंट उससे ना खुश नहीं होगा... और यहां तो बात आपकी है आप तो मेरे खास है... पीयाली आपकी हर वासना पूरी कर देगी वह बहुत ही आज्ञाकारी लड़की है”

मैं चुपचाप सर झुकाए कान में फोन लगाएं सब कुछ सुनती रही और समझती रही|

न जाने कैसे मैंने ऐसी वास्तविक और अप्रत्याशित स्थिति के लिए खुद को मानसिक रूप से अंदर ही अंदर तैयार कर लिया था- मैं जानती थी कि मैं अपनी मर्जी से ब्लूमून क्लब की एक प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल बनी थी- और इस वक्त मुझे ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने एक ग्राहक के घर उसके यौन मनोरंजन के लिए मुझे भेजा था- और इस वक्त हालांकि मैं गांव के इस माहौल और इसके नए पन में अपने आप को बहुत खुशी महसूस कर रही थी लेकिन शायद इस फोन पर भी बातचीत में मुझे इस हकीकत का भी एहसास दिला दिया कि फिलहाल मैं एक कॉन्ट्रैक्ट में बंधी हुई हूं|

***

बाबा ठाकुर बी कॉन्ट्रैक्ट में बने हुए थे और वह भी कोर डायमंड एंड गोल्ड ज्वेलरी (Core Diamond and Jewellery) के कॉन्ट्रैक्ट में इसलिए शहर की ट्रेन पकड़ने के लिए वह तैयार होकर स्टेशन के लिए निकल पड़े|

मैं सुबह से नहाई हुई नहीं थी| इसलिए मैंने बाथरूम में जाकर अपने कपड़े उतार कर शावर के नीचे खड़ी होकर शावर चला दिया और मेरा पूरा शरीर शहर के ठंडे पानी से भीग गया... यहां एक बात में जरूर कहूंगी गांव के पानी में और शहर के पानी में बहुत फर्क है... मुझे मालूम था कि बाबा ठाकुर को घर आते आते शाम ढल जाएगी.. और मुझे उम्मीद है कि मैंने बाबा ठाकुर को वह आनंद दिया है जो मुझसे चाहते थे...

नहा धोकर कमरे से निकलने के बाद मैंने अपना बैग खोला और सीधे एक रम की बोतल निकाल कर मैं दो घूंट घटक गई| उसके बाद मैंने बिना कंघी किए अपने बालों को एक जुड़े में बाँधा और मैंने ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा फोन लगाया|

"हां पीयाली बोल"

मैंने कहा," मम्मी मुझे आपकी सलाह की जरूरत है"

"हां बोल"

"मुझे उस तरह की संतुष्टि नहीं मिल रही है जैसा कि मैं चाहती हूं"

"ऐसा क्यों? बाबा ठाकुर तुझे ठीक तरह से चोद नहीं रहे हैं क्या? अगर ऐसी बात है तो मां चुदाये दुनिया और हम बजाए हरमोनिया... मैं तेरे को वापस बुला लूंगी.. भाड़ में गए सात लाख रुपए मैं तेरे को वापस बुला लेती हूं... तू एक बात ठीक ठीक बता बाबा ठाकुर तुझे ठीक से चोद नहीं रहे हैं क्या?"

"नहीं मम्मी. ऐसी बात नहीं है..."

"तो फिर बात क्या है? मैंने जो तुझे तालीम दी है उसमें कोई कमी रह गई है क्या? क्या तू उन्हें ठीक से संतुष्टि नहीं दे पा रही है क्या?"

"नहीं मम्मी. ऐसी बात नहीं है..."

"फिर क्या बात है?"

"जी, तो ऐसी कुछ नहीं है... पहली बार जो हुआ सो हुआ लेकिन बहुत जल्दी हुआ… दूसरी बार मैंने उनका लिंग चूस चूस कर एकदम तैयार कर दिया था उसके बाद उन्होंने मुझे चोदा था..."

"मुझे तुझ से यही उम्मीद थी... लेकिन एक बार बता... वह तेरे साथ बिना कंडोम के सेक्स कर रहे हैं... है ना?"

"जी हां"

"फिर तो मुझे लगता है कि सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा है, उन्हें एक मासूम सी लड़की चाहिए थी... जो मैंने उन्हें भेज दी... लेकिन तू तो जानती है कि मर्द लोग कैसे होते हैं, इसलिए उनके खेल में तुझे भी थोड़ा बहुत भाग लेना पड़ेगा... लेकिन जो भी करना धीरे-धीरे और उनकी अनुमति से ही शुरु करना| मैं जानती हूं कि तू एक आजाद पंछी है... लेकिन यह मामला गांव वाला है इसलिए तू अगर चाहे तो वह सब कुछ कर सकती है जो तू टॉम के साथ करती है... मैं जानती हूं कि तुझे अपना जीभ चुसवाना अच्छा लगता है... पता नहीं हमारे क्लाइंट बाबा ठाकुर एकनाथ को यह कैसा लगेगा? पर तू कोशिश कर सकती है...लेकिन जरा ध्यान से और हां... मुझे पूरी उम्मीद है तू भी इस कॉन्ट्रैक्ट के पूरे मजे लेगी... and take your pills on time or you will end up with a belly (और अपनी गर्भनिरोधक गोलियां समय पर देती रहना वरना तो पेट से हो जाएगी)... उफ़्फ़! यह कॉन्ट्रैक्ट इतनी जल्दी पक्का हो गया... कि मुझे दम मारने की भी फुर्सत नहीं मिली... इसलिए मुझे मौका ही नहीं मिला वरना मैं तेरे अंदर copper-t डलवा देती उसके बाद मुझे कोई चिंता नहीं रहती..."

"जी मम्मी”

“(गर्भनिरोधक) गोलियों से मुझे याद आया मेरे क्लाइंट बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को गुदामैथुन भी पसंद है... लेकिन इससे तुझे थोड़ी तकलीफ होगी इसलिए मैं चाहती हूं कि तू कुछ नशीली दवाओं को भी ले ले... मैं अनवर मियां को तेरे यहां भेज रही हूं... मैंने जानबूझकर थोड़े बहुत फल फूल और साथ में जिंदगी दो बोतलें और कुछ कामोत्तेजक गोलियां भी भेजूंगी... जिन पीने से बदबू नहीं आएगी और कामोत्तेजक गोलियों की वजह से तू नशे में रहेगी और गुदामैथुन के वक्त तुझे इतना दर्द भी नहीं होगा...”

“जी मम्मी”

“और हां एक बात तो मैं बताना ही भूल गई... वह आज शहर आकर तेरा पूरा पेमेंट करके जाएंगे... और यह मत भूल- दुनिया तो यह समझती है कि तू मेरी बेटी है- लेकिन यकीन मान, मैंने तुझको सचमुच का गोद ले लिया है... या फिर अडॉप्ट कर लिया है... यह बात और है कि तू हॉट गर्ल्स की फायर ब्रिगेड की प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल है... तू अगर चुदने गई है तो दिल खोल कर चुद के आ...”

“जी मम्मी”

फोन रखने के बाद मुझे ऐसा लगा कि मैं कमरे में अकेली नहीं हूं... शायद कोई मेरे पीछे चुपके चुपके आ करके खड़ा हुआ है...


क्रमशः
Bohot badiya update
 
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"संभोग के बाद प्रेम कई गुना बढ़ जाता है " पियाली के एकनाथ बाबा के साथ चुदाई के बाद विचारों में परिवर्तन आना शुरु हो गया है। दूसरी ओर मैरी डिसूजा जो पियाली को बेटी कहते हुए थक नही रही हैं, उनकी सोच को समझना मेरी समझ के बाहर है, पियाली को चुदाई के instruction फोन पर लाख रुपए दिन के, बिना कॉंडोम सेक्स, गुदा सेक्स की सलाह संभवत वो चकला घर चलाने वाले किसी मौसी के स्वर जान पड़े है मुझे। उधर आरती भी पियाली के हुस्न और जिस्म की दीवानी हो गयी है। जब कोई मर्द किसी स्त्री के जिस्म की तारिफ करता है तो उसके पीछे उसका कोई लालच होता है। लेकिन एक स्त्री किसी स्त्री के जिस्म के लावण्या अंगो की तारिफ करती हैं तो सच में उस स्त्री के जिस्म की नुमाइश लाखों में एक होती हैं। आशा है अगले अध्याय में आरती और पियाली दोनों स्त्रियों के बीच जिस्म की वासणामयी स्थिति ठीक से समझ आयेगी।

ये आपके आखिरी दोनों अध्याय की कहानी का सारांश है, जिसे मै अपने शब्दों से आपके शब्दों के साथ समागम कर रहा हूँ।
धन्यवाद
 
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"संभोग के बाद प्रेम कई गुना बढ़ जाता है " पियाली के एकनाथ बाबा के साथ चुदाई के बाद विचारों में परिवर्तन आना शुरु हो गया है। दूसरी ओर मैरी डिसूजा जो पियाली को बेटी कहते हुए थक नही रही हैं, उनकी सोच को समझना मेरी समझ के बाहर है, पियाली को चुदाई के instruction फोन पर लाख रुपए दिन के, बिना कॉंडोम सेक्स, गुदा सेक्स की सलाह संभवत वो चकला घर चलाने वाले किसी मौसी के स्वर जान पड़े है मुझे। उधर आरती भी पियाली के हुस्न और जिस्म की दीवानी हो गयी है। जब कोई मर्द किसी स्त्री के जिस्म की तारिफ करता है तो उसके पीछे उसका कोई लालच होता है। लेकिन एक स्त्री किसी स्त्री के जिस्म के लावण्या अंगो की तारिफ करती हैं तो सच में उस स्त्री के जिस्म की नुमाइश लाखों में एक होती हैं। आशा है अगले अध्याय में आरती और पियाली दोनों स्त्रियों के बीच जिस्म की वासणामयी स्थिति ठीक से समझ आयेगी।

ये आपके आखिरी दोनों अध्याय की कहानी का सारांश है, जिसे मै अपने शब्दों से आपके शब्दों के साथ समागम कर रहा हूँ।
धन्यवाद
आदरणीय manu@84 जी,

मेरी कहानी का अपडेट पढ़कर आपको अच्छा लगा यह जानकर बड़ी खुशी हुई|

कहानी के अनुसार जैसा कि मैं पहले बताया था कि यह कुदरत का एक करिश्मा है जो कहानी की नायिका शीला चौधरी उर्फ पीयाली दास और ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा जैसी दो अनजान महिलाओं की शक्ल काफी मिलती-जुलती है| अगर कोई अनजान आदमी इन दोनों को एक साथ देख ले, तो इन्हें मां बेटी ही समझेगा|

लेकिन मैरी डिसूजा अपने धंधे के प्रति बहुत ही समर्पित है और यही उसकी सफलता का राज है| जिसकी वजह से बिग सिटी मॉल जैसे रिहायशी इलाके के बगल में उसने अपनी बिल्डिंग खड़ी कर दी| जिसके ग्राउंड फ्लोर पर उसका " रंग डे बसंती ढाबा" और उसी के बगल में उसका "लूनर डैज़ी (Lunar Daisy) ब्यूटी पार्लर" धड़ल्ले से चल रहा है|

और साथ ही कहानी के अनुसार, उसका ब्लू मून क्लब- अभिजात वर्ग में बहुचर्चित और काफी लोकप्रिय है|

आपने बिल्कुल सही फरमाया, गांव के माहौल में आकर और फिर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की संगत में उनके घर रहकर और उनके साथ संभोग करने के बाद पीयाली के दिलों दिमाग में भी विचारों की लहरों में उफान आने लगा है...

और हां, यह बात भी आपकी बिल्कुल सही है कि पीयाली की हुस्न और जवानी को देखकर और उसके जैसी एक खुले विचारों वाली स्त्री के साथ मेलजोल बढ़ाने के बाद; गांव में रहने वाली सीधी-सादी लड़की जिसे काफी सारे उल्टे सीधे कर्मकांड इस घर में देखे हैं उसका मन भी खुल रहा है और बहक रहा है---

इससे पहले उनके घर में आने वाली ज्यादातर औरतें पिछड़ी हुई और अनपढ़ टाइप की थी| लेकिन पीयाली शहर की लड़की है और वह खुले विचारों वाली एक स्वतंत्र सोच वाली लड़की है| अनजाने में ही आरती में इस चीज को गौर किया है और वह बहुत प्रभावित हो चुकी है|

इसके साथ ही अपने एक सही अंदाजा लगाया इस कहानी में मैंने पीयाली और आरती के बीच में हुई कुछ घटनाओं का विवरण भी किया है आशा है कि मेरे सभी पाठकों को यह बहुत पसंद आएगा- और साथ में आपको भी|
 

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🙏🙏 🙏🙏

मेरे प्रिय पाठक मित्रों,

मेरी कहानी से जुड़े रहने के लिए मैं आपका तहे दिल से धन्यवाद करती हूं|

मैं माफी चाहूंगी कि पिछले दो हफ्तों से मैं यहां रोजाना ए नहीं पाई| एक हफ्ता तो तीज और त्योहार में ही बीत गया और साथ में मेरे परिवार के कुछ सदस्य जो कि दूसरे शहर में रहते हैं मेरे घर आए हुए थे और उनके साथ उनके बच्चे भी थे|

उसके बाद वाला हफ्ता न जाने कैसे पलक झपकते ही बीत गया|

देर से अपडेट देने के लिए मैं माफी चाहूंगी; कृपया मेरी कहानी के साथ बनी रहिएगा मुझे आपके सुझाव और टिप्पणियों का बेसब्री से इंतजार रहेगा|


🙏🙏🙏🙏
 

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अध्याय १७



मैं जानती थी कि वक्त आ गया है कि मुझे उसे थोड़ा बहकाना होगा... क्योंकि मुझे पक्का यकीन हो गया था कि वह मेरे साथ यौन करना चाहती है... यह लड़की बड़ी हो गई है, इसके कच्चे आम पक चुके हैं... मुझे इसको थोड़ा बहकना पड़ेगा; अगर मैंने ऐसा नहीं किया तो पता नहीं यह किसके साथ क्या कर लेगी और खराब हो जाएगी और मैं ठहरी ब्लू मून क्लब की हॉट गर्ल्स की फायर ब्रिगेड की एक प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल; मुझे तो इन सब चीजों में मजा भी आता है और मुझे ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने अच्छी खासी तालीम भी दे रखी है|

"अरे वाह! तेरे होठों का स्वाद भी बहुत अच्छा है और हां उम्र के हिसाब से तेरा बदन भी अच्छी तरह से खिल उठा है... लेकिन तू इतना शर्माती क्यों है?" यह कहकर मैंने आरती के स्तनों की चूचियों में हल्की सी चिकोटि काठी|

आरती ने एक लंबी सी आह भरी… और वह तब भी अपनी आंखें मूंदे मेरे स्तनों से खेल रही थी|

"क्या बात है री आरती? तू क्या इसी तरह अपनी आंखों को मूंदकर ऐसे ही बैठी रहेगी या फिर मुझे थोड़ा प्यार भी करेगी? देख तूने मुझे आधी नंगी तो कर ही दिया है..."

आरती ने धीरे से अपनी आंखें खोली और उसने मुझे कसकर जकड़ लिया और जैसे ही मुझे उसके नंगे बदन की छुअन महसूस हुई मुझे ऐसा लगा कि मेरे पूरे बदन में जैसे बिजली की एक लहर सी दौड़ गई... बाप रे बाप! इस लड़की के अंदर जवानी की गर्मी तो बिल्कुल उबल रही है... जैसे कि एक ज्वालामुखी जो किसी भी वक्त फट सकता है... आरती मुझसे लिपटकर फूट-फूट कर रोने लगी...

मैंने बड़े प्यार से आरती से पूछा, "तू रो क्यों रही है, आरती?"

"पीयाली दीदी, न जाने क्यों मुझे पता नहीं कैसा कैसा लग रहा है... मुझे तुमको बहुत प्यार करने का मन कर रहा है... सचमुच तुम बहुत ही सुंदर हो"

मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "ठीक है ठीक है, अब जल्दी से नंगी हो जा तोरे लड़की... मैं भी अपनी साड़ी उतार के बिस्तर पर चित्त होकर लेट जाती हूं मैं चाहती हूं कि तुम मुझे जी भर के प्यार करें"

"हां पीयाली दीदी जरूर" यह कहकर आरती ने अपने होठों को मेरे गालों से सटा के मुझे चूमा उसके बाद वह हड़बड़ा कर उठ कर मेरे सामने खड़ी होकर अपनी साड़ी उतारने लगी|

उसने जल्दी-जल्दी अपनी साड़ी उतार कर बिस्तर की एक तरफ रखा उसके बाद उसने अपनी पेटिकोट किनारे में लगी गांठ को खींच कर खोल दिया और अपने पेटिकोट को थोड़ा ढीला किया... ऐसा करते ही उसका पेटीकोट छठ से जमीन पर गिर गया| आरती ने बेटी नहीं पहन रखी थी और वह भी शब्द मेरे सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी... मैंने उसको ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह से देखा... उसके सर के बाल अस्त-व्यस्त थे... यौनांग के आसपास काफी सारे बाल थे... उसकी आंखें बड़ी बड़ी हो चुकी थी और वह एक अजीब से आवेग मन में लिए हुए मेरी तरफ देख रही थी... मैं समझ गई कि यह लड़की बड़ी हो चुकी है; लेकिन इसको आज तक यौन संतुष्टि नहीं मिली है... अच्छा हुआ कि कोई गलती करने से पहले यह मेरे हत्थे चढ़ गई... मैं इसको वो खुशी दे सकती थी जिसकी से जरूरत है... मुझे ऐसा लग रहा था कि आज तक उस नेता का झांकी करके जो भी देखा है उन सब चीजों ने उसके अंदर जवानी की आग में घी का काम किया था... मेरा अंदाजा बिल्कुल सही था उसका ज्वालामुखी अब फटने वाला था... हां मैं भी एक औरत हूं और आरती गांव की एक सीधी-सादी लड़की है लेकिन मैं उसके मन की बात को समझ सकती हूं... उस लड़की को थोड़ी शांति की जरूरत है... और उस शांति का स्वाद उसे आज मिलने वाला है... क्योंकि मैं उसकी मदद करने वाली हूं|

आरती फटी फटी आंखों से मुझे देखती हुई यह इंतजार कर रही थी कि कब मैं अपनी साड़ी उतारो... इसलिए मैंने ज्यादा देर नहीं की, मैं उठ कर खड़ी हो गई और जानबूझकर उसकी तरफ पीठ करके खड़ी होकर धीरे-धीरे अपने साड़ी उतारने लगी और उसे उतारने के बाद मैंने साड़ी को तह करके मिस्र की एक तरफ रख दिया और फिर बिस्तर पर घुटनों के बल उठकर वह उल्टी लेट गई... मुझे मालूम था कि आरती को चैन नहीं मिल रहा था... वह भागकर मेरे पास आई और मेरे पीठ और कूल्हों को सहलाने लगी... मैं धीरे-धीरे सीधे ऊपर लेट गई और मुझे ऐसा लगा जैसे आरती की निगाहें मुझे सर से पांव तक मानों छू गई... मैंने अपनी दोनों टांगों को फैला कर उसे अपने पास आने का इशारा किया... उसने भी देर नहीं की और एकदम कूद के बिस्तर पर चढ़ गई और मेरे ऊपर लेट गई और एक पगली की तरह वह मेरे दोनों गालों को चूमने लगी... मैं भी कुछ देर तक आरती के नंगे बदन को अपनी बाहों और टांगों से जकड़ी रही...

उसके अंदर फूटती जवानी की आग की गर्मी से न जाने क्यों मुझे भी एक अनजाना सा सुख मिल रहा था... उसके उलझे उलझे बालों से मेरा चेहरा लगभग लग गया था... उसके यौनांग के बालों की छुअन मेरी योनि के अधरों में एक अजीब सी गुदगुदी से पैदा कर रही थी... और हां उसके बालों का पर्दा जो मेरे चेहरे पर पड़ा हुआ था मानो वह मुझे इस जहान की असलियत को परे रखकर हम दोनों एक नया आनंद उठाने के लिए थोड़ी बहुत गोपनीयता दे रहा था... और आरती वह पूरे जोश के साथ मुझसे लिपटकर अपने शरीर के हर हिस्से से मेरे नंगे बदन की छुअन का एहसास लेने में मस्त थी... उसे अब इस दुनिया जहान से कोई मतलब नहीं था...

मैंने आरती का चेहरा अपने हथेलियों पर थाम कर उसके होंठों को चूमा और उसके बाद हल्के हल्के मैं उसके होठों को अपने दांतों से काटने लगी और फिर अपनी जीभ से उसके होठों को चाटने लगी|

कुछ देर के लिए आरती का बदन थोड़ा सा सख्त सा हो गया और वह हल्का-हल्का कांपने लगी... उसकी सांसे गहरी और लंबी होती गई... फिर मैंने गौर किया वह भी मेरी देखा देखी मेरा नकल उतारने लगी... उसने मौका ना गवां कर वह मेरे होठों को भी अपनी जीभ से चाटने लगी... मैंने भी मौके पर चौका लगा दिया|

उसकी जीभ को अपने मुंह के अंदर लेकर मैं चूसने लगी... उसकी जीभ का स्वाद मानो बहुत ही अद्भुत था; मुझे अच्छा लग रहा था|

"उम्मम्म...." आरती ने एक दबी सी आह भरी...

वह मेरे आगोश में हल्की हल्की हिलने डुलने लगी थी इसलिए मैंने उससे कसकर जकड़ लिया और उसके नरम नरम पर जवानी के कसाव में भरे पूरे कूल्हों को जोर-जोर से अपने हाथों से दबाने लगी... मैं जानती थी कि मेरा ऐसा करने से आरती को बड़ा मजा आ रहा है... इसलिए वह मुझसे अपनी पूरी ताकत से लिपटी हुई पड़ी रही... उसके बाद... मेरा हाथ थोड़ा नीचे चला गया... मैं उसके मलद्वार और यौनांग के बीच के हिस्से को हल्का हल्का दबा दबा कर और फिर हिला हिला कर उकसाने लगी...

"उम मम्म ... उम मम्म ... हुहूहुहू" अब आरती से रहा नहीं गया| वह मारे उत्तेजना के फूट-फूट कर रोने लगी... लेकिन मैं जानती थी कि उसका यह रोना-धोना एक अजीब सी खुशी के एहसास की वजह से है... अब मैं उसके ऊपर लेटी हुई थी और वह मेरे बदन के नीचे दबी हुई थी, इसलिए वह ज्यादा हिलडुल नहीं पा रही थी... लेकिन फिर भी न जाने उसने कहां से थोड़ी सी ताकत जुटाकर अपने सुडौल स्तनों को मेरे स्तनों से किसने लगी... अब मेरा हाथ उसके यौनांग पर चला गया और मैंने गौर किया कि उसकी झांटे हल्की-हल्की गिली गिली सी लगने लगी थी... उसकी कामना का रस झरने लगा था; मैं भी एक नारी हूं इसलिए मैं जानती थी कि अब ज्यादा देर करने की जरूरत नहीं है... उसके बदन से अपने आपको अलग किया और मैंने उसको सर से पांव तक एक बार देखा... आरती मानो किसी अनजानी कशिश में चटपटा सी रही थी और मेरा सारा चेहरा उसके चूमने चाटने की वजह से उसकी लार शकीला हो रखा था... मैंने अपनी तर्जनी और मध्यमा उंगली को अपने मुंह में डाला और जितना हो सके अपनी थूक से गिला किया...

"अपनी दोनों टांगों को जरा फैला दे लड़की..." मैंने अपना मुंह की कान के पास ले जाकर हल्के से फुसफुसाया...

आरती ने भी देर नहीं की... शायद उसे मालूम था कि मैं उसके साथ क्या करने जा रही हूं... उसने झट से अपनी दोनों टांगे फैला दी|

मैंने उसकी योनि के अंदर अपनी गीली गीली दो उंगलियां घुसा दी|

आरती को मानो करंट का झटका लगा उसका सारा शरीर फिर से कांप उठा... उसकी सांसे फूटने लगी... मुझे मालूम था मुझे क्या करना है, इसलिए मैंने अपनी उंगलियों से उसके भगोष्ठ (क्लाइटोरिस) को उकसाने लगी...

"पीयाली दीदी...पीयाली दीदी... ना ना ना ममममम" आरती अब कराहने लगी थी|

मैं मुस्कुराती हुई उसकी योनि में अपनी उंगलियों से मैथुन करने लगी... और जैसे किसी पतीले में गरम दाल उबलने लगती है मैं जानती थी की आरती के अंदर वैसा ही वासना का उबाल आ रहा था... आरती की सांसे अब और गहरी और तेज होने लगी है... उसकी सांसों के साथ उसके सुडोल स्तन ऊपर नीचे होने लगे... मैंने उसको चूमना चाटना शुरू कर दिया... और जितना हो सके उसे प्यार करने लगी... वह छ्टपटाती हुई अपना सर दाएं बाएं पागलों की तरह कर रही थी.. मैंने अपनी उंगलियों से उसकी मैथुन की गति बढ़ा दी...

"पीयाली दीदी.... रुकना मत.. रुकना मत.... आआआआ"

आरती का नंगा बदन एक बार फिर से कांप उठा... और वह इस बार रोने लगी... मुझे पता चल गया कि उसके अंदर अब कामना कि आनंद का विस्फोट हो चुका है.... इसलिए मैंने उसका चेहरा अपने नंगी सीने से लगा लिया... आरती एकदम निढाल सी पड़ी हुई थी... लेकिन मेरी छाती से उसका चेहरा जैसे ही लगा, उसने मेरे स्तनों की चूचियों को चूसना शुरू कर दिया... उसके बदन नरम नरम और गरम गरम छुअन का एहसास मुझे भी मानव मदहोश कर रहा था... अब सुखाने की बारी मेरी थी मैं उसकी तरफ मुंह करके लेट कर ही... अपनी योनि में उंगली डालकर हिलाने लगी... और बीच-बीच में आरती को चूमने चाटने लगी... उसके होंठ, माथे पर, कान की लौ... जहां तक मेरा मुंह पहुंच पाता मैंने उसके शरीर का एक इंच भी नहीं छोड़ा... आरती अभी भी निढाल सी होकर पड़ी हुई थी बस थोड़ी थोड़ी देर में हल्का-हल्का कापसी रही थी... बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के साथ दो बार संभोग करने के बाद भी मुझे जो खुशी नहीं मिली थी... वह मुझे इतनी देर बाद आरती के जरिए मिल गई|

कुछ देर बाद... मैं भी शांत हुई... और फिर उससे लिपट कर लेट गई...

ना जाने कब हम दोनों की आंख लग गई... और हम दोनों एक सुकून भरी गहरी नींद में सो गए|

क्रमशः
 

naag.champa

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अध्याय १८



न जाने कहां से मेरे कानों में इलेक्ट्रिक गिटार की एक जानी पहचानी सी धुन गूंजने लगी... यह धुन मुझे बहुत पसंद है... फिर अचानक मुझे ध्यान आया कि यह तोमेरे मोबाइल फोन का रिंगटोन है| मैं इतनी गहरी नींद सो गई थी कि मुझे आंखें खोलने के बाद दो-तीन पल यह समझने में लग गए कि अब शाम होने को आई है और मेरा फोन बज रहा है... और मैं बिल्कुल नंगे बदन सो रही थी... और मेरे बगल में आरती भी बेसुध होकर हाथ पैर फैलाए गहरी नींद में डूबी हुई थी और वह भी नंगी थी|

मैंने अपनी आंखों को मल कर फोन उठाया और देखा कि ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने s.m.s. किया है-'Payment received make our client happy... :) I have taught you everything I know (पेमेंट मिल गया है... हमारे ग्राहक को खुश कर देना| मैंने तुम्हें वह सब सिखा दिया है जो मुझे आता था)'

इसका मतलब बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ बाबा ठाकुर पंडित एकनाथने ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा को पैसे दे दिए... मुझे भोगने के लिए|

मैं मुस्कुराई और फिर मैंने जवाब भेजा, 'Ok'

और जैसे ही मेरी नजर दीवार पर टंगी घड़ी की ओर गई है तो मैं एकदम चौंक उठी| शाम के साढ़े पॉंच बज रहे थे... ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा

ने मुझे अच्छी तरह समझा-बुझाकर भेजा था| मैं यहां सिर्फ रंगरेलियां मनाने नहीं आई हुई थी| मुझे बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को जी भर के खुश भी करना था- जैसे कि गांव की गृहणियाँ करती हैं|

और ऐसा करने के लिए मुझे दिखने में बिल्कुल तरोताजा और खूबसूरत बन के रहना था और साथ ही चंगा और यौन रूप से तैयार रहना था|

खुद को इस अंदाज में डालने के लिए मुझे क्या करना है मुझे अच्छी तरह मालूम था| मैंने जल्दी-जल्दी बिस्तर से उतर कर बैग में रखी रम की बोतल खोल कर उसमें से दो घूँट गटक गई... लेकिन मुझे मालूम था आरती या फिर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को इसका पता नहीं चलना चाहिए इसलिए मैंने दोबारा अपने बैक को खंगाला और मुझे पुदीन हरा एक स्ट्रिप मिल गई|

मैंने जल्दी-जल्दी उसमें से दो गोलियां निकाल कर चबा गई| अब शराब की कोई बदबू नहीं आएगी|

उसके बाद जब मेरी नजर आरती पर पड़ी तो न जाने क्यों मैं एक पल के लिए चौंक उठी|

उसे देख कर मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद मैं अपना ही प्रतिबिंब देख रही हूं... मुझे उस दिन की याद आ गई.... जब मैं अपनी तालीम के दौरान एक दिन ठीक ऐसे ही यौन तृप्ति के बाद ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा कि बिस्तर पर बिल्कुल नंगी सो रही थी... मैरी डिसूजा मुझे नींद से जगाने की कोशिश कर रही थी और मुझे याद है आज जैसे आरती बेसुध होकर चेहरे पर एक अजीब सी संतुष्टि और होठों पर एक अध - खिली सी मुस्कान लिए गहरी नींद में डूबी हुई थी- मैं मन ही मन सोच में पड़ गई- क्या आज मैंने गांव की एक सीधी-सादी लड़की के अंदर कामना की अग्नि को और भड़का दिया है? नहीं वह तो बड़े दिनों से इस घर में बहुत कुश्ती होती है आ रही है... बहुत ही छोटी उम्र में ही उसने बहुत कुछ देख- सुन लिया और जान लिया था... नहीं यहां मेरी कोई भी गलती नहीं है... यह लड़की और मैं भले ही मेरे से छोटी हो लेकिन यह जवान और सयानी हो चुकी है... गांव में तो इसकी उम्र की लड़कियों की कब की शादी हो चुकी होती है और बच्चे भी हो चुके होते हैं... पर अब तक यही सोच रही है कि मैं भी दूसरी औरतों की तरह बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के घर गर्भवती होने के लिए आई हुई हूँ|

मेरे घड़ी की ओर देखा छः बज कर पाँच मिनट| सूरज डूब चुका था... पर आकाश में लालिमा अभी भी छाई हुई थी| इतनी देर में ब्लू मून क्लब के ड्राइवर अनवर मियां भी बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को लेकर शहर से गांव की ओर रवाना हो चुके होंगे|

परंपरा के अनुसार महिलाओं को इतनी देर तक सोते नहीं रहना चाहिए इसलिए मैं आरती को हिला हिला कर उठानेकी कोशिश करने लगी,"अरी ओ आरती... आरती? बड़ी देर हो गई है उठ जा... चल चल चल... उठ जा- उठ जा- उठ जा... देखअंधेरा होने को आया है… अरी छोरी, इतनी बड़ी होकर बिल्कुल घोड़ी बन गई है पर अभी भी सो रही है- चल, जल्दी कर उठ जा"

लेकिन उसकी नींद खुलने का नाम ही नहीं ले रही थी|

इसलिए हार कर मैंने ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की तकनीक को आजमाया मैं उसके होठों को चूमने लगी और उसके योनि के अधरों को अपनी दो उंगलियों से तेजी से मलने लगी| यह तरकीब काम आ गई| आरतीने मुस्कुराकर अपनी आज खुली आंखों से मुझे देखा और फिर मुझसे लिपटकर दो तीन बार चुम लिया|

मैंने उससे कहा, "हे भगवान! मैं तुझे कल से बुला रही हूं और अब जाकर तेरी नींद खुली है... अब जा जल्दी से नहा ले... बाबा ठाकुर आते ही होंगे हमें घर भी तो संभालना है

"पीयाली दीदी... आंखें खोलते ही तुम्हें नंगी देखकर मुझे बड़ी खुशी हो रही है... यकीन मानो तुम बहुत सुंदर हो... थोड़ी देर तुम मुझे अपनी गूद (यौनांग) में उंगली करने दो ना..."

"नहीं..." मेरे झूठ मुट नाराज होने का नाटक किया|

आरती थोड़ा भौंचक्की सी हो गई| शायद मुझे ऐसे नाराज होने का नाटक नहीं करना चाहिए था क्योंकि शायद उसने उसे सच मान लिया था|

इसलिए मैंने अपनी हथेलियों में उसका चेहरा थाम कर प्यार से कहा, "तू तो जानती है कि बाबा ठाकुर सुबह ही मेरे साथ संभोग करके गए हैं... उनका आशीर्वाद (वीर्य) मेरी गूद (यौनांग) अभी भी भरा हुआ है... और तू सोच रही है कि तू मेरी गूद (यौनांग) में उंगली डालेगी और उसके बाद वही उंगली अपनी गूद (यौनांग) मेरी डालेगी... तो सोच ले तेरा क्या हाल होगा... कहीं तेरा भी पेट फूल गया तो?"

"अरे बाप रे मैं तो भूल ही गई थी... कि तुम बाबा ठाकुर से चुदी हुई हो... तुम्हारे गूद (यौनांग) में अभी भी उनका सड़का भरा हुआ है..." आरती की नींद शायद पूरी तरह से खुली ही नहीं थी...

"ओफ़ ओ! यह कैसी अभद्र भाषा है... तू अपने दो टांगों के बीच का हिस्सा तो देख- ऐसा लग रहा है कि तूने वहां सुंदरवन का सारा जंगल पाल रखा है... जा जल्दी से नहा कर आ"

"ही ही ही ही ही ही ही ही"

***

बाबा ठाकुर पंडित देखना था जहां रहते थे, वह एक ग्रामीण इलाका था और गांव में वक्त बेवक्त बिजली का कुल हो जाना आम बात है|

उस दिन भी पूरे इलाके में बत्ती नहीं थी लेकिन कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि घर में मोमबत्तियां और लालटेन की कोई कमी नहीं थी| मैंने और आरती ने नहाने धोने के बाद, मिलकर हर कमरे में मोमबत्ती या फिर लालटेन जला दी|

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फिर मुझे ध्यान आया कि यहां आते वक्त है ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने एक सुगंधित मोमबत्ती भी ला कर दी थी| मैंने उससे बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के कमरे में रोशन कर दिया| सच में, मैरी डिसूजा एक बहुत ही तजुर्बे दार औरत है| उनमें परिस्थितियों का अनुमान लगाने की अदभुत क्षमता थी|

मेरे पास दो तीन तरह के परफ्यूम भी थे| मैंने उनमें से चुनकर एक स्रैण यौन मादक सुगंधी अपने ऊपर लगा ली|

उसका सर ऐसा था की आरती ने भी कह डाला, " वाह पीयाली दीदी,! वाह... तुम तो एक परी की तरह महक रही हो..."

इतने में आरती ने मेरे पैरों में सुंदर तरीके से आलता पहना दिया था... मेरी मांग सिंदूर से भरी हुई थी, हाथों में किसी भी बंगाली ग्रेबलों की तरह शाँखा और पौला पहन रखा था| ब्रा, पेंटी पेटिकोट या ब्लाउज पहनना तो मना था... इसलिए मैंने बदन में सिर्फ साड़ी लपेट रखी थी| साड़ी बंगाली बात की थी और क्रीम कलर की थी और उस पर मोटा चौड़ा सा लाल रंग का बॉर्डर था...

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के दिए हुए अनुदेश के अनुसार मैंने अपने बालों को खुला छोड़ रखा था|

मैंने आंखों में काजल और फिर होठों पर लिपस्टिक लगाया और फिर अपने आप को आईने में देखने लगी है इतने में मेरी नजर मेरे पीछे खड़ी आरती पर भी पड़ी... और उसकी नजरों से ही मैं समझ गई कि उसका जी मुझे चूमने के लिएललचा रहा था... वरना चेहरा मेरे पास ला ही रही थी कि इतने में हमें बाहर से गाड़ी की आने की आवाज और उसका हॉर्न सुनाई दिया...

ब्लू मून क्लब के ड्राइवर अनवर मियां बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को अपने साथ लेकर यहां गांव के घर में पहुंच चुके थे|

बाबा ठाकुर की आहट से आरती थोड़ा सचेत हो गई है, लेकिन वह यह बोलने से नहीं चुकी , "तुम बहुत सुंदर लग रही हो पीयाली दीदी"

उस दिन अमावस्या की रात थी| आकाश में चांद नहीं दिखाई दे रहा था लेकिन गांव का आकाश तारों से भरा हुआ था जिसकी वजह से चारों तरफ एक अजीब सी आभा छाई हुई थी| ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था|

मैं जल्दी-जल्दी हाथ में लालटेन लिए घर के सदर दरवाजे तक गई ताकि मैं बाबा ठाकुर यहां आने का स्वागत कर सकूं|

बाबा ठाकुर ने मेरी तरफ देखा और मैं समझ गई की आरती सच कह रही थी शायद बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मन ही मन शायद आरती के बातों को ही दौरा रहे थे, 'पीयाली तुम बहुत ही सुंदर लग रही हो...'

उन्होंने मुझसे पूछा, "आरती कहां है?"

मैंने कहा, "जी वो रसोई में है- आपके लिए चाय नाश्ता बना रही है"

उन्होंने कहा,"ठीक है, मैं अभी नहा धोकर आता हूं..."

मैं समझ गई कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ नहाने धोने के बाद अपने कमरे में जाएंगे और वहां उन्हें मेरी उपस्थिति की बहुत जरूरत होगी| इसलिए मैंने उनके हाथों से उनका बैग लिया जो वह अपने साथ शहर लेकर गए थे और फिर चुपचाप सर झुकाए जानबूझकर अपने कूल्हों को मटका हुई उनके कमरे मैं जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगी| मैं जानती थी कि मैंने उनका ध्यान अपनी तरफ पूरी तरह से आकर्षित कर लिया है|

पर ना जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि इस बैग में कुछ सामान रखा हुआ था और वह थोड़ा भारी लग रहा था|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ थोड़ी ही देर में नहा धोकर तरोताजा होकर अपने कमरे में आ गए| वहां तो मैं पहले से ही उनका इंतजार कर रही थी|

मुझे ऐसे ही कमरे में आए मैंने घुटनों के बल बैठ कर अपना माथा जमीन पर टेक दिया और अपने बालों को सामने की तरफ फैला दिए|

मेरे अध -धगीले बालों पर अपने दोनों रखकर बाबा ठाकुर ने मुझे आशीर्वाद दिया और फिर दो कदम पीछे हट गए| मैंने उठकर अपने बालों में जुड़ा बांध लिया- यह इस बात का प्रतीक है कि मैंने उनके चरणों की धूल को अपने माथे पर ग्रहण किया है|

और जैसे ही मैं खड़ी हुई बाबा ठाकुर ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मैं नहीं जान पूछ कर अपना यौनांग उनके यौनांग बिल्कुल सटा दिया और अपने स्तनों को उनकी छाती से और फिर मैं भी उनसे लिपट गई... मेरे लगाए हुए परफ्यूम से बाबा ठाकुर जरूर मुग्ध हो गए थे... उन्होंने मुझे दो-तीन बार छूना और फिर अपने हाथों से मेरे बालों को खोल कर मेरे पेट में फैला दिए और फिर बिस्तर पर मेरे कंधे पर हाथ रखकर मेरे बदन पर दूसरा हाथ फेरते हुए मुझे प्यार करने लगे| मैं भी उनके कंधे पर सर रखकर उनकी पीठ पर हाथ फेरने और मेरा दूसरा हाथ उनकी जांघों पर चल रहा था... कितने में बाबा ठाकुर ने मेरा हाथ अपने लिंग पर रख दिया|

बाबा ठाकुर में कोई अंतर्वास नहीं पहन रखा था इसलिए मैं उनके खड़े और सख्त होते हुए लिंग को अच्छी तरह से महसूस कर पा रही थी और साथ ही साथ में उनका इशारा भी समझ गई|

बाबा ठाकुर ने अपने घुटनों को फैला दिया और मैं जमीन पर घुटनों के बल उनके दो टांगों के बीच में जमीन पर बैठ गई... और फिर मैंने उनकी लुंगी उठाकर उनके यौनांग उन्मुक्त किया और फिर अपनी मुट्ठी में उनका सशक्त और खड़ा हुआ लिंग अपनी कोमल मुट्ठी में लेकर हल्का-हल्का ऊपर नीचे हिलाने लगी... और कुछ क्षणों बाद मैंने उनका लिंग अपने मुंह में ले लिया और फिर उसे चूस चूस कर अपने दांतो से हल्का काटते हुए अपने हाथों से उनका लिंग थोड़ा दीदी से ऊपर नीचे हिलाने लगी...

हस्तमैथुन तनाव और थकान दूर करने का एक बहुत ही अच्छा तरीका है- बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ खुशनसीब है जो मैं उनकी इस सेवा के लिए हाजिर हूं...

मैं मन ही मन सोच रही थी कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ शायद भूल गए हैं की आरती चाय नाश्ता लेकर अभी ऊपर आती ही होगी इसलिए मुझे वक्त का भी ध्यान रखना है... यह सोचकर मैंने बाबा ठाकुर की हस्तमैथुन की गति बढ़ा दी...

***

अब तक बिजली आ चुकी थी- उम्मीद करती हूं कि शायद रात भर बिजली रहेगी...

रात को खाना खाने के बाद| मैं बाथरूम में गई अपना बहुत अच्छी तरह से धोया, दांतों में ब्रश किया और फिर मुस्कुराती हुई अपना यौनांग और मलद्वार को अच्छी तरह से हाथों में साबुन मल कर धोया... और बाथरूम में जाने से पहले मैं अपने साथ चुपके से 'अफ़रोडिसियक' (कामोत्तेजक दवाई) की गोली वाली स्ट्रिप भी लेकर आई थी जिसमें से एक गोली मैंने खा ली| बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मुझे काफी पैसा खर्च करके अपने पास लेकर आए थे| इसलिए मुझे उनकी पूर्ण यौन संतुष्टि और और भोग विलास का ध्यान रखना था... और इसके लिए मुझे भी अपनी काम उत्तेजना को बरकरार रखना था क्योंकि यह मेरा कर्तव्य था और कर्तव्य करते वक्त मुझे थकना नहीं था|

आखिरकार मैं ब्लू मून क्लब की मालकिन मेरी डिसूजा की फायर ब्रिगेड की सबसे महंगी में से एक प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल बन चुकी थी|

जब मैं कमरे में आए तब मैंने देखा कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ सिर्फ लुंगी पहनकर बैठे हुए थे उन्होंने अपनी बनियान भी उतार दी थी और जैसा कि मैंने कहा वह सिर्फ लुंगी पहने हुए थे इसलिए उनका लिंग खड़ा हो सकत होकर लूंगी के अंदर से साफ उभर रहा था; लेकिन बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को इसकी परवाह नहीं थी|

मैं जानती थी कि शाम को जब वह घर लौटे थे तब तो मैंने उनको एक हस्तमैथुन देकर के उनकी थकान और तनाव को तो दूर कर दिया था लेकिन जो भी हुआ था वह बहुत जल्दी हुआ था जिसकी वजह से थोड़ी देर के लिए बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ तो शांत हो गए थे; पर मैंने जो किया था उसकी वजह से मैं जानती थी कि उनके अंदर की कामवासना की आग को मैंने और भड़का दिया है|

उन्होंने अपनी लुंगी उठाकर अपनी जांघों को नंगा करके वहां हल्के हल्के थपकी मार के मुझे अपनी जानू पर बैठने का इशारा किया मैं मुस्कुराती हुई उनके पास आई औरउनकी जांघों के ऊपर बैठने को गई; लेकिन उन्होंने मुझे रोक लिया और फिर बोले, " ऐसे नहीं पीयाली, अपनी साड़ी को अपने कमर के ऊपर उठा कर तो मेरी गोद में बैठ"

उस वक्त कमरे में सिर्फ नीले रंग का एक नाइट बल्ब जल रहा था पर उसकी रोशनी में सब कुछ साफ साफ दिखाई दे रहा था| उन्होंने जैसा कहा मैंने बिल्कुल वैसा ही किया और फिर अपनी बाहों उनको अपनी आगोश में ले लिया|

'अफ़रोडिसियक' (कामोत्तेजक दवाई) अपना असर दिखाने लगी थी इसलिए उनकी बदन का छुअन पाते ही मेरे अंदर भी एक अजीब तरह की सनसनी दौड़ गई|

बाबा ठाकुर ने बड़े प्यार से मेरा आंचल मेरे सीने से हटा दिया और मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से को बुरी तरह नंगा कर दिया और उसके बाद बड़े प्यार से मेरे बदन को सहलाने लगे| पता नहीं क्यों मुझे उनका स्पर्श और मुझे इस तरह से प्यार करना बहुत ही अच्छा लगने लगा था... मेरी सांसे धीरे-धीरे गहरी और लंबी होती गई और उनके साथ मेरे स्तन जुगल ऊपर नीचे होने लगे|

मुझे मालूम था मेरी ऐसी प्रतिक्रिया जो कि बिल्कुल प्राकृतिक थी, देखकर बाबा ठाकुर पंडित गीत नाथ मन ही मन बहुत ही खुश हो रहे थे... शायद में उनकी मन की बात पढ़ पा रही थी; उन्हें ऐसा लग रहा था कि वह मेरे अंदर कामवासना की आग को भड़काने का जो प्रयास कर रहे थे उसमें वह सफल भी हो रहे थे|

उसके बाद बाबा ठाकुर ने मेरे बालों में अपनी उंगलियां चलाना शुरू कर दिया और उसके बाद मुझे खूब प्यार करने लगे... वह मुझे चूमने लगे... मेरे गालों पर... होठों पर... आंखों की पलकों पर... उन्होंने मुझे एक हाथ से पकड़ रखा था और अपने दूसरे हाथ से वह मेरे कोमल जांघों पर हाथ फेरते हुए मेरी यौवन सुधा का का स्वाद लेने लगे...

अब तक पूरा कमरा सुगंधित मोमबत्ती की खुशबू से पूरी तरह भर चुका था...

"अपनी साड़ी उतार कर तो पूरी तरह नंगी हो जा, पीयाली" बाबा ठाकुर ने मुझसे कहा|

मैं समझ गई कि बाबा ठाकुर पूरी तरह गर्म हो चुके हैं|

मैंने सर झुकाए मुस्कुराकर कहा, "जी बाबा ठाकुर"

यह कहकर मैं उठकर उनके सामने खड़ी हो गई और उनकी तरफ पीठ करके धीरे-धीरे अपनी साड़ी उतारने लगी| और फिर उसको अच्छी तरह से तह करके अपने सीने के पास उसे पकड़ कर धीमे कदमों से मैं उनके पास आई; बाबा ठाकुर ने तब तक अपनी लूंगी उतार दी थी| उनका लिंग बिल्कुल खड़ा और सख्त हो चुका था| उन्होंने खड़े होकर मुझे अपने आगोश में ले लिया... मेरे अंदर एक जानी पहचानी सी अनुभूति हुई... मेरे पीठ के निचले हिस्से में मैंने उनके लिंग का स्पर्श साफ महसूस किया... उनके लिंग का सुपाड़ा हल्का हल्का गिला हो चुका था... उनके बालों भरी छाती से जैसे ही मेरे स्तन छुए... न जाने क्यों मैं एकदम कांप उठी... और साथ ही में भी उनसे लिपट गई और अनजाने में ही मैंने उनके सीने से अपने स्तनों को दाएं बाएं घिसना शुरू कर दिया... और अपने कोमल गाल उनकी दाढ़ी से... ऐसा मुझे बहुत अच्छा लग रहा था... उसके बाद ना जाने क्यों मेरे मन में ख्याल आया कि मैं उनके आलिंगन से मुक्त हुई... और उनके आगे घुटने टेक कर बैठ गई|

पर जब मैं धीरे-धीरे बैठ रही थी तब मैंने अपनी जीभ की नोक से उनकी दाढ़ी, गला. छाती और पेट को अपनी जीव से एक तूलिका की तरह फिरती हुई बैठी थी... मैं अपने बॉयफ्रेंड टॉम के साथ ऐसा ही करती हूं और मैं जानती हूं उसे यह बहुत अच्छा लगता है... और मेरा अंदाजा बिल्कुल सही है कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को भी यह सब बहुत अच्छा लग रहा होगा... बाबा ठाकुर बिल्कुल सांस शुरू कर एक एक पल का उपभोग कर रहे थे…

अब उनका लिंग बिल्कुल मेरे मुंह के सामने था... और मैंने मौका नहीं गंवाया... मैंने अपने जीभ की नोक से उनके खड़े और चिपचिपे लिंग के सूपड़े को हल्का-हल्का उकसाने लगी|

"मेरी गुस्ताखी माफ कीजिएगा, बाबा ठाकुर" यह कहकर मैंने उनके लिंग के सिरे का चमड़ा पीछे की तरफ खींच दिया और उनके लिंग के सूपड़े को अपनी जीभ की नोक से चाटने लगी| मुझे एक अजीब सी जानी पहचानी गंधआ रही थी... यह गंध पसीना और अनजाने में ही हल्का-हल्का निकलने वाला वीर्य का था... मैं अपनी मुट्ठी में उनका लिंग पकड़कर धीरे-धीरे मिथुन करने लगी... बाबा ठाकुर खड़े-खड़े अपना चेहरा ऊपर की तरफ उठाए शायद किसी स्वर्गीय आनंद का मजा ले रहे थे... और उनके मुंह से हल्की हल्की आंहें निकल रही थी, "आहा हा हा हा..."

उन्होंने अपना लिंग मेरे मुंह से निकालने की कोई इच्छा जाहिर नहीं की... मैं समझ गई थी कि मेरा इस तरह से उनको मुख मेहन की सेवा देना बहुत अच्छा लग रहा था... और पता नहीं क्यों मुझे भी ऐसा लग रहा था कि आज अगर मैंने उनको अच्छी तरह से खुश कर दिया तो शायद वह भी मुझे बहुत अच्छी तरह से खुश कर देंगे| इसलिए मैंने उनको मुख मेहन देना जारी रखा... और बीच-बीच में अपने दांतो से उनके लिंग को हल्का हल्का काटती भी रही... वैसे तो इस खेल में वक्त आने पर टॉम अपना वीर्य स्खलित करके मेरा पूरा मुंह भर देता था... ऐसा आज शाम को बाबा ठाकुर के साथ भी हुआ था... अब दिखती हूं कि बाबा ठाकुर क्या इस बार करते हैं?

चुपके-चुपके मैं जो रम के दो घूंट पी गई थी और साथ ही मैंने 'अफ़रोडिसियक' (कामोत्तेजक दवाई) की एक गोली भी खाली थी... अब मुझे उसका हल्का-हल्का असर महसूस होने लगा था... मुझे थोड़े-थोड़े चक्कर आ रहे थे| लेकिन मैं जानती थी कि इस वक्त में ड्यूटी पर हूं मुझे बिल्कुल जागरूक रहना पड़ेगा... नशे के असर से निढाल होकर सो जाने से नहीं चलेगा...

मैं एक तरह की ताल में ताल मिलाकर अपने मुंह के अंदर बाबा ठाकुर का जन्म लेकर अपने हाथ की मुट्ठी से उनका मैथुन कर रही थी... कि अचानक मेरे मुंह के अंदर बाबा ठाकुर के लिंग से उनके वीर्य का एक विस्फोट जैसा हुआ... और मेरा मुंह पूरी तरह से भर गया| मैं अनजाने में ही काफी सारा वीर्य निकल गई और बाकी मेरे होठों के कोणों से टपकने लगा|

बाबा ठाकुर ने गहरी सांस छोड़ी... आज शायद उन्हें एक नई तरह की सुखस का एहसास हुआ होगा... न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि उन्हें इस पर का इंतजार शायद तब से था जब से उन्होंने मुझे पहली बार देखा था, भले ही इस बीच बाबा ठाकुर मेरे साथ प्राकृतिक संभोग कर चुके थे; लेकिन उन्हें उस सुख का अभी तक एहसास नहीं हुआ था जिसकी वह आशा कर रहे थे और ना ही मुझे ऐसा मौका मिला था कि मैं उनको यह सेवा प्रदान कर सकूं...

कुछ देर तक बाबा ठाकुर बिल्कुल शांत होकर खड़े रहे... शायद वह अपने चरम सुख प्राप्ति के हर पल को भोग रहे थे...

लेकिन मेरा माथा ठनका, मुझे झपकी सी आने लगी थी... मेरा सर चकरा रहा था... जहां तक मुझे मालूम है; बाबा ठाकुर आज ही ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा को पूरा पेमेंट करके आए हैं... ऐसे हालात में अगर नशे में लुढ़क गई... तो यह बिजनेस के लिए अच्छा नहीं होगा|

मैं बिल्कुल निश्चित होकर यही सब सोच रही थी कि अचानक बाबा ठाकुर ने मेरे बालों को अपनी मुट्ठी में पकड़कर मुझे बलपूर्वक खड़ा किया... और मेरे चेहरे पर ताबड़तोड़ दो थप्पड़ जड़ दिया... थप्पड़ की वजह से मुझे जो झपकी सी आ रही थी वह तो दूर हो गई है पर मैं असंतुलित होकर बिस्तर पर धड़ाम से गिर पड़ी...

मैं आंखों में आंसू दिए हक्की बक्की होकर उनकी तरफ देख रही थी और मैंने देखा कि वह भी बिल्कुल अचंभित होकर मेरी तरफ देख रहे थे...

क्रमशः
 
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