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Adultery बाबा ठाकुर (ब्लू मून क्लब- भाग 2)

कहानी का कथानक (प्लॉट)

  • अच्छा

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  • बहुत बढ़िया

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naag.champa

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बाबा ठाकुर
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(ब्लू मून क्लब- भाग 2)
~ चंपा नाग ~
अनुक्रमणिका

अध्याय १ // अध्याय १ // अध्याय ३ // अध्याय ४ // अध्याय ५
अध्याय ६ // अध्याय ७ // अध्याय ८ // अध्याय ९ // अध्याय १०
अध्याय ११ // अध्याय १२ // अध्याय १३ // अध्याय १४ // अध्याय १५
अध्याय १६ // अध्याय १७ // अध्याय १८ // अध्याय १९ // अध्याय २०
अध्याय २१ // अध्याय २२ // अध्याय २३ // अध्याय २४ // अध्याय २५
अध्याय २६ // अध्याय २७ // अध्याय २८ // अध्याय २९ // अध्याय ३०
अध्याय ३१ // अध्याय ३२ (समाप्ति)


प्रिय पाठक मित्रों,

बड़ी उत्साह के साथ और बड़ी खुशी के साथ मैं आपके लिए एक नई कहानी प्रस्तुत करने करने जा रही हूं| इस कहानी को मैंने बहुत ही धैर्य से और बड़े ही विस्तार से लिखा है| आशा है कि यह कहानी आप लोगों को मेरी लिखी हुई बाकी कहानियों की तरह ही पसंद आएगी क्योंकि इस कहानी को लिखने का मेरा सिर्फ एकमात्र ही उद्देश्य है वह है कि अपने पाठक बंधुओं का मनोरंजन करना|

मुझे आप लोगों के सुझाव, टिप्पणियां, कॉमेंट्स और लाइक्स का बेसब्री से इंतजार रहेगा|
PS और अगर अभी तक आप लोगों ने इस कहानी का पहला भाग नहीं पड़ा हो तो जरूर पढ़िएगा| पहले भाग का लिंक नीचे दिया हुआ है
ब्लू मून क्लब (BMC)

~ चंपा नाग ~



यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है और इसका जीवित और मृत किसी भी शख्स से कोई वास्ता नहीं। इस कहानी में सभी स्थान और पात्र पूरी तरह से काल्पनिक है, अगर किसी की कहानी इससे मिलती है, तो वो बस एक संयोग मात्र है| इस कहानी को लिखने का उद्देश्य सिर्फ पाठकों का मनोरंजन मात्र है|
 
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अध्याय २१



बाबा ठाकुर के कहे अनुसार मैं जमीन पर उकडू होकर बैठ गई- उनका कहना था कि वह सदा सर्वदा ऐसे ही बैठकर गांजा पिया करते थे और उन्हें यही अच्छा लगता है| इसलिए मैं उनकी तरफ मुंह करके ऐसे ही बैठ गई| उन्होंने गांजा की चिलम का एक लंबा सा कश लिया और उसका धुंआ उन्होंने मेरे मुंह पर छोड़ा... लगता है गांजा बहुत ही महंगी किस्म कथा इसलिए उसकी गंध मीठी और मादक थी| मैं आंखें मूंदे बैठी रही|

इतने में बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ अपनी एक हाथ से मेरे स्तन की एक चूची को अपनी दो उंगलियों से हल्के हल्के मलने लगे मैंने अपनी टांगों को और फैलाकर कर बैठ गई और अपनी छाती को थोड़ा ऊपर उठा दिया ताकि उनके हाथ मेरे स्तनों तक अच्छी तरह पहुंच सके|

"तू तो एकदम अच्छी लड़की... एकदम मीठी लड़की है... साक्षात कामधेनु", बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मेरे बालों पर हाथ फेरते हुए बोले, "तू तो सिगरेट पीती है; अब जरा बाबा के इस प्रसाद के दो- तीन कश मार के दिखा तो?"

मैंने बाबा ठाकुर के हाथ से गांजा का चिलम लिया और उन्हीं की देखा देखी मैंने उससे एक लंबा सा कश लिया| लेकिन सिगरेट की तुलना में मेरे अंदर काफी शरद हुआ चला आया और उसकी वजह से एकदम से मेरे गले, सीने और नाक में जैसे एक धक्का सा लगा... और मैं खास नहीं लगी"

बाबा ठाकुर हंसते हुए मेरे बालों को सहलाते हुए बोले,"धीरे से लौंडिया धीरे से... यह तेरे शहर का सिगरेट नहीं है यह गांव का देसी चिलम है धीरे-धीरे पिया कर... हल्के हल्के एक लंबा सा कष्ट ले और उसके बाद धुआं अपने नाक से निकाल... मैं चाहता हूं कि तुझे इस चीज का नशा हो जाए ताकि जब मैं तेरे साथ गुदामैथुन करूं तो तुझ जैसी मीठी मीठी प्यारी प्यारी और कोमल सी लड़की को ज्यादा तकलीफ ना हो"

जैसा बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने बताया था ठीक वैसे ही मैं चिलम का कश लेने लगी| इससे पहले मैंने कभी गांजा नहीं पिया था इसलिए दो या तीन कस के बाद ही मेरा सर चकराने लगा और उसके बाद उस समझने से पहले ही मैं उनके ऊपर लुढ़क गई... पहले शराब उसके बाद 'अफ़रोडिसियक' (कामोत्तेजक दवाई) और फिर सुगंधित मोमबत्ती की मीठी मीठी खुशबू और उसके ऊपर यह गांजा... शायद मेरा शरीर और बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था...

बाबा ठाकुर गांजे का चिलम मेरे हाथ से लेकर जमीन पर रखकर मुझे अपनी बाहों में उठा लिया मुझे पलंग पर मेरे दोनों हाथ और दोनों पैर फैला कर लेटा दिया और उसके बाद मेरे गर्दन के नीचे हाथ रख कर उन्होंने मेरा सर उठाया और मेरे लंबे बालों को तकिए के ऊपर बड़े प्यार से फैला दिए... मैं एकदम निढाल होकर पड़ी हुई थी मेरे अंदर कुछ करने या फिर हिलने डुलने की भी ताकत नहीं थी लेकिन मैं देख रही थी कि वह मुझे बड़ी ललचाई आंखों से देख रहे थे...

उसके बाद बाबा ठाकुर अपना चिलम उठा कर ले आए और पलंग पर मेरे बगल में कुकड़ो होकर बैठ गए और उसके बाद वह अपने चिलम से लंबे लंबे कश लेने लगे और फिर मेरे नंगे बदन पर धुआं छोड़ने लगे... मेरे बालों पर, चेहरे पर, स्तनों पर, योनि पर... मैं बाबा ठाकुर के प्रशासन औरतें सुमन मुझे से महसूस करने लगी|

मुझे मालूम था कि कमरे की मंद नीली रोशनी में वह मेरे नंगे बदन कि हर वक्र रेखा और उतार-चढ़ाव को साफ-साफ देख पा रहे थे और मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद वह आंखों से ही मेरे बदन की यौवन सुधा की आभा को पी रहे थे और मुझे अपने गांजे के धुंए से नहलाते जा रहे थे...

गांजे के नशे और धुंए से मुझे थोड़ी परेशानी हो रही थी इसलिए मैं अपना सर दाएं से बाएं फेर रही थी और मेरा बदन कसमसा रहा था... मर्द को और क्या चाहिए? फिलहाल मैं तो के सामने एक नंगी जिंदा पुतली जैसी हूं ना... शायद इसीलिए वह मेरे अंग और प्रत्यंग मैं अपने हाथ फिरने लगे... न जाने क्यों मेरी गहरी सांसो से उठते गिरते स्तनों के जोड़े को बहुत अच्छे लग रहे थे इसलिए उन्हें बड़े प्यार से सहला रहे थे... और उन्हें चूस रहे थे....लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था शायद उनका मन नहीं भर रहा इसलिए कुछ देर बाद ही उन्होंने कुछ ऐसा किया जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी... वह उठकर मेरे कोमल अंगों में अपना लिंग फेरने लगे... शायद वह मेरे बदन पर अपनी मर्दानगी और अपने हक गायक छाप छोड़ना चाह रहे थे|

वह जब भी अपना लिंग मेरे मुंह के पास ले आते मैं हल्के हल्के उनका लिंग अपने दांतों से काट काट कर चुस्ती रही थी... थोड़ी देर बाद मुझे भी उनकी ये हरकत बहुत अच्छी लगने लगी मेरे अंदर भी वासना की आग भड़कने लगी... नशे की वजह से शायद मैं कुछ कह नहीं पा रही थी लेकिन मैं बार-बार अपना कमर उसका रही थी... मुझे इस तरह छटपटाते देखकर शायद बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को एक अनजानी ख़ुशी का एहसास हो रहा था... मैं ठहरी एक नवयौवना और बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ एक परिपक्व पुरुष... लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि किसी पराई औरत के अंदर ऐसी कामाग्नि जलाकर शायद वह एक अद्भुत कार्य सिद्धि की तृप्ति का अनुभव कर रहे थे|

मेरी जुबान लड़खड़ा रही थी फिर भी मैंने बड़ी मुश्किल से कहा, "बाबा ठाकुर... मुझ पर दया कीजिए... भोगिए मुझे... चोद दीजिए मुझे"

"थोड़ा सा सबर कर... मेरी कामधेनु, अभी मेरा मन नहीं भरा... संभोग से पहले मैं तेरे बदन के साथ थोड़ा और खेलना चाहता हूं... उसके बाद मैं तेरे साथ पहले गुदामैथुन करूंगा और उसके बाद प्राकृतिक मैथुन यानी कि तेरी योनि मेंअपना लिंग डालकर मैथुन ..."

अब मारे नशे के या फिर कामोत्तेजना के यह तो पता नहीं, पर मैं फूट-फूट कर रोने लगी और उससे रहा भी जा रहा था... इसलिए मैंने किसी तरह से उठने की कोशिश की और फिर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को जकड़ कर अपने ऊपर लेटाने की कोशिश की... लेकिन उन्होंने मुझे बलपूर्वक दोबारा बिस्तर पर लेटा दिया और इस बार हल्के हल्के मेरे गालों पर दो थप्पड़ मार कर अपने होठों पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया और फिर हाथ से दोबारा होने इशारे से मुझे बताया थोड़ा इंतजार कर...

उनका इस तरह से मुझे मारना भी मुझे बहुत अच्छा लग रहा था पर मैं चाह कर भी अपने आप को रोक नहीं पा रही थी मैं बिलक बिलक कर रोने लगी|

"उफ्फ! लगता है मुझे शांति से थोड़ा सा प्रसाद का (गांजे का) मजा भी नहीं लेने देगी..." यह कहकर बाबा ठाकुर मेरी जांघों के ऊपर बैठकर मेरी योनि के अधरों को अपनी उंगलियों से थोड़ा सा खोलकर "जय गुरु" बोलते हुए अपना खड़ा और फौलादी लिंग मेरी योनि के अंदर डाल दिया... लेकिन उन्होंने मैथुन करना शुरू नहीं किया... फिर कुछ भी हो, मुझे थोड़ी शांति तो मिली पर फिर भी मुझसे रहा नहीं जा रहा था... मैं रह रह कर अपनी कमर को ऊपर उठाने की कोशिश कर रही थी... पर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मस्त होकर सिर्फ अपने चिलम के कश लिए जा रहे थे... मैंने फिर से एक दो बार अपनी कमर को ऊपर उठाने की कोशिश की लेकिन जैसे किसी बच्चे को हल्का सा मारकर बड़े लोग उन्हें अनुशासित करते हैं ठीक वैसे ही उन्होंने मेरे दोनों गालों पर हल्के हल्के तमाचे जड़कर मुझे डांटते हुए कहा, "तो फिर वैसा कर रही है मैंने कहा ना, मुझे थोड़ा मजे लेने दे"

मुझे उनका इस तरह से मारना पीटना भी बहुत अच्छा लग रहा था... और बाबा ठाकुर बड़ी शांति के साथ सिर्फ अपने चिलम के कश लिए जा रहे थे|

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उनका चिलम पीना आखिरकार खत्म हुआ| उन्होंने मेरी योनि के अंदर से अपना लिंग बाहर निकाल कर पलक से उतरकर खड़े हो गए| जब तक वह गांजा पी रहे थे; तब तक उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि के अंदर डाल रखा था और बड़े ताज्जुब की बात है कि दूसरे मर्दों की तरह उनका लिंग बिल्कुल निढाल नहीं हो गया था... पता नहीं क्या यह गांजा पीने का असर था या फिर बाबा ठाकुर की यह खास काबिलियत थी|

मैंने सिसकते हुए अनजाने में ही उनकी तरफ अपना हाथ बढ़ाया| वह इतनी देर तक मेरी योनि में सिर्फ अपना लिंग डालकर बैठे हुए थे- इससे भी मुझे थोड़ी बहुत संतुष्टि मिल रही थी लेकिन अब आगे क्या होगा?

इसका जवाब मुझे जल्दी ही मिल गया बाबा ठाकुर खुद अपने कूल्हों को थपथपाते हुए बोले, "हां अब वक्त आ गया है..."

यह कहकर उन्होंने मुझे बालों से पकड़कर बिस्तर पर बिठा दिया और अपना खड़ा और सख्त लिंग मेरे मुंह में डाल दिया| मैं समझ गई थी कि अब वह मेरे साथ गुदामैथुन करने वाले हैं... पर मैं भी काफी उत्तेजित थी इसलिए मैं दुनिया भर की शर्मो हया और घृणा छोड़कर उनके लिंग के सिरे के चमड़े को पीछे किसका कर जितना हो सके उनका लिंग अपने मुंह में लेकर... पूरे दम के साथ चूसने लगी|

आखिरकार बाबा ठाकुर ने अपना लिंग मेरे मुंह से निकाल लिया... मैं समझ गई कि अब वक्त आ गया है|

मैं बिस्तर पर उनकी तरफ पीठ करके घुटनों के बल बैठ गई और अपने हाथ पीछे कर दिए| बाबा ठाकुर मेरा इशारा समझ गए| वह जल्दी जल्दी कमरे से लगे बाथरूम में गए और वहां रखे एक गमछे को उन्होंने बाल्टी के पानी में डुबोकर भिगो दिया और उसके बाद उसे फाड़ फाड़ कर उसके कई लंबे-लंबे टुकड़े किए|

गीले गमछे का एक टुकड़ा उन्होंने मेरे मुंह में ठूंस दिया और फिर ऊपर से मेरे मुंह पर एक पट्टी बांधी है| मैंने अपने हाथ पीछे कर रखे थे, तो उन्होंने मेरे हाथ और पैर दोनों बाँध दिए और फिर उन्होंने मेरा सिर बिस्तर पर टिका दिया| मैं घुटनों के बल थी जिसकी वजह से मेरे कूल्हे उठे हुए थे|

मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा| उनका लिंग चूसते वक्त मुझे इस बात का अंदाजा हो गया था कि उनका लिंक कितना सख्त और दृढ़ है और अब थोड़ी ही देर में बाबा ठाकुर यह चीज मेरे मलद्वार के अंदर घुसाने वाले थे... मैं मारे उत्तेजना और पूर्वानुमान के फिर से रोने लगी... लेकिन शायद बाबा ठाकुर जानते थे उन्हें क्या करना है... शायद उन्हें पहले से पता था कि ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने उनके लिए सारा इंतजाम कर रखा है| इसलिए उन्होंने मेरे बैग का सामने का चेन खोला और अंदर खंगाल कर एक क्रीम का ट्यूब निकाल कर उसमें से जेल निकालकर मेरे मलद्वार पर लगाने लगे और लगाते लगाते उन्होंने अपनी एक उंगली मेरे मलद्वार के अंदर डाल दीया| स्क्रीन की वजह से मेरे मलद्वार बाहरी और अंदरूनी हिस्सा बिल्कुल चिकना चिकना और फिसलाऊ हो गया था पर मुझे ऐसा लग रहा था कि बाबा ठाकुर शायद इस बात का अंदाजा लगा रहे हैं कि मेरा मलद्वार कितना तंग है... एहसास जैसे कि मानो मेरी उत्तेजना को बिल्कुल चरम सीमा पर ले गया... बाबा ठाकुर मेरी ऐसी हालत देखकर मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे| उसके बाद वो रुक गए और फिर मैंने अंदाजा लगाया कि उन्होंने अपने लिंग पर एक कंडोम चढ़ा लिया और फिर उन्होंने मेरी कमर को कस कर पकड़ा... कमरे की सारी खिड़कियां- बाहर को खुलने वाली और अंदर को खुलने वाली सब के सब खुली हुई थी| बाहर आसमान में बादल छाए हुए थे हल्की-हल्की बिजली चमक रही थी| ठंडी हवाओं के झोंकों से कमरे के परदे उड़ रहे थे... पर अचानक जैसे सब कुछ शांत हो गया... मैं अब तक छटपटा रही थी और फिर मैं एकदम स्थिर हो गई... उन्होंने अपने लिंग का सिरा मेरे मलद्वार पर छुआया... मेरा सारा बदन कांप उठा... उन्होंने फिर मेरे को ठोको पकड़ कर मेरा मलद्वार के अंदर अपना सुडौल, लंबा, मोटा और एक भाले की तरह खड़ा लिंग अंदर खूब दिया घोंप दिया... मैं मारे दर्द के जोर से चीख उठी... और बाहर बड़ी तेज बिजली चमकी और बादल भी बड़े जोर से गरज उठे|

अब तक मैंने सुना ही था कि डोम पट्टी में सूअरों का किस तरह से वध किया जाता है... अब मुझे उसका पूरा पूरा अंदाजा हो चुका था... बाबा ठाकुर ने अपना लिंग मेरे मलद्वार के अंदर और थोड़ा घुसा दिया... मैं और जोर से चीख उठी...

मुझे क्या मालूम था कि कमरे एक खिड़की जो अंदर की तरफ खुलती है उसके बाहर बिल्कुल नंगी और उकडू होकर बैठी हुई आरती अब तक हम दोनों की कामलीला पर्दे को थोड़ा सा हटा कर देख देख कर अपनी योनि में उंगली कर रही थी... लेकिन मेरी चीख सुनकर उसने भी हाथ जोड़कर प्रार्थना शुरू कर दी...

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ एक-दो मिनट बिल्कुल बिना हिले दुले चुपचाप वैसे ही बैठे रहे... शायद वह मुझे संभालने का मौका दे रहे थे| और उसके बाद उन्होंने अपनी मैथुन लीला शुरू कर दी और मेरा पूरा बदन उनके धक्कों डोलने लगा... मैं सुख और दर्द के बीच का भेदभाव नहीं कर पा रही थी... मेरे मुंह से बस एक दबी हुई थी आवाज ही निकल रही थी, "उम्मम्मम ममममम" और मुझे मालूम था कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ बिल्कुल मैथुन होकर मिथुनलीला किए जा रहे थे... कुछ देर बाद मुझे भी यह सब बहुत ही अच्छा लगने लगा...

क्रमशः
 

naag.champa

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अध्याय २२


मैं जरूर बेहोश हो गई थी|

इसलिए मुझे यह याद नहीं कि कितनी देर तक बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने मेरे साथ गुदामैथुन किया और कब उन्होंने मेरे हाथ पैर के बंधन खोलकर बिस्तर पर सीधा लेटा दिया था|

बस मुझे हल्का-हल्का याद है कि उन्होंने मुझे पानी पिलाया था और उसके बाद उन्होंने शायद दो बार मेरे साथ और संभव किया था- प्राकृतिक संभोग; यानी मेरी योनि में अपना लिंग डालकर मैथुन लीला|

हां अब मुझे याद आ रहा है शायद ऐसा ही हुआ था... और उनके गरम-गरम वीर्य से मेरी योनि पूरी तरह से लबालब भर गई थी| मैं एक अजीब सी शांति का एहसास कर रही थी... इसलिए मैं फिर से कब सो गई (या फिर बेहोश हो गई) यह मुझे याद नहीं... उसके बाद फिर मुझे ऐसा लगने लगा कि शायद मैं सपना देख रही हूं... बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मेरे ऊपर लेटे हुए थे और मुझे जी भर के प्यार कर रहे थे| मुझे चुम रहे थे चाट रहे थे|

उनका लिंग शायद आज शांत नहीं हो रहा था... न जाने उन्हें आज क्या हो गया था... एक उत्तेजित और पढ़े हुए लिंग का यथा स्थान एक स्त्री की योनि के अंदर होता है... और बाबा ठाकुर का लिंग वही आश्रित था- मेरी योनि के अंदर... फिर मुझे उनके शरीर की गंध आने लगी... और उनका वजन अपने बदन के ऊपर महसूस करने लगी... नहीं यह सपना नहीं है, हकीकत है|

बाबा ठाकुर पंडित की एकनाथ और मेरा यौनांग संयुक्त तथा... मैंने मदहोशी में उनको अपनी बाहों में जकड़ लिया और उनके गालों से अपने गाल को घिसने लगी... बाबा ठाकुर भी खुश होकर फिर से अपनी कमर को नचाने लगे... उनकी मैथुन लीला काफी देर तक चली... मेरे अंदर कामना के विस्फोट के बाद विस्फोट होते गए... और फिर उन्होंने अपने वीर्य का सैलाब मेरी योनि के अंदर एक टूटे हुए बांध के पानी की तरह छोड़ दिया... न जाने क्यों मुझे लग रहा था इस बार भी उनके वीर्य की मात्रा बहुत ज्यादा है... मैं पूरी तरह से संतुष्ट और निढाल हो चुकी थी|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ और मैं उसके बाद एक दूसरे की बाहों में बाहें डाल कर सो गए| उस वक्त शायद सुबह के 4:00 बज रहे थे|

समय कितनी जल्दी बीत गया इसका पता ही नहीं चला| बाथरूम में नल चलाकर बाल्टी भरने की आवाज से मेरी नींद खुली| बाबा ठाकुर उठ गए थे| खिड़कियों से सुबह की हल्की-हल्की रोशनी आ रही थी और कमरे की नीली बत्ती भी चल रही थी|

मैंने आंखें खोलकर देखा बाबा ठाकुर बाथरूम से बाहर निकल कर आए लेकिन उनका लिंग तभी भी खड़ा हो रखा था| मैं थोड़ा सा उठकर अधलेटी की अवस्था में उनसे पूछा, "बाबा ठाकुर, आप उठ गए हैं?"

"हां पीयाली, और मैं सोच रहा था कि मैं तुझे भी उठा दूं"

मैं समझ गई कि वह मुझे क्यों उठाना चाहते थे|

"जी ठीक है, मैं उठ गई पर आपका लिंग तो अभी भी खड़ा है..." यह कहकर मैंने मुस्कुराते हुए अपना सर झुका दिया और फिर अपनी दोनों राहों को फैलाकर बिस्तर पर चित्त होकर लेट गई|

बाबा ठाकुर ने भी ज्यादा देर नहीं की... वह भी बिस्तर पर उठ कर आए और मेरे ऊपर लेट गए और फिर अपना लिंग मेरी योनि में डाल दिया| मैं आंखें मूंदकर उनके होठों को चूमती रही और बाबा ठाकुर फिर से गुदा मैथुन में लीन हो गए|

कमरे में कामदेव जैसे ताली बजाने लगे क्योंकि मैथुन की आवाज आ रही थी- थप! थप! थप! थप! थप!

***

जब मेरी आंख खुली मैंने देखा कि दिन चढ़ा आया है| बाहर धूप खिली हुई थी| पर कमरे की खिड़की दरवाजे बंद थे| उसके बाद मुझे एहसास हुआ कि मैंने सिर्फ बदन पर साड़ी लपेट रखी है... सारी रात तो मैं बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के साथ बिल्कुल नंगी थी; मैंने यह साड़ी कब पहनी मुझे याद नहीं|

इसका जवाब मुझे जल्दी ही मिल गया| आरती एकदम एक फुल स्पीड में धड़धड़ा कर आती हुई स्टीम इंजन की तरह कमरे के दरवाजों के किवाड़ों को झटके के साथ खुलती हुई दाखिल हुई और मैं उसको बिस्तर पर लेटी हुई आंखें फाड़ फाड़ कर देख रही थी|

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"ही ही ही ही ही ही", आरती खिलखिला कर हंसती हुई बोली, "पीयाली दीदी... तुम उठ गई हो... सुबह मैं जब कमरे में झाड़ू लगाने आई थी... तब मैंने देखा कि तुम बिल्कुल नंगी लेटी हुई हो... और बाबा ठाकुर ने तुम्हारा बदन सिर्फ एक चादर से ढक रखा था... मैंने तुमको उठा कर तुम्हारे बदन पर किसी तरह यह साड़ी लपेट दी है... लेकिन शायद तुम्हारा नशा नहीं उतरा था… तुम तो कभी इधर लुढ़क रही थी तो कभी उधर... ही ही ही...."

मैंने बंगाली में कहा, "धुर! पाजी मेये (धत! बदमाश लड़की)"

"ही ही ही", आरती थोड़ा सा खिलखिला कर हंस कर फिर रुक गए और मैंने गौर किया शायद उसका नाक थोड़ा सिकुड़ सा गया है फिर उसने कहा, " एक बात कहूं पीयाली दीदी, कल रात को मैंने देखा था कि बाबा ठाकुर तुम्हारे ऊपर लेट कर उनको बहुत प्यार कर रहे हैं| ऐसा लग रहा था कि तुम्हारे पूरे बदन को बिल्कुल आटे की तरह गूँथ रहे हैं... और फिर मैंने यह भी देखा उन्होंने तुम्हारी गूद (योनि) मैं अपना लिंग डालकर अपनी कमर ऊपर नीचे ऊपर नीचे कर रहे थे... उन्होंने तुम्हारे अंदर अपना काफी सारा सड़का (वीर्य) छोड़ा होगा... अब मुझे पक्का यकीन है- जल्दी ही तुम्हारे पेट में बच्चा हो जाएगा" यह कहकर बड़े उत्साह और आनंद के साथ आरती मुझसे लिपट गई; लेकिन फिर एक झटके के साथ मेरे से अलग होकर उसने मुझसे अपनी नाक को पूरी तरह से सिकुड़ कर कहा, " पर एक बात कहूं किया कि पीयाली दीदी; तुम्हारे बदन से बदबू आ रही है... एकदम गांजा जैसी और तुम्हारा बदन पीके सर चिपचिपा चिपचिपा सा लग रहा है"

मुझे याद आ गया की पिछली रात बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मेरे पूरे बदन को झूम रहे थे और चाट रहे थे| बड़े मजे से मेरे पूरे शरीर में अपने चिलम का कश लेकर मेरे पूरे बदन में छोड़ रहे थे और साथ ही अपना लिंग मेरे बदन के जहां-तहां एक रंग भरने के ब्रश की तरह फेर रहे थे... इसलिए मेरे बदन से बदबू आना बिलकुल स्वाभाविक था|

मैंने पूछा, "बाबा ठाकुर कहां है?"

"वह पूजा कर रहे हैं"

"ठीक है मैं झटपट नहा लेती हूं"

मैंने बाबा ठाकुर से वादा किया था कि मैं आज अपने बालों में शैंपू करूंगी ताकि मेरे बाल फिर कुछ फूले फूले से रहें; इसलिए अच्छी तरह से मैंने अपने बालों में शैंपू किया| अपने हाथों और पूरे बदन को अच्छी तरह से साबुन लगाकर रगड़ रगड़ कर साफ किया... एक बार नहीं दो बार और उसके बाद मैं सिर्फ एक साड़ी लपेट कर अपने बालों को तौलिए से पोंछती हुई बाथरूम से बाहर आई|

बाहर आते ही मैंने देखा की आरती अपने हाथों में कंघी लिए मेरा इंतजार कर रही है|

"पीयाली दीदी, बहुत सुंदर दिख रही हो तुम" यह कहकर वह दोबारा मुझसे लिपट गई और फिर मेरे गानों को चूमा और फिर बोली, "अरे वाह! अब तुम्हारे बदन और बालों से कितनी अच्छी खुशबू आ रही है..."

मैंने अपना बैग खोलकर एक बड़े दांत वाली कंगी निकालकर आरती को दिया और फिर मैं बोली, "कल जैसे हल्के हल्के कंघी कर रही थी आज वैसे ही करना"

यह कहकर मैं आरती की तरफ पीठ करके बैठ गई|

आरती में बड़े प्यार से मुझे दुलारते हुए कहा, "पीयाली दीदी तुम अपना आंचल हटा कर बैठो ना, मैं तुम्हारे मम्मो देखती हुई तुम्हारे बालों में कंघी करूंगी"

"आ-हा-हा-हा! लड़की के मिजाज तो देखो? तुझे दोपहर तक का इंतजार नहीं हो रहा क्या?" यह कहकर आरती का मन रखने के लिए मैंने अपना आंचल हटा दिया और मेरा शरीर का ऊपरी हिस्सा बिल्कुल नंगा हो गया| आरती मेरे पीछे बैठकर आईने में मेरा प्रतिबिंब देख कर मुस्कुराती हुई मेरे बालों में हल्के हल्के कंघी करना शुरू की; फिर मैंने उससे पूछा, " अब अचानक अगर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ कमरे में आ गए तो क्या होगा?"

आरती तिरछी नजरों से दीवार पर टंगी घड़ी को देखती हुई बोली, "बाबा ठाकुर को अभी अपना आसन छोड़ने में आधा घंटा और लगेगा- ही ही ही ही ही ही"

फिर बड़े ही आश्चर्य से उसने मुझसे कहा, "हे भगवान! पीयाली दीदी? तुम्हारे बदन में कितनी सारी खरोचें हैं! और मम्मो पर भी- काटने कितने निशान..."

आरती की बातों को सुनकर मेरे हाथ पैर ठंडे पड़ गए|

हां यह सच है कि पिछली रात बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ बहुत ज्यादा काम आतुर हो गए थे| पर मेरे बदन पर इतने दाग देखकर ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा जरूर गुस्सा करेंगी| कुछ भी हो, आखिरकार मैं उन्हीं के हाथ के नीचे काम करती हूं| उनके पाले हुए हॉट गर्ल्स की फायर ब्रिगेड की प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल हूं मैं|

मैंने अपनी सेक्स लाइफ में विविधता लाने के लिए स्वेच्छा से यह रास्ता चुना। उनके मुताबिक, मुझे अपने लंबे घने बालों को खुलकरऔर बिल्कुल नंगी होकर अभी कई और क्लाइंट के बिस्तर पर लेटना होता है और अपनेटांगों को फैलाना है; लेकिन मेरे बदन पर अगर ईद में दाग हुए तो शायद क्लाइंट को अच्छा नहीं लगेगा|

इस धंधे में हर कोई बिल्कुल तरोताजा माल चाहता है- और वह भी बिना किसी दाग-धब्बे के...

मैं सोच में डूबी हुई थी इसलिए कुछ पलों तक कमरे में एक अजीब सी खामोशी से छा गई थी कि इतने में आरती फिर से बोल पड़ी, "पीयाली दीदी, तुम ना जिस तरह से मेरी गूद (योनि) के अंदर उंगली डाल के हिला रही थी- मुझे बहुत अच्छा लग रहा था... आज ना, तुम मुझे अपनी गूद (योनि) मैं उंगली डालने देना... मैं तुम्हें जी भर के प्यार करूंगी... प्लीज तो मना मत करना"

उसकी बातों को सुनकर मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "ठीक है, ठीक है; पर तूने जो इतने बड़े-बड़े नाखून रखे हैं उनको कार्ड जरूर लेना और मेरी गूद (योनि) में उंगली करने के बाद अपने हाथों को अच्छी तरह साबुन से धो लेना|

"हां हां हां; जरूर जरूर जरूर... ही ही ही ही" आरती मेरा जवाब सुनकर बहुत खुश हो गई|

फिर मैंने कहा, "आज बाबा ठाकुर ने मुझे तेरे साथ बाजार जाने की अनुमति दे दी है| आज मैं तेरे लिए कुछ नहीं ब्रा और पेंटी खरीद दूंगी"

"हां हां हां और इसके साथ ही मुझे अपने लिए दो नई नाइटी भी खरीदनी है"

मैंने आश्चर्य के साथ गर्दन घुमा कर उसकी तरफ देखते हुए कहा, "अच्छा एक बात बता बाबा ठाकुर तुझे घर में नाइटी पहनने देंगे?"

नाइटी पहनने से आसानी रहती है... जब मैं और आरती समलैंगिकता मैं मगन हुए रहते हैं उस वक्त अगर जरूरत पड़ी तो जल्दबाजी में सिर्फ नाइटी पहनने में आसानी रहती है लेकिन साड़ी पहनने में वक्त लगता है|

"हां हां हां उसमें कोई दिक्कत नहीं है... तुम हमारे घर आने वाली थी और मुझे तुमको सब कुछ समझाना बुझाना था इसलिए बाबा ठाकुर ने मुझे सिर्फ साड़ी और ब्लाउज पहनकर रहने की हिदायत दी थी... तुम्हें तो सिर्फ साड़ी पहनकर ही रहना है... ब्रा-पेंटी, ब्लाउज-पेटीकोट बिल्कुल नहीं सिर्फ साड़ी"

मेरे चेहरे पर एक आशयपूर्ण मुस्कान खिल गई और मैंने कहा, "हां तूने बिल्कुल सही कहा... मैं तो बाबा ठाकुर के यहां मां बनने के लिए आई हूं"

"हां बिल्कुल ठीक" आरती ने मेरी शीशे में मेरे प्रतिबिंब को देखा और एक पल के लिए हम दोनों की नजरें मिली और फिर आरती खिलाकर हंस पड़ी, "ही ही ही ही ही"

और अब मुझसे भी रहा नहीं गया मैं भी हंस पड़ी, "ही ही ही ही ही ही"


क्रमशः
 

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अध्याय १६



मैं हड़बड़ा कर उठने को गई लेकिन साड़ी में मेरा पैर उलझ गया और मैं जमीन पर धड़ाम से गिर गई... और फिर जब मैंने नजर उठा कर देखा तो पता चला कि कमरे में चुपके चुपके खुद आरती दाखिल हुई थी और मेरे पीछे खड़ी होकर मेरी बातें सुन रही थी|

मुझे बड़ा गुस्सा आ रहा था और हंसी भी आ रही थी| आरती में मुझे उठने में मदद की, "पीयाली दीदी, तुम तो गिर ही गई- ही ही ही" वह हंसने लगी|

मैंने खेल खेल में आरती के कूल्हों पर दो-तीन चाँटे मार कर कहा, "बदमाश लड़की! तू यहां कब से भूतों की तरह खड़ी खड़ी मेरी बातें सुन रही है...? तूने तो मुझे डरा ही दिया था"

"ही ही ही, पीयाली दीदी, तुम तो गिर ही गई"

"हां, तूने मुझे गिरा दिया"

“मैं अकेली नीचे बैठी बैठी बोर हो रही थी... इसलिए मैंने सोचा कि आकर तुम्हारे साथ थोड़ी बहुत बातें कर लूँ" यह कहते कहते आरती एक कंघी लेकर आई| अच्छा ही है नहाने के बाद मैंने अपने बालों में कंघी नहीं की थी इसलिए मैं उसकी तरफ पीठ करके बैठ गई और फिर मैंने कहा, "ठीक है, लेकिन एक बात याद रख लड़की; इस तरह से ताका झांकी करना बुरी बात है..."



"ही ही ही ही ही ही ही", आरती हंस पड़ी, " एक बात बताओ पीयाली दीदी, क्या तुम अपनी मां से बात कर रही थी"

"हां" लगता है इस बदमाश लड़की ने सब कुछ सुन लिया था |

"मैं जानती हूं, कि तुम्हारी मां चाहती हैं कि तुम जल्दी से जल्दी गर्भवती हो जाओ... और मेरी भी यही प्रार्थना है... इसलिए तुम चिंता मत करो बाबा ठाकुर बहुत ही जल्द तुमको मां बनने का मौका देंगे..."

मैं खिड़की के बाहर देखती हुई सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई| इस बिचारी को क्या मालूम कि मैं यहां क्यों आई हुई हूं| बाकी घर की बहुएं यहां मां बनने के लिए आती हैं लेकिन मेरे यहां आने का मकसद कुछ और ही है| अगर मैं इतनी जल्दी प्रेगनंट हो गई तो बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएगी...

"क्या सोच रही हो, पीयाली दीदी?"

"कुछ नहीं..."

"अगर बुरा ना मानो तो एक बात कहूं?"

"क्या?"

"... क्या तुम अपना आंचल उतार के एक बार मुझे अपने मम्मे दिखा सकती हो?"

"क्यों?" मैंने बड़ी हैरानी के साथ पूछा|

"तुम्हारा फिगर बहुत अच्छा है पीयाली दीदी... मैंने एक बार तो देखा था पर मेरा जी नहीं भरा..."

"ठीक है, लेकिन वादा कर कि तू भी मुझे अपना ब्लाउज खोलकर दिखाएगी"

"लेकिन मेरे स्तन तुम्हारे जितने भरे पूरे से और बड़े बड़े नहीं हैं... और तुम तो बहुत ही सुंदर हो, दीदी| मुझे पता नहीं तुम्हें अभी तक बच्चा क्यों नहीं हुआ... शायद तुम्हारे पति में ही कोई गलती है"

हां उसने यह बात सही कही| मेरे पति कि गलती तो है ही- वह मुझे इतनी अहमियत नहीं देता- काफी पैसा होने की वजह से उसने शहर के एक रिहायशी इलाके में एक बड़ा सा फ्लैट खरीद लिया... तरह-तरह के उपकरण खरीद लिए, बड़ा सा टीवी अच्छा सा साउंड सिस्टम, फ्रिज सोफा सेट वगैरा-वगैरा... यह सब उसका सामान है... और एक ठहरी मैं... उसकी सुंदर जवान पत्नी... लेकिन उसने भी मुझे अपने फ्लैट में एक सामान की तरह सिर्फ रख छोड़ा है... आरती सोचती है कि मैं बाबा ठाकुर के पास आने वाली एक ऐसी ग्रहणी हूं जब तक मां नहीं बन पाई... लेकिन उसे क्या मालूम कि मैं ब्लू मून क्लब की हॉट गर्ल्स की फायर ब्रिगेड की एक प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल हूँ| बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने एक मोटी रकम खर्च करके मेरी योनि में अपना वीर्य स्खलन करने के लिए मुझे यहां बुलाया है... क्योंकि आजकल उनके पास उतनी औरतें नहीं आती है जितना पहले आया करती थी... आरती एक जवान लड़की है... इसलिए उसको भी किसी औरत का साथ चाहिए था... और उसकी यह कमी शायद काफी दिनों बाद मैं पूरी कर रही थी... लेकिन मुझे यकीन है वह जितना खुलकर और घुलमिल कर मुझसे बात कर रही है ऐसा शायद ही उसने किसी और के साथ किया होगा|

आरती मेरे बालों में कंघी करना खत्म कर चुकी थी और इतनी देर तक मैं पालती मारे उसकी तरफ पीठ करके बैठी हुई थी| अब मैं उसकी तरफ मुंह करके घुटनों के बल बैठकर और मैंने अपना आंचल अपनी छाती से हटा दिया|

आरती ने बड़ी बड़ी आंखों से मेरे स्तनों को देखते हुए एक लंबी सी आंख भरी और अपने दोनों हाथों से बड़े प्यार से मेरे स्तनों को सहलाने लगी| मैंने कुछ देर तक उसे ऐसा करने दिया और उसके बाद मैंने उसका आंचल हटाया और उसके ब्लाउज के बटन खोलने लगी| उसने आंखें बंद करके अपनी छाती को थोड़ा आगे कर दिया और जब मैंने उसका ब्लाउज पूरी तरह से उतार दिया तो मैंने गौर किया कि उसकी सांसे गहरी होती जा रही थी जिसकी वजह से उसके स्तनों का जोड़ा सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रहा था|

"पीयाली दीदी, तुम मुझे शर्मिंदा कर रही हो"

"क्यों?" मैंने भी प्यार से उसके स्तनों को सहला सहला कर हल्का-हल्का दबाकर और उसकी जवानी की गर्माहट और कोमल स्तनों की छुअन का एहसास करते हुए; उससे बड़े प्यार से पूछा|

"तुम्हारे मम्मे वास्तव में बड़े-बड़े, भरे और पूरे और खड़े-खड़े से हैं..."

अपनी तारीफ सुनकर मैं मुस्कुराई, और बोली, "तेरे मम्मों का साइज भी तो अच्छा खासा है... पर एक बात तू पेनी (ब्रा) क्यों नहीं पहनती?"

"मैंने कहा था ना पुरानी वाली फट चुकी है... और ना जाने क्यों नया अंतर्वास लाने के लिए मुझे मौका नहीं मिला क्योंकि बाबा ठाकुर मुझे अकेले और मुझे उनसे यह सब कहने में शर्म आती है..." आरती तब भी मेरे स्तनों से खेल रही थी|

आरती ने अपने बालों में जुड़ा बांध के रखा था मैंने उसे खोल कर उसके बालों को उसके पीठ के ऊपर फैला दिए और फिर अपनी हथेलियों में उसका चेहरा प्यार से भरकर उसकी आंखों में आंखें डाल कर देखते हुए मैंने कहा, "देख लड़की, तुझे तो अब पेनी (ब्रा) पहनना पड़ेगा नहीं तो तेरे मम्मे लटक जाएंगे"

उस वक्त उस कमरे में हम दोनों नारियां अर्धनग्न थी| हम दोनों के लंबे लंबे बाल खुले हुए थे बाहर से आती हुई ठंडी हवाओं के झोंके हम दोनों के शरीरों को छू रहे थे|

मैंने आरती को एक बार अच्छी तरह से देखा इसकी उम्र अट्ठारह- उन्नीस साल से बिल्कुल ज्यादा नहीं होगी... लेकिन इसके अंदर जवानी का फूल खिल उठा है... आरती के चेहरे के हाव-भाव, खासकर जिस नजरों से मुझे देख रही थी उससे मैंने भाँप लिया उसके मन में वासना की आग लग चुकी है... और मुझे पक्का यकीन है कि उसने मुझे और बाबा ठाकुर को सहवास करते हुए जरूर देखा होगा... न जाने क्यों मुझे यह पक्का यकीन था जब से आरती ने मुझे पहली बार देखा था, तब से ही वह मुझे पसंद करने लगी थी और उसके अंदर मेरे लिए एक अजीब तरह का आकर्षण पैदा हो गया था... जिसकी व्याख्या करना शायद मुश्किल है|

इसीलिए वह मुझ में इतनी दिलचस्पी लेने लगी है... मेरे बालों में कंघी करने के बहाने वह मुझे छूना चाहती है... वह चाहती है कि मैं उसी के सामने कपड़े बदलो ताकि वह मुझे नंगी देख सके... आज वह आई तो थी मेरे बालों में कंघी करने के बहाने लेकिन मैं जानती थी उसके मन में क्या चल रहा है... मैंने अभी तक उसका चेहरा अपनी हथेलियों में भर रखा था और उसकी आंखों में आंखें डाल कर मैं यह सब बातें सोचे जा रही थी... तब मैंने महसूस किया कि उसने अपने दोनों हाथों से मेरे स्तनों को पकड़ रखा था और और उनका दबाव बढ़ता जा रहा था...

मैंने आरती को सीने से लगाकर उसके होठों को एक बार चूम लिया...


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क्रमशः
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manu@84

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आदरणीय पाठक मित्र manu@84 जी,

लगता है कि आप पीयाली से नाराज हो गए हैं... कहानी की शुरुआत (ब्लू मून क्लब भाग 1) में पीयाली एक साधारण सी जवान और शादीशुदा औरत थी जिसको की उसका पति, जो की मर्चेंट नेवी में कार्यरत है- उतना ध्यान नहीं देता है यहां तक की उसकी अपेक्षा भी करता है|

पीयाली अभी इस हाई क्लास और ग्लैमर से भरी दुनिया उन्मुक्त यौनाचार की दुनिया में उसने नया-नया कदम रखा है... शायद इसलिए उसके अंतर्मन में अभी भी यह द्वंद कभी कबार जाग उठता है...

किसी अन्य शादीशुदा अप्पर मिडल क्लास की औरत की तरह अपनी जिंदगी जीना चाहती थी... लेकिन उसका अकेलापन अंदर ही अंदर से खाये जा रहा था...

इसलिए जब भाग्य चक्र ने उसे ब्लू मून क्लब तक लाकर छोड़ा- तो उसने यह मौका नहीं गंवाया|

वैसे मैं आपके मंतव्य का सम्मान करती हूं और मुझे इस बात की खुशी है कि आपने खुलकर अपने मन की बात यहां रख दी है|

आप जैसे पाठक मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है| कृपया कहानी के साथ बने रहिएगा 🙏🙏🙏
गलती नीम की नही वो कड़वा है, खुदगर्जी जीभ की है, उसे मीठा पसंद है 🙏

आप मुझसे ज्यादा काबिल राइटर है, शब्दों के अर्थ समझ जायेगी।
 

naag.champa

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गलती नीम की नही वो कड़वा है, खुदगर्जी जीभ की है, उसे मीठा पसंद है 🙏

आप मुझसे ज्यादा काबिल राइटर है, शब्दों के अर्थ समझ जायेगी।
जी हां आपने बिल्कुल सही फरमाया|
 
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naag.champa

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अध्याय २३

आज बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के आश्रम में उनके मैनेजर सेनगुप्ता साहब आए हुए थे| इसलिए मैंने सिर्फ उनके गुरुदेव की तस्वीर को अच्छी तरह से साफ किया और उसके बाद ढूंढना दिखाकर शंख बजाकर आरती का हाथ बंटाने के लिए सीधे रसोई घर में चली गई थी| इसलिए सब कुछ जल्दी-जल्दी हो गया|

बाबा ठाकुर में सत्संग के बाद ही आरती को लेकर बाजार जाने दिया| लेकिन इस बार उन्होंने मुझे ब्रा-पेंटी और ब्लाउज-पेटीकोट पहनने की इजाजत दे दी थी- क्योंकि मैं घर के बाहर कदम रखने वाली थी| पर मेरे सारे के सारे ब्लाउज जो मैं अपने साथ लाई थी वह बहुत कटे खुले से थे| ऐसा ब्लाउज पहनने के बाद अगर मैं बराबर होती तो शायद ब्रा के ऊपरी हिस्से दिख रहे होते| ऐसे ब्लाउज को पहनने के बाद सीने का बहुत सा हिस्सा और स्तनों की वक्र रेखाएं साफ दिखती है- आखिरकार यह डिजाइनर और मॉडर्न ब्लाउज जो ठहरे| इसलिए साड़ी पहनने के बाद मैंने अपने आंचल से अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा अच्छी तरह से ढक लिया|

इसके साथ ही बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने मुझसे कहा था कि मैं घर के बाहर खुले बालों में ना जाऊं इसलिए मैंने अपने बालों में एक अच्छा सा जोड़ा बना लिया था| पर मैं जानती थी कि बाजार से घर आने के बाद फिर से मुझे अपने सारे अंतर्वास उतार कर दोबारा सिर्फ साड़ी लपेट कर रहना है और अपने बालों को खुले रखना है|

और हां सत्संग के दौरान अपनी स्त्रैण छठी इंद्री की बदौलत में समझ गई बाबा ठाकुर के मैनेजर साहब- उम्र दार होने के बावजूद- मुझे सर से पांव तक अपनी आंखों से नाप रहे थे| लगता है आरती बिल्कुल सही कह रही थी; बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के घर आज तक जितनी लड़कियां या फिर औरतें आई होंगी उनमें सबसे ज्यादा सुंदर शायद में ही थी|

मुझे तैयार होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा मैं सिर्फ कमरे का दरवाजा हल्का सा भिड़ा के कपड़े बदल रही थी कितने में आरती एकदम एक फुल स्पीड में धड़धड़ा कर आती हुई स्टीम इंजन की तरह कमरे के दरवाजों के किवाड़ों को झटके के साथ खुलती हुई दाखिल हुई और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती; उसने छुपकर मेरी साड़ी उठाकर मेरी बेटी खींच कर उतार दी|

मैं एक पल के लिए तो बिल्कुल भौंचक्की रह गई और फिर मैंने संभल कर उससे पूछा, "यह क्या कर रही है"

उसने खिलखिला कर हंसते हुए मुझसे कहा, "पीयाली दीदी, चलो ना आज हम दोनों बिना पैंटी पहने की बाजार जाएंगे--- बड़ा मजा आएगा... ही ही ही ही"

***

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के घर से पक्की सड़क करीब 10-15 मिनट के फासले पर थी| आरती ने मुझसे कहा था पक्के रास्ते पर आते ही हमें रिक्शा मिल जाएगा जिस पर सवार होकर हम लोग बाजार तक पहुंचेंगे|

कच्चे रास्ते पर चलते हुए मैं गांव के माहौल का पूरा मजा ले रही थी... रास्ता कच्चा था और दोनों तरफ घने घने पेड़ों के जैसे जंगल- जंगल थे| यह बारिश का मौसम था और कल रात बारिश भी बहुत ज्यादा हुई थी इसलिए मौसम बहुत ही सुहावना हो रखा था| लेकिन चलते-चलते मैंने गौर किया कि आते जाते सभी लोग- बड़े बूढ़े, बच्चे जवान यहां तक की औरतें भी मुझे आंखें फाड़ फाड़ कर देख रही थी| मैंने अपने बदन पर एक पारंपरिक साड़ी पहन रखी थी, मेरी मांग सिंदूर से भरी हुई थी और हाथों में किसी भी शादीशुदा बंगाली औरत की तरह मोटे मोटे शांखा और पौला थे|

पर मैं गांव की आती जाती लड़कियों की तुलना में बहुत ज्यादा गोरी थी लंबे बालों की वजह से मेरे जुड़े का साइज भी काफी बड़ा था और ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की संगत में आकर मैं नियमित रूप से योगा और जिम (gym) किया करती थी जिसकी वजह से मेरा फिगर अच्छी तरह से निखार आया था और आम लड़कियों के मुकाबले मैं थोड़ी लंबी थी और मेरे हर कदम पर मेरे स्थानों का जोड़ा जैसे थिरकते रक्त कर यौवन का रस छलका रहा था... इसलिए मैंने गौर किया कि ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने बिल्कुल सही कहा था- मर्दों की नजरें लड़की के चेहरे पर पड़ने के बाद सीधे उनकी स्तन युगल पर पड़ती है- और यहां भी ऐसा ही हो रहा था|

मैंने फुसफुसाते हुए आरती से कहा, "देख लिया ना तूने, आते जाते लोग बाग कैसे आंखें फाड़ फाड़ कर मुझे देख रहे हैं? यह सब तेरी वजह से हुआ है; तूने तो मेरी पेंटी भी खींच कर उतार दी... लगता है सब को पता चल गया है कि मैं साड़ी के नीचे बिल्कुल नंगी हूं... "

आरती भी शरारत से मुस्कुराती हुई बोली, "पीयाली दीदी, जो बातमैं तो जानती हूं उन्हें तो इस बात का पता ही नहीं... वह यह नहीं जानते कि तुम्हारी दो टांगों के बीच में बिल्कुल भी बाल नहीं है सब कुछ एकदम सफाचट"

मैंने बंगाली में कहा, "धुर! पाजी मेये (धत! बदमाश लड़की)"

"तुम जानती नहीं हो पीयाली दीदी; तुम बहुत ही सुंदर हो- तुम्हारा रंग एकदम दूधिया है... कमर तक लंबे घने बाल... भरे पूरे से मम्मे (स्तन) पतली कमर और मांसल कूल्हे..."

"तू थोड़ा चुप करेगी"

"नहीं ना पीयाली दीदी, तुमको देख कर ऐसा लगता है जैसे बड़ी ही बारीकी से तराशी हुई एक देवी की मूर्ति"

"अब देख मुझे गुस्सा आ रहा है"

"ही ही ही ही ही"

हम लोग ऐसे ही चले जा रहे थे कि इतने में किसी औरत ने पीछे से हम दोनों को आवाज लगाई, "अरी आरती! कहां चली जा रही है?"

हम दोनों ने पीछे मुड़कर देखा| हमारे पीछे एक अधेड़ उम्र की औरतऔर एक शायद मुझसे चार पांच साल बड़ी शादीशुदा लड़की खड़ी थी और उनके साथ एक छोटा सा बच्चा भी था| मैं इस बच्चे को देखते ही पहचान गई| यही लड़का उस दिन सुबह बाबा ठाकुर के आंगन में सूखे हुए गुलाब के पौधे पर बड़े मजे से सुसु कर रहा था|

"अभी आती हूं!"

यह कहकर आरती लगभग मुझे खींचते हुए उन लोगों के पास ले गई|

"क्या री आरती, कहां जा रही है?" उस अधेड़ उम्र की औरत में पूछा पर उन लोगों की निगाहें मुझ पर ही टिकी हुई थी|

"यहीं तो; हम लोग थोड़ा बाजार जा रहे हैं कुछ खरीदारी करनी है, बुआ जी"

"अच्छा एक बात बता तेरे साथ यह सुंदर सी लड़की कौन है?" उस औरत ने मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुराते हुए आरती से पूछा|

लेकिन इतने में एक छोटा सा लड़का मुझे देखकर पहचान गया था और उसअधेड़ उम्र कीऔरतों के पीछे छुप गया|

"यह हमारी नई नवेली भाभी है- बाबा ठाकुर के यहां मां बनने आई है" आरती ने बिल्कुल उत्साह के साथ जवाब दिया|

मेरा दिल धक से रह गया!

"आहा! ऐसी सुंदर बहू? एक रात में ही पेट से आ जाएगी" उस अधेड़ उम्र की औरत ने मेरे गालों पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "पर एक बात बता बाबा ठाकुर उसको कितने दिन अपने पास रखेंगे?"

"पीयाली दीदी हमारे घर इस रविवार तक ही है" आरती ने उसी उत्साह के साथ जवाब दिया|

लेकिन फिर मैंने गौर किया कि उसका चेहरा थोड़ा उतर सा गया शायद वह मुझे जाने नहीं देना चाहती थी|

"अरे वाह यह तो बड़ी अच्छी बात है! बड़े दिनों के बाद तुम्हारे घर ऐसी एक नई नवेली दुल्हन आई हुई है... जहां तक मुझे याद है पिछले डेढ़ साल से तुम्हारे यहां कोई नहीं आई"

मैंने उनकी आंखों ही आंखों में यह जान लिया कि उनके मन में यह बात चल रही थी कि मुझ जैसी लड़की को बाबा ठाकुर तो क्या कोई भी आदमी एक रानी की तरह मुझे रख सकता है|

उन्होंने बोलना जारी रखा, "बाबा ठाकुर जैसे सिद्ध पुरुष के घर उनका आशीर्वाद ग्रहण करके अगर कोई लड़की मां बनती है तो इसमें कोई हर्ज नहीं है... मैंने भी तो अपनी बेटी को बाबा ठाकुर के यहां भेजा था... शादी के करीब करीब 3 साल हो गए थे लेकिन मेरी बेटी को बच्चा नहीं हो रहा था... इसलिए उसकी सास बात बात पर मेरी बेटी को ताने मारा करती थी... इसलिए मैंने अपनी बेटी से कहा कि मैं तेरे को बाबा ठाकुर के घर भेज दूंगी.. अगर हम अपनी परंपरा को याद करें तो यह जाहिर है कि सिद्ध पुरुष लोग वर्षों की तपस्या के बाद एक शक्ति का अर्जित करते थे... इसके बाद कोई भी लड़की अगर उनसे गर्भवती हो जाए तो इसमें हर्ज ही क्या है?"

ओ अच्छा अब बात समझ में आई| यह छोटा सा बच्चा और कोई नहीं बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की ही संतान है... अब मेरी समझ में चित्र आ गया किस गांव खेड़ी में अगर कोई लड़की अपने पति के द्वारा मां नहीं बन पाती तो लोग बाग़ उसे किसी धार्मिक व्यक्ति के पास भेज देते हैं- और अगर यह लड़की उनके द्वारा गर्भवती हो जाती है तो यह इनके समाज में अच्छी तरह से स्वीकार्य है|

लेकिन अब मैं क्या करूं? मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था इसलिए मैंने सीधे धैंस- एकदम उस अधेड़ उम्र की औरत की चरणों पर गिर कर उन्हें प्रणाम किया|

जब मैं उठी तो उन्होंने सिर्फ मेरे गालों पर हाथ फिर कर प्यार से आरती से पूछा, "क्या रे आरती? बाबा ठाकुर में इस लड़की को अपना आशीर्वाद दिया कि नहीं?"

मैं समझ गई कि यह जानना चाहती है कि बाबा ठाकुर ने मेरे साथ संभोग किया है कि नहीं- न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था इस बात को जानने के लिए वह बहुत ही उत्सुक हैं|

मैंने नजरें झुका कर स्वीकृति में अपना सर गिराया कितने में आरती बोल पड़ी, "जी हां जी हां बिल्कुल! ही ही ही ही ही"

मुझे लगा कि वह अधेड़ उम्र की औरत यह सुनकर बहुत खुश हुई|

लेकिन इसी बीच मेरी नजरें उस अधेड़ उम्र की औरत के साथ आई हुई उनकी बेटी के साथ मिली और आंखों में आंखों में मैं समझ गई के आशीर्वाद के नाम पर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ में हम दोनों के साथ ही पायुकाम के मजे ले लिए थे|

***

उस दिन गांव के बाजार में हाट लगा हुआ था|

दूर-दूर से दुकानदार इस गांव में अपना सामान बेचने के लिए आए हुए थे| जिंदगी में पहली बार मैंने मछली बाजार में इतनी बड़ी-बड़ी मछलियां देखी थी| आखिरकार में एक बंगालन हूं, लेकिन शहर के बाजार में मैंने इतनी बड़ी मछलियां नहीं देखी थी|

लेकिन मुझे मछलियां खरीदने की चिंता नहीं थी क्योंकि मैं जानती थी कि आज दोपहर तक बाबा ठाकुर के घर पर कोई ना कोई ऐसी ताजा मछलियों को जरूर पहुंचा देगा| और मुझे मालूम है की मछलियां तब तक जिंदा होंगी और मुझे और आरती को मार-मार कर इन मछलियों को मौत के घाट उतारना पड़ेगा और उसके बाद काट कूट कर उनको पकाना पड़ेगा|

शहर में ऐसी ताजा सब्जियां और मछलियां नहीं मिलती!

यहां की चीजें बहुत सस्ती है| गांव के बाहर ही किसी सेठ ने अपनी फैक्ट्री लगा रखी है इसलिए यहां होज़री (hosiery) की चीजें से इतने सस्ते में मिलती है|

और इन्हीं चीजों में अगर किसी विदेशी कंपनी मैं अपना ठप्पा लगा दिया तो शायद यह चीजें दस गुना ज्यादा कीमतों में बिकेंगे- और ऐसा ही होता है|

मैंने अपना वैनिटी बैग खोलकर देखा. उसमें सिर्फ ₹480 ही पड़े हुए थे| मुझे याद है जब मैं बाबा ठाकुर के यहां आने वाली थी तब मैंने यह नहीं देखा था कि मेरे पास कितने पैसे हैं मैं सिर्फ जल्दी जल्दी तैयार होकर ब्लू मून क्लब की तरफ रवाना हो गई थी| मैंने यह देखने की जहमत नहीं उठाई थी कि मेरे बैग में कितने पैसे पड़े हुए हैं| रास्ते में मैंने यह तो सोच कर रखा था कि मुझे एटीएम से पैसे निकालने हैं, लेकिन रास्ते में कोई एटीएम नहीं मिला और मुझे भी याद नहीं रहा| फिर न जाने क्यों मैंने सोचा कि मैं अपने बैग के अंदर का छोटा वाला चेन खोल कर देखूं क्या है? और चेन खोलते ही मैं अवाक रह गई पर मेरी बांछें खिल गई| उसमें कम से कम ₹20,000 रुपए के आसपास रखे हुए थे|

मैं मन ही मन अपने बॉयफ्रेंड टॉम को याद कर रही थी क्योंकि मैं जानती थी कि यह सब उसी की कारस्तानी है|

आरती के साइज की ब्रा पेंटी खरीदने में मुझे ज्यादा देर नहीं लगी. लेकिन गांव के दुकानदार यही सोच रहे थे कि इस सुहागिन के साथ इसका शौहर क्यों नहीं आया? यह साथ में एक लड़की लेकर आई है और उसके अंतर्वास खरीद रही है| अब इसमें हर्ज क्या है? अब यह कोई गांव के लोगों को समझाएं|

अंतर्वास के अलावा मैंने आरती के लिए काफी सारे कपड़े लत्ते भी खरीद कर दिए जिसमें चार की साड़ियां भी थी| इस गांव में हाथ की बनी हुई 5 की साड़ियां इतने सस्ते में मिलती है इसका मुझे अंदाजा भी नहीं था- जो साड़ी यहां ₹400 की मिल रही थी वही शहर में करीब-करीब ₹2000 आसपास के आसपास कि मिलेंगी|

इसके अलावा मैंने आरती के लिए एक नेल कटर और काफी सारे मैचिंग नेल पॉलिश भी खरीद कर दिए|

लेकिन इतने सब खरीदारी करते वक्त बार-बार मुझे अपने बॉयफ्रेंड टॉम की याद आ रही थी- मेरे मना करने के बावजूद वह मेरे पास में चुपके चुपके पैसे डाल दिया करता था- पागल आशिक कहीं का...

इसके बाद मेरी नजर गांव के हाट में एक तड़क भड़क स्टोर पर पड़ी| वहां एक शोकेस में हेयर रिमूवर रखा हुआ था वह मैंने झट से खरीद लिया उसके बाद मेरी नजर शोकेस में रखे हुए इमिटेशन ज्वेलरी पर पड़ी| अगर कोई ध्यान से ना देखे तो असली वाली ज्वेलरी भी इन सब चीजों के आगे हार मान जाएगी|

मेरे पास पैसे तो काफीफिर देर किस बात की थी? धूम धड़ाम मैंने गले का एक मोटा सा हार पैरों की बालियां, हाथों की मोटी मोटी चूड़ियां नाक का नथ, कानों की बालियां, माथे की टिकली और बाकी काफी सारा सामान खरीद लिया|

आरती मेरे को आंखें पढ़ पढ़ कर देख रही थी क्योंकि उसे मालूम था यह सारा सामान मैं उसी के लिए खरीद रही हूं; लेकिन पहले में इनका इस्तेमाल मैं करूंगी|

इमिटेशन ज्वेलरी के दुकानदार एक जवान लड़का था और वह बार-बार मेरे चेहरे को देख रहा था और उसकी निगाहें ना चाहते हुए भी मेरे स्तनों के जोड़ों पर टिक रही थी; मैंने मन ही मन सोचा कि इसमें हर्ज ही क्या है?

उस दुकानदार की सुबह सुबह की बोहनी करीब-करीब सात हजार रुपयों की हुई|

ऐसे इमिटेशन के गहने अगर कोई लड़की पहन कर रखें और अगर किसी ने ध्यान से नहीं देखा तो ऐसा लगेगा कि लड़की ने करीब करीब दस बारह लाख के सोने के गहने पहन रखे हैं|

सारा सामान समेटने के बाद मैंने दुकानदार से पूछा, "भैया यहां कहीं कोल्ड ड्रिंक मिलेगी क्या"

"हां हां जरूर,आपको पीना है कि आप घर लेकर जाएंगी?"

"जी हमको को घर लेकर जाना है"

"हां हां हां जरूर थोड़ी देर बैठी है मैं भी लेकर आता हूं"

दुकानदार ने मेरे से कोल्ड ड्रिंक के पैसे नहीं लिए| आखिरकार सुबह-सुबह उसकी दुकान की बोहनी दो- दो सुंदर लड़कियों ने करवाई थी और ऐसा लग रहा था कि शायद सुबह-सुबह ही उसकी इतनी आमदनी हो गई जितना कि वह शायद पूरे दिन में नहीं कमा पाता|

इसके बाद हम लोग बाजार के मछली बाजार में गए| यहां ताजा हिलसा मछली मिल रही थी और वह भी जिंदा| शहर में तो ऐसी मछलियां सिर्फ बर्फ से सनी हुई होती है|

मछली वाला भी मुझे और आरती को ताड़ रहा था| आरती ने भी ब्रा नहीं पहन रखी थी और बार-बार उसका आंचल सरक जा रहा था जिसकी वजह से मिला उसके अंदर से उसकी चूचियां साफ ऊपर करा रही थी और नतीजा यह हुआ कि अगर मैं ठीक से हिसाब नहीं करती तो शायद मछली वाले को करीब करीब डेढ़ सौ का नुकसान हो जाता|

वापस लौटते वक्त हम लोगों को रिक्शा जल्दी ही मिल गया| रिक्शे में बैठकर लौटते वक्त आरती ने मुझसे कहा, "पीयाली दीदी, तुम इन बहनों को पहनकर मुझे जरूर दिखाना..."

"हां हां जरूर" मैंने जवाब दिया, " बस तू मुझको इन बहनों को एक या दो बार पहले देना- बाकी यह सारे गहने मैंने तेरे लिए ही खरीदे हैं"

"हैं?" आरती एकदम आसमान से गिरी|

"हां यह सारे गहने तेरे लिए ही है; लेकिन तुझे काम करना पड़ेगा आज शाम को बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के लिए क्या तुम मुझे अच्छी तरह से सजा देगी?"

"हां हां हां जरूर जरूर जरूर" इतना कहकर आरती ने मुझसे लिपटकर मेरे गालों को चूमा|

रिक्शावाला इतनी देर से हमारी बातें सुन रहा था अब उससे रहा नहीं गया उसने पीछे मुड़कर हम दोनों को देखा और उसके ऐसा करते ही आरती उस पर भौंक उठी, "ओ भैया! क्या देख रहे हो तुम ठीक-ठाक रिक्शा चलाओ"

मुझसे रहा नहीं गया| मैं हंस पड़ी लेकिन मैंने आरती से कहा, "सुन आरती फिलहाल बाबा ठाकुर से तू कुछ मत कहना मैं उनको एक सरप्राइज देना चाहती हूं"

"सरप्राइस, मतलब?"

"देख लेना"

क्रमशः
 

naag.champa

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अध्याय २४


हम दोनों को घर लौटने में थोड़ी देर हो गई थी| और जिस बात का डर था वही हुआ| मैंने देखा कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ हम दोनों के इंतजार में घर के बाहर चहल कर्मी कर रहे हैं| गुस्से से उनका पूरा चेहरा बिल्कुल लाल हो रखा था|

घर में घुसते के साथ हीवह आरती को डांटने लगे, "इसीलिए मैं तुझे बाजार नहीं जाने देता... इतनी देर कहां लगा दी? घर में पराई औरत आई हुई है... जिसकी जिम्मेदारी मेरी है... अगर रास्ते में कोई ऐसी वैसी बात हो गई होती तो कौन देखता?"

यह सुनते ही आरती ने रोना-धोना शुरू कर दिया|

स्थिति को संभालने के लिए मैंने कहा, "बाबा ठाकुर आप नाराज ना होइए... अगर देर हुई है तो सिर्फ मेरी वजह से... आप तो जानते ही हैं जनानी चीजों की खरीदारी में थोड़ी बहुत देर लग ही जाती है... यह देखिए ना; मैं तो आपसे पूछ कर ही आरती को बाजार ले गई थी अपने साथ... और उसके लिए मैंने कुछ कांच की चूड़ियां भी खरीद कर दी है... आते ही मैंने गौर किया था कि इसके हाथ बिल्कुल खाली है... आखिरकार यह आपके घर की बेटी है, क्या आप चाहते हैं कि यह इस तरह से खाली हाथ ही रहे?"

मेरी बातों को सुनकर शायद बाबा ठाकुर का दिल थोड़ा सा पसीजा पर उन्होंने कहा, "ओरे जय गुरुदेव! तुम्हारी माताजी (बाबा ठाकुर की पत्नी, जो गुजर गई थी) भी जब भी हाट बाजार जाती थी तो लौटने का नाम ही नहीं देती थी... तुम औरतों को खरीदारी से फुर्सत नहीं मिलती क्या?" फिर उन्होंने आरती को दोबारा डांटते हुए कहा, "अब तू मुझे थोड़ा सा खाना परोस कर देगी या फिर मैं भूखा ही घर के बाहर निकल जाऊं?"

"जी हां जरूर मैं आरती की मदद कर रही हूं", मैंने तुरंत अपने बालों का जुड़ा खोलकर अपने वॉलपेपर फैला दिए और फिर आरती का हाथ पकड़कर जल्दी-जल्दी घर के अंदर जाने लगी|

उसके बाद मैं सीधे दौड़कर बाबा ठाकुर के कमरे में चली गई वहां मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए और फिर अपने बदन पर घर में पहनने वाली साड़ी लपेट ली उसके बाद जल्दी-जल्दी में रसोई घर में चली गई जहां आरती अपने हाथ पैर धो कर बाबा ठाकुर के लिए खाना परोसने वाली थी|

रसोई घर में जाकर आरती का चेहरा देखकर मैं अवाक रह गई| उसका चेहरा बिल्कुल चमक रहा था और होठों पर एक बड़ी सी मुस्कान खिली हुई थी|

"पीयाली दीदी, तुमने तो बाबा ठाकुर को अच्छा संभाला... ही ही ही ही ही"

"क्या? लेकिन तू इस तरह से रो क्यों रही थी?"

"ऐसे ही| मैं जानती हूं कि बाबा ठाकुर मेरी आंखों में आंसू नहीं देख सकते"

मुझसे रहा नहीं गया| मैंने उसके कूल्हों पर दो- तीन चपत जड़ कर उसे कहा, "आज तू रुक जा! देख दोपहर को मैं तेरी क्या हालत करती हूं"

"ही ही ही ही ही ही"

***

सुबह के नाश्ते के बाद मैं सीधे ऊपर बाबा ठाकुर के कमरे में चली गई वहां जाकर मैंने कमरे के दरवाजे भिड़ा करके अपने सारे कपड़े उतार दिए और बिस्तर पर टांगे फैलाकर लेट गई| मुझे मालूम था क्या करना है- कुछ ही देर बाद बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ कमरे में आकर मेरे साथ संभोग करने वाले थे और मैंने गौर किया कि कमरे के सारे खिड़की तो खुले हुए थे लेकिन आरती ने सारे पर्दे तान दिए थे- उसे भी मालूम था कि क्या करना है|

कुछ देर बाद बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ कमरे में आए और उन्होंने मेरे साथ दो बार संभोग किया| दोनों बार मैंने महसूस किया कि उन्होंने अपने गरम गरम वीर्य की भरपूर मात्रा मेरी योनि के अंदर स्खलित की| अगर देखा जाए तो यह स्पष्ट था कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ किसी भी औरत को 1 माह बनाने के लिए पूरी तरह सक्षम थे|

दूसरी बार संभोग करने के बाद जब उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि के अंदर से निकाला और फिर उठ कर कपड़े पहनने को कहें तो मैंने उनका हाथ पकड़ कर उनसे कहा, "बाबा ठाकुर, पिछली रात को मैंने आपसे कहा था कि आज शाम को जब आप घर आएंगे तो मेरा एक नया रूप देखेंगे... लेकिन अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं पहले से थोड़ा सा पी-पाकर रहूंगी"

बाबा ठाकुर ने मुझे बालों से पकड़कर अपने पास ले आए और फिर मुस्कुराते हुए मेरी आंखों में आंखें डाल कर देख देख बोले, "ठीक है, लेकिन याद रखना आरती को पता नहीं चलना चाहिए... मुझे उसकी चिंता हो रही है वह भी बड़ी हो रही है"

यह कहकर उन्होंने मेरे सर को नीचे की तरफ खींचा और गले को दो-चार बार अपनी जीभ से चाट कर फिर मुझसे अलग होकर कपड़े पहनने लग गए| मैं उनको कपड़े पहनने में मदद कर रही थी और मन ही मन सोच रही थी, 'हां, बाबा ठाकुर अपनी ठीक ही कहा- आरती अब बड़ी हो रही है| आपको क्या पता, कि वह आपके पीठ पीछे मेरे साथ क्या-क्या गुल खिला रही है- उसके कच्चे आम पक चुके हैं"

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ तैयार होकर शहर की तरफ रवाना हो गए| शहर के सबसे बड़े ज्वेलरी की दुकान में ग्राहकों को ज्योतिष की सलाह दिया करते थे| मुझे अपने घर लाने के बाद वह चाहते थे कि उन्हें छुट्टी मिले लेकिन ऐसा नहीं हुआ- आखिरकार यह कॉन्ट्रैक्ट का मामला था और वह कानूनी तौर पर बंधे हुए थे|

मैंने कपड़े पहनने की जहमत नहीं उठाई क्योंकि मुझे पता थाकि थोड़ी देर बाद ही आरती एकदम एक फुल स्पीड में धड़धड़ा कर आती हुई स्टीम इंजन की तरह कमरे के दरवाजों के किवाड़ों को झटके के साथ खुलती हुई अंदर दाखिल होगी|



मैं कमरे से लगे बाथरूम में जाकर थोड़ा हाथ हाथ मुंह धो कर और फिर अपनी योनि के आसपास के हिस्से को अच्छी तरह साबुन से धोया और फिर अपनी योनि के अंदर उंगली डाल डाल कर उसे भी साफ किया|

और जैसे ही मैं बाथरूम से निकलकर कमरे के अंदर तो मैं आरती को पलंग पर बैठा देखकर बिल्कुल दंग रह गई| इस बार वह एकदम चुपके से कमरे के अंदर दाखिल हुई नहीं और उसके बदन पर कपड़े का एक भी कतरा नहीं था और उसके बाल बिल्कुल खुले हुए थे|

मैंने आरती की उत्सुकता और उसकी प्रत्याशा को भांप लिया जो उसकी आंखों से बिल्कुल साफ झलक रहा था| लेकिन घर लौटते वक्त मेरे दिमाग में एक बात आई थी मैंने सोचा यही मौका है मैंने जो सोचा था उसे पूरा कर देना चाहिए अब पता नहीं आगे कोई मौका मिले ना मिले|

आरती के अंदर उत्तेजना भरा हुआ था उसकी सांसे लंबी और गहरी चल रही थी लेकिन मैंने उसको नजरअंदाज किया और बाजार से लाए पैकेट में से उसके लिए और अपने लिए नई वाली ब्रा और पेंटी का सेट निकालने लगी और फिर मैंने उससे कहा, "चल आरती हम दोनों साथ-साथ एक सेल्फी लेते हैं"

यह कहकर हम दोनों ने नई वाली ब्रा पेंटी का सेट पहला और कैमरे का टाइमर सेट करके उसके सामने खड़े हो गए और चंद सेकंड में ही हम दोनों की एक तस्वीर खींच गई|

Arti-And-Piyali.jpg

फिर जो नाम मात्र के कपड़े हम दोनों ने ब्रा और पेंटी के नाम पर पहन रखे थे, उसे उतार दिया और वापस हम दोनों बिल्कुल नंगी हो गई| वैसे तो मेरी तालीम के दौरान ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने मुझे किसी दूसरे व्यक्ति की उपस्थिति में बिल्कुल नंगी रहने की आदत डलवाई थी| मेरी तालीम के दौरान वह मुझे अपने घर ले आई थी और उनका मुझसे यही कहना था कि जब तक तुम मेरे घर में रहोगी बिल्कुल नंगी रहोगी कपड़े पहनने की जरूरत नहीं... ताकि जब किसी अनजान लाइट के सामने तुम्हें नंगा होना पड़े तुम्हें कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए... कुदरत ने तुम्हें बहुत ही खूबसूरत बनाया है और ऐसा लगता है कि तुम्हारे बदन को किसी अलौकिक मूर्तिकार ने तराशा है... इसलिए मुझे आरती या फिर बाबा ठाकुर के सामने नंगी होकर रहना सहज सा लगता था क्योंकि मुझे इसकी आदत पड़ चुकी थी|

लेकिन आरती की बात अलग थी, वह अपने आप को थोड़ा सा सचेत महसूस कर रही थी इसलिए उसके अंदर हिचकिचाहट भरी हुई थी लेकिन उसकी उत्सुकता उसकी हिचकिचाहट पर भारी पड़ रहा था| इससे पहले वह किसी के साथ भी इस तरह से घुलमिल नहीं गई थी... और जहां तक मैंने समझा वह मेरे साथ बिताए एक-एक पल का भरपूर अनुभव करना चाहती थी|

वह लंबी और गहरी सांसे ले रही थी और उसने मेरी तरफ बड़ी-बड़ी आंखों से देखती हुई एक अजीब सी प्रत्याशा के साथ बोली, "पीयाली दीदी, तुमने तो मुझसे कहा था कि तुम मुझे दिखा दोगी तुम मेरी क्या हालत करने वाली हो- तो देर किस बात की है जो करना है करो ना?"

"ठीक है रे नंगी लड़की", मैंने मुस्कुराते हुए उससे कहा, "पर तुझे याद है ना तूने मुझसे वादा किया था कि तू मेरी जीभ को अपने मुंह में लेकर चूसेगी"

आरती मारे खुशी के कांप उठी उसकी आंखों में आंसू आ गए|

मैंने अपने बैग से एक नेल कटर निकाला और उसके हाथ को अपनी तरफ खींच कर उसके नाखूनों को काटने लगी|

आरती ने नखरे शुरू कर दिए, "ऊँ- हुं - हुं - हुं - हुं! मैंने कितनी मुश्किल से अपने नाखून थोड़े से बढ़ाए थे तो सारे के सारे काट दे रही हो... अब मैं नेल पॉलिश कैसे लगाऊंगी?"

"आ हा हा- जरा नखरे तो देखो लड़की के! अरे पगली मैं तेरे नाखूनों को हल्का-हल्का काट दे रही हूं ताकि मुझे अंदर खरोचें ना आए- तेरे नाखूनों को मैं उखाड़कर थोड़ी ना फेंक रही हूं? नेल पॉलिश लगाने के लिए तेरे पास नाखून बचे हुए होंगे"

"ऊँ- हुं - हुं - हुं - हुं"

यूं तो नाखूनों को काटने से पहले उन्हें गुन गुने पानी में थोड़ा भिगो लेना चाहिए लेकिन फिलहाल हमारे पास इतना वक्त नहीं था और जैसे ही मैं उसके नाखून काटने लगी मैंने गौर किया कि शायद आरती के बदन में एक अजीब सी सिहरन सी दौड़ने लगी, "पीयाली दीदी, यह क्या कर रही हो? मुझे गुदगुदी हो रही है"

"उफ्फ! इतने नखरे ना करके थोड़ी देर शांत होकर बैठेगी ताकि मैं जल्दी जल्दी तेरे नाखूनों को काट सकूं? और एकदम चुप चाप बैठ| इतना हिलेगी डोलेगी मुझे नाखूनों को काटने में परेशानी होगी और तेरी इस तरह से हिलने डुलने से देख तेरे मम्मे भी थिरक रहे हैं... अब चुपचाप ऐसे ही बैठी रह" फिर मैंने नखरा करते हुए कहा, " जब तू मेरे बारे में कभी कर रही थी तब तो बड़े मजे से मेरे मम्मे देख रही थी और हम जब मैं तेरे नाखून काट रही हो मैं तेरे को नंगी देखना चाहती हूं"

"ही ही ही ही ही ही- देखना है तो यह देखो- यह रही मेरी चूत और यह रहे मेरे" इतना कहकर आरती अपने स्तनों को जोर-जोर से दाएं बाएं हिलाने लगी|

"अरी पगली! थोड़ा सा शांत होकर बैठेगी कि नहीं? या फिर मैं तेरे बालों में अभी आठ- दस चोटियां बना दूं?"

"ठीक है पीयाली दीदी, तुम गुस्सा मत करो... तुम मेरे नाखून काट दो उसके बाद मैं तुम्हें खूब प्यार करूंगी और मैं भी तुम्हारी चूत मैं उंगली करूंगी... मुझे तुम्हारा साथ बहुत अच्छा लगता है; इसलिए मैं अच्छी बच्ची की तरह बिल्कुल चुपचाप बैठी रहूंगी"

इसके बाद पूरे कमरे में एक खामोशी सी छा गई| कमरे में सिर्फ हम दोनों नंगी लड़कियों की सांसे चल रही थी और नेल कटर की कुट-कुट आवाज|

थोड़ी देर बाद आरती से रहा नहीं गया और वह बोल पड़ी, "पीयाली दीदी एक बात का मैंने गौर किया है; बाबा ठाकुर तुमको चोदने के बाद अपना लंड तुम्हारी चूत में से निकालने में से निकालने में ज्यादा जल्दबाजी नहीं दिखाते... वह सिर्फ डाले रखते हैं... और मैंने देखा है कि उनका लंड बहुत मोटा है... इतनी मोटी सी चीज तुम अपनी चूत में लेती हो, तुम्हें तकलीफ नहीं होती?"

मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "शादी के बाद जब पहली बार मेरे पति में अपना लंड मेरी चूत में घुसाया या था... तुम मुझे बहुत दर्द हुआ था... लेकिन एक बात सोच मैं लड़की बनकर पैदा हुई हूं, ऐसा दर्द तो मुझे सहना ही पड़ेगा- चुदना तो मेरी किस्मत में जन्म से ही लिखा हुआ था- समझ ले कि यह मेरा कर्तव्य है, और वैसे भी एक दो बार चुदने के बाद सब कुछ ऐसे ठीक हो गया... और तू ही बता अगर मैं चुदवाऊँगी नहीं और जब तक मेरी चूत अंदर किसी आदमी का सड़का नहीं गिरेगा तब तक मुझे बच्चा कैसे होगा? मैं पेट से कैसे आऊंगी? और फिर मैं तो बाबा ठाकुर के यहां चुदने के लिए ही आई हुई हूं"

"हां हां हां मैं जानती हूं- जब मैंने भी जिंदगी में पहली बार अपनी चूत मैं उंगली डाली थी तो मुझे भी थोड़ा थोड़ा दर्द हुआ था... उसके बाद एक दिन काफी सारा खून भी निकला था... लेकिन उसके बाद सब कुछ ठीक हो गया… ही ही ही ही ही ही ही"

उसकी बातें सुनकर मेरा हाथ रुक गया मैं उसकी तरफ देखकर सोचने लगी कि इस लड़की कि कौमार्य झिल्ली फट चुकी है| अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो शायद मैं इसे ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा के पास दे जाती और वह उसे जिसने किसी क्लाइंट के साथ फिट कर देती और उन्हें इसकी वर्जिनिटी (कौमार्य) का रेट भी मिल जाता|

"क्या सोच रही हो पीयाली दीदी?"

"कुछ नहीं..." यह कहकर मैंने उसके नाखूनों को काटना खत्म किया और फिर उसका हाथ पकड़ कर उसे बाथरूम में ले गई| मैंने उसके हाथ पर जो लाए हैं और अच्छी तरह से साबुन लगा लगा के उसके दो टांगों के बीच के हिस्से को अच्छे से धोया| आरती के दो टांगों के बीच के हिस्से में अभी भी झाँटों का जंगल से बना हुआ था|

उसके बाद मैंने उसको कमरे में ले जाकर बिस्तर पर लिटा दिया और उससे बोली, " आरती अपनी टांगों को फैला कर लेट जा"

उसने वैसा ही किया| मैंने उसके कूल्हे के नीचे एक अखबार बिछा दिया और फिर बाजार से लाई हुई हेयर रिमूवर की क्रीम ले आई और फिर एक कैंची से उसके झाँटों को काटने लगी... आरती आंखें मूंदे हुए अपने दोनों हाथों को दोनों तरफ फैलाया कर एक अनजानी खुशी में डूबी हुई थी| और फिर उसकी झाँटों को अच्छी तरह ट्रिम के बाद मैंने हेयर रिमूवर लगाकर कुछ देर तक उसे सूखने दिया दिया|

इतने में आरती बोल पड़ी, "पीयाली दीदी, यह क्रीम कैसा सफेद सफेद सड़का की तरह लग रहा है... और इसकी गंध भी बड़ी है अजीब सी है... लेकिन एक बात बताओ तुम मेरे झाँट के बाल क्यों उतार दे रही हो?"

और फिर हेयर रिमूवर के पैकेट में दिए हुए चमचे से हल्के हल्के उसकी झाँटों को हटाने लगी... और जल्दी ही उसके यौनांग के आसपास का हिस्सा बिल्कुल साफ हो गया|

मैंने उसकी एक जांघ पर एक हल्की की चपत मार कर कहा, "बावरी, लड़की होकर पैदा हुई है गूद नहीं मरायेगी?"

"ऊँ- हुं - हुं - हुं - हुं"

मैंने उसे शांत करने के लिए कहा, " चल चल जल्दी से अब अपना मुंह खोल... मुंह खोल अपना"

आरती ने बड़े उत्साह के साथ अपना मुंह खोल दिया| और मैंने अपनी जीभ उसके मुंह के अंदर डाल दी| आरती बड़े ही आग्रह के साथ मेरा जीभ चूसने लगी|

न जाने उसे क्या महसूस हो रहा होगा कि उसने मुझे कसकर जकड़ रखा था और जिस तरह से वह मेरा जीव चूस रही थी उससे मेरे अंदर भी धीरे-धीरे उत्तेजना बढ़ती गई और मुझसे रहा नहीं गया... मैं अपनी योनि में दो उंगलियों को घुसा कर हिलाने लगी|

ऐसा थोड़ी देर तक चलता रहा और फिर मैंने एक राहत की सांस ली जब मुझे हस्तमैथुन करते हुए थोड़ी शांति मिली| मैंने आरती की योनि में हाथ फेर कर देखा- उसकी योनि और उसके आसपास का हिस्सा मेरे लगाए हुए हेयर रिमूवर क्रीम की वजह से अभी भी चिपचिपा हो रखा था|

मैंने आरती के मुंह से अपना मुंह अलग किया लेकिन वह मुझे शायद छोड़ना ही नहीं चाहती थी| लेकिन मैं जानती थी कि मुझे क्या करना है इसलिए मैं जबर्दस्ती उसको लगभग खींचते हुए कमरे से लगे बाथरूम में ले गई और बाथरूम की दीवार पर उसे उसकी पीठ टीका कर खड़ा कर दिया| बाथरूम में लगे टाइल्स मौसम की वजह से काफी ठंडे हो रखे थे इसलिए उनकी छुअन से ही आरती ऐसे कांप उठी कि मानो उसे कोई करंट लग गया हो| उसकी सांसे गहरी और बहुत तेज चल रही थी मैंने उसकी दोनों टांगों को फैलाया और उसके दो टांगों के बीच के हिस्से और कूल्हे और मलद्वार पर साबुन मलने लगी|

एक पूर्ण पुष्पिता लड़की जिसने अभी जवानी की दहलीज पर कदम ही रखा हो उसकी दोनों टांगों के बीच मि साबुन लगाते वक्त मेरे हाथ भी उत्तेजना से कांप रहे थे, मैंने किसी तरह उसके निचले शरीर को धोया और पोंछा और घर में ले जाकर बिस्तर पर लिटा दिया। आरती अब की योनि पूरी तरह से साफ-सुथरी और एकदम चिकनी हो चुकी थी, अब मुझसे भी रहा नहीं जा रहा था... मैंने अपना चेहरा उसकी दो टांगों के बीच के हिस्से में एकदम मानो गाड़ दिया और फिर अपनी उंगलियों से उसके योनि के अधरों को हल्का सा फैलाकर मैंने अपनी जीभ उसकी योनि के अंदर डालकर भग्नासा को

मैंने छलांग लगाई और अपना चेहरा उसके पैरों के बीच छिपा दिया, अपनी जीभ और अपनी जीभ की नोक उसकी योनि में डाल दी, और उसकी भगनासा को उकसाने लगी| आरती को शायद अपनी जिंदगी में ऐसा हसीना एहसास महसूस करने का मौका आज से पहले कभी मिला नहीं था... वह इस तरह से हाँफने और छटपटाने लगी कि मानो किसी ने उसे पानी में डूबा कर रखा था और काफी देर बाद उसे फिर से सांस लेने का मौका मिला हो|

आरती की सांसे लंबी गहरी और तेज होती गई जिसकी वजह से उसके मुंह से आवाज भी निकलने लगी... उसकी छाती किसी लोहार की धौंकनी की तरह लग रही थी और जब वह सांसे ले रही थी और छोड़ रही थी उसकी वजह से उसके स्तनों का जोड़ा ऊपर नीचे ऊपर नीचे हो रहा था... उसकी आंखें अधूरी सी थी और वह अपनी सांसे अपने मुंह से ले रही थी... मुझे समझ में आ गया कि यह लड़की पूरी तरह से गर्म हो चुकी है... अब देर नहीं करनी चाहिए इसलिए मैंने अपनी दो गुड़िया उसकी योनि में डाल हल्का-हल्का हिलाने लगी...

"पीयाली दीदी! पीयाली दीदी!... दर्द हो रहा है..."

"एकदम चुप!" मैंने उससे झूठ-मुठ का डांटते हुए कहा, "अगर थोड़ा दर्द होता है तो होने दे क्योंकि मैं जानती हूं इस दर्द में भी तुझको बहुत मजा आ रहा है..."

यह कहकर मैंने उसकी योनि के अंदर डाली हुई अपनी दूरियों को हिलाती रही और धीरे-धीरे उनकी गति बढ़ाती रही... इसका असर मुझे मेरी आंखों के सामने देख रहा था क्योंकि आरती की भी सांसे अब फूलने लगी थी और उसके अंदर की कामाग्नि भी अब भड़कने लगी थी... इसी बीच मेरे दिमाग में एक बात खेल रही थी- मैं सोच रही थी कि आरती एक पूर्ण पुष्पित जवान लड़की है और उसके अंदर एक प्राकृतिक सुंदरता भी है- अगर ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की नजर इस पर पड़ गई- तो शायद कुछ दिनों में यह भी उनकी हॉट गर्ल्स की फायर ब्रिगेड मियम पार्ट टाइम लवर गर्लस की टोली में शामिल हो जाएगी...

हे भगवान इस वक्त मैं यह सब क्या-क्या सोच रही हूं?

मेरी उंगलियों से आरती की योनि में मैथुन करने की गति बढ़ती गई और जो मैंने चूड़ियां पहन रखी थी अपने हाथों में वह भी बज रहे थे उनकी खनखनाहट का लय ताल एकदम शायद झाले पर चढ़ चुका था.... और मैं जानती थी आरती के अंदर जवानी का गाढ़ा-गाढ़ा रस अपनी पूरी उबाल पर था... उसकी कामना का ज्वालामुखी अब किसी भी वक्त फट सकता था... वह शायद कुछ बोलना चाहती थी लेकिन बोल नहीं पा रही थी... मैंने उसकी आंखों में आंखें डाल कर उसके मन की भाषा को पढ़ने की कोशिश की लेकिन उसके होठों पर अस्पष्ट से मेरा ही नाम आ रहा था, "पी-पीयाली ... पी-पी पीयाली दीदी..." और फिर जो होना था वही हुआ, वह एकदम से चिल्ला उठी, " पी-या-ली दी-दी---"

उसकी कामोत्तेजना का ज्वालामुखी शायद एक जबरदस्त धमाके से फटा होगा- जिसकी वजह से आरती की चीख सुनकर घर की छत पर बैठे सारे के सारे कबूतर एक तूफान की तरह उड़ गए...


क्रमशः
 
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