अध्याय २३
आज बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के आश्रम में उनके मैनेजर सेनगुप्ता साहब आए हुए थे| इसलिए मैंने सिर्फ उनके गुरुदेव की तस्वीर को अच्छी तरह से साफ किया और उसके बाद ढूंढना दिखाकर शंख बजाकर आरती का हाथ बंटाने के लिए सीधे रसोई घर में चली गई थी| इसलिए सब कुछ जल्दी-जल्दी हो गया|
बाबा ठाकुर में सत्संग के बाद ही आरती को लेकर बाजार जाने दिया| लेकिन इस बार उन्होंने मुझे ब्रा-पेंटी और ब्लाउज-पेटीकोट पहनने की इजाजत दे दी थी- क्योंकि मैं घर के बाहर कदम रखने वाली थी| पर मेरे सारे के सारे ब्लाउज जो मैं अपने साथ लाई थी वह बहुत कटे खुले से थे| ऐसा ब्लाउज पहनने के बाद अगर मैं बराबर होती तो शायद ब्रा के ऊपरी हिस्से दिख रहे होते| ऐसे ब्लाउज को पहनने के बाद सीने का बहुत सा हिस्सा और स्तनों की वक्र रेखाएं साफ दिखती है- आखिरकार यह डिजाइनर और मॉडर्न ब्लाउज जो ठहरे| इसलिए साड़ी पहनने के बाद मैंने अपने आंचल से अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा अच्छी तरह से ढक लिया|
इसके साथ ही बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने मुझसे कहा था कि मैं घर के बाहर खुले बालों में ना जाऊं इसलिए मैंने अपने बालों में एक अच्छा सा जोड़ा बना लिया था| पर मैं जानती थी कि बाजार से घर आने के बाद फिर से मुझे अपने सारे अंतर्वास उतार कर दोबारा सिर्फ साड़ी लपेट कर रहना है और अपने बालों को खुले रखना है|
और हां सत्संग के दौरान अपनी स्त्रैण छठी इंद्री की बदौलत में समझ गई बाबा ठाकुर के मैनेजर साहब- उम्र दार होने के बावजूद- मुझे सर से पांव तक अपनी आंखों से नाप रहे थे| लगता है आरती बिल्कुल सही कह रही थी; बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के घर आज तक जितनी लड़कियां या फिर औरतें आई होंगी उनमें सबसे ज्यादा सुंदर शायद में ही थी|
मुझे तैयार होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा मैं सिर्फ कमरे का दरवाजा हल्का सा भिड़ा के कपड़े बदल रही थी कितने में आरती एकदम एक फुल स्पीड में धड़धड़ा कर आती हुई स्टीम इंजन की तरह कमरे के दरवाजों के किवाड़ों को झटके के साथ खुलती हुई दाखिल हुई और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती; उसने छुपकर मेरी साड़ी उठाकर मेरी बेटी खींच कर उतार दी|
मैं एक पल के लिए तो बिल्कुल भौंचक्की रह गई और फिर मैंने संभल कर उससे पूछा, "यह क्या कर रही है"
उसने खिलखिला कर हंसते हुए मुझसे कहा, "पीयाली दीदी, चलो ना आज हम दोनों बिना पैंटी पहने की बाजार जाएंगे--- बड़ा मजा आएगा... ही ही ही ही"
***
बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के घर से पक्की सड़क करीब 10-15 मिनट के फासले पर थी| आरती ने मुझसे कहा था पक्के रास्ते पर आते ही हमें रिक्शा मिल जाएगा जिस पर सवार होकर हम लोग बाजार तक पहुंचेंगे|
कच्चे रास्ते पर चलते हुए मैं गांव के माहौल का पूरा मजा ले रही थी... रास्ता कच्चा था और दोनों तरफ घने घने पेड़ों के जैसे जंगल- जंगल थे| यह बारिश का मौसम था और कल रात बारिश भी बहुत ज्यादा हुई थी इसलिए मौसम बहुत ही सुहावना हो रखा था| लेकिन चलते-चलते मैंने गौर किया कि आते जाते सभी लोग- बड़े बूढ़े, बच्चे जवान यहां तक की औरतें भी मुझे आंखें फाड़ फाड़ कर देख रही थी| मैंने अपने बदन पर एक पारंपरिक साड़ी पहन रखी थी, मेरी मांग सिंदूर से भरी हुई थी और हाथों में किसी भी शादीशुदा बंगाली औरत की तरह मोटे मोटे शांखा और पौला थे|
पर मैं गांव की आती जाती लड़कियों की तुलना में बहुत ज्यादा गोरी थी लंबे बालों की वजह से मेरे जुड़े का साइज भी काफी बड़ा था और ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की संगत में आकर मैं नियमित रूप से योगा और जिम (gym) किया करती थी जिसकी वजह से मेरा फिगर अच्छी तरह से निखार आया था और आम लड़कियों के मुकाबले मैं थोड़ी लंबी थी और मेरे हर कदम पर मेरे स्थानों का जोड़ा जैसे थिरकते रक्त कर यौवन का रस छलका रहा था... इसलिए मैंने गौर किया कि ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने बिल्कुल सही कहा था- मर्दों की नजरें लड़की के चेहरे पर पड़ने के बाद सीधे उनकी स्तन युगल पर पड़ती है- और यहां भी ऐसा ही हो रहा था|
मैंने फुसफुसाते हुए आरती से कहा, "देख लिया ना तूने, आते जाते लोग बाग कैसे आंखें फाड़ फाड़ कर मुझे देख रहे हैं? यह सब तेरी वजह से हुआ है; तूने तो मेरी पेंटी भी खींच कर उतार दी... लगता है सब को पता चल गया है कि मैं साड़ी के नीचे बिल्कुल नंगी हूं... "
आरती भी शरारत से मुस्कुराती हुई बोली, "पीयाली दीदी, जो बातमैं तो जानती हूं उन्हें तो इस बात का पता ही नहीं... वह यह नहीं जानते कि तुम्हारी दो टांगों के बीच में बिल्कुल भी बाल नहीं है सब कुछ एकदम सफाचट"
मैंने बंगाली में कहा, "धुर! पाजी मेये (धत! बदमाश लड़की)"
"तुम जानती नहीं हो पीयाली दीदी; तुम बहुत ही सुंदर हो- तुम्हारा रंग एकदम दूधिया है... कमर तक लंबे घने बाल... भरे पूरे से मम्मे (स्तन) पतली कमर और मांसल कूल्हे..."
"तू थोड़ा चुप करेगी"
"नहीं ना पीयाली दीदी, तुमको देख कर ऐसा लगता है जैसे बड़ी ही बारीकी से तराशी हुई एक देवी की मूर्ति"
"अब देख मुझे गुस्सा आ रहा है"
"ही ही ही ही ही"
हम लोग ऐसे ही चले जा रहे थे कि इतने में किसी औरत ने पीछे से हम दोनों को आवाज लगाई, "अरी आरती! कहां चली जा रही है?"
हम दोनों ने पीछे मुड़कर देखा| हमारे पीछे एक अधेड़ उम्र की औरतऔर एक शायद मुझसे चार पांच साल बड़ी शादीशुदा लड़की खड़ी थी और उनके साथ एक छोटा सा बच्चा भी था| मैं इस बच्चे को देखते ही पहचान गई| यही लड़का उस दिन सुबह बाबा ठाकुर के आंगन में सूखे हुए गुलाब के पौधे पर बड़े मजे से सुसु कर रहा था|
"अभी आती हूं!"
यह कहकर आरती लगभग मुझे खींचते हुए उन लोगों के पास ले गई|
"क्या री आरती, कहां जा रही है?" उस अधेड़ उम्र की औरत में पूछा पर उन लोगों की निगाहें मुझ पर ही टिकी हुई थी|
"यहीं तो; हम लोग थोड़ा बाजार जा रहे हैं कुछ खरीदारी करनी है, बुआ जी"
"अच्छा एक बात बता तेरे साथ यह सुंदर सी लड़की कौन है?" उस औरत ने मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुराते हुए आरती से पूछा|
लेकिन इतने में एक छोटा सा लड़का मुझे देखकर पहचान गया था और उसअधेड़ उम्र कीऔरतों के पीछे छुप गया|
"यह हमारी नई नवेली भाभी है- बाबा ठाकुर के यहां मां बनने आई है" आरती ने बिल्कुल उत्साह के साथ जवाब दिया|
मेरा दिल धक से रह गया!
"आहा! ऐसी सुंदर बहू? एक रात में ही पेट से आ जाएगी" उस अधेड़ उम्र की औरत ने मेरे गालों पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "पर एक बात बता बाबा ठाकुर उसको कितने दिन अपने पास रखेंगे?"
"पीयाली दीदी हमारे घर इस रविवार तक ही है" आरती ने उसी उत्साह के साथ जवाब दिया|
लेकिन फिर मैंने गौर किया कि उसका चेहरा थोड़ा उतर सा गया शायद वह मुझे जाने नहीं देना चाहती थी|
"अरे वाह यह तो बड़ी अच्छी बात है! बड़े दिनों के बाद तुम्हारे घर ऐसी एक नई नवेली दुल्हन आई हुई है... जहां तक मुझे याद है पिछले डेढ़ साल से तुम्हारे यहां कोई नहीं आई"
मैंने उनकी आंखों ही आंखों में यह जान लिया कि उनके मन में यह बात चल रही थी कि मुझ जैसी लड़की को बाबा ठाकुर तो क्या कोई भी आदमी एक रानी की तरह मुझे रख सकता है|
उन्होंने बोलना जारी रखा, "बाबा ठाकुर जैसे सिद्ध पुरुष के घर उनका आशीर्वाद ग्रहण करके अगर कोई लड़की मां बनती है तो इसमें कोई हर्ज नहीं है... मैंने भी तो अपनी बेटी को बाबा ठाकुर के यहां भेजा था... शादी के करीब करीब 3 साल हो गए थे लेकिन मेरी बेटी को बच्चा नहीं हो रहा था... इसलिए उसकी सास बात बात पर मेरी बेटी को ताने मारा करती थी... इसलिए मैंने अपनी बेटी से कहा कि मैं तेरे को बाबा ठाकुर के घर भेज दूंगी.. अगर हम अपनी परंपरा को याद करें तो यह जाहिर है कि सिद्ध पुरुष लोग वर्षों की तपस्या के बाद एक शक्ति का अर्जित करते थे... इसके बाद कोई भी लड़की अगर उनसे गर्भवती हो जाए तो इसमें हर्ज ही क्या है?"
ओ अच्छा अब बात समझ में आई| यह छोटा सा बच्चा और कोई नहीं बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की ही संतान है... अब मेरी समझ में चित्र आ गया किस गांव खेड़ी में अगर कोई लड़की अपने पति के द्वारा मां नहीं बन पाती तो लोग बाग़ उसे किसी धार्मिक व्यक्ति के पास भेज देते हैं- और अगर यह लड़की उनके द्वारा गर्भवती हो जाती है तो यह इनके समाज में अच्छी तरह से स्वीकार्य है|
लेकिन अब मैं क्या करूं? मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था इसलिए मैंने सीधे धैंस- एकदम उस अधेड़ उम्र की औरत की चरणों पर गिर कर उन्हें प्रणाम किया|
जब मैं उठी तो उन्होंने सिर्फ मेरे गालों पर हाथ फिर कर प्यार से आरती से पूछा, "क्या रे आरती? बाबा ठाकुर में इस लड़की को अपना आशीर्वाद दिया कि नहीं?"
मैं समझ गई कि यह जानना चाहती है कि बाबा ठाकुर ने मेरे साथ संभोग किया है कि नहीं- न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था इस बात को जानने के लिए वह बहुत ही उत्सुक हैं|
मैंने नजरें झुका कर स्वीकृति में अपना सर गिराया कितने में आरती बोल पड़ी, "जी हां जी हां बिल्कुल! ही ही ही ही ही"
मुझे लगा कि वह अधेड़ उम्र की औरत यह सुनकर बहुत खुश हुई|
लेकिन इसी बीच मेरी नजरें उस अधेड़ उम्र की औरत के साथ आई हुई उनकी बेटी के साथ मिली और आंखों में आंखों में मैं समझ गई के आशीर्वाद के नाम पर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ में हम दोनों के साथ ही पायुकाम के मजे ले लिए थे|
***
उस दिन गांव के बाजार में हाट लगा हुआ था|
दूर-दूर से दुकानदार इस गांव में अपना सामान बेचने के लिए आए हुए थे| जिंदगी में पहली बार मैंने मछली बाजार में इतनी बड़ी-बड़ी मछलियां देखी थी| आखिरकार में एक बंगालन हूं, लेकिन शहर के बाजार में मैंने इतनी बड़ी मछलियां नहीं देखी थी|
लेकिन मुझे मछलियां खरीदने की चिंता नहीं थी क्योंकि मैं जानती थी कि आज दोपहर तक बाबा ठाकुर के घर पर कोई ना कोई ऐसी ताजा मछलियों को जरूर पहुंचा देगा| और मुझे मालूम है की मछलियां तब तक जिंदा होंगी और मुझे और आरती को मार-मार कर इन मछलियों को मौत के घाट उतारना पड़ेगा और उसके बाद काट कूट कर उनको पकाना पड़ेगा|
शहर में ऐसी ताजा सब्जियां और मछलियां नहीं मिलती!
यहां की चीजें बहुत सस्ती है| गांव के बाहर ही किसी सेठ ने अपनी फैक्ट्री लगा रखी है इसलिए यहां होज़री (hosiery) की चीजें से इतने सस्ते में मिलती है|
और इन्हीं चीजों में अगर किसी विदेशी कंपनी मैं अपना ठप्पा लगा दिया तो शायद यह चीजें दस गुना ज्यादा कीमतों में बिकेंगे- और ऐसा ही होता है|
मैंने अपना वैनिटी बैग खोलकर देखा. उसमें सिर्फ ₹480 ही पड़े हुए थे| मुझे याद है जब मैं बाबा ठाकुर के यहां आने वाली थी तब मैंने यह नहीं देखा था कि मेरे पास कितने पैसे हैं मैं सिर्फ जल्दी जल्दी तैयार होकर ब्लू मून क्लब की तरफ रवाना हो गई थी| मैंने यह देखने की जहमत नहीं उठाई थी कि मेरे बैग में कितने पैसे पड़े हुए हैं| रास्ते में मैंने यह तो सोच कर रखा था कि मुझे एटीएम से पैसे निकालने हैं, लेकिन रास्ते में कोई एटीएम नहीं मिला और मुझे भी याद नहीं रहा| फिर न जाने क्यों मैंने सोचा कि मैं अपने बैग के अंदर का छोटा वाला चेन खोल कर देखूं क्या है? और चेन खोलते ही मैं अवाक रह गई पर मेरी बांछें खिल गई| उसमें कम से कम ₹20,000 रुपए के आसपास रखे हुए थे|
मैं मन ही मन अपने बॉयफ्रेंड टॉम को याद कर रही थी क्योंकि मैं जानती थी कि यह सब उसी की कारस्तानी है|
आरती के साइज की ब्रा पेंटी खरीदने में मुझे ज्यादा देर नहीं लगी. लेकिन गांव के दुकानदार यही सोच रहे थे कि इस सुहागिन के साथ इसका शौहर क्यों नहीं आया? यह साथ में एक लड़की लेकर आई है और उसके अंतर्वास खरीद रही है| अब इसमें हर्ज क्या है? अब यह कोई गांव के लोगों को समझाएं|
अंतर्वास के अलावा मैंने आरती के लिए काफी सारे कपड़े लत्ते भी खरीद कर दिए जिसमें चार की साड़ियां भी थी| इस गांव में हाथ की बनी हुई 5 की साड़ियां इतने सस्ते में मिलती है इसका मुझे अंदाजा भी नहीं था- जो साड़ी यहां ₹400 की मिल रही थी वही शहर में करीब-करीब ₹2000 आसपास के आसपास कि मिलेंगी|
इसके अलावा मैंने आरती के लिए एक नेल कटर और काफी सारे मैचिंग नेल पॉलिश भी खरीद कर दिए|
लेकिन इतने सब खरीदारी करते वक्त बार-बार मुझे अपने बॉयफ्रेंड टॉम की याद आ रही थी- मेरे मना करने के बावजूद वह मेरे पास में चुपके चुपके पैसे डाल दिया करता था- पागल आशिक कहीं का...
इसके बाद मेरी नजर गांव के हाट में एक तड़क भड़क स्टोर पर पड़ी| वहां एक शोकेस में हेयर रिमूवर रखा हुआ था वह मैंने झट से खरीद लिया उसके बाद मेरी नजर शोकेस में रखे हुए इमिटेशन ज्वेलरी पर पड़ी| अगर कोई ध्यान से ना देखे तो असली वाली ज्वेलरी भी इन सब चीजों के आगे हार मान जाएगी|
मेरे पास पैसे तो काफीफिर देर किस बात की थी? धूम धड़ाम मैंने गले का एक मोटा सा हार पैरों की बालियां, हाथों की मोटी मोटी चूड़ियां नाक का नथ, कानों की बालियां, माथे की टिकली और बाकी काफी सारा सामान खरीद लिया|
आरती मेरे को आंखें पढ़ पढ़ कर देख रही थी क्योंकि उसे मालूम था यह सारा सामान मैं उसी के लिए खरीद रही हूं; लेकिन पहले में इनका इस्तेमाल मैं करूंगी|
इमिटेशन ज्वेलरी के दुकानदार एक जवान लड़का था और वह बार-बार मेरे चेहरे को देख रहा था और उसकी निगाहें ना चाहते हुए भी मेरे स्तनों के जोड़ों पर टिक रही थी; मैंने मन ही मन सोचा कि इसमें हर्ज ही क्या है?
उस दुकानदार की सुबह सुबह की बोहनी करीब-करीब सात हजार रुपयों की हुई|
ऐसे इमिटेशन के गहने अगर कोई लड़की पहन कर रखें और अगर किसी ने ध्यान से नहीं देखा तो ऐसा लगेगा कि लड़की ने करीब करीब दस बारह लाख के सोने के गहने पहन रखे हैं|
सारा सामान समेटने के बाद मैंने दुकानदार से पूछा, "भैया यहां कहीं कोल्ड ड्रिंक मिलेगी क्या"
"हां हां जरूर,आपको पीना है कि आप घर लेकर जाएंगी?"
"जी हमको को घर लेकर जाना है"
"हां हां हां जरूर थोड़ी देर बैठी है मैं भी लेकर आता हूं"
दुकानदार ने मेरे से कोल्ड ड्रिंक के पैसे नहीं लिए| आखिरकार सुबह-सुबह उसकी दुकान की बोहनी दो- दो सुंदर लड़कियों ने करवाई थी और ऐसा लग रहा था कि शायद सुबह-सुबह ही उसकी इतनी आमदनी हो गई जितना कि वह शायद पूरे दिन में नहीं कमा पाता|
इसके बाद हम लोग बाजार के मछली बाजार में गए| यहां ताजा हिलसा मछली मिल रही थी और वह भी जिंदा| शहर में तो ऐसी मछलियां सिर्फ बर्फ से सनी हुई होती है|
मछली वाला भी मुझे और आरती को ताड़ रहा था| आरती ने भी ब्रा नहीं पहन रखी थी और बार-बार उसका आंचल सरक जा रहा था जिसकी वजह से मिला उसके अंदर से उसकी चूचियां साफ ऊपर करा रही थी और नतीजा यह हुआ कि अगर मैं ठीक से हिसाब नहीं करती तो शायद मछली वाले को करीब करीब डेढ़ सौ का नुकसान हो जाता|
वापस लौटते वक्त हम लोगों को रिक्शा जल्दी ही मिल गया| रिक्शे में बैठकर लौटते वक्त आरती ने मुझसे कहा, "पीयाली दीदी, तुम इन बहनों को पहनकर मुझे जरूर दिखाना..."
"हां हां जरूर" मैंने जवाब दिया, " बस तू मुझको इन बहनों को एक या दो बार पहले देना- बाकी यह सारे गहने मैंने तेरे लिए ही खरीदे हैं"
"हैं?" आरती एकदम आसमान से गिरी|
"हां यह सारे गहने तेरे लिए ही है; लेकिन तुझे काम करना पड़ेगा आज शाम को बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के लिए क्या तुम मुझे अच्छी तरह से सजा देगी?"
"हां हां हां जरूर जरूर जरूर" इतना कहकर आरती ने मुझसे लिपटकर मेरे गालों को चूमा|
रिक्शावाला इतनी देर से हमारी बातें सुन रहा था अब उससे रहा नहीं गया उसने पीछे मुड़कर हम दोनों को देखा और उसके ऐसा करते ही आरती उस पर भौंक उठी, "ओ भैया! क्या देख रहे हो तुम ठीक-ठाक रिक्शा चलाओ"
मुझसे रहा नहीं गया| मैं हंस पड़ी लेकिन मैंने आरती से कहा, "सुन आरती फिलहाल बाबा ठाकुर से तू कुछ मत कहना मैं उनको एक सरप्राइज देना चाहती हूं"
"सरप्राइस, मतलब?"
"देख लेना"
क्रमशः