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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

Daddy's Whore

Daddy's Whore
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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

INDEX:

 

Nasn

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बाप और बेटी शादीशुदा हो तो
उनका रोमांस सबसे ज्यादा
रोमांचक अहसास दिलाता है।

बेस्ट थ्रेड........

प्लीज कीप कंटिन्यू.....
 

player7

Apsingh
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You right ye best story ha is site ki no doubt
 
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Rinkp219

DO NOT use any nude pictures in your Avatar
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बाप और बेटी शादीशुदा हो तो
उनका रोमांस सबसे ज्यादा
रोमांचक अहसास दिलाता है।

बेस्ट थ्रेड........

प्लीज कीप कंटिन्यू.....
Aapke bato se sahmat hoon dost... waiting more
 
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Haan. Shuruat me hinglish me likhi thi. Par fir vo account ka password bhool gai, to devnagari me likhne lagi. Fir Xossip band ho gaya... fir maine likhna chhod diya... badi lambi kahani hai :D

Chahe Jitni bhi lambi kahani kyun na ho , aapki aur dad ki love story se jyda lambi thode na hogi..
 
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Ramiz Raza

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बहुत-बहुत धन्यवाद वापस फोरम पर आने के लिए मैं प्रत्येक दिन लगातार यह देखता था कि आप वापस कहानी शुरू करोगे किसी न किसी दिन अपडेट मिलेगा आज ज्यौ ही साइट खोलें गजब का आनंद आ गया आपने अपडेट दे दिए थे लेकिन एक बात मैं यह कहना चाहूंगा लास्ट आपको जो अपडेट दिया था उसके आगे शुरू करना चाहिए था इसको लास्ट के पार्ट काटने नहीं चाहिए थे आपने जो पारट काटे हैं वह बहुत ही ज्यादा मजेदार थे
 
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odin chacha

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01 - सफ़र की शुरुआत

जयसिंह राजस्थान के बाड़मेर शहर के एक धनवान व्यापारी थे. उनका शेयर ट्रेडिंग व फ़र्नीचर इंपोर्ट-एक्सपोर्ट का बिज़नस था. वे दिखने में ठीकठाक थे, लेकिन थोड़े पक्के रंग के थे. एक अच्छे, धनी परिवार से होने की वजह से उनका विवाह मधु से हो गया था, जो कि गोरी-चिट्टी और बेहद ख़ूबसूरत थी.

जयसिंह का विवाह हुए 23 साल बीत चुके थे और उनके तीन बच्चे थे.

सबसे बड़ी बेटी, मनिका, 22 साल की थी और उसने अभी-अभी कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म की थी. मनिका से छोटा हितेश, जो अभी कॉलेज के सेकंड ईयर में था, और सबसे छोटी कनिका अभी 12वीं में आई थी. जयसिंह की तीनों संतानें रंग-रूप में अपनी माँ पर गई थी. जिनमें से मनिका को तो कभी-कभी लोग उसकी माँ की छोटी बहन समझ लिया करते थे.

मनिका पढ़ाई-लिखाई में हमेशा से ही अव्वल रही थी. ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उसने MBA में दाख़िला लेने के लिए एक प्रवेश परीक्षा दी थी, जिसमें वह अच्छे अंकों से पास हो गई थी. उसके बाद उसने कुछ चुने हुए कॉलेजों में दाख़िले के लिए आवेदन कर दिया था. कुछ दिन बाद उसे दिल्ली के एक जाने-माने कॉलेज से इंटर्व्यू के लिए बुलावा आया. तय हुआ था कि जयसिंह उसे इंटर्व्यू के लिए दिल्ली लेकर जाएँगे.

छोटे शहर में पली-बढ़ी मनिका अपने जीवन में पहली बार घर से इतनी दूर जा रही थी, सो वह काफी उत्साहित थी. उसने दिल्ली जाने की तैयारियाँ शुरू कर दीं. जब उसकी माँ ने उसे शॉपिंग पर ज्यादा खर्चा न करने की हिदायत दी तो जयसिंह ने चुपके से उसे अपना क्रेडिट कार्ड थमा दिया था. वैसे भी पहली संतान होने के कारण वह हमेशा से जयसिंह की लाड़ली रही थी.

मनिका ने बाज़ार से नए-नए फ़ैशन के कपड़े, जूते और मेकअप का सामान ख़रीदा, जिन्हें देख एक बार तो उसकी छोटी बहन कनिका का दिल भी मचल उठा था. पैकिंग करते हुए मनिका ने हँस कर उसे ठीक से पढ़ाई पर ध्यान देने की हिदायत दी, ताकि वो भी बाहर पढ़ने जा सके.

आखिर वह दिन भी आ गया जब मनिका और जयसिंह को दिल्ली जाना था. उन्होंने पहले से ही ट्रेन में रिजर्वेशन करवा रखा था.

"मनि?" मधु ने मनिका को उसके घर के नाम से पुकारते हुए आवाज़ लगाई.
"जी मम्मी?" मनिका ने चिल्ला कर सवाल किया. उसका कमरा घर की ऊपरी मंज़िल पर था.
"तुम तैयार हुई कि नहीं? ट्रेन का टाइम हो गया है, जल्दी से नीचे आ कर नाश्ता कर लो." उसकी माँ ने कहा.
"हाँ-हाँ आ रही हूँ मम्मा."

कुछ देर बाद मनिका नीचे हॉल में आई तो देखा कि उसके पिता और भाई-बहन पहले से डाइनिंग टेबल पर बैठे ब्रेकफास्ट कर रहे थे.

“Good morning papa!" मनिका ने अभिवादन किया, और पूछा "मम्मी कहाँ है?”
"वो कपड़े बदल कर अ… आ रही है." जयसिंह ने मनिका की ओर देख कर जवाब दिया था. लेकिन मनिका के पहने कपड़ों को देख वे हकला गए.


जयसिंह एक खुली सोच के व्यक्ति थे. उनके विपरीत, उनकी पत्नी मधु का स्वभाव थोड़ा रोका-टोकी वाला था. शादी के शुरुआती सालों में ही उन्होंने अपने-आप को इस तरह से ढाल लिया था कि मधु की टोका-टोकी से बच्चों की परवरिश पर कोई फ़र्क़ ना आए. इसके चलते उनके बच्चों को कुछ ऐसी आज़ादियाँ मिली हुईं थी जो आमतौर पर भारतीय घरों में नहीं होती.

जहाँ हितेश के पास नए खिलौनों का ढेर था वहीं मनिका और कनिका के पास फ़िल्मी-फ़ैशन वाले कपड़े और मेकअप का सामान. लेकिन छोटे शहर की मर्यादा का ध्यान दोनों लड़कियों को भी था और बाहर जाते वक़्त वे सलवार-सूट या जींस-टॉप पहन कर ही निकला करतीं थी. कभी-कभी अगर मधु बच्चों को टोक भी देती थी तो जयसिंह मुस्कुराते हुए उनका साथ देने लगते थे. पर आज मनिका ने जो पोशाक पहनी थी, उसे देख जयसिंह भी सकते में आ गए थे.

मनिका ने लेग्गिंग्स के साथ टी-शर्ट पहन रखी थी.

लेग्गिंग्स एक प्रकार की पायज़ामी होती है जो बदन से बिलकुल चिपकी रहती है. लड़कियाँ अक्सर लम्बे कुर्तों या टॉप्स के साथ लेग्गिंग्स पहना करती हैं. लेकिन मनिका ने लेग्गिंग्स के ऊपर एक छोटी सी टी-शर्ट पहन रखी थी जो मुश्किल से उसकी नाभि तक आ रही थी.

मनिका के जवान बदन के उभार लेग्गिंग्स में पूरी तरह से नज़र आ रहे थे. उसकी टी-शर्ट भी स्लीवेलेस और गहरे गले की थी. जयसिंह अपनी बेटी को इस रूप में देख झेंप गए और नज़रें झुका ली.
"पापा! कैसी लगी मेरी नई ड्रेस?" मनिका उनके बगल वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली.

"अ… अ… अच्छी है, बहुत अच्छी है." जयसिंह ने सकपका कर कहा.

मनिका बैठ कर नाश्ता करने लगी. कुछ पल बाद उसकी माँ भी कपड़े बदल कर आ गई, लेकिन मनिका के कुर्सी पर बैठे होने के कारण मधु को उसके पहने कपड़ों का पता न चला.
"जल्दी से खाना खत्म कर लो, जाना भी है, मैं जरा दूध गरम कर लूँ तब तक…" कह मधु रसोई में चली गई.

"हर वक्त ज्ञान देती रहती है तुम्हारी माँ." जयसिंह ने धीमी आवाज़ में कहा.

तीनों बच्चे खिलखिला दिए.

नाश्ता करने के बाद मनिका उठ कर हाथ धोने चल दी. जयसिंह भी नाश्ता कर चुके थे सो वे भी मनिका के पीछे-पीछे वॉशबेसिन की तरफ़ जाने लगे. उनकी नज़र न चाहते हुए भी आगे चल रही मनिका की ठुमकती चाल पर चली गई. मनिका ने ऊँचे हील वाली सैंडिल पहन रखी थी, जिस से उसकी टाँगें और ज्यादा तन गई थी और उसके नितम्ब उभर आए थे. यह देख जयसिंह का चेहरा गरम हो गया. उधर मनिका वॉशबेसिन के पास पहुँच थोड़ा आगे झुकी और हाथ धोने लगी. जयसिंह की धोखेबाज़ नज़रें एक बार फिर ऊपर उठ गई. मनिका के हाथ धोने के साथ-साथ उसकी गोरी कमर और नितम्ब हौले-हौले डोल रहे थे. यह देख जयसिंह को उत्तेजना का एहसास होने लगा. लेकिन अगले ही पल वे अपनी सोच पर शर्मिंदा हो उठे.

"छि:… यह मैं क्या करने लगा. हे भगवान! मुझे माफ़ करना." पछतावे से भरे जयसिंह ने प्रार्थना की.

मनिका हाथ धो कर हट चुकी थी, उसने एक तरफ हो कर जयसिंह को मुस्का कर देखा और बाहर चल दी. जयसिंह भारी मन से हाथ धोने लगे.

–​

जब तक मधु घर का काम निपटा कर बाहर आई थी तब तक उसके पति और बच्चे कार में बैठ गए थे. जयसिंह आगे ड्राईवर की बगल में बैठे थे और मनिका और उसके भाई-बहन पीछे. मधु भी थोड़ा एडजस्ट हो कर पीछे वाली सीट पर बैठ गई. उसे अभी भी अपनी बड़ी बेटी के पहनावे का कोई अंदाजा नहीं था.

कुछ ही देर बाद वे लोग स्टेशन पहुँच गए.

कार पार्किंग में पहुँच कर जब सब गाड़ी से बाहर निकलने लगे तब मधु की नज़र मनिका के कपड़ों पर गई. मधु का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा.

"ये क्या वाहियात ड्रेस पहन रखी है मनि?" मधु ने दबी ज़ुबान में आग बबूला होते हुए कहा.
"क्या हुआ मम्मी?" मनिका ने अनजाने में पूछा, उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी माँ गुस्सा क्यूँ हो रही थी.

गलती मनिका की भी नहीं थी, उसे इस बात का एहसास नहीं था कि टीवी-फिल्मों में पहने जाने वाले कपड़े आमतौर पर पहनने लायक़ नहीं होते. उसने तो दिल्ली जाने के लिए नए फैशन के चक्कर में वो ड्रेस पहन ली थी.

"कपड़े पहनने की तमीज़ है कि नहीं तुमको? घर की इज़्ज़त का थोड़ा तो ख़याल करो." उसकी माँ का गुस्से पर काबू न रहा और वह थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोल गई थी, "ये क्या नाचने वालियों जैसे कपड़े पहन कर आई हो तुम?"

मनिका अपनी माँ की रोक-टोक पर अक्सर चुप रह कर उनकी बात सुन लेती थी. लेकिन आज दिल्ली जाने के उत्साह और ऐन वक्त पर उसकी माँ की डांट ने उसे भी गुस्सा दिया.

"क्या मम्मी आप हर वक्त मुझे डांटते रहते हो. कभी आराम से भी बात कर लिया करो." मनिका ने तमतमाते हुए जवाब दिया.
"क्या हो गया इस ड्रेस से ऐसा? फैशन का आपको कुछ पता तो है नहीं! पापा ने कहा की बहुत अच्छी ड्रेस है…"

जयसिंह उनकी ऊँची आवाजें सुन उसी तरफ आ रहे थे सो मनिका ने उनकी बात भी साथ में जोड़ दी थी.

"हाँ, एक तुम तो हो ही नालायक़ ऊपर से तुम्हारे पापा की शह से और बिगड़ती जा रही हो…" उसकी माँ दहक कर बोली.
"क्या बात हुई? क्यूँ झगड़ रही हो माँ बेटी?" जयसिंह पास आते हुए बोले.
"सम्भालो अपनी लाड़ली को, रंग-ढंग बिगड़ते ही जा रहे हैं मैडम के." मधु ने अब अपने पति पर बरसते हुए कहा.
"अरे क्यूँ बेचारी को डांटती रहती हो तुम? ऐसा क्या पहाड़ टूट पड़ा है…"

जयसिंह जानते थे कि मधु मनिका के पहने कपड़ों को लेकर उससे बहस कर रही थी पर उन्होंने आदतवश मनिका का ही पक्ष लेते हुए कहा.

"हाँ और सिर चढ़ा लो इसको आप…" मधु का गुस्सा और बढ़ गया था.

लेकिन जयसिंह उन मर्दों में से नहीं थे जो हर काम अपनी बीवी के कहे करते हैं. मधु के इस तरह उनकी बात काटने पर वे चिढ़ गए.

"ज्यादा बोलने की ज़रूरत नहीं है, जो मैं कह रहा हूँ वो करो." जयसिंह ने मधु हो आँख दिखाते हुए कहा.

मधु अपने पति के स्वभाव से परिचित थी. उनका गुस्सा देखते ही वह खिसिया कर चुप हो गई.

जयसिंह ने घड़ी में टाइम देखा और बोले, "ट्रेन चलने को है और यहाँ तुम हमेशा की तरह फ़ालतू की बहस कर रही हो. चलो अब."

–​

वे सब स्टेशन के अन्दर चल दिए.

उनका ड्राईवर, हरी, सामान उठाए पीछे-पीछे आ रहा था. जयसिंह ने देखा कि उसकी नज़र मनिका की मटकती कमर पर टिकी थी और उसकी आँखों से वासना टपक रही थी.

"साला हरामी, जिस थाली में खाता है उसी में छेद…" उन्होंने मन ही मन ड्राईवर को कोसते हुए सोचा.

लेकिन 'छेद' शब्द मन में आते ही उनका दिमाग़ भटक गया और वे एक बार फिर अपनी सोच पर शर्मिंदा हो उठे. वे थोड़ा सा आगे बढ़ मनिका के पीछे चलने लगे ताकि ड्राईवर की नज़रें उनकी बेटी पर न पड़ सकें.

उनकी ट्रेन प्लेटफ़ोर्म पर लग चुकी थी.

जयसिंह ने ड्राईवर को सीट नंबर बता कर सारा सामान वहाँ रखने भेज दिया और खुद अपने परिवार के साथ रेल के डिब्बे के बाहर खड़े हो बतियाने लगे.

लेकिन हितेश और कनिका ही थे जो इधर-उधर की बातों में लगे थे. मधु और मनिका अभी भी एक दूसरे से तल्खी से पेश आ रहीं थी. वे तीनों इसी तरह असहज से खड़े थे कि ट्रेन की सीटी बज गई. ड्राईवर भी सामान रख बाहर आ गया था. जयसिंह ने उसे कार के पास जाने को कहा और फिर हितेश और कनिका को ठीक से रहने की हिदायत देते हुए ट्रेन में चढ़ गए.

मनिका ने भी अपने छोटे भाई-बहन को प्यार से गले लगाया और अपनी माँ को जल्दी से अलविदा बोल कर ट्रेन में चढ़ने लगी. जयसिंह ट्रेन के दरवाजे पर ही खड़े थे, उन्होंने मनिका का हाथ थाम कर उसे अन्दर चढ़ा लिया.

जब मनिका उनका हाथ थाम कर अन्दर चढ़ रही थी तो एक पल के लिए वह थोड़ा सा आगे झुक गई थी और जयसिंह की नज़रें उसके टी-शर्ट के गहरे गले पर चली गई. मनिका के झुकते ही उन्हें उसकी गुलाबी ब्रा में क़ैद जवान वक्ष के उभारों का दीदार हो गया था.

22 साल की मनिका के दूध से सफ़ेद उरोज देख जयसिंह फिर से विचलित हो उठे. उन्होंने जल्दी से नज़र उठा कर बाहर खड़ी मधु की ओर देखा. मधु दोनों बच्चों का हाथ थामे उन्हें देख रही थी. एक पल के लिए उन्हें अकारण ही मधु पर ग़ुस्सा करने पर बुरा सा लगा. लेकिन तभी एक हल्के से झटके के साथ ट्रेन चल पड़ी और जयसिंह भी अपने-आप को सम्भाल अपनी बर्थ की ओर चल दिए.

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Yeh story maine Hinglish mein padha tha ab devnagari font mein padhakar maja aayega 😍
 

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Chahe Jitni bhi lambi kahani kyun na ho , aapki aur dad ki love story se jyda lambi thode na hogi..

7 saal ho gaye... 22 ki thi tab... aage aap guess kar lo... 🙈
 
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Yeh story maine Hinglish mein padha tha ab devnagari font mein padhakar maja aayega 😍

Haan. Vo saara likha hua delete ho gaya pichhli forum par... itne lambe support ke liye "Muah"
 
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