दिव्या ये सुनकर हां में गर्दन हिला देती हैं और अलमारी से दवाई निकाल के खा लेती है और नीचे नुपुर के पास जाके उसकी मदद करने लग जाती हैं।
अब आगे...
Update - 56
अब थोड़ी देर में खाना बन जाता हैं और दिव्या पलक और शिवम् को बुलाने उन दोनो के कमरे में चली जाती हैं।
अब शिवम् के पास जब दिव्या पहुंचती तो शिवम् वहा पे कुछ काम कर रहा होता हैं तो वो उसके पास जाती हैं और चिपक के उसके पास बैठ जाती हैं। अब दिव्या की चूचियां शिवम् को चुभ रही होती हैं इसकी वजह से उसका लंड खड़ा हो जाता हैं। अब दिव्या शिवम् से चिपके हुए ही उसके गालों को चूमती हैं और एक हाथ से उसके लंड को सहलाने लग जाती हैं। अब दिव्या अपने होठों को शिवम् के गालों से हटा कर बोलती हैं: पापा खाना गरम हैं जल्दी खा लो वरना ठंडा हो जायेगा।
शिवम्: मैं तो कबसे भूखा हूं। तू खिलाई नही रही है।
दिव्या: मैने कब रोका आपको और दुपहर में अपने खाया तो था।
शिवम्: जान इतने सालो से भूखा हूं एक बार खाने से कहा भूख मिटेगी।
दिव्या: हैं? क्या बोल रहे हो आप पापा। मम्मी रोज तो खाना देती हैं आपको।
शिवम्: वो तो देती ही हैं पर मैं तो तेरा भूखा हूं। मतलब तू खाना नही देती हैं क्या करू। कितने सालों से खाना चाहता हूं तुझे। मतलब तेरा दिया हुआ खाना।
दिव्या शर्माते हुए बोलती हैं: पापा आपके मतलब सब समझ रही हूं। पर ये बताओ कबसे भूखे हो मेरे। मेरा मतलब मेरे दिए हुए खाने के।
शिवम्: जबसे तू हुई हैं तबसे मुझे और तेरी मां को लगा था तू बड़ी होके देगी। पर तू अब दे रही है।
दिव्या: आप दोनो को चाहिए ही था तो पहले ले लेते।
शिवम्: जान तू पहले ही खुद ऐसी बन जाती तो ही मजा आती ना अभी भी नुपुर ने तुझे खाना गरम करना और देना सिखाया है।
दिव्या: सॉरी जान अब मैं रोज तुम्हे और मम्मी को दूंगी खाना गरमा गरम ताकि तुम दोनो की भूख मिट जाए।
शिवम्: पक्का ना।
दिव्या: अब मैं कैसे यकीन दिलाऊ आपको। मेरी इस छोटी बहन की कसम। (ये दिव्या अपनी चूत को छूते हुए बोलती हैं)
शिवम्: तो मेरा शहजादा भी तेरी बहन को खुश रखेगा बस तेरी बहन की एक बार तबियत ठीक हो जाए।
दिव्या अब हस्ते हुए बोलती हैं: और तब तक मैं आपके शहजादे का खयाल रखूंगी। पर अभी नीचे चलो वो खा लो फिर शहजादे को भी खोला दूंगी मैं।
शिवम् अब दिव्या को kiss करता है और फिर उसके साथ नीचे चल देता हैं। नुपुर दोनो को आता देख पुछती हैं: इतनी देर क्यों लग गई तुम दोनो को।
दिव्या: मम्मी पापा कुछ काम कर रहे थे इसलिए मैं भी उनको लेके आने के लिए रुक गई।
नुपुर: ठीक हैं चलो बैठो मुझे तुम दोनो लड़कियों से कुछ बात करनी है।
दिव्या और शिवम् बैठ जाते हैं अपनी अपनी जगह पे और नुपुर सबके बैठने पे बोलती हैं: सुनो दिव्या और पलक एक बात थी जो मैने सोची थी के तुम दोनो को अभी नहीं बाद में बोलूंगी पर अब सोचा हैं के तुम दोनो को बता ही दूं। पर ये अभी हम लोगो में ही रहेगी बात और किसी को भी नहीं पता चलनी चाहिए ये बात समझी दोनो।
दिव्या उत्सुकता में पूछती हैं: मम्मी ऐसी कौनसी बात हैं जो ये सब बोल रही हो आप।
नुपुर: देखो बात ऐसी हैं के हो सकता हैं। मतलब शायद।
दिव्या: मम्मी क्या बात हैं सीधे सीधे बताओ ना।
नुपुर: हां बता रही हूं। अब सुनो हो सकता हैं के मतलब मुझे लगता हैं के मैं प्रेगनेंट हूं।
दिव्या एक दम बड़ी बड़ी आंखों से नुपुर को देखती हैं और बोलती हैं: क्या मतलब आपका के आप प्रेगनेंट हो?
नुपुर: प्रेगनेंट का क्या मतलब होता हैं। हो सकता हैं मैं मां बनने वाली हूं दुबारा। शायद तेरा भाई आने वाला हैं।
दिव्या और पलक एक दूसरे की तरफ देखती हैं और दिव्या की आंखों में चमक आ जाती है और बोलती हैं: सच में मम्मी। आप झूठ तो नही बोल रही हो ना।
नुपुर: हां मेरी जान सच में मैने अभी प्रेगनेंसी कीट से चेक किया हैं तो पॉजिटिव आ रहा हैं। एक बार बस डॉक्टर के पास जाना हैं।
दिव्या: सच में मम्मी ये तो बहुत खुशी की बात हैं मैं बड़ी बहन बनूंगी। हाए मेरा सपना था एक छोटे भाई या बहन का।
नुपुर: हम्म तो अब समझो सच हो गया हैं तेरा सपना।
दिव्या: मम्मी आप डॉक्टर के पास जाओ ना कन्फर्म करवा के आओ ना।
नुपुर: कल जाऊंगी तेरे पापा के साथ क्युकी तुम दोनो तो कार चला नही पाते हो अभी।
पलक: मम्मी आप बोलो आपके लिए सीख लेंगे कार भी हम दोनो।
दिव्या: हां मम्मी।
नुपुर: ठीक हैं फिर कल से तुम दोनो पापा से कार सीखना चालू करो क्युकी अगर मैं प्रेगनेंट हुई तो तुम्ही दोनो को मुझे चेकअप पे लेके जाना पड़ा करेगा।
दिव्या और पलक तुरंत जोश में हां बोल देती हैं। दिव्या बहुत खुश होती हैं क्युकी उसको इस वक्त इस दुनिया की सारी खुशियां जैसे मिल चुकी हो। एक तो उसको उसकी मां का प्यार मिल रहा था जिनसे वो ज्यादातर वक्त लड़ती रहती थीं। ऊपर से आज उसने अपने पापा के साथ एक पवित्र रिश्ता स्थापित कर दिया था। एक रात पहले ही उसके एक बड़ी बहन पलक के रूप में मिली थी। उसको ये पता चला था के जिन दो भाई बहन से वो सबसे ज्यादा प्यार करती हैं वो उसके सगे भाई बहन हैं। ऊपर से अब नुपुर की खबर ने उसको पीछले कुछ दिनों में पाई सारी खुशखबरो में चांद चांद लगा दिए थे।
दिव्या मन में सोचने लग जाती है: भगवान मुझे सब कुछ दे रहे हैं पीछले कुछ दिनों से। मेरे मां बाप का एक ऐसा प्यार जिससे सुंदर, पवित्र और प्यारा कुछ नही हो सकता हैं। उसके ऊपर से मेरी जान ने मुझसे प्यार का इजहार भी कर दिया हैं और हम दोनो भी एक रिश्ते में आ गए हैं। मुझे इतने भाई बहन भगवान दिए दे रहे हैं के अब समझ नही आ रहा हैं के और क्या मांगू। मेरे इस भाई या बहन को तो मैं पाल सकती हूं। उसको मां का प्यार और दुलार दे सकती हूं। हाए भगवान अब तो मांगने को बस यही लगता है रह गया हैं के मुझे भी मां बना दो पापा के बच्चे का।
अब इतना सोचते सोचते दिव्या के चेहरे पे मुस्कान आ जाती हैं जिसको नुपुर देख लेती हैं और तुरंत पूछती हैं दिव्या से: जान ऐसा क्या सोच रही हो।
दिव्या: कुछ नही मम्मी ऐसे ही।
नुपुर: बोलो जल्दी क्या सोच रही थी। कही पापा से प्रेगनेंट होने के सपने तो नही देख रही थी।
नुपुर ने ये बात दिव्या को छेड़ते हुए बोली होती हैं जिसपे शिवम् भी शर्मा जाता हैं और अपना चेहरा नीचे कर देता हैं। और दिव्या खिसिया जाती हैं और झूठ मूठ का गुस्सा दिखाते हुए बोलती हैं: कुछ भी बोल रही हो मम्मी मैं ऐसा कुछ नही सोच रही थी।
नुपुर: अच्छा सच में तो (शिवम् के लंड की तरफ इशारा करते हुए आंखों से) इस शहजादे की कसम खा।
दिव्या: मम्मी कुछ भी। मैं क्यू खाऊं इसकी कसम।
नुपुर: हां इसकी कसम कहा तुम तो इसको ही खा जाओगी और फिर बच्चो की फौज खड़ी करोगी घर में।
दिव्या अब चीड़ चिड़ाते हुए: मम्मी क्यू परेशान कर रही हो। मैं कुछ नही सोच रही थी।
नुपुर: सच बता मैं छोर दूंगी तुझे। मैं जानती हूं तू क्या सोच रही थी मैं भी तेरी उमर में रही हूं और तुझे अच्छे से जानती हूं।
दिव्या: अब जानती हो क्या सोच रही थी तो शांत रहो ना। (और दिव्या शिवम् की ओर आंखों से इशारा करती हैं जो के अभी भी शर्मा रहा होता हैं दोनो की बातों से)
नुपुर दिव्या का इशारा समझ जाती हैं पर फिर भी वो बात को बढ़ाने के मूड में होती हैं तो फिर से बोलती हैं: मैं जानती हूं सब पर तेरे मुंह से सुनना चाहती हूं और मर्दों को तो शर्माना ही आता हैं उनके चक्कर में हम थोड़ी बात चीत छोर देंगे करना।
दिव्या अब झुंझलाते हुए: मम्मी आप नही मानोगी ना।
नुपुर बहुत प्यार और शरारत भरे अंदाज में: नही मेरी जान।
अब दिव्या नुपुर की बात से एक दम से नॉर्मल हो जाती हैं और बोलती हैं: आप ना मम्मी मुझे गुस्सा भी मत होने दिया करो। चलो आप जीती मैं हारी और मैं उस वक्त ये सोच रही थी के भगवान ने इतने दिनो में मुझे सब कुछ दे दिया। आपका प्यार, पापा के साथ संबद्ध, पलक दी, निशा और निशांत दोनो मेरे प्यार भाई बहन में सगे भाई बहन निकले और आज आप ने खबर दे दी, उसके ऊपर से काव्या ने मुझसे इजहार कर दिया हम दोनो एक रिलेशनशिप में आ गए। अब यही सोच रही थी मांगने को कुछ रहा ही नहीं भगवान से अब ज्यादा से ज्यादा भगवान से पापा के बच्चे की मां बनने की दुआ मांग सकती हूं। और यही सोच के मुस्कुराहट आई थी मुझे। तो आप सही ही थी के पापा के बच्चे की मां बनने के सपने देख रही थी।
नुपुर मुस्कुराते हुए: अब इतनी सी बात पे तुम शर्मा रही थी। जान हम चारो में मैं यही तो चाहती हूं के कोई शर्म न रहे अब तुम दोनो (शिवम् और दिव्या) एक दूसरे की तारीफ करके शरमाओ तो चलता हैं पर ये सब बातों पे नही चलेगा। जो भी बात हैं बिना शर्म के बोलना सीखो। और ये बात पलक तुम्हारे लिए भी हैं।
दिव्या और पलक हां में गर्दन हिला देते हैं। उधर शिवम् के लिए सब कुछ बहुत ज्यादा ही खराब मोहाल हो रहा होता हैं तो वो मन में इस जगह से निकलने की सोचता हैं और टेबल से बिना ज्यादा कुछ खाए उठने लगता हैं। जिसपे नुपुर शिवम् का हाथ पकड़ लेती हैं और बोलती हैं: मैं भी न बुद्धू हूं इन दोनो को समझा रही हूं पहले तो बेशरम बनने की शिक्षा आपको ही देनी पड़ेगी।
अब नुपुर हसने लगती है और शिवम् को वापस बैठालते हुए बोलती हैं: ये दोनो आपके साथ सब करने के लिए तयार हैं तो आपको भी वो सबमें शर्म नहीं हैं। भले वो सब मैं ही बेची आप लोगो की पर अब इन चीजों में जब शर्म बिक ही गई हैं तो बात करने में क्यू नही बेच पा रहे हो आप।
शिवम्: मेरी मां तुम सुधारने का क्या लोगी। अब ये नही दिख रहा क्या बात हो रही हैं यहां।
नुपुर: मैं सुधारने के बदले में अपनी बेटियो की जवानी लूंगी और उनका कुंवारापन दोगे? और दूसरी बात आज बात हो रही है पर हम सबको पता हैं कल को ये होना भी हैं ही। मेरी दिव्या आपके बच्चे को जन्म तो देगी भले वो चाहे या नहीं और भले ही आप चाहो या नहीं ये होना हैं ही। तो क्यू बातों से भी बचना हैं आप लोगो को। सब बेशर्म बनो और आप दोनो सोचो भी कब मुझे मेरे बच्चे और नाती का मुंह दिखाने वाले हो। मैं तो अगर प्रेगनेंट हुई तो 9 महीनो में दिखा ही दूंगी आपको आपके बच्चे का मुंह और इन दोनो को इनके भाई का मुंह। आप लोग कब दिखा रहे हो ये बताओ।
अब नुपुर की इन बातो से सब शर्म से पानी पानी हो जाते हैं और शिवम् बोलता हैं: अभी मुझे कुछ नही सोचना है। तुम चुप रहो थोड़ा।
नुपुर एक दम आराम से एटीट्यूड में एक सलाद का टुकड़ा उठाते हुए बोलती हैं: ठीक हैं जैसी आप लोगो की मर्जी मैं तो भाई बस बोल सकती थी पर मानना या ना मानना आप लोगो के ऊपर हैं। रहो ऐसे ही शर्माते हुए। मैं तो मजे कर ही लूंगी और मैं तो बेशर्म हूं भी तो मजे में भी हूं ही मैं। देखलो तुम लोगो अपना अपना।
नुपुर जान बुझ कर ये कर रही होती हैं जिससे जो बची कूची इन लोगो में छुपी हुई शर्म हैं उसको खतम किया जा सके इन बातो को इनके जेहन में डाल कर। और कही न कही नुपुर ने अपना काम बखूबी किया होता हैं।
शिवम् के मन में दिव्या के मां बनने की बात घर कर गई होती हैं और वो बार बार दिव्या को अपने बच्चे की मां के रूप में देख रहा होता हैं। उसके मन में आने लगता हैं: यार अगर देखूं तो नुपुर सही बोल रही हैं। दिव्या भी तो चाह रही हैं मेरे बच्चे की मां बनना तो मैं क्यू इतना सोच रहा हूं और वैसे भी दिव्या इतनी प्यारी और सुंदर तो हैं ही और मैं उस से हमेशा से प्यार भी करता आया हूं जितना मैं नुपुर से करता हूं। और मेरी ही बेटी हैं और मैं वैसे भी कोई सीधा बाप तो हूं नहीं मैं भी तो इन सबको इतना मानता हूं ही तो दिव्या की बात पे इतना झिझक क्यू रहा हूं। शायद दिव्या को शर्म आ रही हैं इसलिए तो नही। मेरी जान को मेरी वजह से शर्म में डूबना पड़ रहा हैं। मैं क्या करूं समझ नही आ रहा हैं। एक काम करूंगा दिव्या से इस बारे में कल अकेले में बात करूंगा। उसकी इच्छा क्या हैं पता तो करू।
उधर दिव्या भी मन में यही सोच रही होती हैं: जाए बेचारे में पापा मेरी इतनी सी बात पे कितना शर्मिंदा हो गए पर मम्मी सही बोल रही हैं मुझे प्यार तो हैं ही पापा से तो कल को मैं मां बन भी जाती हूं तो क्या ही हैरानी की बात होगी। इस संबंध का ये भी तो एक पड़ाव ही होगा। पर पापा को समझना पड़ेगा और हो सकता हैं पापा मेरी चिंता में ये सब से हट रहे हो के मैं बच्ची हूं। कही इसलिए तो नही माना कर रहे हैं पापा। कल मैं पापा से अकेले में बात करती हूं।
वही पलक के मन में भी incest की एक बहुत गहरी आग नुपुर लगा चुकी होती हैं। पलक भी यही सब सोच रही होती हैं: यार क्या दिव्या और पापा सच में कल को करेंगे बच्चा अगर दिव्या कर सकती हैं तो मैं भी कर सकती हूं तो क्या पापा मेरे लिए भी मानेंगे। हाए भगवान क्या क्या सोच रही हूं मैं। कल ये बात पापा और दिव्या से करती हूं मम्मी से बेकार हैं ये सब बात करना।
अब तीनो इन्ही सोच में खाना खा रहे होने और नुपुर तीनो को देख के मन ही मन मजे ले रही होती हैं क्युकी वो को चीज इन तीनों के दिलो तक पहुंचना चाहती थी वो उनके चेहरे पे नुपुर पढ़ पा रही होती हैं।
नुपुर मन में सोचती हैं: यहां तक सफर तो पहले से ही आसान था इन सबको एक दूसरे के बिस्तर तक लाने का पर सबसे जरूरी तो यही पड़ाव है के इन तीनों को ये समझाना के इस संबंध में तीनो को हर हद तक जाना होगा तभी ये रिश्ता और अच्छा हो पाएगा। सिर्फ बिस्तर में एक दूसरे के नीचे लेटने से नही एक रिश्ता तब सफल होता है जब उसमें एक दूसरे के लिए प्यार हो और उस रिश्ते की आगे की राह हो। और ये लोग बस अभी के मजे में लगे हुए थे आगे रिश्ते की राह बंद कर के। अब वो राह कुछ दिनों में खुल ही जायेगी।
नुपुर अपने इतराते हुए सोचती हैं: हाए मैं कितनी होसियार हूं। नजर न लगे मुझे।
और नुपुर मन ही मन हसने लगती हैं। अब ऐसे ही चारो लोग खाना खत्म कर लेते और दिव्या और नुपुर सारे बर्तन किचन में ले जाते हैं और दिव्या बर्तन साफ करने लगती हैं। वही पलक दिव्या के रूम में चली जाती हैं और शिवम् अपने कमरे में टीवी चालू कर के न्यूज देखने लग जाता हैं।