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Romance बेडु पाको बारो मासा

blinkit

I don't step aside. I step up.
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दोस्तों जल्दी में लिखा आज्ञा अपडेट है, आशा है अगले सप्ताह से रेगुलर अपडेट मिलेगा।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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समीर अभी अआधाए रस्ते में ही था की उसका फ़ोन बज उठा उसने बाइक की सीड कम की और कॉल उठाया, दूसरी और नीतू थी लेकिन ट्रैफिक के कारन समीर आवाज़ पहचान नहीं पाया,

"हेलो कौन ?" उसने थोड़ा चिल्ला कर पूछा
"तुम समीर ही हो ना ?"

"कौन नीतू ? हाँ मैं समीर ही हूँ, बोलो क्या बात है ?" समीर ने आवाज़ पहचान कर पूछा
"शुक्र है तूने पहचाना तो, मुझे लगा तू भूल ही गया "

"अरे नहीं वो मोबाइल दूसरा लिया है इसलिए नंबर मिस हो गया था सबका, तुम बताओ कैसी हो ?
मैं भी ठीक ही हूँ, अच्छा मुझे तेरी आवाज़ ठीक से नहीं आरही है, बहुत शोर की आवाज़े आरही है , कहा है तू ?"

"अरे मैं बाइक पर हु किसी काम से फरीदाबाद आया था, तुम बोलो क्या बात है "
"तू कभी घर में भी रहता है या सारा दिन घूमता रहता है? चोर कोई खास बात नहीं थी बस ये पूछना था की कल तू मुझे कहा मिल सकता है ?"

"क्या काम था बताओ, मेरा कोई पक्का नहीं है कल का अभी "
"ओके तो कल मैं मयूर विहार की साइड आती हूँ, वहा थोड़ी देर के लिए मिले जइयो, ज़यादा टाइम नहीं लुंगी तेरा "

"तुम मयूर विहार क्या करने आरही हो ? क्या कुछ काम है तुम्हे या केवल मुझसे मिलने के लिए आरही हो ?" समीर को हैरत हो रही थी की आज अचानक इतने दिन के बाद कॉल और फिर मिलने के लिए सीधे उसी के एरिया में आना
"नहीं मुझे केवल तुमसे काम है, बस तुम मुझे बता दो वह कैसे आना है, मुझे रास्ता नहीं पता "

"तुमने इधर के साइड का कोनसा एरिया देखा हुआ है ? "
"मुझे उधर का कुछ नहीं पता, बस कनाट प्लेस तक का मालूम है मुझे "

"तो फिर ठीक है अगर केवल तुमको मुझसे मिलना है तो कल मैं ११ बजे के टाइम किसी काम से कनाट प्लेस में रहूँगा तुम वही मिल लेना मुझसे "
"हाँ ये ठीक रहेगा, लेकिन कनाट प्लेस में कहा मिलेगा तू मुझे ?"

"तुम कनाट प्लेस पहुंच कर मुझे कॉल करना मैं समझा दूंगा आगे का रास्ता "
"ओके फिर ठीक है कल मिलते है, अब मैं फ़ोन रख रही हूँ मुम्मा बुला रही है "

नीतू ने फ़ोन रख दिया, उधर समीर सरे रस्ते यही सोचता रहा की आखिर इस लड़को उस से क्यों मिलना है वह भी इतने दिनों के बाद, पुरे रास्ते में वो दिमाग लगता रहा लेकिन उसे कोई कारन समझ नहीं आया इसलिए उसने कल पर छोड़ दिया, वैसे भी कल उसे कनाट प्लेस में काम था ही वह से थोड़ा टाइम निकल कर उस से भी मिल लेगा।

****

समीर जल्दी जल्दी तैयार होकर गयारह बजे से पहले ही कनाट प्लेस जा पंहुचा, उसने सोचा था की जल्दी से क्लाइंट से मीटिंग करके फ्री हो जायेगा उसके बाद नीतू से मिल लेगा, लेकिन अभी वो ऑफिस में घुस ही रहा था की नीतू का कॉल गया

"हाँ समीर, मैं सीपी पहुंच गयी हुई , अब कहा आऊं ?"
"अरे अभी तो ११ भी नहीं बजे और तुम पहुंच भी गयी, मैं भी तुमको ११ के बाद मिलने का बोला था "

"अरे आज कॉलेज बंक किया तो सीधा इधर ही आगयी, अब तू बता मैं क्या करू ?"
"कुछ नहीं अब तुम जहा चाहो वह घूमो, मैं भी सीपी में ही हूँ लेकिन एक मीटिंग के लिए जा रहा हूँ, मेरा वेट करो वह से फ्री होकर कॉल करता हूँ फिर आगे का देखेंगे "

"ओके ठीक है, जल्दी होना फ्री मुझे अकेले अजीब लगेगा यहाँ "
"हाँ आयी कैन अंडरस्टैंड, जस्ट गिव मी सम टाइम ओके "

नीतू ने ओके कह कर फ़ोन काट दिया
समीर ने अंदर जा कर जल्दी जल्दी मीटिंग ख़तम की और जल्दी से बहार आकर उसने नीतू कॉल किया

"हाँ मैं फ्री हूँ अब बताओ तुम कहा हो "
"मैं यहाँ पालिका में घूम रही हूँ, अब बताओ कहा आना है "

समीर ने जल्दी जल्दी उसे एक मक्डोनल्ड का पता समझाया जो पालिका के बिलकुल सामने था और खुद भी जल्दी से उस मक्डोनल्ड की ओर चल दिया
समीर हाथ में हेलमेट और पीट पर बैग संभाले जैसे ही अंदर घुसा उसे नीतू सामने एक टेबल पर बैठी नज़र आयी, डार्क नीले कलर के सूट में उसका गोरा चेहरा दमक रहा था, उसने मुस्कुराते हुए अपना हाथ हवा में उठा कर समीर का धयान अपनी और आकर्षित किया, सुबह का टाइम था इसलिए भीड़ नहीं थी, वो सीधा नीतू के पास पंहुचा और हेलमेट और बैग रख कर उसके सामने की सीट पर पसर कर बैठ गया।

समीर ने आराम से बैठने के बाद नीतू की ओर नज़र दौराई तो देखा की नीतू हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाये बैठी, समीर झेंप गया और जल्दी से सीधा होकर उस का हाथ अपने हाथो में लेकर हैंडशेक किया और वापस पसर गया

"हाँ तो नीतू, बताओ क्या हाल है तुम्हारे "
"मैं तो ठीक हूँ, तू बता हीरो कहा गायब था इतने दिनों से ?"

"हाहाहा मैं हीरो नहीं विलेन हूँ , तुमने सुना नहीं मुझे तृषा ने क्या क्या नहीं कहा है, उस से पूछो तो वो मुझे शकाल से भी बड़ा विलेन बोलेगी "
"हहह ये तो है यार, लेकिन असलियत में तो तू हीरो है जिसने अपने दोस्त के लिए क़ुरबानी दी "

"नाह, मैंने कोई क़ुरबानी वुबानी नहीं दी, मैंने तो बस इसलिए सब सुन लिया ताकि बात आगे न बढे, ऐसी बातों से केवल बदनामी होती है खास तौर से लड़कियों की, लड़का का तू कुछ जाता है नहीं "
"ये बात तो तूने सच कही है, वो तो भला हो आस्था की मम्मी का, वो बहुत समझदार है नहीं तो बात बढ़ भी सकती थी "

"हाँ सही कहा तुमने, खैर छोड़ो ये बताओ मुझे कैसे याद किया तुमने ?"
"हहह अरे अब तूने उस दिन के बाद तो किया नहीं तो मैंने सोचा की मैं ही तुझे याद कर लू"

"अच्छा किया, अब तुम्हे पता तो है इतनी भसड़ हो गयी थी तो मैंने सोचा की दूर रहने में भी भलाई है बस इसीलिए किसी को कॉल नहीं किया "
"हाँ मैं भी इसीसलिए चुप थी, मैं भी नहीं चाहती थी की तृषा को पता लगे कुछ "

"हाँ तो अब ठीक है वो ?"
"क्यों तुझे नहीं पता क्या ?"

"मुझे क्या पता होगा " समीर ने हैरानी से पूछा ?
"क्यों, तेरे दोस्त ने नहीं बताया तुझे ? तुम लड़के तो साडी बातें शेयर करते हो आपस में "

"हाँ करते है लेकिन मैं नहीं करता, और दूसरी बात अंकुश ने मुझे कुछ भी नहीं बताया क्यंकि उस दिन के बाद मैंने उसे बोल दिया था की वो मुझे तुम्हारे ग्रुप में किसी तरह से इन्वॉल्व न करे और न मुझे कुछ बताये "
"ओह्ह अगर ऐसा है तो फिर मान लेती हूँ की तुझे नहीं पता होगा "

"हाँ तो अब बताओ क्या बात है और मुझे क्या नहीं पता "
"अरे बाबा उस दिन के बाद तृषा और आस्था की लड़ाई हो गयी, आस्था ने तृषा से और मेरे से दोस्ती ख़तम कर दी और वो अब हमसे बात भी नहीं करती , अंकुश ने मुझे भी एक दो बार कॉल किया था लेकिन मैंने रूडली बात करि तो वो अब मुझसे बात नहीं करता और आजकल तृषा और अंकुश का रोमांस चल रहा है"

"ओह्ह वाओ, मुझे नहीं पता था, चलो ठीक ही है अगर उन्दोनो का चक्कर चल रहा है तो "
"हाँ जैसे उनकी मर्ज़ी, मैंने एक दो बार तृषा को समझाने की कोशिश भी की लेकिन अब वो मेरी बात नहीं सुनती है, इसलिए मैंने भी छोर दिया, सब अपने जीवन के खुद ज़िम्मेदार है "

"हाँ सही कहा, इसीलिए मैं भी ज्ञान नही बांटता अंकुश को, उसकी लाइफ है उसकी बंदी है जो मन आये करे मैं कयूं बेकार में उसके मामलात में अपनी टांग अड़ाउन"
"हाँ सही बात है, चल छोड़ अब उनकी क्या बात करना, ये बता तुझे बुरा तो नहीं लगा मेरा आज आना ?"

"अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, मुझे बुरा नहीं लगा बस हैरत हुई की अचानक कैसे ?"
"हाँ मैं कई दिन से सोंच रही थी लेकिन कल फिर हिम्मत करके कर दी कॉल मैंने "

"तो बताओ फिर अचानक मुझे याद कैसे किया तुमने ?"
"ये देने के लिए " कह कर नीतू ने अपने बैग से एक कार्ड निकाल कर सामने के सामने रख दिया, ये एक लाल रंग का खूबसूरत शादी का कार्ड था

"वाओ तुम शादी कर रही हो " समीर ने हैरत और ख़ुशी से चहकते हुए कहा
"हट पागल, दीदी की शादी है उसी का कार्ड देंगे के लिए आयी हूँ "

"ओह्ह अच्छा, मुझे लगा इतनी जल्दी शादी अभी ग्रेजुएशन तो कर लेती पहले "
"जी नहीं मुझे नहीं करनी शादी वादी, मेरी दीदी की शादी है तो उन्होंने बोला की अपने दोस्तों को भी बुला ले, अब मेरे कोई खास फ्रेंड तो है नहीं, हिना और तृषा तो फॅमिली फ्रेंड में है तो उनको तो घर वाले खुद इन्विते करेंगे, फिर जब मैंने अपने फ्रैंड्स के बारे में सोंच रही थी सबसे पहले मुझे तेरी याद आयी तो मैं आज कार्ड ले कर आगयी।

"ओह्ह अच्छा किया " समीर कार्ड को धयाँद से पढ़ते हुए बड़बड़ाया फिर सर उठा कर नीतू के आँखों में देखते हुए कहा
"क्या तुम्हारी फॅमिली और मेरी फॅमिली कनेक्टेड है क्या ?"

"क्यों ऐसा क्यों बोल रहा है " नीतू ने हैरत से पूछा ?
"एक मिनट रुक " कहते हुए समीर ने अपने बैग से एक कार्ड खींच कर निकला और नीतू के सामने रख दिया
ये एक सफ़ेद रंग का खूबसूरत डिज़ाइन वाला शादी कार्ड था,

" ये क्या है ?" नीतू ने हैरत से आंख फाड़ कर पूछा
"ये मेरी सिस्टर की शादी का कार्ड है "

"ओह्ह फिर "?
"फिर ये की डेट देखो, दोनों की शादी की डेट सेम है "

"अरे हाँ, दोनों की शादी की डेट १४ दिसंबर की है "
"हाहाहा हाँ मैं भी यही देख के चौंका था "

"क्या यार, अब न तू मेरे घर शादी में आसकता है और न मैं तेरे "
"वैसे मैं आसकता था तू नहीं आसक्ति थी क्यूंकि हम अपनी दीदी की शादी गाओं से कर रहे है, दिल्ली से नहीं "

"हाँ, चल कोई ना इस बहाने मिल लिए" नीतू ने समीर को कार्ड वापस करते हुए कहा
"नहीं तुम इसे रख लो, मैं इस पर तुम्हारे पापा का नाम लिख देता हूँ "

"अरे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, अच्छा क्या कुछ आर्डर करे, भूख लग रही है, मैं घर से नाश्ता करके नहीं निकली थी"

"अरे हाँ मैं तो बातों में भूल ही गया, रुको मैं ऑर्डर करके आया "
समीर ने उठकर खाने का आर्डर किया और वापिस नीतू के सामने आकर बैठ गया, उसने कार्ड उठा कर अपने बैग में रखा और अपना कार्ड नीतू को थमा दिया और चुप चाप नीतू के खूबसूरत गोर मुखड़े को ताकने लगा, नीतू कार्ड बैग में रख कर समीर की और पलटी तो समीर ने जल्दी से नज़रे घुमा ली, एक पल दोनों के बीच में ख़ामोशी रही फिर अचानक समीर को कुछ याद आया

"अच्छा नीतू एक बात सुनो, मैं पहले भी बताना चाहता था लेकिन मौका नहीं मिला"
"हाँ हाँ बता क्या बात है ? कोई सीक्रेट वाली बात है क्या ?"

"अरे नहीं बस ऐसे ही यार, बात ये है की जो मयूर विहार वाला मेरा फ्लैट है वो किराये का का है उस दिन अंकुश ने झूट बोलै था की हमारा खुद का है "
"तो इसमें कौन सी बड़ी बात है, आधी दिल्ली किराये के माकन में रहती है "

"इसमें कोई प्रॉब्लम तो नहीं कोई बस ये की मैं अंकुश के जैसा आमिर नहीं हूँ और न ही मैं कॉलेज में पढाई करता हूँ, मैंने तुवेल्थ के बाद पढाई छोड़ दी थी और कंप्यूटर का कोर्स कर लिया था, अब मेरा छोटा सा बिज़नेस है उसी से कमाता हूँ और परिवार का खर्च चलता हूँ " समीर ने एक ही साँस में सब सच बता दिया मनो किसी बोझ को हल्का कर रहा हो

"अरे ये तो और अच्छी बात है, आखिर पढ़ाई करने के बाद भी तो कमाता ही, हाँ कोशिश करना की ग्रेजुएशन कम्पलीट हो जाये "
"थैंक्स यार, वो बस अंकुश ने कुछ झूठ बोल दिए थे तो वो मुझे अजीब फील होता था सोंच कर "

"वैसे तू अगर नहीं भी बताता तो मुझे आईडिया हो गया था की तू काम करता है कुछ "
"वो ऐसे की कई बार तू बात करते हु बोलता है की मीटिंग ेट्स में हूँ या जाना है तो इसका मतलब कोई प्रोफेशनल इंसान ही मीटिंग करेगा ना "
"हाँ यार, अब जो सच है वो मुँह से निकाल ही जाता है कभी न कभी "
"अच्छा ये बता तूने दीदी की शादी की शॉपिंग कर ली क्या "

"कपड़ो की शोप्पिंग मम्मी ने कर ली है, ज्वेलरी के पैसे मैं दे चूका हूँ, बस कुछ छोटी मोती चीज़ लेनी है बस, क्यों तुम क्यों पूछ रही हो "
"नहीं बस ऐसे ही अगर तुझे कुछ चाहिए तो बता मैं हेल्प कर सकती हूँ "

"नहीं ऐसी तो कुछ ऐसी चीज़ नहीं है, लेकिन तुम कैसे मेरी हेल्प कर सकती हो ?"
"अरे बुद्धू, मेरे पापा आर्मीमैन है "

"फौजी है तो " समीर को कुछ समझ नहीं आया
"अरे इडियट, मेरे पापा आर्मी में है तो हमें कैंटीन से सस्तो चीज़े मिल जाती है, मेरे रिलेटिव्स मेरे घर आते रहते है पापा से रेक़ुएस्ट करने चीप रेट पर सामान लेने के लिए "

"ओह्ह ऐसा क्या, मुझे नहीं मालूम था इस बारे में, अब तो ऑलमोस्ट साड़ी शॉपिंग हो चुकी है "
"अच्छा बोतल की शॉपिंग भी कर ली क्या ?"

"बोतल, कैसी बोतल ?"
"अरे दारू की बोतल मेरे भोले समीर, तू दारू नहीं पीता है क्या ?"

"ओह्ह नहीं मैं नहीं पीता, एक बार try की थी लेकिन उसकी महक से ही मेरा दिमाग फैट गया तो फिर कभी हिम्मत नहीं हुई हाथ लगनी की "
"बहुत अच्छा करता है, इस से दूर ही रहना "

'हाँ मैं तो न लागू इसको कभी हाथ, बाकि मैं चाचा जी से पूछूंगा अगर दारू की बोतल की ज़ररत होगी तो क्या तुम दिला पाउगी ?"
"तभी तो बोलै है तेरे से, अगर तुझे ज़रूरत होगी तो मैं तुझे दो बॉक्स दिलवा सकती हूँ, मेरे ख्याल से इतने में तेरी दीदी की शादी का काम हो जायेगा। "

"थैंक्स यार मैंने इस बारे में सोंचा ही नहीं था, अब मुझे याद आरहा है बारात वाले दिन लोग दारू की डिमांड करते है "
"हाँ जी, तू कार्ड में देख हमारे यहाँ शादी से एक दिन पहले कॉकटेल पार्टी है उस दिन दारू ही चलेगी, हम पहाड़ी में कोई भी त्यौहार या शादी विवाह बिना दारू की बॉटल्स के नहीं होती "

"ओह्ह ये जानकारी है "
"हाहाहा हमारे साथ रहेगा तो ऐसे ही नया सीखता रहेगा " नीचे ने हस्ते हुए कहा

इतने में उनका आर्डर आगया और दोनों ने खाने के बाद एक दूसरे को अलविदा कहा और अपने अपने घर की और चल दिए
आज पहली बार समीर को नीतू से मिलके अच्छा लगा था कुछ अलग था जिसको वो कोई नाम नहीं देसकता था लेकिन एक अच्छी फीलिंग उसके मन में उभर आयी थी नीतू के प्रति।
नीतू ने कदम बढ़ाया लगता है।

खैर अभी तो दिल्ली दूर ही है अगर जो आप इन दोनो को ही हीरो हीरोइन बना रहे हो तो।
 

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उस दिन नीतू से मिलकर समीर जब घर आया तो खुश था भले ही उसके और नीतू के बीच में कुछ नहीं था लेकिन फिर भी जिस तरह नीतू ने उसे अपने दोस्तों में सबसे पहले उसे याद रखा था और शादी का कार्ड दिया था उसने समीर के मन में एक गहरी छाप छोड़ी थी उसने मन में सोंच लिया था की वो अब नीतू के साथ दोस्ती रखेगा, ज़रूरी नहीं है की एक लड़के और लड़की के बीच में केवल प्यार या सेक्स का ही सम्बन्ध हो, दोस्ती भी तो हो सकती है, उसने तय कर लिया था की वो इसके बारे में अंकुश और सुनहरी को भी नहीं बताएगा, सुनहरी से छुपाना इस लिए भी ज़रूरी था क्यूंकि वो बहुत पोस्सेसिव थी समीर को लेकर अगर उसको नीतू के बारे में भनक भी लग जाती तो वो सरेआम नीतू का गला दबा सकती थी।

अगला पूरा सप्ताह समीर घर और ऑफिस के कामो में बिजी रहा, गांव निकलने से दो दिन पहले उसने अपने चाचा जी को फ़ोन किया तो नीतू की बात सच निकली उन्होंने कम से कम एक पेटी विस्की लाने के लिए बोल दिया। उसने शाम में नीतू को कॉल किया, नीतू मानो उसी के कॉल के इन्तिज़ार में थी उसने अगले दिन समीर को पालम बुला लिया, समीर भी टाइम से पालम पहुंच गया और वहा से नीतू को बाइक पर बिठाकर कैंटीन ले गया, नीतू को रास्ता पता था वो पीछे से बैठी बैठी समीर को रास्ता समझा रही थी, दोनों जब कैंटीन पहचे तब तक अच्छी खासी भीड़ हो चुकी थी, कैंटीन के गेट पर आर्मी गार्ड ने रोका तो नीतू ने अपना और अपने पापा का कार्ड दिखा दिया और समीर को अपना भाई बता कर एंट्री करा दी।

दोनों अंदर पहुंचे तो समीर हैरत में पड़ गया उसने पहली बार आर्मी कैंटीन देखि थी, दारु वाले काउंटर का तो बुरा हाल था, टोकन लेकर लाइन लगनी पड़ रही थी, नीतू को सब पता था वो अपने पापा के साथ अक्सर आती थी उसने जल्दी से एक टोकन लिया और समीर का हाथ पकड़ कर एक ओर चल दी,

"अरे कहा ले जा रही हो ? यही लाइन में लगते है पता नहीं कब नंबर आजाये हमारा। "
"उनहुँ, इतनी जल्दी नहीं आएगा मैं जानती हूँ बेकार में लाइन में खड़े रहने से अच्छा है की तब तक घूम ले मार्किट में।"

"ठीक है जैसा तुम कहो, मेरे लिए तो सब नया है, बताओ फिर कहा चले ?"
"हाँ फिर जो मैं कहु करता जा बस, और यहाँ सूंदर सूंदर लड़कियों को देख कर लाइन मत मरने लगना, सब के पापा आर्मीमैन है गोली मार देंगे तुझे " नीतू ने समीर को एक बेहद सूंदर लड़की की ओर देखता हुआ पकड़ लिया था

"ओह्ह नहीं मैं घूर नहीं रहा था बस देख रहा था की बहुत मोर्डर्न लड़किया है यहाँ, बड़े छोटे छोटे कपड़ो में "
"अरे सब यहाँ कैंट एरिया में रहते है यहाँ लोग टोका टाकी नहीं करते सब पढ़े लिखे और एडवांस सोंच वाले है हमारे पालम वालो के जैसे नहीं है, अगर ज़रा सा भी कुछ दिख जाये तो ऐसे घूरते है जैसे आँखों से ही कांड कर दे "

"हाँ यार लग तो यही रहा है, खैर बताओ कहा चलना है ?"
"तू स्पोर्ट्स शूज पहनता है ? आ तुझे एडिडास से शूज दिलवाती हूँ, यहाँ बढ़िया क्वालिटी और सस्ता भी मिल जायेगा "

"हाँ जीन्स पर कभी कभार पहन लेता हूँ, तुमको स्पोर्ट्स शूज पसंद है शायद इसीलिए तुम अक्सर स्पोर्ट्स शूज में ही घूमती रहती हो "
"हाहाहा सही कहा यार, मुझे इसमें बहुत रिलैक्स फील होता है"

दोनों बातें करते हुए एडिडास के शौरूम के अंदर चले गए, दोनों ने कई शूज देखे, एक शूज समीर को पसंद आगया, दो हज़ार का शूज था, समीर ने अपने पुरे जीवन में इतना महंगा शूज नहीं लिया था इसलिए वो थोड़ा हिचक रहा था लेकिन नीतू ने उसकी एक नहीं सुनी और वो शूज समीर को दिलवा दिया, काउंटर पर जा कर समीर रिलैक्स हुआ क्यूंकि डिस्काउंट और टैक्स हटा कर वो शूज केवल नौ सौ का पड़ा था।

दोनों वापस लिकर काउंटर पर पहुंचे तो उनका नंबर आने अभी भी बहुत टाइम था इसलिए दोनों फिर मार्किट घूमने लगे, कुछ देर घूमने के बाद दोनों को भूख लगी तो उन्होंने वही की कैंटीन से खाना खाया और फिर जब उनका नंबर आया तो अपनी दारू की पेटी उठा कर बाहर निकल आये, पेटी में अच्छा खासा वज़न था, दोनों पेटी पकड़ कर बाहर तो निकल आये लेकिन अब समस्या ये थी की समीर बाइक पर पेटी कैसे लेकर जाता, उसके पास कोई रस्सी या कुछ ऐसा साधन नहीं था की वो पेटी बांधता, और अगर किसी तरह बांध भी लेता तो फिर नीतू घर कैसे जाती, दोनों कुछ देर पार्किंग में खड़े सर खुजाते रहे फिर समीर ने नीतू को सुझाया

"यार अगर बुरा न लगे तो मैं तुमको ऑटो करा देता हूँ तुम घर चली जाओ अकेले और मैं किसी तरह ये पेटी लेकर अपने घर चला जाऊंगा "
"अरे इसमें बुरा मांनने वाली कोई बात नहीं है, तू मेरी टेंशन मत ले मैं तो चली जाउंगी किसी ना किसी तरह लेकिन ये बता तू कैसे ले कर जायेगा, इसमें कांच की बॉटल्स है अगर एक भी टूटी तो साड़ी मेहनत बेकार हो जाएगी, ऊपर से तेरे पास कोई रस्सी भी नहीं है "

"हाँ यार ये टेंशन भी है, चल एक काम करता हूँ दो ऑटो करता हूँ, एक से तुम घर चली जाना और दूसरे में मैं ये बॉटल्स रख कर अपने घर ले जाता हूँ "
"वाह फिर जब पैसे बर्बाद ही करने थे तो फिर यहाँ से क्यों ली बॉटल्स तुमने, ये तो पैसे बेकार करने वाली बात हुई और एक बात अगर ऑटो वाले को भनक लग गयी की इस पेटी में दारू की बॉटल्स है तो वो पेटी के साथ ही गायब हो जायेगा और तू ढूंढते रहना फिर "

"फिर तुम ही बताओ क्या करू"
"तू कुछ मत कर, बस गाडी स्टार्ट कर और जो मैं कहु करता जा नहीं तो तो यही शाम करा देगा "

समीर ने भी कोई चारा न देख कर बाइक स्टार्ट की, नीतू ने पास में खड़े एक लड़के को आवाज़ दे कर पास बुलाया और खुद उछल कर समीर के पीछे बाइक पर बैठ गयी और और लड़के से कह कर बॉटल्स की पेटी अपने और समीर के बीच में रखवा ली और समीर को आगे बढ़ने का इशारा किया।

समीर ने भी बाइक आगे बढ़ा दी और बाइक को निकल कर मैं रोड पर ले आया और एक कोने में बाइक रोक कर पीछे बैठी नीतू को देख कर पूछा

"अब बताओ क्या प्लान है किधर लेकर चलु "
"तू बस अपने घर की ओर मोड़ ले अपनी बाइक, मैं तेरे घर तक तेरी बाइक पर चलूंगी और वहा तेरी बॉटल्स पंहुचा कर वापस आजाऊंगी "
"अरे नहीं तुम इतनी क्यों परेशान हो रही हो, तुमने मेरी इतनी हेल्प करदी वही बहुत है , बाकि का मैं देख लूंगा बस तुम बताओ तुम कैसे जाओगी अपने घर "

"अरे मुझे कोई दिक्कत नहीं है आज मैं बिलकुल फ्री हूँ, हाँ अगर तू मुझे अपने घर नहीं लेके जाना चाहता तो वो अलग बात है, क्यों वहा तूने अपनी वाइफ को छुपा रखा है क्या जो तुझे डर है की मैं देख लुंगी " नीतू ने आँख मारते हुए समीर को ताना मारा
"अरे पागल क्या बोलती रहती हो, चलो फिर मुझे क्या ? मैं तो बस इसलिए मना कर रहा था की तुमको बेकार में दिक्कत होगी और फिर एक लड़की का एक जवान लड़के के साथ उसके फ्लैट पर अकेला जाना थोड़ा अजीब लगता, लेकिन जब तुम्हे कोई दिक्कत नहीं है तो मुझे क्या प्रोब्लेम हो सकती हो"

कह कर समीर ने बाइक वापिस स्टार्ट की और मयूर विहार जाने वाले रस्ते की ओर मोड़ दी, लगभग चालीस पैंतालीस मिनट के बाद दोनों मयूर विहार में खड़े थे, समीर जब बाइक पार्क कर रहा था तब अचानक नीतू को यद् आया

"अरे यार समीर, अंकुश तेरे फ्लैट में होगा क्या ?"
"नहीं तो, क्यों क्या हुआ ?

"फिर वो कहा रहता है ?"
"वो भी इसी बिल्डिंग में रहता है मेरे फ्लैट से ऊपर वाले फ्लैट मे।, क्यों उस से मिलना है क्या ?"

"अरे नहीं, मैं नहीं चाहती की उसे पता चले की मैं तेरे साथ यहाँ आयी थी, वो सब में गाता फिरेगा"
"अरे डोंट वोर्री यार, मैंने उसे कुछ नहीं बताया तुम्हारे बारे में, और चिंता मत करो उसकी बाइक नहीं है यहाँ इसका मतलब वो कही गया हुआ है, तुम आओ मेरे साथ "

नीतू और समीर दारू की पेटी उठाये हुए फ्लैट पर आये, समीर ने चाभी फ्लैट के बाहर रखे गमले के नीचे छुपा राखी थी वह से चाभी निकाल कर उसने फ्लैट का लॉक खोला और दोनों फ्लैट के अंदर आगये, ये दो कमरों का छोटा सा फ्लैट था, सबसे पहले वाले रूम में समीर ने अपना बेड फ्रिज और सोफा रखा हुआ था, दूसरे अंदर वाले रूम में उसने अपना कंप्यूटर और टेबल और कुर्सी लगायी हुई थी, एक ओर रैक में बहुत सारे कम्प्यूटर्स और उनके पार्ट्स सजे हुए थे और एक ओर एक छोटी सी अलमारी में कतबे भरी हुई थी, इसी कमरे से लगा हुआ टॉयलेट और बाथरूम था जिसका एक गेट बालकनी से भी खुलता था।

नीतू ने देखा कई सारे बैग्स पैक रखे थे और कुछ नए कपड़ो के पैकेट सोफे की एक सीट पर ढेर थे। समीर ने उसके एक खली सोफे पर बैठने का इशारा किया और जल्दी से पानी की बोतल फ्रिज से निकाल कर नीतू को पकड़ाई, दोनों कुछ देर खामोश बैठे रहे फिर अचानक नीतू उठ कड़ी हुई

"ओके समीर मैं चलती हूँ, बस ये बता दे की मुझे अपनी घर जाने के लिए बस या मेट्रो कैसे मिलेगी ?"
"अरे रुको तो, बस दो मिनट, कुछ देर सुस्ता लो फिर मैं तुमको ले चलूँगा तुम्हारे घर तक, और हाँ देख लो ठीक से कहीं मैंने अपनी बीवी को छुपा न रखा हो किसी कमरे में।" समीर शरारत से मुस्कुराते हुए बोला

"अरे नहीं पागल है क्या" तू अभी तो आया है वहां से, फिर वापस जायेगा और फिर मुझे छोड़ कर वापस यहाँ आएगा, कोई लॉजिक है इस बात में, वो वाइफ वाली बात तो बस मैंने मज़ाक में कह दी थी "
"हाँ लेकिन ऐसे अच्छा नहीं लग रहा की तुम मेरी वजह से इतनी दूर आयी औरअब अकेली जाओगी, अच्छा ठीक है पहले कुछ खा लो फिर मैं तुमको मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर दूंगा "

"नहीं अभी तो खाया था, बस अब तू मुझे छोड़ आ किसी स्टेशन तक, कहीं अंकुश ना आजाये, बेकार में दिक्कत हो जाएगी "
"चलो ठीक है अगर तुम जाना चाहती हो तो मैं नहीं रोकूंगा, चलो आओ फिर मैं तुमको मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर देता हूँ " समीर ने नीतू के आवाज़ में बेचैनी महसूस करते हुए कहा

समीर ने वापिस लॉक उठाया और दोनों फ्लैट से बाहर निकाल गए, समीर ने लॉक करके चाभी वापस गमले के नीचे रख दी और नीतू को लेकर इंदरप्रस्थ मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर आया, स्टेशन पर पहुंच कर नीतू ने जल्दी से समीर से हैंडशेक किया और दौड़ती हुई स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ गयी। समीर भी नीतू को ड्राप करके घर वापस आगया

नीतू ने स्टेशन पर पहुंच कर सांस ली, उसे समीर के साथ उसके घर जाते हुए बिलकुल भी डर नहीं लगा था लेकिन जैसे ही उसे अंकुश का उसी बुल्डिंग में होने का एहसास हुआ तो उसे एक अजीब सी बेचैनी सी होने लगी थी, पता नहीं क्यों ये बेचैनी उसे एक डरावने सपने वाले खौफ की याद दिला रही थी।

अगले दिन समीर ने अपनी सारी तैयारी पूरी की और सब सामान पैक करके घर निकलने के लिए तैयार हो गया, अंकुश शादी में नहीं आरहा था, उसे कोई काम था जो वो टाल नहीं सकता, उसने समीर का सामान टैक्सी में रखवाने में मदद की और चलते हुए अपना एक एटीएम समीर को पकड़ा दिया

"ये क्या है बे, तू अपना एटीएम मुझे क्यों दे रहा है "
"रख ले, मुझे पता है बहन की शादी में सौ खर्चे होते है, तूने पूरा अरेंजमेंट कर लिया है लेकिन कुछ पता नहीं होता लास्ट टाइम पर और कितने खर्च निकाल जाये इसलिए ये रख ले अगर कोई ज़रूरत पड़े तो बिना पूछे निकाल लियो, मेरे मोबाइल की लास्ट चार डिजिट इसका पासवर्ड है "

"अरे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है भाई, सब हो चूका है और अगर कोई ज़रूरत होगी तो वही किसी से मांग लूंगा "
"तुझे किसी से मांगने की ज़रूरत नहीं, ये मेरे पैसे है और तू जैसे चाहे वैसे खर्च कर जब तेरे पास हो तब करना वापिस और मन न हो तो मत करियो, तेरे लिए तो सौ खून माफ़ है मेरी जान, चल जा अब लेट हो रहा है, और हाँ वापसी में मिठाई के साथ पूरियां भी ज़रूर लाइयो, आंटी के हाथ की स्वाद लगती है मुझे। "

"तो फिर साथ चल वही खा लियो मम्मी के हाथ की गरम गरम पूरियां और पैक भी करा लेंगे दोनों भाई वापिस आते हुए।"
"अगर चल सकता तो ज़रूर चलता, फिर कभी चलूँगा, अब तू निकल टैक्सी वाला गलियां दे रहा होगा मन मन में "

समीर ने अंकुश से हाथ मिलाया और टैक्सी में बैठ कर निकल गया अपने घर की ओर जहा दो दिन बाद उसकी दीदी की शादी थी ,
अंकुश भी समीर को विदा करके वापस अपने घर आगया, वो फ़ोन अपने फ्लैट पर छोड़ आया था, उसने फ़ोन उठा कर देखा, तृषा की दो तीन मिस्ड कॉल और एसएमएस आये हुए थे, मैसेज पढ़ते हुए उसके चेहरे पर एक मुस्कान फ़ैल गयी, कल तृषा उस से मिलने आरही थी उसके फ्लैट पर पहली बार, उसने अपने होंटो पर जीभ फिराई और मुस्कुराते हुए बिस्तर पर धम से लेट गया। एक पल आँख बंद किये बेड पर लेता रहा फिर उसने लेटे लेटे ही जेब से अपना पर्स निकला और उसके अंदर से एक छोटी सी पासपोर्ट साइज फोटो निकली, ये किसी लड़की की फोटो थी, वह उस फोटो को निहारता हुआ बड़बड़ाया

"हहह एक और सील टूटेगी कल, एक और चूत का उद्धघाटन होगा, तू देखती रह रंडी ये तो बस मात्र एक शरुवात है भर "



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blinkit

I don't step aside. I step up.
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दोस्तों आजकल टाइम कम मिल रहा है फिर भी कोशिश रहेगी की आने वाले दिनों में रेगुलर उपदेट्स दूँ, तब तक लिए क्षमा, स्टोरी अभी थोड़ा स्लो है जल्दी ही अंकुश से रिलेटेड उपदटेस दूंगा वो स्टोरी आर्क आप सब को पसंद आएगा ऐसा मेरे विश्वास है।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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उस दिन नीतू से मिलकर समीर जब घर आया तो खुश था भले ही उसके और नीतू के बीच में कुछ नहीं था लेकिन फिर भी जिस तरह नीतू ने उसे अपने दोस्तों में सबसे पहले उसे याद रखा था और शादी का कार्ड दिया था उसने समीर के मन में एक गहरी छाप छोड़ी थी उसने मन में सोंच लिया था की वो अब नीतू के साथ दोस्ती रखेगा, ज़रूरी नहीं है की एक लड़के और लड़की के बीच में केवल प्यार या सेक्स का ही सम्बन्ध हो, दोस्ती भी तो हो सकती है, उसने तय कर लिया था की वो इसके बारे में अंकुश और सुनहरी को भी नहीं बताएगा, सुनहरी से छुपाना इस लिए भी ज़रूरी था क्यूंकि वो बहुत पोस्सेसिव थी समीर को लेकर अगर उसको नीतू के बारे में भनक भी लग जाती तो वो सरेआम नीतू का गला दबा सकती थी।

अगला पूरा सप्ताह समीर घर और ऑफिस के कामो में बिजी रहा, गांव निकलने से दो दिन पहले उसने अपने चाचा जी को फ़ोन किया तो नीतू की बात सच निकली उन्होंने कम से कम एक पेटी विस्की लाने के लिए बोल दिया। उसने शाम में नीतू को कॉल किया, नीतू मानो उसी के कॉल के इन्तिज़ार में थी उसने अगले दिन समीर को पालम बुला लिया, समीर भी टाइम से पालम पहुंच गया और वहा से नीतू को बाइक पर बिठाकर कैंटीन ले गया, नीतू को रास्ता पता था वो पीछे से बैठी बैठी समीर को रास्ता समझा रही थी, दोनों जब कैंटीन पहचे तब तक अच्छी खासी भीड़ हो चुकी थी, कैंटीन के गेट पर आर्मी गार्ड ने रोका तो नीतू ने अपना और अपने पापा का कार्ड दिखा दिया और समीर को अपना भाई बता कर एंट्री करा दी।

दोनों अंदर पहुंचे तो समीर हैरत में पड़ गया उसने पहली बार आर्मी कैंटीन देखि थी, दारु वाले काउंटर का तो बुरा हाल था, टोकन लेकर लाइन लगनी पड़ रही थी, नीतू को सब पता था वो अपने पापा के साथ अक्सर आती थी उसने जल्दी से एक टोकन लिया और समीर का हाथ पकड़ कर एक ओर चल दी,

"अरे कहा ले जा रही हो ? यही लाइन में लगते है पता नहीं कब नंबर आजाये हमारा। "
"उनहुँ, इतनी जल्दी नहीं आएगा मैं जानती हूँ बेकार में लाइन में खड़े रहने से अच्छा है की तब तक घूम ले मार्किट में।"

"ठीक है जैसा तुम कहो, मेरे लिए तो सब नया है, बताओ फिर कहा चले ?"
"हाँ फिर जो मैं कहु करता जा बस, और यहाँ सूंदर सूंदर लड़कियों को देख कर लाइन मत मरने लगना, सब के पापा आर्मीमैन है गोली मार देंगे तुझे " नीतू ने समीर को एक बेहद सूंदर लड़की की ओर देखता हुआ पकड़ लिया था

"ओह्ह नहीं मैं घूर नहीं रहा था बस देख रहा था की बहुत मोर्डर्न लड़किया है यहाँ, बड़े छोटे छोटे कपड़ो में "
"अरे सब यहाँ कैंट एरिया में रहते है यहाँ लोग टोका टाकी नहीं करते सब पढ़े लिखे और एडवांस सोंच वाले है हमारे पालम वालो के जैसे नहीं है, अगर ज़रा सा भी कुछ दिख जाये तो ऐसे घूरते है जैसे आँखों से ही कांड कर दे "

"हाँ यार लग तो यही रहा है, खैर बताओ कहा चलना है ?"
"तू स्पोर्ट्स शूज पहनता है ? आ तुझे एडिडास से शूज दिलवाती हूँ, यहाँ बढ़िया क्वालिटी और सस्ता भी मिल जायेगा "

"हाँ जीन्स पर कभी कभार पहन लेता हूँ, तुमको स्पोर्ट्स शूज पसंद है शायद इसीलिए तुम अक्सर स्पोर्ट्स शूज में ही घूमती रहती हो "
"हाहाहा सही कहा यार, मुझे इसमें बहुत रिलैक्स फील होता है"

दोनों बातें करते हुए एडिडास के शौरूम के अंदर चले गए, दोनों ने कई शूज देखे, एक शूज समीर को पसंद आगया, दो हज़ार का शूज था, समीर ने अपने पुरे जीवन में इतना महंगा शूज नहीं लिया था इसलिए वो थोड़ा हिचक रहा था लेकिन नीतू ने उसकी एक नहीं सुनी और वो शूज समीर को दिलवा दिया, काउंटर पर जा कर समीर रिलैक्स हुआ क्यूंकि डिस्काउंट और टैक्स हटा कर वो शूज केवल नौ सौ का पड़ा था।

दोनों वापस लिकर काउंटर पर पहुंचे तो उनका नंबर आने अभी भी बहुत टाइम था इसलिए दोनों फिर मार्किट घूमने लगे, कुछ देर घूमने के बाद दोनों को भूख लगी तो उन्होंने वही की कैंटीन से खाना खाया और फिर जब उनका नंबर आया तो अपनी दारू की पेटी उठा कर बाहर निकल आये, पेटी में अच्छा खासा वज़न था, दोनों पेटी पकड़ कर बाहर तो निकल आये लेकिन अब समस्या ये थी की समीर बाइक पर पेटी कैसे लेकर जाता, उसके पास कोई रस्सी या कुछ ऐसा साधन नहीं था की वो पेटी बांधता, और अगर किसी तरह बांध भी लेता तो फिर नीतू घर कैसे जाती, दोनों कुछ देर पार्किंग में खड़े सर खुजाते रहे फिर समीर ने नीतू को सुझाया

"यार अगर बुरा न लगे तो मैं तुमको ऑटो करा देता हूँ तुम घर चली जाओ अकेले और मैं किसी तरह ये पेटी लेकर अपने घर चला जाऊंगा "
"अरे इसमें बुरा मांनने वाली कोई बात नहीं है, तू मेरी टेंशन मत ले मैं तो चली जाउंगी किसी ना किसी तरह लेकिन ये बता तू कैसे ले कर जायेगा, इसमें कांच की बॉटल्स है अगर एक भी टूटी तो साड़ी मेहनत बेकार हो जाएगी, ऊपर से तेरे पास कोई रस्सी भी नहीं है "

"हाँ यार ये टेंशन भी है, चल एक काम करता हूँ दो ऑटो करता हूँ, एक से तुम घर चली जाना और दूसरे में मैं ये बॉटल्स रख कर अपने घर ले जाता हूँ "
"वाह फिर जब पैसे बर्बाद ही करने थे तो फिर यहाँ से क्यों ली बॉटल्स तुमने, ये तो पैसे बेकार करने वाली बात हुई और एक बात अगर ऑटो वाले को भनक लग गयी की इस पेटी में दारू की बॉटल्स है तो वो पेटी के साथ ही गायब हो जायेगा और तू ढूंढते रहना फिर "

"फिर तुम ही बताओ क्या करू"
"तू कुछ मत कर, बस गाडी स्टार्ट कर और जो मैं कहु करता जा नहीं तो तो यही शाम करा देगा "

समीर ने भी कोई चारा न देख कर बाइक स्टार्ट की, नीतू ने पास में खड़े एक लड़के को आवाज़ दे कर पास बुलाया और खुद उछल कर समीर के पीछे बाइक पर बैठ गयी और और लड़के से कह कर बॉटल्स की पेटी अपने और समीर के बीच में रखवा ली और समीर को आगे बढ़ने का इशारा किया।

समीर ने भी बाइक आगे बढ़ा दी और बाइक को निकल कर मैं रोड पर ले आया और एक कोने में बाइक रोक कर पीछे बैठी नीतू को देख कर पूछा

"अब बताओ क्या प्लान है किधर लेकर चलु "
"तू बस अपने घर की ओर मोड़ ले अपनी बाइक, मैं तेरे घर तक तेरी बाइक पर चलूंगी और वहा तेरी बॉटल्स पंहुचा कर वापस आजाऊंगी "
"अरे नहीं तुम इतनी क्यों परेशान हो रही हो, तुमने मेरी इतनी हेल्प करदी वही बहुत है , बाकि का मैं देख लूंगा बस तुम बताओ तुम कैसे जाओगी अपने घर "

"अरे मुझे कोई दिक्कत नहीं है आज मैं बिलकुल फ्री हूँ, हाँ अगर तू मुझे अपने घर नहीं लेके जाना चाहता तो वो अलग बात है, क्यों वहा तूने अपनी वाइफ को छुपा रखा है क्या जो तुझे डर है की मैं देख लुंगी " नीतू ने आँख मारते हुए समीर को ताना मारा
"अरे पागल क्या बोलती रहती हो, चलो फिर मुझे क्या ? मैं तो बस इसलिए मना कर रहा था की तुमको बेकार में दिक्कत होगी और फिर एक लड़की का एक जवान लड़के के साथ उसके फ्लैट पर अकेला जाना थोड़ा अजीब लगता, लेकिन जब तुम्हे कोई दिक्कत नहीं है तो मुझे क्या प्रोब्लेम हो सकती हो"

कह कर समीर ने बाइक वापिस स्टार्ट की और मयूर विहार जाने वाले रस्ते की ओर मोड़ दी, लगभग चालीस पैंतालीस मिनट के बाद दोनों मयूर विहार में खड़े थे, समीर जब बाइक पार्क कर रहा था तब अचानक नीतू को यद् आया

"अरे यार समीर, अंकुश तेरे फ्लैट में होगा क्या ?"
"नहीं तो, क्यों क्या हुआ ?

"फिर वो कहा रहता है ?"
"वो भी इसी बिल्डिंग में रहता है मेरे फ्लैट से ऊपर वाले फ्लैट मे।, क्यों उस से मिलना है क्या ?"

"अरे नहीं, मैं नहीं चाहती की उसे पता चले की मैं तेरे साथ यहाँ आयी थी, वो सब में गाता फिरेगा"
"अरे डोंट वोर्री यार, मैंने उसे कुछ नहीं बताया तुम्हारे बारे में, और चिंता मत करो उसकी बाइक नहीं है यहाँ इसका मतलब वो कही गया हुआ है, तुम आओ मेरे साथ "

नीतू और समीर दारू की पेटी उठाये हुए फ्लैट पर आये, समीर ने चाभी फ्लैट के बाहर रखे गमले के नीचे छुपा राखी थी वह से चाभी निकाल कर उसने फ्लैट का लॉक खोला और दोनों फ्लैट के अंदर आगये, ये दो कमरों का छोटा सा फ्लैट था, सबसे पहले वाले रूम में समीर ने अपना बेड फ्रिज और सोफा रखा हुआ था, दूसरे अंदर वाले रूम में उसने अपना कंप्यूटर और टेबल और कुर्सी लगायी हुई थी, एक ओर रैक में बहुत सारे कम्प्यूटर्स और उनके पार्ट्स सजे हुए थे और एक ओर एक छोटी सी अलमारी में कतबे भरी हुई थी, इसी कमरे से लगा हुआ टॉयलेट और बाथरूम था जिसका एक गेट बालकनी से भी खुलता था।

नीतू ने देखा कई सारे बैग्स पैक रखे थे और कुछ नए कपड़ो के पैकेट सोफे की एक सीट पर ढेर थे। समीर ने उसके एक खली सोफे पर बैठने का इशारा किया और जल्दी से पानी की बोतल फ्रिज से निकाल कर नीतू को पकड़ाई, दोनों कुछ देर खामोश बैठे रहे फिर अचानक नीतू उठ कड़ी हुई

"ओके समीर मैं चलती हूँ, बस ये बता दे की मुझे अपनी घर जाने के लिए बस या मेट्रो कैसे मिलेगी ?"
"अरे रुको तो, बस दो मिनट, कुछ देर सुस्ता लो फिर मैं तुमको ले चलूँगा तुम्हारे घर तक, और हाँ देख लो ठीक से कहीं मैंने अपनी बीवी को छुपा न रखा हो किसी कमरे में।" समीर शरारत से मुस्कुराते हुए बोला

"अरे नहीं पागल है क्या" तू अभी तो आया है वहां से, फिर वापस जायेगा और फिर मुझे छोड़ कर वापस यहाँ आएगा, कोई लॉजिक है इस बात में, वो वाइफ वाली बात तो बस मैंने मज़ाक में कह दी थी "
"हाँ लेकिन ऐसे अच्छा नहीं लग रहा की तुम मेरी वजह से इतनी दूर आयी औरअब अकेली जाओगी, अच्छा ठीक है पहले कुछ खा लो फिर मैं तुमको मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर दूंगा "

"नहीं अभी तो खाया था, बस अब तू मुझे छोड़ आ किसी स्टेशन तक, कहीं अंकुश ना आजाये, बेकार में दिक्कत हो जाएगी "
"चलो ठीक है अगर तुम जाना चाहती हो तो मैं नहीं रोकूंगा, चलो आओ फिर मैं तुमको मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर देता हूँ " समीर ने नीतू के आवाज़ में बेचैनी महसूस करते हुए कहा

समीर ने वापिस लॉक उठाया और दोनों फ्लैट से बाहर निकाल गए, समीर ने लॉक करके चाभी वापस गमले के नीचे रख दी और नीतू को लेकर इंदरप्रस्थ मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर आया, स्टेशन पर पहुंच कर नीतू ने जल्दी से समीर से हैंडशेक किया और दौड़ती हुई स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ गयी। समीर भी नीतू को ड्राप करके घर वापस आगया

नीतू ने स्टेशन पर पहुंच कर सांस ली, उसे समीर के साथ उसके घर जाते हुए बिलकुल भी डर नहीं लगा था लेकिन जैसे ही उसे अंकुश का उसी बुल्डिंग में होने का एहसास हुआ तो उसे एक अजीब सी बेचैनी सी होने लगी थी, पता नहीं क्यों ये बेचैनी उसे एक डरावने सपने वाले खौफ की याद दिला रही थी।

अगले दिन समीर ने अपनी सारी तैयारी पूरी की और सब सामान पैक करके घर निकलने के लिए तैयार हो गया, अंकुश शादी में नहीं आरहा था, उसे कोई काम था जो वो टाल नहीं सकता, उसने समीर का सामान टैक्सी में रखवाने में मदद की और चलते हुए अपना एक एटीएम समीर को पकड़ा दिया

"ये क्या है बे, तू अपना एटीएम मुझे क्यों दे रहा है "
"रख ले, मुझे पता है बहन की शादी में सौ खर्चे होते है, तूने पूरा अरेंजमेंट कर लिया है लेकिन कुछ पता नहीं होता लास्ट टाइम पर और कितने खर्च निकाल जाये इसलिए ये रख ले अगर कोई ज़रूरत पड़े तो बिना पूछे निकाल लियो, मेरे मोबाइल की लास्ट चार डिजिट इसका पासवर्ड है "

"अरे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है भाई, सब हो चूका है और अगर कोई ज़रूरत होगी तो वही किसी से मांग लूंगा "
"तुझे किसी से मांगने की ज़रूरत नहीं, ये मेरे पैसे है और तू जैसे चाहे वैसे खर्च कर जब तेरे पास हो तब करना वापिस और मन न हो तो मत करियो, तेरे लिए तो सौ खून माफ़ है मेरी जान, चल जा अब लेट हो रहा है, और हाँ वापसी में मिठाई के साथ पूरियां भी ज़रूर लाइयो, आंटी के हाथ की स्वाद लगती है मुझे। "

"तो फिर साथ चल वही खा लियो मम्मी के हाथ की गरम गरम पूरियां और पैक भी करा लेंगे दोनों भाई वापिस आते हुए।"
"अगर चल सकता तो ज़रूर चलता, फिर कभी चलूँगा, अब तू निकल टैक्सी वाला गलियां दे रहा होगा मन मन में "

समीर ने अंकुश से हाथ मिलाया और टैक्सी में बैठ कर निकल गया अपने घर की ओर जहा दो दिन बाद उसकी दीदी की शादी थी ,
अंकुश भी समीर को विदा करके वापस अपने घर आगया, वो फ़ोन अपने फ्लैट पर छोड़ आया था, उसने फ़ोन उठा कर देखा, तृषा की दो तीन मिस्ड कॉल और एसएमएस आये हुए थे, मैसेज पढ़ते हुए उसके चेहरे पर एक मुस्कान फ़ैल गयी, कल तृषा उस से मिलने आरही थी उसके फ्लैट पर पहली बार, उसने अपने होंटो पर जीभ फिराई और मुस्कुराते हुए बिस्तर पर धम से लेट गया। एक पल आँख बंद किये बेड पर लेता रहा फिर उसने लेटे लेटे ही जेब से अपना पर्स निकला और उसके अंदर से एक छोटी सी पासपोर्ट साइज फोटो निकली, ये किसी लड़की की फोटो थी, वह उस फोटो को निहारता हुआ बड़बड़ाया

"हहह एक और सील टूटेगी कल, एक और चूत का उद्धघाटन होगा, तू देखती रह रंडी ये तो बस मात्र एक शरुवात है भर "



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ये अंकुश भले ही समीर के लिए अच्छा है, पर मुझे अच्छा नहीं लग रहा कतई।

और ये फोटो शायद किसी वैसी लड़की की है, जिसको ये एकतरफा प्यार करता होगा, और उसने किसी और से।

शायद सुनहरी की ही हो, क्योंकि लेखक साहब ने तो उसे दिखाया ही नही, बस सुनाया भर है।
 

Naik

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उस दिन नीतू से मिलकर समीर जब घर आया तो खुश था भले ही उसके और नीतू के बीच में कुछ नहीं था लेकिन फिर भी जिस तरह नीतू ने उसे अपने दोस्तों में सबसे पहले उसे याद रखा था और शादी का कार्ड दिया था उसने समीर के मन में एक गहरी छाप छोड़ी थी उसने मन में सोंच लिया था की वो अब नीतू के साथ दोस्ती रखेगा, ज़रूरी नहीं है की एक लड़के और लड़की के बीच में केवल प्यार या सेक्स का ही सम्बन्ध हो, दोस्ती भी तो हो सकती है, उसने तय कर लिया था की वो इसके बारे में अंकुश और सुनहरी को भी नहीं बताएगा, सुनहरी से छुपाना इस लिए भी ज़रूरी था क्यूंकि वो बहुत पोस्सेसिव थी समीर को लेकर अगर उसको नीतू के बारे में भनक भी लग जाती तो वो सरेआम नीतू का गला दबा सकती थी।

अगला पूरा सप्ताह समीर घर और ऑफिस के कामो में बिजी रहा, गांव निकलने से दो दिन पहले उसने अपने चाचा जी को फ़ोन किया तो नीतू की बात सच निकली उन्होंने कम से कम एक पेटी विस्की लाने के लिए बोल दिया। उसने शाम में नीतू को कॉल किया, नीतू मानो उसी के कॉल के इन्तिज़ार में थी उसने अगले दिन समीर को पालम बुला लिया, समीर भी टाइम से पालम पहुंच गया और वहा से नीतू को बाइक पर बिठाकर कैंटीन ले गया, नीतू को रास्ता पता था वो पीछे से बैठी बैठी समीर को रास्ता समझा रही थी, दोनों जब कैंटीन पहचे तब तक अच्छी खासी भीड़ हो चुकी थी, कैंटीन के गेट पर आर्मी गार्ड ने रोका तो नीतू ने अपना और अपने पापा का कार्ड दिखा दिया और समीर को अपना भाई बता कर एंट्री करा दी।

दोनों अंदर पहुंचे तो समीर हैरत में पड़ गया उसने पहली बार आर्मी कैंटीन देखि थी, दारु वाले काउंटर का तो बुरा हाल था, टोकन लेकर लाइन लगनी पड़ रही थी, नीतू को सब पता था वो अपने पापा के साथ अक्सर आती थी उसने जल्दी से एक टोकन लिया और समीर का हाथ पकड़ कर एक ओर चल दी,

"अरे कहा ले जा रही हो ? यही लाइन में लगते है पता नहीं कब नंबर आजाये हमारा। "
"उनहुँ, इतनी जल्दी नहीं आएगा मैं जानती हूँ बेकार में लाइन में खड़े रहने से अच्छा है की तब तक घूम ले मार्किट में।"

"ठीक है जैसा तुम कहो, मेरे लिए तो सब नया है, बताओ फिर कहा चले ?"
"हाँ फिर जो मैं कहु करता जा बस, और यहाँ सूंदर सूंदर लड़कियों को देख कर लाइन मत मरने लगना, सब के पापा आर्मीमैन है गोली मार देंगे तुझे " नीतू ने समीर को एक बेहद सूंदर लड़की की ओर देखता हुआ पकड़ लिया था

"ओह्ह नहीं मैं घूर नहीं रहा था बस देख रहा था की बहुत मोर्डर्न लड़किया है यहाँ, बड़े छोटे छोटे कपड़ो में "
"अरे सब यहाँ कैंट एरिया में रहते है यहाँ लोग टोका टाकी नहीं करते सब पढ़े लिखे और एडवांस सोंच वाले है हमारे पालम वालो के जैसे नहीं है, अगर ज़रा सा भी कुछ दिख जाये तो ऐसे घूरते है जैसे आँखों से ही कांड कर दे "

"हाँ यार लग तो यही रहा है, खैर बताओ कहा चलना है ?"
"तू स्पोर्ट्स शूज पहनता है ? आ तुझे एडिडास से शूज दिलवाती हूँ, यहाँ बढ़िया क्वालिटी और सस्ता भी मिल जायेगा "

"हाँ जीन्स पर कभी कभार पहन लेता हूँ, तुमको स्पोर्ट्स शूज पसंद है शायद इसीलिए तुम अक्सर स्पोर्ट्स शूज में ही घूमती रहती हो "
"हाहाहा सही कहा यार, मुझे इसमें बहुत रिलैक्स फील होता है"

दोनों बातें करते हुए एडिडास के शौरूम के अंदर चले गए, दोनों ने कई शूज देखे, एक शूज समीर को पसंद आगया, दो हज़ार का शूज था, समीर ने अपने पुरे जीवन में इतना महंगा शूज नहीं लिया था इसलिए वो थोड़ा हिचक रहा था लेकिन नीतू ने उसकी एक नहीं सुनी और वो शूज समीर को दिलवा दिया, काउंटर पर जा कर समीर रिलैक्स हुआ क्यूंकि डिस्काउंट और टैक्स हटा कर वो शूज केवल नौ सौ का पड़ा था।

दोनों वापस लिकर काउंटर पर पहुंचे तो उनका नंबर आने अभी भी बहुत टाइम था इसलिए दोनों फिर मार्किट घूमने लगे, कुछ देर घूमने के बाद दोनों को भूख लगी तो उन्होंने वही की कैंटीन से खाना खाया और फिर जब उनका नंबर आया तो अपनी दारू की पेटी उठा कर बाहर निकल आये, पेटी में अच्छा खासा वज़न था, दोनों पेटी पकड़ कर बाहर तो निकल आये लेकिन अब समस्या ये थी की समीर बाइक पर पेटी कैसे लेकर जाता, उसके पास कोई रस्सी या कुछ ऐसा साधन नहीं था की वो पेटी बांधता, और अगर किसी तरह बांध भी लेता तो फिर नीतू घर कैसे जाती, दोनों कुछ देर पार्किंग में खड़े सर खुजाते रहे फिर समीर ने नीतू को सुझाया

"यार अगर बुरा न लगे तो मैं तुमको ऑटो करा देता हूँ तुम घर चली जाओ अकेले और मैं किसी तरह ये पेटी लेकर अपने घर चला जाऊंगा "
"अरे इसमें बुरा मांनने वाली कोई बात नहीं है, तू मेरी टेंशन मत ले मैं तो चली जाउंगी किसी ना किसी तरह लेकिन ये बता तू कैसे ले कर जायेगा, इसमें कांच की बॉटल्स है अगर एक भी टूटी तो साड़ी मेहनत बेकार हो जाएगी, ऊपर से तेरे पास कोई रस्सी भी नहीं है "

"हाँ यार ये टेंशन भी है, चल एक काम करता हूँ दो ऑटो करता हूँ, एक से तुम घर चली जाना और दूसरे में मैं ये बॉटल्स रख कर अपने घर ले जाता हूँ "
"वाह फिर जब पैसे बर्बाद ही करने थे तो फिर यहाँ से क्यों ली बॉटल्स तुमने, ये तो पैसे बेकार करने वाली बात हुई और एक बात अगर ऑटो वाले को भनक लग गयी की इस पेटी में दारू की बॉटल्स है तो वो पेटी के साथ ही गायब हो जायेगा और तू ढूंढते रहना फिर "

"फिर तुम ही बताओ क्या करू"
"तू कुछ मत कर, बस गाडी स्टार्ट कर और जो मैं कहु करता जा नहीं तो तो यही शाम करा देगा "

समीर ने भी कोई चारा न देख कर बाइक स्टार्ट की, नीतू ने पास में खड़े एक लड़के को आवाज़ दे कर पास बुलाया और खुद उछल कर समीर के पीछे बाइक पर बैठ गयी और और लड़के से कह कर बॉटल्स की पेटी अपने और समीर के बीच में रखवा ली और समीर को आगे बढ़ने का इशारा किया।

समीर ने भी बाइक आगे बढ़ा दी और बाइक को निकल कर मैं रोड पर ले आया और एक कोने में बाइक रोक कर पीछे बैठी नीतू को देख कर पूछा

"अब बताओ क्या प्लान है किधर लेकर चलु "
"तू बस अपने घर की ओर मोड़ ले अपनी बाइक, मैं तेरे घर तक तेरी बाइक पर चलूंगी और वहा तेरी बॉटल्स पंहुचा कर वापस आजाऊंगी "
"अरे नहीं तुम इतनी क्यों परेशान हो रही हो, तुमने मेरी इतनी हेल्प करदी वही बहुत है , बाकि का मैं देख लूंगा बस तुम बताओ तुम कैसे जाओगी अपने घर "

"अरे मुझे कोई दिक्कत नहीं है आज मैं बिलकुल फ्री हूँ, हाँ अगर तू मुझे अपने घर नहीं लेके जाना चाहता तो वो अलग बात है, क्यों वहा तूने अपनी वाइफ को छुपा रखा है क्या जो तुझे डर है की मैं देख लुंगी " नीतू ने आँख मारते हुए समीर को ताना मारा
"अरे पागल क्या बोलती रहती हो, चलो फिर मुझे क्या ? मैं तो बस इसलिए मना कर रहा था की तुमको बेकार में दिक्कत होगी और फिर एक लड़की का एक जवान लड़के के साथ उसके फ्लैट पर अकेला जाना थोड़ा अजीब लगता, लेकिन जब तुम्हे कोई दिक्कत नहीं है तो मुझे क्या प्रोब्लेम हो सकती हो"

कह कर समीर ने बाइक वापिस स्टार्ट की और मयूर विहार जाने वाले रस्ते की ओर मोड़ दी, लगभग चालीस पैंतालीस मिनट के बाद दोनों मयूर विहार में खड़े थे, समीर जब बाइक पार्क कर रहा था तब अचानक नीतू को यद् आया

"अरे यार समीर, अंकुश तेरे फ्लैट में होगा क्या ?"
"नहीं तो, क्यों क्या हुआ ?

"फिर वो कहा रहता है ?"
"वो भी इसी बिल्डिंग में रहता है मेरे फ्लैट से ऊपर वाले फ्लैट मे।, क्यों उस से मिलना है क्या ?"

"अरे नहीं, मैं नहीं चाहती की उसे पता चले की मैं तेरे साथ यहाँ आयी थी, वो सब में गाता फिरेगा"
"अरे डोंट वोर्री यार, मैंने उसे कुछ नहीं बताया तुम्हारे बारे में, और चिंता मत करो उसकी बाइक नहीं है यहाँ इसका मतलब वो कही गया हुआ है, तुम आओ मेरे साथ "

नीतू और समीर दारू की पेटी उठाये हुए फ्लैट पर आये, समीर ने चाभी फ्लैट के बाहर रखे गमले के नीचे छुपा राखी थी वह से चाभी निकाल कर उसने फ्लैट का लॉक खोला और दोनों फ्लैट के अंदर आगये, ये दो कमरों का छोटा सा फ्लैट था, सबसे पहले वाले रूम में समीर ने अपना बेड फ्रिज और सोफा रखा हुआ था, दूसरे अंदर वाले रूम में उसने अपना कंप्यूटर और टेबल और कुर्सी लगायी हुई थी, एक ओर रैक में बहुत सारे कम्प्यूटर्स और उनके पार्ट्स सजे हुए थे और एक ओर एक छोटी सी अलमारी में कतबे भरी हुई थी, इसी कमरे से लगा हुआ टॉयलेट और बाथरूम था जिसका एक गेट बालकनी से भी खुलता था।

नीतू ने देखा कई सारे बैग्स पैक रखे थे और कुछ नए कपड़ो के पैकेट सोफे की एक सीट पर ढेर थे। समीर ने उसके एक खली सोफे पर बैठने का इशारा किया और जल्दी से पानी की बोतल फ्रिज से निकाल कर नीतू को पकड़ाई, दोनों कुछ देर खामोश बैठे रहे फिर अचानक नीतू उठ कड़ी हुई

"ओके समीर मैं चलती हूँ, बस ये बता दे की मुझे अपनी घर जाने के लिए बस या मेट्रो कैसे मिलेगी ?"
"अरे रुको तो, बस दो मिनट, कुछ देर सुस्ता लो फिर मैं तुमको ले चलूँगा तुम्हारे घर तक, और हाँ देख लो ठीक से कहीं मैंने अपनी बीवी को छुपा न रखा हो किसी कमरे में।" समीर शरारत से मुस्कुराते हुए बोला

"अरे नहीं पागल है क्या" तू अभी तो आया है वहां से, फिर वापस जायेगा और फिर मुझे छोड़ कर वापस यहाँ आएगा, कोई लॉजिक है इस बात में, वो वाइफ वाली बात तो बस मैंने मज़ाक में कह दी थी "
"हाँ लेकिन ऐसे अच्छा नहीं लग रहा की तुम मेरी वजह से इतनी दूर आयी औरअब अकेली जाओगी, अच्छा ठीक है पहले कुछ खा लो फिर मैं तुमको मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर दूंगा "

"नहीं अभी तो खाया था, बस अब तू मुझे छोड़ आ किसी स्टेशन तक, कहीं अंकुश ना आजाये, बेकार में दिक्कत हो जाएगी "
"चलो ठीक है अगर तुम जाना चाहती हो तो मैं नहीं रोकूंगा, चलो आओ फिर मैं तुमको मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर देता हूँ " समीर ने नीतू के आवाज़ में बेचैनी महसूस करते हुए कहा

समीर ने वापिस लॉक उठाया और दोनों फ्लैट से बाहर निकाल गए, समीर ने लॉक करके चाभी वापस गमले के नीचे रख दी और नीतू को लेकर इंदरप्रस्थ मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर आया, स्टेशन पर पहुंच कर नीतू ने जल्दी से समीर से हैंडशेक किया और दौड़ती हुई स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ गयी। समीर भी नीतू को ड्राप करके घर वापस आगया

नीतू ने स्टेशन पर पहुंच कर सांस ली, उसे समीर के साथ उसके घर जाते हुए बिलकुल भी डर नहीं लगा था लेकिन जैसे ही उसे अंकुश का उसी बुल्डिंग में होने का एहसास हुआ तो उसे एक अजीब सी बेचैनी सी होने लगी थी, पता नहीं क्यों ये बेचैनी उसे एक डरावने सपने वाले खौफ की याद दिला रही थी।

अगले दिन समीर ने अपनी सारी तैयारी पूरी की और सब सामान पैक करके घर निकलने के लिए तैयार हो गया, अंकुश शादी में नहीं आरहा था, उसे कोई काम था जो वो टाल नहीं सकता, उसने समीर का सामान टैक्सी में रखवाने में मदद की और चलते हुए अपना एक एटीएम समीर को पकड़ा दिया

"ये क्या है बे, तू अपना एटीएम मुझे क्यों दे रहा है "
"रख ले, मुझे पता है बहन की शादी में सौ खर्चे होते है, तूने पूरा अरेंजमेंट कर लिया है लेकिन कुछ पता नहीं होता लास्ट टाइम पर और कितने खर्च निकाल जाये इसलिए ये रख ले अगर कोई ज़रूरत पड़े तो बिना पूछे निकाल लियो, मेरे मोबाइल की लास्ट चार डिजिट इसका पासवर्ड है "

"अरे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है भाई, सब हो चूका है और अगर कोई ज़रूरत होगी तो वही किसी से मांग लूंगा "
"तुझे किसी से मांगने की ज़रूरत नहीं, ये मेरे पैसे है और तू जैसे चाहे वैसे खर्च कर जब तेरे पास हो तब करना वापिस और मन न हो तो मत करियो, तेरे लिए तो सौ खून माफ़ है मेरी जान, चल जा अब लेट हो रहा है, और हाँ वापसी में मिठाई के साथ पूरियां भी ज़रूर लाइयो, आंटी के हाथ की स्वाद लगती है मुझे। "

"तो फिर साथ चल वही खा लियो मम्मी के हाथ की गरम गरम पूरियां और पैक भी करा लेंगे दोनों भाई वापिस आते हुए।"
"अगर चल सकता तो ज़रूर चलता, फिर कभी चलूँगा, अब तू निकल टैक्सी वाला गलियां दे रहा होगा मन मन में "

समीर ने अंकुश से हाथ मिलाया और टैक्सी में बैठ कर निकल गया अपने घर की ओर जहा दो दिन बाद उसकी दीदी की शादी थी ,
अंकुश भी समीर को विदा करके वापस अपने घर आगया, वो फ़ोन अपने फ्लैट पर छोड़ आया था, उसने फ़ोन उठा कर देखा, तृषा की दो तीन मिस्ड कॉल और एसएमएस आये हुए थे, मैसेज पढ़ते हुए उसके चेहरे पर एक मुस्कान फ़ैल गयी, कल तृषा उस से मिलने आरही थी उसके फ्लैट पर पहली बार, उसने अपने होंटो पर जीभ फिराई और मुस्कुराते हुए बिस्तर पर धम से लेट गया। एक पल आँख बंद किये बेड पर लेता रहा फिर उसने लेटे लेटे ही जेब से अपना पर्स निकला और उसके अंदर से एक छोटी सी पासपोर्ट साइज फोटो निकली, ये किसी लड़की की फोटो थी, वह उस फोटो को निहारता हुआ बड़बड़ाया

"हहह एक और सील टूटेगी कल, एक और चूत का उद्धघाटन होगा, तू देखती रह रंडी ये तो बस मात्र एक शरुवात है भर "



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Bahot khoob shaandar update bhai
Neetu n bahot help Kari Sameer ki lekin uske flat per aaker Ankush ko leker itna dar kyon Rahi thi bhala
Ankush n dostibka farz tow nibhaya apna ATM card deker lekin yeh Banda sahi nahi lag raha aisa lag raha h jaise yeh Sameer ke saath dhoka zaroor karega aage chal ker (aisa Mera maan na h) Baki dekhte h aage kia pata chalta h
Tow ab Trisha ka namber laga dega Ankush dekhte h kia aisa ho payega or yeh tasveer kiski h jise yeh Randi bol raha h
Baherhal saare update aaj padhe bahota behtareen Kahani likh rehe ho
Yeh Kahani pichli Kahani se bhi ziada shohrat hasil kare yahi Kamna h
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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Bahot khoob shaandar update bhai
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Tow ab Trisha ka namber laga dega Ankush dekhte h kia aisa ho payega or yeh tasveer kiski h jise yeh Randi bol raha h
Baherhal saare update aaj padhe bahota behtareen Kahani likh rehe ho
Yeh Kahani pichli Kahani se bhi ziada shohrat hasil kare yahi Kamna h
Thank you for all the wishes brother. Keep coming for more.
 

blinkit

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ये अंकुश भले ही समीर के लिए अच्छा है, पर मुझे अच्छा नहीं लग रहा कतई।

और ये फोटो शायद किसी वैसी लड़की की है, जिसको ये एकतरफा प्यार करता होगा, और उसने किसी और से।

शायद सुनहरी की ही हो, क्योंकि लेखक साहब ने तो उसे दिखाया ही नही, बस सुनाया भर है।
thank you riky bhai, aane wale updates me ankush ke bare me aur pata chalega
 
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