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Romance बेडु पाको बारो मासा

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Update do bhai kitna intejar katwaoge
 
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समीर साहब का चरित्र लड़की के मामले मे त्रेतायुगीन अवतरित मानव का है । सुनहली को छोड़कर सभी महिलाएं उनके लिए मां-बहन के समान है लेकिन , एक अच्छे इंसान बनने के लिए इन्हे काफी-कुछ सीखने की जरूरत है ।
एक लड़की की इज्ज़त तार तार हुई और इस के लिए साहब अप्रत्यक्ष रूप से दोषी थे । एक ओर लड़की की आबरू दांव पर लगी हुई है लेकिन साहब को फिर भी किसी तरह का परवाह नही है ।
दोस्ती का मतलब यह कतई नही हुआ कि आप अपने दोस्त के बुरे कर्म को यह समझकर नजरअंदाज कर दे कि मेरा इन सब से क्या वास्ता ! दोस्त को सही राह पर लाना भी एक अच्छे दोस्त का कर्तव्य है ।
शायद तृषा भी जल्द ही आस्था के साथ एक ही कतार मे नजर आने लगेगी । अब देखना यह है कि क्या तृषा के पास भी कोई आस्था के मां जैसी मां या कोई अभिभावक है ?
बहुत ही बेहतरीन अपडेट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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उस दिन नीतू से मिलकर समीर जब घर आया तो खुश था भले ही उसके और नीतू के बीच में कुछ नहीं था लेकिन फिर भी जिस तरह नीतू ने उसे अपने दोस्तों में सबसे पहले उसे याद रखा था और शादी का कार्ड दिया था उसने समीर के मन में एक गहरी छाप छोड़ी थी उसने मन में सोंच लिया था की वो अब नीतू के साथ दोस्ती रखेगा, ज़रूरी नहीं है की एक लड़के और लड़की के बीच में केवल प्यार या सेक्स का ही सम्बन्ध हो, दोस्ती भी तो हो सकती है, उसने तय कर लिया था की वो इसके बारे में अंकुश और सुनहरी को भी नहीं बताएगा, सुनहरी से छुपाना इस लिए भी ज़रूरी था क्यूंकि वो बहुत पोस्सेसिव थी समीर को लेकर अगर उसको नीतू के बारे में भनक भी लग जाती तो वो सरेआम नीतू का गला दबा सकती थी।

अगला पूरा सप्ताह समीर घर और ऑफिस के कामो में बिजी रहा, गांव निकलने से दो दिन पहले उसने अपने चाचा जी को फ़ोन किया तो नीतू की बात सच निकली उन्होंने कम से कम एक पेटी विस्की लाने के लिए बोल दिया। उसने शाम में नीतू को कॉल किया, नीतू मानो उसी के कॉल के इन्तिज़ार में थी उसने अगले दिन समीर को पालम बुला लिया, समीर भी टाइम से पालम पहुंच गया और वहा से नीतू को बाइक पर बिठाकर कैंटीन ले गया, नीतू को रास्ता पता था वो पीछे से बैठी बैठी समीर को रास्ता समझा रही थी, दोनों जब कैंटीन पहचे तब तक अच्छी खासी भीड़ हो चुकी थी, कैंटीन के गेट पर आर्मी गार्ड ने रोका तो नीतू ने अपना और अपने पापा का कार्ड दिखा दिया और समीर को अपना भाई बता कर एंट्री करा दी।

दोनों अंदर पहुंचे तो समीर हैरत में पड़ गया उसने पहली बार आर्मी कैंटीन देखि थी, दारु वाले काउंटर का तो बुरा हाल था, टोकन लेकर लाइन लगनी पड़ रही थी, नीतू को सब पता था वो अपने पापा के साथ अक्सर आती थी उसने जल्दी से एक टोकन लिया और समीर का हाथ पकड़ कर एक ओर चल दी,

"अरे कहा ले जा रही हो ? यही लाइन में लगते है पता नहीं कब नंबर आजाये हमारा। "
"उनहुँ, इतनी जल्दी नहीं आएगा मैं जानती हूँ बेकार में लाइन में खड़े रहने से अच्छा है की तब तक घूम ले मार्किट में।"

"ठीक है जैसा तुम कहो, मेरे लिए तो सब नया है, बताओ फिर कहा चले ?"
"हाँ फिर जो मैं कहु करता जा बस, और यहाँ सूंदर सूंदर लड़कियों को देख कर लाइन मत मरने लगना, सब के पापा आर्मीमैन है गोली मार देंगे तुझे " नीतू ने समीर को एक बेहद सूंदर लड़की की ओर देखता हुआ पकड़ लिया था

"ओह्ह नहीं मैं घूर नहीं रहा था बस देख रहा था की बहुत मोर्डर्न लड़किया है यहाँ, बड़े छोटे छोटे कपड़ो में "
"अरे सब यहाँ कैंट एरिया में रहते है यहाँ लोग टोका टाकी नहीं करते सब पढ़े लिखे और एडवांस सोंच वाले है हमारे पालम वालो के जैसे नहीं है, अगर ज़रा सा भी कुछ दिख जाये तो ऐसे घूरते है जैसे आँखों से ही कांड कर दे "

"हाँ यार लग तो यही रहा है, खैर बताओ कहा चलना है ?"
"तू स्पोर्ट्स शूज पहनता है ? आ तुझे एडिडास से शूज दिलवाती हूँ, यहाँ बढ़िया क्वालिटी और सस्ता भी मिल जायेगा "

"हाँ जीन्स पर कभी कभार पहन लेता हूँ, तुमको स्पोर्ट्स शूज पसंद है शायद इसीलिए तुम अक्सर स्पोर्ट्स शूज में ही घूमती रहती हो "
"हाहाहा सही कहा यार, मुझे इसमें बहुत रिलैक्स फील होता है"

दोनों बातें करते हुए एडिडास के शौरूम के अंदर चले गए, दोनों ने कई शूज देखे, एक शूज समीर को पसंद आगया, दो हज़ार का शूज था, समीर ने अपने पुरे जीवन में इतना महंगा शूज नहीं लिया था इसलिए वो थोड़ा हिचक रहा था लेकिन नीतू ने उसकी एक नहीं सुनी और वो शूज समीर को दिलवा दिया, काउंटर पर जा कर समीर रिलैक्स हुआ क्यूंकि डिस्काउंट और टैक्स हटा कर वो शूज केवल नौ सौ का पड़ा था।

दोनों वापस लिकर काउंटर पर पहुंचे तो उनका नंबर आने अभी भी बहुत टाइम था इसलिए दोनों फिर मार्किट घूमने लगे, कुछ देर घूमने के बाद दोनों को भूख लगी तो उन्होंने वही की कैंटीन से खाना खाया और फिर जब उनका नंबर आया तो अपनी दारू की पेटी उठा कर बाहर निकल आये, पेटी में अच्छा खासा वज़न था, दोनों पेटी पकड़ कर बाहर तो निकल आये लेकिन अब समस्या ये थी की समीर बाइक पर पेटी कैसे लेकर जाता, उसके पास कोई रस्सी या कुछ ऐसा साधन नहीं था की वो पेटी बांधता, और अगर किसी तरह बांध भी लेता तो फिर नीतू घर कैसे जाती, दोनों कुछ देर पार्किंग में खड़े सर खुजाते रहे फिर समीर ने नीतू को सुझाया

"यार अगर बुरा न लगे तो मैं तुमको ऑटो करा देता हूँ तुम घर चली जाओ अकेले और मैं किसी तरह ये पेटी लेकर अपने घर चला जाऊंगा "
"अरे इसमें बुरा मांनने वाली कोई बात नहीं है, तू मेरी टेंशन मत ले मैं तो चली जाउंगी किसी ना किसी तरह लेकिन ये बता तू कैसे ले कर जायेगा, इसमें कांच की बॉटल्स है अगर एक भी टूटी तो साड़ी मेहनत बेकार हो जाएगी, ऊपर से तेरे पास कोई रस्सी भी नहीं है "

"हाँ यार ये टेंशन भी है, चल एक काम करता हूँ दो ऑटो करता हूँ, एक से तुम घर चली जाना और दूसरे में मैं ये बॉटल्स रख कर अपने घर ले जाता हूँ "
"वाह फिर जब पैसे बर्बाद ही करने थे तो फिर यहाँ से क्यों ली बॉटल्स तुमने, ये तो पैसे बेकार करने वाली बात हुई और एक बात अगर ऑटो वाले को भनक लग गयी की इस पेटी में दारू की बॉटल्स है तो वो पेटी के साथ ही गायब हो जायेगा और तू ढूंढते रहना फिर "

"फिर तुम ही बताओ क्या करू"
"तू कुछ मत कर, बस गाडी स्टार्ट कर और जो मैं कहु करता जा नहीं तो तो यही शाम करा देगा "

समीर ने भी कोई चारा न देख कर बाइक स्टार्ट की, नीतू ने पास में खड़े एक लड़के को आवाज़ दे कर पास बुलाया और खुद उछल कर समीर के पीछे बाइक पर बैठ गयी और और लड़के से कह कर बॉटल्स की पेटी अपने और समीर के बीच में रखवा ली और समीर को आगे बढ़ने का इशारा किया।

समीर ने भी बाइक आगे बढ़ा दी और बाइक को निकल कर मैं रोड पर ले आया और एक कोने में बाइक रोक कर पीछे बैठी नीतू को देख कर पूछा

"अब बताओ क्या प्लान है किधर लेकर चलु "
"तू बस अपने घर की ओर मोड़ ले अपनी बाइक, मैं तेरे घर तक तेरी बाइक पर चलूंगी और वहा तेरी बॉटल्स पंहुचा कर वापस आजाऊंगी "
"अरे नहीं तुम इतनी क्यों परेशान हो रही हो, तुमने मेरी इतनी हेल्प करदी वही बहुत है , बाकि का मैं देख लूंगा बस तुम बताओ तुम कैसे जाओगी अपने घर "

"अरे मुझे कोई दिक्कत नहीं है आज मैं बिलकुल फ्री हूँ, हाँ अगर तू मुझे अपने घर नहीं लेके जाना चाहता तो वो अलग बात है, क्यों वहा तूने अपनी वाइफ को छुपा रखा है क्या जो तुझे डर है की मैं देख लुंगी " नीतू ने आँख मारते हुए समीर को ताना मारा
"अरे पागल क्या बोलती रहती हो, चलो फिर मुझे क्या ? मैं तो बस इसलिए मना कर रहा था की तुमको बेकार में दिक्कत होगी और फिर एक लड़की का एक जवान लड़के के साथ उसके फ्लैट पर अकेला जाना थोड़ा अजीब लगता, लेकिन जब तुम्हे कोई दिक्कत नहीं है तो मुझे क्या प्रोब्लेम हो सकती हो"

कह कर समीर ने बाइक वापिस स्टार्ट की और मयूर विहार जाने वाले रस्ते की ओर मोड़ दी, लगभग चालीस पैंतालीस मिनट के बाद दोनों मयूर विहार में खड़े थे, समीर जब बाइक पार्क कर रहा था तब अचानक नीतू को यद् आया

"अरे यार समीर, अंकुश तेरे फ्लैट में होगा क्या ?"
"नहीं तो, क्यों क्या हुआ ?

"फिर वो कहा रहता है ?"
"वो भी इसी बिल्डिंग में रहता है मेरे फ्लैट से ऊपर वाले फ्लैट मे।, क्यों उस से मिलना है क्या ?"

"अरे नहीं, मैं नहीं चाहती की उसे पता चले की मैं तेरे साथ यहाँ आयी थी, वो सब में गाता फिरेगा"
"अरे डोंट वोर्री यार, मैंने उसे कुछ नहीं बताया तुम्हारे बारे में, और चिंता मत करो उसकी बाइक नहीं है यहाँ इसका मतलब वो कही गया हुआ है, तुम आओ मेरे साथ "

नीतू और समीर दारू की पेटी उठाये हुए फ्लैट पर आये, समीर ने चाभी फ्लैट के बाहर रखे गमले के नीचे छुपा राखी थी वह से चाभी निकाल कर उसने फ्लैट का लॉक खोला और दोनों फ्लैट के अंदर आगये, ये दो कमरों का छोटा सा फ्लैट था, सबसे पहले वाले रूम में समीर ने अपना बेड फ्रिज और सोफा रखा हुआ था, दूसरे अंदर वाले रूम में उसने अपना कंप्यूटर और टेबल और कुर्सी लगायी हुई थी, एक ओर रैक में बहुत सारे कम्प्यूटर्स और उनके पार्ट्स सजे हुए थे और एक ओर एक छोटी सी अलमारी में कतबे भरी हुई थी, इसी कमरे से लगा हुआ टॉयलेट और बाथरूम था जिसका एक गेट बालकनी से भी खुलता था।

नीतू ने देखा कई सारे बैग्स पैक रखे थे और कुछ नए कपड़ो के पैकेट सोफे की एक सीट पर ढेर थे। समीर ने उसके एक खली सोफे पर बैठने का इशारा किया और जल्दी से पानी की बोतल फ्रिज से निकाल कर नीतू को पकड़ाई, दोनों कुछ देर खामोश बैठे रहे फिर अचानक नीतू उठ कड़ी हुई

"ओके समीर मैं चलती हूँ, बस ये बता दे की मुझे अपनी घर जाने के लिए बस या मेट्रो कैसे मिलेगी ?"
"अरे रुको तो, बस दो मिनट, कुछ देर सुस्ता लो फिर मैं तुमको ले चलूँगा तुम्हारे घर तक, और हाँ देख लो ठीक से कहीं मैंने अपनी बीवी को छुपा न रखा हो किसी कमरे में।" समीर शरारत से मुस्कुराते हुए बोला

"अरे नहीं पागल है क्या" तू अभी तो आया है वहां से, फिर वापस जायेगा और फिर मुझे छोड़ कर वापस यहाँ आएगा, कोई लॉजिक है इस बात में, वो वाइफ वाली बात तो बस मैंने मज़ाक में कह दी थी "
"हाँ लेकिन ऐसे अच्छा नहीं लग रहा की तुम मेरी वजह से इतनी दूर आयी औरअब अकेली जाओगी, अच्छा ठीक है पहले कुछ खा लो फिर मैं तुमको मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर दूंगा "

"नहीं अभी तो खाया था, बस अब तू मुझे छोड़ आ किसी स्टेशन तक, कहीं अंकुश ना आजाये, बेकार में दिक्कत हो जाएगी "
"चलो ठीक है अगर तुम जाना चाहती हो तो मैं नहीं रोकूंगा, चलो आओ फिर मैं तुमको मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर देता हूँ " समीर ने नीतू के आवाज़ में बेचैनी महसूस करते हुए कहा

समीर ने वापिस लॉक उठाया और दोनों फ्लैट से बाहर निकाल गए, समीर ने लॉक करके चाभी वापस गमले के नीचे रख दी और नीतू को लेकर इंदरप्रस्थ मेट्रो स्टेशन पर ड्राप कर आया, स्टेशन पर पहुंच कर नीतू ने जल्दी से समीर से हैंडशेक किया और दौड़ती हुई स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ गयी। समीर भी नीतू को ड्राप करके घर वापस आगया

नीतू ने स्टेशन पर पहुंच कर सांस ली, उसे समीर के साथ उसके घर जाते हुए बिलकुल भी डर नहीं लगा था लेकिन जैसे ही उसे अंकुश का उसी बुल्डिंग में होने का एहसास हुआ तो उसे एक अजीब सी बेचैनी सी होने लगी थी, पता नहीं क्यों ये बेचैनी उसे एक डरावने सपने वाले खौफ की याद दिला रही थी।

अगले दिन समीर ने अपनी सारी तैयारी पूरी की और सब सामान पैक करके घर निकलने के लिए तैयार हो गया, अंकुश शादी में नहीं आरहा था, उसे कोई काम था जो वो टाल नहीं सकता, उसने समीर का सामान टैक्सी में रखवाने में मदद की और चलते हुए अपना एक एटीएम समीर को पकड़ा दिया

"ये क्या है बे, तू अपना एटीएम मुझे क्यों दे रहा है "
"रख ले, मुझे पता है बहन की शादी में सौ खर्चे होते है, तूने पूरा अरेंजमेंट कर लिया है लेकिन कुछ पता नहीं होता लास्ट टाइम पर और कितने खर्च निकाल जाये इसलिए ये रख ले अगर कोई ज़रूरत पड़े तो बिना पूछे निकाल लियो, मेरे मोबाइल की लास्ट चार डिजिट इसका पासवर्ड है "

"अरे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है भाई, सब हो चूका है और अगर कोई ज़रूरत होगी तो वही किसी से मांग लूंगा "
"तुझे किसी से मांगने की ज़रूरत नहीं, ये मेरे पैसे है और तू जैसे चाहे वैसे खर्च कर जब तेरे पास हो तब करना वापिस और मन न हो तो मत करियो, तेरे लिए तो सौ खून माफ़ है मेरी जान, चल जा अब लेट हो रहा है, और हाँ वापसी में मिठाई के साथ पूरियां भी ज़रूर लाइयो, आंटी के हाथ की स्वाद लगती है मुझे। "

"तो फिर साथ चल वही खा लियो मम्मी के हाथ की गरम गरम पूरियां और पैक भी करा लेंगे दोनों भाई वापिस आते हुए।"
"अगर चल सकता तो ज़रूर चलता, फिर कभी चलूँगा, अब तू निकल टैक्सी वाला गलियां दे रहा होगा मन मन में "

समीर ने अंकुश से हाथ मिलाया और टैक्सी में बैठ कर निकल गया अपने घर की ओर जहा दो दिन बाद उसकी दीदी की शादी थी ,
अंकुश भी समीर को विदा करके वापस अपने घर आगया, वो फ़ोन अपने फ्लैट पर छोड़ आया था, उसने फ़ोन उठा कर देखा, तृषा की दो तीन मिस्ड कॉल और एसएमएस आये हुए थे, मैसेज पढ़ते हुए उसके चेहरे पर एक मुस्कान फ़ैल गयी, कल तृषा उस से मिलने आरही थी उसके फ्लैट पर पहली बार, उसने अपने होंटो पर जीभ फिराई और मुस्कुराते हुए बिस्तर पर धम से लेट गया। एक पल आँख बंद किये बेड पर लेता रहा फिर उसने लेटे लेटे ही जेब से अपना पर्स निकला और उसके अंदर से एक छोटी सी पासपोर्ट साइज फोटो निकली, ये किसी लड़की की फोटो थी, वह उस फोटो को निहारता हुआ बड़बड़ाया

"हहह एक और सील टूटेगी कल, एक और चूत का उद्धघाटन होगा, तू देखती रह रंडी ये तो बस मात्र एक शरुवात है भर "



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Dono hi updates ek se badhkar he blinkit Bhai,

Nitu aur samir ke beech hi ye kahani kendrit hone wali he...........

Ankush ne ab trisha ka number lagaya he....ek aur masum ki bali chadh gayi is jhuthe pyar ke chakkar me........

Keep posting Bhai
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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अंकुश पिछले दो घंटो से लगातार अपने केमिस्ट्री के असाइनमेंट को पूरा करने में लगा हुआ था, एग्जाम से पहले उसको मलेरिया हो गया था इसलिए उसका असाइनमेंट अधूरा था उसकी टीचर ने उसकी बीमारी को देखते हुए एग्जाम के बाद असाइनमेंट जमा करने की छूट दे दी थी। आज ही उसका गयारहवी का एग्जाम पुरा हुआ था और उसको कल अपना असाइनमेंट हर हाल में जमा करना था, घर में उसकी मम्मी की कुछ सहेलिया आयी हुई थी इसीलिए अपनी टेबल और कुर्सी ले कर छत पर आगया था और अब पूरा मन लगा कर अपनी असाइनमेंट फाइल कम्पलीट करने में लगा हुआ था। वैसे भी मार्च के शरुआती दिन थे इसलिए छत का मौसम बहुत सुहाना था।

अंकुश ने एक आखरी नज़र अपनी असाइनमेंट की फाइल पर डाली और फिर एक झटके से फाइल बंद कर दी मनो जान छूटै हो उस मनहूस फाइल से, उसने के एक लम्बी सुख की साँस ली, आखिर उसका असाइनमेंट पूरा हो गया, वो लगातार कुर्सी पर बैठे बैठे थक भी गया था इसलिए अपनी कुर्सी से उठा और एक ज़ोर की अंगड़ाई ली, शरीर की लॉगभग सारी हड्डिया एक साथ बोल उठी, पहले उसने अपने शरीर को पीछे की ओर मोड़ा फिर दायी ओर, फिर जैसे ही उसने अपने शरीर को बायीं ओर मोड़ा के जैसे उसका शरीर उसी दशा में जड़ होकर रह गया।

उसकी नज़रे सामने वाली छत पर जम कर रह गयी थी और साथ ही अंकुश का शरीर भी उसी अवस्था में अटका रह गया, उसकी नज़रो का केंद्र शर्मा जी की छत पर निकल आया चाँद था, हाँ वो किसी चाँद जैसी ही सुन्दर तो थी या शायद उस से भी ज़्यदा खूबसूरत, अंकुश उस चाँद को देख कर बस देखता ही रह गया, अपनी अट्ठारह साल के जीवन में उसने इतनी खूबसूरत लड़की नहीं देखी थी, उधर वो अपनी छत पर दुनिया से बेखबर तौलिया हाथ में संभाले अपने काले घने बालो को पोंछ रही थी, लगता था बस अभी नाहा कर छत पर बाल सुखाने आयी हो और जिस पल उसने गर्दन को आगे कर अपने बालो को तौलिये से आज़ाद किया और फिर झटके से अपने बालो को पीछे की ओर झटका दिया अंकुश को ऐसा लगा की उसके घने काले बालो ने कोई उस पर कोई काला जादू कर दिया हो, क्यूंकि उस पानी से भीगे उलझे बालों ने सेकंड के सव्वे हिस्से में उसका दिल लूट लिया था। अंकुश किसी दीवानो के जैसे उसी अजीब अवस्था में अटका अपलक उस सुंदरी को निहारता खोया हुआ था। शायद अंकुश के निहारने का एहसास उस सुंदरी को भी हो गया था, उसने एक निगाह अंकुश की ओर डाली और जल्दी से पीठ मोड़ कर अपनी दिशा बदल ली।

उस लड़की के दिशा बदलते भर ही अंकुश वापस अपने होश में आया और जल्दी से लड़खड़ाता हुआ कुर्सी पर ढेर हो गया, वह कुछ पल के लिए तो झेंपा और अपना धयान इधर उधर भटकने के कोशिश की लेकिन भला वो दिल ही क्या जो उद्दण्ता ना करे। उसका दिल तो बस अब उस सुंदरी में अटका गया था और निगाहो को उस सुंदरी का पता मालूम था इसलिए बिना देरी किये वापिस उस हसीना पर आ टिकी और उसकी सुंदर मुखड़े के दीदार की तलब में उसके पलटने की राह देखने लगी।

अंकुश को ज़ायदा इंतज़ार नहीं करना पड़ा, शायद उसके बालो का पानी तौलिये ने सूखा दिया था और अब वो कंघे से अपने बालो को सुलझाते हुए फिर से अंकुश की की ओर पलटी, घने काले बालो के बीच में उसका छोटा सा मासूम मुखड़ा और उस पर बड़ी बड़ी काली आँखे अंकुश अपने छत से दो माकन दूर भी बिलकुल साफ़ देख पा रहा था, वो अभी अब छत पर हौले हौले टहलते हुए अपने बाल सुलझा रही थी और कभी कभी कनखियों से अंकुश की ओर देख लेती, एक बार ऐसे ही देखते हुए उसकी नज़र अंकुश की नज़रो से टकरा गयी तो वो झेप उठी और जल्दी से हडबडते हुए सीढ़ियों की ओर दौड़ गयी।

उसके जाते है अंकुश का मन जैसे उचाट हो उठा, कुछ देर ऐसी ही बैठा इन्तिज़ार करता रहा लेकिन वो नहीं आयी, उसने भुझे हुए मन से अपना सामान समेटा और नीचे उतर आया, नीचे उसकी मम्मी चाय के लिए बुला रही थी। रात के खाने के बाद अंकुश को बिस्तर में नींद ही नहीं आरही थी, बार बार उसी का चेहरा नज़र आरहा था, वो बार बार उसका नाम याद करने के कोशिश कर रहा था लेकिन नाम भी याद नहीं आरहा था, उसकी शर्मा जी के बेटे मोनू से थोड़ी बहुत जान पहचान थी, अंकुश के मकान से दो मकान आगे शर्मा जी का मकान था ये मकान पहले जैन साहब का हुआ करता था, जैन साहब का बेटा विवेक और अंकुश एक ही स्कूल में पढ़ते थे और गहरे दोस्त थे लेकिन चित फण्ड कंपनी के चक्कर में पढ़कर जैन साहब का बड़ा नुक्सान हुआ और वो अपना मकान बेच कर दूसरे मोहल्ले में चले गए थे, उनका मकान शर्मा जी ने खरीद लिया था और अलगभग तीन चार साल पहले अपने परिवार के साथ उस मकान में रहने आगये थे,

शर्मा जी के परिवार में शर्मा जी की माँ, उनकी पत्नी और दो बच्चे यानि की मोनू और उनकी लाड़ली बेटी थी, अंकुश को याद आरहा था की उसने कई बार शर्मा जी को परिवार के साथ आते जाते देखा था, उसने भी मोनू के साथ होली दिवाली में भेंट की थी एकिन कभी उनकी बेटी की ओर धयान ही नहीं दिया और बस आज इसी बात पर खीज रहा था, उसका नाम न पता होना उसे बेचैन कर रहा था और वो बार बार बेचैनी से करवट बदल रहा था। पता नहीं रात के कौन से पहर में उसे नीड आयी और वो सो गया।

सुबह मम्मी के जगाने पर उठा, टाइम देखा तो आठ बजने वाला था स्कूल के लिए लेट हो चूका था इसलिए फटाफट नाहा धो कर तैयार हुआ और नाश्ता ठूँसता हुआ अपनी साइकिल निकली और फाइल साइकिल के करियर में फसा कर सरपट स्कूल की ओर निकल गया। स्कूल में छुटियाँ पड़ चुकी थी इसलिए आज स्कूल बिलकुल अजीब खाली खाली लग रहा था , उसने स्टाफ रूम में जा कर मैडम को फाइल पकड़ाई और मैडम से परमिशन ले कर घर की ओर चल पड़ा, उसने घडी में टाइम देखा बारह बजने वाले था उसने साइकिल की स्पीड तेज़ की और साइकिल दौड़ाता हुआ सरकारी स्कूल जा पंहुचा, उसने जल्दी से साइकिल रोड की साइड में खड़ी की और स्कूल के गेट में घुस गया, ये उनके टाउन का सबसे बड़ा सरकारी स्कूल था, सरकारी स्कूल था इसीसलिए या कोई रोका ताकि नहीं हुई और वो तेज़ी से चलता हुआ उस ओर चल दिया जहा क्लासेस बनी हुई थी, उसे ज़यादा नहीं चलना पड़ क्यंकि विवेक उसे इसी ओर आता हुआ मिल गया।

"तू यहाँ क्या कर रहा है ?" विवेक ने अंकुश को अपनी और आते हुए पूछा
"तेरे से मिलने आया था, मैंने सोचा लंच टाइम है तो तू मिल जायेगा " अंकुश ने जवाब दिया

"अरे यार ये सरकारी स्कूल है यहाँ क्या लंच और क्या छुट्टी, यहाँ तो सब हरामखोर बसे हुए है, साले टीचर क्लास में ऐसे आते है जैसे एहसान कर रहे हो " विवेक की आवाज़ में एक खीज सी थी
"हाँ ये तो है, तू बता तेरे एग्जाम कब से स्टार्ट हो रहे है "

"अगले महीने से होंगे शायद, अभी डेट शीट नहीं मिली, अच्छा छोर, तू साइकिल से आया है क्या ?"
"हाँ, बाहर खड़ी की है "

"फिर रुक दो मिनट मैं बैग लेकर आता हु फिर साथ घर चलेंगे "
"ठीक है लेकिन क्या तेरा टीचर जाने देगा ?"

"अबे अटेंडेंस लग चुकी है अब कोई पूछने भी नहीं आएगा, यहाँ किसी मादरचोद को घंटा भी फरक नहीं पड़ता "

"विवेक यार तू तो सरकारी स्कूल में आकर इनके जैसा ही हो गया वर्ण तू अपने वाले स्कूल में तो गाली नहीं देता था ?"
"अरे वो स्कूल छोड़े तो तीन साल हो गए, यहाँ आके बहुत कुछ सीख लिया, चल अब बाकी बातें रास्ते में करेंगे पहले मैं बैग उठा लाऊँ क्लासरूम से "

दो मिनट में ही विवेक बैग उठा लाया और फिर दोनों चलते हुए बाहर आगये और वह से साइकिल पर बैठ कर दोनों घर के लिए चल दिए, स्कूल और घर के बीच में पहले खेत पड़ते थे और फिर उसके आगे मार्किट और मार्किट के बाद विवेक का घर आता था, खेत पार करने के बाद दोनों मार्किट में रुक गए वहा से अंकुश ने दो समोसे और दो पेस्ट्री ली और दोनों मार्केट के पीछे बने ग्राउंड में चले गए, ये एक सरकारी ग्राउंड था जहा अक्सर बचे क्रिकेट का मैच खेलने आया करते थे, अब दोपहर हो चली थी इसलिए कुछ खास भीड़ नहीं थी, दोनों ने साइकिल एक और खड़ी की और एक पेड़ के नीचे घास पर बैठ गए, अंकुश ने खाने का सामान खोला और दोनों मिलकर खाने लगे।

अंकुश विवेक को ऐसे ही नहीं लाया था अपने साथ उसका मकसद था शर्मा जी की बेटी की जानकारी निकलना, विवेक मोहल्ले में सबको जानता था और वो हर किसी के घर में बेहिचक घुस जाता था, वो बड़े छोटे सबका दोस्त था, इसलिए अंकुश को साडी जानकारी विवेक से ही मिल सकती थी, समोसे और पेस्ट्री चट करने के बाद अंकुश अपने पॉइंट पर आगया

"यार वैसे तेरा पहले वाला मकान बढ़िया था, दोनों पास पास रहते थे "
"हाँ यार, वो बड़ा भी था, ये वाला मकान छोटा भी है और आसपास के लोग पुराने मोहल्ले जैसे नहीं है "

"हाँ, सही कहा, अब तो शर्मा जी ने घर का फ्रंट भी बढ़िया बनवा लिया है , तूने देखा ?"
"हाँ मैं तो आता जाता रहता हूँ, उन्होंने अंदर भी काम कराया है, उनका खुद का कंस्ट्रक्शन का काम है, ठेका लेते है शर्मा जी "

"हाँ मस्त है यार उनकी लाइफ, अच्छा पैसा है उनके पास, मोनू भी बढ़िया लड़का है "
"अरे घंटा बढ़िया है मोनू, एक नंबर का हरामी है, तुझे पता है साला मॉर्निंग शो वाली फिल्म देखने जाता है "

"हैं, सच में ?" यार कैसे चला जाता है, मुझे तो उस सिनेमा हाल के सामने से निकलते हुए भी शर्म आती है, नंगी नंगी फिल्मे लगती है वहा "
"अरे, हाँ, विदेशी बहुत हरामी होते है उनकी औरते किसी के साथ भी करा लेती है काण्ड"

"तुझे कैसे पता ये सब ?"
"अरे मैं एक दो बार मोनू के साथ गया हूँ "

"फिल्म देखने? तूने भी मॉर्निंग शो वाली फिल्म देखी है " अंकुश को हैरत हुई
"अरे नहीं मैं नहीं गया, मेरे पास पैसे नहीं थे वो ही गया था, मैं तो बस बाहर से ट्रेलर के पोस्टर देख कर आया, मज़ा आगया था यार "

"यार ये मोनू तो सच मैं हरामी है, और इसके घरवाले तो बहुत सीधे है "
"अरे सीधा विधा कोई नहीं है, इसके पापा भी दारुबाज है, खूब पीते है, शाम को घर में ही बोतल खोलके बैठ जाते है "

"अच्छा ऐसा क्या ? और उनकी पत्नी और बेटी कुछ नहीं बोलती "
"अरे आंटी क्या बोलेंगी वो तो बेचारी गाओं की है इसलिए घर में उनकी कुछ नहीं चलती, उनकी अम्मा की चलती है बस "

"और उनकी बेटी, वो भी हमारी ही उम्र की है ना " अंकुश ने धड़कते दिल के साथ पूछा
"कौन गरिमा ? गरिमा दसवीं के एग्जाम देगी अगले महीने "

"ओह उसका नाम गरिमा है "
"हाँ गरिमा शर्मा, क्यों तुझे नहीं पता था क्या ?"

"नहीं यार, मेरी तो बस मोनू से ही थोड़ी बहुत बातचीत होती है कभी कभार बाकि तुझे पता ही है हमारे स्कूल वाले कितना होमवर्क देते थे और फिर ऊपर से टूशन कोचिंग, टाइम ही कहा मिलता है "
"हाँ ये तो है, यहाँ सरकारी स्कूल में मज़े है, वहा की तरह नहीं "

"हाँ, सही है यार, तो ये गरिमा भी तेरे स्कूल में ही पढ़ती है क्या ?"
"अरे नहीं वो भी गर्ल्स वाले सरकारी स्कूल में पढ़ते है "

"ओह्ह मुझे लगा वो प्राइवेट स्कूल में पढ़ती होगी "
"नहीं वो अपना मंगल बाजार वाला सरकारी स्कूल है न केवल लड़कियों वाला उसी में जाती है "

"चल ठीक है हमे क्या करना, और तू बता तेरा क्या चल रहा है ?"
"कुछ नहीं यार मेरा क्या चलेगा, बस कट रहा है टाइम "

"कोई नहीं, अच्छा सुन वो पिंकी तुझे पूछ रही थी"
"कौन पिंकी? पिंकी गर्ग ? हमारे क्लास वाली ?"

"हाँ वही, तुझे याद करती रहती है वो ?"
"हट उस मोटी को मेरे से क्या लेना देना ?"

"पता नहीं, क्या पता तुझसे प्यार करने लगी हो, मिल ले उस से एक बार, थोड़ी मोटी ही तो है लेकिन है कितनी क्यूट ?"
"हाँ क्यूट तो है ?" लेकिन छोड़ यार वो इतनी अमीर है मैं क्यों उसके चक्कर में दिमाग ख़राब करू

"अब देख ले भाई उसने पूछा था तो मैंने तुझे बता दिया आगे तेरी मर्ज़ी "
"हाँ ठीक है, छोर देखते फिर कभी , अब घर चलते है मुझे कुछ काम भी है "

"हाँ ठीक है निकलते है अब थोड़ी धुप भी होने लगी है "



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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अंकुश पिछले दो घंटो से लगातार अपने केमिस्ट्री के असाइनमेंट को पूरा करने में लगा हुआ था, एग्जाम से पहले उसको मलेरिया हो गया था इसलिए उसका असाइनमेंट अधूरा था उसकी टीचर ने उसकी बीमारी को देखते हुए एग्जाम के बाद असाइनमेंट जमा करने की छूट दे दी थी। आज ही उसका गयारहवी का एग्जाम पुरा हुआ था और उसको कल अपना असाइनमेंट हर हाल में जमा करना था, घर में उसकी मम्मी की कुछ सहेलिया आयी हुई थी इसीलिए अपनी टेबल और कुर्सी ले कर छत पर आगया था और अब पूरा मन लगा कर अपनी असाइनमेंट फाइल कम्पलीट करने में लगा हुआ था। वैसे भी मार्च के शरुआती दिन थे इसलिए छत का मौसम बहुत सुहाना था।

अंकुश ने एक आखरी नज़र अपनी असाइनमेंट की फाइल पर डाली और फिर एक झटके से फाइल बंद कर दी मनो जान छूटै हो उस मनहूस फाइल से, उसने के एक लम्बी सुख की साँस ली, आखिर उसका असाइनमेंट पूरा हो गया, वो लगातार कुर्सी पर बैठे बैठे थक भी गया था इसलिए अपनी कुर्सी से उठा और एक ज़ोर की अंगड़ाई ली, शरीर की लॉगभग सारी हड्डिया एक साथ बोल उठी, पहले उसने अपने शरीर को पीछे की ओर मोड़ा फिर दायी ओर, फिर जैसे ही उसने अपने शरीर को बायीं ओर मोड़ा के जैसे उसका शरीर उसी दशा में जड़ होकर रह गया।

उसकी नज़रे सामने वाली छत पर जम कर रह गयी थी और साथ ही अंकुश का शरीर भी उसी अवस्था में अटका रह गया, उसकी नज़रो का केंद्र शर्मा जी की छत पर निकल आया चाँद था, हाँ वो किसी चाँद जैसी ही सुन्दर तो थी या शायद उस से भी ज़्यदा खूबसूरत, अंकुश उस चाँद को देख कर बस देखता ही रह गया, अपनी अट्ठारह साल के जीवन में उसने इतनी खूबसूरत लड़की नहीं देखी थी, उधर वो अपनी छत पर दुनिया से बेखबर तौलिया हाथ में संभाले अपने काले घने बालो को पोंछ रही थी, लगता था बस अभी नाहा कर छत पर बाल सुखाने आयी हो और जिस पल उसने गर्दन को आगे कर अपने बालो को तौलिये से आज़ाद किया और फिर झटके से अपने बालो को पीछे की ओर झटका दिया अंकुश को ऐसा लगा की उसके घने काले बालो ने कोई उस पर कोई काला जादू कर दिया हो, क्यूंकि उस पानी से भीगे उलझे बालों ने सेकंड के सव्वे हिस्से में उसका दिल लूट लिया था। अंकुश किसी दीवानो के जैसे उसी अजीब अवस्था में अटका अपलक उस सुंदरी को निहारता खोया हुआ था। शायद अंकुश के निहारने का एहसास उस सुंदरी को भी हो गया था, उसने एक निगाह अंकुश की ओर डाली और जल्दी से पीठ मोड़ कर अपनी दिशा बदल ली।

उस लड़की के दिशा बदलते भर ही अंकुश वापस अपने होश में आया और जल्दी से लड़खड़ाता हुआ कुर्सी पर ढेर हो गया, वह कुछ पल के लिए तो झेंपा और अपना धयान इधर उधर भटकने के कोशिश की लेकिन भला वो दिल ही क्या जो उद्दण्ता ना करे। उसका दिल तो बस अब उस सुंदरी में अटका गया था और निगाहो को उस सुंदरी का पता मालूम था इसलिए बिना देरी किये वापिस उस हसीना पर आ टिकी और उसकी सुंदर मुखड़े के दीदार की तलब में उसके पलटने की राह देखने लगी।

अंकुश को ज़ायदा इंतज़ार नहीं करना पड़ा, शायद उसके बालो का पानी तौलिये ने सूखा दिया था और अब वो कंघे से अपने बालो को सुलझाते हुए फिर से अंकुश की की ओर पलटी, घने काले बालो के बीच में उसका छोटा सा मासूम मुखड़ा और उस पर बड़ी बड़ी काली आँखे अंकुश अपने छत से दो माकन दूर भी बिलकुल साफ़ देख पा रहा था, वो अभी अब छत पर हौले हौले टहलते हुए अपने बाल सुलझा रही थी और कभी कभी कनखियों से अंकुश की ओर देख लेती, एक बार ऐसे ही देखते हुए उसकी नज़र अंकुश की नज़रो से टकरा गयी तो वो झेप उठी और जल्दी से हडबडते हुए सीढ़ियों की ओर दौड़ गयी।

उसके जाते है अंकुश का मन जैसे उचाट हो उठा, कुछ देर ऐसी ही बैठा इन्तिज़ार करता रहा लेकिन वो नहीं आयी, उसने भुझे हुए मन से अपना सामान समेटा और नीचे उतर आया, नीचे उसकी मम्मी चाय के लिए बुला रही थी। रात के खाने के बाद अंकुश को बिस्तर में नींद ही नहीं आरही थी, बार बार उसी का चेहरा नज़र आरहा था, वो बार बार उसका नाम याद करने के कोशिश कर रहा था लेकिन नाम भी याद नहीं आरहा था, उसकी शर्मा जी के बेटे मोनू से थोड़ी बहुत जान पहचान थी, अंकुश के मकान से दो मकान आगे शर्मा जी का मकान था ये मकान पहले जैन साहब का हुआ करता था, जैन साहब का बेटा विवेक और अंकुश एक ही स्कूल में पढ़ते थे और गहरे दोस्त थे लेकिन चित फण्ड कंपनी के चक्कर में पढ़कर जैन साहब का बड़ा नुक्सान हुआ और वो अपना मकान बेच कर दूसरे मोहल्ले में चले गए थे, उनका मकान शर्मा जी ने खरीद लिया था और अलगभग तीन चार साल पहले अपने परिवार के साथ उस मकान में रहने आगये थे,

शर्मा जी के परिवार में शर्मा जी की माँ, उनकी पत्नी और दो बच्चे यानि की मोनू और उनकी लाड़ली बेटी थी, अंकुश को याद आरहा था की उसने कई बार शर्मा जी को परिवार के साथ आते जाते देखा था, उसने भी मोनू के साथ होली दिवाली में भेंट की थी एकिन कभी उनकी बेटी की ओर धयान ही नहीं दिया और बस आज इसी बात पर खीज रहा था, उसका नाम न पता होना उसे बेचैन कर रहा था और वो बार बार बेचैनी से करवट बदल रहा था। पता नहीं रात के कौन से पहर में उसे नीड आयी और वो सो गया।

सुबह मम्मी के जगाने पर उठा, टाइम देखा तो आठ बजने वाला था स्कूल के लिए लेट हो चूका था इसलिए फटाफट नाहा धो कर तैयार हुआ और नाश्ता ठूँसता हुआ अपनी साइकिल निकली और फाइल साइकिल के करियर में फसा कर सरपट स्कूल की ओर निकल गया। स्कूल में छुटियाँ पड़ चुकी थी इसलिए आज स्कूल बिलकुल अजीब खाली खाली लग रहा था , उसने स्टाफ रूम में जा कर मैडम को फाइल पकड़ाई और मैडम से परमिशन ले कर घर की ओर चल पड़ा, उसने घडी में टाइम देखा बारह बजने वाले था उसने साइकिल की स्पीड तेज़ की और साइकिल दौड़ाता हुआ सरकारी स्कूल जा पंहुचा, उसने जल्दी से साइकिल रोड की साइड में खड़ी की और स्कूल के गेट में घुस गया, ये उनके टाउन का सबसे बड़ा सरकारी स्कूल था, सरकारी स्कूल था इसीसलिए या कोई रोका ताकि नहीं हुई और वो तेज़ी से चलता हुआ उस ओर चल दिया जहा क्लासेस बनी हुई थी, उसे ज़यादा नहीं चलना पड़ क्यंकि विवेक उसे इसी ओर आता हुआ मिल गया।

"तू यहाँ क्या कर रहा है ?" विवेक ने अंकुश को अपनी और आते हुए पूछा
"तेरे से मिलने आया था, मैंने सोचा लंच टाइम है तो तू मिल जायेगा " अंकुश ने जवाब दिया

"अरे यार ये सरकारी स्कूल है यहाँ क्या लंच और क्या छुट्टी, यहाँ तो सब हरामखोर बसे हुए है, साले टीचर क्लास में ऐसे आते है जैसे एहसान कर रहे हो " विवेक की आवाज़ में एक खीज सी थी
"हाँ ये तो है, तू बता तेरे एग्जाम कब से स्टार्ट हो रहे है "

"अगले महीने से होंगे शायद, अभी डेट शीट नहीं मिली, अच्छा छोर, तू साइकिल से आया है क्या ?"
"हाँ, बाहर खड़ी की है "

"फिर रुक दो मिनट मैं बैग लेकर आता हु फिर साथ घर चलेंगे "
"ठीक है लेकिन क्या तेरा टीचर जाने देगा ?"

"अबे अटेंडेंस लग चुकी है अब कोई पूछने भी नहीं आएगा, यहाँ किसी मादरचोद को घंटा भी फरक नहीं पड़ता "

"विवेक यार तू तो सरकारी स्कूल में आकर इनके जैसा ही हो गया वर्ण तू अपने वाले स्कूल में तो गाली नहीं देता था ?"
"अरे वो स्कूल छोड़े तो तीन साल हो गए, यहाँ आके बहुत कुछ सीख लिया, चल अब बाकी बातें रास्ते में करेंगे पहले मैं बैग उठा लाऊँ क्लासरूम से "

दो मिनट में ही विवेक बैग उठा लाया और फिर दोनों चलते हुए बाहर आगये और वह से साइकिल पर बैठ कर दोनों घर के लिए चल दिए, स्कूल और घर के बीच में पहले खेत पड़ते थे और फिर उसके आगे मार्किट और मार्किट के बाद विवेक का घर आता था, खेत पार करने के बाद दोनों मार्किट में रुक गए वहा से अंकुश ने दो समोसे और दो पेस्ट्री ली और दोनों मार्केट के पीछे बने ग्राउंड में चले गए, ये एक सरकारी ग्राउंड था जहा अक्सर बचे क्रिकेट का मैच खेलने आया करते थे, अब दोपहर हो चली थी इसलिए कुछ खास भीड़ नहीं थी, दोनों ने साइकिल एक और खड़ी की और एक पेड़ के नीचे घास पर बैठ गए, अंकुश ने खाने का सामान खोला और दोनों मिलकर खाने लगे।

अंकुश विवेक को ऐसे ही नहीं लाया था अपने साथ उसका मकसद था शर्मा जी की बेटी की जानकारी निकलना, विवेक मोहल्ले में सबको जानता था और वो हर किसी के घर में बेहिचक घुस जाता था, वो बड़े छोटे सबका दोस्त था, इसलिए अंकुश को साडी जानकारी विवेक से ही मिल सकती थी, समोसे और पेस्ट्री चट करने के बाद अंकुश अपने पॉइंट पर आगया

"यार वैसे तेरा पहले वाला मकान बढ़िया था, दोनों पास पास रहते थे "
"हाँ यार, वो बड़ा भी था, ये वाला मकान छोटा भी है और आसपास के लोग पुराने मोहल्ले जैसे नहीं है "

"हाँ, सही कहा, अब तो शर्मा जी ने घर का फ्रंट भी बढ़िया बनवा लिया है , तूने देखा ?"
"हाँ मैं तो आता जाता रहता हूँ, उन्होंने अंदर भी काम कराया है, उनका खुद का कंस्ट्रक्शन का काम है, ठेका लेते है शर्मा जी "

"हाँ मस्त है यार उनकी लाइफ, अच्छा पैसा है उनके पास, मोनू भी बढ़िया लड़का है "
"अरे घंटा बढ़िया है मोनू, एक नंबर का हरामी है, तुझे पता है साला मॉर्निंग शो वाली फिल्म देखने जाता है "

"हैं, सच में ?" यार कैसे चला जाता है, मुझे तो उस सिनेमा हाल के सामने से निकलते हुए भी शर्म आती है, नंगी नंगी फिल्मे लगती है वहा "
"अरे, हाँ, विदेशी बहुत हरामी होते है उनकी औरते किसी के साथ भी करा लेती है काण्ड"

"तुझे कैसे पता ये सब ?"
"अरे मैं एक दो बार मोनू के साथ गया हूँ "

"फिल्म देखने? तूने भी मॉर्निंग शो वाली फिल्म देखी है " अंकुश को हैरत हुई
"अरे नहीं मैं नहीं गया, मेरे पास पैसे नहीं थे वो ही गया था, मैं तो बस बाहर से ट्रेलर के पोस्टर देख कर आया, मज़ा आगया था यार "

"यार ये मोनू तो सच मैं हरामी है, और इसके घरवाले तो बहुत सीधे है "
"अरे सीधा विधा कोई नहीं है, इसके पापा भी दारुबाज है, खूब पीते है, शाम को घर में ही बोतल खोलके बैठ जाते है "

"अच्छा ऐसा क्या ? और उनकी पत्नी और बेटी कुछ नहीं बोलती "
"अरे आंटी क्या बोलेंगी वो तो बेचारी गाओं की है इसलिए घर में उनकी कुछ नहीं चलती, उनकी अम्मा की चलती है बस "

"और उनकी बेटी, वो भी हमारी ही उम्र की है ना " अंकुश ने धड़कते दिल के साथ पूछा
"कौन गरिमा ? गरिमा दसवीं के एग्जाम देगी अगले महीने "

"ओह उसका नाम गरिमा है "
"हाँ गरिमा शर्मा, क्यों तुझे नहीं पता था क्या ?"

"नहीं यार, मेरी तो बस मोनू से ही थोड़ी बहुत बातचीत होती है कभी कभार बाकि तुझे पता ही है हमारे स्कूल वाले कितना होमवर्क देते थे और फिर ऊपर से टूशन कोचिंग, टाइम ही कहा मिलता है "
"हाँ ये तो है, यहाँ सरकारी स्कूल में मज़े है, वहा की तरह नहीं "

"हाँ, सही है यार, तो ये गरिमा भी तेरे स्कूल में ही पढ़ती है क्या ?"
"अरे नहीं वो भी गर्ल्स वाले सरकारी स्कूल में पढ़ते है "

"ओह्ह मुझे लगा वो प्राइवेट स्कूल में पढ़ती होगी "
"नहीं वो अपना मंगल बाजार वाला सरकारी स्कूल है न केवल लड़कियों वाला उसी में जाती है "

"चल ठीक है हमे क्या करना, और तू बता तेरा क्या चल रहा है ?"
"कुछ नहीं यार मेरा क्या चलेगा, बस कट रहा है टाइम "

"कोई नहीं, अच्छा सुन वो पिंकी तुझे पूछ रही थी"
"कौन पिंकी? पिंकी गर्ग ? हमारे क्लास वाली ?"

"हाँ वही, तुझे याद करती रहती है वो ?"
"हट उस मोटी को मेरे से क्या लेना देना ?"

"पता नहीं, क्या पता तुझसे प्यार करने लगी हो, मिल ले उस से एक बार, थोड़ी मोटी ही तो है लेकिन है कितनी क्यूट ?"
"हाँ क्यूट तो है ?" लेकिन छोड़ यार वो इतनी अमीर है मैं क्यों उसके चक्कर में दिमाग ख़राब करू

"अब देख ले भाई उसने पूछा था तो मैंने तुझे बता दिया आगे तेरी मर्ज़ी "
"हाँ ठीक है, छोर देखते फिर कभी , अब घर चलते है मुझे कुछ काम भी है "

"हाँ ठीक है निकलते है अब थोड़ी धुप भी होने लगी है "



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हम्म्म तो ये गरिमा का चक्कर लगता है, खैर आगे देखते हैं कि अंकुश भाईसाब के साथ क्या गुल खिला गई गरिमा।

वैसे ये हैं एक नंबर के कमीने ही शुरू से।
 

Ajju Landwalia

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अंकुश पिछले दो घंटो से लगातार अपने केमिस्ट्री के असाइनमेंट को पूरा करने में लगा हुआ था, एग्जाम से पहले उसको मलेरिया हो गया था इसलिए उसका असाइनमेंट अधूरा था उसकी टीचर ने उसकी बीमारी को देखते हुए एग्जाम के बाद असाइनमेंट जमा करने की छूट दे दी थी। आज ही उसका गयारहवी का एग्जाम पुरा हुआ था और उसको कल अपना असाइनमेंट हर हाल में जमा करना था, घर में उसकी मम्मी की कुछ सहेलिया आयी हुई थी इसीलिए अपनी टेबल और कुर्सी ले कर छत पर आगया था और अब पूरा मन लगा कर अपनी असाइनमेंट फाइल कम्पलीट करने में लगा हुआ था। वैसे भी मार्च के शरुआती दिन थे इसलिए छत का मौसम बहुत सुहाना था।

अंकुश ने एक आखरी नज़र अपनी असाइनमेंट की फाइल पर डाली और फिर एक झटके से फाइल बंद कर दी मनो जान छूटै हो उस मनहूस फाइल से, उसने के एक लम्बी सुख की साँस ली, आखिर उसका असाइनमेंट पूरा हो गया, वो लगातार कुर्सी पर बैठे बैठे थक भी गया था इसलिए अपनी कुर्सी से उठा और एक ज़ोर की अंगड़ाई ली, शरीर की लॉगभग सारी हड्डिया एक साथ बोल उठी, पहले उसने अपने शरीर को पीछे की ओर मोड़ा फिर दायी ओर, फिर जैसे ही उसने अपने शरीर को बायीं ओर मोड़ा के जैसे उसका शरीर उसी दशा में जड़ होकर रह गया।

उसकी नज़रे सामने वाली छत पर जम कर रह गयी थी और साथ ही अंकुश का शरीर भी उसी अवस्था में अटका रह गया, उसकी नज़रो का केंद्र शर्मा जी की छत पर निकल आया चाँद था, हाँ वो किसी चाँद जैसी ही सुन्दर तो थी या शायद उस से भी ज़्यदा खूबसूरत, अंकुश उस चाँद को देख कर बस देखता ही रह गया, अपनी अट्ठारह साल के जीवन में उसने इतनी खूबसूरत लड़की नहीं देखी थी, उधर वो अपनी छत पर दुनिया से बेखबर तौलिया हाथ में संभाले अपने काले घने बालो को पोंछ रही थी, लगता था बस अभी नाहा कर छत पर बाल सुखाने आयी हो और जिस पल उसने गर्दन को आगे कर अपने बालो को तौलिये से आज़ाद किया और फिर झटके से अपने बालो को पीछे की ओर झटका दिया अंकुश को ऐसा लगा की उसके घने काले बालो ने कोई उस पर कोई काला जादू कर दिया हो, क्यूंकि उस पानी से भीगे उलझे बालों ने सेकंड के सव्वे हिस्से में उसका दिल लूट लिया था। अंकुश किसी दीवानो के जैसे उसी अजीब अवस्था में अटका अपलक उस सुंदरी को निहारता खोया हुआ था। शायद अंकुश के निहारने का एहसास उस सुंदरी को भी हो गया था, उसने एक निगाह अंकुश की ओर डाली और जल्दी से पीठ मोड़ कर अपनी दिशा बदल ली।

उस लड़की के दिशा बदलते भर ही अंकुश वापस अपने होश में आया और जल्दी से लड़खड़ाता हुआ कुर्सी पर ढेर हो गया, वह कुछ पल के लिए तो झेंपा और अपना धयान इधर उधर भटकने के कोशिश की लेकिन भला वो दिल ही क्या जो उद्दण्ता ना करे। उसका दिल तो बस अब उस सुंदरी में अटका गया था और निगाहो को उस सुंदरी का पता मालूम था इसलिए बिना देरी किये वापिस उस हसीना पर आ टिकी और उसकी सुंदर मुखड़े के दीदार की तलब में उसके पलटने की राह देखने लगी।

अंकुश को ज़ायदा इंतज़ार नहीं करना पड़ा, शायद उसके बालो का पानी तौलिये ने सूखा दिया था और अब वो कंघे से अपने बालो को सुलझाते हुए फिर से अंकुश की की ओर पलटी, घने काले बालो के बीच में उसका छोटा सा मासूम मुखड़ा और उस पर बड़ी बड़ी काली आँखे अंकुश अपने छत से दो माकन दूर भी बिलकुल साफ़ देख पा रहा था, वो अभी अब छत पर हौले हौले टहलते हुए अपने बाल सुलझा रही थी और कभी कभी कनखियों से अंकुश की ओर देख लेती, एक बार ऐसे ही देखते हुए उसकी नज़र अंकुश की नज़रो से टकरा गयी तो वो झेप उठी और जल्दी से हडबडते हुए सीढ़ियों की ओर दौड़ गयी।

उसके जाते है अंकुश का मन जैसे उचाट हो उठा, कुछ देर ऐसी ही बैठा इन्तिज़ार करता रहा लेकिन वो नहीं आयी, उसने भुझे हुए मन से अपना सामान समेटा और नीचे उतर आया, नीचे उसकी मम्मी चाय के लिए बुला रही थी। रात के खाने के बाद अंकुश को बिस्तर में नींद ही नहीं आरही थी, बार बार उसी का चेहरा नज़र आरहा था, वो बार बार उसका नाम याद करने के कोशिश कर रहा था लेकिन नाम भी याद नहीं आरहा था, उसकी शर्मा जी के बेटे मोनू से थोड़ी बहुत जान पहचान थी, अंकुश के मकान से दो मकान आगे शर्मा जी का मकान था ये मकान पहले जैन साहब का हुआ करता था, जैन साहब का बेटा विवेक और अंकुश एक ही स्कूल में पढ़ते थे और गहरे दोस्त थे लेकिन चित फण्ड कंपनी के चक्कर में पढ़कर जैन साहब का बड़ा नुक्सान हुआ और वो अपना मकान बेच कर दूसरे मोहल्ले में चले गए थे, उनका मकान शर्मा जी ने खरीद लिया था और अलगभग तीन चार साल पहले अपने परिवार के साथ उस मकान में रहने आगये थे,

शर्मा जी के परिवार में शर्मा जी की माँ, उनकी पत्नी और दो बच्चे यानि की मोनू और उनकी लाड़ली बेटी थी, अंकुश को याद आरहा था की उसने कई बार शर्मा जी को परिवार के साथ आते जाते देखा था, उसने भी मोनू के साथ होली दिवाली में भेंट की थी एकिन कभी उनकी बेटी की ओर धयान ही नहीं दिया और बस आज इसी बात पर खीज रहा था, उसका नाम न पता होना उसे बेचैन कर रहा था और वो बार बार बेचैनी से करवट बदल रहा था। पता नहीं रात के कौन से पहर में उसे नीड आयी और वो सो गया।

सुबह मम्मी के जगाने पर उठा, टाइम देखा तो आठ बजने वाला था स्कूल के लिए लेट हो चूका था इसलिए फटाफट नाहा धो कर तैयार हुआ और नाश्ता ठूँसता हुआ अपनी साइकिल निकली और फाइल साइकिल के करियर में फसा कर सरपट स्कूल की ओर निकल गया। स्कूल में छुटियाँ पड़ चुकी थी इसलिए आज स्कूल बिलकुल अजीब खाली खाली लग रहा था , उसने स्टाफ रूम में जा कर मैडम को फाइल पकड़ाई और मैडम से परमिशन ले कर घर की ओर चल पड़ा, उसने घडी में टाइम देखा बारह बजने वाले था उसने साइकिल की स्पीड तेज़ की और साइकिल दौड़ाता हुआ सरकारी स्कूल जा पंहुचा, उसने जल्दी से साइकिल रोड की साइड में खड़ी की और स्कूल के गेट में घुस गया, ये उनके टाउन का सबसे बड़ा सरकारी स्कूल था, सरकारी स्कूल था इसीसलिए या कोई रोका ताकि नहीं हुई और वो तेज़ी से चलता हुआ उस ओर चल दिया जहा क्लासेस बनी हुई थी, उसे ज़यादा नहीं चलना पड़ क्यंकि विवेक उसे इसी ओर आता हुआ मिल गया।

"तू यहाँ क्या कर रहा है ?" विवेक ने अंकुश को अपनी और आते हुए पूछा
"तेरे से मिलने आया था, मैंने सोचा लंच टाइम है तो तू मिल जायेगा " अंकुश ने जवाब दिया

"अरे यार ये सरकारी स्कूल है यहाँ क्या लंच और क्या छुट्टी, यहाँ तो सब हरामखोर बसे हुए है, साले टीचर क्लास में ऐसे आते है जैसे एहसान कर रहे हो " विवेक की आवाज़ में एक खीज सी थी
"हाँ ये तो है, तू बता तेरे एग्जाम कब से स्टार्ट हो रहे है "

"अगले महीने से होंगे शायद, अभी डेट शीट नहीं मिली, अच्छा छोर, तू साइकिल से आया है क्या ?"
"हाँ, बाहर खड़ी की है "

"फिर रुक दो मिनट मैं बैग लेकर आता हु फिर साथ घर चलेंगे "
"ठीक है लेकिन क्या तेरा टीचर जाने देगा ?"

"अबे अटेंडेंस लग चुकी है अब कोई पूछने भी नहीं आएगा, यहाँ किसी मादरचोद को घंटा भी फरक नहीं पड़ता "

"विवेक यार तू तो सरकारी स्कूल में आकर इनके जैसा ही हो गया वर्ण तू अपने वाले स्कूल में तो गाली नहीं देता था ?"
"अरे वो स्कूल छोड़े तो तीन साल हो गए, यहाँ आके बहुत कुछ सीख लिया, चल अब बाकी बातें रास्ते में करेंगे पहले मैं बैग उठा लाऊँ क्लासरूम से "

दो मिनट में ही विवेक बैग उठा लाया और फिर दोनों चलते हुए बाहर आगये और वह से साइकिल पर बैठ कर दोनों घर के लिए चल दिए, स्कूल और घर के बीच में पहले खेत पड़ते थे और फिर उसके आगे मार्किट और मार्किट के बाद विवेक का घर आता था, खेत पार करने के बाद दोनों मार्किट में रुक गए वहा से अंकुश ने दो समोसे और दो पेस्ट्री ली और दोनों मार्केट के पीछे बने ग्राउंड में चले गए, ये एक सरकारी ग्राउंड था जहा अक्सर बचे क्रिकेट का मैच खेलने आया करते थे, अब दोपहर हो चली थी इसलिए कुछ खास भीड़ नहीं थी, दोनों ने साइकिल एक और खड़ी की और एक पेड़ के नीचे घास पर बैठ गए, अंकुश ने खाने का सामान खोला और दोनों मिलकर खाने लगे।

अंकुश विवेक को ऐसे ही नहीं लाया था अपने साथ उसका मकसद था शर्मा जी की बेटी की जानकारी निकलना, विवेक मोहल्ले में सबको जानता था और वो हर किसी के घर में बेहिचक घुस जाता था, वो बड़े छोटे सबका दोस्त था, इसलिए अंकुश को साडी जानकारी विवेक से ही मिल सकती थी, समोसे और पेस्ट्री चट करने के बाद अंकुश अपने पॉइंट पर आगया

"यार वैसे तेरा पहले वाला मकान बढ़िया था, दोनों पास पास रहते थे "
"हाँ यार, वो बड़ा भी था, ये वाला मकान छोटा भी है और आसपास के लोग पुराने मोहल्ले जैसे नहीं है "

"हाँ, सही कहा, अब तो शर्मा जी ने घर का फ्रंट भी बढ़िया बनवा लिया है , तूने देखा ?"
"हाँ मैं तो आता जाता रहता हूँ, उन्होंने अंदर भी काम कराया है, उनका खुद का कंस्ट्रक्शन का काम है, ठेका लेते है शर्मा जी "

"हाँ मस्त है यार उनकी लाइफ, अच्छा पैसा है उनके पास, मोनू भी बढ़िया लड़का है "
"अरे घंटा बढ़िया है मोनू, एक नंबर का हरामी है, तुझे पता है साला मॉर्निंग शो वाली फिल्म देखने जाता है "

"हैं, सच में ?" यार कैसे चला जाता है, मुझे तो उस सिनेमा हाल के सामने से निकलते हुए भी शर्म आती है, नंगी नंगी फिल्मे लगती है वहा "
"अरे, हाँ, विदेशी बहुत हरामी होते है उनकी औरते किसी के साथ भी करा लेती है काण्ड"

"तुझे कैसे पता ये सब ?"
"अरे मैं एक दो बार मोनू के साथ गया हूँ "

"फिल्म देखने? तूने भी मॉर्निंग शो वाली फिल्म देखी है " अंकुश को हैरत हुई
"अरे नहीं मैं नहीं गया, मेरे पास पैसे नहीं थे वो ही गया था, मैं तो बस बाहर से ट्रेलर के पोस्टर देख कर आया, मज़ा आगया था यार "

"यार ये मोनू तो सच मैं हरामी है, और इसके घरवाले तो बहुत सीधे है "
"अरे सीधा विधा कोई नहीं है, इसके पापा भी दारुबाज है, खूब पीते है, शाम को घर में ही बोतल खोलके बैठ जाते है "

"अच्छा ऐसा क्या ? और उनकी पत्नी और बेटी कुछ नहीं बोलती "
"अरे आंटी क्या बोलेंगी वो तो बेचारी गाओं की है इसलिए घर में उनकी कुछ नहीं चलती, उनकी अम्मा की चलती है बस "

"और उनकी बेटी, वो भी हमारी ही उम्र की है ना " अंकुश ने धड़कते दिल के साथ पूछा
"कौन गरिमा ? गरिमा दसवीं के एग्जाम देगी अगले महीने "

"ओह उसका नाम गरिमा है "
"हाँ गरिमा शर्मा, क्यों तुझे नहीं पता था क्या ?"

"नहीं यार, मेरी तो बस मोनू से ही थोड़ी बहुत बातचीत होती है कभी कभार बाकि तुझे पता ही है हमारे स्कूल वाले कितना होमवर्क देते थे और फिर ऊपर से टूशन कोचिंग, टाइम ही कहा मिलता है "
"हाँ ये तो है, यहाँ सरकारी स्कूल में मज़े है, वहा की तरह नहीं "

"हाँ, सही है यार, तो ये गरिमा भी तेरे स्कूल में ही पढ़ती है क्या ?"
"अरे नहीं वो भी गर्ल्स वाले सरकारी स्कूल में पढ़ते है "

"ओह्ह मुझे लगा वो प्राइवेट स्कूल में पढ़ती होगी "
"नहीं वो अपना मंगल बाजार वाला सरकारी स्कूल है न केवल लड़कियों वाला उसी में जाती है "

"चल ठीक है हमे क्या करना, और तू बता तेरा क्या चल रहा है ?"
"कुछ नहीं यार मेरा क्या चलेगा, बस कट रहा है टाइम "

"कोई नहीं, अच्छा सुन वो पिंकी तुझे पूछ रही थी"
"कौन पिंकी? पिंकी गर्ग ? हमारे क्लास वाली ?"

"हाँ वही, तुझे याद करती रहती है वो ?"
"हट उस मोटी को मेरे से क्या लेना देना ?"

"पता नहीं, क्या पता तुझसे प्यार करने लगी हो, मिल ले उस से एक बार, थोड़ी मोटी ही तो है लेकिन है कितनी क्यूट ?"
"हाँ क्यूट तो है ?" लेकिन छोड़ यार वो इतनी अमीर है मैं क्यों उसके चक्कर में दिमाग ख़राब करू

"अब देख ले भाई उसने पूछा था तो मैंने तुझे बता दिया आगे तेरी मर्ज़ी "
"हाँ ठीक है, छोर देखते फिर कभी , अब घर चलते है मुझे कुछ काम भी है "

"हाँ ठीक है निकलते है अब थोड़ी धुप भी होने लगी है "



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blinkit Bhai, Flashback me ye garima wala scene badhiya tha................ankush ke purse me shayad is garima ki photo hogi..........

Intezar rahega agle update ka
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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अंकुश विवेक को उसके घरके पास छोड़ कर वापिस अपने घर आगया, उसे उसका नाम तो पता चल गया था लेकिन बात आगे कैसे बढे इसी उधेरबुन में शाम तक उलझा रहा, शाम के पांच बजते ही अंकुश छत पर था लेकिन शर्मा जी की छत खाली पड़ी हुई थी वह कोई नहीं था। शाम सात बजे तक वो इन्तिज़ार करता रहा लेकिन छत पर कोई नज़र नहीं आया। थक हार कर वापिस अपने कमरे में निराश हो कर लेट गया।

अगले तीन चार दिन तक अंकुश का यही रूटीन रहा लेकिन उसको गरिमा तो क्या उसकी परछाई भी नज़र नहीं आयी। अब अंकुश को लगने लगा था की उसकी प्रेम कहानी शरू होने से पहले ही ख़तम हो गयी। अब उसने छत पर जाना भी छोड़ दिया था आखिर जा कर करता ही क्या जब पुरे दिन में वो एक बार भी छत पर नज़र नहीं आती थी।

जैसे तैसे करके दिन गुज़र रहे थे की होली आगयी सत्रह मार्च को होलिका दहन थी और अट्ठारह मार्च को रंग। अंकुश के परिवार धार्मिक था लेकिन होली केवल नाम मात्र की ही खेलते थे वो भी केवल गुलाल से। अंकुश के पिता जी बीएसएनएल में वरिष्ठ पद पर थे इसलिए दिन भर मिलने वालो का ताँता लगा रहता था और आने वाले गेस्ट की सेवा में अंकुश और उसकी दीदी लगे रहते थे इसी में उनका दिन बीत जाता था। होली को आता देख कर अंकुश के मन में एक छोटी सी उम्मीद की किरण जागी थी गरिमा तक पहुंचने की इसलिए उसने मन में ठान लिया था की इस बार वो घर में बंद नहीं रहेगा, वह बाहर निकल कर सबके संग होली खेलगा और अगर मौका मिला तो किसी तरह गरिमा का फिर से दीदार कर सकेगा। उसने मन में एक प्लान बनाया और दिन में जब मम्मी बिस्तर में लेती आराम कर रही थी तब उनके पास जा पंहुचा

"आप सो रही हो क्या मम्मी ?"
"नहीं बस लेती हुई हूँ बता क्या हुआ ?"

"मम्मा यार इस होली मैं और विवेक मोहल्ले में होली खेलने जाना चाहते है, तो आप न प्लीज इस बार जाने देना "
"क्यों क्या हुआ, हर बार तो खेलते है हम होली, दिक्कत क्या है तुझे ?"

"अरे हम कहा खेलते है होली बस गुलाल लगते है और फिर सारा दिन अंकल को पानी पिलाओ, चाय पिलाओ, मिठाई खिलाओ यही चलता रहता है "
"अरे तो बेटा तेरे पापा से मिलने इतने लोग जो आते है उनका भी तो धयान रखना होता है और वो गिफ्ट भी तो कितना लाते है तुम सबके लिए "

"वो सब ठीक है मम्मा लेकिन आप सोचो ना अगली साल बोर्ड के एग्जाम है लास्ट ईयर भी टेंथ के एग्जाम के कारन नहीं खेल पाया तो इस साल जाने दो ना, नेक्स्ट ईयर तो वैसे भी आप जाने नहीं दोगी घर से बाहर "
"हाँ ये भी है , लेकिन बेटा अगर तू बाहर चला जायेगा तो मैं और तेरी दीदी कितना कर पाएंगे"

"मुझे कुछ नहीं पता मम्मी आप प्लीज पापा से बात करो ना, वो कुछ सोचेंगे "
"ठीक है चल बात करुँगी मैं तेरे पापा से अगर मान गए तो ठीक नहीं तो फिर घर में ही रहना होगा "

अंकुश कमरे से खुश खुश बाहर आगया, उसके पापा, मम्मी की कोई बात नहीं टालते थे उसे पक्का यक़ीन था की पापा मान जायेंगे
अगले दिन हुआ भी यही, सुबह ऑफिस जाते टाइम अंकुश की मम्मी ने उसके पापा से बात की तो उन्होंने हाँ कर दी आखिर एक ही तो बेटा था उनका और त्यौहार के दिन इतना लाड प्यार तो बनता भी था, उन्होंने हामी भर दी।

अंकुश को जब उसकी मम्मा ने बताया तो वो ख़ुशी से खिल गया, झटपट तैयार होकर अपनी मम्मी से पैसे लिए और विवेक के साथ मार्किट के लिए निकल गया। अंकुश और विवेक ने मार्किट से खूब साड़ी पिचकारी और रंगो की खरीदारी की, अंकुश ने ढेर सारे गुब्बारे भी खरीद लिए। दोनों खरीदारी के बाद मार्किट से निकल ही रहे थे की अचानक उन्हें अनुराग हाथ हिलाता हुआ नज़र आगया, अनुराग उन दोनों को देख कर ही हाथ हिला रहा था, अंकुश को थोड़ी हैरत हुई क्यूंकि अनुराग से उसकी कोई खास दोस्ती नहीं थी।

अनुराग अंकुश और विवेक से लगभग दो तीन साल बड़ा था, वो दसवीं में दो बार फेल हो गया था, तीसरी बार बड़ी मुश्किल से पास हो पाया था, वो अंकुश के ही स्कूल में पढता था लेकिन उसका सेक्शन अलग था, अनुराग के पिता उनके शीशगंज टाउन के सबसे अमीर लोगो में से एक थे। शीशगंज की सबसे बड़ी मार्किट उन्ही की थी और इस टाइम वो दोनों जो खरीदारी कर रहे थे वो उन्ही की किराये पर दी हुई दूकान में थी।

दोनों चलते हुए अनुराग के पास पहुंचे, पास जाने पर अनुराग ने विवेक से बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया, उसने अंकुश से भी हैंडशेक किया लेकिन जिस तरह से वो विवेक से मिला था उस से लगता था की विवेक और अनुराग की दोस्ती गहरी है, अनुराग दोनों को अपने ऑफिस में ले कर आया और सोफे पर बैठने का इशारा किया, अनुराग का ऑफिस उन्ही की दुकाने में से एक दूकान में बना हुआ था जिसे एक ओर केबिन बना हुआ था जिसमे मार्किट का किराया वसूलने वाले मुंशी जी बैठे हुए थे दूसरी ओर केबिन में एक बड़ी सी कुर्सी और मेज़ लगी हुई थी जो शायद अनुराग के पापा की थी और मेज़ के सामने कुछ कुर्सियां था, ये जगह बाकी दुकान की तुलना में थोड़ी बड़ी थी शायद जान बुझ कर बड़ा बनाया गया था ताकि इसे ऑफिस का रूप दिया जा सके।

विवेक और अनुराग काफी देर तक इधर उधर की बातें करते रहे, अंकुश भी किसी किसी बात पर हूँ हाँ कर देता था लेकिन उसे अनुराग से दोस्ती में कोई खास इंट्रेस्ट नहीं था, अनुराग ने उनके लिए खाने पिने के लिए बहुत कुछ माँगा लिया था थोड़ी देर के बाद जब अंकुश बोर होने लगा तो उसने विवेक को चलने का इशारा किया, विवेक को अभी अनुराग से बातें करने में मज़ा आरहा था लेकिन फिरभी वो अंकुश के इशारा करने पर चलने के लिए उठ गया।

रास्ते में अंकुश को विवेक से पता चला की अनुराग अक्सर उसके सरकारी स्कूल में आता जाता रहता है और वहा वो विवेक से भी मिलता है वही उनकी दोस्ती हो गयी थी वैसे वो उसको भी स्कूल टाइम से जनता था लेकिन सेक्शन अलग होने के कारन तब इतनी खास दोस्ती नहीं हुई थी।

अंकुश को अनुराग कुछ खास पसंद नहीं था इसलिए उसने उस टॉपिक पर आगे कुछ नहीं की और कल शाम का प्लान पक्का करके घर आगया। शाम को गली में होलिका दहन थी उसमे अंकुश को गरिमा की मम्मी और दादी तो दिखाई दे गयी थी लेकिन गरिमा का अब भी कुछ पता नहीं था। अंकुश एक बार फिर निराश हो गया था शायद गरिमा घर से निकलती ही नहीं थी वरना उस दिन के बाद कम से कम उसकी एक झलक तो नज़र आती। उसने आज दिन में विवेक से भी घुमा फिर कर जानकारी लेने की कोशिश की थी लेकिन विवेक के पास भी कोई जानकारी नहीं थी। अंकुश को अपना प्लान बेकार जाता हुआ नज़र आरहा था।


रात में जब अंकुश सोया था तब उसके मन में थोड़ी उदासी भरी हुई थी लेकिन अगले दिन जब वो सो कर उठा तो एक पॉजिटिव फीलिंग के साथ उठा, उसने बिस्तर से उठे से पहले थान लिया था की अगर भगवन को उसे गरिमा से मिलाना होगा तो आज उसे गरिमा से ज़रूर मिला देगा और नहीं मिलाना होगा तो वो आज कम से कम जम कर होली का त्यौहार मनाएगा और दोस्तों के साथ मज़े करेगा।

अंकुश जब अपने कमरे से बाहर आया तो देखा उसके पापा आंगन के कुर्सी डाले अखबार पढ़ रहे थे और मम्मी किचन में थी, तभी उसे किचेन में से पापा की नाश्ते की ट्रे लाते हुए सुलेमान अंकल नज़र आये, सुलेमान अंकल थे तो बीएसएनएल में लाइनमैन लेकिन असल में अंकुश के पापा का सारा ऊपर का काम करते थे, और टेबल के नीचे वाला काम भी अंकुश के पापा उन्ही से करवाते थे। अंकुश के पापा सुलेमान अंकल पर आँख बंद कर भरोसा करते थे।

अंकुश पापा के पेअर छू कर संगान में ही पड़े तखत पर बैठ गया

"पापा आज आप सुलेमान अंकल से घर का का काम क्यों करा रहे है "

अंकुश के पापा ने चश्मे की ओट से अंकुश की ओर देखा और अखबार साइड में रख कर चाय की कप उठा ली और किचेन की ओर जाते हुए सुलेमन को आवाज़ दी

"अरे सुलेमान सुनो तो तुम्हारा भतीजा क्या पूछ रहा है "
"क्या हुआ भैय्या जी क्या पूछ रहे है बाबू ?"

"पूछ रहा है की सुलेमान अंकल से आज घर का काम क्यों करा रहे हो आप, अब बताओ क्या जवाब दू इसको ?"
"भैय्याजी जो आप का मन हो कह दीजिये, हम तो इस घर को भी अपना घर जानते है इसलिए आपके इशारे पर दौड़े चले आये "

"आया समझ कुछ क्यों बुलाया है सुलेमान को? नहीं आया ?, तुमने ही तो कहा था न की आज तुमको घर का काम नहीं करना इसलिए सुलेमान को बुला लिया, जो आज गेस्ट आएंगे उनकी सेवा आज सुलेमान मिया ही करेंगे, समझे "

"जी पापा समझ गया" अंकुश ने झेंपते हुए कहा
"अच्छा है समझ गए, अब जल्दी से अंकल को थैंक यू बोलो और नाश्ता करके ऐसे कपडे पहन लो जो रंग लगने के बाद ख़राब हो जाये तो फेक सको, अगर नए कपड़ो पर रंग लगा तो तुम्हारी मम्मी जान लेलगी "

"ठीक है पापा, मैं पुराने कपडे ही पहनूंगा, अब मैं जाऊ खेलने ?"
"पहले नाश्ता कर लो फिर जाना और धयान रहे ज़यादा हुरदंग मत मचाना आवारा लड़को के साथ, तुम अच्छे परिवार से हो इसलिए ाचे लोगो की संगती में रहो करो ठीक है, चलो अब नाश्ता करो"

अंकुश ने जल्दी जल्दी नाश्ता किया और भाग कर अपने कमरे में चला गया, उसने जल्दी जल्दी अपने कपडे चेंज किये और एक पुरानी टीशर्ट और लोअर पहन लिया, वह अब होली खेलने के लिए कुछ ज़ायदा ही एक्सीसिटेड था इतना एक्ससिटेड की गरिमा का भूत उसके दिमाग से गायब हो गया था।
 
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blinkit

I don't step aside. I step up.
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समीर साहब का चरित्र लड़की के मामले मे त्रेतायुगीन अवतरित मानव का है । सुनहली को छोड़कर सभी महिलाएं उनके लिए मां-बहन के समान है लेकिन , एक अच्छे इंसान बनने के लिए इन्हे काफी-कुछ सीखने की जरूरत है ।
एक लड़की की इज्ज़त तार तार हुई और इस के लिए साहब अप्रत्यक्ष रूप से दोषी थे । एक ओर लड़की की आबरू दांव पर लगी हुई है लेकिन साहब को फिर भी किसी तरह का परवाह नही है ।
दोस्ती का मतलब यह कतई नही हुआ कि आप अपने दोस्त के बुरे कर्म को यह समझकर नजरअंदाज कर दे कि मेरा इन सब से क्या वास्ता ! दोस्त को सही राह पर लाना भी एक अच्छे दोस्त का कर्तव्य है ।
शायद तृषा भी जल्द ही आस्था के साथ एक ही कतार मे नजर आने लगेगी । अब देखना यह है कि क्या तृषा के पास भी कोई आस्था के मां जैसी मां या कोई अभिभावक है ?
बहुत ही बेहतरीन अपडेट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
yes sanju bhai, mere charecters bilkul sant mahatma nahi honge wo bhi hum aam insaan ki tarah hai, bahut baar apne saamne galat hote dekhte hai lekin ignore kar dete hai, samir bhi koi dudh ka dhula hua nahi hai bas uski zindgi apne parivaar, kaam aur sunehri se ghiri hui hai jiske aage wo kuch aur nahi soch paa raha hai.
 

12bara

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Bachpan ka time kya mast hota hai. khana pina, bindass ghumna firna ,school padai likhai ,badmasi saytaniya ladai jhagde.lekin jaise hi ladkibazi aur ishq mohabbat ka gyaan hota hai jindgi jhand honi suru ho jati hai...
 
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