Ajju Landwalia
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अंकुश विवेक को उसके घरके पास छोड़ कर वापिस अपने घर आगया, उसे उसका नाम तो पता चल गया था लेकिन बात आगे कैसे बढे इसी उधेरबुन में शाम तक उलझा रहा, शाम के पांच बजते ही अंकुश छत पर था लेकिन शर्मा जी की छत खाली पड़ी हुई थी वह कोई नहीं था। शाम सात बजे तक वो इन्तिज़ार करता रहा लेकिन छत पर कोई नज़र नहीं आया। थक हार कर वापिस अपने कमरे में निराश हो कर लेट गया।
अगले तीन चार दिन तक अंकुश का यही रूटीन रहा लेकिन उसको गरिमा तो क्या उसकी परछाई भी नज़र नहीं आयी। अब अंकुश को लगने लगा था की उसकी प्रेम कहानी शरू होने से पहले ही ख़तम हो गयी। अब उसने छत पर जाना भी छोड़ दिया था आखिर जा कर करता ही क्या जब पुरे दिन में वो एक बार भी छत पर नज़र नहीं आती थी।
जैसे तैसे करके दिन गुज़र रहे थे की होली आगयी सत्रह मार्च को होलिका दहन थी और अट्ठारह मार्च को रंग। अंकुश के परिवार धार्मिक था लेकिन होली केवल नाम मात्र की ही खेलते थे वो भी केवल गुलाल से। अंकुश के पिता जी बीएसएनएल में वरिष्ठ पद पर थे इसलिए दिन भर मिलने वालो का ताँता लगा रहता था और आने वाले गेस्ट की सेवा में अंकुश और उसकी दीदी लगे रहते थे इसी में उनका दिन बीत जाता था। होली को आता देख कर अंकुश के मन में एक छोटी सी उम्मीद की किरण जागी थी गरिमा तक पहुंचने की इसलिए उसने मन में ठान लिया था की इस बार वो घर में बंद नहीं रहेगा, वह बाहर निकल कर सबके संग होली खेलगा और अगर मौका मिला तो किसी तरह गरिमा का फिर से दीदार कर सकेगा। उसने मन में एक प्लान बनाया और दिन में जब मम्मी बिस्तर में लेती आराम कर रही थी तब उनके पास जा पंहुचा
"आप सो रही हो क्या मम्मी ?"
"नहीं बस लेती हुई हूँ बता क्या हुआ ?"
"मम्मा यार इस होली मैं और विवेक मोहल्ले में होली खेलने जाना चाहते है, तो आप न प्लीज इस बार जाने देना "
"क्यों क्या हुआ, हर बार तो खेलते है हम होली, दिक्कत क्या है तुझे ?"
"अरे हम कहा खेलते है होली बस गुलाल लगते है और फिर सारा दिन अंकल को पानी पिलाओ, चाय पिलाओ, मिठाई खिलाओ यही चलता रहता है "
"अरे तो बेटा तेरे पापा से मिलने इतने लोग जो आते है उनका भी तो धयान रखना होता है और वो गिफ्ट भी तो कितना लाते है तुम सबके लिए "
"वो सब ठीक है मम्मा लेकिन आप सोचो ना अगली साल बोर्ड के एग्जाम है लास्ट ईयर भी टेंथ के एग्जाम के कारन नहीं खेल पाया तो इस साल जाने दो ना, नेक्स्ट ईयर तो वैसे भी आप जाने नहीं दोगी घर से बाहर "
"हाँ ये भी है , लेकिन बेटा अगर तू बाहर चला जायेगा तो मैं और तेरी दीदी कितना कर पाएंगे"
"मुझे कुछ नहीं पता मम्मी आप प्लीज पापा से बात करो ना, वो कुछ सोचेंगे "
"ठीक है चल बात करुँगी मैं तेरे पापा से अगर मान गए तो ठीक नहीं तो फिर घर में ही रहना होगा "
अंकुश कमरे से खुश खुश बाहर आगया, उसके पापा, मम्मी की कोई बात नहीं टालते थे उसे पक्का यक़ीन था की पापा मान जायेंगे
अगले दिन हुआ भी यही, सुबह ऑफिस जाते टाइम अंकुश की मम्मी ने उसके पापा से बात की तो उन्होंने हाँ कर दी आखिर एक ही तो बेटा था उनका और त्यौहार के दिन इतना लाड प्यार तो बनता भी था, उन्होंने हामी भर दी।
अंकुश को जब उसकी मम्मा ने बताया तो वो ख़ुशी से खिल गया, झटपट तैयार होकर अपनी मम्मी से पैसे लिए और विवेक के साथ मार्किट के लिए निकल गया। अंकुश और विवेक ने मार्किट से खूब साड़ी पिचकारी और रंगो की खरीदारी की, अंकुश ने ढेर सारे गुब्बारे भी खरीद लिए। दोनों खरीदारी के बाद मार्किट से निकल ही रहे थे की अचानक उन्हें अनुराग हाथ हिलाता हुआ नज़र आगया, अनुराग उन दोनों को देख कर ही हाथ हिला रहा था, अंकुश को थोड़ी हैरत हुई क्यूंकि अनुराग से उसकी कोई खास दोस्ती नहीं थी।
अनुराग अंकुश और विवेक से लगभग दो तीन साल बड़ा था, वो दसवीं में दो बार फेल हो गया था, तीसरी बार बड़ी मुश्किल से पास हो पाया था, वो अंकुश के ही स्कूल में पढता था लेकिन उसका सेक्शन अलग था, अनुराग के पिता उनके शीशगंज टाउन के सबसे अमीर लोगो में से एक थे। शीशगंज की सबसे बड़ी मार्किट उन्ही की थी और इस टाइम वो दोनों जो खरीदारी कर रहे थे वो उन्ही की किराये पर दी हुई दूकान में थी।
दोनों चलते हुए अनुराग के पास पहुंचे, पास जाने पर अनुराग ने विवेक से बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया, उसने अंकुश से भी हैंडशेक किया लेकिन जिस तरह से वो विवेक से मिला था उस से लगता था की विवेक और अनुराग की दोस्ती गहरी है, अनुराग दोनों को अपने ऑफिस में ले कर आया और सोफे पर बैठने का इशारा किया, अनुराग का ऑफिस उन्ही की दुकाने में से एक दूकान में बना हुआ था जिसे एक ओर केबिन बना हुआ था जिसमे मार्किट का किराया वसूलने वाले मुंशी जी बैठे हुए थे दूसरी ओर केबिन में एक बड़ी सी कुर्सी और मेज़ लगी हुई थी जो शायद अनुराग के पापा की थी और मेज़ के सामने कुछ कुर्सियां था, ये जगह बाकी दुकान की तुलना में थोड़ी बड़ी थी शायद जान बुझ कर बड़ा बनाया गया था ताकि इसे ऑफिस का रूप दिया जा सके।
विवेक और अनुराग काफी देर तक इधर उधर की बातें करते रहे, अंकुश भी किसी किसी बात पर हूँ हाँ कर देता था लेकिन उसे अनुराग से दोस्ती में कोई खास इंट्रेस्ट नहीं था, अनुराग ने उनके लिए खाने पिने के लिए बहुत कुछ माँगा लिया था थोड़ी देर के बाद जब अंकुश बोर होने लगा तो उसने विवेक को चलने का इशारा किया, विवेक को अभी अनुराग से बातें करने में मज़ा आरहा था लेकिन फिरभी वो अंकुश के इशारा करने पर चलने के लिए उठ गया।
रास्ते में अंकुश को विवेक से पता चला की अनुराग अक्सर उसके सरकारी स्कूल में आता जाता रहता है और वहा वो विवेक से भी मिलता है वही उनकी दोस्ती हो गयी थी वैसे वो उसको भी स्कूल टाइम से जनता था लेकिन सेक्शन अलग होने के कारन तब इतनी खास दोस्ती नहीं हुई थी।
अंकुश को अनुराग कुछ खास पसंद नहीं था इसलिए उसने उस टॉपिक पर आगे कुछ नहीं की और कल शाम का प्लान पक्का करके घर आगया। शाम को गली में होलिका दहन थी उसमे अंकुश को गरिमा की मम्मी और दादी तो दिखाई दे गयी थी लेकिन गरिमा का अब भी कुछ पता नहीं था। अंकुश एक बार फिर निराश हो गया था शायद गरिमा घर से निकलती ही नहीं थी वरना उस दिन के बाद कम से कम उसकी एक झलक तो नज़र आती। उसने आज दिन में विवेक से भी घुमा फिर कर जानकारी लेने की कोशिश की थी लेकिन विवेक के पास भी कोई जानकारी नहीं थी। अंकुश को अपना प्लान बेकार जाता हुआ नज़र आरहा था।
रात में जब अंकुश सोया था तब उसके मन में थोड़ी उदासी भरी हुई थी लेकिन अगले दिन जब वो सो कर उठा तो एक पॉजिटिव फीलिंग के साथ उठा, उसने बिस्तर से उठे से पहले थान लिया था की अगर भगवन को उसे गरिमा से मिलाना होगा तो आज उसे गरिमा से ज़रूर मिला देगा और नहीं मिलाना होगा तो वो आज कम से कम जम कर होली का त्यौहार मनाएगा और दोस्तों के साथ मज़े करेगा।
अंकुश जब अपने कमरे से बाहर आया तो देखा उसके पापा आंगन के कुर्सी डाले अखबार पढ़ रहे थे और मम्मी किचन में थी, तभी उसे किचेन में से पापा की नाश्ते की ट्रे लाते हुए सुलेमान अंकल नज़र आये, सुलेमान अंकल थे तो बीएसएनएल में लाइनमैन लेकिन असल में अंकुश के पापा का सारा ऊपर का काम करते थे, और टेबल के नीचे वाला काम भी अंकुश के पापा उन्ही से करवाते थे। अंकुश के पापा सुलेमान अंकल पर आँख बंद कर भरोसा करते थे।
अंकुश पापा के पेअर छू कर संगान में ही पड़े तखत पर बैठ गया
"पापा आज आप सुलेमान अंकल से घर का का काम क्यों करा रहे है "
अंकुश के पापा ने चश्मे की ओट से अंकुश की ओर देखा और अखबार साइड में रख कर चाय की कप उठा ली और किचेन की ओर जाते हुए सुलेमन को आवाज़ दी
"अरे सुलेमान सुनो तो तुम्हारा भतीजा क्या पूछ रहा है "
"क्या हुआ भैय्या जी क्या पूछ रहे है बाबू ?"
"पूछ रहा है की सुलेमान अंकल से आज घर का काम क्यों करा रहे हो आप, अब बताओ क्या जवाब दू इसको ?"
"भैय्याजी जो आप का मन हो कह दीजिये, हम तो इस घर को भी अपना घर जानते है इसलिए आपके इशारे पर दौड़े चले आये "
"आया समझ कुछ क्यों बुलाया है सुलेमान को? नहीं आया ?, तुमने ही तो कहा था न की आज तुमको घर का काम नहीं करना इसलिए सुलेमान को बुला लिया, जो आज गेस्ट आएंगे उनकी सेवा आज सुलेमान मिया ही करेंगे, समझे "
"जी पापा समझ गया" अंकुश ने झेंपते हुए कहा
"अच्छा है समझ गए, अब जल्दी से अंकल को थैंक यू बोलो और नाश्ता करके ऐसे कपडे पहन लो जो रंग लगने के बाद ख़राब हो जाये तो फेक सको, अगर नए कपड़ो पर रंग लगा तो तुम्हारी मम्मी जान लेलगी "
"ठीक है पापा, मैं पुराने कपडे ही पहनूंगा, अब मैं जाऊ खेलने ?"
"पहले नाश्ता कर लो फिर जाना और धयान रहे ज़यादा हुरदंग मत मचाना आवारा लड़को के साथ, तुम अच्छे परिवार से हो इसलिए ाचे लोगो की संगती में रहो करो ठीक है, चलो अब नाश्ता करो"
अंकुश ने जल्दी जल्दी नाश्ता किया और भाग कर अपने कमरे में चला गया, उसने जल्दी जल्दी अपने कपडे चेंज किये और एक पुरानी टीशर्ट और लोअर पहन लिया, वह अब होली खेलने के लिए कुछ ज़ायदा ही एक्सीसिटेड था इतना एक्ससिटेड की गरिमा का भूत उसके दिमाग से गायब हो गया था।
Bahut hi badhiya update he blinkit Bhai,
Ankush aur garima me shayad pyar jaisa kuch hua hi nahi..............ya fir garima ne ankush ki buri tarah se beizzati ki hogi.............jiska badla wo ab masum ladkiyo se le raha he.........
Keep posting Bhai