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Romance बेडु पाको बारो मासा

Ajju Landwalia

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अंकुश विवेक को उसके घरके पास छोड़ कर वापिस अपने घर आगया, उसे उसका नाम तो पता चल गया था लेकिन बात आगे कैसे बढे इसी उधेरबुन में शाम तक उलझा रहा, शाम के पांच बजते ही अंकुश छत पर था लेकिन शर्मा जी की छत खाली पड़ी हुई थी वह कोई नहीं था। शाम सात बजे तक वो इन्तिज़ार करता रहा लेकिन छत पर कोई नज़र नहीं आया। थक हार कर वापिस अपने कमरे में निराश हो कर लेट गया।

अगले तीन चार दिन तक अंकुश का यही रूटीन रहा लेकिन उसको गरिमा तो क्या उसकी परछाई भी नज़र नहीं आयी। अब अंकुश को लगने लगा था की उसकी प्रेम कहानी शरू होने से पहले ही ख़तम हो गयी। अब उसने छत पर जाना भी छोड़ दिया था आखिर जा कर करता ही क्या जब पुरे दिन में वो एक बार भी छत पर नज़र नहीं आती थी।

जैसे तैसे करके दिन गुज़र रहे थे की होली आगयी सत्रह मार्च को होलिका दहन थी और अट्ठारह मार्च को रंग। अंकुश के परिवार धार्मिक था लेकिन होली केवल नाम मात्र की ही खेलते थे वो भी केवल गुलाल से। अंकुश के पिता जी बीएसएनएल में वरिष्ठ पद पर थे इसलिए दिन भर मिलने वालो का ताँता लगा रहता था और आने वाले गेस्ट की सेवा में अंकुश और उसकी दीदी लगे रहते थे इसी में उनका दिन बीत जाता था। होली को आता देख कर अंकुश के मन में एक छोटी सी उम्मीद की किरण जागी थी गरिमा तक पहुंचने की इसलिए उसने मन में ठान लिया था की इस बार वो घर में बंद नहीं रहेगा, वह बाहर निकल कर सबके संग होली खेलगा और अगर मौका मिला तो किसी तरह गरिमा का फिर से दीदार कर सकेगा। उसने मन में एक प्लान बनाया और दिन में जब मम्मी बिस्तर में लेती आराम कर रही थी तब उनके पास जा पंहुचा

"आप सो रही हो क्या मम्मी ?"
"नहीं बस लेती हुई हूँ बता क्या हुआ ?"

"मम्मा यार इस होली मैं और विवेक मोहल्ले में होली खेलने जाना चाहते है, तो आप न प्लीज इस बार जाने देना "
"क्यों क्या हुआ, हर बार तो खेलते है हम होली, दिक्कत क्या है तुझे ?"

"अरे हम कहा खेलते है होली बस गुलाल लगते है और फिर सारा दिन अंकल को पानी पिलाओ, चाय पिलाओ, मिठाई खिलाओ यही चलता रहता है "
"अरे तो बेटा तेरे पापा से मिलने इतने लोग जो आते है उनका भी तो धयान रखना होता है और वो गिफ्ट भी तो कितना लाते है तुम सबके लिए "

"वो सब ठीक है मम्मा लेकिन आप सोचो ना अगली साल बोर्ड के एग्जाम है लास्ट ईयर भी टेंथ के एग्जाम के कारन नहीं खेल पाया तो इस साल जाने दो ना, नेक्स्ट ईयर तो वैसे भी आप जाने नहीं दोगी घर से बाहर "
"हाँ ये भी है , लेकिन बेटा अगर तू बाहर चला जायेगा तो मैं और तेरी दीदी कितना कर पाएंगे"

"मुझे कुछ नहीं पता मम्मी आप प्लीज पापा से बात करो ना, वो कुछ सोचेंगे "
"ठीक है चल बात करुँगी मैं तेरे पापा से अगर मान गए तो ठीक नहीं तो फिर घर में ही रहना होगा "

अंकुश कमरे से खुश खुश बाहर आगया, उसके पापा, मम्मी की कोई बात नहीं टालते थे उसे पक्का यक़ीन था की पापा मान जायेंगे
अगले दिन हुआ भी यही, सुबह ऑफिस जाते टाइम अंकुश की मम्मी ने उसके पापा से बात की तो उन्होंने हाँ कर दी आखिर एक ही तो बेटा था उनका और त्यौहार के दिन इतना लाड प्यार तो बनता भी था, उन्होंने हामी भर दी।

अंकुश को जब उसकी मम्मा ने बताया तो वो ख़ुशी से खिल गया, झटपट तैयार होकर अपनी मम्मी से पैसे लिए और विवेक के साथ मार्किट के लिए निकल गया। अंकुश और विवेक ने मार्किट से खूब साड़ी पिचकारी और रंगो की खरीदारी की, अंकुश ने ढेर सारे गुब्बारे भी खरीद लिए। दोनों खरीदारी के बाद मार्किट से निकल ही रहे थे की अचानक उन्हें अनुराग हाथ हिलाता हुआ नज़र आगया, अनुराग उन दोनों को देख कर ही हाथ हिला रहा था, अंकुश को थोड़ी हैरत हुई क्यूंकि अनुराग से उसकी कोई खास दोस्ती नहीं थी।

अनुराग अंकुश और विवेक से लगभग दो तीन साल बड़ा था, वो दसवीं में दो बार फेल हो गया था, तीसरी बार बड़ी मुश्किल से पास हो पाया था, वो अंकुश के ही स्कूल में पढता था लेकिन उसका सेक्शन अलग था, अनुराग के पिता उनके शीशगंज टाउन के सबसे अमीर लोगो में से एक थे। शीशगंज की सबसे बड़ी मार्किट उन्ही की थी और इस टाइम वो दोनों जो खरीदारी कर रहे थे वो उन्ही की किराये पर दी हुई दूकान में थी।

दोनों चलते हुए अनुराग के पास पहुंचे, पास जाने पर अनुराग ने विवेक से बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया, उसने अंकुश से भी हैंडशेक किया लेकिन जिस तरह से वो विवेक से मिला था उस से लगता था की विवेक और अनुराग की दोस्ती गहरी है, अनुराग दोनों को अपने ऑफिस में ले कर आया और सोफे पर बैठने का इशारा किया, अनुराग का ऑफिस उन्ही की दुकाने में से एक दूकान में बना हुआ था जिसे एक ओर केबिन बना हुआ था जिसमे मार्किट का किराया वसूलने वाले मुंशी जी बैठे हुए थे दूसरी ओर केबिन में एक बड़ी सी कुर्सी और मेज़ लगी हुई थी जो शायद अनुराग के पापा की थी और मेज़ के सामने कुछ कुर्सियां था, ये जगह बाकी दुकान की तुलना में थोड़ी बड़ी थी शायद जान बुझ कर बड़ा बनाया गया था ताकि इसे ऑफिस का रूप दिया जा सके।

विवेक और अनुराग काफी देर तक इधर उधर की बातें करते रहे, अंकुश भी किसी किसी बात पर हूँ हाँ कर देता था लेकिन उसे अनुराग से दोस्ती में कोई खास इंट्रेस्ट नहीं था, अनुराग ने उनके लिए खाने पिने के लिए बहुत कुछ माँगा लिया था थोड़ी देर के बाद जब अंकुश बोर होने लगा तो उसने विवेक को चलने का इशारा किया, विवेक को अभी अनुराग से बातें करने में मज़ा आरहा था लेकिन फिरभी वो अंकुश के इशारा करने पर चलने के लिए उठ गया।

रास्ते में अंकुश को विवेक से पता चला की अनुराग अक्सर उसके सरकारी स्कूल में आता जाता रहता है और वहा वो विवेक से भी मिलता है वही उनकी दोस्ती हो गयी थी वैसे वो उसको भी स्कूल टाइम से जनता था लेकिन सेक्शन अलग होने के कारन तब इतनी खास दोस्ती नहीं हुई थी।

अंकुश को अनुराग कुछ खास पसंद नहीं था इसलिए उसने उस टॉपिक पर आगे कुछ नहीं की और कल शाम का प्लान पक्का करके घर आगया। शाम को गली में होलिका दहन थी उसमे अंकुश को गरिमा की मम्मी और दादी तो दिखाई दे गयी थी लेकिन गरिमा का अब भी कुछ पता नहीं था। अंकुश एक बार फिर निराश हो गया था शायद गरिमा घर से निकलती ही नहीं थी वरना उस दिन के बाद कम से कम उसकी एक झलक तो नज़र आती। उसने आज दिन में विवेक से भी घुमा फिर कर जानकारी लेने की कोशिश की थी लेकिन विवेक के पास भी कोई जानकारी नहीं थी। अंकुश को अपना प्लान बेकार जाता हुआ नज़र आरहा था।


रात में जब अंकुश सोया था तब उसके मन में थोड़ी उदासी भरी हुई थी लेकिन अगले दिन जब वो सो कर उठा तो एक पॉजिटिव फीलिंग के साथ उठा, उसने बिस्तर से उठे से पहले थान लिया था की अगर भगवन को उसे गरिमा से मिलाना होगा तो आज उसे गरिमा से ज़रूर मिला देगा और नहीं मिलाना होगा तो वो आज कम से कम जम कर होली का त्यौहार मनाएगा और दोस्तों के साथ मज़े करेगा।

अंकुश जब अपने कमरे से बाहर आया तो देखा उसके पापा आंगन के कुर्सी डाले अखबार पढ़ रहे थे और मम्मी किचन में थी, तभी उसे किचेन में से पापा की नाश्ते की ट्रे लाते हुए सुलेमान अंकल नज़र आये, सुलेमान अंकल थे तो बीएसएनएल में लाइनमैन लेकिन असल में अंकुश के पापा का सारा ऊपर का काम करते थे, और टेबल के नीचे वाला काम भी अंकुश के पापा उन्ही से करवाते थे। अंकुश के पापा सुलेमान अंकल पर आँख बंद कर भरोसा करते थे।

अंकुश पापा के पेअर छू कर संगान में ही पड़े तखत पर बैठ गया

"पापा आज आप सुलेमान अंकल से घर का का काम क्यों करा रहे है "

अंकुश के पापा ने चश्मे की ओट से अंकुश की ओर देखा और अखबार साइड में रख कर चाय की कप उठा ली और किचेन की ओर जाते हुए सुलेमन को आवाज़ दी

"अरे सुलेमान सुनो तो तुम्हारा भतीजा क्या पूछ रहा है "
"क्या हुआ भैय्या जी क्या पूछ रहे है बाबू ?"

"पूछ रहा है की सुलेमान अंकल से आज घर का काम क्यों करा रहे हो आप, अब बताओ क्या जवाब दू इसको ?"
"भैय्याजी जो आप का मन हो कह दीजिये, हम तो इस घर को भी अपना घर जानते है इसलिए आपके इशारे पर दौड़े चले आये "

"आया समझ कुछ क्यों बुलाया है सुलेमान को? नहीं आया ?, तुमने ही तो कहा था न की आज तुमको घर का काम नहीं करना इसलिए सुलेमान को बुला लिया, जो आज गेस्ट आएंगे उनकी सेवा आज सुलेमान मिया ही करेंगे, समझे "

"जी पापा समझ गया" अंकुश ने झेंपते हुए कहा
"अच्छा है समझ गए, अब जल्दी से अंकल को थैंक यू बोलो और नाश्ता करके ऐसे कपडे पहन लो जो रंग लगने के बाद ख़राब हो जाये तो फेक सको, अगर नए कपड़ो पर रंग लगा तो तुम्हारी मम्मी जान लेलगी "

"ठीक है पापा, मैं पुराने कपडे ही पहनूंगा, अब मैं जाऊ खेलने ?"
"पहले नाश्ता कर लो फिर जाना और धयान रहे ज़यादा हुरदंग मत मचाना आवारा लड़को के साथ, तुम अच्छे परिवार से हो इसलिए ाचे लोगो की संगती में रहो करो ठीक है, चलो अब नाश्ता करो"

अंकुश ने जल्दी जल्दी नाश्ता किया और भाग कर अपने कमरे में चला गया, उसने जल्दी जल्दी अपने कपडे चेंज किये और एक पुरानी टीशर्ट और लोअर पहन लिया, वह अब होली खेलने के लिए कुछ ज़ायदा ही एक्सीसिटेड था इतना एक्ससिटेड की गरिमा का भूत उसके दिमाग से गायब हो गया था।

Bahut hi badhiya update he blinkit Bhai,

Ankush aur garima me shayad pyar jaisa kuch hua hi nahi..............ya fir garima ne ankush ki buri tarah se beizzati ki hogi.............jiska badla wo ab masum ladkiyo se le raha he.........

Keep posting Bhai
 

blinkit

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समीर जब चेंज करके आया तब तक उसकी मम्मी किचन से फ्री हो चुकी थी और गुलाल की थाली सजा ली थी, सबसे पहले उसके पापा ने सब को गुलाल का टिका लगाया फिर मम्मी ने, समीर और उसकी बहन ने भी थोड़ा गुदा थोड़ा गुलाल सब के गाल पर लगाया, तब तक अंकुश के पापा ने सुलेमान से अंकुश की रंगो की बाल्टी तैयार करा दी थी और एक बाल्टी में ढेर सारे रंग बिरंगे गुब्बारे भी भरवा दिए थे, अंकुश ने एक हाथ में रंग और पिचकारी की बाल्टी उठायी और दूसरी में गुब्बारों से भरी बाल्टी, अंकुश जैसे ही दरवाज़े पर रुका गेट खोलने के लिए की अचानक उसके शरीर पर ठन्डे पानी और रंगो की बौछार पड़ी, अंकुश पहले हड़बड़या पर जल्दी से बाल्टियों को ज़मीं पर रख कर पलटा सामने उसकी दीदी और पापा हाथ में पिचकारी लिए खड़े है रहे थे, रंग और पानी में सराबोर दुबे अंकुश ने भी जल्दी से अपनी पिचकारी में रंग भरा और अपने पापा और अपनी दीदी पर रंगो की बौछार कर दी, कुछ देर में पूरा परिवार एक दूसरे पर रंग और पानी की बौछार कर रहे थे थोड़ी देर वाली शांति की जगह अब रंगो और ठहाको ने ले ली थी और पूरा परिवार होली की खुशियों में डूब गया था।

लगभग आधे घंटे की धमाचौकड़ी के बाद जब सब शांत हुए तबतक सब रंगो से सराबोर हो चुके थे अंकुश के पापा ने सुलेमान को भी खींच लिया था और वह भी रंगो से नहा चूका था, थोड़ी देर सुस्ताने के बाद सुलेमान ने फिर से अंकुश की रंगो की बाल्टी तैयार कर दी और गुब्बारे भी भर दिए, अभी अंकुश बाल्टी उठाने की तैयारी कर ही रहा था की किसी ने डोरबेल बजायी, विवेक अंकुश को बुला रहा था, विवेक को देख कर अंकुश जल्दी से अपनी पिचकारी और रंगो से भरी बाल्टी ले कर निकल गया, उसने गुब्बरो की बाल्टी घर में ही रहने दी थी, विवेक के पास भी रंगो से भरी बाल्टी थी और दो पिचकारियां दोनों अपनी अपनी बाल्टी उठा आकर गली के बाहर आये, यहाँ लोगो का जमवाड़ा लगा हुआ था, किसी ने घर के बहार म्यूजिक डेक लगा रहा था और सब एक दूसरे पर रंगो की बौछार कर रहे थे और नाच रहे थे, वो दोनों भी उसी भीड़ में जा घुसे और गानो की धुन पर नाचते हुए होली की मस्ती में डूब गए।

घंटो तक होली खेलकर जब दोनों थक गए और उनके सारे रंग और गुलाल ख़तम हो गए तो अंकुश विवेक को लेकर अपने घर आया, दोनों बिलकुल भूत बन चुके थे, चेहरे पर इतना रंग लग चूका था की पहचानना मुश्किल था, अंकुश के घर अब साफ़ किया जा चूका था और सबने कपडे बदल लिए था, अंकुश को देख कर उसकी मम्मी ने उसे भी नहाने के लिए कहा लेकिन अंकुश ने इंकार कर दिया, वो तो घर में केवल अपने गुब्बारो की बाल्टी लेने आया था, दोनों अपनी खाली बाल्टी रख कर गुब्बारों की बाल्टी उठा कर चलने लगे की तभी अंकुश को उसके पापा ने रोका और सुलेमान को इशारा किया, सुलेमान ने रंगो से भरी एक और बाल्टी अंकुश के सामने ला कर रख दी, अंकुश खुसी से गंदे कपड़ो की परवाह किये बिना पापा से लिपट गया

"थैंक यू पापा, ये मेरी ज़िन्दगी का बेस्ट डे है "
"हाहाहा हमारे लिए भी, जाओ और जितना मन करे खेल आओ लेकिन लंच तक वापस आजाना"

"हाँ पापा बस ये बाल्टी ख़तम करके आजायेंगे और मम्मी आप मेरे और विवेक के लिए भी कपडे निकल देना ये भी हमारे साथ ही खा लेगा खाना"
"ठीक है बेटा लेकिन घर जल्दी आना "

दोनों ने फिर से एक एक बाल्टी उठायी और बहार निकल गए, घर के बाहर ही उनको अपने मोहल्ले के कुछ लड़के मिल गए और फिर उन्होंने एक दूसरे पर गुब्बारों से हमला करना चालू कर दिया, दोनों ओर से गुब्बरो की बौछार ऐसे हो रहे थे दो दुश्मन देश एक दूसरे पर हमले करते हो, कुछ देर में ही विरोधी पक्ष के गुब्बारे ख़तम हो गए लेकिन अंकुश के पास अभी बहुत गुब्बारे बचे हुए थे इसलिए अंकुश और विवेक कार की ओट ले लेकर विरोधी लड़को पर हमले करने लगे, अंकसह और विवेक के हमलो से घबरा कर लड़के इधर उधर भाग रहे थे, एक लड़का अंकुश के हाथ में गुब्बारा देख कर चिल्ल्ता हुआ भगा, अंकुश ने गुब्बरा मारा लेकिन निशाना चूक गया और गुब्बरा दरवाज़े पर जा लगा, गुब्बारा लगने से लोहे का गेट झनझना गया अंकुश ने फिर एक गुब्बारा उठाया और पूरी ताकत से उस लड़के की ओर फेका, गुब्बारा तेज़ी से उड़ता हुआ फिर उसी दरवाज़े की ओर उड़ता हुआ जा टकराया, लेकिन इस बार गुब्बारा दरवाज़े पर नहीं पड़ा था इसबार गुब्बारा दरवाज़ा बंद करने आयी गरिमा पर जा पड़ा था।

गरिमा होली खेलकर नहा चुकी थी और कपडे भी बदल लिए थे लेकिन अंकुश के द्वारा फेका गया गुब्बरा सीधा उसके सुन्दर मुखड़े पर आ लगा था, गोरा सफ़ेद मुखड़ा उस पर गुब्बारे में भरा गुलाबी रंग, अंकुश अपने सामने गरिमा को इस रूप में देख कर दीवाना हो गया।

आज होली खेलने की ख़ुशी में उसे भूल बैठा था लेकिन शायद भगवान नहीं भुला था, अंकुश गरिमा को बस देखता ही रह गया, गरिमा जो गुब्बारा लगने से चिढ गयी थी उसने एक गुस्से से भरी नज़र रंगो से सराबोर अंकुश पर डाली, विवेक ने अंकुश को पीछे से एक और गुब्बारा पकड़ाया और अंकुश ने बिना कुछ सोंचे फिर से गुब्बरा गरिमा की ओर फेक मारा, गरिमा गुस्से से चिल्लाई और घर के अंदर भाग गयी।

गरिमा को इस रूप में देखने के बाद अंकुश में मन में जो प्यार की फीलिंग्स कही खो गयी थी वो दुबारा जाग गयी, अब उसका मन होली से उचट गया और जल्दी जल्दी बाल्टी का रंग और गुब्बारे ख़तम करके घर में जा घुसा। उसने घर में घुसते ही उसने एक जोड़ी कपड़े विवेक को दिए और उसको बाथरूम में नहाने के लिए बोलकर झट से छत पर जा चढ़ा। उसे पूरी उम्मीद थी की गरिमा फिर से नाहा कर छत पर ज़रूर आएगी और हुआ भी ऐसा ही, कुछ ही देर में उसे गरिमा क्रीम और लाल कलर के सूट में अपने लम्बे बाल लहराती हुई छत पर आपहुची, उसके हाथ में वही सफ़ेद रंग का सूट था जो अभी पहने हुई थी और उस पर अंकुश के फेंके हुए गुब्बारे ने चित्रकारी कर दी थी।

आज छत पर चढ़ते ही गरिमा ने भी अंकुश को देख लिया था, उसने अंकुश को साफ़ पहचान कर बुरा सा मुँह बनाया और अपना मुँह दूसरी और फेर लिया, पता नहीं उस पल अंकुश में कहा से इतनी ताक़त आगयी की वो बरबस ही ज़ोर से चिल्लाया "हैप्पी होली " और दूर कहीं बजते गाने की धुन पर नाचने लगा, गरिमा ने पलट कर अंकुश को बंदरो की तरह नाचते देखा तो एक हलकी सी मुस्कान उसके चेहरे पर दौड़ गयी, ये मुस्कान अंकुश से छुपी ना रह सकी और गरिमा को अपनी हरकतों पर मुस्कुराता देख कर और तेज़ी से नाचने लगा।

गरिमा ने अपने गीले कपड़ो को तार पर सूखने के लिए डाल दिया, अब अंकुश ने भी नाचना बंद कर दिया था और छत पर लगे खम्बे से
टेक लगाए गरिमा को एकटक निहार रहा था, पहले तो अंकुश को ऐसे घूरते देख कर गरिमा हल्का सा शर्मायी फिर गुस्से वाला मुँह बना कर अंकुश को हाथ के इशारे से अपने सूट के बर्बाद होने का इशारा किया, पहले तो अंकुश कुछ समझा नहीं पर जैसे ही समझ आया उसने झट से हाथ जोड़ लिए और इशारो में ही माफ़ी मांग ली, गरिमा ने भी एक अदा से मुँह फुला कर निगाहे फेर ली।

गरिमा को ऐसे गुस्से से निगाहे फेरते देख कर अंकुश ने झट से अपने कान पकडे और उठक बैठक करने लगा, गरिमा जो अंकुश को बनावटी गुस्सा करके कनखियों से देख रही थी वो रंगो से सने और भूत जैसी हालत में उठक बैठक करते अंकुश को देख कर खिलखिला कर हंस पड़ी और हाथो से उसके पागल होने का इशारा करके छत से नीचे की ओर भाग गयी।

गरिमा का हंसना था की अंकुश की होली दिवाली सब एक साथ मन गयी, कल तक जो निराशा उसके मन में थी वो अब गायब थी अब तो बस एक उमग थी, एक उम्मीद थी, एक सपना था और और उस सपने में वो था गरिमा थी और उनका कभी ना ख़तम होने वाला प्यार था।


*********​
 
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blinkit

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aik chota sa update, kuch harami dost aarahe hai milne isliye is update ko kal pura karunga
 

SKYESH

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aik chota sa update, kuch harami dost aarahe hai milne isliye is update ko kal pura karunga
dosto ..always HARAMI hi hote hai ..... otherwise wo dost nahi hote :wink:
 

blinkit

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dosto ..always HARAMI hi hote hai ..... otherwise wo dost nahi hote :wink:
sahi kaha SKYESH Bhai aapne. inhi se life ki khushiyan hai warna boriyat ne kab ka maar diya hota
 

blinkit

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होली के बाद अंकुश की जैसे दुनिया ही बदल गयी, अब अंकुश का धयान ना घूमने फिरने में था और न ही खेल कूद में, अब तो उसने घर से निकलना ही बंद कर दिया था, अब उसका पूरा दिन किसी न किसी बहाने से छत के चक्कर लगाने में ही निकल जाता था, शरू में तो गरिमा भी कम ही नज़र आती थी लेकिन फिर धीरे धीरे उसका भी छत आना जाना बढ़ गया था, वो भी कभी कपडे सुखाने और कभी सूखे कपडे उतरने छत पर आती रहती, कभी कभी अंकुश चोरी से उसको कोई इशारा कर देता लेकिन जवाब में वो बस मुस्कुराकर रह जाती, छोटा शहर था इसलिए लोग शाम में अक्सर अपने छतो पर आते जाते रहते थे इसलिए उन दोनों के बीच में किसी प्रकार की बातचीत तो संभव नहीं थी केवल इशारो भर से ही काम चलाया जा सकता था जो ये दोनों भली भांति दुनिया की नज़रो से बच कर कर पा रहे थे।

कई हफ्तों से ये खेल खेल कर अंकुश अब थक चूका था वो गरिमा से बात करना चाहता था और उसके दिल में अंकुश के लिए क्या है ये जानना चाहता था लेकिन वो छत पर इशारो के माध्यम से संभव नहीं था, इसलिए उसने हिम्मत करके एक लेटर गरिमा के नाम लिखने का सोंचा। जब अंकुश ने लेटर लिखने का सोचा था तब उसे ये काम इतना मुश्किल नहीं लगा था लेकिन जब वो रात में अपने कमरे में लिखने बैठा तो ऐसा लगा मानो अपने जीवन का सबसे कठिन परीक्षा लिख रहा हो, वो बार बार शुरुआत करता लेकिन "मेरी प्यारी गरिमा " के आगे कोई शब्द ही नहीं सूझ रहे थे। कई घंटे जूझने के बाद आखिर उसे अपने जीवन का पहला प्रेमपत्र लिख ही दिया, लिखा था

"गरिमा,
क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी ? प्लीज मना मत करना नहीं तो मेरा दिल टूट जायेगा और हाँ तुम्हारा सूट ख़राब करने का लिए सॉरी।

तुम्हारा दोस्त। "

उसने जान भुझ कर अपना नाम नहीं लिखा था उसे डर था की कही लेटर किसी और के हाथ लगा तो बात बिगड़ जायेगी, वैसे भी गरिमा को सूट वाली बात से मामला समझ आजायेगा।

अंकुश ने लेटर तो लिख लिया लेकिन समझ नहीं आया की वो अब इस लेटर को गरिमा तक कैसे पहुचाये, ऐसे छत पर जाकर देना उन दोनों के लिए रिस्क से भरा हुआ था, अगले दो दिन तक उसने बहुत दिमाग दौड़ाया लेकिन जब कोई हल समझ नहीं आया तो वो फिर विवेक से मिलने जा पंहुचा, घंटो वो विवेक के साथ घूमता रहा और बातों ही बातों में उसने विवेक से जानकारी निकलवा ली की गरिमा की एक दोस्त उनकी ही गली के पिछली ओर रहती है उसका नाम विवेक ने सीमा बताया था। इतनी जानकारी अंकुश के लिए काफी थी, उसने घर वापस आकर अपने प्लान पर काम करना स्टार्ट कर दिया और शाम होते ही अपनी इलेवेंथ की हिंदी की किताब लेकर छत पर जा चढ़ा और गरिमा का छत पर आने का इन्तिज़ार करने लगा।

थोड़े इन्तिज़ार के बाद गरिमा छत पर आयी और इधर उधर देखने लगी, अंकुश ने भी सबसे नज़र बचा कर अपनी किताब गरिमा की ओर लहराई, अंकुश ने इशारे से गरिमा को किताब लेने के लिए कहा लेकिन वो समझ नहीं पायी, रात होने से पहले अंकुश ने कोई बार उसे अपनी हिंदी की किताब दिखाई और उसे इशारो में समझने की कोशिश की लेकिन गरिमा के कुछ भी पल्ले नहीं पड़ा। लेकिन अंकुश को इन बातो से कोई मतलब नहीं था वो बार बार अपनी किताब गरिमा को दिखता रहा। अँधेरा होते ही अंकुश छत से उतर आया और सीधा अपने रूम में जा कर अपने स्कूल बैग में से लेटर निकल लाया और हिंदी की किताब के बीच में एक खाली पन्ने पर टेप की मदद से उस लेटर को चिपका दिया, उस से पहले उसने स्केच से अपनी किताब में जहा जहां उसका नाम था उसे काट दिया और उस पर सीमा का नाम लिखा दिया।

ये करके अंकुश घरके बहार आया और गली में खड़ा होकर इन्तिज़ार करने लगे, तभी उसे अपने ही मोहल्ले का एक 8-१० साल का लड़का मोहित नज़र आया तो उसने उसे रोक लिया और किताब उसे पकड़ा कर गरिमा के घर भेज दिया, उसने बच्चे को पांच रूपये देने का लालच दिया था और साथ ही समझा दिया था की अगर कोई पूछेगा तो यही बोलेगा की सीमा दीदी ने गरिमा दीदी को ये किताब देने के लिए भेजा है।

किताब तो अंकुश ने भेज दी लेकिन जबतक मोहित नहीं लौटा तब तक अंकुश का दिल धाड़ धाड़ करके बज रहा था, उसके मन में एक अजीब सा डर और घबराहट की लहर दौड़ रही थी, अंकुश ने अब तक तो अपनी कैलकुलेशन ठीक लगायी थी, इस टाइम गरिमा का भाई मोनू कोचिंग गया हुआ होता है और गरिमा के पापा अक्सर आठ बजे के बाद ही आते है और अभी तो बस साढ़े साथ ही बजे थे।

दस मिनट बाद उसे मोहित गरिमा के घर से निकलता हुआ दिखाई दिया, वो कुछ खाता हुआ आरहा था, अंकुश जल्दी से उसका हाथ पकड़ कर एक कोने में लेकर गया

"क्या हुआ अंदर कौन मिला "
"दादी मिली थी, उनको दे दी किताब मैंने "

"दादी को दिया या दीदी को ?" अंकुश ने घबरा कर पूछा
"दादी को ! वो वही तखत पर बैठी थी उन्होंने ही ले ली किताब "

अंकुश का दिल किसी रेल के इंजन के जैसे चलने लगा, उसके शरीर ने ढेर सारा पसीना एक साथ उगल दिया, बड़ी मुश्किल से उसने आगे पूछा

"फिर क्या बोला दादी ने ?"
"बस ये की किसने दी है किताब, तो मैंने बोल दिया की सीमा दीदी ने दी है गरिमा दीदी के लिए "

"बहुत अच्छा, फिर क्या हुआ ? आगे बोल जल्दी "
"फिर कुछ नहीं उन्होंने गरिमा दीदी को आवाज़ दे कर बुलाया, और मुझसे किताब लेकर कर किताब दीदी को पकड़ा दी "

"ओह्ह्ह " अंकुश ने राहत की सांस ली
"गरिमा दीदी ने तो कुछ नहीं कहा ?"

"नहीं बस आते टाइम उन्होंने ये टॉफ़ी दे दी खाने के लिए" मोहित ने अपना मुँह खोलकर दिखाया

ये सुन कर तो अंकुश की जान में जान आगयी, उसका प्लान कामयाब रहा था आखिर उसका लेटर गरिमा तक पहुंच ही गया, उसने जल्दी से मोहित के हाथ पर दस रूपये का नोट रखा और ये बात किसी और को ना बताने के लिए समझा दिया।

अब लेटर गरिमा तक पहुंच गया था और गेंद अब गरिमा के पाले में थी, देखना था की गरिमा क्या जवाब देती है।

अंकुश की वो रात बहुत बेचैनी में गुज़री, बार बार एक डर सा मन में उठ रहा था की कही गरिमा इंकार न कर दे, लेकिन जो उनके बीच में छत पर इशारे चल रहे थे उस हिसाब से उसे उम्मीद थी की गरिमा का जवाब हाँ में ही होगा, अगला पूरा दिन अंकुश इन्तिज़ार करता रहा लेकिन न तो गरिमा का कोई जवाब आया और न ही गरिमा छत पर नज़र आयी, हर गुज़रते समय के साथ अंकुश की बेचैनी बढ़ रही थी, लेकिन उस के पास इस बेचैनी का कोई इलाज नहीं था। जिसके पास इस बेचैनी का इलाज था तो गायब थी।

अंकुश को जो सबसे बड़ी टेंशन थी वो ये थी की कही गलती से वो लेटर पकड़ा ना जाये, लेटर पकडे जाने पर अंकुश तो बच जाता क्यंकि उसने अपना नाम नहीं लिखा था अपना लेकिन गरिमा ज़रूर फस सकती थी, ईश्वर का नाम लेते लेते दो दिन और गुज़र गए आखिर तीसरे दिन अंकुश को गरिमा की झलक छत पर नज़र आयी, उसके हाथ में एक बाल्टी थी जिसमे से वो कपडे निकाल कर सूखने के लिए डाल रही थी, अंकुश ने गरिमा का धयान अपनी ओर आकर्षित करने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे ऐसे लगा की आज गरिमा जानबूझ कर उसे इग्नोर कर रही हो, अंकुश का दिल भुझ गया, इसका मतलब था की गरिमा को अंकुश की दोस्ती मंज़ूर नहीं है,

कपडे तार पर डालकर गरिमा बाल्टी उठाकर सीढ़ियों की ओर चलने लगी, सीढ़ियों पर पैर रखने से पहले उसने बाल्टी में हाथ डाला और अंकुश की दी हुई किताब बाल्टी से निकाली और अंकुश की ओर देख कर किताब लहरा दी, अंकुश बिना बिना हिले डुले एक टक गरिमा को देख रहा था, गरिमा ने फिर से किताब को हवा में लहराया और सीढ़ियों पर ओझल होने से एक पल पहले किताब को अपनी बाँहों में कसकर चुम लिया और अगले ही पल वो सीढ़ियों पर ओझल हो गयी।

लगभग उस से सौ मीटर की दुरी पर खड़ा अंकुश किसी सम्मोहन में बंधा छत पर रखी कुर्सी पर ढेर होगया, गरिमा को उसकी दोस्ती कबूल थी।


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blinkit

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उस दिन के बाद अंकुश और गरिमा की कहानी शरू हो गयी, दोनों किसी न किसी बहाने से एक दूसरे तक लेटर पंहुचा देते, जिस अंकुश को दो लाइन लिखने में पूरी रात लगी थी आज वही अंकुश एक रात में पांच छह पन्ने का लेटर लिख देता था। शरू में गरिमा एक दो पन्नो का ही जवाब देती थी लेकिन अब वो भी अंकुश के जैसे कई कई पन्नो का लेटर भेजती थी, लेकिन लेटर के साथ समस्या ये थी उसमे ज़ायदा बात नहीं हो सकती थी, और वो लेटर भी सप्ताह में एक या दो बार ही अदला बदली हो सकती थी ऊपर से अब अंकुश का स्कूल खुलने वाला था, एक बार स्कूल स्टार्ट होने के बाद उसको बार बार छत पर आने का टाइम मिलना संभव नहीं था, बोर्ड होने के कारन उसको कोचिंग भी ज्वाइन करनी थी।

अंकुश ने फिर दिमाग लगन चालू कर दिया, कोई परमानेंट सलूशन। रास्ता तो था लेकिन वो इस रास्ते को अपनाने से बच रहा था, आसान रास्ता ये था की दोनों के घर में फ़ोन था लेकिन फ़ोन पर घरवालों के सामने बात करना संभव नहीं था और मोबाइल फ़ोन अभी नया नया आया था और उसमे कॉल तो महंगी थी ही ऊपर से सुनने के भी पैसे लगते थे इसलिए उसे कोई और हल निकलना था।

कहते है न जहा चाह है वह राह है, आखिर अंकुश की उधेड़ बन रंग लायी, अंकुश के पापा बीएसएनएल में थे तो उनके कारन ही इस मोहल्ले में टेलीफोन की लाइन आयी थी, टेलीफोन का पोल अंकुश के के घर की दिवार से लग कर लगाया गया था और उसके घर के सामने से ४ टेलीफोन वायर दूसरे घरो में जाती थी, एक गरिमा के घर, २ अलग अलग घरो में लेकिन उनमे से चौथी वायर चावला साहब के घर जाती थी, चावला साहब आर्मी से रिटायर थे, घर में केवल वो और उनकी पत्नी रहती थी, दिन में एक काम वाली उनके घर का काम करने आती थी।
चावला जी के ३ बच्चे थे जिसमे एक आर्मी में था जिसकी पोस्टिंग कही साउथ में थी और उनके एक बेटा और बेटी कनाडा में रहते थे।

अंकुश ने कैलकुलेशन लगायी की चावला जी जल्दी सोने वाले व्यक्ति है इसलिए रात में उनकी टेलीफोन लाइन फ्री रह सकती है। उसने रात के समय एक एक एक करके ब्लेड से चारो टेलीफोन वायर्स को हल्का हल्का छील दिया और रात को मम्मी से छत पर सोने का बहाना करके अपना बिस्तर छत पर ही लगा लिया और साथ में एक एक्स्ट्रा पड़ा फ़ोन भी उठा लाया। अंकुश के पापा टेलीफोन कंपनी में थे इसलिए उसके घर में टेलीफोन की कोई कमी तो थी नहीं।

उसके चुपके से पहली वायर से फ़ोन को कनेक्ट किया और अपने खुद के घर का नंबर मिलकर दौड़ता हुआ नीचे आगया, उसके घरके फ़ोन में कॉलर id लगी हुई थी, उसने जल्दी से फ़ोन उठा कर डिस्कोनेक्ट कर दिया और स्क्रीन पर आये नंबर को नोट कर लिया, उसने तीन चार बार ऐसे ही किया, उसने हर एक वायर से फ़ोन कनेक्ट करके अपने घर के नंबर पर कॉल करता और उस नंबर को नोट कर लेना। घर में सब टीवी देखने में व्यस्त थे इसलिए किसी का धयान अंकुश की खुराफात पर नहीं गया । अंकुश ने हर वायर पर भी मार्किंग कर दी थी और फिर वो फ़ोन को साइड में रख कर सो गया।

अगले दिन अंकुश ने फ़ोन की डायरेक्टरी से चावला जी का नंबर ढूंढ निकला और उसने उनका वायर छोड़कर बाकि सरे वायर पर टैपिंग कर दी। उसका आधा प्लान कम्पलीट था उसने उस रात गरिमा को लेटर लिखा और उस से मिलने के लिया कहा लेकिन गरिमा ने इंकार कर दिया लेकिन साथ ही ये भी लिखा की वो दो दिन बाद अपने स्कूल किसी काम से जाएगी अगर कोई बहुत ज़रूरी बात है तो घर वापिस आते हुए जो खेत मिलते है वह वो उस रास्ते पर एक दो मिनट उस से चलते चलते बात कर सकती है।

अंकुश अगले दिन अपनी साइकिल उठाकर अपने पापा के ऑफिस टेलीफोन एक्सचेंज जा पंहुचा, एक्सचेंज में बहुत सा स्टाफ उसको जनता था लेकिन उसे केवल सुलेमान अंकल की तलाश थी, कुछ देर में उसे सुलेमान अंकल नज़र आगये।

"नमस्ते अंकल "
"अरे अंकुश बेटा तुम यहाँ कैसे? चलो तुमको भईया जी के पास ले चलु "

"अरे नहीं अंकल मैं न आपसे ही मिलने आया था "
"मुझसे ? हाँ बताओ क्या काम है ?"

"वो अंकल मैंने अपने एक दोस्त के यहाँ देखा है एक बिलकुल छोटा सा फ़ोन मोबाइल के जैसा लेकिन उसमे वायर होती है "
"हाँ आता है, चीन का है वो फ़ोन, लेकिन तुम्हे क्या काम था "

"वो अंकल आप प्लीज मुझे वैसा फ़ोन दिला दो ना घर के लिए "
"बेटा वो यहाँ नहीं मिलेगा, वो या दिल्ली में मिलेगा या आगरा में, वो वैसे भी सरकार नहीं देती अलग से खरीदना पड़ता है "

"कोई बात नहीं अंकल आप दिला दो ना, मेरे पास पैसे है, मैं लेकर आया हु" अंकुश ने पैसे जेब से निकलते हुए कहा
"यहाँ नहीं है, अच्छा रुको एक मिनट" बोलकर वो एक रूम में जा घुसे और वहा किसी वयक्ति से कुछ बात करने लगे फिर उन्होंने किसी को कॉल लगाया और थोड़ी देर वापस आये

"सुनो बेटा अंकुश, हमारे ऑफिस के राकेश जी दिल्ली गए है डिपार्टमेंट के काम से मैंने उनको बोला है वो लाकर दे देंगे, लेकिन वो कल या परसो सुबह ही मिल पायेगा "
"ओह्ह थैंक यू अंकल, आप ये पैसे रख लीजिये, जब आजाये तो आप मुझे दे देना और हाँ पापा को मत बताना प्लीज "

अंकुश का काम हो गया था जल्दी जल्दी साइकिल चलता हुआ घर आगया बस अब तो एक ही प्रार्थना थी की राकेश अंकल परसो समय से उसका फ़ोन लेकर आजाये।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बचपन से ही जुगाड़ू है, और इसी कारण धूर्त भी बन गया है ये अंकुश।

बढ़िया अपडेट ब्लिंकिट भाई।

बचपन की खुराफातें
 
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ब्लिंकिट भाई , अंकुश और गरिमा के इस बचपन की प्रेम कहानी एवं लव लेटर लिखने की झिझक ने मुझे अपने बचपन के दिनों की याद दिला दी ।
बिल्कुल ऐसा ही हुआ था मेरे साथ भी । अस्सी - नब्बे के दशक मे चूंकि मोबाइल फोन का जमाना नही था तो लोग पत्राचार ही किया करते थे । अगर लैंडलाइन फोन होता भी था तो बहुत ही रेयर घरों मे होता था ।
अंकुश की तरह हमारी भी लव स्टोरी अपने अपने घर के छत से शुरू हुई थी । कभी किसी को लव लेटर लिखा ही नही इसलिए मेरे अंदर झिझक के साथ डर भी था ।
अंकुश की तरह ही मैने भी घंटो - दिनों तक यह सोचता रहा कि आखिर लिखूं तो क्या लिखूं ! ऐसा क्या लिखूं कि अगर लव लेटर किसी दूसरे के हाथ लग जाए तो भी मेरी बदनामी न हो । और ऐसा क्या लिखूं जिसमे प्रेम का प्रपोजल होकर भी कहीं से लगे नही कि यह प्रेम की अभिव्यक्ति है ।
अंकुश की तरह मैने भी लव लेटर मे ना ही खुद का नाम लिखा और ना ही लड़की के नाम का जिक्र किया ।
अंकुश की तरह मेरे हालत भी खस्ता थी जब आखिरकार चिठ्ठी लड़की के पास वाया एक बच्चे के माध्यम से पहुंच गई।

यह मेरे जीवन का एक मात्र लव लेटर था और किस्मत से इस का परिणाम काफी सुखद रहा । कई साल बीत गए पर लगता है जैसे कुछ ही दिन पहले की बात है । हमने प्रेम किया लेकिन कभी मर्यादा की दीवार नही लांघी ।

नौजवानी के शुरुआती दौर मे इश्क होना बिल्कुल स्वभाविक है । लेकिन अगर इस इश्क ने आपको एक अच्छे इंसान की जगह बुरे इंसान मे परिवर्तित कर दिया तब यह इश्क बहुत ही बुरी चीज हो जाती है । प्रेम का अर्थ पाना नही देना होता है - अपने प्रेमी को खुशियों का सौगात देना , प्रेमी के खुशियों की परवाह करना , प्रेमी के दुख से खुद को दुखित महसूस होना होता है ।

अंकुश ने लैंडलाइन फोन के साथ जो छेड़खानी की , वह भी हंड्रेड प्रतिशत रियलिस्टिक है । लड़के अपने लवर से बात करने या उनसे मुलाकात करने के लिए न जाने कितने - कितने तरकीब बनाते ही रहते है ।

लेकिन अंकुश का वर्तमान चरित्र यह धारणा बना रहा है कि उसका पहला प्यार सफल नही रहा होगा । या तो लड़की ने जानबूझकर उसे धोखा दिया या फिर कोई कारणवश वह धोखा देने के लिए मजबूर हुई ।

बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 
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