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Nice update....अध्याय छप्पन
इस वक्त मध्य रात्रि के समय में कालविजय आश्रम मे एक अलग ही चमक थी केवल कालविजय ही नही बल्कि कालदृष्टि और कालदिशा आश्रम मे भी वही अलग चमक थी
ये चमक किसी अस्त्र या माया से नही बल्कि आश्रमवासियों के जोश और उत्साह से आई थी आश्रम मे इस वक़्त इतने दीप जल रहे थे की मानो वहा पर की दूर से देखे तो उस की छोटा सूरज लगे
आज तीनों आश्रमों मे दिवाली मनाई जा रही थी अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतिरूप मै रात्रि के घने अंधेरे पर केवल दीपों की रोशनी से उन सबने विजय पा ली थी
जहाँ एक तरफ अच्छाई पक्ष में सप्तस्त्रों की शक्ति को काबू करने के बाद उनकी ताकते 100 गुना अधिक बढ़ गयी थी भद्रा के द्वारा युद्ध किया गया पराक्रम देखकर उसकी ताकतों को देख कर अच्छाई के हर एक योद्धा का जोश उत्साह जुनून पहले से 10 गुना अधिक बढ़ गया था
जो लोग कल तक भद्रा को महागुरु का उत्तराधिकारी होने का अंदेशा लगा रहे थे आज वो सभी को शत प्रतिशत यकीन हो गया था की भद्रा ही उनका अगला महागुरु होगा
तो वही सातों गुरुओं ने कालविजय आश्रम आते ही खुद को महागुरु के सभाग्रुह मै कैद कर दिया था और उनकी इस हरकत से बाहर सभी सैनिक और योध्दा यही समझ रहे थे की जैसे भद्रा को गुरु पृथ्वी का दर्जा देने से पहले सभी बड़ी देर तक विचार विमर्श कर रहे थे
तो वैसे ही आज भी ये सब विचार विमर्श करके भद्रा को महागुरु का स्थान देंगे अभी सब लोग इस बात को सोचकर उत्साहित हो रहे थे की तभी उन्हे आसमान से की अपने तरफ आता दिखा और जब सबने ध्यान से देखा उन्हे देखकर कालविजय आश्रम मे हड़कंप मच गया था
तो वही बुराई के पक्ष यानी पाताल लोक पर भी नज़र डाल लेते है जहाँ पाताल लोक के राज महल के दरबार में इस वक़्त बहुत ही गंभीर माहौल था
जहाँ सिंहासन पर बैठे हुए थे असुर प्रजाति के सम्राट विराज और उसके सामने खड़े थे मायासुर मोहिनी और कामिनी जो की कैदियों की तरह बेड़ियों मे जकड़े हुए थे और उनके आसपास अपने अपने राजगद्दीयों पर बैठे हुए असुर मंत्री थे
विराज :- (क्रोध मे) मायासुर तुम्हारे वजह से हम फिर से एक बार युद्ध हार गए है तुमने ही इस बात की जिम्मेदारी उठाई थी कि तुम इस बार उन अस्त्र धारकों को खतम करके रहोगे लेकिन हुआ क्या तुम न सिर्फ युद्ध हरा दिया बल्कि 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना को भी तुमने मरवा दिया और उसके साथ ही तुमने 10 महाकाय असुर और साथ मे हमारे शक्तिशाली गटों मेसे विध्वंसक को भी खतम करवा दिया आज तुमने ये साबित करवा दिया की मेरा मानना सही था की तुम असुर सेनापति तो का असुर दल मे सामिल होने के भी लायक नही हो
विराज की ये बात सुनकर मायासुर के आँखों में खून उतर आया था उसने असुर सेनापति बनने के लिए कितनी मुश्किले सही थी ये बस वो या गुरु शुक्र ही जानते थे और उसी वजह से वो शुक्राचार्य के खास सैन्य दल का सैन्य नायक भी बना था (इस दल के बारे में आगे पता चलेगा)
मायासुर :- और मैने भी आपसे निवेदन किया था सम्राट की मुझे मेरी शक्तियां वापस दे दीजिये लेकिन आप ही नही माने और ये उसी का परिणाम है
विराज :- (क्रोधित स्वर मे) तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम हमे ज्ञान दो (मायासुर के पास जाते हुए) तुम एक तुच्छ असुर मुझे सिखाओगे की राज कैसे करना है
जब विराज चलते हुए मायासुर के पास बढ़ रहा था तो उसके सारे शरीर से उसकी असुरी ऊर्जा हर तरफ प्रवाहित हो रही थी जिससे कामिनी और मोहिनी दोनों के ही शरीर भय के मारे कपकपि सी आ गयी
और जब वो उनके पास पहुँचा तो उसकी रक्त समान लाल सुर्ख आँखे देखकर उन दोनों के हाथ पाऊँ कांपने लगे थे उनकी आँखे भय के मारे बंद हो गयी थी अभी वो सिर्फ वहा खड़े होकर अपने मृत्यु का इंतेज़ार कर रहे थे
लेकिन जब उन्होंने कुछ समय तक उन्हे कुछ महसूस नही हुआ तो वो दोनो हैरान रह गए और जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी
क्योंकि उनका सम्राट इस वक़्त उनके चरणों मे गिरा हुआ था और उनके सामने मायासुर सम्राट के सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके हाथ मे खून से भीगी हुई तलवार थी
जो देखकर केवल वो दोनों ही नही बल्कि हर एक मंत्री जो वहा खड़ा था सभी दंग रह गए थे
हुआ यू की जब विराज अपने सिंहासन से उठकर उनके पास आ रहा था तो जहाँ पर कामिनी और मोहिनी डर से कांप रही थी
तो वही मायासुर के चेहरे पर कमीनी मुस्कान आ गयी थी और जब वो उनके पास पहुँचा तो मायासुर ने अपनी माया का इस्तेमाल कर दिया
और जब विराज ने मायासुर का गला पकड़ना चाहा तो उसका हाथ मायासुर के आर पार निकल गया
जिससे विराज मायासुर की माया को पहचान गया और वो कुछ करता की तभी मायासुर ने गुरु शुक्राचार्य द्वारा मिली हुई तलवार विराज के पीठ मे घुसा दी जिससे वहा खड़े सारे मंत्री हैरान हो गए
और इससे पहले की वो सब कुछ कर पाते की मायासुर के विश्वसनीय सिपाहियों ने सभी मत्रियों के गर्दन पर तलवार रख दी
मंत्री 1 :- मायासुर ये तुमने क्या किया असुर श्रेष्ठ को मार दिया
मायासुर :- असुर श्रेष्ठ और वो भी ये विराज तुम्हारी भूल है मंत्री अब से मे हूँ तुम सबका सम्राट असुरों मे सर्व श्रेष्ठ सर्व शक्तिशाली असुर मायासुर
मंत्री 2 :- मै ये नही मानता मे विद्रोह करूँगा तुम्हारे खिलाफ
मंत्री 2 की बात सुनकर मायासुर कुछ बोला नही बस उसने अपने सिपाही को इशारा किया और मायासुर का इशारा मिलते ही उस सिपाही ने तुरंत ही उस मंत्री की गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी
जिससे वहा पर फिर एक बार शांति छा गयी लेकिन कुछ मंत्री ऐसे थे जिन्हे शायद अभी भी बुद्धि नही आई थी इसीलिए उन्होंने मायासुर के खिलाफ अपनी आवाज उठाई
और इससे पहले की कोई कुछ बोल या कर पाते उससे पहले ही वहा एक आवाज वातावरण मे गूंजने लगी जिसे सुनकर सबका ध्यान दरबार के मुख्य द्वार पर चला गया जहाँ से वो आवाज आई थी
और जब सबने उस तरफ देखा तो सब फिर से दंग रह गए क्योंकि उनके सामने इस स्वयं गुरु शुक्र थे
गुरु शुक्राचार्य :- आज से और अभी से मे असुर कुल गुरु गुरु शुक्राचार्य मायासुर को असुरों का सम्राट घोषित करता हूँ और जो भी सम्राट के विरुद्ध आवाज उठाने की सोची भी तो वो असुर कुल द्रोही माना जायेगा
इतना बोलके गुरु शुक्राचार्य ने असुर सम्राट का मुकुट मायासुर के सर पर रख दिया जिससे न सिर्फ उसे असुर सम्राट की शक्तियां मिली बल्कि उसे उसकी छीनी गयी शक्तियां भी वापस मिल गयी अब पूरे पाताल लोक पर मायासुर का राज्य था
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आज के लिए इतना ही
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अध्याय छप्पन
इस वक्त मध्य रात्रि के समय में कालविजय आश्रम मे एक अलग ही चमक थी केवल कालविजय ही नही बल्कि कालदृष्टि और कालदिशा आश्रम मे भी वही अलग चमक थी
ये चमक किसी अस्त्र या माया से नही बल्कि आश्रमवासियों के जोश और उत्साह से आई थी आश्रम मे इस वक़्त इतने दीप जल रहे थे की मानो वहा पर की दूर से देखे तो उस की छोटा सूरज लगे
आज तीनों आश्रमों मे दिवाली मनाई जा रही थी अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतिरूप मै रात्रि के घने अंधेरे पर केवल दीपों की रोशनी से उन सबने विजय पा ली थी
जहाँ एक तरफ अच्छाई पक्ष में सप्तस्त्रों की शक्ति को काबू करने के बाद उनकी ताकते 100 गुना अधिक बढ़ गयी थी भद्रा के द्वारा युद्ध किया गया पराक्रम देखकर उसकी ताकतों को देख कर अच्छाई के हर एक योद्धा का जोश उत्साह जुनून पहले से 10 गुना अधिक बढ़ गया था
जो लोग कल तक भद्रा को महागुरु का उत्तराधिकारी होने का अंदेशा लगा रहे थे आज वो सभी को शत प्रतिशत यकीन हो गया था की भद्रा ही उनका अगला महागुरु होगा
तो वही सातों गुरुओं ने कालविजय आश्रम आते ही खुद को महागुरु के सभाग्रुह मै कैद कर दिया था और उनकी इस हरकत से बाहर सभी सैनिक और योध्दा यही समझ रहे थे की जैसे भद्रा को गुरु पृथ्वी का दर्जा देने से पहले सभी बड़ी देर तक विचार विमर्श कर रहे थे
तो वैसे ही आज भी ये सब विचार विमर्श करके भद्रा को महागुरु का स्थान देंगे अभी सब लोग इस बात को सोचकर उत्साहित हो रहे थे की तभी उन्हे आसमान से की अपने तरफ आता दिखा और जब सबने ध्यान से देखा उन्हे देखकर कालविजय आश्रम मे हड़कंप मच गया था
तो वही बुराई के पक्ष यानी पाताल लोक पर भी नज़र डाल लेते है जहाँ पाताल लोक के राज महल के दरबार में इस वक़्त बहुत ही गंभीर माहौल था
जहाँ सिंहासन पर बैठे हुए थे असुर प्रजाति के सम्राट विराज और उसके सामने खड़े थे मायासुर मोहिनी और कामिनी जो की कैदियों की तरह बेड़ियों मे जकड़े हुए थे और उनके आसपास अपने अपने राजगद्दीयों पर बैठे हुए असुर मंत्री थे
विराज :- (क्रोध मे) मायासुर तुम्हारे वजह से हम फिर से एक बार युद्ध हार गए है तुमने ही इस बात की जिम्मेदारी उठाई थी कि तुम इस बार उन अस्त्र धारकों को खतम करके रहोगे लेकिन हुआ क्या तुम न सिर्फ युद्ध हरा दिया बल्कि 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना को भी तुमने मरवा दिया और उसके साथ ही तुमने 10 महाकाय असुर और साथ मे हमारे शक्तिशाली गटों मेसे विध्वंसक को भी खतम करवा दिया आज तुमने ये साबित करवा दिया की मेरा मानना सही था की तुम असुर सेनापति तो का असुर दल मे सामिल होने के भी लायक नही हो
विराज की ये बात सुनकर मायासुर के आँखों में खून उतर आया था उसने असुर सेनापति बनने के लिए कितनी मुश्किले सही थी ये बस वो या गुरु शुक्र ही जानते थे और उसी वजह से वो शुक्राचार्य के खास सैन्य दल का सैन्य नायक भी बना था (इस दल के बारे में आगे पता चलेगा)
मायासुर :- और मैने भी आपसे निवेदन किया था सम्राट की मुझे मेरी शक्तियां वापस दे दीजिये लेकिन आप ही नही माने और ये उसी का परिणाम है
विराज :- (क्रोधित स्वर मे) तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम हमे ज्ञान दो (मायासुर के पास जाते हुए) तुम एक तुच्छ असुर मुझे सिखाओगे की राज कैसे करना है
जब विराज चलते हुए मायासुर के पास बढ़ रहा था तो उसके सारे शरीर से उसकी असुरी ऊर्जा हर तरफ प्रवाहित हो रही थी जिससे कामिनी और मोहिनी दोनों के ही शरीर भय के मारे कपकपि सी आ गयी
और जब वो उनके पास पहुँचा तो उसकी रक्त समान लाल सुर्ख आँखे देखकर उन दोनों के हाथ पाऊँ कांपने लगे थे उनकी आँखे भय के मारे बंद हो गयी थी अभी वो सिर्फ वहा खड़े होकर अपने मृत्यु का इंतेज़ार कर रहे थे
लेकिन जब उन्होंने कुछ समय तक उन्हे कुछ महसूस नही हुआ तो वो दोनो हैरान रह गए और जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी
क्योंकि उनका सम्राट इस वक़्त उनके चरणों मे गिरा हुआ था और उनके सामने मायासुर सम्राट के सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके हाथ मे खून से भीगी हुई तलवार थी
जो देखकर केवल वो दोनों ही नही बल्कि हर एक मंत्री जो वहा खड़ा था सभी दंग रह गए थे
हुआ यू की जब विराज अपने सिंहासन से उठकर उनके पास आ रहा था तो जहाँ पर कामिनी और मोहिनी डर से कांप रही थी
तो वही मायासुर के चेहरे पर कमीनी मुस्कान आ गयी थी और जब वो उनके पास पहुँचा तो मायासुर ने अपनी माया का इस्तेमाल कर दिया
और जब विराज ने मायासुर का गला पकड़ना चाहा तो उसका हाथ मायासुर के आर पार निकल गया
जिससे विराज मायासुर की माया को पहचान गया और वो कुछ करता की तभी मायासुर ने गुरु शुक्राचार्य द्वारा मिली हुई तलवार विराज के पीठ मे घुसा दी जिससे वहा खड़े सारे मंत्री हैरान हो गए
और इससे पहले की वो सब कुछ कर पाते की मायासुर के विश्वसनीय सिपाहियों ने सभी मत्रियों के गर्दन पर तलवार रख दी
मंत्री 1 :- मायासुर ये तुमने क्या किया असुर श्रेष्ठ को मार दिया
मायासुर :- असुर श्रेष्ठ और वो भी ये विराज तुम्हारी भूल है मंत्री अब से मे हूँ तुम सबका सम्राट असुरों मे सर्व श्रेष्ठ सर्व शक्तिशाली असुर मायासुर
मंत्री 2 :- मै ये नही मानता मे विद्रोह करूँगा तुम्हारे खिलाफ
मंत्री 2 की बात सुनकर मायासुर कुछ बोला नही बस उसने अपने सिपाही को इशारा किया और मायासुर का इशारा मिलते ही उस सिपाही ने तुरंत ही उस मंत्री की गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी
जिससे वहा पर फिर एक बार शांति छा गयी लेकिन कुछ मंत्री ऐसे थे जिन्हे शायद अभी भी बुद्धि नही आई थी इसीलिए उन्होंने मायासुर के खिलाफ अपनी आवाज उठाई
और इससे पहले की कोई कुछ बोल या कर पाते उससे पहले ही वहा एक आवाज वातावरण मे गूंजने लगी जिसे सुनकर सबका ध्यान दरबार के मुख्य द्वार पर चला गया जहाँ से वो आवाज आई थी
और जब सबने उस तरफ देखा तो सब फिर से दंग रह गए क्योंकि उनके सामने इस स्वयं गुरु शुक्र थे
गुरु शुक्राचार्य :- आज से और अभी से मे असुर कुल गुरु गुरु शुक्राचार्य मायासुर को असुरों का सम्राट घोषित करता हूँ और जो भी सम्राट के विरुद्ध आवाज उठाने की सोची भी तो वो असुर कुल द्रोही माना जायेगा
इतना बोलके गुरु शुक्राचार्य ने असुर सम्राट का मुकुट मायासुर के सर पर रख दिया जिससे न सिर्फ उसे असुर सम्राट की शक्तियां मिली बल्कि उसे उसकी छीनी गयी शक्तियां भी वापस मिल गयी अब पूरे पाताल लोक पर मायासुर का राज्य था
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आज के लिए इतना ही
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इस वक्त मध्य रात्रि के समय में कालविजय आश्रम मे एक अलग ही चमक थी केवल कालविजय ही नही बल्कि कालदृष्टि और कालदिशा आश्रम मे भी वही अलग चमक थी
ये चमक किसी अस्त्र या माया से नही बल्कि आश्रमवासियों के जोश और उत्साह से आई थी आश्रम मे इस वक़्त इतने दीप जल रहे थे की मानो वहा पर की दूर से देखे तो उस की छोटा सूरज लगे
आज तीनों आश्रमों मे दिवाली मनाई जा रही थी अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतिरूप मै रात्रि के घने अंधेरे पर केवल दीपों की रोशनी से उन सबने विजय पा ली थी
जहाँ एक तरफ अच्छाई पक्ष में सप्तस्त्रों की शक्ति को काबू करने के बाद उनकी ताकते 100 गुना अधिक बढ़ गयी थी भद्रा के द्वारा युद्ध किया गया पराक्रम देखकर उसकी ताकतों को देख कर अच्छाई के हर एक योद्धा का जोश उत्साह जुनून पहले से 10 गुना अधिक बढ़ गया था
जो लोग कल तक भद्रा को महागुरु का उत्तराधिकारी होने का अंदेशा लगा रहे थे आज वो सभी को शत प्रतिशत यकीन हो गया था की भद्रा ही उनका अगला महागुरु होगा
तो वही सातों गुरुओं ने कालविजय आश्रम आते ही खुद को महागुरु के सभाग्रुह मै कैद कर दिया था और उनकी इस हरकत से बाहर सभी सैनिक और योध्दा यही समझ रहे थे की जैसे भद्रा को गुरु पृथ्वी का दर्जा देने से पहले सभी बड़ी देर तक विचार विमर्श कर रहे थे
तो वैसे ही आज भी ये सब विचार विमर्श करके भद्रा को महागुरु का स्थान देंगे अभी सब लोग इस बात को सोचकर उत्साहित हो रहे थे की तभी उन्हे आसमान से की अपने तरफ आता दिखा और जब सबने ध्यान से देखा उन्हे देखकर कालविजय आश्रम मे हड़कंप मच गया था
तो वही बुराई के पक्ष यानी पाताल लोक पर भी नज़र डाल लेते है जहाँ पाताल लोक के राज महल के दरबार में इस वक़्त बहुत ही गंभीर माहौल था
जहाँ सिंहासन पर बैठे हुए थे असुर प्रजाति के सम्राट विराज और उसके सामने खड़े थे मायासुर मोहिनी और कामिनी जो की कैदियों की तरह बेड़ियों मे जकड़े हुए थे और उनके आसपास अपने अपने राजगद्दीयों पर बैठे हुए असुर मंत्री थे
विराज :- (क्रोध मे) मायासुर तुम्हारे वजह से हम फिर से एक बार युद्ध हार गए है तुमने ही इस बात की जिम्मेदारी उठाई थी कि तुम इस बार उन अस्त्र धारकों को खतम करके रहोगे लेकिन हुआ क्या तुम न सिर्फ युद्ध हरा दिया बल्कि 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना को भी तुमने मरवा दिया और उसके साथ ही तुमने 10 महाकाय असुर और साथ मे हमारे शक्तिशाली गटों मेसे विध्वंसक को भी खतम करवा दिया आज तुमने ये साबित करवा दिया की मेरा मानना सही था की तुम असुर सेनापति तो का असुर दल मे सामिल होने के भी लायक नही हो
विराज की ये बात सुनकर मायासुर के आँखों में खून उतर आया था उसने असुर सेनापति बनने के लिए कितनी मुश्किले सही थी ये बस वो या गुरु शुक्र ही जानते थे और उसी वजह से वो शुक्राचार्य के खास सैन्य दल का सैन्य नायक भी बना था (इस दल के बारे में आगे पता चलेगा)
मायासुर :- और मैने भी आपसे निवेदन किया था सम्राट की मुझे मेरी शक्तियां वापस दे दीजिये लेकिन आप ही नही माने और ये उसी का परिणाम है
विराज :- (क्रोधित स्वर मे) तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम हमे ज्ञान दो (मायासुर के पास जाते हुए) तुम एक तुच्छ असुर मुझे सिखाओगे की राज कैसे करना है
जब विराज चलते हुए मायासुर के पास बढ़ रहा था तो उसके सारे शरीर से उसकी असुरी ऊर्जा हर तरफ प्रवाहित हो रही थी जिससे कामिनी और मोहिनी दोनों के ही शरीर भय के मारे कपकपि सी आ गयी
और जब वो उनके पास पहुँचा तो उसकी रक्त समान लाल सुर्ख आँखे देखकर उन दोनों के हाथ पाऊँ कांपने लगे थे उनकी आँखे भय के मारे बंद हो गयी थी अभी वो सिर्फ वहा खड़े होकर अपने मृत्यु का इंतेज़ार कर रहे थे
लेकिन जब उन्होंने कुछ समय तक उन्हे कुछ महसूस नही हुआ तो वो दोनो हैरान रह गए और जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी
क्योंकि उनका सम्राट इस वक़्त उनके चरणों मे गिरा हुआ था और उनके सामने मायासुर सम्राट के सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके हाथ मे खून से भीगी हुई तलवार थी
जो देखकर केवल वो दोनों ही नही बल्कि हर एक मंत्री जो वहा खड़ा था सभी दंग रह गए थे
हुआ यू की जब विराज अपने सिंहासन से उठकर उनके पास आ रहा था तो जहाँ पर कामिनी और मोहिनी डर से कांप रही थी
तो वही मायासुर के चेहरे पर कमीनी मुस्कान आ गयी थी और जब वो उनके पास पहुँचा तो मायासुर ने अपनी माया का इस्तेमाल कर दिया
और जब विराज ने मायासुर का गला पकड़ना चाहा तो उसका हाथ मायासुर के आर पार निकल गया
जिससे विराज मायासुर की माया को पहचान गया और वो कुछ करता की तभी मायासुर ने गुरु शुक्राचार्य द्वारा मिली हुई तलवार विराज के पीठ मे घुसा दी जिससे वहा खड़े सारे मंत्री हैरान हो गए
और इससे पहले की वो सब कुछ कर पाते की मायासुर के विश्वसनीय सिपाहियों ने सभी मत्रियों के गर्दन पर तलवार रख दी
मंत्री 1 :- मायासुर ये तुमने क्या किया असुर श्रेष्ठ को मार दिया
मायासुर :- असुर श्रेष्ठ और वो भी ये विराज तुम्हारी भूल है मंत्री अब से मे हूँ तुम सबका सम्राट असुरों मे सर्व श्रेष्ठ सर्व शक्तिशाली असुर मायासुर
मंत्री 2 :- मै ये नही मानता मे विद्रोह करूँगा तुम्हारे खिलाफ
मंत्री 2 की बात सुनकर मायासुर कुछ बोला नही बस उसने अपने सिपाही को इशारा किया और मायासुर का इशारा मिलते ही उस सिपाही ने तुरंत ही उस मंत्री की गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी
जिससे वहा पर फिर एक बार शांति छा गयी लेकिन कुछ मंत्री ऐसे थे जिन्हे शायद अभी भी बुद्धि नही आई थी इसीलिए उन्होंने मायासुर के खिलाफ अपनी आवाज उठाई
और इससे पहले की कोई कुछ बोल या कर पाते उससे पहले ही वहा एक आवाज वातावरण मे गूंजने लगी जिसे सुनकर सबका ध्यान दरबार के मुख्य द्वार पर चला गया जहाँ से वो आवाज आई थी
और जब सबने उस तरफ देखा तो सब फिर से दंग रह गए क्योंकि उनके सामने इस स्वयं गुरु शुक्र थे
गुरु शुक्राचार्य :- आज से और अभी से मे असुर कुल गुरु गुरु शुक्राचार्य मायासुर को असुरों का सम्राट घोषित करता हूँ और जो भी सम्राट के विरुद्ध आवाज उठाने की सोची भी तो वो असुर कुल द्रोही माना जायेगा
इतना बोलके गुरु शुक्राचार्य ने असुर सम्राट का मुकुट मायासुर के सर पर रख दिया जिससे न सिर्फ उसे असुर सम्राट की शक्तियां मिली बल्कि उसे उसकी छीनी गयी शक्तियां भी वापस मिल गयी अब पूरे पाताल लोक पर मायासुर का राज्य था
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आज के लिए इतना ही
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Jabardast updateअध्याय छप्पन
इस वक्त मध्य रात्रि के समय में कालविजय आश्रम मे एक अलग ही चमक थी केवल कालविजय ही नही बल्कि कालदृष्टि और कालदिशा आश्रम मे भी वही अलग चमक थी
ये चमक किसी अस्त्र या माया से नही बल्कि आश्रमवासियों के जोश और उत्साह से आई थी आश्रम मे इस वक़्त इतने दीप जल रहे थे की मानो वहा पर की दूर से देखे तो उस की छोटा सूरज लगे
आज तीनों आश्रमों मे दिवाली मनाई जा रही थी अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतिरूप मै रात्रि के घने अंधेरे पर केवल दीपों की रोशनी से उन सबने विजय पा ली थी
जहाँ एक तरफ अच्छाई पक्ष में सप्तस्त्रों की शक्ति को काबू करने के बाद उनकी ताकते 100 गुना अधिक बढ़ गयी थी भद्रा के द्वारा युद्ध किया गया पराक्रम देखकर उसकी ताकतों को देख कर अच्छाई के हर एक योद्धा का जोश उत्साह जुनून पहले से 10 गुना अधिक बढ़ गया था
जो लोग कल तक भद्रा को महागुरु का उत्तराधिकारी होने का अंदेशा लगा रहे थे आज वो सभी को शत प्रतिशत यकीन हो गया था की भद्रा ही उनका अगला महागुरु होगा
तो वही सातों गुरुओं ने कालविजय आश्रम आते ही खुद को महागुरु के सभाग्रुह मै कैद कर दिया था और उनकी इस हरकत से बाहर सभी सैनिक और योध्दा यही समझ रहे थे की जैसे भद्रा को गुरु पृथ्वी का दर्जा देने से पहले सभी बड़ी देर तक विचार विमर्श कर रहे थे
तो वैसे ही आज भी ये सब विचार विमर्श करके भद्रा को महागुरु का स्थान देंगे अभी सब लोग इस बात को सोचकर उत्साहित हो रहे थे की तभी उन्हे आसमान से की अपने तरफ आता दिखा और जब सबने ध्यान से देखा उन्हे देखकर कालविजय आश्रम मे हड़कंप मच गया था
तो वही बुराई के पक्ष यानी पाताल लोक पर भी नज़र डाल लेते है जहाँ पाताल लोक के राज महल के दरबार में इस वक़्त बहुत ही गंभीर माहौल था
जहाँ सिंहासन पर बैठे हुए थे असुर प्रजाति के सम्राट विराज और उसके सामने खड़े थे मायासुर मोहिनी और कामिनी जो की कैदियों की तरह बेड़ियों मे जकड़े हुए थे और उनके आसपास अपने अपने राजगद्दीयों पर बैठे हुए असुर मंत्री थे
विराज :- (क्रोध मे) मायासुर तुम्हारे वजह से हम फिर से एक बार युद्ध हार गए है तुमने ही इस बात की जिम्मेदारी उठाई थी कि तुम इस बार उन अस्त्र धारकों को खतम करके रहोगे लेकिन हुआ क्या तुम न सिर्फ युद्ध हरा दिया बल्कि 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना को भी तुमने मरवा दिया और उसके साथ ही तुमने 10 महाकाय असुर और साथ मे हमारे शक्तिशाली गटों मेसे विध्वंसक को भी खतम करवा दिया आज तुमने ये साबित करवा दिया की मेरा मानना सही था की तुम असुर सेनापति तो का असुर दल मे सामिल होने के भी लायक नही हो
विराज की ये बात सुनकर मायासुर के आँखों में खून उतर आया था उसने असुर सेनापति बनने के लिए कितनी मुश्किले सही थी ये बस वो या गुरु शुक्र ही जानते थे और उसी वजह से वो शुक्राचार्य के खास सैन्य दल का सैन्य नायक भी बना था (इस दल के बारे में आगे पता चलेगा)
मायासुर :- और मैने भी आपसे निवेदन किया था सम्राट की मुझे मेरी शक्तियां वापस दे दीजिये लेकिन आप ही नही माने और ये उसी का परिणाम है
विराज :- (क्रोधित स्वर मे) तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम हमे ज्ञान दो (मायासुर के पास जाते हुए) तुम एक तुच्छ असुर मुझे सिखाओगे की राज कैसे करना है
जब विराज चलते हुए मायासुर के पास बढ़ रहा था तो उसके सारे शरीर से उसकी असुरी ऊर्जा हर तरफ प्रवाहित हो रही थी जिससे कामिनी और मोहिनी दोनों के ही शरीर भय के मारे कपकपि सी आ गयी
और जब वो उनके पास पहुँचा तो उसकी रक्त समान लाल सुर्ख आँखे देखकर उन दोनों के हाथ पाऊँ कांपने लगे थे उनकी आँखे भय के मारे बंद हो गयी थी अभी वो सिर्फ वहा खड़े होकर अपने मृत्यु का इंतेज़ार कर रहे थे
लेकिन जब उन्होंने कुछ समय तक उन्हे कुछ महसूस नही हुआ तो वो दोनो हैरान रह गए और जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी
क्योंकि उनका सम्राट इस वक़्त उनके चरणों मे गिरा हुआ था और उनके सामने मायासुर सम्राट के सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके हाथ मे खून से भीगी हुई तलवार थी
जो देखकर केवल वो दोनों ही नही बल्कि हर एक मंत्री जो वहा खड़ा था सभी दंग रह गए थे
हुआ यू की जब विराज अपने सिंहासन से उठकर उनके पास आ रहा था तो जहाँ पर कामिनी और मोहिनी डर से कांप रही थी
तो वही मायासुर के चेहरे पर कमीनी मुस्कान आ गयी थी और जब वो उनके पास पहुँचा तो मायासुर ने अपनी माया का इस्तेमाल कर दिया
और जब विराज ने मायासुर का गला पकड़ना चाहा तो उसका हाथ मायासुर के आर पार निकल गया
जिससे विराज मायासुर की माया को पहचान गया और वो कुछ करता की तभी मायासुर ने गुरु शुक्राचार्य द्वारा मिली हुई तलवार विराज के पीठ मे घुसा दी जिससे वहा खड़े सारे मंत्री हैरान हो गए
और इससे पहले की वो सब कुछ कर पाते की मायासुर के विश्वसनीय सिपाहियों ने सभी मत्रियों के गर्दन पर तलवार रख दी
मंत्री 1 :- मायासुर ये तुमने क्या किया असुर श्रेष्ठ को मार दिया
मायासुर :- असुर श्रेष्ठ और वो भी ये विराज तुम्हारी भूल है मंत्री अब से मे हूँ तुम सबका सम्राट असुरों मे सर्व श्रेष्ठ सर्व शक्तिशाली असुर मायासुर
मंत्री 2 :- मै ये नही मानता मे विद्रोह करूँगा तुम्हारे खिलाफ
मंत्री 2 की बात सुनकर मायासुर कुछ बोला नही बस उसने अपने सिपाही को इशारा किया और मायासुर का इशारा मिलते ही उस सिपाही ने तुरंत ही उस मंत्री की गर्दन उसके धड़ से अलग कर दी
जिससे वहा पर फिर एक बार शांति छा गयी लेकिन कुछ मंत्री ऐसे थे जिन्हे शायद अभी भी बुद्धि नही आई थी इसीलिए उन्होंने मायासुर के खिलाफ अपनी आवाज उठाई
और इससे पहले की कोई कुछ बोल या कर पाते उससे पहले ही वहा एक आवाज वातावरण मे गूंजने लगी जिसे सुनकर सबका ध्यान दरबार के मुख्य द्वार पर चला गया जहाँ से वो आवाज आई थी
और जब सबने उस तरफ देखा तो सब फिर से दंग रह गए क्योंकि उनके सामने इस स्वयं गुरु शुक्र थे
गुरु शुक्राचार्य :- आज से और अभी से मे असुर कुल गुरु गुरु शुक्राचार्य मायासुर को असुरों का सम्राट घोषित करता हूँ और जो भी सम्राट के विरुद्ध आवाज उठाने की सोची भी तो वो असुर कुल द्रोही माना जायेगा
इतना बोलके गुरु शुक्राचार्य ने असुर सम्राट का मुकुट मायासुर के सर पर रख दिया जिससे न सिर्फ उसे असुर सम्राट की शक्तियां मिली बल्कि उसे उसकी छीनी गयी शक्तियां भी वापस मिल गयी अब पूरे पाताल लोक पर मायासुर का राज्य था
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आज के लिए इतना ही
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