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Fantasy ब्रह्माराक्षस

dhparikh

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अध्याय सत्तावन

जहाँ एक तरफ मायासुर ने विराज को मारकर पूरे असुर साम्राज्य के साथ साथ ही पूरे पाताल लोक पर अपना राज स्थापित कर लिया था तो वही भद्रा ने भी मायासुर की कैद से अपने माता पिता और संपूर्ण प्रजा को आजाद कर लिया था

और इस वक्त वो सभी कालविजय आश्रम के बाहर पहुँच गए थे वो चाहता तो सबको लेकर सीधे कालविजय आश्रम के अंदर मायावी द्वार के मदद से पहुँच जाता

लेकिन उसने ऐसा न करते हुए सबको आश्रम के द्वार तक ला दिया और इसके पीछे का कारण साफ था कि आश्रम मे अभी सब युद्ध से थक कर आये है और फिर कही इन सब का राक्षसी रूप देखकर हमला न का दे

ये सोचकर भद्रा ने उन सबको आश्रम के बाहर ही लाने का फैसला किया और फिर इसके आगे वो सब हवाई मार्ग से जाने का फैसला किया जिसमे सबसे आगे भद्रा और प्रिया थे तो वही उनके पीछे दमयंती, त्रिलोकेश्वर और शिबू थे और सबसे आखिर बाकी प्रजाजन थे

तो वही जब आश्रम में सबने आसमान से एक साथ इतने सारे लोगों को आते देखकर वहा हड़कंप मच गया सबको लगने लगा की असुरों ने फिर से हमला कर दिया


जिस वजह से वहा सबने अपने धनुष उठा लिए और हमले के लिए सज्ज हो गए और तब तक वहा पर सारे गुरु भी आ गए और अभी वो सभी हमला करते की तभी उन सबको मे दिखने लगा

और मुझे देखते ही महागुरु ने सबको अस्त्र नीचे रखने का आदेश दिया उनका आदेश मानते हुए सबने ठीक वैसा ही किया और जब मेने आश्रम का हाल देखा तो मेने सारी प्रजा को आसमान में ही रुकने का आदेश दिया

और फिर मे प्रिया माँ बाबा और शिबू भी हम पांचो ही नीचे आश्रम मे पहुँचे और मेरे नीचे उतरते ही सारे गुरुओं ने मुझपर सवालों की झड़ी लगा दी तो वही महागुरु केवल बाबा (त्रिलोकेश्वर) को घूरे जा रहे थे

शांति :- भद्रा ये सब कौन है और तुम उन्हे लेकर यहाँ क्यों आये हो आखिर क्या चल रहा है मुझे सब बताओ

शैलेश :- हाँ भद्रा पहले तो तुम उस युद्ध से बिना कुछ बोले निकल गए और अब वापस आ रहे हो और वो भी इन असुरों के साथ

अभी मे कुछ बोलता की तभी महागुरु चलते हुए बाबा के सामने गए और उनके सामने पहुँचते ही महागुरु ने उनके सामने हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और उसके बाद जो उन्होंने कहा वो सुनकर सब दंग रह गए

महागुरु :- ब्रम्हराक्षस प्रजाति के सम्राट और इस कालविजय आश्रम के निर्माता त्रिलोकेश्वर को इस सदी के मायावी महागुरु का प्रणाम स्वीकार करे

महागुरु की बात सुनकर बाबा के चेहरे पर मुस्कान छा गयी जिसके बाद उन्होंने भी अपने हाथ जोड़कर महागुरु को प्रणाम किया तो वही बाबा का परिचय सुनकर वहा सब दंग रह गए जिसके बाद मेने बोलना शुरू किया

मै :- हा सही कहा आपने महागुरु ये ब्रम्हराक्षस प्रजाति के सम्राट है त्रिलोकेश्वर और उनके बगल मे खड़ी स्त्री उनकी पत्नी है दमयंती और यही वो अभियान हौ जिसके लिए मे युद्ध के मैदान से ऐसे जल्दबाजी मे निकल गया था

शांति :- मे अभी भी समझी नही तुम इन्हे बचाने इतने जल्दबाजी मे क्यों निकल गए क्या संबंध है तेरा इनसे

मै :- मेरा इनसे वही संबंध है जो हम सबका इस धरती मा से है मेरा इनसे वही संबंध है जो हर बेटे का होता है अपनी माँ से अपने पिता से मेरा इन सबसे वही नाता है जो एक राजकुमार का होता है उसके राज्य से मे हूँ दमयंती और त्रिलोकेश्वर की संतान ब्रम्हा राक्षस प्रजाति का राजकुमार

मेरी बात सुनकर वहा खड़े हर एक शक्स का हैरानी के मारे मुह खुला का खुला रह गया

तो वही दूसरी तरफ धरती से कोसों मिल दूर किसी अलग ग्रह पर इस वक्त उस ग्रह के सभी निवासी हँसी खुशी से जिंदगी जी रहे थे हर तरफ शांतता और मनमोहक दृश्य और जहाँ देखो वहा पर हरियाली छाई हुई थी


ऐसा भी कह सकते हो की पूरे ब्रम्हांड का सबसे खुश और शांत ग्रह है लेकिन अब ज्यादा देर नही रहने वाला था अभी इस ग्रह पर सब सही से चल रहा था

कि तभी इस ग्रह के सबसे ऊँचे पहाड़ पर अचानक दरारे पड़ने लगी ऐसा लग रहा था कि अब वो पहाड़ किसी भी पल टूटकर बिखर जायेगा की तभी उस पहाड़ से तेज रोशनी निकालने लगी थी जो की लाल रंग की थी और उसके साथ एक अजीब सा धुआ भी निकल रहा था

तो वही जैसे जैसे उस पहाड़ से वो लाल रोशनी और वो धुआ निकल रही थी कि तभी उस पूरे ग्रह पर भूकंप के झटके महसूस होने लगे जिससे उस पूरे ग्रह पर हड़कंप सा मच गया था


हर कोई यहाँ वहा भाग रहा था अपनी जान बचाने के लिए सभी अपने घरों के तरफ भाग रहे थे और अभी वो सभी अपने अपने घरों मे छुप गए थे

की तभी उस जगह पर तेज हवाएं चलने लगी भारी पैमाने में बारिश होने लगी सबको यही लग रहा था कि आज उनके इस ग्रह का अंतिम दिन है प्रलय का समय आ गया है इसीलिए वो सभी अपने अपने इष्ट को स्मरण कर रहे थे उनके गुनाहों के लिए माफी माँग रहे थे

की तभी उस पहाड़ से निकलने वाली लाल रोशनी उस ग्रह के पूरे वातावरण में फैल गयी थी जिसे देखने से ऐसे लग रहा था कि आसमान में की महाभयंकर युद्ध चल रहा हो और उसमे मरने वाले सिपाहियों का रक्त पूरे आसमान में फैल गया था

जो देखकर उस ग्रह के सारे निवासी और ज्यादा घबरा रहे थे की तभी बाहर से किसी की आवाज आने लगी जी सुनकर सभी ग्रह के निवासी जैसे सम्मोहित हो रहे थे

उनके आँखों की पुतलिया पहले से भी ज्यादा बड़ी और काले रंग की हो गयी थी और फिर वो सभी किसी आज्ञाकारी दास समान उस आवाज के कहे अनुसार अपने घरों के द्वार खोल कर उस आवाज की दिशा मे चल पड़े


और जैसे ही वो सारे बाहर निकले तर वैसे ही उस पहाड़ से निकलने वाले धुए ने अपने काबू में कर लिया और उनकी आँखों की पुतलिया अब पूरी तरह से सफेद हो गयी थी और फिर वो सभी चलते हुए आगे बढ़ने लगे

और वो सीधा उस पहाड़ के पास पहुँच गए और जैसे ही सभी उस पहाड़ के पास पहुंचे वैसे ही उस पहाड़ से आवाज आने लगी वो आवाज इतनी कर्कश और भयंकर थी की अगर ये सभी सम्मोहित न होते तो कब के हृदयघात से मर जाते

आवाज :- आओ मेरे दास दसियों आओ आज से तुम्हारे इस वेदस्त ग्रह पर मेरा राज स्थापित होता है और आज से तुम सब मेरे योध्दा हो

उस आवाज के इतने बोलते ही उस पहाड़ से जो लाल रंग की रोशनी निकल रही थी वो और अधिक तीर्व हो गयी और फिर उस रोशनी ने सारे ग्रह वासियों को अपने कब्जे में कर लिया और जब वो रोशनी हटी


तो वहा पर जितने भी लोग थे उन सभी वस्त्र बदल चुके थे और अब वो सारे बिल्कुल किसी क्रूर और घातक सेना समान दिख रहे थे

और ये सब केवल इस वेदस्त ग्रह पर नही बल्कि और 6 ग्रह ऐसे थे जहाँ बिल्कुल ऐसे ही तबाही मचने लगी थी कही पूरे पूरे ग्रह इसके चपेट में आते तो कही केवल उस ग्रह का कोई खास हिस्सा

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आज के लिए इतना ही

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Nice update....
 

VAJRADHIKARI

Hello dosto
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अध्याय अट्ठावनं

इस वक़्त मे अपने माता पिता और शिबू के साथ महागुरु के सभाकक्ष मे मौजूद था जहाँ पर हमारे साथ साथ सारे गुरु और प्रिया भी मौजूद थे जिन सब के चेहरे पर प्रश्नात्मक भाव साफ दिखाई दे रहे थे

वो सब अभी भी मेरे अस्तित्व को लेकर हैरान थे जो देखकर पिताश्री ने सबको मेरी जन्म का रहस्य बता दिया की कैसे सबसे पहले सप्तऋषियों अपने ज्ञान और सप्तस्त्र की शक्तियों के मदद से माता पिता को इंसानी यौनि मै वापस लाने का प्रयास किया था

जिसमे वो असफल हुए लेकिन उस वक़्त वो शक्ति माँ और बाबा के शरीर मे समा गयी थी और जब मेरे जन्म का वक़्त आया तो वो सप्तस्त्र की ऊर्जा उन दोनों मेसे मेरे शरीर में समा गयी

जिसके बाद शत्रुओ से मेरी रक्षा के लिए पिताश्री ने ही मुझे धरती लोक मे इस आश्रम मे भेजा था जैसे जैसे पिताश्री ये सब बता रहे थे वैसे वैसे ही हर किसी के चेहरे के भाव बदल रहे थे और जब पिताश्री ने सब बोलना रोका

तो अचानक मेरे दिमाग मे वही सारे चित्र आने लगे जो मेने उस वक़्त देखे थे जब मे अस्त्रों की शक्ति को काबू कर रहा था और फिर अचानक से मेरे दिमाग मे तेज दर्द होने लगा

ऐसा दर्द जिसे सहन करने की मे जितनी कोशिश करता वो उतना ही ज्यादा बढ़ता और बार बार मेरे आँखों के समान वही चित्र आते जो अस्त्रों को काबू करते वक़्त दिख रहे थे और वो चित्र कुछ और नही

बल्कि जो वेदस्त ग्रह पर जो कुछ हुआ था वही दिख रहा था और साथ मे और भी कुछ अलग अलग ग्रहों के चित्र थे जहाँ की हालत भी बिल्कुल ऐसी ही थी या इसे भी बत्तर हालत थी और ये सब देखकर मेरे दिल और दिमाग दोनों ने भी काम करना बंद कर दिया था

जिसके बाद मेने जैसे तैसे करके अपने दिल और दिमाग दोनों को काबू किया जिससे अब मुझे राहत महसूस होने लगी जिसके बाद जैसे ही मे ठीक हुआ वैसे ही सब चिंता के मारे मेरे पास आने लगे

जिसके बाद जब में सबको इसके बारे में बताया तो वहा 3 लोगों को छोड़के सारे लोगों के चेहरों पर प्रश्नात्मक भाव थे तो वही उन तीनों के चेहरों पर हैरानी साफ साफ दिखाई दे रही थी जो कोई और नही

बल्कि महागुरु पिताश्री और शिबू थे जिनके चेहरों को देखकर ही लग रहा था कि यहाँ जो कुछ भी हो रहा है और जो कुछ मेने देखा उसके बारे में जरूर वो कुछ न कुछ जानते है जो देख कर मे उन तीनों के सामने जा कर खड़ा हो गया

मे :- आप तीनों के चेहरे पर आये भावों को देखकर मुझे ये तो पता चल गया कि आप सभी मेरे इन सपनों के बारे में जानते है लेकिन शायद आप ये बताना नहीं चाहते

पिताजी :- नही भद्रा ऐसी बात नहीं है बल्कि आज नही तो कल तुम्हे सारी सच्चाई पता चलने ही वाली है बस हम इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं की ये सब इतने जल्दी होने वाला है

माँ:- ये आप किस बारे में बात कर रहे स्वामी

महागुरु :- महासुरों के बारे में महारानी जी जो स्वप्न भद्रा को आ रहे है वो स्वप्न नही सच्चाई है अभी ये सब उसे दिख रहा है मतलब दूर किसी ग्रह पर ये सब घटित हो चुका है

प्रिया:- लेकिन इस सब से उन महासुरों का और भद्रा का क्या संबंध है

शिबू :- महासूर ही वो जीव है जो ये सब कर रहे है और इस सब से भद्रा का ये संबंध है कि उन सब को बचाने की जो शक्ति है वो भद्रा के पास है सप्तस्रों की शक्ति और सप्तस्त्र भद्रा को उसकी जिम्मेदारियों से उसके कर्मों से उस अवगत करा रहे है

मै:- लेकिन मुझे पता कैसे चलेगा कि मुझे कब और कैसे उन्हे बचाना है

महागुरु:- इसका जवाब भी तुम्हे सप्तस्त्र ही देंगे सब उनपर छोड़कर तुम आगे आने वाले युद्ध के लिए खुदको सज्ज करलो

मै:- जैसा आप कह महागुरु लेकिन अभी तक मुझे ये बात समझ नही आयी की आप कह रहे थे की आपको उम्मीद नहीं थी कि ये सब इतनी जल्दी होगा इसका अर्थ क्या है

पिताजी :- सालों पहले जब सप्तऋषियों ने महासुरों को कैद किया था तब आकाश गंगा के सारे ग्रह और तारे एक समान रेषा मे थे और उसी पल ही इस बात की भविष्य वाणी हो गयी थी कि भविष्य मे जब फिर से ठीक वैसा ही संजोग होगा तब महासुरों का प्रकोप फिर से एक बार इस संसार पर छायेगा तब उसे रोकने के लिए फिरसे सप्तस्रों के मालिक जन्म लेंगे और उसी वक़्त उन महासुरों का सर्वरूप से विनाश हो पायेगा

महागुरु :- लेकिन वैसा संजोग बनने के लिए अभी करीबन 2000 वर्ष बाकी है तो वो अब कैसे जन्म ले सकते है

शिबू :- ले सकते है बिल्कुल ले सकते है भक्ति की शक्ति से हम सब अंजान नही है

शांति:- लेकिन असुरों मे ऐसा कों है जिसकी भक्ति में इतनी शक्ति है कि जो ये सब कर पाए

शिबू :- आप भूल रहे हैं शांति जी की इस संसार में एक असुर ऐसा है जो संजीवनी और मृत संजीवनी दोनों का ज्ञानी है उसकी भक्ति इतनी प्रबल है की जिसके आगे देवता भी अपने सर झुकाते है

प्रिया :- कौन है वो असुर

पिताजी :- महान असुर कुल गुरु देव आदिदेव के परम भक्त आचार्य शुक्राचार्य

जब पिताजी ने ये कहा तो सब हैरान हो गए क्योंकि सब को लग रहा था कि उन्होंने सन्यास ले लिया है लेकिन अचानक ये बात सुनकर सब दंग रह गए और इससे अब सबको इस बात का अंदाजा हो गया था कि आगे चलकर ये युद्ध कितना घातक हो सकता हैं

मे :- पिताजी मे इतना समझ गया कि ये युद्ध हम सब के महाविध्वंशक युद्ध साबित होगा लेकिन मे ये समझ नहीं पा रहा हूँ की क्या मे तैयार हूँ क्योंकि अस्त्रों की शक्तियों को जागृत करके मुझे 1 दिन भी नही हुआ है

महागुरु :- भद्रा मे तुम्हारी मनोस्थिति समझ सकता हूँ लेकिन तुम इस बात को भी नही झुठला सकते की जब तुम्हारे पास किसी भी अस्त्र की शक्ति नही थी और न ही तुम्हे अपने अस्तित्व का ज्ञान था तब तुमने केवल अपने बुद्धि के बल से पूरे शैतान लोक को अकेले युद्ध मे हरा दिया था और जब तुम्हारे पास केवल एक अस्त्र की शक्ति थी तब तुमने मायासुर समेत सभी महासुरों के प्रतिबिंब पर भारी पड़े थे

शिबू:- याद रखना भद्रा जब तक तुम खुदको काबिल नही समझते तब तक कोई अन्य भी तुम्हे काबिल नहीं समझेगा

मै:- जी मे समझ गया

महागुरु :- ठीक है आज की बातों पर यही रोक देते है रात बहुत हो गयी है बाकी बाते और योजनाएं हम कल सुबह कर लेंगे अभी आप सबको आराम की जरूरत है

महागुरु की बात सुनकर सब कुछ पल के लिए चिंता मुक्त हो कर अपने अपने कक्ष में चले गए थे तो वही मां बाबा और बाकी ब्रामहारक्षसों के लिए भी आश्रम में ही आरामदायक कमरों की व्यवस्था कर दी थी तो वही मे उन सब चित्रों के बारे में सोचकर परेशान हो रहा था तो वही मेरी ये परेशानी से भरा चेहरा वहा मौजूद चार आँखों से छुप न सका

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आज के लिए इतना ही

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krish1152

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nice update
 

parkas

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अध्याय अट्ठावनं

इस वक़्त मे अपने माता पिता और शिबू के साथ महागुरु के सभाकक्ष मे मौजूद था जहाँ पर हमारे साथ साथ सारे गुरु और प्रिया भी मौजूद थे जिन सब के चेहरे पर प्रश्नात्मक भाव साफ दिखाई दे रहे थे

वो सब अभी भी मेरे अस्तित्व को लेकर हैरान थे जो देखकर पिताश्री ने सबको मेरी जन्म का रहस्य बता दिया की कैसे सबसे पहले सप्तऋषियों अपने ज्ञान और सप्तस्त्र की शक्तियों के मदद से माता पिता को इंसानी यौनि मै वापस लाने का प्रयास किया था


जिसमे वो असफल हुए लेकिन उस वक़्त वो शक्ति माँ और बाबा के शरीर मे समा गयी थी और जब मेरे जन्म का वक़्त आया तो वो सप्तस्त्र की ऊर्जा उन दोनों मेसे मेरे शरीर में समा गयी

जिसके बाद शत्रुओ से मेरी रक्षा के लिए पिताश्री ने ही मुझे धरती लोक मे इस आश्रम मे भेजा था जैसे जैसे पिताश्री ये सब बता रहे थे वैसे वैसे ही हर किसी के चेहरे के भाव बदल रहे थे और जब पिताश्री ने सब बोलना रोका

तो अचानक मेरे दिमाग मे वही सारे चित्र आने लगे जो मेने उस वक़्त देखे थे जब मे अस्त्रों की शक्ति को काबू कर रहा था और फिर अचानक से मेरे दिमाग मे तेज दर्द होने लगा

ऐसा दर्द जिसे सहन करने की मे जितनी कोशिश करता वो उतना ही ज्यादा बढ़ता और बार बार मेरे आँखों के समान वही चित्र आते जो अस्त्रों को काबू करते वक़्त दिख रहे थे और वो चित्र कुछ और नही


बल्कि जो वेदस्त ग्रह पर जो कुछ हुआ था वही दिख रहा था और साथ मे और भी कुछ अलग अलग ग्रहों के चित्र थे जहाँ की हालत भी बिल्कुल ऐसी ही थी या इसे भी बत्तर हालत थी और ये सब देखकर मेरे दिल और दिमाग दोनों ने भी काम करना बंद कर दिया था

जिसके बाद मेने जैसे तैसे करके अपने दिल और दिमाग दोनों को काबू किया जिससे अब मुझे राहत महसूस होने लगी जिसके बाद जैसे ही मे ठीक हुआ वैसे ही सब चिंता के मारे मेरे पास आने लगे

जिसके बाद जब में सबको इसके बारे में बताया तो वहा 3 लोगों को छोड़के सारे लोगों के चेहरों पर प्रश्नात्मक भाव थे तो वही उन तीनों के चेहरों पर हैरानी साफ साफ दिखाई दे रही थी जो कोई और नही


बल्कि महागुरु पिताश्री और शिबू थे जिनके चेहरों को देखकर ही लग रहा था कि यहाँ जो कुछ भी हो रहा है और जो कुछ मेने देखा उसके बारे में जरूर वो कुछ न कुछ जानते है जो देख कर मे उन तीनों के सामने जा कर खड़ा हो गया

मे :- आप तीनों के चेहरे पर आये भावों को देखकर मुझे ये तो पता चल गया कि आप सभी मेरे इन सपनों के बारे में जानते है लेकिन शायद आप ये बताना नहीं चाहते

पिताजी :- नही भद्रा ऐसी बात नहीं है बल्कि आज नही तो कल तुम्हे सारी सच्चाई पता चलने ही वाली है बस हम इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं की ये सब इतने जल्दी होने वाला है

माँ:- ये आप किस बारे में बात कर रहे स्वामी

महागुरु :- महासुरों के बारे में महारानी जी जो स्वप्न भद्रा को आ रहे है वो स्वप्न नही सच्चाई है अभी ये सब उसे दिख रहा है मतलब दूर किसी ग्रह पर ये सब घटित हो चुका है

प्रिया:- लेकिन इस सब से उन महासुरों का और भद्रा का क्या संबंध है

शिबू :- महासूर ही वो जीव है जो ये सब कर रहे है और इस सब से भद्रा का ये संबंध है कि उन सब को बचाने की जो शक्ति है वो भद्रा के पास है सप्तस्रों की शक्ति और सप्तस्त्र भद्रा को उसकी जिम्मेदारियों से उसके कर्मों से उस अवगत करा रहे है

मै:- लेकिन मुझे पता कैसे चलेगा कि मुझे कब और कैसे उन्हे बचाना है

महागुरु:- इसका जवाब भी तुम्हे सप्तस्त्र ही देंगे सब उनपर छोड़कर तुम आगे आने वाले युद्ध के लिए खुदको सज्ज करलो

मै:- जैसा आप कह महागुरु लेकिन अभी तक मुझे ये बात समझ नही आयी की आप कह रहे थे की आपको उम्मीद नहीं थी कि ये सब इतनी जल्दी होगा इसका अर्थ क्या है

पिताजी :- सालों पहले जब सप्तऋषियों ने महासुरों को कैद किया था तब आकाश गंगा के सारे ग्रह और तारे एक समान रेषा मे थे और उसी पल ही इस बात की भविष्य वाणी हो गयी थी कि भविष्य मे जब फिर से ठीक वैसा ही संजोग होगा तब महासुरों का प्रकोप फिर से एक बार इस संसार पर छायेगा तब उसे रोकने के लिए फिरसे सप्तस्रों के मालिक जन्म लेंगे और उसी वक़्त उन महासुरों का सर्वरूप से विनाश हो पायेगा

महागुरु :- लेकिन वैसा संजोग बनने के लिए अभी करीबन 2000 वर्ष बाकी है तो वो अब कैसे जन्म ले सकते है

शिबू :- ले सकते है बिल्कुल ले सकते है भक्ति की शक्ति से हम सब अंजान नही है

शांति:- लेकिन असुरों मे ऐसा कों है जिसकी भक्ति में इतनी शक्ति है कि जो ये सब कर पाए

शिबू :- आप भूल रहे हैं शांति जी की इस संसार में एक असुर ऐसा है जो संजीवनी और मृत संजीवनी दोनों का ज्ञानी है उसकी भक्ति इतनी प्रबल है की जिसके आगे देवता भी अपने सर झुकाते है

प्रिया :- कौन है वो असुर

पिताजी :- महान असुर कुल गुरु देव आदिदेव के परम भक्त आचार्य शुक्राचार्य

जब पिताजी ने ये कहा तो सब हैरान हो गए क्योंकि सब को लग रहा था कि उन्होंने सन्यास ले लिया है लेकिन अचानक ये बात सुनकर सब दंग रह गए और इससे अब सबको इस बात का अंदाजा हो गया था कि आगे चलकर ये युद्ध कितना घातक हो सकता हैं

मे :- पिताजी मे इतना समझ गया कि ये युद्ध हम सब के महाविध्वंशक युद्ध साबित होगा लेकिन मे ये समझ नहीं पा रहा हूँ की क्या मे तैयार हूँ क्योंकि अस्त्रों की शक्तियों को जागृत करके मुझे 1 दिन भी नही हुआ है

महागुरु :- भद्रा मे तुम्हारी मनोस्थिति समझ सकता हूँ लेकिन तुम इस बात को भी नही झुठला सकते की जब तुम्हारे पास किसी भी अस्त्र की शक्ति नही थी और न ही तुम्हे अपने अस्तित्व का ज्ञान था तब तुमने केवल अपने बुद्धि के बल से पूरे शैतान लोक को अकेले युद्ध मे हरा दिया था और जब तुम्हारे पास केवल एक अस्त्र की शक्ति थी तब तुमने मायासुर समेत सभी महासुरों के प्रतिबिंब पर भारी पड़े थे

शिबू:- याद रखना भद्रा जब तक तुम खुदको काबिल नही समझते तब तक कोई अन्य भी तुम्हे काबिल नहीं समझेगा

मै:- जी मे समझ गया

महागुरु :- ठीक है आज की बातों पर यही रोक देते है रात बहुत हो गयी है बाकी बाते और योजनाएं हम कल सुबह कर लेंगे अभी आप सबको आराम की जरूरत है

महागुरु की बात सुनकर सब कुछ पल के लिए चिंता मुक्त हो कर अपने अपने कक्ष में चले गए थे तो वही मां बाबा और बाकी ब्रामहारक्षसों के लिए भी आश्रम में ही आरामदायक कमरों की व्यवस्था कर दी थी तो वही मे उन सब चित्रों के बारे में सोचकर परेशान हो रहा था तो वही मेरी ये परेशानी से भरा चेहरा वहा मौजूद चार आँखों से छुप न सका

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आज के लिए इतना ही

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Bahut hi shaandar update diya hai VAJRADHIKARI bhai....
Nice and lovely update....
 

Rusev

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अध्याय अट्ठावनं

इस वक़्त मे अपने माता पिता और शिबू के साथ महागुरु के सभाकक्ष मे मौजूद था जहाँ पर हमारे साथ साथ सारे गुरु और प्रिया भी मौजूद थे जिन सब के चेहरे पर प्रश्नात्मक भाव साफ दिखाई दे रहे थे

वो सब अभी भी मेरे अस्तित्व को लेकर हैरान थे जो देखकर पिताश्री ने सबको मेरी जन्म का रहस्य बता दिया की कैसे सबसे पहले सप्तऋषियों अपने ज्ञान और सप्तस्त्र की शक्तियों के मदद से माता पिता को इंसानी यौनि मै वापस लाने का प्रयास किया था


जिसमे वो असफल हुए लेकिन उस वक़्त वो शक्ति माँ और बाबा के शरीर मे समा गयी थी और जब मेरे जन्म का वक़्त आया तो वो सप्तस्त्र की ऊर्जा उन दोनों मेसे मेरे शरीर में समा गयी

जिसके बाद शत्रुओ से मेरी रक्षा के लिए पिताश्री ने ही मुझे धरती लोक मे इस आश्रम मे भेजा था जैसे जैसे पिताश्री ये सब बता रहे थे वैसे वैसे ही हर किसी के चेहरे के भाव बदल रहे थे और जब पिताश्री ने सब बोलना रोका

तो अचानक मेरे दिमाग मे वही सारे चित्र आने लगे जो मेने उस वक़्त देखे थे जब मे अस्त्रों की शक्ति को काबू कर रहा था और फिर अचानक से मेरे दिमाग मे तेज दर्द होने लगा

ऐसा दर्द जिसे सहन करने की मे जितनी कोशिश करता वो उतना ही ज्यादा बढ़ता और बार बार मेरे आँखों के समान वही चित्र आते जो अस्त्रों को काबू करते वक़्त दिख रहे थे और वो चित्र कुछ और नही


बल्कि जो वेदस्त ग्रह पर जो कुछ हुआ था वही दिख रहा था और साथ मे और भी कुछ अलग अलग ग्रहों के चित्र थे जहाँ की हालत भी बिल्कुल ऐसी ही थी या इसे भी बत्तर हालत थी और ये सब देखकर मेरे दिल और दिमाग दोनों ने भी काम करना बंद कर दिया था

जिसके बाद मेने जैसे तैसे करके अपने दिल और दिमाग दोनों को काबू किया जिससे अब मुझे राहत महसूस होने लगी जिसके बाद जैसे ही मे ठीक हुआ वैसे ही सब चिंता के मारे मेरे पास आने लगे

जिसके बाद जब में सबको इसके बारे में बताया तो वहा 3 लोगों को छोड़के सारे लोगों के चेहरों पर प्रश्नात्मक भाव थे तो वही उन तीनों के चेहरों पर हैरानी साफ साफ दिखाई दे रही थी जो कोई और नही


बल्कि महागुरु पिताश्री और शिबू थे जिनके चेहरों को देखकर ही लग रहा था कि यहाँ जो कुछ भी हो रहा है और जो कुछ मेने देखा उसके बारे में जरूर वो कुछ न कुछ जानते है जो देख कर मे उन तीनों के सामने जा कर खड़ा हो गया

मे :- आप तीनों के चेहरे पर आये भावों को देखकर मुझे ये तो पता चल गया कि आप सभी मेरे इन सपनों के बारे में जानते है लेकिन शायद आप ये बताना नहीं चाहते

पिताजी :- नही भद्रा ऐसी बात नहीं है बल्कि आज नही तो कल तुम्हे सारी सच्चाई पता चलने ही वाली है बस हम इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं की ये सब इतने जल्दी होने वाला है

माँ:- ये आप किस बारे में बात कर रहे स्वामी

महागुरु :- महासुरों के बारे में महारानी जी जो स्वप्न भद्रा को आ रहे है वो स्वप्न नही सच्चाई है अभी ये सब उसे दिख रहा है मतलब दूर किसी ग्रह पर ये सब घटित हो चुका है

प्रिया:- लेकिन इस सब से उन महासुरों का और भद्रा का क्या संबंध है

शिबू :- महासूर ही वो जीव है जो ये सब कर रहे है और इस सब से भद्रा का ये संबंध है कि उन सब को बचाने की जो शक्ति है वो भद्रा के पास है सप्तस्रों की शक्ति और सप्तस्त्र भद्रा को उसकी जिम्मेदारियों से उसके कर्मों से उस अवगत करा रहे है

मै:- लेकिन मुझे पता कैसे चलेगा कि मुझे कब और कैसे उन्हे बचाना है

महागुरु:- इसका जवाब भी तुम्हे सप्तस्त्र ही देंगे सब उनपर छोड़कर तुम आगे आने वाले युद्ध के लिए खुदको सज्ज करलो

मै:- जैसा आप कह महागुरु लेकिन अभी तक मुझे ये बात समझ नही आयी की आप कह रहे थे की आपको उम्मीद नहीं थी कि ये सब इतनी जल्दी होगा इसका अर्थ क्या है

पिताजी :- सालों पहले जब सप्तऋषियों ने महासुरों को कैद किया था तब आकाश गंगा के सारे ग्रह और तारे एक समान रेषा मे थे और उसी पल ही इस बात की भविष्य वाणी हो गयी थी कि भविष्य मे जब फिर से ठीक वैसा ही संजोग होगा तब महासुरों का प्रकोप फिर से एक बार इस संसार पर छायेगा तब उसे रोकने के लिए फिरसे सप्तस्रों के मालिक जन्म लेंगे और उसी वक़्त उन महासुरों का सर्वरूप से विनाश हो पायेगा

महागुरु :- लेकिन वैसा संजोग बनने के लिए अभी करीबन 2000 वर्ष बाकी है तो वो अब कैसे जन्म ले सकते है

शिबू :- ले सकते है बिल्कुल ले सकते है भक्ति की शक्ति से हम सब अंजान नही है

शांति:- लेकिन असुरों मे ऐसा कों है जिसकी भक्ति में इतनी शक्ति है कि जो ये सब कर पाए

शिबू :- आप भूल रहे हैं शांति जी की इस संसार में एक असुर ऐसा है जो संजीवनी और मृत संजीवनी दोनों का ज्ञानी है उसकी भक्ति इतनी प्रबल है की जिसके आगे देवता भी अपने सर झुकाते है

प्रिया :- कौन है वो असुर

पिताजी :- महान असुर कुल गुरु देव आदिदेव के परम भक्त आचार्य शुक्राचार्य

जब पिताजी ने ये कहा तो सब हैरान हो गए क्योंकि सब को लग रहा था कि उन्होंने सन्यास ले लिया है लेकिन अचानक ये बात सुनकर सब दंग रह गए और इससे अब सबको इस बात का अंदाजा हो गया था कि आगे चलकर ये युद्ध कितना घातक हो सकता हैं

मे :- पिताजी मे इतना समझ गया कि ये युद्ध हम सब के महाविध्वंशक युद्ध साबित होगा लेकिन मे ये समझ नहीं पा रहा हूँ की क्या मे तैयार हूँ क्योंकि अस्त्रों की शक्तियों को जागृत करके मुझे 1 दिन भी नही हुआ है

महागुरु :- भद्रा मे तुम्हारी मनोस्थिति समझ सकता हूँ लेकिन तुम इस बात को भी नही झुठला सकते की जब तुम्हारे पास किसी भी अस्त्र की शक्ति नही थी और न ही तुम्हे अपने अस्तित्व का ज्ञान था तब तुमने केवल अपने बुद्धि के बल से पूरे शैतान लोक को अकेले युद्ध मे हरा दिया था और जब तुम्हारे पास केवल एक अस्त्र की शक्ति थी तब तुमने मायासुर समेत सभी महासुरों के प्रतिबिंब पर भारी पड़े थे

शिबू:- याद रखना भद्रा जब तक तुम खुदको काबिल नही समझते तब तक कोई अन्य भी तुम्हे काबिल नहीं समझेगा

मै:- जी मे समझ गया

महागुरु :- ठीक है आज की बातों पर यही रोक देते है रात बहुत हो गयी है बाकी बाते और योजनाएं हम कल सुबह कर लेंगे अभी आप सबको आराम की जरूरत है

महागुरु की बात सुनकर सब कुछ पल के लिए चिंता मुक्त हो कर अपने अपने कक्ष में चले गए थे तो वही मां बाबा और बाकी ब्रामहारक्षसों के लिए भी आश्रम में ही आरामदायक कमरों की व्यवस्था कर दी थी तो वही मे उन सब चित्रों के बारे में सोचकर परेशान हो रहा था तो वही मेरी ये परेशानी से भरा चेहरा वहा मौजूद चार आँखों से छुप न सका

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आज के लिए इतना ही

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Nice update bro
 
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