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जेके:- और इसी डायरी की वज़ह से मैंने केस जल्दी सॉल्व कर लिया और एनएसए (NSA) हेड को लगा कि दिल्ली में मेरे बहुत ज्यादा कॉन्टैक्ट है इसलिए केस का नतीजा इतना जल्दी आ गया। इसी गलतफहमी के साथ वो अपनी एक समस्या मुझ से डिस्कस कर गए।
अपस्यु:- हाहाहाहा.. लेकिन आपमें और मुख्य सचिव में तो बनती नहीं थी ना भैय्या।
जेके:- "हां सो तो है, लेकिन जब वो मदद मांगने आया तो उसका विषय सुनकर मै मदद किए बिना रह नहीं पाया। हुआ ये था कि मायलो ग्रुप के विपक्ष और पक्ष के संबंध को देखकर होम मिनिस्टर थोड़ा सचेत हो गया था। याद है, राजीव मिश्रा की हरकत, उस वक़्त मायलो ग्रुप ने पुरा महाभियोग चला दिया और होम मिनिस्टर को उसके पद से हटाने की वो पूरी तैयारी कर चुका था।"
"बस इसी बात से खिसियाकर, होम मिनिस्टर ने उस बक्शी को ही मायलो ग्रुप के पीछे लगा दिया। बक्शी जब इसके पीछे गया, तभी तो सारी बातों का खुलासा हुआ। मायलो ग्रुप में जिसके पीछे बक्शी की पूरी इन्वेस्टिगेशन चल रही थी, यानी कि नंदनी रघुवंशी, मायलो ग्रुप की मालकिन, वो कभी बक्शी को मिली ही नहीं। बक्शी भी चक्कर खा गया और मेरे पास पता लगाने आया था कि नंदनी रघुवंशी कैसे पर्दे के पीछे सारा खेल रच रही है?
"वहीं से फिर पता चला था कि ये लोकेश, नंदनी रघुवंशी के नाम पर बहुत से कांड किए है और चूंकि नंदनी रघुवंशी को किसी ने देखा नहीं, इसलिए सब इस बात में जुटे रह गए की जिसके मालिक ने आज तक एक भी दस्तावेज सिग्नेचर नहीं किए उसे कैसे फसाया जाए।"
"तभी तो मैंने तुझसे कहा था कि जिस दिन नंदनी इन लोगों को मिलेगी। केवल 2 दिन में ये लोग अपना सभी बड़े टारगेट को खत्म करके नंदनी रघुवंशी पर सारा इल्ज़ाम डालेंगे और खुद बाहर रहकर पुरा कंट्रोल अपने हाथ में रखेंगे।"
अपस्यु:- इस डेढ़ साने का बड़ा टारगेट होम मिनिस्टर ही था। अब समझ में आया मुझे, की इसने देर शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस करके केवल इतना क्यों कहा कि मायलो ग्रुप की मालकिन मिल गई और प्रेस के किसी भी सवाल का उत्तर क्यों नहीं दिया।
जेके:- हां वो तो मैंने भी देखा। अब भी इसके दिमाग ने खिचड़ी पक ही रही है।
अपस्यु:- हां शायद, तभी तो दूसरों को हिंट कर गया कि मां शुरू से पर्दे की पीछे थी, बस अब सामने आ रही है।
जेके:- कर लेने दे अब उसे अपनी बची खुची प्लांनिंग, मैंने बक्शी को नंदनी और उसका पूरा इतिहास खोल दिया है। तू तो बस 15 अगस्त की अब प्लांनिंग कर, बाकी का काम तो बक्शी की टीम कर जाएगी क्योंकि उन्हें अब मामला समझ में आ चुका है और एक्शन प्लान तो उनका बन ही चुका होगा।
अपस्यु:- हां इधर सब संतुलन में ही है समझो। आप दोनो से लेकिन मै काफी नाराज हूं। कहां गए ना तो वो बताए हो और ना ही ये की कब मिशन शुरू कर रहे।
जेके:- हम एक्शन प्लान से बाहर है, बस कुछ इन्वेस्टिगेशन का जिम्मा मिला है।
पल्लवी:- सॉरी ये वादा मैंने किया था और मै तुम दोनों को अपडेट नहीं कर सकी। हम दोनों इस वक़्त रोंचेस्टर सिटी में है और मयो क्लीनिक का इन्वेस्टिगेशन में आए है।
अपस्यु:- ये वही मायो क्लीनिक है ना जिसके लिए कुछ इंडियन डॉक्टर्स ने रिक्वेस्ट की थी और तब नाना जी ने अपने कंपनी में नाम से यह हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर खोला था।
पल्लवी:- लड़का अपने खानदान का पूरा इतिहास समेटे है। हां ये वही मायो क्लीनिक है।
अपस्यु:- ठीक है भाभी, आप दोनो इन्वेस्टिगेशन का मजा लो और हमे अपडेट करते रहना। पता नहीं क्यों मेरा भी दिल कर रहा है आप दोनो के साथ एक बार पूरे एक केस पर काम करने की।
जेके:- चल रे इमोशनलेस प्राणी, लोगों के बीच रहकर ज्यादा इमोशनल होने वाली बीमारी ना पाल।
पल्लवी:- हां अपस्यु जेके ने सही कहा। हम दोनों जल्द ही मिलते है, तबतक तुम दोनो मिलकर एक जूनियर ऐमी या जूनियर अपस्यु का प्रोडक्शन करके रखना। यह हमारा आखरी केस है, इसके बाद हमने फैसला किया है कि फील्ड जॉब छोड़कर नए रिक्रूट को ट्रेंड करेंगे।
ऐमी:- बेरा गर्क हो। ओय भाभी फिर उस फक्र की मौत का क्या जिसके हसीन सपने दोनो मियां बीवी देखते थे, फील्ड में एक्शन करते हुए मरना।
पल्लवी:- हीहीहीही… अब फील्ड तो नसीब ही नहीं होगा। यहां भी तो हमे फील्ड से बाहर रखकर बस इन्वेस्टिगेशन में डाले हैं। केवल इन्वेस्टिगेशन करो और रिपोर्ट दो। चल अब रखती हूं, दोनो अपना ख्याल रखना और हमारे आने तक एक जूनियर को ले आना।
पल्लवी अपनी बात पूरी करके कॉल डिस्कनेक्ट कर दी। और इधर ऐमी को देखकर अपस्यु… "चलो फिर चलते है।"..
ऐमी:- कहां बेबी।
अपस्यु:- सुनी नहीं क्या भाभी ने क्या कहा, उनके लौटने तक मेहनत करके एक बच्चा उनकी गोद में देना है।
ऐमी, अपनी आखें बड़ी करती… "तुम्हे नहीं लगता आंटी के जाने के बाद तुम्हे खुला खजाना मिल गया है।"
अपस्यु, ऐमी को पकड़ने की कोशिश कर ही रहा था कि ठीक उसी वक़्त घर की बेल बजी…. "जाओ देखो आ गई छिपकली, हमारा रोमांस खत्म करने। अगर श्रेया हुई ना तो तुम देख लेना।"..
अपस्यु, दरवाजे के ओर बढ़ते… "और नहीं हुई तो क्या करोगी।"..
ऐमी:- मैंने केवल श्रेया के होने पर क्या होगा वो बताई, बाकी ना होगी तो तुम्हारे लिए अच्छा होगा। अब दरवाजा खोलकर सस्पेंस दूर कर लो।
अपस्यु:- डफर, सीसीटीवी भी नहीं देखती क्या, दरवाजे पर कुसुम है।
अपस्यु दरवाजा खोलने लगा और ऐमी अपने सर पर हाथ मारती दरवाजे के ओर देखने लगी। दरवाजा खुलते ही कुसुम अंदर आयी और दरवाजा बंद करके हॉल में बैठ गई। थोड़ी परेशान दिख रही थी। ऐमी कुसुम के ओर पानी बढ़ाती… "तुम इतनी परेशान क्यों नजर आ रही हो।"
कुसुम:- जब से सुनी हूं, भईया मेरे कजिन है तब से जितनी खुश नहीं हूं, उस से ज्यादा मै परेशान हूं। आप लोग मेरे भाई और पापा को नहीं जानते, वो अच्छे लोग नहीं है।
अपस्यु:- हेय । मैं तो कुसुम को जनता हूं ना, वो तो अच्छी और प्यारी है। तुम चिंता नहीं कर, हमे कुछ नहीं होगा।
कुसुम:- भईया आप समझते क्यों नहीं, सब के सब झल्लाद है। जबतक स्वार्थ है तबतक आपके साथ है, एक बार इनका मतलब निकल गया, फिर ये लोग, लोगों को गायब कर देते है।
कुसुम की चिंता उसकी बातों से साफ झलक रही थी। तकरीबन आधे घंटे तक कुसुम केवल यह समझने की कोशिश में जुटी रही की उसके पिता और भाई पॉवर और पैसों के लिए कुछ भी कर सकते है, और अपस्यु बस इधर उधर की बातों से उसका दिल बहलाता रहा।
अंत में जब वो वहां से जाने लगी तब भी वो गुमसुम थी, एक फीकी मुस्कान के साथ वो अपस्यु को अपना ख्याल रखने के लिए बोलकर चली गई। कुसुम कबका दरवाजे से निकल गई, लेकिन ऐमी अब भी दरवाजे के ओर ही देख रही थी…. "इतनी गहरी सोच, बहुत मासूम है ना वो।"..
ऐमी, तेज श्वांस छोड़ती…. "और बहुत मायूस भी थी, आगे आने वाला वक्त इसके लिए काफी मुश्किल से भड़ा होगा।"…… "ऑफ ओ अपस्यु"..
"ऐमी, उसके लिए तो आने वाला वक्त मुश्किलों से भड़ा है, लेकिन मेरा भारी वक़्त तो ना जाने कब से शुरू है।"…
ऐमी, अपस्यु को मुसकुराते हुई देखी, अपने होंठ से अपस्यु के होंठ को स्पर्श करती…. "हम हर मुश्किल वक़्त को बांट लेंगे। आधा तुम्हारा आधा मेरा।"..
14 अगस्त की सुबह….
प्यार भरे सुकून के पल बांटने के बाद एक खुशनुमा सुबह की शुरवात हो रही थी। ऐमी मीठी अंगड़ाई लेकर जाग रही थी और अपस्यु वहीं पास में सुकून से लेटा हुआ था। उसे खामोशी से यूं सुकून से लेटे देख, ऐमी कुछ सोच कर हंसने लगी।
ऐमी अपने दोनो पाऊं उसके कमर के दोनों ओर करके, उसका गला पकड़कर जोड़-जोड़ से हिलाने लगी…. अपस्यु ने जैसे ही अपनी आखें खोली, उसके होंठ से होंठ लगाकर जोरदार और लंबी किस्स करना शुरू कर दी। आह्हह ! इस से बेहतरीन सुबह की शुरवात भला हो सकती थी क्या? अपस्यु तो मदहोश होकर जागा।
ऐमी जब किस्स को तोड़कर अलग हुई, दोनो की श्वांस चढ़ी हुई और आखों में चमक और हंसती हुई कहने लगी…. "किसी एक दिन मेरी सुबह की शुरवात भी इतनी धमाकेदार हुई थी लेकिन पुरा दिन किसी को मेरा ख्याल नहीं आया। पे बैक टाइम बेबी"
इससे पहले कि अपस्यु उठकर उसे दबोच पता, ऐमी हंसती हुई उसके पास से भागकर दूसरे कमरे में आ गई, और दरवाजा लॉक करके हंसने लगी। ऐमी बिस्तर पर बैठकर हसने लगी और इधर अपस्यु भी उसकी इस अदा पर हंस रहा था।…. कुछ ही देर में दोनों तैयार होकर हॉल में बैठे थे। अपस्यु सोफे से टिका था और ऐमी उसके सीने पर सर रखकर दोनो प्यार भरी बातें कर रहे थे। तभी खटाक की आवाज़ के साथ दरवाजा खुला और सामने आरव था।
आरव की देखकर, ऐमी और अपस्यु के चेहरे खिल गए। आरव दौड़ता हुआ पहुंचा दोनो के बीच और तीनों गले मिलने लगे…. तीनों साथ बैठकर कुछ देर बात करते रहे, फिर आरव वहां से उठकर अपने कमरे चला गया।
ऐमी:- 15 को लौटता ना ये तो, एक दिन पहले चला आया।
अपस्यु:- अब ये तो आरव ही जाने, लेकिन आज सुबह की शुरवात जिस जोरदार रोमांस से हुई थी, उसमे ये ग्रहण लगाने चला आया।
ऐमी:- हीहीहीहीही… बोल दूं क्या चला जाए यहां से।
अपस्यु:- कभी-कभी ना तुम्हारी ये खीखी मेरा सुलगा देती है।
ऐमी अपनी पाचों उंगली अपस्यु के चेहरे पर फिराती…. "रात ही तो अपनी मर्जी का सब किए थे, अब सुबह-सुबह ऐसे चिढ़ जाओगे तो कैसे काम चलेगा। चलो, स्माइल करो।
अपस्यु, ऐमी को खींचकर अपने सीने से टिकते… "होंठ से बस होंठ को छू लो, स्माइल तो ऐसे ही आ जाने है।"..
ऐमी बड़ी अदा से मुस्कुराती हुई…. "और किस्स ना करूं तो बेबी के फेस पर स्माइल नहीं रहेगी क्या?"..
अपस्यु:- स्माइल तो तब भी रहेगी लेकिन जो स्माइल तुम्हारी नजरें ढूंढती है वो ना रहेगी।
ऐमी अपना चेहरा ऊंचा करके धीरे-धीरे ऊपर बढाने लगी। अपस्यु के होटों पर आयी मुस्कान को देखकर ऐमी का चेहरा खिल गया। इंच दर इंच धीरे-धीरे ऐमी के होंठ अपस्यु के होंठ के बिल्कुल करीब आ गए। होंठ से होंठ स्पर्श होने लगे और दिल में कुछ गुदगुदा सा महसूस होने लगा। सौम्य सी छुअन थी होंठ की और दोनो की आखें बंद होने लगी।
गले की तेज खड़ास की आवाज़ के साथ… "इतनी बेख्याली की लोग कब घर में घुसे पता ही ना चले।"..
गले की खराश की आवाज़ के साथ ही दोनो झटक कर अलग हो गए। नंदनी जबतक अपना डायलॉग बोल रही थी, तबतक कुंजल दौर कर अपस्यु से लिपट गई और ऐमी अपना सर पुरा नीचे झुकाए, अंदर ही अंदर हंस रही थी, जिसे अपस्यु भाली-भांति महसूस कर रहा था।
इस से पहले की नंदनी कुछ सवाल-जवाब करती, ऐमी झट से नंदनी के पास पहुंची और उसके पाऊं छूकर कहने लगी…. "मां, मै आपसे आकर मिलती हूं। बस जा ही रही थी और विदाई सेशन चल रहा था हमरा।".. नंदनी, ऐमी को रोकती रह गई लेकिन वो रुकी नहीं।
नंदनी, ऐमी का चुलबुला पन देखकर हसने लगी और हंसती हुई अपने कमरे में चली गई। इधर कुंजल, अपस्यु को बिठाकर बातें करने लगी और अपस्यु का ध्यान स्वास्तिका के खिले हुए चेहरे पर था। वो स्वास्तिका के अंदर चल रहे खुशी को महसूस कर सकता था।
"भईया, सुनो तो आप, मै क्या कह रही हूं।"… कुंजल अपस्यु का ध्यान अपनी ओर खींचती हुई कहने लगीं। अपस्यु, कुंजल को कुछ देर शांत रहने का इशारा करके स्वास्तिका को अपने पास बुलाया…. "15 अगस्त की रात से पहले इन आखों में आशु नहीं आने चाहिए। तुम समझ रही है ना।"..
स्वास्तिका, कुछ बोल तो नहीं पाई लेकिन खुशी से अपना सर "हां" में हिलानें लगी। स्वास्तिका को अपने पास बिठाकर उसके सर को सीने से लगाकर अपस्यु कहने लगा…. "वर्षों से जल रही आग का कल हिसाब हो जाएगा। हम जब कल उन्हें आजमाना शुरू करेंगे, तो वादे अनुसार उनको हम अपने कतरे-कतरे जले अरमानों से अवगत करवा देंगे।"
कुंजल:- मुझे भी अपनी जलन शांत करनी है। क्या मैं भी आपके साथ चल सकती हूं।
स्वास्तिका:- नहीं ! वहां बहुत खतरा है।
अपस्यु:- ये अपनी दीदी और भाभी के बीच रहेगी। जिसके आगे पीछे इसके दो भाई रहेंगे, और सर के ऊपर पुरा सुरक्षित शाया। कल मेरी बहन जाएगी और जरूर जाएगी। लेकिन एक बात याद रखना, 7 साल का नासूर दर्द सीने में है, कोई किसी को मारना मत। मृत्यु उनके लिए मोक्ष होगी और मै किसी को भी मोक्ष नहीं देना चाहता।
"तुम कहां जा रहे हो और क्या होने वाला है, उसमे कितना खतरा है ये सब देखने की जिम्मेदारी तुम्हारी है अपस्यु लेकिन मुझे अपने सभी बच्चे मेरे नजरों के सामने चाहिए, बिना किसी नुकसान के।" … नंदनी पीछे से आकर तीनों के सर पर हाथ फेरती हुई कहने लगी।