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Romance भंवर (पूर्ण)

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Update:-28



"कितना अजीब लगता है ना सब कुछ लूट जाने के बाद अपनी लूटी-पिटी जिंदगी की समीक्षा करना। इसमें कोई दो राय नहीं कि तुम्हारे पापा के वजह से हम सब का ये हाल हुआ"… नंदनी खुद को संतुष्ट करती अपस्यु से अपनी बात कही।

अपस्यु:- इसमें कोई दो राय नहीं। इस पूरे प्रकरण का एक ही दोषी है चन्द्रभान रघुवंशी, जिसे मैं तो कभी इस जीवन में माफ़ नहीं कर सकता।

नंदनी:- वो पिता है तुम्हारे और अब इस दुनिया में भी नहीं रहे। उनके लिए ऐसा नहीं बोलते।

अपस्यु:- किसी सिंडिकेट के सदस्य के लिए मेरे विचार कभी नहीं बदल सकते और ना ही ये नफरत कभी ख़त्म होगी। 10000 की कमाई हो, चार सुखी रोटी और एक छोटी सी छत के नीचे, प्यार से जिंदगी बिताई जा सकती है लेकिन खून से सना हुआ पैसा खाने वाले कभी चैन से नहीं रह सकते। अपने पापा के कृपा से कुछ पैसे हमने भी कहा लिए थे शायद, इसलिए तो आज तक परिवार को तरसते रहे।

नंदनी:- बड़ी बड़ी बातें हां, चलो अब बीती बातों पर मिट्टी डालो, फिर कभी जब हमे रोना होगा तब याद करेंगे इन्हे। अच्छा सुनो सोनू, मुझे अच्छा लगेगा अगर तुम मुझे चाची, काकी या फिर छोटी मां कहो, क्योंकि ये आंटी शब्द मुझे बार-बार उस कल्चर और जगह की याद दिलाती रहेगी जिसे मैं याद नहीं करना चाहती।

अपस्यु, नंदनी के साइड से गले पड़ते… "क्यों मां नहीं कह सकता क्या"… नंदनी उसके गाल को प्यार से सहलाती बस मुकुरती हुई उसे देखी और दोनों चल दिए। इधर आरव अपनी बहन को प्यार से शॉपिंग करवा रहा था, उधर अपस्यु अपनी मां को। कुछ तो कुंजल और नंदनी अपने पसंद की के रही थी और बहुत कुछ ये दोनों भाई अपनी मां और बहन के लिए खरीद रहे थे।

ऐसा लग रहा था दोनों भाई दिल खोलकर पैसा लुटा रहे थे। शॉपिंग के दौरान जब कुंजल और नंदनी दोनों किसी अंडरगार्मेंट शॉप में घुसे तब अपस्यु, आरव के पास आकर पूछने लगा…. "ओ बेवड़े, तूने शराब की बोतल कहीं किसी कोने में इधर उधर तो ना रखी।"

अराव:- सच में मुझे याद नहीं। वैसे भी मुझे पता है आज तू उन्हें अपना फ्लैट तो नहीं ही देखने देगा।

अपस्यु:- साला जुड़वा होने का यही गम होता है, तू कभी-कभी ना मेरा दिमाग पढ़ लेता है।

अराव:- छी इतने बुरे दिन ना आए की तेरा दिमाग पढूं। तेरी सोच मैं जानता हूं कितनी दूर की है इसलिए मैंने कहा। वैसे भी गोबर भड़ा है तेरे दिमाग में… तेरा दिमाग पढ़ने की भी शक्ति किसी को मिले ना तो मैं उसे यहीं कहूंगा.. भाई जिंदगी से ऊब गए हो और बाबा बनने कि ख्वाहिश हो तभी इसका दिमाग पढ़ना।

अपस्यु:- कुत्ता है तू और कुत्ता ही रहेगा। कभी ना सुधर सकता। वैसे मुझे लगता है कि अपनी कुंजल के लिए भी एक फटफटी और फैमिली के लिए एक कार लेे लेनी चाहिए।

अराव:- हां हां क्यों नहीं। अपनी भी फैमिली है तो एक नहीं 2 फ़ैमिली कार होनी चाहिए।

अपस्यु:- ओए पागल अभी एक ही रहने देते हैं दूसरी फिर कभी देखते हैं।

तबतक सामने से दोनों भी अा गए। आते ही कुंजल दोनों भाइयों के बीच खड़ी हो गई और अपनी मां को फोन देती कहने लगी… "एक फोटो मम्मा भाइयों के साथ। आज मैं भी एफबी पर पोस्ट करके सबको बताऊंगी मेरे पास 2 भाई हैं।"

अराव ने वो पुराना सा फोन देखा और उसके अंदर से सिम निकाल कर उसे नीचे फेंक दिया।… "ये क्या किया, मेरा फोन"… कुंजल नकियाते हुई बोलने लगी।

अराव:- ओह सॉरी। अब तो फोन टूट गया, कुछ नहीं किया जा सकता। चलो चलकर नया देख लेते हैं।…

नंदनी दोनों भाई को आखें दिखाती….. "जितना का तुमने शॉपिंग की है ना उतने में कितने गरीब कई महीनों तक खा लेते।"

अराव:- मां एक अपस्यु कम था क्या? प्लीज आपको जो सुनाना है सुना देना। चाहे तो मार भी लेना, लेकिन अभी मैं पैसे नहीं खर्च कर रहा बल्कि अपनी बहन के लिए खुशियां खरीद रहा हूं।

नंदनी:- पैसे के नशे में इतना भी अंधा होने की जरूरत नहीं। यदि तुम्हारा ऐसा ही सोचना है कि पैसों से तुम खुशियां खरीद रहे हो तो मैं यहां से जा रही हूं।

अपस्यु:- आप का गुस्सा जायज है। मैं भी आप की बातों से सहमत हूं लेकिन हर वक़्त की अपनी कहानी होती है मां। अब ये भी तो है ना, कि हम जो भी सामान खरीद रहे हैं उसे बनाने वाला कोई मजदूर ही होगा, क्योंकि इन फैक्ट्री में भी तो कोई ना कोई गरीब ही काम करता होगा। ऊपर से इन वस्तुओं का टैक्स सरकार के पास जाता है तो सरकार फिर उन्ही पैसों को जन-कल्याण के लिए लगाती हैं। यदि हम पैसा अपने घर में रखे रहेंगे तो पैसा बाजारों में नहीं पहुंचेगा और पैसे बाजार में ना पहुंचने के कारन….

नंदनी:- बस…बस…. तुम मुझे अर्थशास्त्र मत सिखाओ। तुम मुझे ये समझाने की कोशिश कर रहे हो कि इतने बड़े मॉल में सामान खरीदने से गरीबों का कल्याण होगा। बहुत ही निम्न स्तर की बातें थी ये।

अपस्यु:- अरे मां सुनो तो, क्यों गुस्सा हो रही हो। बस 1 दिन छूट देदो बस आज के दिन। केवल आज .. आज .. आज…

नंदनी:- ठीक है सिर्फ आज… भविष्य में कुछ भी पैसों का नाजायज करते हुए पकड़े गए तो सोच लेना।

"उफ्फ ! सही है समझने और समझाने का काम इन्हीं दोनो को करने दो"… कुंजल फिर से हंसती हुई अपनी बात कही और हाथ अराव के ओर बढ़ा दी ताली के लिए… दोनों वहां से निकल गए फोन खरीदने और अपस्यु नंदनी को ग्राउंड फ्लोर पर बेंज शोरूम में लेे आया।

"अब तुम ये मत कहना कि यहां हम कार खरीदने आए हैं"… नंदनी अपनी आखें दिखाती हुई कहने लगी। अपस्यु ने अपने दोनो कान पकड़े और मुंह से बस "प्लीज, प्लीज" करने लगा। एक बच्चे कि जिद और हट के आगे नंदनी को भी हार मानना ही परा, और शोरूम से उठ गई बीएमडब्लू 1 सीरीज की कार।

तबतक अराव और कुंजल भी वहां पहुंच चुके थे। कुंजल सामने नई बीएमडब्लू देख कर कभी इधर उछल रही थी तो कभी उधर। नंदनी उसे देख मुस्कुराती हुई कहने लगी… "ये तो आज पागल हो गई है और तुम सब भी.. अब घर चलो, शॉपिंग खत्म हो गई।"

अपस्यु:- मां आप इनके ड्राइवर के साथ जाओ, मैं कागजी कार्यवाही पूरा करके आया। और ये दोनों अभी पीछे से दूसरी कार में जा रहे है।

अपस्यु ने सभी को भेज दिया और वहां पूरे पेपर वर्क खत्म करने के बाद, एक नई स्कूटी खरीदा और सीधा अपार्टमेंट पहुंचा। वहां कुंजल और अराव पहले से ही पहुंचे हुए थे और अपार्टमेंट के मुख्य द्वार पर ही इंतजार कर रहे थे।

"ये किसकी स्कूटी उठा लाया"… कुंजल, अपस्यु को दूर से ही देखती हुई पूछने लगी…. "ध्यान से देख, सब समझ में आएगा"… अराव ने उसके सर पर पीछे से हाथ मारते हुए बोला…

कुंजल:- ये तो नई स्कूटी है?
अराव:- ये नई स्कूटी नहीं तुम्हारी नई फटफटी है।

"सच में" कुंजल उत्सुकतावश पूछी और अराव ने सर हिला कर हां में जवाब दिया। वो खुशी से उछल पड़ी और अराव के गले लग गई। गले तो लगी लेकिन साथ में आशु भी अा गए।

अराव:- तुझे क्या हुआ.. रोने क्यों लगी।
कुंजल:- जब मैं सड़क पर चलती थी तब अपने अतीत को याद करके बस यही सोचती कि आज मेरे पापा होते तो मैं ये सब करती वो सब करती।… हां जानती हूं थोड़ी स्वार्थी हो रही हूं.. लेकिन मेरे तो एक भी अरमान कभी बाहर ही नहीं आए बस जिंदगी ही पीस कर रह गई।
अराव:- बस कर पागल मुझे भी रुला रही है। और हां हम अपने सारे अरमान पूरा करेंगे बस दो काम करना पहले तो अगर रोना हो तो बाथरूम में चली जाना..
"और दूसरी"… कुंजल हंसती हुई अपने आशु पोछती अलग हुई।
अपस्यु:- दूसरी ये की मां को कभी पता नहीं चलने देना। मैंने हिटलर शब्द नहीं कहे जो ये जरूर कहता।
अराव:- अब कौन किसका दिमाग पढ़ रहा है।
अपस्यु:- मैं कोई चमत्कारी बाबा हूं क्या जो तेरे मन की बात पढ़ लूंगा। बस तेरी जुबान और भाषा पर मुझे पक्का यकीन है।
कुंजल:- भाई मेरी स्कूटी से उतरो। मुझे पसंद नहीं कोई मेरी निजी चीज को हाथ लगाए।
अपस्यु:- ओ मैडम जी, नई गाड़ी को लाने और उस गाड़ी से ड्राइवर को उतारने की बक्शीस लगती है। वो पेड करी और लेे जाई अपनी स्कूटी..
"ये लो अपना मेहनताना मिस्टर ड्राइवर"… कुंजल 2 रुपए का सिक्का उसे निकला कर देने लगी जिसे देख अराव जोड़-जोड़ से हंसने लगा।

तभी हॉर्न बजाती हुई उस सड़क पर बेंज दिखी। यूं तो थी वो दिल्ली ही, लेकिन कुछ गाड़ियों का रूतवा ही अलग होता है, लोग मुड़ कर देखने को विवश हो ही जाते हैं। फिर अंदर बैठा आदमी भले ही भिखारी के कपड़े क्यों ना पहने हो, लोगों को उसमे भी फैशन नजर अा ही जाता है।

सब पैसे की माया है और अपस्यु ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी इस माया को खुलकर बरसाने में। शायद उसके मन में भी कहीं ना कहीं ये बात बैठी थी कि कुंजल और मां ये सब भौतिक सुख सुविधा की योग्यता शुरू से रखती थी बस वक़्त और हालत ने उन्हें दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबुर कर दिया।
nice update .apni behen aur chachi ke liye bahut paise kharch kiye dono bhai ne ...hero ke chacha aur uske bete ko jarur kisi saajish ke chalte maara gaya hoga ..
 
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Update:-31



अपस्यु कैंटीन के गेट से, ये सारा तमाशा होते देख रहा था। कुंजल जब अपना गुस्सा दिखाई तो अपस्यु सामने देख कर इतना ही सोचा… "एक तरफ प्यार तो दूसरी तरफ परिवार। तू तो पीस गया बेटा।

क्या तेवर थे। लावणी तो बिल्कुल दुबक ही गई। अराव को कमर से पकड़कर खींचना पड़ा वरना कुंजल तो आज भीड़ ही गई थी। साची को भी लगा शायद वो इतने लोगों के बीच कुछ ज्यादा ही बोल गई, इसलिए वो लावणी को लेकर चुपचाप वहां से निकल गई।

"बस रे कितना गुस्सा करेगी"…. अराव उसे खींचकर पार्किंग लाते हुए बोला।
"हद है मोनू, बिना कोई बात समझे वो कैसे ओवर्रिएक्ट कर रही थी। तेरा खून नहीं खौला क्या"… कुंजल अभी भी अपनी भड़ास निकलती कहने लगी।

अराव ने अपने पॉकेट से सिगरेट निकालकर जलाते हुए…. "तो तू उसे सफाई में क्या कहती। कैसे उसकी बहन अचानक से चली आई, कैसे समझाएगी"..

कुंजल, अराव के हाथ से सिगरेट लेकर एक कस खींचती…. "ठीक है तेरी बात, लेकिन देखा नहीं कितनी बदतमीजी कर रही थी"…
"हां बदतमीजी की तो है उसने, लेकिन अपस्यु की खातिर इग्नोर मार"… अराव एक कस खींचते बोला…
"चल क्लास का टाइम हो गया, चलते हैं, समझने दे उन लैला मजनू को अपना मैटर। लेकिन एक बात तो तय रहा उनका पैचअप भी हुआ ना तो भी आज के बात का बदला तो मैं लेकर रहूंगी"…. कुंजल के चेहरे पर कुटिल मुस्कान और आखों में शरारत साफ दिख रही थी।

अपस्यु के लिए भी दूसरा दिन बस चूहे बिल्ली के खेल से ज्यादा कुछ नहीं था, उल्टा कैंटीन में हुई घटना के बाद मामला अब और उलझ चुका था क्योंकि कुंजल भी खफा हो चुकी थी।

रात के करीब 2 बज रहे होंगे… घर में सब सोए हुए थे… अराव चुपचाप उठा और सभी सिक्योरिटी को भेदकर लावणी के घर में घुस चुका था। लावणी के दरवाजे के पास खड़े होकर उसने पूरे दरवाजे को देखा… "हाहहा, आधुनिक ताले.. शुक्र है मेहनत बच गई। छिटकिनी होती तो मेहनत बढ़ जाती"… किसी चोर कि भांति वो दरवाजे का ताला खोल कर चुपचाप कमरे में प्रवेश किया।

अंधेरा कमरा और एसी लगभग 18 डिग्री पर। अराव ने मोबाइल का फ़्लैश जलाकर, लाइट का स्विच ढूंढा और पहले लाइट ऑन किया, फिर एसी को बंद करके एक कोने में खड़ा हो गया।

लावणी को जब गर्मी लगीं तब सबसे पहले उसने अपने ऊपर के चादर को हटा दिया….. उसे चादर हटाते देख अराव के आखों में चमक अा गई थी लेकिन…… "धत… ये पूरे कपड़े में कौन सोता है। फिल्मों की हेरोइन कितना सेक्सी कपड़े पहने सोती है… कोई-कोई तो टूपीस में ही सोई रहती हैं। इसको देखो, बच्चों की तरह एबीसीडी वाले कुर्ता पजामा पहन कर सोई है। क्लीवेज तक ना दिख रहा।.. उफ्फ ! लेकिन क्या लग रही है"..…

अराव अपने ख्यालों में ही था और लावणी अपनी आखें मीजती उठकर बैठ गई… "ओह इतनी गर्मी क्यों लग रही है।".. नींद में ही बड़बड़ाते वो उठी और पास पड़े पानी के बॉटल को उठाकर पानी पीने लगी। बॉटल मुंह से लगाए 2 घूंट पानी अंदर ही गया था कि जली लाइट देखकर वो सोच में पड़ गई।

अभी सोंच, कुछ निष्कर्ष पर पहुंचती उससे पहले ही कोने में खड़ा अराव दिख गया। वो पानी पीते-पीते सरक गई। अराव उसके पास पहुंच कर… "पानी तो आराम से पी लिया करो"

"तुम इस वक़्त मेरे कमरे में क्या कर रहे हो".. और चादर को सीने से लगा कर खुद को ढकने लगी…

"एक तो पहले से पूरे बदन पर चादर की तरह कपड़े चढ़ा कर सोई हो, ऊपर से खुद को चादर लेेकर ढक रही। डरो मत, मैं यहां कोई रेप नहीं करने आया"… अराव एसी चलाते हुए बोला..

"प्लीज यहां से जाओ, देखो मेरी धड़कने कितनी बढ़ी हुई है"… लावणी खुद को समेट कर मिन्नतें करने लगी।

अराव उछलकर उसके पास बिस्तर पर बैठ गया और उसके सीने पर हाथ रखकर…. "हां यार धड़कने तो बढ़ी हुई है"..

लावणी दूर हटती…. "ये क्या कर रहे हो"..

अराव:- तुमने ही धड़कन देखने कही, हैं मैं देख रहा था।

लावणी:- अराव प्लीज परेशान नहीं करो ना, डर से मैं कहीं मार ना जाऊं।

अराव:- तुम सच बताना, अभी मुझ से डर लगा रहा है या ये डर है कि कहीं किसी ने देख लिया तो तुम्हारी बैंड ना बज जाए।

लावणी, थोड़ा निश्चिंत होती… "दोनों से"..

अराव:- ठीक है, यदि ऐसी बात है तो मेरे कुछ सवालों के जवाब देदो मैं चला जाता हूं।

लावणी:- पाऊं कहां है तुम्हारे कहो तो वो पकड़ लूं, लेकिन प्लीज अभी चले जाओ। कॉलेज में कल क्लास भले छोड़ दुं लेकिन तुम्हारे सभी सवालों के जवाब जरूर दूंगी। प्लीज अब मान जाओ मेरी बात। प्लीज प्लीज प्लीज….

अराव:- ठीक है मैं जा रहा हूं लेकिन पहले यहां आकर खड़ी हो जाओ।

"मानने वाले तो हो नहीं, बेकार में बहस करने का कोई मतलब नहीं, लो खड़ी हो गई"… थोड़े गुस्से के भाव उसके चेहरे पर थे। लेकिन अगले ही पल उसकी आंखें बिल्कुल बड़ी होते चली गई और मुंह से "ऊऊ… ऊऊऊ" निकालने लगा। इधर लावणी जैसे ही सामने खड़ी हुई, अराव ने उसके कमर में हाथ डाला और होंठ से होंठ लगा कर चंद सेकंड का एक चुम्बन लिया और उससे अलग होकर खिड़की के रास्ते बाहर चल दिया।

अचंभित आखें और स्थूल परा बदन। लगभग 1 मिनट बाद वो अपनी जगह से हिली। चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी और होंठ पर … "पागल कहीं का"..

सुबह का वक़्त था.. लावणी ठीक वैसे ही फुदक रही थी जैसे 3 दिन पहले साची कर रही थीं। चाल-ढाल और चेहरे की रंगत सब बदला हुए था। साची उसे देख कर थोड़ा हैरान हो गई और उसका हाथ पकड़ कर कमरे में लेे जाती हुई…

साची:- क्या हुआ है तुझे..
लावणी:- मुझे क्या होगा। ठीक तो हूं…
साची:- अच्छा ! और ये जो तू इतनी चहक रही है, गीत गुनगुना रही है उसका क्या…
लावणी, साची के कंधे को पकड़कर घूमती हुई कहने लगी… तो तुम भी मेरे साथ गाओ ना दीदी….
साची:- हट पहली, चल कॉलेज।

वो लावणी को पहली बार इतनी खुश देख रही थी लेकिन अगले ही पल जब ख्याल आया की कहीं ये उन दोनों भाइयों के चंगुल में तो नहीं फसी तब उसका दिमाग ठनक गया।

इधर रघुवंशी परिवार में सुबह का वक़्त था। सभी नॉर्मल ही तैयार हो रहे थे.. लेकिन जब तीनों खाने के टेबल पर इकट्ठा हुए तब कुंजल और अपस्यु डायनिंग टेबल पर ताल देते हुए गाने लगे… "तेरे दर पर सनम चले आये.. तू ना आया तो हम चले आये।"

अराव:- कोई सिंगिंग कॉम्पिटिशन है क्या.. दोनों बहुत बढ़िया गा रहे हो।

उधर से नंदनी टेबल पर प्लेट लगाती… "बेटा, गाने का मतलब भी बहुत शानदार है"…

अपस्यु और कुंजल दोनों एक साथ…. "बताओ .. बताओ… बताओ.. इस गाने का शानदार मतलब भी बताओ".…

नंदनी अपनी हंसी छिपाती हुई… वहीं अगर कोई तुम्हारे यहां ना अा पाए तो तुम उनके यहां पहुंच जाओ…

मतलब समझ में आते ही अराव ने जो गर्दन झुकाकर खाना शुरू किया, फिर वो घर के बाहर निकालने तक झुका ही रहा लेकिन ये दोनों भाई-बहन लगातार ताल देते हुए गाते रहे…. "तेरे दर पर सनम चले आये.. तू ना आया तो हम चले आये।"

अराव जल्दी खाना खत्म करके कॉलेज भगा। कुंजल भी कॉलेज के लिए निकली लेकिन उसे लंबोर्गिनी इतनी पसंद आ गई, की आज भी वो कॉलेज उसी कार से चली गई। अपस्यु थोड़ी देर नंदनी से बात करने के बाद, अपने पास पड़े सभी दस्तावेज नंदनी को सौंप दिया।

नंदनी उन पेपर्स को फिर से अपस्यु को सौंपकर सारे बॉन्ड्स को रुपए में बदलकर पैसा बैंक में जमा करवाने के लिए बोल दी। मां बेटे के बीच थोड़ी घरेलू बात-चित के बाद अपस्यु भी कॉलेज के लिए निकल गया। रास्ते में बस एक ही ख्याल अा रहा था… "देखते हैं आज का तेवर कैसा है"..

पहली क्लास समाप्त हो चुकी थी। अपस्यु और साची ने यूं तो आज एक कवि की भावना के ऊपर विश्लेषण सुना था लेकिन अपने अंदर की भावनाओ का दोनों विश्लेषण नहीं कर पा रहे थे। क्लास समाप्त होते ही आज अपस्यु ने भी साची का कोई पीछा नहीं किया और सीधा कैंटीन चला गया।

वहां कुंजल अपने किसी दोस्त के साथ बैठी थी लेकिन अराव वहां नहीं था।अपस्यु उनके बीच बैठते हुए… "ये अराव कहां है"..
कुंजल:- जिसके दर गया था, उसे लेकर दर-दर भटकने गया है।..
अपस्यु:- ओह ! और ये भाई साहब कौन है..

कुंजल:- मनोज उपाध्याय, मेरा अच्छा दोस्त और क्लासमेट।

अपस्यु:- हेल्लो मनोज…

मनोज उसे घूरते हुए…. "क्या तुमने मुझे सचमुच नहीं पहचाना, मैं वहीं हूं जिसने तुम्हे उस दिन रोका था, जब तुम कुंजल के साथ बदतमीजी कर रहे थे"..
कुंजल:- मनोज .. नहीं।
अपस्यु:- एक मिनट कुंजल.. इसे पूरा बोलने दे.... हां जी मनोज जी.. आगे..
मनोज:- आगे क्या, कुछ नहीं..
अपस्यु:- तुम्हारा वो ग्रुप ना दिख रहा है जो उस दिन खड़ा था…
मनोज:- वो सब अपने-अपने ज़िन्दगी में व्यस्त हैं।

अपस्यु:- मनोज अब मैं जो कहूंगा वो अपनी बहन को कहूंगा, इसलिए बात को तुम दिल पर मत लेना। कुंजल, बेटा ऐसे लोगों से दोस्ती करने से अच्छा है कि एक सांप पाल लो। केवल दोस्त कह देने से दोस्त हो जाते हैं क्या?
मनोज:- क्या मतलब है तुम्हारा..
अपस्यु:- सीईईईईईईईईई...…. चुप। पहले ही कहा ना अपनी बहन से बात कर रहा हूं।
कुंजल:- क्या हुआ सोनू, ये लड़का है इसलिए कोई परेशानी है क्या..

अपस्यु:- नही रे पागल… तू बस मेरी बात सुन। यही वो तेरे दोस्त है ना जिसके सामने से मैं तुम्हे ले गया और इसकी इतनी हिम्मत तक ना हुई कि बचाने कि कोशिश भी करे। हम 2 थे, ये 5 फिर भी सब तमाशा देखते रहे। पुलिस तक में किसी ने कंपलेंट नहीं की। मुझे बस इतना ही कहना था। बाकी तुझ पर छोड़ा।

कुंजल:- देखो मनोज हम क्लासमेट है और तुम शायद गलत टेबल पर बैठ गए हो। इसलिए प्लीज कहीं और चले जाओ। लव यू भाई..
अपस्यु:- लव यू टू सिस…
कुंजल:- बार बार दरवाजे पर क्यों देख रहे हो, बात ना बनी तो मैं बात करूं क्या तुम्हारे लिए।… लो 100 साल जिएगी.. अभी बात ही कर रहे थे कि सामने से चली भी अाई।

साची लावणी को ढूंढ़ती हुई अा रही थी। अाकर सीधा वो दोनो भाई-बहन के बीच बैठ गई…. "लावणी कहां है".. टेढ़े मुंह सवाल पूछती

कुंजल:- कौन लावणी..

ऐसा लग रहा था सास बहू के सीरियल वाला एक्सप्रेशन साची में घुस गया हो। कुंजल के सवाल पर वो ठीक वैसे ही गर्दन झटक कर कुंजल को देखी जैसे किसी सीन को इंटेंस बनाने के लिए सीरियल का कोई कैरेक्टर झटकता है, बस एक्शन रिप्ले की कमी रह गई।

साची:- मैंने पूछा लावणी कहां है।

अपस्यु:- हमे नहीं पता।

साची:- अराव कहां है।

कुंजल:- हमारे माथे पर क्या इंक्वायरी काउंटर लिखा है। मैं जा रही हूं भाई। … और कुंजल इतना कहकर साची को घूरती हुई वहां से चली गई।

यूं तो कैंटीन में लोगों की आवाज़ अा रही थी लेकिन साची और अपस्यु के बीच पूरी खामोशी। दोनों बस खामोश, चेहरे को अलग-अलग दिशा में घुमाए चुप चाप वहीं बैठे हुए थे।
nice update ..crazy boy ne apna kaam kar diya par saachi ko akal nahi hai kya bina jaan pehechan ke apni personal baate kisiko bhi bata diya ...hero ne kunjal ko sahi salaah di ki manoj jaise dosto se door rahe ...
 
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अपस्यु देर रात 2 बजे बालकनी से आखरी बार फिर वो झरोखा एक बार देखा… उसके चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान थी और चंद दिल के अल्फ़ाज़…


रूप आकर्षण में जो मोह गया मन
सो प्रेम परिभाषित कहां से होय ।
हृदय संग जो प्रीत का मेल भय

फिर रूप मोह रहा ना कोय ।।


सुबह खामोश थी और अपस्यु के चेहरे पर खुशी की मुस्कान। लगभग 4 बजे अपस्यु ने आरव और कुंजल को उठाया। कुंजल नकीयाते उठी, आखें बंद और शरीर मारा हुआ। जबरदस्ती उठाने का नतीजा यह हुआ कि कुंजल कभी इस दीवार पर टिक कर सोती तो कभी उस दीवार पर। सुबह 4 से 6 के वर्कआउट में वो 12 बार सोई होगी। 8 बार पानी पी होगी और 5-6 बार बाथरूम गई।

इतनी मेहनत करनी होगी उसने कभी सोचा ना था। तीनों जल्दी से तैयार हो गए कॉलेज के लिए। आरव और कुंजल कार से निकले। अपस्यु भी पीछे से निकालने ही वाला था कि उसे नंदनी ने रोक लिया।

नंदनी उसे रोकती उसके चेहरे को गौर से देखने लगी…. "हल्का हल्का निशान अब भी है"… "कल तक ठीक हो जाएगा मां" .. और उनके गालों पे किस करता हुए कॉलेज को निकला।

साहित्य की पहली क्लास और अपस्यु के पसंदीदा कवि प्रेमचंद जी की चर्चा चल रही थी। अपस्यु उसकी एक कविता में खोता चला गया। तभी उसके इस प्यारे से विषय में खलल डालती साची ने एक छोटा सा नोट लिख कर बढ़ा दिया… "तुमसे बात करनी है"… अपस्यु ने उस पत्री को एक नजर देखा और फिर जवाब में लिख दिया… "ठीक है क्लास के बाद".. इतना लिख, फिर से अपस्यु कवि की उस कल्पना में डूब गया जिसका वर्णन इस वक़्त प्रोफेसर कर रही थी।

अपस्यु बहुत ही प्रभावित हुआ अपने प्रोफेसर से और जैसे ही क्लास समाप्त हुई वो भागकर उनके पास पहुंचा…. "नमस्ते गुरुवी, मैं अपस्यु हूं"

प्रोफेसर:- तुम वहीं नटखट बालक हो ना जो मेरी कक्षा में दूसरा या तीसरा दिन उपस्थित है?
अपस्यु:- क्षमा कीजिए गुरूवी। लेकिन साहित्य के ऊपर आप को सुनने के बाद अब मुझे अफसोस हो रहा है कि मैं आप की कक्षा कैसे छोड़ सकता हूं।
प्रोफेसर:- मुझे रिझाने कि कोशिश की जा रही है क्यों..
अपस्यु:- नहीं मैंने सरल तरीके से अपनी बात रखी है।
प्रोफेसर:- अच्छा है। कक्षा में अब से उपस्थित रहना।
अपस्यु:- जी गुरूवी। अब आज्ञा चाहूंगा।..

प्रभावित हुए प्रोफेसर से बात करने के बाद अपस्यु, साची से मिलने कैंटीन के ओर चला जा रहा था, तभी रास्ते में ही साची उसे रोकती हुई कहने लगी… "कैंटीन में बहुत भीड़ है, कहीं और चलते है।"

अपस्यु मुस्कुराते हुए प्रतिक्रिया दिया और प्यार से पूछा… "तो कहां चलना है।".... साची बिना कोई भाव प्रकट किए हुए उसे कॉलेज के बाहर उसी कैंटीन में चलने के लिए बोली जहां ये दोनों पहली मुलाकात में रुके थे।

अपस्यु और साची दोनों आमने-सामने बैठे थे। साची का चेहरा जहां कोई भाव व्यक्त नहीं कर रहा था वहीं अपस्यु का हंसमुख चेहरा था… कुछ देर के खमशी के बाद… "तो…"

अपस्यु:- जी मै समझा नहीं।
साची:- तुम्हे कुछ नहीं कहना।
अपस्यु:- मुझे किस विषय में क्या कहना था साची।
साची:- वही जो तुमने किया।
अपस्यु:- मुझे याद नहीं अा रहा मैंने क्या किया? जरा प्रकाश तो डाल दीजिए विषय पर।
साची:- वहीं मुझसे झूट क्यों बोला?
अपस्यु:- मुझे नहीं लगता कि मैंने कोई झूट तुमसे कहा होगा। क्योंकि झूट कहने की कोई तो वजह चाहिए। लेकिन यदि तुम्हे ऐसा लगता है कि मैंने कोई झूट बोला है तो अभी बताओ।
साची:- झूठ नहीं कहा कि तुम अनाथ हो।
अपस्यु:- पहली बात तो ये की मैंने ऐसा कभी नही कहा।… (साची बीच में कुछ बोलने कि कोशिश की, तब अपस्यु अपना हाथ दिखाते) .. पहले पूरा सुनो.. मैंने कभी ऐसा नहीं कहा लेकिन यदि तुमने ऐसा सुना भी होगा तो भी ये सच था, उस समय मैं अनाथ था अब नहीं हूं।
साची:- तो क्या रातों रात आसमन से सब उतर आए?
अपस्यु:- मैंने जवाब विनम्र होकर और शालीनता के साथ दी है। मैं चाहूंगा तुम भी शब्दों कि मर्यादा को उल्लांघित ना करो। फिर से प्रश्न पूछो।
साची:- जब तुम अनाथ थे तो तुम्हारा परिवार कहां से आया।
अपस्यु:- मेरे और मेरे अंकल के बीच कुछ आंतरिक मामला था सुलझ गया सो अब मेरे पास मेरा परिवार है। यहां पर ना मैं झूटा हूं और ना वो जिसने तुम्हे ये बताया। बस तुम बेवकूफ हो। और कोई शंका है मन में।
साची:- अच्छा तो मैं बेवकूफ हो गई और तुम झूठे नहीं हो। तो फिर ये बताओ कि तुम्हारी आमदनी जब 50-60 हजार है महीने की तो फिर वो करोड़ों की कार कहां से आई।
अपस्यु:- एक बात बताओ तुम्हारे बेईमान बाप और चाचा के पास इतने पैसे कहां से आते हैं जो हर महीने अपने बेटो को $10K USD भेजते है।
साची:- how dare you..

अपस्यु:- अपनी जगह बैठ जाओ, क्योंकि ना तो मुझ से तेज चिल्ला सकती हो और ना ही मुझ से ज्यादा तेवर तुम्हारे पास होगा। अब ध्यान से सुनो, तुमने भी मेरी बहन और भाई के सामने इतने ही प्यारे-प्यारे शब्द कहे थे, शुक्र करो मैंने तुम्हे यहां अकेले में कहा। जब तुम्हारे नौकर पेषा अभिभावक अपनी 80-90 हजार की सैलरी में से 70 हजार रुपया तुम्हारे भाई को भेज कर भी इतना कुछ बना चुके हैं तो मैं तो फिर भी एक अरबपति का बेटा रहा हूं। सबकुछ लूट जाने के बाद ये मेरी गरीबी की अवस्था है। 2 करोड़ सालाना देकर तो मैं एक अनाथालय चला रहा हूं फिर मेरे लिए लंबोर्गिनी कौन सी बड़ी बात है आज रोल्स रॉयस घर के आगे खड़ी कर दूं। लेकिन फिर भी देखो, तुम्हारी बदतमीजी का जवाब यहां मै मुस्कुरा कर दे रहा हूं और तुम सभी लोगों के सामने मुझे बेज्जत करने के बाद भी अकड़ कर सवाल पूछ रही हो।

साची:- नहीं .. वो .. मुझे माफ़ कर दो प्लीज।
अपस्यु:- दिल में बैर होता तो आराम से यहां बैठकर बात नहीं कर रहा होता।
साची मुस्कुराती हुई…. "मैं भी ना पूरे बेवकूफ ही थी। मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा है। सो सबकुछ भूलकर आज से हम दोस्त"….

अपस्यु:- तुम्हे हमेशा दोस्त बनाने की बड़ी जल्दी रहती है। अभी के लिए हम क्लासमेट ही अच्छे हैं। वैसे इतनी बातें हो ही गई है तो मैं एक बात कहता चलूं, किसी करीबी पर तुम्हे हक, गुस्सा और अपना बेवकूफी दिखाना हो ना तो उसे अकेले में दिखाओ, किसी के परिवार के सामने किसी की बेज्जाति करना एक अपराध के समान है, दोबारा ये भूल किसी और के साथ मत करना। शायद उसे या उसके किसी परिवार के सदस्य में हमारे परिवार जितना संस्कार ना हो।

साची का मुंह एकदम छोटा पड़ गया। वो पीछे से कुछ बोली लेकिन अपस्यु उसे अनसुना करके गीत गुनगुनाते हुए निकल गया। बातों के दौरान ही उसके दूसरे क्लास का वक़्त हो गया था, लेकिन उसे इस क्लास में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं थी इसलिए अपस्यु कुंजल के क्लास में जाकर बैठा।

आज उस बेंच पर फिर से विन्नी और क्रिश बैठे मिले। अपस्यु को देखते ही वो उठकर जाने लगे, लेकिन इसबार अपस्यु उन्हें रोक लिया और चारो वहीं बैठ गए। क्लास के दौरान अपस्यु ने विन्नी और क्रिश को सॉरी का एक नोट लिखकर दिया , जिसके नीचे बड़ा सा स्माइली बना था।

विन्नी ने उस चिट को देखा और बिना कोई प्रतिक्रिया के उसे नीचे फेक दी। अपस्यु ने एक बार और पुनः प्रयास किया लेकिन इस बार सॉरी और स्माइली के साथ-साथ नीचे एक नोट भी लिखा था… "इस बार दोनों ने करेले जैसी शक्ल वाली प्रतिक्रिया दी, तो जोर से चिल्लाते हुए दंडवत माफी मांग लूंगा।"

इस बार विन्नी और क्रिश दोनों हंस दिए और उसकी ओर देखकर कहने लगे .. "माफ़ किया".. दोनों अपने पढ़ाई में लग गए और इधर अपस्यु कुंजल को
परेशान करने लगा। एक तो आज उसकी नींद पूरी न हुई थी ऊपर से अपस्यु का तंग करना, वो पूरा चिढ़ गई।

लेकिन अभी तो ये करेला ही था इसपर नीम चढ़ना बाकी था। पीछे से 5 मिनट बाद आरव भी वहीं चला आया। इस बार अराव को देखकर विन्नी और क्रिश इशारों में पूछे "अब".. दोनों भाई एक साथ हाथ जोड़ कर विनती करने लगे.. "प्लीज".. दोनों भाइयों का बदला रूप देख कर विन्नी और क्रिश ने जाते-जाते एक नोट छोड़ा… "क्लास के बाद कैंटीन में मिलना"…

इधर वो दोनो गए इधर एक साइड आरव तो दूसरे साइड अपस्यु.. अब चढ़ गया था करेले पर नीम। कुंजल के पास कभी इधर से नोट्स अा रहे थे तो कभी उधर से। अंत में हार कर बेचारी ने अपने किताब कॉपी को बंद किया, पैर को मोड़ कर टेबल पर रखी और अपना सिर घुटनों पर टिका कर आराम से बैठ गई।

क्लास खत्म होने के बाद तीनों कैंटीन पहुंचे जहां उनकी मुलाकात क्रिश और विन्नी से हुई। दोनों भाई ने यहां पर उस दिन के लिए माफी मांगी। उसके बाद कुछ ट्रीट और फ्रेंड्स एंड फैमिली टाइम।

वक़्त अच्छा बीत रहा था। सुबह ट्रेनिंग दिन में कॉलेज लौटकर आए तो कुछ घूमना टहलना और रात को परिवार के साथ बात करते करते सो जाना। हालांकि अराव की एक्स्ट्रा ड्यूटी लावणी के साथ बात करने की भी थी, सो वो पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ रोज रात के 2 बजे तक पूरा करता था।

वैसे अराव का देर रात तक जागना और सुबह जल्दी उठ जाने के कारण उसके आदत में भी कुंजल की तरह ही बदलाव अा चुका था.. कॉलेज से लौटकर बैग पटके और सीधा बिस्तर पर जाकर खुद भी बिछ गए।

इसी दौरान कॉलेज में साची से मुलाकात भी होती रही। ऐसा नहीं था कि दिल में कोई बैर की भावना से उसे देखना या उससे नफरत जैसी कोई फीलिंग थी। बस वो आम सहपाठियों की तरह ही एक सहपाठी थी जिससे हंस कर मिलना और थोड़ी सी बातचीत बस।

लगभग 10 दिन बीतने को आए थे। यूं तो हर बीता हुआ दिन कुंजल के लिए भारी पर रहा था। लेकिन दसवां दिन आते-आते, नशे कि वो अशिम पिरा, अपने पूर्ण चरम पर थी। कुंजल का व्यवहार बिल्कुल पागलों जैसा हो चला था और अब नौबत ये अा चुकी थी कि जल्द ही कुंजल के लिए कुछ नहीं किया गया तो उसके हालत का ज्ञान मां को भी हो जाएगा और उसकी मानसिक संतुलन भी पूरी तरह बिगड़ सकती है…

सुबह 4 बजे जबसे वो उठी, ट्रेनिंग एरिया में उसे देखकर अपस्यु और अराव के दिमाग काम करना बंद कर चुका था। और बस कुछ ही देर की बात थी जब मां भी जाग जाती और उन्हें भी सबकुछ पता चल जाता।
nice update ..kunjal chori karne ke chakkar me thi ....par jyadatar wo dono bhai yo ke saath rehti thi to drugs kab leti thi ? ...
saachi ke baap aur chacha bhi kaali kamai karte hai aisa lagta hai ?....aur hero ne bahut achche se samjhaya saachi ko ....

us diary me kya mila apasyu ko ?...
 
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सुबह 4 बजे जबसे वो उठी, ट्रेनिंग एरिया में उसे देखकर अपस्यु और अराव के दिमाग काम करना बंद कर चुका था। और बस कुछ ही देर की बात थी जब मां भी जाग जाती और उन्हें भी सबकुछ पता चल जाता।

आरव:- अपस्यु, कुछ कर भाई, इसकी हालत मुझ से देखी नहीं जा रही।
कुंजल:- फ़िक्र मत करोओ ओ…… (इतना बोलते बोलते कुंजल धाराम से गिर गई)
"अपस्यु… अपस्यु"… आरव कुंजल को पकड़ कर चिल्लाने लगा… "शांत.. आरव, मां को पता चल जाएगा। चल हॉस्पिटल चलते हैं।"

कुछ इंजेक्शन और स्लाइन की बॉटल चढ़ाने के बाद डॉक्टर साहब दोनों भाई के पास पहुंचे…. "कब से ड्रग्स लेे रही थी"..

अपस्यु:- पता नहीं सर, कोई कॉम्प्लिकेशन तो नहीं है।

डॉक्टर:- वो मैं अभी नहीं बता सकता, पेशेंट की कंडीशन जब स्टेबल होगी तभी कुछ कहा जा सकता है। फिलहाल तो मुझे ये जानकारी चाहिए कि ये कितने दिनों से ड्रग्स लेे रही थी।

अपस्यु:- कुछ कह नहीं सकते सर कब से लेे रही, बस हमे भी 10 दिनों से पता है। लेकिन इसने 10 दिनों में ड्रग्स को हाथ तक नहीं लगाई।

डॉक्टर:- हां जानता हूं। ब्लड में ड्रग्स की कोई मात्रा नहीं है और इसका दिमाग उस ड्रग्स की मांग कर रहा है। पूरा सीएनएस (सेंट्रल नरवस सिस्टम्स) पर बहुत ही बुरा असर पड़ा है।..

डॉक्टर साहब अपनी बात कहकर चले गए और दोनों भाई कुंजल के बेड के पास बैठकर उसका हाथ थामे चेहरे को देख रहे थे…. थोड़ी देर में नंदनी भी हॉस्पिटल पहुंच गई। दोनों भाई अब भी कुंजल का हाथ थामे बस उसी को देख रहे थे। इसी बीच नंदनी वार्ड में पहुंची। काफी गुस्से में लग रही थी और आते ही अपस्यु को 2 थप्पड खींचकर लगाई।…. "मर जाने देते, इसको हॉस्पिटल क्यों लेकर आए".. नंदनी चिल्लाते हुए बोलने लगी।

अपस्यु, नंदनी को खुद में समेट कर…. "शांत हो जाओ मां, कुछ नहीं हुआ .. शांत। आप यहां आराम से बैठ जाओ" … नंदनी वहीं चेयर पर बैठ गई, अराव ने उसे तुरंत पानी पिलाते हुए कहने लगा…. "बच्चे ही तो हैं, गलती हो जाती है, और कुंजल ने तो सबकुछ छोड़ दिया है तब उसे हॉस्पिटल आना पड़ा है। ऐसे वक़्त में आप उसे हौसला नहीं देगी तो वो अपने इस बुरे लत को कैसे छोड़ पाएगी"..

अपस्यु:- आरव सही कह रहा है मां। आप मुस्कुराओ और मुस्कुरा कर कुंजल की हिम्मत बढ़ाओ।

नंदनी:- एक शब्द भी नहीं। चुप !! इसकी वजह से पुलिस घर तक अाकर गई है और सबके सामने उन्होंने जो अपशब्द कहे। और फिर ये इसके फोन पर कैसे कैसे कॉल अा रहे है। कितनी गंदी-गंदी गालियां दे रहे है, और तो और मुझ से कह रहे हैं आज तेरी बेटी को मशहूर कर दूंगा। इसकी ऐसी ऐसी तस्वीर भेजी है कि मन तो कर रहा है अभी गला घोंटा दू।

अपस्यु वहीं कुछ देर बैठा रहा। केवल इस बात पर जोड़ देकर समझता रहा की "आज कल हैक के जरिए बहुत सी लड़कियों को फसाया जा रहा है। इसके लिए बहुत से कानून बने हैं.. और अगर कोई चोरी से हमारे घर की लड़की की तस्वीर वायरल कर रहा है तो हमे चोर को पकड़ना चाहिए या फिर जिसके साथ बुरा हो रहा हो उसी का गला घोंटा देना, कहां तक की समझदारी है।"..

अपस्यु को सुनने के बाद नंदनी का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ लेकिन कलेजे में आग अब भी लगी थी….. "मैं नहीं जानती की तू क्या करेगा लेकिन ऐसी तस्वीरें अगर वायरल हुई तो मैं आत्महत्या कर लूंगी"

"आप चिंता मत कीजिए, कुंजल के जागने से पहले मैं सरा मामला निपटा लूंगा। अराव मां के पास तू रुक"… अराव भी चार कदम साथ चला, "मैं भी चल रहा हूं तेरे साथ"…………... "नहीं इस वक़्त हम में से एक का यहां रहना यहां जरूरी है। तूने उस फ़िरदौस की कुंडली कहां रखी है।"….…. "वहीं सेफ में है।" …..….. "ठीक है आरव, तू मां के पास रुक"…..…. "प्लान करेगा या सब कुछ अचानक, ये तो बता दे"………. "आरव, तुझे क्या लगता है इस वक़्त मै बैठकर प्लान करूंगा। जैसा-जैसा दिमाग में आएगा वैसा-वैसा करता चला जाऊंगा। आज स्वयं महादेव मुझ में विराजमान है। रौद्र रूप देखेंगे मेरा।…... "अपस्यु, किसी को भी मत छोड़ना और ना ही वहां कोई सबूत मिले, पूरा तांडव करना"

अपस्यु फ्लैट वापस आया… किसी साधु की भांति हवन कुंड जला कर उसमें अग्नि प्रजॉल्लित की। कुछ समय के यज्ञ के बाद उसने रक्त तिलक किया। युद्ध का बिगुल बजाकर संख्णद किया और खुद को तैयार करने लगा।

वहां से सीधा वो पुलिस चौकी निकला और जाकर उस थानेदार के सामने बैठा जिसने बदतमीजी की थी। जाते ही 1000 की 2 गाडियां उसके आगे पटकते…. "फ़िरदौस से मिलना है मुझे।"

थानेदार:- तू कौन है बे और ये जो तू नोट फेंक रहा…

बोल ही रहा था कि अपस्यु ने फिर से एक गद्दी फेकी… फिर वो कुछ बोलने के हुआ… अपस्यु ने फिर एक गद्दी फेकी… 5 गड्डियां फेंके जाने के बाद जब वो दोबारा मुंह खोल, अपस्यु ने सारे नोट समेटना शुरू कर दिया। थानेदार उसका हाथ पकड़कर… "तू तो गुस्सा हो रहा है छोटे। चल मिलवाता हूं तुझे फ़िरदौस से। अपनी गाड़ी तो लाया है ना"

दोनों वहां से निकल गए दिल्ली-हरियाणा के हाईवे पर। थोड़ा अंदर जाकर एक वीराने में, खेतों के बीचों बीच चल रहा था ये जहर बनाने का कारोबार। अपस्यु पैदल-पैदल आगे बढ़ रहा था और साथ में अपनी वॉच डिवाइस को भी हवा में उड़ाता जा रहा था, जिसका फोकस आगे था।

खेत के बीच की पगडंडी पर वो रुका और वहीं बैठकर चारो ओर का जायजा लेने लगा…. "तू ये क्या कर रहा है चुटिया… कहीं तू यहां कोई कांड तो करने ना आया।"

वो बोल ही रहा था इतने में उसकी सर्विस रिवॉल्वर अपस्यु के हाथ में…. "चू-चपर नहीं। वरना ये जो मैंने अभी उड़ाया है ना, ये ना केवल मुझे आगे देखने में मदद करता है बल्कि इससे मैं एक छोटा धमाका भी कर सकता हूं। एक धमाके से भले कुछ ना बिगड़े लेकिन अपने सर पर देख.. इतने सारे एक साथ फोड़ दिए ना तो तेरे बदन के भी इतने ही छोटे चीथरे होंगे.. इसलिए अब चुपचाप पास पड़ी गोली भी ला और तमाशा देख"…

अपस्यु किसी पागल कि तरह सिना चौड़ा किए आगे बढ़ा… 4 कदम आगे जाते ही 2 लोगों ने उसका रास्ता रोका… अपस्यु ने धाय-धाय करते 2 फायरिंग की और दोनों अपना पाऊं पकड़ कर कर्रहाने लगे। फायरिंग की आवाज़ सुनते ही लोग हथियार लेकर निकले।

कहीं कोई नहीं बस 2 लोगों के कर्रहाने की आवाज़। कुछ लोग दौड़ कर उस आवाज़ के पास पहुंचने लगे… इधर अपस्यु घने धान में लेटा वॉच डिवाइस से 4 लोगों को आते देखा… पहली फायरिंग एक ढेर और अपस्यु ने अपनी जगह बदली।

फायरिंग के साथ ही वहां के इलाकों में उड़ रहे डेवाइस से भी "भिन-भिन" की आवाजें शुरू। सभी पागल होकर गोली चलाने वाले को ढूंढ़ने लगे। जहां-तहां पागलों की तरह गोलियां चला रहे थे। ऐसे माहौल को देखकर थानेदार को भी अपने जान कि चिंता होने लगी और उसने भी तुरंत वायरलेस करके बैकअप भेजने के लिए बोल दिया।

बस एक ही निर्भीक था वहां जो आगे बढ़ते हुए सबको ऐसे गोली मार रहा था, कि उनके दिलों में खौफ बढ़ता जा रहा था। इसी बीच फ़िरदौस को जब कुछ समझ में नहीं आया और उसे लगा कि पुलिस का कोई बड़ा ऑपरेशन चल रहा है, तब वो अपनी जान बचाकर भागने लगा, लेकिन अपनी मौत से कौन भाग पाया हैं।

अपस्यु भी खड़ा हुआ… शारीरिक क्षमता ऐसी की जब उसने दौड़ लगाई तो पल भर में यहां से वहां… वो तेज लहरों की भांति आगे बढ़ रहा था और रास्ते में आने वाला हर कोई गोली खाकर चिल्लाते हुए नीचे गिरते जा रहा था। बस कुछ समय और फ़िरदौस के पाऊं पर अपस्यु ने एक लात जमा दिया।

लड़खड़ा कर वो नीचे जा गिरा… अपने दोनो हाथ जोड़कर वो आत्मसमर्पण करने की बात कहने लगा…. गुस्से में अपस्यु ने उसके मुंह पर एक लात जमा दिया। उसका जबरा टूट चुका था और मुंह से खून बाहर आने लगा। दर्द में कर्राहते हुए उसने फिर रहम कि भीख मांगी। एक और लात मुंह पर फिर से जमाया.. जबड़ों की ज्योग्राफीया बदल गया।

एक हाथ अपने मुंह पर रखकर, एक हाथ आगे उसे दिखाते बस का इशारा करने लगा… गुस्से में अपस्यु ने इस बार पसलियों पर लात मारी। तीन पसलियां टूट चुकी थी। फ़िरदौस के आखों के आगे अंधेरा छा गया, उसमे अब कोई भी चेतना नहीं बची थी। लेकिन अपस्यु का गुस्सा अब भी कम नहीं हुआ।

दाएं कॉलर बोन पर फिर से तेज-तेज 2 लात जमा दिया और अंत में 10mm का एक सरिया उसके जांघ के ठीक ऊपर वाले हिस्से जहां "फीमर बोन" होता है, वहां वो सरिया इस पार से उस पार घुसेड़ दिया। दूसरे सरिया को पर में ऐसे घुसेड़ा की उसके किडनियों के बीचोबीच से लेकर लिवर फाड़ते हुए पेट के दाएं से बाएं वो सरिया निकल अाई। थानेदार डर से कांपता हुआ वहीं कुछ दूर पीछे खड़ा था।

"मेरे साथ चल"… अपस्यु थानेदार को घूरते हुए बोला। वो बिना कोई शब्द कहे अपस्यु के साथ चल दिया। रास्ते में चलते-चलते अपस्यु ने वहां हुए हर डैमेज का ब्योरा उस थानेदार को दिया। किसे कहां गोली लगी, कौन कितना डैमेज है और कितने वक़्त तक इलाज ना मिलने के कारण वो मर सकते हैं। बस केवल फ़िरदौस को छोड़कर जो हॉस्पिटल में ज्यादा से ज्यादा 2 दिन तक दर्द झेलेगा लेकिन मारना उसका निश्चित है।

बात करते करते दोनों एक झोपड़े में पहुंच गए, जहां नशे के समान का रख-रखाव होता था।अपस्यु ने टेबल पर पड़ी लैपटॉप को अपने बैग में डाला, जबकि फ़िरदौस का फोन वो पहले ही लेे चुका था.. उसके यहां का काम ख़त्म हुआ… थानेदार के साथ फिर वो बाहर निकला, वहीं पास पड़े एक अपराधी का गन उठाकर थानेदार के कंधे पर सीधा गोली मारी… गोली लगते ही वो चिल्लाने लगा…

अपस्यु, उसकी सर्विस रिवॉल्वर वापस करते हुए…. "तुम बिना घायल हुए अकेले इतना बड़ा कांड कैसे कर सकते हो… अच्छी सी कहानी सोचो जबतक तुम्हारा बैकअप पहुंचता होगा। अभी 2 लोग और हैं लिस्ट में।
nice update ..abtak ka sabse achcha fighting scene ....ekdum sahi tarike se sabko thikane lagaya aur police wale ko goli maar ke usko aage kar diya ?...jisse police aur gundo ke bich encounter type lage ...
 
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"मैं भी कुछ नहीं भूल पा रहा रे। इस देश का टॉप वकील अपने बेटे और पत्नी को इंसाफ नहीं दिला सका.. कुछ नहीं भुला मै। नहीं भुला की कैसे उस आश्रम को आग लगा दिया गया… 120 बच्चे जिंदा जला दिए गए… मेरी पत्नी जलकर मर गई… तुम्हारी मां जलकर मर गई… नन्हा सा था तो मेरा बेटा.. कितनी प्यारी मुस्कान थी… तोतली बोली उसके कानों में अब भी गूंजती है मेरे … सुन.. तू सुन ना।"… सिन्हा जी भावनाओ में बहते चले गए…

अपस्यु:- आप यहां आराम से बैठ जाओ सर। एक पेग मुझे भी दो। यार खुद तो इमोशनल होते ही हो मुझे भी इमोशनल कर देते हो। आज मै भी कुछ नए और कुछ पुराने गम में पीना चाहता हूं।

सिन्हा:- तू मेरा सच्चा साथी है.. लेे पी…


अपस्यु, एक पेग पूरा पीते हुए… "कुछ ना हुआ मुझे और पिलाओ"… जबतक आरव लौट कर आया तब तक अपस्यु भी गले तक पी चुका था.. दोनों बहुत ही मशरूफ थे बात करने में।

सिन्हा:- अच्छा सुन सहायता करने का वक़्त अा गया है… मैंने जो मदद के बदले मदद कि बात की थी ना..

अपस्यु:- हां कहिए ना सर…

सिन्हा:- तेरे चिल्ड्रंस केयर गया था कुछ दिन पहले। मुझे ना वहां से एक को गोद लेना है… सुन सुन सुन .. प्लीज तू मुझे मना मत करना .. लेे तेरे पाऊं परता हूं…

अपस्यु:- बस, बस .. आप टल्ली हो गए हो, कल बात करते हैं।

सिन्हा:- ना, मै नहीं टल्ली हुआ हूं… तू कल से मिलेगा नहीं.. प्लीज देख हां कर दे।

अपस्यु:- मुझे सोचने दो इस बारे में..

सिन्हा:- बेवड़ा कहीं का, पूरी बॉटल गटक गया फिर भी सोचेगा मेरी बात पर।

"यूं समझिए अपना एक हिस्सा देने का वादा कर रहा हूं अभी… प्लीज मेरा भरोसा मत तोड़ना। .. कल अाकर वैभव को के जाइएगा।"…

सिन्हा:- आए शातिर … मतलब तुझे सब पता है हां..

अपस्यु:- वो बिना बाप के बच्चे नहीं है सर … जिम्मेदारी उठाई है तो ख्याल रखना पड़ता है वरना अनाथालय के नाम पर कई फोटो खिंचवाने वाले और बच्चे गोद लेकर पब्लिसिटी बटोरने वाले मिल जाते है।

सिन्हा जी खुशी से अपस्यु के गाल चूम रहे थे, इतने में कॉन्फ्रेंस हॉल में ऐमी भी पहुंच गई… "आज फिर दोनों टल्ली है।"

आरव:- छोड़ दो दोनों को.. कुछ देर आपस में गम बाटेंगे। कभी-कभी तो दोनों की भावनाएं जागती है।

ऐमी:- हां तो मैंने कब माना किया है। अब ये दोनों पूरा सहर घूमेंगे… एक मैटर फसाएगा तो दूसरा सलटाएगा।

आरव:- हाहाहा… पार्टी ड्रेस कहीं निकल रही थी क्या…

ऐमी:- हां यार दोस्तों के साथ पब जा रही थी।

आरव:- दोस्त या बॉयफ्रेंड..

ऐमी:- आरव एक बात बता, 15 मिनट तू गाली नहीं खाता तो तेरे पीछे कीड़े काटने लगते है क्या?

आरव:- बदतमीज लड़की..

ऐमी:- बेहूदा लड़का..

आरव:- मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है।

ऐमी:- बोलिए सर..

आरव:- ऐसे रिएक्ट क्यों कर रही हो, सुन तो लो पहले…

ऐमी:- सुनना क्या है तू फिर बकवास करेगा…

आरव:- मै क्या बोल रहा था तू पब जा ही रही है.. इन्हे भी साथ लेती चली जा..

ऐमी, प्रतिक्रिया में चिल्लाती हुई कहने लगी…. "नो वे"

"ऐ दोनों चिल्ला क्यों रहे हो। पूरा मैटर बताओ।"…. सिन्हा जी दोनों को अपने पास बुलाते, जवाब तलब करने लगे….

ऐमी धीरे-धीरे आगे भी बढ़ रही थी और आरव से विनती भी करते जा रही थी…. "प्लीज नो.. मत बताना आरव"..

ऐमी:- कुछ नहीं डैड, मै तो बस एेवे ही…

अपस्यु:- बापू.. लगता है कहीं जा रही थी। तैयार होकर अाई है…

(आरव, ऐमी के कानों के पास धीरे से बोला… लेे बज गई तेरी बैंड)

सिन्हा जी:- मेरा राजा बेटा कहीं पार्टी करने जा रही है.. चल हम भी चलते है। थोड़ी देर खुली हवा में हमदोनों भी घूमेंगे…

अपस्यु:- बापू इसके शक्ल पर लिखा है ये हम दोनों को नहीं के जाने वाली।

सिन्हा जी और अपस्यु दोनों साथ में जोड़-जोड़ से हसने लगे और अपस्यु बोला… "ठीक है यूं गो.. हम दोनों यहां है… क्यों बापू"…. "हां रे अपस्यु सही कहा"… फिर से दोनों हसने लगे…

ऐमी गुस्से में दोनों को देखती हुई…. "आरव तूने मुझे कॉल लगा कर यहां क्यों बुलाया।"

आरव, अपस्यु के ओर इशारा करते हुए… "इसने मुझे कहा था कॉल लगने"..

ऐमी:- अब सर को तो मै कुछ कह भी नहीं सकती … वरना अभी कहने लगेंगे.. तुम्हे अपने पापा को घर ले जाने के लिए कॉल लगवाया था… क्यों सर यहीं बात है ना…

अपस्यु:- बापू ये बौत समझदार हो गई है, मै कह रहा हूं ये आप की तरह ही वकील बनेगी…

सिन्हा जी:- ना रे … मेरा बेटा मैजिशियन बनेगी …

ऐमी:- हद है.. डैड मैजिशियन नहीं म्यूजिशियन।

सिन्हा जी:- जाओ घूमो तुम लोग .. हम कहीं नहीं जा रहे .. यहीं है।

फिर से दोनों के जोड़-जोड़ से हंसने की आवाज़। … "भाई प्लीज़ मुझे इस सिचुएशन से निकाल दे, प्लीज।"… ऐमी आरव से विनती करती…

आरव:- कोई फायदा नहीं। या तो प्लान कैंसल करके घर चली जाओ या फिर जहां जा रही थी वहां चली जाओ। अब थोड़े ना कुछ हो सकता है।

ऐमी:- मैं ही बेवकूफ थी जो तुम्हारे बातों में अा गई। मुझे समझ जाना चाहिए था कि अपस्यु भी बैठक लगा ही चुका होगा। मेरी शाम खराब कर दी तुमने आरव।

आरव:- वाह, मतलब पिए ये दोनों बिल मेरे नाम पर फाड़ रही हो…

ऐमी:- हुंह ! तुमने ही भरोसा दिलाया था ना आज अपस्यु नहीं पायेगा.. आओ और अपने पापा को यहां से अभी लेे जाना। इससे ती अच्छा होता ड्राइवर और गार्ड के साथ ही चले आते।

आरव:- अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।

एमी:- हां ये भी सही है। चल चलते है।

आरव:- मैं नहीं जाता तेरे साथ। तेरी पार्टी है तू जान।

ऐमी, आरव का हाथ पकड़ कर खींचती हुई बाहर लेे जाते हुए… "मुझे फसा कर मज़े करेगा.. नोट पॉसिबल।"

आरव:- ना ना हाथ छोड़ मेरा, एक तो तेरा खरनाक ग्रुप ऊपर से दो खूंखार लोग और पीछे से पहुंचेंगे … मेरी चटनी हो जाएगी इनके बीच।

ऐमी:- तू ऐसे नहीं सुनेगा… गार्ड इस छछूंदर को उठा कर मेरे गाड़ी में डालो…

ऐमी पहले से अपनी कर स्टार्ट कर चुकी थी… 4 गार्ड ने मिलकर उसे कार में जाकर छोड़ आए और ऐमी वहां से सीधा पब निकल गई।

लगभग 15 मिनट बाद… "सुन छोटे चल जरा हमलोग भी घूम कर आए… हम भी थोड़ा पार्टी करेंगे। वो लोग क्या सोचते है मेरी उम्र हो गई है।"

अपस्यु:- क्या बात कर रहे हो, अभी तो आप पूरे जवान हो। चलो बापू हम भी पार्टी करे। उन्हें भी अपना जलवा दिखा ही देते हैं। वैसे भी यहां की दारू मुझे चढ़ी ना है.. चलो उधर ही चलकर मूड बनाएंगे।

दोनों लड़खड़ाते खड़े हुए… "सुन छोटे कीटी सु गए है दोनों।"… "बापू इतने बड़े वकील हो, फिर भी गलती। हमे देख कर जगह बदल दी होगी ऐमी ने, याद नहीं लास्ट टाइम क्या हुआ था"…

सिन्हा जी:- हां सही कहा, रुक जीपीएस चेक करने दे… सही कहा कार रेडिशन के पास खड़ी है। चल हम भी चलतें हैं।"..

अपस्यु और सिन्हा जी दोनों बाहर निकले उसके पीछे-पीछे सभी गार्ड और ड्राइवर भी बाहर आए।… "तुम लोग घर चले जाओ.. मैं छोटे के साथ जा रहा हूं।"… तभी उनमें से एक गार्ड… "लेकिन सर" बोला। सिन्हा जी उसे माना करते हुए अपस्यु के साथ निकल गए।

कुछ ही देर में पब के पास थे और जैसे ही पब के गेट पर पहुंचे वहां का बाउंसर दोनों को दरवाजे पर ही रोक लिया… "आप लोग अंदर नहीं जा सकते"

सिन्हा जी:- बैनचो मुझे मना कर रहा है।

अपस्यु:- बापू शांत बेचारा रूल फॉलो कर रहा है।

सिन्हा जी:- इनके रूल की मां का भो… शुस शूस शु्स.. नो अब्यूज..

तभी वो बाउंसर आगे आया और सिन्हा जी के कॉलर पकड़ने के लिए हाथ आगे ही बढ़ाया था कि अपस्यु उसके हाथ को पकड़कर… "आराम से खड़े हो जाओ पीछे। बापू के कॉलर को हाथ लगाना मतलब हमारी इज्जत पर हाथ डालना… 10000 की ड्यूटी के लिए लंबा फस जाओगे। जाओ अपने मैनेजर को बुला लाओ।"…

"अबे छोड़ इनके मैनेजर को .. बैनचो मालिक को ही इधर बुलाते है। चल बैठ छोटे यहीं पर"… दोनों वहीं सड़क के पर नीचे बैठ गए और नीचे बैठ कर सिन्हा जी ने पब के मालिक को फोन लगा दिया…

2 मिनट में ही वहां पर पब के मालिक की कार लग चुकी थी। सिन्हा जी के बुलाने पर वो खुद अा गए और वो बाउंसर पास खड़ा सिर झुकाए और हाथ जोड़े खड़ा था।

सिन्हा जी उस बाउंसर को एक थप्पड खींच कर मारते हुए …. "मैं तुझ से बड़ा हूं और बड़ों की इज्जत करना सीख। छोटे इसकी ड्यूटी मुझे पसंद आयी, लड़का मन लगा कर यहां काम कर रहा है… टिप देकर अंदर अा"…

अपस्यु उसे 10000 का टिप देते हुए… "तुमसे बहुत बड़े हैं यार थप्पड का फील मत करना… बापू को तुम पसंद आए। ये लो रखो"… अपस्यु उसे 10000 देकर अंदर चला आया।

अंदर आते ही वो सीधा पहुंचा सिन्हा जी के पास बार काउंटर पर… "और बापू ऑर्डर कर दिया"…. "हां छोटे तेरे लिए वो तेरी पसंदीदा कॉकटेल ऑर्डर कर दिया हूं। सुन छोटे वो साला लड़का कौन है जो ऐमी के साथ नाच रहा है।"…… दोस्त होगा बापू छोड़ो ना।"….… "ना ऐसे नहीं तू जा उसे एक थप्पड मार कर अा।"……. "आप को चढ़ गई है बापू, वो अपने दोस्तों के साथ आया है यार … बेचारे को बेइज्जती फील होगी"…. "तूने उसे थप्पड नहीं मारा मुझे फील हुआ और ये बैनचो गाना कौन सा बज रहा है। जा ये गाना बदलवा कर अा।"

इधर आरव जो ऐमी की फ्रेंड के साथ नाच रहा था… "जे छोड़ा मुझे छोड़ कर यहां नाच रहा है, इसे तो मै अभी बताता हूं।" अपस्यु, आरव की कुछ फोटो चुपके से खींचने लगा, और साथ ही साथ लावणी के मोबाइल पर भी ट्रांसफर करता जा रहा था"…. तभी उसे कुछ ऐसा दिखा जो नहीं दिखना चाहिए था। उसने एक बार सिन्हा जी के ओर देखा… वो सामने बार काउंटर पर ऑर्डर से रहे थे….

"सुनो बापू, तुम्हे थप्पड देखना था ना।"…. "हां छोटे अभी देखनी है मुझे।"…… अभी दिखता हूं।"…... "ये हुई ना बात, अच्छा छोटे एक्शन से पहले जरा वो गाना बाजवा देना।….. "कौन सा गाना बापू"… "अरे वही जो कुछ दिन पहले तक ट्रेंड कर रहा था… तमंचे पे डिस्को"

अपस्यु ने एक बौंसर को पकड़ कर कुछ पैसे दिए और म्यूजिक बदलने के लिए बोल दिया। ऐमी के पास आकर उसका हाथ पकड़ा और उसे किनारे करते हुए, उसके जो सामने लड़का खड़ा था उसके सामने अपस्यु खड़ा हो गया। अपस्यु के हाव भाव देख कर वो समझ चुकी थी अब क्या होने वाला है…

ऐमी:- अपस्यु नहीं प्लीज, इग्नोर करो… वो नशे में है।

अपस्यु उसे आंख दिखाते…. "तुम नशे में तो नहीं थी ना ऐमी। कितनी बार तुम्हे एक ही बात समझता रहूंगा मै।

ऐमी:- अपस्यु प्लीज जाने भी दो।

अपस्यु:- जस्ट कीप क्वाइट ।

वो लड़का अब भी सर को घुमा-घुमा कर मदहोशी में नाच रहा था। अपस्यु अपनी बात कहकर वहीं सामने खड़ा रहा और उस लड़के को देख रहा था… वो लड़का , एक हाथ अपस्यु के कमर में डाला और दूसरा हाथ सीने के बाएं भाग में । अपस्यु फिर एक बार ऐमी को घुरा … जबतक वो लड़का बोलने लगा… "कुछ फील ना हो रहा बेबी।"

अपस्यु का गुस्से में खींच कर मारा गया एक तमाचा और उसके सिर को पकड़कर अपने घुटने पर दे मारा… उसके नाक से खून निकलने लगा। ये नजारा देखकर सिन्हा जी ग्लास टोस्ट करते हुए चिल्लाकर शाबाश कहे….

फिर तो जो ड्रामा वहां का शुरू हुआ, अपस्यु के सामने उसके 3-4 दोस्त आए और सभी को वो मारता चला गया। ग्लास कांच और अन्य सामान टूट रहे थे और सिन्हा जी ग्लास बढ़ा-बढ़ा कर एन्जॉय कर रहे थे। आरव किसी तरह अपस्यु को के जाकर बार काउंटर पर बिठाया। इधर बाउंसर ने जगह को जल्दी से साफ किया और उन मार खाए लड़कों को वहां से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

अपस्यु फिर से बार काउंटर पर बैठ कर अपनी पसंदीदा कॉकटेल के पेग पर पेग चढ़ाए जा रहा था। 10 पेग वो चढ़ा चुका था और एक पेग सामने रखी थी….

सुबह-सुबह का वक़्त…. अपस्यु सिर पर अपना हाथ रखे उठ कर बैठा। "ओह बहुत ज्यादा हो गई रात को।"…. "इसे पी लीजिए थोड़ा आराम मिलेगा"… अपस्यु थैंक्स बोलकर ग्लास हाथ में ले लिया। केवल और केवल नींबू निचोड़ा हुआ जूस था वो। एक सिप में ही दिमाग फ्रेश हो गया। डकार आने शुरू हो गए। साथ ने आंख भी थोड़ी खुली… हैरानी से चारो ओर वो देखने लगा और कुछ ही दूर बिस्तर के आगे केवल टॉवेल में साची खड़ी थी और नीचे बिस्तर पर उसके कपड़े फैले पड़े थे…..
nice update ..sinha ki kahani bahut dukhbhari hai ...sinha ki biwi aur beta ,apasyu ke maa ke saath anathashram me aag lagne se marr gaye ...lagata hai kisine aag lagayi hogi ..

pub me mast maja aaya ..daaru pikar sinha to daring kar raha tha ..sidha pub ke maalik ko phone kiya ..aur emi ko chhednewale bande ki hero ne achche se dhulaai ki ..
 
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Update:-43 (C)






इस बार ऐमी अपस्यु के होंठ चूमती…. वाउ, ये मुझे पसंद आया। लेकिन तुम्हे कोई भी प्यार करने वाली मिले, लेकिन मै तुम से लिपटना और तुम्हे चूमना नहीं छोड़ सकती, क्योंकि तुमसे खुशी के इजहार करते वक़्त मुझे भी पता ना मै तुम्हे कब चूम लूं।

अपस्यु:- ये तो मुझे भी पता है। सो आज से हम कैजुअल रीलेशन में रहेंगे।

ऐमी:- कैजुअल रिलेशन !!! ये कैजुअल रिलेशन क्या होता है ?

अपस्यु:- ऐसा रिलेशन जिसमे सच्चा चाहनेवाला या चाहनेवाली मिलने पर ब्रेकअप ना हो बस हम अपने दायरे कायम कर ले।

एक रिश्ता जो दोनों में उत्तेजना के कारण कायम हुए, और दूसरा रिश्ता जो लंबे वक़्त से इनका चला अा रहा था। दोनों रिश्तों के बीच की कड़ी को इन लोगों ने कैजुअल रिलेशन का नाम दिया। क्योंकि दिलों के बीच प्रेमी-प्रेमिका की भावनाएं थी नहीं, और गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड बनना नहीं चाहते थे क्योंकि ब्रेकअप इन्हे चाहिए था नहीं।

खैर वक़्त अपने रफ्तार से ही चल रहा था। ऐमी और अपस्यु बिल्कुल पहले कि तरह ही अपना रिश्ता आगे बढ़ा रहे थे, एक गहरे दोस्त की भांति जो हर पल साथ निभाता चला जा रहा था। दोनों के बीच हुए फिजिकल रिलेशन के कारण इनके इस रिश्ते में रत्ती भर का भी बदलाव नहीं आया और ना ही ये कभी किसी रात के हुए सेक्स को सुबह चर्चा करते।

20 जून 2011…. अपस्यु और ऐमी दोनों साथ में भारत वापसी कर रहे थे। फ्लाइट टेक ऑफ किए लगभग 3 घंटे हो गए थे। ऐमी किसी गहरे ख्यालों में डूबी हुई थी…. "क्या हुआ अवनी को, आज इस प्रकार इतनी खामोश क्यों है।"

ऐमी फीकी मुस्कान अपने चेहरे पर लाती हुई कहने लगी…. "क्यों चिढ़ा रहे हो अपस्यु।"

अपस्यु:- अगर तुम्हे नहीं चिढ़ना है तो जरा बताओ कौन सी चिंता खाए जा रही है।

ऐमी, अपस्यु के ओर देखती गहरी श्वास ली और कहने लगी…. "किसी प्रकार की चिंता नहीं है, बस कुछ बातें दिमाग़ में अा रही थी, उसी बारे में सोच रही थी।

अपस्यु:- कौन सी बातें ऐमी।….

ऐमी…..

"जानते हो सर एक वक़्त था जब तुमने भी मौतें देखी और मैंने भी मौते देखी। देखा जाए तो मेरे सर पर मेरे डैड का हाथ था लेकिन तुम्हारे सर पर, उस विषय पर ना ही बात की जाए तो अच्छा है……. उस वक़्त हम सबकी दुनिया उजड़ी थी। मेरे पापा शराब में डूब गए थे, मै और आरव पूर्णतः सदमे में थे। कई रातों तक हम दोनों को तुमने अपने गोद में सुलाया था। कई बार जब रातों को मेरी नींद खुलती, तब तुम्हे वैसे ही बैठे-बैठे सोते हुए भी देखा है मैंने।

तुम्हारा तो कोई रिश्तेदार भी नहीं थे, या थे भी तो कभी सामने नहीं आए किंतु मेरे तो थे। कोई 2 दिन के लिए रुकते, तो पूछा करते थे ये लड़का कौन है जो हर वक्त अवनी के पास रहता है। उन्हें वो छोटी सी लड़की नहीं दिखती थी, जो सदमे में थी। बस सबको वो अंजान लड़का ही दिखता था। कोई दस दिन तक रुकता तो तुमसे नौकर की तरह काम करवाता। लेकिन किसी को भी यह नहीं दिखता की एक लड़का जो लगभग मेरी उम्र का था, वो हम दोनों बाप बेटी और अपने भाई का सहारा था। लोग आते रहे, तुम्हे ताने मारते रहे। तुम सबकी बातों को सुनकर भी अनसुना करते रहे, चेहरे पर वही चिर-परिचित मुस्कान।

खुद इतने दर्द में होते हुए भी हमे संभला, उस दर्द और सदमे से टूटे लोगों को उबड़ा। सर झुक जाता है सर.. आप के आगे ये सर झुक जाता है। अवनी को संभालने तो कोई रिश्तेदार नहीं आया लेकिन अवनी के साथ ये कौन लड़का है कह कह कर इस नाम से ही नफरत करवा दी उन लोगो ने।

अपस्यु:- बस रे बाबा बस। यूं समझ लो कि ज़िन्दगी एक साजिश है और आने वाला वक़्त उसका सस्पेंस। बीती बातें किसी कहानी की तरह होती है जिसमें दर्द, प्यार और ढेर सारे ड्रामा होते है। उन बीती कहानी को कभी कभी पढ़ लिया करो ताकि उनकी यादें धुंधली ना हो और ध्यान पूरा आने वाले वक़्त पर लगाओ। क्योंकि यदि हम अतीत में खोए रहे तो पता ना ज़िन्दगी कौन सी साजिश रच कर किस तरह का नया सस्पेंस हमारे सामने खोल दे। ये तो हो गई तुम्हारे उन ख्यालों का जवाब जिसमे तुम जबरदस्ती डूब रही थी लेकिन अब ये बात बताओ कि मुख्य मुद्दा क्या है, जो इतना सोचने पर तुम मजबुर हो गई।

ऐमी अपने चेहरे पर मुस्कान लाती…. चिंता सिर्फ इतनी है सर, एक लड़का उस लड़की से भी सच्चा प्यार कर लेता है जिसके 3-4 ब्वॉयफ्रैंड पहले से रहे हो। एक लड़के को इस बात से भी बहुत कम आपत्ति होती है कि उसकी लवर का कोई सच्चा दोस्त एक लड़का है। वो लड़का अपने प्रियसी को पूरे दिल से समझता है और उसके समझाए रिश्ते को वो पूरी ईमानदारी से निभाता है। लेकिन एक लड़की के साथ इसका उलट होता है। वो हर बात समझकर भी समझना नहीं चाहती। उसे पहले से यदि पता हो की उसके लवर का किसी लड़की के साथ ब्रेकअप हुआ है और वो किसी अन्य लड़की को देख भी ले, तो भी घूम फिर कर मुद्दा वही बनता है.. "तुम्हारी दूसरी लड़कियों के साथ चक्कर है।"… कितनी भी चाहने वाली लड़की क्यों ना मिले उसे अपने रिश्ते में कोई दूसरी ऐसी लड़की नहीं चाहिए जो उसके लवर टच भी करे। ऐसा नहीं को वो सच्चा प्रेम नहीं करती बस हम लड़कियों की भावना ही कुछ ऐसी होती है कि इन छोटी छोटी बातों से हर्ट कर जाती है।

"बस यही बातें खाए जा रही है, यदि तुम्हे कोई प्यार करने वाली मिल गई तो दायरे में फस कर कहीं मेरी कहानी सिसक कर ना रह जाए।"


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साल 2000 … नए मिलेनियम की शुरवात हो रही थी। बहुत ज्यादा तो याद नहीं उस वक़्त का, लेकिन हां लोग काफी हर्षित थे और चारो ओर न्यू ईयर से पहले की तैयारियां जोरों पर थी। मेरी प्यारी मां चाहती थी कि इस बार की मिलेनियम, हम सब एक साथ भारत में मनाएं।

मां की बात को मानकर हमारा पूरा परिवार यहां भारत आया हुआ था। पूरा एक महीना सब लोग रुके थे। मेरे माता पिता गुरु निशी के बहुत बड़े अनुयाई थे वो लोग अक्सर उनसे मिलने भारत आया करते थे। ये लम्हा मै कभी नहीं भूल सकता जब मेरे माता-पिता आश्रम पहुंचे थे और गुरुजी ने उनसे एक बेटा मांग लिया था।

मेरी मां राजी नहीं हुई, लेकिन पापा के समझाने पर वो मुझे यहीं छोड़ कर चले गए। साल 2000 के गर्मियों की बात होगी जब पहली बार ऐमी नैनीताल अपने पापा के साथ गुरुजी के आश्रम अाई थी। मै उस वक़्त तन्हा अकेला सा रहता था और तभी पहली बार मैंने ऐमी को देखा था। बहुत ही जिद्दी और हर बात पर नखरे करने वाली थी, जैसा मै अपने माता पिता के पास करता था।

लेकिन ये हमारी पहली मुलाकात नहीं थी। वो 2002 की गर्मियों की छुट्टी चल रही थी जब ऐमी यहां आश्रम अाई हुई थी। मै गुरु से छिपकर पहाड़ों पर चढ़कर, उजला और नीले रंग का बेहद लुभावना फूल तोड़ रहा था। ऐमी ने मुझे उस पहाड़ पर चढ़े देख लिया और वो इतनी तेज चिल्लाई की मै ऊपर से नीचे गिर गया।

इस झाड़ में फंसा, उस पत्थर से टकराया और आंख जब खुली तब दिए की रौशनी में पहली बार उसे मैंने अपने पास बैठे देखा। मेरी जब आंख खुली और मैंने कर्रहा, तब अवनी, हां उस वक़्त तक तो अवनी ही थी। तो जब मै कर्ररहा रहा था, तब अवनी को पहली बार सुना था…. "सुनो तुम जल्दी से वो फूल मुझे दे दो।"… हाहाहा.. तभी मैंने कहा था उस निशान कि अपनी एक फनी कहानी है।

यहां से हमारी बातें शुरू हुई। हालांकि बातें वही करती थी मै बस उसे सुनता रहता और "हां हूं" में जवाब दिया करता था। कभी-कभी तो ऐसा होता था कि वो मुझ से सवाल पूछती और मै उसपर भी "हां हूं" करता रहता। वो क्या हैं ना ऐमी 4 बातें बोला करती थी जिसमे से मुझे एक दो शब्द भी समझ में आ जाए तो बहुत बड़ी बात थी।

हर साल वो अपने छुट्टियों में आती और हम दोनों लगभग साथ ही रहा करते थे। ऐमी के साथ रहने का मुझे एक फायदा होता था, मुझे दिल्ली की भाषा सीखने के लिए मिल जाती। कमाल की बात तो ये थी कि उसी ने मुझे गाली देना भी सिखाया।

जैसा तुमने कहा था ना आज से हम दोस्त, या हम दोनों को प्यार है। शायद ही ऐसे शब्द हमने इस्तमाल किए होंगे कभी। इतने छोटे से मिल रहे थे और इतने लंबे समय से मिल रहे थे कि कभी इन बातों का ध्यान भी नहीं रहा।

2004 या 05 की बात है, ऐमी लैपटॉप का कीड़ा थी। तब मैंने मां से बोलकर एक लैपटॉप पैरिश से मंगवाया था। हुआ ये कि, जब मै उसे रैप किया हुआ लैपटॉप दे रहा था तब उसने भी मुझे लैपटॉप ही गिफ्ट किया था। हंसी तो तब अा गई जब दोनों एक ही मॉडल के लैपटॉप गिफ्ट कर रहे थे।

उन्हीं छुट्टियों में हम दोनों ने लैपटॉप पर साथ मे फिल्म देखा था। फिल्म के अंदर किसिंग सीन को देखकर हमने भी तय किया कि ये करके देखते है। हम दोनों ने एक दूसरे को किस्स किया। वो यक करती हुई मुझ से अलग हुई थी और कहने लगी… "कितना गन्दा था ये, कैसे करते हैं ये लोग फिल्म में।"

बस ऐसे ही हमारा वक़्त कट रहा था। कुछ खट्टी मीठी यादें हमने साथ में संजोए थे उन बचपन के, फिर शायद बचपन ही खत्म हो गया था। एक हादसे में हम दोनों की मां और ऐमी का छोटा भाई मर गया। ये 2007 की बात थी।

2007 से 2009 तक मै और ऐमी एक साथ सिन्हा सर के यहां ही रहे। चूंकि मै शुरू से ही अपने मां से दूर रहा था, शायद यह एक वजह थी की इस हादसे का असर मुझ पर से जल्दी ख़त्म हो गया, लेकिन आरव और ऐमी को उबरने में काफी समय लग गया। खैर वो दौड़ भी खत्म हो गया। हसी मज़ाक हमारे बीच फिर से शुरू होने लगी थी।

2009 के मध्य से लेकर शायद जून 2011 तक मै मियामी में रहा। फिर वापस भारत आया और अपने अध्यन के लिए भारतवर्ष के अन्य हिस्सों में मै भटकता रहा। इतने वर्षों में संपर्क के नाम पर मैंने बहुत कम ही उससे बात की होगी लेकिन बीच बीच में हम मिलते रहते थे। मै कहीं भी रहूं ऐमी को पता रहता था। गले लगाना और एक दूसरे को चूमना ये हमारे खुशी के इजहार करने का तरीका सा बन गया।

इन्हीं सब बातों को मध्य नजर रखते हुए हमने अपने रिश्ते को कैजुअल रिलेशन का नाम दिया। जब एक दूसरे के पास नहीं होते तो याद नहीं करते और जब पास होते है तो दिन कब बातों में निकल जाती पता भी नहीं चलता। उम्मीद है तुम हमारे रिश्ते को समझ चुकी होगी और शायद ये भी समझ में अा चुका होगा कि कैजुअल रिलेशन क्या होता है।

तुम कुछ निष्कर्ष पर पहुंचो, उससे पहले मै तुम्हे एक बात बता दूं। मै लगभग २-३ महीने से दिल्ली में हूं लेकिन उसे पता होने के बावजूद, ना तो वो मुझसे मिलने की कोशिश की और ना ही उसने फोन किया। इतने दिनों में केवल 2 मिनट की मुलाकात कुछ दिन पहले हुई थी, वो भी तब जब सिन्हा सर को मै कुछ जरूरी केस पेपर देने गया था। उसके बाद कल रात मुलाकात हुई थी। वो भी मुलाकात नहीं होती लेकिन मै और सिन्हा सर पिए हुए थे, तब वो अाई थी। और फिर आज सुबह मुलाकात हुई, जब मुझे लगा कि तुमसे किसी भी तरह का रिश्ता आगे बढ़ाने से पहले, मै तुम्हे अपने और ऐमी के रिश्ते के बीच की सच्चाई बता दूं।
nice update ....
 
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तुम कुछ निष्कर्ष पर पहुंचो, उससे पहले मै तुम्हे एक बात बता दूं। मै लगभग २-३ महीने से दिल्ली में हूं लेकिन उसे पता होने के बावजूद, ना तो वो मुझसे मिलने की कोशिश की और ना ही उसने फोन किया। इतने दिनों में केवल 2 मिनट की मुलाकात कुछ दिन पहले हुई थी, वो भी तब जब सिन्हा सर को मै कुछ जरूरी केस पेपर देने गया था। उसके बाद कल रात मुलाकात हुई थी। वो भी मुलाकात नहीं होती लेकिन मै और सिन्हा सर पिए हुए थे, तब वो अाई थी। और फिर आज सुबह मुलाकात हुई, जब मुझे लगा कि तुमसे किसी भी तरह का रिश्ता आगे बढ़ाने से पहले, मै तुम्हे अपने और ऐमी के रिश्ते के बीच की सच्चाई बता दू

साची बड़े ही ध्यान से उसकी बातें सुनती रही। जब अपस्यु ने अपनी बातें समाप्त की तब साची अपस्यु के ओर देखते हुई अपने दर्द भड़े चेहरे पर थोड़ी सी झूठी मुस्कान लाती हुई कहने लगी…

साची:- सच ही कहा था तुमने मै बेवकूफ हूं। मुझ पर छोटा सा एहसान करोगे।

अपस्यु:- क्या?

साची:- हम एक दूसरे से दूर ही भले है। क्या तुम ऐसा कर सकते हो?

अपस्यु, की नजरें जैसे कुछ कहना चाह रही थी किंतु जुबान से इतना ही निकला… "चलो वापस चलते है।"

यूं तो बताने के लिए बहुत अरमान अभी बाकी थे, लेकिन कभी-कभी शायद अल्फ़ाज़ साथ नहीं देते। खामोश ही चले दोनों और खामोशियों के साथ ही घुट गए दोनों के अरमान। साची खुल कर रोना तो चाहती थी लेकिन उसके पास कोई कंधा नहीं था। अपस्यु अपनी भावना को जताना तो चाहता था लेकिन जता नहीं पाया।

कॉलेज के गेट से साची अंदर जा रही थी और अपस्यु ठीक उसके विपरीत दिशा में। चिल्ड्रंस केयर के सामने उसकी कार खड़ी हुई और अपनी सोच में डूबा वो अंदर जा रहा था। चिल्ड्रंस केयर के कुछ लड़के-लड़कियां जो स्कूल नहीं जा सकते थे, वो अाकर अपस्यु से मिलते रहे और अपस्यु मुस्कुराते हुए उन सब से मिलकर आगे बढ़ता रहा।

नजरों के सामने जब उसे नंदनी दिखी, वो धीरे-धीरे उसके ओर बढ़ने लगा। नंदनी जो अभी काफी मसरूफ थी सिन्हा जी से बात करने में, अपस्यु को सामने से यूं आते देखी वो सारे काम छोड़ कर उसके पास तेजी से पहुंची।

कुछ पूछ रही थी शायद अपस्यु से, लेकिन अपस्यु के कानो तक वो बात नहीं पहुंच पाई। बस अपनी मां को देखकर, वो लिपट कर रोते चला गया। बस रोता ही रहा। अपने बच्चे के निकलते आशु ने नंदनी को भी रोने पर विवश कर दिया। नंदनी अपस्यु के रोने का कारण तो नहीं जानती थी लेकिन उसका दर्द एक मां को खींच रही थी।

ना जाने कितनी देर वो रोता रहा। आशु शायद आज बहते ही रहते लेकिन आखों के सामने जब उसे आरव और ऐमी का चेहरा नजर आया तब उसके आशु खुद-व-खुद रुक गए। वो अपने आशु पोंछता नंदनी से अलग हुआ। नंदनी भी अपने आशु साफ करती वहीं सोफे पर बैठ गई।

अपस्यु की जब चेतना जागी, तब वो देख पा रहा था कि उसके चारो ओर उनके चिल्ड्रंस केयर के सभी लड़के-लड़कियां, सिन्हा जी, आरव, ऐमी सब वहीं खड़े थे। अपस्यु अपने आशु पोंछते, अपने चेहरे पर मुस्कान लाया और सबको देखने लगा। वो सबके नजरों के सवाल को देख पा रहा था, किंतु इस वक़्त शायद वो कुछ जवाब देने की स्थिति में नहीं था।

ऐमी वहां के भीड़ को वापस भेजती हुई कहने लगी…. "डैड आप अपना झगड़ा जारी रखो। आंटी आप भी शुरू हो जाइए।"

नंदनी, अब भी अपस्यु को ही देख रही थी, मायूसी उसके चेहरे पर भी थी…. "आप लोग वैभव को लेे जाइए। आरव ऑफिस में रुक कर सभी पेपर वर्क देख ले। अपस्यु, चल बेटा घर चलते है।"

नंदनी उसके साथ घर निकल गई। वहां पहुंचकर नंदनी, अपस्यु को बिठाकर पूछने लगी…. "मेरा स्ट्रोंग बच्चा इतना क्यों रोया। कोई रिश्ता टूटा क्या?"

अपस्यु:- आप को पता चल गई ये बात।

नंदनी:- मां हूं ना बच्चे का दर्द मेहशूस हो जाता है। कल रात घर से गायब क्यों थे?

अपस्यु:- सिन्हा अंकल ने रोक लिया था अपने पास।

नंदनी:- बता तो देना था मुझे, कितनी फ़िक्र हो रही थी।

अपस्यु:- सॉरी मां। अब से नहीं होगा।

नंदनी:- अच्छा सुन वो खूबसरत और प्यारी सी लड़की कौन थी?

अपस्यु:- कौन मां?

"आंटी मेरे बारे में बात कर रही है शायद।"… ऐमी अंदर आती हुई कहने लगी। साथ में सिन्हा जी उसके साथ वैभव और आरव था।

नंदनी:- तुम लोग एक दूसरे को जानते हो।

ऐमी:- आप के सभी सवालों के जवाब मेरे डैड और आरव दे देगा क्योंकि अपस्यु को मै अपने साथ ले जा रही हूं।

अपस्यु:- ऐमी फिर कभी चलते है आज नहीं।

ऐमी:- क्या सर मुझे मना कर रहे हो।

ऐमी के जिद के आगे फिर अपस्यु की नहीं चली। आरव भी ऐमी का साथ देते उसे भेज दिया। अपस्यु जाते-जाते आरव को नजरों से कुछ समझाते हुए वहां से चला गया और आरव ने बीती वक़्त के उन चुनिंदा राज को सामने रख दिया जिसमे अपस्यु, आरव और सिन्हा परिवार था।

दूसरी ओर… राहें जब अलग हुई तब साची के कदम भी धीमे-धीमे कॉलेज के अंदर बढ़ रहे थे। अपस्यु की बाते जैसे उसके दिमाग में गूंज रही थी। वो इस कदर डूबी रही अपनी सोच में कि कुंजल की आवाज़ तक नहीं सुन पाई ..…

"क्या हो गया, इतनी गुमसुम और मायूस क्यों हो।"…. कुंजल साची को टोकती हुई कहने लगी….

साची…. मुझे एकांत चाहिए अभी कुंजल।

कुंजल उसके हाल-ए-दिल को समझती हुई, कॉलेज के दूसरे मंजिल पर बनी एक कबाड़ख़ाने में लेकर पहुंच गई। हालांकि वो जगह भी खाली तो नहीं थी लेकिन कुंजल को ज्यादा वक़्त नहीं लगा वहां के कुछ लैला-मजनू को भगाने में।

जैसे ही वो जगह खाली हुई, साची कुंजल को पकड़ कर रोने लगी। भावनाएं आशुओं के साथ बहते जा रहे थे, वो लगातार रोए जा रही थी। रोते-रोते सिसकियां सी लेने लगी वो। रोते हुए काफी वक़्त हो चला था, कुंजल उसे पानी बॉटल देती हुई उसके आशु पोछी…. "पानी पी लो।"

साची:- मेरे ही साथ ऐसा क्यों हुआ कुंजल, मैंने तो उसे इतना ऊंचा दर्जा दिया था। मै ही गलत हूं इस बात को सोच कर पगलाई सी, उस पर सबकुछ लुटाने का सोच लिया था। मेरा जमीर धिक्करता रहा, लेकिन मै अपनी गलती समझ कर आगे बढ़ती रही।

कुंजल:- शांत हो जाओ साची। तुम इस वक़्त शायद अपने आपे में नहीं हो।

साची:- क्यों वो तुम्हारा भाई है इसलिए तुम्हे बुरा लग रहा है क्या?

कुंजल:- मुझे उसके लिए नहीं तुम्हारे लिए बुरा लग रहा है। खुद को संभालो।

साची:- कैसे संभाल लूं कुंजल, तुम जानती भी हो मेरे अंदर क्या चल रहा है।

कुंजल:- मै अच्छे से जान रही हूं, तुम्हे पागलपन के दौरे आने शुरू हुए है और ना जाने कब तक आएंगे उसका समय निश्चित नहीं है।

साची:- हां शायद तुम सही कह रही हो। ये मेरा दर्द है और मै ही झेलूंगी, तुम्हरे साथ का शुक्रिया।

कुंजल:- मै जानती थी पागलपन की शुरवात में ऐसे ही जवाब आएंगे। जाओ कुछ दिन रोकर जब तुम्हारे आशु सुख जाएंगे तब मै बात करूंगी।

दिन बिरहा में बीतने के बाद साची घर लौट कर आयी और सीधे अपने कमरे में जाकर रोती रही। ना जाने वो कितना रोई थी, आखें सुज गई थी। आखों के आस पास की सिलवटें सारी कहानी कह रहे थे। लावणी किसी तरह उसके कमरे में पहुंची। बहुत कोशिशों के बाद जाकर वो चुप हुई।

किसी ने किसी को धोका नहीं दिया। दोनों ने ही अपनी भावनाएं कभी एक दूसरे से नहीं छिपाए लेकिन दिल दोनों का ही टूटा। शायद प्यार में जो विश्वास होता है, उसकी कमी सी खल गई। आज ऐमी के साथ भी अपस्यु खामोश ही रहा।

अगली सुबह बिल्कुल खामोश और मायूस थी। ना तो कोई उत्साह बचा था और ना ही कोई तमन्ना। बस एक कॉलेज जाने की ड्यूटी बची थी, साची वहीं निभा रही थी। आखें उसके रोने कि कहानी बयां कर रही थी और मायूस उतरा सा चेहरा टूटे दिल का किस्सा।

अपस्यु जब सुबह जागा तब उसके चेहरे पर उसकी वहीं चिर परिचित मुस्कान थी। अपने भाई-बहन के साथ उसने पूरा वर्कआउट भी किया किंतु अब उसने कॉलेज से मुंह मोड़ लिया था। साची जो आखरी बात उस से कह गई, उसी को निभाते हुए उसने कॉलेज से ही दूरियां बनाना सही समझा।

दिन बीत रहे थे और दोनों के बीच की दूरियां भी शायद। अपस्यु अपना ध्यान अपने पुरानी रुचि पर केंद्रित करने में लग गया, नई चीजों का अध्यन करना और उसे प्रयोग में लाना। अपने रुचि में खुद को इस कदर वो उलझा चुका था कि दिन ढल जाता, मजबूरी में सोना पड़ रहा था लेकिन अध्यन पूरा नहीं हो पा रहा था।

बीतते वक़्त के साथ साची भी खुद को संभालने कि कोशिश कर रही थी, लेकिन दर्द ज्यादा था और उसपर सोचने के लिए प्रयाप्त समय भी। शायद यही वजह थी कि आशु छलक ही आते थे, किंतु कुंजल और लावणी हर संभव उसे हंसाने और गम भूलने में मदद कर रही थी।

बीतते वक़्त के साए में आरव की लावणी भी कहीं गुम हो रही थी। आरव से गुस्सा तो था लेकिन उससे प्यार भी कम नहीं था। बस लावणी चाह कर भी उसे सुन नहीं पा रही थी। उसका दिल कर तो रहा था कि कुछ वक़्त रुक कर आरव का मानना भी सुन लिया जाए, और अपना गुस्सा बस उसकी एक प्यार भरी बात से खत्म किया जाए, लेकिन शायद इस वक़्त वो अपना सारा खाली समय अपनी बहन को दे रही थी।

लगभग 15 दिन बीतने को आए थे। रात का अंधेरा और 2 बजे का वक्त था। … आरव एक बार फिर चोरी से लावणी के कमरे में दाखिल हुआ। लाइट जला कर उसने फिर से सोती हुई लावणी के मासूम चेहरे को गौर से देखने लगा… "हाय मेरी धड़कने, काबू में रह भाई। माना कि वो तेरे होश उड़ा रही है लेकिन अंदर इतना मत उछल।"

अपने अंदर के पंख को उड़ान देते, आरव लावणी के सर के पास जाकर बैठ गया और उसका मुंह पर हाथ डालकर उसे जगाने लगा। लावणी की जब आखें खुली तो आरव को पास बैठे देख उसकी आखें चौड़ी हो गई…. "ऊं ऊं ऊं" … "ओह" .. और आरव ने अपना हाथ लावणी के मुंह पर से हटाया।

हाथ हटते ही लावणी उठकर बैठती हुई अपने आखें दिखाने लगी…. "प्लीज प्लीज प्लीज मेरी बात तो सुन लो"… उसकी आखें देखकर आरव मिन्नतें करते कहने लगा।

लावणी:- क्यों सुनूं तुम्हे…

आरव:- बेबी आई लव यू।

लावणी:- तुमसे तो कब का ब्रेकअप कर चुकी मै, जाकर किसी और कि नींद खराब करो।

आरव, साइड से ही उसके गले पड़ते…. एक मौका तो दो मुझे अपनी बात समझाने का।

(अंदर खिल-खिलाती हंसी, बाहर से खुद को शख्त दिखाती).. लावणी अराव की इस हरकत पर अपनी मुंडी घुमा कर उसे घूरती हुई कहने लगी… "1 फिट की दूरी से बात करो, चलो।"

आरव, कुछ दूरियां बनाते…. "बेबी सुनो ना"…

लावणी:- 4 बार तो कह चुके "सुनो ना, सुनो ना".. इस से आगे भी है कुछ बोलना है या फिर यही रट्टा मार कर आए हो।

आरव:- कहने को बहुत सी बातें है बेबी लेकिन पहले आई लव यू।

लावणी अपने बनावटी भाव दिखाती…. "ये भी दोबारा बोल रहे हो।"

आरव:- अब तुम ऐसे मुझ पर राशन-पानी लेकर चढ़ी रहोगी तो कहां से मै कुछ सोच पाऊंगा। ठीक से सोचने तो दो की कैसे समझाऊं तुम्हे।

लावणी:- ये बातें उस वक़्त समझ में नहीं आयी थी, जब कमर में हाथ डाले उस लड़की से चिपक कर डांस कर रहे थे।

आरव, वापस लावणी के पास जाकर उसके गले पड़ते हुए कहने लगा…. "अरे वो तो ऐमी ने फसाया था मुझे वरना मै तो कॉलेज में भी किसी को भाव नहीं देता।"

लावणी:- तुमने कह दिया मैंने सुन लिया, इस विषय पर बाद में सोचकर बताऊंगी। फिलहाल मै दी को लेकर चिंता में हूं।

आरव:- वो बेवकूफ है…

लावणी:- ओए कुछ भी बकवास की ना तो देख लेना…

आरव:- अगर तुम्हे मेरी बातें बकवास लगे ना तो तुम बेशक मेरे साथ जो चाहे वो कर लेना … लेकिन एक बार मेरी पूरी बात ध्यान से सुन लो और मेरे कहे अनुसार साची को समझाना… तुम दोनों बहन कि चिंताएं खत्म हो जाएगी।

आरव ने फिर अपनी बात कहनी शुरू की। वो कहता गया लावणी उसे ध्यान से सुनती गई। जैसे-जैसे बात आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे उसे अंदर से खुशी मेहसूस होते जा रही थी। अपनी बात पूरी खत्म करके आरव लावणी से कहने लगा…. "सिर्फ तुम्हारी चिंता कि वजह से मैं अपनी बात अधूरी छोड़ कर जा रहा हूं। अब तो तुम्हारी ये चिंता जब खत्म होगी तभी मिलने आऊंगा। चलता हूं बेबी… और हां…

लावणी आरव की ओर देखती… क्या ?

फाटक से वो उसके होटों को चूम कर भागते हुए कहने लगा…. "आई लव यू।" आरव के जाते ही लावणी हंसती हुई कहने लगी…. "मेरा स्वीटो.. लव यू टू"… अंधरे में भागता हुआ आरव फिर से अपने घर वापस आया। अपस्यु हॉल में ही बैठा हुआ था।

"तूने सारी बातें समझा दी लावणी को"….. "समझा तो दिया है भाई लेकिन यार तेरा दिल नहीं दुखेगा।"…

"कोई एक तो खुश रहे मेरे भाई… मेरा क्या है, बिना अाशरा तब भी थे आगे भी जीते रहेंगे। एक ही दर्द से 2 लोग क्यों पिस्ते रहे।"
nice update ...ye aarav ne kya plan kiya hai dono ko milane ka dekhte hai ..
 
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कुंजल के जाते ही…. "भाई….. " ….. "हां बोल आरव"….. "ये लड़कियां कितनी शॉपिंग करती है, अभी कल ही तो उसने शॉपिंग कि थी ना"……. "पता ना रे आरव.. मै तो कुछ और ही सोच में पड़ गया हूं।"….. "हां जानता हूं, दिमाग में अजिंक्य सिंह घूम रहा है ना।"…….. "सही कहा… अब ऐसी बात बोल कर गई है कि करना ही पड़ेगा।"……… "इन्हे अच्छे से इमोशनल अत्याचार करने आता है।"….. "हां सही कहा… ठीक है तू जाकर लावणी का इमोशनल अत्याचार झेल, मै कुछ सोचता हूं सर जी के विषय में।"


रात के 9 बजे… अजिंक्य सिंह का घर….

अपस्यु, थोड़े हिचक के साथ अजिंक्य के घर का दरवाजा खटखटाया। सामने खुद थानेदार दरवाजा खोलते… "रे कौन है… तू"

अपस्यु:- अरे सर प्लीज़ 2 मिनट आप अपना दे दीजिए। आप से कुछ बातें करनी है।

अजिंक्य:- चल आजा अंदर, आराम से बैठ कर बातें करते है।

अपस्यु:- बाहर चल कर बातें करे सर।

अजिंक्य:- अरे तू अंदर अा.. अंदर नहीं आया तो मुझे लगेगा तू मेरी उस दिन की बात को दिल से लगाए है।

अपस्यु के अंदर आते ही अजिंक्य ने सबसे पहले तो उससे माफी मांगी, फिर कहने लगा…। वह बहुत दिन से सोच तो रहा था मिलने के लिए लेकिन झिझक के कारण नहीं अा पा रहा था। बातों के दौरान पता चला कि अपस्यु ने जिस राठी ब्रदर्स को पीटा था, उसके लिए वो सुक्रगुजार है। कई केस दोनों के नाम पर दर्ज थे। लड़कियों को ड्रग्स की लत लगाना और फिर उनकी अश्लील ताबीरें और वीडियो बनना इनका शौक था।

अपने शौक के लिए ये लड़कियों का पूरा इस्तमाल करते थे और ड्रग जैसी महंगी लत के कारण कई लड़कियों को या तो देह व्यापार करना पड़ता था या ड्रग्स ना मिलने के कारण सुसाइड कर लिया करती। अब तक 6 लड़कियों ने इनकी वजह से सुसाइड किया था, जिनमें से उसके साथ काम कर चुके एक हेड कांस्टेबल कि भी बेटी थी।

अजिंक्य की कहानी सुनने के बाद अपस्यु को थोड़ी राहत मिली, की थानेदार साहब उससे नाराज नहीं है, उल्टा उसके काम को सराहा। फिर अपस्यु भी बिना बात घुमाए सीधा मुद्दे पर अा गया और वो विन्नी को कुंजल के साथ भेजने के लिए आग्रह करने लगा। समझाना थोड़ा मुश्किल था, और अजिंक्य ठहरा एक ईमानदार आदमी उसे किसी और से पैसे लेने मंजूर भी नहीं थे… अंत में अपस्यु ने भरोसा दिलाया कि जैसे कुंजल उसकी बहन है, ठीक वैसे ही विन्नी भी उसके लिए हुई। इसलिए एक भाई खर्च नहीं उठा पा रहा तो क्या हुआ दूसरा भाई उठा रहा है।

थोड़ी झिझक अब भी बची थी जिस कारण से अजिंक्य कहता रह गया "नहीं वो नहीं जाएगी।" किसी तरह मनाकर और उसकी पूरी जिम्मेदारी लेने के बाद तब कहीं जाकर अजिंक्य माना।

इधर लावणी कई रातों तक जाग कर आरव का इंतजार कर रही थी। उसे लगता कि आज रात आरव आएगा लेकिन उसकी दिल की आश दिल में ही रह जाती। 8 दिन बाद लावणी अपने परिवार के साथ यूएस निकालने वाली थी और आरव 5 दिन बाद। उसने अभी तक लावणी को इस बारे में भनक भी लगने नहीं दिया था। वो तो बस इस ख्याल से रोमांचित हो रहा था कि यहां इंतजार करवाकर जब आरव, लावणी से यूएस में मिलेगा तो उसका रिएक्शन कैसा होगा।

5 दिन बाद आरव, कुंजल और विन्नी तीनों यूएस जाने के लिए तैयार, वेटिंग लॉबी में इंतजार कर रहे थे। विन्नी को छोड़ने उसके भय्या और भाभी दोनों पहुंचे थे, लेकिन ड्यूटी पर होने के कारण अजिंक्य अपनी मिसेज को लेकर वहां से जल्दी निकल गया। इधर नंदनी भी दोनों को छोड़ने नहीं अा सकी क्योंकि 304 के फ्लैट में किसी की डेथ हो गई थी, वो वहीं गई हुई थी।

सभी आपस में बात कर रहे थे, तभी अपस्यु की नजर क्रिश पर भी पड़ गई… अपस्यु वेटिंग लाउंज में ही चिल्लाकर उसे आवाज़ लगाने लगा… इधर कुंजल, विन्नी से कहने लगी…. "होशियार कहीं की, क्या कह रही थी क्रिश को कोई पहचान ही नहीं सकता। मैंने क्या कहा था कुछ भी कर ले अपस्यु की नजरों में एक्सरे लगा हुआ है। देख कर लिया ना स्कैन।"

विन्नी:- यार बहुत ही खतरनाक प्राणी है ये।

इतने में ही क्रिश अपना सामान उठाए उनके पास पहुंचा और ऐसा दिखाने लगा जैसे उसे कुछ पता ही नहीं। इसपर विन्नी ही उसे कहने लगी… "इतना नाटक ना ही करो तो अच्छा है।"… फिर शुरू हो गई दोनों भाई की जुगलबंदी जिसमे बेचारे क्रिश पीस कर रह गया। वापस लौटते वक़्त अपस्यु, क्रिश को खास हिदायत देते हुए लौटा…. "विन्नी मेरी जिम्मेदारी पर जा रही है। जितनी खुश वो अभी है, इतनी ही खुश वो लौटने पर भी होनी चाहिए। वरना तुम्हारी जिंदगी से खुशियां गायब हो जाएगी।"…

खैर सबको बिदा करने के बाद अपस्यु सीधा अपने घर निकला। शव यात्रा निकलने के कारण अपार्टमेंट के दरवाजे पर थोड़ी भीड़ जमा हो गई थी। अपस्यु अपनी गाड़ी साइड में लगाकर, भीड़ छंटने का इंतजार करने लगा। तभी सामने, साची अपने गेट से निकलकर, उसने भी स्कूटी साइड कर ली। दोनों गाड़ियों के बीच 1 फिट का फासला और दोनों आमने-सामने थे।

सामने साची को देखकर अपस्यु अपनी नजरे बार-बार उसपर ही डाल रहा था। दिल को जैसे सुकून मिल रहा हो उसे। तभी साची अपने चेहरे पर काला चस्मा चढ़ाई और अपनी गर्दन दूसरी ओर करके देखने लगी। …. "यहां गाड़ी लगा कर खड़ा है, संस्कार खत्म हो गए है क्या? जाकर अर्थी को कंधा दे।"… नंदनी दोनों गाड़ियों के बीच खड़ी होकर अपस्यु से कहने लगी।

अपस्यु ने अपना जूता वहीं कार में ही खोल दिया और अर्थी को कंधा देने पहुंच गया। लावणी भी साची के पीछे ही बैठी थी। नंगे पाऊं जब उसने अपस्यु को सड़क पर चलते देखी, तब वो भी अपना एक पाऊं का सैंडल उतारकर नीचे रखी। नीचे मिट्टी तो थी नहीं जो पाऊं को राहत देती। साची बस कुछ छन के लिए अपनी पाऊं दी और तुरंत फिर से सैंडल पहन ली।

"यार ये कितने दिल से नियम का पालन करता है। देख नंगे पाऊं कैसे कंधा देने पहुंच गया।"… लावणी हैरान होती हुई कहने लगी….

साची:- आज बेचारे के पाऊं में छाले पड़ जाएंगे। एक काम करना कोई एंटीसेप्टिक खरीद कर दे देना। राहत मिलेगी।

इतना कहकर साची ने स्कूटी को पीछे मोड़ा और चली गई। वहीं अर्थी के साथ चलते हुए कुछ लड़के-लड़कियां गर्मी से तर बतर थी। खुद तो गर्मी से परेशान थे, लेकिन नंगे पाऊं चल रहे अपस्यु के ऊपर हंस रहे थे। उसका नंगा पाऊं चलना मात्र एक पागलपन लग रहा था जी 21वी सदी में नहीं जचता। खैर अपस्यु अर्थी के साथ ही शमशान घाट तक आया और क्रियाक्रम की प्रक्रिया को देखने लगा….

"लगभग लोग चले गए है, आप अभी तक रुके हुए है।".. सफेद लिबास में एक लड़की अपस्यु के ओर पानी बढ़ाती हुई पूछने लगी।

अपस्यु, पानी की 2 घूंट पीते हुए……. "अपनी-अपनी मान्यता है, मै थोड़ा ज्यादा नियम मानता हूं।"

"हां मैंने भी देखा ये। बाय दी वे, आई एम् श्रेया"… श्रेया अपने हाथ अपस्यु के ओर बढ़ाती हुई कहने लगी… "मै अपस्यु हूं।"…. अपस्यु भी उससे हाथ मिलाते हुए बोलने लगा।

श्रेया:- मेरी नानी आपसे मिलकर काफी खुश होती। वो भी आप की तरह ही सात्विक थी।

अपस्यु:- ये मेरा दुर्भाग्य है जो मै उनसे नहीं मिल पाया।

श्रेया:- इट्स ओके, नानी नहीं हुई तो क्या हुआ, उनकी परछाई मेरी मॉम है ना… आप उनसे मिल लीजिएगा। एक मिनट मै अभी अाई… अा गए नरेश अंकल.. लाइए वो सामान मुझे दीजिए।

श्रेया अपने ड्राइवर के हाथ से सामान लेकर अपस्यु के पास पहुंची… "आप जरा ऊपर बैठेंगे।" .. कुछ सीढ़ियां थी उसी के ऊपर श्रेया उसे बैठने के लिए कहने लगी।

अपस्यु, श्रेया की बात को समझ नहीं पाया और वो जाकर सबसे ऊपर की सीढ़ी पर बैठ गया। जैसे ही वो सीढ़ी पर बैठा, श्रेया उसके पाऊं को हाथ लगाने लगी। अपस्यु अपने पाऊ पीछे करते हुए…. "आप ये क्या कर रही हैं।"

श्रेया:- सेवा कर रही हूं। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार आप ने मेरी नानी के लिए किया।

अपस्यु खामोश होकर बस उसे करते हुए देख रहा था। श्रेया, अपस्यु के तलवों को पहले कॉटन से साफ की फिर उसपर एंटीसेप्टिक लगाकर पट्टी चढ़ाई और फिर बैग से सैंडल निकालकर उसे अपने हाथो से पहनाई।

अपस्यु:- थैंक्स, वैसे आप डॉक्टर है या नर्स।

श्रेया, अपने हाथ को साफ करती…. "जी मै एमबीबीएस 4th ईयर में हूं। लेकिन आप ने कैसे पहचाना।"

अपस्यु:- इतनी सफाई से आप ने पाऊं में पट्टियां लगाई, की मुझे शक सा हो गया।

श्रेया:- काफी मजाकिया लगते है आप। वैसे आप को देखकर लगता है कि…

अपस्यु:- देखकर कुछ भी अंदाज़ा लगा दीजिए। आप का विषय मनोविज्ञान नहीं बल्कि मेडिकल साइंस हैं। कष्ट ना कीजिए, मै अभी अपने ग्रेजुएशन के फर्स्ट ईयर में हूं। साहित्य लेकर पढ़ रहा हूं।

श्रेया उसे गौर से देखती हुई…. बीच में पढ़ाई छोड़ दी थी क्या आपने?

अपस्यु:- कभी चाय पर इसकी चर्चा करेंगे। आज इतना ही रहने दीजिए।

श्रेया:- आप अप्रत्यक्ष (indirectly) रूप से मुझे चाय के लिए आमन्त्रित कर रहे है क्या?

अपस्यु, ऐमी को कार लगाते देख चुका था। वो वहां से निकलते हुए कहने लगा…. "मैंने आपको आमन्त्रित नहीं किया है। बल्कि मुझे लगा, अपनी जब कभी भी दूसरी मुलाकात होगी, वो चाय पर होगी, इसलिए आपसे कहा। फिलहाल मेरी दोस्त अा गई है मै चलता हूं।"

श्रेया, अपस्यु के इस विश्वासपूर्ण बातों को सुनकर मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी।… इधर अपस्यु ऐमी के साथ बैठकर वहां से निकल गया।… "काफी खूबसूरत थी वो"..

अपस्यु:- कम ऑन ऐमी, अभी नहीं। अभी तुम मुझे बताओ कि आज के शाम का क्या प्रोग्राम है।

ऐमी:- हद है सर, पहले बताना था ना आज शाम मेरे साथ हो।

अपस्यु:- कोई नहीं। कल शाम का प्रोग्राम रखते है। कोई दिक्कत…

ऐमी:- ना ना कोई दिक्कत नहीं। तो प्रोग्राम कुछ ऐसा है कि आज शाम तुम मेरा गाना सुनने चल रहे हो। म्यूज़िक स्टूडियो में आधे घंटे का प्रोग्राम है। उसके बाद हम तेज ड्राइविंग का लुफ्त उताएंगे। और कल तुम अपने हिसाब से करना।

अपस्यु:- बदमाश, इसे चीटिंग कहते है। जब आज फ्री थी, फिर मुझे ठगी क्यों?

ऐमी:- मेरा हक बनता है.. कोई सवाल..

अपस्यु:- कोई सवाल नही मिस।

ऐमी:- बात क्या है अपस्यु?

अपस्यु:- कुछ भी नहीं।

ऐमी:- कोई गहरी बात अंदर चल रही है, बाहर से उसे ना जताने की कोशिश कर रहे हो। कह भी दो….

अपस्यु:- और तुम्हे ऐसा क्यों लगा रहा?

ऐमी:- इतनी भी बेवकूफ नहीं की तुम्हारे बॉडी एक्सप्रेशन बता दू। तुम जैसा फास्ट लरनर को देर ना लगेगी अपनी आदत बदलने में। अब ये साइड टॉपिक छोड़ो और बात क्या है वो बताओ।

"वैसे भी मैंने तुम्हे बुलाया ही इसी वजह से था। कुछ अतीत के पन्ने खुलने को तैयार है। जेके और पल्लवी सहर में अा चुके है।.. आज रात मिलना है। बस दिमाग पजल बना परा है।"… अपस्यु ने अपनी बात रखी।

"कुछ ज्यादा परेशान दिख रहे हो। क्या क्लू मिला है।"… ऐमी जिज्ञासावश पूछने लगी…..

"पुनानिर्धरीत (reshudule) करने का क्लू दिया है दोनों ने। साथ में ये भी की एक और इंतजार की जरूरत है।"…. अपस्यु चिंता जाहिर करते हुए कहने लगा।

"हम इतने स्ट्रोंग पोजिशन में अाकर फिर से पुनानिर्धरीत करें। ये क्या हो गया। हट यार, अब और कितना लंबा इंतजार। 7 साल से तो धैर्य बनाए ही हुए है, और कितना वक़्त लगेगा।"… ऐमी हतास होती हुई कहने लगी।

"वो अपने वक़्त में हमे आजमाकर भूल चुके है, माना कि उन्हें आजमाने के लिए अभी थोड़ा और वक़्त लगना है, लेकिन जिस दिन हम उन्हें आजमाना शुरू करेंगे वो हताश होकर ना तो जमीन को तकेंगे और ना आसमान। अपने मौके के लिए सही वक़्त का इंतजार करो, हताश होने से बेहतर है खुद को तैयार करो"……
nice update ..hero ne achche se kandha diya shreya ke naani ko ....niyam follow karna ,achchi khubi hai hero ki ..ab shreya ke saath kaise meeting hogi dekhte hai ..
 
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"वो अपने वक़्त में हमे आजमाकर भूल चुके है, माना कि उन्हें आजमाने के लिए अभी थोड़ा और वक़्त लगना है, लेकिन जिस दिन हम उन्हें आजमाना शुरू करेंगे वो हताश होकर ना तो जमीन को तकेंगे और ना आसमान। अपने मौके के लिए सही वक़्त का इंतजार करो, हताश होने से बेहतर है खुद को तैयार करो"……

ऐमी मुस्कुराती हुई अपस्यु के गले लगी और फिर वहां से दोनों पहले पहुंचे सिन्हा जी के घर। अपस्यु दरवाजे के बाहर ही खड़ा रहा और वहीं उसने पहले स्नान किया और कपड़े पहन कर अंदर आया।

आते ही सबसे पहले वो वैभव से मिला और उसे अपने सीने से लगाकर पूछने लगा…. तो मिस्टर वैभव कैसा लग रहा है यहां आकर।

वैभव:- अभी एक दिन ही हुए है भैय्या, अभी थोड़ा मुश्किल है कह पाना। कुछ दिन यहां रहकर मै आकलन करूंगा, फिर अपना सही विचार बता पाऊंगा।

अपस्यु:- क्या बात है। इतने छोटे से दिमाग में इतनी ज्यादा सोच। किसने सिखाई ये बातें।

वैभव:- ऐमी दीदी ने सिखाया।

अपस्यु:- शाबाश, चलो जाओ अब तुम खेलने मै आता रहूंगा तुम्हे देखने।

ऐमी:- और मुझे कौन देखेगा…

अपस्यु ने जैसे ही नजर उठाकर देखा….. "देखी लख-लख परदेशी गर्ल, नो बॉडी लाइक माय देशी गर्ल। तुम आज किसी को पागल बनाने निकली हो क्या?

ऐमी:- नाः… आज स्टूडियो में एथेनिक पहन कर आने का आदेश मिला है।

अपस्यु:- सॉरी, लेकिन क्या तुम कोई सिंपल सलवार-कुर्ता पहन सकती हो क्या?

ऐमी:- क्यों ? तुम पागल तो ना हुए जा रहे?

अपस्यु:- हाहाहाहा… हां शायद हो भी रहा हूं। किंतु बात वह नहीं है। अभी हम घर चलेंगे ना, और हमारे ही फ्लोर पर एक डेथ हुई है…

ऐमी:- ओह !! इट्स ओके, मै अभी अाई चेंज करके।

ऐसा लग रहा था आज किस्मत भी मज़ाक के मूड से थी। अपार्टमेंट के सामने ही एक बार फिर भीड़ लगी थी। इस बार मामला ये था कि दो गाड़ी सामने से टकराई थी और दोनों गाड़ी के लोग आरोप-प्रत्यारोप करने में लगे हुए थे।

फिर से एक बार दोनों की गाड़ी किनारे लगी हुई थी और दोनों आमने-सामने। लेकिन फर्क सिर्फ इतना था कि इसबार अपस्यु की गाड़ी साची के दरवाजे पर थी और साची की स्कूटी ठीक उसके सामने।

अपस्यु का ध्यान उनके झगड़े पर था, उसका ध्यान साची पर नहीं गया था।… "हेल्लो मिस्टर, कैजुअली आप ने अपनी गाड़ी मेरे रास्ते में खड़ी कर चुके है, हटाइए।" … बोल्ड एंड सेक्सी लुक, ऊपर से आखों पर चस्मा लगाए। अपस्यु तो साची को एक बार ऊपर से नीचे तक देखता ही रह गया, और साची अपनी बात कहकर वापस अपने स्कूटी के ओर चल दी।

ऐमी जब साची को सुनी, वो जोड़-जोड़ से हंसती हुई कहने लगी…. "काजुआली गाड़ी क्यों खड़ी कर दिए".…. ऐमी की बात सुनकर अपस्यु भी हंसने लगा।…. "ऐमी, ब्रेकअप के बाद इसमें बहुत बदलाव अा गया है। पहले से ज्यादा हॉट और सेक्सी दिख रही। इसमें तो घायल करने वाला एटिट्यूड अा गया है।"…… "होता है अपस्यु, ब्रेकअप के बाद गर्लफ्रेंड कुछ ज्यादा ही अट्रैक्टिव लगने लगती है। लेकिन .. लेकिन.. लेकिन…"…. "हां आगे भी तो बोलो ऐमी"….. "लेकिन ये तुम्हारी कैजुअली पार्किंग"… फिर से दोनों जोड़-जोड़ से हसने लगे….

साची को लगा दोनों उसपर ही हंस रहे है। साची थोड़ी चिढ़ गई, और चिढ़ते हुए उसने दोनों को सुनाते हुए, उन झगर रहे लोगों पर चिल्लाती हुई कहने लगी…. "ओए… यहां जमा कैजुअली लोग, जल्दी से अपना लफड़ा खत्म करो और भागो यहां से। ब्लडी काजुअल्स"…. झगर रहे लोगों में से तो किसी कानो तक उसका चिल्लाना नहीं पहुंचा, लेकिन ऐमी और अपस्यु, साफ-साफ उसकी आवाज़ सुन चुके थे।

साची की बात सुनकर ऐमी कार का दरवाजा जोड़ से खोलती हुई बड़े ही एटिट्यूड के साथ साची के पास पहुंची और उसे घूरती हुई कहने लगी….. "ग्रो उप किड्ढो" और चल दी झगड़े के बीच में। जो ही उसने दोनों गाड़ियों वालों पर तांडव मचाई, बस 2 मिनट में ट्रैफिक क्लियर और दोनों अपार्टमेंट में।

साची भी अपनी स्कूटी लेकर अंदर घर पहुंची…. "दीदी वो कौन थी जो बड़े ही एटिट्यूड के साथ आप को सुना कर गई और आप कुछ बोल नहीं पाई।"

साची:- ये वही कैजुअल रिलेशन वाली कमिनी थी।

लावणी:- एटिट्यूड तो सॉलिड था दीदी, तुम्हारी छोड़ो उसने तो उन दोनों गाड़ियों वाले की भी बोलती बंद कर दी।

साची:- तू बड़ी मुखियान क्यों बन रही है। चल, चलकर पैकिंग करते है।

शाम के 7 बजे….

ऐमी, अपस्यु के साथ म्यूजिक स्टूडियो पहुंचा। ऐमी अपने बैंड के साथ बैठी और थोड़ी देर बाद अपनी सुरीली आवाज़ में गाना शुरू किया….


कहते हैं खुदा ने इस जहां में सभी के लिए
किसी ना किसी को है बनाया हर किसी के लिए
तेरा मिलना है उस रब का इशारा
मानो मुझको बनाया तेरे जैसे ही किसी के लिए

कुछ तो है तुझसे राबता, कुछ तो है तुझसे राबता

कैसे हम जानें, हमें क्या पता, कुछ तो है तुझसे राबता


इतनी मीठी आवाज़ थी कि अपस्यु खोता चला गया। संगीत आगे बढ़ता जा रहा था और वो धीमे-धीमे सुकून मेहसूस करता जा रहा था। प्यारी सी मुस्कान उसके चेहरे पर अा गई थी।

"चले, या यहीं बैठना है।"…. अपस्यु एक गहरी नींद से जाग रहा हो जैसे। ऐमी को पास देखकर, अपनी नज़रों को उसके चेहरे पर ठहरने दिया और मुस्कुराते हुए कहने लगा… "ऐमी कल शाम भी तो साथ रहेंगे, आज मुझे तुम्हे सुनना है। मेरे लिए कुछ और भी गाने गा सकती हो क्या?

ऐमी मुस्कुराई और वापस अपने क्रु के पास पहुंच गई।… दूसरा गाना उसने शुरू किया… गाने से पहले उसके आखों में थोड़े आंसू और चेहरे पर मुस्कान थी.. गाने से पहले वो कहने लगी…. "इस गाने का हर शब्द मुझे खींचता है। ऐसा लगा जैसे ये मुझे जोड़ रहा हो"… और फिर वो गाना शुरू की….


जिसे ज़िन्दगी ढूंढ रही है, क्या ये वो मक़ाम मेरा है
यहां चैन से बस रुक जाऊं, क्यों दिल ये मुझे कहता है
जज़्बात नए मिले हैं, जाने क्या असर ये हुआ है
इक आस मिली फिर मुझको, जो क़बूल किसी ने किया है

हां… किसी शायर की ग़ज़ल, जो दे रूह को सुकून के पल
कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर
मैं मौसम की सेहर या सर्द में दोपहर
कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर

जैसे कोई किनारा, देता हो सहारा, मुझे वो मिला किसी मोड़ पर
कोई रात का तार, करता हो उजाला, वैसे ही रौशन करे, वो शहर

दर्द मेरे वो भुला ही गया, कुछ ऐसा असर हुआ
जीना मुझे फिर से वो सिख रहा
हम्म जैसे बारिश कर दे तर, या मरहम दर्द पर
कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर
मैं मौसम की सेहर, या सर्द में दोपहर
कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर

मुस्काता ये चेहरा, देता है जो पहरा
जाने छुपाता क्या दिल का समंदर
औरों को तो हरदम साया देता है
वो धुप में है खड़ा ख़ुद मगर
चोट लगी है उसे फिर क्यों
महसूस मुझे हो रहा
दिल तू बता दे क्या है इरादा तेरा

हम्म परिंदा बेसबर, था उड़ा जो दरबदर
कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर
मैं मौसम की सेहर, या सर्द में दोपहर
कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर
जैसे बंजारे को घर, जैसे बंजारे को घर

जैसे बंजारे को घर..


वाकई ऐमी ने जब इसे गाना शुरू की और इस सिद्दत से उसने अपनी आवाज़ दी कि वो अपने जज़्बात सबको मेहसूस करवा गई। अपस्यु, सुनकर बस मुस्कुराए जा रहा था। 4 गाने वो लगातार गाने के बाद अपस्यु के पास आकर बैठ गई और पानी पीती हुई वो अपस्यु को देखने लगी। अपस्यु अब भी उसके संगीत में जैसे खोया ही हुआ था।

"जगिए मोहन प्यारे, भोर भई"…. ऐमी धीमे से हिलाती हुई उस कहने लगी… "शानदार शाम थी ये ऐमी, मज़ा ही अा गया… और ये बंजारा सोंग पर क्या कह गई तुम"..

ऐमी:- दर्द मेरे वो भुला ही गया, कुछ ऐसा असर हुआ, जीना मुझे फिर से वो सिख रहा।

अपस्यु:- तुम भी ना .. पागल कहीं की। तैयार हो भूतों से मिलने के लिए।

ऐमी:- ना जाने कब से बेकरार हूं मै अपस्यु। उनसे पिछला हिसाब भी तो बराबर करना है।

अपस्यु:- तुम हिसाब बराबर करने का सोच रही हो और मुझे लग रहा है एक और हिसाब तुम पर ना चढ़ जाए।

ऐमी:- इसपर बहस क्यों करना, चलकर आजमा ही लेते है फिर।

दोनों निकल पड़े एक दोस्ताना आजमाइश पर। यूं तो मिलने का वक़्त 9 बजे था, लेकिन दोनों तय जगह पर पौने नौ बजे ही पहुंच चुके थे। दोनों बिल्कुल तैयार, उस सुनसान अंधेरे खंडहर के ओर चल दिए। कुछ दूर आगे चलकर दोनों अलग हुए और आगे का रास्ता तय करने लगे…

माहौल बिल्कुल अंधेरा और खामोश, तभी हवा कि ध्वनि में एक छोटा सा परिवर्तन और अपस्यु बड़ी तेजी से किनारे हुआ। कोई बुलेट थी जो सीधे जमीन में घुसी। … "क्या भइया, ट्रांकुलाइजर पर ही अटके हो, कितनी बार बताया है कि स्नाइपर ट्रंकुलाइजर ध्वनि उत्पन करती है। ये बेकार कोशिश थी। कुछ और ट्राय करो।"…

इधर ऐमी जैसे ही आगे बढ़ी, कुछ तेज से उसकी ओर आता हुआ। ऐमी खुद को किनारे करती उसे अपने नाक के पास से गुजरते हुए मेहसूस कर रही थी। उसने अपने तेज हाथों का इस्तमाल करती अपने हाथ से पकड़ ली। एक धारदार चाकू जो उसकी ओर फेका गया था। दिशा का ज्ञान करती हुई, उसने अपने तेज हाथ से पकड़ते हुए कहने लगी…. "नीचे अा जाओ भाभी, आप के हुस्न का चाकू ही धारदार है, ये बेकार सी कोशिश है।"..

अपस्यु और ऐमी दोनों उनके पोजिशन समझ चुके थे। जेके और पल्लवी दोनों ऊपर कहीं पर बैठे थे और वहीं से हमला कर रहे थे। दोनों ने कुछ और कोशिश की लेकिन अपस्यु और ऐमी अपने प्रतिभा में और ज्यादा निखार का प्रदर्शन करते हुए, उनके सभी हमलों को बेकार किए जा रहे थे।

जेके:- नॉट बैड हां !! पल्लवी वन टू वन क्या कहती हो, अंधेरे का खेल बहुत हुआ।

अपस्यु:- डर लग रहा तो अंधेरे का ही सहारा लिए रहो। थोड़ी और कोशिश कर लो।

ऐमी:- भाभी जल्दी डिसीजन लो, क्योंकि इस बार यदि वन टू वन हुआ ना तो नाक टूटनी है।

तभी वहां के अंधेरे को चीरती हुई रौशनी हुई। 4 फोकस लाइट और उन उनके मध्य में मिस्टर एंड मिसेज खत्री अपने चिर परिचित अंदाज़ में दिखने लगे।

जेके:- सभी रिलैक्स.. आज के लिए इतना ही।

फाइट कॉल ऑफ का संकेत और ऐमी उनके ओर चल दी। वो जैसे ही वहां पहुंची, एक जोरदार पंच उसके नाक पर और नाक से खून निकलने लगा। ऐमी का दिमाग झन्ना गया। वो अपने हाथ से नाक को पोछति, अपना खून देखने लगी और जंप करती हुई अपने हाथ को पूरे फोर्स से पीछे लेे जाकर… ऐमी अपने वार के लिए तैयार।

पल्लवी अपने दोनो पाऊं फैला कर, 180 डिग्री का तेज फ्लिप ली और ऐमी का वार खाली गया। वो ठीक पल्लवी के आगे लैंड हुई और पल्लवी ने उसके दोनों पाऊं पकड़ कर तेजी से खींच दी। अचानक इस हमले से बचने के लिए ऐमी ने हवा में 360 डिग्री का फ्लिप ली और सीधी खड़ी हो गई जमीन पर।

जेके और अपस्यु दोनों वहीं नीचे बैठ कर फाइट का लुफ्त उठाने लगे। ऐमी के इस मूव पर दोनों अपने बियर की बोतल हवा में लहराकर हूटिंग करने लगे। दोनों में जंग छिड़ चुकी थी। दोनों हवा और जमीन पर कलाबाजियां दिखा रही थी। इसी दौरान ऐमी के हाथ एक डंडा लगा।

उसने पूरे तेजी के साथ वो डंडा सामने से चला दिया। मात्र छन भर का समय मिला पल्लवी को और उसने अपने दोनो हाथ आगे करके अपने उपर बॉडी को कवर कर लिया। लेकिन ऐमी के प्लान में उतने ही तेजी के साथ बदलाव आया। उसने दाएं से बाएं हाथ में डंडा पास किया और हौक कर तेज डंडा उसके पीछे चिपका दी।

पल्लवी बिल्कुल सरप्राइज होती हुई छटपटा गई और अपने हाथ के कवर को खोल चुकी थी। एक छोटा सा मौका और ऐमी नहीं चुकी। पल्लवी अपने सरप्राइज से उबरी भी नहीं थी कि अगले ही पल उसके नाक पर ऐमी का जोरदार प्रहार और उसका नाक भी गया।

पल्लवी अपने नाक पर हाथ देती हसने लगी और ऐमी को रुकने का इशारा किया। वो भी हंसती हुई अाकर अपस्यु के पास बैठ गई। अपस्यु अपना रुमाल निकालकर उसके नाक को साफ करने लगा। इधर पलालवी भी रिलैक्स हुई और अपना खून साफ करने लगी।

पल्लवी:- ऐमी तूने सरप्राइज मूव देकर तो मेरा पिछ्वाड़ा लाल कर दिया।..

ऐमी:- हीहीहीही… भाभी आज पेबैक के इरादे से अाई ही थी मैदान में… चीयर्स…

ऐमी भी एक बियर उठा कर टोस्ट करती हुई पीन लगी। कुछ देर तक चारो की आपस में बातें होती रहीं। उसी दौरान अपस्यु ने जगदीश राय (जगदीश राय वही क्रिमिनल, जिसके अंडरग्राऊंड फाइट वाली जगह में घुसकर अपस्यु और आरव ने उसके सेफ से फाइल उड़ाई थी) के पास से मिली डायरी की तस्वीरें जेके को सौंप दिया। जेके चूंकि इन्हीं क्रिमिनल्स के कब्र खोदने में लगने वाला था इसलिए उसने अपस्यु को दिल से धन्यवाद किया।

15 मिनट बाद चारों एक टेबल पर इकट्ठा हुए और जेके कुछ पुराने फाइल्स उस टेबल पर रखते हुए कहने लगा…. "जून 2007 में हुई आचार्य निशी और उनके चेलों की भीषण हत्याकांड का एक मुख्य कड़ी जो अब तक हमारे नजरों से ओझल रहा था वो एक छोटे से सुराग से अब सामने आ चुका है।"
nice update ...aacharya nishi ko kisne maara hai ye bhi pata lagane me lage hai jk aur apasyu ...dekhte hai inhe kya suraah mila hai ..
 
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