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Romance भंवर (पूर्ण)

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Nevil singh

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Nevil singh

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Yaad aa rahi hai agle update ki.
 
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Update:-90




लड़की:- यार घरवालों को दिखाने के लिए इसके बाजू में ही एक और चूतिया रहता है पंकज, बताने के लिए उसे मैंने अपना बॉयफ्रेंड बना रखा था। अब उस चूतिया पंकज मेरे साथ सेक्स करने के लिए इसका कमरा मांग लिया। और उसी दिन मैंने भी इससे कमरा मांग लिया, पर अपनी गर्लफ्रेंड के लिए। इस चूतिए गुफी और प्रदीप ने पंकज को बता दिया कि अपार्टमेंट में मेरा एक बॉयफ्रेंड और अपार्टमेंट के बाहर 1,2 और बॉयफ्रेंड है।


स्वस्तिका:- सच में गधे है दोनों।


लड़की:- गधे की मां की चू.. जरा ये डंडा देना बैंचों से हिसाब बराबर कर लूं।


स्वस्तिका:- हेय उनके ओर से सॉरी एक्चुली कभी वो किसी बोल्ड गर्ल से मिले नहीं ना, इनफैक्ट तुम समझ सकती हो, जिसने कभी ओपन माहौल ना देखा हो तो वो कैसे रिएक्ट करेगा। वैसे मै एक परमानेंट सॉल्यूशन बता सकती हूं।


लड़की:- क्या?


स्वस्तिका:- तुम और तुम्हारी गर्लफ्रेंड इन दोनों को पकड़ लो तो?


लड़की:- हम्मम ! विचार करने लायक बात तो है, लेकिन यार एक डर भी लगा रहता है, इनकी बेवकूफियां। साले चिपकू होते है, सीरियस टाइप वाले।


स्वस्तिका:- इन्हे इनकी मतलब की चीज मिलेगी, तुम्हे अपने मतलब की। ऊपर से इनका ट्रेवलिंग वाला काम है तो दोनों कभी बाहर कभी अपने कमरे में, ऊपर से दोनों रहेंगे तो पिकअप और ड्रॉप की चिंता भी खत्म।


लड़की:- हम्मम ! गुड आइडिया। थैंक्स डियर, वैसे हॉट तुम भी कम नहीं।


स्वस्तिका:- लेकिन डार्लिंग मेरा अभी लड़कों से मन भरा नहीं, इसलिए हम दोनों में कुछ नहीं हो सकता। बाय द वे मैं स्वस्तिका।


लड़की:- मै जेन..


स्वस्तिका:- ठीक है जेन, नंबर देती जाओ, दोनों को सब समझाकर फोन करवाती हूं उनसे।


जेन के जाते ही स्वस्तिका जब लौटी तो बिना कुछ कहे ही दोनों को 2 डंडे होंक दी।… "क्या हुआ जो दोनों को मार रही हो।"…


स्वस्तिका:- कुछ नहीं छोड़ो, मै बाद में बात करती हूं दोनों से। और भी किसी लेडीज को यहां निपटाना है या हो गया सब खत्म।


आरव:- क्यों क्या हुआ, तुझे मज़ा नहीं आ रहा है क्या?


स्वस्तिका:- नहीं वो बात नहीं है, पहली बार तुम लोगों से दूर जाते थोड़ा इमोशनल फील कर रही हूं।


आरव उसके कंधे पर हाथ रखते, उसे किसी दोस्त की तरह पकड़ा… "हेय हमारी नॉटी तो ब्रेव है ना। अच्छा सुन अपस्यु को लौट आने दे यहां फिर मै और मां कुछ दिनों के लिए तेरे पास आ जाएंगे।


स्वस्तिका:- नहीं कोई मत आना, वरना ये आना जाना और भटकायगा। मै वहां का काम समेटकर तय समय तक वापस आ जाऊंगी।


आरव:- चल ठीक है फिर ऐसे मायूस नहीं होते।


स्वस्तिका और कुंजल के साथ पूरा वक़्त बीतने के बाद शाम को सभी उसे एयरपोर्ट ड्रॉप करने नीकल गए। कुंजल जाए और वहां साची ना हो और जहां साची हो वहां लावणी ना हो। ऐसे करके पूरा कुनवा ही आ गया छोड़ने दोनों को। लौटते वक़्त वहीं से लावणी और आरव अपने कुछ खास पल बटोरने साथ घूमने निकल गए वहीं नादनी साची के साथ वापस लौट आयी।



___________________________________________



राजस्थान वीरभद्र का गांव...


पूजा की तैयारियां करनी थी इसलिए बिल्कुल सुबह से ही सब तैयारियों में लगे हुए थे। वीरभद्र और शकुंतला दोनों मिलकर सरा काम कर रहे थे। पार्थ ने बीती शाम ही अगली सुबह 11.10 मिनट का मुहरत निकाल दिया था।


दोनों काम में लगी थी। कुछ देर बाद निम्मी भी जाग गई और वो भी पूजा के काम में हाथ बटाने लगी। सुबह के 8 बजे लगभग जब सरा काम खत्म हो गया, तब वीरभद्र और शकुंतला गांव वालों की बुलाने चले गए। जाते-जाते निम्मी को तैयार होकर पार्थ को उठाकर विधि शुरु करने के लिए कहते गए दोनों।


धुप तेज होने की वजह से पार्थ की भी नींद खुल गई और वो जम्हाई लेते जैसे ही जगा, नजरों के सामने वहीं कल वाली निम्मी थी, जो अल्लहर और धूल से नहाई हुई थी। पार्थ अपना आंख मिजते हुए, पूरी आखें खोल कर देखा… उसे देखकर तो उसके मुंह से "वाउ" ही निकला… "ओय शहरी बाबू, नजरें ठीक करो अपनी, वरना चाकू घुसेड़ दूंगी।"..


"सॉरी वो तुम इतनी कमाल कि लग रही थी कि मै खुद को तुम्हे देखने से रोक नहीं पाया।"..


निम्मी:- देखना हो गया हो तो जाओ तैयार हो जाओ, खुद ही सुबह का मुहरत देकर भूल गए। आज ही मुझे अपने खुद के कमरे में जाना है।


पार्थ:- तुमलोग वहां चले जाओगे तो फिर ये मकान।


निम्मी:- मेरे दानवीर भाई और मेरी मां है ना.. उन्होंने ये सब मेरे चचेरे भाई को दान कर दिया। हम वहां जाएंगे और वो यहां आएंगे… लो देखो भिकरी आ भी रहे है। मै जा रही हूं तुम तैयार होकर आओ।


पार्थ अंदर बैग से अपना तौलिया निकाला और चल दिया जल्दी से फ्रेश होने। वो जब नहाकर तौलिए में बाहर निकाल रहा था, ठीक उसी वक़्त वृज उसका रास्ता रोके उसे कल रात के लिए एक बार फिर धन्यवाद कहने लगा। वहीं पास में ही खड़ी उसकी बीवी कमला इतने नेक इरादे से पार्थ को देख रही थी, कि पार्थ को थोड़ा डर भी ही गया, कहीं कमला उसका रेप ना करदे अपने पति के ही सामने।


पार्थ तेजी से अपनी जान और इज्जत दोनों बचाते हुए वहां से सीधा कमरे ने भागा और धोती कुर्ते पहनकर तैयार हो गया। गृह प्रवेश का सरा काम खत्म करके वीरभद्र और पार्थ दोनों कुछ पल के लिए ही मात्र घर के अंदर घुसे, फिर वहां से ऐमी के भेजे कार्गो को लेने दोनों उदयपुर के लिए निकल गए।


बीती रात को ऐमी ने हर किसी का सामान उसके सुविधानुसार उनके बताए जगह पर भिजवा दिया था। चूंकि पार्थ को काम जल्दी शुरू करना था इसलिए ऐमी ने अपने एक कर्मचारी के हाथ से वो पार्सल उदयपुर भिजवा दिया था।


पार्थ:- तुम्हे कुछ आइडिया है कि तुम्हे यूएसए में स्निपर ट्रेनिंग और यहां मै तुम्हे 3 महीने की ट्रेनिंग क्यों देने आया हूं।


वीरभद्र:- अपना मर्दों वाला काम है पार्थ भाई। खून से सने पैसों को साफ करना और जमीन पर लेट कर रोना।


पार्थ:- अच्छा मज़ाक था। अब जो पूछा वो बताओ।


वीरभद्र:- मुझे ज्यादा तो पता नहीं लेकिन अंदर ही अंदर आप लोग किसी को बर्बाद करने कि सोच रहे हो, और सबसे ख़तरनाक तो वो अपस्यु भाई हैं। केवल बिजली के लाइट ऑन ऑफ करवाया और उसी के कुछ देर बाद 4 लोगों को कार समेत पापड़ बना दिया।


पार्थ:- हम्मम। मतलब चीजों को परखना तुम भी सीख रहे हो।


वीरभद्र:- सब गुरुदेव आरव की कृपा है।


पार्थ:- तुम विक्रम सिंह राठौड़ को जानते हो।


वीरभद्र:- वो बड़ी से कंपनी के मालिक, महाराज हर्षवर्धन सिंह राठौड़ के वंशज की बात तो नहीं कर रहे ना।


पार्थ:- हां उसी कि बात कर रहा हूं।


वीरभद्र:- उन्हें कौन नहीं जानता। ये पूरा गांव और इसके अंदर तक सुदूर इलाका सब उन्हीं का तो था। पहले राजा थे तो सीमा बढ़ाते थे, अब व्यापारी है तो व्यापार बढ़ाते हैं। उनकी पड़ोस के गांव पर तो उनकी असीम कृपा भी है। आप ये जो मेरा मकान देख रहे हो ना, पड़ोस का पूरे गांव में इससे भी शानदार मकाने हैं, कोई 1 एकर, तो कोई 2 एकड़ में बने मकान। उसी गांव के बीच है राजा साहब का भव्य महल।


पार्थ:- अच्छा एक बात बताओ, ये कुंवर सिंह राठौड़ की क्या कहानी है?


वीरभद्र:- बहुत ही नीच और गिरा हुआ था वो। शुरू-शुरू में तो सब उसे राजा का ही दर्जा देते थे, लेकिन कुंवर सिंह ने पहले तो धोखे से अपने भाई की सारी संपत्ति हड़प ली।


पार्थ:- किसकी..


वीरभद्र:- राजा विक्रम के पिताजी सूरज भान की। फिर उन्हें पड़ोस के ही गांव में छोटा सा जमीन का टुकड़ा दे दिया। यहीं कहते है पार्थ भाई की कोई एक भाई कितना भी बेईमान हो जाए, दूसरा भाई में अपने भाई के लिए दया जरूर होती है। सूरज भान भी वही दयालु भाई था। कुंवर सिंह ने चाहे कितने भी धोखे किए हो, लेकिन कभी सूरजभान ने किसीको अपनी आपबीती नहीं सुनाई।


पार्थ:- आपबीती नहीं सुनाई तो तुम्हे कैसे पता?


वीरभद्र:- क्योंकि हम जहां से गुजर रहे है ये पूरा इलाका कुंवर सिंह का है और पड़ोस के गांव सूरजभान को दिया गया था। वहां देखिए राजा विक्रम ने जब खुद की तरक्की की, तो पूरा गांव तरक्की कर रहा है और यहां सब ऐसे ही पड़ा है, भोगने वाला कोई वारिश नहीं।


पार्थ:- क्यों उस परिवार का क्या हुआ सो?


वीरभद्र:- कुत्ते की मौत मेरे थे। पहले गाड़ी पर बिजली गिरि, जिसमे पूरा खानदान झुलस गया। फिर पत्थर में कहीं दब गई उनकी गाड़ी। कोई क्रियाकर्म करने वाला तक नहीं था तो राजा विक्रम ने ही सबका क्रियाक्रम किया था। हां उसकी एक बेटी तो थी जो किसी के प्रेम में पड़कर शादी कर ली, लेकिन वो दोबारा कभी लौटी नहीं। वैसे भी ना ही लौटे उसीमें उसकी भलाई है, क्योंकि वो यदि यहां आ गई तो लोग उसे और उसके पूरे परिवार को जान से मार देंगे।


पार्थ:- यह परिवार इतना बुरा है तुम लोगों की कब पता चला?


वीरभद्र:- पता क्या चलना भाई, कोई बात छिपी थोड़े ना रहती है। दोनों गांव के कई शादियां है तो पता चल ही जाता है।


पार्थ:- फिर तो कुंवर सिंह का भी महल होगा।


वीरभद्र:- नहीं यहां गांव में नहीं थी कोई महल। एक उदयपुर में उनका निवास था जो शायद आजकल किसी होटल में बदल गई है। दूसरी दिल्ली में एक आलीशान भवन है, वहां राजा विक्रम रहते हैं। उनकी इंसानियत देखिए वो चाहे तो पूरे इलाके का इकलौता वारिस हो, क्योंकि बेटियों का संपत्ति पर हिस्सा नहीं होता लेकिन राजा विक्रम ने केवल एक चौथाई हिस्सा अपने पास रखा और उसी ने अपना और अपने लोगों की तरक्की कर रहे। और जो मुंह कला करके भाग गई उसके नाम बाकी की संपत्ति जमा होते रहती है। केवल इस आस में कि कभी तो वो लौटेगी। कमाल है ना, राजा विक्रम ने 1 रुपए की संपत्ति को अपनी मेहनत से 1000 रुपए का बना गए और एक महारानी बिना मेहनत किए 750 की मालकिन है। जो मेहनत कर रहा है उसके हिस्से में 250 रुपए है.. लेकिन वो उसमे भी खुश है। वो तो यही कहता है मै तो 0 से शुरू करके 250 पर हूं, दूसरो की संपत्ति क्यों देखूं।


पार्थ:- कमाल के इंसान है ये राजा विक्रम। वैसे तुम्हे पता है कि नहीं एंगेजमेंट में विक्रम सिंह राठौड़ भी पहुंचे हुए थे…


वीरभद्र:- क्या बात कर रहे हो भाई, मुझे बताया क्यों नहीं की वो वहीं होटल में है, मुझे मिलना था उनसे..


पार्थ:- चिंता मत कर जल्द ही मिलेगा।


वीरभद्र:- भाई आप लोग की कृपा रही तो मै उस देवता से जरूर मिल लूंगा।


पार्थ:- एक बात बता सच सच..


वीरभद्र:- पूछो ना भाई।


पार्थ:- अगर तू आरव को देखता है और उसे राजा विक्रम की तुलना करते हो तो कौन ज्यादा अच्छा है।


वीरभद्र:- यह कैसा सवाल है। दोनों में कहां आप मेल ढूंढ़ रहे हो?


पार्थ:- फिर भी बता ना..


वीरभद्र:- सुनो भाई, राजा विक्रम की सुनी सुनाई बात है। इसलिए मैंने जो देखा, मेहसूस किया, और अपनी बुद्धि से जितना समझा हूं, उससे मै एक ही बात कहूंगा, आप सब का कोई तुलना नहीं। आप लोग न्याय और नीति के साथ अपने लोगों का ख्याल रखते हो, बाकी वो राजा विक्रम है उन्होंने जो किया है वो भी कोई कम नहीं लेकिन चूंकि मैंने उन्हें कभी देखा नहीं और ना ही उनके बारे में करीब से जाना इसलिए तुलना नहीं कर सकता।


पार्थ:- वीरे तू अपस्यु के पास बैठता था क्या?


वीरभद्र:- हां… पूरे एंगेजमेंट उन्होंने मुझे अपने साथ रखा था। लेकिन बात क्या है भाई?


पार्थ:- समझदारी की बातें किसी को भी जो समझा सके वो इकलौता पंडित वहीं है। खैर अब एक अहम सवाल.. क्या तुम्हे पता है कि तुम्हे इतनी ट्रेनिंग और बाकी सारी चीजे क्यों सिखाई जा रही है?


वीरभद्र:- नाह, मैंने कभी नहीं सोचा और ना ही पुछा। केवल इस विश्वास के साथ की पहले मै गलत लोगों के साथ था, अब तो जैसा काम दीजिए करता जाऊंगा। मर भी गया तो सुकून होगा कि कुछ अच्छा करके मरा। सुकून इस बात का भी होगा कि मेरे पीछे मेरे परिवार को कोई देखने वाला होगा।


पार्थ:- ठीक है वक़्त आ गया है तुम्हे बताने का की तुम क्या काम करोगे और किसके लिए करोगे..


वीरभद्र काफी उत्सुकता से … "जल्दी बताओ भाई"


पार्थ:- तुम्हारे ऊपर कुंजल और आंटी की जिम्मेदारी रहेगी। उन्हें पूरा सुरक्षा प्रदान करना। तुम्हे उनके लिए एक बॉडीगार्ड से बढ़कर बनना होगा।


वीरभद्र:- क्या मज़ाक कर रहे हो भाई। उन दोनों कि किसी ने छुए भी तो उनका अस्तित्व मिट जाना है। मैं बेवकूफ हूं लेकिन इतना भी नहीं की ये ना समझ सकू की आपसब क्या कर सकते हो और खासकर वो शांत इंसान जो हमेशा मुस्कुराते रहता है। ऐसा लगता है स्वयं महादेव विराजमान है उनके अंदर। जिनका विनाश करीब होगा वही पंगे लेगा आप लोगों से।


पार्थ:- अभी पता चल जाएगा.. जैसे अब तक सब जान कर भी सारे बातों से अनजान हो, ये बात भी ठीक वैसे ही है। नंदनी रघुवंशी के पिताजी का नाम कुंवर सिंह राठौड़ है।..


वीरभद्र जो अबतक पूरे संतुलन के साथ गाड़ी चला रहा था, पार्थ के मुंह से यह सच सुनकर ऐसा संतुलन खोया की ब्रेक लगाते-लगाते एक चट्टान से जाकर गाड़ी भिड़ा दिया। उसका पूरा दिमाग ही जैसे काम करना बंद कर दिया हो और टुकुर टुकुर बस पार्थ को ही देखे जा रहा था।
nice update ..vikram lagta hai sab black ka business nandini ke naam se kar raha hai ....veerey ko to zabardast jhatka laga ?
 
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दीपेश:- "हम दोनों में से कोई भी ये नहीं बता सकता कि हमारे बीच लगाव कैसे हो गया। हमे पता ही नहीं चला कि कब हम करीब आ गए। हमारी पहली मुलाकात तकरीबन 4 साल पहले हुई थी। तब मै एमबीबीएस थर्ड ईयर में था और स्वास्तिका न्यू एडमिशन थी।"

"बिलो एवरेज सी दिखने वाली एक लड़की जो खुद में ही खुश रहती थी। उसपर बहुत ज्यादा किसी का ध्यान नहीं जाता था, लेकिन हमने उसके पूरे बैच को बहुत परेशान किया था। खासकर उसकी दोस्त शाहीन को, पूरे बैच कि टॉप मॉडल थी वो।"

"वैसे हम तो बस सामान्य रैगिंग और शाहीन के लिए हल्के-फुल्के कमेंट पास करते थे। उसी बीच एक दिन फाइनल ईयर के हमारे सीनियर्स ने शाहीन को बुरी तरह छेड़ दिया था। एक्सप्लेन नहीं किया जा सकता, वो कितना बुरा था। शाहीन तो जैसे पूरी तरह से सदमे में चली गई थी और एकमात्र लड़का योगेश बीच बचाव में आया, जिसकी टांगे सीनियर्स ने तोड़ डाली। और उसी शाम की बात की है, एक कहर बरसा था पूरे हॉस्टल में।"

"स्वास्तिका के साथ तुम्हारा भाई आरव भी था। केवल यही 2 लोग थे और हाथ में रॉड लिए पहले हमारे सीनियर के हॉस्टल में घुसे। हर एक कमरे में घुसकर जो ही पिटाई कि उनकी। जो शामिल थे उन्हें उसके कर्मो के लिए पिटाई परी थी और जो नहीं शामिल थे उन्हें चुपचाप खड़े होकर तमशा देखने के लिए।"

"उनकी पिटाई के बाद ये लोग थर्ड ईयर के हॉस्टल में घुसे, फिर वहां एक तरफ से सबको हौकना शुरू किया। आज भी वो मंजर पूरे हॉस्टल को याद है। इनकी बेरहम पिटाई देखकर कई लड़के तो फर्स्ट फ्लोर से कूद गए। तुम्हारी बहन और भाई ने पुलिस स्टेशन में भी खूब पैसे खिला आए थे, इसलिए नहीं कि उन्हें कोई पकड़कर ना ले जाए, बल्कि इसलिए कि जबतक ये दोनों भाई-बहन पिटाई कर रहे हो, तबतक उन्हें कोई परेशान ना करे।"

"3 घंटे तक दोनों का कहर बरसा था। फर्स्ट ईयर, थर्ड ईयर और फाइनल ईयर के हॉस्टल में घुसे थे दोनों। क्या लड़का, क्या लड़की, हर तमाशा देखने वालो को पीटा था। 5 मुख्य लड़के जो इस मामले को अंजाम दिए थे, उन पांचों को पीटने के बाद कैंपस के बीचों बीच टांग कर सख्त वार्निंग देते गए थे.. "कल जबतक पूरा कॉलेज इनका जुलुश ना देख ले, उससे पहले यदि किसी ने इनको उतरा तो उनसे ये दोनों प्रिसनली मिलेंगे।"

"पुलिस आयी इनको लेकर भी गई। सबको लगा था कि इतने बड़े-बड़े लोगों के बच्चों पर हाथ डाला है, दोनों तो अच्छे से लपेट लिए जाएंगे। लेकिन अगले दिन स्वास्तिका फिर से कॉलेज में दिख गई। 400 लोगों पर खौफ बरसा था तुम्हारी बहन और भाई का, केवल मै और मेरा दोस्त निर्मल बच गए थे।"

"कुछ दिन बाद जब मै लौटा और स्वास्तिका के बारे में सुना तब मुझे यकीन नहीं हुआ। यहां से शुरवात हुई थी स्वास्तिका को जानने की मेरी जिज्ञासा। मै अक्सर उसके आसपास मंडराता रहता, लेकिन उसने मुझपर कभी ध्यान नहीं दिया, ऐसा मुझे लगता था।"

"स्वास्तिका पहले ईयर से ही लेडी डॉन के नाम से मशहूर हो गई। साल दर साल निकलते चले गए। जिसे जानने की जिज्ञासा थी, अब उसे देखे बिना दिल नहीं लगता था। मेरा दोस्त निर्मल जो मेरे साथ रहता था, वह अक्सर मुझे कहता भी था कहां उस थकेली के पीछे परा है जबकि एक से बढ़कर एक लड़कियां है कॉलेज में। लेकिन मुझे तो वहीं चेहरा पसंद था, फिर और कभी कोई अच्छी लगी ही नहीं।"

"मज़े की बात जानती हो कुंजल, स्वास्तिका सेकंड ईयर के आखरी में थी, जब हमारा कॉलेज फंक्शन था। तब वो पहली बार बन सवर कर आयी थी। आज से पहले वो अपने चेहरे कर क्या पोत कर आया करती थी पता नहीं, लेकिन जब वो अपने चेहरे से वो पुराने स्वास्तिका के मास्क उतार कर आयी, कॉलेज में उसे कोई पहचान नहीं पाया।"

"लेडी डॉन को कोई भी पहचान नहीं पाया था और ऐसा लग रहा था पूरा कॉलेज ही उसके पीछे पड़ा हुआ है। उस दिन मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। मै योगेश और शाहीन का पीछा कर करके पूरा मायूस हो चुका था, लेकिन स्वास्तिका की एक झलक नहीं मिली।"

"ऑडिटोरियम में भी मै निर्मल के पास चुपचाप ही बैठा रहा। तभी स्वास्तिका वहां पहुंची और अपने ही अंदाज़ में निर्मल को उठकर कहीं और जाने बोली। वो ठीक मेरे पास बैठी थी, और आसपास के लोग नई स्वास्तिका से बात करने में लगे थे और मेरी नजर अपनी स्वास्तिका को पूरे ऑडिटोरियम में ढूंढ रही थी। 2 साल हो गए थे लेकिन मै कभी उससे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था। मैं मायूस और उदास बैठा था तभी मेरे कानो में वो सब्द पड़े… "क्यों डॉक्टर आज थोड़े मायूस दिख रहे, बात क्या है?"

"उसकी आवाज़ जब कानो में पड़ी, मेरे चेहरे पर मुस्कान वापस आ गई, और मुड़कर जब देखा तो होश उड़े थे। आखों की यकीन नहीं हो रहा था, यह वही बीलो एवरेज लड़की है, जिसका मै दीवाना हूं। उसे देखने के बाद एक बार फिर मायूसी आ गई मेरे चेहरे पर, शायद यह बात स्वास्तिका ने भांप लिया और मुझसे कहने लगी…. "क्यों डॉक्टर हिम्मत नहीं जुटा पा रहे क्या परपोज करनें की।"..

"क्या ही बताऊं मेरा क्या हाल था उस वक़्त। कहना तो बहुत कुछ चाहता था उसे, लेकिन मेरे जुबान ने साथ नहीं दिया, लेकिन हाल-ए-दिल उसे सब पता था, और उसके दिल का हाल भी कुछ अपने जैसा ही था। अब तो बस एक ही फीलिंग रहती है, एक बस वो मिल गई अब भगवान से और कुछ नहीं चाहिए।"


कुंजल:- वाउ .. मतलब दोनों के दूसरे को पूरे शिद्दत से चाहते हो। तो बताओ आप कब आ रहे हो मां से शादी की बात करने।


दीपेश:- मै तो कब से तैयार ही हूं, लेकिन तुम्हारी बहन यह कहकर टाल जाती है कि अभी जल्दी क्या है?


कुंजल:- ठीक है आज से हम दोनों एक टीम में, आओ मेरे साथ बाहर..


दीपेश:- लेकिन तुम करने क्या वाली हो…


"आप चलो तो सही, इतना घबरा क्यों रहे हो।"… कुंजल दीपेश का हाथ खींचकर बाहर ले जाने लगी… जैसी ही कुंजल हॉल में पहुंची…. "दीदी ये क्या नाटक लगा रखा है।"..


स्वास्तिका:- कुंजल अंदर से तू जो भी सोचकर आयी है, उसपर हम अकेले में बात करेंगे ठीक है।


कुंजल:- ठीक है दीदी… पक्का ना, बात को टाल तो नहीं दोगी ना।


स्वास्तिका:- हां बाबा पक्का। अब आजा इधर दीपेश से ही केवल मिलेगी क्या, इनसे भी तो मिल लेे थोड़ा, और डॉक्टर साहब थोड़ा सी सफाई देंगे की आपने इन दोनों की एक शाम क्यों बिगड़ दी?


दीपेश:- मुझे लगा तुमने कहीं कोई खतरनाक सरप्राइज प्लान ना की हो, इसलिए बतौर सेफ्टी मै इन दोनों को मनाकर पहले यहां भेज दिया।


स्वास्तिका:- डॉक्टर आज भी तुम और तुम्हारे दोस्त केवल मेरी बहन की वजह से बच गए। ये मेरे पास है, तो लगता है कि क्यों झगड़ा करके मै अपना मूड खराब करू। फिर मै छोटी के पास खराब मूड से पहुंचूं। वरना खैर नहीं थी तुम्हारी..


कुंजल पहली बार स्वास्तिका के माहौल को भी देख रही थी। स्वास्तिका पूरी खुशमिजाज थी, जिसकी झलक वो दिल्ली में तो देख ही चुकी थी, यहां मुंबई में तो उस मिजाज में और भी निखार आ गए थे। खाते-पीते और खट्टे-मीठे नोक झोंक के साथ कब शाम बीती, पता भी नहीं चला।


अगली सुबह फिर से वही सब कुंजल के साथ दोहरा रहा था। एक बार फिर कुंजल वैसे ही छटपटाई और जब दम घुटने लगा तब स्वास्तिका ने कुंजल को छोड़ दिया। आज भी उसके चेहरे पर वहीं गुस्सा था लेकिन श्वांस सामान्य होने के बाद कुंजल ने खुद के गुस्से पर काबू किया और शांति से पूछने लगी… "उपाय बताइए"..


स्वास्तिका:- पहला उपाय यही है। गुस्सा हो, डर हो या घबराहट। कोई भी ऐसी बात जो मन को बेचैन करे पहले अपने दिमाग को नियंत्रित रखो। जान जाने की स्तिथि में सबसे बड़ी जो गलती होती है..…. एक तो श्वांस वैसे ही टूट रही होती है, ऊपर से फालतू की कोशिश शरीर कि बची ऊर्जा भी खत्म कर देती है। इसलिए जब भी जान जाने की स्तिथि लगे, अपने दिमाग को नियंत्रित करके केवल एक छोटा सा हमला करो। ऐसा हमला जो मजबूत से मजबूत शिकारी को भी चौंका दे। मकसद केवल और केवल चौकान होना चाहिए, ताकि छोटी सी कोशिश में काम बन जाए… आओ मेरे साथ कुछ दिखाती हूं…


कुंजल और स्वास्तिका दोनों ट्रेनिंग एरिया में पहुंचे जहां स्वास्तिका ने उसे टेक्नोलॉजी के साथ आर्टिफिशियल नाखून की ऐसी सीरीज दिखाई की उसका दिमाग घूम गया। कुंजल को पहली बार एहसास हो रहा था कि एक नाखून से कितना कुछ किया जा सकता है। सीखने के लिए तो सारा जहां परा है, बस सीखने कि चाह होनी चाहिए और कुंजल के अंदर भी कुछ नया सीखने की जिज्ञासा जाग उठी थी।



_______________________________________________



राजस्थान, वीरभद्र का गांव...


ट्रेनिंग का पहला चरण पार्थ ने शुरू कर दिया था। भ्रम जाल फैलाना और सामने होकर भी छिपे रहने की कला को वीरभद्र बारीकी से समझ रहा था। वह एक बेहतरीन स्नाइपर था इसलिए सबसे पहले इसी विषय को उठाया गया कि कोई दूसरा स्नाइपर जब कहीं दूर से निशाना ले रहा हो, तब खुद का बचाव कैसे किया जाए।


भ्रम जाल की इस कड़ी में वीरभद्र के दिमाग की नशें हिल गई। कुछ सुरवाती भौतिक विज्ञान की जानकारी के बाद, जब आइने के प्रयोग वीरभद्र सुना, तो उसे ऐसा लगा जैसे अभी स्नाइपिंग में बहुत कुछ सीखना बाकी है। दूसरे स्नाइपर से बचने की कड़ी में आइने के प्रयोग को समझाने के बाद, पार्थ ने वीरभद्र को एक माइक्रो डिवाइस का प्रयोग भी सिखाया, जिसमे दूसरे स्नाइपर से बचने के लिए "बॉडी टारगेट डेविएशन" प्रोग्राम किया गया था, जहां इस डिवाइस की मदद से किसी के इंसान की वास्तविक स्थिति को वर्चुअली कुछ इंच का हेर-फेर किया जा सकता था।


पहले चरण के सेशन के बाद फिर दोनों फिजिकल एक्सरसाइज और "लौंग एंड शॉर्ट रेंज" टारगेट प्रैक्टिस करने लगे। निम्मी भी दोनों को छिपकर ट्रेनिंग करते देख रही थी और अपने काम कि बातों पर पूरा ध्यान दे रही थी। दिन के खाने के बाद फिर आया निम्मी के इंग्लिश क्लास की बारी।


बेचारा पार्थ डरा सहमा सा उसके सामने बैठा बिना अपने नजरें ऊपर किए उससे मूलभूत चीजें समझा रहा था। इसी क्रम में एक बार पार्थ की नजर जैसे ही ऊपर गई, निम्मी उसे टोकती हुई कहने लगी…. "आखें ही निकाल लूंगी दोबारा अगर नजर ऊपर करने के भी कोशिश किए तो।"


पार्थ:- सॉरी वो मैं नहीं चाहता था, लेकिन गर्दन अकड़ गई थी इसलिए ऊपर करनी पड़ी।


निम्मी:- अकड़ी गर्दन के साथ जिंदा रहा जा सकता है लेकिन गर्दन ही उतार गई फिर क्या करोगे।


बेचारा पार्थ दोबारा कुछ नहीं बोला और अपने काम में वो लग गया। आधे घंटे की क्लास खत्म होने के बाद निम्मी उसे टोकती हुई कहने लगी… "मुझे तुमसे कुछ सीखना है उसके लिए मुझे नियमित समय चाहिए।"


पार्थ:- ठीक है शाम के 4 बजे से शुरू करेंगे… एक दिन के ट्रेनिंग के बाद तय कर लेंगे की आगे का समय कितना लगना है।


निम्मी:- ठीक है, मुझे कार चलानी भी सीखनी है।


पार्थ:- कुछ ज्यादा ही तुम तो उम्मीद लगाए बैठी हो।


निम्मी:- एक ही विकल्प है इसलिए आश्रित होना पड़ता है, वरना घटिया लोग मेरे आसपास भी हो तो मुझे कतई बर्दास्त नहीं होता।


पार्थ:- यह कुछ ज्यादा नहीं हो रहा। तुम्हे नहीं लगता कि तुम कुछ ज्यादा ही बोल रही हो।


निम्मी:- हम्मम ! ये भी सही है, जितनी कम बातें और ज्यादा से ज्यादा काम कि बातें हो, वहीं फायदेमंद है। ठीक है मै कोई निजी बात नहीं करूंगी। कार कब सीखा रहे हो।


पार्थ:- अभी चलो। पहले ड्राइविंग फिर कला..


निम्मी:- ठीक है। तुम गाड़ी निकालो जबतक मै तैयार होकर अाई।


पार्थ गाड़ी निकालने चला गया और निम्मी तैयार होकर उतरी। निम्मी का चिढ़ पार्थ पर देखने को बनता था। पार्थ आगे बैठकर ड्राइविंग कर रहा था और निम्मी पीछे से बैठकर सीख रही थी। लौटते वक़्त जब लगा की निम्मी को खुद से कोशिश करनी चाहिए, फिर वो गांव के पास अपनी कार कुछ दूर ड्राइव करती अपने घर तक लाई।


पार्थ उसके सीखने कि ललक को बहुत ही गहराई से आकलन कर रहा था। ट्रेनिंग एरिया में भी निम्मी बहुत ही सधी और अपने जरूरतों कि चीजें सीखने में ज्यादा रुझान रख रही थी। जिसमे वो चाकू से क्लोज रेंज कॉम्बैट में अपने मूव्स को और कितना इफेक्टिव कर सकती है, उसपर विशेष ध्यान दे रही थी।




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पार्थ और स्वास्तिका, यूं तो वीरभद्र और कुंजल को 3 महीने में अपने दिए लक्ष्य तक सिखाने में उन्हें लगे हुए थे, लेकिन कुंजल और वीरभद्र को सिखाने के क्रम में, वो दोनों भी बहुत कुछ सीख रहे थे। जहां एक ओर पार्थ क्लोज कॉम्बैट में चाकू और खंजर के प्रयोग को अपने अंदर उतार रहा था, वहीं स्वास्तिका कुंजल से वो हाथ की सफाई सीख रही थी, जिससे आज तक सभी घरवाले अनजान थे।


हर दिन के साथ सबकी ट्रेनिंग में ज्यादा ही निखार आ रहा था। कुछ सीखने कि ललक ऐसी थी इन लोगों में कि ये सभी 2 दिन का ट्रेनिंग शेड्यूल एक दिन में पूरा कर रहे थे। वहीं अगर इन सबमें निम्मी की चर्चा हो तो वो 3 दिन का शेड्यूल 1 दिन में कवर कर रही थी, हां बस थोड़े संयम की कमी थी उसमें और जल्द ही किसी बात को लेकर गुस्सा हो जाया करती थी।


एंगेजमेंट को 28 दिन हो चुके थे, इस दौरान हर कोई पाने आज को खुशियों में जीते हुए, कल की तैयारियों में लगे हुए थे। अपस्यु से केवल नंदनी की लगातार बातें हुआ करती थी बाकी सबको शक्त हिदायत थी कि कुछ ज्यादा ही जरूरी हो तो ही संपर्क करने। 2014 की जुलाई भी लगभग अपने समापन के ओर थी और अपस्यु का एक छोटा सा संदेश ऐमी के पास पहुंचा। ऐमी उस संदेश को देखती हुई खुद से ही कहने लगी…. "ना जाने कब से इसका इंतजार था… लव यू.. उम्माह"…
nice update ..parth virey ko aur nimmi ko train kar raha hai ,wahi dusri taraf swastika kunjal ko ...aur unse sikh bhi rahe hai ..
 
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Arv313

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Le to le fir teri Yaad me do shabd sun tab tak
आकर के करीब वो बोले हमसे आंखों को खोलो
मैं स्वयं को तुमसे जोड़ने को इस कदर बेकरार हूँ
मेरे सीने में धडकता हुआ एहसास तुम ही हो मेरी दिन और रात तुम्ही हो
इन नैनो को खोलना पड़ा तुम्हें देखने के कारण
क्योंकि हर जगह अब यार तम ही हो।
Waiting for the next update eagerly.
 
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aman rathore

Enigma ke pankhe
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Doston ... Aaj kal main "Kaisa ye Ishq Hai, Ajab Sa Risk Hai"... Iss kahani ka end likhne me vyast hun .. jo mere khyal se Sunday tak pura ho jayega...

Uske baad "
Bhanwar" Ke update aane shuru honge... Jiska ek part end ho chuka hai aur final part ending ke ore hai...jo mere khyal se ab jyada dur bhi nahi hai..

Dhanywad
:eek1: besabri se intazar rahega bhai
 
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