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लड़की:- यार घरवालों को दिखाने के लिए इसके बाजू में ही एक और चूतिया रहता है पंकज, बताने के लिए उसे मैंने अपना बॉयफ्रेंड बना रखा था। अब उस चूतिया पंकज मेरे साथ सेक्स करने के लिए इसका कमरा मांग लिया। और उसी दिन मैंने भी इससे कमरा मांग लिया, पर अपनी गर्लफ्रेंड के लिए। इस चूतिए गुफी और प्रदीप ने पंकज को बता दिया कि अपार्टमेंट में मेरा एक बॉयफ्रेंड और अपार्टमेंट के बाहर 1,2 और बॉयफ्रेंड है।
स्वस्तिका:- सच में गधे है दोनों।
लड़की:- गधे की मां की चू.. जरा ये डंडा देना बैंचों से हिसाब बराबर कर लूं।
स्वस्तिका:- हेय उनके ओर से सॉरी एक्चुली कभी वो किसी बोल्ड गर्ल से मिले नहीं ना, इनफैक्ट तुम समझ सकती हो, जिसने कभी ओपन माहौल ना देखा हो तो वो कैसे रिएक्ट करेगा। वैसे मै एक परमानेंट सॉल्यूशन बता सकती हूं।
लड़की:- क्या?
स्वस्तिका:- तुम और तुम्हारी गर्लफ्रेंड इन दोनों को पकड़ लो तो?
लड़की:- हम्मम ! विचार करने लायक बात तो है, लेकिन यार एक डर भी लगा रहता है, इनकी बेवकूफियां। साले चिपकू होते है, सीरियस टाइप वाले।
स्वस्तिका:- इन्हे इनकी मतलब की चीज मिलेगी, तुम्हे अपने मतलब की। ऊपर से इनका ट्रेवलिंग वाला काम है तो दोनों कभी बाहर कभी अपने कमरे में, ऊपर से दोनों रहेंगे तो पिकअप और ड्रॉप की चिंता भी खत्म।
लड़की:- हम्मम ! गुड आइडिया। थैंक्स डियर, वैसे हॉट तुम भी कम नहीं।
स्वस्तिका:- लेकिन डार्लिंग मेरा अभी लड़कों से मन भरा नहीं, इसलिए हम दोनों में कुछ नहीं हो सकता। बाय द वे मैं स्वस्तिका।
लड़की:- मै जेन..
स्वस्तिका:- ठीक है जेन, नंबर देती जाओ, दोनों को सब समझाकर फोन करवाती हूं उनसे।
जेन के जाते ही स्वस्तिका जब लौटी तो बिना कुछ कहे ही दोनों को 2 डंडे होंक दी।… "क्या हुआ जो दोनों को मार रही हो।"…
स्वस्तिका:- कुछ नहीं छोड़ो, मै बाद में बात करती हूं दोनों से। और भी किसी लेडीज को यहां निपटाना है या हो गया सब खत्म।
आरव:- क्यों क्या हुआ, तुझे मज़ा नहीं आ रहा है क्या?
स्वस्तिका:- नहीं वो बात नहीं है, पहली बार तुम लोगों से दूर जाते थोड़ा इमोशनल फील कर रही हूं।
आरव उसके कंधे पर हाथ रखते, उसे किसी दोस्त की तरह पकड़ा… "हेय हमारी नॉटी तो ब्रेव है ना। अच्छा सुन अपस्यु को लौट आने दे यहां फिर मै और मां कुछ दिनों के लिए तेरे पास आ जाएंगे।
स्वस्तिका:- नहीं कोई मत आना, वरना ये आना जाना और भटकायगा। मै वहां का काम समेटकर तय समय तक वापस आ जाऊंगी।
आरव:- चल ठीक है फिर ऐसे मायूस नहीं होते।
स्वस्तिका और कुंजल के साथ पूरा वक़्त बीतने के बाद शाम को सभी उसे एयरपोर्ट ड्रॉप करने नीकल गए। कुंजल जाए और वहां साची ना हो और जहां साची हो वहां लावणी ना हो। ऐसे करके पूरा कुनवा ही आ गया छोड़ने दोनों को। लौटते वक़्त वहीं से लावणी और आरव अपने कुछ खास पल बटोरने साथ घूमने निकल गए वहीं नादनी साची के साथ वापस लौट आयी।
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राजस्थान वीरभद्र का गांव...
पूजा की तैयारियां करनी थी इसलिए बिल्कुल सुबह से ही सब तैयारियों में लगे हुए थे। वीरभद्र और शकुंतला दोनों मिलकर सरा काम कर रहे थे। पार्थ ने बीती शाम ही अगली सुबह 11.10 मिनट का मुहरत निकाल दिया था।
दोनों काम में लगी थी। कुछ देर बाद निम्मी भी जाग गई और वो भी पूजा के काम में हाथ बटाने लगी। सुबह के 8 बजे लगभग जब सरा काम खत्म हो गया, तब वीरभद्र और शकुंतला गांव वालों की बुलाने चले गए। जाते-जाते निम्मी को तैयार होकर पार्थ को उठाकर विधि शुरु करने के लिए कहते गए दोनों।
धुप तेज होने की वजह से पार्थ की भी नींद खुल गई और वो जम्हाई लेते जैसे ही जगा, नजरों के सामने वहीं कल वाली निम्मी थी, जो अल्लहर और धूल से नहाई हुई थी। पार्थ अपना आंख मिजते हुए, पूरी आखें खोल कर देखा… उसे देखकर तो उसके मुंह से "वाउ" ही निकला… "ओय शहरी बाबू, नजरें ठीक करो अपनी, वरना चाकू घुसेड़ दूंगी।"..
"सॉरी वो तुम इतनी कमाल कि लग रही थी कि मै खुद को तुम्हे देखने से रोक नहीं पाया।"..
निम्मी:- देखना हो गया हो तो जाओ तैयार हो जाओ, खुद ही सुबह का मुहरत देकर भूल गए। आज ही मुझे अपने खुद के कमरे में जाना है।
पार्थ:- तुमलोग वहां चले जाओगे तो फिर ये मकान।
निम्मी:- मेरे दानवीर भाई और मेरी मां है ना.. उन्होंने ये सब मेरे चचेरे भाई को दान कर दिया। हम वहां जाएंगे और वो यहां आएंगे… लो देखो भिकरी आ भी रहे है। मै जा रही हूं तुम तैयार होकर आओ।
पार्थ अंदर बैग से अपना तौलिया निकाला और चल दिया जल्दी से फ्रेश होने। वो जब नहाकर तौलिए में बाहर निकाल रहा था, ठीक उसी वक़्त वृज उसका रास्ता रोके उसे कल रात के लिए एक बार फिर धन्यवाद कहने लगा। वहीं पास में ही खड़ी उसकी बीवी कमला इतने नेक इरादे से पार्थ को देख रही थी, कि पार्थ को थोड़ा डर भी ही गया, कहीं कमला उसका रेप ना करदे अपने पति के ही सामने।
पार्थ तेजी से अपनी जान और इज्जत दोनों बचाते हुए वहां से सीधा कमरे ने भागा और धोती कुर्ते पहनकर तैयार हो गया। गृह प्रवेश का सरा काम खत्म करके वीरभद्र और पार्थ दोनों कुछ पल के लिए ही मात्र घर के अंदर घुसे, फिर वहां से ऐमी के भेजे कार्गो को लेने दोनों उदयपुर के लिए निकल गए।
बीती रात को ऐमी ने हर किसी का सामान उसके सुविधानुसार उनके बताए जगह पर भिजवा दिया था। चूंकि पार्थ को काम जल्दी शुरू करना था इसलिए ऐमी ने अपने एक कर्मचारी के हाथ से वो पार्सल उदयपुर भिजवा दिया था।
पार्थ:- तुम्हे कुछ आइडिया है कि तुम्हे यूएसए में स्निपर ट्रेनिंग और यहां मै तुम्हे 3 महीने की ट्रेनिंग क्यों देने आया हूं।
वीरभद्र:- अपना मर्दों वाला काम है पार्थ भाई। खून से सने पैसों को साफ करना और जमीन पर लेट कर रोना।
पार्थ:- अच्छा मज़ाक था। अब जो पूछा वो बताओ।
वीरभद्र:- मुझे ज्यादा तो पता नहीं लेकिन अंदर ही अंदर आप लोग किसी को बर्बाद करने कि सोच रहे हो, और सबसे ख़तरनाक तो वो अपस्यु भाई हैं। केवल बिजली के लाइट ऑन ऑफ करवाया और उसी के कुछ देर बाद 4 लोगों को कार समेत पापड़ बना दिया।
पार्थ:- हम्मम। मतलब चीजों को परखना तुम भी सीख रहे हो।
वीरभद्र:- सब गुरुदेव आरव की कृपा है।
पार्थ:- तुम विक्रम सिंह राठौड़ को जानते हो।
वीरभद्र:- वो बड़ी से कंपनी के मालिक, महाराज हर्षवर्धन सिंह राठौड़ के वंशज की बात तो नहीं कर रहे ना।
पार्थ:- हां उसी कि बात कर रहा हूं।
वीरभद्र:- उन्हें कौन नहीं जानता। ये पूरा गांव और इसके अंदर तक सुदूर इलाका सब उन्हीं का तो था। पहले राजा थे तो सीमा बढ़ाते थे, अब व्यापारी है तो व्यापार बढ़ाते हैं। उनकी पड़ोस के गांव पर तो उनकी असीम कृपा भी है। आप ये जो मेरा मकान देख रहे हो ना, पड़ोस का पूरे गांव में इससे भी शानदार मकाने हैं, कोई 1 एकर, तो कोई 2 एकड़ में बने मकान। उसी गांव के बीच है राजा साहब का भव्य महल।
पार्थ:- अच्छा एक बात बताओ, ये कुंवर सिंह राठौड़ की क्या कहानी है?
वीरभद्र:- बहुत ही नीच और गिरा हुआ था वो। शुरू-शुरू में तो सब उसे राजा का ही दर्जा देते थे, लेकिन कुंवर सिंह ने पहले तो धोखे से अपने भाई की सारी संपत्ति हड़प ली।
पार्थ:- किसकी..
वीरभद्र:- राजा विक्रम के पिताजी सूरज भान की। फिर उन्हें पड़ोस के ही गांव में छोटा सा जमीन का टुकड़ा दे दिया। यहीं कहते है पार्थ भाई की कोई एक भाई कितना भी बेईमान हो जाए, दूसरा भाई में अपने भाई के लिए दया जरूर होती है। सूरज भान भी वही दयालु भाई था। कुंवर सिंह ने चाहे कितने भी धोखे किए हो, लेकिन कभी सूरजभान ने किसीको अपनी आपबीती नहीं सुनाई।
पार्थ:- आपबीती नहीं सुनाई तो तुम्हे कैसे पता?
वीरभद्र:- क्योंकि हम जहां से गुजर रहे है ये पूरा इलाका कुंवर सिंह का है और पड़ोस के गांव सूरजभान को दिया गया था। वहां देखिए राजा विक्रम ने जब खुद की तरक्की की, तो पूरा गांव तरक्की कर रहा है और यहां सब ऐसे ही पड़ा है, भोगने वाला कोई वारिश नहीं।
पार्थ:- क्यों उस परिवार का क्या हुआ सो?
वीरभद्र:- कुत्ते की मौत मेरे थे। पहले गाड़ी पर बिजली गिरि, जिसमे पूरा खानदान झुलस गया। फिर पत्थर में कहीं दब गई उनकी गाड़ी। कोई क्रियाकर्म करने वाला तक नहीं था तो राजा विक्रम ने ही सबका क्रियाक्रम किया था। हां उसकी एक बेटी तो थी जो किसी के प्रेम में पड़कर शादी कर ली, लेकिन वो दोबारा कभी लौटी नहीं। वैसे भी ना ही लौटे उसीमें उसकी भलाई है, क्योंकि वो यदि यहां आ गई तो लोग उसे और उसके पूरे परिवार को जान से मार देंगे।
पार्थ:- यह परिवार इतना बुरा है तुम लोगों की कब पता चला?
वीरभद्र:- पता क्या चलना भाई, कोई बात छिपी थोड़े ना रहती है। दोनों गांव के कई शादियां है तो पता चल ही जाता है।
पार्थ:- फिर तो कुंवर सिंह का भी महल होगा।
वीरभद्र:- नहीं यहां गांव में नहीं थी कोई महल। एक उदयपुर में उनका निवास था जो शायद आजकल किसी होटल में बदल गई है। दूसरी दिल्ली में एक आलीशान भवन है, वहां राजा विक्रम रहते हैं। उनकी इंसानियत देखिए वो चाहे तो पूरे इलाके का इकलौता वारिस हो, क्योंकि बेटियों का संपत्ति पर हिस्सा नहीं होता लेकिन राजा विक्रम ने केवल एक चौथाई हिस्सा अपने पास रखा और उसी ने अपना और अपने लोगों की तरक्की कर रहे। और जो मुंह कला करके भाग गई उसके नाम बाकी की संपत्ति जमा होते रहती है। केवल इस आस में कि कभी तो वो लौटेगी। कमाल है ना, राजा विक्रम ने 1 रुपए की संपत्ति को अपनी मेहनत से 1000 रुपए का बना गए और एक महारानी बिना मेहनत किए 750 की मालकिन है। जो मेहनत कर रहा है उसके हिस्से में 250 रुपए है.. लेकिन वो उसमे भी खुश है। वो तो यही कहता है मै तो 0 से शुरू करके 250 पर हूं, दूसरो की संपत्ति क्यों देखूं।
पार्थ:- कमाल के इंसान है ये राजा विक्रम। वैसे तुम्हे पता है कि नहीं एंगेजमेंट में विक्रम सिंह राठौड़ भी पहुंचे हुए थे…
वीरभद्र:- क्या बात कर रहे हो भाई, मुझे बताया क्यों नहीं की वो वहीं होटल में है, मुझे मिलना था उनसे..
पार्थ:- चिंता मत कर जल्द ही मिलेगा।
वीरभद्र:- भाई आप लोग की कृपा रही तो मै उस देवता से जरूर मिल लूंगा।
पार्थ:- एक बात बता सच सच..
वीरभद्र:- पूछो ना भाई।
पार्थ:- अगर तू आरव को देखता है और उसे राजा विक्रम की तुलना करते हो तो कौन ज्यादा अच्छा है।
वीरभद्र:- यह कैसा सवाल है। दोनों में कहां आप मेल ढूंढ़ रहे हो?
पार्थ:- फिर भी बता ना..
वीरभद्र:- सुनो भाई, राजा विक्रम की सुनी सुनाई बात है। इसलिए मैंने जो देखा, मेहसूस किया, और अपनी बुद्धि से जितना समझा हूं, उससे मै एक ही बात कहूंगा, आप सब का कोई तुलना नहीं। आप लोग न्याय और नीति के साथ अपने लोगों का ख्याल रखते हो, बाकी वो राजा विक्रम है उन्होंने जो किया है वो भी कोई कम नहीं लेकिन चूंकि मैंने उन्हें कभी देखा नहीं और ना ही उनके बारे में करीब से जाना इसलिए तुलना नहीं कर सकता।
पार्थ:- वीरे तू अपस्यु के पास बैठता था क्या?
वीरभद्र:- हां… पूरे एंगेजमेंट उन्होंने मुझे अपने साथ रखा था। लेकिन बात क्या है भाई?
पार्थ:- समझदारी की बातें किसी को भी जो समझा सके वो इकलौता पंडित वहीं है। खैर अब एक अहम सवाल.. क्या तुम्हे पता है कि तुम्हे इतनी ट्रेनिंग और बाकी सारी चीजे क्यों सिखाई जा रही है?
वीरभद्र:- नाह, मैंने कभी नहीं सोचा और ना ही पुछा। केवल इस विश्वास के साथ की पहले मै गलत लोगों के साथ था, अब तो जैसा काम दीजिए करता जाऊंगा। मर भी गया तो सुकून होगा कि कुछ अच्छा करके मरा। सुकून इस बात का भी होगा कि मेरे पीछे मेरे परिवार को कोई देखने वाला होगा।
पार्थ:- ठीक है वक़्त आ गया है तुम्हे बताने का की तुम क्या काम करोगे और किसके लिए करोगे..
वीरभद्र काफी उत्सुकता से … "जल्दी बताओ भाई"
पार्थ:- तुम्हारे ऊपर कुंजल और आंटी की जिम्मेदारी रहेगी। उन्हें पूरा सुरक्षा प्रदान करना। तुम्हे उनके लिए एक बॉडीगार्ड से बढ़कर बनना होगा।
वीरभद्र:- क्या मज़ाक कर रहे हो भाई। उन दोनों कि किसी ने छुए भी तो उनका अस्तित्व मिट जाना है। मैं बेवकूफ हूं लेकिन इतना भी नहीं की ये ना समझ सकू की आपसब क्या कर सकते हो और खासकर वो शांत इंसान जो हमेशा मुस्कुराते रहता है। ऐसा लगता है स्वयं महादेव विराजमान है उनके अंदर। जिनका विनाश करीब होगा वही पंगे लेगा आप लोगों से।
पार्थ:- अभी पता चल जाएगा.. जैसे अब तक सब जान कर भी सारे बातों से अनजान हो, ये बात भी ठीक वैसे ही है। नंदनी रघुवंशी के पिताजी का नाम कुंवर सिंह राठौड़ है।..
वीरभद्र जो अबतक पूरे संतुलन के साथ गाड़ी चला रहा था, पार्थ के मुंह से यह सच सुनकर ऐसा संतुलन खोया की ब्रेक लगाते-लगाते एक चट्टान से जाकर गाड़ी भिड़ा दिया। उसका पूरा दिमाग ही जैसे काम करना बंद कर दिया हो और टुकुर टुकुर बस पार्थ को ही देखे जा रहा था।