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Romance भंवर (पूर्ण)

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Update:-138





आरव अपने सर का बाल नोचते, 4-5 छड़ी घुमा दिया… "चुटिया हम तुम्हारा भूतो और वर्तमान तो जानते ही है, ज्यादा बकवास की ना तो भविष्य भी यहीं लिख देंगे।


ऐमी:- देवरजी, मै भी यहीं हूं, थोड़ा लहजा रखिए।


आरव:- सॉरी भाभी।


अपस्यु:- एक मिनिट थोड़ा शांत हो जाओ, और प्रकाश सर को बोलने दो। इतिहास के कुछ पन्ने शायद अछूते है, उन्हें जानने का मौका मिला है। प्रकाश सर आपके यूएस की कहानी पता है। पहले चिंदिगीरी करके भक्त बनाए, फिर एक गरीब पॉलिटीशियन की बेटी से शादी किए और बाद में उसके कुछ समाज सेवा और अपनी कुछ चिंदिगिरी से यूएस सीनेटर तक का सफर तय किया। ऑटोबायोग्राफी लिखने के लिए बहुत समय है अभी। इंट्रेस्टिंग पार्ट तो यह है कि तुमलोग से वो नकारा चन्द्रभान कैसे टकरा गया।


विक्रम:- "इसे यहां के बारे में कुछ पता हो तो ना। मै बताता हूं राजस्थान की कहानी। तब कुंवर सिंह और चन्द्रभान के पिता के बीच मूंछ की लड़ाई थी, हालांकि रघुवंशी परिवार की कोई आैकाद ही नहीं थी कुंवर के आगे, लेकिन समाज में जहां कहीं भी दोनो आमने-सामने होते, बस एक दूसरे पर तंज कसा करते थे। हालांकि मेरे चाचा कुंवर सिंह, चन्द्रभान और मेरे पिता को जोकर से ज्यादा कुछ नहीं समझते थे, इसलिए केवल अपने मनोरंजन के लिए उनकी बात सुना करते थे।"

"हम एक ही परिवार के थे लेकिन हमारी स्थिति भी रघुवंशी से ज्यादा अच्छी नहीं थी। कुंवर सिंह से मै भी खुन्नस खाए घूम रहा था और चन्द्रभान भी। बस ऐसे ही एक सामाजिक कार्यक्रम में हम दोनों की मुलाकात हुई, मकसद एक जैसे थे इसलिए जल्द ही हम में घनिष्ठता भी हो गई।"

"अभी तुमने अनुप्रिया और उसके 3 साथियों के बारे में सुने, कोई दो राय नहीं की ये चारो मिलकर आज पूरे देश की सरकार को ही चला रहे है, लेकिन चन्द्रभान रघुवंशी इन सब का भी बाप था। उसके दिमाग में अगले 20 साल तक का प्रोजेक्शन चलता था। उसी ने पहले मुझे सैटल किया। उसी के कहने पर मै कुंवर सिंह के करीब पहुंचा और भीख में अपनी संपत्ति बनाई थी।"

"वहीं चन्द्रभान अब भी बड़े मौके की तलाश में था और वो मौक अनुप्रिया बनकर आयी थी। अनुप्रिया प्रचार के सिलसिले में जयपुर पहुंची, वहीं पहली बार अनुप्रिया और चन्द्रभान कि मुलाकात हुई। मै भी था उस वक़्त चन्द्रभान के साथ। पहली मुलाकात में ही उसने अनुप्रिया से सामने से कहा था…. "तुम मेरी पत्नी बन जाओ, मै तुम्हारे हर सपने को साकार कर दूंगा।"

"अनुप्रिया अचंभित, उसके सेवक आक्रोशित लेकिन चन्द्रभान वहां अडिग खड़ा रहा। लंबी बहस के बाद अनुप्रिया ने कुछ सोचकर उसे बोलने का मौका दिया। फिर चन्द्रभान ने अपनी भविष्य नीति को बताया कि उसके और अनुप्रिया के मिलने से अगले 5 साल में वो कहां होगा, 10 साल में कहां पहुंचेगा और आने वाले 20 साल में वो कहां होंगे।"

"अनुप्रिया उससे इंप्रेस तो हुई, लेकिन उसने चन्द्रभान से खुद को साबित करने के लिए कही। चन्द्रभान ने अनुप्रिया का अपॉइंटमेंट राजस्थान के सीएम से लीया। उस मीटिंग में चन्द्रभान ने सीधे उस सीएम से कहा था कि वो उसके ट्रस्ट में इन्वेस्ट करे, कुछ ही दिनों में वो उसके ब्लैक को व्हाइट में बदल देगा।"

"सीएम ने साफ मना कर दिया और दोनो को निकाल दिया। सीएम तो हाथ नहीं लगा, लेकिन छोटे-छोटे पॉलिटीशियन जो अपना माल सीएम और पार्टी अध्यक्ष से छिपाकर जमा करते थे, उसके काम मिलने शुरू हो गए। साथ ही साथ उन लोगों ने पॉलिटिकल पार्टी के प्रचार का भी जिम्मा उठाया और अलग-अलग तरह के प्रचार के लिए अलग-अलग रेट तय हुआ।"

"खैर ये अनुप्रिया और चन्द्रभान कि मुलाकात का पहला साल था और पहले साल में ही चन्द्रभान ने खुद को सबसे काबिल साबित कार दिया था। अनुप्रिया चन्द्रभान चन्द्रभान का प्रस्ताव मानकर गुप्त विवाह कर ली। कहानी इनकी आगे बढ़ते रही और कमाल के दिमाग वाले समूह का एक मजबूत हिस्सा था चन्द्रभान।"

"उन्हीं दिनों चन्द्रभान के घर से उसके शादी का दवाब आने लगा। अनुप्रिया और चन्द्रभान अपनी शादी गुप्त रखने के लिए, अनप्रिया ने ही चन्द्रभान को शादी कर लेने के लिए कही और चन्द्रभान से शादी कर ली। इस शादी के बाद तो जैसे उसके स्लो विजन को रातों रात पंख मिल गए हो।"


प्रकाश:- हां पंख क्यों ना लगेंगे, क्योंकि प्रताप ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक प्रताप सिंह ने पूरी एक कंपनी खड़ी करके दी थी, वो भी अपनी पत्नी के कहने पर, उसकी छोटी बहन और जमाई को। कुछ समझे की नहीं विक्रम या साले अब भी अक्ल पर पर्दा परा है। ये दोनो चन्द्रभान के लड़के है। दोनो का दिमाग तो अपने बाप से भी 10 कदम आगे का है रे।


अपस्यु ने आरव के ओर देखा और दोनो पर छड़ी पड़ने शुरू हो गए…. "क्यों इतने एक्साइटेड हो रहे हो, मुझे तुम दोनो में कोई दिलचस्पी नहीं है, छूट जाओगे। अभी रिश्तेदारी निभाने का वक़्त नहीं है रे। बस मुझे कुछ समझना है वो समझा दो। गुरु निशी और उनके शिष्यों को मारना जरूरी था क्या? और क्या तुम्हे पता था कि चन्द्रभान के 2 बेटे है?


विक्रम और प्रकाश एक साथ… नाह ! हमे केवल इतना पता था कि चन्द्रभान का केवल 1 बेटा है और वो चन्द्रभान साल में एक बार जब अपनी पत्नी को भारत लाता था, तो वो उसे गुरू निशी के आश्रम में छोड़कर खुद माहीदीप के साथ वाले आश्रम में रहता था।


अपस्यु:- इस कहानी में भूषण रघुवंशी का रोल क्या था?


विक्रम:- उसे नंदनी के शादी के कारण अपने जान से हाथ धोना पड़ा था। एक लंबे प्लान के हिस्से के तहत चन्द्रभान ने भूषण को अपनी कंपनी में पार्टनरशिप दी थी और उसके दिमाग में मायलो ग्रुप टारगेट हो रहा था। लेकिन वो नेक्स्ट स्टेप प्लान था, क्योंकि एक पूरी रॉयल फैमिली को हटाने के लिए स्ट्रॉन्ग बैकअप और कंप्लीट प्लान की जरूरत पड़ती और हवाले का काम जैसे-जैसे आगे बढ़ता जा रहा था, हमे पॉलिटिकल और एडमिनिस्ट्रेटिव बैकअप मजबूत होता जा रहा था।


अपस्यु:- अबे कम अक्ल लोग तुम तो चन्द्रभान के बारे में डिटेल कर दिए, सवाल का पहले हिस्सा का जवाब कौन देगा?


प्रकाश:- गुरु निशी और उसके शिष्यों को साफ कर की प्लांनिंग यूएस में मेरे यहां ही हुई थी। हम पॉलिटिकली काफी स्ट्रॉन्ग हो चुके थे, ब्लैक मनी हमारे पास हद से ज्यादा थी, और मायलो ग्रुप पर कब्जे की पूर्ण तैयारी चल रही थी।


अपस्यु:- अबे "सी.ए.बी" कंपनी तो पहले से ही थी ना उसके पास, फिर मायलो ग्रुप।


प्रकाश:- "चन्द्रभान की कंपनी ब्लैक लिस्टेड हो गई थी क्योंकि बिना कोई माल बेचे ये कंपनी प्रोफिट में जा रही थी। खैर ये बहुत छोटा कारण था। दरअसल मायलो ग्रुप काफी दान करती थी, और हमारे अपने ब्लैक को व्हाइट करने का समय आ चुका था। तय ये हुआ कि मायलो ग्रुप के मालिक को साथ मिलाकर 4 साल का सपोर्ट लेंगे। पहले उनकी कंपनी को प्रोफिट करवाएंगे और बाद में उस प्रोफिट को हम दान के रूप लेंगे। वो दान के पैसे बिल्कुल व्हाइट मनी होते जिसे कहीं भी इन्वेस्ट करके उससे पैसे कमाए जाते।"

"कुंवर सिंह राठौड़ इस बात के लिए राजी नहीं हुआ, तब एक खेल रचा गया "टोटल कंट्रोल"। जिसकी प्लांनिंग मेरे घर पर हुई। चन्द्रभान की कंप्लीट प्लांनिंग का नतीजा है ये पुरा एम्पायर। विक्रम के हाथ आयी मायलो ग्रुप का कंट्रोल, और हमारी ब्लैक मनी आसानी से व्हाइट होनी शुरू हो गई।"

"गुरु निशी और उसके शिष्यों को हटाने की जरूरत ना होती, यदि गुरु निशी अरे नहीं होते। हमने उन्हें भी मिलकर काम करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने तो युद्ध छेड़ने की बात कह दी। प्रस्ताव मै और विक्रम लेकर गए थे और गुरु निशी को पता तक नहीं था कि आस्तीन में उन्होंने कितने सांप पाले है। गुरु निशी हमारे खिलाफ जंग करने की तैयारी में थे और कानूनन उन्होंने ट्रस्ट माहीदीप के नाम कर दिया।"

"बुड्ढे की क्षमता को हम नजरंदाज नहीं कर सकते थे, क्योंकि उन्होंने अगर कुछ करने की ठान ली हो, फिर तो उसके रास्ते में भगवान क्यों ना आ जाए, वो उससे भी लड़कर जीत हासिल कर सकता था। इसलिए यहां भी कुंवर सिंह के परिवार की तरह, गुरु निशी और उसके समस्त परिवार को एक साथ साफ कर दिया। पूर्ण योजना थी गुरु निशी के भी केस में। हमे बस मॉनिटर करना था। सोच बहुत साफ थी हमारी, जिसने भी आवाज़ उठाया उसे गायब कर देना। क्योंकि इतने सारे लोग में कौन मरा कौन बचा, कौन हिसाब रखे। जो मिला उसे आग में झोंक दो, और बचे हुए लोग जब हल्ला करे तो उसे गायब कर दो।"

"लगभग 4 सालों तक अनुप्रिया अपने ब्लैक मनी मायलो के प्रोफिट में दिखाती रही। जितना भी रकम प्रोफिट में जाता, उसका 20% हिस्सा मुझे और विक्रम को मिलता, 10% हिस्सा कंपनी ग्रोथ में और 70% हिस्सा उनके ट्रस्ट को दान। 4 सालों में अनुप्रिया की जब खुद की कंप्लीट इंडस्ट्री तैयार हो गई, जहां वो खुद के ब्लैक पैसे को, खुद के ही इंडस्ट्री में प्रोफिट दिखाकर वापस उसे मार्केट में इन्वेस्ट कर सकती थी, तब उसने मायलो से रिश्ता तोड़ लिया। उसने हमे अपने धंधे के लिए स्वतंत्र कर दिया और वो खुद अपने धंधे में व्यस्त हो गई।


आरव:- अबे जब गुरु निशी ने ट्रस्टी माहीदीप को बनाया था, फिर मेघा के नाम मुख्य ट्रस्टी में क्यों रजिस्टर है?


प्रकाश:- लंबी योजना का एक छोटा सा हिस्सा था। जिस लीगल डॉक्यूमेंट पर गुरु निशी ने सिग्नेचर किए वहां मेघा का नाम डाला गया था। पैसे को घूमने की कमाल कि नीति। अनुप्रिया को अपने ब्लैक को जल्द से जल्द व्हाइट बनाना था, इसलिए आधे पैसे मायलो से व्हाइट होकर सीधा अनुप्रिया के ट्रस्ट में दान दिया जाता था। वहीं मेघा यूएस सिटिज़न थी, इसलिए ट्रस्ट को यूएस में लीगल किया गया और वहां के लॉ के हिसाब से हमे यहां आसानी हो गई। यहां तो सीधा ट्रस्ट के अकाउंट में पैसा आता था और गुरु निशी का विदेशी ट्रस्ट अपने देशी ट्रस्ट की स्तिथि मजबूत करने के लिए सीधा दान करती थी।


अपस्यु:- चलो बस एक छोटी सी गुत्थी थी, जो अब सुलझ गई। जल्द ही वो लोग भी यहां होंगे…


प्रकाश:- फूड इंडस्ट्री, शिपिंग इंडस्ट्री, फार्मास्यूटकल्स, होटल चेन, रिटेल मार्केटिंग चेन, फिल्म इंडस्ट्री में अपना प्रोडक्शन हाउस। दिल्ली एनसीआर में 40 एकर में फैला उसका शमशान घाट। हर दिन निम्मी जैसी लड़कि को जहां नोचा जाता हो। खुदाई करवाई वहां की तो ना जाने कितने कंकाल मिलेंगे। असेम्बली के दीगर नेता जहां अपने कपड़े उतारकर हवस मिटाते है, तुम्हारा मुंह बोला बाप जिसके किसी भी नाजायज मांग को ना नहीं कर सकता.. ऐसे लोग को तुम यहां लाओगे। मस्त खवाब है। जैसा कि तुम्हारे बाप ने अनुप्रिया से कहा था, अगले 25 से 30 सालों में वो पुरा पॉवर उसके कदमों में ला देगा, सो उसने कर दिखाया। तुम अगले 50 साल तक कोशिश कर लो, वो इतने मजबूत और संगठित है की अपनी ज़िंदगी जी कर वो मर जाएंगे, लेकिन तुम कभी उसे यहां तक नहीं ला पाओगे।


आरव:- यार काफी इंफॉर्मेशन जब इन लोगो ने हमे दी है, तो बदले में हम भी एक इंफॉर्मेशन दे देते है। विक्रम राठौड़ जिस लोकेश राठौड़ को तुम अपना बेटा मानते हो वो दरअसल माहीदीप अचार्य का बेटा है। शायद अब तुम समझ सकते हो कि क्यों तेरे गावर से परिवार में ये एक दिमाग वाला आ गया, और ऐसा क्या हो गया था जो तेरी पत्नी ने बोलना ही छोड़ दिया। वो इतने गहरे सदमे में थी कि कब ये लोकेश पैदा हो गया उसे होश ही नहीं था।


जबतक आरव यह झटका दे रहा था तब तक अपस्यु, लोकेश को भी खींचकर ले आया। तीनों को कैद में डालने से पहले, उन्हें देखकर हंसते हुए अपस्यु कहने लगा… "बड़बोला कहीं का, कुछ ज्यादा ही तारीफ कर गया हमारे दुश्मनों का।"…


तीनों के कर्म की सजा का वक़्त आ चुका था। खास अंधेरी कोठरी जिसके चारो ओर की दीवार, परत दर परत गद्दे का बना हुआ था, जिसका आखरी सरफेस पर पुआल और रस्सी के बंधे काम दिखते थे, लेकिन था वो भी गद्दा, जिसके ऊपर 2 जाली लगाकर टाईट किया गया था। नीचे फर्श पर रेत। बाल गायब नाखून गायब और साथ ही आत्महत्या कि जितनी भी कोशिश हो सकती थी वो सब गायब कर दिया गया था। लोकेश, प्रकाश और विक्रम के हिस्से की बची जिंदगी, जिसमें मरने कि इजाज़त नहीं थी बस अंधेरे में अकेले जिंदगी बितानी थी।


तीनों जब लिफ्ट के ओर बढ़ रहे थे तब ऐमी…. "बेबी यहां कौन से सवाल के जवाब ढूंढ़ने आए थे?"


इस से पहले को अपस्यु कुछ कहता, आरव कहने लगा…. "भाभी, मेरी मां जनवरी में आश्रम आती थी, उस साल जून में आयी थी। सवाल ये था कि क्या चन्द्रभान रघुवंशी किसी दबाव में आकर, अचानक उस आश्रम को जलाने आया था जहां उसके बीवी और बच्चे थे, या फिर अपने पूरे परिवार को ही खत्म करने की मनसा से वो सबको यहां लेकर आया था?


अपस्यु:- गुस्से में उसे फांसी देने का बहुत अफ़सोस हो रहा है आज मुझे… सामने से चैलेंज करने की इक्छा हो रही। खैर मुझे एक बात और जाननी थी, गुरु निशी के गुरुकुल में चन्द्रभान का बेटा था, यह बात इन लोगों को पता थी या नहीं। कमाल का प्लानर, वो शुरू से हम सब को मारना चाह रहा था, इसलिए उसने मुझे यहां छोड़ा, ताकि जब भी वो अपने फ्यूचर प्लान पर अमल करे, हम भी स्वाहा हो जाएं। चलो चला जाए, 4.45 यहीं हो गए, देर ज्यादा हुई तो नंदनी रघुवंशी हमारा खाल खींच लेगी…


ऐमी:- बेबी एक ट्विस्ट तो मुझे भी नहीं बताया, लोकेश वाकई आचार्य का बेटा है।


अपस्यु:- मुझे क्या पता, वो तो आरव के दिमाग की उपज थी, जो मुझे भी अभी अभी पता चली।


ऐमी:- हीहीहीहीही… देवर जी मस्त तीर मारा है। 4 साल में जिस लोकेश ने 46000 करोड़ बनाए हो, वो तो अनुप्रिया का भी बाप होगा। देखते है ये अनुप्रिया की लंका का विभीषण बनता है या नहीं।


तीनों वापस उस जगह से उड़ चले थे। आखों का विश्वास बता रहा था कि उन्होंने क्या हासिल करके यहां से निकले है। युद्ध की धुनकी तो कल रात से ही शुरू थी। एक आजमाइश हो गई थी, अब बस आखरी पड़ाव बाकी था…
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
कहानी के असली विलेन की इंट्री अब होंगी भाई
मजा आयेगा भाई
 

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Update:-140






जबतक अपस्यु इतना बोल रहा था तभी बीच में नीलू कहने लगी… "सात्विक आश्रम के संचालक महादीपी की भांजी और अनुप्रिया की बेटी कलकी है। दूसरा उसका छोटा भाई परमहंस और तीसरा सबसे छोटा भाई युक्तेश्वर है। जिल्लत की नई ऊंचाई दिखाई थी इसने मुझे। मेरा चरित्र क्या है इसे अच्छे से समझाया था मुझे। दोनो ही कमिने पन की नई परिभाषा है, बिल्कुल मीठा जहर।


काया:- बिल्कुल यही अनुभव मेरा भी है। हमारी जिल्लत भरी जिंदगी का राज यही दोनो भाई तो है। नशा देना, ग्रुप सेक्स में मज़े लेना और जब लड़की पिरा से पागल हो रही हो, तो इन्हे वो कामुक आवाज़ समझ में आती है। इसी कमिने की वजह से लोकेश ने अपने क्लाइंट को संभोग की नई दुनिया से अवगत करवाया था। कास अजय की जगह मैंने इन दोनों भाई में से किसी को मांग लिया होता।


नीलू:- जानते हो अपस्यु, जब लोकेश ने इन तीनों भाई बहन को बर्बाद करने कि ठानी थी, तब पहली बार मुझे लोकेश के साथ काम करने में मज़ा आया था। क्योंकि जब वीरदोयी यहां आए लोकेश के पास और इन दोनो भाई का एक बड़ा काम हमारी मदद से लोकेश ने पुरा करवा दिया था, तब इसी दोनो भाई ने लोकेश को बुद्धि दी थी, कि कैसे अपने अच्छे लोगों को और अपने क्लाइंट को खुश रख सकते हैं।

इन्हीं दोनों भाइयों ने लोकेश को समझाया था कि जब दोस्त बनाकर काम अच्छे से होता है तो नए दुश्मन क्यों बनना। और सबको कैसे खुश रखते है उसका डेमो दिया था। हमारे लोगो ने हमे ही भरी सभा में नंगा किया था, हमारे कपड़े उतारे थे। हमारी चींख पर हूटिंग किए थे। हमारी बेबसी का वीडियो बनाकर, क्लाइंट के सामने पेश किया गया था। इनके क्लाइंट भी मस्त हो जाते। इनके क्लाइंट कई लोगो के बीच ग्रुप सेक्स को देखते हुए, अपने लिए यहां सिंगल पार्टनर चुना करते थे और साले मज़े किया करते थे। तुमने वाकई हमे बहुत अच्छा काम दिया है।



अपस्यु:- मतलब इनका भी पुरा चरित्र गया हुआ है। खैर लोकेश इनके धंधा में सेंध लगा रहा था इसलिए यें लोग लोकेश को रास्ते से हटाना चाह रहे थे।


काया:- हां लोकेश को मारने कि इक्छ तो प्रबल थी, लेकिन वीरदोयी के आगे ये घुटने टेक चुके थे। पिछले एक साल से लोकेश ने, इन्हे हमारे दम पर पानी पिलाए हुए था। ..


अपस्यु:- बस यही पानी पिलाना जारी रखना है। लोकेश की कहानी जिंदा रखो यहां और उसी के नाम से सब कुछ ऑपरेट करते रहो… इनके कालाबाजारी को तुम सब सेंध लगाते रहो, इनकी कंपनी को मै डुबोता हूं, मैं चाहता हूं ये तीनों खुद को ऐसा बेबस समझने लगे, जैसे किसी के पास हर चीज होते हुए भी कितने असहाय है इस बात का एहसास होते रहे…


नील, अपना सर अपस्यु के आगे झुकती……. "A man with brain, always dengerous than god"..


अपस्यु, हंसते हुए…. "मैं इसका मतलब नहीं पूछूंगा"..


नील:- लेकिन मुझे तो मेरे सवालों के जवाब चाहिए ना… तुम्हे वीरदोयी का साथ चाहिए था, इसलिए तुमने दृश्य की हेल्प लिये, लोकेश को हटाने के लिए। तुम्हारा काम होते ही दृश्य को जाने दिया, क्योंकि तुम पहले से आगे की योजना में हमे सामिल कर चुके थे…


अपस्यु:- देखो झूठ नहीं कहूंगा, तुम्हारा सोचना बिल्कुल सही है। महादिपी के मैन और ब्रेन पॉवर से निपटने के लिए बहुत पहले से वीरदोयी के साथ टीमअप कि सोच चल रही थी। ठीक वैसे ही जैसे लोकेश और वीरदोयी से निपटने के लिए मैंने अपने भाई के बारे में सोच रखा था।


काया, अपने दोनो हाथ जोड़ती…. "बाबा चमत्कारी पुरुष। दिन का पूरा इस्तमाल और घंटे का पुरा उपयोग कोई इन से सीखे। ये जहां भी रहेंगे चमत्कार करेंगे।"


अपस्यु:- काबिल बनो बच्चा, कामयाबी झक मारकर तुम्हारे पीछे आएगी।।अब ये फिल्मी ताने मुझे दिए जाएंगे। सुनो काया, कभी-कभी अपने स्वार्थ से भी अच्छा हो सकता है, इसका उदहारण मेरा कर्म पथ है। मैं कुछ चंद टूटे लोगों के साथ निकला था, और मुझे रास्ते में कई मेरे जैसे मिल गए।


काया:- ज्यादा इतिहास में नहीं घुसते है, किन्तु अपस्यु तुम केवल दिखने में छोटे लगते हो, लेकिन हो उतने ही बड़े शातिर। दृश्य को जरा भी भनक नहीं लगा कि तुम उसका इस्तमाल कर रहे.. वो शुरू से मामू का मामू ही रह गया..


अपस्यु:- पागल हो तुम काया, ना तो मैंने दृश्य का इस्तमाल किया और ना ही तुम लोगो के बारे में ऐसा विचार है। बस सभी लोगों से एक उम्मीद थी और अपने सोच पर विश्वास था, कि जब लोग एक दूसरे के साथ होते है, तो उनसे उम्मीद लगी ही रहती है।


नीलू:- हम्मम ! मैं सहमत हूं तुम्हारी बातों से। लोग ही लोग के काम आते हैं। खैर तुम्हारी योजना जो भी रही हो हमे लेकर, लेकिन तुमपर आंख मूंद कर एक भरोसा तो है, कि तुम्हारी मनसा कभी गलत नहीं थी। पर हम साथ काम करें इसके लिए जरूरी यह है कि हमे एक दूसरे पर पुरा भरोसा हो।


काया:- मुझे लकेश के बारे में इसलिए इतना पता है, क्योंकि उसका राइट हैंड अजय मेरा दीवाना था। हालांकि मुझे यहां केवल नोचा ही गया, वो भी मेरे अपने लोगों के के कारन, वरना मजाल नहीं था कि कोई मेरी मर्जी के बगैर मुझे छू भी लेता। यहां हमे बस भोगने की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं समझा गया, ये थी मेरी सच्चाई। इमोशन, लव और फैमिली तो जैसे किताब के पन्नों के शब्द बन गए हो, जो हमारे जिंदगी कि सच्चाई से कोसो दूर हो गए।


नील:- मै लोकेश की ऑपरेशन हैंडलर थी, हां लेकिन मुझे ना चाहते हुए भी कितनो के साथ बिस्तर में जाना परा, ये भी एक सच्चाई है। घुटन भरी जिंदगी जो एक बार शुरू हुई, वो अब तक चल रही है। तुम्हारे होने से कुछ अच्छा होने जैसा मेहसूस होता है अपस्यु। तुम मुझसे नहीं भी मिले थे तब भी काया से तुम्हारे बारे में बहुत कुछ सुन रखी थी। इसके अलावा लोकेश के ऑपरेशन हैंडल करती या उसके क्लाइंट के बिस्तर मे जब भी होती, तो अपने कान खुले रखती थी, इसका नतीजा ये हुआ कि हम आने वाले 6 महीने का प्लान कर चुके थे और लोकेश के साथ हम उन लोगो। को भी नाप देते, जो हमे यहां हाई प्रोफाइल वैश्या का दर्जा दिए हुए थे। तुम्हारा और दृश्य का धन्यवाद, जिसने हमारे 6 महीने नरक की जिंदगी को कम कर दिया। ये थी मेरी सच्चाई…


अपस्यु:- मैं विक्रम और अनुप्रिया के पीछे दिल्ली पहुंचा था, पीछे से बहुत सी जानकारियां इकट्ठा किए। दिल्ली आकर मुझे वीरदोयी की एक टीम राठौड़ मेंशन में दिखी थी और मै समझ गया कि जिसके पास वीरदोयी हो, वो किसी से भी पंगे कर सकता था। मेरा शक सही निकला, लोकेश का जरा भी ध्यान हवाले के पैसे पर नहीं था, बल्कि उसकी पूरी नजर अनुप्रिया और माहिदीपी के पूरे साम्राज्य पर थी।


फिर मैंने अपना पूरा फोकस लोकेश पर कर लिया, क्योंकि लोकेश की जगह मुझे मिल गई, तो यहां से मुझे अनुप्रिया को बर्बाद करने का रास्ता मिल जाएगा। कई दिन के कोशिश के बाद, एक जरिया मुझे मिला, जयेश। जयेश को मैंने काया के साथ देखा था, इसलिए उससे बात करना मुझे सेफ लगा। मैंने बस छोटा सा तार छेड़ दिया जयेश के पास और उसी ने अंदर की पूरी जानकारी दी। नील को मैं नहीं जनता था तब, लेकिन काया के बारे में सुनकर मुझे योजना सफल होते दिख गया।


बस जब ये सारी बातों का खुलासा हो गया, फिर मैं पूरी योजना के साथ दिल्ली वापसी किया और लग गया काम पर। मेरा पहला पड़ाव था काया तक पहुंचना और काया के सभी लोगों को सफेली निकालना, ताकि आगे अनुप्रिया और महिदीपी के घर में सेंध लगा सकूं… ये थी मेरे योजना कि पूरी सच्चाई।


काया:- जयेश अब नहीं रहा हमारे बीच। इनके महत्वकांक्षा ने उसे ले डूबा। खैर बीती बातों को हम एक बुरा सपना मान लेते हैं। आगे क्या करना है?


अपस्यु:- कुछ नहीं बस खुद को तैयार रखो, क्योंकि वो तुम्हारी क्षमता को पहचानते हैं, इसलिए वो खुद तुमसे संपर्क करेंगे। उन्हें सामने से आने दो और तबतक उनके साथ खेलने के लिए तैयार हो जाओ।


नील:- हम यहां कुल 60 के आस पास वीरदोयी बचे हुए हैं, जिसमें से 10 केवल है जो अब आगे इन पेचीदा काम के लिए राजी होंगे, बाकी 50 को कोई दिलचस्पी नहीं किसी भी तरह के उल्टे काम से। वो जब लोकेश के आगे नहीं टूटे, तो हम उनकी शांत जीवन में थ्रिल क्यों लाए।


अपस्यु:- और बाकी के 10..


नील:- काया को छोड़कर बाकी के 8 लोग मेरे साथ है जो एक्शन लवर है, बस काम अच्छा होना चाहिए और एक बची काया, तो वो तो तुम्हारी फैन है, तुम्हारे लिए हर जोखिम उठा लेगी।


अपस्यु:- डेविल परिवार में तुम् सब का स्वागत है। नील मैम आप फ़्री हैंड काम करो यहां। आरव के साथ मिलकर इस जगह को डेवलप करो, और उन राधाकृष्ण बंधुओं के संपर्क करने का इंतजार करो। रही बात काया मैम की, तो वो हमारे साथ चल रही है, इनके लिए कुछ अलग ही प्लांनिंग है।


काया:- सूखे-सूखे डेविल परिवार में स्वागत। मुझे भी वैसी मॉडिफाइड कार चाहिए जों गराज में है।


नील:- एक मुझे भी प्लीज।


अपस्यु:- कितने परिवार है यहां वैसे..


काया:- परिवार तो एक भी नहीं है, लेकिन अगर लाने कि इजाज़त मिल जाए तो 200 परिवार तो आ ही जाएंगे।


अपस्यु:- और यहां के मूल निवासी जो यहां इस गांव के थे, जिनकी जमीनों पर ये पुरा हाई टेक गांव खड़ा है?


काया:- इस जगह के 3 किलोमीटर पश्चिम में रहते है, काफी सुदृढ़ गांव है और गांव के माहौल को यहां के हवा से दूर रखा गया था।


अपस्यु:- चलो एक काम तो अच्छा किया उन लोगों ने। यहां कितनी मॉडिफाइड कार है।


काया:- 5 कार है, केवल एक कार में स्वास्तिका और कुंजल गई थी बाकी सब कार यहीं है।


अपस्यु:- ठीक है 4 मॉडिफाइड रख लो तुम लोग, मै 1 लेकर चला जाऊंगा। रह गए 6 और मॉडिफाइड कार देना, तो वो 1 हफ्ते बाद ले लेना। अब खुश।


नीलू:- क्या मै गले लग सकती हूं..


अपस्यु:- हां क्यों नहीं..


नीलू अपस्यु के गले लगती… "वाव ! मै बहुत खुश हूं।"..


नीलू जैसे ही हटी, काया भी उसके गले लगती… "बिल्कुल खुश कर दिया, वैसे लगा नहीं था कि अपनी मॉडिफाइड कार दे दोगो, दिमाग के अंदर यही था कि बहुत ज्यादा से ज्यादा होगा तो एक अल्टो चिपका दोगे।"..


अपस्यु:- डेविल परिवार मतलब परिवार का पुरा हिस्सा। एक बात और केवल एक बार मै फिजूल खर्ची के लिए पैसे देता हूं। 1000 करोड़ कैश लॉकर में रखा है, नीलू वो सारे पैसे तुम्हारे है। तुम्हे यहां के लोगों की खुशियां बढ़ाने के लिए जितने खर्च करने हो कर देना, लेकिन 1 बार। बचे पैसे संभाल कर रखना और अपनी जरूरत के हिसाब से खर्च करना।


नीलू:- येस बॉस..


अपस्यु:- काया कल सुबह तुम अपनी कार लेकर उन 1000 करोड़ में से 75 करोड़ कैश लेकर चले आना।


नीलू:- ओय छोटी आंख वाले, इस अकेली को 75 करोड़ और मुझे 200 लोगों को 925 करोड़ में देखना है। ऐसी बात है तो इसकी जगह मै ही चलूंगी, इसे यहीं रहने दो।


अपस्यु:- अब ये छोटी आंख वाला क्या है। और इसके 75 करोड़ में से 30 करोड़ के तो तुम्हारे 6 कार में लग जाएंगे और 25 करोड़ में 5 और कार मॉडिफाइड होंगे, जिनकी कार तुम्हे दिया है। उनहे वापस भी करूंगा की नहीं। अब 20 करोड़ की विदाई भी ना इसे यहां से दोगी, तो क्या दोगी।


नीलू:- नो नो नो… गिफ्ट मतलब गिफ्ट, मैं अपने पैसों मै से 1 एक रुपया नहीं दूंगी।


अपस्यु:- उल्लू हो नीलू मैम, अब क्या इन माया के लिए आपस मै लड़ रही है। ठीक है 50 करोड़ दे देना। हां एक बात और, पैसे जरूरत के लिए होता है, कभी पैसे को जरूरत मत बनने देना।


नीलू:- बाबा जी आपके वचन सर आखों पर, लेकिन मैं उन 1000 करोड़ में से 25 करोड़ दूंगी और ये फाइनल है, लेना है तो लो वरना हवा आने दो।


अपस्यु:- हुंह ! कंजर है ये पूरे, मुंह में सिक्का दबा कर पैदा हुई थी। ठीक है जो इक्छा है वहीं देना।


काया:- ये है ही जलकुकरी… ले जाओ इसे ही, मै ही यहां रहती हूं।


नीलू:- बकवास बंद, यहां की हेड मै हूं और तुम लोग मेरा कहा मानोगे।


अपस्यु और काया एक साथ… "जी मैम कहिए"..
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 

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नीलू:- तुम दोनो भागो यहां से और जब हमारे कार मॉडिफाइड हो जाएंगे तब मुझे बुला लेना। यहां के सब लोगो को लेकर हम धमा चौकड़ी मचाने दिल्ली आएंगे.. और अभी के लिए एक पार्टी नाईट… काया सब को बुला लो यहीं उन्हें भी खुशखबरी दे दूं जरा….


अपस्यु:- प्लीज़ मुझे यहां मत रोको, मुझे एमी के साथ होना है..


नीलू, उसे आखें दिखाती…. "आज हम लोगों के बीच रुको, कल तुम और काया यहीं से साथ में चले जाना।"..


अपस्यु:- मरवा दिया तुमने, चलो कोई ना आज यहां की खुशियों में शरीक हो जाते हैं।


पार्टी नाईट यहां शुरू हो चुकी थी और अपस्यु सबकी खुशियों में शरीक होकर झूम रहा था। वहां की खुशियां तब दुगनी हो गई जब उन सब ने नीलू का अनाउंमेंट सुना, जिसे सुनकर सब ऐसा मेहसूस कर रहे थे, मानो एक अच्छी जिंदगी अब यहां शुरू होने वाली है।


पार्टी का माहौल केवल विषेन गांव में ही नहीं बल्कि मुंबई से थोड़ी दूर स्थित लुनावला के एक रिजॉर्ट में भी था, जहां राधाकृष्ण बंधु, यानी कि कलकी, परमहंस और युक्तेश्वर राधाकृष्ण अपने कई करीबी लोगों के साथ पार्टी मना रहे थे।


जाम टोस्ट हुआ और कालकी चिल्लाती हुई कहने लगी…. "प्रभु उन्हें सजा दे ही देते हैं, जो हमारा रास्ता काटने की कोशिश करते हैं।"..


युक्तेश्वर:- लोकेश जैसे कीड़े को साफ करने और दिल्ली का सारा मामला सुलझाने के लिए, मै श्रेया को बधाई देता हूं। ये श्रेया और उसकी टीम का कमाल ही था, जो दिल्ली में हमारा पुरा मामला सैटल कर आयी।


श्रेया:- नहीं मै इसके पीछे नहीं थी। हां जगदीश राय की कहानी का सेहरा मेरे सर दे सकते हो, लेकिन लोकेश के पीछे तो स्वयं काल लगा हुआ था, मायलो ग्रुप के मालिक का लड़का अपस्यु। लोकेश को तो प्रभु भी नहीं बचा सकते थे। यहां इस महफिल में कहना ग़लत नहीं होगा कि अपस्यु यदि आपके पीछे है, तो बुद्धिमानी इसी में है कि आप उससे रहम की भीख मांग ले और अपनी बची हुई जिंदगी उसके हिसाब से जी ले।


परमहंस:- इतने पहुंच वाले और क्षमता वाले ग्रुप के सामने, जब श्रेया उस लड़के अपस्यु की तारीफ कर रही है, मतलब उसके अंदर जरूर कुछ बात रही होगी। इसलिए जैसा की श्रेया ने कहा, वो बहुत क्षमता वाला है, इसलिए मै अपने भाई बहन के ओर से ये अनाउंसमेंट करता हूं कि लोकेश ने मायलो ग्रुप के साथ, हमारे सात्विक ट्रस्ट की कंपनी, वेरिएंट ग्रुप के बीच जो एक जंग छेड़ी थी, उसे मैं विराम देते हुए, हम नए मालिकों के साथ साफ-सुथरी प्रतियोगिता रखेंगे और प्रोफिट के लिए मार्केट के दूसरे सेक्टर्स में उतरेंगे, ताकि हमारा कभी आमना-सामना ना हो।

यदि भविष्य में आमना सामना होता भी है तो हम टेबल पर बैठकर मुद्दे को सुलझा लेंगे, क्योंकि बुद्धिमानी इसी में है कि ईगो के चक्कर में नए दुश्मन नहीं पाले जाए। तुम सब का क्या कहना है।


कलकि:- मै तो परम की बात का परम भक्त हूं, बिल्कुल सही कहा परम।

युक्तेश्वर:- हां सही है, जब दोस्त बनाकर काम होता है तो दुश्मन क्यों बनना। चलो पार्टी एन्जॉय किया जाए।


देर रात 1 बजे तक उनकी पार्टी चलती रही। सभी लोगों के जाने के बाद, तीनों भाई बहन एक टेबल पर बैठ गए। जहां अपस्यु और उसके क्षमता को लेकर चर्चा होने लगी। इस संदर्व में उन्होंने होम मिनिस्टर के ऑफिस के कुछ लोगों से बात भी किए और पूरे मामले की जानकारी भी लिया, की आखिर कैसे 15 अगस्त की रात अरेस्ट हुए इतने मजबूत लोग बाहर नहीं आ पाये। फिर जो उनको कहानी पता चली, होम मिनिस्टर के पीए शुक्ला से, उसपर तो तीनों स्तब्ध रह गए। जिन लोगों लोग को अपस्यु ने फंसाया था, उन्हीं के पैसे से उनको सजा दिलवा दिया।


सभी बातों पर गौर करती हुई कलकि कहने लगी…… "परम, युक्ते, क्या कहना है इसके बारे में।


युक्तेश्वर:- दीदी, इसमें बहुत गहराई है। हम इससे दुश्मनी नहीं करने का फैसला तो कर चुके हैं, अच्छा फैसला है, लेकिन..


परमहंस:- छोटे लेकिन क्या ?


युक्तेश्वर:- लेकिन इसके कुछ लोगों को करप्ट करना होगा, ताकि इसके अंदर की इंफॉर्मेशन मिलती रहे। मायलो ग्रुप हमारा डायरेक्ट कॉम्पिटीटर है, हम ब्लैक और व्हाइट दोनो घंधे में जितना नुकसान पिछले 1 साल से उठा रहे हैं, उतना तो हमने 4 साल में नहीं कमाया था। अब अगर ये मायलो से हमे टारगेट करता है और अपने बेस से हमारे ब्लैक को टारगेट करेगा तो अगले एक साल में हम बर्बाद हो जाएंगे।


परमहंस:- बात तो सही है दीदी, और पैसा किसे प्यारे नहीं। भले ही ब्लैक मनी का छोटा हिस्सा देकर उसने लोकेश और उसके कॉन्टैक्ट को खत्म किया हो। लेकिन जैसे ही उसे धंधे के बारे में पता चलेगा, वो उसमे हाथ जरूर डालेगा। और जिस हिसाब से पैसे खर्च करके उसने सबको सजा दिलवाया है, एक बात तो साफ है कि वो लोगों की सही कीमत जानता है और कौन कैसे टूटेगा उसका पूरा ज्ञान है। ऐसे लोग जब हमारे ब्लैक और व्हाइट दोनो धंधे को टारगेट करेगा, तब हमे बर्बाद होने ने महीना भी नहीं लगेगा।


कलिका:- "कभी-कभी जितने से ज्यादा हारना जरूरी होता है। कभी-कभी खुद को बलवान साबित करने से ज्यादा अच्छा, खुद को बेवकूफ और कमजोर दिखाना ज्यादा अच्छा है। बस नजर रखो और उसका एक भी आदमी, फिर चाहे वो लोकेश के गैंग का हो या फिर इससे जुड़ा हुआ कोई भी, अपने आस पास भी मंडराए तो समझ लेना वो हमे टारगेट कर रहा है।"

"वो अपनी रक्षा कर सकता है, अपने फैमिली कि रक्षा कर सकता है, लेकिन हर किसी पर नजर रख पाए संभव नहीं। उसे जितने दो, हमे नुकसान पहुंचाने दो और हम एक साथ पहला 10 टारगेट लेंगे। ऐसा मरेंगे उसे, की वो बौखलाकर पागल हो जाएगा। परेशान हो जाएगा कि पैसे बढ़ाए या परिवार बचाए और तब हम आमने-सामने बैठकर बातें करेंगे।"

"पैसे वो कमाये या हम अंत में आने तो हमारे पास ही है। वैसे भी वो लोकेश हमे 40000 करोड़ का नुकसान दे चुका था, अग्ला 100000 करोड़ का भी ये हमे नुकसान देदे, तब भी ये केवल हमारे हिस्से को ही बर्बाद करेगा, हमे नहीं। कर लेने दो इसे हमे बर्बाद, जीत लेने दो इसे अगर ये हमसे जितना चाह रहा है तो। अनुकूल टक्कर भी देते रहो, ताकि उसे लगे नहीं की जीत आसानी से मिल रही। पंगे करने का शौक है तो कर लेने दो पंगा… हम तीनो अंत में खेलना शुरू करेंगे।"


शतरंज की विषाद बिछ चुकी थी और दोनो ही पक्षों ने अपनी पहली चाल चल दी थी। शायद इस बार दोनो ही पक्ष एक जैसा खेल दिखाने के इरादे से उतरे थे। अपनी चाल चलकर बस सामने वाले पर नजर दिए रहना और दोनो को कोई भी हड़बड़ी नहीं थी कि सामने वाला चाल अगली चाल चलने में कितनी देर लगाने वाला है।


बहरहाल तकरीबन डेढ़ बजे तीनों भाई बहन ने अपने सभा को समाप्त किया और सोने चले गए। वहीं अपस्यु की सभा भी लगभग उतने ही बजे खत्म हुई, लेकिन वो सोने के बजाय, कार निकाला और ऐमी के पास चल दिया।


अंधेरी रात और लगभग सब सोए हुए। अपस्यु कार खड़ी करके अपने आंख मूंदकर आकलन करने लगा कि ऐमी कहां होगी। और जैसे ही उसे ऐमी का ख्याल आया, उसी के साथ प्यारी सी मुस्कान उसके चेहरे पर आ गई। वो समझ चुका था कि ऐमी इस वक़्त कहां होगी, लेकिन इससे पहले कि ऊपर छत पर जाता, पीछे से उसके कंधे पर हाथ पड़ा और अपस्यु पीछे मुड़कर देखने लगा..


"निम्मी तुम, नींद नहीं आ रही थी क्या?"… अपस्यु पीछे मुड़ते हुए पूछने लगा..


निम्मी:- मैंने सुना था आप हर वक़्त चौकन्ने रहते है। इसे चौकन्ना कहेंगे। जितने लापरवाह आप अभी हुए हैं, इतने में तो पिस्तौल की पूरी मैग्जीन खाली हो जाती।


अपस्यु:- हा हा हा हा… मुझे माफ़ कीजिए मिस, आगे से इस बात का खास ख्याल रखूंगा।


निम्मी:- मुझे समझने के लिए आप का शुक्रिया। मुझे यकीन था आप जरूर आएंगे, इसलिए इंतजार कर रही थी।


अपस्यु:- लोकेश का क्या हुआ यही जानना है ना?


निम्मी:- आप को कैसे पता?


अपस्यु:- ये सीने कि आग ही कुछ ऐसी होती है। रुको दिखता हूं।


अपस्यु ने अपने मोबाइल का स्क्रीन ऑन किया और वहां लगे नाईट विजन कैमरे में वो लोकेश को देख पा रही थी जो नीचे लेटा काफी छटपटा रहा था। … "इसे कही कैद कर दिया है।"


अपस्यु:- केवल कैद ही नहीं किया है बल्कि जिंदगी में अंधेरा भी भर दिया है। बस दिन के कुल 1 घंटे की रौशनी इसके हिस्से में है जो इसके खाना पहुंचने के वक़्त होगा, बाकी 23 घंटे अंधेरे में जिएगा।


निम्मी:- आह ! सुकून मिला सुनकर। 4 दिन बाद मै निकल रही हूं, दृश्य भईया के साथ, क्या पार्थ भी चल सकता है हमारे साथ?


अपस्यु:- जब उसे चाहती हो फिर इतनी दूरी क्यों बनाई हुई थी।


निम्मी:- खुलकर चाहने का अवसर तो अब मिला है पहले तो शंका थी कि वो मुझे चाहता है, या मेरे जिस्म को। और बस इसी ख्याल से अपनी चाहत को समेटी थी क्योंकि पता ना अपनी नादानी में एक और बड़ी गलती कहीं ना कर जाती। वैसे भी सच कहूं तो प्यार जैसे कोई बात नहीं है, बस उसके साथ अब अच्छा लगने लगा है।


अपस्यु:- इसी को तो चाहत कहते हैं। खैर तुम उसे आराम से ले जाओ और दोनो एक दूसरे का ख्याल रखना। अब जाओ तुम आराम करो।


निम्मी:- ऐमी छत पर सो रही है लेकिन..


अपस्यु:- हां लेकिन तुम सब को आश्चर्य तब हो गया होगा जब मेरी मां पहले उसके साथ सोई होगी और देखते ही देखते मेरा पूरा खानदान वहीं सो गया होगा।


निम्मी हंसती हुई…. "आप सब पूरे मेंटल हो। मैं पहली बात इतने जिंदा लोगों को देख रही हूं। और हां आप लोगो की संगति में मेरा भाई भी सुधर गया है। अब पहले की तरह उसका व्यवहार नहीं रहा। मैं जा रही हूं, सुभ रात्रि।


निम्मी के साथ अपस्यु भी अंदर गया। छत पर जब वो पहुंचा तब वहां का नजारा ही कुछ और था। सब लोगो के बीच में ऐमी लेटी हुई थी।… "जब हमे ही परेशान करना है तो हम क्यों ना परेशान करें?"..


अपस्यु अपनी बात सोचकर मुस्कुराया। जुगाड भिड़ाया और नकली बारिश का खेल शुरू हो गया। कच्चे पक्के से सभी आंख मिंजते हुए हड़बड़ा कर उठे और तेजी में नीचे भागने लगे। सभी जम्हाई लेते हुए नीचे आ गए। कुछ वक़्त लगा सामान्य होने में, जबतक वीरभद्र, उसकी मां और निम्मी भी उनके पास पहुंच गई।


सब थोड़े से परेशान होते हुए, बारिश के बारे में कह ही रहे थे कि तभी उनका ध्यान निम्मी पर गया जो हंस रही थी… "ये कमीना अपस्यु, उसका सर फोड़ दूंगा मै".. आरव थोड़े गुस्से में कहने लगा….


नंदनी:- भाई को ऐसा बोलता है, थप्पड़ खाएगा क्या?


कुंजल:- और तक रात के 2.30 बजे आकर जिसने हमारे ऊपर पानी डाला और अपनी होने वाली को ले उड़ा, उसका कुछ नहीं। उसके नाम पर तो आपकी जुबान भी नही खुलती।


नंदनी भिड़ पर गौर करती…. "ऐमी कहां है।"..


स्वास्तिका:- तब से सब क्या कोरियन भाषा में समझा रहे थे। आपका चहेता अपनी बीवी के लिए हमे परेशान करके उसे ले गया। खुद तो एक दूसरे के साथ गुटुर-गुटूर कर रहे होंगे और फालतू में हमारी नींद खराब कर दिया।


इधर लोगों की जब भगदड़ मची थी, तब सब सीढ़ियों कि ओर जा रहे थे और ऐमी मुस्कुराती हुई पानी टंकी के ओर। दोनो की नजर जब एक दूसरे से मिली, दोनो मुसकुराते हुए एक दूसरे को चूमने लगे और चोर की तरह नीचे उतर गए। गाड़ी तेज रफ्तार में चल रही थी और दोनो एक दूसरे को देखकर हंसते हुए घरवालों के रिएक्शन के बारे में सोच रहे थे।
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इधर लोगों की जब भगदड़ मची थी, तब सब सीढ़ियों कि ओर जा रहे थे और ऐमी मुस्कुराती हुई पानी टंकी के ओर। दोनो की नजर जब एक दूसरे से मिली, दोनो मुसकुराते हुए एक दूसरे को चूमने लगे और चोर की तरह नीचे उतर गए। गाड़ी तेज रफ्तार में चल रही थी और दोनो एक दूसरे को देखकर हंसते हुए घरवालों के रिएक्शन के बारे में सोच रहे थे।


ऐमी:- अपस्यु बहुत गलत किये, तुम्हारी मां हम दोनों को उल्टा टांग देगी।


अपस्यु:- वापस मोड़ लू कार..


ऐमी:- अब जब आ ही गए है तो वापस क्या जाना, चलो मासी को परेशान करते हैं।


अपस्यु:- ऐसा क्या, चलो फिर चला जाए।


दोनो रात को 2.30 बजे चले थे और 430 किलोमीटर की दूरी लगभग 2 घंटे में तय करके, प्रताप महल के पास पहुंच गए थे… "बेबी अगली तैयारी क्या फार्मूला वन की है।"..


"ऐसे इंजन के और नट्रॉक्स सस्पेंशन के साथ तो, मुझ जैसे कई फार्मूला इन रेसर मिल जाएंगे, जिसे थोक के भाव से वो लोग डिसक्वालिफाई कर देते है।'… अपस्यु कार को प्रताप महल के ठीक सामने लगाते हुए कहने लगा।


"साइड से रास्ता है, वहां से चोरों कि तरह जाया जा सकता है।" ऐमी अपने लैपटॉप निकलकर प्रताप महल के सिक्योरिटी सिस्टम को हैक करके बोलने लगी।


दोनो फिर उसी रास्ते से, बड़े सफाई के साथ प्रताप महल में दाखिल हो गए। दोनो की खुसुर-फुसुर भी महल में पहुंचने के साथ ही शुरू हो गई।… "मै रूम में नहीं जाऊंगी, तुम सैतनी करोगे, यहीं हॉल में लेटते है।"…. "पागल हो कैसा अजीब लगेगा हॉल में लेटना, कुछ देर बाद सब जाग जाएंगे और हमे फिर सोने नहीं देंगे, पंचायत होगी सो अलग। रूम में ही चलते है।"..


काफी देर समझाने के बाद भी जब ऐमी नहीं मानी तो अपस्यु ने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया और अपने गोद में उठाकर कमरे में ले गया। कमरे में जाते के साथ ही अपस्यु ने ऐमी को बेड पर पटक दिया और जाकर दरवाजे की कुण्डी बंद कर आया।


जबतक वो दरवाजा लगाकर वापस लौटा ऐमी अपने ऊपर के कपड़े उतारकर, केवल ब्रा और पैंटी में बैठ गई। उसे देखते ही… "काफी हॉट लग रही हो।"..


ऐमी:- मेरी जारा भी इकछा नहीं है अपस्यु, लेकिन तुम मानने तो वाले हो नहीं, इसलिए जल्दी करो, मुझे सोना भी है।


"वाह! चढ़ गया भूत तुम्हे। शुभ रात्रि, मैं चला सोने।"… अपस्यु बिस्तर पर जाकर करवट लेकर सो गया। ऐमी पीछे से उसके पीठ से चिपककर, अपना हाथ आगे करके उसके सीने पर चलाती हुई, उसके गर्दन पर किस्स करती हुई… "बेबी थक गए क्या?"


अपस्यु:- हां थका हूं, और सोने दो प्लीज..


ऐमी:- अब जब मैंने कपड़े निकाल ही लिए है तो चलो ना करते हैं।


अपस्यु, ऐमी के ओर मुड़ते हुए…. "कान पकड़ कर माफी मांगता हूं, मुझसे गलती हुई जो तुम्हे कमरे में लेकर आया। मै तो रेपिस्ट हूं ना, जो तुम्हारे साथ जबरदस्ती करता हूं।"


ऐमी, अपस्यु के आखों में झांकती हुई, होंठ हिलाकर सॉरी कहती हुई मुस्कुराने लगी और अपस्यु को बाहों में भींचकर, उसके होंठ से होंठ लगाकर चूमती हुई सो गई।


सुबह के 7 बज रहे होंगे… दृश्य के माता पिता, वीर प्रताप और कंचन दोनो टहलने के लिए निकले। अपने महल के बाहर कार पार्क देखकर… "ये दृश्य सुबह-सुबह कहां गया था।"… दोनो बाहर लगी कार को देखकर यह समझ बैठे की अपस्यु ने कुछ मॉडिफाइड कार जो दृश्य को दी थी, उन्हीं में से एक कार में दृश्य कहीं बाहर गया हुआ था।


उन्हीं के पीछे दृश्य और अश्क भी निकली। दोनो हाथों में हाथ डाले आगे बढ़ ही रहे थे कि दृश्य, अश्क के कमर में हाथ डालकर खुद से चिपका लिया और उसके गले पर किस्स करने लगा….. "अति बेशर्मी कहते हैं इसे।" .. अश्क खुष्फुसती हुई अपनी प्रतिक्रिया दी और दृश्य को आखें दिखाने लगी।


अश्क अभी दृश्य का हाथ छुड़ाकर अलग ही हुई थी कि पीछे से दृश्य की दीदी पायल और उसके जीजू आकाश, दोनो को "गुड मॉर्निंग" विश किया और दोनो को देखकर हंसते हुए आगे बढ़ गए।


अश्क:- लव आप भी ना हुंह। ना वक़्त देखते हो ना जगह, बस शुरू हो जाते है। भईया और भाभी ने लगता है देख लिया।


दृश्य:- अच्छा सॉरी बाबा, प्लीज अब सुबह-सुबह अपना मूड ऑफ ना करो।


दृश्य और अश्क फुसफुसाई सी आवाज़ में निकझोंक करते हुए जैसे ही बाहर निकले…. "दोनो रात को कहां बाहर गए थे।"… पायल, दृश्य घूरती हुई पूछने लगी।


दृश्य:- हम कहीं नहीं गए थे दीदी सच कह रहे है।


पायल:- दृश्य मै क्या करूं तुम्हारा। आंटी मुझे ताने दे रही है कि "देखा तेरा भाई 24 घंटे घर पर रहने की बात नहीं मान सका।"


अश्क, दृश्य को घूरती…. "सच सच बताओ लव कहां गए थे। कम से कम मुझे तो साथ ले चलते।"..


पायल, अश्क का कान पकड़ती…. "मुझे पता है इस पूरी कांड की रचायता तुम ही हो।"..


"ऑफ ओ, पता नहीं कब ये बड़े लोग सुधरेंगे। जूनियर तुम मेरे साथ ही रहना हमेशा, इन लोगों के साथ नहीं रहना।"… जूनियर ऐमी, यानी कि पायल की बेटी उन सबको एक जगह खड़े होकर बातें करते देख, अपनी प्रतिक्रिया देती हुई, अपने साथ जूनियर दृश्य को लेकर बाहर निकल गई।


अश्क:- छोटी है पर प्वाइंट की बात कह गई। कुछ सीखो इन जूनियर्स से। चलो लव मॉर्निंग वॉक करके आते हैं, इन्हे तो हर वक़्त यही लगता है कि हम इनकी सुनते ही नहीं है।


दृश्य की मां कंचन…. क्या बात है अश्क, बहुत खूब। लगता है कुछ क्लासिकल हिंदी मूवी देखकर मुझे 60 के दशक की सास का रोल निभाना ही पड़ेगा। अब तुम दोनों जारा बताओगे की कहीं घूमने नहीं गए तो ये कार कैसे बाहर आयी। वो भी स्पेशल कार। पायल जरा इनका वो डायलॉग दोहराना तो..


पायल:- ये कोई आम कार नहीं है, मेरे भाई ने जेम्स बॉन्ड वाली कार मुझे गिफ्ट की है।


दृश्य और अश्क की नजर भी कार पर गई, दोनो एक दूसरे का चेहरा देखकर मानो इशारे में पूछ रही हो… "ये कार बाहर कैसे आयी।"


दृश्य और अश्क दोनो ने अपना हथेली चिपकाकर कार को खोलने की कोशिश करी, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। 1,2 कोशिश के बाद दृश्य और अश्क दोनो एक दूसरे को हैरानी से देखने लगे और उन्हें हैरान देखकर आकाश पूछने लगा…. "क्या हुआ दोनो हैरान क्यों हो।"..


अश्क:- आकाश भईया ये हमारी कार नहीं है।


कंचन, उत्सुकता से…. "क्या ये अपस्यु और ऐमी की कार है। या आरव की।"..


दृश्य:- एक बार ही तो दोनो से मिली हो, कभी मेरे लिए तो इतनी खुश नहीं हुई मां।


वीर प्रताप:- मुझे तो आजकल देखती भी नहीं, खुश होना तो दूर की बात है।


कंचन:- ख़ामोश हो जाओ सब, वो लोग यहां आए है तो गए कहां। कब आए?


कंचन की बात सुनकर हर किसी ने ढूंढ़ना शुरू किया। वहीं गांव के कुछ लोगों का कहना था कि सुबह 4 बजे के आस पास उनके यहां कार खड़ी हुई, उन्हें लगा दृश्य आया होगा।


1 घंटे तक गांव में ढूंढ लिया हर किसी ने, लेकिन यह तक पता नहीं चल पाया कि अपस्यु आया था या आरव। अंत में दृश्य ने पहले अपस्यु को कॉल लगाया, फिर ऐमी को और अंत में आरव को।


आरव कॉल उठाते हुए…. "थैंक्स भईया आपने कॉल कर दिया।"..


दृश्य:- क्या हुआ आरव..


आरव:- भईया ऐसे अनजान बनकर मत पूछो। अपस्यु ने ही कॉल लगवाया है ना यहां का हाल जानने। उससे कह देना दोनो जब दिल्ली पहुंचेंगे तो उनका जबरदस्त स्वागत होगा।


दृश्य, हंसते हुए…. "हुआ क्या वो तो बताओ।"


आरव:- कमिने ने कल रात हमारी नींद खराब करके, सबके बीच से ऐमी को लेकर भाग गया। सब बहुत गुस्सा है।


दृश्य:- अब सबके बीच में ऐमी को फसाकर रखोगे उसे परेशान करने के लिए, तो यही सब दिन देखने होंगे ना।


आरव:- हां उसने अपना काम कर दिया अब हमारी बारी है। उससे कहना हम दिल्ली के लिए अभी निकल रहे है, और अपना ख्याल रखे। जब भगोड़े हो ही गए हैं तो कहना आराम से घूमकर आ जाए। उसका स्वागत के लिए हम इंतजार कर लेंगे।


दृश्य:- हां ठीक है आरव सर, और कुछ संदेश देना है दोनो को…


आरव:- नहीं आप को संदेश देना है। दोनो से बचकर रहना, नहीं तो अपने रोमांस के चक्कर में, आपके सुखी जीवन में कब आग लगा दे आपको पता भी नहीं चलेगा। वैधानिक सूचना थी मैंने दे दिया, अब आपको मानना है तो मानो वरना आज दिन भर में तो आपके बुद्धि का विकास हो ही जाना है।


आरव की बात सुनकर दृश्य हंसते हुए कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया और सभी लोगों को यहां अपस्यु और ऐमी कैसे पहुंचे उसका पुरा विवरण बता दिया। दोनो के यहां पहुंचने की कहानी जानकर सबकी हंसी निकल गई। कुछ साल पहले की वो हसीन कहानी ताज़ा हो गई, जब दृश्य और अश्क के ऊपर भी पहरा लगा होता था और दोनो ऐसा ही कुछ हरकत कर बैठते थे।


अपस्यु और ऐमी के बहाने ही सही, लेकिन हर कोई दृश्य और अश्क की एक बार फिर खिंचाई करने बैठ गया। प्रताप महल में पहले से बहुत से लोग पहुंचे थे। बीती बातों का दौड़ ऐसा चला की एक-एक करके सभी लोग आते चले गए और महफिल को ज्वाइन करते चले गए।


एक बड़ी सी महफिल, जहां 4 कपल बैठे थे जो दृश्य के लंबे सफर के शुरू के साथी रहे थे। 6 बच्चे जिनकी गैंग लीडर जूनियर ऐमी थी, वो भी वहां खेल रहे थे। कुछ अभिभावक भी उस महफिल में मौजूद थे, जिसमें एक तो कंचन और वीर प्रताप थे जो स्थाई रूप से प्रताप महल में रहा करते थे और साथ में आयी थी कंचन कि जिगरी सहेली चंद्रिका देवी और अश्क की मां। कुल मिलाकर पूरी पंचायत सुबह-सुबह लग चुकी थी और जब बीते दोनो की बात शुरू हुई, समय का पता ही नहीं चला।


सुबह के 10 बज चुके थे। ऐमी मीठी अंगड़ाई लेकर जागी और अपस्यु के बदन को अपने हाथों में समेटकर, उसके गाल पर अपनी जीभ चलाने लगी। अपस्यु भी अपने आंख मूंदे ऐमी के ओर मुर गया और उसे अपनी बाहों में समेटकर अपनी आखें खोलते हुए… "हर सुबह ऐसे ही जागता रहूं।"..


ऐमी प्यार से अपस्यु के होंठ पर अपने होंठ फिराति…. "बस कुछ दिन और बेबी, फिर हमारी शादी होगी और हमारी रोज ऐसी ही सुबह होगी।"..


अपस्यु अपना हाथ ऐमी के पीठ पर धीरे-धीरे चलाते हुए उसके ब्रा के स्ट्रिप को खोल दिया। "हिहिहिहिहिही, बेबी प्लीज अभी उक्साओ नहीं, वरना मै भी मूड में आ जाऊंगी।"..


अपस्यु, ऐमी को खुद में भींचते… "ऐसा क्यों लगता है कि आज कल तुम बहुत शरारती होती जा रही जो स्वीटी।"..


ऐमी:- मेरी सारी शरारतें तो तुम से ही है, और मुझे पुरा हक है कि मैं तुम्हे तंग करूं।


अपस्यु:- ओह हो इरादे तो बहुत खतरनाक हैं। अच्छा जाओ तैयार हो जाओ, मासी से मिलकर निकलते है।


ऐमी:- नाह, ऐसे ही कुछ देर मुझे समेटे रहो ना।


अपस्यु:- ऐमी, उठो भी, अब जाओ भी।


ऐमी:- प्लीज कुछ देर आराम करने दो ना..


अपस्यु ऐमी को छोड़कर खड़ा हो गया और अपनी आखें दिखाते… "अब तुम उठ रही हो या नहीं स्वीटी।"..


ऐमी:- नहीं उठती मै… जाओ तुम्हे जो करना है कर लो।


अपस्यु तेजी के साथ बिस्तर पर लपका और ऐमी को उल्टा घूमकर उसके कमर पर बैठ गया। अपने दोनो हाथ से ऐमी के पीठ पर मजबूत हाथ का दवाब डालते उसके पीठ दबाते हुए… "खुमारी मिटी या और बदन दबाऊं।"..


ऐमी:- आह ! बेबी मज़ा आ रहा है, ऐसे ही दबाते रहो ना। और हां थोड़े पाऊं भी दबा देना ना।


अपस्यु उसकी बात सुनकर हसने लगा। पहले ऊपर फिर नीचे। जैसे ही हाथ ऐमी के घुटनों के ओर बढ़ने लगे.. "बेबी एक मिनट उठोगे।"..


अपस्यु, ऐमी के ऊपर से हटा, ऐमी अपनी ब्रा पहनकर खड़ी हुई और अपस्यु के बाल बिखेरती हुई….. "तुम्हारा साथ होना ही जिंदगी है, लव"… कहती हुई ऐमी अपने होंठ से अपस्यु के होंठ को प्यार से स्पर्श करती… "तुम मेरी हंसी हो, तुम मेरी खुशी हो। आती हूं फ्रेश होकर।"…


ऐमी की बातों पर हंसते हुए अपस्यु लेट गया। ख्यालों में वो ऐसे डूबा कि उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी आंख लग गई। पानी की छींटें चेहरे पर पड़ने से अपस्यु की आंख खुली। ऐमी सूखे तौलिए से अपनी बाल झटक रही थी और अपस्यु को देखकर मुस्कुरा रही थी।…. "अब उठो भी, साढ़े 10 बज गए हैं और मुझे भूख सी लगने लगी है।"..


दोनो लगभग 11 बजे तक तैयार होकर, मासी से मिलने के लिए कमरे के बाहर आए। जैसे ही कमरे के बाहर निकले, बच्चे उन्हें देखकर डर से सब अपने माता पिता के पास आ गए, सिवाय जूनियर ऐमी के। वो अपस्यु और ऐमी को गौर से देख ही रही थी, तभी पूरी सभा कि नजर भी इन दोनों पर चली गई।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 

Sanju@

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Update:-21


इधर कैंटीन से निकालकर आरव सीधा हिस्ट्री की क्लास के लिए चल दिया। लेकिन क्या ही किया किया जा सकता है, हिस्ट्री के क्लास तक पहुंचने के लिए उसकी जानकारी भी तो होनी चाहिए।

उसने एक छात्र को रोक कर "इतिहास के कक्षा कहां लगती है" उसकी जानकारी पूछने लगा… वो लड़का हाथ दिखता उसे "पागल" कहता हुआ चला गया। इसी तरह 3-4 और छात्र-छात्राओं से भी जानकारी निकालने की कोशिश किया लेकिन किसी ने भी उसके सवालों में तनिक भी रुचि नहीं दिखाई।

अंत में वो सीधा ऑफीस पहुंचा, वहां एक चपरासी को 20 रुपए दिए और तब कहीं जाकर उसे इतिहास के कक्षा के बारे में पता चला। कक्षा के पता चलने के बाद वहां रुकने की कोई वजह नहीं थी इसलिए वो भागने के लिए तैयार ही बैठा था, तभी वो चपरासी उसे टोकते हुए…. "अरे सुन मजनू, कहां भाग रहा है। फर्स्ट ईयर के हिस्ट्री का लैक्चर तो कब का खत्म हो चुका होगा"…

आरव:- ओह ! सब बेकार हो गया।

चपरासी:- 200 रुपए दे मैं पूरी डिटेल बता सकता हूं, कि कौन किसी वक़्त किस क्लास में होगी।

आरव:- तू तो भाई निकला, 500 रुपया लेले.. पर काम जल्दी कर दे…

उस चपरासी ने 500 रुपए लेेकर अपने पीछे आने के लिए बोला। आरव उसके साथ स्टाफ रूम में पहुंचा जहां एक कोने में कंप्यूटर लगा था। चपरासी ने कॉलेज पोर्टल पर किसी स्टाफ के नाम से लॉगिन करने के बाद उसे कहने लगा…. "अभी स्टूडेंट के फोटो के साथ नाम है… उसपर क्लिक कर पूरी क्लास कि डिटेल पता चल जाएगी। फिर मेरे पास आना.. कौन सी क्लास कहां लगती है मैं बता दूंगा। लेकिन उसके पैसे अलग लगेंगे।"

आरव, प्रोफ़ाइल ढूंढ़ते ढूंढ़ते कहने लगा…. भाई पक्का बिजनेसमैन हो… ये मिल गई अपनी जानेमन… ओ तेरी.. ये कहां से प्लॉट हो गई इधर।

चपरासी… मिल गई तो जल्दी डिटेल निकाल ना। यहां ज्यादा देर नहीं रुक सकते।

आरव लावणी ढूंढ़ रहा था… और इंग्लिश के लेटर K के बाद L आता है जहां लावणी के नाम के ठीक ऊपर कुंजल लिखा था वो भी तस्वीर के साथ। अब काहे वो लावणी की डिटेल लेने लगा। कुंजल की पूरी डिटेल वो लिखा और भागते हुए खुद अपनी आखों से देख कर सुनिश्चित करने चला गया कि, वाकई ये कुंजल ही है।

भागते वो कुंजल के क्लास के पास पहुंचा और कुछ दूरी पर छिप कर, वो क्लास की गेट पर नजर जमा लिया। तकरीबन 10 मिनट बाद क्लास ख़त्म हुई और छात्र-छात्राएं बाहर आने लगी। आरव बड़े गौर से सबको देखते जा रहा था। लावणी भी अपनी क्लास समाप्त कर निकल रही थी, कि उसकी नजर आरव पर पड़ गई।

बड़े आराम से वो आरव के पास पहुंची। ऐसा भी नहीं था कि वो दबे पाऊं या छिप कर अा रही हो, लेकिन आरव तो बिल्कुल "बको ध्यानं" (बगुले की तरह ध्यान लगाना) किए था कुंजल के लिए। लावणी उसके दाएं ओर खड़ी होकर उसके कंधे पर हाथ अपना हाथ रखी और वो भी सामने देखने लगी।

कुछ देर तक देखने के बाद…. हूं !!! शॉर्ट, स्कर्ट, स्लीवलेस, टाईट टी शर्ट, टाईट जीन्स, काफी सुकून मिल रहा होगा ना इन्हे देख कर। अब तक तो आखों से ही पूरा माप लेे लिया होगा। काफी सेक्सी लड़कियां है ना....

आरव बिना ध्यान दिए हुए…. हैं तो काफी सेक्सी लेकिन मज़ा कहां अा रहा है देखने में। जल्दी से दिख जाति तो सस्पेंस खत्म हो जाता।

लावणी:- जल्दी से सबकुछ थोड़े ना यहां दिखेगा। अब यहां न्यूड होकर तो नहीं घूम सकती ना, जितना दिख रहा है उतने में ही काम चला लो।

आरव:- अरे नहीं, ऐसा नहीं है.. मैं तो वो कुंजल…… वो ओ ओ !!! लावणी तुम !!

लावणी:- जी हां मै.. आखों में एक्सरे लगवा लो, सब कुछ जल्दी में दिख जाएगा।

आरव:- आंह ! पागल कहीं की मैं जल्दी में क्या दिखने की बात कह रहा हूं और तुम क्या सोच ली।

लावणी:- तुम मुझे बातों में घुमाओ मत। वैसे भी मुझे क्या लेना देना तुम कुछ भी करो। बस साची दी ने कहा था तुम मुझे घर तक छोड़ दोगे, इसलिए यहां अाई मै।

आरव:- ठीक है कैंटीन में जाकर बस 10 मिनट इंतजार करो, मैं आया।

लावणी मुंह बना कर भनभनाते वहां से चली गई और आरव फिर से कुंजल को ढूंढ़ने लगा। चारों ओर उसने अपनी नजर दौड़ाई। तभी उसे 4 लड़कियों का एक समूह दिखा, जहां उसे कुंजल भी दिख गई। कुंजल को देखते ही…. "ये पागल इधर क्या कर रही है। अपस्यु से बात करनी पड़ेगी"…

आरव वहां से दबे पाऊं भाग कर कैंटीन में आया जहां लावणी उसका इंतजार कर रही थी। वहां से फिर दोनों फटफटी में सवार होकर निकल गए। रास्ते में दोनों बिल्कुल खामोश थे और आरव इतनी देर तक खामोश हो रह जाए… कैसे संभव था…

फटफटी पर बैठा, वो भी हैल्मेट लगा कर, बात कर पाना काफी मुश्किल होता था, इसलिए उसने लावणी को कॉल लगाया.. जब लावणी ने अपने फोन को देखी तब वो एक बार फोन तो एक बार आरव को ही देख रही थी। चिल्लाती हुई वो उसके कानों में बोली…. "यहीं तो हूं, फिर कॉल क्यों लगा रहे"

आरव:- कॉल उठाओ बस…

लावणी कॉल रिसीव कर, इयरपीस अपने कानो में लगाती…. "मेरी शांति तुमसे देखी नहीं जाती, बको क्या बकना है"..

आरव, हंसते हुए… "इतना भड़क क्यों रही हो, तुम्हे छोड़ कर किसी और को देख रहा था, इसी बात का गुस्सा हो क्या?"

लावणी, गुस्से से बढ़ी श्वांस को काबू करती…. "मैं क्यों तुमसे गुस्सा होने लगी, मैं तो साची पर गुस्सा हूं की खुद चली गई मुझे फसा दी। आज उसको भी बताती हूं मै।"

आरव फिर से हंसते हुए…. ओह ऐसा है क्या?

लावणी:- मैं कोई कॉमेडी कर रही हूं, जो हर बात पर मुंह फाड़ कर हंस रहे हो। आगे देखो वरना कहीं अपने भाई की तरह तुम भी खटिया ना पकड़ लेना।

आरव:- अच्छा सॉरी बाबा। मैं अब बिल्कुल भी नहीं हंसने वाला, अब तो खुश हो ना।

लावणी:- नहीं । तुम मेरे कुंडली से गायब हो जाओ, तब मैं खुश हो जाऊंगी।

आरव:- अच्छा जी तो ऐसी बात है। वैसे हमारे बीच एक डील हुआ था, उसका क्या?

लावणी:- जाकर उस तस्वीर को इंटरनेट पर डाल दो। उससे भी मन ना भड़े तो मेरे घर की दीवाल पर, कॉलेज में हर जगह उसके पोस्टर लगा दो। लेकिन मैं ब्लैकमेल नहीं होने वाली।

आरव उस वक़्त सिर नहीं खुजा सकता था वरना वो सबसे पहले अपना सिर ही खुजता। लावणी का ये नया और बदला रूप, आरव को बिल्कुल चुप होकर अपने अंदर खुद से बात करने पर मजबुर कर दिया…. " ये वही लावणी है.. पापा की डरपोक पड़ी या कहीं 180ml चढ़ा कर तो ना अाई है। ऐसा लग रहा है कल रात ही इसमें नया अपडेट आया हो और ये नया वर्जन काफी खरनाक है।"

"रोको, रोको, रोको"… आरव अपने आप से बात करने में लगा था, तभी लावणी जोर से चिंखती हुई कहने लगी।

"क्या हुआ, पगला क्यों रही हो"… आरव ने भी चिढ़ जर जवाब दिया।

लावणी:- मोड़ अा रहा है… गाड़ी रोक, मैं पैदल चली जाऊंगी।

आरव, फटफटी को गली के अंदर लेते हुए बोलने लगा…. "क्यों डर रही हो। इतनी तेज धूप में कौन तुम्हारे घर से से बाहर आकर दरवाजे पर……

आरव कुछ दूर पीछे ही था कि उसे अपार्टमेंट के सामने का नजारा दिखा…. सुलेखा ठीक साची के सामने थी और वो स्कूटी का ब्रेक लगा दी।… उनको देख कर आरव कहने लगा… "बच गई लावणी आज तू, तेरी मां का ध्यान साची पर है"…..………….लावणी.. लावणी.. और नजर जब पीछे गई तो कुछ लड़के लावणी के पास खड़े थे…

दरअसल जैसे ही गाड़ी गली के अंदर पहुंची लावणी ने देख लिया कि सुलेखा सड़क पार करके अपार्टमेंट की ओर जा रही है, और ये नजारा देख वो बाइक से कूद गई। आरव तो बातों में लगा था कि "क्यों डर रही हो".. और उसे पता भी नहीं चला कि कब लावणी कूद गई। जब पीछे मुड़ कर देखा तब पता चला कि वो कूद चुकी है….

सामने का नजारा देख साची तो हक्की-बक्कि रह गई। साची के चेहरे के उड़ते रंग को देख आरव समझ गया कि "ये घबराहट में जरूर फसेगी"… इसलिए वो फटफटी को उनके पास लेे आया और कल्च दबा कर जोर से एक्सेलेरेटर लेते हुए…. "ये क्या आप लोग रास्ता रोक खड़े है, थोड़ा किनारे होंगी क्या"..

सुलेखा जो टुकुर-टुकुर साची को घुरे जा रही थी, वो आरव की ओर देखती हुई… "जा ना इतना तो जगह खाली है"..

आरव:- आंटी लगता है आप को धूप लग गया है, और साथ में आपकी बेटी को भी, वहां देखो सड़क पर ही गिर-पड़ रही है।

सुलेखा जब लावणी के बारे में सुनी तब उसने भी अपनी नजर दूर दौड़ाई और बड़ी तेजी से लावणी को देखने गई… साची भी तुरंत लावणी के पास जाना चाहती थी, लेकिन उसे रोकते हुए….. "इतना घबराने से फसोगी। कूल रहो और फूल बनाओ। जाओ अब जाकर उसे भी देखो।"..

इतना कह कर आरव अंदर चला गया और साची भी लावणी के पास पहुंच गई। इधर अपार्टमेंट पहुंचते ही आरव जल्दी में अपने फ्लैट पहुंचा…. अपस्यु वहीं बिस्तर पर बैठा अपने हाथ और बदन को देख रहा था…

"अपस्यु, तू जानता भी है उस कॉलेज में कौन पढ़ रही है"… आरव अंदर आते ही हड़बड़ा कर अपनी बात कहा…

अपस्यु:- कौन पढ़ रही है…

आरव:- कुंजल भी वहां पढ़ रही है.. एक साल सीनियर क्लास में…

अपस्यु:- कौन कुंजल…

"कितने कुंजल को तू जानता है… हां मैं उसी कुंजल की बात कर रहा हूं, जिसके बारे में तू अभी सोच रहा होगा"… आरव ने चिढ़ते हुए अपस्यु को सुना दिया।…
Wonderful अपडेट
आरव तो लावणी की बजाय कुंजल की डिटेल निकाल कर लाता है और उसे ही देखता है जिसे लावणी पकड़ लेती है दोनो के बीच नोकझोंक बहुत ही प्यारी थी वही ये कुंजल कोन है क्या ये अपश्यु की ex gf है या कोई और रिश्ता है देखते हैं सुलेखा ने साची को अभी तक रोक रखा है वही लावणी भी आ गई है देखते हैं आगे क्या होता है
 

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"कितने कुंजल को तू जानता है… हां मैं उसी कुंजल की बात कर रहा हूं, जिसके बारे में तू अभी सोच रहा होगा"… आरव ने चिढ़ते हुए अपस्यु को सुना दिया।…

"कितना रिएक्ट कर रहा है, अभी मैं रिकवर हुआ कि नहीं उसपर कोई बात भी नहीं किया। कल रात भर का जागा है, थोड़ी देर आराम भी नहीं किया। और तुझे अब ये कुंजल को लेकर फ़िक्र होने लगी है।".. अपस्यु ने समझते हुए कहा।

आरव, अपस्यु के पास आकर बैठते हुए, उसके हाथ को अपने हाथ में लेता…. "तेरी सभी बातें ठीक है, लेकिन कुंजल को आज देख कर मैं क्या करूं मुझे कुछ समझ में नहीं अा रहा, इसलिए तो तेरे पास भगा आया मैं।"

अपस्यु:- कुंजल में तू कौन सी फैमिली ढूंढ़ रहा है मेरे भाई? जो कभी मॉम-डैड के रहते अपने नहीं थे, फिर आज कैसी उम्मीद लगाना।

"तेरे से मुझे बात ही नहीं करनी चाहिए थी। जैसे तू और हम भाई है ना वैसे ही अंकल भी पापा के भाई हैं। क्या दो भाइयों के बीच झगड़े नहीं होते? और झगड़े किस फैमिली में नहीं होते? मैं जा रहा हूं कुंजल से मिलने, तू यहां बैठकर सबको बस मतलबी ही समझा कर"… आरव गुस्से में हाथ झटक कर अपनी बात कहता वहां से उठकर बाहर चला गया।

अपस्यु, उसे पीछे से रोकने की कोशिश करता रहा किंतु वो गुस्से में गेट को पटकता हुआ वहां से निकल गया। उसके जाने के बाद अपस्यु अपनी ही बातों पर सोचता रहा और अफसोस भी हो रहा था।

इधर लावणी जब बाइक से कूदी तब बाइक की रफ़्तार लगभग 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रही होगी। लेकिन इस रफ्तार से भी चलती गाड़ी से कूदने पर नुकसान बहुत होता है। बेचारी सड़क पर गिर कर जैसे बिछ गई हो। कहां-कहां चोट अाई वो तो घर जाकर पता चलता फिलहाल वो उठने कि कोशिश में लगी थी।

आस-पास के कुछ लोग वहां जमा हो गए। उसे हांथ देकर उठाने लगे। इतने में ही पहले सुलेखा और उसके पीछे साची पहुंची। साची ने तुरंत उसे स्कूटी पर बिठाया और सीधा घर गई।

"तुझे कहीं चोट तो नहीं आई लावणी"… साची उसके कपड़ों से धूल हटाती हुई पूछने लगी। इतने में अनुपमा भी वहां पहुंच गई, लावणी के हाथ पर चोट के कुछ निशान देखकर वो थोड़ा घबरा गई… "क्या हो गया भुटकी को"

लावणी:- कुछ नहीं बस चक्कर खाकर गिर गई थी बड़ी मां।

"तू ये लकड़ी के तरह बनने की कोशिश करेगी तो यही होगा ना, और साची तू वो अपार्टमेंट में क्या करने गई थी।".. सुलेखा हॉल में पहुंचती ही दोनों पर बराशने लगी।

साची:- आप भी ना छोटी मां, वो तो मोड़ पर जाम लगा था तो मैं स्कूटी को आगे से लेकर अाई और लावणी उतर कर पैदल अा रही थी।

अनुपमा:- सुलेखा जाकर एंटीसेप्टिक लेकर आओ। देख भी नहीं रही बच्ची को चोट लगी है, और तुम चिल्ला रही हो।

सुलेखा के जाते ही अनुपमा लावणी को आखें दिखाती हुई पूछने लगी…. "तुम दोनों का ये क्या नाटक चल रहा है, मुझे सब सच-सच बताओ"..

साची:- हमने सच कहा है मां, हम पर यकीन नहीं।

अनुपमा:- सच को ज्यादा देर छिपा भी नहीं सकती वो सामने अा ही जाएगा। बेहतर होगा अभी सच बोल दो वरना तुम दोनों के चेहरे के हाव-भाव और तुम्हारी कहानी में कोई मेल नहीं।

लावणी:- बड़ी मां। यहां मैं दर्द में हूं और आप है कि उल्टा शक की जा रही है।

"सुलेखा कहां रह गई, जल्दी लाओ ना".. अनुपमा ने आवाज़ दी और कुछ ही पल बाद सुलेखा हाजिर थी। इधर लावणी की मरहम पट्टी चल रही थी उधर दोनों बहने आखों ही आखों में जैसे कह रही हो… "आज तो बच गए"।

शाम को तकरीबन 6 बजे होंगे जब साची अपने कमरे में बैठी अपस्यु के बारे में सोच रही थी। अपनी आज कि फीलिंग को वो किसी के साथ शेयर करना चाहती थी इसलिए वो अपनी करीबी दोस्त भावना कों कॉल लगाई लेकिन भावना अपने ब्वॉयफ्रंड के साथ व्यस्त थी इसलिए उसने बस संदेश छोड़ा।

कुछ देर इधर से उधर वो टहलती रही लेकिन जब कोई नहीं मिला तब वो हार कर अपना लैपटॉप ऑन की और एफबी चेक करने लगी। चेक करते करते उसने अपना फेक अकाउंट भी खोली। वहां देखी तो संदेश का अंबार लगा हुआ था…. "यहां मेरे सभी रियल दोस्त बीजी हैं और एक तुम हो".. साची सोच ही रही थी कि एक सॉरी का स्टिकर उसके मैसेंजर पर क्रेज़ी बॉय ने पोस्ट किया।

साची:- तुम क्या दिन रात एफबी पर ही बैठे रहते हो?
क्रेजी बॉय:- उस दिन शायद मुझे जो नहीं कहना चाहिए था वो कह गया। इसलिए गिल्टी फील कर रहा था। और तुम्हारे आने का इंतजार।
साची:- चलो मैंने माफ़ किया। लेकिन ध्यान रखना अगली बार से।
क्रेजी बॉय:- :) ओके मैम।

दोनों बात करने में व्यस्त हो गए। इधर आरव जब से गुस्सा होकर निकला था उसने एक बार भी अपस्यु का कॉल नहीं उठाया। अपस्यु को उसकी फ़िक्र होने लगी, लेकिन अभी उसकी हालत नहीं थी कि वो कहीं बाहर जा सके। रात के 9 बज चुके थे सोचते-सोचते इसलिए अब साची को भी मदद के लिए बुलाया नहीं जा सकता था…

अपस्यु से जब रहा नहीं गया तब उसने सिन्हा को कॉल लगाया और एक ड्राइवर के साथ किसी एक आदमी को भेजने के लिए मदद मांगी। थोड़ी देर बाद एक कर अपार्टमेंट के मुख्य द्वार पर रुकी और दो लोग अपस्यु के फ्लैट के ओर निकले।

"कैसे हो मुरली, और ये तुम्हारे साथ कौन है"… अपस्यु फ्लैट के बाहर ही इंतजार कर रहा था। ड्राइवर मुरली को सामने से आते देख उसने पूछा।

"ये नंदकिशोर है सर, बंगलो में हैल्पर का काम करता है"… मुरली ने जवाब देते हुए कहा।

वहां से तीनों कार में बैठे और द्वारिका सेक्टर के ओर निकाल गए। आरव का लोकेशन वहीं के आस-पास का अा रहा था। अपस्यु जब वहां पहुंचा तो आरव नशे में धुत, एक बंद दुकान के नीचे बैठा कुछ बड़बड़ा रहा था। मुरली और नंदकिशोर उसे सहारा देकर गाड़ी में बिठाए और दोनों को फ्लैट में छोड़ कर निकाल गए।

आरव जरा भी होश में नहीं था, बस बडबडा रहा था। अपस्यु ने किसी तरह उसके गंदे कपड़े बदले, उसे उठा कर जूस पिलाया और सोने के लिए छोड़ दिया। बीती रात जागे होने के कारण उसकी आंखें तो नहीं खुल रही थी लेकिन वो नींद में लगातार बाड़बड़ा कर सो गया। अपस्यु उसी के पास बैठ सुकून से उसे सोते हुए देखता रहा।

"साची, इस वक़्त"…. अपस्यु के मोबाइल की घंटी बाजी और वो कॉल उठा कर साची से पूछते हुए..
"क्यों इस वक़्त कॉल नहीं कर सकती क्या?"… साची अपने लटों को उंगलियों से गोल-गोल घुमाती पूछने लगी।
अपस्यु:- क्या हुआ कोई ख्याल सोने नहीं दे रहा क्या?
साची:- नहीं शायद .... (और गहरी शवांस लेने लगी)
अपस्यु:- लगता है बड़ा ही प्यारा ख्याल है। क्या मैं जान सकता हूं इस प्यारे से ख्याल के बारे में…… (दोनों ही अजीब सी गुदगुदी अपने अंदर मेहसूस कर खुश हो रहे थे)
साची:- कुछ बातों को बताया नहीं जा सकता। वैसे एक बात कहूं,
अपस्यु:- क्या?
साची:- तुम्हे देखने कि इक्छा हो रही है।
अपस्यु:- मेरे पाऊं अभी पूरी तरह ठीक नहीं, वरना अा जाता मैं।
साची:- हिहिहिहिही !! नहीं रहने दो। वैसे भी इंतजार का भी अपना ही मजा है।
अपस्यु:- ठीक है तुम इंतजार करो और कल मै तुम्हे सरप्राईज करूंगा…

"कैसा सरप्राइज… हेल्लो… हेल्लो"… अपस्यु फोन रख चुका था और साची अपने टैडी को अपने सीने से चिपका… "हाय … ये तेरा दीवानापन… तो कल सरप्राइज मिलने वाला है…. उफ्फ !! नींद नहीं आएगी अब अपस्यु… लगता है ये इंतजार कहीं जान ना लेले।"
तो कुंजल आरव के पापा के भाई की बेटी हैं लेकिन अभी तक ये पता नही चला की आरव और अपश्यु की फैमिली ए साथ क्या हुआ था और कुंजल और उनके बीच किस वजह से दूरी है खेर दोनो बच तो गई है लेकिन साची की मां को शक है लेकिन अभी तक दोनो को कुछ भी नही बताया है आरव लगता है दुखी हैं और अपश्यु साची को क्या सरप्राइज़ देता है खेर देखते है अगले अपडेट में
 

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"कैसा सरप्राइज… हेल्लो… हेल्लो"… अपस्यु फोन रख चुका था और साची अपने टैडी को अपने सीने से चिपका… "हाय … ये तेरा दीवानापन… तो कल सरप्राइज मिलने वाला है…. उफ्फ !! नींद नहीं आएगी अब अपस्यु… लगता है ये इंतजार कहीं जान ना लेले।"

कल के सरप्राइज के ख्याल ने ऐसा बेख्याली में डाला की खुशी की लहर सर से पाऊं तक दौड़ रही थी और करवट बदलते-बदलते कब नींद अा गई पता भी नहीं चला। सुबह जब साची उठी तब सबसे पहले नजर फोन पर ही गई जिसमें अपस्यु का संदेश लिखा था… "सुबह का पहला सरप्राइज, मैं कॉलेज जाने के लायक हूं, और कॉलेज में मिलते हैं।"

साची को तो जैसे पंख लग गए और वो आज पूरे रिझाने के इरादे से तैयार हो रही थीं। वहीं दूसरी ओर रात को कॉल रखने के बाद अपस्यु ने एक बार फिर से "सेल रिपेयर थेरेपी" शुरू किया। सुबह के 4 बजे तकरीबन उसकी नींद खुली और आंख खुलते ही सबसे पहले उसने अपने पाऊं का ही आकलन किया।

"आह ! पूरा सर भरी है"… आरव अपने सिर पकड़ कर उठते हुए कहा।
"पास में ही नींबू पानी का जूस रखा है, गटक जा".. ट्रेडमिल पर भागते हुए अपस्यु ने कहा।

सिर भारी था, आंख पूरी तरह से खुली नहीं थी। नींबू पानी लेने के बाद भी हैंगओवर नहीं उतरा था लेकिन आरव की आखें जरूर खुल चुकी थी। उसके आखों के सामने अपस्यु केवल निक्कर पहने, ट्रेडमिल पर भाग रहा था… "अबे कल तक तो टूटा था, आज भागने कैसे लग गया"..

"तूने कल ध्यान दिया होता तो शाम को ही मैं भागने लग जाता"… अपस्यु, अपने बदन को तौलिए से पोंछता आरव के पास पहुंचा।

आरव:- सारी मेरे भाई, पता नहीं कल मुझे किस बात का फ्रस्ट्रेशन था....
अपस्यु:- शायद मेरे ही बातों का फ्रस्ट्रेशन था। गलती तेरी नहीं मेरी है। तूने कल सही कहा था, है तो वो अपनी बहन, अपना खून।
आरव:- सच भाई। वैसे कल मैं कुंजल से मिलने गया था लेकिन कॉलेज के एड्रेस पर वो नहीं मिली।
अपस्यु:- कोई बात नहीं है, चलकर तैयार होते हैं, आज उससे कॉलेज में ही मिलते हैं।
आरव:- वो सब तो ठीक है, लेकिन क्या उसके दिल में भी हमारे लिए वहीं प्यार होगा, क्योंकि संस्कार तो उसमे कनाडा वाले ही होंगे… "सैपरेट और इंडिपेंडेंट ख्याल वाले।"
अपस्यु:- चलकर मिल तो लेे पहले, फिर देखते हैं क्या होता है?

दोनों भाई तैयार हो चुके थे। अराव कुछ ज्यादा ही खुश नजर आ रहा था, शायद परिवार से मिलने की खुशी थी। तभी अपस्यु के मोबाइल पर साची का कॉल आया। उससे बात करने के बाद वो आरव से कहने लगा… "लगता है आज फिर तुम्हे लावणी के साथ उसके स्कूटी पर जाना होगा।"

आरव:- नहीं मैं फटफटी से जाता हूं तू लैंबोर्गिनी से चला जा।
अपस्यु:- कुछ हुआ है क्या है मेरे भाई।
आरव:- कुछ नहीं बस ऐसा लग रहा है मैं उसे परेशान कर रहा हूं।
अपस्यु:- चल कोई नहीं। तू निकल फिर मै भी पीछे से पहुंचा।

आरव वहां से निकल गया अपस्यु अपनी लैंबोर्गिनी एवेंटाडोर लिए अपार्टमेंट के दूसरे गेट पर उसका इंतजार करने लगा। कुछ पल बाद लावणी भी स्कूटी लेकर पहुंची। अपस्यु ने जब साची को देखा तो देखता ही रह गया। क्या लग रही थी आज वो, एकदम क़यामत।

साची को अपस्यु के पास उतार कर लावणी फिके मुंह आरव के बारे में पूछने लगी। अपस्यु का ध्यान साची से हटकर लावणी पर गया जिसे देख कर वो समझ गया की क्यों आरव नहीं गया लावणी के साथ। उसने भी शालीनता से जवाब देते हुए लावणी से बोला… "तुम जाओ वो चला गया कॉलेज"… इधर तब तक साची अाकर कार में बैठ चुकी थी।

"वाउ ! ये लैंबोर्गिनी एवेंटाडोर है ना"… साची पूरे उत्सुकतावश पूछी
"तुम ये बेकार की बेजान सी चीज देखने में व्यस्त हो और मेरी जान कहीं और अटक चुकी है"… एक पूरी नजर साची को देखते हुए अपस्यु ने कहा। डार्क मरून रंग की प्लेन पेंसिल ड्रेस जो घुटनों के थोड़ा ऊपर तक थी, उसके आकर्षण का केंद्र बना हुआ था। बाल पूरे खुले और चेहरे पर किया ये हल्का मेकअप… उफ्फ ! आज तो पूरे जान लेने के इरादे से निकली थी घर से।

"कहां अटक चुकी है तुम्हारी जान अपस्यु".. साची मुस्कुराती हुई अपस्यु के ओर देखती हुई पूछी.. दोनों की नजरों से नजरें टकरा रही थी और प्रतिक्रिया में अपस्यु भी मुस्कुराया और अपनी कार को स्टार्ट कर निकल लिए कॉलेज के ओर..

बाहर खामोशी और अंदर तूफान चल रहा था। इसी कस-म-कस में दोनों की आवाज़ बिल्कुल धीमी और मुस्कान पूरे तेज देखने मिल रहा था। साची का दिल तो पहले से ही सरप्राइज के नाम से धड़क रहा था और बेसब्री अपने चरम पर थी, केवल इस इंतजार में कि अब कह भी दो अपस्यु। और अपस्यु तो केवल उसके रूप को ही निहार-निहार कर निहाल हुआ जा रहा था।

दोनों के चेहरे की चमक एक अलग ही स्तर पर थी जो देखने वालों को यहीं अनुभव करवाती की दोनों साथ में कितने प्यारे लग रहे है। किंतु आज तो पूरे कॉलेज के लिए आकर्षण का केंद्र उसकी लंबोर्गिनी ही बनी हुई थी। जैसे ही कार कॉलेज के गेट पर रुकी, एक अत्यंत आकर्षित बाला उसके पास खड़ी होकर पूछने लगी…. "Hey handsome, wanna ride with me"

साची का तो खून ही खौल गया…. वो कुछ बोल पाती उससे पहले ही कार आगे बढ़ने लगी और वो लड़की तबतक अपने हैंडबैग से लिपस्टिक निकालकर एक कागज में अपना नंबर लिख दी। उस कागज पर अपने लिपस्टिक लगे होटों के निशान छापकर अपस्यु के गोद में फेक वो आंख मार दी। उसकी इस हरकत पर तो साची और भी जलभुन गई….

"हुंह ! उसे इतना भाव देने की क्या जरूरत थी".. साची गुस्से में पूछने लगी।
"मैंने कहां किसी को भाव दिया। वो तो खुद चिपकी जा रही थी".. अपस्यु सफाई देते कहने लगा।
"हां वो तो मैं भी देख रही थी। तुम्हारे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला और निकलता भी कैसे, उस मिनी स्कर्ट वाली को देखकर तुम्हारे मुंह से लार जो टपक रहा था".. साची एक बार फिर अपने गुस्से का इजहार करती।
"मैंने तो कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी, फिर तुमने ये सब नोटिस कैसे कर लिया".. अपस्यु, साची का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे समझाते हुए कहने लगा।

"तो जाओ और पहले अपनी प्रतिक्रिया ही देकर आओ, मैं चली क्लास"…साची हाथ झटक कर कार से नीचे उतर गई और अपने क्लास के ओर चल दी। उसे पीछे से जाते देख अपस्यु अपने बालों में हाथ फेरता खुद से ही कहने लगा… "हाय लगता है इजहार से पहले ही इश्क़ के साइड इफेक्ट्स देखने को मिल रहे हैं। मज़ा आएगा"..

अपस्यु कार पार्क कर लौट ही रहा था तभी उसके पास आरव का कॉल आया और उसने कुंजल के बारे में कुछ बात कि.. अपस्यु वहां से सीधा आरव के पास पहुंचा… "अभी-अभी हिस्ट्री की क्लास में गई है".. अपस्यु के आते ही आरव ने कहा।

"तो फिर हम यहां क्या कर रहे है, हम भी चलते हैं क्लास में".. अपस्यु ने पूरे उत्साह के साथ कहा।

"अबे वो हिस्ट्री की क्लास है वो भी 2nd ईयर की"… आरव ने चिंता जाहिर करते हुए कहा। लेकिन आरव की बात को नकारते, अपस्यु उसे खींच कर अंदर लेे गया। क्लास चल रही थी प्रोफेसर बोर्ड पर कुछ लिख रहे थे और इतने में दोनों भाई अंदर जाकर सीधा कुंजल के पास वाली सीट पर आकर खड़े हो गए।
Nice update
हमने तो सोचा था प्यार का इजहार होगा लेकिन ये तो कॉलेज जाने की बात कही खैर अपश्यु ठीक हो गया ये भी सरप्राइज ही है लगता है कुंजल से पहले कोई जख्म मिला हुआ है इनको साची और अप्स्यु में प्यार भरी नोकझौंक बहुत ही प्यारी है देखते हैं कुंजल इनको देखकर क्या रिएक्शन देती है
 

Zoro x

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तीनों कंचन के कमरे में बैठे थे और कुछ पल की खामोशी के बाद…. "क्या हुआ मासी, इतनी टेंशन में रहोगी तो कैसे काम चलेगा।".. अपस्यु ने बात शुरू की..


कंचन:- हुंह ! अपने बच्चे से मै ठीक से मिली भी नहीं और उसे फालतू में इतना सुना दिया, ये भी ना देखे मेरी बहू आयी है। एक लड़की के लिए वो सबसे बुरा पल होता है जब उसके सामने उसके पति को उल्टा सीधा सुनाया जाए, इतनी भी अक्ल नहीं थी उनमें।


ऐमी:- मासी तो आपने भी तो उन्हें सुनाने में कोई कसर थोड़े ना छोड़ी। हमारे ओर से तो आपने भी बोल ही दिया। अब छोड़ो भी बात को, इतना पकड़ कर रखोगी बात को, तो आपको ब्लड प्रेशर हो जाना है।


कंचन:- मुझे नॉर्मल करने कि कोशिश ना करो, वरना मै चपेट लगा दूंगी ऐमी। अभी मै बहुत गुस्से में हूं।


अपस्यु:- आप का गुस्सा भरा मुंह देखने आए थे हम। सोचा था थोड़े मस्ती मज़ाक और हंगामा करेंगे आपके साथ। अब आप ऐसे गुस्से में रहोगी तो हम चले जाएंगे। मासी भूख भी लगी है हमे।


कंचन:- कहीं ना मुझे नॉर्मल करने की कोशिश ना कर। चल जयपुर घूम आते है, और बाहर ही कुछ खा लेंगे। वैसे भी यहां रहूंगी तो मेरा सर दर्द करने लगेगा। रह-रह कर बातें दिमाग़ में आती रहेगी।


ऐमी:- मासी दिल्ली चलो ना, प्लीज प्लीज प्लीज…


अपस्यु:- हां मासी चलो ना…


कंचन:- में वहां जाकर क्या करूंगी…


ऐमी:- मतलब हमारे पास रहकर क्या करेगी ऐसा कहना है.. हुंह ! मुझे बुरा लगा..


कंचन, कुछ सोचती हुई…. "अच्छा चल ठीक है, चलते है दिल्ली अब तो दोनो खुश ना।"


ऐमी और अपस्यु…. "हां बहुत खुश है मासी"…


कंचन हां बोलकर अपने पैकिंग करने में लग गई, लेकिन तभी ऐमी उसका हाथ पकड़ते… "नाना, कोई पैकिंग नहीं, बल्कि हम आपके लिए शॉपिंग करेंगे।"..


कंचन:- मतलब ऐसे ही खाली हाथ चलूं…


अपस्यु:- कितने सवाल पूछती है। हर चीज में फॉर्मेलिटी। सिर्फ साथ चल दो आप, बाकी आगे क्या होता है वो हम पर छोड़ दो।


कंचन:- पता नहीं तुम दोनो के मन में क्या चल रहा है। ठीक है खाली हाथ ही चलती हूं…


कंचन को तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो इन दोनों की बात पर क्या कहे। ज़िन्दगी में पहली बार बिना पैकिंग के बाहर जा रही थी। कंचन ने अपने साथ जूनियर ऐमी और जूनियर दृश्य को लेती हुई, वीर प्रताप को अपने जाने के बारे में बताकर, उन दोनों के साथ निकल गई।


लगभग 2 बजे के करीब सब दिल्ली पहुंचे। ऐमी और अपस्यु ने जब खरीदारी की प्लांनिंग बताई, वो हंसती हुई दोनो के गाल थपथपाती शॉपिंग में लग गई। इधर ऐमी ने कंचन के लिए बहुत सारी चीजें शॉपिंग कर ली और अपस्यु जूनियर्स के साथ शॉपिंग कर रहा था।


कंचन साड़ी और ज्वेलरी की शॉपिंग करके ऐमी के पास पहुंचती…. "तू ना मुझसे काम करवा ले। थका दी है मुझे, आज रात मेरे पाऊं दबाने आ जाना।"


ऐमी:- रात का इंतजार काहे, अभी ही मसाज सेंटर चल दो ना।


कंचन:- क्यों तू रात में मेहंदी लगाएगी क्या?


ऐमी:- हां समझ गई, मुझे ही पाऊं दबाने होंगे।


शॉपिंग खत्म करके सभी पहुंच गए फ्लैट। अपस्यु और ऐमी आगे और कंचन जूनियर्स के साथ पीछे खड़ी थी। जैसे ही दोनो की पहली झलक मिली, कुंजल जोड़ से चिल्लाती हुई… "मां ने कहा है जबतक वो आ नहीं जाती, तबतक आप दोनो बाहर ही रहेंगे।"..


अपस्यु:- और मासी जो साथ आयी है, उनका क्या करना है, उन्हें भी बाहर खड़ा कर दूं क्या?


कुंजल दोनो के पास पहुंचती…. "कहां है मासी"..


अपस्यु और ऐमी दोनो किनारे हुए और सामने उसे कंचन दिखने लगी…. "ये दृश्य भईया की मां है। और ये दोनो क्यूट जूनियर्स दृश्य भईया के बच्चे है।"..


कंचन:- मुझे बाहर ही खड़ी रखोगी या अंदर भी आने दोगी…


कुंजल, सबको अंदर बिठाते…. "मासी आप बहुत अच्छे वक़्त में आयी है। देखो ना भैया अपनी मनमानी पर उतर आए हैं।"..


कंचन:- आज रहने दे बेटा, आज इसे कुछ सुनाओगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा। कल पंचायत लगाएंगे और दोनो को सजा देंगे।


कुंजल, अपस्यु और ऐमी को देखते हुए…. "हिहिहिही, क्या हुआ मासी, आपको तंग करने गए थे और उल्टा इन्हे सुना दिया किसी ने"…


कंचन:- छोड़ो इसे, ये मुझे बोलकर लाया है कि दिल्ली मै खूब मस्ती करेंगे, क्या सच बोलकर लाया है या मुझे यहां बोर होना पड़ेगा।


कंचन अपनी बात कह ही रही थी कि बाहर से नंदनी, आरव और स्वास्तिका के साथ घर पहुंची। नंदनी कंचन को देखकर एक बार अचंभे में पर गई, फिर तेजी के साथ उसके पास पहुंचती… "मुझे यकीन नहीं हो रहा दीदी, आप यहां आयी है।"


कंचन:- हां यकीन कैसे होगा, याद होती तो ना कभी बुलाती।


नंदनी:- राठौड़ मेंशन में कल गृह प्रवेश का कार्यक्रम है, तो उसी सिलसिले में आज मै आपसे बात करती दीदी।


कंचन:- ओह इसलिए ये दोनो पहुंच गए मुझे लेने। लगता है तुम्हारी दिल की बात को भांप लेते हैं ये दोनो नंदनी।


नंदनी, अपस्यु के कान पकड़ती…. "दीदी, तुम जानती हो, अपस्यु बिल्कुल सुनंदा दीदी कि कॉपी है, शांत, गंभीर और उन्हीं की तरह बिल्कुल शरारती भी।"


अपस्यु:- आपने मां के बारे में ये बातें कभी नहीं बताया मुझे।


नंदनी:- हां इसलिए नहीं बताई, ताकि तुम्हारी शरारतें और ना बढ़ जाए। वैसे दीदी साथ आयी है इसलिए बच भी गए वरना तुम दोनो की खैर नहीं थी। अब जाओ तुम लोग अपना काम देखो, हम जरा गप्पे लड़ाते हैं।


सभी वहां से निकल गए और उन दोनों को अकेले बात करने के लिए छोड़ दिया गया। 1,2 घंटे घर पर बिताने के बाद अपस्यु ऐमी को लेकर जैसे ही सिन्हा जी के यहां छोड़ने जाने लगा, कुंजल भी उसके साथ हो ली।


ऐमी के घर से लौटते वक़्त… "भाई, वहां मासी के घर क्या हुआ था, किसी ने कुछ कहा था क्या?"


अपस्यु:- ना रे बाबा, बस छोटी सी गलतफहमी हो गई है। वो छोड़ ये बता अब तो दिल नहीं जलेगा ना, तू खुश है ना अब।


कुंजल:- आपने कमाल ही ऐसा किया है कि खुश ना रहूं, बेहद खुश हूं। अब सारे दुश्मन खत्म और फैमिली टाइम शुरू। अच्छा सुनो मै सोच रही थी कल से कॉलेज शुरू कर दू।


अपस्यु:- हां तो परेशानी किस बात की आ रही है?


कुंजल:- वो कॉलेज में स्पोर्ट्स शुरू हो रहे है और मै भी हिस्सा लेना चाहती हूं।


अपस्यु:- बॉक्सिंग में हिस्सा लेगी या कुस्ती में।


कुंजल:- सीट पर बैठकर सिटी बजाने में हिस्सा लुंगी।


अपस्यु, झटके से ब्रेक लगाकर कुंजल को घूरते हुए…. "अब ये मत कहना कि तुमने मेरा नाम प्रतियोगिता में डाल दिया है।"


कुंजल इधर-उधर देखती, धीमी सिटी बजाती हुई….. "बहुत ज्यादा नहीं केवल एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, डांसिंग, और जिम्नास्टिक में नाम डाला है।


अपस्यु:- एथलेटिक्स को जरा एक्सप्लेन करेंगी मैम।


कुंजल:- ऑफ ओ एथलेटिक्स मतलब एथलेटिक्स। तरह तरह की रनिंग, तरह तरह के थ्रो, लोग जंप, हाई जंप, सिर्फ इतना ही।


"सिर्फ इतना ही"… अपस्यु गुस्से में उसे घूरते हुए कहने लगा..


कुंजल:- अपना ये लुक बाद में देना, मुझे बस तुम्हे जीतते हुए देखना है।


अपस्यु:- अब मै कुछ कहूंगा तो तुम गुस्सा कर भाग जाओगी। फिर मै मनाऊंगा और तुम रोने लग जाओगी, क्योंकि मेरी बात तुम्हे बुरी लगी होगी और तुम्हे मनाने के लिए अंत में मुझे कमिटमेंट करना ही होगा। ऐसा ही है ना।


कुंजल:- वाह भईया आपके साथ एक बात कि समस्या नहीं होती, ज्यादा ड्रामा नहीं करना पड़ता।


अपस्यु:- मुझे ऐसा क्यों लग रहा है, मुझे तुम्हारी शादी करवा देनी चाहिए।


कुंजल:- तो भी मै तुम्हारे पास ही रहने वाली हूं, ये क्यों भुल जाते हो।


अपस्यु:- हां ठीक है समझ गया। दुश्मन कहीं की, जब देखो तब बॉम्ब फोड़ देती है।


कुंजल:- मुझे जीत कि सिटी बजानी है और किसी भी खेल में हारे तो देख लेना।


अपस्यु:- हां ठीक है मै पूरी कोशिश करूंगा। अच्छा सुनो अभी हम राठौड़ मेंशन चल रहे है। वहां के लोगों को थोड़ा समझा ले और उसकी भी सुन ले।


कुंजल:- ठीक है गाड़ी रोक दो, मै टैक्सी लेकर यहां से घर चली जाऊंगी।


अपस्यु कार की स्पीड बढाते…. "ऐसे कैसे अकेली भाग जाएगी। वहां बिल्कुल शांत रहना और मेरी मदद करना।"..


दोनो कुछ देर में राठौड़ मेशन पहुंच गए। अपस्यु को देखकर वहां के लोग बहुत ज्यादा खुश नहीं नजर आ रहे थे। 15 अगस्त के के बुरे झटके अब तक वहां मातम की तरह पसरा हुआ था।


लगभग घंटे भर की माथा-पच्ची के बाद ,वहां के लोग कुछ शांत हुए। हालांकि उन लोगों को अपस्यु से कोई शिकायत नहीं थी, लेकिन गम में डूबा हुआ मन कुछ शिकायतें तो जरूर करता है।


एक बात तो यह भी सत्य थी कि लोकेश और कंवल की पत्नी को 2500 करोड़ की धन राशि सौगात में मिली थी और वो दोनो उन पैसों के साथ दिल्ली छोड़ने का मन बना चुकी थी। वहीं कुसुम और उसकी मां, राठौड़ मेंशन से कहीं और शिफ्ट होने का सोच रही थी। अपस्यु ने बहुत समझाने कि कोशिश की दोनो यहीं रुक जाए, लेकिन कुसुम नहीं मानी।


अंत में यही तय हुआ कि अपस्यु उन्हें घर देगा और ये फाइनल था। कुसुम ना चाहते हुए भी हां कह दी। अगले सुबह ही राठौड़ मेंशन पुरा खाली हो चुका था और शाम तक हर कोई राठौड़ मेंशन में शिफ्ट कर चुके थे। राठौड़ मेंशन में उसके असली मालिको की वापसी हो चुकी थी, पुरा मेंशन दुल्हन की तरह चमक रही थी। हर कोई खुश थे और अपने अपने पसंद के कमरे चुन रहे थे।


अगली सुबह सब अपने-अपने काम में लगे हुए थे और अपस्यु अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए काया से मिलने चल दिया। काया कल से एक होटल मै रुकी हुई थी, बेल बाजी और काया दरवाजा खोलती…. "अपस्यु सर आपको आज फुर्सत मिली है।"..


अपस्यु:- चलो चलकर पहले तुम्हारा नया घर दिखाया जाए।


अपस्यु, काया को लेकर अपने फ्लैट ले आया… "काया मैम, चुन लीजिए ऊपर के फ्लोर से कोई भी फ्लैट, जो आपको पसंद हो।"..


अपस्यु:- कोई भी देदो, रहना ही तो है यहां..


अपस्यु, उसे अपने फ्लैट में बिठाते… "ठीक है, 301 और 302 मेरा है, 303 तुम ले लो।"..


काया:- तुम सब तो राठौड़ मेंशन में शिफ्ट कर गए हो ना, मुझे ये घर दे दो।


अपस्यु:- वो शिफ्ट किए है मै नहीं। मुझे अपना काम खत्म होने तक यहीं रहना होगा।


काया:- कल शाम तुम्हारे पुरा परिवार को देखी थी, वो तुम्हे यहां रहने को लेकर राजी नहीं होंगे।


अपस्यु:- इसी बात की चिंता तो मुझे भी है। खैर थोड़ा काम की बात हो जाए..


काया:- हां बिल्कुल, बताओ किसे फसाना है।


अपस्यु:- मतलब…


काया:- मतलब सारे वीरदोयी में मुझे यहां लेकर आए हो, इसका साफ मतलब है किसी को रूप जाल में फंसाना है ना। बस तुम भी दूसरों की तरह कपड़े उतारने मत कह देना, वरना विश्वास टूट जाएगा।


अपस्यु:- हां मुझे पता है विश्वास टूट जाएगा, लेकिन मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं है, मैं मजबूर हूं।


काया, निराशा भरी मुस्कान देती…. "तुमने भी फर्क ना समझा अपस्यु। खैर तुम्हारी ऋणी हूं, इसलिए मै तुम्हारा काम करूंगी।


अपस्यु:- ऐसे मायूस ना हो, पहले बात सुन लो, मै इतना मजबूर नहीं की किसी कमिने को फसाने के लिए तुम्हे कपड़े उतारने कह दूं। और कोई अच्छा है तो उसके लिए तुम्हे क्यों लेकर आऊंगा।


काया:- पहेली बुझाना बंद करो और सीधा-सीधा मुद्दा बताओ।


अपस्यु:- यहां के एक एमपी है सोमेश, उसकी बेटी लिसा को पटाना है।


काया, चौंकती हुई…. "क्या?"


अपस्यु:- हां तुमने सही सुना, अब समझ सकती हो, मै क्यों मजबूर हूं।


काया:- हद है तुम्हरे कहने का मतलब है कि मै एक लड़की को पटाऊं, वो क्या वैसी वाली है।


अपस्यु:- हां लिसा लेस्बियन है, और तुम्हे उसी को पटाना है। हम अपने लक्ष्य की ओर बहुत ही धीमे बढ़ेंगे इसलिए कह नहीं सकते कि तुम्हे उसके साथ… तुम समझ रही हो ना।


काया:- ईईईईईईईईईईईईई… मै लड़की होकर लड़की को चुमुं। मुझ से नहीं होगा, तुम ऐमी से कह दो ये करने। कोई लड़का तो नहीं जो तुम्हारे दिल को चोट पहुंचे।


अपस्यु:- जब हम काम में होते है तो बस अपने लक्ष्य को साधने की कोशिश करते है। फिर उसमे हमारे पर्सनल इमोशंस बीच में नहीं आते। लेकिन ऐमी ये काम नहीं कर सकती।


काया:- कारन..


अपस्यु:- उसका पिताजी, सोमेश मेरा करीबी कॉन्टैक्ट में से है, और लिसा हम सब को जानती है। इसलिए वो ऐमी से पटेगी नहीं और ताज़ा-ताज़ा अभी उसका ब्रेकउप हुआ है, तो हमारे पास अच्छा मौका है।


काया:- पता होता कि ऐसा कुछ होने वाला है तो मै नीलू को भेज देती। मुझे पूरी बात समझाओ की तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है? उसी के बाद मै हां कहूंगी।


तकरीबन आधे घंटे तक अपस्यु ने अपने योजना कि लगभग सारी बातें बता दिया। काया पूरी बात ध्यान से सुनने के बाद… "ठीक है, समझ गई, उस लिसा के साथ मुझे लेस्बो होना पड़ेगा। बाकी उसे पटाने का पूरा बैकग्राउंड तो तुम ही तय करोगे।"


अपस्यु:- हां लिसा और तुम्हारी नजदीकियां का पूरा पटकथा हम लिख देंगे, बस तुम उसका और अपना पूरा ध्यान रखना। कोई हीरो बनने की जरूरत नहीं है, खतरा दिखे तो पीछे हट जाना।


काया:- तुम भुल क्यों जाते हो मै एक वीरदोयी हूं और मुझमें आम इंसानों से 20 गुना ज्यादा क्षमता है।


अपस्यु:- वेरी फनी, भले तुम 4-5 साल सीनियर हो मुझ से लेकिन यहां का बॉस मैं हूं। इसलिए बोल दिया ना कोई हीरो बनने की जरूरत नहीं है, मतलब नहीं है।


काया:- मेरे एक्शन से तुम टेंशन में क्यों आ गए अपस्यु?


अपस्यु:- क्योंकि जो कमजोर दिखते है वो दरअसल कमजोर होते नहीं है। पूर्व आकलन हमे परेशानी में डाल सकती है। मै एक ही बात जानता हूं, ऐसे सफल मिशन का क्या फायदा, जिसमें आपके साथी कहीं खो जाते है। समझी मैम।"


अपस्यु अपनी बात कहकर काया की ओर देखने लगा। काया भी अपस्यु की बातों का अभिवादन करती हुई मुस्कुराई और अपस्यु के कहे अनुसार काम करने का वादा करती हुई, अपने फ्लैट को देखने चल दी।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 

Sanju@

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Update:-24



क्लास चल रही थी प्रोफेसर बोर्ड पर कुछ लिख रहे थे और इतने में दोनों भाई अंदर जाकर सीधा कुंजल के पास वाली सीट पर आकर खड़े हो गए।

वहां कुंजल सबसे आखरी में बैठी थी उसके दाएं एक लड़का और उस लड़के के दाएं फिर एक लड़की बैठी थी। "ये सीट तो पहले से बुक है भाई".. आरव ने दोनों को घूरते हुए कहा…. "तो अभी खाली करवा देते हैं"… अपस्यु ने भी हंसते हुए जवाब दिया।

वहीं कुंजल जब दोनों को एक नजर देखी तो आरव का चेहरा उसे कुछ जाना पहचाना सा लगा लेकिन वो दिमाग पर ज्यादा जोड़ ना देकर वहां चल रहे ड्रामे पर फोकस करने लगी। तबतक दोनों भाई उन दोनों को हुल देते हुए वो जगह खाली करने को बोल रहे थे।

चूंकि वो लड़का, आरव को उस मिनिस्टर वाले कांड के दिन लावणी के साथ देखा था, इसलिए वो चुपचाप वहां से जाने लगा लेकिन उसके पास बैठी लड़की ने उसका हाथ पकड़ कर वहीं रोक लिया… "ये क्या बात हुई, इसने एक बार कहा और तुम जाने लगे क्रिश"..

दोनों भाई ने जब क्रिश नाम सुना तो हंसते हुए कहने लगे… "जादू, .. जादू".. इतना सुनकर वहां के आस पास के छात्र-छात्राएं भी हसने लगे।.. और मास्टर जी बोर्ड पर लिखते-लिखते ही जोड़ से "साइलेंट" चिल्ला दिए। वो लड़का क्रिश तो शांत ही बैठा रहा किंतु उसके साथ वाली लड़की कुछ कहने को हुई, तभी उस लड़के ने उसका हाथ पकड़ कर कहा.. "इनके मुंह मत लगो विन्नी, वो शशांक याद है ना, उसका पंगा इन्हीं के ग्रुप से हुआ था"… "तो.. तो अब ये दादागिरी करेंगे".. विन्नी भी गुस्सा दिखाती हुए बोली…

विन्नी का गुस्सा देख दोनो भाई आपस में ही जुगलबंदी करने लगे…. "अपस्यु ये विन्नी का पूरा नाम शायद वीनिता होगा, नहीं"….. "हां लगता तो ऐसा ही है आरव"…… "कैसे-कैसे लोग हैं, अच्छे नाम को भी कांट-छांट कर देते है"….. "सही कहा आरव, शुक्र है पद्मावत नहीं नाम रखा वरना शॉर्ट करके पाद बुलाते"

"How dare you to talking like this"... विन्नी गुस्से में थोड़ा चिल्ला कर बोली, और दोनों वहां से निकलने लगे। तभी प्रोफेसर साहब पीछे मुरे और…

प्रोफेसर:- तुम लोग पूरी क्लास को दिस्ट्रब कर रहे हो। वहां चारो खड़े होकर क्या तमाशा लगा रखा है?

आरव:- गुरु जी आप जारी रखिए, हमारा पूरा ध्यान पढ़ने में है।… (आरव और अपस्यु जबतक बैठ गए, और वो दोनों पीछे चले गए)

प्रोफेसर:- मिस्टर ध्यानचंद जरा ये बताओ, प्रथम विश्व युद्ध में भारत का क्या योगदान रहा था?

इस सवाल के जवाब के लिए अपस्यु खड़ा हुआ और जो उसने प्रथम विश्व युद्ध में भारत के योगदान के बारे में बोला, प्रोफेसर साहब तो हक्के-बक्के रह गए। शुरवात ही उसने 1918 के हैफा युद्ध से कि जहां राजपूताना शौर्य गाथा सुनते, उसने तलवार और भालों की वो आखरी युद्ध याद दिलवाई, जिसके प्रतिद्वंद्वी उस वक़्त के सबसे एडवांस वैपन से लड़ रहे थे। फिर भी 900 जाने गंवा कर भारतीयों ने अपनी जीत सुनिश्चित की थी।

और जब अपस्यु ने एक बार बोलना शुरू किया, फिर तो ऐसा समा बांधा की क्लास की घंटी बजने तक सब ध्यान लगा कर उसे ही सुनते रहे, सिवाय 2 लोग के। एक तो आरव जो कुंजल को छोटे-छोटे नोट्स लिख कर दे रहा था पढ़ने और दूसरी कुंजल जो ना चाहते हुए भी उसके नोट्स को पढ़ रही थीं।

कुछ ही समय में कुंजल के दिमाग में भी सारी तस्वीरे साफ हो चुकी थी। आश्चर्य के भाव उसके चेहरे पर भी थे और वो दोनों भाइयों के चेहरे को बड़े गौर से देखें जा रही थी। इधर क्लास ख़त्म हुआ उधर कुंजल दोनों को अनदेखा कर अपने दोस्तों के बीच चली गई।

आरव तो उनके बीच ही घुसने वाला था लेकिन अपस्यु ने उसे रोक लिया और इंतजार करने के लिए कहा। कुंजल अपने दोस्तों से बात करती हुई बाहर निकाल अयी और इनके पीछे-पीछे ये दोनों भाई भी। कुंजल उनसे बात करते हुए चल भी रही थी और बीच बीच में दोनों भाई को देख भी रही थी।

इधर साची जब गुस्से में क्लास पहुंची तब अपने पीछे अपस्यु को ना आते देख उसकी नजरें दरवाजे पर टिकी, उसी का इंतजार करती रही। पहले थोड़ी नाराजगी फिर अंतरमन ने अफसोस होने लगा। कुछ देर पहले हुई घटना पर सोचती वो थोड़ा मायूस होकर अपने मन में ख्याल करने लगी…. "मुझे इतना ओवर रिएक्ट नहीं करना चाहिए था, कहीं नाराज तो नहीं हो गया"… उसका मासूम सा खिला चेहरा अफसोस करते उतर आया था।

क्लास में मन ना लगने कि वजह से वो क्लास को बीच में ही छोड़कर अपस्यु को ढूंढ़ने निकल गई। बहुत ढूंढ़ने के बाद भी जब अपस्यु नहीं मिला तो दिल में ना जाने कैसी चुभन सी होने लगी और वो अफसोस करती जाकर कैंटीन में अकेली बैठ गई। इतनी खूबसूरत लड़की, कैंटीन में अकेली बैठी। फूल को देखकर जैसे भंवरे खिंचे चले आते हैं ठीक उसी प्रकार कुछ लड़के भी उसके आस पास मंडराने लगे।

उनमें से एक ने हिम्मत कर उसके पास बैठ गया…. "Hi I am Kapil".. वो लड़का अपना हाथ आगे बढ़ता हुए कहने लगा। साची अपने नजर उठा कर उसे एक बार देखी … "क्यों बोर कर रहा है भाई, जा ना यहां से"

"अरे मेरे पापा तुम्हारे घर कब गए"… कपिल ने कुछ प्रैंक वीडियो देख कर अपनी स्मार्टनेस दिखाते हुए बोल कर जोड़-जोड़ से हंसने लगा। साची उसकी बात सुनकर पूरी चिढ़ गई.. लेकिन खुद पर काबू करती वो कहने लगी…

"साले तेरा बाप का तो पता नहीं लेकिन तेरी मां जरूर मेरे घर आई थी, जाकर डीएनए टेस्ट करवा ले। अब निकल वरना इतने सैंडल मारूंगी की, कुत्ते तेरी आनी वाले पीढ़ी मेरे सैंडल के निशान के साथ पैदा लेगी। चल भाग यहां से।"

वो अपने दोस्तों के सामने घोर बेइज्जत होकर वहां से निकला, लेकिन जाते जाते फिर से धमकी देता गया और उसकी धमकी सुनकर एक बार फिर साची भड़क गई। खैर उसके जाते ही लावणी उसके पास आकर बैठी। वो साची को देखते ही बोली… "घर से निकलते वक़्त इतना खिला चेहरा इतनी जल्दी कैसे उतर गया"..

"कुछ नहीं यार !! मैं ही कुछ ज्यादा रिएक्ट कर गई छोटी सी बात पर, और पता नहीं तबसे अपस्यु कहां चल गया। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा।".. साची मायूसी से बोली।

लावणी, जिसका क्लास अभी-अभी समाप्त हुआ था वो पीछे से दोनों भाई का ड्रामा देखते आ रही थी कैसे वो 3-4 लड़कियों के पीछे पीछे चला अा रहा था.. साची की बात पर वो चुटकी लेती बोलने लगी… "2 मिनट यहीं बैठो, अभी दोनों भाई दिख जाएंगे। हां लेकिन उनकी हरकतें देख कर शायद तुम बर्दास्त ना कर पाओ।"

साची:- क्या मतलब मैं बर्दास्त नहीं कर पाऊंगी, तू कहना क्या चाह रही है, खुल कर बोल।

लावणी:- खुल कर कहना क्या है, पीछे मुड़ कर देख मेरी बातों का मतलब भी समझ में आ जायेगा।

साची जब पीछे मुड़ी तब 3-4 लड़कियां कैंटीन में आ रही थी और उनके पीछे-पीछे दोनों भाई भी आ रहे थे। दोनों भाई ठीक उन दोनों बहनों के पास से निकाल गए लेकिन उन्होंने ध्यान तक नहीं दिया। बेचारी साची का चेहरा तो देखने लायक था। गुस्से में आकर कब उसने हाथ में परी किताब के पन्नो के चिथरे उड़ा दिए उसे पता भी नहीं चला। लेकिन अभी कहां, ये तो शुरवात थी।
आरव और अपश्यु ने तो विन्नी का मजाक बना दिया वही इतिहास पर शानदार भाषण दिया कुंजल दोनो को पहचान गई है इसलिए अनदेखा कर चली गई ये क्या आरव को थप्पड़ मार दिया है लगता है इनके परिवार के साथ बहुत बुरा हुआ है साथ में साची भी बिना किसी बात को जाने अपश्यु को बुरा भला कहकर चाय गई है
 

Sanju@

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साची जब पीछे मुड़ी तब 3-4 लड़कियां कैंटीन में अा रही थी और उनके पीछे पीछे दोनों भाई अा रहे थे। दोनों भाई ठीक उन दोनों बहनों के पास से निकल गए लेकिन उन्होंने ध्यान तक नहीं दिया। बेचारी साची का चेहरा तो देखने लायक था। गुस्से में आकर कब उसने हाथ में परी किताब के पन्नो के चिथरे उड़ा दिए उसे पता भी नहीं चला। लेकिन अभी कहां, ये तो शुरवात थी।

कुंजल अपनी सहेलियों के साथ एक टेबल पे बैठी। ठीक उसी वक़्त दोनों भाई वहां पहुंचे और बाकी लड़कियों को वहां से जाने के लिए कहा। कुंजल को इस बात पर बेहद गुस्सा आया और उसने सबके सामने आरव को खींच कर एक तमाचा जड़ दिया…. "नफ़रत है मुझे तुम से, तुम्हारे मां बाप से। हमे पता होता कि तुमलोग इस सहर में मिलोगे तो हम दिल्ली कभी आते ही नहीं… चलो नम्रता।"

गुस्से में वो पागल होकर वहां से चली गई। आरव भी उसके पीछे जाने वाला था लेकिन अपस्यु ने उसका हाथ पकड़कर उसके पीछे जाने से रोक लिया।…. "अपस्यु छोड़ मेरा हाथ, वो मां के बारे में होती कौन है बोलने वाली".. आरव भी पूरा गुस्सा दिखाते हुए कहने लगा।

"शांत हो जा अभी, बिल्कुल शांत"… अपस्यु, आरव को समझा ही रहा था कि इसी बीच साची और लावणी भी चली आईं…. "कमाल का थप्पड था। काश उस लड़की के जगह मै होती। कमाल का सरप्राईज था ये, मैं जिंदगी में इस से ज्यादा फिर कभी ही शायद सरप्राइज हो पाऊं। चल लावणी"…. साची ताली बजाकर अपनी बात कहती हुई निकालने लगी।

"तुझे नहीं कुछ कहना, तू भी कुछ कहती जा ना।"… आरव ने पीछे से जाती हुई लावणी से कहा। आरव की हरकत पर अपस्यु आग बबूला हो गया, लेकिन इस बार अपस्यु ने अपने मुंह से कोई शब्द नहीं निकला, बस अपनी आखें उसे दिखाई और वो बिल्कुल शांत हो गया।

अपस्यु:- कितनी बार मैं समझता रहूं की गुस्से को इस्तमाल करना सीख, लेकिन तू है कि….
आरव:- सॉरी यार। एक तरफ ये कुंजल इतना पगलाई क्यों है वो समझ में नहीं अा रहा। जबकि इसके मां बाप ने कभी हमारी सुध तक ना ली। उसपर से ये दोनों बहने है, अक्ल की पैदल। मामला क्या है कुछ समझती नहीं बस कुछ भी प्रतिक्रिया देती रहती है। गुस्सा तो आएगा ना। अब हर कोई तेरी तरह संत तो नहीं होता ना।
अपस्यु:- उल्लू है तू। अगर तू अपने गुस्से पर काबू रखता तब तो तुझे कुछ समझ में भी आता…
आरव:- क्या?
अपस्यु:- हमारी नजर में अंकल और आंटी बुरे है। कुंजल के नजर में उसके अंकल और आंटी बुरे है। कुछ तो बात है जो हमे भी पता नहीं।
आरव:- पता कैसे होगा अंकल और आंट से जब झगड़ा हुआ था तब हमें अक्ल ही कितनी थी। और उसके कुछ दिन बाद तो…
अपस्यु:- कोई नहीं। यह वक़्त है पहले फैमिली रियूनियन का। एक काम कर कार के जीपीएस को फॉलो करके तू मेरे पीछे आ।

आरव:- तू कहां जा रहा है।
अपस्यु:- कुंजल को किडनैप करने।
आरव:- कार की चाभी तो देता जा, वरना पार्किंग तक उठा कर ले जाते हुए जो सीन बनेगा वो अच्छा ना लगेगा।
अपस्यु:- गूड आइडिया । जा कार लेे अा।

अपस्यु तेजी के साथ निकला और सीधा कुंजल के पास पहुंचा। कुंजल उसे नजरअंदाज करती आगे बढ़ गई। अपस्यु उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए…. "सुनो कुंजल, तुमसे कुछ बात करनी है"

कुंजल:- मुझे तुम्हारी शक्ल ही पसंद नहीं। हाथ छोड़ो मेरा और यहां कोई सीन क्रिएट करने की कोशिश मत करो।
अपस्यु:- बस एक बार हमे बात करनी है, फिर तुम है जैसा चाहोगी वैसा ही होगा।
कुंजल अजीब सी हंसी हंसती हुई कहने लगी…. "बस 500 रुपए है हमारे पास। इतना ही तुम बेईमानी कर सकते हो। जाओ किसी और को ढूंढो शायद मोटी रकम बेईमानी करने के लिए मिल जाए।"
अपस्यु:- तुम अगर यहां सीन ही क्रिएट करना चाहती हो तो वही सही। लेकिन बिना बात पूरी हुए मैं नहीं जाने वाला।
कुंजल:- हाथ छोड़ो मेरा।

"क्या हुआ कुंजल, और ये लड़का जबरदस्ती कर रहा है क्या?".. कुंजल के कुछ क्लासमेट उसके पास आकर पूछने लगे।
अपस्यु:- यहां कोई तमाशा नहीं चल रहा, ये हमारा पारिवारिक मामला है। इसलिए निकलो तुम लोग यहां से।
"तू है कौन बे, और कुंजल के साथ ऐसे जबरदस्ती क्यों कर रहा है।"… उन में से एक और लड़का ने पूछा।
कुंजल:- हाथ छोड़ो मेरा, तुम यहां पर ड्रामा कर रहे हो।

इतने में आरव वहां गाड़ी लेे कर पहुंच गया। सभी लड़के गाड़ी देखते ही उसके हैसियत के बारे में सोचकर वहां से कट लिए। और जब कुंजल ने उनके पास इतनी मंहगी कार देखी तो वो ताने मारती कहने लगी… "तो तुम्हरे बेईमान बाप ने यहां खर्च किए हैं पैसे।"

अपस्यु उसकी बातों का कोई जवाब नहीं दिया बस गुस्से से अपनी आखें लाल करता हुआ उसे गाड़ी में बैठने के लिए बोला। लेकिन कुंजल को किसी के भी आखों का भय थोड़े ना था। वो भी विरोध करती रही। अंत में फिर उसे किडनैप ही करना पड़ा।

अपस्यु और आरव के बीच में कुंजल बैठी, बस गुस्से से फुंफकार रही थी।.. "अपस्यु यार बहन तो अपनी ही लग रही है, बिल्कुल अपने जैसा तेवर है"…. आरव चुटकी लेते हुए बोला…… "मुझे बहन मत बुलाओ, घृणा आती है तुम से और तुम्हारे परिवार से"… कुंजल गुस्से में फुफकारती बोली…. "घर का एड्रेस बताओ"… अपस्यु ने पूछा…. "मुझे नहीं पता" … कुंजल गुस्से में जवाब देती मुंह बना कर सीधी बैठ गई।

दोनों भाई पता पूछते रहे लेकिन कुंजल भी इन्हीं की तरह ढीट थी। मुंह फुलाए और और गुस्से से फुफकारती बस आगे देखती रही। इसी बीच वो किसी चौराहे से गुजरे जहां पुलिस चेक पोस्ट लगी थी। अपस्यु ने जैसे ही गाड़ी रोका कुंजल कूद कर पुलिसवाले के पास भागी और किडनैपिंग की सिकायत करने लगी।

वहां मौजूद सभी पुलिसवाले ने तुरंत ही दोनों भाई को घेर लिया और गाड़ी से उतरने के लिए कहने लगे। दोनों भाई हाथ ऊपर करके बाहर आए। दोनों भाई थाने में और कुंजल अपनी रपट दर्ज करवाकर वहां से सीधा अपने घर चली गई।

थानेदार इससे पहले की कोई एक्शन लेता, अपस्यु कहने लगा… "तो हम चले सर।"
थानेदार:- बैंचो, तुझे ये क्या सराय लगता है जो मुंह उठाए चले आए और जब जी चाहे, चले गए। बंद करो सालों को और इतने डंडे मारो की इनसे किडनेपिंग का भूत उतर जाए। और माचो से पता करो ये गाड़ी कहां से उड़ाई इसने।

अपस्यु:- सर टेक्निकली आप मुझे अरेस्ट नहीं कर सकते। रपट सोनू और मोनू के नाम पर लिखा है जिसमें ना तो पता आपने लिखा है और ना ही पिता का नाम। (सोनू और मोनू नाम से दोनों भाई को घर में बुलाते थे)

थानेदार:- ईब हम पता लगा लेंगे छोड़े तेरा पता और तेरे बाप का नाम भी। अब जो किडनैप हुई, उसे थोड़े ना किडनैपर की डिटेल पता होती है। हम अपनी रपट पूरी कर लेंगे, तू चिंता ना कर। लेकिन बैंचों आज तेरे पिछवाड़े को ऐसा सुझाएंगे की तू अपनी हालत पर रोएगा। और ये जो तू जिस किसी के दम पर भी इतना अकड़ कर बात कर रहा है ना, तेरी हालत देखकर उसकी पतलून भी गीली हो जाएगी।

अपस्यु:- जानते हो थानेदार साहब, बड़े बुजुर्गो ने कहा है किसी के फैमिली मैटर में नहीं पड़ते वरना वो फैमिली तो एक हो जाति है लेकिन बीच में जो पड़ता है वो पीस जाता है।
थानेदार:- के मतलब है?
अपस्यु:- यहीं की कुंजल मेरी कजिन है और उनके पापा का नाम भूषण रघुवंशी है।
थानेदार, उसके ऊपर हंसते हुए… "चुटिया कहीं का.. माचो आज कल तो हर किडनैपर इतनी डिटेल लेकर चलता है।"

अपस्यु:- अपनी जुबान पर थोड़ा काबू रखिए सर, हम कोई उठाएगीरा या क्रिमनाल नहीं है, और ना ही मेरे खिलाफ कोई रिपोर्ट दर्ज हुई हैं। ये लो मेरा ड्राइविंग लाइसेंस और पढ़ो इसमें मेरे पिता का नाम.. चन्द्रभान रघुवंशी। किसने बनाया आप को थानेदार, थोड़ी भी अक्ल की नहीं। कोई किडनैपर चेकपोस्ट पर गाड़ी रोकता है क्या? अभी मैंने वकील बुला लिया ना तो सारी जिंदगी घर में ही गाली बकते रहना, स्टेशन दोबारा देखना नसीब भी नहीं होगा।

अपस्यु के तेवर और उसके पेश किए गए दस्तावेज को देखने के बाद, थानेदार भी थोड़ी सोच में पर गया। उसने अपने कुछ लोगों को बुलाकर, सलाह-मशवरा करने के बाद…... "ठीक है यदि ऐसी बात है तो अभी हम उसके घर चलकर सारी बातों की तहकीकात करेंगे। अगर तुम्हारी बातें सच निकली तो ठीक वरना तेरी जवानी का पूरा जोश लॉकअप में ठंडा करेंगे।

आरव, अपस्यु को देख कर हंसने लगा और आंखों से जैसे कह रहा हो… "मास्टर्स स्ट्रोक"… वहां से लंबोर्गिनी में एक हवलदार और अपस्यु बैठा और पुलिस जीप में आरव। पुलिस जीप किसी रेलवे ट्रैक के पास रुकी और पटरियों को पार करके वो लोग एक गंदी बस्ती में घुसे। चारों ओर अजीब सी बदबू और हर जगह कचरा फैला हुआ। अपस्यु और आरव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे उनका पैर जैसे स्थूल (भारी) परने लगे थे। एक-एक कदम आगे बढ़ाना मुश्किल हो रहा था।
तो इनके चाचा की ये हालत है तो कुंजल का गुस्सा होना लाजमी है लेकिन कही ये गलत एड्रेस तो नही बताया है क्युकी कुंजल उन दोनो से पीछा छुड़ाना चाहती है इसलिए गलत एड्रेस दिया हो और क्या ये भूषण वही तो नही जो मारा गया था या कोई और है खेर देखते हैं अगले अपडेट में
 
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