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Erotica मजा पहली होली का ससुराल में

komaalrani

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छुटकी







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रितू भाभी अब छुटकी की ओर देख रही थीं और मुश्कुरा रही थीं।


छुटकी भी समझ रही थी, वो अभी भी बची थी।

दो बज गए थे।

चलते समय, रितू भाभी ने उन्हें बाहों में भर के बोला-

“चलती हूँ नन्दोई जी, मिलते हैं ब्रेक के बाद, शाम को चार बजे …”
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जिस तरह वो दोनों छुटकी की ओर देख रहे थे, नन्दोई सलहज के मन में तो साफ था ही,


छुटकी को भी साफ अंदाज हो गया था की चार बजे क्या होने वाला है।

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मैं और वो अपने कमरे में चले गए और छुटकी छत पे अपने कमरे पे।

हम दोनों अपने कमरे में चले गए। मुझे बिस्तर पर उन्होंने खींच के, बाँहो में भींच लिया और कचकचा के गाल काट लिया।


उन्हें अपनी बाँहो लपेटती मैं जोर से चूम के, बोली-

“आया ससुराल में पहली होली का मजा?”


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जिसमें पिया का सुख, उसमें मेरा सुख।

मायके से मेरी मम्मी ने यही सीखा के भेजा था।

जवाब में एक झटके में मेरे ब्लाउज के सारे बटन खोलते, तोड़ते वो बोले-

“एकदम… रात में सासु के साथ और दिन में सालियों के साथ…”

और जोर से मेरी बड़ी गदराई चूचियां उन्होंने मीज दी और फिर गाल काटते बोले-


“रात में भोंसड़े का मजा और दिन में टिकोरों का…”


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मैं भी जोश में उनका शार्ट सरका के उनके मूसल चन्द को अपनी मुट्ठी में दबाती रगड़ती बोली-


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“अरे अभी असली टिकोरे वाली तो बची ही है, उसका भी तो…”




और मेरी बात काट के मेरे साये को कमर तक सरका के, मेरी बुर अपनी मुट्ठी में दबोचते बोले-


“उसकी तो ऐसी रगड़-रगड़ के लूंगा की, साल्ली जिंदगी भर याद करेगी अपनी पहली चुदाई।

फाड़ के रख दूंगा तेरी बहन की…”


और हम दोनों वैसे ही सो गए।

पिछली रात भी मम्मी के साथ मस्ती में जागते बीती थी।

और जैसे ही हम सोते थे, इनके हाथ मेरे चूचियों पे, और मेरा इनके लण्ड पे, बस वैसे ही।

हम लोग सोते ही रहते अगर रितू भाभी आके नहीं जगातीं-

“जागो सोनेवालों जागो…”


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और इनके कान में जीभ से सुरसुरी करती बोलीं-

“अरे नन्दोई जी एक कच्ची कली, मस्त टिकोरों वाली,


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अपनी गुलाबी परी सम्हाले आपका इन्तजार कर रही है…”

और जब हम दोनों उठे, तो रितू भाभी ने न उन्हें अपना शार्ट ठीक करने दिया और न मुझे ब्लाउज।


नन्दोई सलहज में थोड़ी देर छेड़छाड़ चलती रही।

रितू भाभी उनके माँ बहनों का हाल लेती रही और वो रितू भाभी को गोद में खींचकर चोली के ऊपर से ही जोबन का रस कभी हाथों से कभी होंठों से।

और मौका पाकर मैंने ब्लाउज की बची खुची बटन बंद कर ली (चार में से दो तो उन्होंने तोड़ ही दी थीं),

साये का नाड़ा बाँध लिया और साड़ी बस लपेट ली।


(मुझे मालूम था, रितू भाभी हों तो ननद के देह पे कपड़े कितने देर टिकते थे, जैसे ये, उनके नन्दोई कपड़े के दुश्मन, वैसे ही उनकी सलहज)

तब तक रितू भाभी को उस मिशन की याद आई, जिसके लिए वो आई थीं, मिशन छुटकी। और उन्होंने अपने नन्दोई को ललकारा। शार्ट के ऊपर से ही उन्होंने नन्दोई के हथियार को जोर से दबाते मसलते कहा-


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“अरे नन्दोई जी, अपनी नहीं तो इसकी फिकर करो, बिचारा कितना भूखा है…”

और भाभी के दबाने मसलने से वो आधा सोया आधा जागा, पूरी तरह जग के फुफकारने लगा।


लेकिन इतने पर अगर वो छोड़ दें तो रितू भाभी कैसी,

शार्ट में अंदर हाथ डाल के एक झटके में रितू भाभी ने सुपाड़ा खोल दिया और उनके पेशाब के छेद पे अंगूठा लगा के, रगड़ने मसलने लगी। और साथ में उनकी बातें-


“बोल चाहिये छोटी साल्ली की कच्ची चूत… बहुत चिल्लाएगी, चीखेगी वो… लेकिन छोड़ना मत…

रगड़-रगड़ के फाड़ना, चीखने, चिल्लाने देना साल्ली को…”

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अब तो बिचारे उनका लण्ड एकदम पागल हो गया।

रितू भाभी मुठियाती रही, कभी पेल्हड़ भी सहला देती तो कभी उनके गाल पे हल्के से चुम्मी लेकर काट लेती।


सलहज हो तो रितू भाभी ऐसी।

थोड़ी देर में हम तीनों ऊपर छुटकी के कमरे में पहुँच गए।


वो लगता है बस इंतजार ही कर रही थी।


एक झीनी झीनी कम से कम दो साल पुरानी टाप और स्कर्ट में, उसके टिकोरे टाप फाड़ रहे थे,


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और स्कर्ट भी छोटी-छोटी किशोर गोरी-गोरी जांघों को दिखाती ज्यादा, छुपाती कम।

उसकी और उसके जीजा की आँखें चार हुई और दोनों मुश्कुराये।


उसके जीजा भी बस बनयान शार्ट्स में और, खूंटा पूरा तना, शार्ट्स को फाड़ता।


छुटकी को देखकर बल्की छुटकी के कच्चे टिकोरों को देखकर वो और बौरा गया।



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वो छुटकी के बगलमें ही बैठ गए, उससे सट कर।

और रितू भाभी मेरे बगल में बैठ गईं।
 

The Immortal

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नया नया स्वाद

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सलहज ने बोला-


“जड़ तक लण्ड घुसेड़े-घुसेड़े, मथानी की तरह उसे मिनट तक गोल घुमाएं। लेकिन उनकी सलहज ने लण्ड निकालने नहीं दिया।

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उनकी नयी नवेली कमसिन सालियां भले ही न समझ पायी हों, लेकिन मैं तो अपनी ससुराल में होली का पूरा मजा ले आई थी,


समझ गई की रितू भाभी के इरादे क्या हैं?

और उन्होंने अपनी छोटी ननद रीमा को काम पे लगा दिया की वो अपने जीजू का मस्त मोटा लण्ड पकड़कर, गोल-गोल, लीला की गाण्ड में घुमाए।


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जबरदस्त गाण्ड मराई और तीन बार झड़ने के बाद लीला की हालत एकदम पस्त थी। इसलिए जब उन्होंने लण्ड निकाला और रितू भाभी और रीमा ने मिलकर लिटा दिया तो लीला चुपचाप लस्त पस्त लेट गई।

रितू भाभी ने कुछ उनके कान में कहा और फिर।

अबकी उनकी साली रीमा और सलहज दोनों थी, लीला का मुँह खुलवाने के लिए, एक ने नाक बंद की और दूसरे ने जबड़ा दबाया, सर सीधा किया, बिचारी ने मुंह खोल दिया।


लेकिन जब उसकी गाण्ड से निकला लण्ड, गाण्ड के रस में लिथड़ा, उसकी मक्खन मलाई से चुपड़ा, सुपाड़े से लेकर जड़ तक (इसीलिए उनकी सलहज ने मथानी चलवाई थी, जिससे लण्ड की मलाई और गाण्ड का…)

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लीला लाख छटपटाती रही लेकिन रितू भाभी छोड़ने वाली नहीं थी। ऊपर से गालियां-

“साली, छिनार, मेरे नंदोई का लण्ड सटासट बुर में घोंट गई, गाण्ड में लील गई, वो भी जड़ तक,
तो मुँह में लेने में क्यों छिनालपना कर रही है, चूत मरानो, भाईचोदी। ले चुपचाप, चाट चूस…”

वो लाख सर पटकती रही, लेकिन रितू भाभी की पकड़ सँड़सी से भी मजबूत। और वो भी, सुपाड़े पे ‘जो कुछ भी था’ पहले उन्होंने लीला के होंठों पे आराम से, बिना किसी जल्दी के, धीरे-धीरे लिपस्टिक की तरह लगाया।


वो बिचारी छटपटा रही थी, और कुछ नहीं हुआ तो उसने अपनी हिरनी जैसी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें बंद कर ली।

तब तक वो सुपाड़ा अंदर ठेल चुके थे, लेकिन बाकी का 6” इंच, लिथड़ा चुपड़ा बाहर ही था।

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उनकी सलहज इतनी आसानी से अपनी ननद को थोड़े ही छोड़ देतीं। उन्होंने उसकी कच्ची अमियां की घुंडियों को जोर से मरोड़ा और डांटा-

“आँख खोल छिनार, जरा मेरे नंदोई के लण्ड का रंग तो देख। अगर आँख झपकी तो मुझे बहुत तरीके आते हैं। चूस ठीक से मजे लेकर…”

बिचारी ने झट से आँख खोल दी, अपने जीजू के मक्खन मलाई लगे लण्ड को देखा और चूसना शुरू कर दिया।


थोड़ी देर में पूरा लण्ड लीला के मुँह में था और वो रस ले लेकर चूस रही थी, चाट रही थी।

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और उसकी भौजी उसे प्यार से समझा रही थीं-

“अरे यार, तेरी गाण्ड का ही तो है, पहला जमाना होता न तो इसके साथ मैं भी तुझे अपना रस चखाती, चाट ले प्यार से…”

और मुझे अपने ससुराल की होली याद आ रही थी।

पहला जमाना क्या, अभी बीते परसों ही तो… पहले तो नन्दोई जी ने मेरी गाण्ड हचक के मार के, सीधे मेरे मुँह में… ननद के पिछवाड़े का…

अंत में ननद खुद चूतड़ फैलाकर मेरे मुँह पे…

और ऊपर से ये वार्निंग भी की भाभी अभी तो ट्रेलर है, असली रगड़ाई रंगपंचमी में।

और छुटकी भी अब मेरे साथ चल रही थी।

उसकी तो मुझसे भी दूनी दुर्गत, ननदें, नन्दोई और गाँव के सारे लड़के, आखिर छुटकी नइकी भौजी की बहन है।

मेरा ध्यान वापस लीला की आवाज ने खिंचा। वो अपने कपड़े ठीक कर रहे थे और लीला को भाभी और रीमा ने मिलकर खड़ा कर दिया था।

छुटकी उसके कपड़े दे रही थी।

लीला हँसते हुए बोल रही थी-


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“अरी पगली तेरी जैसी साली होगी तो खुद दौड़ते आएंगे। और हाँ रही मेरी बात तो ससुराल में ये पूरी तरह साली, सलहज के हवाले रहेंगे। मैं पूरी तरह छुट्टी मनाऊँगी, आखिर मुझे भी तो आराम चाहिए…”

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उसके गाल पे चुटकी काटते हुए मैंने प्यार से कहा।

वो और रीमा अपने जीजा से चलने के पहले गले मिलीं। लीला से चला नहीं जा रहा था।

रीमा सहारा देकर उसे ले गई।

रितू भाभी अब छुटकी की ओर देख रही थीं और मुश्कुरा रही थीं।

छुटकी भी समझ रही थी,


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वो अभी भी बची थी।
Too erotic Komal ji :bow:.
Kamaal ki lekhniy hai apki ,:adore:
Ab chutki Ka BHI number lagwa do :D
 
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komaalrani

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वो छुटकी को प्यासी नजरों से देख रहे थे, बल्की उनकी नजरें छुटकी के टीकोरों पे टिकी थीं।

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और छुटकी कुछ सहमी, कुछ डरी और कुछ हो जाय तो हो जाने दो के अंदाज में निगाहें झुकाये थी।


लेकिन बीच-बीच में जब उसकी निगाह इनसे चार होती, तो मुश्कुरा जाती।


रितू भाभी सोच रहीं थी कब खेल तमाशा शुरू हो।


और इस बीच भाभी की शरारती उंगलियों ने मेरे ब्लाउज की बची खुची बटनों को भी खोल दिया और उरोज मचलकर बाहर।


लेकिन जहाँ असली कबड्डी होनी थी वहां डेडलाक मचा था।


लेकिन छुटकी की चुदाई का रास्ता खोला, और किसने मम्मी ने।

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और उसे पक्का किया रितू भौजी ने।

नीचे से मम्मी ने आवाज दी-

“मैं जरा पड़ोस में जा रही हूँ, एक-डेढ़ घंटे में आऊँगी। दरवाजा बंद कर ले, छुटकी…”

छुटकी उतरकर नीचे जाती की उसके पहले मैंने उसे दस पांच काम बता दिए-


“सारे दरवाजे चेक कर लेना। मेरा कमरा भी अच्छी तरह बंद कर देना। आदि आदि…”

यानी अब 6-7 मिनट की छुट्टी।

और सबसे बड़ी बात, मम्मी हैं नहीं। दरवाजे सारे बंद।


तो अब छुटकी चाहे रोये, चाहे चिल्लाये, चाहे ये उसे दौड़ा दौड़ा के, चाहे ऊपर उसके कमरे में, चाहे नीचे खुले आँगन में चोदें, कोई उसकी चीख पुकार सुनने वाला नहीं था।

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हैं रितू भाभी तो वो तो खुद भौजाई का हक अदा करेंगी, उसकी टाँगें पकड़कर फैलाएंगी।


और मैं… मैं बहुत हुआ तो न्यूट्रल रहूंगी। और आखिर मेरा पति मेरा है।


जो उन्हें पसंद वो मुझे पसंद।

और रितू भाभी ने पहला शिकार मुझे ही बनाया। मुझे से बोलीं-

“है तेरे आँचल पे डिजाइन बड़ी अच्छी है, जरा खड़ी हो दिखा…”

और जैसे ही मैं खड़ी हुई उन्होंने आँचल पकड़कर खींचा और दूसरे हाथ से उन्होंने पेटीकोट में फँसी साड़ी निकाल दी।
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साड़ी मैंने वैसे ही बस लपेटी सी, थी।


और अगले पल सररर सररर, पूरी की पूरी साड़ी उनके हाथ में और मैं सिर्फ ब्लाउज साये में, और ब्लाउज के भी सारे बटन खुले।

रितू भाभी ने जोरदार आवाज लगायी, बाहर छत पे जाकर, नीचे आँगन में खड़ी छुटकी को-



“अरे छुटकी, सुन ये तेरी दीदी की साड़ी है, ले जरा ठीक से तहिया के रख देना…”

और जब वो नीचे, हँसती खिलखिलाती, छुटकी को साड़ी फेंक रही थीं, मौका मेरा था।


मैंने पहले तो साड़ी खींची और फिर दोनों हाथों से रितू भाभी के जोबन दबाते, चोली के बन्ध खोल दिए।

और अब हम दोनों खुले ब्लाउज में बिना साड़ी के थे।

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नीचे छुटकी हम लोगों का खेल तमाशा देखकर हँस रही थी।

और रितू भाभी की साड़ी नीचे फेंकते हुए मैंने उन्हीं का डायलाग दुहराया-


“अरे छुटकी, सुन ये तेरी भौजी की साड़ी है, ले जरा ठीक से तहिया के रख देना…”

हँसती, खिलखिलाती, छुटकी ने बोला-

“एकदम दीदी…”

और उसे कैच कर लिया।

रितू भाभी के ब्लाउज के कुछ बटन उनके नन्दोई के हाथ खेत रहे और कुछ मैंने तोड़ दिए।




हम दोनों वापस कमरे में थे, इनके सामने। मैंने पीछे से, रितू भाभी के गदराये, गब्बर जोबन दबोच लिए, (ब्लाउज की आड़ भी अब नहीं थी) और कस के रगड़ते मसलते चिढ़ाया-


“क्यों भाभी, भैया ऐसे ही दबाते हैं न…”



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हँसकर रितू भाभी बोली-


“अरे साफ-साफ क्यों नहीं बोलती, अपने भैया से दबवाने का मन कर रहा है, दबवा लो, चुदवा लो न खुद पता चल जाएगा। अरे सैयां से सैयां बदल लेओ ननदी, तुम मेरे सैयां से मजा ले लो ननद रानी और मैं तुम्हारे सैयां से…”

“नहीं भाभी, मेरे सैयां भी आपको मुबारक और मेरे भैया भी। एक आगे से एक पीछे से, एक साथ डबल मजा…”



उनके निपल जोर से पुल करते मैंने छेड़ा।


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लेकिन रितू भाभी से पार पाना इतना आसान नहीं था।

उन्होंने पलटा खाया, और अब हम दोनों अखाड़े के पहलवान के समान आमने सामने थे और वो अपनी बड़ी-बड़ी चूचियों से मेरी चूचियां जोर से रगड़ मसल रही थीं, और मैं भी उसी तरह से जवाब दे रही थी।

वो एक नदीदे बच्चे की तरह हम दोनों को देख रहे थे।

रितू भाभी, जोर-जोर से मेरी चूची पकड़कर मसल रही थी, रगड़ रही थी और अचानक उन्होंने मेरा साया भी उठा दिया।

मैं क्यों पीछे रहती, और अगले पल हम दोनों की चूत भी घिस्से पे घिस्से लगाने लगी।




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वो गाण्ड के शौकीन, मैं रितू भाभी की बड़ी-बड़ी गोल-गोल गाण्ड पकड़कर उन्हें दिखा-दिखाकर ललचा रही थी।




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बस उनके मुँह से लार नहीं टपक रही थी, खूंटा एकदम जबरदस्त तन्नाया खड़ा था, शार्ट से बाहर झांकता।


और तब तक गालियों की बारिश भी शुरू हो गई।

रितू भाभी ने उन्हें जोर से आँख मारी और घचाक से मेरी गाण्ड में उंगली पेलते हुई

- “छिनार, सातभतरी, तेरी सारी ननदों की गाण्ड मारूं, बुर चोदूं, क्या कचकचौवा गाण्ड है साल्ली…”


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गाली शुरू कर दी।

“तेरे नन्दोई बहनचोद की बहन चोदूँ, भौजी तोहरो गाण्ड में खूब माल भरल हौ…”

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एक के जवाब में दो उंगली मैंने पेल दी, रितू भाभी की कसी-कसी गाण्ड में।


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“तेरी सास का भोंसड़ा मारू, ससुराल में अपनी ननदों के साथ खूब कबड्डी खेल के आई है, छिनाल…” ''


रितू भाभी ने जवाब दिया।

“अरे भौजी मेरी साली ननदें हैं, भाईचोद। एक के ऊपर दस-दस चढ़ते हैं, तेरे मादरचोद नन्दोई की माँ का भोंसड़ा, जिसमें गदहे घोड़े सब घुसते हैं…”


उनकी गाण्ड में गोल-गोल उंगली घुमाते मैं बोली।

इस लेस्बियन रेस्लिंग के साथ गालियों ने उनकी हालत और खराब कर दी।

गालियां हम दोनों दे रही थी लेकिन टारगेट उन्हीं की माँ बहने थी।

रितू भाभी ने जोर से मुझे आलिंगन में दबोच लिया था।

मैंने उनके कान में फुसफुसाया- “

अरे भौजी, हम दोनों टापलेस हो गए हैं और आपके नन्दोई अभी भी…”
 

Desi Man

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बहुत गरम कहानी है
 
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komaalrani

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Gajab ka update diya hai aapne...Hathyar faad update


Thanks soooooooooooo much himmat badhane ke liye
 
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Alexander

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Mast mast
 

komaalrani

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बहुत गरम कहानी है


स्वागत है , जाड़े में गर्मी की जरुरत भी है
 

Milind

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आप मेरे लिए एक best लेखिका हैं... ना जाने आप is स्टोरी पर क्यू जादा ध्यान नही देती.... यह स्टोरी पिछली बार आपने शॉर्ट मैं खतम कर दि थी....
सासुराल जाते वक्त छुटकी के साथ के मज्जे... गाव मैं सभी जनता ने आप के साथ छुटकीका लिया हुवा आनंद.. इस बार वो भी लिखे..
एक पुराना फॉलोवर
 
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