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Erotica मजा पहली होली का ससुराल में

komaalrani

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आप मेरे लिए एक best लेखिका हैं... ना जाने आप is स्टोरी पर क्यू जादा ध्यान नही देती.... यह स्टोरी पिछली बार आपने शॉर्ट मैं खतम कर दि थी....
सासुराल जाते वक्त छुटकी के साथ के मज्जे... गाव मैं सभी जनता ने आप के साथ छुटकीका लिया हुवा आनंद.. इस बार वो भी लिखे..
एक पुराना फॉलोवर
 

komaalrani

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आप मेरे लिए एक best लेखिका हैं... ना जाने आप is स्टोरी पर क्यू जादा ध्यान नही देती.... यह स्टोरी पिछली बार आपने शॉर्ट मैं खतम कर दि थी....
सासुराल जाते वक्त छुटकी के साथ के मज्जे... गाव मैं सभी जनता ने आप के साथ छुटकीका लिया हुवा आनंद.. इस बार वो भी लिखे..
एक पुराना फॉलोवर

आपकी बात एकदम सही है , लेकिन एक साथ कई कहानियां लिखना थोड़ा मुश्किल रहती है , ऊपर से पिछले फोरम के बंद होने पर एक अनिश्चितता का माहौल सा बन गया था , उस समय भी मैं एक लम्बी कहानी जोरू का गुलाम पोस्ट कर रही थी , जो बीच में ही छूट गयी.

आपको यह अंदाज होगा की उस जगह भी , ये कहानी सीक्वेल के फॉर्म में ही थी , इसका पहला भाग जो ससुराल की थी वो सबसे पहले मैंने ऍफ़ एस आई फोरम में पोस्ट की थी , फिर वो फोरम बंद हो गया। फिर वो कहानी एक बार फिर से मैंने पोस्ट की , सीक्वेल के साथ , हाँ वहां भी बीच में , फागुन के दिन चार के चक्कर में थोड़ा व्यतिरेक हो गया। लेकिन छुटकी तक वो कहानी पूरी की , मैंने सोचा था की एक और सीक्वेल पोस्ट करुँगी , पर वो फोरम बंद हो गया।

इस फोरम में भी मैंने एक नई कहानी शुरू की , मोहे रंग दे , शायद आपने देखी होगी।

वह कहानी एकदम अलग ढंग की है , और अपनी गति से वह आगे बढ़ रही है ,

कई बार कमेंट्स के अभाव में भी कहानी की गति मंथर पड़ जाती है , पता ही नहीं चलता कोई पढ़ भी रहा है की नहीं , सिर्फ व्यूज से कुछ अंदाजा नहीं लगता।

मैं भी उम्मीद यही कर रही हूँ की इस बार होली तक इस कहानी का सीक्वेल जरूर न शुरू करुँगी बल्कि पूरी तरह गति दे पाउंगी।
 

Desi Man

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अपडेट की प्रतिक्षा हैं दोस्त
 

Milind

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कोमल जी आप का कष्ट समझ सकता हू .. पर्सनली मुझे ये स्टोरी बहोत पसंद हैं... इसलिये कुछ अपेक्षा ज्यादा हैं ..
साये की तरह साथ रेहने वाला एक मूक पाठक .
 
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komaalrani

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कोमल जी आप का कष्ट समझ सकता हू .. पर्सनली मुझे ये स्टोरी बहोत पसंद हैं... इसलिये कुछ अपेक्षा ज्यादा हैं ..
साये की तरह साथ रेहने वाला एक मूक पाठक .
Thanks sooooooooooooooo much , next parts now
 

komaalrani

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ननद भउजाई

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रितू भाभी ने उन्हें जोर से आँख मारी और घचाक से मेरी गाण्ड में उंगली पेलते हुई-


“छिनार, सातभतरी, तेरी सारी ननदों की गाण्ड मारूं, बुर चोदूं, क्या कचकचौवा गाण्ड है साल्ली…”


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गाली शुरू कर दी।




“तेरे नन्दोई बहनचोद की बहन चोदूँ, भौजी तोहरो गाण्ड में खूब माल भरल हौ…”


एक के जवाब में दो उंगली मैंने पेल दी, रितू भाभी की कसी-कसी गाण्ड में।

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“तेरी सास का भोंसड़ा मारू, ससुराल में अपनी ननदों के साथ खूब कबड्डी खेल के आई है, छिनाल…”

रितू भाभी ने जवाब दिया।

“अरे भौजी मेरी साली ननदें हैं, भाईचोद। एक के ऊपर दस-दस चढ़ते हैं, तेरे मादरचोद नन्दोई की माँ का भोंसड़ा, जिसमें गदहे घोड़े सब घुसते हैं…”


उनकी गाण्ड में गोल-गोल उंगली घुमाते मैं बोली।

इस लेस्बियन रेस्लिंग के साथ गालियों ने उनकी हालत और खराब कर दी।

गालियां हम दोनों दे रही थी लेकिन टारगेट उन्हीं की माँ बहने थी।

रितू भाभी ने जोर से मुझे आलिंगन में दबोच लिया था।

मैंने उनके कान में फुसफुसाया-

“अरे भौजी, हम दोनों टापलेस हो गए हैं और आपके नन्दोई अभी भी…”

बस कहने की देर थी।

रितू भाभी,

अगले पल पलंग पे उनके पीछे बैठी थी और उनके भाले की नोक की तरह चूचियों के निपल, उनकी पीठ में छेद कर रहे थे।


और उनकी टी-शर्ट पहले रितू भाभी के हाथ में और फिर मिड आन पे मेरे हाथ में,

वो भी हम दोनों की तरह टापलेस हो गए सिर्फ शार्ट में।

रितू भाभी ने अपनी मस्त चूचियां उनकी पीठ पे रगड़ते हुए, हल्के से उनका गाल काटा

और जैसे कोई मर्द किसी कच्ची कली के टिकोरों को पकड़कर दबोच ले, उनके दोनों टिट्स को पकड़कर मसल दिया।

उनके मुँह से चीख और सिसकारी दोनों निकल गई।

“क्या नन्दोई जी, लौंडिया की तरह सिसक रहे हो अभी दिलवाती हूँ, तुझे टिकोरों का मजा…”

और साथ ही शार्ट सरका के उन्होंने उनके मस्त खूंटे को बाहर निकाल लिया। एकदम मस्त कड़ियल, फुँफकारता,

“हे आज कोई रहमदिली मत दिखाना, कर देना खून खच्चर, चीखने चिल्लाने देना साली को, एक बार में हचक के पूरा 9” इंच ठेल देना…”


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भौजी उनके लण्ड को सहलाते और उकसा रही थीं। और फिर एक झटके में उन्होंने चमड़ा खोल दिया।

मोटा छोटे टमाटर ऐसा लाल, गुस्साया खूब कड़ा सुपाड़ा बाहर।

और मैं भौजी को याद दिलाती, उसके पहले उन्हें खुद याद आ गया।

(रितू भाभी पीछे पड़ी थीं की सूखे लण्ड से छुटकी की कच्ची चूत फाड़ी जाय,

लेकिन मेरे बहुत समझाने पे ये तय हुआ था की चलिए आज, तो ये वैसलीन लगा लेंगे, लेकिन रात में ट्रेन में सिर्फ थूक लगा के और,

उनके गाँव में जब उसकी गाण्ड फटेगी तो एकदम सूखी)

“अरे नौवीं में पढ़नी वाली मेरी कच्ची ननद

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कैसे घोंट पाएगी ये मुट्ठी ऐसा सुपाड़ा, जरा वैसलीन तो लगा दूँ…”

रितू भाभी बोलीं और वैसलीन की शीशी उठाकर ले आई। और फिर सिर्फ उंगली की टिप वैसलीन से छुला के,

उन्होंने मुझे चिढ़ाते हुए दिखा के, सिर्फ उनके सुपाड़े पे पेशाब के छेद पे,

जैसे कोई बच्चे को नजर से बचाने केलिए टीका लगा दे, बस वैसे ही, वहां लगा दिया।

“भाभी ये फाउल है…”

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मैं चीखी लेकिन उन्होंने किसी दलबदलू नेता को भी मात देते हुए, पाला बदल लिया था और रितू भौजी का साथ दे रहे थे।

“क्यों?”


मुश्कुरा के वो बोले-

“अरे तुमने ही तो कहा था की आज वैसलीन लगा के, तो मेरी सलहज ने अपनी छोटी ननद का ख्याल करते हुए वैसलीन लगा तो दी है।
ये थोड़ी ही तय हुआ था की, कितने ग्राम लगाएंगे या कितना इंच लगाएंगे…”

“अच्छा चल तू कह रही है तो, तू भी क्या याद करेगी किस दिलदार से पाला पड़ा है…”

रितू भाभी हँसकर बोली और सुपाड़े के पेशाब के छेद पर लगे वैसलीन को फैला करके,

उन्होंने सुपाड़े के ऊपरी एक तिहाई भाग पे फैला दिया।

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मैं उनकी बदमाशी अच्छी तरह समझ रही थी। वो अपने नन्दोई को खुल के फेवर कर रही थीं।

किसी चिकने तेज धार वाले चाकू की तरह, अब उनका सुपाड़ा छुटकी की कसी चूत में घुस जाएगा, कम से कम उसका एक तिहाई हिस्सा, जहाँ तक वैसलीन लगा है, और फिर वो लाख अपने चूतड़ पटके, इनका सुपाड़ा निकल नहीं सकता

और उसके बाद तो जैसे कोई भोथरे चाकू से किसी मेमने को हलाल करे, बस एकदम उसी तरह से।

मैं कुछ बोलती, उसके पहले छुटकी के पैरों की आहट सुनाई पड़ी और रितू भाभी ने शेर को फिर से पिंजड़े में बंद कर दिया।

और हम दोनों ने अपने ब्लाउज को ठीक कर लिया (बटन तो दोनों की टूट चुकी थीं, हाँ बस चूची के ऊपर कर लिया)।

और छुटकी आई तो,

उसकी कसी-कसी छोटी स्कूल की टाप के नीचे दोनों छोटे-छोटे चूजे चोंच मार रहे थे।



वो कच्चे-कच्चे टिकोरे, जिसके न सिर्फ वो, बल्की मेरे नंदोई भी दीवाने थे, टाप के नीचे से साफ झलक रहे थे।

और उसे देखकर न सिर्फ मुँह सूख गया उनका, बल्की खड़ा खूंटा और तन के शार्ट के बाहर से झांकने लगा।

और अब मुँह सूखने की बारी छुटकी की थी।


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जान सूख गई थी, उसकी। उसे मालूम पड़ गया था कि अब थोड़ी देर में यहाँ क्या होने वाला था।

और ऊपर से रितू भाभी, उन्होंने शार्ट नीचे सरका दिया और रामपुरी 9” इंच के स्प्रिंग वाले चाकू की तरह, मोटा कड़ियल पगलाया लण्ड बाहर-

“क्यों लेगी इसे?”

मुट्ठी में उसे सहलाते, दबाते रितू भाभी ने पूछा।

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कितने अहसास एक साथ छुटकी के चेहरे पर से उतर गए।

1॰ लालच- मन कर रहा था बस गप्प से अंदर ले ले।

2॰ डर, और दहशत- क्या हालत होगी उस बिचारी की छोटी सी बिल की, जब ये कलाई ऐसा मोटा बालिश्त भर लम्बा, फाड़ता हुआ घुसेगा अंदर।

3॰ चाहत- कितना मजा आएगा, सुबह वो अपनी दो सहेलियों को देख चुकी थी, इसे घोंटते दोनों चीख चिल्ला रही थी लेकिन बाद में कितना मजा आया। और… और मंझली ने भी तो लिया था, इसे। एक ही साल तो बड़ी है वो।

4॰ घबड़ाहट- बहुत दर्द होगा, और खून भी निकलेगा। खून से बहुत डरती थी वो।

वो हिरणी की तरह डर के मेरी ओर मुड़ी, पर रितू भाभी की कोई ननद बच सके तो रितू भाभी कैसी।

उन्होंने उचक कर उसे पकड़कर पलंग पर खींच लिया-

“अरे छुटकी इससे डर लगता है, मुझसे तो नहीं…”

और प्यार से उसे अपने बाँहों में भींच लिया।

वो भी सिमटते हुए बोली-

“अरे भाभी, आपसे क्यों डरूँगी?”

“तो चल मेरे साथ मजा ले न…”

हसंते हुए वो बोली।

बिचारी छुटकी को क्या मालूम, वो खुद फँस के बड़े शिकारी के चंगुल में जा रही है।

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फटनी तो उसकी है ही वो भी आज और अभी।
 

komaalrani

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रितू भाभी और…

छुटकी ननदिया


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बिचारी छुटकी को क्या मालूम, वो खुद फँस के बड़े शिकारी के चंगुल में जा रही है।


फटनी तो उसकी है ही वो भी आज और अभी।


मैंने इशारे से 'उनको' अपने पास बुला लिया।

पलंग पर रितू भाभी और छुटकी थीं, अब।

और रितू भाभी की मांसल जांघों की सँडसी की गिरफत में छुटकी की टाँगें थी।

उन्होंने एक पल में छुटकी की टाँगें फैला दी, और अब वो बिचारी लाख कोशिश करे, उसकी टाँगें सिकुड़ नहीं सकती थी।

रितू भाभी के हाथों ने साथ-साथ, छुटकी के टाप को हटा फेंका और उसके बाद नंबर टीन ब्रा का था।

बिचारे वो ललचा रहे थे, अपनी किशोर साली की उठती हुई चूचियां देखने को, लेकिन वो अब रितू भाभी की गिरफ्त में थीं।

कभी वो दिखातीं, कभी छिपाती और कुछ देर अपने नंदोई को तड़पाने के बाद, उन्होंने नीचे से दोनों टिकोरों को पकड़कर और उभारा, और उन्हें ललचाते तड़पाते बोलीं-

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“क्यों नंदोई जी, मस्त हैं न मेरी छुटकी के टिकोरे… बस अभी-अभी उठना शुरू हुए हैं, दबाने में मस्त, चूसने में मस्त… बोलिए चाहिए?”


और सिर्फ यही नहीं साथ-साथ में उसके छोटे-छोटे उरोजों को वो हल्के-हल्के दबा रही थीं, मसल रहीं थीं,

ललछौहें निपल्स को मसल दे रही थीं, कभी चिकोटी काट लेती।

“हाँ हाँ भाभी… हाँ चाहिए, बहुत मस्त चूचियां उठान है…”

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तड़पते हुए वो बोले।

और उन्हें दिखाते हुए, रितू भाभी ने छुटकी के छोटे-छोटे निपल्स चूसने शुरू कर दिए।

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छुटकी भी मजे से सिसकियां भर रही थी। वो सिर्फ एक काटन की छोटी सी चड्ढी में थीं।

भाभी का एक हाथ उसकी चुन्मुनिया सहला रहा था, रगड़ रहा था। कुछ ही देर में वहां पानी का एक हल्का सा धब्बा दिखाई देने लगा।

छुटकी की कच्ची चूत पानी फेंक रही थी।

रितू भाभी ने उसकी चड्ढी भी खोलकर फेंक दी और एक बार फिर छुटकी की टाँगें, भाभी की कड़ी कठोर मसस्लस वाली पिंडलियों में फँसी फैली थी। भाभी ने उसकी गुलाबी गीली परी को ढक रखा था, और हथेली के बेस से उसकी क्लिट को हल्के-हल्के रगड़ रही थीं।

फिर हाथ हटाकर दोनों हाथ के अंगूठों से उसकी चूत के पपोटों को पूरी ताकत से खोलते हुए उन्होंने एक बार फिर अपने नंदोई को ललचाया।

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भाभी की पूरी ताकत के बाद भी, बुलबुल की चोंच जरा सी खुली और अंदर की गुलाबी मखमली गली के थोड़े-थोड़े दर्शन हुए।

मैं सोच के सिहर उठी।


अभी थोड़ी देर में इनका बियर कैन से भी मोटा लण्ड इसमें घुसेगा, कैसे लेगी बिचारी मेरी बहन।

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लेकिन रितू भाभी का इरादा पक्का था- “हे लेना है इस कच्ची कली का?”

“हाँ भाभी हाँ…”


वो मस्ती में पागल हो रहे थे।

“मेरी शर्त याद रखना…”


भाभी ने याद दिलाया।

“एकदम पक्का…” वो बोले।

छुटकी की कसी कच्ची सील तोड़ने के लिए वो कुछ भी करने को तैयार हो जाते।

(मुझे बाद में पता चला की भाभी की शर्त ये थी, कि वो छुटकी को पूरे लण्ड से चोदेंगे और खूब हचक-हचक कर।
छुटकी चाहे जितना रोये चिल्लाएगी, न तो वो चोदने की रफ्तार कम करेंगे और न, उसे रोने चिल्लाने से रोकने की कोई कोशिश करेंगे)।

रितू भाभी ने अपनी सबसे छोटी उंगली की टिप अपनी ननद की चूत में पेल दी और गोल-गोल घुमाने लगीं।


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साथ में उनका दूसरा हाथ, छुटकी के टिकोरों को दबा मसल रहा था।


मस्ती में छुटकी ने आँखें बंद कर ली थी और बस सिसक रही थी, छोटे-छोटे चूतड़ पटक रही थी।

और रितू भाभी ने इशारा करके इन्हें बुला के अपने पास बैठा लिया और छुटकी की गीली चूत से निकली उंगली सीधे इनके मुँह में।

वो सपड़-सपड़ चूस रहे थे।

और रितू भाभी उस कच्ची कली पर चढ़ बैठीं।

उनकी शैतान उंगलियां, दुष्ट जीभ सब उसकी गुलाबी परी को चिढ़ाने, छेड़ने में लग गए।


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पहले तो रितू भाभी के प्यासे होंठों ने अपनी छोटी ननद की गुलाबी कसी चूत की पुत्तियों को कस-कस के चूसा, और फिर उसे दो फांक करके अपनी लम्बी, मोटी रसीली जीभ एक लण्ड की तरह पेल दी, और लगीं गोल-गोल घुमाने।


साथ में ही उनकी उंगलियां कभी भगोष्ठों को रगड़ देती, कभी मसल देतीं तो कभी अंगूठा जोर-जोर से क्लिट के ऊपर घूमता, रगड़ता, मसलता।

बिचारी छुटकी… भौजी के इस हमले को तो कितनी खेली खायी, ब्याहता ननदें नहीं झेल पातीं थी, वो तो बिचारी 9वीं में पढ़ने वाली कमसिन, सेक्स के खेल से अनजान कली थी।


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छुटकी की चूत पानी फेंक रही थी, लेकिन जब वो झड़ने के कगार पर होती तो रितू भाभी रुक जातीं और छुटकी मन मसोस कर रह जाती।

नहीं, नहीं, उई… लगता है छुटकी के होंठों पर वो साथ-साथ, अपनी मजे लूटी बुर रगड़ रही थीं।

किसी तरह वो बोली-


“भौजी, झड़ने दो न, बस, बस करो ना…”

लेकिन ननदों को तड़पाने में रितू भाभी का जवाब नहीं था।

उन्होंने पूरी ताकत से दोनों हाथों से उसकी कसी चूत को फैलाया, और लगीं, हचक-हचक कर जीभ से चूत चोदने।

छुटकी तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थी।

लेकिन रितू भाभी, सिर्फ ननद को नहीं नंदोई को भी तड़पा रही थीं।



एक हाथ से उन्होंने उनके शार्ट को कबका उतार के दूर फेंक दिया था।


और जोर-जोर से लण्ड मुठिया रही थीं, खुला सुपाड़ा पागल हो रहा था।

मैं भी छुटकी के मुँह के पास बैठी थीं।

और अब जब छुटकी रिरयाने लगी-

“भाभी, प्लीज कुछ करो न…”

तो रितू भाभी हँसकर बोली-


“अरे जीजू का इतना मोटा मुस्टंडा लण्ड है और साली झड़ने के लिए तड़प रही है। ले लो न जीजू का लण्ड…”

उन्होंने मुझे कुछ इशारा किया, और छुटकी की फैली चूत में इनका सुपाड़ा सटा दिया।


मैं भी भाभी का इशारा समझ गई थी, छुटकी का प्यार से सर सहलाते हुए उसका मुँह खुलवाया और अपनी मोटी, बड़ी-बड़ी चूची अंदर ठेल दी।

वो गों-गों करती रही।


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लेकिन मैं उसका पूरा मुँह भरकरके ही मानी, और साथ में उसकी दोनों कलाइयों को भी पकड़ लिया।

रितू भाभी, छुटकी की गीली पनियाई चूत को एक हाथ से फैला रही थीं और दूसरे हाथ से नंदोई के मस्त मोटे लण्ड को अंदर घुसेड़ रही थी साथ में ललकार रही थीं-



“पेल दो साले, साल्ली की फुद्दी में, फाड़ दो रज्जा इसकी चूत…”
 

Abhi0011

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