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Erotica मजा पहली होली का ससुराल में

komaalrani

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फाड़ दो ,... फट गयी


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रितू भाभी, छुटकी की गीली पनियाई चूत को एक हाथ से फैला रही थीं

और दूसरे हाथ से नंदोई के मस्त मोटे लण्ड को अंदर घुसेड़ रही थी साथ में ललकार रही थीं-


“पेल दो साले, साल्ली की फुद्दी में, फाड़ दो रज्जा इसकी चूत…”

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और वो भी दोनों हाथ से उसकी पतली कमर पकड़े हुए थे और उन्होंने करारा धक्का मारा, आधा सुपाड़ा अंदर।


हाथ मेरे कब्जे में थे और उसके मुँह में मेरी मोटी चूची घुसी हुई थी। बिचारी गों-गों करती रही, दर्द से बिलबिलाती रही।


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लेकिन ऐसे मौके पे वो दया माया दिखाने वालों में से नहीं थे। और दिखानी चाहिए भी नहीं (ये बात मुझसे बढ़कर कौन जानता था)

बल्की उससे उनका जोश और बढ़ जाता था।

और यहाँ आग में घी डालने वाली, उनका जोश बढ़ाने वाली, रितू भाभी भी थीं।

अगला धक्का उन्होंने दूने जोर से मारा।

मेरे लाख जोर से पकड़ने के बावजूद उसकी एक कलाई छूट ही गई, इतनी जोर से छटपटा रही थी वो।

पानी के बाहर मछली की तरह तड़प रही थी, बिचारी छुटकी।

मैंने पूरी ताकत से अपनी चूची उसके मुँह में पेल रखी थी। तब भी उसके होंठों से चीखें, गों-गों की आवाज आ रही थी, वो जोर-जोर से अपने चूतड़ पटक रही थी।

उनका मोटा पहाड़ी आलू ऐसा सुपाड़ा अभी भी पूरा अंदर नहीं घुसा था। आलमोस्ट ¾ अंदर पैबस्त हो गया था, बाकी बाहर था।


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रितू भाभी ने ललकारा उन्हें-

“अरे नंदोई जी जरा जोर से धक्का मारो, कमर की सारी ताकत, क्या अपनी बहनों के साथ पूरी खर्च करके आये हो।




कच्ची कली की चूत है कोई, मेरी नंनद की…”

रितू भाभी की बात अधूरी रह गई।

उन्होंने छुटकी की कमर एक बार फिर जोर से पकड़ी और, हल्का सा लण्ड पीछे खींच के पूरे जोर से धक्का मारा।

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छुटकी की गों-गों की आवाज गूँज रही थी।


उसके आँखों से शबनम उतरकर उसके गोरे गुलाबी गालों को गीला कर रही थी। दर्द से उसका पूरा चेहरा डूबा था।

और अब उनका मोटा सुपाड़ा पूरी तरह अंदर पैबस्त हो चुका था।

छुटकी की कच्ची कसी चूत ने उसे कस के दबोच रखा था, जैसे कब के बिछुड़े बालम मिले हों। लेकिन पिक्चर अभी काफी बाकी थी।

रितू भाभी ने मुझे इशारा किया की मैं उसके हाथ छोड़ दूँ और चूची उसके मुँह से निकाल लूँ।

और मैंने वैसा ही किया।

मैं उनका प्लान पूरी तरह समझ रही थी, अब छुटकी लाख चूतड़ पटके, ये मोटा सुपाड़ा टस्स से मस्स नहीं होने वाला था।

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अब बिचारी बिना चुदे नहीं बच सकती थी।

छुटकी हल्की हल्की कराह रही थी, लेकिन अब उसकी कुँवारी किशोर चूत को मोटे सुपाड़े की आदत सी पड़ गई थी।

और ये भी उसकी चूत छोड़कर उसके कच्चे टिकोरों के पीछे पड़ गए थे।

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थोड़ी देर तक उसे सहलाते रहे, दबाते रहे, मसलते रहे,

फिर होंठों के बीच लेकर हल्के-हल्के उन खटमिठिया कच्ची अमियों का स्वाद लेने लगे।

कभी निपल को फ्लिक करते और अचानक उन्होंने उसके बस आते उभरते, निपल्स को काट लिया।

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चीख निकल गई छुटकी की।

रितू भाभी कुछ उनके कान में फुसफुसा रही थीं, और उन्होंने छुटकी की टांगों को दुहरा कर दिया।

उनका एक हाथ अब उसके नितम्ब पे था और एक कमर पे। छुटकी की टाँगें, उनके कंधे पे फँसी थी।

उन्होंने थोड़ा लण्ड बाहर खींचा, छुटकी ने राहत की सांस ली, लेकिन उस बिचारी को क्या मालूम था कि असली हमला अभी बाकी था।




और फिर पूरी ताकत से खूब हचक के, जोर से पेल दिया।


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खूब जोर से चीख निकली- “ओह्ह्ह्ह… आह्ह… जान गई…”



झिल्ली फट चुकी थी।

खून की दोचार बूँदें बाहर चुहचुहा उठी थीं।

लेकिन अभी रुकने का समय नहीं था, दूसरा, तीसरा, चौथा, एक के बाद एक धक्का, वो मारते गए।


वो तड़पती रही, चीखती रही, चिल्लाती रही- “ओह्ह्ह… नहीं जीजू… रुक जाओ आह्ह्ह… जान गई… दीदी… ओह्ह्ह… छोड़ो आह्ह…”

लेकिन उनका बीयर कैन ऐसा मोटा लण्ड आधे से भी ज्यादा अब धंसा था।



जैसे कोई घुड़सवार, किसी बाँकी भागती, हिरणी का पीछा करे और उसे अपने भाले से बींध दे, और हिरणी लथपथ गिर पड़े, बार-बार अपनी गर्दन मोड़कर अपने शिकारी की ओर देखे, बस वही हालत छुटकी की थी।

थकी, निढाल, दर्द से डूबी और पूरी तरह फैली जांघों के बीच, खून खच्चर।


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एक बार तो मैं सहम गई, लेकिन रितू भाभी ने मुझे आँख मार के इशारा किया, अरे कच्ची कली की चूत फटी है, वो भी मूसल ऐसे लण्ड से।

ये तो होना ही था। अब नदी पार हो गई है, घबड़ाना मत।
 

komaalrani

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कली बन गयी फूल


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एक बार तो मैं सहम गई, लेकिन रितू भाभी ने मुझे आँख मार के इशारा किया, अरे कच्ची कली की चूत फटी है,

वो भी मूसल ऐसे लण्ड से।

ये तो होना ही था। अब नदी पार हो गई है, घबड़ाना मत।

और सच में, उन्होंने भी अब और चोदना छोड़कर, छुटकी के प्यारे-प्यारे गालों को चूमना शुरू किया,

उसके होंठों को अपने होंठों के बीच लेकर चूसने लगे,


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एक हाथ छुटकी की छोटी-छोटी चूची को दबा सहला रहा था

तो दूसरा हाथ उसका सर हल्के-हल्के सहला रहा था।


5-7 मिनट के बाद, उसने आँख खोल दी और टुकुर-टुकुर अपने जीजा की ओर देखकर हल्के से मुश्कुराया।


फिर उसने मुझे और रितू भाभी को देखा और, हल्के से उसकी आँखों में खुशी नाच रही थी।

मेरी और रितू भाभी की आँखों ने हाई फाइव किया।

उन्होंने प्यार से उसके होंठों के बीच अपनी जीभ पेल दी, और लगे उसका मुँह चोदने।

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वो भी जैसे लण्ड चूस रही हो, उनकी जीभ चूस रही थी।


अब बारी थी गीयर बदलने की,


लेकिन वो भी, हमसे ज्यादा उन्हें अपनी साली की चिंता थी।

वो सिर्फ आधे लण्ड से छुटकी की चूत चोदने लगे, वो भी बहुत हल्के-हल्के।

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दर्द उसे अभी भी हो रहा था, लेकिन मजा भी आ रहा था, कभी दर्द से कराहती तो कभी मजे से सिसकती।


लेकिन ये आधे लण्ड की चुदायी, न तो रितू भौजी को कबूल थी न मुझे।

बांस ऐसे लण्ड वाले जीजा का क्या फायदा अगर साल्ली, आधे तीहे लण्ड से चुदे।

जब तक बच्चेदानी पे धक्के पे धक्का न लगे, और दिन में तारे न नजर आएं तो चुदाई क्या?

रितू भाभी ने पीछे से उन्हें पकड़ा और उनके टिट्स को स्क्रैच करती हुई, इयर लोब्स काटती बोलीं-


“अरे नंदोई भड़ुवे, ये बाकी का आधा लण्ड क्या मेरी ननद की ननदों के लिए बचा रखा है?”

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“नहीं भौजी, आपकी ननद की सास के लिए…”

जवाब मैंने दिया।


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और साथ ही रितू भाभी की मंझली उंगली जो उनके पिछवाड़े को सहला रही थी, एक धक्के में हचक के पूरी तरह उनकी गाण्ड में।

असर ये हुआ की उन्होंने भी पूरी ताकत से धक्का मारा और बचा हुआ लण्ड, छुटकी की चूत में।

पूरा 9” इंच अंदर।


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वो बहुत जोर से चीखी, जैसे किसी ने चाकू मार दिया हो।

लेकिन मैंने तारीफ से उसकी ओर देखा, सुहागरात की पहली चुदाई में, जब इन्होने मेरी झिल्ली फाड़ी थी, मैं सिर्फ आठ इंच अंदर ले पायी थी। उस रात की तीसरी चुदाई में जाकर, जड़ तक इनका एक बालिश्त का घोंटा था मैंने,


और आज मेरी बहन ने पहली बार में ही।

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उसकी आँखों से फिर आंसू निकल रहे थे, वो दर्द से कराह रही थी

लेकिन मैं और रितू भाभी मुश्कुरा रहे थे, उसकी हिम्मत बढ़ा रहे थे।

ये भी बजाय लण्ड अंदर-बाहर करने के, जड़ तक घुसे बित्ते भर के लण्ड को दबा के, उसके बेस को उसकी चूत के पपोटों पे रगड़-रगड़ के मजा दे रहे थे। साथ में उनकी उंगलियां भी कभी क्लिट को छेड़तीं तो कभी टिकोरों को मसलतीं।

और जब उसके आंसू सूख गए, कराहें कम हो गई तो फिर हल्के-हल्के धक्के मारने उन्होंने शुरू कर दिए।

झूलेकर पेंग की तरह और… और अब छुटकी भी उनको बाहों में भींच रही थी, उनके चुम्बन का जवाब दे रही थी

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और बार-बार मजे से सिसक रही थी। धक्कों की रफ्तार धीरे-धीरे तेज हो गई।

और ऊपर से थी न रितू भाभी, उकसाने वाली-


“का हो नंदोई? अरे हचक के पेला सबसे लहुरी साली हौ…”

दर्द उसे अभी भी हो रहा था, लेकिन साथ में एक नया नया मजा भी आ रहा था।

जब वो उसे दुहरी करके पूरी ताकत से धक्का मारते तो सुपाड़ा सीधे बच्चेदानी से टकराता।



वो दर्द से कहर उठती, लेकिन साथ में मजे से सिहर भी उठती।



और अब उनके होंठों, उंगलियों का लण्ड के साथ मिलकर तिहरा हमला हो रहा था। मस्त कच्चे टिकोरों पर, जोश में आके फूली क्लिट पर, और चूत की हचक कर चुदाई तो हो ही रही थी।

छुटकी दो बार झड़ी।

पहली बार लण्ड के मजे से वो झड़ रही थी, तूफान में पत्ते की तरह वो काँप रही थी।
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और जैसे ही तूफान रुकता उसकी ओखली में मूसल फिर पूरी तेजी से चलने लगता।

20-25 मिनट फुल स्पीड चुदाई के बाद वो झड़े, छुटकी के पैर उनके कंधे पे थे, और लण्ड एकदम बच्चेदानी पर सटा,

जैसे लहर पर लहर आ रही, सफेद गाढ़ी थक्केदार मलाई।

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छुटकी मजे में बेहोश शिथिल पड़ी थी।


गाढ़ा, सफेद, चिपचिपा वीर्य निकलकर उसकी गोरी-गोरी जाँघों पर बह रहा था।


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और कुछ देर में वह भी, छुटकी के ऊपर निढाल, गिरे हुए, उसको अपनी देह से दबाये, बाँहों में भींचे,

वीर्य सरिता अभी भी अनवरत बह रही थी।

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पहले सम्भोग रस, फिर वीर्य रस और उसके बाद शांत रस। तूफान के बाद की शान्ति छायी थी।

मैं और रितू भाभी एक दूसरे को देखकर मुश्कुरा रहे थे, काम हो गया था।

कली अब फूल बन चुकी थी।


उसके जीवन में बसंत आ गया था,

और अभी तो ये बस शुरुवात थी।
 

komaalrani

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छुटकी -


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आने वाले दिन , जीजू के संग









आज रात में ट्रेन में,

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फिर उसके कोरे पिछवाड़े के पीछे मेरे नंदोई पड़े थे, और ये भी तो ब्वायिश चूतड़ों के शौकीन।

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तो एक बार मेरी ससुराल जहाँ वह पहुंची, फिर तो ये भी पिछवाड़े का तबला जरूर बजायेंगे।


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और उसके बाद मेरे ससुराल के लड़के, नइकी भौजी की छुटकी बहिनियां, कोई भी छोड़ने वाला नहीं है।


फिर ऊपर से मेरी कन्या प्रेमी सास, ननदें, कच्ची कली का भोजन किये बिना।

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छुटकी ने हल्के से आँखें खोलीं और बोली- “जीजू…”

और फिर जोर से उन्हें बाहों में भींच लिया।

आधे जागे आधे सोये, उन्होंने भी अपनी सबसे छोटी साली को कस के दबोच लिया।


दोनों गुथमगुथा, एक दूसरे के ऊपर चढ़े हुए थे।

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और इनका मोटा लण्ड अभी भी जड़ तक छुटकी की चूत में घुसा था।





आधा सोया आधा जागा।

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रीतू भाभी ने अपना भौजाई का धर्म अदा किया।



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पहले तो उन्होंने, उनके गाल पे हल्की सी चुम्मी ली, और एक प्यारी सी बाइट भी।

बस, वो रीतू भाभी की और मुड़े और…

प्लाप, मोटा कड़ियल, आधा सोया आधा जाग लण्ड,

छुटकी की चूत से बाहर निकल आया।

छुटकी की किशोर थकी-थकी, खुली जांघें अभी भी पूरी तरह फैली थीं।

और वहां हुए हमले के पूरे निशान मौजूद थे।



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रीतू भाभी ने उन्हीं के रुमाल से, थक्के-थक्के, जमे खून के दाग, और वीर्य में मिले खून को साफ किया, एक-एक दाग।

अगर छुटकी वो खून देख लेती तो हदस जाती।

हाँ उसकी चूत में भरे वीर्य, गाढ़ी बनारसी रबड़ी लच्छेदार रबड़ी की तरह उन्होंने छोड़ दिया, और कुछ ब्लड स्पॉट भी नहीं साफ हो पाये।

लेकिन कच्ची कली चुदी थी, कुछ निशान तो रहने ही चाहिए थे।



तब तक वो फिर मुड़े और आधी नींद में, उन्होंने छुटकी को अपनी बाँहों में भींच लिया, और एकदम अपनी स्टाइल में, एक हाथ चूची पे चूतड़ पे और लण्ड सीधे सेंटर पर।

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और छुटकी भी आखिर मेरी ही बहन थी।



उसने उन्हें कसकर भींच लिया, और यही नहीं उसका एक कोमल कोमल हाथ, सीधे उनके लण्ड पर।

मैंने और रीतू भाभी ने दूसरे को देखा, मुश्कुराईं और अपने कपड़े ठीक किये।

वैसे कपड़े ज्यादा ठीक करने के लिए तो थे नहीं, बस पेटीकोट पहन लिया,

ब्लाउज के ज्यादातर बटन तो हम लोगों ने एकदूसरे के ब्लाउज के तोड़ ही दिए थे, जो एक आध बचे थे बस उसी से जस का तस अपनी बड़ी-बड़ी, मोटी-मोटी चूचियों पर टांग लिए।


साढ़े पांच बज गए थे।

मम्मी कभी भी उठ सकती थीं।

चार बजे से ये जीजा-साली लीला चालू हुई थी।

रीतू भाभी ने किसी तरह दोनों को अलग किया। सो वैसे भी वो नहीं रहे थे। छुटकी बस थक कर निढाल थी।

और छुटकी जब उठी, तो अपने जाँघों बीच खून के दाग देखकर देख चौंक उठी और घबड़ा गई। (गनीमत थी रीतू भाभी ने खून खच्चर साफ कर दिया था, और वो अगर पूरा हाल देख लेती तो शायद हदस जाती, और दुबारा चुदवाने का नाम नहीं लेती)

रीतू भाभी फिर मैदान में आयीं और उसे समझाने लगीं-

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“अरे मेरी प्यारी बिन्नो, ये तो तेरे जीजू के लिए खुशी मनाने की बात है, की उन्होंने एक कच्ची कली को फूल बना दिया।

यही खून तो इस बात की गवाही है, की आज से मेरी ननद अब मेरी और तुम्हारी दीदी की बिरादरी में आ गई…”

तब तक नीचे से मम्मी की दस्तक सुनाई दी और मैं दरवाजा खोलने के लिए भागी।

किसी तरह डारे पर लटकी एक साड़ी उतारकर जल्दी से मैंने लपेटा और सिटकनी खोल दी।

मम्मी मेरी हालत देखकर मुश्कुराई और जब तक मैं दरवाजा बंद करूँ, उन्होंने सवाल दाग दिया-

“दामाद जी, कहाँ हैं?”

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“ऊपर…”


मैंने बोला, उनकी ओर मुड़ कर देखते हुए।

मेरी मुश्कुराहट ही उनके अनपूछे सवाल का जवाब थी।

लेकिन उन्होंने पूछ ही लिया- “खुश हैं?”



“हाँ, बहुत मम्मी…”

मैंने मनभर उन्हें बाहों में भींच लिया।



और उन्होंने भी।

कल शाम को जब वो मुँह फुला कर बैठे थे, जब छुटकी ने पहले तो उन्हें ग्रीन सिग्नल दिया

और जब गाड़ी स्टेशन में घुसने वाली थी, तभी दरवाजा बंद कर दिया, तो मम्मी भी एकदम परेशान हो गई थीं।

और न उन्हें कुछ समझ में आ रहा था न मुझे,

वो तो भला हो रीतू भाभी का उन्होंने मामला सलटा दिया।

और छुटकी का भी, जिसने अपने जीजू को मना लिया।

मेरा इतना जवाब काफी था, मम्मी को समझाने के लिए की जो भरतपुर स्टेशन कल बच गया था, आज अच्छी तरह लुट गया है।

और लूटने वाला और लुटवाने वाला दोनों खुश है।

दिल की बस्ती भी अजीब बस्ती है।

लूटने वाले को तरसती है।


“कितने बजे ट्रेन है तुम लोगों की?”

मम्मी ने मुझसे अलग होते हुये पूछा।

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“साढ़े नौ बजे…”

और मम्मी किचन में घुस गईं, दामाद के फेवरिट पकवान बनाने। और मैं भी उनके साथ लग गई।

“छुटकी का सामान एक बार चेक कर लेना, कहीं कुछ छूट न जाय…”

वो साथ में इंस्ट्रक्शन भी दिए जा रही थीं।

“चाय चढ़ा दूं मम्मी?” मैंने पूछा।

तो बोलीं आने दो न दामाद जी को नीचे, अभी थोड़ा आराम कर लेने दो उसको, वो बोलीं।

कुछ देर हम लोग और काम में लगे रहे, तब तक मिश्रायिन भाभी आ गईं।
 

komaalrani

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साली चली - जीजू के गाँव


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कुछ देर हम लोग और काम में लगे रहे, तब तक मिश्रायिन भाभी आ गईं।





मिश्रायिन भाभी, सब भौजाइयों की लीडर थीं।

मम्मी से दो चार साल ही छोटी, 32-33 साल के आस-पास और मम्मी की तरह की फिगर वाली, दीर्घ नितम्बा, भरे-भरे चोली फाड़ उरोजों वाली थीं, मिश्रायिन भाभी।


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रिश्ते में भले ही बहू लगें, लेकिन थीं वो मम्मी की पक्की सहेली।


किचेन के काम में उन्होंने हम लोगों का हाथ बटाना शुरू कर दिया, और छुटकी के बारे में पूछा।

जवाब उन्हें सामने से मिल गया, जहाँ सीढ़ी से छुटकी उतर रही थी।


और उसे देखकर कोई नौसिखिया भी समझ लेती, की हचक के चुदी है बिचारी।


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एक भी कदम उसका सीधे नहीं पड़ रहा था।

एक ओर से रीतू भाभी और दूसरी ओर से ये उसे कसकर पकड़े हुए थे।

हर कदम पर कहर रही थी। उसके गालों पे दाँतों के निशान साफ दिख रहे थे।

टाप के ऊपर के दो बटन दिख रहे थे, और किशोर जस्ट उभरती उठती गोलाइयां न सिर्फ झाँक रही थीं, बल्की खुलकर दिख रही थीं और उनपर लगे दांत और नाखून के निशान भी।



लेकिन यहाँ तो मिश्रायिन भौजी ऐसी खेली खायी, घाट-घाट का पानी पी हुई, अनुभवी महिला थीं।

उन्होंने ऊपर से नीचे तक अपनी छुटकी ननद को देखा, जो अब क्लास 9 में ही उनकी बिरादरी में आ गई थी।

जिसकी सोन चिरैया फुर्र-फुर्र कर उड़ चुकी थी, बुलबुल ने चारा गटक लिया था।

और उनकी निगाह ने जैसे सहला दुलरा दिया हो, अपनी प्यारी दुलारी कुँवारी छोटी ननद को।

छुटकी शर्मा गई।

उसके गुलाबी लाजवन्ती गाल पे मिश्रायिन भाभी ने जोर से चिकोटी काटी, और पूछा-





“क्यों जा रही हो आज, अपने जीजा के साथ…”

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वो और शर्मा गई, जैसे वो समझ गई हो उसकी दीदी की ससुराल में क्या होना है?

लेकिन जवाब भौजी के नंदोई ने दिया, वो भी उदास स्वर में-

“अरे क्या भाभी, जा रही है लेकिन 15-20 दिन के बाद वापस आ जाएगी…”

“जबकी उसके दो हफ्ते बाद, गर्मी की दो महीने की छुट्टियां शुरू हो जाएँगी…”

छुटकी ने भी अपना दुःख जाहिर किया।


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“अरे गरमी की छुट्टी का मजा तो गाँव में ही, हमारी अपनी इतनी बड़ी आम की बाग है, खूब गझिन,

जहाँ दिन में रात हो जाय, लंगड़ा, दसहरी, सब कुछ, लेकिन अब इसको तो लौटना ही है…” '

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भौजी के नंदोई का उदास स्वर चालू था।

“लेकिन काहे को लौटोगी, नंदोई जी सही तो कह रहे हैं,

अबकी गर्मी छुट्टी का मजा दीदी की ससुराल में ही लो न, दीदी का भी तुम्हारे मन लगा रहेगा…”


मिश्रायिन भाभी ने कहा।




“मन तो मेरा भी यही कर रहा है, लेकिन…”

छुटकी उदास मन से बोली।

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और बात पूरी की, मम्मी ने- “

अरे आना तो पड़ेगा ही बिचारी को, आखिर सालाना इम्तहान है…”

मिश्रायिन भाभी मुश्कुराईं और फिर, प्यार से छुटकी का गाल सहला के पूछीं-

“तेरा क्या मन कर रहा है, जीजू के साथ गर्मी छुट्टी बिताने का, या फिर लौटकर आने का…”

छुटकी को तो अभी इतना मस्त जो नया-नया मजा मिला था, वो यहाँ लौट कर आने पर कहाँ मिलने वाला था, उसके मुँह से दिल की बात निकल ही गई-

“वहीं गर्मी की छुट्टी बिताने का…”

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“तो रहो न, क्यों लौट रही है 10 दिन के लिए…” मुश्कुराहट रोकती हुई, मिश्रायिन भाभी बोलीं।

“अरे तो इम्तहान कौन देगा मेरा?” झुंझलाते हुए छुटकी बोली।

“तो मत देना ना…”

मिश्रायिन भाभी बोलीं। फिर हँसकर उसे गले लगाते बोली-

“अरे बुद्धू, मैं किस दिन काम आऊँगी। तेरे छमाही में बहुत अच्छे नंबर थे, मुझे मालूम हैं, बस उसी के बेसिस पर, सप्लीमेंट्री आ जायेगी। और वैसे भी नौवें के नंबर कहाँ जुड़ते हैं। मेरी गारंटी…”
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मिश्रायिन भाभी छुटकी के स्कूल की वाइस प्रिंसिपल थी और उनके ‘वो’ मैंनेजिंग कमेटी के सेक्रेटरी भी थे, किसकी हिम्मत थी उनकी बात टालती।

मारे खुशी छुटकी उनसे चिपक गई।

और उससे भी ज्यादा खुश हो रहे थे, ‘वो’ उसके जीजू।


और साथ में मैं, जिसमें उनकी खुशी, उसमें मेरी खुशी।



और तभी मंझली भी आ गई।

उसका हाईस्कूल के बोर्ड का इम्तहान कल ही था।


तय ये हुआ की बोर्ड का इम्तहान खत्म करके, वो भी मेरे पास आ जायेगी, और फिर पूरी गर्मी की छुट्टी, दोनों बहने वहीं गाँव में बिताएंगी, मेरे साथ।

मैं मम्मी के साथ किचेन में लग गई।

बस दो घंटे बचे थे, हमें निकलने में।

आधे पौन घंटे में हम लोगों ने खाने का काम आलमोस्ट कर लिया।

मिश्रायिन भाभी और रीतू भाभी, नयी बछेड़ी, छुटकी को कबड्डी के दांव पेंच सिखा रही थीं।

आखिर भाभियां थीं- “नाम मत डुबोना हमारा…”

रीतू भाभी उसके टिकोरे मसलते बोलीं।

“अरे भाभी निचोड़ के रख दूंगी…” हँसते हुए छुटकी बोली।

और फिर मिश्रायिन भाभी पिछवाड़े के दरवाजे के गुर सिखाने में जुट गईं।

मम्मी मुझसे बोलीं-

“जरा मैं छुटकी के कपड़े सामान चेक कर लूँ…”

और मैं ऊपर छुटकी के कमरे की ओर चल दी।

उसके कपड़ों में से मैंने उसकी ब्रा और पैंटी निकाल के वापस बाहर कर दी।


सिवाय एक सेट के।

ये उन्हीं का इंस्ट्रकशन था की, मैं उसकी ब्रा पैंटी निकाल दूँ।


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बात सही थी, गाँव में ये सब कौन पहनता है।

फिर उनका और नंदोई जी का फायदा,

जब चाहा, पकड़ा, निहुराया, सटाया


और चोद दिया।

कुछ शरारत और की मैंने, उसके टाप की ऊपर की दो बटनें मैंने तोड़ दी,


अरे जब तक बहन के खुले-खुले जोबन, पूरे गाँव में आग न लगाएं, तो मजा क्या?
 

komaalrani

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***** *****बीत गई ससुराल की होली, टाटा बाईं बाई



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बहुत देर से वो और मंझली नहीं दिख रहे थे।

दुछत्ती से कुछ बहुत हल्की-हल्की आवाजें आ रही थी,


वही जगह, जहाँ कल उन्होंने होली के मौके पे अपनी हाईस्कूल वाली मंझली साली का भरतपुर लूट कर ससुराल में होली की शुरुवात की थी।


और मैंने ध्यान लगाकर देखा तो वही दोनों थे, मंझली निहुरी हुई, उसकी फ्राक उन्होंने कमर तक मोड़ रखी थी,


और उसके छोटे-छोटे लौंडा मार्का चूतड़, हवा में उठे हुए थे।


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“जीजू, इधर नहीं, प्लीज इधर बहुत दर्द करेगा…”

वो रिरिया रही थी।

लेकिन हाईस्कूल वाली साली की गाण्ड मारनी हो तो कौन सुनता है।

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उन्होंने कमर पकड़ी और जोर का धक्का मार दिया। दो चार धक्कों में गाण्ड का छल्ला पार था।




मंझली भी थोड़ा रोई-धोई लेकिन,


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8-10 धक्कों के बाद ही, मजे से पीछे चूतड़ मटका-मटकाकर गाण्ड मरवाने का मजा लेने लगी।

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कोई मुझे ढूँढ़ते हुए ऊपर न आ जाय, इसलिए दबे पाँव छुटकी का सामान लेकर मैं नीचे उतर गई।

मिश्रायिन भाभी चली गई थीं और रीतू भाभी, मम्मी के साथ मिलकर टेबल लगा रही थीं।


;;;;


छुटकी तैयार हो रही थी, ट्रेन के टाइम में एक घण्टा बचा था।



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मंझली और रीतू भाभी हम लोगों को स्टेशन तक छोड़ने आये।



और हम सब जब ट्रेन में बैठ गए तो उन दोनों ने आँख नचाकर, मुश्कुराकर पूछा-




“क्यों जीजू, मजा आया ससुराल में पहली होली का…”


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गाड़ी चलने के पहले टीटी आया, वही जो परसों रात में ट्रेन में था, और उसने वही बात बोली-

“फर्स्ट क्लास में आज कोई और पैसेंजर नहीं है, आप लोगों के सिवाय। आप डिब्बे का ही दरवाजा अंदर से बंद कर लीजिये,

मुझे और डिब्बे भी चेक करने हैं…”



मुश्कुराते हुए उन्होंने हामी भरी।

कनखियों से मैंने देखा, ₹100 के दो नोट इनके हाथ से उनके हाथ पास हुए, आते हुए से दुगुने…

और क्यों नहीं माल भी तो दुगुने थे।



कच्चे टिकोरों वाली साली,

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रात भर रेल गाड़ी में सटासट-सटासट, गपागप-गपागप।




बस, यह थी ‘इनके’ ससुराल में पहली होली के दो दिनों की कहानी।


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साथ के लिए धन्यवाद देकर आपके साथ बिताये गए पलों की मधुरिमा को कम नहीं करूंगी
 

Alexander

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Mast maat mast
 
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Jaipara

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Gajab gajab gajab

Jab jab Holi ki bat aayegi aapki aur aapki lekhni ki yad aati rahegi
Hme umeed hai aap bhi aise hi apni yad ki tarah yahan aati rahogi hmesa
 
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komaalrani

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Mast maat mast
Thanks so much
 
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