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मेरी ननदें सारी. १४ से २४ साल तक ज्यादातर कुँवारी...
कुछ चुदी, कुछ अनचुदी...
कुछ शादी-शुदा, एक दो तो बच्चों वाली भी...कुछ देर में जब आईं तो मैं समझ गई कि असली दुर्गत अब हुई.
एक से एक गालियां गाती, मुझे छेड़ती, ढूंढती
“भाभी, भैया के साथ तो रोज मजे उड़ाती हो...आज हमारे साथ भी...”
ज्यादातर साड़ियों में,
एक दो जो कुछ छोटी थीं फ्रॉक में और तीन चार सलवार में भी...
मैंने अपने दोनों हाथों में गाढ़ा बैंगनी रंग पोत रखा था और साथ में पेंट, वार्निश, गाढ़े पक्के रंग सब कुछ...
एक खंभे के पीछे छिप गई मैं, ये सोच के कि कम से कम एक दो को तो पकड़ के पहले रगड़ लूंगी.
तब तक मैंने देखा कि जेठानी ने एक पड़ोस की ननद को (मेरी छोटी बहन छुटकी से भी कम उम्र की लग रही थी,
उभार थोड़े-थोड़े बस गदरा रहे थे, कच्ची कली)
उन्होंने पीछे से जकड़ लिया और जब तक वो सम्भले-सम्भले लाल रंग उसके चेहरे पे पोत डाला.
कुछ उसके आँख में भी चला गया और मेरे देखते-देखते उसकी फ्रॉक गायब हो गई और वो ब्रा चड्डी में.
जेठानी ने झुका के पहले तो ब्रा के ऊपर से उसके छोटे-छोटे अनार मसले.
फिर पैंटी के अंदर हाथ डाल के सीधे उसकी कच्ची कली को रगड़ना शुरू कर दिया. वो थोड़ा चिचियाई तो उन्होंने कस के दोहथड़ उसके छोटे-छोटे कसे चूतड़ों पे मारा और बोलीं,
“चुपचाप होली का मज़ा ले.”
फिर से पैंटी में हाथ लगा के, उसके चूतड़ों पे, आगे जांघों पे और जब उसने सिसकी भरी तो मैं समझ गई कि मेरी जेठानी की उँगली कहाँ घुस चुकी है?
मैंने थोड़ा-सा खंभे से बाहर झाँक के देखा, उसकी कुँवारी गुलाबी कसी चूत को जेठानी की उँगली फैला चुकी थी और वो हल्के-हल्के उसे सहला रही थीं.
अचानक झटके से उन्होंने उँगली की टिप उसकी चूत में घुसेड़ दी. वो कस के चीख उठी.
“चुप...साल्ली...” कस के उन्होंने उसकी चूत पे मारा और अपनी चूत उसके मुँह पे रख दी... वो बेचारी मेरी छोटी ननद चीख भी नहीं पाई.
“ले चाट चूत...चाट...कस-कस के...”
वो बोलीं और रगड़ना शुरू कर दिया.. मुझे देख के अचरज हुआ कि उस साल्ली चूत मरानो मेरी ननद ने चूत चाटना भी शुरू कर दिया.
वो अपने रंग लगे हाथों से कस के उसकी छोटी चूचियों को रगड़, मसल भी रही थी. कुछ रंग और कुछ रगड़ से चूचियाँ एकदम लाल हो गई थीं. तब हल्की-सी धार की आवाज ने मेरा ध्यान फिर से चेहरे की ओर खीचा. मैं दंग रह गई.
“ले पी...ननद...छिनाल साल्ली...होली का शरबत....ले...ले...एकदम जवानी फूट पड़ेगी. नमकीन हो जायेगी ये नमकीन शरबत पी के...”
एकदम गाढ़े पीले रंग की मोटी धार...छर-छर...सीधे उसके मुँह में...
वो छटपटा रही थी लेकिन जेठानी की पकड़ भी तगड़ी थी...सीधा उसके मुँह में...
जिस रंग का शरबत मुझे जेठानी ने अपने हाथों से पिलाया था, एकदम उसी रंग का वैसा हीं...
और उस तरफ देखते समय मुझे ध्यान नहीं रहा कि कब दबे पांव मेरी चार गाँव की ननदें मेरे पीछे आ गईं और मुझे पकड़ लिया.
उसमें सबसे तगड़ी मेरी शादी-शुदा ननद थी, मुझसे थोड़ी बड़ी बेला.
उसने मेरे दोनों हाथ पकड़े और बाकी ने टाँगे, फिर गंगा डोली करके घर के पीछे बने एक चहबच्चे में डाल दिया. अच्छी तरह डूब गई मैं रंग में. गाढ़े रंग के साथ कीचड़ और ना जाने क्या-क्या था उसमें?
जब मैं निकलने की कोशिश करती दो चार ननदें उसमें जो उतर गई थीं, मुझे फिर धकेल दिया. साड़ी तो उन छिनालों ने मिल के खींच के उतार हीं दी थी. थोड़ी हीं देर में मेरी पूरी देह रंग से लथ-पथ हो गई.
अबकी मैं जब निकली तो बेला ने मुझे पकड़ लिया और हाथ से मेरी पूरी देह में कालिख रगड़ने लगी. मेरे पास कोई रंग तो वहाँ था नहीं तो मैं अपनी देह से हीं उस पे रगड़ के अपना रंग उस पे लगाने लगी.
वो बोली,
“अरे भाभी, ठीक से रगड़ा-रगड़ी करो ना...देखो मैं बताती हूँ तुम्हारे नंदोई कैसे रगड़ते हैं!”
और वो मेरी चूत पे अपनी चूत घिसने लगी. मैं कौन-सी पीछे रहने वाली थी? मैंने भी कस के उसकी चूत पे अपनी चूत घिसते हुए बोला,
“मेरे सैंया और अपने भैया से तो तुमने खूब चुदवाया होगा, अब भौजी का भी मज़ा ले ले.”
उसके साथ-साथ लेकिन मेरी बाकी ननदें, आज मुझे समझ में आ गया था कि गाँव में लड़कियाँ कैसे इतनी जल्दी जवान हो जाती हैं और उनके चूतड़ और चूचियाँ इतनी मस्त हो जाती हैं...
छोटी-छोटी ननदें भी कोई मेरे चूतड़ मसल रहा था तो कोई मेरी चूचियाँ लाल रंग ले के रगड़ रहा था...
थोड़ी देर तक तो मैंने सहा फिर मैंने एक की कसी कच्ची चूत में उँगली ठेल दी.
चीख पड़ी वो...
मौका पा के मैं बाहर निकल आई लेकिन वहाँ मेरी बड़ी ननद दोनों हाथों में रंग लगाए पहले से तैयार खड़ी थी.
रंग तो एक बहाना था. उन्होंने आराम से पहले तो मेरे गालों पे फिर दोनों चूचियों पे खुल के कस के रंग लगाया, रगड़ा. मेरा अंग-अंग बाकी ननदों ने पकड़ रखा था इसलिए मैं हिल भी नही पा रही थी.
चूचियाँ रगड़ने के साथ उन्होंने कस के मेरे निप्पल्स भी पिंच कर दिये और दूसरे हाथ से पेंट सीधे मेरी क्लिट पे... बड़ी मुश्किल से मैं छुड़ा पाई.
लेकिन उसके बाद मैंने किसी भी ननद को नही बख्शा.
सबको उँगली की... चूत में भी और गांड़ में भी.....
लेकिन जिसको मैं ढूँढ रही थी वो नही मिली, मेरी छोटी ननद... मिली भी तो मैं उसे रंग लगा नही पाई. वो मेरे भाई के कमरे की ओर जा रही थी, पूरी तैयारी से, होली खेलने की.
दोनों छोटे-छोटे किशोर हाथों में गुलाबी रंग, पतली कमर में रंग, पेंट और वार्निश के पाऊच. जब मैंने पकड़ा तो वो बोली,
“प्लीज भाभी, मैंने किसी से प्रॉमिस किया है कि सबसे पहले उसी से रंग डलवाउंगी. उसके बाद आपसे... चाहे जैसे, चाहे जितना लगाईयेगा, मैं चूं भी नही करुँगी.”
मैंने छेड़ा, “ननद रानी, अगर उसने रंग के साथ कुछ और डाल दिया तो?”
वो आँख नचा के बोली, “तो डलवा लूँगी भाभी, आखिर कोई ना कोई, कभी ना कभी तो... फिर मौका भी है, दस्तूर भी है.”
“एकदम” उसके गाल पे हल्के से रंग लगा के मैं बोली और कहा कि
“जाओ, पहले मेरे भैया से होली खेल आओ, फिर अपनी भौजी से.”
थोड़ी देर में ननदों के जाने के बाद गाँव की औरतों, भाभियों का ग्रुप आ गया और फिर तो मेरी चांदी हो गई.
हम सबने मिल के बड़ी ननदों को दबोचा और जो-जो उन्होंने मेरे साथ किया था वो सब सूद समेत लौटा दिया. मज़ा तो मुझे बहुत आ रहा था लेकिन सिर्फ एक प्रोब्लम थी.
मैं झड़ नही पा रही थी. रात भर ‘इन्होंने’ रगड़ के चोदा था लेकिन झड़ने नही दिया था...
सुबह से मैं तड़प रही थी, फिर सुबह सासू जी की उंगलियों ने भी आगे-पीछे दोनों ओर, लेकिन जैसे हीं मेरी देह कांपने लगी, मैंने झड़ना शुरू हीं किया था कि वो रुक गईं और पीछे वाली उँगली से मुझे मंजन कराने लगी. तो मैं रुक गई और उसके बाद तो सब कुछ छोड़ के वो मेरी गांड़ के हीं पीछे पड़ गई थीं.
यही हालत बेला और बाकी सभी ननदों के साथ हुई...बेला कस कस के घिस्सा दे रही थी और मैं भी उसकी चूचियाँ पकड़ के कस-कस के चूत पे चूत रगड़ रही थी...
लेकिन फिर मैं जैसे हीं झड़ने के कगार पे पहुँची कि बड़ी ननद आ गई... और इस बार भी मैंने ननद जी को पटक दिया था और उनके ऊपर चढ़ के रंग लगाने के बहाने से उनकी चूचियाँ खूब जम के रगड़ रही थी और कस-कस के चूत रगड़ते हुए बोल रही थी, "देख ऐसे चोदते हैं तेरे भैया मुझको!"
चूतड़ उठा के मेरी चूत पे अपनी चूत रगड़ती वो बोली, "और ऐसे चोदेंगे आपको आपके नंदोई!"
मैंने कस के क्लिट से उसकी क्लिट रगड़ी और बोला, "हे डरती हूँ क्या उस साले भड़वे से? उसके साले से रोज चुदती हूँ, आज उसके जीजा साले से भी चुदवा के देख लूंगी."
मेरी देह उत्तेजना के कगार पर थी, लेकिन तब तक मेरी जेठानी आ के शामिल हो गई और बोली,
“हे तू अकेले मेरी ननद का मज़ा ले रही है और मुझे हटा के वो चढ़ गईं.
मैं इतनी गरम हो रही थी कि मेरी सारी देह कांप रही थी. मन कर रहा था कि कोई भी आ के चोद दे.
बस किसी तरह एक लंड मिल जाए, किसी का भी. फिर तो मैं उसे छोड़ती नहीं, निचोड़ के, खुद झड़ के हीं दम लेती.
इसी बीच मैं अपने भाई के कमरे की ओर भी एक चक्कर लगा आई थी. उसकी और मेरी छोटी ननद के बीच होली जबर्दस्त चल रही थी.
उसकी पिचकारी मेरी ननद ने पूरी घोंट ली थी. चींख भी रही थी, सिसक भी रही थी, लेकिन उसे छोड़ भी नहीं रही थी.
तब तक गाँव की औरतों के आने की आहट पाकर मैं चली आई.
मैं अब सीधे उसके ऊपर चढ़ गई और अपनी प्यासी चूत उसके किशोर, गुलाबी, रसीले होंठों पे रगड़ने लगी.
वो भी कम चुदक्कड़ नहीं थी, चाटने और चूसने में उसे भी मज़ा आ रहा था. उसके जीभ की नोंक मेरे क्लिट को छेड़ती हुई मेरे पेशाब के छेद को छू गई और मेरे पूरे बदन में सुरसुरी मच गई.
मुझे वैसे भी बहुत कस के 'लगी' थी, सुबह से पांच छः ग्लास शरबत पी के और फिर सुबह से की भी नहीं थी.
(मुझे याद आया कि कल रात मेरी ननद ने छेड़ा था कि भाभी आज निपट लीजिए, कल होली के दिन टायलेट में सुबह से हीं ताला लगा दूंगी, और मेरे बिना पूछे बोला कि अरे यही तो हमारे गाँव की होली की...खास कर नई बहु के आने पे होने वाली होली की स्पेशलिटी है. जेठानी और सास दोनों ने आँख तर्रेर कर उसे मना किया और वो चुप हो गई|)
मेरे उठने की कोशिश को दोनों जेठानियों ने बेकार कर दिया और बोली,
“हे, आ रही है तो कर लो ना...इतनी मस्त ननद है...और होली का मौका...ज़रा पिचकारी से रंग की धार तो बरसा दो... छोटी प्यारी ननद के ऊपर|”
मेरी जेठानी ने कहा,
“और वो बेचारी तेरी चूत की इतनी सेवा कर रही है...तू भी तो देख ज़रा उसकी चूत ने क्या-क्या मेवा खाया है?”
मैंने गप्प से उसकी चूत में मोटी उंगली घुसेड़ दी|
चूत उसकी लसालस हो रही थी| मेरी दूसरी उंगली भी अंदर हो गई. मैंने दोनों उंगलियां उसकी चूत से निकाल के मुँह में डाल ली... वाह क्या गाढ़ी मक्खन-मलाई थी?
एक पल के लिये मेरे मन में ख्याल आया कि मेरी ननद की चूत में किसका लंड अभी गया था?
लेकिन सिर झटक के मैं मलाई का स्वाद लेने लगी| वाह क्या स्वाद था?
मैं सब कुछ भूल चुकी थी कि तब तक मेरी शरारती जेठानियों ने मेरे सुरसुराते छेद पे छेड़ दिया और बिना रुके मेरी धार सीधे छोटी ननद के मुँह में.
दोनों जेठानियों ने इतनी कस के उसका सिर पकड़ रखा था कि वो बेचारी हिल भी नहीं सकती थी, और एक ने मुझे दबोच रखा था|
देर तो मैंने भी हटने की कोशिश की लेकिन मुझे याद आया कि अभी थोड़ी देर पहले हीं, मेरी जेठानी पड़ोस की उस ननद को... और वो तो इससे भी कच्ची थी|
“अरे होली में जब तक भाभी ने पटक के ननद को अपना खास असल खारा शरबत नहीं पिलाया, तो क्या होली हुई?”
एक जेठानी बोली|
दूसरी बोली,
“तू अपनी नई भाभी की चूत चाट और उसका शरबत पी और मैं तेरी कच्ची चूत चाट के मस्त करती हूँ.”
मैं मान गई अपनी ननद को, वास्तव में उसकी मुँह में धार के बावजूद वो चाट रही थी|
इतना अच्छा लग रहा था कि... मैंने उसका सिर कस के पकड़ लिया और कस-कस के अपनी बुर उसके मुँह पे रगड़ने लगी.
मेरी धार धीरे-धीरे रुक गई और मैं झड़ने के कगार पे थी कि मेरी एक जेठानी ने मुझे खींच के उठा दिया|
लेकिन मौके का फायदा उठा के मेरी ननद निकल भागी और दोनों जेठानियां उसके पीछे|
मैं अकेले रह गई थी| थोड़ी देर मैं सुस्ता रही थी कि