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Erotica मजा पहली होली का ससुराल में

komaalrani

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जीजा स्साले की होली
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थोड़ी देर मैं सुस्ता रही थी कि ‘उईईईई...’ की चीख आई...


उस तरफ़ से जिधर मेरे भाई का कमरा था|


मैं उधर बढ़ के गई... मैं देख के दंग रह गई|

उसकी हाफ-पैंट, घुटने तक नीचे सरकी हुई और उसके चूतड़ों के बीच में ‘वो’...‘इनका’ मोटा लाल गुस्साया सुपाड़ा पूरी तरह उसकी गांड़ में पैबस्त...

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वो बेचारा अपने चूतड़ पटक रहा था लेकिन मैं अपने एक्सपेरिएंस से अच्छी तरह समझ गई थी कि अगर एक बार सुपाड़ा घुस गया तो... ये बेचारा लाख कोशिश कर ले, ये मूसल बाहर नहीं निकलने वाला|


उसकी चीख अब गों-गों की आवाज़ में बदल गई थी| उसके मुँह की ओर मेरा ध्यान गया तो...

नंदोई ने अपना लंड उसके मुँह में ठेल रखा था| लम्बाई में भले वो ‘मेरे उनसे’ उन्नीस हो लेकिन मोटाई में तो उनसे भी कहीं ज्यादा, मेरी मुट्ठी में भी मुश्किल से समां पाता|

मेरी नज़र सरक कर मेरे भाई के शिश्न पर पड़ी|

बहुत प्यारा, सुन्दर सा गोरा, लम्बाई मोटाई में तो वो ‘मेरे उनके’ और नंदोई के लंड के आगे कहीं नहीं टिकता, लेकिन इतना छोटा भी नहीं, कम से कम ६ इंच का तो होगा हीं, छोटे केले की तरह और एकदम खड़ा|


गांड़ में मोटा लंड होने का उसे भी मज़ा मिल रहा था| ये पता इसी से चल रहा था|

वो उसके केले को मुट्ठिया रहे थे और उसका लीची ऐसा गुलाबी सुपाड़ा खुला हुआ... बहुत प्यारा लग रहा था, बस मन कर रहा था कि गप्प से मुँह में ले लूँ और कस-कस कर चूसूं|

मेरे मुँह में फिर से वो स्वाद आ गया जो मेरी छोटी ननद के बुर में से उंगलियां निकाल के चाटते समय मेरे मुँह में आया था| अगर वो मिल जाता तो सच मैं बिना चूसे उसे ना छोड़ती, मैं उस समय इतनी चुदासी हो रही थी कि बस...

“पी साले पी... अगर मुँह से नहीं पिएगा तो तेरी गांड़ में डाल के ये बोतल खाली कराएँगे|”

नंदोई ने दारू की बोतल सीधे उसके मुँह में लगा के उड़ेल दी|

वो घुटुर-घुटुर कर के पी रहा था| कड़ी महक से लग रहा था कि ये देसी दारू की बोतल है| उसका मुँह तो बोतल से बंद था हीं, ‘इन्होंने’ एक-दो और धक्के कस के मारे| बोतल हटा के नंदोई ने एक बार फिर से उसके गोरे-गोरे कमसिन गाल सहलाते हुए फिर अपना तन्नाया लंड उसके मुँह में घुसेड़ दिया|

‘इन्होंने’ आँख से नंदोई जी को इशारा किया, मैं समझ गई कि क्या होने वाला है? और वही हुआ|

नंदोई ने कस के उसका सिर पकड़ के मोटा लंड पूरी ताकत से अंदर पेल के उसका मुँह अच्छी तरह बंद कर दिया और मजबूती से उसके कंधे को पकड़ लिया| उधर ‘इन्होंने’ भी उसका शिश्न छोड़ के दोनों हाथों से कमर पकड़ के वो करारा धक्का लगाया कि दर्द के मारे वो गों गों करता रहा, लेकिन बिना रुके एक के बाद एक ‘ये’ कस-कस के पलते रहे|

उसके चेहरे का दर्द... आँखों में बेचारे के आँसू तैर रहे थे|


लेकिन मैं जानती थी कि ऐसे समय रहम दिखाना ठीक नहीं और ‘इन्होंने’ भी ऑलमोस्ट पूरा लौड़ा उसकी कसी गांड़ में ठूंस दिया|


वो छटपटाता रहा, गांड़ पटकता रहा, गों गों करता रहा लेकिन बेरहमी से वो ठेलते रहे| मोटा लंड मुँह में होने से उसके गाल भी पूरे फूले, आँखे निकली पड़ रही थी|

“बोल साल्ले, मादरचोद, तेरी बहन की माँ का भोंसड़ा मारूं, बोल मज़ा आ रहा है गांड़ मराने में?” उसके चूतड़ पे दुहथड़ जमाते हुए ‘ये’ बोले|

नंदोई ने एक पल के लिए अपना लंड बाहर निकाल लिया और वो भी हँस के बोले,

“आइडिया अच्छा है, तेरी सास बड़ी मस्त माल है, क्या चूचियाँ हैं उसकी! पूछ इस साल्ले से चुदवायेगी वो? क्या साईज है उस छिनाल की चूचियों की?”

“बोल साल्ले, क्या साईज है उसकी चूचियों की? माल तो बिंदास है|” उसके बाल खींचते हुए ‘इन्होंने’ उसके गाल पे एक आँसू चाट लिया और कचकचा के गाल काट लिए|

“38 डीडी...” वो बोला|

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“अरे भोंसड़ी के, क्या 38 डीडी... साफ-साफ बोल...”

उसके गाल पे अपने लंड से सटासट मारते नंदोई बोले|


“सीना...छाती...चूचि|” वो बोला|

“सच में, जैसे तेरी कसी कसी गांड़ मारने में मज़ा आ रहा है वैसे उसकी भी बड़ी-बड़ी चूचियाँ पकड़ के मस्त चूतड़ों के बीच...

क्या गांड़ है? बहोत मज़ा आएगा!”


‘ये’ बोले और इन्होंने बचा-खुचा लंड भी ठेल दिया| मेरे छोटे भाई की चीख निकल गई.|





मैं सोच रही थी कि तो क्या मेरी माँ के साथ भी... कैसे-कैसे सोचते है ये...

वैसे ये बात सही भी थी कि मेरी माँ की चूचियाँ और चूतड़ बहुत मस्त थे और हम सब बहनें बहुत कुछ उन पे गई थीं|
वैसे भी बहुत दिन हो गए होंगे, उनकी बुर को लंड खाए हुए|

“क्या मस्त गांड़ मराता है तू यार... मजा आ गया| बहुत दिन हो गए ऐसी मस्त गांड़ मारे हुए|”


हल्के-हल्के गांड़ मारते हुए ‘ये’ बोले|

नंदोई कभी उसे चूम रहे थे तो कभी उससे अपना सुपाड़ा चटवा चुसवा रहे थे| उन्होंने पूछा,

“क्या हुआ जो तुझे इस साल्ले की गांड़ में ये मज़ा आ रहा है?”

वो बोले,

“अरे इसकी गांड़, जैसे कोई कोई हाथ से लंड को मुट्ठियाते हुए दबाए, वैसे लंड को भींच रही है| ये साल्ला नेचुरल गाण्डू है|”



और एक झटके में सुपाड़े तक लंड बाहर कर के सटासट गपागप उसकी गांड़ मारना शुरू कर दिया|

मैंने देखा कि जब उनका लंड बाहर आता तो ‘इनके’ मोटे मूसल पे उसके गांड़ का मसाला... लेकिन मेरी नज़र सरक के उसके लंड पे जा रही थी| सुन्दर सा प्यारा, खड़ा, कभी मन करता था कि सीधे मुँह में ले लूं तो कभी चूत में लेने का...

तभी सुनाई पड़ा, ‘ये’ बोल रहे थे,

“साल्ले, आज के बाद से कभी मना मत करना गांड़ मराने के लिए, तुझे तो मैं अब पक्का गंडुआ बना दूँगा और कल होली में तेरी सारी बहनों की गांड़ मारूंगा, चूत तो चोदूंगा हीं| तुझे तेरी कौन छिनाल बहन पसंद है?
बोल साल्ले... इस गांड़ मराने के लिये तुझे अपनी साली ईनाम में दूँगा|”


मैंने मन में कहा कि ईनाम में तो वो ‘उनकी’ छोटी बहन की मस्त कच्ची चूत की सील तो वो सुबह हीं खोल चुका है|




वो बोला, “सबसे छोटी वाली...लेकिन अभी वो छोटी है...”


“अरे उसकी चिन्ता तू छोड़... चोद-चोद कर इस होली के मौके पे तो मैं उसकी चूत का भोंसड़ा बना दूँगा और... अपनी सारी सालियों को रंडी की तरह चोदूंगा... चल तू भी क्या याद करेगा| सारी तेरी बहनों को तुझसे चुदवा के तुझे गाण्डू के साथ नम्बरी बहनचोद भी बना दूँगा|”

उन लोगों ने तो बोतल पहले हीं खाली कर दी थी| नंदोई उसे भी आधी से ज्यादा देसी बोतल पिला के खाली कर चुके थे और वो भी नशे में मस्त हो गया था|

“अरे कहाँ हो...?” तब तक जेठानी की आवाज़ गूंजी|


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होरी के हुरियारे



रंग बरसे भीगे ननद हमारी



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अरे कहाँ हो...?”

तब तक जेठानी की आवाज़ गूंजी|

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मैं दबे पाँव वहाँ से बरामदे की ओर चली आई, जहाँ जेठानी के साथ मेरी बड़ी ननद भी थी|

दूर से होली के हुलियारों की आवाजें हल्की हल्की आ रही थीं| जेठानी के हाथ में वही बोतल थी जो वो और नंदोई पी चुके थे और जबरन मेरे भाई को पिला रहे थे|

मैं लाख ना नुकुर करती रही कि आज तक मैंने कभी दारू नहीं पिया लेकिन वो दोनों कहाँ मानने वाली थीं, जबरन मेरे मुँह से लगा कर...ननद बोली,

"भाभी होली तो होती है नए नए काम करने के लिए आज से पहले आपने वो खारा शरबत पिया नहीं होगा, जो चार पांच ग्लास गटक गईं| और अभी तो होली के साथ साथ आपके खाने पीने की शुरुआत हुई है| जो आपने सोचा भी नहीं होगा वो सब...”

जेठानी उसकी बात काट के बोलीं

"अरे तूने पिलाया भी तो है बेचारी अपनी छोटी ननद को... ले गटक मर्दों की आलमारी से निकाल के हम लाये हैं|

फिर तो... थोड़ी देर में बोतल खाली हो गई|

ये मुझे बाद में अहसास हुआ कि आधे से ज्यादा बोतल उन दोनों ने मिल के मुझे पिलाया और बाकी उन दोनों ने| लग रहा था कोई तेज...तेजाब ऐसा गले से जा रहा हो, भभक भी तेज थी, लेकिन उन दोनों ने मेरी नाक बंद की और उसका असर भी पांच मिनट के अंदर होने लगा|

मैं इतनी चुदासी हो रही थी कि कोई भी आके मुझे चोद देता तो मैं मना नहीं करती|

ननद अंदर चली गईं थी|

थोड़ी देर में होली के हुलियारों की भीड़ एकदम पास में आ गई|

वो जोर जोर से कबीरा, गालियाँ और फाग गा रहे थे|

जेठानी ने मुझे उकसाया और हम दोनों ने जरा सी खिड़की खोल दी, फिर तो तूफान आ गया| गालियों का, रंग का सैलाब फूट पड़ा|

नशे में मारी मैं, मैंने भी एक बाल्टी रंग उठा के सीधे फेंका| ज्यादातर मेरे गाँव के रिश्ते से देवर लगते थे, पर फागुन में कहते हैं ना कि बुढवा भी देवर लगते हैं, इसलिए होली के दिन तो बस एक रिश्ता होता है...लंड और चूत का| रंग पड़ते हीं वो बोल उठे...

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“हे भौजी, खोला केवाड़ी, उठावा साड़ी, तोहरी बुरिया में हम चलाईब गाड़ी|”

“अरे ये भी बुर में जायेंगे...लौड़े का धक्का खायेंगे|” दूसरा बोला|

मैं मस्त हो उठी|

जेठानी ने मुझे एक आइडिया दिया| मैंने खिड़की खोल के उन्हें अपना आंचल लहरा के, झटका के, रसीले जोबन का दरसन करा के, मैंने नेवता दिया|

सब झूम झूम के गा रहे थे,






अरे नक बेसर कागा, ले भागा, सैंया अभागा ना जागा| अरे हमरी भौजी का|

उड़ उड़ कागा, बिंदिया पे बैठा, मथवा का सब रस ले भागा,

उड़ उड़ कागा, नथिया पे बैठा, होंठवा का सब रस ले भागा, अरे हमरी भौजी का|
उड़ उड़ कागा, चोलिया पे बैठा, जुबना का सब रस ले भागा|

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उड़ उड़ कागा, करधन पे बैठा, कमर का सब रस ले भागा, अरे हमरी भौजी का|

उड़ उड़ कागा, साया पे बैठा, चूत का सब रस ले भागा|



एक जेठानी से बोला,


"अरे नईकी भौजी को बाहर भेजा ना, होली खेले के...वरना हम सब अंदर घुस के..."

जेठानी ने घबड़ा के कहा,

"अरे भेजती हूँ, अंदर मत आना|”


मैं भी बोली,


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“अरे आती हूँ, देखती हूँ, कितनी लंबी मोटी तुम लोगों की पिचकारी है और कितना रंग है उसमें या सब कुछ अपनी बहनों की बाल्टी में खाली कर के आये हो|”

अब तो वो और बेचैन हो गये|

जेठानी ने खिड़की उठंगा दिया|




उधर से मेरी छोटी ननद आ गई| अब हमलोगों का प्लान कामयाब हो गया|

हम दोनों ने पकड़ के उसकी साड़ी, चोली सब उतार दी और मेरी साड़ी चोली उसे पहना दी|


(ब्रा ना तो उसने पहनी थी और ना मैंने, वो सुबह की होली में उतर गई थी|)

उसके कपड़े मैंने पहन लिए और दरवाजा थोड़ा सा खोल के, धक्के दे के उसे हुलियारों के हवाले कर दिया|


सुबह से रंग, पेंट, वार्निश इतना पुत चुका था कि चेहरा तो पहचाना जा नहीं रहा था|

हाँ साड़ी और आँचल की झलक और चोली का दरसन मैंने उन सबको इसलिए करा दिया था कि जरा भी शक ना रहे|



बेचारी ननद...पल भर में हीं वो रंग से साराबोर हो गई| उसकी साड़ी ब्लाउज सब देह से चिपके, जोबन का मस्त किशोर उभार साफ साफ झलक रहा था, यहाँ तक की खड़े निप्पल भी|

नीचे भी पतली साड़ी जाँघों से चिपकी, गोरी गुदाज साफ साफ दिख रही थी|

फिर तो किसी ने चोली के अंदर हाथ डाल के जोबन पे रंग लगाना, मसलना शुरू किया तो किसी ने जांघ के बीच, जेठानी ने ये नजारा देख के जोर से बोला,

"ले लो बिन्नो, आज होली का मजा अपने भाइयों के साथ|”

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मैं जेठानी के साथ बैठी देख रही थी अपनी छोटी ननद की हालत जो... लेकिन मेरा मन कर रहा था कि काश मैं हीं चली जाती उसकी जगह|



इतने सारे मरद कम से कम..., सुबह से इतनी चुदवासी लग रही थी...सोचा था गाँव में बहुत खुल के होली होती है और नई बहु को तो सारे मर्द कस कस के रगड़ते हैं, लेकिन यहाँ तो एक भी लंड...



इस समय कोई भी मिल जाता तो चुदवाने को कहे मैं हीं पटक के उसे चोद देती|

दारू के चक्कर में जो थोड़ी बहुत झिझक थी वो भी खतम हो गई थी
 

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amazing story dear...


Thanks so much ....your presence inspires
 
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नयकी भौजी पे चढ़ गया /नयकी भौजी चढ़ गयीं अपने,…

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और साथ में मेरी बड़ी ननद|

वो हँस के मुझसे बोलीं,

“हे, ये तेरा छोटा देवर है| जरा शर्मीला है लेकिन कस के रंग लगाना..."


\\फिर क्या था|


आगे


“अरे शर्म क्या, मैं इसका सब कुछ छुड़ा दूंगी, बस देखते रहिये|”

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और मैंने उसे कस के पकड़ लिया| वो बेचारा कूं कूं करता रहा, लेकिन मेरी ननद और जेठानी इतने जोर-जोर से मुझे ललकार रही थीं कि मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था| उसके चेहरे पे मैंने कस के रंग लगाया, मुलायम गाल रगड़े|



“हे भाभी, रंग देवर के साथ खेल रही हैं या उसके कपड़ों के साथ, अरे देवर भाभी की होली है कस के...”


जेठानी ने चढ़ाया,

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“अरे फाड़ दे कपड़े इसके, पहले कपड़े फाड़, फिर इसकी गांड़...”

फिर क्या था, मैंने पहले तो कुरता खींच के फाड़ दिया|


जेठानी ने उसके दोनों हाथ पकड़े तो मैंने पजामे का नाड़ा भी खोल दिया, अब तो वो सिर्फ चड्डी में|

ननद ने भी उसके साथ मिल के मेरी साड़ी खींच दी और ब्लाउज भी फाड़ दिया|




अब एकदम फ्री फॉर ऑल हो गया था| चड्डी उसकी तनी हुई थी| एक झटके में मैंने वो भी नीचे खींच दिया और उसका ६ इंच का तन्नाया लंड बाहर|

शर्मा के उसने उसे छिपाने की कोशिश की लेकिन तब तक उसे गिरा के मैं चढ़ चुकी थी और दोनों हाथों में कालिख लगा के उसके गोरे लंड को कस-कस के मुठिया रही थी|

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तब तक मेरी ननद ने मेरी भी वही हालत कर दी और कहा,

“भाभी अगर हिम्मत है तो इसके लंड को अंदर ले के होली खेलिए..”


मैं तो चुदवासी थी, थोड़ी देर चूत मैंने उसके लंड के ऊपर रगड़ी और एक झटके में अंदर...





“साल्ले ये ले मेरी चूचि, रगड़, पकड़ और कस के चोद, अगर अपनी माँ का बच्चा है| दिखा दे कि मर्द है| ले ले चोद और अगर किसी रंडी छिनाल की औलाद है तो...”


मैंने बोला और हचक हचक के चोदना शुरू कर दिया| इतनी देर से मेरी प्यासी चूत को लंड मिला था|

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वो कुछ बोलना चाहता था लेकिन मेरी जेठानी ने उसका मुँह रंग लगाने के साथ बंद कर रखा था|

थोड़ी देर में अपने आप वो भी चूतड़ उछालने लगा और फिर मैंने भी अपनी चूत सिकोड़ के, चूचियाँ उसके सीने पे रगड़ रगड़ के चोदना शुरू कर दिया| मेरे बदन का सब रंग उसके देह में लग रहा था|



ननद मेरी चूचियों में रंग लगाती और वो मैं उसके सीने पे पोत देती|

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थोड़ी देर तक तो वो नीचे रहा लेकिन फिर मुझे नीचे कर खुद ऊपर चढ़ के चोदने लगा|


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नशे में चूर मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था, बस मुझे मजा बहुत आ रहा था| कल रात से हीं जो मैं झड़ नहीं पाई थी, बहुत चुदवासी हो रही थी|


वो तो चोद हीं रहा था, साथ में ननद भी कभी मेरी निप्पल पे, कभी क्लिट पे रंग लगाने के बहाने फ्लिक कर देतीं|




तभी मैंने देखा नंदोई जी...उन्होंने उंगली के इशारे से मुझे चुप रहने को कहा और कपड़े उतार के अपना खूब मोटा कड़ा लंड... मैं समझ गई और मेरे पैर जो उसकी पीठ पे थे.. पूरी ताकत से मैंने कैंची की तरह कस के बाँध लिए...

वो बेचारा तिलमिलाता रहा

लेकिन जब तक वो कुछ समझे, उसकी गांड़ चियार के उन्होंने मोटा, खूब लाल सुपाड़ा उसके गांड़ के छेद पर लगा दिया और कमर पकड़ के जो करारा धक्का मारा... एक बार में हीं पूरा सुपाड़ा अंदर पैवस्त हो गया|

बेचारा चीख भी नहीं पाया क्योंकि उसके मुँह में मैंने जानबूझ के अपनी मोटी चूचि पेल रखी थी|

“हाँ नंदोई जी मार लो साल्ले की गांड़, खूब कस के पेल दो पूरा लंड अंदर, भले हीं फट जाए साल्ले की| मोची से सिलवा लेगा (मैं सोच रही थी मेरा देवर है तो, नंदोई जी का तो साला हीं हुआ|) छोड़ना मत|”


साथ में मैं कस के उसकी पीठ पकड़े हुए थी|

तिल तिल कर उनका पूरा लंड समां गया| एक बार जब लंड अंदर घुस गया तो फिर तो वो लाख कसमसाता रहा, छटपटाता रहा, वो सटासट सटासट, गपागप उसकी गांड़ मारते रहे|

एक बात और जितनी जोर से उसकी गांड़ मारी जा रही थी उतना हीं उसके लंड की सख्ती और चुदाई का जोश बढ़ गया था| हम दोनों के बीच वो अच्छी तरह सैंडविच बन गया था| लंड उसका भले हीं मेरे 'उनके' या नंदोई की तरह लंबा, मोटा ना हो पर देर तक चोदने और ताकत में कम नहीं था| जब लंड उसकी गांड़ में घुसता तो उसी तेजी से वो मेरी चूत में पेलता और जब वो बाहर निकालते तो साथ में वो भी...

थोड़ी देर में मेरी देह कांपने लगी| मैं झड़ने के कगार पे थी और वो भी| जिस तरह उसका लंड मेरी चूत में अंदर बाहर हो रहा था...


“ओह्ह ओह्ह हाँ हाआआआं बस ओह्ह...झड़ऽऽऽ रही हूँउउउं...”


कस-कस के मैं चूतड़ उचका रही थी और उसकी भी आँखे बंद हुई जा रही थी


तब तक ननद ने एक बाल्टी पानी हम दोनों के चेहरे पे कस के फेंका और हम दोनों के चेहरे का रंग भी कुछ धुल गया और नशा भी हल्का हो गया|
 

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ननद और नंदोई



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थोड़ी देर में मेरी देह कांपने लगी| मैं झड़ने के कगार पे थी और वो भी| जिस तरह उसका लंड मेरी चूत में अंदर बाहर हो रहा था...

“ओह्ह ओह्ह हाँ हाआआआं बस ओह्ह...झड़ऽऽऽ रही हूँउउउं...”


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कस-कस के मैं चूतड़ उचका रही थी और उसकी भी आँखे बंद हुई जा रही थी




तब तक ननद ने एक बाल्टी पानी हम दोनों के चेहरे पे कस के फेंका

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और हम दोनों के चेहरे का रंग भी कुछ धुल गया और नशा भी हल्का हो गया|


“अरे ये ये...तो मेरा भाई है...”


मैंने पहचाना लेकिन तब तक हम दोनों झड़ रहे थे और मैं चाह के भी उसको हटा नहीं पा रही थी|

सच पूछिए तो मैं हटाना भी नहीं चाह रही थी, मेरी रात भर की प्यासी चूत में वीर्य की बारिश हो रही थी|


और ऊपर से नंदोई अभी भी कस के उसकी गांड़ मार रहे थे| हम लोगों के झड़ने के थोड़ी देर बाद जब झड़ कर हटे तब वो मुझसे अलग हो पाया|

“क्यों भाभी, मेरे भैया से तो रोज चुदवाती थीं...कैसा लगा अपने भैया से चुदवाना? चलिए कोई बात नहीं...बुरा ना मानो होली है...अब जरा मेरे सैंया से भी तो चुदवा के देख लीजिए|”

ननद ने छेड़ा|


“चल देख लूंगी उनको भी...” रस भरी निगाहों से नंदोई को देखते हुए मैं बोली|

तब तक मेरी छोटी ननद भी आ गई थी|

वो और जेठानी जी उसे लेके अंदर चली गईं और मैं, बड़ी ननद और नंदोई जी बचे|



कसरती देह, लंबा तगड़ा शरीर और सबसे बढ़ के लंबा और खूब मोटा लंड, जो अभी भी हल्का हल्का तन्नाया था|

तब तक एक और आदमी आया...ननद ने बताया कि ये उनके जीजा लगते हैं इसलिए वो भी मेरे नंदोई लगेंगे| हँस के मैंने चिढ़ाया,

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“अरे ननद एक और नंदोई दो...बड़ी नाइंसाफी है|”


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“अरे भाभी, आप हैं ना मुकाबला करने के लिए मेरी ओर से...” वो बोली|

“आज तो होली हमलोग अपनी सलहज से खेलने आए हैं|”


दोनों एक साथ बोले|
 

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नंदोई दो सलहज एक

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तब तक मेरी छोटी ननद भी आ गई थी|

वो और जेठानी जी उसे लेके अंदर चली गईं और मैं, बड़ी ननद और नंदोई जी बचे|

कसरती देह, लंबा तगड़ा शरीर और सबसे बढ़ के लंबा और खूब मोटा लंड, जो अभी भी हल्का हल्का तन्नाया था|





तब तक एक और आदमी आया...ननद ने बताया कि ये उनके जीजा लगते हैं इसलिए वो भी मेरे नंदोई लगेंगे| हँस के मैंने चिढ़ाया,


“अरे ननद एक और नंदोई दो...बड़ी नाइंसाफी है|”

“अरे भाभी, आप हैं ना मुकाबला करने के लिए मेरी ओर से...” वो बोली|


“आज तो होली हमलोग अपनी सलहज से खेलने आए हैं|” दोनों एक साथ बोले|

मैंने रंग से जवाब दिया, पास रखी रंग की बाल्टी उठा के सीधे दोनों पर एक साथ और दोनों नंदोई रंग से सराबोर हो गये|


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दूसरी बाल्टी का निशाना मैंने सीधे उनके खूंटे पे...पर तब तक वो दोनों भी संभल गए थे| एक ने मुझे पीछे से पकड़ा और दूसरे ने पहले गालों पे, फिर मेरी लपेटी, देह से चिपकी साड़ी के ऊपर से हीं मेरे जोबन पे रंग लगाना शुरू कर दिया|

“अरे एक साथ दोनों डालियेगा क्या?” मैंने हँस के पूछा|

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“मन मन भावे...अरे भाभी मन की बात जुबान पे आ गई| साफ साफ क्यों नहीं कहती कि एक साथ आगे पीछे दोनों ओर का मजा लेना चाहती हैं|”

ननद ने हँस के चिढ़ाया|




“हम दोनों तैयार हैं|” दोनों साथ साथ बोले|

“आगे वाली तेरी, पीछे वाली मेरी..”

नंदोई ने टुकड़ा लगाया|

तब तक गिरे हुए रंग पे फिसल के मेरे छोटे (जो बाद में आये थे और जिसे ननद ने जीजा कहा था) नंदोई गिरे और उन्हें पकड़े पकड़े उनके ऊपर मैं गिरी| रंग से सराबोर|

नंदोई ने मेरी साड़ी खींच के मुझे वस्त्रहीन कर दिया| लेकिन अबकी ननद ने मेरा साथ दिया| मेरे नीचे दबे छोटे नंदोई का पजामा खींच के उनको भी मेरी हालत में ला दिया| (कुरता बनियान तो दोनों का हमलोग पहले हीं फाड़ के टॉपलेस कर चुके थे और नंदोई ने मेरी ननद को भी... तो अब हम चारो एक हालत में थे|)

क्या लंड था, खूब मोटा, एक बालिश्त सा लंबा और एकदम खड़ा|


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ननद ने अपने हाथों में लगा रंग सीधे उनके लंड पे कस-कस के पोत दिया|

मैं क्यों पीछे रहती, मेरे मुँह के पास नंदोई जी का मोटा लंड था|

मैंने दोनों हाथों से कस-कस के लाल पक्का रंग पोत दिया| खड़ा तो वो पहले से हीं था, मेरा हाथ लग के वो लोहे का रॉड हो गया, लाल रंग का| मेरे नीचे दबे नंदोई मेरी चूत और चूचि दोनों पे रंग लगा रहे थे|

“अरे चूत के बाहर तो बहुत लगा चुके, जरा अंदर भी तो लगा दो मेरी प्यारी भाभी जान को|” ननद ने ललकारा|


“अरे चूत क्या, मैं तो सीधे बच्चेदानी तक रंग दूंगा, याद रहेगी ये पहली होली गाँव की|” वो बोले|


जब तक मैं संभलूं संभलूं, उन्होंने मेरी पतली कमर को पकड़ के उठा लिया और मेरी चूत सीधे उनके सुपाड़े से रगड़ खा रही थी|

ननद ने झुक के पुत्तियों को फैलाया और नंदोई ने ऊपर से कन्धों को पकड़ के कस के धक्का दिया और एक बार में हीं गचाक से आधे से ज्यादा लंड अंदर|
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मैंने भी कमर का जोर से लगाया और जब मेरी कसी गुलाबी चूत में वो मोटा हलब्बी लंड घुसा तो होली का असली मजा आ गया|


मेरे हाथ का रंग तो खत्म हो गया था...जमीन पे गिरे लाल रंग को मैंने हाथ में लिया और कस-कस के पक्के लाल रंग को नंदोई के लंड पे पोत के बोलने लगी,


“अरे नंदोई राजा, ये रंग इतना पक्का है जब अपने मायके जाके मेरी इस छिनाल ननद की दर छिनाल हरामजादी, गदहा चोदी ननदों से, अपनी रंडी बहनों से चुसवाओगे ना हफ्ते भर तब भी ये लाल का लाल रहेगा| चाहे अपनी बहनों के बुर में डालना या अम्मा के भोंसड़े में|”






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komaalrani

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डलवाई लो भौजी होली में



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“अरे नंदोई राजा, ये रंग इतना पक्का है जब अपने मायके जाके मेरी इस छिनाल ननद की दर छिनाल हरामजादी, गदहा चोदी ननदों से, अपनी रंडी बहनों से चुसवाओगे ना हफ्ते भर तब भी ये लाल का लाल रहेगा| चाहे अपनी बहनों के बुर में डालना या अम्मा के भोंसड़े में|”


तब तक जमीन पे लेटे मुझे चोद रहे नंदोई ने कस के मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया और अब एकदम उनकी छाती पे लेटी मैं कस के चिपकी हुई थी| मेरी टाँगे उनकी कमर के दोनों ओर फैली, चूतड़ भी कस के फैले हुए|



अचानक पीछे से नंदोई ने मेरी गांड़ के छेद पे सुपाड़ा लगा दिया|

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नीचे से नंदोई ने कस के बाँहों में जकड़ रखा था और ननद भी कस के अपनी उँगलियों से मेरी गांड़ का छेद फैला के उनका सुपाड़ा सेंटर कर दिया|

नंदोई ने कस के जो मेरे चूतड़ पकड़ के पेला तो झटाक से मेरी कसी गांड़ फाड़ता, फैलाता सुपाड़ा अंदर| मैं तिलमिलाती रही, छटपटाती रही लेकिन,



“अरे भाभी आप कह रही थीं ना दोनों ओर से मजा लेने का, तो ले लो ना एक साथ दो दो लंड|”



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ननद ने मुझे छेड़ा|






“अरे तेरी सास ने गदहे से चुदवाया था या घोड़े से जो तुझे ऐसे लंड वाला मर्द मिला| ओह लगता है, अरे एक मिनट रुक न नंदोई राजा, अरे तेरी सलहज की कसी गांड़ है, तेरी अम्मा की ४ बच्चों जनी भोंसड़ा नहीं जो इस तरह पेल रहे हो...रुक रुक फट गई, ओह|”


मैं दर्द में गालियाँ दे रही थी|

पर रुकने वाला कौन था?

एक चूचि मेरी गांड़ मारते नंदोई ने पकड़ी और दूसरी चूत चोदते छोटे नंदोई ने, इतने कस-कस के मींजना शुरू किया कि मैं गांड़ का दर्द भूल गई|

थोड़ी हीं देर में जब लंड गांड़ में पूरी तरह घुस चुका था तो उसे अंदर का नेचुरल लुब्रिकेंट भी मिल गया, फिर तो गपागप गपागप...मेरी चूत और गांड़ दोनों हीं लंड लील रही थी|

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कभी एक निकालता दूसरा डालता और दूसरा निकालता तो पहला डालता, और कभी दोनों एक साथ निकाल के एक साथ सुपाड़े से पूरे जड़ तक एक धक्के में पेल देते|


एक बार में जड़ तक लंड गांड़ में उतर जाता, गांड़ भी लंड को कस के दबोच रही थी|

खूब घर्षण भी हो रहा था, कोई चिकनाई भी नहीं थी सिवाय गांड़ के अंदर के मसाले के| मैं सिसक रही थी, तड़प रही थी, मजे ले रही थी| साथ में मेरी साल्ली छिनाल ननद भी मौके का फायदा उठा के मेरी खड़ी मस्त क्लिट को फड़का रही थी, नोच रही थी|



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खूब हचक के गांड़ मारने के बाद नंदोई एक पल के लिए रुके|



मूसल अभी भी आधे से ज्यादा अंदर हीं था|

उन्होंने लंड के बेस को पकड़ के कस-कस के उसे मथानी की तरह घुमाना शुरू कर दिया|


थोड़ी हीं देर में मेरे पेट में हलचल सी शुरू हो गई| (रात में खूब कस के सास ननद ने खिलाया था और सुबह से 'फ्रेश' भी नहीं हुई थी|) उमड़ घुमड़...और लंड भी अब फचाक फचाक की आवाज के साथ गांड़ के अंदर बाहर...तीन तरफा हमले से मैं दो तीन बार झड़ गई, उसके बाद मेरे नीचे लेटे नंदोई मेरी बुर में झड़े|




उनका लंड निकलते हीं मेरी ननद की उंगलियाँ मेरी चूत में...

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और उनके सफेद मक्खन को ले के सीधे मेरे मुँह में, चेहरे पे अच्छी तरह फेसियल कर दिया| लेकिन नंदोई अभी भी कस-कस के गांड़ मार रहे थे...बल्कि साथ साथ मथ रहे थे| (एक बार पहले भी वो अभी हीं मेरे भाई की गांड़ में झड़ चुके थे|)

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और जब उन्होंने झड़ना शुरू किया तो पलट के मुझे पीठ के बल लिटा के लंड, गांड़ से निकाल के 'सीधे' मेरे मुँह पे|


मैंने जबरन मुँह भींच लिया लेकिन दोनों नंदोइयों ने एक साथ कस के मेरा गाल जो दबाया तो मुँह खुल गया|


फिर तो उन्होंने सीधे मुँह में लंड ठेल दिया|

मुझे बड़ा ऐसा...ऐसा लग रहा था लेकिन उन्होंने कस के मेरा सिर पकड़ रखा था और दूसरे नंदोई ने मुँह भींच रखा था| धीरे धीरे कर के पूरा लंड घुसेड़ दिया मेरे मुँह में...उनके लंड में...लिथड़ा...लिथड़ा..




वो बोले,
“अरे सलहज रानी गांड़ में तो गपाक गपाक ले रही थी तो मुँह में लेने में क्यों झिझक रही हो?”


“भाभी एक नंदोई ने तो जो बुर में सफेद मक्खन डाला वो तो आपने मजे ले के गटक लिया तो इस मक्खन में क्या खराबी है? अरे एक बार स्वाद लग गया न तो फिर ढूंढती फिरियेगा, फिर आपके हीं तो गांड़ का माल है| जरा चख के तो देखिए|”

ननद ने छेड़ा और फिर नंदोइयों को ललकारा,

“अरे आज होली के दिन सलहज को नया स्वाद लगा देना, छोड़ना मत चाहे जितना ये चूतड़ पटके...”

मैं आँख बंद कर के चाट चूट रही थी|


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कोई रास्ता भी नहीं था| लेकिन अब धीरे धीरे मेरे मुँह को भी और एक...| नए ढंग की वासना मेरे ऊपर सवार हो रही थी| लेकिन मेरी ननद को मेरी बंद आँख भी नहीं कबूल थी|

उसने कस के मेरे निप्पल पिंच किये और साथ में नंदोई ने बाल खींचे,

“अरे बोल रही थी ना कि मेरे लंड को लाल रंग का कर दिया कि मेरी बहनें चूसेंगी तब भी इसका रंग लाल हीं रहेगा ना, तो देख छिनाल, तेरी गांड़ से निकल के किस रंग का हो गया है?”

वास्तव में लाल रंग तो कहीं दिख हीं नहीं रहा था| वो पूरी तरह मेरी गांड़ के रस से लिपटा...

“चल जब तक चाट चूट के इसे साफ नहीं कर देती, फिर से लाल रंग का ये तेरे मुँह से नहीं निकलेगा| चल चाट चूस कस-कस के..ले ले गांड़ का मजा|”



वो कस के ठेलते बोले|
 
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नए मजे होली के

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चल जब तक चाट चूट के इसे साफ नहीं कर देती, फिर से लाल रंग का ये तेरे मुँह से नहीं निकलेगा| चल चाट चूस कस-कस के..ले ले गांड़ का मजा|”

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वो कस के ठेलते बोले|

तब तक छोटे नंदोई का लंड भी फिर से खड़ा हो गया था| मेरी ननद ने कुछ बोलना चाहा तो उन्होंने उसे पकड़ के निहुरा दिया और बोले,

“चल अब तू भी गांड़ मरा, बहुत बोल रही है ना..”

और मुझसे कहा कि मैं उसकी गांड़ फैलाने में मदद करूँ|



मुझे तो मौका मिल गया| पूरी ताकत से जो मैंने उसकी चियारी तो...क्या होल था? गांड़ का छेद पूरा खुला खुला| तब तक नंदोई ने मेरे मुँह से लंड निकाल लिया था|

उनका इशारा पाके मैंने मुँह में थूक का गोला बना के ननद की खुली गांड़ में कस के थूक के बोला,


“क्यों मुझे बहुत बोल रही थी ना छिनाल, ले अब अपनी गांड़ में लंड घोंट| नंदोई जी एक बार में हीं पूरा पेल देना इसकी गांड़ में|”



उन्होंने वही किया|

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हचाक हचाक...और थोड़ी देर में उसकी गांड़ से भी गांड़ का...




अब मुझे कोई...घिन नहीं लग रही थी| बल्कि मैं मजे से देख रही थी| लेकिन एक बात मुझे समझ में नहीं आ रही थी कि ननद बजाय चीखने के अभी भी क्यों मुस्कुरा रही थीं|

वो मुझे थोड़ी देर में हीं समझ में आ गया, जब उन्होंने उनकी गांड़ से अपना...लिथड़ा लंड निकाल के सीधे...जब तक मैं समझूं संभलूं मेरे मुँह में घुसेड़ दिया|

मैं मुँह भले बना रही थी...लेकिन अब थोड़ा बहुत मुझे भी...और मैं ये समझ भी गई थी कि बिना चाटे चूटे छुटकारा भी नहीं मिलने वाला| ओं ओं मैं करती रही लेकिन उन्होंने पूरे जड़ तक लंड पेल दिया|


“अरे भाभी अपनी गांड़ के मसाले का बहुत मजा ले लिया, अब जरा मेरी गांड़ के...का भी तो मजा चखो, बोलो कौन ज्यादा मसालेदार है? जरा प्यार से चख के बताना|”



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ननद ने छेड़ा|

तब तक नंदोई ने बोला,


“अरे ज्यादा मत बोल, अभी तेरी गांड़ को मैं मजा चखाता हूँ| सलहज जी जरा फैलाना तो कस के अपनी ननद की गांड़|”

मैं ये मौका क्यों चूकती|


वैसे मेरी ननद के चूतड़ थे भी बड़े मस्त, गोल गोल गुदाज और बड़े बड़े|

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मैंने दोनों हाथों से पूरे ताकत से उसे फैलाया| पूरा छेद और उसके का माल...सब दिख रहा था|

नंदोई ने दो उंगली एक साथ घुसेड़ी कि ननद की चीख निकल गई| लेकिन वो इतनी आसानी से थोड़ी हीं रुकने वाले थे|

उसके बाद तीन उंगली, सिर्फ अंगूठा और छोटी उंगली बाहर थी और तीनों उंगली सटासट सटासट...

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अंदर बाहर,

मैंने चूत की फिस्टिंग की बात सुनी थी लेकिन इस तरह गांड़ में तीन उंगली एक साथ...

मैं सोच भी नहीं सकती थी| एक पल के लिए तो गांड़ से निकले मेरे मुँह में जड़ तक घुसे लंड को भी भूल कर मैं देखती रही| वो कराह रही थी, उनके आँखों से दर्द साफ साफ झलक रहा था|

पल भर के लिए जब मेरे मुँह से लंड बाहर निकला तो मुझसे रहा नहीं गया,


“अरे चूत मरानो, मेरे बहन चोद सैंया की रखैल, पंच भतारी, बहुत बोल रही थी ना मेरी गांड़ के बारे में...क्या हाल है तेरी गांड़ का? अगर अभी मजा ना आ रहा हो तो तेरे भैया को बुला लूं| जरा कुहनी तक हाथ डाल के इसकी गांड़ का मजा दो इसे| इस कुत्ता चोद को इससे कम में मजा हीं नहीं आता|”

मैं बोले जा रही थी और उंगलियाँ क्या लगभग पूरा हाथ उनकी गांड़ में...तब तक वो लसलसा हाथ गांड़ से निकाल के...उन्होंने एक झटके में पूरा मेरे मुँह में डाल दिया और बोले,

“अरे बहुत बोलती है, ले चूस गांड़ का रस...अरे कुहनी तक तो तुम दोनों की गांड़ और भोंसड़े में डालूँगा तब आयेगा ना होली का मजा| लेकिन इसके पहले मजा दूं जरा चूस चाट के मेरा हाथ साफ तो कर सटासट|”

मैं गों गों करती रही लेकिन पूरा हाथ अंदर डाल के उन्होंने चटवा के हीं दम लिया|

“अरे चटनी चटाने से मेरी प्यारी भाभी की भूख थोड़े हीं मिटेगी| ले भाभी सीधे गांड़ से हीं|”

वो मेरे ऊपर आ गयी और बड़ी अदा से मुझे अपनी गांड़ का छेद फैला के दिखाते हुए बोलीं|


“अरे तू क्या चटाएगी...? सुबह तेरी छोटी बहन को मैं सीधे अपनी बुर से होली का...गरमा गरम खारा शरबत पिला चुकी हूँ| सारी की सारी सुनहली धार एक एक बूंद घोंट गई तेरी बहना|”

खीज के मैंने भी सुना दिया|

“अरे तो जो भाभी रानी आपको सुबह से हमलोग शरबत पिला रहे थे उसमें आप क्या समझती हैं...क्या था? आपकी सास से लेके...ननद तक, लेकिन मैंने तय कर लिया था कि मैं तो अपनी प्यारी भाभी को होली के मौके पे, सीधे बुर और गांड़ से हीं...तो लीजिए ना|”


और वो मेरे मुँह के ठीक उपर अपनी गांड़ का छेद कर के बैठ गईं|

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लेकिन मैंने तय कर लिया था कि लाख कुछ हो जाय अबकी मैं मुँह नहीं खोलूंगी| पहले तो उसने मेरे होंठों पे अपनी गांड़ का छेद रगड़ा, फिर कहती रही कि सिर्फ जरा सा, बस होली के नाम के लिए, लेकिन मैं टस से मस ना हुई|

फिर तो उस छिनाल ने कस के मेरी नाक दबा दी| मेरे दोनों हाथ दोनों नंदोइयों के कब्जे में थे और मैं हिल डुल नहीं पा रही थी| यहाँ तक की मेरी नथ भी चुभने लगी|

थोड़ी देर में मेरी साँस फूलने लगी, चेहरा लाल होने लगा, आँखें बाहर की ओर|

“क्यों आ रहा है मजा, मत खोल मुँह...”

वो चिढ़ा के बोली और सच में इतना कस के उसने अपनी गांड़ से मेरे होंठों को दबा रखा था कि मैं चाह के भी मुँह नहीं खोल पा रही थी|

“ले भाभी देती हूँ तुझे एक मौका, तू भी क्या याद करेगी...किसी ननद से पाला पड़ा था|”

और उसने चूतड़ ऊपर उठा के अपनी गांड़ का छेद दोनों हाथों से पूरा फैला दिया|

“ऊईई उईईईई...|”

मैं कस के चीखी| नंदोई ने दोनों निप्पल्स को कस के पिंच करते हुए मोड़ दिया था| मेरे खुले होंठों पे अपनी फैली गांड़ का छेद रख के फिर वो कस के बैठ गई और एक बार फिर से मेरी नाक उसकी उँगलियों के बीच| अब गांड़ का छेद सीधे मेरे मुँह में| वो हँस के बोली,

“भाभी बस अब अगर तुम्हारी जीभ रुकी तो...अरे खुल के इस नए स्वाद का मजा लो|

अरे पहले आपकी चूत को जब तक लंड का मजा नहीं मिला था, चुदाई के नाम से बिदकती थीं, लेकिन जब सुहागरात को मेरे भैया ने हचक हचक के चोद चोद के चूत फाड़ दी तो एक मिनट इस साली चूत को लंड के बिना नहीं रहा जाता|

पहले गांड़ मरवाने के नाम से भाभी तेरी गांड़ फटती थी, अब तेरी गांड़ में हरदम चींटी काटती रहती है, अब गांड़ को ऐसा लंड का स्वाद लगा कि...तो जैसे वो स्वाद भैया ने लगाए तो ये स्वाद आज उनकी बहना लगा रही है| सच भाभी ससुराल की ये पहली होली और ये स्वाद आप कभी नहीं भूलेंगी|”







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तब तक मेरी दोनों चूचियाँ, मेरे नंदोइयों के कब्जे में थी|

वो रंग लगा रहे थे, चूचि की रगड़ाई मसलाई भी कर रहे थे| दोनों चूचियों के बाद दोनों छेद पे भी...नंदोई ने तो गांड़ का मजा पहले हीं ले लिया था तो वो अब बुर में और छोटे नंदोई गांड़ में...मैं फिर सैंडविच बन गई थी|

लेकिन सबसे ज्यादा तो मेरी ननद मेरे मुँह में...झड़ने के साथ दोनों ने फिर मेरा फेसियल किया मेरी चूचियों पे...


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और ननद ने पता नहीं क्या लगाया था कि अब 'जो भी' मेरी देह से लगता था...वो बस चिपक जाता था| घंटे भर मेरी दुरगत कर के हीं उन तीनों ने छोड़ा|

बाहर खूब होली की गालियाँ, जोगीड़ा, कबीर...| जमीन पे पड़ी साड़ी चोली किसी तरह मैंने लपेटी और अंदर गई कि जरा देखूं मेरा भाई कहाँ है|
 
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