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दिन बस चढ़ना शुरू ही हुआ था। लेकिन आज काम भी काफी था।
थोड़ी देर में आज भी होली का हंगामा शुरू होने वाला था। घण्टे भर में मैंने चाय, नाश्ते का काम पूरा किया और खाने की तैयारी कर ली।
मम्मी और वो अभी भी सो रहे थे, उसी तरह लपटे
आज होली बजाय आँगन के, पीछे बगीचे में होनी थी। आँगन से सटा, आँगन का दरवाजा उसी बगीचे में खुलता था।
खूब घने 40-50 पेड़ रहे होंगे और पीछे की ओर दीवाल भी थी। बाहर से कुछ नहीं दिखता था। उसी में एक चहबच्चा था, कच्चा गड्ढा, ज्यादा गहरा नहीीं, लेकिन इनकी कमर से थोड़ा ऊपर और हम लोगों के सीने तक।
बस उसी में पानी भर के, और वहां एक नल भी था, मोटे होज के साथ, पेड़ों की सींचाई के काम आता था, …
तब तक छुटकी और रीतू भाभी आये।
छुटकी अपनी चाय लेकर, बगीचे में चली गयी, होली का इंतज़ाम देखने।
और मैंने रीतू भाभी को खिड़की से दिखाया।
मम्मी और वो कैसे लिपटे चिपटे ।
खूंटा अभी भी उनका , उनकी सास के अंदर जड़ तक धंसा , और हाथ सास के गदराये बड़े रसीले जोबन को दबोचे।
बड़ी मुश्किल से रीतू भाभी ने अपनी हंसी रोकी और उन दोनों लोगों के लिए बेड टी लेकर गयीं ,
लेकिन तब तक वो उठ गए थे और उन्होंने बोला की वो मेरे और रीतू भाभी के साथ किचेन में ही चाय पिएंगे ।
मैं, रीतू भाभी और वो किचेन में चाय पी रहे थे की रीतू भाभी ने
छुटकी के ‘उद्द्घाटन’ की बात छेड़ दी।
और बातों-बातों में उन्होंने ये बात मान ली की, कल जब उन्होंने छुटकी के साथ ट्राई किया था तो एकदम सूखे, सिर्फ थूक लगा के।
फिर तो मैं चढ़ गयी उनके ऊपर अपनी छोटी बहन की ओर से-
“अरे यार क्लास 9 में पढ़ने वाली लड़की है, एकदम कच्ची कली। ठीक से ऊँगली भी नहीं गयी होगी मेरी बहन की चुनमुनिया में , एकदम कच्ची कोरी , कसी ।
अच्छी तरह से वैसलीन लगा के ट्राई करते, दर्द तो हुआ ही होगा, और ऊपर से तुम्हारा मूसल भी, धमधूसर है…”
मैंने बोला।
लेककन रीतू भाभी भी अपनी नन्दोई की ओर से ही बोलीं - “अरे यार जब तक पहली चुदायी में चरपराय नहीं , चीख चिल्लाहट न हो , , गोरे-गोरे गाल पे टप-टप आंसू न टपकें,
तीन दिन तक लौंडिया , टाँगे फैला के न चले तो पहली चुदाई क्या…”
बहुत बहस हुई।
किर ये तय हुआ की आज तिझरिया को, खाने के एक दो घंटे बाद, नंबर लगेगा।
मैंने लाख मना किया लेककन उनकी और रीतू भाभी की जिद की मैं भी वहां रहूं ,
मेरे सामने वो अपनी सबसे छोटी स्साली की सील तोड़ेंगे।
और मुझे मानना पड़ा।
हाूँ बस रीतू भाभी इतना मान गयीीं की उनके सुपाड़े पे,
लेकिन सिर्फ सुपाड़े पे वैसलीन लगेगी और वो भी रीतू भाभी अपने हाथ से लगाएंगी , जिससे ज्यादा न लगे।
रीतू भाभी का मानना था की बस एक बार सुपाड़ा घुस जाय,
फिर तो उनकी छुटकी ननदिया , मेरी सबसे छोटी बहन , ९वें में पढ़ने वाली छुटकी ,...
वो लाख चूतड़ पटके लण्ड तो पूरा घोटना ही होगा साल्ली को।
लेकिन उसके बदले रितु भाभी भी न , एकदम पक्की भौजाई , ....
उन्होंने दो शतें और रख दी,
आगे से नो वैसलीन।
आज रात जब छुटकी हमारे साथ जायेगी ट्रेन में तो बस ज्यादा से ज्यादा थूक,
और जब छुटकी के पिछवाड़े का बाजा बजेगा, उस किशोरी का,
तो बस.... एकदम सूखे।
वो तैयार होने चले गए. घंटे भर में उनकी सालियाँ जो आने वाली थी,
छुटकी की सहेलियां , उसके साथ नौवीं में पढ़ने वाली ,, होली खेलने।
और रीतू भाभी अपनी छोटी ननद की सहायता करने चली गयीं पिछवाड़े बगीचे में, होली की तैयारी करने के लिए।
मम्मी तैयार होकर किचेन में आ गयी थीीं और हम दोनों ने मिल के घण्टे भर में खाने का काम निपटा लिया दस बज गए थे।
और हंसती खिलखिलाती , धड़-धड़ाती दो उठती जवानियाँ , कच्ची कलियाँ , कच्चे टिकोरों वाली किशोरियां आ गयीं अबीर और गुलाल की तरह,रंगो की छरछराती पिचकारी की तरह, छुटकी की सहेलियां ‘उनकी’ सालियाँ
दो-दो किशोरियाँ , कच्ची उमर वाली छुटकी और लीला उनके पीछे पड़ी ।
दोनों के हाथ में रंग और पेंट की काकटेल, छुटकी का हाथ उनके गाल पे डबल कोट काही, बैंगनी, लाल रंग पोतने में लगा था तो लीला और आगे, उसका एक हाथ ‘इनकी’ शार्ट के सीधे अंदर , पिछवाड़े और दूसरा हाथ इनके टी-शर्ट के अंदर ।