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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,990
354
सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे।
जगा दिया तेरी पाज़ेब ने खनक के मुझे।।

कोई बताये के मैं इसका क्या इलाज करूँ,
परेशां करता है ये दिल धड़क धड़क के मुझे।।

ताल्लुकात में कैसे दरार पड़ती है,
दिखा दिया किसी कमज़र्फ ने छलक के मुझे।।

हमें खुद अपने सितारे तलाशने होंगे,
ये एक जुगनू ने समझा दिया चमक के मुझे।।

बहुत सी नज़रें हमारी तरफ हैं महफ़िल में,
इशारा कर दिया उसने ज़रा सरक के मुझे।।

मैं देर रात गए जब भी घर पहुँचता हूँ ,
वो देखती है बहुत छान के फटक के मुझे।।

________राहत इंदौरी
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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वफ़ा को आज़माना चाहिए था, हमारा दिल दुखाना चाहिए था।
आना न आना मेरी मर्ज़ी है, तुमको तो बुलाना चाहिए था।।

हमारी ख्वाहिश एक घर की थी, उसे सारा ज़माना चाहिए था,
मेरी आँखें कहाँ नाम हुई थीं, समुन्दर को बहाना चाहिए था।।

जहाँ पर पंहुचना मैं चाहता हूँ, वहां पे पंहुच जाना चाहिए था,
हमारा ज़ख्म पुराना बहुत है, चरागर भी पुराना चाहिए था।।

मुझसे पहले वो किसी और की थी, मगर कुछ शायराना चाहिए था,
चलो माना ये छोटी बात है, पर तुम्हें सब कुछ बताना चाहिए था।।

तेरा भी शहर में कोई नहीं था, मुझे भी एक ठिकाना चाहिए था,
कि किस को किस तरह से भूलते हैं, तुम्हें मुझको सिखाना चाहिए था।।

ऐसा लगता है लहू में हमको, कलम को भी डुबाना चाहिए था,
अब मेरे साथ रह के तंज़ ना कर, तुझे जाना था जाना चाहिए था।।

क्या बस मैंने ही की है बेवफाई,जो भी सच है बताना चाहिए था,
मेरी बर्बादी पे वो चाहता है, मुझे भी मुस्कुराना चाहिए था।

बस एक तू ही मेरे साथ में है, तुझे भी रूठ जाना चाहिए था,
हमारे पास जो ये फन है मियां, हमें इस से कमाना चाहिए था।।

अब ये ताज किस काम का है, हमें सर को बचाना चाहिए था,
उसी को याद रखा उम्र भर कि, जिसको भूल जाना चाहिए था।।

मुझसे बात भी करनी थी, उसको गले से भी लगाना चाहिए था,

उसने प्यार से बुलाया था, हमें मर के भी आना चाहिए था।।

_________राहत इंदौरी
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अगर टूटे किसी का दिल तो शब भर आँख रोती है,
ये दुनिया है गुलों की जिस्म में काँटे पिरोती है,
हम मिलते हैं अपने गाँव में दुश्मन से भी इठलाकर,

तुम्हारा शहर देखा तो बड़ी तकलीफ होती है।
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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कुछ रिश्ते उम्र भर अगर बेनाम रहे तो अच्छा है,
आँखों आँखों में ही कुछ पैगाम रहे तो अच्छा है,


सुना है मंज़िल मिलते ही उसकी चाहत मर जाती है,
गर ये सच है तो फिर हम नाकाम रहें तो अच्छा है,

जब मेरा हमदम ही मेरे दिल को न पहचान सका,
फिर ऐसी दुनिया में हम गुमनाम रहे तो अच्छा है।
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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आँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जाती,
यादों से कोई रात खा़ली नहीं जाती।


अब उम्र ना मौसम ना रास्ते के वो पत्ते,
इस दिल की मगर ख़ाम ख्याली नहीं जाती।

माँगे तू अगर जान भी तो हँस कर तुझे दे दूँ,
तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती।

मालूम हमें भी हैं बहुत से तेरे क़िस्से,
पर बात तेरी हमसे उछाली नहीं जाती।

हमराह तेरे फूल खिलाती थी जो दिल में,
अब शाम वहीं दर्द से ख़ाली नहीं जाती।

हम जान से जाएंगे तभी बात बनेगी,
तुमसे तो कोई बात निकाली नहीं जाती।
 
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