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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

क्या आपको ग़ज़लें पसंद हैं..???

  • हाॅ, बेहद पसंद हैं।

    Votes: 12 85.7%
  • हाॅ, लेकिन ज़्यादा नहीं।

    Votes: 2 14.3%

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VIKRANT

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अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का।
याद आता है हमें हाय! ज़माना दिल का।।

तुम भी मुँह चूम लो बेसाख़ता प्यार आ जाए,
मैं सुनाऊँ जो कभी दिल से फ़साना दिल का।।

पूरी मेंहदी भी लगानी नहीं आती अब तक,
क्योंकर आया तुझे ग़ैरों से लगाना दिल का।।

इन हसीनों का लड़कपन ही रहे या अल्लाह,
होश आता है तो आता है सताना दिल का।।

मेरी आग़ोश से क्या ही वो तड़प कर निकले,
उनका जाना था इलाही के ये जाना दिल का।।

दे ख़ुदा और जगह सीना-ओ-पहलू के सिवा,
के बुरे वक़्त में होजाए ठिकाना दिल का।।

उंगलियाँ तार-ए-गरीबाँ में उलझ जाती हैं,
सख़्त दुश्वार है हाथों से दबाना दिल का।।

बेदिली का जो कहा हाल तो फ़रमाते हैं,
कर लिया तूने कहीं और ठिकाना दिल का।।

छोड़ कर उसको तेरी बज़्म से क्योंकर जाऊँ,
एक जनाज़े का उठाना है उठाना दिल का।।

निगहा-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऎसी,
न ठिकाना है जिगर का न ठिकाना दिल का।।

बाद मुद्दत के ये ऎ 'दाग़' समझ में आया,

वही दाना है कहा जिसने न माना दिल का।।

_______'दाग़' देहलवी
Greattt bro. Mind blowing poetry. :applause: :applause: :applause:
 
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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कुछ तो ऐ यार इलाज-ए-गम-ए-तन्हाई हो।
बात इतनी भी न बढ़ जाये कि रुसवाई हो।।

जिस ने भी मुझको तमाशा सा बना रखा है,
अब ज़रूरी है वो ही आँख तमाशाई हो।।

डूबने वाले तो आँखों से भी खूब निकले हैं,
डूबने के लिए लाजिम नहीं, गहराई हो।।

मैं तुझे जीत भी तोहफे में नहीं दे सकता,
चाहता ये भी नहीं हूँ तेरी पासपाई हो।।

कोई अन्जान न हो शहर-ए-मोहब्बत का मकीं,
काश हर दिल की हर इक दिल शहनसाई हो।।

यूँ गुज़र जाता है 'मोहसिन' तेरे कूचे से वो,

तेरा वाकिफ़ न हो जैसे कोई सौदाई हो।।

________'मोहसिन' नक़्वी
 
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"लंड फकीर"
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The_InnoCent Arj kiya hai ..

Sochte hai Har Baar ....Ab Ishq na karege Kabhi ....
Ab Ishq na karege Kabhi ....Kabhi Kisi ki ankhon me Dil Lagaakar Dubege Nahi ...
Doobna to door ...ham julfon me kisi ke uljege nahi ...
Abhi itna socha hi thaa ...ki ek nazar un par padi ...ek mast hawaa ka jhonka aaya ...ankhon se ek paigaam laya ...chal ishq karte hai ...ek bar phir se karte hai :D
 
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Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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Sochte hai Har Baar ....Ab Ishq na karege Kabhi ....
Ab Ishq na karege Kabhi ....Kabhi Kisi ki ankhon me Dil Lagaakar Dubege Nahi ...
Doobna to door ...ham julfon me kisi ke uljege nahi ...
Abhi itna socha hi thaa ...ki ek nazar un par padi ...ek mast hawaa ka jhonka aaya ...ankhon se ek paigaam laya ...chal ishq karte hai ...ek bar phir se karte hai :D
इसलिए.. इसलिए...
ये भटकाव अच्छा नहीं इश्क बुरी बला होती है लग जाये तो आसानी से पीछा नहीं छूटता। हम आपको मना तो नहीं कर सकते पर इतना जरुर हैं की प्रीत का स्वाद जो चखा जुबान ने फिर बेगाने हुए जग से समझो..... :D
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Sochte hai Har Baar ....Ab Ishq na karege Kabhi ....
Ab Ishq na karege Kabhi ....Kabhi Kisi ki ankhon me Dil Lagaakar Dubege Nahi ...
Doobna to door ...ham julfon me kisi ke uljege nahi ...
Abhi itna socha hi thaa ...ki ek nazar un par padi ...ek mast hawaa ka jhonka aaya ...ankhon se ek paigaam laya ...chal ishq karte hai ...ek bar phir se karte hai :D
:bow:
 
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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जब तेरा दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है।
एक समन्दर मेरी आँखों से बहा करता है।।

उसकी बातें मुझे खुश्बू की तरह लगती है,
फूल जैसे कोई सहरा में खिला करता है।।

मेरे दोस्त की पहचान ये ही काफ़ी है,
वो हर शख़्स को दानिस्ता ख़फ़ा करता है।।

और तो कोई सबब उसकी मोहब्बत का नहीं,
बात इतनी है के वो मुझसे जफ़ा करता है।।

जब ख़ज़ाँ आएगी तो लौट आएगा वो भी 'फ़राज़',

वो बहारों में ज़रा कम ही मिला करता है।।

_________अहमद 'फ़राज़'
 
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VIKRANT

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जब तेरा दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है।
एक समन्दर मेरी आँखों से बहा करता है।।

उसकी बातें मुझे खुश्बू की तरह लगती है,
फूल जैसे कोई सहरा में खिला करता है।।

मेरे दोस्त की पहचान ये ही काफ़ी है,
वो हर शख़्स को दानिस्ता ख़फ़ा करता है।।

और तो कोई सबब उसकी मोहब्बत का नहीं,
बात इतनी है के वो मुझसे जफ़ा करता है।।

जब ख़ज़ाँ आएगी तो लौट आएगा वो भी 'फ़राज़',

वो बहारों में ज़रा कम ही मिला करता है।।

_________अहमद 'फ़राज़'
Beautiful poetry bro. :applause: :applause: :applause:
 
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