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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

क्या आपको ग़ज़लें पसंद हैं..???

  • हाॅ, बेहद पसंद हैं।

    Votes: 12 85.7%
  • हाॅ, लेकिन ज़्यादा नहीं।

    Votes: 2 14.3%

  • Total voters
    14

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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यूँ तुझे ढूँढ़ने निकले के न आए ख़ुद भी।
वो मुसाफ़िर कि जो मंज़िल थे बजाए ख़ुद भी।।

कितने ग़म थे कि ज़माने से छुपा रक्खे थे,
इस तरह से कि हमें याद न आए खुद भी।।

ऐसा ज़ालिम कि अगर ज़िक्र में उसके कोई ज़ुल्म,
हमसे रह जाए तो वो याद दिलाए ख़ुद भी।।

लुत्फ़ तो जब है तअल्लुक़ में कि वो शहरे-जमाल,
कभी खींचे कभी खिंचता चला आए ख़ुद भी।।

ऐसा साक़ी हो तो फिर देखिए रंगे-महफ़िल,
सबको मदहोश करे होश से जाए ख़ुद भी।।

यार से हमको तगाफ़ुल का गिला है बेजा,

बारहा महफ़िले-जानाँ से उठ आए ख़ुद भी।।
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,147
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354
बुझा है दिल तो ग़मे-यार अब कहाँ तू भी।
मिसाले साया-ए-दीवार अब कहाँ तू भी।।

बजा कि चश्मे-तलब भी हुई तही कीस,
मगर है रौनक़े-बाज़ार अब कहाँ तू भी।।

हमें भी कारे-जहाँ ले गया है दूर बहुत,
रहा है दर-पए आज़ार अब कहाँ तू भी।।

हज़ार सूरतें आंखों में फिरती रहती हैं,
मेरी निगाह में हर बार अब कहाँ तू भी।।

उसी को अहद फ़रामोश क्यों कहें ऐ दिल,
रहा है इतना वफ़ादार अब कहाँ तू भी।।

मेरी गज़ल में कोई और कैसे दर आए,
सितम तो ये है कि ऐ यार अब कहाँ तू भी।।

जो तुझसे प्यार करे तेरी नफ़रतों के सबब,

‘फ़राज़’ ऐसा गुनहगार अब कहाँ तू भी।।
 
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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आँखों में हया हो तो
पर्दा दिल का ही काफी है फ़राज़,


नहीं तो नकाबों से भी होते हैं
इशारे मोहब्बत के।।
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,147
115,952
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आँखों में हया हो तो
पर्दा दिल का ही काफी है फ़राज़,


नहीं तो नकाबों से भी होते हैं
इशारे मोहब्बत के।।
 
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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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एक नफरत ही नहीं दुनिया में दर्द का सबब फ़राज़,
मोहब्बत भी सकूँ वालों को बड़ी तकलीफ़ देती है।।
 
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बुझा है दिल तो ग़मे-यार अब कहाँ तू भी।
मिसाले साया-ए-दीवार अब कहाँ तू भी।।

बजा कि चश्मे-तलब भी हुई तही कीस,
मगर है रौनक़े-बाज़ार अब कहाँ तू भी।।

हमें भी कारे-जहाँ ले गया है दूर बहुत,
रहा है दर-पए आज़ार अब कहाँ तू भी।।

हज़ार सूरतें आंखों में फिरती रहती हैं,
मेरी निगाह में हर बार अब कहाँ तू भी।।

उसी को अहद फ़रामोश क्यों कहें ऐ दिल,
रहा है इतना वफ़ादार अब कहाँ तू भी।।

मेरी गज़ल में कोई और कैसे दर आए,
सितम तो ये है कि ऐ यार अब कहाँ तू भी।।

जो तुझसे प्यार करे तेरी नफ़रतों के सबब,

‘फ़राज़’ ऐसा गुनहगार अब कहाँ तू भी।।
Greattt bro. Such a beautiful poetry. :applause: :applause: :applause:
 
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piyanuan

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एक नफरत ही नहीं दुनिया में दर्द का सबब फ़राज़,
मोहब्बत भी सकूँ वालों को बड़ी तकलीफ़ देती है।।
kabhi mohhbbat wali taklif se gujar kar b dekhiye, alag he sakun hain us takleef me b
 
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piyanuan

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गुज़र गया वो वक़्त जब तेरी हसरत थी मुझको;
अब खुदा भी बन जाए तो भी तेरा सजदा ना करूँ..
itna b gussa kyu ho, waqt bitne do sajda khud kar loge :hehe:
waise achhi shayri hain, reality k kareeb
 
  • Haha
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