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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

क्या आपको ग़ज़लें पसंद हैं..???

  • हाॅ, बेहद पसंद हैं।

    Votes: 12 85.7%
  • हाॅ, लेकिन ज़्यादा नहीं।

    Votes: 2 14.3%

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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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इसी ख्याल से गुज़री है शाम-ए-दर्द अक्सर;
कि दर्द हद से जो गुज़रेगा मुस्कुरा दूंगा।
 
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ज़माने भर की निगाहों में जो खुदा सा लगे;
वो अजनबी है मगर मुझ को आशना सा लगे;
न जाने कब मेरी दुनिया में मुस्कुराएगा;

वो शख्स जो ख्वाबों में भी खफा सा लगे।
 
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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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देखी है बेरुखी की आज हम ने इन्तहा 'मोहसिन';
हम पे नज़र पड़ी तो वो महफ़िल से उठ गए।
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई,
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई;

बज़्म-ए-ख़याल में तेरे हुस्न की शमा जल गई,
दर्द का चाँद बुझ गया हिज्र की रात ढल गई;

जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी,
जब तेरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई;

दिल से तो हर मुआमला कर के चले थे साफ़ हम,
कहने में उन के सामने बात बदल बदल गई;

आख़िर-ए-शब के हम-सफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुए,

रह गई किस जगह सबा सुब्ह किधर निकल गई!
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले,
हम अपने बुजुर्गों का ज़माना नहीं भूले;

तुम आँखों की बरसात बचाये हुये रखना,
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले;

ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने,
हम आप की तस्वीर बनाना नहीं भूले;

इक ऊम्र हुई मैं तो हँसी भूल चुका हूँ,

तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नहीं भूले।
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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गम-ए-जिंदगी को इस कदर सँवार लेते हैं,
जाम होंठो से जिगर तक उतार लेते हैं;

तबाह होने की चाह में क्या-क्या करें हम,
एक रोग नया तेरे इश्क का आज़ार लेते हैं;

माना कि फांसलों से ही नजदीकीयाँ अपनी मगर,
दिल कहे, सुनेंगे कभी, एक दफा पुकार लेते है;

एक भी काम ना आया मशवरा तुझे भुलने का,
मगर, तेरी याद के लम्हें वक्त से बेशुमार लेते हैं;

ये मय ही तो हमदर्द , हमसफर मेरा अब साक़ी,

दर्द मिटाने को दवा कहा इश्क के बीमार लेते हैं!
 

VIKRANT

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ज़माने भर की निगाहों में जो खुदा सा लगे;
वो अजनबी है मगर मुझ को आशना सा लगे;
न जाने कब मेरी दुनिया में मुस्कुराएगा;

वो शख्स जो ख्वाबों में भी खफा सा लगे।
Beautiful poetry bro. :applause: :applause: :applause:
 
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VIKRANT

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गम-ए-जिंदगी को इस कदर सँवार लेते हैं,
जाम होंठो से जिगर तक उतार लेते हैं;

तबाह होने की चाह में क्या-क्या करें हम,
एक रोग नया तेरे इश्क का आज़ार लेते हैं;

माना कि फांसलों से ही नजदीकीयाँ अपनी मगर,
दिल कहे, सुनेंगे कभी, एक दफा पुकार लेते है;

एक भी काम ना आया मशवरा तुझे भुलने का,
मगर, तेरी याद के लम्हें वक्त से बेशुमार लेते हैं;

ये मय ही तो हमदर्द , हमसफर मेरा अब साक़ी,

दर्द मिटाने को दवा कहा इश्क के बीमार लेते हैं!
Greattt bro. Beautiful poetry. :applause: :applause: :applause:
 
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