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मोहब्बत करने वाले कम न होंगे।
तिरी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे।।
मैं अक्सर सोचता हूँ फूल कब तक,
शरीक-ए-गिर्या-ए-शबनम न होंगे।।
ज़रा देर-आश्ना चश्म-ए-करम है,
सितम ही इश्क़ में पैहम न होंगे।।
दिलों की उलझनें बढ़ती रहेंगी,
अगर कुछ मशवरे बाहम न होंगे।।
ज़माने भर के ग़म या इक तिरा ग़म,
ये ग़म होगा तो कितने ग़म न होंगे।।
कहूँ बेदर्द क्यूँ अहल-ए-जहाँ को,
वो मेरे हाल से महरम न होंगे।।
तिरी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे।।
मैं अक्सर सोचता हूँ फूल कब तक,
शरीक-ए-गिर्या-ए-शबनम न होंगे।।
ज़रा देर-आश्ना चश्म-ए-करम है,
सितम ही इश्क़ में पैहम न होंगे।।
दिलों की उलझनें बढ़ती रहेंगी,
अगर कुछ मशवरे बाहम न होंगे।।
ज़माने भर के ग़म या इक तिरा ग़म,
ये ग़म होगा तो कितने ग़म न होंगे।।
कहूँ बेदर्द क्यूँ अहल-ए-जहाँ को,
वो मेरे हाल से महरम न होंगे।।