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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे।
मुझे ख़ौफ़ है ये तोहमत तिरे नाम तक न पहुँचे।।

मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी,
तिरा हाथ ज़िंदगी भर कभी जाम तक न पहुँचे।।

वो नवा-ए-मुज़्महिल क्या न हो जिस में दिल की धड़कन,
वो सदा-ए-अहल-ए-दिल क्या जो अवाम तक न पहुँचे।।

मिरे ताइर-ए-नफ़स को नहीं बाग़बाँ से रंजिश,
मिले घर में आब-ओ-दाना तो ये दाम तक न पहुँचे।।

नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है,
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे।।

ये अदा-ए-बे-नियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक,
मगर ऐसी बे-रुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे।।

जो नक़ाब-ए-रुख़ उठा दी तो ये क़ैद भी लगा दी,
उठे हर निगाह लेकिन कोई बाम तक न पहुँचे।।

उन्हें अपने दिल की ख़बरें मिरे दिल से मिल रही हैं,
मैं जो उन से रूठ जाऊँ तो पयाम तक न पहुँचे।।

वही इक ख़मोश नग़्मा है 'शकील' जान-ए-हस्ती,
जो ज़बान पर न आए जो कलाम तक न पहुँचे।।

_______'शकील' बदायूनी
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे।
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे।।

वो वक़्त भी ख़ुदा न दिखाए कभी मुझे,
उन की नदामतों पे हो शर्मिंदगी मुझे।।

रोने पे अपने उन को भी अफ़्सुर्दा देख कर,
यूँ बन रहा हूँ जैसे अब आई हँसी मुझे।।

यूँ दीजिए फ़रेब-ए-मोहब्बत कि उम्र भर,
मैं ज़िंदगी को याद करूँ ज़िंदगी मुझे।।

रखना है तिश्ना-काम तो साक़ी बस इक नज़र,
सैराब कर न दे मिरी तिश्ना-लबी मुझे।।

पाया है सब ने दिल मगर इस दिल के बावजूद,
इक शय मिली है दिल में खटकती हुई मुझे।।

राज़ी हों या ख़फ़ा हों वो जो कुछ भी हों 'शकील'
हर हाल में क़ुबूल है उन की ख़ुशी मुझे।।

________'शकील' बदायूनी
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है।
वो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है।।

जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरे,
ऐ मकाँ बोल कहाँ अब वो मकीं रहता है।।

इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे,
और अब कोई कहीं कोई कहीं रहता है।।

रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए,
इश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है।।

दिल फ़सुर्दा तो हुआ देख के उस को लेकिन,
उम्र भर कौन जवाँ कौन हसीं रहता है।।

_______अहमद मुश्ताक़
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ।
तुम्हारे साथ भी कुछ दूर जा कर देख लेता हूँ।।

हवाएँ जिन की अंधी खिड़कियों पर सर पटकती हैं,
मैं उन कमरों में फिर शमएँ जला कर देख लेता हूँ।।

अजब क्या इस क़रीने से कोई सूरत निकल आए,
तिरी बातों को ख़्वाबों से मिला कर देख लेता हूँ।।

सहर-ए-दम किर्चियाँ टूटे हुए ख़्वाबों की मिलती हैं,
तो बिस्तर झाड़ कर चादर हटा कर देख लेता हूँ।।

बहुत दिल को दुखाता है कभी जब दर्द-ए-महजूरी,
तिरी यादों की जानिब मुस्कुरा कर देख लेता हूँ।।

_______अहमद मुश्ताक़
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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मिल ही आते हैं उसे ऐसा भी क्या हो जाएगा।
बस यही न दर्द कुछ दिल का सवा हो जाएगा।।

वो मिरे दिल की परेशानी से अफ़्सुर्दा हो क्यूँ,
दिल का क्या है कल को फिर अच्छा भला हो जाएगा।।

घर से, कुछ ख़्वाबों से मिलने के लिए निकले थे हम,
क्या ख़बर थी ज़िंदगी से सामना हो जाएगा।।

रोने लगता हूँ मोहब्बत में तो कहता है कोई,
क्या तिरे अश्कों से ये जंगल हरा हो जाएगा।।

कैसे आ सकती है ऐसी दिल-नशीं दुनिया को मौत,
कौन कहता है कि ये सब कुछ फ़ना हो जाएगा।।

_______अहमद मुश्ताक़
 

Mr. Perfect

"Perfect Man"
1,434
3,733
143
Waahh gajab bhai. Fantastic_____

तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ।
तुम्हारे साथ भी कुछ दूर जा कर देख लेता हूँ।।

हवाएँ जिन की अंधी खिड़कियों पर सर पटकती हैं,
मैं उन कमरों में फिर शमएँ जला कर देख लेता हूँ।।

अजब क्या इस क़रीने से कोई सूरत निकल आए,
तिरी बातों को ख़्वाबों से मिला कर देख लेता हूँ।।

सहर-ए-दम किर्चियाँ टूटे हुए ख़्वाबों की मिलती हैं,
तो बिस्तर झाड़ कर चादर हटा कर देख लेता हूँ।।

बहुत दिल को दुखाता है कभी जब दर्द-ए-महजूरी,
तिरी यादों की जानिब मुस्कुरा कर देख लेता हूँ।।


_______अहमद मुश्ताक़
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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तुम से दो हर्फ़ का ख़त भी नहीं लिक्खा जाता।
जाओ अब यूँ भी तअ'ल्लुक़ नहीं तोड़ा जाता।।

दिल का अहवाल न पूछो कि बहुत रोज़ हुए,
इस ख़राबे की तरफ़ मैं नहीं आता जाता।।

तिश्नगी ने कभी दरियाओं से मिलने न दिया,
हम जिधर जाते उसी राह में सहरा जाता।।

ज़िंदगी! रहने भी दे सोच की हद होती है,
इतना सोचा है कि सदियों में न सोचा जाता।।

उस को अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल भी न आया अब तक,
भूलने ही को सही याद तो रक्खा जाता।।

हाए वो दौर कि आँसू भी न थे आँखों में,
और चेहरा था कि बे-रोए भी भीगा जाता।।

______'क़ैसर'-उल जाफ़री
 

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सावन एक महीने 'क़ैसर' आँसू जीवन भर,
इन आँखों के आगे बादल बे-औक़ात
लगे।।
 
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