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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

क्या आपको ग़ज़लें पसंद हैं..???

  • हाॅ, बेहद पसंद हैं।

    Votes: 12 85.7%
  • हाॅ, लेकिन ज़्यादा नहीं।

    Votes: 2 14.3%

  • Total voters
    14

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,983
354
खाली कागज़ पे क्या तलाश करते हो?
एक ख़ामोश-सा जवाब तो है।

डाक से आया है तो कुछ कहा होगा
"कोई वादा नहीं... लेकिन
देखें कल वक्त क्या तहरीर करता है!"

या कहा हो कि... "खाली हो चुकी हूँ मैं
अब तुम्हें देने को बचा क्या है?"

सामने रख के देखते हो जब
सर पे लहराता शाख का साया
हाथ हिलाता है जाने क्यों?
कह रहा हो शायद वो...
"धूप से उठके दूर छाँव में बैठो!"

सामने रौशनी के रख के देखो तो
सूखे पानी की कुछ लकीरें बहती हैं

"इक ज़मीं दोज़ दरया, याद हो शायद
शहरे मोहनजोदरो से गुज़रता था!"

उसने भी वक्त के हवाले से
उसमें कोई इशारा रखा हो... या
उसने शायद तुम्हारा खत पाकर
सिर्फ इतना कहा कि, लाजवाब हूँ मैं!

________गुलज़ार
 

Rahul

Kingkong
60,514
70,677
354
very nice yaal:love:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,983
354
अब ये सोचूँ तो भँवर ज़ेहन में पड़ जाते हैं।
कैसे चेहरे हैं जो मिलते ही बिछड़ जाते हैं।।

क्यूँ तिरे दर्द को दें तोहमत-ए-वीरानी-ए-दिल,
ज़लज़लों में तो भरे शहर उजड़ जाते हैं।।

मौसम-ए-ज़र्द में इक दिल को बचाऊँ कैसे,
ऐसी रुत में तो घने पेड़ भी झड़ जाते हैं।।

अब कोई क्या मिरे क़दमों के निशाँ ढूँडेगा,
तेज़ आँधी में तो ख़ेमे भी उखड़ जाते हैं।।

शग़्ल-ए-अर्बाब-ए-हुनर पूछते क्या हो कि ये लोग,
पत्थरों में भी कभी आइने जड़ जाते हैं।।

सोच का आइना धुँदला हो तो फिर वक़्त के साथ,
चाँद चेहरों के ख़द-ओ-ख़ाल बिगड़ जाते हैं।।

शिद्दत-ए-ग़म में भी ज़िंदा हूँ तो हैरत कैसी,
कुछ दिए तुंद हवाओं से भी लड़ जाते हैं।।

वो भी क्या लोग हैं 'मोहसिन' जो वफ़ा की ख़ातिर,
ख़ुद-तराशीदा उसूलों पे भी अड़ जाते हैं।।

________'मोहसिन' नक़्वी
 

Mr. Perfect

"Perfect Man"
1,434
3,733
143
Waahh The_InnoCent bhai. What a shayri_______

बहुत रोया वो हम को याद कर के।
हमारी ज़िंदगी बरबाद कर के।।

पलट कर फिर यहीं आ जाएँगे हम,
वो देखे तो हमें आज़ाद कर के।।

रिहाई की कोई सूरत नहीं है,
मगर हाँ मिन्नत-ए-सय्याद कर के।।

बदन मेरा छुआ था उस ने लेकिन,
गया है रूह को आबाद कर के।।

हर आमिर तूल देना चाहता है,
मुक़र्रर ज़ुल्म की मीआ'द कर के।।

________परवीन शाकिर
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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115,983
354
Waahh The_InnoCent bhai. What a shayri_______
बहुत बहुत शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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उस ने कहा
सुन
अहद निभाने की ख़ातिर मत आना
अहद निभाने वाले अक्सर
मजबूरी या महजूरी की थकन से लौटा करते हैं
तुम जाओ
और दरिया दरिया प्यास बुझाओ
जिन आँखों में डूबो
जिस दिल में उतरो
मेरी तलब आवाज़ न देगी
लेकिन जब मेरी चाहत
और मिरी ख़्वाहिश की लौ
इतनी तेज़ और इतनी
ऊँची हो जाए
जब दिल रो दे
तब लौट आना।

________अहमद फ़राज़
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है के नहीं।
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है के नहीं।।

तू अपने दिल की जवां धड़कनों को गिन के बता,
मेरी तरह तेरा दिल बेक़रार है के नहीं।।

:music: :music: :music:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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हमारी चाहतों की बुज़-दिली थी
वर्ना क्या होता
अगर ये शौक़ के मज़मूँ
वफ़ा के अहद-नामे
और दिलों के मरसिए
इक दूसरे के नाम कर देते
ज़ियादा से ज़ियादा
चाहतें बद-नाम हो जातीं
हमारी दोस्ती की दास्तानें आम हो जातीं
तो क्या होता
ये हम जो ज़ीस्त के हर इश्क़ में सच्चाइयाँ सोचें
ये हम जिन का असासा तिश्नगी, तन्हाइयाँ सोचें
ये तहरीरें
हमारी आरज़ू-मंदी की तहरीरें
बहम पैवस्तगी और ख़्वाब पैवंदी की तहरीरें
फ़िराक़ ओ वस्ल ओ महरूमी ओ खुर्संदी की तहरीरें
हम इन पर मुन्फ़इल क्यूँ हूँ
ये तहरीरें
अगर इक दूसरे के नाम हो जाएँ
तो क्या इस से हमारे फ़न के रसिया
शेर के मद्दाह
हम पर तोहमतें धरते
हमारी हमदमी पर तंज़ करते
और ये बातें
और ये अफ़्वाहें
किसी पीली निगारिश में
हमेशा के लिए मर्क़ूम हू जातीं
हमारी हस्तियाँ मज़मूम हो जातीं
नहीं ऐसा न होता
और अगर बिल-फ़र्ज़ होता भी
तो फिर हम क्या
सुबुक-सारान-ए-शहर-ए-हर्फ़ की चालों से डरते हैं
सगान-ए-कूचा-ए-शोहरत के ग़ौग़ा
काले बाज़ारों के दल्लालों से डरते हैं
हमारे हर्फ़ जज़्बों की तरह
सच्चे हैं, पाकीज़ा हैं, ज़िंदा हैं
बला से हम अगर मस्लूब हो जाते
ये सौदा क्या बुरा था
गर हमारी क़ब्र के कतबे
तुम्हारे और हमारे नाम से मंसूब हो जाते!

_________अहमद फ़राज़
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,287
304
अब ये सोचूँ तो भँवर ज़ेहन में पड़ जाते हैं।
कैसे चेहरे हैं जो मिलते ही बिछड़ जाते हैं।।

क्यूँ तिरे दर्द को दें तोहमत-ए-वीरानी-ए-दिल,
ज़लज़लों में तो भरे शहर उजड़ जाते हैं।।

मौसम-ए-ज़र्द में इक दिल को बचाऊँ कैसे,
ऐसी रुत में तो घने पेड़ भी झड़ जाते हैं।।

अब कोई क्या मिरे क़दमों के निशाँ ढूँडेगा,
तेज़ आँधी में तो ख़ेमे भी उखड़ जाते हैं।।

शग़्ल-ए-अर्बाब-ए-हुनर पूछते क्या हो कि ये लोग,
पत्थरों में भी कभी आइने जड़ जाते हैं।।

सोच का आइना धुँदला हो तो फिर वक़्त के साथ,
चाँद चेहरों के ख़द-ओ-ख़ाल बिगड़ जाते हैं।।

शिद्दत-ए-ग़म में भी ज़िंदा हूँ तो हैरत कैसी,
कुछ दिए तुंद हवाओं से भी लड़ जाते हैं।।

वो भी क्या लोग हैं 'मोहसिन' जो वफ़ा की ख़ातिर,
ख़ुद-तराशीदा उसूलों पे भी अड़ जाते हैं।।

________'मोहसिन' नक़्वी
Dil se:bow::bow:
 
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