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माँ-बेटा अब प्रेमी जोड़े की तरह घर में हंसते वैसी वैसी हरकते करते जैसा एक लड़की को एक लड़का नज़ाकत से करता है दोनो कहीं भी बाज़ार या कुछ भी खरीदने को निकल जाते....फिर पिता जी के घर लौटने के बाद दोनो उनके सामने जैसे एकदम नॉर्मल बिहेव करते...सनडे उसे ऐसा लगता था कि माँ उससे दूर हो गयी क्यूंकी उस दिन पिता घर पे होते...उसे माँ का यूँ पिता के लिए इतना काम करना पसंद नही था....वो खुद शाम को पिता जी के घर लौटने के बाद कॉफी और शाम का नाश्ता खुद बनाके पिता को देता और माँ रात का खाना बनाने का इंतेज़ाम करती.....उसने माँ को इतना सुख दिया कि घर का आधे से ज़्यादा काम वो करता....उसकी माँ ने उसे अपने बचपन की बातें बताई कि उसका हमेशा कत्थक और साउत इंडियन डॅन्स सीखने का शौक था उसकी पायल को उसके बाप यानी आदम के नाना ने दिया था जिसे उसका पति जुआ की लत हो जाने की वजह से हार गया था उसके बाद कभी भी उसे दूसरी पायल उसका पति नही दिला पाया
आदम को तेज़ गुस्सा आया......अगले दिन घर पे एक डिल्वरी बॉय आया था..आदम सो रहा था इसलिए नमाज़ ख़तम कर माँ ने ही उससे पार्सल लिया उसे लगा शायद बेटे ने कुछ ऑर्डर किया होगा जब उसने उसे खोला तो पाया उसमें पायल थी वो जज्बाती हो उठी...आदम को उसने जगाया और सवाल किया तो उसने मुस्कुराते हुए प्यार से माँ के पाँव में दोनो पायल पहनाई..वो धीरे धीरे माँ को अपने करीब खीचता ले आ रहा था...और माँ भी धीरे धीरे आदम से काफ़ी खुश रहने लगी थी....
हमेशा लड़ाई झगड़े के दौरान आदम और माँ दूसरे कमरे में इकट्ठे सोने चले जाते थे...उसका पति कुछ समझ नही पा रहा था...रोज़ रात एक ही बिस्तर पे मज़ूद होने से माँ-बेटे एकदुसरे से लिपटे सोते थे....अब आदम बात बात पे माँ को होंठो पे किस कर देता था....माँ भी बेटे के होंठ को चूम लेती थी...लेकिन उसके बाद जैसे उसे शर्मिंदगी सी होती थी
एक दिन माँ नमाज़ से उठके कालीन को उठाए उसे फोल्ड कर रही थी वो झुकी हुई थी इसलिए बेटे को उसके नितंबो के उभार पाजामे से ही दिख रहे थे दोनो नितंबो की बीच कपड़ा जैसे धँस गया था और दो गोलाइयाँ पाजामा में शेप ली हुई थी...वो इसी अहसास से जैसे गरम सा हो गया...माँ पीछे मूडी तो उसने बेटे की तरफ मुस्कुराया तो उसने पाया कि बेटे का पाजामा फूला हुआ था....वो चुपचाप रही उसने आदम पर गौर किया आदम वहाँ से चला गया माँ एकदम से खिलखिलाए हंस पड़ी
उस रात आदम को नींद नही आ रही थी...वो सोने की नाकाम कोशिशें कर रहा था...इतने में माँ का अहसास उसे अपने ठीक बगल में खड़ी महसूस हुआ...उसने पाया कि उसकी माँ एक निघट्य पहनी हुई थी...उसने धीरे से आदम को जैसे जगाना चाहा था माँ उसे बड़े गौर से देख रही थी...."क्या हुआ?"...
."आदम उठ आ मेरे साथ"...आदम को आभास हुआ कि रात करीब ना जाने कितना टाइम हो रहा था वो उसके साथ अलमारी के शीशे के सामने खड़ा हो गया
माँ स्टूल के उपर दोनो हाथ रखे खड़ी हुई...उसने अपनी पेटिकोट का नाडा खोल डाला और पलभर में आदम के पाजामे के अंदर बंद लौडे को ठीक पाजामा नीचे खिसकाते हुए अपने हाथो में थाम लिया...."आदम इसे यहाँ डाल".....अंजुम ने अपने ही हाथो से अपने बेटे के सामने झुकते हुए स्टूल के सहारे एक हाथ से...दूसरे हाथ से उसके लिंग को अपने नितंबो की बीच घिस्सते हुए दबाया..."ओह माआ"....आदम अपने बिस्तर से उठ बैठा
वो पसीने पसीने हो रहा था..उसे अहसास हुआ कि उसके पाजामे के अंदर ही उसका वीर्य निकल चुका है...माँ बगल में लेटी सो रही थी और वक़्त रात के 2 बजे का था....यानी उसने अब तक महेज़ सपना देखा....वो मुस्कुराते हुए अपने सर पे हाथ रखके माँ कीतरफ देख रहा था....कुछ देर बाद वो उठा पाजामा उतारा थोड़ा सा शवर लिया उसके बाद तौलिए से अपने गीले बदन को कमरे में आते हुए पोछा...माँ तब भी सो रही थी..उसने पाजामा पहना और खुले बदन माँ से लिपटे सो गया
अगले दिन अंजुम ने बाथरूम के फर्श पे आदम का गीला पाजामा पाया उसके हाथ में बेटे का वीर्य लग गया जो चिपचिपा था उससे उसे घिन ना आई वो उन्हें बाकी कपड़ों के साथ धोने ले गयी....जैसे उसके लिए कोई नयी बात नही थी
करीब 2-3 महीने तक माँ-बेटा एकदुसरे के साथ एक छत के नीचे दिन गुज़ार रहे थे....अब माँ के बिना कहे ही आदम उसे कयि भी छू लेता था..हालाँकि उसकी माँ ने कभी कभी उसे मना किया कि ऐसा ना करे...पर अब उसके छूने से उसे आपत्ती नही होती थी...क्यूंकी आदम शरारत से कभी उसके पेट को तो कभी नाभि को तो कभी उसके गर्दन को दबाते हुए उस पर होंठ रगड़ लेता था तो कभी कान काट ले तो कभी गाल या होंठ पे चूम भी लेता था....माँ जैसे उसके काबू में थी वो चुपचाप रहती थी..
आदम थका हारा चिल्चिल्लाति धुंप में दोपहर 12 बजे तक घर लौटता है...इन 2-3 महीनो के बीच जिस एडी चोटी के साथ....आदम नौकरी ढूँढने के लिए निकला था उसके हाथ अब तक कुछ नही आया था....जिस भी इंटरव्यू में गया या तो उसकी बहस हो गयी या फिर उसे कोई ख़ासियत नही दी गयी....बेटा जब घर लौटके आया...तो माँ ने दरवाजा खोला....बेटा मायूस था उसने एक बार फीकी मुस्कुराहट दी और अपना फाइल एक साइड रखके जूते उतारने लगा...वो इतना दुखी था कि उसने जूते जो बाहर दरवाजे पे छोड़ आया था उसे अंदर नही किया....बेरहाल माँ ने उसकी हालत देखते हुए खुद ही जूते अंदर किए और दरवाजा लगाया...
अंजुम ने बेटे को एक ग्लास ग्लूकान-डी देते हुए उसे सवाली निगाहो से देखा
अंजुम : क्या हुआ कोई बात बनी?
आदम : नही माँ एक तो इतनी गर्मी उपर से पता है 150 कॅंडिडेट थे इस बार तो हद हो गयी देश की क्या जनसंख्या बढ़ गयी...एक तो बुलाए उपर से एचआर रिक्रूटर लोग 20 मिनट एक इंटरव्यू लेने में इतना टाइम लगाए उसके बाद कहते है हम आपको बुला लेंगे आप अपना अड्रेस और नंबर छोड़ दो माँ के लौन्डो को काम नही देना तो सॉफ मुँह पे कह दे यार (आदम रोई आवाज़ में कहता है उसका दिल खराब हो जाता है?)
अंजुम : उफ्फ बेटा दिल छोटा नही करते आज ये काम नही मिला तो कोई और मिल जाएगा?
आदम : माँ तुम तो जानती हो पिताजी कि ना कोई संपत्ति हमे मिलने वाली है और ना ही पिताजी ने मेरे लिए कुछ कर रखा है जो कुछ करना है मुझे अपने कंधो पे ही करना होगा...कल को ज़िम्मेदारिया बढ़ेगी तो कौन काम देगा आजकल के ज़माने में साला कोई किसी मदद नही करता सब बस पैसो के पीछे भागते है
अंजुम : क्या तुझे लगता है कि रिश्ते पैसो से भी बढ़कर है क्या तुझे अब यही लगता है? कि तू मेरा बोझ नही उठा सकता? मैं कितना खाउन्गी दिन में 2 ही टाइम तो खाती हूँ और तूने खाना पीना भी छोड़ दिया जब से होमटाउन गया था...बोल ज़रा हमे क्या तक़लीफ़ होगी बस ज़िंदगी गुज़रने के लिए उतने ही तो पैसे चाहिए ना
आदम : माँ मैं 2-3 महीनो से ट्राइ पे ट्राइ कर रहा हूँ कोई भी वेकेन्सी हाथ नही आ रही या कोई मुझे रखना नही चाहता
अंजुम : इसी लिए तू खामोखाः डिसट्रिब्युटर की नौकरी छोड़के यहाँ आ गया सिर्फ़ अपनी माँ के लिए
आदम : माँ फिर ऐसा कभी ना कहना? मैं यहाँ सिर्फ़ तेरे लिए आया हूँ और मुझे दुख नही कि अब तक मुझे नौकरी नही मिली बस मैं तुझे खुशिया देना चाहता हूँ
आदम को तेज़ गुस्सा आया......अगले दिन घर पे एक डिल्वरी बॉय आया था..आदम सो रहा था इसलिए नमाज़ ख़तम कर माँ ने ही उससे पार्सल लिया उसे लगा शायद बेटे ने कुछ ऑर्डर किया होगा जब उसने उसे खोला तो पाया उसमें पायल थी वो जज्बाती हो उठी...आदम को उसने जगाया और सवाल किया तो उसने मुस्कुराते हुए प्यार से माँ के पाँव में दोनो पायल पहनाई..वो धीरे धीरे माँ को अपने करीब खीचता ले आ रहा था...और माँ भी धीरे धीरे आदम से काफ़ी खुश रहने लगी थी....
हमेशा लड़ाई झगड़े के दौरान आदम और माँ दूसरे कमरे में इकट्ठे सोने चले जाते थे...उसका पति कुछ समझ नही पा रहा था...रोज़ रात एक ही बिस्तर पे मज़ूद होने से माँ-बेटे एकदुसरे से लिपटे सोते थे....अब आदम बात बात पे माँ को होंठो पे किस कर देता था....माँ भी बेटे के होंठ को चूम लेती थी...लेकिन उसके बाद जैसे उसे शर्मिंदगी सी होती थी
एक दिन माँ नमाज़ से उठके कालीन को उठाए उसे फोल्ड कर रही थी वो झुकी हुई थी इसलिए बेटे को उसके नितंबो के उभार पाजामे से ही दिख रहे थे दोनो नितंबो की बीच कपड़ा जैसे धँस गया था और दो गोलाइयाँ पाजामा में शेप ली हुई थी...वो इसी अहसास से जैसे गरम सा हो गया...माँ पीछे मूडी तो उसने बेटे की तरफ मुस्कुराया तो उसने पाया कि बेटे का पाजामा फूला हुआ था....वो चुपचाप रही उसने आदम पर गौर किया आदम वहाँ से चला गया माँ एकदम से खिलखिलाए हंस पड़ी
उस रात आदम को नींद नही आ रही थी...वो सोने की नाकाम कोशिशें कर रहा था...इतने में माँ का अहसास उसे अपने ठीक बगल में खड़ी महसूस हुआ...उसने पाया कि उसकी माँ एक निघट्य पहनी हुई थी...उसने धीरे से आदम को जैसे जगाना चाहा था माँ उसे बड़े गौर से देख रही थी...."क्या हुआ?"...
."आदम उठ आ मेरे साथ"...आदम को आभास हुआ कि रात करीब ना जाने कितना टाइम हो रहा था वो उसके साथ अलमारी के शीशे के सामने खड़ा हो गया
माँ स्टूल के उपर दोनो हाथ रखे खड़ी हुई...उसने अपनी पेटिकोट का नाडा खोल डाला और पलभर में आदम के पाजामे के अंदर बंद लौडे को ठीक पाजामा नीचे खिसकाते हुए अपने हाथो में थाम लिया...."आदम इसे यहाँ डाल".....अंजुम ने अपने ही हाथो से अपने बेटे के सामने झुकते हुए स्टूल के सहारे एक हाथ से...दूसरे हाथ से उसके लिंग को अपने नितंबो की बीच घिस्सते हुए दबाया..."ओह माआ"....आदम अपने बिस्तर से उठ बैठा
वो पसीने पसीने हो रहा था..उसे अहसास हुआ कि उसके पाजामे के अंदर ही उसका वीर्य निकल चुका है...माँ बगल में लेटी सो रही थी और वक़्त रात के 2 बजे का था....यानी उसने अब तक महेज़ सपना देखा....वो मुस्कुराते हुए अपने सर पे हाथ रखके माँ कीतरफ देख रहा था....कुछ देर बाद वो उठा पाजामा उतारा थोड़ा सा शवर लिया उसके बाद तौलिए से अपने गीले बदन को कमरे में आते हुए पोछा...माँ तब भी सो रही थी..उसने पाजामा पहना और खुले बदन माँ से लिपटे सो गया
अगले दिन अंजुम ने बाथरूम के फर्श पे आदम का गीला पाजामा पाया उसके हाथ में बेटे का वीर्य लग गया जो चिपचिपा था उससे उसे घिन ना आई वो उन्हें बाकी कपड़ों के साथ धोने ले गयी....जैसे उसके लिए कोई नयी बात नही थी
करीब 2-3 महीने तक माँ-बेटा एकदुसरे के साथ एक छत के नीचे दिन गुज़ार रहे थे....अब माँ के बिना कहे ही आदम उसे कयि भी छू लेता था..हालाँकि उसकी माँ ने कभी कभी उसे मना किया कि ऐसा ना करे...पर अब उसके छूने से उसे आपत्ती नही होती थी...क्यूंकी आदम शरारत से कभी उसके पेट को तो कभी नाभि को तो कभी उसके गर्दन को दबाते हुए उस पर होंठ रगड़ लेता था तो कभी कान काट ले तो कभी गाल या होंठ पे चूम भी लेता था....माँ जैसे उसके काबू में थी वो चुपचाप रहती थी..
आदम थका हारा चिल्चिल्लाति धुंप में दोपहर 12 बजे तक घर लौटता है...इन 2-3 महीनो के बीच जिस एडी चोटी के साथ....आदम नौकरी ढूँढने के लिए निकला था उसके हाथ अब तक कुछ नही आया था....जिस भी इंटरव्यू में गया या तो उसकी बहस हो गयी या फिर उसे कोई ख़ासियत नही दी गयी....बेटा जब घर लौटके आया...तो माँ ने दरवाजा खोला....बेटा मायूस था उसने एक बार फीकी मुस्कुराहट दी और अपना फाइल एक साइड रखके जूते उतारने लगा...वो इतना दुखी था कि उसने जूते जो बाहर दरवाजे पे छोड़ आया था उसे अंदर नही किया....बेरहाल माँ ने उसकी हालत देखते हुए खुद ही जूते अंदर किए और दरवाजा लगाया...
अंजुम ने बेटे को एक ग्लास ग्लूकान-डी देते हुए उसे सवाली निगाहो से देखा
अंजुम : क्या हुआ कोई बात बनी?
आदम : नही माँ एक तो इतनी गर्मी उपर से पता है 150 कॅंडिडेट थे इस बार तो हद हो गयी देश की क्या जनसंख्या बढ़ गयी...एक तो बुलाए उपर से एचआर रिक्रूटर लोग 20 मिनट एक इंटरव्यू लेने में इतना टाइम लगाए उसके बाद कहते है हम आपको बुला लेंगे आप अपना अड्रेस और नंबर छोड़ दो माँ के लौन्डो को काम नही देना तो सॉफ मुँह पे कह दे यार (आदम रोई आवाज़ में कहता है उसका दिल खराब हो जाता है?)
अंजुम : उफ्फ बेटा दिल छोटा नही करते आज ये काम नही मिला तो कोई और मिल जाएगा?
आदम : माँ तुम तो जानती हो पिताजी कि ना कोई संपत्ति हमे मिलने वाली है और ना ही पिताजी ने मेरे लिए कुछ कर रखा है जो कुछ करना है मुझे अपने कंधो पे ही करना होगा...कल को ज़िम्मेदारिया बढ़ेगी तो कौन काम देगा आजकल के ज़माने में साला कोई किसी मदद नही करता सब बस पैसो के पीछे भागते है
अंजुम : क्या तुझे लगता है कि रिश्ते पैसो से भी बढ़कर है क्या तुझे अब यही लगता है? कि तू मेरा बोझ नही उठा सकता? मैं कितना खाउन्गी दिन में 2 ही टाइम तो खाती हूँ और तूने खाना पीना भी छोड़ दिया जब से होमटाउन गया था...बोल ज़रा हमे क्या तक़लीफ़ होगी बस ज़िंदगी गुज़रने के लिए उतने ही तो पैसे चाहिए ना
आदम : माँ मैं 2-3 महीनो से ट्राइ पे ट्राइ कर रहा हूँ कोई भी वेकेन्सी हाथ नही आ रही या कोई मुझे रखना नही चाहता
अंजुम : इसी लिए तू खामोखाः डिसट्रिब्युटर की नौकरी छोड़के यहाँ आ गया सिर्फ़ अपनी माँ के लिए
आदम : माँ फिर ऐसा कभी ना कहना? मैं यहाँ सिर्फ़ तेरे लिए आया हूँ और मुझे दुख नही कि अब तक मुझे नौकरी नही मिली बस मैं तुझे खुशिया देना चाहता हूँ