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Incest माँ को पाने की हसरत

Monster Dick

the black cock
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माँ-बेटा अब प्रेमी जोड़े की तरह घर में हंसते वैसी वैसी हरकते करते जैसा एक लड़की को एक लड़का नज़ाकत से करता है दोनो कहीं भी बाज़ार या कुछ भी खरीदने को निकल जाते....फिर पिता जी के घर लौटने के बाद दोनो उनके सामने जैसे एकदम नॉर्मल बिहेव करते...सनडे उसे ऐसा लगता था कि माँ उससे दूर हो गयी क्यूंकी उस दिन पिता घर पे होते...उसे माँ का यूँ पिता के लिए इतना काम करना पसंद नही था....वो खुद शाम को पिता जी के घर लौटने के बाद कॉफी और शाम का नाश्ता खुद बनाके पिता को देता और माँ रात का खाना बनाने का इंतेज़ाम करती.....उसने माँ को इतना सुख दिया कि घर का आधे से ज़्यादा काम वो करता....उसकी माँ ने उसे अपने बचपन की बातें बताई कि उसका हमेशा कत्थक और साउत इंडियन डॅन्स सीखने का शौक था उसकी पायल को उसके बाप यानी आदम के नाना ने दिया था जिसे उसका पति जुआ की लत हो जाने की वजह से हार गया था उसके बाद कभी भी उसे दूसरी पायल उसका पति नही दिला पाया

आदम को तेज़ गुस्सा आया......अगले दिन घर पे एक डिल्वरी बॉय आया था..आदम सो रहा था इसलिए नमाज़ ख़तम कर माँ ने ही उससे पार्सल लिया उसे लगा शायद बेटे ने कुछ ऑर्डर किया होगा जब उसने उसे खोला तो पाया उसमें पायल थी वो जज्बाती हो उठी...आदम को उसने जगाया और सवाल किया तो उसने मुस्कुराते हुए प्यार से माँ के पाँव में दोनो पायल पहनाई..वो धीरे धीरे माँ को अपने करीब खीचता ले आ रहा था...और माँ भी धीरे धीरे आदम से काफ़ी खुश रहने लगी थी....

हमेशा लड़ाई झगड़े के दौरान आदम और माँ दूसरे कमरे में इकट्ठे सोने चले जाते थे...उसका पति कुछ समझ नही पा रहा था...रोज़ रात एक ही बिस्तर पे मज़ूद होने से माँ-बेटे एकदुसरे से लिपटे सोते थे....अब आदम बात बात पे माँ को होंठो पे किस कर देता था....माँ भी बेटे के होंठ को चूम लेती थी...लेकिन उसके बाद जैसे उसे शर्मिंदगी सी होती थी

एक दिन माँ नमाज़ से उठके कालीन को उठाए उसे फोल्ड कर रही थी वो झुकी हुई थी इसलिए बेटे को उसके नितंबो के उभार पाजामे से ही दिख रहे थे दोनो नितंबो की बीच कपड़ा जैसे धँस गया था और दो गोलाइयाँ पाजामा में शेप ली हुई थी...वो इसी अहसास से जैसे गरम सा हो गया...माँ पीछे मूडी तो उसने बेटे की तरफ मुस्कुराया तो उसने पाया कि बेटे का पाजामा फूला हुआ था....वो चुपचाप रही उसने आदम पर गौर किया आदम वहाँ से चला गया माँ एकदम से खिलखिलाए हंस पड़ी

उस रात आदम को नींद नही आ रही थी...वो सोने की नाकाम कोशिशें कर रहा था...इतने में माँ का अहसास उसे अपने ठीक बगल में खड़ी महसूस हुआ...उसने पाया कि उसकी माँ एक निघट्य पहनी हुई थी...उसने धीरे से आदम को जैसे जगाना चाहा था माँ उसे बड़े गौर से देख रही थी...."क्या हुआ?"...

."आदम उठ आ मेरे साथ"...आदम को आभास हुआ कि रात करीब ना जाने कितना टाइम हो रहा था वो उसके साथ अलमारी के शीशे के सामने खड़ा हो गया

माँ स्टूल के उपर दोनो हाथ रखे खड़ी हुई...उसने अपनी पेटिकोट का नाडा खोल डाला और पलभर में आदम के पाजामे के अंदर बंद लौडे को ठीक पाजामा नीचे खिसकाते हुए अपने हाथो में थाम लिया...."आदम इसे यहाँ डाल".....अंजुम ने अपने ही हाथो से अपने बेटे के सामने झुकते हुए स्टूल के सहारे एक हाथ से...दूसरे हाथ से उसके लिंग को अपने नितंबो की बीच घिस्सते हुए दबाया..."ओह माआ"....आदम अपने बिस्तर से उठ बैठा

वो पसीने पसीने हो रहा था..उसे अहसास हुआ कि उसके पाजामे के अंदर ही उसका वीर्य निकल चुका है...माँ बगल में लेटी सो रही थी और वक़्त रात के 2 बजे का था....यानी उसने अब तक महेज़ सपना देखा....वो मुस्कुराते हुए अपने सर पे हाथ रखके माँ कीतरफ देख रहा था....कुछ देर बाद वो उठा पाजामा उतारा थोड़ा सा शवर लिया उसके बाद तौलिए से अपने गीले बदन को कमरे में आते हुए पोछा...माँ तब भी सो रही थी..उसने पाजामा पहना और खुले बदन माँ से लिपटे सो गया

अगले दिन अंजुम ने बाथरूम के फर्श पे आदम का गीला पाजामा पाया उसके हाथ में बेटे का वीर्य लग गया जो चिपचिपा था उससे उसे घिन ना आई वो उन्हें बाकी कपड़ों के साथ धोने ले गयी....जैसे उसके लिए कोई नयी बात नही थी

करीब 2-3 महीने तक माँ-बेटा एकदुसरे के साथ एक छत के नीचे दिन गुज़ार रहे थे....अब माँ के बिना कहे ही आदम उसे कयि भी छू लेता था..हालाँकि उसकी माँ ने कभी कभी उसे मना किया कि ऐसा ना करे...पर अब उसके छूने से उसे आपत्ती नही होती थी...क्यूंकी आदम शरारत से कभी उसके पेट को तो कभी नाभि को तो कभी उसके गर्दन को दबाते हुए उस पर होंठ रगड़ लेता था तो कभी कान काट ले तो कभी गाल या होंठ पे चूम भी लेता था....माँ जैसे उसके काबू में थी वो चुपचाप रहती थी..

आदम थका हारा चिल्चिल्लाति धुंप में दोपहर 12 बजे तक घर लौटता है...इन 2-3 महीनो के बीच जिस एडी चोटी के साथ....आदम नौकरी ढूँढने के लिए निकला था उसके हाथ अब तक कुछ नही आया था....जिस भी इंटरव्यू में गया या तो उसकी बहस हो गयी या फिर उसे कोई ख़ासियत नही दी गयी....बेटा जब घर लौटके आया...तो माँ ने दरवाजा खोला....बेटा मायूस था उसने एक बार फीकी मुस्कुराहट दी और अपना फाइल एक साइड रखके जूते उतारने लगा...वो इतना दुखी था कि उसने जूते जो बाहर दरवाजे पे छोड़ आया था उसे अंदर नही किया....बेरहाल माँ ने उसकी हालत देखते हुए खुद ही जूते अंदर किए और दरवाजा लगाया...

अंजुम ने बेटे को एक ग्लास ग्लूकान-डी देते हुए उसे सवाली निगाहो से देखा

अंजुम : क्या हुआ कोई बात बनी?

आदम : नही माँ एक तो इतनी गर्मी उपर से पता है 150 कॅंडिडेट थे इस बार तो हद हो गयी देश की क्या जनसंख्या बढ़ गयी...एक तो बुलाए उपर से एचआर रिक्रूटर लोग 20 मिनट एक इंटरव्यू लेने में इतना टाइम लगाए उसके बाद कहते है हम आपको बुला लेंगे आप अपना अड्रेस और नंबर छोड़ दो माँ के लौन्डो को काम नही देना तो सॉफ मुँह पे कह दे यार (आदम रोई आवाज़ में कहता है उसका दिल खराब हो जाता है?)

अंजुम : उफ्फ बेटा दिल छोटा नही करते आज ये काम नही मिला तो कोई और मिल जाएगा?

आदम : माँ तुम तो जानती हो पिताजी कि ना कोई संपत्ति हमे मिलने वाली है और ना ही पिताजी ने मेरे लिए कुछ कर रखा है जो कुछ करना है मुझे अपने कंधो पे ही करना होगा...कल को ज़िम्मेदारिया बढ़ेगी तो कौन काम देगा आजकल के ज़माने में साला कोई किसी मदद नही करता सब बस पैसो के पीछे भागते है

अंजुम : क्या तुझे लगता है कि रिश्ते पैसो से भी बढ़कर है क्या तुझे अब यही लगता है? कि तू मेरा बोझ नही उठा सकता? मैं कितना खाउन्गी दिन में 2 ही टाइम तो खाती हूँ और तूने खाना पीना भी छोड़ दिया जब से होमटाउन गया था...बोल ज़रा हमे क्या तक़लीफ़ होगी बस ज़िंदगी गुज़रने के लिए उतने ही तो पैसे चाहिए ना

आदम : माँ मैं 2-3 महीनो से ट्राइ पे ट्राइ कर रहा हूँ कोई भी वेकेन्सी हाथ नही आ रही या कोई मुझे रखना नही चाहता

अंजुम : इसी लिए तू खामोखाः डिसट्रिब्युटर की नौकरी छोड़के यहाँ आ गया सिर्फ़ अपनी माँ के लिए

आदम : माँ फिर ऐसा कभी ना कहना? मैं यहाँ सिर्फ़ तेरे लिए आया हूँ और मुझे दुख नही कि अब तक मुझे नौकरी नही मिली बस मैं तुझे खुशिया देना चाहता हूँ
 

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अंजुम ने बेटे के चेहरे पे हाथ फेरा...उसे अपने बेटे की मुहब्बत पे नाज़ हुआ....उसने बेटे के मूड को ठीक करते हुए उसे हौसला दिया कि वो पूरी कोशिश करे एक ना एक दिन खुदा ताला उसे ज़रूर कोई ना कोई नौकरी दिलवाएगा ये अंजुम का विश्वास था वो रोज़ बेटे के लिए यही दुआ करती थी....अपनी माँ अंजुम का सपोर्ट और हौसला पाते हुए आदम खुशी मन से उसके गले लग गया

इन महीनो के बीच आदम के अंदर कोई कामवासना ज़ोर नही डाल रही थी उसपर...ना ही वो फिलहाल माँ को वासना भरी नज़रो से देख रहा था उसका पूरा फोकस सिर्फ़ काम और खुद को बनाने में था.....एक दिन माँ ने कहा कि समीर की हेल्प क्यूँ नही लेता? उससे बात कर....लेकिन समीर ने पहले से ही काफ़ी मदद की थी और अब उससे कुछ और हेल्प लेना ठीक नही लग रहा था आदम को वो किसी पे डिपेंडेंट नही होना चाहता था....वो अपने पिता को साबित करना चाहता था कि देख मैं भी एक ज़िम्मेदार मर्द हूँ...लेकिन पिता के दिल में उसके बेटे को लेके सिर्फ़ यही सोच उमड़ी हुई थी कि वो एक गुस्सेदार नाकाबिल औलाद है....माँ ने बेटे की प्राब्लम पति से वार्तालाप के दौरान कोशिश भी की पर उसके पिता इस बात को गंभीर रूप से नही लेते माँ को लगता कैसा पति है उसका? ना उसकी ज़िंदगी सवार पाया ना उसके बेटे की?....और इन्ही बातों में झगड़ा हो जाता...लेकिन माँ बेटे को इन्वॉल्व नही होने देती थी...चाहे उसका बाप कितना भी उसे जॅलील करता

रात तो जैसे माँ-बेटा एक अलग ही भमिका निभाते थे....लेकिन दिन में वो दोनो ऐसे रहते जैसे मिया बीवी हो...लेकिन मिया बीवी की तरह एकदुसरे से अब तक संबंध नही बना था....क्यूंकी पहल माँ कर नही रही थी और फिलहाल तो आदम का दिमाग़ माँ की मुहब्बत में महेज़ डूबा था उसे बस माँ के पास रहने में ही सुकून था...एक दिन काफ़ी वक़्त हो गया सुबह 6 बजे का निकला आदम बिना माँ को जगाए नौकरी ढूँढने के लिए निकला था...पिता से ढंग से बात नही करता था इसलिए उसका पिता भी कुछ कह ना सका अंजुम को...माँ जब जागी तो उसने आदम को नही पाया पति से पूछा तो उसने दोनो कंधे उचकाते हुए कहा सुबह सुबह पता नही कहा गया काफ़ी तय्यार लग रहा था? माँ आख़िर माँ थी उसे बेटे की फिकर हुई...

दोपहर हो गया लेकिन बेटा घर नही लौटा....अंजुम ने उसकी पसंद के नमकीन चावल और रायता बनाए थे....पर दोपहर शाम में तब्दील होने लगी...एक नीवाला भी अंजुम से ज़्यादा खाया नही गया....बस यही सोच उमड़ रही थी कि क्या पता? काम के लिए गया या कहीं कोई बात तो नही हो गयी?....उसने फोन भी किया तो पाया आदम फोन छोड़के गया था...उसे अब बेटे की बहुत ज़्यादा फिकर होने लगी...जब सूरज ढलने लगा तो एकदम से दरवाजे पे दस्तक हुई...अंजुम ने उठते हुए हड़बड़ी हालत में दरवाजा खोला वो बेटे पे थोड़ी गुस्सा हुई....बेटा पसीने पसीने थकि हालत में घर लौटा अपनी शर्ट के दो बटन खोले पंखे के नीचे हवा खाने लगा

अंजुम : क्या हुआ आज भी नौकरी नही मिली?

आदम ना में सर हिलाया...उसने बताया कि सॅलरी बहुत कम थी और उपर से स्टाफ का बिहेवियर काफ़ी रूड था....माँ ने उसके कंधे पे हाथ रखा और उसे शांत किया....आदम जब बाहर आया नहा कर तो उसे गरमा गरम खाना देख ज़ोरो की भूक लग गयी वो सुबह से ढंग से तो कुछ ख़ाके भी नही गया था....माँ उसे देख रही थी कि उसका बेटा अपने अरमानो को कुचले सिर्फ़ उसके लिए यहाँ आके कैसे काम के लिए दर दर भटक रहा है....सिर्फ़ अपनी माँ को संभालने और खुद को एक ज़िम्मेदार मर्द बनाने के लिए...माँ आज भी उससे मज़ाक मस्ती करने लगी ताकि उसका मूड थोड़ा ठीक हो जाए...

आदम : क्या माँ? क्या कर रही हो ? गुदगुदी होती है

(अंजुम ने बेटे के पाँव पे उंगली करते हुए कहा)

अंजुम : हाहाहा मुझे अच्छा नही लगता कि तू दुखी होता है? काए को इतना स्ट्रेस ले रहा है सब ठीक हो जाएगा तुझे मिल जाएगी नौकरी यहाँ नही तो कहीं और सही जहाँ भी तू चाहेगा

आदम : माँ आप कह रही हो कि मैं बंगाल में ढूँढ लूँ हाहाहा आपको तो बंगाल पसंद नही

अंजुम : हां पसंद नही पर तू ही देख तेरे पिताजी क्या मुझे खुशिया दिए? आज बुड्ढे हो गये है मुझसे 20 साल बड़े है और अब प्राइवेट नौकरी से कब वो हाथ धो ले कोई मालूम नही इतना सब सामान लिए ये किराए का घर क्या होगा हमारा? कहाँ जाएँगे हम? एक स्थान तो होना ज़रूरी है ना बोल

आदम : हां माँ पर मैं नही चाहता कि तू मेरी वजह से बंगाल में जाके रहे

अंजुम : अब तेरे सिवा मेरा है ही कौन? उस दिन मैने तेरी आँखो में खुद के लिए जो प्यार देखा मुहब्बत नही कसम ख़ाके कहती हूँ ऐसा प्यार मुझे तो अपने किसी प्यार करने वाले से भी नही मिला था और मैं इतनी भाग्यशाली हूँ कि मुझे प्यार भी अपने इकलौते बेटे का मिल रहा है बस मैं ये नही चाहती कि मुझ जैसी बुढ़िया के लिए.........

आदम : माँ फिर शुरू हो गयी तुम किस मदर्चोद ने बोला कि तू बुढ़िया है बोल इतनी जवान है आज भी अगर मॉडर्न ड्रेसस पहने ना तो कोई फरक नही बता पाएगा

अंजुम : अच्छा जी यानी अब तुझे अपनी माँ 25 साल की लड़की दिखती है

आदम : मेरी उमर की लगती हो हाहहाहा

अंजुम भी हँसने लगी अचानक उसकी कमर में दर्द शुरू हो गया..."उफ्फ बेटा लगता है गॅस का दर्द है उफ्फ ये भी ना रह रहके हो जाता है"......माँ अपनी कमर पकड़े दर्द से बिलबिला उठी..

."माँ क्या हुआ? ऑश शिट"......बेटे ने तुरंत माँ को लिटाया और दस्तर्खान पे रखी खाने की प्लेट्स सिंक में रखते हुए वापिस कमरे में लौटा

अंजुम : बेटा कुछ दिनो से खुलासा नही हो रहा इसलिए गॅस पेन होता रहता है

आदम : माँ तूने कुछ खाया नही आज?

अंजुम : तू था नही क्या खाती?

आदम : उफ्फ ये भी कैसी ज़िद है तेरी? रुक पड़ गये ना लेने के देने जब तुझे पता है कि खाली पेट रहने से तुझे गॅस बनता है फिर भी तू (आदम ने दवाई माँ को देते हुए कहा)

माँ ने दवाई खाई और वहीं बिस्तर पे पेट के बल लेट गयी....कुछ देर बाद आदम को महसूस हुआ कि माँ ठीक हो गयी है...उसने माँ की कमर पे हाथ रखके थोड़ा सा दबाव दिया तो अंजुम को कोई अहसास नही हुआ...."माँ लगता है कमर दर्द ठीक हो गया मैं थोड़ी लगे हाथो मालिश भी कर दूं तू पूरे दिन काम की है सोई भी नही होगी है ना".........अंजुम ने मुस्कुराते हुए ना में इशारा किया

आदम तेल ले आया...फिर उसने माँ को बोला कि जंपर उतार ले लग जाएगा पर माँ ने कहा नही जंपर उपर कर और वैसे कमर पे तेल लगा दे....पर आदम ने ज़िद्द की क्यूंकी जंपर गंदी हो सकती थी....माँ ने उठके अपने जंपर को अपने कंधो से होते हुए बाज़ुओ से निकल उतार फैका...और वापिस पेट के बल लेट गयी...इस बीच माँ की दोनो कांख में उगे बाल देख आदम की आँखो में चमक सी आई

माँ ने सिर्फ़ एक ब्रा पहनी हुई थी उसने आराम से तेल हाथो में लेके कमर के चारो तरफ हल्की बूँदें टपकाई...उसके बाद दोनो हाथो से मालिश शुरू की...माँ को आराम मिलने लगा बेटे के हाथो के स्पर्श से उसे काफ़ी राहत महसूस होने लगी.....

अंजुम : ह्म काफ़ी अच्छा मालिश सीख ली है तूने कहाँ से सीखा?

आदम : हाहाहा बस एक फ्रेंड था नेट फ्रेंड उससे सीखा था (आदम को याद आया कि उसने ठीक ऐसी ही मांलीश ताहिरा मौसी की की थी एक पल को उसे अहसास हुआ चुदाई का उसे मालूम नही था कि उसका लिंग माँ की टाँगों के बीच अकड़ गया है माँ को अहसास हो सा गया था)

आदम फुरती से कमर की अच्छे से मालिश कर उठ खड़ा हुआ..."चल थोड़ा पेट की भी कर देता हूँ और टाँगों की भी".........आदम ने माँ को ज़िद्द करते हुए कहा

अंजुम : नही नही काफ़ी है बेटा बहुत आराम मिला है क्यूँ खामोखा पूरी बॉडी का करेगा अच्छा नही लगेगा

आदम : प्लीज़ आपसे वादा किया था मैं हर मुमकिन खुश रखूँगा प्लीज़ ना मत करो प्लीज़ अपने बेटे के हाथो की मालिश से देखना आप का बॉडी फ्री हो जाएगा

अंजुम : चल ठीक है पर मैं सो गयी तो तेरे बाप का रात के लिए खाना कौन बनाएगा?

आदम : मैं कर दूँगा ना छोड़ो ना उसकी बात उससे वैसे भी हमे क्या मिलने वाला है? इतनी सेवा तो करती ही हो उनकी

आदम के काफ़ी ज़ोर देने पे अंजुम सीधी लेट गयी...उसने अपने दोनो बाज़ू सर के आज़ु बाज़ू सीधे कर लिए....इस बार आदम ने देखा कि उसकी माँ का फटा (स्ट्रेच मार्क्स) पेट कितना सेक्सी लग रहा था...आदम ने तेल की बूँदें कुछ नाभि में डाली और कुछ पेट के आस पास

अंजुम : अपने घर को देख रहा है (माँ ने बेटे को अपनी नाभि और पेट घूरते हुए पाया बेटे का हाथ तेल से सना हुआ हाथ उसके पेट पे था)

आदम : हाहाहा तू भी ना

फिर उसने माँ की तोंद हल्की सी निकली पेट की मालिश शुरू कर दी साथ ही साथ उसकी नाभि में भी उंगलिया चलाई....अंजुम गुदगुदा जाती एक पल को हाथ आगे किए आदम को रोक देती...लेकिन आदम भी मस्ती करता हुआ मुस्कुराए माँ के गुदाज़ पेट पे हल्की हल्की मालिश किए जा रहा था...उसके बाद उसके हाथ पाजामे के नाडे के पास आए और उसने डोरी खोली....अंजुम उसे मना करने लगी

अंजुम : बेटा नही नही खोल मत खोल मत हाहाहा मत खोल ना अर्रे क्या कर रहा है ऐसे उपर से कर दे (अंजुम उठने लगी तो आदम ने उसे लेटा दिया)

आदम : माँ तू लेटी रह ना क्यूँ इतना हड़बड़ा रही है? हट कुछ नही होता
 

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बेटे की ज़िद्द के आगे माँ क्या कर पाती?...खैर वो चुपचाप आँखे मुन्दे लेटी रही....बेटे ने पाजामा पूरा उतार दिया माँ ने ब्राउन रंग की पैंटी पहनी हुई थी...उसने दोनो टाँगों पे लगभग तेल डाला और जांघों की मालिश करते हुए घुटनो को मलने लगा....माँ को भरपूर आराम मिल रहा था और साथ ही साथ उसे महसूस हो रहा था अपनी टाँगों के बीच के अन्द्रुनि हिस्से में एक अज़ीब से अहसास का....टाँगों की भरपूर मालिश करते हुए आदम ने पाँव पे भी तेल गिराया और एडी तक को उठाए अच्छे से मालिश किया एक एक उंगली की....माँ बेटे के सामने तेल से लथपथ सिर्फ़ ब्रा पैंटी में थी....बेटे ने दोनो ने टाँगो को नीचे रख दिया और इस बीच उसके हाथ वापिस से पेट पे आए और नाभि को उंगली करने लगे..

."बेटा हो गया ना छोड़ ना अब".......माँ ने धीमे से कहा

आदम : क्या हुआ माँ तुझे अच्छा नही लग रहा ?

अंजुम : बहुत वक़्त हुए जा रहा है अब बस रहने दे अर्रे बेटा यहाँ क्यूँ हाथ दे रहा है (उसे अहसास हुआ कि बेटे ने अब उसके ब्रा के ठीक उपरी छाती के उभारों के ठीक उपर गले और छाती के हिस्से पे हाथ रख दिया )

अंजुम उसे मना करने लगी...पर आदम ना माना उसने थोड़ा सा तेल माँ की छाती पे डाला और वहाँ मालिश करने लगा बार बार उसका हाथ ब्रा मे क़ैद चुचियो से लग जा रहा था...फिर माँ के दोनो गले के हिस्सो से लेके कंधे को मालिश करते हुए आदम माँ को देखके मुस्कुरा रहा था

अंजुम : बेटा उफ्फ बेटा बस भी आहह सस्स (अंजुम की साँसें जैसे तेज़ हो उठी...उसने कुछ नही कहा फिर)

बेटा मालिश करता रहा....और ठीक इसी बीच जब उसे अहसास हुआ..तो पाया कि उसके दोनो ब्रा के उपर बेटे ने हाथ रख दिया था...."आहहस्स नहिी नहिी वहाँ नही बेटा वहाँ नही".....माँ ने बेटे से अनुरोध दृष्टि से कहा...

आदम को अहसास हुआ कि उसने अपनी माँ से कहा था कि उसका प्यार उसकी वासना नही...एकदम से आदम अपनी साँसों पे काबू पाता हुआ ब्रा में क़ैद दोनो चुचियो के उपर से हाथ हटा देता है माँ एकदम गंभीरता से उसे देख रही थी

वो मँफी माँगता हुआ अपनी साँसों पे काबू पाए कमरे से निकल जाता है...अंजुम को अहसास होता है कि उसकी टाँगों के बीच की पैंटी एकदम गीली थी....वो हैरत में पड़ जाती है कि ये उसकी ज़िंदगी में पहली बार था जब वो इतनी कामुक होके झड गयी थी....ये उसकी ज़िंदगी का पहला ऑर्गॅज़म था..वो भी उसके बेटे के हाथो के स्पर्श के बदौलत उसे काफ़ी अज़ीब सा लगा....बेटे के बाथरूम से निकलते ही वो फ़ौरन वैसी ही ब्रा पैंटी पहने बाथरूम में चली गयी...बेटे ने एक बार अपनी माँ अंजुम के जाने से उसके पीछे से हिलते नितंबो को पैंटी के उपर से ही घूरा...माँ नहा रही थी...

वो अपने पूरे बदन पे हाथ फेर रही थी...डॉक्टर की बात उसके बाद बेटे की मांलीश उसे धीरे धीरे उत्तेजित कर रही थी....मर्द का स्पर्श जो कि उसके बेटे के हाथों का था...कैसे वो खुद पे काबू नही रख सकी...उसने पाया कि उसकी पैंटी बहुत गीली थी उसमें सफेद वीर्य जैसा कुछ लगा हुआ था...उसने पैंटी वहीं फैकि और उसे अच्छे से धो लिया साथ ही साथ उसने अपनी चूत पे हाथ रखा जो एकदम गीली थी....बदहवास उत्तेजना से परिपूर्ण माँ नहा कर बाहर लौटी...वो बेटे से शरमाते हुए नज़र तक नही मिला पा रही थी....आदम ने कोई जवाब नही दिया माँ अंदर कपड़े बदलने गयी तो दरवाजे पे दस्तक हुई...अंजुम थोड़ी चौंक उठी उसने कपड़े लिए और दूसरे कमरे मे लेके चली गयी...

आदम ने दरवाजा खोला तो पाया उसका पिता बाहर खड़ा था....उसके बाद अंजुम खाना बनाने चली गयी....तो आदम कुछ देर चुपचाप रहा...फिर अंजुम ने आवाज़ दी...पिता जी टीवी पे न्यूज़ देख रहे थे दूसरे कमरे में....अंजुम ने नॉर्मली बर्ताव से उसका हाथ बटाने को कहा....आदम ने ठीक वैसा किया..उसे खुशी थी कि माँ को कोई चीज़ बुरी नही लगी थी....

दूसरा दिन नॉर्मल ही गुज़र रहा था....दोनो माँ-बेटे फिर एकदुसरे से बातों में लग गये ऐसा लग रहा था पिछली रात जो कुछ भी हुआ उसमें दोनो में से किसी को कोई बुराई ना लगी....आज आदम गया नही कहीं...उसने माँ के साथ पालक का साग तोड़ते हुए बातें शुरू की

आदम : माँ तुम वॅक्स क्यूँ नही करती? कितने बाल उगे हुए है बालतोड़ हो जाएगा

अंजुम : मैने बहुत पहले छोड़ दिया था असल में गाँठ बन गयी थी वहाँ पे इसलिए अंडरआर्म्स करना छोड़ दिया

आदम : समीर तो अपनी माँ को हर टाइम ब्यूटी पार्लर भेजता रहता है वो भी हमारी तरह रहते है बिल्कुल अलग और अकेले

अंजुम : तेरा समीर भी अज़ीब है तेरी तरह लेकिन सच में वो इतना सोफीया को तय्यार क्यूँ रखता है?

आदम : उससे मुहब्बत जो करता है दोनो माँ बेटे कम और मिया बीवी की तरह ज़्यादा रहते है

अंजुम : छी या अल्लाह एक माँ होके अपने बेटे

आदम : माँ इसमें क्या बुराई है? वो दोनो खुश है तू देखती नही कि दोनो एकदुसरे के बिना रह नही पाते एकदुसरे की खुशियो के लिए क्या कुछ नही कर गुज़रते

अंजुम : तो इसका मतलब क्या वो अपनी माँ के साथ हमबिस्तर होता है? (माँ जैसे सवाली निगाहो से पूछी थी)

आदम : ह्म कुछ ऐसा ही (अंजुम हैरत से सोच में पड़ जाती है फिर नज़रें इधर उधर करते हुए बेटे को हया भरी नज़रो से देखती है)
 
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अंजुम : तुझे ऐसा क्यूँ लगता है? क्या पता? ये झूठ हो

आदम : समीर मुझे सबकुछ खुल्लम खुला बताता है

अंजुम : या अल्लाह क्या बताता है तुझे?

आदम : तुम बुरा तो नही मानोगी ना

अंजुम : नही

आदम : तो ठीक है एक किस्सा सुनाता हूँ तुम्हें उन दोनो का (जैसे ही आदम कुछ कहने वाला होता है इतने में पास रखा फोन बज उठता है)

आदम पालक को छोड़ फोन रिसीव करता है "हेलो?"......."हां बेटा अर्रे कामून आछो? बाबू अर्रे हम बोल रहा है तुम्हारा अंकल मोर्तुज"......."अर्रे हां अंकल कहिए कैसे याद किया?"..........माँ बेटे को चहेकते हुए किसी से बात करते आश्चर्य भाव से देख रही थी....क्यूंकी फिर आदम उनसे बिंगाली में बात करने लगता है....मोर्तुज काका असल में तबस्सुम के पिता हैं....जिसको आदम ने प्रेग्नेंट किया था...अपनी तबस्सुम दीदी के पिता की बारे में आदम को इतना मालूम था कि वो काफ़ी अमीर थे और उनका बिज़्नेस लगभग आदम की तरह था

मोर्तुज काका : अच्छा बेटा मैं कह रहा था कि मैं दिल्ली आता रहता हूँ लेकिन कुछ दिनो पहले दिल्ली से घर लौट रहा था तो हार्ट प्राब्लम उठ गया था काकी शायद तुम्हें बताई नही होगी

आदम : ओह हो अंकल उफ्फ आप ठीक तो है? पर आप एकदम से आज मुझे कॉल?

मोर्तुज काका : कल हम तुम्हारे घर कॉल किया था? और तुम्हारी माँ से बात की तुम्हारे बारे में सुना था कि तुम इतनी अच्छी नौकरी पे यहाँ थे फिर एकदम से शहर आ गये माँ से मिलने तो अभी क्या हुआ फिर तुम वापिस नही आ रहे?

आदम : अंकल असल में माँ की इच्छा थी कि मैं किसी काबिल बन जाउ और वो नौकरी में मुझे छुट्टी नही मिल रही थी इस वजह से वो नौकरी लगभग छोड़के आना पड़ा

मोर्तुज काका : उफ्फ इतनी बड़ी बात हुई और तुमने मुझे बताया नही तुम्हारी माँ से बात करने के बाद तुम्हारी दीदी हां सुना तो होगा दो बच्चे जनम दिए उसने

आदम : अर्रे वाह काका बधाई हो (आदम मन ही मन इस खुशख़बरी को सुन काफ़ी खुश था वजह आप लोग जानते थे क्यूँ? )

मोर्तुज काका : ह्म बस बस सब उपरवाले का करिश्मा है

आदम : अभी उनका घर कैसा चल रहा है अंकल? (आदम को जानने की उत्सुकता थी)

मोर्तुज काका : किसका तुम्हारी दीदी तबस्सुम का बहुत अच्छा घर चल रहा है उसका ससुराल वाले तो बस हाहाहा उसे अपनी बेटी सा मानते है दामाद जी भी बाप बनने के बाद खुश है अब तो यहाँ गाड़ी से आती है तबस्सुम खुद ड्राइव करते हुए कोलकाता से हाहाहा बाबा खैर बेटा जो भी रहे तुम्हारे पिता हमसे बात नही करते तो तुम तो कम से कम यहाँ आते 1 साल से थे यहाँ इतने दिनो के बीच कभी ना कभी हमारे पास आते अर्रे हम तो खुद ही रेप्रेज़ेंटेटिव थे अब देखो हम खुद डिस्ट्रिब्यूशन मार्केटिंग का बिज़्नेस करते है

आदम : नही अंकल माफी चाहूँगा बस कुछ वजह थी असल में मैने आपका घर देखा हुआ नही था

मोर्तुज काका : अर्रे तुम्हारी तबस्सुम दी के साथ आ जाते वो तो यहाँ थी ना

आदम : नही अंकल सच में तबस्सुम दी से कभी कभी मुलाक़ात हुई थी और मैं उसके बाद ही घर चला आया था (आदम ने झूंट कहा था वो ये तक छुपाया कि वो 7 दिनो तक तबस्सुम दी से मिला था सच पे उसने परदा डालते हुए झूठ कहा)

मोर्तुज काका : कोई बात नही बेटा खैर घर का मामला घर के बड़ों तक रहने दो मुझे जानके बेहद खुशी हुई कि तुम मेरे फील्ड में हो खैर मैं चाहता था कि तुमसे बात करूँ मेरा माल दिल्ली से बेंगाल आता है ठीक है तो अब तो जैसा मालूम चला है तुम्हें कि मेरी हालात ठीक नही रहती तो जो काम तुम गैरो के लिए करते थे वो अपने घर के लिए एक मालिक की तरह करो देखो बेटा मेरा कोई बेटा नही है और तुम भी तो अपने घर के लड़के जैसे हो यहाँ तुम्हारी बुआ और मैं अकेले रहते है

आदम चुपचाप सुनता रहा...."तो यही मैं चाह रहा था.कि क्या तुम मेरे लिए काम करोगे?".....आदम को काफ़ी खुशी हुई उसने माँ से इशारो में कहा कि उसे नौकरी एक तरह से मिल रही है माँ ने तुरंत हां में जवाब देने को कहा...आदम को भी खुशी थी कि वो वापिस अपने होमटाउन जा सकता था

आदम : हां अंकल मैं तय्यार हूँ

मोर्तुज काका : वाहह यही मैं जानने को बेताब था मैं जल्द ही वहाँ दिल्ली आ रहा हूँ तुम्हारे घर हम वहीं बात करेंगे मैं तुम्हें काम समझा दूँगा और तुम फिर यहाँ से भी चाहो या दिल्ली से भी चाहो काम कर सकते हो पर दिल्ली लोंग पड़ेगा और बेंगाल से करने पे आसान है

आदम : ठीक है मैं तय्यार हूँ मैं वापिस अपनी जगह आ जाउन्गा आप फिकर ना करे

मोरटूज़ काका : अच्छा ठीक है बाबा ओके ओके बाइ बेटा थॅंक यू सो मच

आदम : बाइ अंकल

आदम खुशी से माँ के गले लग गया उसने माँ को तफ़सील से सारी बात कही...पहले तो वो हिचकिचाया फिर माँ ने उसके बढ़ते हौसले को देखा और कहा कि जब घर में ही नौकरी मिल रही है तो आगे चलके बिज़्नेस भी कर सकता है किसी का मोहताज नही बनना होगा...माँ ने बेटे से कहा कि वो वापिस अपने शहर चला जाए..लेकिन आदम माँ को छोड़ना नही चाहता था...माँ ने उसके हाथो में हाथ रखत हुए कहा

अंजुम : मैं नही कहती थी खुदा सब देख रहा है मेरी दुआ ज़रूर कबूल करेंगा

आदम : हां माँ खुदा ने आज मेरी सुन ली

अंजुम : चल ठीक है आज तेरे पिताजी को आने दे उनसे बात करती हूँ पर तू कुछ भी काम की बात नही कहेगा पहले काकु को आने दे उनसे जॉब फिक्स कर फिर काम समझ उसके बाद मैं खुद तेरे साथ तू जहाँ जाएगा वहाँ मैं जाउन्गी

आदम : ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी आज मुझे आपने दी है माँ आइ लव यू माँ आइ लव यू

अंजुम : आइ लव यू टू आदम (माँ ने एकदम से बेटे के होंठो को चूम लिया और उसके गले लिपट गयी आदम को अच्छा अहसास हो रहा था माँ के होंठो की चुंबन की जलन अब भी उसके चेहरे पे थी)
 
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रात को पिता जी आए ज़रूर लेकिन वार्तालाप बहस में तब्दील फिरसे हुई इस बार बेटे ने बढ़ते कलेश के बीच पिता को झिंजोड़ दिया...और उससे कहा कि वो जहाँ उनका दिल करे जाएँ लेकिन उसे और उसकी माँ को छोड़ दें....अंजुम का पति बेटे से डरता था उसने एक बार अंजुम की तरफ देखा अंजुम ने भी सॉफ गुस्से में बेटे का पक्ष लेते हुए वोई बात दोहराई...पति ने सॉफ एलान किया कि ठीक है अगले महीने मेरी नौकरी वैसे भी नोएडा जा रही है तुम दोनो के जो जी में आए सो करो...आदम और उसकी माँ ने फिर कुछ नही कहा...मूड ज़रूर उखड़ गया था माँ-बेटे का पर वो खुश थे क्यूंकी एक नयी राह उन दोनो को एकदुसरे के करीब ले आई थी...

रात के कलेश के बाद माँ-बेटे दोनो एकदुसरे से बिना बात किए करवटें लिए सो गये थे...अगले दिन पति के जाने के बाद अंजुम फिरसे नॉर्मल हो गयी थी...वो घर का काम सुबह सुबह जल्दी उठके निपटा रही थी....बेटा अब भी खुले बदन बस एक ढीला पाजामा रात का पहना हुआ बिस्तर पे पेट के बल सोया पड़ा हुआ था....

माँ घड़ी घड़ी काम करते हुए अपने बेटे को देखे जा रही थी....उसे ना जाने क्यूँ उस पर एक अज़ीब सा प्यार उमड़ रहा था...लेकिन वो बिना उसे डिस्टर्ब किए काम करने लगी...सुबह 11:30 के करीब आदम की जब नींद खुली तो उसने पाया कि उसकी माँ बरामदे में ही कपड़े धो रही थी....बेटे को जागता देख उसने मूड कर मुस्कुराया आज भी उसकी पीठ गीली हो गयी और जंपर का कपड़ा पीठ से एकदम गीला होने से चिपक गया था...माँ की ब्रा स्ट्रीप दिख रही थी..

अंजुम : तू उठ गया है तो जा हाथ मुँह दो ब्रश कर और बाथरूम से फारिग हो जा फिर मुझे अपने कपड़े दे दे..मैं धो दूँगी

आदम : अर्रे माँ आज आप सुबह सुबह काम करने लगी..

अंजुम : बेटा जल्दी कभी कभी फारिग होने से बाद में आराम कर सकती हूँ फिर दोपहर का खाना भी तो बनाना है

आदम : माँ मैं कुछ मदद करूँ

अंजुम : फिलहाल तो कपड़े दे दे अपने

आदम ने जो पाजामा पहना हुआ था माँ ने उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा....बेटा दूसरे कमरे में गया और उसने अपना पाजामा उतारके एक टवल लपेट लिया...वो बाहर आया और माँ के गीले कपड़ों के सने टब में अपना कपड़ा डालते हुए अंदर चला गया...माँ कपड़ों को धोने लगी...

बेटा भूका था और वो खुद भी इसलिए उसने कपड़े बाद में निचोड़ने का फ़ैसला किया और हाथ धोए सीधा किचन में चली गयी...कुछ ही देर में दोनो ने एक साथ नाश्ता किया और फारिग होते हुए आदम भी काम में जुट गया...उसने झूठे बर्तन और चूल्हे को सॉफ किया फिर दूध लाने दुकान चला गया...उसके बाद घर आके उसने पोछा लगाया.....आज उसके चेहरे पे कोई उदासी नही थी कल उसकी तबस्सुम दीदी के पिता यानी उसके मोरटूज़ काका ने उसे काम जो दिलवा दिया था....एक पल को तबस्सुम दीदी और अपने बीच में हुए वाक़ये को याद करते हुए वो पाजामे के उपर से ही अपने लंड को अड्जस्ट कर रहा था...जो अकड़ गया था

उफ्फ मोर्तुजा काका को क्या पता? कि उसी की बदौलत उसकी बेटी की कोख सुनी से हरी हुई है....उसका ग्रहस्थी बचाने वाला कही ना कही वो ही ज़िम्मेदार था...एक तरह से मोरतुज़ा काका का वो भी तो दामाद ही लगा हालाँकि तबस्सुम दीदी ने जो बच्चे पैदा किया थे वही तो उन बच्चो का असल बाप था ...मन ये सब बुदबुदाते हुए आदम को मज़ा आ रहा था इतने में
उसने पाया कि माँ फोन पे लग गयी है...आदम ने ध्यान नही दिया और वो पोछा लगाने के बाद माँ को कह कर नहाने चला गया....माँ थोड़ा ज़ोर से बोलती थी इसलिए उनकी आवाज़ और हँसी बाथरूम तक सुनाई दे रही थी...बात ताहिरा मौसी और उसकी बहू की हो रही थी...आदम को प्रेग्नेन्सी से याद आया कि कहीं ना कहीं जब वो वापिस लौट रहा था तो उसने रूपाली को भी तो पेट से कर दिया था...सोच की कशमकश में ताहिरा मौसी और उसके नाजायज़ रिश्ते की पोल जब रूपाली के सामने खुली थी तो किस तरह उसने आदम से रिक्ट किया था...उफ्फ आज भी उसे याद किए आदम खुद को कोस्ता था....अपनी ही भाभी को उसने प्रेग्नेंट किया था....चर्चा उसी विषय पे हो रही थी फोन पे...आदम सबकुछ भुला नहा के फारिग होके बाहर निकला

माँ खाना बनाने में लग गयी थी....तो आदम माँ के पास जाके उनके कहे अनुसार उनका हाथ बटाने लगा....अभी उसने पतीले के गरम पानी में चावल डाले ही थे कि माँ जो सिंक के पास खड़ी थी बर्तन धोने के लिए एकदम से मूडी जिससे आदम की कोहनी सीधा माँ की दाई चुचि से टकराई....अफ माँ की गुदाज़ नरम छाती को कपड़े के उभार से ही आदम को महसूस हुआ... पर माँ ने ध्यान नही दिया वो बेटे के पीछे खड़ी हाथ दिए मसाले की बॉटल्स सामने रख रही थी इसलिए बार बार उसके झुकने से उसकी छातिया आदम की कोहनी से रगड़ खा जाती...इस अहसास से आदम को मज़ा मिल रहा था उसने जानके माँ की लेफ्ट साइड की चुचि पे लगभग थोड़ा ज़ोर से हाथ को सीधा करने के बहाने कोहनी रगड़ दी...माँ की इस बार निपल्स से कोहनी छुई थी जैसे...आदम ने हाथ नीचे कर लिए...बेटे के इस कदर छू जाने से अब तो माँ को अभी अज़ीब सा अहसास हुआ वो आदम को देखने लगी जो ऐसे भाव प्रकट कर रहा था कि काम में जुटा हुआ हो

माँ ने हालत को पलटने के लिए...आदम के साथ आई और उसे कटी हुई सब्ज़िया कड़ाई में तेल गरम करके डालने को कहती है...आदम माँ को लंबी लंबी साँसें लेते देख थोड़ा हैरान सा होता है और उसे लगता है शायद उसकी हरकत से ही माँ को कुछ कुछ हुआ है...दोनो फिर कुछ देर तक चुपचाप हो जाते है....इतने में माँ के मुँह से स्वर फूटता है

अंजुम : आज तेरी नानी से बात हुई ताहिरा की बात कर रही थी

आदम : क्या हुआ ताहिरा मौसी को?

अंजुम : उसको क्या होगा? बस सुना है कि मधुमेय रोग हो गया है पति की बीमारी उसे भी लग गयी

आदम को बेहद दुख हुआ था....इस तरह होमटाउन छोड़ने के बाद ऐसी खबर मिलेगी उसे यक़ीनन विश्वास नही था....उसे बुरा लगा कितना मज़ा ताहिरा मौसी ने उसे दिया था....कितना अटूट रिश्ता था मौसी भानजे के बीच फिर भी आदम अंजान बना चुपचाप सुनता रहा

अंजुम : जो भी रहे बहन है चाहे हमारे बीच जितनी भी नोक झोक रहे परवाह तो है ही खैर वो बड़ी खुश है उसकी बहू रूपाली ने बेटे को जनम दिया है

आदम : ओह क्या नाम रखा है ? (आदम मन ही मन माँ के खुश होने से शरमा रहा था उसे क्या पता कि वो दादी बन गयी दोनो तरफ से अपनी भतीजी से भी और अपनी मौसेरी बहू से भी पर ये सब राज़ तक ही दफ़न रहना चाहिए वरना उसका रिश्ता माँ से ख़तरे में पड़ सकता था)

अंजुम : राहिल नाम रखा है

आदम : वाह बड़ा प्यारा नाम है

अंजुम : और सुन तेरी मौसी भी क्या बकती है? कि उसके बेटे से ज़्यादा नैन नक्श में तेरे जैसा दिखता है सच में मतलब कुछ भी बक देती है कमीनी...खैर बेटे के जनम के बाद से ही उसका बाप यानी तेरा बिशल दा घर से और दूरी बनाए रहता है....पहले पहले तो बच्चा खूब खिलाया पर आजकल बीवी के ही घर में पड़ा रहता है
 
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आदम एक पल को चुपचाप हो गया क्यूंकी नैन नक्श की बात कह कर जब उसकी माँ ताहिरा की हँसी मज़ाक पे क्रोधित हुई तो महसूस हुआ उसे कि घरवाले सभी अंजान है सिवाय रूपाली और उसके कि वो किसके बीज का है.....आदम बस चुपचाप ही रहा उसने कोई जवाब नही दिया मन में मन काफ़ी खुश भी हुआ लेकिन ग्रहस्थी सुधरने की बजाय और फिर बिगड़ गयी ये सुनके उसे बुरा लगा

आदम : और रूपाली? भाभी?

अंजुम : नौकरी छोड़ दी है उसने सिर्फ़ अपने बेटे पे ही ध्यान देती है....और अब काम भी कैसे करेगी? एक बच्चे की माँ हो गयी संसार ग्रहस्थ जीवन से उसे टाइम मिलेगा तभी तो जॉब वोब कर पाएगी...जाने दे उन लोगो की बातें अच्छा मैं नहाने जा रही हूँ लेट हो रहा है तू चावल का पानी गिरा कर चावल को सूखा देना

इतना कह कर माँ नहाने के लिए बाथरूम चली गयी....खैर मैने खुद को समझाया अब क्या फायेदा पुरानी बातों को सोचके? जो हो गया सो हो गया अपनी थरक बुझाने के चक्कर में जो नाजायज़ संबंध बनाए उस पर तो विराम कभी ना कभी लगना था शायद रिश्तो की लाज बचाने के लिए...लेकिन मैं रूपाली का दुख समझता था..दुआ यही कर रहा था कि अगर दुबारा होमटाउन जाना पड़ा तो उससे भेंट ना हो....मैं वापिस से काम पे ध्यान देने लगा

चावल का पानी सुखाने के बाद चूल्हा बंद करके मैने अपने कमरे के दरवाजे को लगाया....खिड़की का परदा सब दूसरे कमरे का बराबर कर दिया....बाहर के मेन डोर की भी अच्छे से जाँच करते हुए कुण्डी लगा दी...क्यूंकी माँ नहा कर जब निकलती थी तो उसे घर खुला रहना पसंद नही था....मैने एक बेवकूफी कर दी थी कि जिस कमरे में मैं दरवाजा लगाके बैठ जाता था माँ के नहाने के वक़्त उस कमरे की कुण्डी मैने ठीक ढंग से बिना देखे लगा दी थी जिस वजह से कुण्डी ढीली खुली सी रह गयी इस बात का ध्यान मुझे बाद में हुआ था...

मैं धीरे धीरे वापिस अकेलेपन की तन्हाई में वापिस चुदाई के वो दिन याद करने लगा...जब एक दिन भी मेरा किसी औरत के बिना नही कंटता था...मुझे चंपा का ख्याल आया कि उस खूबसूरत रंडी ने मुझे कितना मज़ा दिया था....आज उसी की बदौलत मैं दिल्ली में वापिस अपनी माँ के पास था....उफ्फ उस रात की रॉल्प्ले में हमने कितने मज़े किए थे सोचते हुए मैने अपना स्मर्टफ़ोने ऑन किया और इंटरनेट पे एक मस्त सी सेक्सी ब्लू फिल्म देखने लगा

जल्द ही पाजामा मेरे घुटनो से भी नीचे था और मैं एकदम नंगा पलंग पे लेटा अपने लंड को आगे पीछे मुठिया रहा था..अपनी आँखे मूंदते हुए मैं उन चुदाइयो की दृश्य याद करता हुआ उत्तेजित हो रहा था....मेरा 8 इंच का लंड मेरे हाथ मे एकदम मज़बूती से पकड़ में था..उसे मुठियाते हुए मैं उसकी फूली हुए चॅम्डी कटे सुपाडे के छेद को भी मसल रहा था

ब्लूफिल्म में एक हबशी एक हिजाब वाली औरत को चोद रहा था....वो काफ़ी ज़ोर ज़ोर से चीख रही थी इसलिए मुझे लगभग मूट कर देना पड़ा...मेरी हिलने की रफ़्तार तेज़ हो गई...लेकिन मेरे लंड से एक भी वीर्य की बूँद नही निकली..मुझे खुद पे नियंत्रण करना जो आ गया था....इतने महीनो से बिना चुदाई के रहने से मेरे तन बदन में उत्तेजना की आग लग रही थी...

अचानक अंजुम बाहर निकली और उसने अपने गीले बदन पे तौलिया लपेटते हुए आगे कदम रखा ही था कि अचानक उसकी नज़र बेटे की नंगी टाँगों से टकराई जो अध खुले दरवाजे से दिख रहा था...ना जाने क्यूँ उसके मन में ये विचार आया कि उसका बेटा अंदर नंगा होके क्या कर रहा है? वो एकदम से दरवाजे की ढीली कुण्डी लगभग खोलते हुए दरवाजे को थाम लेती है मज़बूती से ...जिससे दरवाजा आवाज़ करते हुए खुल नही पाता..वो उसी अधखुले दरवाजे मे से सर अंदर किए अपने बेटे की हालात को देख लेती है...ये देखते ही उसकी साँसें थम जाती है....और वो मुँह पे हाथ रखती है

उसका बेटा मारे उत्तेजना में अपने लंड को आगे पीछे हिला रहा था....माँ ने उसके लंड को घूरा....जो पहली बार उसने देखा था....उसका लंड फन्फनाता हुआ मुट्ठी में कॅसा बेटे की एकदम उत्तेजना में सीधा खड़ा था..उसकी मोटाई और लंबाई देख माँ थूक घोटने लगी...क्यूंकी इतना विशालकाय लिंग तो उसके पति का भी नही था....ये देखते हुए वो चुपचाप कुछ देर वैसे खड़ी रही एक पल को उसके मन ने कहा कि शरम कर तेरा बेटा है...वहीं उसकी बॉडी ने उसे खड़े रहके दृश्य को देखके मज़ा लेने को बोली देख तेरा बेटा कैसे तड़प रहा है देख तेरा नाम ले रहा है वो?....सच में आदम उत्तेजना में अपने होंठो से माँ का नाम लिए जा रहा था...

माँ को अहसास हुआ कि तौलिए के भीतर उसे उसके निपल्स कठोर और सख़्त महसूस हो रहे है और उसकी टाँगों के बीच एक अज़ीब सी खुजली सी हो रही है...उसने कस कर तौलिए को टाँगों के बीच दबाया और गुलाबी निगाहो से अपने बेटे के लंड को मुठियाते देखने लगी उसने एक शब्द नही मुँह से निकाला

ओह्ह्ह मामा आहह सस्स....वो अपनी आहों में अपनी माँ के नाम की मूठ मारता उत्तेजना में भरपूर लंड की खाल को आगे पीछे मसल रहा था और माँ बाहर खड़ी उसे लुफ्त उठाते देख रही थी अब तक उसके हाथो मे रखे फ़ोन पे माँ की नज़र नही पड़ी थी क्यूंकी स्मार्टफॉन कबका बंद कर अब आदम माँ के नाम की मूठ मार रहा था..."उफ्फ इतनी देर हो गयी इसका निकल क्यूँ नही रहा?".....अंजुम को अपनी ये बात अज़ीब लगी कि वो अपने बेटे को मुठियाते हुए देख कोई शरम या लाज नही कर रही थी पर उसे हैरानी इस बात की थी कि उसके बेटे का लॉडा वैसा ही खड़ा उत्तेजना में था पर अब तक उसके चरम सीमा पे आने की कोई नौबत नही लग रही थी...इतने में बेटे ने हस्तमैथुन करना छोड़ दिया वैसे ही लंड छोड़े हाफने लगा....माँ ने उसके पूरे बदन को घूरा हर तरफ बाल उगे हुए थे छाती भी बालों से भरी हुई थी और अंडकोष और लंड के उपर भी काफ़ी छोटे छोटे बाल उग गये थे...उसने अपने दिमाह को झटका

"नही नही ये मेरा बेटा है भला मैं अपने बेटे को नंगा देख के भी क्यूँ ऐसे विचार ला रही हूँ वो तो ज़माने की देखा देखी में अपनी माँ को उन निगाहो से मुहब्बत करने लगा है...लेकिन मैं भी".....माँ को एक पल का अहेसास हुआ कि उसकी चूत आज फिर गीली हो गयी है उसे हैरानी हुई कि ये दूसरी बार था जब उसके बेटे को देखके ही उसमें कामुक भाव आ गये....उसने शर्मिंदगी सा महसूस करते हुए दूसरे कमरे में चली गयी...मैं अपने लंड टिश्यू पेपर से सॉफ करने लगा क्यूंकी प्री-कम निकल चुका था पर मेरे लंड में इतना स्टॅमिना बढ़ गया था कि वीर्य की एक धार भी नही छोड़ी

मैं जब दरवाजे के पास आया तो पाया कि दरवाजा आधा खुला हुआ है..मैं हैरत में पड़ गया बाहर नज़र की तो पाया माँ कबकि बाथरूम से निकल कर कमरे में जा चुकी थी...उफ्फ कहीं उन्होने कुछ तो! मैं इसी सोच में नहाने के लिए घुस पड़ा...

माँ और मैं साथ भोजन करने जब बैठे तो पाया कि माँ के शब्दो में जैसी लरखड़ाहट थी पूछने पे भी वो नॉर्मल सा ही बर्ताव कर रही थी...लेकिन उसकी नज़र बार बार मेरे उभार पे थी हालाँकि मैं कच्छा पहनता नही हूँ इसलिए मेरे अंडकोष और लंड का आकर पाजामा के उपर से ही उभार बनके दिखता है...आज माँ नीवाला मुँह में लेते हुए बार बार चोर नज़रों से उसे घूर रही थी...
 
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अंजुम घूर्रती भी क्यूँ ना? आज उसने अपने बेटे को महेज़ देखते हुए पानी छोड़ा था अपनी योनि से...उसे थोड़ा अज़ीब ज़रूर लगा था पर वो बेटे को कुछ भी शक़ होने देना नही चाहती थी...इधर बार बार उत्तेजना के सागर में डूबा आदम का दिल चुदाई ना करने से इतने महीनो बाद जैसे उखड सा रहा था...वो बार बार माँ के सामने परेशान होते हुए अपने लंड को पाजामे के उपर से खुजाते हुए ठीक कर रहा था माँ इस हरकत से उसे घुरते हुए देखती थी फिर अपने खाने की थाली को देखने लग जाती....आदम के नज़र घूमते ही माँ की नज़र फिर पाजामे के उभार पे होती इस बार लंड अकड़ते हुए खड़ा हो रहा था इसलिए माँ के भवें उठी उसका दिल धक धक करने लगा...

आदम ने जल्दी से फारिग होते हुए भोजन की थाली उठाई और फिर बर्तन फिर हाथ मुँह धोने के बाद दूसरे कमरे में चला गया....अंजुम बार बार खुद को समझा रही थी कि ये उसे क्या हो गया है? शायद आज उसके मन की औरत उसे टटोल रही थी कि उठ देख किस तरह तेरा बेटा उत्तेजित हो रहा है? तेरी कसम से कैसे बँधा हुआ है? किस तरह तुझे चाहता है? पर कह नही पा रहा...और तू है कि एक सन्यासनी की तरह ज़िद कर चुकी है और अपनी ख्वाहिशो को मांर रही है...जबकि आज भी तेरा मन करता है...माँ अपने दिल को समझा रही थी कि ऐसा नही हो सकता वो उसका बेटा है भला एक माँ अपने बेटे के साथ कैसे? हालाँकि वो जान चुकी है बेटा कैसे उसके नाम की मूठ मांर रहा था? पर उसे दिल में ये भी अहेसास हुआ कि कैसे उसका पति उसकी चुदाई के वक़्त उसके कपड़े उतारने के बाद उसे नग्न ही देखके उसका छूट जाता था...और फिर सड़ा सा मुँह बनाके कहता "लो मेरा तो हो गया".....किस बेशर्मी के साथ वो अपना लंड झुलाए बाथरूम में चला जाता बीवी को पलंग पे अकेला छोड़....

उसके बाद बढ़ते कलेश ने उसके दिल में इतनी नफ़रत डाल दी...कि उसे एक प्रेमी जोड़ा भी कहीं दिखता तो नफ़रत होती थी पर आज उसने पहली बार किसी मर्द का इतना बड़ा लंबा मोटा लंड उत्तेजना की हालत में देखा था वो भी उसी ना मर्द पति से जनमे अपने बेटे का...कैसे उसका दिल इस बात को झुटला पाता? कि लेडी डॉक्टर ने उसे हमबिस्तर होने की सलाह दी थी...आजतक तो उसने अपनी योनि को भी टच नही किया था....विजय ने कितना उसे खोलने की कोशिशें की थी पर वो टॅस से मस ना हुई पर अब उसका दिल बेटे के प्रति क्यूँ खिचा चला जा रहा था? इसी कशमकश में उलझी अंजुम आज दोपहर को सो ना सकी....वो उठी और दूसरे कमरे में आई

एकदम से माँ के कमरे में दाखिल होते ही बेटा घबरा गया...वो पेट के बल सोया स्मार्टफॉन पे बीएफ देख रहा था इसलिए उसने हड़बड़ी में स्मार्ट्फोन स्विच ऑफ कर दिया....माँ अंजुम मुस्कुराती हुई उसके पास आई....आदम का तंबू बना पाजामा उसने अपने हाथो से नीचे ले जाते हुए लगभग पाजामे के उपर से ही लंड को अड्जस्ट किया और सीधा लेट गया....माँ ने गौर किया कि बेटे का लॉडा तना हुआ था...वो चुपचाप आदम के चेहरे को देखने लगी

आदम : क्या हुआ माँ सोई नही तू?

अंजुम : बस नींद नही आ रही सोच रही हूँ बेटा फिर चला जाएगा

आदम : क्यूँ माँ? मेरी नौकरी लग रही है इसलिए कहे तो यही से काका के कारोबार पे ध्यान दूँ

अंजुम : नही नही खामोखाः तू यहाँ रहके अपनी ज़िंदगी खराब करेगा और अब तो तेरे पिता ने कह दिया ना कि वो यहाँ नही रहेंगे


आदम : ह्म्म्म्म आ ना


अंजुम मुस्कुराते हुए बेटे के एकदम करीब बगल में लेट गयी....चारपाई जैसी फोल्डिंग थी इसलिए जगह कम होने से दोनो लगभग एकदुसरे से सटे हुए थे...अंजुम ने अपनी एक टाँग प्यार से बेटे की टाँगों के बीच रख दी उसका हाथ बेटे के खुले बदन पे रखा हुआ था...वो उसके बालों से भारी छाती पे हाथ लहराते हुए उसके कंधे को सहला रही थी...लंड टाँग पे टाँग रखने से अंजुम को अपने बेटे का लंड महसूस हुआ जो काफ़ी सख़्त जान लग रहा था...


अंजुम : अच्छा बेटा समीर और सोफीया की बात कल अधूरी रह गयी थी? तूने बताया नही उनका किस्सा आख़िर ऐसा क्या हुआ था?

आदम : ह्म...दरअसल माँ जबसे कॉलेज में समीर और मेरी मुलाक़ात हुई थी मुझे वो सबसे हटके लगता था...वो बार बार माँ की तारीफ करता था मैं जानता था कि उसके पिता के चल बसने के बाद वो और उसके माँ अकेले ही ज़िंदगी बसर कर रहे थे....लेकिन कुछ ऐसा वाक़या मैने देखा कि मेरा भी जो विश्वास था माँ-बेटे के रिश्ते को लेके वो यकीन में तब्दील हो गया मैने तब जाना माँ-बेटे के नये रिश्ते को....जब एक माँ अपने बेटे को जनम देती है तो उनके बीच सिर्फ़ एक खूनी रिश्ता होता है...ममता का खून का रिश्ता...लेकिन जब बेटा बड़ा हो जाए और माँ को अलग नज़र से देखने लगे और माँ भी उसे अलग नज़र से देखने लगे तब वो रिश्ता महेज़ माँ-बेटे का ममता भरा रिश्ता नही रह जाता वो रिश्ता बदलते हुए एक गैर औरत और मर्द का रिश्ता बन जाता है जिसे हम मिया बीवी का रिश्ता भी कहते है

अंजुम एकदम गौर से सुन रही थी...आदम का लिंग रह रहके उसे अपनी टाँग पे चुभता महसूस हो रहा था आदम अड्जस्ट तो करना चाह रहा था पर बातों से वो ऐसा प्रकट कर रहा था कि वो उत्तेजना भरी हालत में नही है ताकि माँ को शक़ ना हो पर माँ उसे मुस्कुराए चुपचाप चेहरे के करीब चेहरा लिए उसकी बात सुन रही थी....

आदम : समीर था भी कुछ ऐसा जब उसकी बातें ममता और माँ-बेटे के रिश्ते को लाघने लगी...जब उसने माँ की ब्रा और पैंटी वाली बात बताई शुरू शुरू में मुझे अज़ीब लगा फिर उसके बाद उसका गुस्सा महेज़ इसलिए कि उसकी माँ ने किसी गैर मर्द से हँसके बाज़ार में बात कर लिया था उसने जब ये देखा तो वो माँ से झगड़ पड़ा उसने मुझे बताया था नेक्स्ट डे कॉलेज में

अंजुम : फिर ?

आदम : उस वक़्त मुंबई से उसकी माँ उसके साथ एक किराए का कमरा लिए उसमें रहती थी कुछ 1 महीने फिर चली जाती थी बेटा बीच बीच में मुंबई अपने घर जाता रहता था...बड़ा कारोबार था माँ संभालती थी वोई कारोबार और बेटा भी कम उमर से कारोबार पे ध्यान देने लगा था इसलिए दोनो को कोई प्राब्लम नही होती थी


अंजुम : तो फिर तुझे यकीन कैसे हुआ कि वो दोनो आपस में माँ-बेटे सा नही रहते....

आदम : क्यूंकी जो मेरी आँखो ने उस दिन देखा उसके बाद से मेरा विश्वास यकीन में तब्दील हो गया कि वो झूठ नही कहता था उस दिन मैं उसके यहाँ उसके किराए वाले कमरे गया हुआ था...मैने देखा कि समीर के घर में कुछ लौन्डे मज़ूद थे जिनसे समीर लगभग हाथापाई कर रहा था...मैने बीच बचाव किया

समीर उन्हें गंदी से गंदी गालिया दे रहा था उसकी माँ उसे शांत कर रही थी....वजह ये थी कि वो लड़के समीर की माँ की गैर हाज़िरी में उसके घर आए...और जब समीर ने माँ को वापिस आते पाया तो उसे गुस्सा आया कि क्यूँ उसके दोस्तो के टाइम वो आ गई....माँ उन लोगो के लिए किचन में चाइ नाश्ता का इंतेज़ाम करने चली गयी इस बीच समीर जब टाय्लेट से वापिस आया तो सोफे पे बैठे उन दोस्तो को उसकी माँ के बारे में अपशब्द कहते सुना

"उफ्फ इसकी माँ की कितनी टाइट गान्ड है...इससस्स दो टॅंगो की गाय है रे"........"ह्म लगता है अंकल ने अपने दौर मे काफ़ी मज़ा लिया होगा"......."मैं तो सोचता हूँ इतने मोटे नितंबो के बीच उन्हें डालने में दिक्कत नही होती होगी"..."अर्रे तुम लोगो को उसके नितंब की गोलाइयाँ दिख रही है और मुझे उसकी दूध भरी टँकिया दिख रही है देखना कितने साइज़ का ब्रा आता होगा उन्हें"....."अबे ज़ोर से मत कह सुन लेगी किचन थोड़ी ना ज़्यादा दूर है"......."अर्रे छोड़ ना समीर को भी कौन सा मालूम चलेगा तू खाली आँख सैक काश एक बार चुदाई का मौका मिल जाए समीर मुझे पापा पापा करता फ़िरेगा हाहहः"........उन अश्लील दोस्तो के बीच ऐसी वार्तालाप को सुन समीर का खून खौल उठा


वो सहन ना कर सका और उसने पास रखा बेसबॉल बॅट उठाया और सीधा उस पर वार कर दिया....फिर क्या था? वो लोग बौखला उठे...समीर के हमले से बच ना पाए चिल्लम चिल्ली सुनने से समीर की माँ सोफीया भी बाहर निकल आई.....वो बेटे को शांत करने लगी

समीर : बेहेन्के लौडे मेरी माँ के बारे मे में ऐसी बात करते हुए शरम नही आई मदर्चोद भडुए तुम अपनी माँ चुदा लो ना मुझसे एक बार मेरे नीचे लाके देखो सालो तब पता चलेगा कौन किसका बाप है? अर्रे हरमियो शरम नही आई अपनी माँ जैसी औरत की इस तरह बेज़्ज़ती करते हुए कुत्तो उसके पीठ पीछे कि उसका बेटा कहीं सुन ना ले


बात बहुत बढ़ गयी थी अगर मैं ना बीच मे नाया होता...तो खुदा कसम समीर ने उनमें से किसी का क़तल तो ज़रूर कर दिया होता...झगड़ा और मारपीट बाहर तक चला....ईवन मकान मालिक तक को आना पड़ा...वो लोग भी गाली गलोच में आ गये...पर समीर के गुस्से को झेल नही पाए अंत में उनकी हाथा पाई छुदाई और उन लौन्डो को धमकी देते हुए समीर ने कहा कि आज के बाद उसके घर पे पैर भी रखे ना तो टाँग तोड़ दूँगा....वो लोग गाली गलोच करके भाग गये समीर का गुस्सा मैं शांत करने लगा समीर की माँ और मैं उसे घर के अंदर लाए....माँ शरम से झेंप रही थी इसलिए वो मुझे बेटे के पास अकेला छोड़ फर्स्ट एड बॉक्स लेने चली गयी...मकान मालिक ने भी कहा कि आइन्दा ऐसे दोस्तो को घर में मत बुलाना...वो तो वैसे भी क्या और कहता? चला गया...समीर ने बातों बातों में कह डाला कि उसकी माँ को इस तरह देखने का हक़ सिर्फ़ उसका है वो अपनी माँ से अटूट प्यार करता है....उसे अगर कोई बुरी निगाह से देखे तो उसका खून खौल उठता है...
 
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समीर की माँ उसका पट्टी करने लगी....उसे बहुत चोटें आई थी चेहरे पे जिसे कॉटन से वो पोछने लगी...मैने देखा कि समीर की माँ अपने बेटे के ज़ज़्बातो को देख सूबक रही थी वो कुछ नही बोली...चुपचाप थी एकदम बस मुझे कह रही थी कि समझाओ अगरइसे कुछ हो जाता तो उसका क्या होता?...मैं भी समीर को समझाने लगा....समीर ने अपनी माँ के हाथो को थामा और उसे सहलाया वो मेरे सामने ही बोल उठा "कि कोई भी तुझे देखता है मुझे अच्छा नही लगता मैं उसका खून कर दूँगा माँ तू आज के बाद किसी को घर में नही बुलाएगी तू नही जानती कि मेरे दिल पे क्या गुज़रती है बोल माँ मुझे कभी धोका नही देगी तू कुछ भी ऐसा नही करेगी जिससे मैं मर जाउ"........माँ एकदम रोने लगी उसे चुप करते हुए अपने पेट से सटा लिया....उसके बालों पे हाथ फैरने लगी....मैं चुपचाप उठके जाने लगा....समीर की माँ ने मुझे रोका कि बेटा रुक जाओ

पर मैं मुस्कुराया मैने जाने की इजाज़त माँगी मैं जानता था कि शायद दोनो के बीच इस हालत में ठहरना ठीक नही...ना जाने क्यूँ मन को ऐसा नही लग रहा था? सोचा शायद माँ-बेटे का ये अज़ब रिश्ता है जो इतना ममता और स्नेह से घुला हुआ है....समीर को माँ कमरे में ले गयी बोली चल तेरी पट्टी कर दूं और उसी बीच मैं घर से निकल गया....जब आधे रास्ता आया तो पाया कि समीर को तो ज़रूरी बात कहना भूल गया कि कल से तो कॉलेज अनिश्चित काल की वजह से 1 हफ़्ता बंद रहेगा...मैं वापसी होते हुए यही बात कहने उसके दरवाजे पे दस्तक देता तो पाया जैसा मैं दरवाजे को खोल गया था वो वैसे ही खुला था शायद उसकी माँ ने ध्यान नही दिया था

मैं अंदर आया तो पाया लिविंग रूम में कोई नही था....मैने हल्के से समीर का नाम पुकारा पर किसी ने जवाब नही दिया....अचानक देखता हूँ कि चूल्हे पे जो दूध छोड़ा आंटी ने वो उबल के गिर पड़ा है मैने झट से गॅस ऑफ किया...और वापिस अंदर आया...उसके बाद अचानक मैने कमरे में किसी की आहट सुनी

शायद समीर और माँ अंदर हो..बस यही सोचते हुए मैं आगे बढ़ गया...मुझे नही आइडिया था कि समीर जो अब तक कहता आया था वो सच भी हो सकता है कि उसकी माँ उसके इतने करीब आ गयी है....पर जब मैं दरवाजे के पास आया तो एक पल को ठहरके कुछ सोचने लगा ना जाने कब मेरा दिल धक धक करने लगा था...और मैं एकदम चोर की तरह दरवाजे को खोलने के लिए कुण्डी पे हाथ टटोलते हुए आहिस्ते से प्रयास करने लगा....उसी बीच दरवाजा हल्की सी कुण्डी नीचे करने में ही खुल गया....मुझे अहेसास हुआ कि क्यूँ समीर को मेरी आवाज़ सुनाई नही दी थी? क्यूंकी अंदर कमरे मे एक तरफ फर्श पे फर्स्ट एड का बॉक्स वैसे ही खुला पड़ा था और दूसरी ओर बिस्तर पे !

अंजुम : बिस्तर पे क्या?

माँ वैसे ही मेरी टाँगों पे टाँगें चढ़ाए मेरे खुले उपरी बदन के बालों भरे सीने पे हाथ फेर रही थी और मेरे चेहरे के नज़दीक लाई अपने चेहरे को बड़े चाव से मेरे दोस्त समीर और उसकी माँ के व्यभाचार के रिश्तो के बारे में सुन रही थी....ऐसा लग रहा था जैसे वो इस कहानी को ना सिर्फ़ जानने के लिए बेताब थी बल्कि उसे मज़ा भी आ रहा था...वो एकटक अपने बेटे के चेहरे की ओर देख रही थी...

अंजुम : बिस्तर पे आख़िर तूने क्या देखा? बता ना

आदम चुप्पी साधे माँ की तरफ सोच की उलझनों में देखते हुए हिचकिचा रहा था....उसके मन में आया कि माँ को तो समझ जाना चाहिए था कि आख़िर आगे क्या उसने देखा था? फिर भी वो जानने को उत्सुक थी..उसने ये नही कहा कि बस बस बेटे आगे कुछ ना कहना....लेकिन माँ की नज़रों में उसे शर्माहट और लज़्जत दोनो दिख रहे थे...आदम ने गला खन्कार्ते हुए आगे कहानी बतानी शुरू की

आदम : जब मैं दरवाजे की कुण्डी को खोलने के प्रयास में सक्षम हुआ तो दरवाजा हल्के से खुल गया...गनीमत थी कि दरवाजे के खुलने पे कोई आवाज़ नही हुई....मैने अंदर जैसे झाँका तो पाया कि फर्स्ट एड बॉक्स वैसी की वैसी एक जगह पड़ी थी और दूसरी ओर बिस्तर पे (आदम ने माँ की तरफ देखते हुए अपनी शरम हया सबकुछ एक साइड करते हुए बेहयाई से कहना तफ़सील से शुरू किया माँ की नज़रों में परिवर्तन होने लगा जैसे आदम ने कहना शुरू किया)

मैने देखा कि बिस्तर पे माँ-बेटे नही कोई और ही थे...थे दोनो ही बिस्तर पर पर उनके बीच ममता और माँ-बेटे जैसा पवित्र रिश्ता और वो प्यार मुझे कही नही दिख रहा था....वो एकदुसरे को हंसते हुए बाहों में भर रहे थे...समीर के बदन पे कोई कपड़ा नही था सिवाय उसने टाँगों के बीच एक वी शेप की फ्रेंची पहनी हुई थी...जिसमें से उसका लंड एकदम तंबू बना हुआ था...और उसकी माँ जिसे मैं हमेशा नमाज़ पढ़ते हुए बदन को हमेशा कपड़ा ढके या फिर कभी जंपर और पाजामा में देखा करता था....वो बस एक ब्रा और पैंटी पहनी हुई अपने बेटे के उपर चढ़े उसके सीने और गले को चूम रही थी

वो ऐसे बर्ताव कर रही थी जैसे समीर उसका अपना सगा बेटा नही..उसका बाय्फ्रेंड हो...मेरे रोंगटे खरे हो गये मैं खुद पे काबू नही कर पा रहा था...उसकी माँ वैसे ही बहुत मोटी चर्बिदार औरत थी....भारी भरकम नितंब थे और उनके स्तन भी काफ़ी मोटे मोटे और उभरे हुए थे...ब्रा पहनने के बावजूद दोनो स्तन जैसे बाहर निकलने को आ रहे थे...ऐसा लग रहा था कि 39 साइज़ का वो ब्रा भी उसे फिट नही हो पा रहा था...आंटी विधवा थी लेकिन ऐसा लगता जैसे वो हर दम सुहागन सा रहती थी.....

समीर : ओह्ह मम्मी आइ लव यू उम्म्म्मम

सोफीया : आइ लव यू टू बेटा

समीर ने माँ के होंठो को मज़बूती से अपने होंठो की गिरफ़्त में ले लिया उसकी पीठ पे हाथ फेरते हुए कमर की तोंद को मसल रहा था...माँ बेटे के मुँह में जीब डाले हुए थी...बेटा उसकी जीब चूसे जा रहा था.....दोनो की आहें सॉफ सुनाई दे रही थी मुझे....फिर दोनो एकदुसरे को पागलो की तरह किस करने लगे

इस बार समीर माँ के उपर चढ़ गया और माँ उसकी पीठ गले चेहरे गाल सब जगह को बारी बारी से पागलो की तरह चूमे जा रही थी..ऐसा लग रहा था जैसे बिछड़ा कोई उसका प्रेमी हो जिसे वो अपनी बाहों में समेटे ज़िंदगी भर तक रखना चाह रही थी जिसे खुद से अलग होते देखना नही चाह रही थी....ऐसी चाहत ऐसी मुहब्बत सिर्फ़ एक गैर मर्द और औरत के बीच होते मैने देखा था...पर मुझे ये नही मालूम था कि वो संबंध वो अटूट प्यार माँ-बेटे के बीच भी हो सकता है...

समीर फिर माँ के भरे गाल को पकड़े दोनो हाथो से उसके होंठो को चूसने लगा....उसने माँ के बालों को खोल दिया....माँ की ज़ूलफें बिखर गयी वो खुले बालों में ब्रा और पैंटी पहनी बहुत सेक्सी लग रही थी...उपर से उनका फिगर काफ़ी सेक्सी था नितंबो के बीच फसि पैंटी के उपर हाथ सहलाता हुआ समीर उनकी दोनो बगलो को उठाने को कहता है....

माँ दोनो बगलो को उठाती है जो पसीने पसीने होती है...उनमें अपनी जीब रखता हुआ समीर दोनो बगलो को अच्छे से जीब से चाट्ता है...बगलो में डार्क पॅचस होते है..जिनमें बेटा बड़े प्यार से अपनी जीब चला रहा था...फिर उसने बेटे के सीने पे हाथ रखते हुए उसे सीधा लिटाया और उसके दोनो निपल्स पे जीब से चाटने लगी...समीर ने उत्तेजना में माँ के बालों को इकट्ठा किया एक हाथ उसकी पीठ पे हाथ फेरता हुआ उसकी पैंटी के उपर से उसके नितंबो को भरपूर दबाता है....उसके हाथ में नितंभ आ नही रहे थे....

उसने दोनो हाथ नीचे ले जाके माँ की पैंटी को कस कर नीचे कर दिया...फिर दोनो नितंबो को थामे उसे भरपूर मसलना शुरू किया...वो बीच बीच माँ के नितंबो को भीच देता जिससे उसकी माँ की फांकों पे मेरी नज़र पड़ी...उफ्फ उनकी गान्ड का छेद सिकुदा हुआ था...और चूत पूरी गुलाबी रंग सी थी...दोनो माँ-बेटे की चुम्मा चाटी जब थमी

तो दोनो एकदुसरे से अलग हुए समीर ने फिर माँ की पीठ पे हाथ पीछे ले जाते हुए उसकी सफेद ब्रा का हुक खोल दिया...उसके बाद खुद ही माँ ने अपने दोनो बाजुओं से ब्रा के फिते को उतारते हुए उसे अपने जिस्म से अलग कर दिया...बेटा अपनी माँ के चुचियो को खा जाने वाली नज़रों से घूर्र रहा था...अब तक उन दोनो की मेरी दरवाजे पे मौजूदगी का कोई अहेसास नही हुआ....इतने में मैं देखता हूँ कि समीर ने उसकी माँ को सीधा लेटा दिया..सोफीया की चुचियाँ काफ़ी मोटी भरिपुरि थी उसके निपल्स एकदम मोटे ब्राउन थे जो एकदम कठोर से हो गये थे....

फिर समीर ने उन्हें अपनी हाथो में लेके भरपूर तरीके से दबाया...उन्हें खूब मसला...माँ आहें भरते हुए अपनी मोटी मोटी चुचियो को बेटे की हाथो में पाए आहें भर सी रही थी एक उंगली को जैसे होंठो के बीच लिए दाँतों से काट रही थी.."ओह्ह्ह बेटा उफ़फ्फ़ सस्स आहह उम्म्म".......

."उफ़फ्फ़ माँ यही तो मुझे तेरी सबसे ज़्यादा पसंद है"....

."इसी को तो तू पीके इतना बड़ा हुआ ये तो तेरा है जो माँ का होता है वो सब तो बेटे का ही है दबा और ज़ोर से दबा चुस्स इन्हें जिस अधूरे रास्ते पे तेरा बाप मुझे छोड़के गया था अब वहाँ से तुझे ही मुझे सहारा देना है अब तेरी माँ अब सम्पुर्न तेरी हो चुकी है".......माँ ने बेटे के अपनी चुचियो को चुसते हुए उसके बालों पे हाथ फेरते हुए कहा

समीर ने मुँह छातियो से हटाते हुए माँ की तरफ देखा "हां माँ अब सिर्फ़ तेरा ही हक़ है मुझपे...और मेरा हक़ तुझपे अब हमारे बीच कोई तीसरा नही आएगा....जिस राह पे पिताजी तुझे छोड़के गये अब उस राह से तेरा बेटा ही तेरा जीवन भर साथ देगा....ना तेरी कोई जगह किसी पराई लड़की को दूँगा...और ना तू मेरे बाद किसी और को देखेगी...अब पिता के बाद मैं ही तेरा मर्द हूँ अब सिर्फ़ मेरा ही तुझपे पूरा हक़ बनता है"..........समीर इतना कुछ कहते हुए हाथो में माँ की चुचियो को भरपूर मसलता हुआ माँ को उत्तेजित कर रहा था

उफ्फ माँ-बेटे की ऐसी दीवानगी मैने सिर्फ़ राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम की कहानियो में ही पढ़ी थी....जिनमें कोई असलियत नही होती है...लेकिन ये सब जो मेरी नज़रें देख रही थी वो झूठ तो नही हो सकती थी....समीर ने माँ के होंठो पे होंठ कस कर रख दिए और एक बार होंठ चुसते हुए फिर माँ के ब्राउन निपल को मुँह में लेके चूस लिया....फिर निपल पे ज़बान फेरता हुआ करीब एक चुचि अपने मुँह के भीतर चुसते हुए निपल खींच रहा था...जिससे माँ बुरी तरीके से तड़प रही थी....

इस बीच मेरी नज़र समीर के लंड पे गयी जो एकदम उत्तेजना में खड़ा हो चुका था और ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई साँप अपने टाँगों के बीच कच्छे में छुपा रखा हो...माँ ने उसे हल्का सा धकेला और उसके बैठते ही घुटनो के बल....माँ वैसी ही लेटी उसकी टाँगों के बीच करीब खिसकते हुए उसकी फ्रेंची को उतारने लगी...जैसे ही बेटे की फ्रेंची नीचे हुई उसका बारीक खाल से ढका 7-5 इंच का लंड माँ के चेहरे के ठीक उपर झूल रहा था...
 

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सोफीया की आँखे बड़ी बड़ी हो गयी वो उसे हाथो में लिए बहुत गौर से मुयायना कर रही थी....करे भी क्यूँ ना? उसकी कोख से जन्मे बेटे का इतना लंबा उत्तेजना में खड़ा लिंग उसे चोदने के लिए एकदम बेक़रार और खड़ा था...माँ ने बेटे को कातिलाना मुस्कुराहट दी और उसके बाद उसे घप्प से मुँह में भर लिया..सोफीया को शायद चूसने में कठिनाई हो रही थी....पर वो मुँह में लिए बस उस पर दाँत घिस रही थी और अपनी ज़ुबान चला रही थी...

माँ के गरम मुँह के स्पर्श से बेटे ने माँ के बालों को समेटा और उसके चेहरे को प्यार से सहलाते हुए प्यार से चूसने का इशारा किया....माँ बेटे के लंड को बड़े प्यार से मुँह के अंदर बाहर करते हुए चूस रही थी....वो बेटे के लंड को लगभग पूरा मुँह के भीतर तक ले रही थी....कुछ देर उसने ही अपने मुँह को चलाते हुए लंड को मुँह से अंदर बाहर किया काफ़ी देर तक चुसा.....फिर उसने अपने मुँह से लंड बाहर निकाला वो थूक से गीला था....उसने उसकी खाल के उपरी छेद पे जीब चलाई और लगभग चॅम्डी को नीचे तक खींचते हुए उसके साँवले सुपाडे को मुँह में लेके चूस लिया...ऐसा लग रहा था जैसे ये उसने कितनी दफ़ा किया हो....बेटा काबू खुद पे कर नही पा रहा था

उसका पूरा चेहरा लाल हो उठा था उत्तेजना में वो काँपते हुए लगभग अब माँ के मुँह में धक्के पेलने लगा...माँ एक हाथ से उसके गोलियो को सहलाते हुए लंड को चूस रही थी...बीच बीच में उसकी बड़ी बड़ी आँखे बेटे की हालत का जैसे जायेज़ा लेती....वो उसे सर उठाके देखते हुए लंड चुस्सती और कभी तो रफ़्तार तेज़ कर कस के उसे मुख मैथुन का आनंद दे रही थी

"ओउ ओउूउ अओउू अओउू एम्म अओउंम्म".....माँ के मुँह में अब उत्तेजना की चरम सीमा में बेटा धक्के मारने लगा....माँ की आँखे एकदम बड़ी बड़ी फटने को हो गयी...तो बेटे ने उसके बालों को थामें एकदम से मुँह से लंड बाहर खीचा

माँ ख़ासने लगी...फिर उसने अपनी लार और बहते थूक लगे मुँह को पोंछते हुए दुबारा बेटे के लंड को चुसा....माँ ज्यो ही बेटे का लंड मुँह में लेती...त्यो ही बेटा लंड हलक तक माँ के मुँह में घुसेड देता और लगभग धक्के आगे पीछे लगाता माँ के मुँह से अओउ अओउ की आवाज़ निकल जाती फिर एकदम से बेटा लंड जड़ तक माँ के हलक तक घुसा डालता...और उसके बालों को समेटते हुए रुक जाता....माँ की आँखे बड़ी बड़ी हो जाती और फिर एक ही झटके में वो अपना लंड बाहर निकाल देता...जिससे माँ ख़ास उठती थूकने के बाद वो दुबारा वो इस प्रकिरिया को दोहराती..

बेटे ने फिर माँ को लिटाया उसके मुँह को अपने हाथो से पोन्छा उसकी पैंटी जो टाँगों के बीच तक फसि हुई थी उसे टाँगों के बीच से उतारते हुए फ़ैक् डाला....फिर उसने माँ की मोटी मोटी जांघों को फैलाया फिर उसने माँ की फूली गीली चिकनी गुलाबी चूत पे अपना मुँह रख दिया..बेटे के मुँह रखने से ही माँ मारे उत्तेजना में चीख उठी

सोफीया : ओह्ह आहिस्ते आहिस्ते बेटा

समीर : अफ माँ आपकी चूत कितनी सूजी और फूली हुई है उफ्फ ये तो किसी गरम तंदूर जैसी हो गयी है

सोफीया : अफ उंगली मत कर बेटा मेरी चूत पानी छोड़ देगी

समीर :अफ अब तो भीग लेने दे इसे कितना तड़प रही है मेरे लंड के लिए आज इसकी जी भरके ठुकाइ करूँगा ना तो शांत हो जाएगी

मैं ये सब सुनके उत्तेजित हो रहा था...किस तरह समीर अपनी माँ से खुले गंदे लवज़ो से बात कर रहा था...अफ क्या सुख मिल रहा था मुझे सुनके?

सोफीया मना करती रही पर समीर हँसके उसकी चूत में उंगली करता रहा उसने बीच बीच में सोफीया की चूत के नरम माँस को चुसता और उसकी फांकों में जीब गहराई तक डालता..वो चूत जो भीगे रस से सारॉबार थी उसे चाटते हुए आनंद ले रहा था...बीच बीच में वो माँ के दाने को भी मुँह में लेके लगभग चबाते हुए चूस रहा था....माँ एकदम काँप उठी और दहाड़ने लगी...बेटे ने उसकी कांपती टाँगों को अपने हाथो में मज़बूती से थामा और लगभग चूत पे मुँह घिस्सने लगा...सोफीया पानी छोड़ने लगी.. और.वो एकदम शिथिल पड़ गयी

सोफीया को पश्त पड़ता देख....बेटे ने अपने हथियार पे थूक और डाला और उसे चिकना किया....वो लगभग उठा और अपने खड़े हिलोरे लेते लंड को आगे पीछे मुठियाते हुए पास रखा एक ल्यूब उठाया...माँ वैसी टाँग फैलाई मादरजात नंगी लेटी सुसता रही थी बेटे ने हाथो में वो ल्यूब लिया उसे चूत के मुंहाने से लेके अन्द्रुनि हिस्से तक अच्छे से मल्ता हुआ अपने हाथो से चिकना किया...उसकी सुगंध मुझे बाहर तक महसूस हुई फिर उसने वो जेल्ली जैसे नीले रंग के ल्यूब को अपने लंड पे भी थोड़ा सा लगाया....और लगभग दोनो टाँगों को अपनी गान्ड के इर्द गिर्द लपेटते हुए माँ के योनि में अपना हथियार पुश करने लगा....लंड के चूत के हिस्से में दबाव देते ही चूत उसे घप्प से अपने भीतर ले लेती है....अन्द्रुनि हिस्सा माँ की योनि का गीला और चिकना होने से कुछ ही देर में समीर का लॉडा भीतर तक अड्जस्ट करने में वक़्त ना लगाता

समेर :अफ गरम भट्टी हो रखी है पूरी तेरी सोफीया

सोफीया : अफ अयीई सस्स आहह (समीर की माँ जो इतने देर से चुप थी एकदम से लंड को अपने चूत में प्रवेश होते ही चिहुक उठी)

समीर ने एक करारा धक्का लगाया....तो माँ ने आँखे मूंद ली....उसने दोनो बिस्तर की चादर को कस कर थाम लिया...समीर कस कर माँ की चुदाई करने में व्यस्त हो गया...वो हर एक धक्को पे करारे धक्के मांर रहा था....माँ भी उत्तेजना में उसके बालों को सहला रही थी बीच बीच में बेटा माँ की नाभि को झुकके चूम लेता या फिर उसकी छातियो पे लेट जाता और उस पर अपना चेहरा घिस्सता..माँ उसे कस कर थामें अपनी बाहों में लिपटा लेती

समीर उत्तेजना में एकदम तेज़ हो गया..."ओह्ह्ह माँ मेरा निकल जाएगा आहह"..

."आहह आजा समीर आजजा अपनी माँ की योनि में उफ्फ अहहह एकदम से ज़ोर से हां बेटा एकदम ज़ोर से गिरा दे अपना बीज मेरे अंदर गिरा दे बेटा एक बार फिर माँ से सुख प्राप्त कर ले अफ उम्म्म".........

चाहे रिश्ता माँ-बेटे का हो या कोई भी खूनी रिश्ता....लेकिन जब औरत चुदासी होके चुदवाति है तो उस वक़्त वो कुछ ऐसे ही लवज़ो का प्रयोग बेहयाई से ही करती है

समीर माँ की टाँगों के बीच लेटा धक्के पेल रहा था माँ उसका साथ अपनी गान्ड उठा उठाके दे रही थी....कुछ ही पल में समीर गरर गरर की आवाज़ निकाले माँ के चूत में ही फारिग हो गया उसका शरीर आकड़ा और वो माँ के नंगे बदन से लिपट गया...

दोनो कुछ देर तक वैसे हान्फते रहे इसलिए मैने वहाँ से निकलना ही मुनासिब समझ बाहर आने लगा...अचानक जब बहुत देर इंतजार किया कोई हरकत नही हुई या फिर उनके निकलने का कोई अहेसास नही हुआ तो मैं वापिस कमरे के पास गया और फिर से झाँका समीर तौलिए से अपने लंड को पोंछ रहा था और माँ टिश्यू पेपर से अपनी योनि से निकलते बेटे के सफेद वीर्य को पोंछ रही थी जो उसकी चूत से बह रहा था....दोनो कुछ देर तक वैसे ही लिपटे एकदुसरे से बातें करते रहे...फिर उसके बाद माँ ने उसके चुतड़ों पे हाथ फायरा...उसकी आँखो मे आँसू थे वो माँ की पीठ सहला रहा था.....

समीर की हसरत पूरी नही हुई थी...उसने माँ को डॉगी स्टाइल में किया और फिर एक उंगली उसकी गान्ड की छेद में घुसाने लगा....उंगली करने से माँ उत्तेजना और दर्द में आहें भरने लगी....समीर की माँ सोफीया किसी घोड़ी की तरह झुकी हुई थी उसके नितंब उठे हुए थे....उसने छेद पे ज़ुबान रखके चाटना शुरू किया...तो माँ तड़पने लगी....लेकिन बेटा माँ की गान्ड के छेद में उंगली करता हुआ उस पर ज़ुबान लगाए जा रहा था फिर उसने दोनो नितंबो पे दो-तीन चपत लगाई उसे हाथो में लेके उसे हिलाया

समीर ने फिर धीरे से अपना हथोडा जो अब तक खड़ा हो चुका था उसे गुदा द्वार के छेद पे घिस्सने लगा...."बेटा आराम से करना पिछली बार दर्द हुआ था"......

."अर्रे माँ फिकर ना कर".....बेटा माँ के उपर किसी सांड़ जैसा चढ़ा गान्ड के छेद के भीतर लंड घुसाने लगा..और कुछ ही देर में छेद के अंदर लॉडा आराम से प्रवेश होने लगा.....लेकिन समीर को दिक्कतें तो हो रही थी....उसके बाद जब उसका आधा लंड अंदर गया माँ उसे मना करने लगी उसे दर्द शुरू हो गया था....

"अफ बेटा बड़ा दर्द हो रहा है सस्स बहुत चुभ रहा है तेरा तू निकाल ले"......

."माँ थोड़ा सा दर्द होगा फिर मज़ा आएगा पिछली बार तो तेरी आधा ही इंच तक घुसाए मारी थी आज तो देख पूरा आधे से ज़्यादा घुस्स गया है".....बेटा माँ के उपर चढ़ा उसे शान्त्वना देते हुए कहने लगा

वो उसके नितंबो को हाथो से सहलाते हुए उसके पीठ और चेहरे के पसीने पे हाथ फेरते हुए उसे रिलॅक्स कर रहा था...मैने देखा कि गान्ड की फांकों के बीच बेटे का मूसल जैसा लंड आधे से भी ज़्यादा अंदर तक बुरी तरह फँसा हुआ है...बेटे ने हल्का सा दबाव दिया तो माँ फिरसे दर्द में आह भरने लगी

"आअहह बेटा बहुत लग रहा है सस्स नही हो पाएगा नही हो पाएगा निकाल ले".....वो खुद ही अपने हाथो को पीछे किए बेटे के लंड को अपने छेद से बाहर निकालने की कोशिश करती है...बेटा फ़ौरन उसके हाथो को कस कर पकड़ लेता है

"बस माँ आहिस्ते आहिस्ते करूँगा बस बस हो गया उफ़फ्फ़ अफ".......उसने खूब ज़ोर से अपनी मर्दाना ताक़त इस्तेमाल की...लंड को पूरी ताक़त से अंदर धकेलने लगा...जो आधा से ज़्यादा फँसा हुआ था छेद में वो छेद को और चौड़ा किए अंदर दाखिल होने लगा...माँ का पूरा बदन इस बीच काँप उठा...और जड़ तक बेटे ने लॉडा अंदर सरका दिया...माँ दर्द से रह ना पाई और अपने होंठ पे दाँत रखके घुटनों के बल मुद्रा से हट गयी

वो अब सीधी होके लगभग गिरते हुए बिस्तर पे निढाल पड़ गयी....बेटा माँ के सीधे लेटे रहने से उसके उपर सीधा होके उसी मुद्रा में लंड अंदर से बाहर खींच रहा था..लेकिन छेद से उसने निकाला नही...

माँ : आहह आहह आ उहह ग्घ आहह हो उ आहह (मैने सॉफ पाया कि तकिये में मुँह दबाए सोफीया आंटी रो रही थी)

समीर : बस माँ हो गया आह इसस्सह बहुत टाइट है इस्सह लगता है चमड़ा छिल गया अंदर का अफ


समीर ने धक्के लगभग आहिस्ते आहिस्ते पर मजबूती से माँ के उपरी कंधो पे दोनो हाथ रखके कस कर मारे...हर एक धक्के में माँ का पूरा बदन काँप उठता..उसका पूरा शरीर अकड़ रहा था...समीर माँ की गान्ड वैसे ही मारता रहा...जब उसकी भी टाँगें दुख गयी तो वो माँ के उपर पेट के बल लेट गया...उसके नितंबो के बीच लंड फँसा हुआ था और वो अपनी माँ के पीठ और गाल और गले को चूमता जा रहा था...वो फिर उठा और उसने माँ के पेट पे हाथ रखते हुए वापिस कुतिया की मुद्रा में लाया..फिर उसने माँ के बालों को समेटते हुए और आहिस्ते आहिस्ते लंड को फिर छेद के अंदर भीतर तक पेलने लगा...इस बीच लंड आधे से ज़्यादा बाहर निकल आया था जिसे उसने अड्जस्ट करते हुए एक करार धक्के में अंदर सरका दिया...माँ इस धक्के से काँप उठी लेकिन समीर ने उसे मज़बूती से अपनी बाह में जकड़े रखा..उसकी दोनो छातिया एकदम हिल गयी उसके निपल्स एकदम कठोर अब भी थे उसकी आँखे आँसुओं से भरी हुई थी और मुँह खुला था जैसे किसी घोड़ी के भीतर किसी घोड़े का मूसल लंड चला गया.....सोफीया आंटी दर्द को बर्दाश्त किए हुए थी
 
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