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Incest माँ को पाने की हसरत

Monster Dick

the black cock
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उधर समीर झट से उसी रूम के करीब पहुचा जहाँ उसने हेमा को कमरे में पाया था उसने दरवाजे पे दस्तक दी...तो तीनो में से एक लौंडा नंगा ही राजेश का दोस्त उसकी सहेली को ले आया सोचके दरवाजा खोल देता है....तो एक मास्क पहने लौन्डे को देख हड़बड़ा जाता है...समीर ने फुरती से उसे एक लात मारके गिरा दिया...दोनो उठके उस पर झपटे लेकिन तीनो इस बीच पूरे पिए हुए थे तीनो नंगे थे....समीर ने दूसरे वाले की टाँगों के बीच एक लात जमा दी वो अंडकोष पकड़े वहीं गिर पड़ा....उसने देखा कि हेमा रो रही थी वो छुड़ाने की कोशिस कर रही थी जो लौंडा उस पर कुछ देर पहले चढ़ा हुआ था..वो एकदम नंगी पड़ी हुई थी समीर को देखके घबरा गयी

समीर ने कस कर एक बाई किक उसके उपर चढ़े लौन्डे जो एकदम से समीर के हमले से बच ना सका पलंग के दूसरी ओर गिर पड़ा...समीर ने तुरंत पास रखी साड़ी हेमा के बदन पे डाल दी....हेमा जैसे तैसे साड़ी को पहनने लगी समीरके सामने

"फिकर ना कीजिए आदम ने भेजा है मुझे अब चलो यहाँ से अकेले आई तो आई उसकी माँ को भी साथ ले आई"........

.हेमा शर्मिंदा सी बदहवास उठ खड़ी अपनी साड़ी को पहनने लगी जैसे तैसे....वो बहुत ज़्यादा थर थर काँप रही थी ये तो गनीमत था कि उसकी चुदाई शुरू होने से पहले समीर आ धमका था

हेमा ने कस कर दो तीन लात उन लोगो के उपर बरसा दी जो गिरे पड़े थे और एक लात राजेश की गान्ड पे भी मारी और वैसे ही बौखलाए उल्टे पाँव समीर के साथ वहाँ से निकल गयी समीर ने देखा कि वो लोग वापिस उठ रहे थे इतने में उसने कमरे का दरवाजा कस कर लॉक्ड कर दिया...

इतने में मैने पीछे झाँका तो पाया हेमा साड़ी ठीक करते हुए खुद पे क़ाबू किए नॉर्मल भाव से क्लब से बाहर निकल रही थी पीछे समीर जो अपना अब मास्क उतार लिया था वो उसके पीछे चलते हुए आ रहा था

आदम : उफ्फ तुम दोनो का कब्से इन्तिजार कर रहा हूँ समीर तू ठीक है ना यार

समीर : बेहेन्चोद मर जाती साली तीन चढ़े हुए थे इस्पे वो तो अच्छा हुआ कि मैं वक़्त पे आ गया वो लोग तो तेरी माँ के नाम का ज़िक्र कर रहे थे हेमा आंटी ने बताया कि इसके भद्वे का वो दोस्त था तेरी माँ को उपर ले जाने आ रहा था

मैने कस कर हेमा को झिंजोड़ दिया तो वो रोने लगी मैने उसे खूब झाड़ा कि आपकी वजह से मेरी माँ की इज़्ज़त लूट ली जाती क्या मुँह दिखाती मेरी माँ अपने घरवालो को?..

.हेमा को नही पता था कि हालात इतने बत्तर हो जाएँगे राजेश के दोस्त इस तरह नियत खराब कर लेंगे....समीर ने मुझे शांत किया

समीर : आदम बरस मत शांत हो जा पहले यहाँ से निकल लेते है वरना उनका कोई आदमी बाहर हमे ढूंढता हुआ आ जाएगा (इतना कहते हुए हम चारो वहाँ गाड़ी में सवार होकर निकल गये)

आधे रास्ते आते आते हेमा आंटी का नशा पूरा उतर चुका था...वो शर्मिंदा थी और मुझसे माँफी माँग रही थी उसने समीर और मेरा काफ़ी शुक्रियादा किया कि अगर हम वक़्त पे ना आते तो सच में उसके ज़बरन चुदाई के साथ साथ अंजुम के साथ भी कुछ घट जाता...मेरा बस चलता तो उसका गला दबा देता....पर माँ मेरे कंधे पे सर रखके निढाल सोई पड़ी हुई थी...समीर ने उपर जो हुआ सब ब्यान किया...मैने भी समीर का बहुत बहुत शुक्रियादा किया..

समीर ने हमे हमारे घर तक छोड़ दिया...हेमा आंटी माँ को मेरे कंधे पे संभाले अपने घर जैसे तैसे चली गयी वो सारे रास्ते राजेश को गालियाँ दे रही थी उसे हाथ में एक भी पैसा नही मिला था....वो मुझसे माफी माँगके गयी...

माँ को जब घर लाया तो वो करीब 10 मिनट और सोई पड़ी रही...अच्छा था बाबूजी लेट आने वाले थे हम शाम को 7 बजे तक घर पहुच गये थे...माँ ने 10 मिनट आराम किया फिर धीरे धीरे उन्हें होश आया फिर वो मूतने बाथरूम गयी फ्रेश होके वापिस आने के बाद वो थोड़ा मायूस सी हुई जैसे शर्मिंदा हों जो कुछ भी हुआ उसे जब याद किया उनके मुँह से शराब की महेक आ रही थी...मैं नही चाहता था कि पापा को कुछ पता चले इसलिए फ़ौरन उन्हें नहाने को भेज दिया...कुछ घंटे में माँ बिल्कुल ठीक हो गयी...फिर मैने उसे सबकुछ बताया फिर उन्होने भी कि उन्हें मालूम नही था कि इतना कुछ उनके साथ हो गया....वो मेरे गले लग्के लगभग रो पड़ी...उसे गर्व था कि मैने उसके लिए इतना बड़ा रिस्क लिया था...मैं दिल ही दिल में खुश था कि चलो जो हुआ सो हुआ पर माँ ने मुझे जब अपना बाय्फ्रेंड कहा थोड़ा अज़ीब सा ज़रूर लगा था


माँ ने फोन करके हेमा आंटी से उनकी हालत पूछी और लगभग गुस्से में आके कह डाला कि अब वो उनसे कोई मतलब नही रखना चाहती...हेमा ने काफ़ी रिक्वेस्ट किया कि उसे मांफ कर दे जो हुआ उसे भूल जाए आदम को उसी ने मनाया था क्लब जाने को लेकिन माँ कुछ सुनना नही चाहती थी उन्होने सॉफ कह डाला कि मेरे बेटे ने मेरी इज़्ज़त को लूटने से बचाया अगर उसे कुछ होता तो आदम या उसके बाप को क्या जवाब देती? हेमा चुप हो गयी उसने माँफी फिर माँगा...पर माँ ने इतनी सालो की दोस्ती एक ही झटके में फोन कट करते हुए तोड़ दी ....मैं खुश हुआ कि आख़िरकार माँ को मेरी मुहब्बत का अहसास तो हुआ और अच्छे बुरे का अहसास भी


मैं और माँ कुछ देर वैसे ही बतलाते हुए रज़ाई ओढ़े सोए रहे माँ हैरत में थी कि मैं कैसे वहाँ आ गया था और मुझे मालूम कैसे चला? मैने सारी बात उन्हें बताई वो कस कर मेरे खुले उपरी बदन पे लिपट गयी और आँखो में आँसू उमड़ गये कि मैने अपनी जान पे खेलके उनकी जान बचाई थी.....रात 10 बजे तक हम नॉर्मल होके उठे और साथ में हम माँ-बेटे ने खाना बनाया पिताजी आ चुके थे उन्हें कुछ मालूम नही चल पाया
 

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पिछली शाम जो कुछ भी हुआ था वो अंजुम के दिल-ओ-दिमाग़ से नही निकल पा रहा था...उसे अब भी अहसास हुआ था कि वो कितनी बड़ी मुसीबत से बच निकली थी....सुबह पति के उठाने पे ही उसने आँख खोली थी तो पाया कि वो काफ़ी कल की वजह से थकि हुई थी हालाँकि वो जल्दी सोई भी नही थी...उसने फटाफट उठके नाश्ता पति के लिए बनाया और टिफिन पॅक किया....पति फ़ौरन घर से ऑफीस के लिए निकल पड़ा...अंजुम भी उबासी लेते हुए अपनी अधूरी नींद पूरी करने के लिए दुबारा लेट गयी...

इस बीच उसका बेटा आदम बिस्तर पे करवट लिए आँखे मुदें सोया पड़ा था...अंजुम को जैसे उस पर प्यार आया लेकिन वो उसे छूती वो जाग जाता कल उसने वैसे भी कैसे अपनी जान जोखिम में डालके अपनी माँ की जान बचाई थी? यही सोचते हुए वो सो गयी...अचानक उसकी नींद टूटी तो उसने पाया कि आदम अपने बिस्तर पे नही है....कहीं वो टाय्लेट में तो नही था? उसे हर पल आदम के पास ना होने से अज़ीब सा लगता था..

वो उठके एक बार बाथरूम में झाँकी तो पाया आदम वहाँ नही था....उसका पति सुबह 7 बजे के लगभग निकल चुका था और अभी 7:30 हुए थे वो तो कचरे की जो गाड़ी आती है उसकी आवाज़ ने उसे जगा दिया था....उसने पाया कि दूसरे कमरे में गुम्सुम आदम बैठा हुआ है....वो आदम के करीब आई और उसके कंधे पे हाथ रखके उसके बगल में बैठ गयी

अंजुम : क्या हुआ सब ठीक तो है इतनी सुबह सुबह तो कभी उठता नही और यहाँ ऐसे एकात मे इस कमरे में अकेले तू इतना चुपचाप क्यूँ बैठा हुआ है?

आदम : माँ मैं तुमसे बहुत नाराज़ हूँ

अंजुम : क्या तूने अभी तक अपनी माँ को मांफ नही किया?

आदम : माँ मैं तुमपे नाराज़ इसलिए हूँ कि तुम मुझे बिना बताए झूंट बोलके नानी के घर का बहाना लगाए उस गंदी हेमा के साथ उस पार्टी में चली गयी पता है अगर मैं वहाँ ना पहुचता और अगर समीर ने मदद ना की होती तो वो तो दोस्त है...क्या सोचा होगा? उसने जब आपको नशे की हालत में पाया मुझे कितना बुरा लगा आप जानती है?

अंजुम चुपचाप थोड़ी सी उदास हो गयी ऐसा लग रहा था जैसे वो फिर सूबक रही थी..."हां आदम ग़लती मेरी ही है तेरी बात मानके भी मैने वहाँ जाने का फ़ैसला किया अगर तू ना आता तो कसम से वो कमीना तो मेरे नशे का फ़ायदा उठा लेता हेमा से कल जब बात हुई थी तो उस रंडी ने बताया कि उसे चार पैसे भी नही मिले थे वो तो मुझसे भी ज़्यादा घबराई हुई थी बलात्कार जो हो जाता उसके साथ अगर समीर वक़्त पे वहाँ दाखिल नही होता और ना जाने मेरा भी क्या हाल होता?....लेकिन जो भी हो मुझे अब उस औरत से कोई ताल्लुक़ात नही रखना लेकिन तू प्लीज़ मुझे बार बार कल हुई घटना का कुछ भी याद मत दिला"........अंजुम ने बेटे की तरफ देखते हुए कहा

आदम : आइ आम सॉरी माँ मैं शायद आप पे बरस पड़ा...लेकिन कसम से कोई गैर इंसान अगर तुम्हारे बदन पे हाथ भी रखता है ना मुझे ऐसा लगता है कि उसकी जान ले लूँ...तुम नही जानती मैं नही चाहता कि तुम कही भी मुझे बिना बताए अकेले कही जाओ

अंजुम उसके बर्ताव में आए परिवर्तन को देख हैरत से देखते हुए मुस्कुराती है....वो बड़े गौर से अपने बेटे को देखती है....आदम का चेहरा गुस्से में जैसे लाल तमतमा उठता है...एकदम से उसकी माँ बीच में उसे रिलॅक्स करती है

अंजुम : रिलॅक्स बस बस इतना गुस्सा ठीक नही मुझे पता है तू मेरा सबसे ज़्यादा ख़याल रखता है लेकिन एक बात बता तुझे तेरी माँ में ऐसा क्या? मेरा मतलब है क्या महसूस हुआ कि तू एकदम से होमटाउन और नौकरी छोड़के महेज़ मेरे लिए चला आया?

आदम : क्यूंकी माँ मैं आपके बगैर एक पल भी नही रह सकता...खैर जाने दो जो कल हुआ सो हुआ पर एक वादा करो कि आज के बाद हेमा आंटी के पास आप भूल से भी नही जाओगी और ना ही अब किसी से मतलब नही रखोगी

अंजुम : बेटा मैं तुझे अपनी कसम देती हूँ मैं किसी से भी अब मतलब नही रखूँगी अब मैं सारा ध्यान अपने घर में और सिर्फ़ और सिर्फ़ तुझपे दूँगी खुश?(अंजुम के मुस्कुराते ही आदम उससे लिपट गया)

मैने माँ को इतनी ज़ोर से बाहों में भींचा कि माँ एकपल के लिए हैरत से मुझे देखते हुए मेरी पीठ सहला रही थी...उसने मुझे अलग किया और नज़ाकत से देखा

अंजुम : एक बात आदम मेरे दिल में केयी दिनो से ये बात चल रही है?

आदम : हाँ बोलो ना

अंजुम : तू मुझमें कुछ ज़्यादा ध्यान नही देने लगा है ? मेरा मतलब मैने कभी किसी भी बेटे को अपनी माँ के लिए इतना ज़्यादा केर करते नही देखा हालाँकि अगर कोई और लड़का होता और उसकी माँ ठीक वैसे ही मौज़ूद किसी क्लब में होती तो शायद उसे जॅलील करता या परवाह ना करता पर तुझे मैं समझ नही पा रही क्या बात है? हालाँकि कौन माँ नही चाहती कि उसे उसका बेटा इतना ख्याल रखे इतना प्यार करे..
 

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आदम समझ चुका था...कि मा फ्रॅंक्ली उससे ये सवाल कर रही थी....वो कहना चाहता तो था कि माँ तू मुझे बहुत पसंद है....और मैं अब तेरे साथ सारी ज़िंदगी बसर करना चाहता हूँ...तू मुझे इतनी पसंद है कि तुझे अपनी बाहों में हमेशा समेटे रखू सारी अयाशी छोड़ दी सबकुछ छोड़ दिया सिर्फ़ तुझे पाने के लिए....इतने में अंजुम ने उसे झिंजोड़ा तो आदम को होश आया कि वो मन की विचार धारा में उलझा हुआ था

अंजुम : बोल ना?

आदम : माँ सुन (आदम ने दोनो हाथ माँ के चेहरे पे रखे माँ उसे अज़ीब निगाहो से देखने लगी उसकी इस अज़ीब सी हरकत पर आदम का चेहरा उसके चेहरे महेज़ एक उंगली के फ़ासले दूर था) माँ मैं तुझे बहुत चाहता हूँ तुझे बहुत प्यार करता हूँ और मुझे तू भा गयी है

अंजुम : हाहहाहा हाहहाहा (माँ का एकदम से हँसते हुए यूँ उसे देखना आदम को अज़ीब लगा पर वो शरमा गया)

अंजुम : बुद्धू तू ऐसे क्यूँ कह रहा है? वो तो हर माँ अपने बेटे को उससे भी ज़्यादा उसे चाहती है प्यार करती है पर यूँ फ़िल्मो की तरह लड़की के चेहरे को पकड़े हाहाहा अज़ीब लगता है

आदम को थोड़ा गुस्सा आ गया...माँ ने उसकी फीलिंग्स को नज़रअंदाज़ कहीं ना कही कर दिया था...वो शरम से झेंप उठा नही...बल्कि उसने इस बार माँ को कस कर पकड़ा..माँ की हसी एक पल को ठहर गयी और वो बड़ी बड़ी निगाहो से बेटे की ओर देखने लगी...बेटे ने उसकी दोनो कलाई पकड़ कर रखी हुई थी

आदम : मेरी बात तुझे झूठ लगे या सच पर यही सच्चाई है अब मुझे तेरा किसी भी आदमी के साथ देखना अच्छा नही लगता शायद हमारा रिश्ता सबसे पहले जुदा हो और नाज़ुक हो...लेकिन मुझे तेरे से सच्चे दिल से प्यार है इसलिए देख मैने कभी किसी औरत को उस निगाह से नही देखा ना उस नज़रिए से जिन निगाहो से एक मर्द औरत को देखता है...मैं तुझे बेपनाह प्यार करता हूँ (आदम की गंभीर आवाज़ सुन उसकी माँ उसे लज्जा पाते हुए देख रही थी साथ ही साथ आदम को उसकी गरम साँसों का अहसास भी हो रह था)

कुछ पल के लिए आदम ठहरा रहा...बोलता रहा अपनी मन की हसरतों को जो उसकी माँ के लिए थी...पर अंजुम समझ ना पाई कि ये क्या था?....आख़िर में चुप्पि साधी माँ से आदम ने जवाब माँगा...वो घुटनो बैठ गया नीचे और पलंग पे बैठी माँ के हाथ को पकड़े उसने उसे लगभग चूमते हुए अपने हाथो में थामें रहा

आदम : क्या तुम मेरी ज़िंदगी की एक मात्र औरत बनोगी ?

अंजुम : आ..द्दाम बेटा ये कैसी बातें कर रहा है तू? मैं तेरी माँ हूँ और एक माँ और बेटे के बीच सिर्फ़ एक ही रिश्ता होता है वो है ममता का तू मेरी कोख से पैदा हुआ है....लेकिन तू जिस तरीके से कह रहा है ऐसा कैसे हो सकता है? भला एक बूढ़ी औरत के लिए तू सारी ज़िंदगी उसके नाम करना चाह रहा है अर्रे मैं तो रहूंगी तेरे साथ पगले पर बेटा ये सब अज़ीब!

आदम : माँ जानता हूँ कि ये बेहद अज़ीब सी हालत है जो मैं तुझसे कह रहा हूँ पर मैं तुझसे बहुत कुछ चाहता हूँ जो फिलहाल कह नही सकता....पता नही माँ मैं अपनी सारी ज़िंदगी तेरे साथ काटना चाहता हूँ मैं जानता हूँ कि ये सोसाइटी इस रिश्ते को पाप समझेगी आइ डॉन'ट गिव आ शिट टू दिस सोसाइटी

अंजुम : बेटा तू मेरी औलाद है पर तेरा प्यार उन लोगो के बीच होता है जो पति पत्नी होते है हालाकी मेरा तेरे पिता के साथ कभी ऐसा कुछ नही रहा...लेकिन मुझे लग ही रहा था कि तेरे मन में कुछ बात ज़रूर चल रही है

अंजुम को हेमा की वोई बातें याद आ रही थी कि आजकल लड़के अपनी ही माओ के साथ व्यभिचार रिश्ता बनाते है जो कि खूनी रिश्ते होते है पर संबंध जैसा एक मिया बीवी का होता है ठीक वैसा....अंजुम को अहसास होता है अब तक उसने अपने बेटे को एक बच्चे की तरह पाला पोसा और अपने सीने से लगाए रखा लेकिन आज ऐसा लग रहा था कि उसके बेटे के रूप में कोई गैर मर्द उसका हाथ माँग रहा हो उसे प्रपोज कर रहा हो
 

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अंजुम के होंठ काँप रहे थे....वो अपने बेटे से अटूट मुहब्बत करती थी लेकिन आज उसे ऐसा लग रहा था जैसे ये सब ग़लत हो गुनाह हो...उसका बेटा अपनी ही माँ को गंदी नज़र से देख रहा हो....ये सब सोचते सोचते अंजुम रोने लगी....आदम हैरान होते हुए माँ के चेहरे को सहलाने लगा...उसने माँ के आँसू पोंछे

आदम : म...माँ मैं तो बस माँ मुझसे ग़लती हो गयी प्लीज़ माँ रो मत प्लीज़

अंजुम : रोऊ नही तो और क्या कहूँ? मुझे छी यकीन नही होता कि तू मुझे अपनी ही माँ को ऐसी नज़र से देखने लगा है क्या जादू कर दिया तेरे परिवार ने तुझपे क्या तू इसीलिए होमटाउन से यहाँ आया सिर्फ़ अपनी माँ से अपनी नापाक हसरत मिटाने तू जानता भी है तेरे इस प्यार का कोई वजूद नही मुझ जैसी बुढ़िया लेके तू पगला रहा है मुझपे क्या बीतेगी इसका तुझे कोई अंदाज़ा है

आदम : माँ नही ऐसा कुछ नही माँ

अंजुम ने बेटे के हाथ अपने चेहरे से हटा लिए....और नज़रें नीचे करते हुए उसे ऐसे नज़रो से देख रही थी जिसमें घृणा और दुख दोनो घुले हुए थे....आदम को लगा कि उससे कितनी बड़ी भूल हो गयी? लेकिन उसे अहसास हुआ ये उसकी हवस नही बल्कि उसका सच्चा प्यार था...उसने माँ की तरफ हाथ बढ़ाया पर माँ उसके हाथ को झटकते रही...

आदम रोने लगा वो एकदम से माँ की तरफ जुनून भरी निगाहो से देखता है...."ठीक है माँ मैने तुम्हें गंदी नज़रों से देखा ना मुझे तुमने मेरे प्यार को ग़लत ठहराया...ये सोचा कि हमारा रिश्ता नापाक हो जाएगा...ठीक है तो भूल जाओ अब मुझे खो देना आदम का नाम जो तुझे दुगनी खुशी देना चाह रहा था शायद ग़लती मेरी है मुझ जैसे पापी को इस दुनिया में रहने का कोई अधिकार नही ठीक ना"......धीरे धीरे एकदम से आदम बौखला उठा वो लगभग चिल्लाने चीखने लगा....

वो लगभग दौड़ पड़ा...माँ उसके गुस्से को जानती थी उसकी आँखे बड़ी बड़ी हो गयी वो बेटे के पीछे भागी उसे मालूम था बेटा जब गुस्सा करता है या उस पर कोई जुनून चढ़ता है तब वो कुछ नही देखता होशो हवास खो बैठता है...लगभग 2न्ड माले पे उसका परिवार रहता था..वो ठीक आँगन में आया...और फ़ौरन अपनी एक टाँग उसने बाल्कनी के ग्रिल के दूसरी साइड रख ली..वो लगभग आँगन के ग्रिल पे चढ़ा हुआ था...उसकी माँ उसे छुड़ाने लगी.."न्नहिी नहिी आदम नहिी बेटा नहिी".....माँ रोते हुए जैसे चीख रही थी

इतनी तेज़ शोर में पड़ोसी लोग बाल्कनी की तरफ देखने लगे कि अचानक क्या हुआ? जो अंजुम का बेटा ऐसे स्यूयिसाइड करने की कोशिश कर रहा था...आदम का पूरा चेहरा लाल था आँखे एकदम गुलाबी गुस्से में चिल्लाते हुए माँ के हाथो को धकेल रहा था इतने में माँ ने उसे अपनी कसम दे डाली..आदम रुक गया उसकी माँ की आँख उसे देख रही थी....उसका गुस्सा लगभग कम होने लगा...उसने कस कर बेटे को उतारने की कोशिशें की

आदम बाल्कनी से तो उतर गया...तो माँ ने कस कर उसके चेहरे पे थप्पड़ मारा....एक नही दो-तीन बार....कि आगे से ऐसा कुछ भी वो ना करे? अगर उसने उसे खो दिया होता तो उसकी ज़िंदगी का क्या वजूद बाकी रह जाता

आदम और अंजुम दोनो ही एकदुसरे को रोते हुए गले लग्के लिपट गये....तब तक मकान मालकिन भी चीख चिल्लाहट की आवाज़ के साथ अपने पति के साथ उपर आके दरवाजा खटखटाई...तो माँ ने ही दरवाजे खोला और झूठ कहा कि उसके और उसके बेटे एक बीच कलेश हो गया था अब सब ठीक है....वो लोग तो डर ही गये सोचने लगे कि कही कोई अनहोनी तो नही घट गयी.....उन लोगो के जाने के बाद

अंजुम ने आँगन का दरवाजा लगाके बंद कर दिया....बेटा चुपचाप पलंग पे लेटा हुआ था...माँ ने उसे गौर से देखा

अंजुम : तू आजके बाद ऐसा कभी नही करेगा वादा कर

आदम : लेकिन मुझे आप भी वादा करो कि आप मेरे प्यार को कभी हवस का नाम नही दोगि

अंजुम : आदम मैं तुझे कैसे सम्झाउ? मैं तेरी माँ हूँ रे तेरे पिता और मेरे बीच 20 साल हुए संबंध नही रहा...तेरी माँ इतनी तक़लीफो से पीड़ित है तुझे कुछ अंदाज़ा है और आज तू ऐसा कुछ मुझसे माँग रहा है

अंजुम बेटे के सर के बालों को सहलाते हुए उसके पास बैठ गयी...दोनो चुपचाप कुछ देर चुप्पी साधे रहे..कोई घर से बाहर भी नही निकाला....आए दिन तो कलेश होता था पर इस तरह माँ-बेटे के बीच कभी कुछ ऐसा नही घटा था....

अंजुम : अच्छा तू मुझसे क्या चाहता है ? क्या तू वादा करता है कि कभी मुझसे नही झगड़ेगा अपनी माँ की हर बात मानेगा? और सबसे बढ़कर कभी तू मुझे छोड़के कही नही जाएगा बोल जवाब दे

आदम : मैं पूरा वादा करता हूँ माँ

अंजुम : और क्या ये भी जानता है? कि जो तू रिश्ता चाह रहा है वो माँ-बेटे के बीच मुमकिन नही

आदम : मैं सबकुछ जानता हूँ माँ अगर मेरे अंदर कुछ ऐसा वाहीयतपना होता तो क्या मैं अब तक कुछ ऐसा नही करता?

अंजुम चुपचाप नज़रें झुकाए रखी...."पर बेटा मुझे तेरी मुहब्बत पे पूरा विश्वास है पर कल को अगर तेरे पिताजी या कोई तेरे मन की हसरतों को जान ले तो जानता है हम दोनो कितने बदनाम हो जाएँगे?"....... अंजुम आदम के करीब हो गयी

आदम : मुझे किसी की परवाह नही और वैसे ही कल पिता के बाद हम दोनो ही अकेले रह जाएँगे कौन रहेगा हमारे साथ? और मुझे शादी वादी करनी नही बस तू वादा कर

अंजुम ने मुस्कुरा कर आदम के हाथो में हाथ रख दिया..उसे थोड़ा अज़ीब लगा ज़रूर था पर अब वो अपने बेटे को अलग नज़रों से देख रही थी वो जानती थी कि अगर वो इस मुहब्बत को क़बूल करती है तो आदम उसकी ज़िंदगी खुशियो से भर देगा पर उसे गुनाह से डर भी था...

अंजुम के होंठो को आदम ने लगभग चूम लिया उसने इतने धीमे से और इतने देरी से होंठो से होंठ को अलग किया...कि माँ को उसके होंठो की मीठी जलन सी लगी वो उसे अज़ीब निगाहो से देखते हुए चुपचाप उठ कर चली गयी....

12 बजे तक उन्होने नाश्ता किया...दोनो माँ-बेटे वापिस अपने घरेलू ज़िंदगी में जैसे लौट चुके थे....दोनो के बीच सबकुछ नॉर्मल रहा...लेकिन अंजुम बेटे को अलग निगाह से देख रही थी उसे हैरत हो रही थी कि कभी भी उसने ऐसा किस्सा सुना हो कि एक बेटा अपनी माँ को चाह बैठेगा....

आदम धीरे धीरे दिन प्रतिदिन उसे खुशिया देने की नाकाम कोशिशे कर रहा था वो मन लगाके आगे की पढ़ाई के लिए सोचने लगा नौकरी के लिए इंटरनेट पे रिज्युम बनाए उसने कई जगह आवेदन किए...माँ की सेवा में वो लग गया वो माँ को हर मुमकिन आराम देने लगा था....धीरे धीरे माँ का उसे देखने का नज़रिया अलग होता चला गया और उसके दिल में जो अज़ीब सी फीलिंग थी वो धीरे धीरे गायब होने लगी..वो भी खुश थी कि आदम उसके इतना करीब आ गया वो ये बात अपनी माँ यानी आदम की नानी तक से छुपाए रखी हुई थी कि उन दोनो के बीच क्या हुआ था!
 
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