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शाम को जब माँ सोफे पर बैठे थी तो मैंने उनसे बात की. मैंने उनसे माफ़ी मांगते हुए कहा- मॉम मुझसे ग़लती हो गई
… आगे से ऐसा नहीं होगा.
माँ चुप रही. वो कुछ सोच में थी.
मैंने माँ के दोनों हाथ अपने हाथों में पकड़ लिए और माँ से कहा.
"माँ मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ. गुस्सा न हो कर प्लीज मेरी बात शांति और ध्यान से सुने. मैं आज के वाकये पर बहुत शर्मिंदा हूँ. मुझे सच में ऐसा नहीं करना चाहिए था. जो भी हुआ गलत हुआ. पर माँ आप ही सोचो मैं भी क्या करूँ. मेरे उम्र ३२ साल हो गयी है. मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं की मैं रोज रोज किसी रंडी से अपना जोश उतार सकूँ. न ही मेरी शादी हो रही है. हम गरीब हैं इस लिए कोई रिश्तेदार मेरी शादी की लिए उत्सुक नहीं है. कोई भी आदमी अपनी बेटी मुझ से ब्याहना है चाहता. पर मेरी भी तो कुछ शारीरिक जरूरतें हैं. मैं क्या करु और जाऊँ तो कहाँ जाऊं। मुझे एक औरत के शरीर की बहुत चाहना होती है. पर गरीब होने के कारन कुछ कर नहीं सकता. "
माँ चुप रही. वो मेरी स्थिति समझ सकती थी पर वो बेचारी भी क्या करती.
मैं फिर बोला
"माँ. मैं जानता हूँ की जैसी मेरी स्थिति है ठीक वैसी ही हालत आप की भी है. आप भी एक मर्द के शरीर के लिए तरस रही है. आप भी अभी बहुत सुन्दर और जवान है. और आप तो पिछले १० साल से विधवा हैं. आप भी मेरी तरह चाहती है की आप की शारीरिक जरूरतों को कोई मर्द पूरा करे. मैंने आप को बहुत बार बाथरूम में अपनी उँगलियों से अपनी काम इच्छा रगड़ते देखा है. मैंने आप को कितनी ही बार खीरे या मूली से अपने आप को शांत करते देखा है. "
माँ की आँखें हैरानी से खुली रह गयी. वो नहीं जानती थी की मुझे उन की इस गुप्त काम क्रियाओँ के बारे में पता है. उन होने मुझे रोकने और न करने के लिए मुँह खोला ही था पर मैंने उन्हें बोलने से पहले ही आगे बोलते हुए कहा.
"माँ इतना ही नहीं मैंने कई बार आप और आप की सहेलियों की बातें भी सुनी हैं. जब आप कहती थी की आप का चुदवाने का बहुत मन कर रहा है. माँ मैं जानता हूँ की जैसे मैं सेक्स के लिए तड़प रहा हूँ. आप भी मेरी तरह ही सेक्स की भूखी है और तड़प रही है. पर हम दोनों के पास अपनी इस समस्या का कोई समाधान नहीं है. न ही मैं किसी औरत को चोद सकता हूँ और अपनी सेक्स की भूख मिटा सकता हूँ और न ही आप किसी बाहर के आदमी से अपनी सेक्स की इच्छा पूरी कर सकती है. और गरीब होने के कारन ऐसा कोई रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा की आने वाले समय में कुछ हो सकेगा. ऐसा लगता है की भगवान ने हमे किसी गहरी खाई में धकेल दिया है. जहां कोई रास्ता नहीं है. हम दोनों जाएं तो जाएँ कहाँ. "
मैं जोश में चुदाई जैसे शब्द बोल गया पर माँ ने शायद उस पर ध्यान ही नहीं दिया. वो तो हैरान और चुप चाप बैठी रही.
माँ को शांत और चुप देख कर मैं फिर से बोला
"माँ इस जीवन में हम दोनों माँ बेटा एक दूजे के सहारे ही है. अब अपना जीवन हम दोनों को इक दूसरे के सहारे और साथ में ही गुजारना है. हमे अपनी समस्याओं का समाधान भी खुद ही ढूंढ़ना होगा. और कोर तीसरा हमारी मदद करने वाला नहीं है.
माँ अब मैं जो कहने जा रहा हूँ, आप प्लीज गुस्सा मत होना और जरा शांति से मेरी बात सुन्ना. और फिर शांति से उस पर विचार करना और फिर कोई निर्णय लेना. मुझे कोई जल्दी नहीं हैं. आप जो भी निर्णय लेंगी मुझे मंजूर होगा. "
माँ चुपचाप मेरी ओर देखती रही. उसे कोई आईडिया नहीं था की मेरे मन में क्या है.
मैं माँ को प्यार से देखते हुए बोलै.
"माँ हम दोनों को भगवान ने एक दूसरे के सहारे ही छोड़ दिया है. अब इस जीवन में हम माँ बेटा हर चीज के लिए एक दुसरे के सहारे हैं. चाहे वो पैसा हो, कोइ काम हो, कहीं आना जाना हो , बीमारी हो या जीवन की कोई भी इच्छा या जरूरत हो तो हम दोनों ही एक दुसरे का सहारा है. और हम दोनों ही सेक्स के लिए तड़प रहे हैं. जब भगवान ने हमे एक दुसरे की मदद करने को रखा है तो शायद भगवान् ही चाहता है की हम दोनों ही सेक्स के लिए भी एक दुसरे का सहारा बने. और एक दुसरे के सेक्स की जरूरत पूरी करें. घर में हम दोनों ही हैं तो किसी को कानो कान पता भी नहीं चलेगा और हम दोनों एक दुसरे से सेक्स भी कर सकेंगे."
माँ मेरी बात सुननते ही गुस्से से भड़क गयी और एकदम गुस्से में खड़ी हो गयी और बोली
"तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है. तुजे मालूम भी है की तू यह क्या कह रहा है."
माँ गुस्से से कांप रही थी.
मैंने माँ को शांत करते हुए कहा.
"माँ बैठ जाओ और शांति से मेरी बात सुनो. देखो हमें सब रिश्तेदारों ने छोड़ दिया है. कोई भी हमारी मदद नहीं करता. हर दुःख सुख और जरूरत के लिए हम दोनों को एक दूजे का हे सहारा है. मेरी शादी का कोई चांस नहीं है. मैं कब तक अपने हाथों से मुठ मारता रहूँगा. और आप का तो कुछ भी नहीं हो सकता. आप की तो अब कोई शादी भी नहीं होगी. आप के बातें मैंने सुनी है (सहेलियों के साथ ), आप सेक्स के लिए कितना तड़प रही है. मैं अच्छी तरह जानता हूँ. आप क्या सारी जिंदगी चुदाई के लिए ऐसे ही तड़पती रहोगी. क्या सारी उम्र अपनी उँगलियों या खीरे मूली से ही अपनी तड़प शांत करती रहोगी. क्या आप नहीं चाहती की आप की भी अच्छी तरह से चुदाई हो. आप के पास मेरी इस बात के इलावा क्या कोई और रास्ता है जिस से आप और मेरी काम सेक्स की जरूरत पूरी हो सके। माँ आप शांति से सोच कर कोई निर्णय लें. मुझे आप के निर्णय का इन्तजार रहेगा. एक तरफ है इसी तरह सारी जिंदगी तड़प तड़प कर मुठ मार मार कर जीवन गुजारना और दूसरी तरफ है एक दुसरे का साथ. और जिसमे है रोज की जबरदस्त चुदाई और प्यार. हम दोनों माँ बेटा है तो किसी को शक भी नहीं होगा और हम खुल कर चुदाई कर सकेंगे. मैं आप को मजबूर नहीं कर सकता पर आप शांति से सोच कर अपने निर्णय मेरे को बता देना "
(मैं जोश में चुदाई मुठ मारना जैसे खुले शब्द बोल गया पर माँ ने शायद उस ओर ध्यान ही नहीं दिया और चुप चाप बैठी रही.)
यह बोल कर मैं उठ कर अपने कमरे में चला गया और माँ किसी गहरी सोच में डूबी हुई सोफे पर पत्थर की मूर्ती की तरह बैठी रही.
मैं माँ को बोल कर अपने कमरे में चला गया पर माँ किसी पत्थर की मूर्ती की तरह चुपचाप बैठी रही. शायद मेरी बात उनके लिए किसी वज्रपात से कम नहीं थी। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था की उनका अपना बेटा ही उन्हें चोदने और आपस में ही सेक्स भरा जीवन बिताने का ऑफर देगा.
शाम को भी माँ ने मेरे से कोई बात नहीं कृ. बस वो चुपचाप घर का काम करती रही.
खाना खाने के टाइम भी हमारे बीच में कोई बात चीत नहीं हुई. एक भोजल सी ख़ामोशी हमारे दरमियान छाई रही. .
… आगे से ऐसा नहीं होगा.
माँ चुप रही. वो कुछ सोच में थी.
मैंने माँ के दोनों हाथ अपने हाथों में पकड़ लिए और माँ से कहा.
"माँ मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ. गुस्सा न हो कर प्लीज मेरी बात शांति और ध्यान से सुने. मैं आज के वाकये पर बहुत शर्मिंदा हूँ. मुझे सच में ऐसा नहीं करना चाहिए था. जो भी हुआ गलत हुआ. पर माँ आप ही सोचो मैं भी क्या करूँ. मेरे उम्र ३२ साल हो गयी है. मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं की मैं रोज रोज किसी रंडी से अपना जोश उतार सकूँ. न ही मेरी शादी हो रही है. हम गरीब हैं इस लिए कोई रिश्तेदार मेरी शादी की लिए उत्सुक नहीं है. कोई भी आदमी अपनी बेटी मुझ से ब्याहना है चाहता. पर मेरी भी तो कुछ शारीरिक जरूरतें हैं. मैं क्या करु और जाऊँ तो कहाँ जाऊं। मुझे एक औरत के शरीर की बहुत चाहना होती है. पर गरीब होने के कारन कुछ कर नहीं सकता. "
माँ चुप रही. वो मेरी स्थिति समझ सकती थी पर वो बेचारी भी क्या करती.
मैं फिर बोला
"माँ. मैं जानता हूँ की जैसी मेरी स्थिति है ठीक वैसी ही हालत आप की भी है. आप भी एक मर्द के शरीर के लिए तरस रही है. आप भी अभी बहुत सुन्दर और जवान है. और आप तो पिछले १० साल से विधवा हैं. आप भी मेरी तरह चाहती है की आप की शारीरिक जरूरतों को कोई मर्द पूरा करे. मैंने आप को बहुत बार बाथरूम में अपनी उँगलियों से अपनी काम इच्छा रगड़ते देखा है. मैंने आप को कितनी ही बार खीरे या मूली से अपने आप को शांत करते देखा है. "
माँ की आँखें हैरानी से खुली रह गयी. वो नहीं जानती थी की मुझे उन की इस गुप्त काम क्रियाओँ के बारे में पता है. उन होने मुझे रोकने और न करने के लिए मुँह खोला ही था पर मैंने उन्हें बोलने से पहले ही आगे बोलते हुए कहा.
"माँ इतना ही नहीं मैंने कई बार आप और आप की सहेलियों की बातें भी सुनी हैं. जब आप कहती थी की आप का चुदवाने का बहुत मन कर रहा है. माँ मैं जानता हूँ की जैसे मैं सेक्स के लिए तड़प रहा हूँ. आप भी मेरी तरह ही सेक्स की भूखी है और तड़प रही है. पर हम दोनों के पास अपनी इस समस्या का कोई समाधान नहीं है. न ही मैं किसी औरत को चोद सकता हूँ और अपनी सेक्स की भूख मिटा सकता हूँ और न ही आप किसी बाहर के आदमी से अपनी सेक्स की इच्छा पूरी कर सकती है. और गरीब होने के कारन ऐसा कोई रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा की आने वाले समय में कुछ हो सकेगा. ऐसा लगता है की भगवान ने हमे किसी गहरी खाई में धकेल दिया है. जहां कोई रास्ता नहीं है. हम दोनों जाएं तो जाएँ कहाँ. "
मैं जोश में चुदाई जैसे शब्द बोल गया पर माँ ने शायद उस पर ध्यान ही नहीं दिया. वो तो हैरान और चुप चाप बैठी रही.
माँ को शांत और चुप देख कर मैं फिर से बोला
"माँ इस जीवन में हम दोनों माँ बेटा एक दूजे के सहारे ही है. अब अपना जीवन हम दोनों को इक दूसरे के सहारे और साथ में ही गुजारना है. हमे अपनी समस्याओं का समाधान भी खुद ही ढूंढ़ना होगा. और कोर तीसरा हमारी मदद करने वाला नहीं है.
माँ अब मैं जो कहने जा रहा हूँ, आप प्लीज गुस्सा मत होना और जरा शांति से मेरी बात सुन्ना. और फिर शांति से उस पर विचार करना और फिर कोई निर्णय लेना. मुझे कोई जल्दी नहीं हैं. आप जो भी निर्णय लेंगी मुझे मंजूर होगा. "
माँ चुपचाप मेरी ओर देखती रही. उसे कोई आईडिया नहीं था की मेरे मन में क्या है.
मैं माँ को प्यार से देखते हुए बोलै.
"माँ हम दोनों को भगवान ने एक दूसरे के सहारे ही छोड़ दिया है. अब इस जीवन में हम माँ बेटा हर चीज के लिए एक दुसरे के सहारे हैं. चाहे वो पैसा हो, कोइ काम हो, कहीं आना जाना हो , बीमारी हो या जीवन की कोई भी इच्छा या जरूरत हो तो हम दोनों ही एक दुसरे का सहारा है. और हम दोनों ही सेक्स के लिए तड़प रहे हैं. जब भगवान ने हमे एक दुसरे की मदद करने को रखा है तो शायद भगवान् ही चाहता है की हम दोनों ही सेक्स के लिए भी एक दुसरे का सहारा बने. और एक दुसरे के सेक्स की जरूरत पूरी करें. घर में हम दोनों ही हैं तो किसी को कानो कान पता भी नहीं चलेगा और हम दोनों एक दुसरे से सेक्स भी कर सकेंगे."
माँ मेरी बात सुननते ही गुस्से से भड़क गयी और एकदम गुस्से में खड़ी हो गयी और बोली
"तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है. तुजे मालूम भी है की तू यह क्या कह रहा है."
माँ गुस्से से कांप रही थी.
मैंने माँ को शांत करते हुए कहा.
"माँ बैठ जाओ और शांति से मेरी बात सुनो. देखो हमें सब रिश्तेदारों ने छोड़ दिया है. कोई भी हमारी मदद नहीं करता. हर दुःख सुख और जरूरत के लिए हम दोनों को एक दूजे का हे सहारा है. मेरी शादी का कोई चांस नहीं है. मैं कब तक अपने हाथों से मुठ मारता रहूँगा. और आप का तो कुछ भी नहीं हो सकता. आप की तो अब कोई शादी भी नहीं होगी. आप के बातें मैंने सुनी है (सहेलियों के साथ ), आप सेक्स के लिए कितना तड़प रही है. मैं अच्छी तरह जानता हूँ. आप क्या सारी जिंदगी चुदाई के लिए ऐसे ही तड़पती रहोगी. क्या सारी उम्र अपनी उँगलियों या खीरे मूली से ही अपनी तड़प शांत करती रहोगी. क्या आप नहीं चाहती की आप की भी अच्छी तरह से चुदाई हो. आप के पास मेरी इस बात के इलावा क्या कोई और रास्ता है जिस से आप और मेरी काम सेक्स की जरूरत पूरी हो सके। माँ आप शांति से सोच कर कोई निर्णय लें. मुझे आप के निर्णय का इन्तजार रहेगा. एक तरफ है इसी तरह सारी जिंदगी तड़प तड़प कर मुठ मार मार कर जीवन गुजारना और दूसरी तरफ है एक दुसरे का साथ. और जिसमे है रोज की जबरदस्त चुदाई और प्यार. हम दोनों माँ बेटा है तो किसी को शक भी नहीं होगा और हम खुल कर चुदाई कर सकेंगे. मैं आप को मजबूर नहीं कर सकता पर आप शांति से सोच कर अपने निर्णय मेरे को बता देना "
(मैं जोश में चुदाई मुठ मारना जैसे खुले शब्द बोल गया पर माँ ने शायद उस ओर ध्यान ही नहीं दिया और चुप चाप बैठी रही.)
यह बोल कर मैं उठ कर अपने कमरे में चला गया और माँ किसी गहरी सोच में डूबी हुई सोफे पर पत्थर की मूर्ती की तरह बैठी रही.
मैं माँ को बोल कर अपने कमरे में चला गया पर माँ किसी पत्थर की मूर्ती की तरह चुपचाप बैठी रही. शायद मेरी बात उनके लिए किसी वज्रपात से कम नहीं थी। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था की उनका अपना बेटा ही उन्हें चोदने और आपस में ही सेक्स भरा जीवन बिताने का ऑफर देगा.
शाम को भी माँ ने मेरे से कोई बात नहीं कृ. बस वो चुपचाप घर का काम करती रही.
खाना खाने के टाइम भी हमारे बीच में कोई बात चीत नहीं हुई. एक भोजल सी ख़ामोशी हमारे दरमियान छाई रही. .