मां के हाथ के छाले
Part :7
फिर हम मिलकर खाना खाने बैठे। खाना खाते खाते मां बार बार अपनी टांगो को एक दूजे से मसल रही थी के मैंने उनसे पूछा : क्या हुआ मां, कोई परेशानी है क्या?
मां : बेटा वो मेरी पैंटी गीली हो रखी है ना थोड़ी सी, तो वो पेशाब को वजह से खुजली हो रही है थोड़ी थोड़ी।
मैंने बिना सोचे समझे बोल दिया : तो मैं खुजा दूं क्या मां?
मां चुप रही फिर सोच कर बोली : नहीं बेटा कोई बात नहीं, तू रहने दे।
अब मां के गर्म पेशाब का जलवा था ही ऐसा के उनकी झांटों में गुजली रुकना मुस्किल था तो जब कुछ मिनटों बाद मां से बर्दाश्त ना हुआ तो बोली : अच्छा बेटा सुन
मैं: हां मां?
मां : बेटा वो अब खुजली बर्दास्त नहीं हो रही, तेरे हाथों से करवा लेती पर इन हाथों से तु खाना भी खा रहा है और मुझे भी खिला रहा है, और अब साथ साथ खुजलाएगा तो हाथ भी गंदे हो जाएंगे।
मैं: अरे कोई बात नहीं मां। मैं एक हाथ से खुजा दूंगा और दूसरे हाथ से आपको खाना खिला दूंगा।
मैं फिर सोचने लगा के अब बार बार सामने हाथ ले जाना, खुजलाने के लिए तो बार बार उठ कर खुजाना पड़ेगा तो इस से अच्छा मां को इधर अपने सोफे पर ही बुला लेता हूं।
मैं फिर बोला : मां क्यूं ना एक काम करें, आप ऐसा करो सामने से उठ कर मेरे साथ बैठ जाओ जिस से आपको सही खाना खिलाया जाएगा
पहले सिचुएशन ऐसी थी के मां और मैं सिंगल सिंगल सोफे पर बीच में एक टेबल पर खाना रख कर बैठे थे और मैं उन्हें हाथ दूर कर कर खिला रहा था पर जब मैंने उन्हें अपने पास आने बोला तो वो मेरे वाले सोफे की साइड पर आ बैठी और बोली : अब ठीक है बेटा?
मैं: हां मां।
फिर मैनें उन्हे खाना खिलाते हुए कहा : मां जब खुजली हो तो बता देना।
मां : बेटा हो ही रही है, जरा सा खुजला तो जरा।
मैं: हां मां, खुजलाता हूं, बोलो किधर खुजलाऊं?
मां : बेटा ये थोड़ा पेट के नीचे जहां ये पैंटी है।
मैनें मुड़ में आकर सीधा मां की चूत पर हाथ रख दिया और मासूम बनकर बोला : यहां पर मां?
मां भी मस्ती में बोली : हां बेटा यही, और थोड़ा और नीचे भी।
मैं एक हाथ से धीरे धीरे खुजलाता और दूसरे हाथ से खाना खिलाता, उनको जब और मस्ती चढ़ने लगी तो बोली : बेटा ये कपड़ा पहले ही गिला है और तु खुजला रहा है तो अंदर घुस रहा है ये
मैं भी मस्ती में बोला : इसे थोड़ा सा हटा दूं क्या मां?
मां : हां मेरे बुद्धू।
मैनें उनकी कमीज थोड़ी सी ऊपर की और उनके क्लीवेज वाले एरिया में उसे हल्का सा फसा दिया मोड़ कर। फिर उनका गोरा पेट मुझे नजर आने लगा। मन किया की उनकी वो नाभि में जीभ फेर दूं। फिर सोचा जीभ ना सही फिलहाल के लिए कम से कम उंगली तो फेर ही सकता हूं। फिर मैं पजामी पर से खुजाने लगा के मां बोली : बेटा इसके अंदर हाथ डालके कर ना।
मैं ये सुनकर खुश हुआ और धीरे से उनकी पजामी में पेट से होता हुआ एक हाथ ले गया। अंदर हाथ जाते ही पैंटी पर पड़ा जो मेरी उम्मीद से कुछ ज्यादा ही गीली हो रखी थी पेशाब की वजह से। मैनें सोचा मां को ही सब कहने का मोका दिया जाए और जानकर उस पैंटी के ऊपर से ही रगड़ने लगा के मां खाते खाते हल्का हल्का सा सिसकियां भरने लगी और : आ आह आह करने लगी।
फिर बोली : बेटा अब अच्छा लग रहा है, ऐसे ही करता रह बस।
मैं भी कुछ देर ऐसे ही करता रहा और मेरे हाथ इस वक्त उनके पेशाब से पूरे भीग चुके थे। खाना तो अब खत्म हो ही चुका था और पेट की भूख भी और अब शायद बारी थी चूत और लन्ड की भूख शांत करने की। मैंने बिना उनके कहे उनकी पैन्टी में अंदर हाथ डाला और खुजाने लगा के मां और सिसकियां लेने लगी : आह उई सोनू बेटा, आ.. ब ब ब स करता रह ऐसे ही थोड़ी देर।
मेरा मन किया के उनका हाथ पकड़ कर अपने लन्ड पर रख दू पर ये छाले बीच में आ गए और मैं अपने मन में बोला : वाह रे छाले, पहले तूने ही ये सबके दर्शन करवाए और अब तू ही मुझे मजे लेने से रोक रहा है।
फिर जैसे ही मैनें खुजली करने के बजाए 1 उंगली उनकी चूत की छेद में डालकर खुजली के बहाने आगे पीछे करना चालू किया के 2 मिनट बाद ही मां झड़ गई और सीधा सोफे के साइड से हटके मेरे ऊपर आ गिरी। मेरा लन्ड उस वक्त पूरा टाइट और गर्म हो रखा था। ये पहली बार था के मैंने किसी की चूत में उंगली डाली हो। मां की चूत का रस टपक टपक के उनकी पैन्टी में ही छुट गया और मेरे उंगली भी उस से भर गई। फिर जैसे ही मां मेरे ऊपर गिरी उन्हे मेरे गर्म लन्ड का एहसास जरूर हुआ होगा अपनी गांड़ पर, 1 मिनट के लिए तो मानों फिर हम चुप से ही हो गए। पर जैसे ही मां का रस पूरा उनकी चूत से बाहर बह गया वो होश में आई और मुझसे खड़ी होकर अपने कमरे में जाने लगी और बिना मेरे तरफ देखे बोली : बेटा मैं थोड़ी देर आराम करने जा रही हूं।
मां अपने कमरे में चली गई और मैंने वो मां की चूत के रस से भरी उंगली चाट कर साफ की ओर मानों मैं भी कहीं खो सा गया और सोचने लगा के : ये चूत का रस इतना जबरदस्त है तो चूत कितनी जबरदस्त होगी भला। फिर खुदसे बाते करते करते बोला : शायद मां का रस छुटने के बाद उन्हें मेरे साथ ऐसा करने के खयाल से बुरा लगा और वो बिना कुछ कहे ही चली गई, या फिर मेरे लन्ड की वजह से तो नहीं ये। फिर मैं दोबारा खुद से बोला : चलो जो भी हुआ अच्छा ही हुआ, अब चूत मिलने में शायद ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। और मैं फिर वहां से उठा, मां के पेशाब और रस से सना हाथ धोकर, बर्तन उठाए और अपने कमरे में जाकर मूवी देखने लगा।