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Incest मां के हाथ के छाले

sahilgarg6065

MyEroticDiary
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मां के हाथ के छाले
Part : 8
इधर मां रस छुटने के बाद अपनी इस हालत को कोस रही थी। मां खुद से बाते करती हुई बोली : हे भगवान, ये क्या हो गया मुझे, अपने ही बेटे के हाथों चूत में उंगली करवा बैठी। और तो और जब उस पर गिरी तो उसका कितना कड़क और गर्म हो रखा था। छी ये मैनें क्या कर दिया। मां की आंखों में नींद तो ना थी और वो इन्ही सब के बारे में सोचती रही और सोच सोच के ही ख्यालों में खोकर इतने दिनों बाद चूत का पानी टपकाकर सो गई। वैसे लन्ड हो या चूत पानी छुट जाने के बाद जो आराम मिलता है और नींद आती है वो तो एकदम मस्त ही होती है।

मैं मूवी देखते देखते सोचने लगा के मां ने पहले तो अपनी पैंटी हटाने को कहा था फिर खुद ही खाना खत्म होते ही भाग खड़ी हुई। चलो जब वो कहेंगी तभी सही वैसे भी जल्दी का काम तो शैतान का होता है। और मेरी मां तो किसी चूत की परी से कम नहीं। वक्त लगेगा पर मजा बहोत आएगा। फिर मैं भी मूवी में मस्त होकर उसमे खो गया और सब भूल गया।
शाम के करीब 6 बजे मां की आंख खुली, फिर जब उनकी वो बेटे से चूत में उंगली करवाने वाली गिल्ट दूर हो गई तो उन्हे सब याद आया के कैसे उनके बेटे ने उनकी चूत में खुजली के बहाने से उंगली फेरी और उनकी चूत ने इतने दिनों बाद अपना रस छोड़ा। मां को ये सब याद कर के फिर से मस्ती सी चढ़ी के उन्होंने मुझे आवाज लगाई : सोनू बेटा, अरे ओ सोनू, इधर तो आ जरा।
मुझे मूवी देखते देखते जब मां की आवाज आई तो मैं मूवी की दुनिया से बाहर आया और मां के बारे में सोचता सोचता उनके पास गया और बोला : हां मां, क्या हुआ।
मां : बेटा वो, तुझे बताया था ना दोपहर में...
मैं: क्या मां?
मां : वो मेरी पैंटी...
मैं हल्का सा हस्ते हुए : अच्छा वो जिसमे आपने सुसु कर दिया , मेरा मतलब जिसमे आपसे सुसु हो गया।
मां : चुप बदमाश कहीं का, हां वही।
मैं: अच्छा तो धोनी है क्या अब वो?
मां : हां बेटा , ये वाली भी और बाकी इस हफ्ते की सारी भी
मैं: ठीक है मां, आओ आप बताते रहना , मैं कोशिश करता हूं धोने की।
मां : हां, चल बाथरूम में।
मैं: अरे मां पहले वो आपके सुसु वाली उतार तो लो, फिर चलते हैं ना।
मां : अरे हां, सॉरी सॉरी भूल ही गई थी, चल उतार अब खड़ा खड़ा सोच क्या रहा है।
मैनें उन्हे कहा : मां जैसे सुबह आपको डाली थी, वैसे ही उतारनी पड़ेगी ये शायद।
मां : हां तो उतार ना
मां मस्ती में फट से बेड के पास घोड़ी बन गई और बोली : ले, पहले पजामी खींच और फिर पैंटी उतारना।
मां के ये कहते ही दिल किया के उन्हे ऐसे ही घोड़ी बनी को चोदना चालू करदू। खुद तो दुपहर में अपना पानी छुड़वा लिया पर मेरा सोचा भी ना। फिर सोचा के सब्र कर सोनू।
मैंने मां के पैरों पर पहले एक पॉलिथीन डलवाई फिर पजामी नीचे कर खींच कर उतारने लगा के मां हिल के नीचे से गिर पड़ी और इस पर हम दोनो हसने लगे और मां बोली : अरे बुद्धू धीरे से कर ना।
फिर मुस्कुरा कर बोली : बेटा सब्र का फल मीठा होता है।
मैं भी मस्ती में आकर उनकी गांड़ की ओर देखते हुए बोल पड़ा : हां मां, वो तो बेहद मीठा ही होगा।
इसपर मां हल्की सी हंसी और बोली : अच्छा जी।
फिर मां उठ कर दोबारा घोड़ी बनी और इस बार उन्होंने अपना एक पर बैड पर रखा ताकि मैं आसानी से उस पैर से पहले पजामी उतार सकूं। जब वहां की पजामी उतार गई तो मां ने ऐसा दोबारा किया दूसरे पैर के साथ। फिर दोनो पैर से पजामी उतरने के बाद अब बारी थी उनकी पैंटी की। मैं जैसे ही पैंटी उतारने लगा के मां बोली : रुक बेटा, मैं नीचे मेट पर ऐसे बन जाती हूं, ये पैर उठा उठा कर मेरे घुटने दुखने लगे।
मैं बोला : ऐसे मतलब?
मां : अरे बुद्धू ये ऐसे जैसे मैं खड़ी हूं झुक कर। पता नही तु ऐसे झुकने को अपना वो गांड़ वाली भाषा में कैसे बोलता है?
इसपर हम दोनो हसने लगे और मैं बोला : मां मैं तो चलो उनको गांड़ बोलता हूं, पर आप क्या बोलती हैं?
मां हंसते हुए : कुछ नहीं
मैं: अरे अब बताओ ना
मां : बेटा वो गांड़ वाला शब्द तो सिर्फ औरत पति या लवर के सामने बोलती है , वैसे तो अगर किसी से आपस में बात करनी हो तो या तो कूल्हे या फिर चू....
मैं: चू क्या मां?
मां हंसते हुए : चूतड
इस पर फिर हम दोनो हसने लगे और मैं बोला : अच्छा मां, तो क्या पापा आपके इस हिस्से को मेरा मतलब आपकी गांड़ को गांड़ ही बुलाते होंगे?
मां हल्का सा मुस्कुराते हुए: लगता है ज्यादा मस्ती सूझ रही है आज मेरे बेटे को
मैं: अरे बताओ भी यार , सॉरी मां
मां हसने लगी और बोली : अच्छा जी, मां से सीधा यार, शाबाश मेरे बुद्धू
मैं: सॉरी मां, वो बस आपके साथ दोस्तो जैसी फीलिंग आती है ना तो, तो बस निकल गया मुंह से।
मां : अरे कोई बात नहीं बेटा, मैं तेरी दोस्त जैसी ही तो हूं, फिर क्या हुआ अगर उम्र में तुझसे बड़ी हुई तो
मैं: हां मां, अच्छा अब दोस्त को भी नहीं बताओगी क्या कि पापा क्या बोलते हैं इस हिस्से को?
मां शरमाते हुए : बोलते तो यही हैं पर कभी कभार ही
मैं: कभी कभार ही मतलब?
मां : मतलब महीने दो महीने में एक दो बार ही बस
मैं: मतलब ?
मां : अरे समझ जा ना, इतना भी बुद्धू नहीं है तू, सब जानती हूं में
मैं हसने लगा और बोला : अच्छा मां, जब जब जरूरत हो क्या तब?
मां हंसते हुए : हां बाबा, वही। अब समझने लगा है मेरे साथ रहकर।
मैं: हां मां , आप अपने साथ ही रखा करो मुझे।
मां : अच्छा जी, चल अब बाते छोड़ और मैं ऐसे नीचे मैट पर बन जाती हूं, तु फिर उतारना ये भीगी पैंटी। कहीं बैड की चादर ना गंदी हो जाए, अगर इनसे पेशाब गिरा तो।
मैं: हां मां, पर आपने ऐसे बन जाती हूं तो बोल दिया पर बताया नहीं के क्या कहते हैं इसे?
मां : पहले तु बता के तु अपना इस गांड़ वाली भाषा में इसे क्या बोलता है फिर मैं बताऊंगी।
मैं फट से बोला : घोड़ी बनना।
मां : चुप बदमाश कहीं के, मैं तो तुझे बुद्धू कहती थी तो तू लूचा लग रहा है मुझे, सच सच बता तेरी कितनी गर्लफ्रेंड हैं?
इसपर दोनो मुस्कृआने लगे और मैं बोला : अरे नहीं है मां, कोई भी, वो तो बस यूंही। आप बताओ ना अब क्या बोलते हैं इसे?
मां सोचने लगी फिर धीमी आवाज में बोली : तेरे पापा तो इसे कुतिया बोलते हैं, बाकियों का नहीं पता मुझे, और हां कभी कभी कोड़ी हो जाना भी
फिर वो हंसने लगी और मैं भी हंसते हुए बोला : मां वैसे आप भी लुच्ची से कम नहीं है बातों में
मां : चुप बदमाश, अब लुच्चे की मां हूं और ऊपर से अब तो दोस्त भी बन गई हूं तो थोड़ी बहुत लुच्ची बाते तो करूंगी ही ना, क्यूं मेरे सोनू यार। और ऐसा कहकर हम दोनो तेज तेज हसने लगे और फिर मां बोली : चल बेटा, अब जल्दी कर फिर कपड़े धोने भी हैं।
मां फिर नीचे रखे मैट पर घोड़ी बन गई और अपनी पैंटी उतरने का इंतजार करने लगी।
 

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मां के हाथ के छाले
Part:6

करीब 5-7 मिनट के बाद फोन कट हो गया और तब तक हम दोनों अपनी मस्ती भुला चुके थे। मैंने फोन साइड में रखा और अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर बाद मैं नहा कर, कपड़े डाल कर बाहर आया तो मां सोफे पर बैठी थी और मुझे देखते ही बोली : सोनू बेटा, बहुत भूख लग रही है, कुछ खाने को बना ले या फिर बाहर से ले आ।
मैं: ठीक है मां , मैं देखता हूं कुछ खाने का।
थोड़ी देर बाद मैं खाना लेकर आया, हमने मिल के कल की तरह खाना खाया। फिर उसके थोड़ी देर बाद मैने उन्हे दवाई दी और ट्यूब लगाई। ट्यूब लगा कर मैं घर से जाने लगा के मां ने आवाज लगाई : कहां जा रहा है सोनू।
मैं : मां वो, पापा ने कहा था ना के कार का ऐसी ठीक करवाना है तो बस वहीं जा रहा हूं
मां : ओ अच्छा, वो....
मैं: क्या हुआ मां, कुछ काम था क्या आपको?
मां : हां बेटा वो कुछ सामान लाना था मार्केट से।
मैं : हां मां बताओ, मैं ला देता हूं
मां : ये मेरे फोन से सीमा आंटी को फोन तो मिला एक बार, मैं उन्हें पूछती हूं उनकी दुकान पर मिलेगी या नहीं
सीमा आंटी मम्मी की सहेली थी और उनका मार्केट में एक जनरल स्टोर था और मां अक्सर वहीं से सामान लाया करती थी। मैंने उनके फोन से सीमा आंटी को कॉल मिलाया और मम्मी बोली : ये फोन मेरे कान पर लगा दे बेटा।
मैंने वैसा ही किया, जब आंटी ने फोन उठाया तो मां बोली : हैलो सीमा, कैसी है?
सीमा आंटी : मैं बढ़िया , तु बता।
मां : मैं भी एक दम मस्त। , अच्छा वो नेहा को भेज दे गी क्या?, मुझे थोड़ा काम करवाना था
सीमा आंटी : यार नेहा तो अपने गांव गई है। अगले हफ्ते तक आएगी।
मां : क्या?...अरे यार,
ऐसा बोलकर मां थोड़ी देर सोचने लगी और फिर बोली : चल कोई बात नहीं, अच्छा सुन मैं ना अभी सोनू को भेजूंगी तेरी दुकान पर, उसे वो क्रीम दे देना।
सीमा : ठीक है और कुछ?
मां : नहीं बस थैंक्यू यार।
सीमा : चल ओके, बाय।
मां : बाय
मां के बाय बोलने पर मैंने फोन उनके कान से हटाया और कट किया के मां बोली : बेटा सीमा आंटी के पास चले जाना और ले आना, बोल दिया है मैनें।
मैं: हां मां वो तो सुना मैनें। और अच्छा ये नेहा से क्या काम था आपको, कुछ अर्जेंट है तो मुझे बतादो, मैं कर दूंगा।
नेहा सीमा आंटी की दुकान पर काम करने वाली लड़की थी।
मां : अर्जेंट तो है बेटा, पर अब नेहा हफ्ते तक आएगी, तब तक शायद ऐसे ही रहना पड़ेगा मुझे।
मैं: अरे मां बताओ कुछ ज्यादा अर्जेंट है तो , मैं हूं ना।
मां कुछ सोची और बोली : चल ठीक है, बता दूंगी, तु जा पहले अपना काम कर के आ और वो सामान लाना मत भूलना।
मैं: ठीक है मां, आप इतना आराम करो मैं आता हूं फिर।
मैं घर से गाड़ी लेकर निकला। मैकेनिक के पास गया। फिर तकरीबन 2 घंटे बाद गाड़ी का ऐसी ठीक हुआ। फिर वहां से मैं सीमा आंटी की दुकान पर गया।
मैं: नमस्ते आंटी।
आंटी : नमस्ते बेटा, आओ बैठो। क्या लोगे चाय या कॉफी?
मैं: नहीं नहीं आंटी, कुछ नहीं , थैंक्यू। मैं बस वो मां ने कुछ सामान मंगवाया था तो वो लेने आया था।
आंटी : अभी लाती हूं बेटा।
सीमा आंटी ने दूसरे काउंटर के नीचे से एक लिफाफा निकाला ब्राउन कलर का और मुझे देकर बोली : ये लो बेटा।
मैं: ओके आंटी, थैंक्यू।
आंटी : ओके बेटा।
फिर मैं वहां से गाड़ी लेकर निकला और सोचा दुपहर हो ही गई है, कुछ खाने का ले चलता हूं, फिर कहां दोबारा दोबारा आता रहूंगा। फिर मैंने रोटी सभी पैक करवाई और गाड़ी में रखा और जब चलने लगा तो सोचा मां ने कोनसी क्रीम मंगवाई होगी? सोचा एक बार लिफाफा खोल के देखता हूं। जब लिफाफा खोला तो उसमें वीट हेयर रिमूवल क्रीम थी, जिस से औरतें अपने बाल हटाया करती थी। फिर मैं मुस्कुराया और खुद से बोला : अच्छा तो मां इस काम की बात कर रही थी, शायद उनकी वो झांटे उन्हे अब बेचैन कर रही है, तभी नेहा को उन्हे कटवाने के लिए बुला रही थी। फिर सोचा इस मौके का पूरा फायदा उठाया जाए और अनजान बनकर मां को यह काम भी मेरे हाथों से करने के लिए मनाया जाए।
फिर मैं तकरीबन दो बजे घर पहुंचा। गेट खोला, अंदर जाके मां को देखने लगा तो मां अपने कमरे में सोई हुई थी। उनकी गांड़ बाहर को निकली थी। ये देख के मुझे सुबह वाला सीन याद आ गया और दिल किया की एक बाद मां ये चाटने के लिए दे अगर तो दिन बन जाए। फिर मैंने अपने हल्के हाथ उनकी गांड़ पर रखे और धीरे से हिलाते हुए मां को आवाज लगाने लगा और उनकी गर्म और नर्म गांड़ का एहसास लेने लगा। मेरे 3-4 बार आवाज लगाने से मां उठ गई और अंगड़ाई लेकर मुड़ते हुए बोला : आ गया मेरा बुद्धू बेटा।
मैं: हां मां।
मां : हो क्या वो ऐसी ठीक।
मैं: हां मां और मैं सीमा आंटी से सामान भी ले आया हूं आपका।
मां : थैंक्यू बेटा।
मैं: मैं खाना भी लाया हूं, आप आ जाओ बाहर, इतना मैं खाना परोसता हूं।
मां : ठीक है बेटा, अच्छा सुन वो, दरअसल तु था नहीं घर पर और मुझे पेशाब लगी थी तेज से तो मैं जब बाथरूम में करने गई तो मुझसे....
मैं: क्या हुआ मां
मां : वो बेटा, ये छाले अभी पूरे ठीक नहीं हुए तो....
मैं: तो क्या मां?
मां : तो मुझसे अच्छे से पैंटी नीचे नहीं हुई और थोड़ा पेशाब इसी में हो गया।
मैं हसने लगा और बोला : अरे कोई बात नहीं मां। और सॉरी मुझे आने में देर हो गई, इसलिए शायद ये हो गया।
मां : बेटा वो...
मैं: क्या मां, शरमाओ नहीं, एक साथ बोल दो जो कुछ भी है
मां : वो ना, ये पैंटी भी अब बदलनी पड़ेगी और बेटा धोनी भी पड़ेगी, मेरी बाकी सारी पैंटी मैली पड़ी है, सन्डे को धोने का होता है तो वो इसलिए कोई धुली नहीं।
मैं: अरे कोई बात नहीं मां, सब हो जाएगा, आप टेंशन मत लो, आओ खाना खाते हैं पहले।
Nice update
 

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मां के हाथ के छाले
Part :7
फिर हम मिलकर खाना खाने बैठे। खाना खाते खाते मां बार बार अपनी टांगो को एक दूजे से मसल रही थी के मैंने उनसे पूछा : क्या हुआ मां, कोई परेशानी है क्या?
मां : बेटा वो मेरी पैंटी गीली हो रखी है ना थोड़ी सी, तो वो पेशाब को वजह से खुजली हो रही है थोड़ी थोड़ी।
मैंने बिना सोचे समझे बोल दिया : तो मैं खुजा दूं क्या मां?
मां चुप रही फिर सोच कर बोली : नहीं बेटा कोई बात नहीं, तू रहने दे।
अब मां के गर्म पेशाब का जलवा था ही ऐसा के उनकी झांटों में गुजली रुकना मुस्किल था तो जब कुछ मिनटों बाद मां से बर्दाश्त ना हुआ तो बोली : अच्छा बेटा सुन
मैं: हां मां?
मां : बेटा वो अब खुजली बर्दास्त नहीं हो रही, तेरे हाथों से करवा लेती पर इन हाथों से तु खाना भी खा रहा है और मुझे भी खिला रहा है, और अब साथ साथ खुजलाएगा तो हाथ भी गंदे हो जाएंगे।
मैं: अरे कोई बात नहीं मां। मैं एक हाथ से खुजा दूंगा और दूसरे हाथ से आपको खाना खिला दूंगा।
मैं फिर सोचने लगा के अब बार बार सामने हाथ ले जाना, खुजलाने के लिए तो बार बार उठ कर खुजाना पड़ेगा तो इस से अच्छा मां को इधर अपने सोफे पर ही बुला लेता हूं।
मैं फिर बोला : मां क्यूं ना एक काम करें, आप ऐसा करो सामने से उठ कर मेरे साथ बैठ जाओ जिस से आपको सही खाना खिलाया जाएगा
पहले सिचुएशन ऐसी थी के मां और मैं सिंगल सिंगल सोफे पर बीच में एक टेबल पर खाना रख कर बैठे थे और मैं उन्हें हाथ दूर कर कर खिला रहा था पर जब मैंने उन्हें अपने पास आने बोला तो वो मेरे वाले सोफे की साइड पर आ बैठी और बोली : अब ठीक है बेटा?
मैं: हां मां।
फिर मैनें उन्हे खाना खिलाते हुए कहा : मां जब खुजली हो तो बता देना।
मां : बेटा हो ही रही है, जरा सा खुजला तो जरा।
मैं: हां मां, खुजलाता हूं, बोलो किधर खुजलाऊं?
मां : बेटा ये थोड़ा पेट के नीचे जहां ये पैंटी है।
मैनें मुड़ में आकर सीधा मां की चूत पर हाथ रख दिया और मासूम बनकर बोला : यहां पर मां?
मां भी मस्ती में बोली : हां बेटा यही, और थोड़ा और नीचे भी।
मैं एक हाथ से धीरे धीरे खुजलाता और दूसरे हाथ से खाना खिलाता, उनको जब और मस्ती चढ़ने लगी तो बोली : बेटा ये कपड़ा पहले ही गिला है और तु खुजला रहा है तो अंदर घुस रहा है ये
मैं भी मस्ती में बोला : इसे थोड़ा सा हटा दूं क्या मां?
मां : हां मेरे बुद्धू।
मैनें उनकी कमीज थोड़ी सी ऊपर की और उनके क्लीवेज वाले एरिया में उसे हल्का सा फसा दिया मोड़ कर। फिर उनका गोरा पेट मुझे नजर आने लगा। मन किया की उनकी वो नाभि में जीभ फेर दूं। फिर सोचा जीभ ना सही फिलहाल के लिए कम से कम उंगली तो फेर ही सकता हूं। फिर मैं पजामी पर से खुजाने लगा के मां बोली : बेटा इसके अंदर हाथ डालके कर ना।
मैं ये सुनकर खुश हुआ और धीरे से उनकी पजामी में पेट से होता हुआ एक हाथ ले गया। अंदर हाथ जाते ही पैंटी पर पड़ा जो मेरी उम्मीद से कुछ ज्यादा ही गीली हो रखी थी पेशाब की वजह से। मैनें सोचा मां को ही सब कहने का मोका दिया जाए और जानकर उस पैंटी के ऊपर से ही रगड़ने लगा के मां खाते खाते हल्का हल्का सा सिसकियां भरने लगी और : आ आह आह करने लगी।
फिर बोली : बेटा अब अच्छा लग रहा है, ऐसे ही करता रह बस।
मैं भी कुछ देर ऐसे ही करता रहा और मेरे हाथ इस वक्त उनके पेशाब से पूरे भीग चुके थे। खाना तो अब खत्म हो ही चुका था और पेट की भूख भी और अब शायद बारी थी चूत और लन्ड की भूख शांत करने की। मैंने बिना उनके कहे उनकी पैन्टी में अंदर हाथ डाला और खुजाने लगा के मां और सिसकियां लेने लगी : आह उई सोनू बेटा, आ.. ब ब ब स करता रह ऐसे ही थोड़ी देर।
मेरा मन किया के उनका हाथ पकड़ कर अपने लन्ड पर रख दू पर ये छाले बीच में आ गए और मैं अपने मन में बोला : वाह रे छाले, पहले तूने ही ये सबके दर्शन करवाए और अब तू ही मुझे मजे लेने से रोक रहा है।
फिर जैसे ही मैनें खुजली करने के बजाए 1 उंगली उनकी चूत की छेद में डालकर खुजली के बहाने आगे पीछे करना चालू किया के 2 मिनट बाद ही मां झड़ गई और सीधा सोफे के साइड से हटके मेरे ऊपर आ गिरी। मेरा लन्ड उस वक्त पूरा टाइट और गर्म हो रखा था। ये पहली बार था के मैंने किसी की चूत में उंगली डाली हो। मां की चूत का रस टपक टपक के उनकी पैन्टी में ही छुट गया और मेरे उंगली भी उस से भर गई। फिर जैसे ही मां मेरे ऊपर गिरी उन्हे मेरे गर्म लन्ड का एहसास जरूर हुआ होगा अपनी गांड़ पर, 1 मिनट के लिए तो मानों फिर हम चुप से ही हो गए। पर जैसे ही मां का रस पूरा उनकी चूत से बाहर बह गया वो होश में आई और मुझसे खड़ी होकर अपने कमरे में जाने लगी और बिना मेरे तरफ देखे बोली : बेटा मैं थोड़ी देर आराम करने जा रही हूं।
मां अपने कमरे में चली गई और मैंने वो मां की चूत के रस से भरी उंगली चाट कर साफ की ओर मानों मैं भी कहीं खो सा गया और सोचने लगा के : ये चूत का रस इतना जबरदस्त है तो चूत कितनी जबरदस्त होगी भला। फिर खुदसे बाते करते करते बोला : शायद मां का रस छुटने के बाद उन्हें मेरे साथ ऐसा करने के खयाल से बुरा लगा और वो बिना कुछ कहे ही चली गई, या फिर मेरे लन्ड की वजह से तो नहीं ये। फिर मैं दोबारा खुद से बोला : चलो जो भी हुआ अच्छा ही हुआ, अब चूत मिलने में शायद ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। और मैं फिर वहां से उठा, मां के पेशाब और रस से सना हाथ धोकर, बर्तन उठाए और अपने कमरे में जाकर मूवी देखने लगा।
Shandaar update
 

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मां के हाथ के छाले
Part : 1
शनिवार का दिन था यानी की मेरी जोब की छुट्टी, सुबह जब नींद खुली खिड़की से बाहर देखा तो थोड़ी थोड़ी बारिश आ रही थी। मैं अंगड़ाई लेता उठा कमरे से बाहर निकला तो मां किचन में आटा गूंध रही थी और जब उनसे पूछा के पापा कहां है? तो वो बोली के वो तो ड्यूटी पर गए और बोलके गए हैं के 4-5 दिन बाद आएंगे और सोनू से कहना के कार का बिगड़ा हुआ एसी ठीक करवा ले याद से। मैं बोला : ठीक है मां करवा दूंगा। और फिर मोसम देखकर मैनें मां से कहा, मां आज बारिश का मौसम है और मेरा पकोड़े खाने का मन है, तो मां बोली जा दुकान से बेसन ले आ, मैं बना देती हूं पकोड़े इसमें कोनसी बड़ी बात है।
मैं थोड़ी देर बाद बेसन लेकर आया और मां को देकर नहाने चला गया, बाथरूम से जैसे ही नहा कर बाहर आया तो मां के चीखने की आवाज आई, मैं दौड़कर किचन में गया और देखा तो तेल की कढ़ाई नीचे गिरी पड़ी थी और मां अपने हाथों को देख देख कर रो रही थी, क्योंकि गर्म गर्म तेल मां के हाथों पर गिर गया था और उंगलियों और हथेली पर लाल हो गया था। मैंने तुरंत फ्रीज से बर्फ निकाली और उन्हें बाहर रखे सोफे पर बैठाकर उनके हाथों पर लगाई, कुछ देर बाद मां को थोड़ा आराम आया और उनका दर्द कम हुआ। कढ़ाई नीचे गिरने से कुछ छीटे मां की पजामी और कमीज पर भी पड़े और वहां वहां से उसमे छेद हो गए और शरीर पर जहां जहां तेल गिरा था वहां वहां पर थोड़ी देर बाद छाले पड़ने लगे। मैं मां को हमारी फैमिली डॉक्टर के पास गाड़ी में ले गया और छाले सूखने की दवाई लेकर उन्हें घर लाया। थोड़ी देर बाद मैंने मां को खाने की टैबलेट दी और उन्हें उनके छालों पर ट्यूप लगाने लगा, जब मैनें उनके हाथों पर ट्यूप लगा कर बंद की तो मां बोली, रुक बेटा।
मैं बोला : हां मां क्या हुआ।
मां : वो वो वो....
बोलकर चुप हो गई
मैंने फिर उनसे पूछा क्या हुआ मां बोलो ना
मां : वो बेटा मेरे पैरों पर और शरीर पर भी छाले हैं, मैं खुद लगा लेती वहां पर, पर मेरे हाथों पर दुखेगा अगर मैं ऐसा करूंगी, क्या तू वहां भी लगा देगा?
मैं: अरे इसमें हिचकिचाने वाली क्या बात है मां, दिखाओ मैं लगा देता हूं।
मैं और मां उसवक्त बड़े वाले सोफे पर बैठे थे। मां ने सोफे पर मुझसे तीसरी वाली सीट पर सरक के अपने दोनों पैर ऊपर बीच वाली सीट पर रख लिए और अपने घुटनो को मोड़कर मुझे पैर दिखाने के लिए बैठी के मेरी इक नज़र एक पल के लिए मां की पजामी में से बनी चूत और थोड़ी सी गांड़ पर पड़ी और दूसरे ही पल मैं खुदको संभाल कर उनके गोरे गोरे पैरों पर वो छोटे छोटे छाले देखने लगा जो चमक से रहे थे। मैं जैसे ही उनके छालों पर ट्यूब लगाने लगा वो सिसक उठी
मां : आह, बेटा।
मैं: सॉरी मां, मैं धीरे धीरे से लगाता हूं।
मां थोड़ा दर्द से सिसकते हुए बोली : हां , बेटा।
जब उनके पैरों पर ट्यूब लग गई तो मैं बोला : मां यहां भी लगा दी है, और कहीं तो नहीं हैं न छाले?
वो बोली : बेटा वो मेरे पेट के पास भी 4-5 तेल की बूंदे गिरी थी, मैंने वहां देखा तो नहीं पर मुझे जलन सी हो रही है, तु देख तो सही जरा।
मैं : ठीक है मां, दिखाओ
मेरे कहते ही मां सोफे पर लेट गई पेट की ओर इशारा करती बोली : थोड़ा सा कमीज ऊपर करके देख तो सही कितने हैं?
मैंने कांपते हाथों से उनकी कमीज को थोड़ा सा ऊपर उठाया तो उनका गोरा पेट और उसमे बनी गोल गहरी नाभी नजर आई और उसके थोड़ा सा ऊपर उनकी वो गाड़ेदार रैड कलर की ब्रा जिसे देखकर मुझे अच्छा सा लगा। वहां पेट के पास भी 2-3 छाले थे, मैनें उनपर भी ट्यूब लगाई और बोला : मां 2-3 ही थे बस, लगा दी है यहां भी, बस और तो कहीं नहीं है ना?
मां : बेटा ये थोड़ा सा लेफ्ट में नीचे तो देख
मैं: कहां पर मां?
मां थोड़ा सा मुड़ी और अपने पेट के थोड़ा सा लैफ्ट साइड पर नीचे की ओर इशारा करने लगी और बोली : बेटा ये चुभ सा रहा है , थोड़ा इसको एडजस्ट करदे बस।
मैनें देखा के उनकी पेंटी ऊपर से थोड़ी मुड़ कर इक्ट्ठी हो रखी थी जिसकी वजह से शायद उन्हें कम्फर्ट महसूस नहीं हो रहा था, उनकी पैंटी ब्राउन कलर की थी, अक्सर शादी शुदा हाउसवाइफ ब्रा पेंटी की मैचिंग पर ध्यान नहीं देती और मां भी उनमें से एक थी
मैं बोला : क्या मां?
मां : बेटा वो थोड़ा सा मेरी पैंटी मुड़ी हुई है , मुझे चुभ सी रही थी , थोड़ा सही करदे बस।
मैं: ओके मां
ये बोलकर मैनें मां के लैफ्ट चूतड पर से एक हल्के हाथ से उनकी पजामी को ऊपर की तरफ खींचा और दूसरे हाथ से उस पैंटी को ठीक करने लगा, ऐसे करते हुए मेरी नजर उस मुड़ी हुई गांड़ पर पड़ी और मैं सोचने लगा के पापा कितने लक्की हैं यार, जो उन्हे मां जैसी बीवी मिली, फिर मैंने दोबारा मां से पूछा : और तो कुछ नहीं है मां?
वो बोली : नहीं बेटा, थैंक्यू बस।
फिर मैं बोला : अरे इसमें थैंक्यू की क्या बात है मां, भला बेटे से भी कोई मां थैंक्यू बोलती है, आप अब सोफे पर ही थोड़ा आराम करो और मैं नाश्ता बाहर से ले आता हूं।
मां : ठीक है बेटा।
तो अब मैं आप सबको अपनी परिवार के बारे में थोड़ा बता दूं, मेरी मां निशा, जो थोड़ी मजाकिया और फिल्मी टाइप की थी, उन्हें हमेशा पुरानी फिल्मों के डायलॉग ही सूझते रहते थे । वह एक हाउसवाइफ थी और पापा रेलवे कर्मचारी और वो 3-4 और कभी कभी हफ्ते बाद ही घर आया करते थे। मैं सोनू, उम्र 22, अभी फिलहाल ही में मैनें एक नोकरी ज्वाइन की थी जिसमे मुझे वर्क फ्रोम होम ही मिल गया था जिसमे वीकेंड पर छुट्टी रहती थी। हमारा छोटा सा परिवार खुश था अपनी जिंदगी से।

तो अब चलते हैं कहानी की ओर
मैं बाहर से कुछ देर बाद ब्रैड पकोड़े लेकर आया और साथ में चाय बनाकर मां के पास गया तो मां देखकर खुश हो गई और मैनें उन्हें एक कप पास किया तो वो बोली : ठाकुर ये हाथ मुझे दे दे।
ये सुनकर मैं हंस पड़ा और बोला : लो जी, मां आपका फिल्मी रूप शुरू।
फिर हम दोनों हंस पड़े और मां बोली : अरे सच में ही अब तुझे अपने हाथ कुछ दिनों के लिए मुझे देने पड़ेंगे जब तक ये छाले ठीक नहीं हो जाते।
फिर मैं बोला : आप फिक्र ना करो मां, मैं आपका हूं तो ये हाथ भी तो आपके हुए ना।
और फिर मां मेरी तरफ मुड़ी और मुस्कुरा कर बोली : लव यू बेटा।
मैं: लव यू मां।
फिर मैंने अपने हाथों से उन्हें एक एक घूंट कर चाय पिलाने लगा और साथ में अपने कप से पीने लगा और फिर एक ब्रैड का टुकड़ा तोड़कर उन्हें खिलाता और फिर एक टुकड़ा अपने ब्रैड से तोड़कर खुद खाता। दो तीन चुस्की भरने के बाद मां बोली : अरे सोनू, ये बार बार तु मेरा कप उठाएगा और फिर अपना कप उठाएगा , इस से अच्छा हम एक ही कप में ना चाय पी लें।
फिर मैने दोनों कप की चाय एक ही में कर कर उन्हें पिलाने लगा और खुद भी पीने लगा। फिर मैनें उनसे पूछा : मां, चाय कैसी बनी है?
मां : पहले तो फीकी थी पर अब...
में : पर अब क्या?
मां फिर फिल्मी अंदाज में आकर बोली : पर अब मेरे बेटे के लबों से लगकर मीठी लगने लगी है
इस पर हम दोनों मुस्कुराने लगे, फिर वो बोली : ब्रैड तो खिला बेटा, भूख लगी है मुझे।
मैं: अरे हां, सॉरी सॉरी।
ये बोलकर मैंने ब्रैड चटनी में डूबा कर उन्हें खिलाने लगा के चटनी की कुछ बूंदे उनके क्लीवेज पर गिरी। जिसे देखकर मां बोली : अरे बेटा, ये चटनी से दाग पड़ जाएगा मेरी कमीज पर, जा जाकर एक कपड़ा गिला कर कर लेकर आ। मैं उठा और एक कपड़ा गिला कर के लाया और उन्हें पकड़ाने लगा के वो बोली : थोड़ा सा ऊपर से ये कपड़ा पकड़ और इसे ये गीले कपड़े से घिस।
मैं जैसे ही सूट पकड़ने लगा के मेरी उंगलियां मां के सूट के अंदर घुसकर उनके क्लीवेज पर लगी और वो बोली : आ, पागल इतने ठंडे ठंडे गीले हाथ लगा रहा है, मुझे गुद गुदी हो रही है।
मैंने फिर कपड़ा घिसना शुरू किया और मेरी नजर उनके क्लीवेज के अंदर गई और मां को लेकर मेरा मन डोलने लगा। सूट साफ करके हमने ब्रैड खत्म किए और मैं बर्तन रखकर जैसे ही किचन से बाहर आया के वो बोली : बेटा मुझे सुसु लगी है।
में : तो कर लो मां, इसमें बताने वाली क्या बात है
मां : अरे पागल, वो मेरे कपड़े अड़ेंगे ना बीच तो
मैं समझ गया के अब तो जब तक छाले ठीक नहीं होते तब तक मुझे बहुत कुछ दिखेगा जिंदगी में जो पहले कभी देखने को नहीं मिला। मैनें फिर सोचा क्या मां अब मुझसे अपना पजामी उतारने को तो नहीं कह देंगी? 2 मिनट तक मैं इन्ही खयालों में डूबा रहा।
मां के हाथ के छाले
Part : 1
शनिवार का दिन था यानी की मेरी जोब की छुट्टी, सुबह जब नींद खुली खिड़की से बाहर देखा तो थोड़ी थोड़ी बारिश आ रही थी। मैं अंगड़ाई लेता उठा कमरे से बाहर निकला तो मां किचन में आटा गूंध रही थी और जब उनसे पूछा के पापा कहां है? तो वो बोली के वो तो ड्यूटी पर गए और बोलके गए हैं के 4-5 दिन बाद आएंगे और सोनू से कहना के कार का बिगड़ा हुआ एसी ठीक करवा ले याद से। मैं बोला : ठीक है मां करवा दूंगा। और फिर मोसम देखकर मैनें मां से कहा, मां आज बारिश का मौसम है और मेरा पकोड़े खाने का मन है, तो मां बोली जा दुकान से बेसन ले आ, मैं बना देती हूं पकोड़े इसमें कोनसी बड़ी बात है।
मैं थोड़ी देर बाद बेसन लेकर आया और मां को देकर नहाने चला गया, बाथरूम से जैसे ही नहा कर बाहर आया तो मां के चीखने की आवाज आई, मैं दौड़कर किचन में गया और देखा तो तेल की कढ़ाई नीचे गिरी पड़ी थी और मां अपने हाथों को देख देख कर रो रही थी, क्योंकि गर्म गर्म तेल मां के हाथों पर गिर गया था और उंगलियों और हथेली पर लाल हो गया था। मैंने तुरंत फ्रीज से बर्फ निकाली और उन्हें बाहर रखे सोफे पर बैठाकर उनके हाथों पर लगाई, कुछ देर बाद मां को थोड़ा आराम आया और उनका दर्द कम हुआ। कढ़ाई नीचे गिरने से कुछ छीटे मां की पजामी और कमीज पर भी पड़े और वहां वहां से उसमे छेद हो गए और शरीर पर जहां जहां तेल गिरा था वहां वहां पर थोड़ी देर बाद छाले पड़ने लगे। मैं मां को हमारी फैमिली डॉक्टर के पास गाड़ी में ले गया और छाले सूखने की दवाई लेकर उन्हें घर लाया। थोड़ी देर बाद मैंने मां को खाने की टैबलेट दी और उन्हें उनके छालों पर ट्यूप लगाने लगा, जब मैनें उनके हाथों पर ट्यूप लगा कर बंद की तो मां बोली, रुक बेटा।
मैं बोला : हां मां क्या हुआ।
मां : वो वो वो....
बोलकर चुप हो गई
मैंने फिर उनसे पूछा क्या हुआ मां बोलो ना
मां : वो बेटा मेरे पैरों पर और शरीर पर भी छाले हैं, मैं खुद लगा लेती वहां पर, पर मेरे हाथों पर दुखेगा अगर मैं ऐसा करूंगी, क्या तू वहां भी लगा देगा?
मैं: अरे इसमें हिचकिचाने वाली क्या बात है मां, दिखाओ मैं लगा देता हूं।
मैं और मां उसवक्त बड़े वाले सोफे पर बैठे थे। मां ने सोफे पर मुझसे तीसरी वाली सीट पर सरक के अपने दोनों पैर ऊपर बीच वाली सीट पर रख लिए और अपने घुटनो को मोड़कर मुझे पैर दिखाने के लिए बैठी के मेरी इक नज़र एक पल के लिए मां की पजामी में से बनी चूत और थोड़ी सी गांड़ पर पड़ी और दूसरे ही पल मैं खुदको संभाल कर उनके गोरे गोरे पैरों पर वो छोटे छोटे छाले देखने लगा जो चमक से रहे थे। मैं जैसे ही उनके छालों पर ट्यूब लगाने लगा वो सिसक उठी
मां : आह, बेटा।
मैं: सॉरी मां, मैं धीरे धीरे से लगाता हूं।
मां थोड़ा दर्द से सिसकते हुए बोली : हां , बेटा।
जब उनके पैरों पर ट्यूब लग गई तो मैं बोला : मां यहां भी लगा दी है, और कहीं तो नहीं हैं न छाले?
वो बोली : बेटा वो मेरे पेट के पास भी 4-5 तेल की बूंदे गिरी थी, मैंने वहां देखा तो नहीं पर मुझे जलन सी हो रही है, तु देख तो सही जरा।
मैं : ठीक है मां, दिखाओ
मेरे कहते ही मां सोफे पर लेट गई पेट की ओर इशारा करती बोली : थोड़ा सा कमीज ऊपर करके देख तो सही कितने हैं?
मैंने कांपते हाथों से उनकी कमीज को थोड़ा सा ऊपर उठाया तो उनका गोरा पेट और उसमे बनी गोल गहरी नाभी नजर आई और उसके थोड़ा सा ऊपर उनकी वो गाड़ेदार रैड कलर की ब्रा जिसे देखकर मुझे अच्छा सा लगा। वहां पेट के पास भी 2-3 छाले थे, मैनें उनपर भी ट्यूब लगाई और बोला : मां 2-3 ही थे बस, लगा दी है यहां भी, बस और तो कहीं नहीं है ना?
मां : बेटा ये थोड़ा सा लेफ्ट में नीचे तो देख
मैं: कहां पर मां?
मां थोड़ा सा मुड़ी और अपने पेट के थोड़ा सा लैफ्ट साइड पर नीचे की ओर इशारा करने लगी और बोली : बेटा ये चुभ सा रहा है , थोड़ा इसको एडजस्ट करदे बस।
मैनें देखा के उनकी पेंटी ऊपर से थोड़ी मुड़ कर इक्ट्ठी हो रखी थी जिसकी वजह से शायद उन्हें कम्फर्ट महसूस नहीं हो रहा था, उनकी पैंटी ब्राउन कलर की थी, अक्सर शादी शुदा हाउसवाइफ ब्रा पेंटी की मैचिंग पर ध्यान नहीं देती और मां भी उनमें से एक थी
मैं बोला : क्या मां?
मां : बेटा वो थोड़ा सा मेरी पैंटी मुड़ी हुई है , मुझे चुभ सी रही थी , थोड़ा सही करदे बस।
मैं: ओके मां
ये बोलकर मैनें मां के लैफ्ट चूतड पर से एक हल्के हाथ से उनकी पजामी को ऊपर की तरफ खींचा और दूसरे हाथ से उस पैंटी को ठीक करने लगा, ऐसे करते हुए मेरी नजर उस मुड़ी हुई गांड़ पर पड़ी और मैं सोचने लगा के पापा कितने लक्की हैं यार, जो उन्हे मां जैसी बीवी मिली, फिर मैंने दोबारा मां से पूछा : और तो कुछ नहीं है मां?
वो बोली : नहीं बेटा, थैंक्यू बस।
फिर मैं बोला : अरे इसमें थैंक्यू की क्या बात है मां, भला बेटे से भी कोई मां थैंक्यू बोलती है, आप अब सोफे पर ही थोड़ा आराम करो और मैं नाश्ता बाहर से ले आता हूं।
मां : ठीक है बेटा।
तो अब मैं आप सबको अपनी परिवार के बारे में थोड़ा बता दूं, मेरी मां निशा, जो थोड़ी मजाकिया और फिल्मी टाइप की थी, उन्हें हमेशा पुरानी फिल्मों के डायलॉग ही सूझते रहते थे । वह एक हाउसवाइफ थी और पापा रेलवे कर्मचारी और वो 3-4 और कभी कभी हफ्ते बाद ही घर आया करते थे। मैं सोनू, उम्र 22, अभी फिलहाल ही में मैनें एक नोकरी ज्वाइन की थी जिसमे मुझे वर्क फ्रोम होम ही मिल गया था जिसमे वीकेंड पर छुट्टी रहती थी। हमारा छोटा सा परिवार खुश था अपनी जिंदगी से।

तो अब चलते हैं कहानी की ओर
मैं बाहर से कुछ देर बाद ब्रैड पकोड़े लेकर आया और साथ में चाय बनाकर मां के पास गया तो मां देखकर खुश हो गई और मैनें उन्हें एक कप पास किया तो वो बोली : ठाकुर ये हाथ मुझे दे दे।
ये सुनकर मैं हंस पड़ा और बोला : लो जी, मां आपका फिल्मी रूप शुरू।
फिर हम दोनों हंस पड़े और मां बोली : अरे सच में ही अब तुझे अपने हाथ कुछ दिनों के लिए मुझे देने पड़ेंगे जब तक ये छाले ठीक नहीं हो जाते।
फिर मैं बोला : आप फिक्र ना करो मां, मैं आपका हूं तो ये हाथ भी तो आपके हुए ना।
और फिर मां मेरी तरफ मुड़ी और मुस्कुरा कर बोली : लव यू बेटा।
मैं: लव यू मां।
फिर मैंने अपने हाथों से उन्हें एक एक घूंट कर चाय पिलाने लगा और साथ में अपने कप से पीने लगा और फिर एक ब्रैड का टुकड़ा तोड़कर उन्हें खिलाता और फिर एक टुकड़ा अपने ब्रैड से तोड़कर खुद खाता। दो तीन चुस्की भरने के बाद मां बोली : अरे सोनू, ये बार बार तु मेरा कप उठाएगा और फिर अपना कप उठाएगा , इस से अच्छा हम एक ही कप में ना चाय पी लें।
फिर मैने दोनों कप की चाय एक ही में कर कर उन्हें पिलाने लगा और खुद भी पीने लगा। फिर मैनें उनसे पूछा : मां, चाय कैसी बनी है?
मां : पहले तो फीकी थी पर अब...
में : पर अब क्या?
मां फिर फिल्मी अंदाज में आकर बोली : पर अब मेरे बेटे के लबों से लगकर मीठी लगने लगी है
इस पर हम दोनों मुस्कुराने लगे, फिर वो बोली : ब्रैड तो खिला बेटा, भूख लगी है मुझे।
मैं: अरे हां, सॉरी सॉरी।
ये बोलकर मैंने ब्रैड चटनी में डूबा कर उन्हें खिलाने लगा के चटनी की कुछ बूंदे उनके क्लीवेज पर गिरी। जिसे देखकर मां बोली : अरे बेटा, ये चटनी से दाग पड़ जाएगा मेरी कमीज पर, जा जाकर एक कपड़ा गिला कर कर लेकर आ। मैं उठा और एक कपड़ा गिला कर के लाया और उन्हें पकड़ाने लगा के वो बोली : थोड़ा सा ऊपर से ये कपड़ा पकड़ और इसे ये गीले कपड़े से घिस।
मैं जैसे ही सूट पकड़ने लगा के मेरी उंगलियां मां के सूट के अंदर घुसकर उनके क्लीवेज पर लगी और वो बोली : आ, पागल इतने ठंडे ठंडे गीले हाथ लगा रहा है, मुझे गुद गुदी हो रही है।
मैंने फिर कपड़ा घिसना शुरू किया और मेरी नजर उनके क्लीवेज के अंदर गई और मां को लेकर मेरा मन डोलने लगा। सूट साफ करके हमने ब्रैड खत्म किए और मैं बर्तन रखकर जैसे ही किचन से बाहर आया के वो बोली : बेटा मुझे सुसु लगी है।
में : तो कर लो मां, इसमें बताने वाली क्या बात है
मां : अरे पागल, वो मेरे कपड़े अड़ेंगे ना बीच तो
मैं समझ गया के अब तो जब तक छाले ठीक नहीं होते तब तक मुझे बहुत कुछ दिखेगा जिंदगी में जो पहले कभी देखने को नहीं मिला। मैनें फिर सोचा क्या मां अब मुझसे अपना पजामी उतारने को तो नहीं कह देंगी? 2 मिनट तक मैं इन्ही खयालों में डूबा रहा।
Sahil bhai nayi kahani ki subhkamnaye 💐💐. Nice intro.
 

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मां के हाथ के छाले
Part : 3
मां मेरे पीछे पीछे वैसे ही आई और : अरे पागल, मजाक मत कर ना, मेरे बाल ज्यादा हो रखे हैं बेटा वहां पर, बिना उसके डाले फिर खुजली सी होती रहती है
मैं: तो फिर बाल काटते क्यूं नही आप?
मां : बेटा, बाल तो हर 2 हफ्ते बाद साफ करती हूं और इस बार भी कल के रविवार का सोचा था के काट लूंगी और अब ये सब हो गया के रह ही गए।
मैं: मां फिर इसका मतलब जब तुम बाल काटती हो , उसके बाद बिना पैंटी के रहती हो?
मां : चुप बदमाश कहीं का
मैं: बताओ ना मां प्लीज
मां : अम्म हां, काटने के बाद 3-4 दिन तक तो जरूरत नहीं पड़ती उसे पहनने की पर फिर...
मैं: फिर क्या मां?
मां : अरे मेरे बुद्धू , फिर दोबारा से बड़े होने लग जाते हैं ना वो
मैं: अच्छा, मां क्या ये मर्द लोग भी काटते हैं नीचे के बाल?
मां इसपर हंसने लगी और बोली : हां, सभी काटते हैं
मैं: मैनें तो नहीं काटे मां कभी भी
मां : हां, तेरी गर्लफ्रेंड नहीं है ना, इसलिए तुझे कभी जरूरत ही नहीं पड़ी शायद।
मैं सब समझ कर भी अनजान बनता रहा और इस सिचुएशन का मजा लेता रहा बातों से ही, मुझे लगा नहीं था के ये इस से भी आगे जाएगा पर मैं शायद गलत था।
मैं अनजान बनकर पूछा : क्या मतलब मां?
मां (हंसते हुए बोली) : कुछ नहीं मेरे बुद्धू बेटे, चल अब बाते छोड़ और मेरी ये पैंटी ऊपर कर
मैं सोफे पर जा बैठा था और मां मेरे सामने आई , खड़ी होकर बोली : कर भी दे अब, ओ बुद्धू
मैं: करता हूं मां
इधर सामने टीवी चल रहा था और मां पहले तो मेरी तरफ मुंह करके खड़ी थी पर जैसे ही टीवी पर चलते गाने की आवाज आई वो उसे देखने के लिए थोड़ी सी घूमी और मेरी तरफ अपनी गांड़ करके खड़ी हो गई ,
इधर मेरा पूरा ध्यान बस मां पर ही था, अपनी आखों के इतने पास उनकी गांड़ देख कर मन तो किया की बस खा जाऊं, पर मैंने खुदपर काबू किया और उनकी पजामी को थोड़ा सा नीचे सरकाया और ये क्या इतनी गोरी गांड़ देख के तो जी ललचा सा ही गया, फिर जैसे ही मैं नीचे उनकी पैंटी ऊपर करने के लिए झुका तो मां अचानक से ही थोड़ा पीछे हो गई और मेरा मुंह ऊपर आते वक्त उनकी गांड़ की दरार से होते हुए आया, वाह क्या पल था वो, वो गांड़ की एक भीनी सी खुश्बू सूंघ कर तो मानों नशा सा सवार हो जाए किसी पर भी, फिर मैनें ज्यादा ना सोचते हुए उनकी पैंटी ऊपर की और फिर पजामी भी, ऐसा करने के दौरान मां खड़ी रही और टीवी पर नजर गड़ाए बस गाना गुनगुनाती रही।
मैं बोला : हो गया मां।
मां बोली : थैंक्यू मेरे बुद्धू।
और फिर सोफे पर मेरे साथ आकर बैठ गई और टीवी देखने लगी। फिर यूंही बातों में और टीवी देखने में समय बीत गया और दोपहर हो गई। मुझे भूख लगी तो मैंने मां से भी पूछा : मां आपको भूख लगी है क्या?
मां : हां, बेटा लगी तो है, जा जाकर कुछ ले आ बाजार से।
मैं: हां मां, बताओ क्या खाओगी आप
मां सोचने लगी और बोली : बेटा मेरा आज रोटी खाने का दिल नहीं कर रहा, तु पिज्जा ऑर्डर करदे ना।
मैनें दो पिज्जा और एक कोल्डड्रिंक ऑर्डर की। तकरीबन आधे घंटे बाद पिज्जा आया। हम दोनो की भूख तब तक इतनी बढ़ चुकी थी। मैनें पिज्जा और कोल्ड ड्रिंक सोफे के सामने पड़े मेज पर रखे और खुद सोफे पर जाकर बैठ गया। मां को पता था के उन्हें खिलाना तो मुझे ही पड़ेगा, इसलिए वो सिंगल वाले सोफे से उठकर मेरे पास बड़े वाले सोफे पर आकर बैठ गई और देखने लगी। मैनें बॉक्स खोला और उस पर चिल्ली फ्लेक्स और ओरेगेनो डालकर खाने के लिए एक पीस उठाया ही था के मां ने अपना मुंह खोल लिया, मुझे मस्ती सूझे रही थी , मैंने फटाक से उसका बाइट लिया और मां को देखकर हंसने लगा।
मां बोली : अच्छा बच्चू, मां से मस्ती। कोई बात नहीं ठीक हो जाने दे मेरे हाथ फिर बताती हूं तुझे।
मैं हंसते हंसते उसका दूसरा बाइट मां के मुंह की तरफ लेकर गया और उन्हें खिलाया , फिर एक एक घुट करके हमने कोल्ड ड्रिंक भी खत्म कर दी और पिज्जा भी। फिर मां पीछे सोफे पर कमर लगा कर बोली : वाह बेटा, मजा आ गया आज तो पिज्जा खा कर वो भी तेरे हाथों से। थोड़ी देर बाद मां अपने कमरे में चली गई ये कहके के मैं अब थोड़ी देर आराम करने जा रहीं हूं, कुछ काम होगा तो तुझे बुला लूंगी। मैनें भी हां में सर हिलाया
फिर शाम तक हमने आराम किया और मां ने फिर मुझे अपने कमरे से आवाज लगाई : सोनू बेटा, इधर तो आ जरा, मेरी मदद कर दे।
मैं: आया मां।
मां : बेटा मुझे सुसु आई है
मैं: चलो मां
मां : अच्छा सुन, सुबह की तरह मस्ती मत करना अब, ठीक है ना?
मैं: हां मां, नहीं करूंगा।
फिर मां बाथरूम में घुसी और मैनें सुबह की तरह ही उनकी पहले पजामी उतारी और फिर उनकी पैंटी और उनकी वो पेशाब की आवाज मेरे कानों में पड़ने लगी। पेशाब करने के बाद वही उनकी पैंटी ऊपर की फिर पजामी। फिर इधर उधर की बाते हुई, मैं रात में बाहर से खाना लाया, खाना खाकर मैंने उन्हें दवा दी और ट्यूब उनके जख्मों पर लगाने के लिए निकाली तो मां बोली : रुक बेटा , मुझे पहले चेंज करना है, फिर ये लगा देना।
मैं: ठीक है मां।
मां : वो सामने अलमारी तो खोल मेरी
मैनें अलमारी खोलकर पूछा : हां , बताओ क्या डालोगी
मां : वो नाइटी निकाल ले बेटा , वो ढीली है ना तो उसमे सही नींद आती है मुझे
मैं: ठीक है मां।
मां : पहना तो दे बेटा मुझे, मैं खुद केसे पहनूंगी।
मैं: पर मैं केसे मां?
मां : अरे शर्माता क्यूं है, क्या बचपन में मैं तुझे खुद कपड़े नहीं पहनाती थी क्या,, तो आज तू मुझे पहना दे, बस सिंपल।
मैं: पर मां।
मां : अच्छा ठीक है, मैं दूसरी तरफ घूम जाऊंगी , तु फिर पहना देना, अब ठीक
मैनें हां में सर हिलाया और मां घूम कर मेरे सामने खड़ी हो गई। पहले मैंने उनकी कमीज उतारी और फिर उनकी पजामी नीचे तो सरक गई पर जैसे ही उनके पैरों से निकालने लगा तो वो वहां अटक गई और मां अब सिर्फ ब्रा और पेंटी में , अपनी पजामी को पैरों में फसाकर मेरे सामने खड़ी थी, आज पहली दफा था के मेरे लोड़े में हलचल हुई ये सब देख कर। मां घूमी और बोली : अरे बेटा, सॉरी वो मैं बताना ही भूल गई, ये पजामी ना नीचे से टाइट होती है और किसी पॉलीथीन वगेरा की मदद से आसानी से निकल जाती है,और ये बिना उसके निकाली ना तो अटक गई।
मैं: अब फिर केसे करें मां?
मां : रुक, जा किचन से एक पॉलीथीन लेकर आ।
मैं किचन में गया और पॉलीथीन लेकर आया और पूछा : अब?
मां बैड पर बैठ गई और बोली : पहले पजामी को ऊपर कर फिर पैरों पर पॉलीथीन डालकर धीरे धीरे पजामी को सरका नीचे।
मैंने ठीक ऐसा ही किया और पजामी तो बाहर आ गई और साथ ही मेरा लोड़ा भी ये सब देख कर बाहर आने को उतावला हो गया। फिर मां को मैंने हड़बड़ी में नाइटी डाली ही थी के वो बोली : अरे बुद्धू कहीं के, ब्रा उतारना तो रह ही गया
मैं: क्या?
मां : अरे तुझे नहीं पता क्या, औरतें बिना ब्रा के सोती है, मेरा बेटा इतना बुद्धू है के उसे हर बात बतानी पड़ती है
Sahil bhai, sahi kha hai ke maa hi pehli guru hoti hai 👍👍👍. Mast likh rahe ho bhai.
 

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मां के हाथ के छाले
Part : 8
इधर मां रस छुटने के बाद अपनी इस हालत को कोस रही थी। मां खुद से बाते करती हुई बोली : हे भगवान, ये क्या हो गया मुझे, अपने ही बेटे के हाथों चूत में उंगली करवा बैठी। और तो और जब उस पर गिरी तो उसका कितना कड़क और गर्म हो रखा था। छी ये मैनें क्या कर दिया। मां की आंखों में नींद तो ना थी और वो इन्ही सब के बारे में सोचती रही और सोच सोच के ही ख्यालों में खोकर इतने दिनों बाद चूत का पानी टपकाकर सो गई। वैसे लन्ड हो या चूत पानी छुट जाने के बाद जो आराम मिलता है और नींद आती है वो तो एकदम मस्त ही होती है।

मैं मूवी देखते देखते सोचने लगा के मां ने पहले तो अपनी पैंटी हटाने को कहा था फिर खुद ही खाना खत्म होते ही भाग खड़ी हुई। चलो जब वो कहेंगी तभी सही वैसे भी जल्दी का काम तो शैतान का होता है। और मेरी मां तो किसी चूत की परी से कम नहीं। वक्त लगेगा पर मजा बहोत आएगा। फिर मैं भी मूवी में मस्त होकर उसमे खो गया और सब भूल गया।
शाम के करीब 6 बजे मां की आंख खुली, फिर जब उनकी वो बेटे से चूत में उंगली करवाने वाली गिल्ट दूर हो गई तो उन्हे सब याद आया के कैसे उनके बेटे ने उनकी चूत में खुजली के बहाने से उंगली फेरी और उनकी चूत ने इतने दिनों बाद अपना रस छोड़ा। मां को ये सब याद कर के फिर से मस्ती सी चढ़ी के उन्होंने मुझे आवाज लगाई : सोनू बेटा, अरे ओ सोनू, इधर तो आ जरा।
मुझे मूवी देखते देखते जब मां की आवाज आई तो मैं मूवी की दुनिया से बाहर आया और मां के बारे में सोचता सोचता उनके पास गया और बोला : हां मां, क्या हुआ।
मां : बेटा वो, तुझे बताया था ना दोपहर में...
मैं: क्या मां?
मां : वो मेरी पैंटी...
मैं हल्का सा हस्ते हुए : अच्छा वो जिसमे आपने सुसु कर दिया , मेरा मतलब जिसमे आपसे सुसु हो गया।
मां : चुप बदमाश कहीं का, हां वही।
मैं: अच्छा तो धोनी है क्या अब वो?
मां : हां बेटा , ये वाली भी और बाकी इस हफ्ते की सारी भी
मैं: ठीक है मां, आओ आप बताते रहना , मैं कोशिश करता हूं धोने की।
मां : हां, चल बाथरूम में।
मैं: अरे मां पहले वो आपके सुसु वाली उतार तो लो, फिर चलते हैं ना।
मां : अरे हां, सॉरी सॉरी भूल ही गई थी, चल उतार अब खड़ा खड़ा सोच क्या रहा है।
मैनें उन्हे कहा : मां जैसे सुबह आपको डाली थी, वैसे ही उतारनी पड़ेगी ये शायद।
मां : हां तो उतार ना
मां मस्ती में फट से बेड के पास घोड़ी बन गई और बोली : ले, पहले पजामी खींच और फिर पैंटी उतारना।
मां के ये कहते ही दिल किया के उन्हे ऐसे ही घोड़ी बनी को चोदना चालू करदू। खुद तो दुपहर में अपना पानी छुड़वा लिया पर मेरा सोचा भी ना। फिर सोचा के सब्र कर सोनू।
मैंने मां के पैरों पर पहले एक पॉलिथीन डलवाई फिर पजामी नीचे कर खींच कर उतारने लगा के मां हिल के नीचे से गिर पड़ी और इस पर हम दोनो हसने लगे और मां बोली : अरे बुद्धू धीरे से कर ना।
फिर मुस्कुरा कर बोली : बेटा सब्र का फल मीठा होता है।
मैं भी मस्ती में आकर उनकी गांड़ की ओर देखते हुए बोल पड़ा : हां मां, वो तो बेहद मीठा ही होगा।
इसपर मां हल्की सी हंसी और बोली : अच्छा जी।
फिर मां उठ कर दोबारा घोड़ी बनी और इस बार उन्होंने अपना एक पर बैड पर रखा ताकि मैं आसानी से उस पैर से पहले पजामी उतार सकूं। जब वहां की पजामी उतार गई तो मां ने ऐसा दोबारा किया दूसरे पैर के साथ। फिर दोनो पैर से पजामी उतरने के बाद अब बारी थी उनकी पैंटी की। मैं जैसे ही पैंटी उतारने लगा के मां बोली : रुक बेटा, मैं नीचे मेट पर ऐसे बन जाती हूं, ये पैर उठा उठा कर मेरे घुटने दुखने लगे।
मैं बोला : ऐसे मतलब?
मां : अरे बुद्धू ये ऐसे जैसे मैं खड़ी हूं झुक कर। पता नही तु ऐसे झुकने को अपना वो गांड़ वाली भाषा में कैसे बोलता है?
इसपर हम दोनो हसने लगे और मैं बोला : मां मैं तो चलो उनको गांड़ बोलता हूं, पर आप क्या बोलती हैं?
मां हंसते हुए : कुछ नहीं
मैं: अरे अब बताओ ना
मां : बेटा वो गांड़ वाला शब्द तो सिर्फ औरत पति या लवर के सामने बोलती है , वैसे तो अगर किसी से आपस में बात करनी हो तो या तो कूल्हे या फिर चू....
मैं: चू क्या मां?
मां हंसते हुए : चूतड
इस पर फिर हम दोनो हसने लगे और मैं बोला : अच्छा मां, तो क्या पापा आपके इस हिस्से को मेरा मतलब आपकी गांड़ को गांड़ ही बुलाते होंगे?
मां हल्का सा मुस्कुराते हुए: लगता है ज्यादा मस्ती सूझ रही है आज मेरे बेटे को
मैं: अरे बताओ भी यार , सॉरी मां
मां हसने लगी और बोली : अच्छा जी, मां से सीधा यार, शाबाश मेरे बुद्धू
मैं: सॉरी मां, वो बस आपके साथ दोस्तो जैसी फीलिंग आती है ना तो, तो बस निकल गया मुंह से।
मां : अरे कोई बात नहीं बेटा, मैं तेरी दोस्त जैसी ही तो हूं, फिर क्या हुआ अगर उम्र में तुझसे बड़ी हुई तो
मैं: हां मां, अच्छा अब दोस्त को भी नहीं बताओगी क्या कि पापा क्या बोलते हैं इस हिस्से को?
मां शरमाते हुए : बोलते तो यही हैं पर कभी कभार ही
मैं: कभी कभार ही मतलब?
मां : मतलब महीने दो महीने में एक दो बार ही बस
मैं: मतलब ?
मां : अरे समझ जा ना, इतना भी बुद्धू नहीं है तू, सब जानती हूं में
मैं हसने लगा और बोला : अच्छा मां, जब जब जरूरत हो क्या तब?
मां हंसते हुए : हां बाबा, वही। अब समझने लगा है मेरे साथ रहकर।
मैं: हां मां , आप अपने साथ ही रखा करो मुझे।
मां : अच्छा जी, चल अब बाते छोड़ और मैं ऐसे नीचे मैट पर बन जाती हूं, तु फिर उतारना ये भीगी पैंटी। कहीं बैड की चादर ना गंदी हो जाए, अगर इनसे पेशाब गिरा तो।
मैं: हां मां, पर आपने ऐसे बन जाती हूं तो बोल दिया पर बताया नहीं के क्या कहते हैं इसे?
मां : पहले तु बता के तु अपना इस गांड़ वाली भाषा में इसे क्या बोलता है फिर मैं बताऊंगी।
मैं फट से बोला : घोड़ी बनना।
मां : चुप बदमाश कहीं के, मैं तो तुझे बुद्धू कहती थी तो तू लूचा लग रहा है मुझे, सच सच बता तेरी कितनी गर्लफ्रेंड हैं?
इसपर दोनो मुस्कृआने लगे और मैं बोला : अरे नहीं है मां, कोई भी, वो तो बस यूंही। आप बताओ ना अब क्या बोलते हैं इसे?
मां सोचने लगी फिर धीमी आवाज में बोली : तेरे पापा तो इसे कुतिया बोलते हैं, बाकियों का नहीं पता मुझे, और हां कभी कभी कोड़ी हो जाना भी
फिर वो हंसने लगी और मैं भी हंसते हुए बोला : मां वैसे आप भी लुच्ची से कम नहीं है बातों में
मां : चुप बदमाश, अब लुच्चे की मां हूं और ऊपर से अब तो दोस्त भी बन गई हूं तो थोड़ी बहुत लुच्ची बाते तो करूंगी ही ना, क्यूं मेरे सोनू यार। और ऐसा कहकर हम दोनो तेज तेज हसने लगे और फिर मां बोली : चल बेटा, अब जल्दी कर फिर कपड़े धोने भी हैं।
मां फिर नीचे रखे मैट पर घोड़ी बन गई और अपनी पैंटी उतरने का इंतजार करने लगी।
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मां के हाथ के छाले
Part: 4

मैं: ब्रा उतार के क्यूं मां?
मां : अरे पूरा वो दोनो कैद रहते हैं उनमें और रात को आराम भी तो देना होता है ना उन्हें, इसलिए नहीं डालते
मैं: किसे मां?, क्या कैद रहते हैं , किन्हें आराम देना होता है?
मां : अरे समझा कर ना बेटा इतना तो
मैं: अरे बताओ भी मां
मां अपने बूब्स की ओर इशारा करते हुए : मेरे ये
मैं: ओ अच्छा अच्छा
मां : हां, बुद्धू कहीं के
फिर मां मेरी तरफ घूम गई और बोली : अब ये नाइटी पीछे से ऊपर उठा और ब्रा का हुक खोल
मैंने जैसे ही मां की नाइटी उठाई , उनका बुरा पीछे से नंगा बदन फिर से देखकर मेरा लोड़ा झटके मारने लगा, फिर एकदम मां बोली : हां, अब हुक खोल दे ये
मैंने आजतक कभी किसी ब्रा का हुक नहीं खोला था, ये मेरा पहली बार था, थोड़ा इधर उधर देख कर जैसे तैसे करके मैनें उनका हुक खोला के मां हल्का सा पीछे हुई और उनकी गांड़ पहली बार मेरे लोड़े से हल्की सी लगी जिसे महसूस करके मैं चोक गया, फिर एकदम से मां आगे हुई और बोली : हां, खुल गया है, अब ये आगे से ब्रा पकड़ के नीचे खींच धीरे धीरे
मैनें वैसा ही किया और लाल रंग की गद्देदार ब्रा अब मेरे हाथों में थी , मेरा मन तो किया के एक बार इसकी खुश्बू ली जाए, पर मैं ऐसा कर ना पाया। फिर मस्ती करते हुए मैं बोला : मां, ये पैंटी भी उतार कर सोती हैं क्या औरतें?
इसपर मां हंसने लगी और बोली : वो तो उनकी मर्जी होती है।
मैनें तुरंत पूछा : और आप मां, आप डाल कर सोते हो या उतार कर?
मां : वैसे तो मैं उतार कर ही सोती हूं पर अब लगता है 3-4 दिन ऐसे डाल कर ही सोना पड़ेगा।
मैं: क्यूं मां?
मां : अरे मैनें तुझे दिन में बताया था ना के वो बाल हों तो डालनी पड़ती है तो इसलिए नहीं तो खुजली होती रहती है, और अब मेरे हाथ पर छाले हैं जिस कारण मैं खुजला भी नहीं सकती अगर उतार कर भी सोऊं तो.
मैं: मां, अब दुपहर में ही तो आपने कहा था के ये मेरे हाथ अब थोड़े दिनों के लिए आपके हुए, और अगर आपको उतार का अच्छी नींद आती है तो वैसे ही सो जाओ, मैं खुजला दूंगा अगर जरूरत पड़ी तो।
मां हंसने लगी और बोली : चुप बदमाश कहीं के, नहीं मैं डालकर ही सोने की कोशिश कर लूंगी, तेरे हाथों को ज्यादा तकलीफ नहीं देना चाहती मैं
मैं: इसमें तकलीफ कैसी मां
मां : नहीं नहीं , मैं सो जाऊंगी ऐसे ही
मैं: ठीक है जैसी आपकी मर्जी
मां : अच्छा सुन, आज रात तु मेरे साथ ही मेरे कमरे में सोजा ना, अगर रात में मुझे पेशाब लगी या कुछ और जरुरत पड़ी तो कहां तेरे कमरे पे आवाजे लगाती फिरूंगी
मैं ये सुनकर खुश हो गया मन ही मन और बोली : हां जरूर मां
फिर मैं अपने कमरे में गया और एक लोवर और टी शर्ट डालकर मां के कमरे में आया और मां बेड के एक साइड लेती हुई थी और कुछ सोच रही थी, मैं भी बैड के दूसरी तरफ आकार लेता और पूछा : क्या सोच रही हो मां?
मां : कुछ नहीं बेटा बस यूंही
मैं: बताओ ना
मां : बस तेरे बारे में सोच रही थी के, आज तूने मेरा कितना ख्याल रखा।
मैं: अरे ये तो मेरा फर्ज था मां
इसपर मां मेरे थोड़ा नजदीक आई और मेरे माथे पर एक किस किया और बोली : थैंक्यू बेटा सब के लिए
मैं: अरे आप भी ना मां, कुछ भी काम हो तो बेजीझक बोल देना, शरमाना नहीं। आपकी सेवा करना तो मेरा फर्ज है।
मां : ठीक है बेटा बता दूंगी।
फिर हम लाइट ऑफ करके सोने लगे, मेरी आखों में तो नींद थी ही नहीं, लगभग आधे घंटे बाद इधर उधर करवटें बदलते बदलते मां की आवाज आई : सोनू, बेटा सो गया है क्या?
मैं: नहीं मां, क्या हुआ?
मां : बेटा मैं ऐसे सो नहीं पा रही
मैं: क्या हुआ मां कुछ प्रोब्लम है क्या?
मां : वो तु सही कह रहा था के मुझे बगैर पैंटी के ही सोना चाहिए था, आदत ऐसी ही बनी हुई है ना, इसलिए शायद नींद नहीं आ रही, क्या तु मेरी पैंटी उतार देगा, प्लीज
मैं ये सुनकर मुस्कुराया और बोला : ठीक है मां, अभी उतार देता हूं
मैनें कमरे की लाइट ऑन की, फिर मां ने सीधा लेटे हुए अपनी टांग थोड़ा सा ऊपर उठाई और बोली : बेटा ले उतार तो सही धीरे से खींच के
मैनें जैसे ही उनकी टांगों के सामने बैठ के दोनों हाथों से पैंटी को पकड़ा के मां की टांगे नीचे आ गई,उनका शरीर एक मिल्फ की तरह ही था , वो मोटी मोटी गांड़ और भारी टांगे,शायद यही कारण था के वो हवा में अपनी टांगों को रख ना पाई और बोली : सॉरी बेटा , वो टांगे थोडी भारी है ना , मुझसे हवा में इन्हे कुछ सेकंड्स भी रोका ही नहीं गया, सॉरी
मैं: अरे कोई बात नहीं मां,
मैनें मोके का फायदा उठा के फिर बोला : अच्छा एक काम करो या तो आप बैड पर खड़े हो जाओ मैं फिर उतार दूंगा या फिर मैं ये टांगे पहले उठा कर अपने कंधो पर रखता हु फिर दोनों हाथों से पैंटी सरका लूंगा, बताओ आप
मां हल्का सा मुस्कुराई और बोली : बेटा अब बैड से उठने का मन तो नहीं है तु वो दूसरा तरीका ही कर ले
मैं भी एक हल्की सी मुस्कान देकर बोला : ठीक है मां
ये बोलकर मैनें उनकी मेरे घुटनों पर गिरी टांगे हल्के हल्के से उठा के अपने कंधों पर रखी और फिर प्यार से उनकी नाइटी को दोनों साइड से ऊपर सरकाया और दोनों हाथों से पैंटी को पकड़ कर नीचे करने लगा के पैंटी उनकी भारी मोटी गांड़ में फसी हुई थी
मैं बोला : मां, थोड़ा सा ऊपर उठाओ ना
मां अनजान बनते हुए : क्या बेटा?
मैं: अरे ये आपके
मां : क्या?
मैं अचानक बोल पड़ा : आपकी गांड़ मां
ये सुनकर मां हंसने लगी और बोली : चुप बदमाश, कहां से सीखा है ये सब शब्द तु, बहुत बिगड़ गया है
मैं भी हंसने लगा और फिर बोला : अरे उठाओ भी अब हल्का सा
मां : अच्छा बच्चू, अब मां का हल्का सा वजन उठाने की भी ताकत नहीं है क्या तुझमें?
मैं: ऐसा नहीं है मां
मां : फिर बोल क्यूं रहा है, खुद ही उठा कर सरका ले ना पैंटी
मैनें ये सुनते ही बिना कुछ सोचे अपने को थोड़ा सा उनके और पास सरकाया और अपने हाथ उनकी गांड़ के नीचे डालकर ऊपर की ओर उठाया के मां सिसक उठी : आह, धीरे कर पागल, कमर मोड़ के तोड़ ही देगा क्या आज मेरी
मैं (हल्का सा हंसते हुए) : अरे सॉरी सॉरी मां
मैनें फिर उनकी पेंटी सरकाई और जैसे ही पैंटी ऊपर की उनके जहां उनके पैर मेरे कंधो पर पड़े थे, उसकी एक भीनी सी खुश्बू मुझे आई, जिसमे मां के पेशाब की खुश्बू भी शामिल थी, क्या नजारा था वो मानों मैं उन्हे चोदने की पोजिशन में ला रहा होऊं।
तभी मां बोली : हो गया सोनू बेटा, थैंक्यू।
अगर मुझे मां की उस वक्त कोई आवाज ना आती तो शायद उसी दिन मैं होश खो बैठ ता और उन्हें चोद बैठता । फिर मैनें खुद को वहां से हटाया और पेंटी पकड़ कर बोला : इसे कहां रखूं मां
मां बोली : ये बाहर गंदे कपड़े पड़े हैं उनमें रख दे
मैं उठ कर बाहर गया और पैंटी को सुनने लगा, उसे सूंघते ही मैं मदहोश हो गया और मेरा लोड़ा एकदम टाइट होकर लोवर में से झटके मारने लगा। मैनें एकदम पैंटी अपने लोड़े से लगाई और हल्का सा रगड़ कर , अपनी मां होने का खयाल कर उसे कपड़ों में रख कर अंदर कमरे में चला गया।
Gajab bhai.
 
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