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मां के हाथ के छाले
Part : 8
इधर मां रस छुटने के बाद अपनी इस हालत को कोस रही थी। मां खुद से बाते करती हुई बोली : हे भगवान, ये क्या हो गया मुझे, अपने ही बेटे के हाथों चूत में उंगली करवा बैठी। और तो और जब उस पर गिरी तो उसका कितना कड़क और गर्म हो रखा था। छी ये मैनें क्या कर दिया। मां की आंखों में नींद तो ना थी और वो इन्ही सब के बारे में सोचती रही और सोच सोच के ही ख्यालों में खोकर इतने दिनों बाद चूत का पानी टपकाकर सो गई। वैसे लन्ड हो या चूत पानी छुट जाने के बाद जो आराम मिलता है और नींद आती है वो तो एकदम मस्त ही होती है।
मैं मूवी देखते देखते सोचने लगा के मां ने पहले तो अपनी पैंटी हटाने को कहा था फिर खुद ही खाना खत्म होते ही भाग खड़ी हुई। चलो जब वो कहेंगी तभी सही वैसे भी जल्दी का काम तो शैतान का होता है। और मेरी मां तो किसी चूत की परी से कम नहीं। वक्त लगेगा पर मजा बहोत आएगा। फिर मैं भी मूवी में मस्त होकर उसमे खो गया और सब भूल गया।
शाम के करीब 6 बजे मां की आंख खुली, फिर जब उनकी वो बेटे से चूत में उंगली करवाने वाली गिल्ट दूर हो गई तो उन्हे सब याद आया के कैसे उनके बेटे ने उनकी चूत में खुजली के बहाने से उंगली फेरी और उनकी चूत ने इतने दिनों बाद अपना रस छोड़ा। मां को ये सब याद कर के फिर से मस्ती सी चढ़ी के उन्होंने मुझे आवाज लगाई : सोनू बेटा, अरे ओ सोनू, इधर तो आ जरा।
मुझे मूवी देखते देखते जब मां की आवाज आई तो मैं मूवी की दुनिया से बाहर आया और मां के बारे में सोचता सोचता उनके पास गया और बोला : हां मां, क्या हुआ।
मां : बेटा वो, तुझे बताया था ना दोपहर में...
मैं: क्या मां?
मां : वो मेरी पैंटी...
मैं हल्का सा हस्ते हुए : अच्छा वो जिसमे आपने सुसु कर दिया , मेरा मतलब जिसमे आपसे सुसु हो गया।
मां : चुप बदमाश कहीं का, हां वही।
मैं: अच्छा तो धोनी है क्या अब वो?
मां : हां बेटा , ये वाली भी और बाकी इस हफ्ते की सारी भी
मैं: ठीक है मां, आओ आप बताते रहना , मैं कोशिश करता हूं धोने की।
मां : हां, चल बाथरूम में।
मैं: अरे मां पहले वो आपके सुसु वाली उतार तो लो, फिर चलते हैं ना।
मां : अरे हां, सॉरी सॉरी भूल ही गई थी, चल उतार अब खड़ा खड़ा सोच क्या रहा है।
मैनें उन्हे कहा : मां जैसे सुबह आपको डाली थी, वैसे ही उतारनी पड़ेगी ये शायद।
मां : हां तो उतार ना
मां मस्ती में फट से बेड के पास घोड़ी बन गई और बोली : ले, पहले पजामी खींच और फिर पैंटी उतारना।
मां के ये कहते ही दिल किया के उन्हे ऐसे ही घोड़ी बनी को चोदना चालू करदू। खुद तो दुपहर में अपना पानी छुड़वा लिया पर मेरा सोचा भी ना। फिर सोचा के सब्र कर सोनू।
मैंने मां के पैरों पर पहले एक पॉलिथीन डलवाई फिर पजामी नीचे कर खींच कर उतारने लगा के मां हिल के नीचे से गिर पड़ी और इस पर हम दोनो हसने लगे और मां बोली : अरे बुद्धू धीरे से कर ना।
फिर मुस्कुरा कर बोली : बेटा सब्र का फल मीठा होता है।
मैं भी मस्ती में आकर उनकी गांड़ की ओर देखते हुए बोल पड़ा : हां मां, वो तो बेहद मीठा ही होगा।
इसपर मां हल्की सी हंसी और बोली : अच्छा जी।
फिर मां उठ कर दोबारा घोड़ी बनी और इस बार उन्होंने अपना एक पर बैड पर रखा ताकि मैं आसानी से उस पैर से पहले पजामी उतार सकूं। जब वहां की पजामी उतार गई तो मां ने ऐसा दोबारा किया दूसरे पैर के साथ। फिर दोनो पैर से पजामी उतरने के बाद अब बारी थी उनकी पैंटी की। मैं जैसे ही पैंटी उतारने लगा के मां बोली : रुक बेटा, मैं नीचे मेट पर ऐसे बन जाती हूं, ये पैर उठा उठा कर मेरे घुटने दुखने लगे।
मैं बोला : ऐसे मतलब?
मां : अरे बुद्धू ये ऐसे जैसे मैं खड़ी हूं झुक कर। पता नही तु ऐसे झुकने को अपना वो गांड़ वाली भाषा में कैसे बोलता है?
इसपर हम दोनो हसने लगे और मैं बोला : मां मैं तो चलो उनको गांड़ बोलता हूं, पर आप क्या बोलती हैं?
मां हंसते हुए : कुछ नहीं
मैं: अरे अब बताओ ना
मां : बेटा वो गांड़ वाला शब्द तो सिर्फ औरत पति या लवर के सामने बोलती है , वैसे तो अगर किसी से आपस में बात करनी हो तो या तो कूल्हे या फिर चू....
मैं: चू क्या मां?
मां हंसते हुए : चूतड
इस पर फिर हम दोनो हसने लगे और मैं बोला : अच्छा मां, तो क्या पापा आपके इस हिस्से को मेरा मतलब आपकी गांड़ को गांड़ ही बुलाते होंगे?
मां हल्का सा मुस्कुराते हुए: लगता है ज्यादा मस्ती सूझ रही है आज मेरे बेटे को
मैं: अरे बताओ भी यार , सॉरी मां
मां हसने लगी और बोली : अच्छा जी, मां से सीधा यार, शाबाश मेरे बुद्धू
मैं: सॉरी मां, वो बस आपके साथ दोस्तो जैसी फीलिंग आती है ना तो, तो बस निकल गया मुंह से।
मां : अरे कोई बात नहीं बेटा, मैं तेरी दोस्त जैसी ही तो हूं, फिर क्या हुआ अगर उम्र में तुझसे बड़ी हुई तो
मैं: हां मां, अच्छा अब दोस्त को भी नहीं बताओगी क्या कि पापा क्या बोलते हैं इस हिस्से को?
मां शरमाते हुए : बोलते तो यही हैं पर कभी कभार ही
मैं: कभी कभार ही मतलब?
मां : मतलब महीने दो महीने में एक दो बार ही बस
मैं: मतलब ?
मां : अरे समझ जा ना, इतना भी बुद्धू नहीं है तू, सब जानती हूं में
मैं हसने लगा और बोला : अच्छा मां, जब जब जरूरत हो क्या तब?
मां हंसते हुए : हां बाबा, वही। अब समझने लगा है मेरे साथ रहकर।
मैं: हां मां , आप अपने साथ ही रखा करो मुझे।
मां : अच्छा जी, चल अब बाते छोड़ और मैं ऐसे नीचे मैट पर बन जाती हूं, तु फिर उतारना ये भीगी पैंटी। कहीं बैड की चादर ना गंदी हो जाए, अगर इनसे पेशाब गिरा तो।
मैं: हां मां, पर आपने ऐसे बन जाती हूं तो बोल दिया पर बताया नहीं के क्या कहते हैं इसे?
मां : पहले तु बता के तु अपना इस गांड़ वाली भाषा में इसे क्या बोलता है फिर मैं बताऊंगी।
मैं फट से बोला : घोड़ी बनना।
मां : चुप बदमाश कहीं के, मैं तो तुझे बुद्धू कहती थी तो तू लूचा लग रहा है मुझे, सच सच बता तेरी कितनी गर्लफ्रेंड हैं?
इसपर दोनो मुस्कृआने लगे और मैं बोला : अरे नहीं है मां, कोई भी, वो तो बस यूंही। आप बताओ ना अब क्या बोलते हैं इसे?
मां सोचने लगी फिर धीमी आवाज में बोली : तेरे पापा तो इसे कुतिया बोलते हैं, बाकियों का नहीं पता मुझे, और हां कभी कभी कोड़ी हो जाना भी
फिर वो हंसने लगी और मैं भी हंसते हुए बोला : मां वैसे आप भी लुच्ची से कम नहीं है बातों में
मां : चुप बदमाश, अब लुच्चे की मां हूं और ऊपर से अब तो दोस्त भी बन गई हूं तो थोड़ी बहुत लुच्ची बाते तो करूंगी ही ना, क्यूं मेरे सोनू यार। और ऐसा कहकर हम दोनो तेज तेज हसने लगे और फिर मां बोली : चल बेटा, अब जल्दी कर फिर कपड़े धोने भी हैं।
मां फिर नीचे रखे मैट पर घोड़ी बन गई और अपनी पैंटी उतरने का इंतजार करने लगी।
Part : 8
इधर मां रस छुटने के बाद अपनी इस हालत को कोस रही थी। मां खुद से बाते करती हुई बोली : हे भगवान, ये क्या हो गया मुझे, अपने ही बेटे के हाथों चूत में उंगली करवा बैठी। और तो और जब उस पर गिरी तो उसका कितना कड़क और गर्म हो रखा था। छी ये मैनें क्या कर दिया। मां की आंखों में नींद तो ना थी और वो इन्ही सब के बारे में सोचती रही और सोच सोच के ही ख्यालों में खोकर इतने दिनों बाद चूत का पानी टपकाकर सो गई। वैसे लन्ड हो या चूत पानी छुट जाने के बाद जो आराम मिलता है और नींद आती है वो तो एकदम मस्त ही होती है।
मैं मूवी देखते देखते सोचने लगा के मां ने पहले तो अपनी पैंटी हटाने को कहा था फिर खुद ही खाना खत्म होते ही भाग खड़ी हुई। चलो जब वो कहेंगी तभी सही वैसे भी जल्दी का काम तो शैतान का होता है। और मेरी मां तो किसी चूत की परी से कम नहीं। वक्त लगेगा पर मजा बहोत आएगा। फिर मैं भी मूवी में मस्त होकर उसमे खो गया और सब भूल गया।
शाम के करीब 6 बजे मां की आंख खुली, फिर जब उनकी वो बेटे से चूत में उंगली करवाने वाली गिल्ट दूर हो गई तो उन्हे सब याद आया के कैसे उनके बेटे ने उनकी चूत में खुजली के बहाने से उंगली फेरी और उनकी चूत ने इतने दिनों बाद अपना रस छोड़ा। मां को ये सब याद कर के फिर से मस्ती सी चढ़ी के उन्होंने मुझे आवाज लगाई : सोनू बेटा, अरे ओ सोनू, इधर तो आ जरा।
मुझे मूवी देखते देखते जब मां की आवाज आई तो मैं मूवी की दुनिया से बाहर आया और मां के बारे में सोचता सोचता उनके पास गया और बोला : हां मां, क्या हुआ।
मां : बेटा वो, तुझे बताया था ना दोपहर में...
मैं: क्या मां?
मां : वो मेरी पैंटी...
मैं हल्का सा हस्ते हुए : अच्छा वो जिसमे आपने सुसु कर दिया , मेरा मतलब जिसमे आपसे सुसु हो गया।
मां : चुप बदमाश कहीं का, हां वही।
मैं: अच्छा तो धोनी है क्या अब वो?
मां : हां बेटा , ये वाली भी और बाकी इस हफ्ते की सारी भी
मैं: ठीक है मां, आओ आप बताते रहना , मैं कोशिश करता हूं धोने की।
मां : हां, चल बाथरूम में।
मैं: अरे मां पहले वो आपके सुसु वाली उतार तो लो, फिर चलते हैं ना।
मां : अरे हां, सॉरी सॉरी भूल ही गई थी, चल उतार अब खड़ा खड़ा सोच क्या रहा है।
मैनें उन्हे कहा : मां जैसे सुबह आपको डाली थी, वैसे ही उतारनी पड़ेगी ये शायद।
मां : हां तो उतार ना
मां मस्ती में फट से बेड के पास घोड़ी बन गई और बोली : ले, पहले पजामी खींच और फिर पैंटी उतारना।
मां के ये कहते ही दिल किया के उन्हे ऐसे ही घोड़ी बनी को चोदना चालू करदू। खुद तो दुपहर में अपना पानी छुड़वा लिया पर मेरा सोचा भी ना। फिर सोचा के सब्र कर सोनू।
मैंने मां के पैरों पर पहले एक पॉलिथीन डलवाई फिर पजामी नीचे कर खींच कर उतारने लगा के मां हिल के नीचे से गिर पड़ी और इस पर हम दोनो हसने लगे और मां बोली : अरे बुद्धू धीरे से कर ना।
फिर मुस्कुरा कर बोली : बेटा सब्र का फल मीठा होता है।
मैं भी मस्ती में आकर उनकी गांड़ की ओर देखते हुए बोल पड़ा : हां मां, वो तो बेहद मीठा ही होगा।
इसपर मां हल्की सी हंसी और बोली : अच्छा जी।
फिर मां उठ कर दोबारा घोड़ी बनी और इस बार उन्होंने अपना एक पर बैड पर रखा ताकि मैं आसानी से उस पैर से पहले पजामी उतार सकूं। जब वहां की पजामी उतार गई तो मां ने ऐसा दोबारा किया दूसरे पैर के साथ। फिर दोनो पैर से पजामी उतरने के बाद अब बारी थी उनकी पैंटी की। मैं जैसे ही पैंटी उतारने लगा के मां बोली : रुक बेटा, मैं नीचे मेट पर ऐसे बन जाती हूं, ये पैर उठा उठा कर मेरे घुटने दुखने लगे।
मैं बोला : ऐसे मतलब?
मां : अरे बुद्धू ये ऐसे जैसे मैं खड़ी हूं झुक कर। पता नही तु ऐसे झुकने को अपना वो गांड़ वाली भाषा में कैसे बोलता है?
इसपर हम दोनो हसने लगे और मैं बोला : मां मैं तो चलो उनको गांड़ बोलता हूं, पर आप क्या बोलती हैं?
मां हंसते हुए : कुछ नहीं
मैं: अरे अब बताओ ना
मां : बेटा वो गांड़ वाला शब्द तो सिर्फ औरत पति या लवर के सामने बोलती है , वैसे तो अगर किसी से आपस में बात करनी हो तो या तो कूल्हे या फिर चू....
मैं: चू क्या मां?
मां हंसते हुए : चूतड
इस पर फिर हम दोनो हसने लगे और मैं बोला : अच्छा मां, तो क्या पापा आपके इस हिस्से को मेरा मतलब आपकी गांड़ को गांड़ ही बुलाते होंगे?
मां हल्का सा मुस्कुराते हुए: लगता है ज्यादा मस्ती सूझ रही है आज मेरे बेटे को
मैं: अरे बताओ भी यार , सॉरी मां
मां हसने लगी और बोली : अच्छा जी, मां से सीधा यार, शाबाश मेरे बुद्धू
मैं: सॉरी मां, वो बस आपके साथ दोस्तो जैसी फीलिंग आती है ना तो, तो बस निकल गया मुंह से।
मां : अरे कोई बात नहीं बेटा, मैं तेरी दोस्त जैसी ही तो हूं, फिर क्या हुआ अगर उम्र में तुझसे बड़ी हुई तो
मैं: हां मां, अच्छा अब दोस्त को भी नहीं बताओगी क्या कि पापा क्या बोलते हैं इस हिस्से को?
मां शरमाते हुए : बोलते तो यही हैं पर कभी कभार ही
मैं: कभी कभार ही मतलब?
मां : मतलब महीने दो महीने में एक दो बार ही बस
मैं: मतलब ?
मां : अरे समझ जा ना, इतना भी बुद्धू नहीं है तू, सब जानती हूं में
मैं हसने लगा और बोला : अच्छा मां, जब जब जरूरत हो क्या तब?
मां हंसते हुए : हां बाबा, वही। अब समझने लगा है मेरे साथ रहकर।
मैं: हां मां , आप अपने साथ ही रखा करो मुझे।
मां : अच्छा जी, चल अब बाते छोड़ और मैं ऐसे नीचे मैट पर बन जाती हूं, तु फिर उतारना ये भीगी पैंटी। कहीं बैड की चादर ना गंदी हो जाए, अगर इनसे पेशाब गिरा तो।
मैं: हां मां, पर आपने ऐसे बन जाती हूं तो बोल दिया पर बताया नहीं के क्या कहते हैं इसे?
मां : पहले तु बता के तु अपना इस गांड़ वाली भाषा में इसे क्या बोलता है फिर मैं बताऊंगी।
मैं फट से बोला : घोड़ी बनना।
मां : चुप बदमाश कहीं के, मैं तो तुझे बुद्धू कहती थी तो तू लूचा लग रहा है मुझे, सच सच बता तेरी कितनी गर्लफ्रेंड हैं?
इसपर दोनो मुस्कृआने लगे और मैं बोला : अरे नहीं है मां, कोई भी, वो तो बस यूंही। आप बताओ ना अब क्या बोलते हैं इसे?
मां सोचने लगी फिर धीमी आवाज में बोली : तेरे पापा तो इसे कुतिया बोलते हैं, बाकियों का नहीं पता मुझे, और हां कभी कभी कोड़ी हो जाना भी
फिर वो हंसने लगी और मैं भी हंसते हुए बोला : मां वैसे आप भी लुच्ची से कम नहीं है बातों में
मां : चुप बदमाश, अब लुच्चे की मां हूं और ऊपर से अब तो दोस्त भी बन गई हूं तो थोड़ी बहुत लुच्ची बाते तो करूंगी ही ना, क्यूं मेरे सोनू यार। और ऐसा कहकर हम दोनो तेज तेज हसने लगे और फिर मां बोली : चल बेटा, अब जल्दी कर फिर कपड़े धोने भी हैं।
मां फिर नीचे रखे मैट पर घोड़ी बन गई और अपनी पैंटी उतरने का इंतजार करने लगी।