बरसात खत्म हो चुकी है।और ठंड दस्तक देने वाली है सुबह सुबह गुलाबी ठंड पड़ रही है।चारों तरफ हरियाली है गांव में ठंड का मौसम बहुत सुंदर लगता है ऐसी ही सुबह के साथ सूर्य उदय होता है रानीगंज में गांव के लोग जल्दी उठ जाते हैं और अपना अपना काम करने लगते है।
सुनीता भी सुबह जल्दी उठ जाया करती है।अभी सुबह के ६ बजे होंगे।पर सुनीता उठ जाती है और हाथ मुंह धोकर नहाने के लिए बाथरूम में घुस जाती है।सुनीता रात को इतनी तकी हुई थी कि साड़ी ही पहन कर सो गई थी और मैक्सी पहनने की हिम्मत नहीं हुई और इस लिए साड़ी ही पहन कर सो गई।अभी सुनीता के पास एक घंटे से ज्यादा का समय था।क्योंकि अजय इतनी जल्दी नहीं उठने वाला क्योंकि वह रात को घर देर से आया था।और सुधा अगर सो कर उठी तो वो जानती थी कि मम्मी नहा रही है।इसलिए सुनीता निशित हो कर नहाना शुरू करती है
पहले तो सुनीता अपने जिस्म से साड़ी अलग कर देती है और बगल में रख देती है।इस समय सुनीता सिर्फ साया और ब्लाउज में होती है और अगर कोई ऐसे देख ले तो वो सुनीता का दीवाना हो जायेगा और उसको किसी कुतिया की तरह चोदेगा। धीरे धीरे सुनीता अपना ब्लाउज निकलती है और उसको जमीन पे रखने से पहले ब्लाउज के काख वाले हिस्से को देखती है जो कि पूरा सुनीता के पसीने से गीला हो चुका था।फिर सुनीता बाथरूम में दीवार में टांगे शीशे में अपने आप को देखती है और उसकी पलकों से अंशु गिरने लगते है।वो अपने मन में सोचती हैं भगवान ने इतना कातिलाना जिसमें दिया है कि कोई भी दीवाना हो जाए पर विडम्बना देखो ये जिस्म वीरान पड़ा है कितने सालों से कितने साल हो गए सुनीता को मर्द के हाथों का स्पर्श महसूस किए हुए।उसने अपने हाथों से अपने चुचियों पे गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया।और ऐसे ही करते करते वो अपने चुचियों को अपने हाथों से दबा देती।पर फिर भी उसकी आग शांत नहीं हो रही थी उसके चुचियों को तो मर्द का हाथ चाहिए था जो उसे बिना किसी रहम के मसले और दबाए उनपर थप्पड़ की बारिश करें।मानो ऐसा प्रतीत होता था कि सुनीता की चुचियों उस से कह रही हो कि सुनीता करले बगावत और किसी मर्द को फसा ले जो इस निगोडी बुर को किसी सस्ती रण्डी की तरह चोदे पर सुनीता बेचारी खुद बेबस थी समाज के डर से।अपने चुचियों को मलते मसलते उसके पांव जवाब दे देते है और वो वही दीवार के सहारे धीरे धीरे नीचे रखे स्टूल पर अपने मुलायम गांड़ रख कर बैठ जाती है।और फिर धीरे धीरे अपना साया घुटने तक लाती है सुनीता की आँखें अभी भी बंद थी और वो ये सब जैसे किसी नशे में कर रही हो उसपे अपने आप पर कोई कंट्रोल नहीं था।फिर वो अपने एक हाथ को अपने चूचियां से सरकते हुए अपने साया के अन्दर डाल लेती है।और कब उसके हाथ अपने मक्खन जैसी चूत पे चले जाते है उसे खुद पता नहीं चलता और वो हवस की आग में अब अपने बुर को मसलने लगती है। सुनीता अब हवस की आग में इतना जल रही थी कि वो अपने चुचियों और बुर को मसलने लगती है तेजी से।वैसे तो सुनीत किसी मर्द से मिले सालो हो गए और जब तक उसका पति जिंदा था वो उसको याद करती थीं पर अब तो उसको किसी मर्द की तस्वीर तक अपने मन में नहीं आ रही थी बस एक मर्द था अजय जो उसके पास २४ घंटों रहता था और न जाने कैसे अनजाने में ही उसको अजय का खयाल आ जाता है जब वो अपने बुर को मसल रही थी।और अचानक ही अपने होंठों से वो बड़बड़ाने लगती है अजय मेरे राजा चोदो मुझे चोदो अपनी सुनीता को और पेलो अपनी सुनीता को खूब प्यार दो तुम्हारी सुनीता तरस गई थीं मेरे मालिक चोदो अपनी दासी को और फिर अचानक वो उसके हाथ कांपने लगते है और सुनीता का पानी निकल जाता है।और फिर एक मिनिट बाद उसका मन शांत होता है तो वो रोने लगती है कि भगवान ये क्या किया मैने अपनी हवस की आग में इतनी आंधी हो गई की अपने बेटे तक को नहीं छोड़ा।तभी उसके कान में सुधा की आवाज आती है
सुधा-मम्मी जल्दी निकालो मुझे भी नहाना है
सुनीता-हा बेटा निकल रही हु बस हो गया
सुनीता जल्दी जल्दी अपनी कच्छी और ब्रा निकल कर वही कुटी पर तंग देती है और साया बांधकर और मैक्सी डालकर बाथरूम से निकल जाती है।उसके दिमाग में अभी भी वही सब चल रहा था जो उसने अभी बाथरूम में किया था और अपने आप पर बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी।