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Incest मुझे प्यार करो,,,

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Sanju@

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तृप्ति के लिए बीती रात बेहद यादगार बन चुकी थी वह कभी सोचा भी नहीं थी कि उसके जीवन में ऐसा भी पल आएगा जब एक लड़की के साथ उसे हम बिस्तर होना पड़ेगा,,, लेकिन यह अनुभव उसे काफी कुछ सीखा गया था, वह पूरी तरह से अपनी जवानी का लुत्फ ले चुकी थी,, लेकिन यह तो अभी शुरुआत थीऔर शुरुआत की इतनी धमाकेदार थी कि वह कभी सोच भी नहीं सकती थी,,,दूसरों के मुंह से तो उसने सुषमा आंटी की लड़की सुमन के बारे में बहुत कुछ सुनी थी,, लेकिन अब उसे उसका अनुभव भी हो चुका था लेकिन सुमन से उसे कोई गिला शिकवा नहीं था क्योंकि एक ही रात में सुमन ने उसे जवानी का मजा चखाई थी,,, भले ही दोनों मर्दाना अंग से आनंद ना लिए हो लेकिन जनाना अंग से भरपूर मजा लूट थे,,,।




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एक अद्भुत अनुभव के साथ अपने घर वापस लौट आई थी एक ही रात में वह पूरी तरह से बदल गई थी एक ही रात में उसे लगने लगा था कि वाकई में असली सुख तो इन्हीं सब में है,,, घर वापस लौटने के बावजूद भी उसका बताने में अजीब सी हलचल हो रही थी,,, वह कुछ देर तक कुर्सी पर बैठकरबीते एक दिन के बारे में सोचती रही एक ही दिन में काफी कुछ बदल गया था एक ही दिन में वह पूरी तरह से लड़की से औरत बनने की दिशा में कदम रख चुकी थी,,, वह सुमन के बारे में भी सोच रही थी कि सुमन इतने खुले विचारों वाली है वह कभी सोची नहीं थी,,, और वह अपने मन में इस बात से सबक भी कर रही थी कि भले वह एक औरत के साथ इस तरह का सुख भोग रही थी लेकिन यकीन तौर पर वह संभोग सुख भी पूरी तरह से प्राप्त कर चुकी थी क्योंकि इस तरह से खुले विचारों वाली लड़की ज्यादा देर तक चुदवाए बिना नहीं रह सकती,,,।




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सुमन के बारे में सोचते हुए सुमन की बातें उसे याद आने लगी,,, उसके पास तोअश्लील किताब की थी उसमें किस तरह से गंदी कहानी लिखी हुई थी एक भाई और बहन के बीच किस तरह से संबंध स्थापित होता है इसका उल्लेख बड़े अच्छे तरीके से किया हुआ था,,,और इस बात की झिझक सुमन में बिल्कुल भी नहीं थी कि अगर उसका कोई भाई होता तो उसे नग्न अवस्था में देखकर उसके मन पर क्या गुजरती बल्कि उसे तो अच्छा लगता,,, उसके इस तरह के विचार के बारे में सुनकर तो तृप्ति के होश उड़ गए थे,,, वह अपने मन में सोचने लगी कि अगर वाकई में सुमन का कोई भाई होता तो अब तक वह जरूर उसके साथ शारीरिक संबंध बना ली होती उसके साथ जवानी का मजा लूटती ,,, यह सब सोचती हूं उसके मन में इस बात सेएक और शंका थी कि अगर वह ऐसा चाहती तो वह कर सकती थी लेकिन क्या उसका भाई उन सबके लिए तैयार होता क्या एक भाई अपनी बहन के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए तैयार होगा,,,, फिर अपने ही सवाल का जवाब उसके मन मेंउमड़ने लगा और वह अपने आप से ही बोली क्यों नहीं तैयार होगा जब एक तो है ना अपने भाई की मर्दाना अंग को देखकर पिघल सकती है तो क्या एक भाई अपनी बहन की नंगी जवान को देखकर निकल नहीं सकता क्या उसका मन नहींकर करेगा अपनी बहन के साथ शारीर सुख प्राप्त करने के लिए,,,इस बारे में सोचकर वह अपने मन में सोचने लगी कि क्या अगर वह चाहे तो क्या उसका भाई इन सबके लिए तैयार होगा,,।




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अपने मन में उठे इस सवाल को लेकर उसे अपने आप पर ही गुस्सा आने लगा वह अपने मन में सोचने लगी कि उसका भाई कितना सीधा ज्यादा है वह अपने भाई के बारे में क्यों इस तरह की बातें सोच रही है,,,वह तो अनजाने में उसके लंड को देखी थी जब वह कमरे में पूरी तरह से नंगा होकर अपने लिए कपड़े ढूंढ रहा था ऐसा तो हर घर में हर एक मर्द करता होगा जब घर में अकेला होता होगा नहाने के बाद वह सारे कपड़े उतार भी देता होगा लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि उसके मन में कुछ चल रहा होगा,,,लेकिन तभी उसके मन में ख्याल आया कि अगर एक मर्द के मन में कोई गलत भावना नहीं होती तो उसका सीधा असर उसके लंड पर पड़ता है और उसमें बिल्कुल भी उत्थान नहीं होतालेकिन जब एक मर्द के बंद में कुछ गंदे विचार चलते हैं तो इसका भी असर सीधे उसकी दोनों टांगों के बीच के अंगों पर होता है और वह तुरंत खड़ा हो जाता है और जब वह अपने भाई को देखी थी तो उसका लंड पूरी तरह से खड़ा था तो क्या उसके मन में भी गंदे विचार चल रहे थेयह बातें सोचकर उसका दिमाग घूमने लगा था फिर अपने मन में सोचने लगी कि उसका भाई भी तो पूरी तरह से जवान हो चुका है गठीला बदन का बांका नौजवान बन चुका है,दूसरे लड़कों की तरह उसका भी आकर्षक औरतों की तरफ और लड़कियों की तरफ बढ़ता ही होगा वह भी दूसरे लड़कों की तरह आती जाती लड़कियों के अंगों के उभार को देखकर मचलता होगा,,, क्या सच में उसके भाई के मन में भी यही सब विचार चलाते होंगे,,,।





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इन सब बातों को सोचते हुए उसकी हालत फिर से खराब हो रही थी और उसके बदन में उत्तेजना का संचार होने लगा था,,, जिसका असर सीधे उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार पर पड़ रहा था,,, और उसे रात वाली बात याद करने लगी कि कैसे सुमन बेझिझक बिना शरमाए उसकी बुर को अपने जीभ से चाट रही थी,,,पल भर के लिए तो वह एकदम सच में पड़ गई थी कि एक लड़की एक लड़की के साथ भला ऐसे कैसे कर सकती है,,,लेकिन थोड़ी ही देर में उसके बदन में उत्तेजना की जब हुआ रुकने लगी आने दे कि जो अनुभूति होने लगी उसे महसूस करके वह समझ गई कि वाकई में एक औरत भी औरत को अद्भुत सुख दे सकती हैवह पूरी तरह से मचल गई थी जैसे-जैसे सुमन की जुबान उसके गुलाबी छेद के इर्द गिर्द और अंदर गहराई तक अंदर बाहर हो रहे थे एक अद्भुत सन सनाहट उसके बदन में महसूस हो रही थी जिसका उसे पहले कभी अनुभव नहीं हुआ था,,।




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जिस तरह से उसकी हरकतें जारी थी उसे देखते हुए तृप्ति समझ गई थी कि सुमन पूरी तरह से खिलाड़ी बन चुकी थी जिस तरह से वह उसके ऊपर जाकर उसकी दोनों टांगों के बीच मुंह डाल दी थी और बिना कुछ कहेअपनी भारी भरकम गांड को उसके चेहरे पर रखकर अपनी बुर का स्पर्श उसके चेहरे पर कर रही थी उसके होठों पर कर रही थी यह हरकत एक तरह का इशारा था उसके लिए जिसे वह थोड़ी देर बाद समझ गई थी इस समय भी तृप्ति के जेहन में बुर से उठ रही मादक खुशबू बसी हुई थी,,,, यह खुशबू का अनुभव से अपनी बुर से कभी नहीं हुआ था और अगर सुमन एक अद्भुत सुख से प्रधान ना करती तो शायद इस खुशबू से वह अनजान ही रहती,,,सुमन अपनी मन में सोच रही थी कि बुर से निकलने वाले मदन रस का स्वाद कितना कसैला और नमकीन होता है,,, पहले तो उसे खुद को बड़ा अजीब लग रहा था लेकिन धीरे-धीरे उस स्वाद में वह पूरी तरह से खो चुकी थी,,और वह भी सुमन की तरह अपनी जीत के साथ-साथ उंगली को भी उसके गुलाबी छेद में डालकर अंदर बाहर कर रही थी और उसे एहसास हो रहा था कि वाकई में सब की बुर कितनी अंदर से गर्म होती है,,,।




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इन सब बातों के बारे में सोच कर त्रप्ति फिर से गर्म होने लगी उसके बदन में उत्तेजना का संचार होने लगा था वह मदहोश होने लगी थी,,, वह अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई और झाड़ू लेकर पूरे घर में झाड़ू लगाना शुरू कर दी,,,,,, और सफाई कर लेने के बाद सीढ़ियां चढ़ते हुए वह छत पर पहुंच गईसुबह का समय था इसलिए छत पर ठंडी हवा बह रही थी और वह गहरी सांस लेते हुए ठंडी हवा को अपने अंदर लेने लगी लेकिन यह ठंडी हवा भी उसकी बदन की गर्मी को शांत करने में नाकामयाब हो रही थी,,,तृप्ति दूर-दूर तक नजर घुमा कर देख रही थी चारों तरफ सुबह की कितनी शांति छाई हुई थी उसके घर के पीछे दूर तक मैदानी मैदान था जिसमें जंगली झाड़ियां उगी हुई थी और एक कच्ची सड़क भी गुजरती थी,,, और यही कच्ची सड़क थी जिस पर चलकर वहां ट्यूशन से घर वापस आ रही थी जब संदीप उसे रास्ते मेंपकड़ लिया था और उसके बदन से छेड़छाड़ कर रहा था उसे समय संदीप की हरकत उसे कुछ अजीब तो लगी थी लेकिन बेहद आनंद दायक भी प्रतीत करा रही थी,,,,।




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तृप्ति संदीप के बारे में सोच ही रही थी कि उसकी नजर दूर-दूर झाड़ियों तक पहुंचने लगी जहां पर सुबह के समय औरतें सोच कर रही थी और वही उसे दो लड़के दिखाई दे रही है जो उन औरतों की नंगी गांड को देखकर मत हो रहे थे,,,बड़े लड़कों को देखकर तृप्ति को एहसास हो रहा था कि दुनिया के सारे मर्द एक जैसे ही हैं उन्हें औरतों के खूबसूरत बदन से ही ज्यादा लगाव होता हैवरना एक सो करती औरत को कौन देखना चाहेगा एक औरत तो बिल्कुल भी नहीं देखना चाहेगी लेकिन एक मर्द हमेशा देखना चाहेगा भले ही वह पेशाब कर रही हो यार सोच कर रही हो ऐसी हालात में भी मर्दों को अपनी आंख सेंकने का जुगाड़ मिल जाता है,,,। लड़कों को देखकर तृप्ति अपने भाई के बारे में सोचने लगी,,, उसके मन में ख्याल आने लगा कि उसका भाई भी अगर उसकी आंखों के सामने यह सब चल रहा हो तो जरूर देखेगा क्योंकि आखिरकार वह भी तो एक मर्द है उसका भी आकर्षक औरतों की तरफ जरूर होगा,,,


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इन सब के बारे में सोच ही रही थी कि तभी उसे दूर झाड़ी में एक औरत चोरी छिपे आई हुई नजर आने लगी जिसे छत पर खड़ी होकरइतनी बड़ी गौर से देखने लगी वह ऐसे झाड़ियां में जा रही थी जैसे सबसे नजर बचाकर जा रही हो उसके रवैए में तृप्ति को कुछ अजीब लगा अगर वह सहज रूप से सोच करने के लिए जा रही होती तो इस तरह से घबराई हुई ना होती,,, इसलिएबड़े ध्यान से तृप्ति उस औरत को देखने लगी और वह धीरे-धीरे झाड़ियों की तरफ आगे बढ़ रही थी,,,उसके हाथ में डब्बा जरूर था लेकिन तृप्ति को न जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि वह सोच करने नहीं जा रही थी,,, तभी तृप्ति को दूसरी तरफ से एक लड़का उसी तरफ आता हुआ नजर आने लगा उसके हाथ में डब्बा भी नहीं था,,, दूर से भी तृप्ति को एकदम साफ दिखाई दे रहा था,,, उसे औरत की उम्र 40 से 45 साल के बीच रही होगी और जो दूसरी तरफ से जवान लड़का आ रहा था वह उसके भाई के ही उम्र का था,,, त्रप्ति उसे लड़के को उसे औरत की तरफ आता हुआ देखकर सोचने लगी कि उस लड़के को देखकर वह औरत अपना रास्ता बदल देगी लेकिन जैसे ही वह लड़का उस औरत के करीब पहुंचा,,, दोनों एकदम से रुक गए,,,।



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तभी तृप्ति के आश्चर्य के बीच वह दोनों एक दूसरे से बात कर रहे थे और देखते ही देखते वह लड़का जो उसे औरत के लड़के के उम्र का था वह एकदम से उसे औरत को अपनी तरफ अपनी बाहों में भर लिया यह सब तृप्ति के आश्चर्य को ओर ज्यादा बढ़ा रहा था,,, तृप्ति को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार वह औरत कुछ बोल क्यों नहीं रही है जबकि उन दोनों की उम्र में मां बेटे की उम्र का ही फर्क था,,, इस तरह की हरकत पर एक औरत जरूर सामने वाले पर एक तमाचा जड़ देती लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो रहा था,,, यह सब देखकरतृप्ति की उत्सुकता बढ़ने लगी और वह बड़े गौर से उन दोनों की तरफ देखने लगी,,, तृप्ति के होश तब और उड़ने लगे जब वह लड़काब्लाउज के ऊपर से ही उसकी चुचियों को दबाना शुरू कर दिया यह देखकर तो तृप्ति की खुद की हालत खराब होने लगी पहली बार वह इस तरह का नजारा देख रही थी,,,।





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वह औरत मुस्कुरा रही थीउससे बातें कर रही थी जिसे साफ पता चल रहा था कि वह औरत उसे लड़के को जानती थी दोनों में काफी जान पहचान थी वरना एक अनजान लड़के और औरत के बीच इस तरह से बातचीत और हरकत संभव बिल्कुल भी नहीं था,,, तभी तृप्ति कोऔर तेज झटका लगा जब वह औरत खुद पेड़ की तरफ घूम कर झुक गई और अपनी साड़ी को दोनों हाथों से कमर तक उठा दे और उसकी नंगी गांड एकदम से दिखाई देने लगी दूर से भी तृप्ति को सब कुछ साफ दिखाई दे रहा था,,अब तृप्ति को समझते देर नहीं लगी कि दोनों के बीच किस तरह का रिश्ता है लेकिन उन दोनों के बीच तो उम्र का काफी फर्क था लेकिन फिर भी दोनों एक दूसरे से इतना घुल मिल गए थे शायद जिस की जरूरत ही कुछ ऐसी होती है की उम्र नहीं देखती,,,।





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दूर झाड़ियांके बीच का नजारा देखकर तृप्ति की हालत खराब होने लगी थी उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी और उसकी दोनों टांगों के बीच हलचल भी बढ़ने लगी थी उसकी नंगी गांड कुछ ज्यादा ही बड़ी-बड़ी थी जिसे वह लड़काजो उसके बेटे के ही उम्र का लग रहा था वह अपने दोनों हाथों से उसे औरत की बड़ी-बड़ी गांड को पकड़ कर उसे दबा रहा था दबोच रहा था और घुटनों के बल बैठकर उस पर चुंबन भी ले रहा था यह सब कुछ तृप्ति के लिए बेहद अजीब और अद्भुत था लेकिन बेहद को भावना था औरत से एक मर्द किस तरह से प्यार करते हैं वह तृप्ति पहली बार अपनी आंखों से देख रही थी,,,, यह सब तृप्ति के होश उड़ा रहा था और उसके जोश में वृद्धि भी कर रहा था,,,वह लड़का घुटनों के पास बैठकर बार-बार उसकी गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर गांड की दोनों आंखों पर बारी-बारी से चुंबन कर रहा था और वह औरत पीछे नजर घूमाकर उसे जवान लड़के को देखकर मुस्कुरा रही थी,,,।




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लेकिन पल भर में ही उसकी मुस्कुराहट मदहोशी में बदलने लगी थी और वह औरत अपना हाथ पीछे की तरफ लाकर उसके सर पर रखकर उसे और नीचे जाने के लिए इशारा कर रही थीशायद वह लड़का यह क्रिया को पहले भी कर चुका था इसलिए उसके सारे को एकदम से समझ गया था और वह औरत की अपना टांग उठाकर उसके कंधों पर रख दी थी एक टांग नीचे जमीन पर थी और एकदम उसके कंधों पर थी जिससे उसकी दोनों टांगों के बीच का रास्ता थोड़ा सा ज्यादा खुल गया था इतनी दूर से तृप्ति को उसकी बुर तो नजर नहीं आ रही थी,,, लेकिन अगले ही पल उसे समझ में आ गया कि वह लड़कावही कार्य कर रहा है जो रात को सुमन उसकी बुर के साथ कर रही थी वह लड़का घुटनों के बल बैठ कर उस औरत की बुर को चाट रहा था,,,जैसे ही तृप्ति को इस बात का एहसास हुआ उसकी हथेली खुद ब खुद सलवार के ऊपर से ही उसकी बुर तक पहुंच गई और वह सलवार के ऊपर से ही अपनी बुर को मसलना शुरू कर दी,,,उस लड़के की हरकत से वह औरत पूरी तरह से मदहोश में जा रही थी और वह उसके बालों को कस के पकड़े हुए थी,,,,।



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तृप्ति इस नजारे को देखते हुएअपने चारों तरफ नजर घुमा कर देख भी ले रही थी कि कहीं कोई उसे इस नजारे को देखते हुए तो नहीं देख रहा है वरना लेने का देने पड़ जाएंगे,,, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था वैसे भी,,, उसके घर के थोड़ी दूर पर सुषमा का घर था और बाकी घर दूर-दूर थे और उसकी खुद की छतदूसरों की छत से ज्यादा बड़ी थी इसलिए किसी के भी देखे जाने कीआशंका बिल्कुल भी नहीं थी इसलिए वह निश्चित हो गई और फिर से अपनी नजरों को और अपने ध्यान को उसी झाड़ियां पर केंद्रित कर दी,,, वह लड़का अभी भी उस औरत की बुर को चाट रहा था,,दोनों के बीच की उम्र के अंदर को देखकर सुमन के होश उड़े जा रहे थे उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह लड़का तो पूरी तरह से जवान था ऐसे में उसका आकर्षण लड़कियों की तरफ बढ़ना चाहिए लेकिन वह पूरी तरह से औरत के आकर्षण में डूबता चला गया थाक्या ऐसा हो सकता है कि एक जवान लड़का अपनी ही मन की उम्र की औरत क्या आकर्षण में बंध जाए और अगर ऐसा होता होगा तो क्यों होता होगा,,,यह सब सोचते कि उसका दिमाग काम करना बंद कर दिया था उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था,,,।




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तृप्ति को दूसरी औरतों भी सो करती हुई दिखाई दे रही थी लेकिन उन औरतों सेउसे औरत के बीच की दूरी काफी ज्यादा थी और ऐसा लग रहा था कि यह जगह उन दोनों के लिए बेहद सुरक्षित थी और उसे जगह पर दोनों पहले भी इस तरह का आनंद ले चुके थे क्योंकि उनके इर्द-गिर्द कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था,,और जिस तरह से दोनों आपस में जाकर मिले थे निश्चित था कि दोनों का वहां मिलना चाहिए था पहले से ही तभी तो वह दोनों एक ही जगह पर चलते चले जा रहे थे,,, जो कुछ भी हो लेकिन इस समय तो दोनों जवानी का मजा लूट रहे थे,,,, उसे औरत के चेहरे के बदलते हाव भाव को देखकरतृप्ति इतना तो समझ गई थी कि उसे लड़के की हरकत से वह मदहोश हुए जा रही है उसे मजा आ रहा है,,,,,वह लड़का भी औरत की बुर चाटने में बुरी तरह से माहिर था इसलिए तो अपनी जीभ से उसे पूरी तरह से आनंदित किया जा रहा था जैसा कि सुमन उसे रात में मजा दी थी वैसा ही इस समय वह लड़का उस औरत को मजा दे रहा था। थोड़ी देर तक दोनों इसी तरह से मजा लेते रहे लेकिन तभी वह औरत उसे उठने का इशारा करने लगी और थोड़ी देर में वह उठकर खड़ा हो गया और अपने पेंट का बटन खोलने लगा।



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यह देखकर तृप्ति की हालत बहुत ज्यादा खराब होने लगी क्योंकि अब दोनों के बीच चुदाई का खेल शुरू होने वाला था,,, लेकिन तभी वह औरतउसे लड़की की तरह खुद घुटनों के पास बैठ गई और अपने हाथों से उसके पेंट का चैन खोलने लगी और अपने हाथ से उसके लंड को बाहर निकाल कर सीधा उसे मुंह में भर ली,,, यह देख कर तो तृप्ति की सांस अटकने लगी,,, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था जो काम घर की चार दिवारी के अंदर रहकर करते हैं वही काम को या दोनों घर के बाहर खुले मैदान में झाड़ियों के बीच कर रहे थे,,, इतनी दूर से तृप्ति को उस लड़के का लंड नजर नहीं आ रहा थालेकिन इतना दिखाई दे रहा था कि उसे मुंह में लेकर वह औरत एकदम मस्त हुए जा रही थी पर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह उस लंड को खा जाएगी,,, उस औरत की मस्ती को देखकर तृप्ति के मन में फिर से शंका पैदा होने लगी कि क्या इस उम्र की औरत अपने बेटे की उम्र के लड़के के अंग के साथ संतुष्ट हो सकती है,,, और शायद हो सकती होगी तभी तो दुनिया की नजरों से बचकर यह औरत मजा लेने के लिए झाड़ियों में आई थी,,।



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तृप्तिमदहोश कर देने वाली नजारे को देखकर सलवार के ऊपर से अपनी बुर को अपनी हथेली में जोर-जोर से दबोच रही थी मसल रही थी,,, ऐसा करने में उसे भी मजा आ रहा था,,,कुछ देर तक कुछ औरत इसी तरह से मजा लेती रही और फिर अपने आप ही उठकर खड़ी हो गई और फिर से झाड़ी पकड़ कर घोड़ी बन गई और अपनी बड़ी-बड़ी गांड को ऊपर की तरफ उठा दी हालांकि ऐसा करने में उसकी साड़ी ठीक तरह से हो गई थी और उसकी नंगी गांड साड़ी के अंदर छुपा रही थी लेकिन इस बार उसेलड़के ने अपने हाथों से साड़ी उठाकर उसे उपर उठा दिया था और फिर से उसकी नंगी गांड एक बार फिर से उजागर हो गई थी,,,उसकी नंगी गांड देखकर एक बार फिर उसे लड़के ने उसकी गांड पर बारी-बारी से चपत लगाया,,, और गांड पर चपत लगते ही वह औरत फिर से पीछे मुड़कर देखने लगी,,, और थोड़ा नाराजगी दर्शाते हुए उसे मुख्य कार्य को करने के लिए बोली और तुरंत वह लड़काठीक उसके पीछे खड़ा हो गया और नीचे की तरफ झुक कर उसके गुलाबी छेद में अपना लंड डालकर अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया,,,,।



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वैसे तो इतनी दूर से ना तो औरत की बुर दिखाई दे रही थी ना ही उस लड़के का लंड दिखाई दे रहा था लेकिन भी उसकी आगे पीछे होती हुई कमर को देखकर तृप्ति समझ गई थी कि वह लड़का उसकी चुदाई कर रहा है,,, इस समय दोनों की उम्र का फर्क तृप्ति को इस बात से पता चल रहा थाऔर अच्छी तरह से समझ रही थी कि इस उम्र का क्या महत्व होता है इस उम्र में वह औरत अपनी मर्जी से उस लड़के से चुदवा रही थी,,, वह लड़का अपनी तरफ सेऐसा कोई कार्य नहीं कर रहा था जिससे वह नाराज हो जाए और वह लड़का उस औरत के दिशा निर्देश पर ही काम कर रहा था,,,जैसा जैसा वह बोल रही थी वैसा वैसा हुआ लड़का कर रहा था जिससे साफ जाहिर हो रहा था कि इस उम्र में एक जवान लड़के पर औरत का कितना दब दबा बना रहता है,,,,।




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यह नजारा तृप्ति को पूरी तरह से मदहोश कर दिया था इस समय उसे भी चुदवाने का बहुत मन कर रहा था हालांकि इस खेल में वह पूरी तरह से अनाड़ी थी कच्ची खिलाड़ी थी उसे नहीं मालूम था कि चुदवाने में कैसा महसूस होता है लेकिन इतना तो समझ गई थी कि परम आनंद की अनुभूति होती है,,,,वह लड़का जोर-जोर से अपनी कमरिया रहा था तकरीबन 10 मिनट बाद वह लड़का उसे औरत से एकदम से अलग हो गया और अपने लंड को पेट में वापस डाल दिया वह औरत की अपनी साड़ी को ठीक करके मुस्कुराते हुए उसकी तरफ अच्छी और शायद फिर से मिलने का वादा करके वहां से चलती बनी और उसके जाते ही तृप्ति का भी वहां खड़े रहना अब ठीक नहीं था क्योंकि उसके बदन में भी उत्तेजना की लहर उठ रही थी और वह सीधा सीढ़ियां उतरकर नीचे आई और सीधा बाथरूम में घुस गई,,,।



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बाथरूम में प्रवेश करते ही वह अपने बदन से सारे कपड़े को उतार कर एकदम नंगी हो गई और अपनी बुर की हालत को देखने लगी क्योंकि पूरी तरह से उसके ही मदन रस से चिपचिपी हो गई थी वह अपनी हथेली को अपनी बुर पर रखकर उसे जोर-जोर से मसलने लगी जैसा कि सुमन उसकी बुर को मसल रही थी,,,और देखते ही देखते हैं उसकी आंखें धीरे-धीरे बंद होने लगी और वह धीरे-धीरे अपनी उंगली को अपनी बुर के अंदर प्रवेश कराने लगी,,, और धीरे-धीरे उसे अंदर बाहर करने लगी ऐसा करने में उसे मजा आने लगा ।थोड़ी देर बाद वापस संतुष्ट हो गई और नहा कर वापस बाहर निकल गई लेकिन आज वह अपने कमरे तक जाने में ना तो किसी कपड़े का सहारा ली और ना ही टॉवल अपने बदन पर लपेटी,,,एकदम नंगी ही वह अपने कमरे तक गई क्योंकि घर पर कोई नहीं था इसलिए इस मौके को पूरा फायदा उठा लेना चाहती थी,,,वैसे भी घर में नंगी होकर घूमने में उसे बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी बहुत हल्का महसूस कर रही थी,,,।





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थोड़ी देर बाद वह तैयार हो गई और खाना बनाने लगी क्योंकि वह जानती थी दोपहर तक उसकी मां और उसके भाई दोनों आ जाएंगे,,खाना बनाते हुए अपने मन में सोच रही थी कि अगर एक दिन का समय और मिल जाता तो कितना मजा आता आज भी वह सुमन के घर पर जाकर जवानी का मजा लूटती,,,,।दोपहर तक उसकी मां और उसके भाई भी घर पर आ गए थे वह दोनों भी एक नए अनुभव के साथ वापस लौटे थे।
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
 

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Well-Known Member
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सुगंधा और अंकित दोनों मां बेटे मार्केट से वापस घर आ चुके थे,,,, मार्केट में जो कुछ भी हुआ था वह बेहद दिलचस्प था जिस मां बेटे दोनों आपस में कुछ ज्यादा ही खुलने लगे थे दुकान के अंदर जिस तरह से वह काउंटर वाली लेडी दोनों को प्रेमी प्रेमिका समझ रहे थे इस बात से सुगंधा पूरी तरह से हैरान थी,,, एहसास होने लगा था कि क्या वाकई में वह अपने बेटे की मन नहीं लगती क्या दोनों की उम्र में कुछ ज्यादा अंतर दिखाई नहीं देता ऐसा ही तो है तभी तो वह काउंटर वाली लेडी दोनों को प्रेमी प्रेमिका समझ रही थी एक बार भी उसने यह नहीं सोचा कि यह दोनों मां बेटे की हो सकते हैं ऐसा क्यों आखिरकार काउंटर वाली लेडी दोनों के बारे में ऐसा क्यों सोची,,,, घर आने पर सुगंधा को यही सब सवाल पूरी तरह से परेशानकर रहे थे,,, लेकिन इस परेशानी में भी राहत की बात यह थी कि उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बावजूद भी उसके बदन का रखरखाव पूरी तरह से संजोया हुआ था,,, बदन में अभी भी कसावट किसी जवान औरत की तरह ही थी। तनी हुई चूचियां किसी भी तरह से जरा सी भी लचकी हुई नहीं दिखाई देती थी,,, मानसर चिकनी कमर और कमर के दोनों तरफ हल्की सी कटी हुई लकीर जो सुगंधा की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे। नितंबों का उभार एक अद्भुत आकार लिया हुआ था,,, जोकि कई हुई साड़ी में पूरी तरह से आकर्षण का केंद्र बिंदु बन जाता था,,, और सबसे बड़ा कारण यह था कि आज तक पति के देहांत के बाद उसने अपने शरीर को किसी भी गैर मर्द को हाथ नहीं लगाने दी थी। और यही सबसे बड़ी वजह भी थी कि अभी तक वह पूरी तरह से जवान थी,,,,।




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घर का काम करते समय उसका दिल और दिमाग पूरी तरह से काबू में नहीं था वह अपने बेटे पर हैरान थी कि वह काउंटर वाली लेडी तो दोनों को प्रेमी प्रेमिका समझ रही थी लेकिन इस मौके का फायदा उसका बेटा पूरी तरह से उठा रहा था उसने एक बार भी उसे काउंटर वाली लाडी को यह नहीं बताया कि वह दोनों प्रेमी प्रेमिका नहीं बल्कि मां बेटे में बल्कि वह काउंटर वाली लेडी जो समझ रहा थीवउसे वही समझने भी दिया बार-बार उसे मैडम कहकर संबोधन कर रहा था जिससे सुगंधा की हालत और ज्यादा खराब हो रही थी। दुकान में बिताए हुए हर एक पल के बारे में हर एक बातों के बारे में सोचकर सुगंधा की सांसें ऊपर नीचे हो रही थी। कुर्ता पजामा खरीद लेने के बाद उसे काउंटर वाली दीदी ने उसके पास जो वस्त्र दिखाया था उसे देखकर तो सुगंधा के होश वाकई में एकदम उड़ गए थे और उसे वस्त्र के बारे में सोचकर इस समय सुगंधा पानी पानी हो रही थी। वह अपने मन में यही सोच रही थी कि उस छोटे से गाउन में वह सच में स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा नजर आती केवल प्रॉपर्टी और वह गाऊन,,,उफफफ,,,,, मजा आ जाता,,,,, लेकिन वह जानती थी कि उसे समय उसे खरीद पाना कितने शर्म वाली बात थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह काउंटर वाली लेडी दोनों को पहचानते नहीं से जानते नहीं तो फिर भी उसके सामने उसे न जाने क्यों शर्म महसूस हो रही थी,,, इस कारण को वह नहीं समझ पा रही थी लेकिन इसका मुख्य कारण नहीं था कि सुगंधा चाहे जो भी हो एक मां थी इसलिए एक मां होने के नाते मां का रिश्ता उसे रोक रहा था इसलिए वह अपने बेटे के सामने शर्म के मारे उस गाउन को नहीं खरीद पाई।





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पहले से ही तय था कि आज रात का खाना नहीं बनेगा इसलिए मार्केट से ही खाने के लिए नाश्ता लेकर आए थे जिस मां बेटे दोनों साथ मिलकर खाए खाना न बनने के कारण मांजने के लिए बर्तन भी नहीं था,,, इसलिए केवल झाड़ू लगाकर वह कमरे की सफाई कर दी,,, इस दौरान अंकित टीवी देख रहा था जिसमें एक रोमांटिक मूवी चल रही थी। आमिर खान और जूही चावला की कोई फिल्म थी जिसका नाम अंकित को नहीं मालूम था वह केवल देख रहा था थोड़ी ही देर में उसकी मां भी टीवी देखने के लिए वहां आ गई और वह भी बैठ कर देखने लगी,,,, इस दौरान फिल्म में एक दृश्य था जिसमें नायक नायिका के खूबसूरत चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर उसके लाल-लाल होठों पर अपने होंठ रखकर किस करता है और यह दृश्य देखकर मां बेटे दोनों एकदम से गनगना गए थे,,,, अंकित तो अपने मन में यही सोच रहा था कि अच्छा हुआ कि यह दृश्य उसकी मां के सामने आया और वह मन ही मन खुश हो रहा था उसे एहसास हो रहा था कि इस दृश्य को देखकर उसकी मां के मन में बहुत सी बातें चल रही होगी,,, और ऐसा ही था अपने बेटे के सामने हीरो हीरोइन के चुंबन वाले दृश्य को देखकर उसके बदन में भी कुछ-कुछ होने लगा था,,, वैसे तो अपने बेटे की मौजूदगी में यह दिल से देखने में उसे शर्म तो महसूस हो रही है कि लेकिन उसे भी अच्छा लग रहा था कि यह दिल से देखते हुए उसके साथ में उसका बेटा भी है। इस दृश्य को देखकर सुगंधा की भी हालत खराब हो रही थी वैसे तो इस विषय में कोई ऐसी ज्यादा विषय वस्तु नहीं थी जिसे देखते ही इंसान उत्तेजित हो जाए लेकिन इस समय मां बेटे दोनों एक अलग ही समय से गुजर रहे थे जिसमें इस तरह के दृश्य बदन में उत्तेजना और जवानी की गर्मी को कुछ ज्यादा ही बढ़ा देते थे और यही हाल इस समय दोनों मां बेटे का भी था,,, सुगंधा तिरछी नजर से अपनी बेटी की तरफ देख ले रही थी वह भले ही टीवी की तरफ देख रहा था लेकिन वह जानती थी कि उसका मन कहीं और भ्रमण कर रहा होगा,,,, और जरूर उसका बेटा उसकी दोनों टांगों के बीच की स्थिति का जायजा ले रहा होगा और यही देखने के लिए सुगंध भी अपने बेटे की दोनों टांगों के बीच देख रही थी तो पेंट में हल्का सा उभार बनता हुआ नजर आ रहा था जिसे देखकर सुगंधा के तन बदन में आग लगने लगी।





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सुगंधा को समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे आगे बढ़ा जाए,,, वैसे तो दोनों के बीच ऐसा बहुत कुछ हो चुका था जिससे आगे बढ़ा जा सकता था लेकिन मर्यादा की दीवार बीच में रोड़ा बनकर खड़ी थी इस समय अंकित खामोश था सुगंध को लगने लगा था कि बातचीत का दौर उसी को ही शुरू करना होगा इसलिए वह टीवी की तरफ देखते हुए बोली।


देखा हीरोइन की हालत कैसे खराब हो गई।
(जैसे ही यह शब्द अंकित के कानों में सुनाई दिए उसके तन बदन में भी अजीब सी हलचल होने लगी उसे समझ में आ गया कि उसकी मां भी वही सोच रही है जैसा कि वह सोच रहा है इसलिए वह भी एकदम से उत्साहित होता हुआ बोला)

लेकिन ऐसा क्यों हीरोइन की हालत खराब क्यों हो गई,,,, चुंबन करने में ऐसा क्या हो गया? (अंकित अच्छी तरह से जानता था चुंबन के अर्थ को चुंबन के महत्व का और उसकी परिभाषा को लेकिन फिर भी जानबूझकर अपनी मां के सामने नादान बनने की कोशिश कर रहा था जैसा कि वह अपनी नानी के सामने नादान बनाकर अपनी नानी की बुर पर पूरी तरह से झंडा गाड दिया था। अंकित यहां पर भी कुछ ऐसा ही चाहता था,,,, अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा बोली,,,)


अरे बेवकूफ चुंबन का भी अपना ही अलग महत्व है,,,, प्रेमी प्रेमिका के बारे में जानता है लेकिन चुंबन के बारे में नहीं जानता,,,, उसे काउंटर वाली लाडी को इतना नहीं बोल पाएगा कि वह मेरी प्रेमिका नहीं मेरी मम्मी है,,,।





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क्योंकि मुझे वहां अच्छा लग रहा था,,,, तुमको प्रेमिका के रूप में पाकर,,,,(टीवी की तरफ देखते हुए अंकित अपने मन की बात अपनी मां से बोल गया जिसे सुनकर,,, मन ही मन बहुत प्रसन्न हुई और वह मुस्कुराते हुए बोली,,,)

तब तो आप तेरे साथ कहीं जाने में मुझे डर लगेगा,,,।

ऐसा क्यों,,,?

क्योंकि अगर कोई पति-पत्नी समझ लिया तो।
(पति पत्नी वाली बात सुगंधा बहुत हिम्मत करके बोल गई थी,,,, और अपनी मां की यह बात सुनकर अंकित अच्छी तरह समझ रहा था कि उसकी मां को क्या चाहिए और उसकी बात से बहुत खुश भी हो रहा था और मुस्कुराते हुए बोला,,,)

अगर सच में कोई ऐसा समझेगा तो मैं अपने आप को बहुत खुश कीस्मत समझुंगा,,,,,।

खुशकिस्मत,,,,,!(आश्चर्य से अंकित की तरफ देखते हुए बोली)


तुम्हारी जैसी पत्नी मिलना सच में बहुत किस्मत की बात है और जिसकी ऐसी खूबसूरत बीवी हो वह इंसान तो दुनिया में सबसे ज्यादा किस्मत वाला होगा,,,,।


फिल्मी डायलॉग मार रहा है,,,, इसीलिए फिल्म देखता है,,,,।


यह कोई फिल्मी डायलॉग नहीं है मैं सच कह रहा हूं तुम खुद नहीं जानती कि तुम क्या हो,,,, अच्छा तुम बता रही थी ना चुंबन करने से ऐसा क्या हो गया कि वह घबरा गई,,,,(बातों का सिलसिला किसी और तरफ जा रहा था इसलिए अंकित एकदम से बातों के दौर को पटरी पर लाते हुए बोला,,,, जिसे सुनकर सुगंधा गहरी सांस लेकर आराम से सोफे पर बैठते हुए बोली,,,)






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हीरोइन की हालत को तूने शायद देखा नहीं वह कितनी घबरा गई थी उसके बदन में कंपन हो रहा था और यह शायद उसका जीवन का पहला चुंबन था तभी वह एकदम से शर्मा गई थी।


लेकिन उसके चेहरे से तो लग रहा था कि उसे अच्छा लगा मजा आया,,,,

ओहहहह मतलब औरतों के चेहरे के हाव-भाव को पढ़ना तु अच्छी तरह से जानता है,,,,।

ऐसा नहीं है फिल्म में भी देखो दोनों बहुत खुश दिखाई दे रहे हैं अगर ऐसा कुछ होता तो हीरोइन गुस्सा होकर चली जाती,,,,,।


बिल्कुल ठीक समझा,,,,(मुस्कुराते हुए) इसका मतलब तु सच में बड़ा हो गया है।

वह तो मैं हो ही गया हूं,,,, लेकिन एक बात मुझे समझ में नहीं आई की मर्द औरत को चुंबन क्यों करता है ऐसा क्या हो जाता है कि उसे चुंबन करना पड़ता है और वह भी होठों पर,,,,।

(अपने बेटे के इस प्रश्न पर सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी क्योंकि वह बेहद गहरी बातें पूछ रहा था,,, सुगंधा को भी ऐसा ही लग रहा था कि उसका बेटा शायद चुंबन के बारे में ज्यादा कुछ जानता नहीं है,,,, इसलिए इस तरह का सवाल पूछ रहा है लेकिन उसके बेटे के इस तरह के सवाल में वह मदहोश हो रही थी उसके दोनों टांगों के बीच की पतली दरार मे रीसाव हो रहा था। लेकिन वह अच्छी तरह से जानती थी की मां बेटे के बीच की दूरी खत्म करने का बस यही एक जरिया है बातचीत ,,,इस तरह की बातें ही दोनों के बीच से मां बेटे वाली झिझक को दूर कर सकती थी। इसलिए वह अपने बेटे से बोली।)





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चुंबन प्यार दर्शाता है,,, मर्द और औरत के बीच का,,,, जब मरद बहुत खुश होता है तो औरत को चुंबन कर लेता है और चुंबन करने के स्थान भी अलग-अलग होते हैं कोई दुलार से चुंबन करता है तो माथे पर चुंबन करता है कोई गल पर करता है और जब आपस में बहुत गहरा रिश्ता हो तो वह उसके होठों पर चुंबन कर लेता है,,,, किसी को कोई जब अच्छा लगने लगता नहीं तो वह उसके होठों पर उसके गाल पर चुंबन करते हैं वैसे चुंबन के भी कई रूप होते हैं।

मैं कुछ समझा नहीं,,,,(वैसे तो अंकित सब कुछ समझ रहा था लेकिन जानबूझकर अपनी मां के सामने नाटक कर रहा था और अपनी मां किस तरह की बातें सुनकर उसके बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी खास करके उसके दोनों टांगों के बीच का स्थान पूरी तरह से हलचल मचा रहा था)

सामान्य तौर पर मर्द औरत की गाल पर ही जमीन करता है लेकिन जब दोनों का रिश्ता कुछ ज्यादा ही गहरा हो या दोनों के बीच कुछ होने वाला हो तो मर्द औरत के होठो पर चुंबन करता है,,,,।
(अपने बेटे के साथ इस तरह की बातें करने में सुगंधा के माथे से पसीना टपक रहा था उसकी हालत खराब हो रही थी उसके मन में घबराहट की हो रही थी लेकिन उससे ज्यादा सुगंधा के मन पर उत्तेजना दबाव बना रही थी,,ईस तरह की बातें करने के लिए,,,, इसलिए वह चाहकर भी अपने आप को नहीं रोक पा रही थी। अपनी मां की बात को अंकित अच्छी तरह से समझ रहा था लेकिन फिर भी और फिर से अनजान बनने का नाटक करते हुए बोला,,,)


कुछ होने वाला हो,,, मेरे को समझा नहीं कुछ होने वाला हो इसका क्या मतलब है,,,!
(अंकित के सवाल को सुनकर सुगंधा मन ही मन मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,,)

मैं बात नहीं सकती लेकिन समय आने पर तु खुद ही समझ जाएगा।

क्या मम्मी कैसा समय मुझे कुछ तो बताओ,,,।

कहा ना मैं नहीं बता सकती समय आने पर तु खुद समझ जाएगा,,,, आज गर्मी थोड़ा ज्यादा है क्यों ना आज छत पर चलकर सोया जाए वहां पर बहुत ठंडी हवा चलती है,,,।


मैं भी यही सोच रहा था,,,, लेकिन इससे पहले तुम्हें कुछ और पैजामा पहनकर उसका नाप चेक करना है कुछ भी गड़बड़ हुआ तो वापस हो जाएगा,,,,।

अरे हां में तो भूल ही गई रुक अभी पहन कर देखती हूं,,,,।

कहां देखोगी,,,,?

अपने कमरे में और कहां,,,

यही पहन कर देख लो ना मैं भी देख लूंगा,,,,।

(अंकित की बात सुनकर सुगंधा शर्मा गई ओर शर्माते हुए बोली,,,,)

धत् मुझे तेरे सामने शर्म आती है,,,।

अरे सर मैं कैसी सी पहन कर देखना ही तो है और भूल गई मैं तुम्हारे लिए चड्डी और ब्रा लाया था मेरे सामने ही तो पहन कर नाप देखी थी।


तू सच में बहुत जिद्दी है,,,, अच्छा रुक मैं यहीं पर लेकर आती हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही सुगंधा सोफे पर से उठकर खड़ी हो गई,,, उसकी भारी भरकम गोलाकार गांड सोफे पर जिस जगह पर बैठी हुई थी वहां पर हल्का सा गड्ढा बन गया था जिसे देखकर अंकित मुस्कुराने लगा और अपने मन में ही बोला,,, मम्मी की गांड कितनी जानता है सोफे की तो किस्मत बन जाती होगी,,,, उसका यह सोचा था की सुगंधा उस कमरे से निकल कर अपने कमरे की तरफ जा चुकी थी। अंकित का दिल अब दोनों से धड़क रहा था क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि उसकी मां उसकी आंखों के सामने कुर्ता और पैजामा पहनकर देखेगी और अपने मन नहीं सोच रहा था कि कुर्ता पजामा पहनने के लिए उसे अपने बदन के सारे कपड़े उतारने होंगे । केवल ब्रा और पैंटी को छोड़कर काश मम्मी साड़ी के अंदर पेंटि ना पहनी हो और अनजाने में उसके सामने पेटिकोट उतार दे तो कितना मजा आ जाए यही सब सोच कर अंकित मस्त हुआ जा रहा था। और दूसरी तरफ सुगंधा का भी बुरा हाल था,,,, अपने कमरे में पहुंच चुकी थी और अलमारी में से कुर्ता पजामा निकाल रही थी लेकिन कुर्ता पजामा निकलते हुए अपने मन में अगले पल के बारे में सोच रही थी,,, उसका दिल बहुत जोरों से धड़क रहा था और मां उत्साहित था।

भले ही वह अपने बेटे के सामने कुछ भी बोल रही थी लेकिन उसका मन भी अपने बेटे के सामने कपड़े उतार कर कुर्ता और पजामा पहनने की इच्छा हो रही थी,,, अपने बेटे के सामने कपड़े बदलने का मजा ही कुछ और था इस बात का एहसास तुझे अच्छी तरह से हो गया था लेकिन इस बात का डर भी था कि कहीं उसका बेटा उसे दिन की तरह उसके बदन से छेड़खानी है ना करना शुरू कर दे क्योंकि उसे अच्छी तरह से याद था कि पेंटि का नाप लेते समय अपने बेटे को अपने पीछे महसूस करके उसके पैर लड़खड़ा गए थे और वह एकदम से गिरने को हुई थी लेकिन तभी उसका बेटा हाथ आगे बढ़ाकर उसे गिरने से तो बचा लिया था लेकिन इस मौके का फायदा उठाते हुए वह उसकी नंगी बुर पर अपनी हथेली रखकर उसे ज़ोर से मसल दिया था जिसका एहसास उसे अभी तक था,,,, उस पल को याद करके इस समय उसकी बुर पानी छोड़ रही थी,,,, भले ही वह इस बात से घबरा रही थी कि उसका बेटा उसके बदन से छेड़खानी ना करते लेकिन मन ही मन हुआ यही चाह रही थी कि उसका बेटा थोड़ी छुट-छाट उसके बदन से ले ताकि दोनों आगे बढ़ सके,,,, अलमारी में से कुर्ता पजामा निकालकर वह ड्राइंग रूम में पहुंच गई जहां पर अंकित टीवी देख रहा था लेकिन अब वह टीवी बंद कर चुका था,,, और अपने बेटे की स्थिति को देखकर उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह बड़ी बेसब्री से उसके आने का इंतजार कर रहा था तभी तो कमरे में दाखिल होते ही अंकित का चेहरा खिल उठा था।

रात के 11:30 बज रहे थे तृप्ति के घर पर न होने की वजह से दोनों पूरी तरह से निश्चित थे घर का मुख्य द्वार बंद था उसे पर कड़ी लगी हुई थी और घर में दोनों के सिवा तीसरा कोई नहीं था इस बात का एहसास दोनों के बाद में कुछ ज्यादा ही उत्तेजना का असर दिखा दे रहा था दोनों मदहोश हो रहे थे और कपड़े बदलने की बात से तो सुगंधा की मोटी मोटी जांघों में थरथराहट महसूस हो रही
थी,,,, अपनी मम्मी के हाथ में कुर्ता पजामा देखते ही वह अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और अपनी मां के हाथ से कुर्ता पजामा को ले लिया और उसपर अपनी हथेली को फिराता हुआ बोला,,,,।

वह कितना मुलायम कपड़ा है सच में तुम्हें ऐसा ही लगेगा कि तुमने कुछ नहीं पहनी हो आज देखना तुम्हारा रूप और ज्यादा निखर कर सामने आएगा अभी तक तुम साड़ी में ही खूबसूरत लगती थी लेकिन तुम नहीं जानती कि तुम किसी भी कपड़े में खूबसूरत लगोगी।(एक बार फिर से अंकित तारीफ के पुल बांध रहा था और जिसे सुनकर सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना की फुहार उठ रही थी उसे अपने बेटे के मुंह से इस तरह की बातें बड़ी अच्छी लग रही थी वह मन ही मन मुस्कुरा रही थी लेकिन चेहरे पर थोड़ी घबराहट के भाव थे क्योंकि उसे अपनी बेटी के सामने अपनी साड़ी उतारना था लेकिन ऐसा करना जरूरी भी था मंजिल तक पहुंचने के लिए,,, कुछ देर तक दोनों के बीच खामोशी छाई रही अंकित अपने हाथ में कुर्ता पजामा लेकर अपनी मां की तरफ देख रहा था और उसकी मां शर्म से अपनी नजर को नीचे झुकाए खड़ी थी,,,, यह देखकर चुप्पी तोड़ते हुए अंकित बोला,,,)

क्या हुआ साड़ी उतारो खड़ी क्यों हो फिर हमें छत पर भी तो चलना है सोने आज तुम यही पहन कर सोना देखना कितना अच्छा लगता है तुम्हें भी एकदम आराम दायक लगेगा,,,,।

(अंकित की बात सुनकर सुगंधा शर्मा से पानी पानी हो रही थी क्योंकि वह एकदम खुलकर उसे साड़ी उतारने के लिए बोल रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे वह उसे चोदने के लिए कपड़े उतारने को बोल रहा हो,,,, सुगंधा का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था वह अंकित की तरफ देखते हुए बोली,,,)

शर्म आ रही है मुझे,,, तेरे सामने कैसे,,,,,(घबराहट भरे स्वर में सुगंधा बोली,,,, जिसे सुनकर अंकित उसे उत्साहित करता हुआ बोला)

क्या मम्मी तुम भी मेरे सामने पेंटी और ब्रा बदल सकती हो,,,, और कुर्ता पजामा पहनने में शर्म आ रही है और ऐसा तो तुम बंद कमरे में बहुत बार करती होगी कपड़े उतारना पहनना ऐसा समझ लो कि कमरे में कोई नहीं है,,,,, फिर आराम से हो जाएगा।

(अंकित की बात सुनकर सुगंधा अपने मन में ही बोली देखो कितना चालक है बिना कपड़ों के देखने के लिए कितना मस्का लगा रहा है,,,, लेकिन फिर भी जरूर उसके बदन में आकर्षण है कुछ ऐसी बातें तभी तो एक जवान लड़का उसे बिना कपड़ों के देखने के लिए तड़प रहा है इस बात को अपने मन में सोचकर उसका मन उत्साहित होने लगा और फिर वह धीरे से अपनी साड़ी के पल्लू को अपने कंधे पर से नीचे गिरा दी और साड़ी का पल्लू नीचे गिरते ही उसकी मदमस्त कर देने वाली चौड़ी छाती एकदम से उजागर हो गई,,,, जो की ठीक अंकित की आंखों के सामने थी और ट्यूबलाइट की दूरी और रोशनी में सब कुछ साथ दिखाई दे रहा था कपड़े उतारने से पहले सुगंधा अपने मन में सोच ली थी कि वह अपने बेटे के सामने कपड़े जरूर उतरेगी लेकिन उसकी तरफ देखेगी नहीं क्योंकि अगर वह उसकी तरफ देख लेगी तो उससे ऐसा नहीं हो पाएगा,,,, अंकित की हालात पूरी तरह से खराब होने लगी थी अपनी मां की भरी हुई छाती देखकर उसके टांगों के बीच की हलचल बढ़ने लगी थी ऊपरी हुई छाती उसके पेंट के आगे वाले भाग को उभार दे रहा था,,,, उसे इस बात की खुशी थी कि उसकी मां उसके सामने कपड़े उतारने के लिए तैयार हो गई थी,,, सुगंधा साड़ी के पल्लू को हाथ में लेकर उसे धीरे-धीरे अपनी कमर से खोल रही थी और उसकी चूड़ियों की खनक से पूरा कमरा मदहोश हुआ जा रहा था एक नशा सच्चा रहा था पूरे वातावरण में मदहोशी की रंगीनियत फैल रही थी जिसे महसूस करके मां बेटे दोनों उत्तेजित हुए जा रहे थे,,,,।

अपनी मां को कपड़े उतारते हुए देखने के लिए अंकित अपनी मां के ठीक सामने खड़ा था और उसे सब कुछ दिखाई दे रहा था इसलिए तो उसने टीवी भी बंद कर दिया था ताकि पूरा ध्यान उसकी मां पर ही रहे देखते-देखते सुगंधा शर्म से पानी होते हुए अपनी साड़ी को कमर से खोल चुकी थी और उसे सोफे पर फेंक दी थी इस समय वह अंकित की आंखों के सामने ब्लाउज और पेटीकोट में थी पेटिकोट इतना कसा हुआ था कि उसकी मां की गांड की दोनों आंखें पेटीकोट में भी एकदम उभरी हुई नजर आ रही थी और अपने आकार को अच्छी तरह से दर्शा रही थी कुछ देर पहले अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि काश उसकी मां साड़ी के नीचे पेंटिं ना पहनी हो तो कितना अच्छा हो लेकिन पेटीकोट में ही अपनी मां को देखकर उसे निराशा हाथ लगी थी क्योंकि कई हुई पेटीकोट में उसकी पैंटी की लाइन भी एकदम साफ झलक रही थी जिससे वह समझ गया था कि उसकी मां पेंटिं भी पहनी है। साड़ी का आखिरी छोर कमर से खोलते हुए सुगंधा घूम गई थी और उसकी पीठ अंकित की तरफ हो गई थी लेकिन वह ऐसा जानबूझकर की थी क्योंकि वह अपने नितंबों के आकर्षण को अच्छी तरह से जानती थी और समझती थी,,,। इसलिए वह जानबूझकर अपने बेटे की आंखों के सामने अपनी गांड परोस दी थी उसे अपनी गांड दिख रही थी कसी हुई पेटीकोट में उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उसकी गांड की दोनों फांक एकदम साफ नजर आती थी। इसलिए वह चाहती थी कि उसका बेटा उसकी गांड को प्यासी नजरों से देखें,,,,।

और उसका सोचना सच साबित हो रहा था,,,, सुगंधा की हालत तो खराब हुई थी अंकित की भी हालात पूरी तरह से खराब हो चुकी थी वह प्यासी नजरों से अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड को देख रहा था उसका मन तो कर रहा था कि आगे बढ़कर वह पीछे से अपनी मां को अपनी बाहों में भर ले और उसकी गांड पर अपने लंड को जोर-जोर से रगड़ कर अपना पानी निकाल दे लेकिन किसी तरह से वह अपने आप पर काबू किए हुए था,,,, सुगंधा वैसे तो साड़ी उतारते समय अपने बेटे की तरफ ना देखने का अपने आप से ही वादा की थी लेकिन जिस तरह से हालात बन रहे थे वह तिरछी नजर से पीछे की तरफ अपने बेटे की तरफ देखी तो उसका सोचा एकदम सच साबित हो रहा था और वह एकदम उत्साहित होने लगी थी क्योंकि इस समय उसके बेटे की नजर उसकी गांड पर ही टिकी हुई थी और वह जी भरकर अपने बेटे को अपनी गांड के दर्शन कर भी रही थी साड़ी को सोफे पर फेंकने के बाद वह अपने दोनों हाथ को कमर पर रखकर गहरी सांस लेते हुए अपने भजन को एकदम सीधा कर ली थी जिसे उसके नितंब्बों का उभार और ज्यादा बढ़ चुका था अपनी मां की हरकत को देखकर अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि कहीं उसकी मां उसे चोदने के लिए न बोल दे क्योंकि अंकित को भी एहसास हो रहा था कि उसकी मां के बदन में जवानी छा रही थी वह मदहोश हो रहे थे और वह अपने मन में अपने आप से ही बात कर रहा था कि अगर मन हो तो चुदवाने का बोल दो इस तरह से तड़पाने से तुम्हें क्या मिलेगा ,,,,।

सुगंधा अपनी गांड का भरपूर दर्शन करने के बाद और फिर से अपने बेटे की तरफ घूम गई और फिर,,,, बिना कुछ बोले अपना हाथ आगे बढ़कर कुर्ता मांगने लगी तो यह देखकर अंकित बोल पड़ा,,,।

अरे ऐसे कैसे इसका नाप समझ में आएगा ब्लाउज भी उतार दो तभी तो समझ में आएगा कि साइज कितना है ऐसे तो तुम्हें सही माप होने के बावजूद भी कसा हुआ लगेगा और मजा नहीं आएगा क्योंकि वह काउंटर वाली लेडी सोच समझ कर रही है यही नाप निकाली है,,,,
(अपने बेटे की बात सुनकर अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर आंखों को तैराते हुए वह थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली,,,,)

अब तु मेरा ब्लाउज भी उतरवाएगा,,,,।

उतारना पड़ेगा अगर सही माप का अंदाजा लेना हो और उसे पहनने का असली सुख लेना हो तो पेटीकोट भी उतरना ही होगा,,,(इतना कहने के बाद अंकित अपने मन में ही बोला अगर मेरा बस चले तो तुम्हारी ब्रा और पैंटी भी उतरवा कर नंगी कर दुं,,,,,। अपने बेटे की बातें सुनकर वह थोड़ा ऊपरी मन से नाराजगी दिखाते हुए बोली,,,)

नहीं बेवकूफ थी जो तेरे बाद में आ गई मुझे कुर्ता पजामा लेना ही नहीं चाहिए था बेवजह तेरे सामने कपड़े उतारने पड़ रहे हैं।


ऐसा मत बोलो मैं तुम्हें और भी ज्यादा खूबसूरत बना रहा हूं इसे पहनने के बाद देखना तुम खुद समझ जाओगी कि तुम कितनी खूबसूरत हो।

चल बडा आया खूबसूरत बनाने,,,(और ऐसा कहते हुए अपने दोनों हाथ की नाजुक उंगलियों को अपने ब्लाउज के बटन में उलझा ली और फिर से नजर नीचे करके अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगी अंकित अच्छी तरह से समझ रहा था कि उसकी मां का गुस्सा झुठ मुठ का है,,, अंदर से वह भी अपने कपड़े उतारने के लिए ललाईत हो रही है,,,,, माहौल पूरी तरह से गर्म रहा था कमरे के अंदर मदहोश कर देने वाला दृश्य दिखाई दे रहा था ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में सुगंधा का खूबसूरत बदन चमक रहा था उसके चेहरे की चमक और ज्यादा बढ़ चुकी थी अंकित उत्साहित और प्यासी नजरों से अपनी मां की नाजुक उंगलियों को देख रहा था जो ब्लाउज के बटन में पूरी तरह से उलझ कर रही थी देखते-देखते उसकी मां ब्लाउज का एक बटन खोल चुकी थी और वह भी वह बहुत धीरे-धीरे बटन खोल रही थी ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने बेटे को यह सब देखने का पूरा मौका दे रही है और शायद ऐसा था भी वरना अब तक तो ब्लाउज के सारे बटन खुल चुके होते लेकिन धीरे-धीरे सुगंधा इस पल में मदहोशी का रस घोल रही थी,,,, शायद इस तरह के पल में जल्दबाजी से नहीं बल्कि समझदारी से कम लिया जाता है और इस समय उसकी मां पूरी तरह से समझदारी दिखा रही थी अपने बेटे में पूरी तरह से जवानी का रस बोल रही थी उसे पूरी तरह से सक्षम कर रही थी या एक तरह से कह लो कि वह अपने बेटे को मर्द बना रही थी लेकिन यह कार्य तो सुगंधा की मां ही कर चुकी थी। आखिरकार सुगंधा थी भी तो उसका ही अंत थोड़ा बहुत असर तो सुगंधा में भी था इसीलिए तो वह आज इस मोड पर आ चुकी थी कि अपने बेटे के सामने उसे कपड़े उतार कर अपनी जवानी की नुमाइश करना पड़ रहा था जिसमें उसे बिल्कुल भी गलत नहीं लग रहा था क्योंकि मौके की नजाकत भी यही थी उसकी जरूरत भी यही थी जिसे पूरा करना भी जरूरी था।

अंकित की आंखों में मदहोशी जा रही थी चार बोतलों का नशा एकदम साफ दिखाई दे रहा था क्योंकि धीरे-धीरे सुगंधा अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी थी और अब आखरी बटन खोल रही थी लेकिन बाकी के बटन खुलने के बाद ही ब्लाउज का दोनों पट दोनों तरफ से नीचे की तरफ लुढ़क गया था जिससे लाल रंग की ब्रा दिखाई दे रही थी और उसमें छुपी हुई उसकी दोनों दशहरी आम खुलकर उजागर होने को तैयार थी अपनी मां की चूचियों के ऊपरी हिस्से पर नजर पड़ते ही अंकित का आगे वाला हिस्सा उठने लगा था जिस पर सुगंधा की चोर नजर बड़े आराम से पहुंच जा रही थी और वह अच्छी तरह से समझ रही थी कि ऐसा क्यों हो रहा है उसकी जवानी देखकर उसके बेटे का लंड खड़ा हो रहा था,,, और यह एक मां के लिए बेहद गर्व की बात थी जिससे वह भी उत्साहित हो रही थी देखते ही देखते हो अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल चुकी थी।


एक अद्भुत एहसास सुगंधा को अपने अंदर महसूस हो रहा था,,,, इस तरह के पल मां बेटे के बीच बहुत बार आए थे लेकिन आज का यह पल बेहद मदहोश कर देने वाला था दोनों को एकदम करीब ले आने वाला था अंकित प्यासी आंखों से एक तक अपनी मां की तरफ देख रहा था उसकी दोनों जवानी की तरफ देख रहा था और ब्लाउज के दोनों पट खुल जाने की वजह से लाल रंग की ब्रा एकदम साफ दिखाई दे रही थी उसमें कैद उसकी मां की दोनों चूचियां ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में एकदम साफ दिखाई दे रही थी। इस बार अंकित को कुछ बोलना नहीं पड़ा और उसकी मां खुद ही अपनी ब्लाउज के दोनों पट को दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी बाहों से निकाल कर उसे भी सोफे के ऊपर फेंक दी थी और इस समय पेटिकोट और लाल रंग की ब्रा में तो कयामत लग रही थी जिसे देखकर अंकित पूरी तरह से मदहोश हुआ जा रहा था वह अपने आप को कैसे संभाले हुए था यह वही जानता था। अंकित की सांस ऊपर नीचे हो रही थी और अपनी मां की लाल रंग की ब्रा को देखकर वह एकदम से बोल पड़ा।

तुम्हारी साइज से ब्रा का साइज कुछ कम है,,, ऐसा नहीं लग रहा है।
(एकदम से अंकित बोल पड़ा और उसकी यह बात सुनकर खुद सुगंधा भी झेंप गई,,, और अंकित की तरफ आश्चर्य से देखते हुए बोली।)

तुझे ऐसा क्यों लग रहा है?

देखो एकदम साफ दिखाई देना है कि एकदम ठुंस कर भरा हुआ है,,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा मुस्कुरा दी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)

एकदम सही पकड़ा है तुझे यह सब समझ में आने लगा है,,,।

देख कर कोई भी समझ जाएगा देखो तो सही अगर ठोस के ना भरा होता तो दोनों आपस में एकदम सटी हुई ना होती और लकीर देखो कितनी गहरी है,,,,,,, ऐसा तभी होता है जब दोनों आपस में एकदम सटी हुई होती है,,,,(अंकित उंगली से ही इशारा करके सब कुछ बता रहा था और उसका यह सब इशारा देखकर सुगंधा की बुर पानी छोड़ रही थी,,, अपने बेटे की समझदारी पर वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी,,,, लेकिन ऐसा लग रहा था कि अंकित की बात अभी खत्म नहीं हुई है इसलिए वह आगे बोला,,,)
मैंने तो तुम्हारे लिए तीन जोड़ी लेकर आया था वह क्यों नहीं पहनती,,,,।

अरे अभी यह सब है मेरे पास वह किसी शादी ब्याह त्यौहार के लिए रखी हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही इस बार बिना जीजा के वहां अपने दोनों हाथ को अपने पेटिकोट की डोरी की तरफ ले गई और दोनों हाथों की नाजुक उंगलियों से डोरी के दोनों छोर को पकड़ ली यह देखकर अंकित का दिल जोरो से धड़कने लगा,,,, क्योंकि कुछ ही देर में उसकी आंखों के सामने उसकी मां केवल ब्रा और पैंटी में होने वाली थी उसकी मां अपने पेटिकोट को उतारने जा रही थी,,,, घर के अंदर हर एक बेटा कभी कबार अपनी मां को इस हालत में देखा ही है कपड़े बदलते हुए कपड़े पहनते हुए लेकिन अंकित अपनी आंखों के सामने अपनी मां को कपड़े उतारते हुए उसके ठीक सामने खड़े होकर देख रहा था यह पल शायद हर एक बेटे के जीवन में नहीं आता लेकिन इसलिए अंकित अपने आप को भाग्यशाली समझ रहा था और अंदर ही अंदर बहुत खुश और उत्तेजित हो रहा था हालांकि इस दौरान उसके पेंट में पूरी तरह से तंबू बन चुका था,,, जिस पर सुगंधा की नजर बार-बार चली जा रही थी लेकिन वह इस बातसे हैरान थी कि उसका बेटा अपने पेट में बने तंबू को छुपाने की कोशिश क्यों नहीं कर रहा है क्या ऐसा तो नहीं कि वह जानबूझकर उसे अपने पेट में बना तंबू दिखाने की कोशिश कर रहा हूं और वह दिखाना चाह रहा हूं कि अब वह बड़ा हो चुका है किसी भी औरत को खुश करने की क्षमता रखता है या फिर उसे एहसास ही नहीं है कि उसके पेंट में तंबू बन गया है यही सब सोचते हुए सुगंधा अपने पेटिकोट की डोरी को एकदम से खींच दी और उसके पेटिकोट की गींठान एकदम से खुल गई,,,,।

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अंकित की हालत खराब हो रही थी उसकी आंखों के सामने उसकी मां अपनी पेटीकोट को उतार रही थी या एक तरह से कह दो नंगी होने जा रही थी। अगले ही पल सुगंधा अपने दोनों हाथों की उंगलियों को अपनी पेटीकोट में डालकर उसे चारों तरफ से ढीला करने लगेगा वैसे ही पेटिकोट कमर से ही उसे अपने हाथों से नीचे छोड़ दिया पेटिकोट तुरंत उसके कदमों में जा गिरा और वह अंकित की आंखों के सामने निर्वस्त्र हो गई,,,, केवल दो वस्त्र ही थे उसके नंगेपन को छुपाने के लिए यह किसकी तरह और दूसरी पेंटिं जिसमें उसके दोनों अनमोल खजाने छुपे हुए थे,, अंकित तो पागल ही हो गया उसकी आंखें फटी की फटी रह गई वह अपनी मां को देखता ही रह गया,,,, ब्रा पेंटी को छोड़कर उसके बदन पर कोई भी कपड़ा नहीं था। मर्द के सामने जब एक औरत अपने सारे कपड़े उतार कर केवल ब्रा पेंटी में ही खड़ी रहे तो अभी वह मर्द के सामने नंगी ही रहती है क्योंकि फिर यह दो वस्त्र का बदन पर होने का कोई मायने नहीं रखता। कमरे का वातावरण पूरी तरह से गर्म हो चुका था सुगंधा की नजरे शर्म के मारे नीचे झुक गई थी और अंकित अपनी मां के इस रूप को पागलों की तरह देख रहा था।
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
 

liverpool244

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Maja dheere dheere hi aata he

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Manzur hai bhai par pehle ankit aur sugandha ki akele mein chudai ho wo softcore nhi hardcore kyunki sugandha bahut softhore sex ki hogi apne pati ke saath ab use ek tagde lund aur sath mein ek tagde chudai ki zarurat hai jo use bina kisi reham ke chode aur jab chudai ho ankit aur sugandha ki to ankit awal darje ka harami ban chuka ho aur sugandha ko ek dum zalil karke chode aur use kub galiyan de aur sugandha ko bhi ye nature ankit ka pasand aaye aur phir ankit sugandha aur nani ka threesom ho jisme wo dono maa beti ko yo unke Nazar mein hi gira de aisa chudai ho dono maa beti ko itna zalil karein aur teeno ho hi isme maza aaye aur dono maa beti ankit ki har baat mane bina koi sawal jawab Kiye uski har ek baat mane ek patni ki tarah ye suggestion hai baki aap to ho hi kahaani likhne ke liye
 

Pandu1990

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सुगंधा और अंकित दोनों मां बेटे मार्केट से वापस घर आ चुके थे,,,, मार्केट में जो कुछ भी हुआ था वह बेहद दिलचस्प था जिस मां बेटे दोनों आपस में कुछ ज्यादा ही खुलने लगे थे दुकान के अंदर जिस तरह से वह काउंटर वाली लेडी दोनों को प्रेमी प्रेमिका समझ रहे थे इस बात से सुगंधा पूरी तरह से हैरान थी,,, एहसास होने लगा था कि क्या वाकई में वह अपने बेटे की मन नहीं लगती क्या दोनों की उम्र में कुछ ज्यादा अंतर दिखाई नहीं देता ऐसा ही तो है तभी तो वह काउंटर वाली लेडी दोनों को प्रेमी प्रेमिका समझ रही थी एक बार भी उसने यह नहीं सोचा कि यह दोनों मां बेटे की हो सकते हैं ऐसा क्यों आखिरकार काउंटर वाली लेडी दोनों के बारे में ऐसा क्यों सोची,,,, घर आने पर सुगंधा को यही सब सवाल पूरी तरह से परेशानकर रहे थे,,, लेकिन इस परेशानी में भी राहत की बात यह थी कि उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बावजूद भी उसके बदन का रखरखाव पूरी तरह से संजोया हुआ था,,, बदन में अभी भी कसावट किसी जवान औरत की तरह ही थी। तनी हुई चूचियां किसी भी तरह से जरा सी भी लचकी हुई नहीं दिखाई देती थी,,, मानसर चिकनी कमर और कमर के दोनों तरफ हल्की सी कटी हुई लकीर जो सुगंधा की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे। नितंबों का उभार एक अद्भुत आकार लिया हुआ था,,, जोकि कई हुई साड़ी में पूरी तरह से आकर्षण का केंद्र बिंदु बन जाता था,,, और सबसे बड़ा कारण यह था कि आज तक पति के देहांत के बाद उसने अपने शरीर को किसी भी गैर मर्द को हाथ नहीं लगाने दी थी। और यही सबसे बड़ी वजह भी थी कि अभी तक वह पूरी तरह से जवान थी,,,,।




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घर का काम करते समय उसका दिल और दिमाग पूरी तरह से काबू में नहीं था वह अपने बेटे पर हैरान थी कि वह काउंटर वाली लेडी तो दोनों को प्रेमी प्रेमिका समझ रही थी लेकिन इस मौके का फायदा उसका बेटा पूरी तरह से उठा रहा था उसने एक बार भी उसे काउंटर वाली लाडी को यह नहीं बताया कि वह दोनों प्रेमी प्रेमिका नहीं बल्कि मां बेटे में बल्कि वह काउंटर वाली लेडी जो समझ रहा थीवउसे वही समझने भी दिया बार-बार उसे मैडम कहकर संबोधन कर रहा था जिससे सुगंधा की हालत और ज्यादा खराब हो रही थी। दुकान में बिताए हुए हर एक पल के बारे में हर एक बातों के बारे में सोचकर सुगंधा की सांसें ऊपर नीचे हो रही थी। कुर्ता पजामा खरीद लेने के बाद उसे काउंटर वाली दीदी ने उसके पास जो वस्त्र दिखाया था उसे देखकर तो सुगंधा के होश वाकई में एकदम उड़ गए थे और उसे वस्त्र के बारे में सोचकर इस समय सुगंधा पानी पानी हो रही थी। वह अपने मन में यही सोच रही थी कि उस छोटे से गाउन में वह सच में स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा नजर आती केवल प्रॉपर्टी और वह गाऊन,,,उफफफ,,,,, मजा आ जाता,,,,, लेकिन वह जानती थी कि उसे समय उसे खरीद पाना कितने शर्म वाली बात थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह काउंटर वाली लेडी दोनों को पहचानते नहीं से जानते नहीं तो फिर भी उसके सामने उसे न जाने क्यों शर्म महसूस हो रही थी,,, इस कारण को वह नहीं समझ पा रही थी लेकिन इसका मुख्य कारण नहीं था कि सुगंधा चाहे जो भी हो एक मां थी इसलिए एक मां होने के नाते मां का रिश्ता उसे रोक रहा था इसलिए वह अपने बेटे के सामने शर्म के मारे उस गाउन को नहीं खरीद पाई।





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पहले से ही तय था कि आज रात का खाना नहीं बनेगा इसलिए मार्केट से ही खाने के लिए नाश्ता लेकर आए थे जिस मां बेटे दोनों साथ मिलकर खाए खाना न बनने के कारण मांजने के लिए बर्तन भी नहीं था,,, इसलिए केवल झाड़ू लगाकर वह कमरे की सफाई कर दी,,, इस दौरान अंकित टीवी देख रहा था जिसमें एक रोमांटिक मूवी चल रही थी। आमिर खान और जूही चावला की कोई फिल्म थी जिसका नाम अंकित को नहीं मालूम था वह केवल देख रहा था थोड़ी ही देर में उसकी मां भी टीवी देखने के लिए वहां आ गई और वह भी बैठ कर देखने लगी,,,, इस दौरान फिल्म में एक दृश्य था जिसमें नायक नायिका के खूबसूरत चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर उसके लाल-लाल होठों पर अपने होंठ रखकर किस करता है और यह दृश्य देखकर मां बेटे दोनों एकदम से गनगना गए थे,,,, अंकित तो अपने मन में यही सोच रहा था कि अच्छा हुआ कि यह दृश्य उसकी मां के सामने आया और वह मन ही मन खुश हो रहा था उसे एहसास हो रहा था कि इस दृश्य को देखकर उसकी मां के मन में बहुत सी बातें चल रही होगी,,, और ऐसा ही था अपने बेटे के सामने हीरो हीरोइन के चुंबन वाले दृश्य को देखकर उसके बदन में भी कुछ-कुछ होने लगा था,,, वैसे तो अपने बेटे की मौजूदगी में यह दिल से देखने में उसे शर्म तो महसूस हो रही है कि लेकिन उसे भी अच्छा लग रहा था कि यह दिल से देखते हुए उसके साथ में उसका बेटा भी है। इस दृश्य को देखकर सुगंधा की भी हालत खराब हो रही थी वैसे तो इस विषय में कोई ऐसी ज्यादा विषय वस्तु नहीं थी जिसे देखते ही इंसान उत्तेजित हो जाए लेकिन इस समय मां बेटे दोनों एक अलग ही समय से गुजर रहे थे जिसमें इस तरह के दृश्य बदन में उत्तेजना और जवानी की गर्मी को कुछ ज्यादा ही बढ़ा देते थे और यही हाल इस समय दोनों मां बेटे का भी था,,, सुगंधा तिरछी नजर से अपनी बेटी की तरफ देख ले रही थी वह भले ही टीवी की तरफ देख रहा था लेकिन वह जानती थी कि उसका मन कहीं और भ्रमण कर रहा होगा,,,, और जरूर उसका बेटा उसकी दोनों टांगों के बीच की स्थिति का जायजा ले रहा होगा और यही देखने के लिए सुगंध भी अपने बेटे की दोनों टांगों के बीच देख रही थी तो पेंट में हल्का सा उभार बनता हुआ नजर आ रहा था जिसे देखकर सुगंधा के तन बदन में आग लगने लगी।





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सुगंधा को समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे आगे बढ़ा जाए,,, वैसे तो दोनों के बीच ऐसा बहुत कुछ हो चुका था जिससे आगे बढ़ा जा सकता था लेकिन मर्यादा की दीवार बीच में रोड़ा बनकर खड़ी थी इस समय अंकित खामोश था सुगंध को लगने लगा था कि बातचीत का दौर उसी को ही शुरू करना होगा इसलिए वह टीवी की तरफ देखते हुए बोली।


देखा हीरोइन की हालत कैसे खराब हो गई।
(जैसे ही यह शब्द अंकित के कानों में सुनाई दिए उसके तन बदन में भी अजीब सी हलचल होने लगी उसे समझ में आ गया कि उसकी मां भी वही सोच रही है जैसा कि वह सोच रहा है इसलिए वह भी एकदम से उत्साहित होता हुआ बोला)

लेकिन ऐसा क्यों हीरोइन की हालत खराब क्यों हो गई,,,, चुंबन करने में ऐसा क्या हो गया? (अंकित अच्छी तरह से जानता था चुंबन के अर्थ को चुंबन के महत्व का और उसकी परिभाषा को लेकिन फिर भी जानबूझकर अपनी मां के सामने नादान बनने की कोशिश कर रहा था जैसा कि वह अपनी नानी के सामने नादान बनाकर अपनी नानी की बुर पर पूरी तरह से झंडा गाड दिया था। अंकित यहां पर भी कुछ ऐसा ही चाहता था,,,, अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा बोली,,,)


अरे बेवकूफ चुंबन का भी अपना ही अलग महत्व है,,,, प्रेमी प्रेमिका के बारे में जानता है लेकिन चुंबन के बारे में नहीं जानता,,,, उसे काउंटर वाली लाडी को इतना नहीं बोल पाएगा कि वह मेरी प्रेमिका नहीं मेरी मम्मी है,,,।





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क्योंकि मुझे वहां अच्छा लग रहा था,,,, तुमको प्रेमिका के रूप में पाकर,,,,(टीवी की तरफ देखते हुए अंकित अपने मन की बात अपनी मां से बोल गया जिसे सुनकर,,, मन ही मन बहुत प्रसन्न हुई और वह मुस्कुराते हुए बोली,,,)

तब तो आप तेरे साथ कहीं जाने में मुझे डर लगेगा,,,।

ऐसा क्यों,,,?

क्योंकि अगर कोई पति-पत्नी समझ लिया तो।
(पति पत्नी वाली बात सुगंधा बहुत हिम्मत करके बोल गई थी,,,, और अपनी मां की यह बात सुनकर अंकित अच्छी तरह समझ रहा था कि उसकी मां को क्या चाहिए और उसकी बात से बहुत खुश भी हो रहा था और मुस्कुराते हुए बोला,,,)

अगर सच में कोई ऐसा समझेगा तो मैं अपने आप को बहुत खुश कीस्मत समझुंगा,,,,,।

खुशकिस्मत,,,,,!(आश्चर्य से अंकित की तरफ देखते हुए बोली)


तुम्हारी जैसी पत्नी मिलना सच में बहुत किस्मत की बात है और जिसकी ऐसी खूबसूरत बीवी हो वह इंसान तो दुनिया में सबसे ज्यादा किस्मत वाला होगा,,,,।


फिल्मी डायलॉग मार रहा है,,,, इसीलिए फिल्म देखता है,,,,।


यह कोई फिल्मी डायलॉग नहीं है मैं सच कह रहा हूं तुम खुद नहीं जानती कि तुम क्या हो,,,, अच्छा तुम बता रही थी ना चुंबन करने से ऐसा क्या हो गया कि वह घबरा गई,,,,(बातों का सिलसिला किसी और तरफ जा रहा था इसलिए अंकित एकदम से बातों के दौर को पटरी पर लाते हुए बोला,,,, जिसे सुनकर सुगंधा गहरी सांस लेकर आराम से सोफे पर बैठते हुए बोली,,,)






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हीरोइन की हालत को तूने शायद देखा नहीं वह कितनी घबरा गई थी उसके बदन में कंपन हो रहा था और यह शायद उसका जीवन का पहला चुंबन था तभी वह एकदम से शर्मा गई थी।


लेकिन उसके चेहरे से तो लग रहा था कि उसे अच्छा लगा मजा आया,,,,

ओहहहह मतलब औरतों के चेहरे के हाव-भाव को पढ़ना तु अच्छी तरह से जानता है,,,,।

ऐसा नहीं है फिल्म में भी देखो दोनों बहुत खुश दिखाई दे रहे हैं अगर ऐसा कुछ होता तो हीरोइन गुस्सा होकर चली जाती,,,,,।


बिल्कुल ठीक समझा,,,,(मुस्कुराते हुए) इसका मतलब तु सच में बड़ा हो गया है।

वह तो मैं हो ही गया हूं,,,, लेकिन एक बात मुझे समझ में नहीं आई की मर्द औरत को चुंबन क्यों करता है ऐसा क्या हो जाता है कि उसे चुंबन करना पड़ता है और वह भी होठों पर,,,,।

(अपने बेटे के इस प्रश्न पर सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी क्योंकि वह बेहद गहरी बातें पूछ रहा था,,, सुगंधा को भी ऐसा ही लग रहा था कि उसका बेटा शायद चुंबन के बारे में ज्यादा कुछ जानता नहीं है,,,, इसलिए इस तरह का सवाल पूछ रहा है लेकिन उसके बेटे के इस तरह के सवाल में वह मदहोश हो रही थी उसके दोनों टांगों के बीच की पतली दरार मे रीसाव हो रहा था। लेकिन वह अच्छी तरह से जानती थी की मां बेटे के बीच की दूरी खत्म करने का बस यही एक जरिया है बातचीत ,,,इस तरह की बातें ही दोनों के बीच से मां बेटे वाली झिझक को दूर कर सकती थी। इसलिए वह अपने बेटे से बोली।)





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चुंबन प्यार दर्शाता है,,, मर्द और औरत के बीच का,,,, जब मरद बहुत खुश होता है तो औरत को चुंबन कर लेता है और चुंबन करने के स्थान भी अलग-अलग होते हैं कोई दुलार से चुंबन करता है तो माथे पर चुंबन करता है कोई गल पर करता है और जब आपस में बहुत गहरा रिश्ता हो तो वह उसके होठों पर चुंबन कर लेता है,,,, किसी को कोई जब अच्छा लगने लगता नहीं तो वह उसके होठों पर उसके गाल पर चुंबन करते हैं वैसे चुंबन के भी कई रूप होते हैं।

मैं कुछ समझा नहीं,,,,(वैसे तो अंकित सब कुछ समझ रहा था लेकिन जानबूझकर अपनी मां के सामने नाटक कर रहा था और अपनी मां किस तरह की बातें सुनकर उसके बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी खास करके उसके दोनों टांगों के बीच का स्थान पूरी तरह से हलचल मचा रहा था)

सामान्य तौर पर मर्द औरत की गाल पर ही जमीन करता है लेकिन जब दोनों का रिश्ता कुछ ज्यादा ही गहरा हो या दोनों के बीच कुछ होने वाला हो तो मर्द औरत के होठो पर चुंबन करता है,,,,।
(अपने बेटे के साथ इस तरह की बातें करने में सुगंधा के माथे से पसीना टपक रहा था उसकी हालत खराब हो रही थी उसके मन में घबराहट की हो रही थी लेकिन उससे ज्यादा सुगंधा के मन पर उत्तेजना दबाव बना रही थी,,ईस तरह की बातें करने के लिए,,,, इसलिए वह चाहकर भी अपने आप को नहीं रोक पा रही थी। अपनी मां की बात को अंकित अच्छी तरह से समझ रहा था लेकिन फिर भी और फिर से अनजान बनने का नाटक करते हुए बोला,,,)


कुछ होने वाला हो,,, मेरे को समझा नहीं कुछ होने वाला हो इसका क्या मतलब है,,,!
(अंकित के सवाल को सुनकर सुगंधा मन ही मन मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,,)

मैं बात नहीं सकती लेकिन समय आने पर तु खुद ही समझ जाएगा।

क्या मम्मी कैसा समय मुझे कुछ तो बताओ,,,।

कहा ना मैं नहीं बता सकती समय आने पर तु खुद समझ जाएगा,,,, आज गर्मी थोड़ा ज्यादा है क्यों ना आज छत पर चलकर सोया जाए वहां पर बहुत ठंडी हवा चलती है,,,।


मैं भी यही सोच रहा था,,,, लेकिन इससे पहले तुम्हें कुछ और पैजामा पहनकर उसका नाप चेक करना है कुछ भी गड़बड़ हुआ तो वापस हो जाएगा,,,,।

अरे हां में तो भूल ही गई रुक अभी पहन कर देखती हूं,,,,।

कहां देखोगी,,,,?

अपने कमरे में और कहां,,,

यही पहन कर देख लो ना मैं भी देख लूंगा,,,,।

(अंकित की बात सुनकर सुगंधा शर्मा गई ओर शर्माते हुए बोली,,,,)

धत् मुझे तेरे सामने शर्म आती है,,,।

अरे सर मैं कैसी सी पहन कर देखना ही तो है और भूल गई मैं तुम्हारे लिए चड्डी और ब्रा लाया था मेरे सामने ही तो पहन कर नाप देखी थी।


तू सच में बहुत जिद्दी है,,,, अच्छा रुक मैं यहीं पर लेकर आती हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही सुगंधा सोफे पर से उठकर खड़ी हो गई,,, उसकी भारी भरकम गोलाकार गांड सोफे पर जिस जगह पर बैठी हुई थी वहां पर हल्का सा गड्ढा बन गया था जिसे देखकर अंकित मुस्कुराने लगा और अपने मन में ही बोला,,, मम्मी की गांड कितनी जानता है सोफे की तो किस्मत बन जाती होगी,,,, उसका यह सोचा था की सुगंधा उस कमरे से निकल कर अपने कमरे की तरफ जा चुकी थी। अंकित का दिल अब दोनों से धड़क रहा था क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि उसकी मां उसकी आंखों के सामने कुर्ता और पैजामा पहनकर देखेगी और अपने मन नहीं सोच रहा था कि कुर्ता पजामा पहनने के लिए उसे अपने बदन के सारे कपड़े उतारने होंगे । केवल ब्रा और पैंटी को छोड़कर काश मम्मी साड़ी के अंदर पेंटि ना पहनी हो और अनजाने में उसके सामने पेटिकोट उतार दे तो कितना मजा आ जाए यही सब सोच कर अंकित मस्त हुआ जा रहा था। और दूसरी तरफ सुगंधा का भी बुरा हाल था,,,, अपने कमरे में पहुंच चुकी थी और अलमारी में से कुर्ता पजामा निकाल रही थी लेकिन कुर्ता पजामा निकलते हुए अपने मन में अगले पल के बारे में सोच रही थी,,, उसका दिल बहुत जोरों से धड़क रहा था और मां उत्साहित था।

भले ही वह अपने बेटे के सामने कुछ भी बोल रही थी लेकिन उसका मन भी अपने बेटे के सामने कपड़े उतार कर कुर्ता और पजामा पहनने की इच्छा हो रही थी,,, अपने बेटे के सामने कपड़े बदलने का मजा ही कुछ और था इस बात का एहसास तुझे अच्छी तरह से हो गया था लेकिन इस बात का डर भी था कि कहीं उसका बेटा उसे दिन की तरह उसके बदन से छेड़खानी है ना करना शुरू कर दे क्योंकि उसे अच्छी तरह से याद था कि पेंटि का नाप लेते समय अपने बेटे को अपने पीछे महसूस करके उसके पैर लड़खड़ा गए थे और वह एकदम से गिरने को हुई थी लेकिन तभी उसका बेटा हाथ आगे बढ़ाकर उसे गिरने से तो बचा लिया था लेकिन इस मौके का फायदा उठाते हुए वह उसकी नंगी बुर पर अपनी हथेली रखकर उसे ज़ोर से मसल दिया था जिसका एहसास उसे अभी तक था,,,, उस पल को याद करके इस समय उसकी बुर पानी छोड़ रही थी,,,, भले ही वह इस बात से घबरा रही थी कि उसका बेटा उसके बदन से छेड़खानी ना करते लेकिन मन ही मन हुआ यही चाह रही थी कि उसका बेटा थोड़ी छुट-छाट उसके बदन से ले ताकि दोनों आगे बढ़ सके,,,, अलमारी में से कुर्ता पजामा निकालकर वह ड्राइंग रूम में पहुंच गई जहां पर अंकित टीवी देख रहा था लेकिन अब वह टीवी बंद कर चुका था,,, और अपने बेटे की स्थिति को देखकर उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह बड़ी बेसब्री से उसके आने का इंतजार कर रहा था तभी तो कमरे में दाखिल होते ही अंकित का चेहरा खिल उठा था।

रात के 11:30 बज रहे थे तृप्ति के घर पर न होने की वजह से दोनों पूरी तरह से निश्चित थे घर का मुख्य द्वार बंद था उसे पर कड़ी लगी हुई थी और घर में दोनों के सिवा तीसरा कोई नहीं था इस बात का एहसास दोनों के बाद में कुछ ज्यादा ही उत्तेजना का असर दिखा दे रहा था दोनों मदहोश हो रहे थे और कपड़े बदलने की बात से तो सुगंधा की मोटी मोटी जांघों में थरथराहट महसूस हो रही
थी,,,, अपनी मम्मी के हाथ में कुर्ता पजामा देखते ही वह अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और अपनी मां के हाथ से कुर्ता पजामा को ले लिया और उसपर अपनी हथेली को फिराता हुआ बोला,,,,।

वह कितना मुलायम कपड़ा है सच में तुम्हें ऐसा ही लगेगा कि तुमने कुछ नहीं पहनी हो आज देखना तुम्हारा रूप और ज्यादा निखर कर सामने आएगा अभी तक तुम साड़ी में ही खूबसूरत लगती थी लेकिन तुम नहीं जानती कि तुम किसी भी कपड़े में खूबसूरत लगोगी।(एक बार फिर से अंकित तारीफ के पुल बांध रहा था और जिसे सुनकर सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना की फुहार उठ रही थी उसे अपने बेटे के मुंह से इस तरह की बातें बड़ी अच्छी लग रही थी वह मन ही मन मुस्कुरा रही थी लेकिन चेहरे पर थोड़ी घबराहट के भाव थे क्योंकि उसे अपनी बेटी के सामने अपनी साड़ी उतारना था लेकिन ऐसा करना जरूरी भी था मंजिल तक पहुंचने के लिए,,, कुछ देर तक दोनों के बीच खामोशी छाई रही अंकित अपने हाथ में कुर्ता पजामा लेकर अपनी मां की तरफ देख रहा था और उसकी मां शर्म से अपनी नजर को नीचे झुकाए खड़ी थी,,,, यह देखकर चुप्पी तोड़ते हुए अंकित बोला,,,)

क्या हुआ साड़ी उतारो खड़ी क्यों हो फिर हमें छत पर भी तो चलना है सोने आज तुम यही पहन कर सोना देखना कितना अच्छा लगता है तुम्हें भी एकदम आराम दायक लगेगा,,,,।

(अंकित की बात सुनकर सुगंधा शर्मा से पानी पानी हो रही थी क्योंकि वह एकदम खुलकर उसे साड़ी उतारने के लिए बोल रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे वह उसे चोदने के लिए कपड़े उतारने को बोल रहा हो,,,, सुगंधा का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था वह अंकित की तरफ देखते हुए बोली,,,)

शर्म आ रही है मुझे,,, तेरे सामने कैसे,,,,,(घबराहट भरे स्वर में सुगंधा बोली,,,, जिसे सुनकर अंकित उसे उत्साहित करता हुआ बोला)

क्या मम्मी तुम भी मेरे सामने पेंटी और ब्रा बदल सकती हो,,,, और कुर्ता पजामा पहनने में शर्म आ रही है और ऐसा तो तुम बंद कमरे में बहुत बार करती होगी कपड़े उतारना पहनना ऐसा समझ लो कि कमरे में कोई नहीं है,,,,, फिर आराम से हो जाएगा।

(अंकित की बात सुनकर सुगंधा अपने मन में ही बोली देखो कितना चालक है बिना कपड़ों के देखने के लिए कितना मस्का लगा रहा है,,,, लेकिन फिर भी जरूर उसके बदन में आकर्षण है कुछ ऐसी बातें तभी तो एक जवान लड़का उसे बिना कपड़ों के देखने के लिए तड़प रहा है इस बात को अपने मन में सोचकर उसका मन उत्साहित होने लगा और फिर वह धीरे से अपनी साड़ी के पल्लू को अपने कंधे पर से नीचे गिरा दी और साड़ी का पल्लू नीचे गिरते ही उसकी मदमस्त कर देने वाली चौड़ी छाती एकदम से उजागर हो गई,,,, जो की ठीक अंकित की आंखों के सामने थी और ट्यूबलाइट की दूरी और रोशनी में सब कुछ साथ दिखाई दे रहा था कपड़े उतारने से पहले सुगंधा अपने मन में सोच ली थी कि वह अपने बेटे के सामने कपड़े जरूर उतरेगी लेकिन उसकी तरफ देखेगी नहीं क्योंकि अगर वह उसकी तरफ देख लेगी तो उससे ऐसा नहीं हो पाएगा,,,, अंकित की हालात पूरी तरह से खराब होने लगी थी अपनी मां की भरी हुई छाती देखकर उसके टांगों के बीच की हलचल बढ़ने लगी थी ऊपरी हुई छाती उसके पेंट के आगे वाले भाग को उभार दे रहा था,,,, उसे इस बात की खुशी थी कि उसकी मां उसके सामने कपड़े उतारने के लिए तैयार हो गई थी,,, सुगंधा साड़ी के पल्लू को हाथ में लेकर उसे धीरे-धीरे अपनी कमर से खोल रही थी और उसकी चूड़ियों की खनक से पूरा कमरा मदहोश हुआ जा रहा था एक नशा सच्चा रहा था पूरे वातावरण में मदहोशी की रंगीनियत फैल रही थी जिसे महसूस करके मां बेटे दोनों उत्तेजित हुए जा रहे थे,,,,।

अपनी मां को कपड़े उतारते हुए देखने के लिए अंकित अपनी मां के ठीक सामने खड़ा था और उसे सब कुछ दिखाई दे रहा था इसलिए तो उसने टीवी भी बंद कर दिया था ताकि पूरा ध्यान उसकी मां पर ही रहे देखते-देखते सुगंधा शर्म से पानी होते हुए अपनी साड़ी को कमर से खोल चुकी थी और उसे सोफे पर फेंक दी थी इस समय वह अंकित की आंखों के सामने ब्लाउज और पेटीकोट में थी पेटिकोट इतना कसा हुआ था कि उसकी मां की गांड की दोनों आंखें पेटीकोट में भी एकदम उभरी हुई नजर आ रही थी और अपने आकार को अच्छी तरह से दर्शा रही थी कुछ देर पहले अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि काश उसकी मां साड़ी के नीचे पेंटिं ना पहनी हो तो कितना अच्छा हो लेकिन पेटीकोट में ही अपनी मां को देखकर उसे निराशा हाथ लगी थी क्योंकि कई हुई पेटीकोट में उसकी पैंटी की लाइन भी एकदम साफ झलक रही थी जिससे वह समझ गया था कि उसकी मां पेंटिं भी पहनी है। साड़ी का आखिरी छोर कमर से खोलते हुए सुगंधा घूम गई थी और उसकी पीठ अंकित की तरफ हो गई थी लेकिन वह ऐसा जानबूझकर की थी क्योंकि वह अपने नितंबों के आकर्षण को अच्छी तरह से जानती थी और समझती थी,,,। इसलिए वह जानबूझकर अपने बेटे की आंखों के सामने अपनी गांड परोस दी थी उसे अपनी गांड दिख रही थी कसी हुई पेटीकोट में उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उसकी गांड की दोनों फांक एकदम साफ नजर आती थी। इसलिए वह चाहती थी कि उसका बेटा उसकी गांड को प्यासी नजरों से देखें,,,,।

और उसका सोचना सच साबित हो रहा था,,,, सुगंधा की हालत तो खराब हुई थी अंकित की भी हालात पूरी तरह से खराब हो चुकी थी वह प्यासी नजरों से अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड को देख रहा था उसका मन तो कर रहा था कि आगे बढ़कर वह पीछे से अपनी मां को अपनी बाहों में भर ले और उसकी गांड पर अपने लंड को जोर-जोर से रगड़ कर अपना पानी निकाल दे लेकिन किसी तरह से वह अपने आप पर काबू किए हुए था,,,, सुगंधा वैसे तो साड़ी उतारते समय अपने बेटे की तरफ ना देखने का अपने आप से ही वादा की थी लेकिन जिस तरह से हालात बन रहे थे वह तिरछी नजर से पीछे की तरफ अपने बेटे की तरफ देखी तो उसका सोचा एकदम सच साबित हो रहा था और वह एकदम उत्साहित होने लगी थी क्योंकि इस समय उसके बेटे की नजर उसकी गांड पर ही टिकी हुई थी और वह जी भरकर अपने बेटे को अपनी गांड के दर्शन कर भी रही थी साड़ी को सोफे पर फेंकने के बाद वह अपने दोनों हाथ को कमर पर रखकर गहरी सांस लेते हुए अपने भजन को एकदम सीधा कर ली थी जिसे उसके नितंब्बों का उभार और ज्यादा बढ़ चुका था अपनी मां की हरकत को देखकर अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि कहीं उसकी मां उसे चोदने के लिए न बोल दे क्योंकि अंकित को भी एहसास हो रहा था कि उसकी मां के बदन में जवानी छा रही थी वह मदहोश हो रहे थे और वह अपने मन में अपने आप से ही बात कर रहा था कि अगर मन हो तो चुदवाने का बोल दो इस तरह से तड़पाने से तुम्हें क्या मिलेगा ,,,,।

सुगंधा अपनी गांड का भरपूर दर्शन करने के बाद और फिर से अपने बेटे की तरफ घूम गई और फिर,,,, बिना कुछ बोले अपना हाथ आगे बढ़कर कुर्ता मांगने लगी तो यह देखकर अंकित बोल पड़ा,,,।

अरे ऐसे कैसे इसका नाप समझ में आएगा ब्लाउज भी उतार दो तभी तो समझ में आएगा कि साइज कितना है ऐसे तो तुम्हें सही माप होने के बावजूद भी कसा हुआ लगेगा और मजा नहीं आएगा क्योंकि वह काउंटर वाली लेडी सोच समझ कर रही है यही नाप निकाली है,,,,
(अपने बेटे की बात सुनकर अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर आंखों को तैराते हुए वह थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली,,,,)

अब तु मेरा ब्लाउज भी उतरवाएगा,,,,।

उतारना पड़ेगा अगर सही माप का अंदाजा लेना हो और उसे पहनने का असली सुख लेना हो तो पेटीकोट भी उतरना ही होगा,,,(इतना कहने के बाद अंकित अपने मन में ही बोला अगर मेरा बस चले तो तुम्हारी ब्रा और पैंटी भी उतरवा कर नंगी कर दुं,,,,,। अपने बेटे की बातें सुनकर वह थोड़ा ऊपरी मन से नाराजगी दिखाते हुए बोली,,,)

नहीं बेवकूफ थी जो तेरे बाद में आ गई मुझे कुर्ता पजामा लेना ही नहीं चाहिए था बेवजह तेरे सामने कपड़े उतारने पड़ रहे हैं।


ऐसा मत बोलो मैं तुम्हें और भी ज्यादा खूबसूरत बना रहा हूं इसे पहनने के बाद देखना तुम खुद समझ जाओगी कि तुम कितनी खूबसूरत हो।

चल बडा आया खूबसूरत बनाने,,,(और ऐसा कहते हुए अपने दोनों हाथ की नाजुक उंगलियों को अपने ब्लाउज के बटन में उलझा ली और फिर से नजर नीचे करके अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगी अंकित अच्छी तरह से समझ रहा था कि उसकी मां का गुस्सा झुठ मुठ का है,,, अंदर से वह भी अपने कपड़े उतारने के लिए ललाईत हो रही है,,,,, माहौल पूरी तरह से गर्म रहा था कमरे के अंदर मदहोश कर देने वाला दृश्य दिखाई दे रहा था ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में सुगंधा का खूबसूरत बदन चमक रहा था उसके चेहरे की चमक और ज्यादा बढ़ चुकी थी अंकित उत्साहित और प्यासी नजरों से अपनी मां की नाजुक उंगलियों को देख रहा था जो ब्लाउज के बटन में पूरी तरह से उलझ कर रही थी देखते-देखते उसकी मां ब्लाउज का एक बटन खोल चुकी थी और वह भी वह बहुत धीरे-धीरे बटन खोल रही थी ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने बेटे को यह सब देखने का पूरा मौका दे रही है और शायद ऐसा था भी वरना अब तक तो ब्लाउज के सारे बटन खुल चुके होते लेकिन धीरे-धीरे सुगंधा इस पल में मदहोशी का रस घोल रही थी,,,, शायद इस तरह के पल में जल्दबाजी से नहीं बल्कि समझदारी से कम लिया जाता है और इस समय उसकी मां पूरी तरह से समझदारी दिखा रही थी अपने बेटे में पूरी तरह से जवानी का रस बोल रही थी उसे पूरी तरह से सक्षम कर रही थी या एक तरह से कह लो कि वह अपने बेटे को मर्द बना रही थी लेकिन यह कार्य तो सुगंधा की मां ही कर चुकी थी। आखिरकार सुगंधा थी भी तो उसका ही अंत थोड़ा बहुत असर तो सुगंधा में भी था इसीलिए तो वह आज इस मोड पर आ चुकी थी कि अपने बेटे के सामने उसे कपड़े उतार कर अपनी जवानी की नुमाइश करना पड़ रहा था जिसमें उसे बिल्कुल भी गलत नहीं लग रहा था क्योंकि मौके की नजाकत भी यही थी उसकी जरूरत भी यही थी जिसे पूरा करना भी जरूरी था।

अंकित की आंखों में मदहोशी जा रही थी चार बोतलों का नशा एकदम साफ दिखाई दे रहा था क्योंकि धीरे-धीरे सुगंधा अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी थी और अब आखरी बटन खोल रही थी लेकिन बाकी के बटन खुलने के बाद ही ब्लाउज का दोनों पट दोनों तरफ से नीचे की तरफ लुढ़क गया था जिससे लाल रंग की ब्रा दिखाई दे रही थी और उसमें छुपी हुई उसकी दोनों दशहरी आम खुलकर उजागर होने को तैयार थी अपनी मां की चूचियों के ऊपरी हिस्से पर नजर पड़ते ही अंकित का आगे वाला हिस्सा उठने लगा था जिस पर सुगंधा की चोर नजर बड़े आराम से पहुंच जा रही थी और वह अच्छी तरह से समझ रही थी कि ऐसा क्यों हो रहा है उसकी जवानी देखकर उसके बेटे का लंड खड़ा हो रहा था,,, और यह एक मां के लिए बेहद गर्व की बात थी जिससे वह भी उत्साहित हो रही थी देखते ही देखते हो अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल चुकी थी।


एक अद्भुत एहसास सुगंधा को अपने अंदर महसूस हो रहा था,,,, इस तरह के पल मां बेटे के बीच बहुत बार आए थे लेकिन आज का यह पल बेहद मदहोश कर देने वाला था दोनों को एकदम करीब ले आने वाला था अंकित प्यासी आंखों से एक तक अपनी मां की तरफ देख रहा था उसकी दोनों जवानी की तरफ देख रहा था और ब्लाउज के दोनों पट खुल जाने की वजह से लाल रंग की ब्रा एकदम साफ दिखाई दे रही थी उसमें कैद उसकी मां की दोनों चूचियां ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में एकदम साफ दिखाई दे रही थी। इस बार अंकित को कुछ बोलना नहीं पड़ा और उसकी मां खुद ही अपनी ब्लाउज के दोनों पट को दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी बाहों से निकाल कर उसे भी सोफे के ऊपर फेंक दी थी और इस समय पेटिकोट और लाल रंग की ब्रा में तो कयामत लग रही थी जिसे देखकर अंकित पूरी तरह से मदहोश हुआ जा रहा था वह अपने आप को कैसे संभाले हुए था यह वही जानता था। अंकित की सांस ऊपर नीचे हो रही थी और अपनी मां की लाल रंग की ब्रा को देखकर वह एकदम से बोल पड़ा।

तुम्हारी साइज से ब्रा का साइज कुछ कम है,,, ऐसा नहीं लग रहा है।
(एकदम से अंकित बोल पड़ा और उसकी यह बात सुनकर खुद सुगंधा भी झेंप गई,,, और अंकित की तरफ आश्चर्य से देखते हुए बोली।)

तुझे ऐसा क्यों लग रहा है?

देखो एकदम साफ दिखाई देना है कि एकदम ठुंस कर भरा हुआ है,,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा मुस्कुरा दी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)

एकदम सही पकड़ा है तुझे यह सब समझ में आने लगा है,,,।

देख कर कोई भी समझ जाएगा देखो तो सही अगर ठोस के ना भरा होता तो दोनों आपस में एकदम सटी हुई ना होती और लकीर देखो कितनी गहरी है,,,,,,, ऐसा तभी होता है जब दोनों आपस में एकदम सटी हुई होती है,,,,(अंकित उंगली से ही इशारा करके सब कुछ बता रहा था और उसका यह सब इशारा देखकर सुगंधा की बुर पानी छोड़ रही थी,,, अपने बेटे की समझदारी पर वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी,,,, लेकिन ऐसा लग रहा था कि अंकित की बात अभी खत्म नहीं हुई है इसलिए वह आगे बोला,,,)
मैंने तो तुम्हारे लिए तीन जोड़ी लेकर आया था वह क्यों नहीं पहनती,,,,।

अरे अभी यह सब है मेरे पास वह किसी शादी ब्याह त्यौहार के लिए रखी हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही इस बार बिना जीजा के वहां अपने दोनों हाथ को अपने पेटिकोट की डोरी की तरफ ले गई और दोनों हाथों की नाजुक उंगलियों से डोरी के दोनों छोर को पकड़ ली यह देखकर अंकित का दिल जोरो से धड़कने लगा,,,, क्योंकि कुछ ही देर में उसकी आंखों के सामने उसकी मां केवल ब्रा और पैंटी में होने वाली थी उसकी मां अपने पेटिकोट को उतारने जा रही थी,,,, घर के अंदर हर एक बेटा कभी कबार अपनी मां को इस हालत में देखा ही है कपड़े बदलते हुए कपड़े पहनते हुए लेकिन अंकित अपनी आंखों के सामने अपनी मां को कपड़े उतारते हुए उसके ठीक सामने खड़े होकर देख रहा था यह पल शायद हर एक बेटे के जीवन में नहीं आता लेकिन इसलिए अंकित अपने आप को भाग्यशाली समझ रहा था और अंदर ही अंदर बहुत खुश और उत्तेजित हो रहा था हालांकि इस दौरान उसके पेंट में पूरी तरह से तंबू बन चुका था,,, जिस पर सुगंधा की नजर बार-बार चली जा रही थी लेकिन वह इस बातसे हैरान थी कि उसका बेटा अपने पेट में बने तंबू को छुपाने की कोशिश क्यों नहीं कर रहा है क्या ऐसा तो नहीं कि वह जानबूझकर उसे अपने पेट में बना तंबू दिखाने की कोशिश कर रहा हूं और वह दिखाना चाह रहा हूं कि अब वह बड़ा हो चुका है किसी भी औरत को खुश करने की क्षमता रखता है या फिर उसे एहसास ही नहीं है कि उसके पेंट में तंबू बन गया है यही सब सोचते हुए सुगंधा अपने पेटिकोट की डोरी को एकदम से खींच दी और उसके पेटिकोट की गींठान एकदम से खुल गई,,,,।

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अंकित की हालत खराब हो रही थी उसकी आंखों के सामने उसकी मां अपनी पेटीकोट को उतार रही थी या एक तरह से कह दो नंगी होने जा रही थी। अगले ही पल सुगंधा अपने दोनों हाथों की उंगलियों को अपनी पेटीकोट में डालकर उसे चारों तरफ से ढीला करने लगेगा वैसे ही पेटिकोट कमर से ही उसे अपने हाथों से नीचे छोड़ दिया पेटिकोट तुरंत उसके कदमों में जा गिरा और वह अंकित की आंखों के सामने निर्वस्त्र हो गई,,,, केवल दो वस्त्र ही थे उसके नंगेपन को छुपाने के लिए यह किसकी तरह और दूसरी पेंटिं जिसमें उसके दोनों अनमोल खजाने छुपे हुए थे,, अंकित तो पागल ही हो गया उसकी आंखें फटी की फटी रह गई वह अपनी मां को देखता ही रह गया,,,, ब्रा पेंटी को छोड़कर उसके बदन पर कोई भी कपड़ा नहीं था। मर्द के सामने जब एक औरत अपने सारे कपड़े उतार कर केवल ब्रा पेंटी में ही खड़ी रहे तो अभी वह मर्द के सामने नंगी ही रहती है क्योंकि फिर यह दो वस्त्र का बदन पर होने का कोई मायने नहीं रखता। कमरे का वातावरण पूरी तरह से गर्म हो चुका था सुगंधा की नजरे शर्म के मारे नीचे झुक गई थी और अंकित अपनी मां के इस रूप को पागलों की तरह देख रहा था।
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sunoanuj

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एक ही दिन में मां बेटे के साथ-साथ बेटी को भी एक अलग ही अनुभव प्राप्त हुआ था जिससे तीनों की जिंदगी एक नई राह पकड़ ली थी अब उनकी मंजिल एक ही थी लेकिन मंजिल पर पहले कौन पहुंचता है यह देखना बाकी था,,, लेकिन इतना तो तय था कि मंजिल से ज्यादा सफर मजा देने वाला है,, बस में हुई मां बेटे के बीच घमासान घर्षण का एहसास दोनों के बदन में रह रहकर उत्तेजना की फुहार उठा रहा थाऔर सुमन के साथ जिस तरह का अनुभव तृप्ति ने प्राप्त की थी वह बेहद अद्भुत और अतुलनीय था लेकिन तृप्ति इस बात का अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी संतुष्टि में अभी भी कमी थीक्योंकि उसे अभ्यास होने लगा था कि उसे एक मर्द की जरूरत है जो अपने मर्दाना अंग से उसके अंदरूनी अंग से मदन रस को बाहर निकाल दें,,,,, एक तरह से पूरा परिवार वासना की आग में झुलसने लगा था,,,।




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शाम को तृप्ति ने हीं खाना बनाई,, क्योंकि बस का सफर करके सुगंधा थक चुकी थी,, लेकिन बदन भले ही थक चुका था पर मन पूरी तरह से प्रफुल्लित था जिस तरह का अनुभव सुगंधा ने अपने भाई के घर और बस के अंदर प्राप्त की थी वह उसके जीवन का बेहद यादगार पल बन चुका था,,,वह कभी सोची भी नहीं थी कि अपने भाई के घर में खिड़की से वह अपने भैया और भाभी की चुदाई देखी थी,,,इस बात का एहसास सुगंधा को अच्छी तरह से हो रहा था कि बरसों के बाद अपनी आंखों के सामने चुदाई का दृश्य देखकर वह खुद बेहद गर्म हो चुकी थी उसे बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि वह अपनी आंखों से अपने ही छोटे भाई को अपनी बीवी को चोदते हुए देख रही थी,,, जबकि यह बेहद शर्मनाक बात थी,,, और शायद यहसुगंधा के लिए शर्मनाक बात होती भी अगर वह पहले वाली सुगंधा होती,,।





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लेकिन पहले वाली सुगंधाबहुत पहले से पीछे छूट चुकी थी अब सुगंधा के अंदर एक औरत ने जन्म ले लिया था जो अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना चाहती थी अपनी मर्जी से जीना चाहती थी अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी अपने अधूरे ख्वाब के लिए जीना चाहती थी,, इसलिए अपने भैया भाभी को संभोग मुद्रा में देखकर उसके मन में बिल्कुल भी ग्लानी नहीं थी,,,लेकिन उसके साथ-साथ उसे नजारे को उसके बेटे ने भी अपनी आंखों से देखा था ठीक उसके पीछे खड़े होकर,,, और इसी के बारे में सुगंधा कुर्सी पर बैठे-बैठे सो रही थीउसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसका दिमाग काम करना बंद कर दिया था क्योंकि वह अपने बेटे के बारे में निर्णय नहीं ले पा रही थी,,, उसे यहप्रश्न अंदर ही अंदर खाए जा रहा था कि वाकई में उसका बेटा बुद्धू है या बुद्धू बनने का सिर्फ नाटक कर रहा है,,,। क्योंकिरात को जो दृश्य उसने अपनी आंखों से देखी थी , उस दृश्य को उसका बेटा भी अपनी आंखों से ठीक उसके पीछे खड़े होकर देख रहा था लेकिन उस दृश्य के बारे में वह अजीब से सवाल कर रहा था,,,।




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सुगंधा उस समय तो परेशानी का कारण बताकर वहां से हट गई थी लेकिन उसे तो आगे बढ़ना थाउसे समझ में नहीं आ रहा था कि अगर इस उम्र में भी उसका बेटा सच में एकदम नादान है तो फिर वह कैसे आगे बढ़ पाएगीऔर अगर सिर्फ वह नाटक कर रहा है तो इस खेल में और भी ज्यादा मजा आने वाला है उसे ही पूरी बागड़ौर संभाल कर आगे बढ़ना होगा,,लेकिन फिर अपने ही सवाल का जवाब उसके मन में अपने आप ही उम्र रहा था कि अगर वह नादान बुद्धू होता तो बस के अंदर उसके बदन से सट जाने की वजह से उसका लंड खड़ा ना हो जाता,, औरत औरउसकी गांड में पूरी तरह से घुसने की कोशिश ना करता अगर वह सच में नादान होता तोइतना तो समझ सकता था कि क्या हो रहा है वह अपने आप को पूरी तरह से हटाने की कोशिश करता लेकिन ऐसा हुआ बिल्कुल भी नहीं कर रहा था ऐसा लग रहा था कि इस खेल में उसे भी बहुत मजा आ रहा है,,,,, यही सब सुगंधा अपने मन में सोच रही थी कि तभी तृप्ति ने आवाज लगाई,,।




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मम्मी खाना तैयार हो गया है जल्दी से हाथ मुंह धोकर आओ,,, मैं खाना लगा देती हुं,,,।

ठीक है लेकिन अंकित को जगा दे वह लगता है सो गया है अपने कमरे में,,,।

ठीक है मम्मी,,,।
(इतना कह कर कहा अपने भाई के कमरे में उसे बुलाने के लिए चली गई,,, कमरे में अपने बिस्तर पर बैठकर अंकित किताब के पन्नों को पलट रहा था उसे देख कर तृप्ति बोली,,,)

चल खाना तैयार हो गया है हाथ मुंह धोकर खा ले,,,।

ठीक है दीदी तुम चलो मैं आता हूं,,,

(इतना सुनकर न जाने क्या शरारत सोची तेरी थी एकदम से उसकी आंखों के सामने दरवाजे की तरफ मुंह करके झुक गई और बेवजह अपने पायल को ठीक करने लगी लेकिन ऐसा करने पर उसकी मदमस्त कर देने वाली गोलाई दार गांड उभर कर एकदम अंकित की आंखों के सामने आ गई अंकित की नजर अपने आप अपनी बहन की गांड पर चली गई,,,,, और पल भर में ही अपनी बहन को देखने का नजरिया उसका एकदम से बदल गया अपनी बहन की सुगठित नितंबों को देखकर उसके मन में उत्तेजना की चिंगारी फूटने लगी और वह नजर भर कर उसे देखने लगा।




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और तृप्तिबेवजह नाटक करते हुए अपनी पतली सी पायल को ठीक करने का नाटक कर रही थीवह देखना चाहती थी कि उसके भाई क्या करता है कहां देखता हैऔर यही देखने के लिए वह अपनी पायल को ठीक करते हुए पीछे नजर घुमा कर देखी तो उसका दिल धक से करके रह गया,,, उसकी सोच के अनुसार उसका भाई उसकी गांड की तरफ ही देख रहा था,,, यह देख कर उसकी मां उत्तेजना और प्रसन्नता से झूम उठा उसकी युक्ति काम कर गई थी और वह धीरे से उठते हुए बोली,,,।

पायल ढीली हो गई है डर लगता है कि कहीं गिर ना जाए,,,।
(उसकी बातें सुनकरअंकित कुछ बोल नहीं पाया क्योंकि बोलने के लिए उसके पास कोई शब्द नहीं थे क्योंकि वह तो अपनी बहन के नितंबों को देखकर उत्तेजना से मंत्र मुग्ध हो गया था,,, और वह कोई जवाब सुनना भी नहीं चाहती थी इसलिए बिना जवाब का इंतजार किए वह वहां से चलती बनी,,,, उसके जाने के बाद थोड़ी देर तक अंकित अपने कमरे में बैठा रहा और अपनी बहन के बारे में सोचता रहा फिर धीरे से अपनी बिस्तर पर से नीचे उतरा और हाथ मुंह धोकर खाने बैठ गया,,।



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बातों ही बातों में सुगंधा तृप्ति से बोली,,,।

कोई दिक्कत तो नहीं हुई ना,,,।

नहीं मम्मी कोई दिक्कत नहीं हुई,,।

रात को सोई कहां थी,,,?

सुमन के घर पर वैसे तो मैं वहां सोना नहीं चाहती थी लेकिन आंटी बहुत जिद करने लगी तो मुझे जाना पड़ा,,,।

चलो अच्छा है कि तुम वहां जाकर सो गई,,,।खाना खाई थी,,,।

हां खाई थी सुबह तो बना हुआ ही था,रात को सुषमा आंटी खुद बुला कर ले गई थी खाना खिलाने के लिए वैसे सुषमा आंटी बहुत अच्छी है,,,।




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(तृप्ति के मुंह से सुषमा आंटी बहुत अच्छी है सुनकर अंकित की आंखों के सामने सुषमा आंटी का नंगा बदन दिखाई देने लगा,,, बिल्कुल वही मुद्रा में जी मुद्रा में अंकित ने सुषमा आंटी को देखा था यह खांसी अपनी चूचियों को छुपाते हुए और दूसरी हाथ की हथेली से अपनी बुर को छुपाते हुए,,, इस दृश्य के बारे में सोचकर अंकित मन ही मन में मुस्कुराने लगा और तृप्ति की बात सुनकर सुगंधा बोली,,,)

अच्छी तो है इतने अच्छे से एक दिन के लिए तुम्हारी जिम्मेदारी जो उठा ली,,,, लेकिन तृप्ति अगर तुम भी चलती तो मजा आ जाता,,,। लेकिन तुम्हारी पढ़ाई,,,(इतना कहकर सुगंधा निवाला मुंह में डालकर खाने लगी और अपने मन में ही सोचने लगी कि अच्छा हुआ कि नहीं चली अगर चली होती तो शायद बस के सफर का आनंद वह पूरी तरह से नहीं उठा पाती,,,पर अपनी मां की बात सुनकर अंकित भी अपने मन में यही सोच रहा था कि अगर सच में उसकी दीदी भी साथ में गई होती तो शायद इतना अच्छा अनुभव और एहसास उसे कभी प्राप्त नहीं होता,,,,,फिर भी अपनी मां की बात रखने के लिए अपनी मां के सुर में सुर मिलाते हुए अंकित बोला,,,)




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सच में दीदी तुम होती तो और मजा आता मामा मामी के घर बहुत मजा आया क्यों मम्मी सच कह रहा हूं ना,,,,।

हां बहुत मजा आया दो-तीन दिन और रुकना चाहिए था लेकिन ना तो कपड़े लेकर गए थे और नहीं पहले से बोल कर गए थे,,,।

(अंकित अपने मन में सोचने लगा कि अगर सच में दो-तीन दिन और रुकने का मौका मिलता तो शायद मामा के घर पर ही अपनी मां की चुदाई करने का मौका मिल जाता,,,,क्योंकि वह समझ गया था कि उसकी मां बहुत प्यासी है तभी तो अपने भाई को संभोग मुद्रा में देख रही थी,,, अगर इस समय वह कोई हरकत करता तो शायद उसकी मां बिल्कुल भी विरोध नहीं करती क्योंकि वह खुद खिड़की से झांक कर अंदर का दृश्य देखकर एकदम गरम हो गई थी,,,। अपनी मां की बात सुनकर वह बोला,,,)




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अगली बार चलेंगे तो चार-पांच दिनों के लिए चलेंगे और दीदी को साथ में लेकर चलेंगे वहां कितना अच्छा लगता है कितनी अच्छी हवा चलती है एकदम ठंडक रहती है चारों तरफ खेत ही खेत,,,।

सच कह रहा है अंकित तूऔर छत पर सोने में कितना अच्छा लग रहा था एकदम ठंडी हवा बह रही थी,,,।

हां मम्मी एक झटके में नींद आ गई थी,,,,।
(इतना कहकर अंकित अपने मन में सोचने लगा कि एक झटके में उसकी मां ने पूरी नींद उड़ा दी थी उसकी आंखों के सामने ही छत पर कोने में बैठकर अपनी साड़ी कमर तक उठाकर अपनी बड़ी-बड़ी गांड दिखाते हुए पेशाब कर रही थी उसकी मां को नहीं मालूम था कि अंकित अपनी आंखों से सब कुछ देख चुका है,,, उस नजारे के बारे में याद करके तो इस समय भी उसका लंड खड़ा होने लगा था,, दोनों की बातों को सुनकर तृप्ति भी खाना खाते हुए बोली,,,)




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sometimes poem

तुम दोनों अगर इतनी तारीफ कर रहे हो तो सच में अगली बार में भी चलूंगी क्योंकि मुझे भी गांव पसंद है,,,।

अरे तृप्ति वह तो तेरे मामा का घर है,,,,जो दादा से अलग रहते हैं लेकिन अगर तू अपने दादा के घर जाएगी तो तेरा इधर आने का मन ही नहीं करेगा,,,।

ऐसा क्यों मम्मी,,,?

अरे पूछो गांव की अाबो हवा है ही ऐसी,,, चारों तरफ लहराते हुए खेत हरियाली छोटे-छोटे तालाब बड़ी-बड़ी नदियां हर तरह के फल का बगीचा बड़े-बड़े पेड़ ऊंची नीची कच्ची सड़क और गांव मेंघास फूस की बनी झोपड़ी सच में बहुत मजा आ जाता है नहाने के लिए हेड पंप या कु्ए पर जाना पड़ता है उन सबका अपना अलग ही मजा है,,,।

क्या बात करती हो मम्मी क्या गांव में सच में यह सब होता है,,,(अंकित एकदम आश्चर्य जताते हुए बोला)

तो क्या गांव में बहुत मजा आता है,,,।



तब तो मम्मी हम लोगों को गांव चलना चाहिए,,,।(तृप्ति उत्सुकता दिखाते हुई बोली)


चलना तो चाहिए लेकिन बिना काम के चलने में पैसे बहुत खर्च हो जाते हैं,।





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तो क्या हुआ मम्मी एक बार हम लोगों को गांव घूमाना तो चाहिए तुम्हें,,,।

अच्छा कोई बात नहीं समय आएगा तो हम सब चलेंगे गांव,,,,।

(इतना कह कर फिर से तीनों खाना खाने लग गए थोड़ी देर में खाना खा लेने के बाद,,, तृप्ति और सुगंधा दोनों बर्तन साफ करने लगे तृप्ति तो अपनी मां को रोक रही थी बर्तन साफ करने से लेकिन वह मानी नहीं और साथ में बैठ गई,,,बर्तन साफ करने के बाद तीनों कुछ देर तक टीवी देखते रहे और फिर अपने अपने कमरे में चले गए लेकिन तीनों की आंखों में नींद बिल्कुल भी नहीं थी जिसका कारण था कि तीनों की आंखों में वासना की चमक पूरी तरह से अपना असर दिखा रही थी,,, बस में हुए घमासान घर्षण को याद करके अंकित अपने सारे कपड़े उतार कर नंगा हो गया था अपने हाथ से अपने लंड को हिला कर अपने आप को शांत करने की कोशिश कर रहा था,,,।




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सुगंधा अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर अपनी पैंटी को अपने हाथों से निकाल कर अपनी गरमा गरम बुर को अपनी हथेली से जोर-जोर से रगड़ रही थी मसला रही थीऔर यह क्रिया करते हुए अपने आप को खुश रही थी क्योंकि उसे अब लग रहा था कि उसके पास वही अच्छा मौका था जब खिड़की से देखते हुए उसके बेटे ने भी वही दृश्य को देखा था जिसे देखकर वह गर्म हो रही थीइस समय वह अपने बेटे को सब कुछ सही-सही बता देती तो शायद छत के ऊपर दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो जाता,,।





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और तृप्ति सुमन को याद करके अपने सारे कपड़े उतार कर नंगी होकर अपनी चूची को एक हाथ से पकड़ कर दबाते हुए दूसरे हाथ की हथेली से अपनी गरमा गरम बुर को रगड़ रही थी और अपने भाई के लंड के बारे में सोच रही थी,,वह अपनी मन में सोच रही थी कि अगर उंगली से उसे इतना आनंद मिला है तो अगर उसके भाई का मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर में जाकर अंदर बाहर करेगा तो कितना मजा आएगा यही सब सोचते हुए वह भी अपनी जवानी की गर्मी को शांत करने में लगी हुई थी,,,।

तकरीबन10 12 दिन का समय गुजर चुका था लेकिन इन दिनों में सुगंधा अपने बेटे से उस दृश्य के बारे में चर्चा नहीं कर पाई थी और ना ही बस के सफर के दौरान जो कुछ भी हुआ था उसे बारे में कोई बात कर पाई थी,,,और मन तो दुखी उसका इस बात से ताकि इस बारे में उसके बेटे ने भी उससे कुछ भी नहीं पूछा था क्योंकि सुगंधा को लग रहा था कि बातचीत आगे बढ़ाने का यही अच्छा मुद्दा है,,, लेकिन फिर भी थी तो वह एक मा ही अगर मन की जगह एक औरत होती तो शायद वह कब से आगे बढ़ गई होती और वह औरत उसके अंदर बार-बार जन्म भी ले रहा था लेकिन वह अपने आप को आगे नहीं बढ़ा पा रही थी,,, इस बात का मलाल उसे अच्छी तरह से हो रहा था,,,।



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एक दिन सुगंधाअपने बेटे अंकित और अपनी बेटी प्रीति के साथ बाजार सामान खरीदने गई थी,,, लेकिनएक दिन जब वह बाजार सब्जी लेने गई थी अपने बेटे के साथ तब फुटपाथ पर कुछ लड़के उसके खूबसूरत बदन उसकी जवानी पर फब्तियां कस रहे थे,,और उन लड़कों के कहने का मतलब बिल्कुल साफ था कि वह लड़के उसे चोदना चाहते थे उसकी बड़ी-बड़ी गांड देखकर उत्तेजित में जा रहे थे उसकी बड़ी-बड़ी चूची उनके बीच आकर्षण का केंद्र था और वह लोग खुलकर उसके साथ-साथ अपनी मां बहन के बारे में भी गंदी बातें कर रहे थे,,, उसे दिन से लेकर आज तक सुगंधा जब भी बाजार सब्जी लेने जाती थी तब फुटपाथ पर खड़े आवारा लड़कों से दूरी बनाकर ही चलती थी,,, बहुत दिनों बाद सुगंधा अपने बेटे के साथ-साथ अपनी बेटी को भी लेकर आई थी क्योंकि अक्सर कोचिंग के सिलसिले से त्रप्ति घर पर मौजूद नहीं होती थी,, और ऐसे में सुगंधा को अंकित के साथ ही बाजार जाना पड़ता था,,,।



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सुगंधा घर का सामान और सब्जियां खरीद चुकी थी और अंकित और तृप्ति को समोसा चाट के साथ-साथ पानी पुरी भी खिला रही थी और खुद भी खा रही थी,,,और उन दोनों के साथ नाश्ता करने के बाद वह बाजार के मुख्य सड़क पर आ गई थी जहां से उन लोगों को वापस घर की तरफ आना था,,, लेकिन सुगंधा ने देखी की तृप्ति बार-बार बाजार की तरफ ही देख रही थी इसलिए वह तृप्ति से बोली,,,।।

क्या हुआ बार-बार वहां क्या देख रही है,,।

मुझे और पानी पुरी खाना है,,,।

अभी तो तुम खाई ना,,,।

तो क्या हो गया मन थोड़ी ना भरा है मेरा मन और कर रहा है खाने को,,,।




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हे भगवान कैसी लड़की है इसका पेट ही नहीं करता अभी घर पर जाएगी तो कहेगी कि भूख नहीं लगा है,,, और इसके हिस्से का खाना बेकार हो जाएगा,,,,(ऐसा कहते हुए बटुआ में से 10 का नोट निकालते हुए वह तृप्ति की तरफ आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)


ले जाकर खा ले और जल्दी से खाना,,,(उसे रुपया थमाने के बाद वह अंकित की तरफ देखने लगी और बोली,,) तुझे भी और खाना है,,,.

नहीं नहीं मेरा तो हो गया मैं नहीं खाऊंगा,,,।

ठीक है तू ही जा जल्दी से आना,,,,




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ठीक है अभी जल्दी से आती हुं उसने बराबर तीखा नहीं डाला था इसलिए मजा नहीं आया,,,(इतना कहकर तृप्तिजल्दी-जल्दी उसे ठेले वाले के पास जाने लगी और मां बेटे दोनों वही बड़े से पेड़ के पास फुटपाथ के किनारे खड़े होकर जहां पर एक 5 फीट की दीवार भी जाती थी और आगे से थोड़ी टूटी हुई थी,,,यह वह जगह नहीं थी जहां पर पहले सुगंध जानबूझकर पेशाब करते हुए अपनी गांड अपनी बेटी को दिखा रही थी यह जगह उससे पहले ही थी बाजार की शुरुआत में,,, यहां पर भी लोगों का आना-जाना अच्छा खासा बना रहता था क्योंकि यहीं से बाजार भी शुरुआत भी होती थी,,,।

कुछ देर खड़े रहने के बाद सुगंधा को वाकई में पेशाब लगने लगी,,, वह इधर-उधर देखने लगी वह जानती थी कि यह उचित जगह नहीं थी पेशाब करने कीक्योंकि यहां पर लोगों का आना-जाना काफी था इसलिए वह अपने आप को रोक रह गई थी अपने आप पर काबू किए हुए थी,,,लेकिन फिर भी रह कर उसके पेशाब की तीव्रता बढ़ती जा रही थी उससे अब काबू नहीं हो रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि अगर वह कुछ देर तक ऐसे ही खड़ी रही तो अपने आप ही उसकी पेशाब छूट जाएगी,,, इन सबसे अनजान अंकित अपनी ही धुन में खड़ा होकर इधर-उधर देख रहा था,,, सुगंधा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,,पहले तो ऐसे हालात में वहां किसी भी तरह से किसी न किसी बहाने से अपनी नंगी गांड को अपने बेटे को दिखाने की कोशिश करती थी लेकिन इस समय का हालात कुछ और था यहां पर ऐसा कुछ भी नहीं था कि जानबूझकर अपने बेटे को अपना खूबसूरत अंग दिखाएं क्योंकि ऐसे में दूसरे के भी देखे जाने की अाशंका बढ़ जाती थी। इसलिए वह इस समय दीवार की दूसरी तरफ जाकर पेशाब करने से कतरा रही थी वह तृप्ति का इंतजार कर रही थी कि जल्दी से वह आए तो घर की तरफ जाए,,,,इसलिए वह बार-बार इस दिशा में देख रही थी लेकिन दूर-दूर तक तृप्ति का कोई ठिकाना नहीं था,,,।



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लेकिन पेशाब की तीव्रता अब असहनीय होने लगी उसे लगने लगा कि अब छोड़ जाएगा इसलिए वह जल्दी से थैले को अंकित के हाथों में पकडाते हुए बोली,,,,।

अंकित तु थैला पकड़,, मैं अभी आती हूं,,,,।

(अंकित थैला पकड़ने से पहले ही बोला,)

लेकिन तुम कहां जा रही हो मम्मी,,,,?

ज्यादा सवाल मत पूछ मैं अभी आती हूं ले जल्दी से पकड़ ले,,,।
(इतना कहने के साथ ही वह थैले को अंकित के हाथ में पकड़ा दिया और अंकित भी बिना कुछ आगे पुछे थैले को हाथ में ले लिया,,, और देखने लगा कि उसकी मां क्या करती है,,,, सुगंधा को तो बड़े जोरों की पेशाब लगी हुई इसलिए वह अपने आप को बिल्कुल भी रोक सकने की स्थिति में नहीं थी इसलिए वह तुरंत फुटपाथ से लगी दीवार जो थोड़ी सी टुटी हुई थी उसमें से प्रवेश करके दूसरी तरफ जाने लगी, यह देखकर अंकित भी समझ गया कि उसकी मां कहां जा रही है इसलिए कुछ बोला नहीं वैसे तो ऐसी स्थिति में उसका बहुत मन करता था अपनी मां को पेशाब करते हुए देखने के लिए लेकिन यहां पर ऐसा करना मुनासिब नहीं था क्योंकि यह जगह लोगों के आने जाने के लिए थी और बिल्कुल भी सुनसान नहीं था इसलिए अगर ऐसी स्थिति में वह देखने की कोशिश करता है तो किसी के भी नजर में आ जाएगा,, और ऐसे में शर्मनाक स्थिति पैदा हो सकती है इसलिए वह अपने आप को अपनी मां को पेशाब करते हुए देखने से रोकने लगा,,,



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सुगंधा जल्दबाजी दिखाते हुए पीछे की तरफ पहुंच चुकी थी और इधर-उधर देख भी नहीं वह अपनी साड़ी को दोनों हाथों से पकड़ कर एकदम से कमर तक उठाकर वहीं पर पेशाब करने के लिए बैठ गई थी,,, जैसे ही उसके गुलाबी छेद में से पेशाब का फवारा फुटा उसे राहत महसूस होने लगी और उसे इस बात का एहसास भी होने लगा था कि अगर वह जरा सी देरी लगती तो शायद साड़ी में ही उसका पेशाब छूट जाता तब शर्मनाक स्थिति पैदा हो जाती,,,,, पेशाब की तीव्रता इतनी थी कि बैठने के बावजूद भी तकरीबन डेढ़ मीटर तक उसकी बुर से पेशाब की धार निकल कर जा रही थी,, बाहर दीवार के पीछे खड़े अंकित का मन बहुत मचल रहा था लेकिन वह किसी तरह से अपने आप को रोके हुए था और बाजार की तरफ देख रहा था जहां पर तृप्ति पानीपुरी खाने के लिए गई थी,,,, जहां पर वह खड़ा था वहां लगातार लोगों का आना-जाना बना हुआ था इसलिए वह छुपकर भी उस नजारे को देख नहीं सकता था,,,।







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धीरे-धीरे सुगंधा के पेशाब की तीव्रता कम होने लगी लेकिन फिर भी उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके पास में ही कुछ पानी जैसा गिर रहा है वह एकदम हैरान हो गई थी इधर-उधर देखने लगी उसे कहीं कुछ दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन तभी उसे ऐसा लगा कि पेड़ के पास से ही वह आवाज आ रही है और वह बड़े गौर से देखी तो एकदम से हैरान हो गई उसकी सांस एकदम से अटक गई,,, अपनी स्थिति पर उसे शर्म महसूस होने लगी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें अभी भी उसकी बुर से पेशाब की धार निकल रही थी भले ही कमजोर पड़ गई थी लेकिन धार बराबर निकल रही थी लेकिन जो उसकी आंखों के सामने पेड़ के पास था वह उसे एकदम शर्मिंदगी का एहसास करने के लिए काफी था,,, अगर उसकी जगह कोई और औरत होती तो शायद उसकी भी यही स्थिति होती,,,।







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बड़ी गौर से देखने के बाद चित्र स्पष्ट हो गया था पेड़ के पीछे कोई आदमी खड़ा था जो अपना लंड बाहर निकाल कर पेशाब कर रहा था,,, इस नजारे को देखकर सुगंधा एकदम से ठीठक गई,,, उसकी तो पेशाब एकदम से रुक गई थी वह कुछ पल के लिए उस नजारे को देखते ही रह गई,,, सामान्य अवस्था में वह पेशाब नहीं कर रहा था इतना तो तय था क्योंकि उसका लंड पूरी तरह से उत्तेजित था एकदम खड़ा था वह उत्तेजित अवस्था में पेशाब कर रहा था,,,, सुगंधा को क्या करना है उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह तो बस एक टक उसकी तरफ देखती ही जा रही थी,, पहली बार किसी गैर मर्द को अपनी इतनी करीब खड़ा होकर पेशाब करते हुए देख रही थी,, इससे पहले केवल उसके पास खड़े होकर उसका बेटा ही पेशाब किया था क्योंकि ऐसा वह चाहती थी वरना उसके बेटे की भी हिम्मत नहीं थी कि उसके पास में खड़ा होकर पेशाब कर सकें,,,।




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सुगंधा का मन विचलित हुआ जा रहा था क्योंकि वह आदमी अपनी लंड को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर उसे आगे पीछे करके हिलाते हुए पेशाब कर रहा था, यह नजारा देखकर वह इतना तो समझ ही गई थी कि सामान्य रूप से वह पेशाब नहीं कर रहा था बल्कि इसकी कोई खास वजह थी उसके अंदर गंदी भावना पैदा हो रही थी और जल्द ही उसे इस बात का पता भी चल गया क्योंकि जिस तरह से सुगंधा उसकी तरफ देख रही थी उसे आदमी को लगने लगा कि वह भी रुचि रख रही है इसलिए वहां अपने लंड को हिलाते हुए ही बोला,,,।







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मैडम तुम्हारी गांड बहुत मस्त है तुम्हारी नंगी गांड देखकर करी मेरा लंड खड़ा हो गया है,,,, अगर तुम्हें एतराज ना हो तो यही झुका कर तुम्हारी ले लुं,,,,।
(उसे अनजान आदमी की इस तरह की गंदी बातें सुनकर तो ऐसा लग रहा था की सुगंधा के कानों में हथौड़े बरस रहे हो सुगंध को उम्मीद नहीं थी कि कोई आदमी इस तरह से उसे बदतमीजी करेगा इस तरह से उससे गंदी फरमाइश करेगा,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वैसे इस समय आप गलती उसकी भी थी उसे आदमी को देखकर भी वहां तुरंत उठकर खड़ी होकर सामान्य स्थिति में नहीं हो पा रही थी अब अभी वह उसे ही देखते हुए इस तरह से बैठी हुई थी साड़ी कमर तक उठे उसकी नंगी गांड एकदम साफ दिखाई दे रही थी और यही वजह थी कि वह अनजान आदमी पूरी तरह से मदहोश और उत्तेजित हो गया था और मदहोशी में इस तरह की फरमाइश कर रहा था,,,,,, सुगंधा को वह सहज होते हुए ना देखकर उसकी हिम्मत बढ़ने लगी और उसकी दोनों टांगों के बीच देखते हुए वह अपने लंड को हिलाते हुए बोला,,,)




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क्यों मैडम कैसा लगा मेरा लंड बोलो तो अभी तुम्हारी बुर में डाल दुं,,,,,(ऐसा कहते हुए वह एकदम से पेड़ के पीछे से बाहर आ गया और यह देखकर सुगंधा एकदम से घबरा गई,,, और वह अपने कदम को आगे बढ़ा रहा था यह देखकर तो उसकी हालत और खराब होने लगी वह तुरंत उठकर खड़ी हो गई तो अपनी साड़ी को व्यवस्थित कर दी वह उसे कुछ बोल नहीं पाई बस गुस्से में इतना ही बोली,,,)

बदतमीज कहीं का अपनी मां बहन के पास चले जा,,।
(और इतना कहकर वह तुरंत टूटी हुई दीवार से फिर से फुटपाथ पर आ गई,,,,,, अपनी मम्मी को देख कर अंकित बोला)

कितनी देर लगादी मम्मी,,,,।




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चल कोई बात नहीं,,,, तृप्ति आई कि नहीं,,,,!(तिरछी नजर से दीवार के पीछे की तरफ देखते हुए गोरी वह आदमी अभी भी वहीं खड़ा होकर मुस्कुराता हुआ अपने लंड को हिला रहा था वह अपने मन में बोली कितना बेशर्म है,,,, हरामजादा अपनी मां की बात सुनकर अंकित बोला)

वह देखो आ रही है दीदी,,,, वह भी बहुत समय लगा दी,,,,।

(इसके बाद रास्ते पर सुगंधा उसे आदमी के बारे में सोचती रही कि कैसा बदतमीज और बेशर्म इंसान है,,, सीधे-सीधे उसे चोदने की बात करने लगा,,, फिर अपने मन में सोचने लगी की इसमें उसकी ही गलती है वह ज्यादा देर तक उसे आदमी के सामने भी बैठकर पेशाब करती रही ऐसे में उसकी नंगी गांड और टांगों के बीच की गाली देकर उसकी हिम्मत बढ़ गई थी अगर सच में उसकी जगह कोई और होता तो वह उठकर खड़ी हो जाती है और अपने कपड़े को ठीक कर लेती उसका देर तक बैठे रहना ही उसे आदमी की हिम्मत को बढ़ा रहा था और उसकी हिम्मत इतनी बढ़ गई कि सीधे-सीधे उसे अपने मन की फरमाइश करने लगा,,,।







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इस बात को सोचते हुए वह अपने बेटे के बारे में सोचने लगी कि उस आदमी और उसके बेटे में कितना फर्क है तू जरा सी देर हो जाने पर सीधा मुद्दे की बात पर आ गया था और उसका बेटा उसकी आंखों के सामने जानबूझकर अंग प्रदर्शन करने के साथ-साथ ऐसी तमाम हरकत करने के बावजूद भी उसका बेटा अभी तक उसके इशारे को पूरी तरह से समझ नहीं पाया था और अपने मन की बात को कह नहीं पाया था,,, यही सब सोचते हुए सुगंधा घर पहुंच गई थी।
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
 

Sanju@

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सुगंधा घर पर पहुंचने के बाद भी उस आदमी के बारे में सोच रही थी,,, इस बारे में उसने किसी को यह बात नहीं बताई थी उसे समय अंकित भी वहीं मौजूद था लेकिन अंकित को अहसास तक नहीं हुआ की दीवार की पीछे उसकी मां को पेशाब करते हुए देखकर कोई के इंसान उसके सामने चोदने की फरमाइश रख रहा है,,, और इस बात को सुगंधा ने अपनी बड़ी बेटी तृप्ति को भी नहीं बताई थी,,, सुगंधा रात को अपने बिस्तर में लेटे-लेटे इसी के बारे में सोच रही थी। सुगंसुगंधा घर पर पहुंचने के बाद भी उस आदमी के बारे में सोच रही थी,,, इस बारे में उसने किसी को यह बात नहीं बताई थी उसे समय अंकित भी वहीं मौजूद था लेकिन अंकित को अहसास तक नहीं हुआ की दीवार की पीछे उसकी मां को पेशाब करते हुए देखकर कोई के इंसान उसके सामने चोदने की फरमाइश रख रहा है,,, और इस बात को सुगंधा ने अपनी बड़ी बेटी तृप्ति को भी नहीं बताई थी,,, सुगंधा रात को अपने बिस्तर में लेटी हुई इन्हीं सब के बारे में सोच रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसका बेटा है कितना बुद्धू क्यों है जो कि उसकी आंखों के सामने हुआ इतना अंग प्रदर्शन कर चुकी थी उसका एक-एक अंग उसे खोलकर दिखा चुकी थी लेकिन फिर भी वह उसके इशारे को समझ नहीं पा रहा था,,, अपने बेटे की मूर्खता पर उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। क्योंकि उसकी प्यासा बदन अब उसके काबू में बिल्कुल भी नहीं था।



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बाजार में दीवार के पीछे जो कुछ भी हुआ था वह भले ही कुछ पल के लिए सुगंध को हैरान और डरा देने वाला था लेकिन मन ही मन हुआ उसे आदमी को उसकी हिम्मत को दाद दे रही थी की पहली मुलाकात में ही उसने अपने मन की बात उसके सामने रख दिया था,,, और बदले में उसने की क्या थी बस उसके सामने कुछ देर तक पेशाब करने लग गई थी बस इसी से उसकी हिम्मत बढ़ गई थी और उसने अपने मन की बात उसके सामने कह दी थी और उसकी वासना इतनी बढ़ गई थी कि उसकी आंखों के सामने ही अपने लंड को निकाल कर उसे हिला रहा था मानो संकेत दे रहा हो कि बस अब हो गया तुम्हारी इजाजत हो तो तुम्हारी चुदाई कर दुं,,, इतने से ही मन आदमी सब कुछ समझ गया था लेकिन उसका बेटा अभी तक नहीं समझ पाया था जो कि अपने हाथों से उसे चड्डी तक पहना चुका था बाथरूम के दरवाजे के छोटे से छेद से देख भी चुका था कि उसकी मां कितनी प्यासी है फिर भी वह आगे बढ़ने से डर रहा था या वाकई में वह पूरी तरह से बुद्धु था,,, और उसे आगे कुछ आता ना हो शायद इसीलिए वह आगे बढ़ने से कतरा रहा था,,,,




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सुगंधा अपने मन में सोच रही थी कि अगर वाकई में उसे कुछ नहीं आता तो इसमें क्या हो गया वह खुद उसे सीखाने के लिए तैयार है बस वह आगे तो बढे,,, लेकिन एक सीमा के आगे वह अपने कदम आगे बढ़ा नहीं पा रहा है,,, औरत के जिस को देखकर उसके बदन में उत्तेजना का एहसास होता है वह भी मदहोश हो जाता है इस बात का पता सुगंधा को अच्छी तरह से था,, जिसका एहसास हुआ कहीं बार महसूस कर चुकी थी बस के अंदर तो हद हो गई थी अगर वह साड़ी ना पहनी होती तो शायद उसके बेटे का लंड उसकी बुर में घुस गया होता इस कदर वह बावला हो गया था,,,, यही सब सो कर सुगंधा हैरान हो रही थी और अपने मन में आगे बढ़ने का कोई रास्ता ढूंढ रही थी उसे लगने लगा था कि अब मंजिल तक पहुंचना जरूरी है सफर का मजा तो वह पूरा ले रही है लेकिन मंजिल पर पहुंचने की उत्सुकता अब बढ़ती जा रही है,,, लेकिन कैसे बढ़ा जाए कुछ समझ में नहीं आ रहा है,,,,।



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यही सब सोचते हुए सुगंधा रोज की तरह ही,, अपने पसंद से एक-एक करके सारे कपड़ों को उतार कर एकदम नंगी हो गई और अपने दोनों टांगों को फैला कर अपनी उंगली से अपनी जवानी की आग को शांत करने की नाकाम कोशिश करने लगी वह जानती थी कि जब तक उसकी बुर में मोटा तगड़ा लंड नहीं घुसेगा तब तक यह आग भडकती रहेगी,,,, एक अजीब सी स्थिति हो जाती है जब इंसान को पता हो कि उसका इलाज क्या है और सब कुछ उसके पास में करीब में होने के बावजूद भी वह अपना इलाज उचित ढंग से ना कर पाए यही उसकी सबसे बड़ी बदकिस्मती होती है और इस समय सुगंध अपने आप को सबसे बड़ी बस किस्मत समझ रही थी,,,, वह अपने मन में सोचने लगी कि अब उसे ही कुछ करना होगा,,, जैसा कि वह पहले भी सोच चुकी थी और उस दिशा में अपने कदम बढ़ाती भी थी लेकिन कुछ दूरी पर जाकर उसके कदम खुद ब खुद रुक जाते थे।



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सुबह सबसे पहले अंकित की आंख खुली,,,, लेकिन उसने महसूस किया कि घर में किसी भी प्रकार का चल-पा नहीं हो रहा था किसी प्रकार की हलचल नहीं थी कोई शोर शराबा नहीं था जिसका मतलब साफ था कि अभी घर में सब सो रहे हैं और वैसे भी किसी को कहीं जाना तो था नहीं इसलिए चैन की नींद सो रहे थे स्कूल में छुट्टी पड़ चुकी थी इसलिए उसकी मां भी निश्चित थी लेकिन उसका मन हुआ कि चलो थोड़ा- बाहर टहल लिया जाए,,,,, इसलिए वह अपनी बिस्तर से उठ कर बैठ गया और फिर अपनी आलस को मारते हुए धीरे से बिस्तर पर से उठकर खड़ा हो गया,,, दीवार पर टंगी घड़ी पर देखा तो अभी 5:00 बज रहे थे,,, शायद आज वह जल्दी ही उठ गया था,,, बाहर अभी भी अंधेरा था इसलिए वह सोचा कि थोड़ी देर बैठ जाऊं फिर उठ कर चला जाऊंगा और यही सोचकर वह फिर से बैठ गया।



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सुबह-सुबह अचानक उसके मन में उसकी मां के बारे में ख्याल आने लगा राहुल की बातें याद आने लगी उसे औरत की स्थिति का ज्ञान होने लगा, वह समझ रहा था कि उसकी मां चुदवाने के लिए तड़प रही है,,, उसे अपनी मां की स्थिति का अच्छी तरह से एहसास था वह जानते थे कि उसकी मां बिना पति के बरसों से इसी तरह से अपना जीवन गुजार रही थी,,, उसके मन में भी जिस्म की चाहत जगती होगी,,, वह भी अपनी बुर में लंड लेना चाहती होगी तभी तो बस में उसकी गांड के बीचों बीच लंड घुसने के बावजूद भी उसने बिल्कुल भी रोकने की कोशिश नहीं की थी अगर उसे यह सब खराब लगता तो इस समय वह मुझे अपने आप से दूर रहने के लिए बोलती मुझे डांट लगाती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था,, बल्कि बस में अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि वह खुद अपनी गांड को उसकी तरफ ठेल रही थी,,, इन सब बातों को याद करके अंकित अपने मन में सोच रहा था कि अगर वह घटना घर में घटी होती तो शायद उसकी मां अपने हाथों से अपनी साड़ी कमर तक उठा देती और अपने हाथ से लंड को पकड़ कर अपनी बुर पर सटा दी होती,,,



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और अगर सच में उसके मन में ऐसा कुछ ना होता तो वह अपने भाई के घर खिड़की पर आधी रात को खड़ी होकर चुदाई का नजारा ना देख रही होती,,,, इन सब बातों को सोचकर अंकित अपने आप में ही दुखी हो रहा था और उत्सुक भी हो रहा था क्योंकि उसे इतना तो पता चल गया था कि उसकी मां चुदवाना चाहती है लेकिन आगे बढ़ने से डर रही है शायद शर्म और संस्कार की वजह से वह अपने आप को ऐसा करने से रोक रही है अगर ऐसा है तो उसे ही कुछ करना होगा उसे ही इस खेल को पूरा करना होगा क्योंकि वह भी तो यही चाहता है,,,, एक बेटा होने के शायद वह ऐसा ना कर सके लेकिन एक मर्द होने के नाते वह ऐसा जरूर कर पाएगा ऐसा उसके मन में पूरा विश्वास था और वह भी यही चाहता ही था,, इन सब बातों को सोचकर सुबह-सुबह अंकित उत्तेजित हो गया था,,, और तकरीबन 10 15 मिनट गुजर भी चुके थे इसलिए वह धीरे से अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और अपने कमरे से बाहर आ गया,,, अपनी मां के कमरे से गुजरते हुए वह अपने मन में सोचा कि एक बार देख लो कि उसकी मां सो रही है या जाग रही है अगर जाग रही होगी तो जाते समय बोल दूंगा कि दरवाजा बंद कर ले,,, ऐसा सोचकर वह अपनी मां के कमरे के सामने खड़ा हो गया।




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वह दरवाजे पर दस्तक दिए बिना अपनी मां को आवाज लगाकर जागना चाहता था और यह देखना चाहता था कि वह सो रही है कि जाग रही है लेकिन तभी ऐसा सोचते हुए उसका एक हाथ दरवाजे पर
अपने आप ही स्पर्श हो गया और उसके स्पर्शों से ही दरवाजे का एक पल्ला धीरे से खुलने लगा,, दरवाजे का पल्ला खुलने की वजह से अंकित को लगने लगा कि उसकी मां जग रही होगी तो उसे खाने में आसानी होगी इसलिए वह एक पल्ला पूरी तरह से खुलने दिया और कमरे के अंदर देखने लगा अंदर लाल कलर का हल्के वोल्टेज का गोला जल रहा था जिसकी रोशनी में सब को साफ दिखाई दे रहा था लेकिन फिर भी अंदर का दृश्य सबको साफ दिखने में कुछ पल का समय लगा।





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और जैसे ही अंदर का दृश्य एकदम साफ होने लगा अंकित के दिल की धड़कन एकदम से बढ़ने लगी उसकी नजर कमरे के एक तरफ के दीवार से सटे हुए बिस्तर पर पड़ी जिस पर उसकी मां सो रही थी लेकिन बिना कपड़ों के एकदम नंगी उसके पसंद से साड़ी उसका ब्लाउज उसका पेटिकोट सब कुछ बिस्तर के नीचे बिखरा पड़ा हुआ था और उसकी मां पीठ के बाल एकदम आराम से गहरी नींद में सो रही थी इस नजारे को देखकर तो अंकित का दिल और जोरो से धड़कने लगा उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां इस तरह से सारे कपड़े उतार कर नंगी होकर क्यों सो रही है,,,, उसके दिल की धड़कन कैसा लग रहा था कि उसका साथ नहीं दे पा रही थी और बेकाबू होकर चल रही थी। पर धीरे-धीरे आगे की तरफ बढ़ रहा था।




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और जैसे-जैसे अपनी मां के बिस्तर की तरफ बढ़ रहा था वैसे उसे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह आगे बढ़ेगा इसी समय दबे पांव वापस लौट जाए क्योंकि उसकी मां के उठने का समय हो गया था अगर ऐसी हालत में उसकी भीख खुल गई और उसे इस तरह से अपने कमरे में देख ली तो पता नहीं क्या समझेंगी यही सब सोच कर उसका दिल जोरो से धड़क रहा था,,,, कुछ पल के लिए अपनी मां को इस तरह से अस्त्र-व्यस्त हालत में सोता हुआ देखकर अंकित के मन में कुछ और सबका होने लगी वह अपने मन में सोचने लगा कि कहीं उसकी मां के कदम सच में जगमगा तो नहीं गए हैं कहीं सच में उसकी मां अपनी जवानी की आग को अपने हाथों से बुझा पानी में असमर्थ तो नहीं हो गई है कहीं ऐसा तो नहीं की एकदम चुदवासी होकर वह कोई गलत कदम तो नहीं उठा ली,,, गलत कदम उठा लेने से अंकित का मतलब था कि कहीं कोई गैर मर्द तो नहीं है जो उसकी मां की प्यास बुझा रहा हो।




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जिस तरह के हालात थे अंकित का दिल शंका से भरा जा रहा था उसे लगने लगा था की कही वाकई में ऐसा तो नहीं हो गया,,, अंकित को इस बात का एहसास था कि उसकी मां महीनो से प्यासी थी प्यासी तो वह बरसों से थी लेकिन कुछ महीनो से अंकित को इस बात का एहसास हो रहा था कि उसकी मां के बदन में चुदास की लहर कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी है,,, और अपने दोस्त राहुल से उसने सुना था कि औरत जब प्यासी होती है तो वह घर में ही अंग प्रदर्शन करती है किसी ने किसी बहाने से घर के जवान लड़की को अपने अंगों को दिखाने की कोशिश करती है ताकि उसके अंगों को देखकर रीझकर वह घर की औरत के बदन की प्यास बुझा सके उसे खुश कर सके,,, उसे संतुष्ट कर सके,,, उसकी जवानी की आग को अपने मर्दाना अंग से
बुझा सके,,,।





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और यही सब सोच कर वह हैरान हुआ जा रहा था। उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी उसके चेहरे के भाव एकदम से बदलने लगे थे जहां उत्तेजना का एहसास उसके चेहरे पर दिखाई दे रहा था वही चिंता की लकीरें भी उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई देने लगी थी।

वह अपने मन में सोच कर हैरान हो रहा था कि उसके दोस्त की बताई सभी हरकत है तो उसकी मां उसके सामने कर रही थी,,, उसके सामने अंक प्रदर्शन करना उसके सामने बैठकर पेशाब करना,,, नंगी गांड दिखाना यह सब तो उसकी हरकत में शामिल था यह सब को जानबूझकर उसे दिखा रही थी उसे अपनी तरफ रीझा रही थी ताकि अपनी जवानी की आग को अपने बेटे से बुझा सके,,, लेकिन वही मूर्ख था जो अपनी मां के इशारों को नहीं समझ पाया और आज उसकी मां दूसरी औरतों की तरह दूसरे मर्द का सहारा लेने लगी,,, अब तो यह सब सोच कर अंकित की हालत और ज्यादा खराब होने लगी उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगा उसे यही लगने लगा था कि उसकी मां रात को किसी दूसरे मर्द को अपने कमरे में बुलाती है और रात भर चुदवाती है तभी तो इस समय वह नंगी होकर सो रही है उसके कपड़े बिस्तर के नीचे बिखरे पड़े हैं,,,, उसे इस समय अपनी मां पर नहीं बल्कि अपने आप पर ही गुस्सा आ रहा था वह अपने आप को ही कोस रहा था और अपने मन में सोच रहा था कि अगर वह अपनी मां के ईशारे को समझ जाता या थोड़ी हिम्मत दिखता तो आज उसके कमरे में वह होता कोई दूसरा मर्द नहीं,,,,।




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यही सब सोचते हुए अपनी मां के बेहद करीब पहुंच चुका था एकदम बिस्तर के पास उसकी मां एकदम नंगी बेसुध होकर सो रही थी उसकी दोनों टांगे खुली हुई थी वह एकदम चित होकर सो रही थी जिसे उसकी बुर एकदम साफ दिखाई दे रही थी और साथियों की शोभा बढ़ा रही है उसकी चूचियां पानी भरे गुब्बारे की तरह उसकी छातियों पर लहरा रही थी,, यह सब देख कर अंकित के मुंह में पानी आ रहा था और उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,,, फिर उसके मन में ख्याल आया कि ऐसा भी तो हो सकता है कि वह खुद अपने हाथों से अपनी जवानी की प्यास बुझा रही हो। क्योंकि ऐसा तो होगा खुद भी कर चुका है और ऐसा करते समय वह भी अपने बदन से सारे कपड़े उतार कर फेंक देता है और अपने लंड को अपने हाथ से हिलाता है मुट्ठीयाता है,,, अब उसके मन में दो-दो ख्याल चल रहे थे....





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वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या सच है लेकिन उसे अपनी मां पर पूरा विश्वास था वह जानता था कि उसकी मां इस तरह के कदम नहीं उठा सकती समझ में उसकी बदनामी हो ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकती और ऐसे हालात में तो वाकई में कमरे में किसी गैर मर्द को बुलाना अपनी इज्जत को खुद अपने हाथों से नीलाम करने जैसा हो जाता जब उसके मन में इस तरह का ख्याल आया तब जाकर उसके चेहरे पर शांति का आभास होने लगा उसके चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी क्योंकि उसे लगने लगा था कि अगर ऐसा कुछ होता तो उसे जरूर है कुछ ना कुछ ऐसा कुछ जरूर होता है कि नहीं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था,,,,।






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अपने मन में इस तरह का ख्याल आते ही उसका मन शांत होने लगा और वह बड़े गौर से अपनी मां की दोनों टांगों के बीच की पतली लकीर को देखने लगा जो की सोते हुए भी उत्तेजित अवस्था में कचोरी की तरफ फुल गई थी,,,, अंकित के दिल की धड़कन फिर से बढ़ने लगी थी,,, इस समय उसकी मां की गुलाबी बुर दुनिया के सबसे हसीन और बेशकीमती खजाना लग रही थी,,, वह बड़ी गौर से अपनी मां के उस खूबसूरत अंग को देख रहा था जिसे पाने के लिए वह खुद तड़प रहा था। इस समय उसका मन तो कर रहा था कि इसी समय अपनी मां की गुलाबी बुर पर अपने होठ रखकर एक चुंबन कर ले,,, लेकिन ऐसा करने से उसका मन घबरा रहा था क्योंकि अगर उसकी मां की आंख खुल जाती तो गजब हो जाता,,,, ऐसा वह सोच रहा था लेकिन सच में उसकी मां जा चुकी थी उसे एहसास हो गया था कि उसका बेटा उसके बेहद करीब है और वह जिस अवस्था में सोई हुई है वाकई में यह फल उसके लिए बेहद उत्तेजनात्मक है।




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सुगंधा अपनी आंखों को खोल नहीं रही थी क्योंकि वह जानती थी कि अगर इस समय अपनी आंखों को खोल देगी तो उसका बेटा तुरंत कमरे से बाहर निकल जाएगा और वह देखना चाहती थी कि इस समय उसका बेटा क्या करना चाहता है क्योंकि ऐसा नजारा उसका बेटा पहले भी देख चुका था और आज वह देखना चाहती थी कि उससे बढ़कर आज उसकी कोई हरकत देखने को मिलती है या अभी भी वह पूरी तरह से बुद्धू है,,,, उसकी मां अपने बेटे में सुधार देखना चाहती थी उसकी हिम्मत को बढ़ते हुए देखना चाहती थी जैसा की बस में उसने थोड़ा बहुत हिम्मत दिखाया था,,,,,वह अपने मन में सोच रही थी कि अगर आज ऐसा कुछ हो जाता है तो आज ही वह अपने बेटे के लिए अपनी दोनों टांगों को खोल देगी भले ही इसके लिए उसे एकदम बेशर्म बनना पड़ेगा लेकिन अब वह पीछे नहीं है सकते इसलिए अपनी आंखों को बंद किए हुए थे और इस पल का आनंद ले रहे थी ‌।




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दूसरी तरफ अंकित इस बात से अआस्वस्त था कि बहुत देर हो चुका था उसे अपनी मां के कमरे में आए लेकिन उसकी मां के बदन में जरा भी हलचल नहीं हो रही थी जिसका मतलब साफ था कि उसकी मां एकदम घोड़े बेच कर सो रही थी एकदम गहरी नींद में सो रही थी,,, यह एहसास होते ही अंकित के दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी उसकी हिम्मत भी बढ़ने लगी थी वह धीरे से अपनी मां की खूबसूरत चेहरे की तरफ देखा उसके खूबसूरत रेशमी बालों की लटे उसके चेहरे पर आ चुकी थी,, और पंखे की हवा में इधर-उधर लहरा रही थी जिसकी वजह से उसकी मां की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ जा रही थी,,,, लेकिन इस समय बेहद नाजुक क्षण था बहुत कम समय था और वह अपनी मां की खूबसूरत बालों की लटो में उलझना नहीं चाहता था उसे तो झांट के बाल में उलझना अच्छा लग रहा था,,,।







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अंकित ने यहां पर एक बात पर ध्यान दिया था कि उसकी मां की बुर एकदम चिकनी थी उस पर बाल का रेशा तक नहीं था इसका मतलब साफ था कि उसकी मां निरंतर अपनी बुर की सफाई करती थी ताकि वह देखने में एकदम जंवा ताजा लगती रहे,,, लेकिन अब अंकित अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहता था अब आगे बढ़ना चाहता था वह धीरे-धीरे अपनी मां की दोनों टांगों के बीच झुकने लगा और तिरछी नजर से अपनी मां के चेहरे की तरफ देख रहा था कि कहीं उसकी आंख ना खुल जाए,,,, उसे नहीं मालूम था कि अगर इस समय उसकी मां की आंख खुल जाएगी तो वह क्या जवाब देगा की क्या करने उसके कमरे में आया था ऐसा हुआ कुछ सोचा नहीं था बस इस समय अपनी मां को नंगी सोता हुआ देखकर उसकी हिम्मत बढ़ रही थी। रहरहकर वह अपनी सांसों को दुरुस्त करने के लिए गहरी गहरी सांस लेने लग जा रहा था क्योंकि उसकी सांसों की गति इस समय कुछ ज्यादा ही तेज चल रही थी उसे खुद की दिल की धड़कन की आवाज सुनाई दे रही थी।






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अंकित की हिम्मत बढ़ने लगी और वह धीरे से अपनी हथेली को अपनी मां की गुलाबी बुर की तरफ आगे बढ़ने लगा लेकिनउसके हाथों में उत्तेजना की कंपन थी एक डर था अपनी मां के जग जाने का और उत्सुकता थी कि कैसा महसूस होता है अपनी मां की बुर पर हथेली रखने पर जिसका मिला जुला एहसास अंकित के चेहरे पर दिखाई दे रहा था। अंकित की हथेली उसकी मां की दोनों टांगोंके बीच पहुंच चुकी थी उसकी बुर और हथेली में केवल चार अंगूल का ही फासला था लेकिन तभी अंकित के मन में डर की भावना बढ़ने लगी उसे एहसास होने लगा कि अगर उसकी मां जग गई तो गजब हो जाएगा और वह अपने कदम पीछे लेने के बारे में सोच ही रहा था कि तभी उसे ख्याल आने लगा।







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कि अगर वास्तव में उसकी मां को एक मर्द की जरूरत है और अगर ऐसे में वह अपने कदम पीछे ले लेता है तो कुछ देर पहले अपनी मां के कमरे में दाखिल होने के बाद जो शंका है उसके मन में जाग रही थी वह शंका भी सच साबित हो जाएगी और उसकी मां अपनी जवानी की आग बुझाने के लिए किसी गैर मर्द की बाहों में पिघलने लगेगी अगर ऐसा हो गया तो उसे अपनी जवानी पर अधिकार होगा अपनी मर्दानगी पर धिक्कार होगा कि उसके होते हुए भी किसी गैर मर्द का सहारा उसकी मां को देना पड़ रहा है यही सब सोचकर वह एकदम से रुक गया और अगले ही पल वह अपनी हथेली को अपनी मां की बुर पर रख दिया जो कि एकदम दहक रही थी तप रही थी,,, अंकित को यह पल एकदम मदहोश कर देने वाला लग रहा था वह एकदम से गहरी सांस लेने लगा उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें।





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और दूसरी तरफ सुगंधा की हालत खराब होती चली जा रही थी उसका मन कर रहा था कि अपनी आंखों को खोल दे और अपने बेटे के हाथ को अपनी बर पर ही पकड़ ले और उसे अपनी बाहों में खींच ले और सारी हसरतों को पूरा कर ले लेकिन वह इससे ज्यादा अपने बेटे की हरकत को देखना चाहती थी लेकिन जिस तरह की हरकत उसने किया था पूरी तरह से उसकी नसों में मदहोशी का रस खोल दिया था बड़ी मुश्किल से वह अपनी उत्तेजना पर काबू कर पाई थी,,,, अपने बेटे की गरम हथेली को अपनी गरम बुर पर महसूस करके वह पागल हुए जा रही थी। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें बस बेसुध होकर चित लेटी हुई थी,,, उसकी भी सांस ऊपर नीचे हो रही थी लेकिन वह बड़ी मुश्किल से अपनी सांसों को तेज चलने से रोकी हुई थी क्योंकि वह जानती थी कि अगर ऐसा हो गया तो उसके बेटे को शक हो जाएगा कि उसकी मां जाग रही है। सुगंधा भी अपने आप पर पूरी तरह से काबू किए हुए थी।





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दूसरी तरफ अंकित ने जब देखा कि हथेली को बुर पर रखने के बावजूद भी उसकी मां के बदन में जरा भी हल-चल नहीं हुआ है तो उसकी हिम्मत बढ़ने लगी,,,, और वह अपने बदन में पहले से ही अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रहा था उसकी मां की बुर की गर्मी उसके बाद में और भी ज्यादा उत्तेजना का एहसास दिला रही थी और वह उत्तेजना के चलते अपनी हथेली में अपनी मां की बुर को एकदम से जोर से दबोच लिया,,, ऐसा करने में अंकित को बहुत मजा आया लेकिन वह एकदम से घबरा गया था क्योंकि वह ऐसा करना नहीं चाहता था बस अपने मां पर काबू नहीं कर पाया था लेकिन फिर भी जब देखा कि उसकी मां इतने से भी नहीं जागी है तो उसके मन में प्रसन्नता के भाव नजर आने लगे वह खुश होने लगा,,,, अब उसकी हिम्मत और बढ़ने लगी मन तो उसका कर रहा था किसी से मैं अपनी मां की दोनों टांगें खोलकर उसकी बुर में अपना लंड डाल दे और जो होगा देखा जाएगा लेकिन ऐसा करना उचित नहीं था,,।



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क्योंकि वह अपनी मां के सामने अपनी बुद्धि का प्रदर्शन पहले ही कर चुका था अपने मामा और मामी की चुदाई को देखकर,,, उस समय उसे नजारे को देखकर हुआ अपनी मां से पूछ बैठा था कि वह दोनों क्या कर रहे हैं और अगर इस समय वहां वही दृश्य को दोहराएगा तो उसकी मां क्या समझेगी लेकिन फिर अपने सवाल का जवाब उसके मन में आ चुका था वह अपनी मां से वही बोलेगा जरूर समय उसकी मां उसे जवाब दी थी कि उसकी मामी बहुत परेशान है और उसके मामा उसकी परेशानी दूर कर रहे हैं,,,, लेकिन एक सवाल और खड़ा हो जाता है कि उसकी मां कहां परेशान नजर आ रही है जो वह इस तरह से उसकी परेशानी दूर कर रहा है इस तरह का ख्याल से ही वह अपने मन में से ईस युक्ति को निकाल दिया,,। और उठकर खड़ा हो गया क्योंकि उसकी मां के उठने का समय हो चुका था। वह अपने मन में सोच रहा था कि इतना तो बहुत है उसके लिए इस समय उसके पेंट में पूरी तरह से तंबू बन चुका था।



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और दूसरी तरफ सुगंधा सोच रही थी कि उसका बेटा अपनी हरकत को थोड़ा और बढ़ाया उसकी बुर में उंगली डालें लेकिन वह तो ऐसा करने से पहले उठकर खड़ा हो गया था और यह सब सुगंधा अपनी आंख को हल्के से खोलकर देख रही थी उसके मन में निराशा जगने लगी थी,,,, लेकिन तभी अंकित को न जाने क्या हुआ वह तुरंत फिर से नीचे झुक गया और अपनी मां की दोनों टांगों के बीच अपना चेहरा ले जाने लगा उसकी हिम्मत बढ़ने लगी थी और यह सब हल्के से आंखों को खोलकर सुगंधा देख रही थी सुगंधा के दिल की धड़कन भी बढ़ने लगी थी जब उसका बेटा अपनी चेहरे को उसके दोनों टांगों के बीच ले जा रहा था उसके मन में अजीब सी हलचल हो रही थी उसे इस बात का डर था कि कहीं वह एकदम से कसमसा नी जाए उसके बदन में हलचल न होने लगे,,,, लेकिन जैसे तैसे करके वह अपने आप को काबू में किए हुए अपने बेटे की हरकत को देख रही थी,,,,।




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और उसका बेटा मन में जैसे दृढ़ निश्चय कर लिया हो कि अब जो होगा देखा जाएगा,,, और अगले ही पल उसने को हरकत कर दिया इसके बारे में सुगंध कभी सोच भी नहीं करती थी अंकित अपने प्यासे होठों को अपनी मां की बुर पर रख दिया था और गहरी गहरी सांस ले रहा था अपने बेटे के होंठ को अपनी गुलाबी पर पर महसूस करते ही सुगंध एकदम से गनगना गई थी उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे उसकी बुर के अंदर अत्यधिक खुजली हो रही हो और वह अपनी बुर को अपने हाथों से अपनी उंगली को उसमें डालकर खुजलाना चाहती थी लेकिन अपने आप को किसी तरह से वह रोक रह गई थी और अंकित इस पल को पूरी तरह से जी लेना चाहता था अपनी मां की बुर पर अपने होठ को रखकर वह गहरी गहरी सांस ले रहा था और बुरे की गहराई से उठ मादक खुशबू को अपने नसों से अपनी छाती मैं उतार ले रहा था,,,, बर से उठ रही मादक खुशबू सिर्फ खुशबू नहीं थी एक नशा था जिसका कोई तोड़ नहीं था,,, और अंकित उसे नशे को जी भर के अपने अंदर ले रहा था।





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ऐसी खुशबू का एहसास हुआ पहले भी महसूस कर चुका था सुमन की बुर से सुमन की बुर को अपने होंठ से अपनी जीभ जी भर के चाट चुका था इसलिए वह जानता था कि औरत की बुर चाटने में कितना आनंद देती है। लेकिन इस समय अंकित को घबराहट हो रही थी वह समझ नहीं पा रहा था कि इस समय वह अपनी मां के बुरे पर अपनी जीभ फिराए कि ना फिराए क्योंकि ऐसा करने में उसकी मां जा सकती थी लेकिन इस समय वह अपनी उत्तेजना को काबू भी नहीं कर पा रहा था वह जिस तरह से अपनी हिम्मत दिखाया था वह अपनी हिम्मत का आनंद भी ले लेना चाहता था वह अपनी मां की बुर को चाट लेना चाहता था पहले ही एक बार ही सही अपनी मां की बुर पर अपनी जीभ को घूमा लेना चाहता था,,,, इसलिए अपनी हिम्मत को आगे बढ़ाने के लिए वह अपनी नजर को उठाकर अपनी मां की तरफ देखने लगा कि कहीं वह जाग तो नहीं रही है लेकिन जैसे ही वह अपनी नजरों को ऊपर की तरफ करना चाहो वैसे ही सुगंधा अपनी आंखों को तुरंत बंद कर ली और फिर से गहरी नींद में होने का नाटक करने लगे और अपनी मां के खूबसूरत चेहरे को देखकर अंकित समझ गया कि उसकी मां वाकई में एकदम घोड़े बेचकर सो रही है इसलिए उसकी हिम्मत बढ़ने लगी ,,,, और वैसे भी बाराती बनकर जो और वहां पर भोजन न करो तो बाराती बनने का कोई मतलब ही नहीं होता।




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इसलिए इस मौके का पूरा फायदा अंकित उठा लेना चाहता था और इसीलिए अपनी मां की तरफ देखते हुए वह अपनी जीप को बाहर निकाला और अपनी मां की बुर की पतली दरार के ऊपर, ऊपर से नीचे तक नीचे लगाकर चाटना शुरू कर दिया और उतेजना के मारे वैसे भी उसकी बुर से मदन रस की बूंद बाहर निकल रही थी लेकिन यहां पर सुगंधा के लिए बेहद उत्तेजनात्मक और बदहवास कर देने वाला था वह पूरी तरह से पागल हुए जा रही थी बरसों के बाद एक तो पहली बार उसकी बुर पर किसी मर्दाना होठों का स्पर्श हुआ था‌। इसलिए उसका बावली होना लाजमी था वह अपनी उत्तेजना जना पर काबु पाने में असमर्थ साबित हो रही थी,,,, उससे रहा नहीं जा रहा था वह अंदर ही अंदर तड़प रही थी,,, उसका मन कर रहा था कि अपने दोनों हाथों से अपने बेटे का कर पकड़ कर अपनी कमर को गोल-गोल हिलाते हुए अपनी बुर को उसके चेहरे पर रगड़ डालें,,,,।




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अंकित पूरी तरह से दीवाना हो चुका था मदहोश चुका था उत्तेजना के सागर में डुब चुका था,,, वह कभी सपने में नहीं सोचा था कि इस तरह से वह अपनी मां के कमरे में आएगा और इस तरह की हरकत कर बैठेगी वह ऐसी हरकत ना भी करता है अगर उसकी मां के बदन पर पूरे कपड़े होते तो अपनी मां को लग्न अवस्था में देखकर ही वह इस तरह के कदम उठाया था लेकिन ऐसा करने में से अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो रही थी वह तीन चार बार अपनी मां की बुर को चाटा और एकदम से उठकर खड़ा हो गया,,, सुगंधा के लिए यही मौका था वह अपने बेटे को अपनी बाहों में भर लेना चाहती थी उसके साथ मिलकर अपने अरमान को पूरा कर लेना चाहते थे लेकिन वह अभी इस बारे में सोच ही रही थी की फुर्ती दिखाता हुआ उठकर खड़ा हो गया था वैसे तो उसकी मां इस समय अपनी मां के कमरे से बाहर जाने का बिल्कुल भी नहीं कर रहा था लेकिन उसके इस तरह से उठकर खड़े हो जाने में बहुत बड़ा कारण था क्योंकि उसकी बहन के कमरे का दरवाजा खोलने की आवाज और तुरंत ही बाथरूम के बंद होने की आवाज उसके कानों में सुनाई दी थी वैसे तो वह इतनी मदहोशी में था कि इस तरह कि आवाज उसे ठीक तरह से सुनाई नहीं देती लेकिन फिर भी उसे एहसास हो गया था कि उसकी बहन बाथरूम में गई है,,,,।




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इसलिए मन होने के बावजूद भी उसका यहां रुकना ठीक नहीं था और वैसे भी जिस तरह से उसकी मां घोड़े बेचकर सो रही थी उसकी हिम्मत और बढ़ती जा रही थी उसके मन में इससे भी ज्यादा करने की इच्छा जागरुक हो चुकी थी लेकिन अब उसका यहां रुकना ठीक नहीं था और वैसे भी अब सुबह पूरी तरह से हो चुकी थी इसलिए वह तुरंत अपनी मां के कमरे से बाहर निकल गया था,,,, सुगंधा भी मदहोशी में इतना डूब चुकी थी कि उसे भी तृप्ति के कमरे के खुलने की आवाज ठीक तरह से सुनाई नहीं देती लेकिन अपने बेटे के घर से बाहर जाते ही उसे बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज सुनाई दी थी और वह समझ गई थी कि उसका बेटा इस तरह से क्यों चला गया और इस समय उसे अपनी बेटी पर थोड़ा गुस्सा आ रहा था,,,, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी शायद उसकी किस्मत में इतना ही लिखा था लेकिन फिर भी बदल में जिस तरह की उत्तेजना के तूफान को उसके बेटे ने जगा कर गया था उसे शांत करना बेहद जरूरी था लेकिन इस समय वह दरवाजा भी खुला था जिसे वहां रात को अनजाने में ही खुला छोड़ दी थी और अपने मन में सोचने लगी कि अच्छा हुआ कि अनजाने में ही वह दरवाजा खुला छोड़ दी थी अगर खुल न छोड़ दी होती तो शायद इस तरह का सुख इस समय वह भोग नहीं पाती।




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लेकिन अपने बेटे का अधूरा काम उसे पूरा करना था इसलिए नग्न अवस्था नहीं हुआ फिर बिस्तर से उत्तर खड़ी हो गई और तुरंत जाकर दरवाजा बंद करके कड़ी लगा दी और अपनी बिस्तर पर आकर अपनी दोनों टांगों को खोल दिया और अपनी उंगली चाहिए अपनी जवानी की गर्मी को शांत करने की कोशिश करने लगी और थोड़ी देर में जैसे ही वह झड़ गई वह गहरी सांस लेते हुए अपने आप को दुरुस्त की और अपने कपड़े पहन कर घर के काम करने में लग गई,।





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नाश्ता तैयार होने के बाद उसका बेटा भी घर पर आ गया था और नहाने के लिए बाथरूम में चला गया था जब वह नहा कर तैयार होकर आया तो सुगंधा उस नजर मिलाने में थोड़ा शर्मा रही थी लेकिन तभी उसके मन में ख्याल आया कि अगर वह इस तरह की हरकत करेगी तो उसके बेटे को शक हो जाएगा आगे नहीं बढ़ पाएगा इसलिए वह अपने बेटे से एकदम सहज हो गई मानो के जैसे कुछ हुआ ही ना हो और वैसे भी अंकित की नजर में तो वह गहरी नींद में सो रही थी इसलिए उसे कुछ मालूम ही नहीं था।
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है जिस तरह से उस आदमी ने सुगंधा से सीधा पूछ लिया कि चुदवाएगी क्या ये सोचकर सुगंधा कि उत्तेजना बढ़ गई और अंगुली से अपने आप को शांत करके सो गई सुबह अंकित जल्दी उठने के कारण अपनी मां को देखने चला जाता है जब वह अपनी मां को नंगी देखता है तो उसमें उत्तेजना बढ़ जाती है और वह अपनी मां की बुर का स्वाद चख लेता है लेकिन आगे बढ़ने से पहले ही तृप्ति के उठने की आवाज आ जाती है और अंकित आगे नहीं बढ़ पाता है जिससे सुगंधा निराशा हो जाती है
 
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Sanju@

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अंकित आज अद्भुत और अविस्मरणीय अनुभव प्राप्त कर लिया था और इस तरह के अनुभव के बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था,,,, एक अतुलनीय अनुभव जो उसके कल्पना से भी परे था कल्पना में भी अंकित ने इस तरह का अनुभव के बारे में कभी सोचा भी नहीं था जिस तरह का अनुभव उसे आज प्राप्त हुआ था वह अपने मन में यही सोच रहा था कि अच्छा हुआ कि आज उसकी नींद समय से पहले खुल गई थी वरना इस तरह के अनुभव से वह पूरी तरह से अनजान रह जाता,,, वैसे तो वहां सुमन की बुर चटाई का अनुभव ले चुका थाऔर उसे सुमन की बुर चाटने में भी बेहद आनंद की प्राप्ति हुई थी।




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लेकिन अंकित को अपनी मां का अनुभव कुछ ज्यादा ही अद्भुत और मजेदार लग रहा था वह कभी सोचा भी नहीं था कि कमरे में जाने पर उसकी मां उसे बिस्तर पर नंगी मिलेगी,,, लेकिन अपने बिस्तर पर उसकी मां नंगी क्यों लेटी हुई थी इस बारे में इसका निष्कर्ष उसे ही कुछ समझ में नहीं आ रहा था लेकिन जो अनुभव उसे मिला था वह बेहद यादगार था। जिसके आगे वह सब कुछ भूल चुका था,,, अंकित क्या उसकी जगह कोई और होता तो उसकी भी यही हालत होती क्योंकि नजर ही कुछ ऐसा था,,, किसी भी जवान लड़की की आंखों के सामने अगर उसकी मां संपूर्ण रूप से नग्नावस्था में बिस्तर पर गहरी नींद में सो रही हो तो वह नजारा ही उसके लिए बेहद खास हो जाता है,,,, अंकित तो कमरे में प्रवेश करते ही बस देखता ही रह गया था लेकिन फिर भी उसकी बहादुरी और हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी कि इस तरह के हालात में भी वह पूरी हिम्मत जताकर अपनी हरकत को अंजाम देने से नहीं चुका।




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क्योंकि एक तरफ उसके मन में इस बात का डर था कि उसकी मां अगर जाग गई तो उसे अपने कमरे में और खुद को ईस अवस्था में देखकर ना जाने क्या समझेगी यह सब ख्याल मन में आने के बावजूद भी,,, अंकित अपनी मां की उत्तेजना और वासना को दबा नहीं पाया था जिसके चलते वह अपनी मां की मदहोश कर देने वाली कचोरी जैसी पूरी हुई पर्व पर अपनी होठ रखकर चुंबन करने से अपने आप को रोक नहीं पाया,,, इन सबके बावजूद भी यह क्रिया करने के बाद उसकी हिम्मत और ज्यादा बढ़ने लगी जिसके चलते वह अपनी जीत से अपनी मां की बुर में से निकल रहे मदन रस को चाट कर एकदम मस्त हो गया,,,, अंकित अपने आप को एकदम धन्य समझ रहा था और वाकई में इस समय वह अपने आप को सबसे भाग्यशाली समझ रहा था।




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अपने बेटे की हिम्मत और उसकी हरकत को देखकर सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी उसके बेटे ने हरकत ही कुछ ऐसी करी थी,। उसने कभी सपने में भी नहीं सोची थी उसका बेटा इतनी हिम्मत दिखा पाएगा बरसों से प्यासी अपनी सूखी जमीन पर उसे अब लगने लगा था कि उसका बेटा हल चलाएगा जिससे उसकी भी जमीन एक बार फिर से उपजाऊ हो जाएगी,, सुगंधा बहुत खुश थी क्योंकि धीरे-धीरे ही सही उसके बेटे में हिम्मत बढ़ने लगी थी,,, और वह अपने मन में सोच रही थी कि अगर तृप्ति उठकर बाथरूम में ना गई होती तो शायद इससे भी ज्यादा उसका बेटा हरकत करता ,,, लेकिन आप उसके मन में यह निश्चित हो गया था कि उसका बेटा बुद्धू नहीं है अगर समय और हालात के मुताबिक चले तो वह भी एक अच्छा खासा मर्द बन सकता है जो उसकी प्यास बुझा सकता है बस उसे उकसाने की देरी है ऐसा मन में ख्याल आते ही सुगंधा के होठों पर मुस्कान तैरने लगी,,,।





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ऐसे ही तीन-चार दिन गुजर गए मां बेटे दोनों एक दूसरे अनजान बनने का नाटक कर रहे हैं लेकिन दोनों अपनी अपनी कहानी को अच्छी तरह से जानते थे ऐसे ही एक दिन सुबह-सुबह मां बेटे और तृप्ति बैठकर चाय पी रहे थे तभी दरवाजे पर दस्तक होने लगी,,, सुगंधा को लगा कि उसकी पड़ोसन सुषमा होगी इसलिए अंकित से बोली,,,।

अंकित जाकर दरवाजा खोल दे तो बगल वाली सुषमा होंगी,,,।
(सुषमा का नाम सुनते ही अंकित की आंखों के सामने बाथरूम में नहा रही सुषमा आंटी का नंगा बदन दिखाई देने लगा हुआ एकदम से प्रसन्न हो क्या और उठकर दरवाजे की तरफ चला गया और जैसे ही दरवाजा खोला तो दरवाजे पर सुषमा आंटी नहीं बल्कि कोई और औरत थी जिसे पहचान में अंकित में बिल्कुल भी देर नहीं किया और एकदम से खुश होता हुआ बोला।)





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अरे नानी जी आप यहां,,,(इतना कहते ही अंकित एकदम से झुक गया और अपनी नानी का आशीर्वाद लेने लगा,,, उसकी नानी भी उसे आशीर्वाद देते हुए बोली।)

खुश रहो बेटा आपको तुम बड़े हो गए हो शादी लायक हो गए हो,,,।

(चाय पी रही सुगंधा और तृप्ति दोनों लगभग भागते हुए दरवाजे पर आए और एकदम से खुश होते हुए वह दोनों भी एकदम चरण स्पर्श करने लगे,,,, सुगंधा को नहीं मालूम था कि उसकी मां आने वाली है इसलिए वह हैरान होते हुए बोली,,,)

तुम यहां कैसे ना कोई चिट्ठी ना खबर,,,,।

अब बेटी के घर आने के लिए चिट्ठी और खबर देनी पड़ेगी,,,,।

नहीं मां ऐसी बात नहीं है,,,(अपनी मां के हाथ से थैला लेते हुए,, सुगंधा बोली और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,) फिर भी कोई खबर भिजवा देता तो मैं अंकित को लेने भेज देती स्टेशन पर,,,,

कोई बात नहीं छोटा आया था लेने उसी के घर तो दो दिन रहकर आ रही हूं,,।

नई तुम मामा के वहां गई थी,,,।




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हां मैं पहले वही गई थी फिर बस पकड़ कर इधर आ रही हुं,,,,(अपनी नानी के मुंह से मां और बस का जिक्र होते ही अंकित की आंखों के सामने बस वाला नजारा घूमने लगा और यही ख्याल सुगंधा के मन में भी आने लगा था लेकिन फिर भी अपने आप को अास्वस्त करके सुगंधा बोली,,,)


चलो कोई बात नहीं आ तो गई,,,, मैं नहाने का पानी रख देता हूं नहा कर थोड़ा तरोताजा हो जाओ,,,।

ठीक है,,,,(इतना कहकर वह खुद ही कुर्सी लेकर बैठ गई और सुगंधा बाथरूम में पानी रखने लगी क्योंकि वह जानती थी कि 5 घंटे का सफर था तो नहाना जरूरी है,,,, थोड़ी देर इधर-उधर की बात करने के बाद वह बाथरूम में नहाने के लिए घुस गई अंकित अपनी नानी को बड़े गौर से देख रहा था और अपने मन में सोच रहा था कि उसकी मां बिल्कुल उसकी नानी की तरह दिखती है इतनी उम्र होने के बावजूद भी अभी भी गठीला बदन की मालकिन है,,, कोई कह नहीं सकता की इनकी उम्र निश्चित तौर पर कितनी है अपनी उम्र से 10 साल कमी लगती है और अगर एक साथ खड़ी कर दिया जाए तो मां बेटी दोनों बहन ही लगेगी।





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थोड़ी देर में अंकित की नई नहा कर बाथरूम से बाहर आ गई थी,,, तब तक तृप्ति ने फिर से चाय बना कर तैयार करती थी थोड़ा सा चाय नाश्ता करने के बाद अंकित की नानी आराम करने लगी,,,, दोपहर का समय था इसलिए इतनी कड़ी धूप में कहीं जाना उचित नहीं था जिसके चलते तृप्ति अंकित और सुगंधा भी अपने-अपने कमरे में आराम कर रहे थे,,, लेकिन अंकित की नई अंकित के कमरे में आराम कर रही थी अंकित भी कमरे में प्रवेश किया उसकी नानी गहरी नींद में सो रही थी वह भी नीचे बिस्तर लगाकर सोने की तैयारी करने लगा,,,, लेकिन उसके मन में न जाने क्या हुआ वह एक बार उठकर खड़ा हो गया और अपनी नानी की तरफ देखने लगा अंकित बड़े गौर से अपनी नानी को देख रहा था वह गहरी नींद में सो रही थी गोल चेहरा गोरा बदन पता ही नहीं चलता था कि उम्र कितनी है सोने की वजह से ब्लाउज में से झांकता बड़ी-बड़ी चूचियां अभी भी कठोरता लिए हुए थी,,,,, अपनी नानी को देखकर अंकित के मन में अजीब सी उलझन होने लगी।





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अंकित इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि वह उसकी नानी है और उम्र दराज है लेकिन अपनी नानी के बदन की बनावट और बदन की गठीलापन को देखकर अंकित को अपनी नानी में एक खूबसूरत औरत नजर आ रही थी जिसे देखकर वह उत्तेजना का अनुभव कर रहा था फिर भी जैसे तैसे करके वह नीचे चटाई पर लेट गया,,,, शाम को जब उसकी नानी की आंख खुली तो वह बिस्तर से उठकर बैठ गई और नीचे देखी तो अंकित सो रहा था वह एकदम से बोली,,,।

अरे अंकित बेटा यह क्या तू नीचे क्यों सो रहा है,,,?
(इतने में अंकित की आंख खुल गई थी वह देखा तो उसकी नानी बिस्तर पर बैठी हुई थी पैर नीचे जमीन पर थी लेकिन साड़ी उनके घुटनों में फंसी हुई थी और घुटनों के नीचे उनकी मांसल पिंडलियां दिख रही थी,,, जिसे देखकर एक बार फिर से अंकित के बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी,,, जब अंकित की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो एक बार फिर से उसकी नानी बोली,,,)

तुझे नीचे सोने की जरूरत नहीं थी मेरे पास में ही सो गया होता।


कोई बात नहीं नानी तुम गहरी नींद में सो रही थी इसलिए मैं उचित नहीं समझा,,।





अरे इसमें क्या हो गया मैं बिस्तर पर सोउं और तुम नीचे जमीन पर लेटो यह अच्छी बात नहीं है,,,।

कोई बात नहीं नानी आप खामखा परेशान हो रही है,,,।

खामखा परेशान नहीं हो रही है अच्छा बात नहीं है आइंदा से ऐसा मत करना और वैसे भी मैं यहां पर दो-तीन दिनों के लिए यहां ही हूं फिर गांव लौट जाऊंगी,,,।

क्या नानी से को दो-तीन दिनों के लिए मुझे तो लगा था कि आप 20-25 दिन रुकेंगी,,,


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नहीं नहीं इतना दिन रुक कर क्या करूंगी गांव में बहुत काम रहता है खेतों में काम रहता है।

तो क्या आप खेतों में कामकरती हैं,,,।

खेतों में काम नहीं करती हूं लेकिन काम करवाती हूं सब देखना पड़ता है मजदूर लोगों को जो खेतों में काम करते हैं,,,।

यह सब तो नानाजी करते होंगे ना,,,, और बड़े वाले मामा भी करते होंगे,,,,।

बड़े वाले मामा कुछ नहीं करते मुझे और तेरे नाना कोई करना पड़ता है। इस बार सोच रही हूं की तृप्ति को अपने साथ ले जाऊं वैसे भी कॉलेज की छुट्टियां पड़ गई है। एकाद महीना रहकर कुछ रीति रिवाज सीख जाएगी और वैसे भी शादी के बाद यही सब काम आने वाला है,,,,,।
(तृप्ति को साथ में ले जाने की बात से और वह भी एक महीने के लिए,,, इस बात को सुनकर ही अंकित के दिल की धड़कन बढ़ने लगी क्योंकि ऐसे में घर में केवल वह और उसकी मां ही रह जाती तब कितना मजा आता है यही सोच कर वह अंदर ही अंदर खुश हो रहा था और अपनी नानी की बात सुनकर बोला)




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आप सच कह रही हो नानी मैं तो कहता हूं ले जाना साथ में वह भी घूम लेगी,,,,।

चल कोई बात नहीं आज ही तेरी मां से बात करती हूं,,,।

(दोनों की बातचीत हो ही रही थी कि तभी दरवाजे पर तृप्ति आ गई और बोली)

नानी चाय नाश्ता तैयार हो गया है हाथ मुंह धो कर आ जाओ,,,,(इतना कहकर तृप्ति वहां से चली गई जिसे देखकर अंकित की नानी बोली,,)

शादी करने की उम्र तो हो गई है गांव में होती तो अब तक ईसके हाथ पीले हो गए होते,,,,। और शादी करने लायक तु भी हो गया है,,, हट्टा कट्टा नौजवान हो गया तू भी अगर गांव में होता तो अब तक तेरी भी शादी हो गई होती।

अपनी नानी के मुझे अपनी शादी की बात सुनकर वह शर्मा गया उसे शर्माते हुए देखकर उसकी नानी चुटकी लेते हुए बोली,,।

देखो तो सही कितना शर्मा रहा है,,,,,
(अपनी नानी की बात सुनकर अंकित मुस्कुराने लगा और फिर अंकित की नई कमरे से बाहर निकल गई और हाथ मुंह धोकर फिर से तीनों साथ में बैठकर इधर-उधर की बातें करते हुए चाय पीने लगे शाम को जब भोजन कर रहे थे तब अंकित की नानी बोली,,,)




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सुगंधा मैं चाहती हूं कि मेरे साथ तो तृप्ति को भी गांव भेज दे और वैसे भी एक-दो साल में इसकी शादी करनी पड़ेगी गांव के रीति-रिवाज सीख जाएगी तो इसे भी आसानी होगी अपनी गृहस्ती बसाने में,,,,।

(तृप्ति अपनी नानी की बातें सुनकर बोली,,)

क्या नानी आप भी अभी तो मेरी पढ़ने की उम्र है,,,।

मैं जानती हूं लेकिन तेरी शादी की भी उम्र है,,,,,‌


कोई बात नहीं मां मैं तृप्ति को तुम्हारे साथ भेज दूंगी कुछ नहीं तो गांव घूम लेगी तो इसे भी अच्छा लगेगा,,,,,(सुगंधा यह बात बहुत सोच समझ कर बोली थी जो ख्याल कुछ देर पहले इस बात को सुनकर अंकित के मन में आई थी वही ख्याल सुगंधा के मन में भी चल रहा था वह भी घर में एकांत चाहती थी अपने बेटे के साथ ताकि उनका कार्यक्रम थोड़ा आगे बढ़ सके तृप्ति कुछ देर तक ना नुकुर करती रही और आखिरकार मान गई,,,,।





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कुछ देर टीवी देखने के बाद सुगंधा अपने कमरे में सोने के लिए चली गई वैसे तो वह अपनी मां को अपने कमरे में सोने के लिए बोल रही थी लेकिन वह इनकार कर दी और बोली कि मैं अंकित के कमरे में सो जाऊंगी,,, त्रप्ति अपने कमरे में चली गई और अंकित और उसकी नानी अंकित के कमरे में आ गए कुछ देर दोनों इधर-उधर की बातें करने के बाद एक ही बिस्तर पर सो गए,,,, तकरीबन 1:30 बजे अंकित की नानी को पेशाब लगी तो उसकी आंख खुल गई लेकिन जब आंख खुली और उसे अपनी स्थिति का भान हुआ तो उसका दिल जोरो से धड़कने लगा वह करवट लेकर दरवाजे की तरफ मुंह करके सो रही थी और उसके ठीक पीछे अंकित सो रहा था लेकिन वह भी दरवाजे की तरफ लिया हुआ था ऐसे में उसका पूरा बदन उसके बदन से सटा हुआ था और अंकित की नानी को बहुत अच्छे से एहसास हो रहा था कि उसकी बड़ी-बड़ी गांड के बीच में बीच कुछ चुभ रहा है,,,, अंकित की नई उम्र के इस दौर में पहुंच चुकी थी कि उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उनकी गांड के बीचों बीच चुभने वाली चीज क्या है,,,,।




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उसे चीज के बारे में ख्याल आते हैं अंकित के नानी के भजन में अजीब सी हलचल होने लगी सरसराहट से बढ़ने लगी वह समझ गई थी कि उनकी गांड के पीछे-पीछे उसके नाती का लंड घुसा हुआ है अब यह समझ में नहीं आ रहा था कि यह हरकत उसने जानबूझकर किया था कि अनजाने में गहरी नींद की वजह से हो गया था वह देखना चाहती थी इसलिए उसे स्थिति में कुछ देर तक लेटी रही,,, वह जानती थी कि अगर वह जानबूझकर ऐसा कर रहा है तो उसकी हरकत और भी ज्यादा बढ़ेगी लेकिन कुछ देर तक किसी तरह से लेते रहने के बावजूद अंकित के बदन में बिल्कुल भी हलचल नहीं हुई तो वह समझ गई कि यहां अनजाने में हुआ है,,,, इसलिए वह धीरे से उठकर अंकित की तरफ देखिए वह वास्तव में गहरी नींद में सो रहा था उसे तो अपनी स्थिति का बहन भी नहीं था लेकिन कमरे में जल रहे लाल बल्ब की रोशनी में अंकित की नई एकदम साफ तौर पर देख पा रही थी कि अंकित के पजामे में अच्छा खासा तंबू बना हुआ था जिसे देखकर इस उम्र में भी अंकित की नानी की टांगों के बीच सुरसुराहट बढ़ने लगी थी,,,,।




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कुछ देर तक वह अंकित के पजामे में बने तंबू को देखते रही,,, और फिर धीरे से बिस्तर से उठकर खड़ी हो गई और दरवाजा खोलकर बाथरूम में चली गई पेशाब करने के बाद और फिर से अपने बिस्तर पर आई और इस स्थिति में लेट गई फिर से एक अनुभव की चाह में लेकिन अंकित तो गहरी नींद में सो रहा था उसके साथ जो कुछ भी हुआ था वहां जाने में हुआ था इसलिए ऐसा दोबारा नहीं हुआ और इस बात का मलाल अंकित की नानी को हो रहा था क्योंकि पल भर में ही सही अंकित ने उसके बदन में उत्तेजना की लहर को प्रज्वलित कर दिया था। और वैसे भी अंकित की नानी कोई सीधी साधी औरत नहीं थी गांव में अच्छा दबदबा था खेती-बाड़ी ज्यादा होने की वजह से दूर-दूर तक उसकी नानी और उसके नाना का नाम था,,, उम्र के ईस पड़ाव में पहुंच जाने के बाद भी खेतों में काम करके और हमेशा बदन में स्फूर्ति रहने की वजह से अपनी उम्र से 10 साल कम ही लगती थी,,,, और उसके पति की तबीयत और शेयर उम्र के पड़ाव में जवाब दे गई थी इसलिए अपनी बीवी को खुश करने की ताकत उनके बगल में नहीं बची थी जिसके चलते कभी कभार अंकित की नई अपनी बदन की प्यास बुझाने के लिए विश्वासु मजदूर के साथ शारीरिक संबंध बना लेती थी,,,, आज न जाने क्यों अपने बेटी के जवान लड़के की हरकत की वजह से उनके बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी,,,।





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अनुभव से भरी हुई अंकित की नई अपनी गांड में चुदाई अपने ही नाती के लंड कि चुभन से उसकी मजबूती का अंदाजा लगा रही थी वह समझ गई थी कि उसकी टांगों के बीच मर्दाना ताकत से भरा हुआ मजबूत हथियार है जो किसी भी औरत की प्यास बुझाने में पूरी तरह से सक्षम है। अंकित की नई अपने आप को इस बात के लिए तैयार कर ली थी कि अगर अंकित अपनी हरकत को आगे बढ़ता है तो वह उसके साथ सारे संबंध बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार थी लेकिन जो कुछ भी हुआ था वह नींद की वजह से हुआ था और अनजाने में हुआ था इस बात का दुख अंकित की नानी के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था।






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दूसरे दिन अंकित नाश्ता करके घर से यूं ही इधर-उधर घूमने के लिए निकल गया था और घूमते घूमते बाजार पहुंच गया था,,, बाजार में उसने देखा तो राहुल अपने कुछ दोस्तों के साथ हाथ में बैंट लिए हुए क्रिकेट खेलने के लिए जा रहा था अंकित का मन किया कि उसे आवाज देकर बुलाए और उसके साथ ही चल दे लेकिन फिर उसके मन में ख्याल आया कि अगर राहुल क्रिकेट खेलने जा रहा है तो घर में उसकी मां अकेली होगी और वैसे भी उसकी मां के साथ जाने अनजाने में मस्ती भरे पल उसने गुजारे थे और काफी दिन हो गया था उससे मुलाकात की इसलिए वह इस आवाज नहीं दिया और चुपचाप उसके घर की तरफ निकल गया,,,, थोड़ी देर में वह पैदल चलते हुए राहुल के घर पहुंच गया था और दरवाजे पर पहुंच कर डोर बेल बजाने लगा,,,,।




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लेकिन पहली बार डोर बेल बजाने पर दरवाजा नहीं खुला दूसरी बार भी बजाने पर नहीं खुला तो अंकित निराश हो गया उसे लगा कि शायद,, राहुल की मां सो गई होगी लेकिन फिर भी एक बार आखिरी कोशिश करते हुए डोर बेल बजाय तो दरवाजा खुल गया और दरवाजे को खोलने वाली को देखकर अंकित उसे देखा ही रह गया पल भर में ही उसे एहसास हो गया कि राहुल की मां नहा रही थी और शायद इसीलिए दरवाजा नहीं खोल पाई थी और जल्दबाजी में वह अपने बदन पर केवल टावरक्षल लपेटकर ही दरवाजा खोलने के लिए आ गई थी। अंकित तो नूपुर को देखता ही रह गया,, नूपुर भी अंकित को देखकर मन ही मन खुश होने लगी और उसे इस बात की तसल्ली होने लगी कि चलो सही समय पर सही वस्त्र में वह अंकित के सामने आई है अंकित प्यासी नजरों से उसकी ऊभरी हुई छातियों को ही देख रहा था जो टावल में लिपटी हुई थी,,,।





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बाथरूम में नूपुर नहा रही थी इसलिए उसका भजन पूरी तरह से गिला था और टावल लपेटने की वजह से टावल भी गीला हो चुका था और गीले टावल में नूपुर की चूची की कड़ी निप्पल एकदम साफ झलक रही थी। जिसे अंकित प्यासी नजरों से देख रहा था अनुभव से भरी हुई नूपुर समझ गई कि अंकित क्या देख रहा है इसलिए मुस्कुराते हुए बोली।

राहुल तुम यहां,,,?

जी आंटी जी यहीं से गुजर रहा था तो सोचा राहुल से मिलता चलु राहुल है क्या,,,?

राहुल तो नहीं है राहुल क्रिकेट खेलने गया है।

ओहहह (सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनने का कोशिश करते हुए अंकित बोला) चलो कोई बात नहीं मैं फिर कभी मिल लुंगा,,,(इतना कहकर वह जाने ही वाला था कि नूपुर बोली,,)




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क्यों तुम्हें राहुल से ही काम है मुझसे काम नहीं है,,,

ऐसी बात नहीं है आंटी जी,,, राहुल से मिलता हूं तो तुमसे भी तो मिल लेता हूं,,, और वैसे भी मैं माफी चाहता हूं आपको तकलीफ देने के लिए,,,।

तकलीफ किस बात के लिए,,,।

मतलब आंटी जी आप नहा रही थी और खामखा में आ गया और दरवाजा खोलना पड़ा,,,।

तो इसमें क्या हो गया,,, वैसे सच-सच बताना तुम्हें मैं कैसी लगती हूं,,,।


जी,,,,,!(एकदम आश्चर्य से फटी आंखों से नूपुर की तरफ देखते हुए)

हां कैसी लगती हूं बताओ ना वैसे मैं तुम्हें देखती हूं तुम मुझे घूरते रहते हो,,,।

जी,,,,जी,,,,, ऐसी कोई बात नहीं है,,,!(अंकित एकदम से घबराते हुए बोला)







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नहीं ऐसी ही बात है अभी भी तुम मेरी चूचियों की तरफ देख रहे थे,,,,(नूपुर एकदम से बिंदास होते हुए बोल रही थी क्योंकि वह जानती थी लड़कों की आदत को उसका इस तरह से बिंदास बोलना ही लड़कों को पूरी तरह से गुलाम बनने पर मजबूर कर देता है और यही अंकित के साथ भी हो रहा था नूपुर किस तरह की बातें सुनकर तो उसके होश उड़ गए थे जिस तरह से उसने खोलकर चुची शब्द का प्रयोग की थी उसे सुनकर उसके तन बदन में आग लगने लगी थी ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके खाने में कोई मधुर रस घोल दिया हो,,,, नूपुर की बातें सुनकर अंकित एकदम से घबराते हुए बोला,,,)



क्या बात कर रही हो आंटी जी ऐसी कोई भी बात नहीं है यह तो अनजाने में मेरी नजर,,,(इससे आगे अंकित कुछ बोल नहीं पाया तो नूपुर मुस्कुराते हुए बोली,,,,)

मैं सब समझता हूं अंकित तुम्हारे जैसे नौजवान लड़कों की नजर इधर-उधर भटकती ही रहती है,,, आओ अंदर आ जाओ,,,, दरवाजे पर कब तक खड़े रहोगे,,,,।

नहीं मैं फिर कभी आ जाऊंगा,,,,।





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ऐसे कैसे,,,, आए हो तो चाय पानी पीकर जाओ,,,,(इतना कहते हुए नूपुर खुद उसका हाथ पकड़ कर उसे घर के अंदर ले आई और दरवाजा बंद कर दी दरवाजा बंद करते ही नूपुर के बदन में जैसे उत्तेजना और हवास दोनों उबाल मार रहे हो इस तरह से वह तुरंत अंकित को दीवार से सटाकर उसे अपनी बाहों में भरकर उसके होठों पर अपने होंठ रखकर चुंबन करने लगी वह पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी उत्तेजित हो चुकी थी,,,

अंकित को नूपुर की तरफ से इस तरह की किसी भी हरकत का अंदाजा नहीं था इसलिए वह एकदम से आश्चर्यचकित हो गया उसे तो कुछ समझ में नहीं आया लेकिन जब तक समझ में आता तब तक नूपुर पूरी तरह से उसे पर हावी हो चुकी थी वह अपनी जवानी का जलवा उसके ऊपर पूरी तरह से भी कर चुकी थी उसके लाल लाल होठों का चुंबन करते हुए उसका रसपान करते हुए उसे पूरी तरह से अपनी आंखों में ले ली थी आखिर अंकित भी कब तक अपने आप को संभाल पाता इन्हीं सब पल के लिए तो वह तड़प रहा था,,,, उसके भी हाथ खुद ब खुद नूपुर की पीठ पर घूमने लगे और वह भी चुंबन में उसका साथ देने लगा वैसे तो अंकित के जीवन का यह पहला चुंबन था जो उसे पागल बना रहा था उसे चुंबन का एहसास और कैसे किया जाता है नहीं मालूम था लेकिन नूपुर जिस तरह से उसके होठों का रसपान कर रही थी वह भी नूपुर के लाल लाल होठों को अपने मुंह में लेकर उसका रस पी रहा था और उत्तेजना के मारे अपनी हथेलियां को उसकी पीठ पर घूम रहा था जो कि टावल में लिपटी हुई थी,,,।



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पल भर में ही नूपुर को अपनी दोनों टांगों के बीच अंकित के लंड की चुभन महसूस होने लगी और उसे चुपन को अपने अंदर महसूस करके वह पूरी तरह से उत्तेजना से बिलबिलाने लगी,,,, इसी पल का फायदा उठाते हुए एक हाथ से वह अपनी टॉवल को खोलकर उसे नीचे गिरने पर मजबूर कर दी और पूरी तरह से अंकित की बाहों में एकदम नंगी हो गई हालांकि अंकित अभी तक उसके नंगे भजन को देख नहीं पाया था लेकिन अपनी हथेली पर उसकी नंगी चिकनी पीठ और कमर को महसूस करके इतना तो समझ गया था कि उसके भजन से टावर नीचे गिर गई है और यह एहसास उसे होते ही उसकी उत्तेजना भी चरम शिखर पर पहुंचने लगी वह पागल होने लगा।





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अंकित अपने बदन में अत्यधिक उत्तेजना का संचार होता हुआ महसूस कर रहा था,,, उसके लंड का कड़कपन एकदम बढ़ता जा रहा था जो कि सीधे-सीधे उसे नूपुर की दोनों टांगों के बीच ठोकर मार रहा था अपनी उत्तेजना पर काबू न कर पाने की वजह से अंकित की हथेलियां उसकी चिकनी कमर से फिसलती हुई उसके गोलाकार ने संभोग पर आते की और जैसे ही उसे एहसास हुआ कि उसकी दोनों हथेलियां में नूपुर की मदमस्त गांड आ चुकी है तो वहां उसे ज़ोर से अपनी हथेली में दबोच दिया और उसे जोर-जोर से दबाना शुरू कर दिया है,,,, अंकित के साथ यह सब पहली बार हो रहा था,,, वैसे तो सुमन के साथ इससे भी ज्यादा हो चुका था लेकिन ,,, आज की बात कुछ और थी क्योंकि आज उसकी बाहों में जवानी से गदराई हुई एक औरत थी,,,। आज एक नया अनुभव से मिल रहा था अंकित को लगने लगा था कि आज उसकी मनोकामना पूरी हो जाएगी भले उसकी मां से ना सही लेकिन नूपुर के साथ वह आज अपने मन की मुराद को पूरी कर सकता है,,,,।




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अभी वह यह सब सो ही रहा था कि तभी दरवाजे की घंटी बजने लगी और घंटे की आवाज सुनकर दोनों के होश उड़ गए,,,, दोनों के होठ एक दूसरे से अलग हो चुके थे,,,, दोनों एक दूसरे की तरफ तो कभी दरवाजे की तरफ देख रहे थे,,, हैरान होते हुए नूपुर बोली।

आप कौन आ गया राहुल के पापा से ऑफिस के लिए निकल गए थे और राहुल क्रिकेट खेलने के लिए गया था इतनी जल्दी तो आ नहीं सकता,,,,।

फिर भी दरवाजा तो खोलना पड़ेगा आंटी जी,,,।

रुक में कपड़े पहन लुं,,,(इतना कहकर नूपुर नीचे गीरी टावल को लेने के लिए झुकी,,, तब जाकर अंकित की नजर नूपुर पर गई और उसे एहसास हुआ कि बिना कपड़ों के राहुल की मां कितनी खूबसूरत लगती है उसके नंगे बदन को देखकर अंकित की उत्तेजना और ज्यादा बढ़ने लगी थी उसका झुकना उसके बदन की लचक उसकी गांड का घेराव सबकुछ बेहद अद्भुत था और देखते ही देखते टावल को बाथरूम में रखकर नूपुर जल्दी से एक गाउन अपने बदन पर डाल दी जो कि उसके घुटनों तक ही आ रही थी,,, और अंकित से बोली,,,)




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तुम कुर्सी पर बैठ जाओ,,,,।
(इतना क्या करवा दरवाजा खोलने लगी लेकिन अंकित ना जाने क्यों एकदम घबरा गया था और घबराहट में वह डाइनिंग टेबल के नीचे छूप गया था,,,, उसके मन में एक बात और चल रही थी कि उसे लगा था कि शायद दरवाजे पर राहुल होगा अगर राहुल इस समय कमरे में आएगा तो जरूर उसकी मां के साथ कुछ ना कुछ करेगा और यही अंकित देखना भी चाहता था,,,, लेकिन जैसे ही दरवाजा खुला सामने राहुल के पिताजी थे और वह एकदम उदास होते हुए कमरे में दाखिल हुए और बोले,,,)

आज बस छूट गई आज काम किसी जिले में कहीं और जाना था लेकिन कैंसिल हो गया तो मैं ऑफिस से सीधा यही आ गया हूं,,,,।




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मतलब आज तुम्हारी छुट्टी है,,,।

फिर क्या आज तो दिमाग खराब हो गया इतनी जल्दी बिना चाय नाश्ता किए निकला था फिर भी यही हाल हो गया,,,, तुम चाय नाश्ता लगाओ में हाथ धोकर आता हूं,,,,,।

ठीक है,,,,।
(इतना कहकर नूपुर रसोई घर की तरफ जाने लगे लेकिन उसकी नजर डाइनिंग टेबल के नीचे पड़ी तो देखी थी अंकित डाइनिंग टेबल के नीचे छुपा हुआ है,,, यह देखकर करवा हैरान हो गई लेकिन उसे कुछ बोल पाती इससे पहले ही उसके पति बाथरूम से बाहर आ गए थे और वह चाय गरम करने के लिए चली गई थी जब चाय लेकर वह किचन से बाहर आई को अच्छी डाइनिंग टेबल के नीचे अभी भी अंकित चुप कर बैठा हुआ था और कुर्सी पर उसके पति बैठकर अखबार पढ़ रहे थे,,, नूपुर कुछ बोल नहीं पाई उसे बात का डर था कि कहीं उसके पति डाइनिंग टेबल के नीचे बैठे अंकित को देखना है अगर ऐसा हो गया तो गजब हो जाएगा उन्हें शक हो जाएगा कि जरूर दाल में कुछ काला है,,,।




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नूपुर अपने पति की तरफ चाय का कब आगे बढ़कर बिस्किट रखती और खुद भी ठीक उसके सामने कुर्सी पर बैठ गई नूपुर का दिल जोरों से धड़क रहा था उसके मन में यह चल रहा था कि उसके पति को कहीं शक ना हो जाए कहीं वह देखना ले,,,, और डाइनिंग टेबल के नीचे छिपे अंकित की नजर नूपुर की दोनों चिकनी टांगों पर गई जो की घुटनों के नीचे पूरी तरह से नंगी थी और जिस तरह का गाउन पहनी हुई थी वह घुटनों के ऊपर तक आ रहा था और वह कुर्सी पर बैठी हुई थी ठीक उसकी आंखों के सामने,,, वैसे तो अपनी तरफ से कुछ भी करने की हिम्मत अंकित मैं बिल्कुल भी नहीं थी लेकिन जिस तरह की हरकत करके सुगंधा ने उसका हौसला बढ़ाई थी उसे देखते हुए उसकी हिम्मत बढने लगी थी,,,।





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अपनी आंखों के सामने नूपुर की नंगी जवान टांगे देखकर अंकित की उत्तेजना बढ़ने लगी और वहां अपनी हथेली को उसकी नंगी चिकनी टांग पर रखकर हल्के-हल्के सहलाने लगा पहले तो डर के मारे नुपुर अपना हाथ उसके हाथ पैर रखकर उसे हटाने की कोशिश कर रही थी,,, लेकिन बार-बार अंकित अपनी हरकत को दोहरा रहा था और अखबार पढ़ते हुए उसके पति चाय की चुस्की ले रहे थे दोनों के बीच किसी भी तरह की बातचीत नहीं हो रही थी और बार-बार अंकित की हरकत से नूपुर के बदन में भी फिर से उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,,, अंकित नंगी टांगों को सहलाने के बाद दोनों टांगों को अपने हाथों से पकड़ कर उसे खोलने की कोशिश करने लगा यह देखकर नूपुर की सांस ऊपर नीचे होने लगी उसकी उत्तेजना परम शिखर पर पहुंचने लगी,,,,।




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नूपुर भी समझ गई थी कि अंकित ऐसी हरकत किसने कर रहा है और उसकी हरकत के बारे में एहसास होते ही नूपुर की बुर पानी छोड़ने लगी थी,,,, अंकित के दोनों हाथ उसके घुटनों पर थी और वह उसे खोलने की कोशिश कर रहा था और मौके का फायदा उठाते हुए नूपुर धीरे से कुर्सी की ओर किनारे पर आ गई और अपनी टांगों को खोल दी लेकिन फिर भी गाउन की वजह से उसकी दोनों टांगों के बीच अंधेरा छाया हुआ था,,,,, फिर भी अंकित अपनी हथेली को उसकी जांघों पर रखते हुए उसे अंदर की तरफ ले जा रहा था अंकित के लिए यह बेहद अद्भुत और नया अनुभव था और नूपुर के लिए भी ,,भले ही वह अपने बेटे के साथ पूरी मर्यादा को लांघ चुकी थी लेकिन फिर भी इसके बावजूद भी है उसके लिए पहला अनुभव था जब कोई डाइनिंग टेबल के नीचे बैठकर उसके बदन से छेड़खानी कर रहा था।

अंकित की हालत पाल-पाल खराब होती जा रही थी उसकी हथेली नूपुर की गर्म जवानी की वजह से तप रही थी और देखते ही देखते अंकित अपनी हथेली को सीधा ले जाकर के नुपुर की नंगी बुर पर रख दिया जो की गरम तवे की तरह दहक रही थी,,,, अंकित की हरकत से उसकी सांस उपर नीचे होने लगी,,,।






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राहुल कहां गया घर पर ही है क्या,,,?(अखबार को पढ़ाते हुए राहुल के पिताजी बोले)

नहीं वह तो कब से क्रिकेट खेलने के लिए चला गया मैं नहा रही थी तभी दरवाजे की घंटी बजने लगी मुझे क्या मालूम आप आए हैं,,,, नहाते नहाते बाहर आना पड़ा।

अब कर भी क्या सकता था सारा प्लान चौपट हो गया,,,,।

(दोनों की बातचीत जा रही थी और अंकित की हरकत बढ़ती जा रही थी वह अपनी हथेली में नूपुर की बुर को दबोच रहा था उसे मजा आ रहा था,,,, इतनी हिम्मत तो अपनी मां के साथ नहीं दिखा पाया था शायद इस वजह से क्योंकि वह उसकी मां थी उसके साथ मां बेटे का पवित्र रिश्ता था लेकिन नूपुर के साथ ऐसा कोई रिश्ता नहीं था अंकित के लिए वह अनजान औरत थी इसलिए उसके साथ भाग खुली छूट ले रहा था और वैसे भी इस छूट को लेने के लिए बढ़ावा उसने ही दी थी लेकिन फिर भी नूपुर को अंकित की हरकत से मजा आ रहा था,,,, एक तरफ पति पत्नी आपस में बातचीत कर रहे थे और दूसरी तरफ़ अंकित अपनी मनमानी कर रहा था अंकित की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी।





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तभी अचानक अपने पति से नजर बचाकर नूपुर अपनी कुर्सी पर से हल्के से अपनी गांड को ऊपर उठा दिया अपनी गाउन को पूरी तरह से कमर के ऊपर कर दी कमर के नीचे वह पूरी तरह से नंगी हो गई,,,, राहुल की मां कि ईस तरह की हरकत को देखकर अंकित की हालत खराब होने लगी वह पागल होने लगा कमर के नीचे उसके नंगे बदन को देखकर उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी वासना उसकी आंखों में नाचने लगी,,,, वैसे भी राहुल की मां ने जिस तरह से हरकत की थी उसे देखकर उसकी उत्तेजना परम शिखर पर पहुंच चुकी थी अगर राहुल के पिताजी ना आ गए होते तो शायद दोनों के बीच इस समय शारीरिक संबंध स्थापित हो रहा होता और एक नए अनुभव से अंकित परिपूर्ण हो जाता लेकिन उसका नया अनुभव राहुल के पिताजी रोक दिए थे। लेकिन उसकी आंखों के सामने जो नजारा दिखाई दे रहा था अब वह अपने आप को रोक नहीं सकता था।

कमर के नीचे नंगी हो जाने के बाद अंकित खुद उसकी दोनों टांगों को खोलकर उसकी गुलाबी बर को देख रहा था जो कि इस समय कचौड़ी की तरह खुली हुई थी और उसे पर मदन रस की बूंदे ओश की बूंद की तरह चमक रही थी। जिसे देखकर अंकित के मुंह में पानी आ रहा था वैसे भी वह दो बार बुर चाट चुका था एक बार कुसुम की और एक बार खुद की अपनी मां की इसलिए उसे थोड़ा बहुत तो अनुभव था इसलिए वह अपने हाथों से नूपुर की दोनों टांगों को खोल दिया नूपुर खुद कुर्सी के किनारे बैठ चुकी थी ताकि इस नजारे को अंकित एकदम साफ तौर पर देख सके। अंकित खातिर जोरों से धड़क रहा था और यही हालत नूपुर का भी था वह इस अद्भुत अनुभव को लेते हुए अपने पति से बातचीत भी कर रही थी जो की बहुत ही सब्र और अपने आप को नियंत्रण में रखने वाली बात थी और इस पर नूपुर एकदम खरी उतर रही थी।





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अगले ही पर अंकित अपनी उत्तेजना के चलते अपनी हरकत को बढ़ाते हुए अपने प्यासे होठों को राहुल की मां की दोनों टांगों के बीच ले गया और उसे उसकी बुर पर रख दिया पल भर के लिए तो नूपुर को कुछ समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है बस उसे दोनों टांगों के बीच अंकित का सर नजर आ रहा था लेकिन जैसे ही उसे एहसास हुआ कि अंकित उसे पागल बना रहा है तो एकदम से मदहोश होने लगे अपनी मदहोशी पर वह काबू नहीं कर पा रही थी लेकिन फिर भी जैसे तैसे करके वह अपने पति से बात जीत जारी रखते हुए अपने चेहरे के हाव-भाव को छुपाने में कामयाब होरही थी।

एक बार फिर से वही मादक जानी पहचानी सी खुशबू अंकित के नथुनों से उसके छाती में पहुंचने लगा जिससे उसकी उत्तेजना और बढ़ने लगी अंकित पागलों की तरह अपनी जीभ से राहुल की मां की बुर चाट रहा था उसे उसकी मां की बुर चाटने में बहुत मजा आ रहा था नूपुर की कसम आ रही थी कुर्सी पर बैठे-बैठे अपनी टांगों को कभी खोल दे रही थी तो कभी आपस में कस ले रही थी,,, आज कुछ देर ज्यादा तक अंकित को औरत की बुर चाटने को मिल रही थी वह पागलों की तरह राहुल की मां की बुर को चाट रहा था अपनी जीभ को उसके अंदर तक प्रवेश कर दे रहा था,,,, अपनी उत्तेजना पर काबू न कर सकने की स्थिति में राहुल की मां अपने एक हाथ को अंकित के सर पर कब से जोर-जोर से अपनी बुर पर दबा रही थी,,,, वैसे तो जिस तरह के हालात थे राहुल की मां के मुंह से गरमा गरम शिसकारी की आवाज किसी भी समय निकाल सकती थी,,, लेकिन बड़ी मुसीबत से राहुल की मां अपनी उत्तेजना को काबू में किए हुए थी,,,, राहुल के पिताजी अभी भी अखबार पढ़ने में व्यस्त थे उन्हें इस बात का एहसास तक नहीं था कि उनकी आंखों के सामने डाइनिंग टेबल के नीचे एक जवान लड़का उनकी ही बीवी की बुर को चाट रहा है।




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देखते ही देखते राहुल की मां अपने चरम सुख की ओर अग्रसर होने लगी और तभी अंकित भी अपनी एक उंगली को बड़ी चालाकी से राहुल की मां की बुर में डालकर सुंदर बाहर करते हुए उसकी बुर की चटाई करने लगा,,, इस बार राहुल की मां से बिल्कुल भी अपनी उत्तेजना पर काबू नहीं हो पाया और वह एकदम से भलभला कर झड़ने लगी,,, लेकिन झड़ने समय उसके मुंह से आखिरकार निकल ही गया।
ओहहहहहबह,,,,,।

(यह आवाज सुनकर अखबार पढ़ते-पढ़ते राहुल के पिताजी का ध्यान इस आवाज पर गया और वह बोले।)

क्या हुआ,,,?

अरे कुछ नहीं मुझे याद आया कि मुझे तो कपड़े धोने हैं और वाशिंग मशीन में रखकर आई हूं,,,,।

तो जाओ धो डालो,,,,।

आप सो जाइए कमरे में जाकर तब में जाती हुं,,,।

अरे भाग्यवान यह कोई सोने का समय है,,,।

अरे सोने का समय नहीं है लेकिन जाकर आराम तो करिए अपने कमरे में अभी मुझे यहां पर झाड़ू पोछा लगाना पड़ेगा सफाई करनी पड़ेगी और अगर एक बार आपकी आंख लग गई तो फिर आपको उठाना मुश्किल हो जाएगा,,,।






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हां यह बात तो तुम ठीक कह रही हो मुझे कमरे में ही जाना चाहिए,,,,
(अपने पति की बात सुनकर नूपुर को थोड़ा राहत महसूस हुआ और उसके पति अपनी जगह से उठकर अपने कमरे की तरफ जाने लगे और जैसे ही वह कमरे में जाकर दरवाजा बंद किया हमने पूरी एकदम से उठकर खड़ी हो गई अपने कपड़ों को व्यवस्थित करने लगी और इशारे से अंकित को बाहर निकलने के बोली और वह तुरंत बाहर निकल गया उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी लेकिन उसका चेहरा उसके मदन रस से पूरी तरह से भीगा हुआ था यह देखकर नूपुर शर्म के मारे मुस्कुराने लगी,,,, और उसका हाथ पकड़ कर दरवाजे तक ले आई लेकिन जाते-जाते वह एक बार फिर से उसे अपनी बाहों में भरकर उसके होठों का चुंबन करने लगी जिस पर उसके बुर से निकला हुआ उसका मदन रस लगा हुआ था और इस एहसास से वह पूरी तरह से मदहोश हो गई और प्रसन्नता के साथ अंकित नूपुर के घर से चला गया)
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है अंकित को जो नया अनुभव मिला वह अदभुत था सुगंधा भी बहुत खुश थी लेकिन उसे अफसोस था कि जैसा सोचा था वैसा हुआ नहीं अंकित कि नानी आ गई है अंकित की नानी की भी उत्तेजना बढ़ गई है अपने नाती के लन्ड का स्पर्श पाकर देखते हैं क्या नानी अंकित का लन्ड ले पाएगी??
 
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