एक दिन ऐसे ही रात को मैं दीप्ति मैम के यहाँ से लौट रहा था कि श्वेता का फ़ोन मेरे पास आया।
मैं - आज मेरी याद कैसे आ गई ?
श्वेता - तेरी याद मेरे जेहन से कभी गई ही नहीं। बल्कि तू चुतों के समंदर में गोते लगा रहा है।
मैं - तुमने ही तो शर्त रख दी थी
श्वेता - रखी तो थी पर तुम तो शर्त रखने वाले को ही भूल गए।
मैं ये सुनकर थोड़ा इमोशनल हो गया। मुझे लग गया था कि श्वेता वास्तव में मुझे मिस कर रही थी। क्या उसे अपने शर्त पर पछतावा हो रहा था या फिर बस ऐसे ही थोड़ी उदासी थी ?
मैंने उससे पुछा - तुम कहो तो आज ही सब छोड़ छाड़ कर तुम्हारे साथ भाग चलूँ।
श्वेता ने हँसते हुए कहा - रहने दो। बस तुम मुझे आज घर ले चलो।
मैं - जो हुकुम मेरे सरकार।
मैंने गाडी उसके हॉस्टल की तरफ मोड़ लिया। वहां गेट पर वो पहले से मेरा इंतजार कर रही थी। ठंढ में उसके गाल सेव जैसे एकदम लाल हो रखे थे। मैंने उसके गाल पकड़ का रखीँच लिए तो उसने चिढ़ते हुए कहा - क्या कर रहे हो ?
मैंने कहा - एकदम सेव लग रही हो। काट कर खा जाने का मन कर रहा है।
श्वेता - क्यों अभी जिस बागान से आ रहे हो , वहां सेव नहीं थे क्या ?
मैं - कुछ जलने जैसा क्यों लग रहा है ?
श्वेता - मैं क्यों जलूँगी भाई ?
मैं - हम्म। मुझे कुछ कुछ ऐसा ही लग रहा है।
श्वेता - घर चलो ठंढ लग रही है।
मैंने गाडी घर की तरफ कर ली। श्वेता को देखते ही माँ एकदम से खुश हो गईं। उन्होंने उसे गले लगाया और फिर उसके माथे और गाल पर चूमते हुए कहा - हमें भूल गई थी हमारी बिटिया।
श्वेता - नहीं माँ , भूली नहीं थी। बस एग्जाम की तैयारी में बीजी थी।
माँ - ये जनाब भी तैयारी में हैं। रोज अपनी मैडम के यहाँ चले जाते हैं। भगवान् जाने दोनों माँ बेटी क्या पढ़ाते हैं इसे।
माँ के अंदर से भी उनका दर्द बाहर आ रहा था। मुझे लग गया आज ये दोनों मुझे बहुत ताने मारेंगी। मैं चुप चाप अपने कमरे में चला गया। श्वेता ड्राइंग रूम में बैठ गई और माँ किचन में हमारे लिए कॉफ़ी बनाने लगीं।
मैं जब आया तो श्वेता फिर से बोल पड़ी - और बताओ पढाई कैसी चल रही है ?
मैं - तू सरकास्टिक बोल रही है या सच में पूछ रही है ?
श्वेता - सच में बता दो भाई।
मैं - पढाई सही चल रही है। मैडम ने लगभग लगभग कोर्स ख़त्म करा दिया है। गजब पढ़ाती हैं वो।
किचन से माँ बोली - हाँ गजब तो पढ़ाती होंगी। पढ़ाने के बाद तो इंटरकोर्स भी करती होंगी। कोर्स तो ख़त्म होगा ही।
श्वेता ये सुनकर जोर जोर से हंसने लगी। मुझे तो पहले खीज आई फिर मुझे भी हंसी आ गई।
मैंने हँसते हुए कहा - माँ , इंटरकोर्स तो आपके साथ ही होता है। श्वेता ने मना कर रखा है। अब क्या ही कर सकता हूँ।
श्वेता - और बता , अब तक तो तारा की चूत तो दरवाजा हो गई होगी।
मन - नहीं यार। अभी नहीं। उसकी लेने का मौका ही नहीं मिला। एग्जाम के बाद शायद मिले।
श्वेता - उम्म्म्म , बच्चे को कितना दुःख है। देख रही हो माँ। बेचारे के सामने थाली राखी रहती है पर खा नहीं पा रहा।
माँ - हाँ , उसकी अम्मा पहले इसे छोड़े तब न।
मैं - यार तुम दोनों को मेरी खिंचाई करनी है तो मैं जा रहा हूँ।
श्वेता - यार बैठो भी। अब इतने दोनों बाद मिले हैं कुछ तो मजे कर लेने दो।
हम तीनो ने कॉफी पी। उसके बाद दोनों किचन में काम करने लग गईं। मैंने भी थोड़ी बहुत मदद की। काफी दिनों बाद मिलने की वजह से मेरी नजर श्वेता के चेहरे से हट ही नहीं रही थी। उसका चेहरा बहुत सुन्दर लग रहा था। मैं बीच बीच में उसे किस कर लेता था। माँ भी उसे बहुत प्यार भरी नजरों से देख रही थी। खाना खाने के बाद हम ड्राइंग रूम में ही टीवी देखने लगे। माँ एक कोने में शॉल ओढ़े बैठी थी। कमरे में हीटर चल रहा था फिर भी श्वेता एक कम्बल ओढ़े माँ के गोद में सर रख कर लेती थी। मैं भी उसी सोफे में घुसने की कोशिश कर रहा था पर उसने मुझे भगा दिया। मजबूरन मुझे दुसरे पर कम्बल ओढ़ कर बैठना पड़ा। माँ प्यार से कभी श्वेता के गाल सहलाती तो कभी उसके गालों को चूम लेती। कुछ ही देर में दोनों मस्ती में आ गईं। मैंने देखा की माँ का हाथ अब कम्बल के अंदर से ही श्वेता के कुर्ती के अंदर जा चूका था और वो उसके मुम्मे हलके से दबा रही थी। श्वेता उन्हें मना नहीं कर रही थी बल्कि उसका हाथ अपने चूत पर पहुँच गया था। उसने चूत में ऊँगली करनी शुरू कर दी थी।
मुझसे भी रहा नहीं गया मैं उसके पैरों के पास जाकर बैठ गया और कम्बल में घुस गया। मैं चाहता था की मैं खुद ही ऊँगली करूँ। उसने पहले तो मुझे भगाने की कोशिश की पर अंत में उसने हार मान लिया। उसने मेरे जांघो पर पेअर रख दिया। मैं इस तरह से खिसक गया जिससे मैं उसके पैरों के बीच में आ गया। मैंने हाथ बढ़ा कर उसके सलवार उतारने की कोशिश की तो उसने रोक दिया। मैं जबजस्ती करके उसका मूड खराब नहीं करना चाहता था तो मैंने सीधे सलवार के अंदर हाथ डालकर उसके पैंटी के ऊपर से उसके चूत को अपने पंजे के कब्जे में कर लेता हूँ। मेरे ऐसा करते ही उसने जोर से सिसकारी ली और अपने दोनों पैरों को सिकोड़ लिया। उधर माँ ने अपने शाल के अंदर से अपना कुर्ती ऊपर कर लिया और श्वेता के मुँह में अपने मुम्मे डाल दिए। अब श्वेता आराम से उनके स्तनों को चूसने लगी। माँ ने भी उसके कुर्ते को ऊपर तक कर दिया था और उसके स्तनों को दबा रही थी। इस सर्दी में भी कमरे के अंदर का माहौल गरम हो चूका था।
मैंने कुछ देर बाद श्वेता की पैंटी के अंदर हाथ डाल दिया और धीरे धीरे से उसके चूत को सहलाने लगा।
श्वेता कुछ मिनटों बाद मेरी तरफ देख कर बोली - क्लीट को मसलो।
मैंने उसके क्लीट को अपने दो उँगलियों के बीच में दबा लिया और उँगलियों को रगड़ने लगा। इस तरह से उन उंगलियों के बीच में फंसे उसके क्लीट की मालिश होने लगी।
श्वेता - उफ्फ्फ। हाँ। इस्सस। माँ तुमने कितना बढ़िया सिखाया है इसे। उफ्फ्फ
उसके बदन में हलचल होने लगी थी। उसने सलवार और पैंटी पहनी हुई थी तो मुझे थोड़ी दिक्कत हो रही थी। उसे इस बात का अंदाजा लग गया था। उसे भी मजा नहीं आ रहा था। उसने आखिर खुद ही अपना सलवार और पैंटी हाथ डाल कर घुटने तक कर दिया। मैंने फिर उसे पूरी तरह से निकाल ही दिया। अब मेरे हाथो को कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। मैंने एक हाथ की उँगलियों से उसके क्लीट को सहलाना शुरू किया और दुसरे हाथ की उँगलियों को उसके चूत में डाल दिया। अब मेरे दोनों हाथ हरकत कर रहे थे। उसने अब माँ के स्तन पीना छोड़ दिया बल्कि उनके हाथो को अपने स्तनों पर रख दिया और माँ को झुकाकर उन्हें चूमने लगी । माँ ने भी इशारा समझ लिया। माँ ने उसके कुर्ते को ब्रा सहित उतार दिया और उसके स्तनों को मसलते हुए उसे चूमने लगीं। कम्बल के अंदर श्वेता पुरी तरह से नंगी थी और हम माँ बेटे उसके शरीर को आनंद दे रहे थे। कुछ ही देर में उसका शरीर अकड़ने लगा। उसने वहीँ छटपटाना शुरू कर दिया था। मुझे समझ आ गया था उसकी चूत पानी छोड़ने वाली है।
उसने भी उत्तेजना में बोलना शुरू कर दिया था - तेज , और तेज करो। मसल डालो। आह आह। बहुत दिनों से प्यासी थी मैं।
तुमने मुझे प्यासा ही रख रखा था और दूसरी लड़कियों के चक्कर में पड़ गए। मेरी चूत कितना शिकायत कर रही थी। उफ़ आह आह आह। माआआ संभाल लो मुझे , मैं गई। माआआ
उसका शरीर काँप रहा था। उसने मेरे हाथ को जोर से पकड़ लिया और अपने जांघों के बीच फंसा लिया। मेरी उँगलियाँ उसके चूत में ही थी। उसका शरीर काँप रहा था। मैं और माँ उसे स्खलित होता देख रहे थे। उसने माँ को झुकाकर एकदम से जकड लिया था। पूरी तरह से ओर्गास्म का आनंद लेने के बाद उसे जब होश आया तो वो शर्मा गई।
मेरा हाथ अभी उसके चूत के ऊपर था। मैं मन्त्रमुघ्ध होकर उसके संतुष्ट से सुन्दर चेहरे को देख रहा था।
उसने शर्माते हुए कहा - ऊँगली बाहर निकालो। मेरा हो गया।
मैं - हम्म , ओह्ह। तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो।
श्वेता - पहले नहीं थी क्या ?
मैं - तुम हमेशा से थी। पर तुमने मुझे खुद से दूर कर दिया है।
पता नहीं ये बिजलकार मैं इमोशनल हो गया और मेरे आँखों में आंसू आ गए। मेरी हालत देख वो उठ कर बैठ गई और मुझे गले लगाते हेउ बोली - मैंने कभी तुम्हे खुद से दूर नहीं किया। ना ही तुम मेरे दिल से दूर गए हो। बस मज़बूरी है।
मैंने उसे गले लगा लिया। माँ ने उसे पीछे से कम्बल ओढ़ा दिया और उठ कर किचन में चली गईं।
मैं - ये कैसी मज़बूरी है जो अपने ही प्यार को दूर करता है।
श्वेता - तुम कितना भी दूर जाओ। अंत में मेरे पास ही आओगे। बोलो मुझे छोड़ कर तो नहीं चले जाओगे ?
मैंने उसके आँखों को किस किस किया और कहा - तुम कहो तो आज ही शादी कर लें और मैं फिर किसी के पास नही जाऊंगा।
श्वेता - पहले दोनों अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ फिर देखते हैं। तब तक तुम्हे आजादी है।
मैं - मैं आजादी नहीं चाहता हूँ। बस तुम्हारा प्यार चाहिए।
श्वेता - मेरा प्यार सिर्फ तुम्हारे लिए ही है।
मैं - मेरा भी। सच कहूं तो जब भी किसी के नजदीक जाता हूँ तो शरीर भले वहां रहता है पर मन में तुम ही रहती हो। मैं यही कल्पना करता रहता हूँ की मैं तुम्हारे साथ हूँ।
तभी माँ ने गुनगुने गरम पानी के ग्लास टेबल पर रख दिया। उन्होंने हमारे बालों पर हाथ फेरा और जाने लगीं तो श्वेता ने उनका हाथ पकड़ लिया और बोली - मत जाओ न प्लीज।
उसके प्यार भरी बात सुनकर माँ भी अचानक से रोने लगीं। पुरे कमरे का माहौल इमोशनल सा हो गया। माँ श्वेता से चिपक कर बैठ गईं। श्वेता हम दोनों के सहारे थी। कुछ देर हम सब चुप बैठे थे। शांत से कमरे में तीन धड़कने सुनाई पड़ रही थी। आज मैंने श्वेता को प्यार दिया था पर आश्चर्य की बात थी मेरा लंड एकदम शांत था। आज के प्यार में हवस नहीं था।। सिर्फ प्यार था।