• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest मेरी माँ, बहने और उनका परिवार

Who do you suggest Raj should fuck first?

  • Shweta

    Votes: 89 75.4%
  • Soniya

    Votes: 29 24.6%

  • Total voters
    118
  • Poll closed .
411
264
63
एक दिन ऐसे ही रात को मैं दीप्ति मैम के यहाँ से लौट रहा था कि श्वेता का फ़ोन मेरे पास आया।
मैं - आज मेरी याद कैसे आ गई ?
श्वेता - तेरी याद मेरे जेहन से कभी गई ही नहीं। बल्कि तू चुतों के समंदर में गोते लगा रहा है।
मैं - तुमने ही तो शर्त रख दी थी
श्वेता - रखी तो थी पर तुम तो शर्त रखने वाले को ही भूल गए।
मैं ये सुनकर थोड़ा इमोशनल हो गया। मुझे लग गया था कि श्वेता वास्तव में मुझे मिस कर रही थी। क्या उसे अपने शर्त पर पछतावा हो रहा था या फिर बस ऐसे ही थोड़ी उदासी थी ?
मैंने उससे पुछा - तुम कहो तो आज ही सब छोड़ छाड़ कर तुम्हारे साथ भाग चलूँ।
श्वेता ने हँसते हुए कहा - रहने दो। बस तुम मुझे आज घर ले चलो।
मैं - जो हुकुम मेरे सरकार।
मैंने गाडी उसके हॉस्टल की तरफ मोड़ लिया। वहां गेट पर वो पहले से मेरा इंतजार कर रही थी। ठंढ में उसके गाल सेव जैसे एकदम लाल हो रखे थे। मैंने उसके गाल पकड़ का रखीँच लिए तो उसने चिढ़ते हुए कहा - क्या कर रहे हो ?
मैंने कहा - एकदम सेव लग रही हो। काट कर खा जाने का मन कर रहा है।
श्वेता - क्यों अभी जिस बागान से आ रहे हो , वहां सेव नहीं थे क्या ?
मैं - कुछ जलने जैसा क्यों लग रहा है ?
श्वेता - मैं क्यों जलूँगी भाई ?
मैं - हम्म। मुझे कुछ कुछ ऐसा ही लग रहा है।
श्वेता - घर चलो ठंढ लग रही है।
मैंने गाडी घर की तरफ कर ली। श्वेता को देखते ही माँ एकदम से खुश हो गईं। उन्होंने उसे गले लगाया और फिर उसके माथे और गाल पर चूमते हुए कहा - हमें भूल गई थी हमारी बिटिया।
श्वेता - नहीं माँ , भूली नहीं थी। बस एग्जाम की तैयारी में बीजी थी।
माँ - ये जनाब भी तैयारी में हैं। रोज अपनी मैडम के यहाँ चले जाते हैं। भगवान् जाने दोनों माँ बेटी क्या पढ़ाते हैं इसे।
माँ के अंदर से भी उनका दर्द बाहर आ रहा था। मुझे लग गया आज ये दोनों मुझे बहुत ताने मारेंगी। मैं चुप चाप अपने कमरे में चला गया। श्वेता ड्राइंग रूम में बैठ गई और माँ किचन में हमारे लिए कॉफ़ी बनाने लगीं।
मैं जब आया तो श्वेता फिर से बोल पड़ी - और बताओ पढाई कैसी चल रही है ?
मैं - तू सरकास्टिक बोल रही है या सच में पूछ रही है ?
श्वेता - सच में बता दो भाई।
मैं - पढाई सही चल रही है। मैडम ने लगभग लगभग कोर्स ख़त्म करा दिया है। गजब पढ़ाती हैं वो।
किचन से माँ बोली - हाँ गजब तो पढ़ाती होंगी। पढ़ाने के बाद तो इंटरकोर्स भी करती होंगी। कोर्स तो ख़त्म होगा ही।
श्वेता ये सुनकर जोर जोर से हंसने लगी। मुझे तो पहले खीज आई फिर मुझे भी हंसी आ गई।
मैंने हँसते हुए कहा - माँ , इंटरकोर्स तो आपके साथ ही होता है। श्वेता ने मना कर रखा है। अब क्या ही कर सकता हूँ।
श्वेता - और बता , अब तक तो तारा की चूत तो दरवाजा हो गई होगी।
मन - नहीं यार। अभी नहीं। उसकी लेने का मौका ही नहीं मिला। एग्जाम के बाद शायद मिले।
श्वेता - उम्म्म्म , बच्चे को कितना दुःख है। देख रही हो माँ। बेचारे के सामने थाली राखी रहती है पर खा नहीं पा रहा।
माँ - हाँ , उसकी अम्मा पहले इसे छोड़े तब न।
मैं - यार तुम दोनों को मेरी खिंचाई करनी है तो मैं जा रहा हूँ।
श्वेता - यार बैठो भी। अब इतने दोनों बाद मिले हैं कुछ तो मजे कर लेने दो।

हम तीनो ने कॉफी पी। उसके बाद दोनों किचन में काम करने लग गईं। मैंने भी थोड़ी बहुत मदद की। काफी दिनों बाद मिलने की वजह से मेरी नजर श्वेता के चेहरे से हट ही नहीं रही थी। उसका चेहरा बहुत सुन्दर लग रहा था। मैं बीच बीच में उसे किस कर लेता था। माँ भी उसे बहुत प्यार भरी नजरों से देख रही थी। खाना खाने के बाद हम ड्राइंग रूम में ही टीवी देखने लगे। माँ एक कोने में शॉल ओढ़े बैठी थी। कमरे में हीटर चल रहा था फिर भी श्वेता एक कम्बल ओढ़े माँ के गोद में सर रख कर लेती थी। मैं भी उसी सोफे में घुसने की कोशिश कर रहा था पर उसने मुझे भगा दिया। मजबूरन मुझे दुसरे पर कम्बल ओढ़ कर बैठना पड़ा। माँ प्यार से कभी श्वेता के गाल सहलाती तो कभी उसके गालों को चूम लेती। कुछ ही देर में दोनों मस्ती में आ गईं। मैंने देखा की माँ का हाथ अब कम्बल के अंदर से ही श्वेता के कुर्ती के अंदर जा चूका था और वो उसके मुम्मे हलके से दबा रही थी। श्वेता उन्हें मना नहीं कर रही थी बल्कि उसका हाथ अपने चूत पर पहुँच गया था। उसने चूत में ऊँगली करनी शुरू कर दी थी।

मुझसे भी रहा नहीं गया मैं उसके पैरों के पास जाकर बैठ गया और कम्बल में घुस गया। मैं चाहता था की मैं खुद ही ऊँगली करूँ। उसने पहले तो मुझे भगाने की कोशिश की पर अंत में उसने हार मान लिया। उसने मेरे जांघो पर पेअर रख दिया। मैं इस तरह से खिसक गया जिससे मैं उसके पैरों के बीच में आ गया। मैंने हाथ बढ़ा कर उसके सलवार उतारने की कोशिश की तो उसने रोक दिया। मैं जबजस्ती करके उसका मूड खराब नहीं करना चाहता था तो मैंने सीधे सलवार के अंदर हाथ डालकर उसके पैंटी के ऊपर से उसके चूत को अपने पंजे के कब्जे में कर लेता हूँ। मेरे ऐसा करते ही उसने जोर से सिसकारी ली और अपने दोनों पैरों को सिकोड़ लिया। उधर माँ ने अपने शाल के अंदर से अपना कुर्ती ऊपर कर लिया और श्वेता के मुँह में अपने मुम्मे डाल दिए। अब श्वेता आराम से उनके स्तनों को चूसने लगी। माँ ने भी उसके कुर्ते को ऊपर तक कर दिया था और उसके स्तनों को दबा रही थी। इस सर्दी में भी कमरे के अंदर का माहौल गरम हो चूका था।
मैंने कुछ देर बाद श्वेता की पैंटी के अंदर हाथ डाल दिया और धीरे धीरे से उसके चूत को सहलाने लगा।
श्वेता कुछ मिनटों बाद मेरी तरफ देख कर बोली - क्लीट को मसलो।
मैंने उसके क्लीट को अपने दो उँगलियों के बीच में दबा लिया और उँगलियों को रगड़ने लगा। इस तरह से उन उंगलियों के बीच में फंसे उसके क्लीट की मालिश होने लगी।
श्वेता - उफ्फ्फ। हाँ। इस्सस। माँ तुमने कितना बढ़िया सिखाया है इसे। उफ्फ्फ
उसके बदन में हलचल होने लगी थी। उसने सलवार और पैंटी पहनी हुई थी तो मुझे थोड़ी दिक्कत हो रही थी। उसे इस बात का अंदाजा लग गया था। उसे भी मजा नहीं आ रहा था। उसने आखिर खुद ही अपना सलवार और पैंटी हाथ डाल कर घुटने तक कर दिया। मैंने फिर उसे पूरी तरह से निकाल ही दिया। अब मेरे हाथो को कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। मैंने एक हाथ की उँगलियों से उसके क्लीट को सहलाना शुरू किया और दुसरे हाथ की उँगलियों को उसके चूत में डाल दिया। अब मेरे दोनों हाथ हरकत कर रहे थे। उसने अब माँ के स्तन पीना छोड़ दिया बल्कि उनके हाथो को अपने स्तनों पर रख दिया और माँ को झुकाकर उन्हें चूमने लगी । माँ ने भी इशारा समझ लिया। माँ ने उसके कुर्ते को ब्रा सहित उतार दिया और उसके स्तनों को मसलते हुए उसे चूमने लगीं। कम्बल के अंदर श्वेता पुरी तरह से नंगी थी और हम माँ बेटे उसके शरीर को आनंद दे रहे थे। कुछ ही देर में उसका शरीर अकड़ने लगा। उसने वहीँ छटपटाना शुरू कर दिया था। मुझे समझ आ गया था उसकी चूत पानी छोड़ने वाली है।
उसने भी उत्तेजना में बोलना शुरू कर दिया था - तेज , और तेज करो। मसल डालो। आह आह। बहुत दिनों से प्यासी थी मैं।
तुमने मुझे प्यासा ही रख रखा था और दूसरी लड़कियों के चक्कर में पड़ गए। मेरी चूत कितना शिकायत कर रही थी। उफ़ आह आह आह। माआआ संभाल लो मुझे , मैं गई। माआआ
उसका शरीर काँप रहा था। उसने मेरे हाथ को जोर से पकड़ लिया और अपने जांघों के बीच फंसा लिया। मेरी उँगलियाँ उसके चूत में ही थी। उसका शरीर काँप रहा था। मैं और माँ उसे स्खलित होता देख रहे थे। उसने माँ को झुकाकर एकदम से जकड लिया था। पूरी तरह से ओर्गास्म का आनंद लेने के बाद उसे जब होश आया तो वो शर्मा गई।
मेरा हाथ अभी उसके चूत के ऊपर था। मैं मन्त्रमुघ्ध होकर उसके संतुष्ट से सुन्दर चेहरे को देख रहा था।
उसने शर्माते हुए कहा - ऊँगली बाहर निकालो। मेरा हो गया।
मैं - हम्म , ओह्ह। तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो।
श्वेता - पहले नहीं थी क्या ?
मैं - तुम हमेशा से थी। पर तुमने मुझे खुद से दूर कर दिया है।
पता नहीं ये बिजलकार मैं इमोशनल हो गया और मेरे आँखों में आंसू आ गए। मेरी हालत देख वो उठ कर बैठ गई और मुझे गले लगाते हेउ बोली - मैंने कभी तुम्हे खुद से दूर नहीं किया। ना ही तुम मेरे दिल से दूर गए हो। बस मज़बूरी है।
मैंने उसे गले लगा लिया। माँ ने उसे पीछे से कम्बल ओढ़ा दिया और उठ कर किचन में चली गईं।
मैं - ये कैसी मज़बूरी है जो अपने ही प्यार को दूर करता है।
श्वेता - तुम कितना भी दूर जाओ। अंत में मेरे पास ही आओगे। बोलो मुझे छोड़ कर तो नहीं चले जाओगे ?
मैंने उसके आँखों को किस किस किया और कहा - तुम कहो तो आज ही शादी कर लें और मैं फिर किसी के पास नही जाऊंगा।
श्वेता - पहले दोनों अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ फिर देखते हैं। तब तक तुम्हे आजादी है।
मैं - मैं आजादी नहीं चाहता हूँ। बस तुम्हारा प्यार चाहिए।
श्वेता - मेरा प्यार सिर्फ तुम्हारे लिए ही है।
मैं - मेरा भी। सच कहूं तो जब भी किसी के नजदीक जाता हूँ तो शरीर भले वहां रहता है पर मन में तुम ही रहती हो। मैं यही कल्पना करता रहता हूँ की मैं तुम्हारे साथ हूँ।
तभी माँ ने गुनगुने गरम पानी के ग्लास टेबल पर रख दिया। उन्होंने हमारे बालों पर हाथ फेरा और जाने लगीं तो श्वेता ने उनका हाथ पकड़ लिया और बोली - मत जाओ न प्लीज।
उसके प्यार भरी बात सुनकर माँ भी अचानक से रोने लगीं। पुरे कमरे का माहौल इमोशनल सा हो गया। माँ श्वेता से चिपक कर बैठ गईं। श्वेता हम दोनों के सहारे थी। कुछ देर हम सब चुप बैठे थे। शांत से कमरे में तीन धड़कने सुनाई पड़ रही थी। आज मैंने श्वेता को प्यार दिया था पर आश्चर्य की बात थी मेरा लंड एकदम शांत था। आज के प्यार में हवस नहीं था।। सिर्फ प्यार था।
Kya shandar update hai..... Nice keep it up dear....
 

Raj Singh

Active Member
1,974
3,973
158
Jabardast update. Waiting for next update
 
  • Like
Reactions: kamdev99008

krish1152

Well-Known Member
5,449
16,126
188
nice
 

tharkiman

Active Member
815
6,375
124
पर कहते हैं न जब दो बदन मिलते हैं वो भी जन्मजात नग्न अवस्था में तो हवस हावी होने ही लगता है और यहाँ तो तीन बदन थे। श्वेता ने माँ के कंधे पर सर रखा हुआ था और उसके एक हाथ माँ के दुसरे कंधे पर लगा हुआ था। एक तरह से वो माँ के ऊपर बिना कपडे के थी पर ऊपर से कम्बल ओढ़ा हुआ था। मैं भी उसी कम्बल में था। श्वेता की छूट सहलाते सहलाते मैंने अपना पैजामा उतार दिया था। कम्बल में मेरे और श्वेता के पैर आपस में उलझे हुए थे। श्वेता का हाथ अब माँ के स्तनों पर आ चूका ठौर वो धीरे धीरे उसे दबा रही थी। माँ फिर से गरम होने लगीं थी। उनकी धड़कन तेज हो चुकी थी। श्वेता को समझ आ गया था अब माँ को भी ख़ुशी चाहिए।
उसने धीरे से कहा - माँ , मैं तो पूरी तरह से नंगी हूँ। आपके बहनचोद बेटे ने भी अपना पैजामा उतार रखा है पर आप पुरे कपडे में हैं।
माँ - हम्म , ठंढ है न।
श्वेता - माँ ठंढ तो जा चुकी है। कमरे में हीटर है और उसके ऊपर से बदन की गर्मी।
माँ - सही कह रही है। अब मेरे बदन में गर्मी बढ़ रही है।
माँ ने ये कहकर अपना कुरता उतार दिया। माँ अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी तो कुर्ती उतारते ही उनके मुम्मे बाहर आ गए। जसे लपक कर श्वेता ने मुह में भर लिया। अब माँ ने सोफे के साइड का सहारा लिया और सोफे पर लेटने वाली अवस्था में हो गईं। श्वेता उनके ऊपर हो गई और उनके स्तनों को दाने चूसने लग गई।
मेरे लिए सोफे पर जगह बची ही नहीं। मुझे उतरना पड़ा। मुझे उतरता देख माँ बोली - बेटा अब अपना गरम गरम रॉड दे दे मेरे मुँह मे। तेरी भी गर्मी उतर जाएगी।
मैं ये सुनकर एकदम खुश हो गया। उन्होंने मेरी समस्या ही दूर कर दी थी। मैं लपक कर उनके पास पहुंचा और उनके सर के पास खड़ा हो गया। उनका सर सोफे के हेडरेस्ट से टिका हुआ था उन्होंने मेरा लैंड अपने मुँह में डाल लिय। मैं अब अपने कमर को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। मैंने थोड़ा झुक कर उनके एक मुम्मे को पकड़ लिया। श्वेता ने जब मेरी स्थिति देखि तो वो फिर निचे सरक कर माँ के छूट के तरफ चली गई। उसने माँ के सलवार और पैंटी को उतार दिया और उनके चूत को चाटने लगी।
माँ ने मेरा लैंड छोड़ दिया और बोली - उफ्फ्फ , हाँ ऐसे ही। चाट ऊपर से निचे तक चाट। मेरी मुनिया को भी चूसते रहना।
माँ का आदेश पाकर श्वेता उनके हिसाब से चूत चाटने लगी और माँ ने मेरा लैंड फिर मुँह में ले लिया और मैं उनके मुह चोदने लगा। कुछ देर की चुसाई के बाद माँ से रहा नहीं गया। उन्होंने कहा - अब तू मुझे और मत तड़पा चोद दे मुझे। बहुत हुआ। आजा अब घुसा दे अपना लौड़ा माँ की चूत में।
माँ का आदेश पाते ही मैंने उनके कमर की तरफ रुख किया। माँ सोफे से उतर गेन और सोफे का हेडरेस्ट पकड़ कर झुक कर कड़ी हो गईं। मैं उनके पीछे पहुँच गया। उनके उभरे हुए गांड को देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उनके गांड पर एक थप्पड़ मारा और कहा - मन तो कर रहा है गांड ही मार लूँ।
माँ - मादरचोद , मारता क्यों है ? पहले चूत की खुड़जलि मिटा।
मैंने मजाक में एक थप्पड़ और मारा और कहा - गांड भी दोगी न?
माँ - भोसड़ी के , अबकी हाथ लगा तो श्वेता से चटवा के झड़ लुंगी और तेरे लौड़े को कभी नहीं लुंगी।
उनके गुस्से भरे अंदाज से मुझे समझ आ गया था की उनके चूत में भयंकर खुजली मची है। चुदे बिना मानेंगी नहीं। मैंने अपना लैंड उनके चूत पर सेट किया और एक ही झटके में अंदर तक घुसा दिया।
उधर श्वेता उनके हाथों के बीच में उनके नीचे आ गई थी। उसका मुँह माँ के एकदम सामने था। उसने माँ को किस करते हुए कहा - चल राज चोद माँ को।
अब मेरी फटफटी चल पड़ी। मैं माँ के पीठ को सहला भी रहा था और उन्हें चोदे जा रहा था। श्वेता उनके स्तनों से खेलने लग गई थी। बीच बीच में वो उन्हें किस भी कर ले रही थी।
माँ - उह्ह्हह्ह ,चोद जोर से चोद। पेल दे अपनी माँ को बहनचोद।
मैं - एकदम कुतिया लग रही हो माँ। इतनी बार चोदा है फिर भी तुम्हारी चूत हर बार नै सी लगती है
माँ - भोसड़ी वाले , ये चूत जब नई लग रही है तो श्वेता की मारेगा तो कैसा लगेगा। उसकी कुंवारी चूत में तो बैगन तक नहीं गया है।
श्वेता का नाम सुनकर मैंने उसकी तरफ देखा तो वो बोल पड़ी - मेरे बारे में सोचना भी मत। तुम्हारा ये बांस जैसा लंडदेख कर तो मेरी चूत और सिकुड़ जाती है। पता नहीं क्या होगा मेरा।
माँ - इस्सस , चिंता नकार बेटी , मैं और तेरी माँ दोनों सुहागरात के दिन साथ में ही रहेंगे। एकदम दर्द नहीं होने देंगे।
श्वेता - पूरा खानदान बुला लेना माँ।
माँ - हिही ही , बस चले तो आ ही जाएँ।
श्वेता - भोसड़ी के तू क्या देख रहा है ? चल चोद अपनी माँ को। सुहागरात तो इन्ही के साथ मनाना।
मैं - चिंता न करो रानी , सुहागरात में तुम्हे और तुम्हारी माँ दोनों को चोद दूंगा।
श्वेता - वो तो एक नंबर की छिनाल है , वो सबसे पहले चुदेगी।
मस्ती भरी बातें और ख़ास कर चाची की गुदाज शरीर को याद करके मेरे धक्कों की स्पीड और तेज हो गई।
श्वेता ने अब अपना एक हाथ निचे से ही माँ के चूत पर लगा दिया था। एक तरफ मेरा लंड उनके चूत में हाहाकार मचा रहा था तो दूसरी तरफ श्वेता की उँगलियाँ माँ के क्लीट को रगड़ रही थी। माँ का शरीर अब दो तरफ से मिलने वाले आनंद के सागर में गोते लगाने लगा था। उनकी चूत अब कभी भी पानी छोड़ सकती थी। लगभग यही हाल मेरा भी था। कुछ ही देर में माँ का पूरा शरीर कांपने लगा और उनके पैर थरथराने लगे। उनकी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था। मेरे लंड ने भी उसी समय जवाब दे दिया और पुरे वेग से अपना माल उनके चूत में छोड़ने लगा। मैंने माँ को थामना चाहा और सोचा की अपना माल हमेशा की तरह उनके चूत में पूरा उड़ेल दूँ। पर माँ अपने चरम पर बहुत तेजी से गईं थी और धम्म से वहीँ बैठ गईं। मेरा लंड अब भी पिचकारी छोड़ रहा था जो की माँ के ऊपर ही गिरने लगा। तभी ना जाने क्या हुआ श्वेता आगे बढ़ी और मेरे लंड को अपने मु में भर ली। उसने मेरे लंड से निकलते माल को चाटना शुरू कर दिया। मेरा लंड मेरे रस के साथ साथ माँ के चूत के रस से भी भींगा हुआ था और श्वेता मजे से उसे चाटे जा रही थी। मुझे लगा था की मेरा लंड माल निकालने के बाद शांत होगा पर श्वेता के होठों ने उसे शांत नहीं होने दिया। मैंने सोचा की श्वेता की चूत ना सही उसके मुँह को ही चोद दूँ। पर उसने मेरे अरमानो पर पानी फेर दिया। पूरा माल चाट जाने के बाद उसने मुझसे कहा - मस्त माल है भाई। मजा आ गया।
मैं - चोदने दे ना।
श्वेता - यही बहुत है। शादी से पहले ऊपर से ही जो मिले उसके मजे ले लो।
मैं बेचारा क्या क्या करता वहीँ माँ के बगल में बैठ गया। मैं और माँ दोनों एक दुसरे से लिपटे सोफे के पास बिछे कार्पेट पर बैठ गए। उस रात खाने के बाद माँ और श्वेता ने फिर से एक दुसरे के चूत को चाटा। मैं थक गया था तो अपने कमरे में जाकर सो गया । दीप्ति मैम के यहाँ चुदाई फिर यहाँ माँ की चुदाई, मुझे तुरंत नींद आ गई थी। पर माँ और श्वेता लगता हो पागल सी हो गईं थी। पूरी रात एक दुसरे के बदन के साथ खेलती रहीं।


अगले दिन मैं उनके कमरे में जगाने गया तो माँ ने कहा - अभी सोने दे। सुबह पांच बजे तो सोये हैं।
मैनें दोनों को सोने दिया। दोपहर बारह बजे दोनों उठीं। मैंने दोनों को चाय भी पिलाया और नाश्ता भी कराया। श्वेता और माँ दोनों के चेहरे पर अजीब सी संतुष्टि थी।
मैंने उन्हें कहा - लगता है आप दोनों बहुत दिनों से प्यासी थी।
माँ - हां, तू इधर बीच बीजी हो गया था।
श्वेता - हमारे लिए इसके पास टाइम ही कहाँ है।
मैं अभी जवाब देने ही वाला था कि सोनी का फ़ोन आ गया। श्वेता ने सोनी का नाम देख कर कहा - देखा , इसकी प्रेमिकाओं कि कमी नहीं है।
मैंने फ़ोन उठा लिया। अगले हफ्ते फैक्ट्री के कागज़ पर साइन करने थे। मेरा मन नहीं था पर मज़बूरी थी। कुछ देर काम कि बात करने के बाद होली कि प्लानिंग होने लगी। तय यही हुआ कि सब नाना के यहाँ चलेंगे। होली का असली मजा वहीँ आने वाला था। बड़ी मौसी, लीला दी और विकास और सुरभि भी वहां आने के लिए तैयार थे।
सोनी ने श्वेता के बारे में पुछा तो मैंनेउसे कहा - खुद ही पूछ लो।
सोनी और श्वेता कि बात होने लगी। कुछ देर औपचारिकता के बाद जब सोनी ने श्वेता को नाना के यहाँ होली पर आने को कहा तो श्वेता शायद हाँ कहने वाली थी कि माँ ने उसे ना का इशारा किया। ये देख श्वेता ने कहा - देखती हूँ। मेरे एग्जाम भी होंगे।
कुछ देर सोनी ने और बात कि फिर फ़ोन रख दिया।
मैंने माँ से पुछा - आपने श्वेता को जाने से मना क्यों किया ?
माँ - साले तेरे सुहागरात से पहले ही इसकी चूत का भोसड़ा बन जाना है वहां।
मैं - क्या मतलब ?
माँ - तेरे नाना के यहाँ होली पर कोई नियम नहीं है। जिसका मन करे किसी को चोद सकता है। लौंडिया मन नहीं कर सकती।
श्वेता - ये अजीब नियम नहीं है ?
माँ - जिसके लिए अजीब है वो नहीं जाता। जो जा रहा है मतलब वो चुदने को तैयार है।
मैं - इसका मतलब विकास और सुरभि।
माँ - तू भोला है। तेरी मेरी चुदाई तो बहुत बाद में शुरू हुई। विकास तो अपनी माँ कि कबसे ले रहा है।
आश्चर्य से मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।
माँ - तुझे क्या लगता है जिस घर में लीला जैसी लड़की हो वहा कैसा माहौल होगा। लीला को देख कर भी तुझे समझ नहीं आया।
श्वेता - पर माँ , सुरभि ?
माँ - वो लीला से कम नहीं है । उसके पापा ने ही सबसे पहले उसकी सील तोड़ी थी
मैं और श्वेता दोनों खामोश थे। माँ ने कहा - कभी उनकी कहानी सुनाऊँगी।
मैं - अभी बताओ न। सुरभि कि सील कैसे टूटी ? नाना ने भी उसे पेला है क्या ? विक्की और मौसा के तो मजे हैं। तीन तीन चूत।
माँ - चल खाना बनाने दे। दोपहर में सुनाऊँगी उनकी बात।
श्वेता - मजा आएगा। आज दोपहर में।
मैं - बस सुन कर मजे लेगी। देख तेरे बराबर कि लौंडिया चूत का भोसड़ा बना चुकी है और तू मुझसे शर्त शर्त खेल रही है।
श्वेता - सबकी अपनी मर्जी होती है। मेरी मर्जी है कि पति से सुहागरात को ही सील खुलवाउंगी।
मैं - यार पति सामने खड़ा है। चल अभी शादी करते हैं।
श्वेता - अपना मुँह देखा है। पहले शादी के लायक बनो। अपने पैर पर खड़े हो जाओ। फिर सोचूंगी।
मैं - शादी के लायक जिसे होना है वो हो चूका है। और अपने दोनों पैरों के बल पर खड़ा हूँ। तीसरे के बल पर तुझे खड़ा कर दूंगा।
श्वेता - ही ही ही , मजाक अच्छा है।
मैं - मजाक लग रहा है। माँ बता इसे मेरे पैरों के बारे में।
माँ - लड़कर क्या फायदा। आज नहीं तो कल इसकी चूत मिल ही जाएगी। तब तक तू अपने हथियार कि धार को बाकी चुतों से रगड़ रगड़ कर तेज करो।
ये सुनकर मैं और श्वेता हंस पड़े। माँ किचन में लग गईं। मैं और श्वेता पढाई में जुट गए। आज दोपहर फिर एक कहानी माँ सुनाने वाली थी।
 
Last edited:

Raj Singh

Active Member
1,974
3,973
158
Gajabe bhaukaal bana rakha hain NaNa ne. Ab NaNa ka time khatm hone wala hain. Nice update. Waiting for next update
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
42,746
111,121
304
पर कहते हैं न जब दो बदन मिलते हैं वो भी जन्मजात नग्न अवस्था में तो हवस हावी होने ही लगता है और यहाँ तो तीन बदन थे। श्वेता ने माँ के कंधे पर सर रखा हुआ था और उसके एक हाथ माँ के दुसरे कंधे पर लगा हुआ था। एक तरह से वो माँ के ऊपर बिना कपडे के थी पर ऊपर से कम्बल ओढ़ा हुआ था। मैं भी उसी कम्बल में था। श्वेता की छूट सहलाते सहलाते मैंने अपना पैजामा उतार दिया था। कम्बल में मेरे और श्वेता के पैर आपस में उलझे हुए थे। श्वेता का हाथ अब माँ के स्तनों पर आ चूका ठौर वो धीरे धीरे उसे दबा रही थी। माँ फिर से गरम होने लगीं थी। उनकी धड़कन तेज हो चुकी थी। श्वेता को समझ आ गया था अब माँ को भी ख़ुशी चाहिए।
उसने धीरे से कहा - माँ , मैं तो पूरी तरह से नंगी हूँ। आपके बहनचोद बेटे ने भी अपना पैजामा उतार रखा है पर आप पुरे कपडे में हैं।
माँ - हम्म , ठंढ है न।
श्वेता - माँ ठंढ तो जा चुकी है। कमरे में हीटर है और उसके ऊपर से बदन की गर्मी।
माँ - सही कह रही है। अब मेरे बदन में गर्मी बढ़ रही है।
माँ ने ये कहकर अपना कुरता उतार दिया। माँ अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी तो कुर्ती उतारते ही उनके मुम्मे बाहर आ गए। जसे लपक कर श्वेता ने मुह में भर लिया। अब माँ ने सोफे के साइड का सहारा लिया और सोफे पर लेटने वाली अवस्था में हो गईं। श्वेता उनके ऊपर हो गई और उनके स्तनों को दाने चूसने लग गई।
मेरे लिए सोफे पर जगह बची ही नहीं। मुझे उतरना पड़ा। मुझे उतरता देख माँ बोली - बेटा अब अपना गरम गरम रॉड दे दे मेरे मुँह मे। तेरी भी गर्मी उतर जाएगी।
मैं ये सुनकर एकदम खुश हो गया। उन्होंने मेरी समस्या ही दूर कर दी थी। मैं लपक कर उनके पास पहुंचा और उनके सर के पास खड़ा हो गया। उनका सर सोफे के हेडरेस्ट से टिका हुआ था उन्होंने मेरा लैंड अपने मुँह में डाल लिय। मैं अब अपने कमर को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। मैंने थोड़ा झुक कर उनके एक मुम्मे को पकड़ लिया। श्वेता ने जब मेरी स्थिति देखि तो वो फिर निचे सरक कर माँ के छूट के तरफ चली गई। उसने माँ के सलवार और पैंटी को उतार दिया और उनके चूत को चाटने लगी।
माँ ने मेरा लैंड छोड़ दिया और बोली - उफ्फ्फ , हाँ ऐसे ही। चाट ऊपर से निचे तक चाट। मेरी मुनिया को भी चूसते रहना।
माँ का आदेश पाकर श्वेता उनके हिसाब से चूत चाटने लगी और माँ ने मेरा लैंड फिर मुँह में ले लिया और मैं उनके मुह चोदने लगा। कुछ देर की चुसाई के बाद माँ से रहा नहीं गया। उन्होंने कहा - अब तू मुझे और मत तड़पा चोद दे मुझे। बहुत हुआ। आजा अब घुसा दे अपना लौड़ा माँ की चूत में।
माँ का आदेश पाते ही मैंने उनके कमर की तरफ रुख किया। माँ सोफे से उतर गेन और सोफे का हेडरेस्ट पकड़ कर झुक कर कड़ी हो गईं। मैं उनके पीछे पहुँच गया। उनके उभरे हुए गांड को देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उनके गांड पर एक थप्पड़ मारा और कहा - मन तो कर रहा है गांड ही मार लूँ।
माँ - मादरचोद , मारता क्यों है ? पहले चूत की खुड़जलि मिटा।
मैंने मजाक में एक थप्पड़ और मारा और कहा - गांड भी दोगी न?
माँ - भोसड़ी के , अबकी हाथ लगा तो श्वेता से चटवा के झड़ लुंगी और तेरे लौड़े को कभी नहीं लुंगी।
उनके गुस्से भरे अंदाज से मुझे समझ आ गया था की उनके चूत में भयंकर खुजली मची है। चुदे बिना मानेंगी नहीं। मैंने अपना लैंड उनके चूत पर सेट किया और एक ही झटके में अंदर तक घुसा दिया।
उधर श्वेता उनके हाथों के बीच में उनके नीचे आ गई थी। उसका मुँह माँ के एकदम सामने था। उसने माँ को किस करते हुए कहा - चल राज चोद माँ को।
अब मेरी फटफटी चल पड़ी। मैं माँ के पीठ को सहला भी रहा था और उन्हें चोदे जा रहा था। श्वेता उनके स्तनों से खेलने लग गई थी। बीच बीच में वो उन्हें किस भी कर ले रही थी।
माँ - उह्ह्हह्ह ,चोद जोर से चोद। पेल दे अपनी माँ को बहनचोद।
मैं - एकदम कुतिया लग रही हो माँ। इतनी बार चोदा है फिर भी तुम्हारी चूत हर बार नै सी लगती है
माँ - भोसड़ी वाले , ये चूत जब नई लग रही है तो श्वेता की मारेगा तो कैसा लगेगा। उसकी कुंवारी चूत में तो बैगन तक नहीं गया है।
श्वेता का नाम सुनकर मैंने उसकी तरफ देखा तो वो बोल पड़ी - मेरे बारे में सोचना भी मत। तुम्हारा ये बांस जैसा लंडदेख कर तो मेरी चूत और सिकुड़ जाती है। पता नहीं क्या होगा मेरा।
माँ - इस्सस , चिंता नकार बेटी , मैं और तेरी माँ दोनों सुहागरात के दिन साथ में ही रहेंगे। एकदम दर्द नहीं होने देंगे।
श्वेता - पूरा खानदान बुला लेना माँ।
माँ - हिही ही , बस चले तो आ ही जाएँ।
श्वेता - भोसड़ी के तू क्या देख रहा है ? चल चोद अपनी माँ को। सुहागरात तो इन्ही के साथ मनाना।
मैं - चिंता न करो रानी , सुहागरात में तुम्हे और तुम्हारी माँ दोनों को चोद दूंगा।
श्वेता - वो तो एक नंबर की छिनाल है , वो सबसे पहले चुदेगी।
मस्ती भरी बातें और ख़ास कर चाची की गुदाज शरीर को याद करके मेरे धक्कों की स्पीड और तेज हो गई।
श्वेता ने अब अपना एक हाथ निचे से ही माँ के चूत पर लगा दिया था। एक तरफ मेरा लंड उनके चूत में हाहाकार मचा रहा था तो दूसरी तरफ श्वेता की उँगलियाँ माँ के क्लीट को रगड़ रही थी। माँ का शरीर अब दो तरफ से मिलने वाले आनंद के सागर में गोते लगाने लगा था। उनकी चूत अब कभी भी पानी छोड़ सकती थी। लगभग यही हाल मेरा भी था। कुछ ही देर में माँ का पूरा शरीर कांपने लगा और उनके पैर थरथराने लगे। उनकी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था। मेरे लंड ने भी उसी समय जवाब दे दिया और पुरे वेग से अपना माल उनके चूत में छोड़ने लगा। मैंने माँ को थामना चाहा और सोचा की अपना माल हमेशा की तरह उनके चूत में पूरा उड़ेल दूँ। पर माँ अपने चरम पर बहुत तेजी से गईं थी और धम्म से वहीँ बैठ गईं। मेरा लंड अब भी पिचकारी छोड़ रहा था जो की माँ के ऊपर ही गिरने लगा। तभी ना जाने क्या हुआ श्वेता आगे बढ़ी और मेरे लंड को अपने मु में भर ली। उसने मेरे लंड से निकलते माल को चाटना शुरू कर दिया। मेरा लंड मेरे रस के साथ साथ माँ के चूत के रस से भी भींगा हुआ था और श्वेता मजे से उसे चाटे जा रही थी। मुझे लगा था की मेरा लंड माल निकालने के बाद शांत होगा पर श्वेता के होठों ने उसे शांत नहीं होने दिया। मैंने सोचा की श्वेता की चूत ना सही उसके मुँह को ही चोद दूँ। पर उसने मेरे अरमानो पर पानी फेर दिया। पूरा माल चाट जाने के बाद उसने मुझसे कहा - मस्त माल है भाई। मजा आ गया।
मैं - चोदने दे ना।
श्वेता - यही बहुत है। शादी से पहले ऊपर से ही जो मिले उसके मजे ले लो।
मैं बेचारा क्या क्या करता वहीँ माँ के बगल में बैठ गया। मैं और माँ दोनों एक दुसरे से लिपटे सोफे के पास बिछे कार्पेट पर बैठ गए। उस रात खाने के बाद माँ और श्वेता ने फिर से एक दुसरे के चूत को चाटा। मैं थक गया था तो अपने कमरे में जाकर सो गया । दीप्ति मैम के यहाँ चुदाई फिर यहाँ माँ की चुदाई, मुझे तुरंत नींद आ गई थी। पर माँ और श्वेता लगता हो पागल सी हो गईं थी। पूरी रात एक दुसरे के बदन के साथ खेलती रहीं।


अगले दिन मैं उनके कमरे में जगाने गया तो माँ ने कहा - अभी सोने दे। सुबह पांच बजे तो सोये हैं।
मैनें दोनों को सोने दिया। दोपहर बारह बजे दोनों उठीं। मैंने दोनों को चाय भी पिलाया और नाश्ता भी कराया। श्वेता और माँ दोनों के चेहरे पर अजीब सी संतुष्टि थी।
मैंने उन्हें कहा - लगता है आप दोनों बहुत दिनों से प्यासी थी।
माँ - हां, तू इधर बीच बीजी हो गया था।
श्वेता - हमारे लिए इसके पास टाइम ही कहाँ है।
मैं अभी जवाब देने ही वाला था कि सोनी का फ़ोन आ गया। श्वेता ने सोनी का नाम देख कर कहा - देखा , इसकी प्रेमिकाओं कि कमी नहीं है।
मैंने फ़ोन उठा लिया। अगले हफ्ते फैक्ट्री के कागज़ पर साइन करने थे। मेरा मन नहीं था पर मज़बूरी थी। कुछ देर काम कि बात करने के बाद होली कि प्लानिंग होने लगी। तय यही हुआ कि सब नाना के यहाँ चलेंगे। होली का असली मजा वहीँ आने वाला था। बड़ी मौसी, लीला दी और विकास और सुरभि भी वहां आने के लिए तैयार थे।
सोनी ने श्वेता के बारे में पुछा तो मैंनेउसे कहा - खुद ही पूछ लो।
सोनी और श्वेता कि बात होने लगी। कुछ देर औपचारिकता के बाद जब सोनी ने श्वेता को नाना के यहाँ होली पर आने को कहा तो श्वेता शायद हाँ कहने वाली थी कि माँ ने उसे ना का इशारा किया। ये देख श्वेता ने कहा - देखती हूँ। मेरे एग्जाम भी होंगे।
कुछ देर सोनी ने और बात कि फिर फ़ोन रख दिया।
मैंने माँ से पुछा - आपने श्वेता को जाने से मना क्यों किया ?
माँ - साले तेरे सुहागरात से पहले ही इसकी चूत का भोसड़ा बन जाना है वहां।
मैं - क्या मतलब ?
माँ - तेरे नाना के यहाँ होली पर कोई नियम नहीं है। जिसका मन करे किसी को चोद सकता है। लौंडिया मन नहीं कर सकती।
श्वेता - ये अजीब नियम नहीं है ?
माँ - जिसके लिए अजीब है वो नहीं जाता। जो जा रहा है मतलब वो चुदने को तैयार है।
मैं - इसका मतलब विकास और सुरभि।
माँ - तू भोला है। तेरी मेरी चुदाई तो बहुत बाद में शुरू हुई। विकास तो अपनी माँ कि कबसे ले रहा है।
आश्चर्य से मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।
माँ - तुझे क्या लगता है जिस घर में लीला जैसी लड़की हो वहा कैसा माहौल होगा। लीला को देख कर भी तुझे समझ नहीं आया।
श्वेता - पर माँ , सुरभि ?
माँ - वो लीला से कम नहीं ह। जीजा ने उसकी सील उसके अठारवें जन्मदिन पर ही तोड़ दी थी।
मैं और श्वेता दोनों खामोश थे। माँ ने कहा - कभी उनकी कहानी सुनाऊँगी।
मैं - अभी बताओ न। सुरभि कि सील कैसे टूटी ? नाना ने भी उसे पेला है क्या ? विक्की और मौसा के तो मजे हैं। तीन तीन चूत।
माँ - चल खाना बनाने दे। दोपहर में सुनाऊँगी उनकी बात।
श्वेता - मजा आएगा। आज दोपहर में।
मैं - बस सुन कर मजे लेगी। देख तेरे बराबर कि लौंडिया चूत का भोसड़ा बना चुकी है और तू मुझसे शर्त शर्त खेल रही है।
श्वेता - सबकी अपनी मर्जी होती है। मेरी मर्जी है कि पति से सुहागरात को ही सील खुलवाउंगी।
मैं - यार पति सामने खड़ा है। चल अभी शादी करते हैं।
श्वेता - अपना मुँह देखा है। पहले शादी के लायक बनो। अपने पैर पर खड़े हो जाओ। फिर सोचूंगी।
मैं - शादी के लायक जिसे होना है वो हो चूका है। और अपने दोनों पैरों के बल पर खड़ा हूँ। तीसरे के बल पर तुझे खड़ा कर दूंगा।
श्वेता - ही ही ही , मजाक अच्छा है।
मैं - मजाक लग रहा है। माँ बता इसे मेरे पैरों के बारे में।
माँ - लड़कर क्या फायदा। आज नहीं तो कल इसकी चूत मिल ही जाएगी। तब तक तू अपने हथियार कि धार को बाकी चुतों से रगड़ रगड़ कर तेज करो।
ये सुनकर मैं और श्वेता हंस पड़े। माँ किचन में लग गईं। मैं और श्वेता पढाई में जुट गए। आज दोपहर फिर एक कहानी माँ सुनाने वाली थी।
Shaandar Mast Hot Update 🔥 🔥 🔥
 
Top