पर कहते हैं न जब दो बदन मिलते हैं वो भी जन्मजात नग्न अवस्था में तो हवस हावी होने ही लगता है और यहाँ तो तीन बदन थे। श्वेता ने माँ के कंधे पर सर रखा हुआ था और उसके एक हाथ माँ के दुसरे कंधे पर लगा हुआ था। एक तरह से वो माँ के ऊपर बिना कपडे के थी पर ऊपर से कम्बल ओढ़ा हुआ था। मैं भी उसी कम्बल में था। श्वेता की छूट सहलाते सहलाते मैंने अपना पैजामा उतार दिया था। कम्बल में मेरे और श्वेता के पैर आपस में उलझे हुए थे। श्वेता का हाथ अब माँ के स्तनों पर आ चूका ठौर वो धीरे धीरे उसे दबा रही थी। माँ फिर से गरम होने लगीं थी। उनकी धड़कन तेज हो चुकी थी। श्वेता को समझ आ गया था अब माँ को भी ख़ुशी चाहिए।
उसने धीरे से कहा - माँ , मैं तो पूरी तरह से नंगी हूँ। आपके बहनचोद बेटे ने भी अपना पैजामा उतार रखा है पर आप पुरे कपडे में हैं।
माँ - हम्म , ठंढ है न।
श्वेता - माँ ठंढ तो जा चुकी है। कमरे में हीटर है और उसके ऊपर से बदन की गर्मी।
माँ - सही कह रही है। अब मेरे बदन में गर्मी बढ़ रही है।
माँ ने ये कहकर अपना कुरता उतार दिया। माँ अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी तो कुर्ती उतारते ही उनके मुम्मे बाहर आ गए। जसे लपक कर श्वेता ने मुह में भर लिया। अब माँ ने सोफे के साइड का सहारा लिया और सोफे पर लेटने वाली अवस्था में हो गईं। श्वेता उनके ऊपर हो गई और उनके स्तनों को दाने चूसने लग गई।
मेरे लिए सोफे पर जगह बची ही नहीं। मुझे उतरना पड़ा। मुझे उतरता देख माँ बोली - बेटा अब अपना गरम गरम रॉड दे दे मेरे मुँह मे। तेरी भी गर्मी उतर जाएगी।
मैं ये सुनकर एकदम खुश हो गया। उन्होंने मेरी समस्या ही दूर कर दी थी। मैं लपक कर उनके पास पहुंचा और उनके सर के पास खड़ा हो गया। उनका सर सोफे के हेडरेस्ट से टिका हुआ था उन्होंने मेरा लैंड अपने मुँह में डाल लिय। मैं अब अपने कमर को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। मैंने थोड़ा झुक कर उनके एक मुम्मे को पकड़ लिया। श्वेता ने जब मेरी स्थिति देखि तो वो फिर निचे सरक कर माँ के छूट के तरफ चली गई। उसने माँ के सलवार और पैंटी को उतार दिया और उनके चूत को चाटने लगी।
माँ ने मेरा लैंड छोड़ दिया और बोली - उफ्फ्फ , हाँ ऐसे ही। चाट ऊपर से निचे तक चाट। मेरी मुनिया को भी चूसते रहना।
माँ का आदेश पाकर श्वेता उनके हिसाब से चूत चाटने लगी और माँ ने मेरा लैंड फिर मुँह में ले लिया और मैं उनके मुह चोदने लगा। कुछ देर की चुसाई के बाद माँ से रहा नहीं गया। उन्होंने कहा - अब तू मुझे और मत तड़पा चोद दे मुझे। बहुत हुआ। आजा अब घुसा दे अपना लौड़ा माँ की चूत में।
माँ का आदेश पाते ही मैंने उनके कमर की तरफ रुख किया। माँ सोफे से उतर गेन और सोफे का हेडरेस्ट पकड़ कर झुक कर कड़ी हो गईं। मैं उनके पीछे पहुँच गया। उनके उभरे हुए गांड को देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उनके गांड पर एक थप्पड़ मारा और कहा - मन तो कर रहा है गांड ही मार लूँ।
माँ - मादरचोद , मारता क्यों है ? पहले चूत की खुड़जलि मिटा।
मैंने मजाक में एक थप्पड़ और मारा और कहा - गांड भी दोगी न?
माँ - भोसड़ी के , अबकी हाथ लगा तो श्वेता से चटवा के झड़ लुंगी और तेरे लौड़े को कभी नहीं लुंगी।
उनके गुस्से भरे अंदाज से मुझे समझ आ गया था की उनके चूत में भयंकर खुजली मची है। चुदे बिना मानेंगी नहीं। मैंने अपना लैंड उनके चूत पर सेट किया और एक ही झटके में अंदर तक घुसा दिया।
उधर श्वेता उनके हाथों के बीच में उनके नीचे आ गई थी। उसका मुँह माँ के एकदम सामने था। उसने माँ को किस करते हुए कहा - चल राज चोद माँ को।
अब मेरी फटफटी चल पड़ी। मैं माँ के पीठ को सहला भी रहा था और उन्हें चोदे जा रहा था। श्वेता उनके स्तनों से खेलने लग गई थी। बीच बीच में वो उन्हें किस भी कर ले रही थी।
माँ - उह्ह्हह्ह ,चोद जोर से चोद। पेल दे अपनी माँ को बहनचोद।
मैं - एकदम कुतिया लग रही हो माँ। इतनी बार चोदा है फिर भी तुम्हारी चूत हर बार नै सी लगती है
माँ - भोसड़ी वाले , ये चूत जब नई लग रही है तो श्वेता की मारेगा तो कैसा लगेगा। उसकी कुंवारी चूत में तो बैगन तक नहीं गया है।
श्वेता का नाम सुनकर मैंने उसकी तरफ देखा तो वो बोल पड़ी - मेरे बारे में सोचना भी मत। तुम्हारा ये बांस जैसा लंडदेख कर तो मेरी चूत और सिकुड़ जाती है। पता नहीं क्या होगा मेरा।
माँ - इस्सस , चिंता नकार बेटी , मैं और तेरी माँ दोनों सुहागरात के दिन साथ में ही रहेंगे। एकदम दर्द नहीं होने देंगे।
श्वेता - पूरा खानदान बुला लेना माँ।
माँ - हिही ही , बस चले तो आ ही जाएँ।
श्वेता - भोसड़ी के तू क्या देख रहा है ? चल चोद अपनी माँ को। सुहागरात तो इन्ही के साथ मनाना।
मैं - चिंता न करो रानी , सुहागरात में तुम्हे और तुम्हारी माँ दोनों को चोद दूंगा।
श्वेता - वो तो एक नंबर की छिनाल है , वो सबसे पहले चुदेगी।
मस्ती भरी बातें और ख़ास कर चाची की गुदाज शरीर को याद करके मेरे धक्कों की स्पीड और तेज हो गई।
श्वेता ने अब अपना एक हाथ निचे से ही माँ के चूत पर लगा दिया था। एक तरफ मेरा लंड उनके चूत में हाहाकार मचा रहा था तो दूसरी तरफ श्वेता की उँगलियाँ माँ के क्लीट को रगड़ रही थी। माँ का शरीर अब दो तरफ से मिलने वाले आनंद के सागर में गोते लगाने लगा था। उनकी चूत अब कभी भी पानी छोड़ सकती थी। लगभग यही हाल मेरा भी था। कुछ ही देर में माँ का पूरा शरीर कांपने लगा और उनके पैर थरथराने लगे। उनकी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था। मेरे लंड ने भी उसी समय जवाब दे दिया और पुरे वेग से अपना माल उनके चूत में छोड़ने लगा। मैंने माँ को थामना चाहा और सोचा की अपना माल हमेशा की तरह उनके चूत में पूरा उड़ेल दूँ। पर माँ अपने चरम पर बहुत तेजी से गईं थी और धम्म से वहीँ बैठ गईं। मेरा लंड अब भी पिचकारी छोड़ रहा था जो की माँ के ऊपर ही गिरने लगा। तभी ना जाने क्या हुआ श्वेता आगे बढ़ी और मेरे लंड को अपने मु में भर ली। उसने मेरे लंड से निकलते माल को चाटना शुरू कर दिया। मेरा लंड मेरे रस के साथ साथ माँ के चूत के रस से भी भींगा हुआ था और श्वेता मजे से उसे चाटे जा रही थी। मुझे लगा था की मेरा लंड माल निकालने के बाद शांत होगा पर श्वेता के होठों ने उसे शांत नहीं होने दिया। मैंने सोचा की श्वेता की चूत ना सही उसके मुँह को ही चोद दूँ। पर उसने मेरे अरमानो पर पानी फेर दिया। पूरा माल चाट जाने के बाद उसने मुझसे कहा - मस्त माल है भाई। मजा आ गया।
मैं - चोदने दे ना।
श्वेता - यही बहुत है। शादी से पहले ऊपर से ही जो मिले उसके मजे ले लो।
मैं बेचारा क्या क्या करता वहीँ माँ के बगल में बैठ गया। मैं और माँ दोनों एक दुसरे से लिपटे सोफे के पास बिछे कार्पेट पर बैठ गए। उस रात खाने के बाद माँ और श्वेता ने फिर से एक दुसरे के चूत को चाटा। मैं थक गया था तो अपने कमरे में जाकर सो गया । दीप्ति मैम के यहाँ चुदाई फिर यहाँ माँ की चुदाई, मुझे तुरंत नींद आ गई थी। पर माँ और श्वेता लगता हो पागल सी हो गईं थी। पूरी रात एक दुसरे के बदन के साथ खेलती रहीं।
अगले दिन मैं उनके कमरे में जगाने गया तो माँ ने कहा - अभी सोने दे। सुबह पांच बजे तो सोये हैं।
मैनें दोनों को सोने दिया। दोपहर बारह बजे दोनों उठीं। मैंने दोनों को चाय भी पिलाया और नाश्ता भी कराया। श्वेता और माँ दोनों के चेहरे पर अजीब सी संतुष्टि थी।
मैंने उन्हें कहा - लगता है आप दोनों बहुत दिनों से प्यासी थी।
माँ - हां, तू इधर बीच बीजी हो गया था।
श्वेता - हमारे लिए इसके पास टाइम ही कहाँ है।
मैं अभी जवाब देने ही वाला था कि सोनी का फ़ोन आ गया। श्वेता ने सोनी का नाम देख कर कहा - देखा , इसकी प्रेमिकाओं कि कमी नहीं है।
मैंने फ़ोन उठा लिया। अगले हफ्ते फैक्ट्री के कागज़ पर साइन करने थे। मेरा मन नहीं था पर मज़बूरी थी। कुछ देर काम कि बात करने के बाद होली कि प्लानिंग होने लगी। तय यही हुआ कि सब नाना के यहाँ चलेंगे। होली का असली मजा वहीँ आने वाला था। बड़ी मौसी, लीला दी और विकास और सुरभि भी वहां आने के लिए तैयार थे।
सोनी ने श्वेता के बारे में पुछा तो मैंनेउसे कहा - खुद ही पूछ लो।
सोनी और श्वेता कि बात होने लगी। कुछ देर औपचारिकता के बाद जब सोनी ने श्वेता को नाना के यहाँ होली पर आने को कहा तो श्वेता शायद हाँ कहने वाली थी कि माँ ने उसे ना का इशारा किया। ये देख श्वेता ने कहा - देखती हूँ। मेरे एग्जाम भी होंगे।
कुछ देर सोनी ने और बात कि फिर फ़ोन रख दिया।
मैंने माँ से पुछा - आपने श्वेता को जाने से मना क्यों किया ?
माँ - साले तेरे सुहागरात से पहले ही इसकी चूत का भोसड़ा बन जाना है वहां।
मैं - क्या मतलब ?
माँ - तेरे नाना के यहाँ होली पर कोई नियम नहीं है। जिसका मन करे किसी को चोद सकता है। लौंडिया मन नहीं कर सकती।
श्वेता - ये अजीब नियम नहीं है ?
माँ - जिसके लिए अजीब है वो नहीं जाता। जो जा रहा है मतलब वो चुदने को तैयार है।
मैं - इसका मतलब विकास और सुरभि।
माँ - तू भोला है। तेरी मेरी चुदाई तो बहुत बाद में शुरू हुई। विकास तो अपनी माँ कि कबसे ले रहा है।
आश्चर्य से मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।
माँ - तुझे क्या लगता है जिस घर में लीला जैसी लड़की हो वहा कैसा माहौल होगा। लीला को देख कर भी तुझे समझ नहीं आया।
श्वेता - पर माँ , सुरभि ?
माँ - वो लीला से कम नहीं ह। जीजा ने उसकी सील उसके अठारवें जन्मदिन पर ही तोड़ दी थी।
मैं और श्वेता दोनों खामोश थे। माँ ने कहा - कभी उनकी कहानी सुनाऊँगी।
मैं - अभी बताओ न। सुरभि कि सील कैसे टूटी ? नाना ने भी उसे पेला है क्या ? विक्की और मौसा के तो मजे हैं। तीन तीन चूत।
माँ - चल खाना बनाने दे। दोपहर में सुनाऊँगी उनकी बात।
श्वेता - मजा आएगा। आज दोपहर में।
मैं - बस सुन कर मजे लेगी। देख तेरे बराबर कि लौंडिया चूत का भोसड़ा बना चुकी है और तू मुझसे शर्त शर्त खेल रही है।
श्वेता - सबकी अपनी मर्जी होती है। मेरी मर्जी है कि पति से सुहागरात को ही सील खुलवाउंगी।
मैं - यार पति सामने खड़ा है। चल अभी शादी करते हैं।
श्वेता - अपना मुँह देखा है। पहले शादी के लायक बनो। अपने पैर पर खड़े हो जाओ। फिर सोचूंगी।
मैं - शादी के लायक जिसे होना है वो हो चूका है। और अपने दोनों पैरों के बल पर खड़ा हूँ। तीसरे के बल पर तुझे खड़ा कर दूंगा।
श्वेता - ही ही ही , मजाक अच्छा है।
मैं - मजाक लग रहा है। माँ बता इसे मेरे पैरों के बारे में।
माँ - लड़कर क्या फायदा। आज नहीं तो कल इसकी चूत मिल ही जाएगी। तब तक तू अपने हथियार कि धार को बाकी चुतों से रगड़ रगड़ कर तेज करो।
ये सुनकर मैं और श्वेता हंस पड़े। माँ किचन में लग गईं। मैं और श्वेता पढाई में जुट गए। आज दोपहर फिर एक कहानी माँ सुनाने वाली थी।