परिणीता और मुझे सुबह से जागे हुए ३ घंटे हो चुके थे। इन ३ घंटो में अब तक हमें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि हमारी बॉडी एक्सचेंज कैसे हो गयी। यदि जीवन एक सपने की तरह जीया जा सकता तो कोई परेशानी न होती। पर यह हकीकत थी। और हकीकत में हमें दुनिया के और भी लोगो से मिलना होता है, नौकरी करनी होती है, कई तरह के काम करने होते है। और हमारी घर की चारदीवारियों के बाहर हमारे लिए क्या नए सरप्राइज है, इस बात का हमें अंदाज़ा नहीं था। अब शायद समय आ गया था कि हम इस नयी वास्तविकता का सामना करे।
“परिणिता, देखो अब हमें कभी न कभी न तो इस नए शरीर की वास्तविकता और बाहर की दुनिया का सामना तो करना पड़ेगा। हम पूरे दिन घर में छुप कर नहीं बैठे रह सकते।”, मैंने परिणिता का हाथ अपने हाथो में लेकर कहा। एक अच्छे पति की तरह मैं अपनी पत्नी का ख्याल रखना चाहती थी। पर सच कहूँ तो अपनी पत्नी को पुरुष रूप में देखना, वो भी उस रूप में जो कल तक मेरा था, बड़ा कंफ्यूज कर रहा था। मुझे अपनी पत्नी दिखाई न देती थी। जीवन में हर सुख दुःख में साथ देने का वादा किया था हमने, तो मैं वही कोशिश कर रही थी। और यही चीज़ तो उसके साथ भी हो रही थी, उसका पति एक नाज़ुक स्त्री रूप में उसके सामने था।
“हाँ, प्रतीक। वही सोच रही हूँ। चलो हम दोनों मिलकर हँसते हुए दुनिया का सामना करते है। घर में सब्जी किराना सब ख़त्म हो चूका है। क्यों न हम पटेल स्टोर जाकर किराना खरीद लाये?”, परिणीता ने कहा। उसकी आँखों में एक चमक थी जिसे मैं पहचानती थी। परिणीता कभी भी हाथ पे हाथ धरे बैठने वालो में से न थी।
“ठीक है, चलते है। पर मैं यह घुटनो तक लंबी ड्रेस पहन कर ठण्ड में बाहर नहीं जाऊँगा। मेरे पैरो में ठण्ड लगेगी।”, मैंने शिकायत भरे लहज़े में कहा।
“मेरे प्यारे पतिदेव, हम अमेरिका में रहते है! तुम यहाँ सलवार सूट या साड़ी पहन कर बाहर नहीं निकल सकते। सब तुम्हे ही घूर घूर कर देखने लगेंगे और विदेशी औरतें तुमसे तुम्हारे कपड़ो के बारे में पूछने लग जाएगी।”, परिणिता ने कहा।
“पर कम से कम थोड़ी लंबी ड्रेस तो पहन ही सकता हूँ न। ठण्ड का मौसम है परी!”
“ओह कम ऑन प्रतीक! पेंटीहोज पहने हो न! सब ठीक होगा। मैं और लाखों औरतें रोज़ ऐसी ड्रेस पहन कर बाहर जाती है। चलो अब झट से निकलते है। मैं अपना बड़ा पर्स लेकर आती हूँ| ” परिणिता से बहस करने का फायदा न था। सच ही बोल रही थी। पता नहीं औरतें कैसे यह सब करती है।
परिणीता एक कंधे पर बड़ा सा लेडिज़ पर्स टांगकर आयी। एक लड़का जब बड़ा सा लेडीज़ पर्स टांग कर आये तो अटपटा सा तो लगेगा ही। ऐसा ही कुछ परिणीता को देख कर मुझे लगा। “एक मिनट, मैं लड़के की बॉडी में पर्स टांग कर चलूंगी तो ठीक नहीं लगेगा। ये लो तुम पकड़ो इसे। मुझे तुम्हारा वॉलेट दो।” परिणीता ने कहा और मेरे कंधे पर पर्स टांग दिया जिसमे लिपस्टिक और न जाने क्या हज़ारो चीज़े रखी हुई थी।
“अच्छा ये तो ठीक है, पर अब तुम्हारे हज़ारो शूज़ में से कौनसा शूज पहनूँ इस ड्रेस के साथ? तुम्हारे कलेक्शन में सेलेक्ट करना मेरे बस की बात नहीं है!”, मैंने एक सही बात बोली। लड़के के रूप में मेरे पास सिर्फ ४ जोड़ी जूते थे और परिणीता के पास कम से कम १००। हर ड्रेस और मौके के हिसाब से कुछ अलग पहनना होता था उसे।
“हाँ। यह ड्रेस के साथ तो मैं ब्लैक हील्स पहनती हूँ। पर तुम हील्स पहन कर चल नहीं पाओगे। तुम्हारे बस की बात नहीं है। कुछ और सोचती हूँ।”
“अब जब ऐसी ड्रेस पहन कर मुझे बाहर जाना ही है तो तुम्हारी ऊँची हील वाली सैंडल भी पहन ही लेता हूँ।”, मैंने कहा। “प्रतीक! हील्स पहन कर चलना मज़ाक नहीं है।”, परिणीता बोली।
मैं न माना और उठ कर उसकी सैंडल पहन लिया। “देखा तुमने? कोई प्रॉब्लम नहीं हुई!”, मैंने ख़ुशी से कहा। इसके पहले मैं १-इंच हील वाली सैंडल अपने क्रोसड्रेसिंग के समय पहनी तो थी पर ये हील कुछ ज्यादा ही थी।
परिणीता मुझे देख कर हंसने लगी और बोली, “बस पहन लेना काफी नहीं है, पतिदेव। उसको पहन कर चलना भी पड़ता है!” मैंने भी जोश में कहा, “हाँ हाँ! अब देखो तुम्हारे पति का कमाल!” मैंने दो कदम चले हो होंगे कि मैं बुरी तरह लड़खड़ा गयी और बस गिरने ही वाली थी। तभी परिणीता ने मुझे पकड़ कर बचा लिया। मैं उसकी नयी मजबूत बांहों में थी। परिणीता को अपने इतने पास महसूस करके न जाने क्यों मेरी साँसे गहरी और दिल की धड़कने तेज़ हो गयी। हाय! यह फिर से मुझे क्या हो रहा था।
“मैंने तुमसे पहले ही कहा था हील्स पहन कर चलना आसान नहीं है!”, वो बोली। मैं फिर सीधे खड़ी होकर होश संभालकर अपनी भावनाओं को काबू में ला रही थी। “पर चिंता की कोई बात नहीं है। हम ५ मिनट घर में प्रैक्टिस करते है। मुझे यकीन है तुम चल सकोगे।”, वह बोली।
मैं निशब्द उसकी ओर कुछ देर देखती रह गयी। इस वक़्त मेरे दिमाग में यही चल रहा था कि काश! मुझे अपना पुरुष रूप वापस मिल जाए। यह जो नई नई स्त्री वाली भावनाएँ मेरे दिल में आकर मुझे बेकाबू कर रही थी, मैं उससे विचलित हो गयी थी। डर लग रहा था कि मैं कुछ उल्टा सीधा न कर दू। मेरे उलट, परिणीता स्थिति को बेहतर तरह से संभाल रही थी। वह हमेशा से ही ऐसी थी। ज़िन्दगी में कोई भी सरप्राइज आये, वो ज्यादा देर परेशान नहीं रहती थी। वो मौके के अनुसार ढल जाती थी और साथ ही साथ धीरे धीरे समाधान भी सोचती रहती थी। मैं मन ही मन खुश थी कि परी मेरे साथ थी। हम दोनों कुछ न कुछ हल निकाल ही लेंगे हमारी बॉडी एक्सचेंज प्रोबलम का।
परिणीता ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे सिखाने लगी, हील्स पहन कर कैसे चलना है। और मैं ५ ही मिनट में यूँ चलने लगी जैसे सालों से ऊँची हील पहनने का अनुभव हो। आईने में अपनी चाल देख कर तो मैं दंग रह गयी। नज़ाकत भरी हिरनी वाली चाल थी मेरी। मेरी घुटनो तक की ड्रेस में ४ इंच की हील के साथ मटकती हुई कमर, कोई देख ले तो बस दीवाना हो जाए। इतने जल्दी यह सीख लेना मेरे लिए थोड़ा आश्चर्यजनक था क्योंकि जब मैं पुरुष के शरीर में क्रोसड्रेस करती थी, तब मैंने कई बार प्रैक्टिस की थी सैंडल के साथ। पर मेरी चाल हमेशा मर्दानी ही दिखती थी। मैंने ख़ुशी से पलटकर परिणीता की ओर देखा। मेरे इतनी ऊँची हील पहनने के बाद भी वो मुझसे अब भी ऊँची लग रही थी। मैंने अपनी आँखों से उसे धन्यवाद दिया और उसने प्यार से अपनी आँखों से स्वीकार भी कर लिया।
“तुम तो इतने जल्दी परफेक्ट हो गए प्रतीक! unbelievable! चलो, अब जल्द से जल्द किराना खरीद कर आते है।”, परिणीता ने कहा। “हाँ डार्लिंग!”, मैंने जवाब दिया।
हम दोनों अब घर से बाहर निकले। मैंने दरवाज़े पर ताला लगाया और चाबी अपने बड़े पर्स में रख दी। परिणीता ने मेरी तरफ देखा और बोली, “एक मिनट! कुछ कमी लग रही है।” उसने मेरे कंधे पर टंगे लेडीज़ पर्स को खोल कुछ ढूंढने लगी। उसने पर्स से एक prada का सनग्लास निकाल कर मेरी आँखों पे लगाया। “हाँ। अब लग रहे हो परिणीता की तरह हॉट एंड सेक्सी!”, ऐसा बोल कर वो हंसने लगी।
“परी! ज्यादा हॉट न बनाओ मुझे। तुम्हारे पति को जब दुसरे आदमी घूर घूर कर देखने लगेंगे तो तुम्हे और मुझे दोनों को ही अच्छा नहीं लगेगा।”, मैंने कहा, और घर से बाहर हमारी कार की ओर मैं बढ़ चली।
“प्रतीक, तुम मेरा हाथ न पकड़ोगे?”, परिणीता ने रूककर मुझसे कहा। शायद उसे अहसास हो रहा था कि अब हमें नए रूप में दुनिया से रूबरू होना है। शायद कुछ पल के लिए नयी परिस्थिति से घबरा गयी थी वो।
“हाँ! ऑफ़ कोर्स , परी!” सचमुच मैं अपनी पत्नी परिणीता का हाथ पकड़ कर चलना चाहती थी।
हम दोनों ने एक दुसरे का हाथ थाम लिया और साथ में चल पड़े। बाहर की दुनिया और हमारे नए रूप के नए challenges से अनजान, बस एक दुसरे के साथ के भरोसे और इस विश्वास के साथ कि अंत में सब ठीक ही होगा। अब हम बाहर आ चुके थे और इस दुनिया के लिए अब मैं प्रतीक नहीं थी। मैं थी नई परिणिता!