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Adultery मै परिणीता (पति - पत्नी अंतर्दवंद)

Bittoo

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परिणीता और मुझे सुबह से जागे हुए ३ घंटे हो चुके थे। इन ३ घंटो में अब तक हमें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि हमारी बॉडी एक्सचेंज कैसे हो गयी। यदि जीवन एक सपने की तरह जीया जा सकता तो कोई परेशानी न होती। पर यह हकीकत थी। और हकीकत में हमें दुनिया के और भी लोगो से मिलना होता है, नौकरी करनी होती है, कई तरह के काम करने होते है। और हमारी घर की चारदीवारियों के बाहर हमारे लिए क्या नए सरप्राइज है, इस बात का हमें अंदाज़ा नहीं था। अब शायद समय आ गया था कि हम इस नयी वास्तविकता का सामना करे।

“परिणिता, देखो अब हमें कभी न कभी न तो इस नए शरीर की वास्तविकता और बाहर की दुनिया का सामना तो करना पड़ेगा। हम पूरे दिन घर में छुप कर नहीं बैठे रह सकते।”, मैंने परिणिता का हाथ अपने हाथो में लेकर कहा। एक अच्छे पति की तरह मैं अपनी पत्नी का ख्याल रखना चाहती थी। पर सच कहूँ तो अपनी पत्नी को पुरुष रूप में देखना, वो भी उस रूप में जो कल तक मेरा था, बड़ा कंफ्यूज कर रहा था। मुझे अपनी पत्नी दिखाई न देती थी। जीवन में हर सुख दुःख में साथ देने का वादा किया था हमने, तो मैं वही कोशिश कर रही थी। और यही चीज़ तो उसके साथ भी हो रही थी, उसका पति एक नाज़ुक स्त्री रूप में उसके सामने था।


“हाँ, प्रतीक। वही सोच रही हूँ। चलो हम दोनों मिलकर हँसते हुए दुनिया का सामना करते है। घर में सब्जी किराना सब ख़त्म हो चूका है। क्यों न हम पटेल स्टोर जाकर किराना खरीद लाये?”, परिणीता ने कहा। उसकी आँखों में एक चमक थी जिसे मैं पहचानती थी। परिणीता कभी भी हाथ पे हाथ धरे बैठने वालो में से न थी।

“ठीक है, चलते है। पर मैं यह घुटनो तक लंबी ड्रेस पहन कर ठण्ड में बाहर नहीं जाऊँगा। मेरे पैरो में ठण्ड लगेगी।”, मैंने शिकायत भरे लहज़े में कहा।

“मेरे प्यारे पतिदेव, हम अमेरिका में रहते है! तुम यहाँ सलवार सूट या साड़ी पहन कर बाहर नहीं निकल सकते। सब तुम्हे ही घूर घूर कर देखने लगेंगे और विदेशी औरतें तुमसे तुम्हारे कपड़ो के बारे में पूछने लग जाएगी।”, परिणिता ने कहा।

“पर कम से कम थोड़ी लंबी ड्रेस तो पहन ही सकता हूँ न। ठण्ड का मौसम है परी!”

“ओह कम ऑन प्रतीक! पेंटीहोज पहने हो न! सब ठीक होगा। मैं और लाखों औरतें रोज़ ऐसी ड्रेस पहन कर बाहर जाती है। चलो अब झट से निकलते है। मैं अपना बड़ा पर्स लेकर आती हूँ| ” परिणिता से बहस करने का फायदा न था। सच ही बोल रही थी। पता नहीं औरतें कैसे यह सब करती है।

परिणीता एक कंधे पर बड़ा सा लेडिज़ पर्स टांगकर आयी। एक लड़का जब बड़ा सा लेडीज़ पर्स टांग कर आये तो अटपटा सा तो लगेगा ही। ऐसा ही कुछ परिणीता को देख कर मुझे लगा। “एक मिनट, मैं लड़के की बॉडी में पर्स टांग कर चलूंगी तो ठीक नहीं लगेगा। ये लो तुम पकड़ो इसे। मुझे तुम्हारा वॉलेट दो।” परिणीता ने कहा और मेरे कंधे पर पर्स टांग दिया जिसमे लिपस्टिक और न जाने क्या हज़ारो चीज़े रखी हुई थी।



“अच्छा ये तो ठीक है, पर अब तुम्हारे हज़ारो शूज़ में से कौनसा शूज पहनूँ इस ड्रेस के साथ? तुम्हारे कलेक्शन में सेलेक्ट करना मेरे बस की बात नहीं है!”, मैंने एक सही बात बोली। लड़के के रूप में मेरे पास सिर्फ ४ जोड़ी जूते थे और परिणीता के पास कम से कम १००। हर ड्रेस और मौके के हिसाब से कुछ अलग पहनना होता था उसे।

“हाँ। यह ड्रेस के साथ तो मैं ब्लैक हील्स पहनती हूँ। पर तुम हील्स पहन कर चल नहीं पाओगे। तुम्हारे बस की बात नहीं है। कुछ और सोचती हूँ।”

“अब जब ऐसी ड्रेस पहन कर मुझे बाहर जाना ही है तो तुम्हारी ऊँची हील वाली सैंडल भी पहन ही लेता हूँ।”, मैंने कहा। “प्रतीक! हील्स पहन कर चलना मज़ाक नहीं है।”, परिणीता बोली।

मैं न माना और उठ कर उसकी सैंडल पहन लिया। “देखा तुमने? कोई प्रॉब्लम नहीं हुई!”, मैंने ख़ुशी से कहा। इसके पहले मैं १-इंच हील वाली सैंडल अपने क्रोसड्रेसिंग के समय पहनी तो थी पर ये हील कुछ ज्यादा ही थी।

परिणीता मुझे देख कर हंसने लगी और बोली, “बस पहन लेना काफी नहीं है, पतिदेव। उसको पहन कर चलना भी पड़ता है!” मैंने भी जोश में कहा, “हाँ हाँ! अब देखो तुम्हारे पति का कमाल!” मैंने दो कदम चले हो होंगे कि मैं बुरी तरह लड़खड़ा गयी और बस गिरने ही वाली थी। तभी परिणीता ने मुझे पकड़ कर बचा लिया। मैं उसकी नयी मजबूत बांहों में थी। परिणीता को अपने इतने पास महसूस करके न जाने क्यों मेरी साँसे गहरी और दिल की धड़कने तेज़ हो गयी। हाय! यह फिर से मुझे क्या हो रहा था।

“मैंने तुमसे पहले ही कहा था हील्स पहन कर चलना आसान नहीं है!”, वो बोली। मैं फिर सीधे खड़ी होकर होश संभालकर अपनी भावनाओं को काबू में ला रही थी। “पर चिंता की कोई बात नहीं है। हम ५ मिनट घर में प्रैक्टिस करते है। मुझे यकीन है तुम चल सकोगे।”, वह बोली।

मैं निशब्द उसकी ओर कुछ देर देखती रह गयी। इस वक़्त मेरे दिमाग में यही चल रहा था कि काश! मुझे अपना पुरुष रूप वापस मिल जाए। यह जो नई नई स्त्री वाली भावनाएँ मेरे दिल में आकर मुझे बेकाबू कर रही थी, मैं उससे विचलित हो गयी थी। डर लग रहा था कि मैं कुछ उल्टा सीधा न कर दू। मेरे उलट, परिणीता स्थिति को बेहतर तरह से संभाल रही थी। वह हमेशा से ही ऐसी थी। ज़िन्दगी में कोई भी सरप्राइज आये, वो ज्यादा देर परेशान नहीं रहती थी। वो मौके के अनुसार ढल जाती थी और साथ ही साथ धीरे धीरे समाधान भी सोचती रहती थी। मैं मन ही मन खुश थी कि परी मेरे साथ थी। हम दोनों कुछ न कुछ हल निकाल ही लेंगे हमारी बॉडी एक्सचेंज प्रोबलम का।


परिणीता ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे सिखाने लगी, हील्स पहन कर कैसे चलना है। और मैं ५ ही मिनट में यूँ चलने लगी जैसे सालों से ऊँची हील पहनने का अनुभव हो। आईने में अपनी चाल देख कर तो मैं दंग रह गयी। नज़ाकत भरी हिरनी वाली चाल थी मेरी। मेरी घुटनो तक की ड्रेस में ४ इंच की हील के साथ मटकती हुई कमर, कोई देख ले तो बस दीवाना हो जाए। इतने जल्दी यह सीख लेना मेरे लिए थोड़ा आश्चर्यजनक था क्योंकि जब मैं पुरुष के शरीर में क्रोसड्रेस करती थी, तब मैंने कई बार प्रैक्टिस की थी सैंडल के साथ। पर मेरी चाल हमेशा मर्दानी ही दिखती थी। मैंने ख़ुशी से पलटकर परिणीता की ओर देखा। मेरे इतनी ऊँची हील पहनने के बाद भी वो मुझसे अब भी ऊँची लग रही थी। मैंने अपनी आँखों से उसे धन्यवाद दिया और उसने प्यार से अपनी आँखों से स्वीकार भी कर लिया।

“तुम तो इतने जल्दी परफेक्ट हो गए प्रतीक! unbelievable! चलो, अब जल्द से जल्द किराना खरीद कर आते है।”, परिणीता ने कहा। “हाँ डार्लिंग!”, मैंने जवाब दिया।

हम दोनों अब घर से बाहर निकले। मैंने दरवाज़े पर ताला लगाया और चाबी अपने बड़े पर्स में रख दी। परिणीता ने मेरी तरफ देखा और बोली, “एक मिनट! कुछ कमी लग रही है।” उसने मेरे कंधे पर टंगे लेडीज़ पर्स को खोल कुछ ढूंढने लगी। उसने पर्स से एक prada का सनग्लास निकाल कर मेरी आँखों पे लगाया। “हाँ। अब लग रहे हो परिणीता की तरह हॉट एंड सेक्सी!”, ऐसा बोल कर वो हंसने लगी।

“परी! ज्यादा हॉट न बनाओ मुझे। तुम्हारे पति को जब दुसरे आदमी घूर घूर कर देखने लगेंगे तो तुम्हे और मुझे दोनों को ही अच्छा नहीं लगेगा।”, मैंने कहा, और घर से बाहर हमारी कार की ओर मैं बढ़ चली।


“प्रतीक, तुम मेरा हाथ न पकड़ोगे?”, परिणीता ने रूककर मुझसे कहा। शायद उसे अहसास हो रहा था कि अब हमें नए रूप में दुनिया से रूबरू होना है। शायद कुछ पल के लिए नयी परिस्थिति से घबरा गयी थी वो।

“हाँ! ऑफ़ कोर्स , परी!” सचमुच मैं अपनी पत्नी परिणीता का हाथ पकड़ कर चलना चाहती थी।

हम दोनों ने एक दुसरे का हाथ थाम लिया और साथ में चल पड़े। बाहर की दुनिया और हमारे नए रूप के नए challenges से अनजान, बस एक दुसरे के साथ के भरोसे और इस विश्वास के साथ कि अंत में सब ठीक ही होगा। अब हम बाहर आ चुके थे और इस दुनिया के लिए अब मैं प्रतीक नहीं थी। मैं थी नई परिणिता!
एक नयी तरह की कहानी। मानवीय भावनाओं का सुंदर वर्णन। 👌👌
 

Rahul_Singh1

आपकी भाभी (Crossdesar)
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अब तक आपने मेरी कहानी में पढ़ा: मैं एक क्रोसड्रेसर हूँ जिसे भारतीय औरतों की तरह सजना अच्छा लगता है। मेरी शादी हो चुकी है और मेरी पत्नी परिणीता है। हम दोनों अमेरिका में डॉक्टर है। परिणीता को मेरा साड़ी पहनना या सजना संवारना बिलकुल पसंद नहीं था । पर आज से ३ साल पहले एक रात हम दोनों का जीवन बदल गया। सुबह उठने पर हम दोनों का बॉडी स्वैप हो चूका था मैं परिणीता के शरीर में थी और वो मेरे शरीर में थी। मतलब मैं, प्रतीक, एक औरत बन चुकी थी और परिणीता एक पुरुष। उस सुबह इस हकीकत का सामना करते हुए हमने एक दुसरे का हाथ थाम कर घर से बाहर निकलने का निर्णय लिया। और हम अब हमारे घर के लिए किराना खरीदने जा रहे थे। अब आगे –


जब भी हम पति-पत्नी कहीं बाहर साथ में बाहर जाते है तो हमेशा मैं ही कार चलाया करती थी। क्योंकि तब मैं रिश्ते में पति थी। आज बात कुछ उलट थी। अब मैं एक औरत थी, और परिणिता एक आदमी जो मेरा पति है। फिर भी मेरी आदत के अनुसार मैं कार चलाने ड्राइवर सीट पर बैठने गयी, और परिणीता पैसेंजर सीट पर। सीट पर बैठते ही मैंने अपना लेडीज़ बैग कंधे से उतार कर परिणिता को थमा दिया।


परिणिता मुस्कुराई और मेरी जांघो की ओर इशारा करके बोली, “प्रतीक, तुम्हारी ड्रेस उठ गयी है। ठीक कर लो उसे।” मैंने अपनी ड्रेस की और देखा। सचमुच मेरी चिकनी मुलायम जाँघे साफ़ दिखाई दे रही थी। मैं मन ही मन शर्मा गयी और दोनों हाथों से ड्रेस को नीचे की और खींचने लगी। परिणिता ने फिर मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “सुनो पतिदेव। आज प्लीज ज़रा ड्रेस की ओर ध्यान रखना। कार के उतरने से पहले एक बार फिर चेक कर लेना की उठ न गयी हो। और बाहर अनजान लोगो के बीच उसे खींचने की कोशिश मत करना। वह काफी असभ्य लगता है।”

“हाँ, परी! मैं ध्यान रखूँगा। और वैसे भी तुम साथ हो तो मुझे किस बात की चिंता।”, मैंने कहा। पर चिंता तो थी। घर में बैठ कर सजना संवारना एक बात है और बाहर जाना एक बात। मैं कोई भी अपनी मर्दानी हरकत से किसी का ध्यान आकर्षण नहीं करना चाहती थी।

“मैं सिंसेरिली कह रही हूँ प्रतीक। तुम्हारी ही नहीं मेरी इज़्ज़त का भी सवाल है! जब हमारे शरीर वापस बदल जायेंगे तब मैं नहीं चाहती कि आज की किसी बात की वजह से मुझे शर्मिंदा होना पड़े।”

मेरा नया शरीर कद में पहले से काफी छोटा था। मुझे अपनी सीट एडजस्ट करनी पड़ी। फिर भी कार के शीशे के बाहर पहले मुझे जितना दीखता था, उससे कम ही दिख रहा था। भगवान का नाम लेकर मैं चल पड़ी। कुछ ही देर में हम पटेल स्टोर नाम की किराना दूकान के बाहर पार्किंग में थे।

कार से निकलने से पहले मैंने झट से अपनी ड्रेस को फिर से खिंच कर ठीक की। कार के शीशे को अपनी ओर पलट कर मैंने अपने बालों को देखा। अपनी उँगलियों से उन्हें सीधा किया और न जाने क्यों, अपने हाथों से बालो को पीछे कर उनका जुड़ा बना लिया। मैंने पलट कर परिणिता की ओर देख कर कहा, “अब सब ठीक है। चलो अब चलते है।” मैंने एक छोटी सी मुस्कराहट दी। परिणिता मेरी ओर हैरत से देखती रह गयी। वह कुछ कह पाती उसके पहले ही मैंने कहा, “क्या तुम्हे मेरे बाल ऐसे अच्छे नहीं लग रहे? ठीक है। मैं इन्हें खुले ही रखता हूँ।”

“प्रतीक, तुम्हे यह बालों को पीछे बाँधने का आइडिया कैसे आया? तुम बिलकुल किसी औरत की तरह ऐसे कैसे कर सकते हो? कहीं तुम पहले भी कहीं औरत बनकर घर से बाहर तो नहीं जाते थे?”, परिणिता ने मुझसे पूछा।


“नहीं, परी। ऐसा कुछ नहीं है। सच में! आज से पहले मैंने सिर्फ घर के एक कमरे में ही खुद को औरत के रूप में देखा था। मैं कभी औरत रूप में उस कमरे से बाहर नहीं निकल था। तुमने ही मुझसे थोड़ी देर पहले कहा था कि तुम्हारी इज़्ज़त का सवाल है। इसलिए मैंने खुद को शीशे में चेक किया कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं। और ऐसा करते तो मैंने तुम्हे कई बार देखा है।”, मैंने परिणीता का हाथ पकड़ कर कहा। मेरी बात में सच भी था और झूठ भी। हाँ, आज के पहले मैं कभी घर से बाहर औरत के रूप में नहीं निकली थी। पर यह दर्पण में खुद को देख कर बालों को सुधारना, इस बारे में तो मैंने कुछ सोचा भी न था। न जाने कैसे बिना सोचे समझे बस यह हो गया। बालों का जूड़ा कैसे बनता है, मुझे तो यह पता भी नहीं था फिर भी मैंने क्यों और कैसे यह किया मुझे भी समझ नहीं आ रहा था।


मैं भी सोच में पड़ गयी क्योंकि मेरा लड़कियों वाला व्यव्हार परिणीता को कभी पसंद नहीं था। पर शायद आज वो कुछ और नहीं कर सकती थी। मैंने चुप चाप लिपस्टिक लगा ली। माहौल में थोड़ा तनाव हो रहा था। तो उसे दूर करने को मैंने उसे गालों पर किस किया और कहा, “मैडम, मुझे यकीन है कि ये सिर्फ आज की बात है। कल तक फिर हम अपने अपने शरीर में होंगे। और सच कहूँ तो यह ड्रेस, लिपस्टिक, ब्रा वगेरह मुझसे और ज्यादा समय नहीं हो पायेगा। मुझे ब्रा पहनने से ज्यादा, अपनी पत्नी की ब्रा उतारना पसंद है।” मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा दी।

 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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अब तक आपने मेरी कहानी में पढ़ा: मैं एक क्रोसड्रेसर हूँ जिसे भारतीय औरतों की तरह सजना अच्छा लगता है। मेरी शादी हो चुकी है और मेरी पत्नी परिणीता है। हम दोनों अमेरिका में डॉक्टर है। परिणीता को मेरा साड़ी पहनना या सजना संवारना बिलकुल पसंद नहीं था । पर आज से ३ साल पहले एक रात हम दोनों का जीवन बदल गया। सुबह उठने पर हम दोनों का बॉडी स्वैप हो चूका था मैं परिणीता के शरीर में थी और वो मेरे शरीर में थी। मतलब मैं, प्रतीक, एक औरत बन चुकी थी और परिणीता एक पुरुष। उस सुबह इस हकीकत का सामना करते हुए हमने एक दुसरे का हाथ थाम कर घर से बाहर निकलने का निर्णय लिया। और हम अब हमारे घर के लिए किराना खरीदने जा रहे थे। अब आगे –


जब भी हम पति-पत्नी कहीं बाहर साथ में बाहर जाते है तो हमेशा मैं ही कार चलाया करती थी। क्योंकि तब मैं रिश्ते में पति थी। आज बात कुछ उलट थी। अब मैं एक औरत थी, और परिणिता एक आदमी जो मेरा पति है। फिर भी मेरी आदत के अनुसार मैं कार चलाने ड्राइवर सीट पर बैठने गयी, और परिणीता पैसेंजर सीट पर। सीट पर बैठते ही मैंने अपना लेडीज़ बैग कंधे से उतार कर परिणिता को थमा दिया।


परिणिता मुस्कुराई और मेरी जांघो की ओर इशारा करके बोली, “प्रतीक, तुम्हारी ड्रेस उठ गयी है। ठीक कर लो उसे।” मैंने अपनी ड्रेस की और देखा। सचमुच मेरी चिकनी मुलायम जाँघे साफ़ दिखाई दे रही थी। मैं मन ही मन शर्मा गयी और दोनों हाथों से ड्रेस को नीचे की और खींचने लगी। परिणिता ने फिर मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “सुनो पतिदेव। आज प्लीज ज़रा ड्रेस की ओर ध्यान रखना। कार के उतरने से पहले एक बार फिर चेक कर लेना की उठ न गयी हो। और बाहर अनजान लोगो के बीच उसे खींचने की कोशिश मत करना। वह काफी असभ्य लगता है।”

“हाँ, परी! मैं ध्यान रखूँगा। और वैसे भी तुम साथ हो तो मुझे किस बात की चिंता।”, मैंने कहा। पर चिंता तो थी। घर में बैठ कर सजना संवारना एक बात है और बाहर जाना एक बात। मैं कोई भी अपनी मर्दानी हरकत से किसी का ध्यान आकर्षण नहीं करना चाहती थी।

“मैं सिंसेरिली कह रही हूँ प्रतीक। तुम्हारी ही नहीं मेरी इज़्ज़त का भी सवाल है! जब हमारे शरीर वापस बदल जायेंगे तब मैं नहीं चाहती कि आज की किसी बात की वजह से मुझे शर्मिंदा होना पड़े।”

मेरा नया शरीर कद में पहले से काफी छोटा था। मुझे अपनी सीट एडजस्ट करनी पड़ी। फिर भी कार के शीशे के बाहर पहले मुझे जितना दीखता था, उससे कम ही दिख रहा था। भगवान का नाम लेकर मैं चल पड़ी। कुछ ही देर में हम पटेल स्टोर नाम की किराना दूकान के बाहर पार्किंग में थे।

कार से निकलने से पहले मैंने झट से अपनी ड्रेस को फिर से खिंच कर ठीक की। कार के शीशे को अपनी ओर पलट कर मैंने अपने बालों को देखा। अपनी उँगलियों से उन्हें सीधा किया और न जाने क्यों, अपने हाथों से बालो को पीछे कर उनका जुड़ा बना लिया। मैंने पलट कर परिणिता की ओर देख कर कहा, “अब सब ठीक है। चलो अब चलते है।” मैंने एक छोटी सी मुस्कराहट दी। परिणिता मेरी ओर हैरत से देखती रह गयी। वह कुछ कह पाती उसके पहले ही मैंने कहा, “क्या तुम्हे मेरे बाल ऐसे अच्छे नहीं लग रहे? ठीक है। मैं इन्हें खुले ही रखता हूँ।”

“प्रतीक, तुम्हे यह बालों को पीछे बाँधने का आइडिया कैसे आया? तुम बिलकुल किसी औरत की तरह ऐसे कैसे कर सकते हो? कहीं तुम पहले भी कहीं औरत बनकर घर से बाहर तो नहीं जाते थे?”, परिणिता ने मुझसे पूछा।


“नहीं, परी। ऐसा कुछ नहीं है। सच में! आज से पहले मैंने सिर्फ घर के एक कमरे में ही खुद को औरत के रूप में देखा था। मैं कभी औरत रूप में उस कमरे से बाहर नहीं निकल था। तुमने ही मुझसे थोड़ी देर पहले कहा था कि तुम्हारी इज़्ज़त का सवाल है। इसलिए मैंने खुद को शीशे में चेक किया कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं। और ऐसा करते तो मैंने तुम्हे कई बार देखा है।”, मैंने परिणीता का हाथ पकड़ कर कहा। मेरी बात में सच भी था और झूठ भी। हाँ, आज के पहले मैं कभी घर से बाहर औरत के रूप में नहीं निकली थी। पर यह दर्पण में खुद को देख कर बालों को सुधारना, इस बारे में तो मैंने कुछ सोचा भी न था। न जाने कैसे बिना सोचे समझे बस यह हो गया। बालों का जूड़ा कैसे बनता है, मुझे तो यह पता भी नहीं था फिर भी मैंने क्यों और कैसे यह किया मुझे भी समझ नहीं आ रहा था।


मैं भी सोच में पड़ गयी क्योंकि मेरा लड़कियों वाला व्यव्हार परिणीता को कभी पसंद नहीं था। पर शायद आज वो कुछ और नहीं कर सकती थी। मैंने चुप चाप लिपस्टिक लगा ली। माहौल में थोड़ा तनाव हो रहा था। तो उसे दूर करने को मैंने उसे गालों पर किस किया और कहा, “मैडम, मुझे यकीन है कि ये सिर्फ आज की बात है। कल तक फिर हम अपने अपने शरीर में होंगे। और सच कहूँ तो यह ड्रेस, लिपस्टिक, ब्रा वगेरह मुझसे और ज्यादा समय नहीं हो पायेगा। मुझे ब्रा पहनने से ज्यादा, अपनी पत्नी की ब्रा उतारना पसंद है।” मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा दी।

Shaandar Mast Lajwab Update 🔥 🔥
 

Rekha rani

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अब तक आपने मेरी कहानी में पढ़ा: मैं एक क्रोसड्रेसर हूँ जिसे भारतीय औरतों की तरह सजना अच्छा लगता है। मेरी शादी हो चुकी है और मेरी पत्नी परिणीता है। हम दोनों अमेरिका में डॉक्टर है। परिणीता को मेरा साड़ी पहनना या सजना संवारना बिलकुल पसंद नहीं था । पर आज से ३ साल पहले एक रात हम दोनों का जीवन बदल गया। सुबह उठने पर हम दोनों का बॉडी स्वैप हो चूका था मैं परिणीता के शरीर में थी और वो मेरे शरीर में थी। मतलब मैं, प्रतीक, एक औरत बन चुकी थी और परिणीता एक पुरुष। उस सुबह इस हकीकत का सामना करते हुए हमने एक दुसरे का हाथ थाम कर घर से बाहर निकलने का निर्णय लिया। और हम अब हमारे घर के लिए किराना खरीदने जा रहे थे। अब आगे –


जब भी हम पति-पत्नी कहीं बाहर साथ में बाहर जाते है तो हमेशा मैं ही कार चलाया करती थी। क्योंकि तब मैं रिश्ते में पति थी। आज बात कुछ उलट थी। अब मैं एक औरत थी, और परिणिता एक आदमी जो मेरा पति है। फिर भी मेरी आदत के अनुसार मैं कार चलाने ड्राइवर सीट पर बैठने गयी, और परिणीता पैसेंजर सीट पर। सीट पर बैठते ही मैंने अपना लेडीज़ बैग कंधे से उतार कर परिणिता को थमा दिया।


परिणिता मुस्कुराई और मेरी जांघो की ओर इशारा करके बोली, “प्रतीक, तुम्हारी ड्रेस उठ गयी है। ठीक कर लो उसे।” मैंने अपनी ड्रेस की और देखा। सचमुच मेरी चिकनी मुलायम जाँघे साफ़ दिखाई दे रही थी। मैं मन ही मन शर्मा गयी और दोनों हाथों से ड्रेस को नीचे की और खींचने लगी। परिणिता ने फिर मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “सुनो पतिदेव। आज प्लीज ज़रा ड्रेस की ओर ध्यान रखना। कार के उतरने से पहले एक बार फिर चेक कर लेना की उठ न गयी हो। और बाहर अनजान लोगो के बीच उसे खींचने की कोशिश मत करना। वह काफी असभ्य लगता है।”

“हाँ, परी! मैं ध्यान रखूँगा। और वैसे भी तुम साथ हो तो मुझे किस बात की चिंता।”, मैंने कहा। पर चिंता तो थी। घर में बैठ कर सजना संवारना एक बात है और बाहर जाना एक बात। मैं कोई भी अपनी मर्दानी हरकत से किसी का ध्यान आकर्षण नहीं करना चाहती थी।

“मैं सिंसेरिली कह रही हूँ प्रतीक। तुम्हारी ही नहीं मेरी इज़्ज़त का भी सवाल है! जब हमारे शरीर वापस बदल जायेंगे तब मैं नहीं चाहती कि आज की किसी बात की वजह से मुझे शर्मिंदा होना पड़े।”

मेरा नया शरीर कद में पहले से काफी छोटा था। मुझे अपनी सीट एडजस्ट करनी पड़ी। फिर भी कार के शीशे के बाहर पहले मुझे जितना दीखता था, उससे कम ही दिख रहा था। भगवान का नाम लेकर मैं चल पड़ी। कुछ ही देर में हम पटेल स्टोर नाम की किराना दूकान के बाहर पार्किंग में थे।

कार से निकलने से पहले मैंने झट से अपनी ड्रेस को फिर से खिंच कर ठीक की। कार के शीशे को अपनी ओर पलट कर मैंने अपने बालों को देखा। अपनी उँगलियों से उन्हें सीधा किया और न जाने क्यों, अपने हाथों से बालो को पीछे कर उनका जुड़ा बना लिया। मैंने पलट कर परिणिता की ओर देख कर कहा, “अब सब ठीक है। चलो अब चलते है।” मैंने एक छोटी सी मुस्कराहट दी। परिणिता मेरी ओर हैरत से देखती रह गयी। वह कुछ कह पाती उसके पहले ही मैंने कहा, “क्या तुम्हे मेरे बाल ऐसे अच्छे नहीं लग रहे? ठीक है। मैं इन्हें खुले ही रखता हूँ।”

“प्रतीक, तुम्हे यह बालों को पीछे बाँधने का आइडिया कैसे आया? तुम बिलकुल किसी औरत की तरह ऐसे कैसे कर सकते हो? कहीं तुम पहले भी कहीं औरत बनकर घर से बाहर तो नहीं जाते थे?”, परिणिता ने मुझसे पूछा।


“नहीं, परी। ऐसा कुछ नहीं है। सच में! आज से पहले मैंने सिर्फ घर के एक कमरे में ही खुद को औरत के रूप में देखा था। मैं कभी औरत रूप में उस कमरे से बाहर नहीं निकल था। तुमने ही मुझसे थोड़ी देर पहले कहा था कि तुम्हारी इज़्ज़त का सवाल है। इसलिए मैंने खुद को शीशे में चेक किया कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं। और ऐसा करते तो मैंने तुम्हे कई बार देखा है।”, मैंने परिणीता का हाथ पकड़ कर कहा। मेरी बात में सच भी था और झूठ भी। हाँ, आज के पहले मैं कभी घर से बाहर औरत के रूप में नहीं निकली थी। पर यह दर्पण में खुद को देख कर बालों को सुधारना, इस बारे में तो मैंने कुछ सोचा भी न था। न जाने कैसे बिना सोचे समझे बस यह हो गया। बालों का जूड़ा कैसे बनता है, मुझे तो यह पता भी नहीं था फिर भी मैंने क्यों और कैसे यह किया मुझे भी समझ नहीं आ रहा था।


मैं भी सोच में पड़ गयी क्योंकि मेरा लड़कियों वाला व्यव्हार परिणीता को कभी पसंद नहीं था। पर शायद आज वो कुछ और नहीं कर सकती थी। मैंने चुप चाप लिपस्टिक लगा ली। माहौल में थोड़ा तनाव हो रहा था। तो उसे दूर करने को मैंने उसे गालों पर किस किया और कहा, “मैडम, मुझे यकीन है कि ये सिर्फ आज की बात है। कल तक फिर हम अपने अपने शरीर में होंगे। और सच कहूँ तो यह ड्रेस, लिपस्टिक, ब्रा वगेरह मुझसे और ज्यादा समय नहीं हो पायेगा। मुझे ब्रा पहनने से ज्यादा, अपनी पत्नी की ब्रा उतारना पसंद है।” मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा दी।

Awesome update
 

Tiger 786

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अब तक आपने मेरी कहानी में पढ़ा: मैं एक क्रोसड्रेसर हूँ जिसे भारतीय औरतों की तरह सजना अच्छा लगता है। मेरी शादी हो चुकी है और मेरी पत्नी परिणीता है। हम दोनों अमेरिका में डॉक्टर है। परिणीता को मेरा साड़ी पहनना या सजना संवारना बिलकुल पसंद नहीं था । पर आज से ३ साल पहले एक रात हम दोनों का जीवन बदल गया। सुबह उठने पर हम दोनों का बॉडी स्वैप हो चूका था मैं परिणीता के शरीर में थी और वो मेरे शरीर में थी। मतलब मैं, प्रतीक, एक औरत बन चुकी थी और परिणीता एक पुरुष। उस सुबह इस हकीकत का सामना करते हुए हमने एक दुसरे का हाथ थाम कर घर से बाहर निकलने का निर्णय लिया। और हम अब हमारे घर के लिए किराना खरीदने जा रहे थे। अब आगे –


जब भी हम पति-पत्नी कहीं बाहर साथ में बाहर जाते है तो हमेशा मैं ही कार चलाया करती थी। क्योंकि तब मैं रिश्ते में पति थी। आज बात कुछ उलट थी। अब मैं एक औरत थी, और परिणिता एक आदमी जो मेरा पति है। फिर भी मेरी आदत के अनुसार मैं कार चलाने ड्राइवर सीट पर बैठने गयी, और परिणीता पैसेंजर सीट पर। सीट पर बैठते ही मैंने अपना लेडीज़ बैग कंधे से उतार कर परिणिता को थमा दिया।


परिणिता मुस्कुराई और मेरी जांघो की ओर इशारा करके बोली, “प्रतीक, तुम्हारी ड्रेस उठ गयी है। ठीक कर लो उसे।” मैंने अपनी ड्रेस की और देखा। सचमुच मेरी चिकनी मुलायम जाँघे साफ़ दिखाई दे रही थी। मैं मन ही मन शर्मा गयी और दोनों हाथों से ड्रेस को नीचे की और खींचने लगी। परिणिता ने फिर मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “सुनो पतिदेव। आज प्लीज ज़रा ड्रेस की ओर ध्यान रखना। कार के उतरने से पहले एक बार फिर चेक कर लेना की उठ न गयी हो। और बाहर अनजान लोगो के बीच उसे खींचने की कोशिश मत करना। वह काफी असभ्य लगता है।”

“हाँ, परी! मैं ध्यान रखूँगा। और वैसे भी तुम साथ हो तो मुझे किस बात की चिंता।”, मैंने कहा। पर चिंता तो थी। घर में बैठ कर सजना संवारना एक बात है और बाहर जाना एक बात। मैं कोई भी अपनी मर्दानी हरकत से किसी का ध्यान आकर्षण नहीं करना चाहती थी।

“मैं सिंसेरिली कह रही हूँ प्रतीक। तुम्हारी ही नहीं मेरी इज़्ज़त का भी सवाल है! जब हमारे शरीर वापस बदल जायेंगे तब मैं नहीं चाहती कि आज की किसी बात की वजह से मुझे शर्मिंदा होना पड़े।”

मेरा नया शरीर कद में पहले से काफी छोटा था। मुझे अपनी सीट एडजस्ट करनी पड़ी। फिर भी कार के शीशे के बाहर पहले मुझे जितना दीखता था, उससे कम ही दिख रहा था। भगवान का नाम लेकर मैं चल पड़ी। कुछ ही देर में हम पटेल स्टोर नाम की किराना दूकान के बाहर पार्किंग में थे।

कार से निकलने से पहले मैंने झट से अपनी ड्रेस को फिर से खिंच कर ठीक की। कार के शीशे को अपनी ओर पलट कर मैंने अपने बालों को देखा। अपनी उँगलियों से उन्हें सीधा किया और न जाने क्यों, अपने हाथों से बालो को पीछे कर उनका जुड़ा बना लिया। मैंने पलट कर परिणिता की ओर देख कर कहा, “अब सब ठीक है। चलो अब चलते है।” मैंने एक छोटी सी मुस्कराहट दी। परिणिता मेरी ओर हैरत से देखती रह गयी। वह कुछ कह पाती उसके पहले ही मैंने कहा, “क्या तुम्हे मेरे बाल ऐसे अच्छे नहीं लग रहे? ठीक है। मैं इन्हें खुले ही रखता हूँ।”

“प्रतीक, तुम्हे यह बालों को पीछे बाँधने का आइडिया कैसे आया? तुम बिलकुल किसी औरत की तरह ऐसे कैसे कर सकते हो? कहीं तुम पहले भी कहीं औरत बनकर घर से बाहर तो नहीं जाते थे?”, परिणिता ने मुझसे पूछा।


“नहीं, परी। ऐसा कुछ नहीं है। सच में! आज से पहले मैंने सिर्फ घर के एक कमरे में ही खुद को औरत के रूप में देखा था। मैं कभी औरत रूप में उस कमरे से बाहर नहीं निकल था। तुमने ही मुझसे थोड़ी देर पहले कहा था कि तुम्हारी इज़्ज़त का सवाल है। इसलिए मैंने खुद को शीशे में चेक किया कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं। और ऐसा करते तो मैंने तुम्हे कई बार देखा है।”, मैंने परिणीता का हाथ पकड़ कर कहा। मेरी बात में सच भी था और झूठ भी। हाँ, आज के पहले मैं कभी घर से बाहर औरत के रूप में नहीं निकली थी। पर यह दर्पण में खुद को देख कर बालों को सुधारना, इस बारे में तो मैंने कुछ सोचा भी न था। न जाने कैसे बिना सोचे समझे बस यह हो गया। बालों का जूड़ा कैसे बनता है, मुझे तो यह पता भी नहीं था फिर भी मैंने क्यों और कैसे यह किया मुझे भी समझ नहीं आ रहा था।


मैं भी सोच में पड़ गयी क्योंकि मेरा लड़कियों वाला व्यव्हार परिणीता को कभी पसंद नहीं था। पर शायद आज वो कुछ और नहीं कर सकती थी। मैंने चुप चाप लिपस्टिक लगा ली। माहौल में थोड़ा तनाव हो रहा था। तो उसे दूर करने को मैंने उसे गालों पर किस किया और कहा, “मैडम, मुझे यकीन है कि ये सिर्फ आज की बात है। कल तक फिर हम अपने अपने शरीर में होंगे। और सच कहूँ तो यह ड्रेस, लिपस्टिक, ब्रा वगेरह मुझसे और ज्यादा समय नहीं हो पायेगा। मुझे ब्रा पहनने से ज्यादा, अपनी पत्नी की ब्रा उतारना पसंद है।” मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा दी।

Parnita kuch asahaj lag rahi hai naye sharer mai par prtek injoy kar raha hai naye sharer ko.dekhte hai aage kya Naya karte hai dono
Mind-blowing update
 

kingkhankar

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अब तक आपने मेरी कहानी में पढ़ा: मैं एक क्रोसड्रेसर हूँ जिसे भारतीय औरतों की तरह सजना अच्छा लगता है। मेरी शादी हो चुकी है और मेरी पत्नी परिणीता है। हम दोनों अमेरिका में डॉक्टर है। परिणीता को मेरा साड़ी पहनना या सजना संवारना बिलकुल पसंद नहीं है। अब तक मैं छुप छुप कर अपने अरमानो को पूरा करती रही थी। पर आज से ३ साल पहले एक रात हम दोनों का जीवन बदल गया। सुबह उठने पर हम दोनों का बॉडी स्वैप हो चूका था मतलब मैं परिणीता के शरीर में और वो मेरे शरीर में थी। दोनों आश्चर्यचकित थे। जहाँ एक ओर परिणीता बड़ी परेशान थी और इस अजीबोगरीब स्थिति को ठीक करना चाहती थी, वहीँ मैं इस बदलाव का जादुई असर महसूस कर रही थी। पहली बार अपने नए शरीर को नहाते वक़्त छूकर मैं उत्तेजित हो रही थी। शॉवर में बहते हुए गर्म पानी के नीचे मेरी उँगलियाँ मेरे शरीर में आग लगा रही थी और मैं बस अपनी नयी योनि में बेकाबू होकर ऊँगली डालने ही वाली थी। अब आगे।

तभी अचानक मेरे अंदर का पति जाग गया और बिना कुछ किये मैं झट से शावर से बाहर आ गयी। अपने लंबे काले गीले बालो को आदतन रगड़ रगड़ कर टॉवल से पोंछने लगी। पर जैसे मेरे हाथों का अपना खुद का दिमाग चल पड़ा और वो फिर धीमे धीमे टॉवल से दबा कर बालों को सुखाने लगे। और फिर सामने झुक कर झट से सर उठा कर मैंने बालों को झटक कर बाल सीधे किये। इस दौरान मेरे स्तन ज़ोर से हिल पड़े। एक औरत बनने की मादकता मुझ पर भारी पड़ रही थी। रह रह कर अपने नए शरीर से खेलने का मन कर रहा था। किसी तरह कुछ करके मैं बाहर निकली।

बाहर परिणीता अपने घुटनो को पकड़ कर उसमे सिर छुपाये उदास बैठी थी। मेरे लिए अजीब सी स्थिति थी। सामने परिणीता मेरे पुराने पुरुष शरीर में थी। मेरे बाहर आने की आवाज़ सुनकर उसने सिर उठाया और मेरी ओर देखा। उसकी वो आँखें तो मेरी थी पर उसमे गुस्सा परिणीता का साफ़ झलक रहा था जिसे देख कर मैं समझ गयी कि मैंने कुछ गलती कर दी है।


“प्रतीक!!!”, वो मुझ पर चीख पड़ी। “यह क्या तरीका है? तुम पागल हो गए हो! टॉवल कोई ऐसे ब्रेस्ट्स के निचे लपेटता है?जल्दी से ब्रेस्ट्स पर से लपेटो!”

मैंने अपने लड़के वाली आदत अनुसार कमर के निचे टॉवल लपेटा था। जल्द से मैंने अपने स्तनों को ढका। चूँकि मैंने अपना टॉवल उपयोग किया था, उसकी लंबाई थोड़ी छोटी थी और मेरी कमर के नीचे का हिस्सा अब दिख रहा था।

मैं आगे कुछ कह पाती उसके पहले ही परी मुझ पर भड़क पड़ी, ” यह क्या है? तुमने अपना लड़को वाला अंडरवियर पहन लिया है!”

“पर परी! मैं तुम्हारी पेंटी कैसे पहन सकता हूँ? तुम्हे पसंद नहीं कि मैं कोई भी लड़कियों वाले कपडे तुम्हारे सामने पहनू। “, मैंने ईमानदारी से जवाब दिया क्योंकि सचमुच परी को यह पसंद नहीं था।

“तुम भूल रहे हो कि तुम मेरे शरीर में हो! मेरे शरीर को मेरे कपडे पहनाओ!”

“तो क्या तुम भी अब मेरे लड़को वाले कपडे पहनोगी?”, मैंने पूछा।

“हाँ! मैं अपनी ड्रेसेस तुम्हारे शरीर पर चढ़ा कर निकलूंगी तो दुनिया तो हम पर हँसेगी ही और मेरी ड्रेसेस भी ख़राब हो जाएगी! क्या तुम्हारे पास ज़रा भी अक्ल नहीं है? और किसने तुम्हे मेरे बालों को धोने कहा था। मैंने कल ही तो धोये थे। और देखो कैसे तुमने उन्हें गूँथ दिया है। मैंने इतने प्यार से संभाल कर इन्हें लंबा किया और तुम इन्हें एक दिन में ख़राब कर दोगे।” परिणीता की बात तो सच थी। मुझे भी लग रहा था कि मुझे बालों को इस तरह रगड़ रगड़ कर नहीं पोंछना चाहिए था। पर मेरे पास औरत होने का अनुभव न था।

“चलो, अब जल्दी से सही कपडे पहनो।”, गुस्से में परिणीता बोली।


मैंने उसके ड्रावर से एक सुन्दर सी गुलाबी रंग की पेंटी और मैचिंग ब्रा निकाली। मुझे एक बात की ख़ुशी तो थी की मुझे झट से ब्रा पहनना आता था। छुप छुप कर ही सही पर आसानी से ब्रा पहनना सिख चुकी थी मैं। परिणिता ने मुझे ब्रा पेंटी पहनते देखा पर कुछ बोली नहीं। ब्रा और पेंटी मेरी स्मूथ त्वचा पर परफेक्ट फिट आ गयी। पहली बार मैं असली स्तनों पर ब्रा पहन रही थी। परफेक्ट फिट का कम्फर्ट मेरे स्तनों पर पहली बार महसूस की थी। अचानक ही मेरे दिमाग में कहीं से एक तस्वीर उभरी कि जैसे कोई मेरी ब्रा उतार कर मेरे स्तनों को होठो से चुम रहा है। मैंने अपना सिर हिलाया तो थोड़ा होश सा आया। मैं खुद को कमरे में लगे आईने में एक पल को देखि। मैं बहुत सेक्सी लग रही थी। क्योंकि परिणीता मुझे देख रही थी, मैं जल्दी से उसका क्लोसेट खोल कर कपडे ढूंढने लगी पहनने के लिए। मैं फिर किसी कारण से उसे नाराज़ नहीं करना चाहती थी।


क्लोसेट खोलते ही एक तरफ मुझे उसकी सुन्दर महँगी साड़ियाँ दिखी। परी ने इन्हें मुश्किल से एक बार पहनी होगी या वो भी नहीं। मेरा उन्हें पहनने का बड़ा मन करता रहा है पर मैंने कभी उसकी साड़ियों को हाथ नहीं लगाया। आज तो जैसे मैं हक़ से इन साड़ियों को देख कर निहार रही थी। क्या आज एक पहन लूँ ? कौनसी पहनू? सच कहूँ तो मुझे पता था कि किस साड़ी पर मेरा पहले से दिल आया हुआ था। पर परिणीता के सामने मैं कुछ देर कंफ्यूज होने का नाटक करना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि उसे लगे कि हमारी इस नयी स्थिति में मैं बहुत खुश हूँ। मैं यह सब सोच ही रही थी कि परिणिता ने कहा, “आज दिवाली नहीं है कि आप साड़ी पहनो। मैंने एक ड्रेस निकाल कर रखी है कल रात से ही, आज पहनने के लिए। उसे पहन लेना। मैं नहाने जा रही हूँ। मेरे आते तक तैयार रहना| मुझे पता है तुम्हे ड्रेस पहनना आता ही होगा।


परिणीता इस बारे में गलत थी। मैं पारंपरिक भारतीय नारी के सामान थी, मुझे ड्रेस पहनने का ज्यादा अनुभव नहीं था। मैं ही जानती हूँ कि कितनी मुश्किल से मैंने ड्रेस में पीछे पीठ पर चेन चढ़ाई थी। परी ने साथ में एक पेंटीहोज भी रखी थी पहनने के लिए। यहाँ ठण्ड के दिनों में औरतें पैरो को ढकने के लिए पेंटीहोस पहनती है। स्मूथ पैरो पे पैंटीहोज पहनना बड़ा आसान था। मुझे बहुत ज़रुरत भी महसूस हो रही थी क्योंकि मुझे ठण्ड लग रही थी। घर का तापमान तो ठीक ही था पर पता नहीं क्यों आज ज्यादा ठण्ड लग रही थी और ऊपर से यह घुटनो तक की ड्रेस। पता नहीं परी ऐसे मौसम में भी क्यों छोटी लंबाई की ड्रेस पहनती है! मुझे मेरी अपनी हरी साड़ी याद आ गयी जो मैंने कल शाम को पहनी थी। ठण्ड में भी अच्छी गर्म थी वो और मैं ऊपर से निचे तक पूरी तरह उससे ढंकी हुई थी। कहीं से ठण्ड लगने का सवाल ही नहीं था।

अब मैंने एक मैचिंग स्वेटर भी निकाल कर पहन लिया था। और बस परी के बाथरूम से बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगी। परी बहुत देर लगा रही थी। मुझे थोड़ी चिंता होने लगी थी। न जाने क्या बात हो गयी थी।
Wonderful writing skill.
 

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आपकी भाभी (Crossdesar)
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कार से उतरकर हम दोनों साथ में दूकान की ओर चल पड़े। मैंने परिणिता से कहा, “ये लो मेरा लेडीज़ पर्स!अपने हाथ में पकड़ लो। दुनिया में बहुत से पति अपनी पत्नियों का पर्स पकड़ कर चलते है। और तुम भी तो मुझे पहले पकड़ाती रही हो।”

“तो क्या आज तुम उस समय का बदला ले रहे हो मुझसे? बदमाश हो तुम!”, परिणीता हँसते हुए बोली। मैं भी मुस्कुरा दी।


औरत के बदन में चलते हुए कैसी हलचल होती है, एक क्रोसड्रेसर या नई नवेली औरत से बेहतर कोई नहीं समझ सकता।

पार्किंग से दूकान तक करीब ५० मीटर की दूरी रही होगी। और मैं पहली बार हील वाली सैंडल पहने इतनी लंबी दूरी चलने वाली थी। औरत के बदन में चलते हुए कैसा अनुभव था? इस सवाल का जवाब किसी औरत से कहीं ज्यादा बेहतर जवाब मैं दे सकती हूँ। क्योंकि मैं बिलकुल नई नवेली औरत थी, चलते वक़्त मेरे अंग अंग में जो सनसनी मुझे हो रहा थी, उस ओर तो पैदाइशी औरते ध्यान भी नहीं देती होंगी। जवाब देना शुरू करूँ तो घंटे लग जायेंगे। फिर भी संक्षिप्त में बताने की कोशिश करती हूँ। औरतें जब चलती है तो उनके दोनों पैर काफी पास पास होते है। उनके कदम मानो एक लाइन पर पड़ते है। और कमर के निचे पुरुष लिंग भी नहीं होता जो एक लाइन में चलने में बाधा बने। पर अब दोनों जाँघे मानो एक दुसरे को चूमती हुई चलती है। मेरी जाँघे और पूरे पैर जितने कोमल और चिकने थे, उसका भी चलते हुए मज़ा ले रही थी मैं।

आज सुबह मैंने जो पैंटी पहनी थी वह बेहद ही हलकी, सॉफ्ट और लेस वाली पैंटी थी। जब वो पैंटी मेरे चिकनी टांगो पर फिसल कर मेरी कमर तक पहुची तो मैं तो मन ही मन मदमस्त हो रही थी। क्योंकि पैंटी चढ़ाते वक़्त रुकना कब है मुझे इस बात का अंदाज़ा न था और मैंने उसे थोड़ा ज्यादा ऊपर खिंच ली थी। और पैंटी थोड़ी मेरी योनि में घुस रही थी, और मुझे उत्तेजित कर रही थी। पैंटी पहन कर जो स्मूथ लुक आता है, वो द्रुश्य ही मोहित करने वाला होता है।


पैंटी पहन कर जो स्मूथ लुक आता है वह द्रुश्य बड़ा ही मोहक होता है।

इस वक़्त बाहर थोड़ी हवा चल रही थी जो मेरी ड्रेस के निचे से होते हुए मेरी पैंटी तक पहुच रही थी।


और फिर पैंटी से छन कर हवा मेरी योनि तक पहुच रही थी। ऐसा होने पर कैसा लगता है? शब्दो में बखान करना मेरे बस की बात नहीं है।मैं कैसे बताऊँ मेरा यह नया बदन मेरे दिल में कैसी हलचल जगाये हुए था। जब जब वो बहती हवा आकर मेरी योनि को चूमती, मैं सिहर जाती। मैं सुबह से उठ कर चाहे जो भी कर लूँ , मेरा ध्यान मेरी योनि की तरफ बार बार खिंचा चला जाता। बता नहीं सकती की मैं भीतर ही भीतर कितनी उतावली हो रही थी कि मैं कब उस योनि के साथ खेल कर देखूँ । मेरा कभी पुरुषों की तरफ आकर्षण नहीं रहा था। पर आज सुबह जब परिणिता का तना हुआ पुरुष लिंग देखी थी, तब तो बस जी चाह रहा था कि उसे अपनी योनि के अंदर तक ले लूँ। शायद पुरुष लिंग के प्रति आकर्षण से ज्यादा, मेरी योनि से खेलने और महसूस करने को ज्यादा उतावली थी मैं। और वो बहती हवा, बार बार मेरा ध्यान उस ओर ले जा रही थी। साथ ही साथ मुझे अपनी ड्रेस की ओर भी ध्यान देना पड़ रहा था क्योंकि वह हवा से बार बार ऊपर उड़ती जा रही थी। चूँकि मैं परिणीता के स्त्री-रूप में थी, इसलिए मैं नहीं चाहती थी कि कोई ड्रेस उड़ने पर मेरी पैंटी देख ले। वरना मैं तो उड़ जाने देती।


मेरी बड़ी हिप्स की वजह से मेरी ड्रेस बार बार ऊपर उठ जाती थी। आज समझ आ रहा था की औरतें बार बार अपनी ड्रेस क्यों एडजस्ट करती हैं।
एक औरत की चाल में जो सबसे ज्यादा किसी का ध्यान खिंचती है, वो है उस औरत के मटकते झटकते हुए बड़े नितम्ब। जिसे अंग्रेजी में hips और आम भाषा में ‘**’ कहते है। एक शालीन औरत होने के नाते मैं वह शब्द का प्रयोग नहीं करूंगी। अपनी हिप्स पर मेरा ध्यान न जाए ऐसा असंभव था। मेरे हलके से बदन में मेरी बड़ी हिप्स अपने वज़न और हर कदम पर जब वह मटक झटक कर एक ओर हिलती, उसको अनदेखा करना नामुमकिन था। चलते हुए लग रहा था कि मेरी गोल गोल हिप्स बहुत बड़ी है। क्योंकि एक एक कदम पर वह थर्रा कर हिलती थी। एक पुरुष को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं हो सकता कि वो बड़ी सॉफ्ट महिलाओं की हिप्स कहीं भी बैठने और चलने में क्या आनंद दे सकती है! मेरी पैंटी मेरे नितम्ब से चिपक कर उसे चुम रही थी। लग रहा था कि कोई आकर मेरे गोल नितम्ब पर चिंकोटी काटे। मुझे चलते चलते एहसास हो रहा था कि यह मेरी बड़े गोल नितम्ब ही कारण है जिसकी वजह से मेरी ड्रेस बार बार ऊपर खिंच कर उठ जाती थी। अब समझ आ रहा था कि औरतें दिन भर अपनी ड्रेस क्यों एडजस्ट करती रहती है। अच्छा हुआ कि परिणीता का ये तन जो मैंने पाया था, उसमे नितम्ब बेहद बड़े भी न थे।

जांघो का आपस में रगड़ना, बहती हवा का मेरी योनि को चूमना, मेरे नितम्ब का थर्राना और मटकना ऐसी छोटी छोटी बातें थी जो मेरे शरीर के निचले हिस्से में महसूस हो रही थी। शरीर के ऊपरी हिस्से में थे मेरे भरे हुए भारी स्तन! जो हर कदम पर झूमना चाहते थे। पर मेरी ब्रा उन्हें अपनी जगह से हिलने नहीं दे रही थी। इसका मतलब यह नहीं है कि मेरी अनुभूति कहीं से भी कम थी। एक परफेक्ट फिट होने वाली ब्रा कम्फर्ट तो देती ही है पर साथ ही साथ बड़े ही प्यार से आपके दोनों स्तनों को स्पर्श भी करती है। मैंने पुशअप ब्रा पहनी हुई थी तो मेरे स्तन और भी बड़े लग रहे थे। मैं जब भी निचे की ओर झुक कर देखती, मेरे दुलारे स्तन अठखेलियां करते दीखते और उनके बीच वो क्लीवेज किसी को भी उकसा देने वाला था। चलते चलते जब मेरे हाथ जब आगे पीछे होते तब मेरी बाँहें स्तनों को छू लेती। भले ही ब्रा की वजह से मेरे स्तन उछल न रहे हो पर मेरी बाँहें उन्हें अकेला न छोड़ती। कभी कम तो कभी ज्यादा, पर मेरे स्तनों को मेरी ही बाँहें ऐसी छेड़ती जैसे दूल्हे की बहने नयी नवेली दुल्हन को छेड़ती है। और फिर यह ठण्ड का मौसम! मेरी निप्पल बड़े और कठोर हो गए थे। ब्रा न होती तो यक़ीनन ही वह ड्रेस से बाहर pointed दिखाई देते। काश! कोई मेरे उत्तेजित निप्पल को अपनी उँगलियों से मसल देता।


अब बताती हूँ मेरी पीठ के बारे में। क्या पीठ में भी सेक्सी महसूस किया जा सकता है? यदि आपको लगता है की नहीं तो यक़ीनन ही आपने खुली पीठ पर लहराते लंबे बालों को महसूस नहीं किया है! मेरी ड्रेस में पीठ का ऊपरी हिस्सा थोड़ा खुला हुआ था और परिणिता से बात करने के बाद मैंने अपने बालों को खुला छोड़ दिया था। मेरी पीठ की कोमल त्वचा पर बहती हवा और लहराते बाल अपने स्पर्श से मुझे मदहोश कर रहे थे। आज से पहले मैंने घर के बंद कमरे में क्रोसड्रेस करते वक़्त विग को अपनी पीठ पर महसूस किया था पर असली घने लंबे बाल और खुली हवा में जो आनंद था वो कई गुना ज्यादा मादक था। और मेरी ब्रा का स्ट्रैप जो मेरी पीठ पे कस के लगा हुआ था, उसकी अनुभूति भी असली स्तनों के साथ बहुत बढ़ जाती है। हाय! मुझे तो अब थोड़ी शर्म भी आ रही है अपने अंग अंग के बारे में बात करते!

इन सब के साथ बीच बीच में हवा से जब बाल बिखरने लगते, तब मैं उन्हें अपने हाथों से ठीक कर अपने कान के पीछे कर देती। एक दो बार जब मेरे बाल मेरी कान की बालियों में जूझते, तब मैं अपनी बालियों (earrings) को भी ठीक करती। मेरे कान भी बड़े नाज़ुक से थे। मुझे याद है कि पहले जब मैं पुरुष रूप में परिणीता के इस शरीर को रातों को चूमती थी, तब उसके कान पर चुम्बन से वो मदहोश हो जाती थी। मैं सोच रही थी कि मुझे भी वो अनुभव करना चाहिए जब तक मैं परिणीता के इस स्त्री शरीर में हूँ।

हाय, यह कैसे कैसे विचार मेरे दिल में आ रहे है! पैदल चलना जो कि एक दैनिक साधारण सा काम है, उससे भी मैं इतनी कामोत्तेजित हो चुकी थी। सोच रही थी कि औरतें यह सब के साथ कैसे रहती होंगी। पर शायद उन्हें इस बात की आदत हो गयी थी। जबकि मैं तो बस कुछ घंटो पहले ही औरत बनी थी। इस कामोत्तेजना में दिल की हसरते बढ़ गयी थी जो चाह रही थी कि मैं इस स्त्री तन का पूरा आनंद लूँ। पर कैसे और कब?

चलते चलते परिणीता और मैं दूकान तक पहुच गए। दूकान में काफी भीड़ थी। सहसा ही ध्यान आया कि मैं पहली बार एक औरत के रूप में दुनिया के बीच खड़ी हूँ। मेरे कदम ठिठक कर रुक गए। मैंने परिणीता का हाथ पकड़ा। मुझे उसका साथ चाहिए था इस दुनिया से औरत के रूप में सामना करने के लिए। और शायद उसे भी मेरे साथ की ज़रुरत थी। हम दोनों ने एक दुसरे की ओर देखा, और दुकान के अंदर की ओर कदम बढ़ा दिए।

 

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