गुरुदेव....... गुरु पूर्णिमा पर नमन
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एक लेख समर्पित करता हूँ..... जिसे आप fminism के विरोधी को समझाए.....
आज रविवार सुबह सब्जी लेने बाजार निकला था, सब्जियाँ खरीद रहा था तो बगल में कुछ महिलाओं के बीच चर्चा इसी विषय पर हो रही थी कि कैसे एक पति ने अपनी पत्नी को उसके सपने के लिए साथ और समर्थन दिया उसे पढ़ाया लिखाया, काबिल बनाया तो पत्नी ने ऊंची पोस्ट पर पहुंच कर उस पति को ही धोखा दे दिया।
“चर्चा का सार ये निकला कि गलती उस पति की ही है।” उसने लगाम नहीं लगाई, ससुराल वाले “बहु भी कमा के लाएगी” इस के चक्कर में उसे पढ़ाते रहे और फिर देखो क्या हुआ।
अफसोस यही है कि ऐसी सोच और मान्यताओं को मजबूती कुछ इन्हीं उदाहरणों से मिलती है। और बात ये भी तो है कि ये समाज ने जो “feminism” के नाम पर उल्टी और गलत हवा चला रखी है उसका भी दोष भारी है।
लड़का मेहनत करता है, कमाता है, घर की और परिवार की जिम्मेदारियों को उठाने के लिए।
और ‘feminist’ का slogan क्या है?
“Independent बनना है, हम ख़ुद के लिए कमाएंगे, केवल खुद का सोचेंगे।”
आज इस एक गलत उदाहरण ने समाज में पढ़ रही, नौकरी कर रही, आगे बढ़ने की चाह रखने वाली उन तमाम लड़कियों, महिलाओं के लिए न जाने कितनी नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। उनका आने वाला भाविष्य खतरे में पड़ चुका है। अब कैसे कोई अपनी बेटियों, बहुओं, पत्नियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा। हमारे समाज में स्त्रियाँ पहले ही ऐसी दकियानूसी परंपराओं के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश करती आ रही हैं। और ये उनके सामने एक नई मुसीबत और खड़ी कर दी है एसडीएम साहिबा ने।
एक के फरेब से कई सपनों के दरवाज़े बंद हो चुके हैं। ”बेटियों को पढ़ाओ, बहुओं को नहीं।” इस स्लोगन को अब और मजबूती मिल चुकी है।
पूरा बेड़ा गर्क कुछ इन्हीं एक तरफा सोच और मुहीमों के पीछे भागने वाली भीड़ ने ही कर रखा है। इसलिए कहता हूँ संस्कार, विचार और व्यवहार ऐसे चुनों जो केवल खुद का नहीं आपके संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति, जीव और परिवेश को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही सूरतों में लाभ, हित या अच्छाई परोस सके।
और याद रहे, कुछ एक बुरे उदाहरण हैं तो अच्छे भी हैं उनके प्रति अपनी सजगता जगाइए, और बेफिजूल के फितूर ख़ुद से कोषों दूर रखिए, ध्यान रखें मंगल कामनाएं।
गुरुदेव अपने शब्दों की आशीर्वाद की कृपा दृष्टि मेरी कहानी पर टिकाइये.....