मनीष भाई ज़िंदगी में सबसे बड़ा दुख यही होता है....... अपने पास जो नहीं, उसका अहसास
और................... सबसे बड़ी खुशी ...............
अपने पास जो है, उसके होने का अहसास
सिर्फ रोटी मत समझना
................................... हर फिक्र को धुएँ में उड़ता चला गया
मैंने पैदल....... साइकल तो 14 साल की उम्र में सीखी और 25 के बाद कभी चलायी नहीं ....... बुलेट 1990 में चलनी सीखी 15 साल की उम्र में ........अब तक पल्सर चलाता हूँ
खरीदी पहले साइकल थी उसी पर चलना सीखा, फिर कार और फिर बुलेट ............ सब खुद कमाकर ..... पिताजी की साइकल पर तो चलना भी नहीं सीखा,
कुछ कहते नहीं इसीलिए ज्यादा सोचते हो............. सबकुछ भुला दो और ज़िंदगी के बहाव में खुद को बहने दो.........
ना जाने ज़िंदगी क्या देना चाहती है, कहाँ पहुंचाना चाहती है.............. और जो ले लिया ज़िंदगी ने वो आपका था ही नहीं, इसलिए उसे भुला दो