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nice update..!!अंतराल - स्नेहलेप - Update #4
आज ऑफिस में मन नहीं लग रहा था।
काजल से किया हुआ वायदा रह रह कर याद आ रहा था, और बच्चों से खेलने का बड़ा मन हो रहा था। लिहाज़ा, मैं ऑफिस में अपने सेक्रेटरी से अगले दो दिनों में किसी बढ़िया होटल में पूरे स्टाफ के लंच के बुकिंग करने को कह कर निकल गया - बच्चों को उनके स्कूल से लाने। उम्मीद थी कि दोनों को अच्छा लगेगा। मैं स्कूल जल्दी पहुँच गया - बच्चों की छुट्टी का ठीक ठीक आईडिया नहीं था। लेकिन वहाँ आइसक्रीम, चना जोर, भेल इत्यादि बेचने वालों की रेहड़ियाँ लग चुकी थीं। इसका मतलब छुट्टी होने ही वाली थी। मैंने कार से निकल कर एक आइसक्रीम खरीदी और खाने लगा। सर्दी में आइसक्रीम खाने में एक अभूतपूर्व आनंद आता है। कर के देखें कभी। बचपन में यह काम मैंने कभी नहीं किया। अभी भी नहीं करता था। माँ के होने से स्वादिष्ट भोजन घर पर ही उपलब्ध था, और भर पेट खाने को मिलता था। तो यह एक तरीके का गिल्टी प्लेशर था, मेरे लिए। मेरी आइसक्रीम ख़तम ही हुई थी कि मैंने काजल को आते देखा। उसको देख कर मुस्कान आ गई - ‘मेरी काजल’! हाँ, यही ख़याल आता था।
मैंने हाथ हिला कर उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया। मुझे देख कर वो आश्चर्यचकित हो गई। लेकिन उसको अच्छा भी लगा। हम दोनों ही बातें करते हुए दोनों बच्चों के बाहर आने का इंतज़ार करने लगे। कोई दस मिनट बाद ढेर सारे बच्चों का हुजूम स्कूल के गेट से बाहर आने लगा। लतिका और आभा दोनों हमेशा एक नियत स्थान पर खड़े हो कर काजल का इंतज़ार करते थे। आज भी वो दोनों वहीं खड़े थे। लेकिन आज काजल के साथ मुझे भी देख कर दोनों बच्चे बड़े खुश हुए। मुर्गा मिला था, तो हलाल भी होना था। मज़े की बात यह थी कि बच्चों को ज़िद भी नहीं करनी पड़ी, और मैं उनको ले कर पास की ही एक मिठाई की दूकान चला गया। वहाँ तीन चार डब्बे मिठाइयाँ पैक करवा कर अगले पाँच मिनट में हम घर पर थे।
माँ भी मुझे इतनी जल्दी घर में उपस्थित देख कर बड़ी खुश हुईं - उन्होंने बड़े प्रशंसा भाव लिए काजल को देखा। वो हमेशा से जानती थीं कि काजल का मुझ पर एक बेहद सकारात्मक प्रभाव है। और ऐसे गहरे अवसाद के अवसर पर भी वो प्रभाव बरकरार था। खाना पहले ही पका हुआ था। हम सभी हँसते बोलते खाने की टेबल पर बैठे। दोनों बच्चे - मुझे लग रहा था कि शायद वो मुझसे दूरी बना कर रखेंगे - मेरे आशातीत (उम्मीद से परे), मेरी गोदी में आ कर बैठ गए : लतिका मेरी बाईं जांघ पर और आभा मेरी दाईं जांघ पर। और ज़िद यह कि मुझे ही खिलाना पड़ेगा दोनों को। ऐसे में दोनों को खाना खिलाना मुश्किल काम था - डर लगा हुआ था कि कोई गिर न जाए - लेकिन मैंने किया। और सच में, इतने महीनों में यह सबसे सुखद अनुभूति थी। उनकी किलकारियाँ, हँसी, भोले चुटकुले - यह सब सुन कर दिल को बहुत ठंडक मिली।
दोपहर में दोनों बच्चे कुछ देर के लिए सो जाते थे - लेकिन आज दोनों को ही नींद नहीं आ रही थी। इसलिए हमने कैरम बोर्ड निकाला, और कुछ देर तक खेल का आनंद लिया। माँ भी अपने ही कमरे में चली जाती थीं अक्सर - लेकिन आज सभी मेरे ही कमरे में जमे रहे। बच्चों ने बड़ी आसानी से मुझे हरा दिया! आभा तो इतनी क्यूट थी कि मेरे विपक्ष में खेलते हुए भी, वो मेरी ही गोद में बैठ कर अपनी चाल खेलती। उसकी इस हरकत पर इतनी हँसी आती कि पूछिए नहीं! उसको आलिंगन में भर के खूब चूमता रहा। मेरा बच्चा! मेरी देवयानी की निशानी!
रोज़ इस आनंद का आस्वादन करना मुश्किल था, लेकिन मैंने निर्णय लिया कि कम से कम सप्ताहांतों में यह अवश्य करूँगा। दोनों बच्चे अपने पिता के अभाव में नहीं जिएँगे अब से।
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नया साल आने के साथ ही साथ हमारा भाग्य भी खुल गया।
फरवरी में माँ का जन्मदिन होता है और काजल के कहने पर बहुत ही अधिक न-नुकुर करने के बाद, माँ ने अपना जन्मदिन मनाने के लिए ‘हां’ कर दी। माँ का मन नहीं था यह सब करने का, क्योंकि अगले महीने डैड की पहली पुण्यतिथि थी। लेकिन काजल की ज़िद के आगे उन्होंने घुटने टेक दिए। ऐसा कोई बड़ा प्लान भी नहीं था हम लोगों का - बस साथ में बैठ कर, घर में ही फिल्म देखने का, और स्वादिष्ट पकवान खाने का प्लान था। ससुर जी, और जयंती दीदी सपरिवार आमंत्रित थे, और उपस्थित भी। जो नहीं आ सकते थे - जैसे कि सुनील - उन्होंने फ़ोन कर के उनको स्वस्थ जीवन की शुभकामनाएँ दीं। बड़ा अच्छा लगा सभी को यूँ एक साथ देख कर। ससुर जी भी बूढ़े से दिख रहे थे, लेकिन अपने सभी नाती और नातिनों को देख कर वो भी बच्चे बन गए। उन्होंने भी बहुत आनंद उठाया। काजल की ही मनुहार पर माँ ने कम फ़ीकी रंग की साड़ी पहनी थी उस दिन। सच में - उनको हँसता खेलता देखने के लिए मन तरसने लगा था। न जाने कब वो होता! लेकिन अभी जो हो रहा था, मैं उतने से भी संतुष्ट था।
माँ के जन्मदिन के एक सप्ताह बाद सुनील को एक मल्टीनेशनल कंपनी से जॉब ऑफर मिला। वो कंपनी पहली बार कैंपस में आई थी, और केवल सुनील को ही ऑफर दे कर गई। उसका पे पैकेज भी बड़ा आकर्षक था - मुझे जितना मिला था, उससे कहीं अधिक! कंपनी ने उसको पहले ही बता दिया था कि उसकी जोइनिंग अगस्त में होगी - ग्रेजुएशन के कोई तीन महीने बाद! और वो इसलिए क्योंकि रिसेशन के कारण कंपनी के वर्कफ़ोर्स में थोड़ा बदलाव चल रहा था। थोड़ा घबराहट तो हुई यह सुन कर - क्योंकि यह रिसेशन ईयर था। क्या पता - तीन महीने बाद कहीं ऑफर न वापस ले लें। लेकिन फिर भी, यह कोई खराब बात नहीं थी। कुछ नहीं तो सुनील हमारे साथ क्वालिटी समय बिता लेता। और अगर उसको काम करना भी था, तो मेरे संग कर सकता था। दोनों बच्चों के साथ मेरे सम्बन्ध घनिष्ट हो गए थे, और मुझे उम्मीद थी कि सुनील के साथ भी पहले जैसी घनिष्टता बन सकेगी!
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काजल के हमारे यहाँ आए हुए अब कोई नौ महीने हो गए थे। अब हमारे घर में सब कुछ या तो ठीक, या फिर अच्छा चल रहा था - सिवाय माँ के डिप्रेशन के। हाँ - इतना तो हुआ था कि काजल के आने के बाद डिप्रेशन के सबसे बड़े दुष्प्रभाव समाप्त हो गए थे, और अधिकतर एपिसोड्स अब कम दिख रहे थे! लेकिन फिर भी वो उससे पूरी तरह से उबर नहीं पाई थीं। डॉक्टर के हिसाब से उनकी हालत में सकारात्मक अंतर था और उसने उनकी दवाइयाँ भी कम कर दी थीं। लेकिन फिर भी, न जाने क्यों, मेरे दिल में माँ को ले कर एक डर सा बैठा हुआ था। मुझे मालूम था - माँ बदल गई थी... और यह कोई बढ़िया बात नहीं थी। मैं अपनी वही पहली वाली, हँसती गाती, चंचल माँ को मिस कर रहा था। काश कि मेरी वो पहली वाली माँ वापस आ जाएँ! मुझे समझ में भी नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे होगा! उनको खुश देखने के लिए मैं कुछ भी कर सकता था। बस, कैसे भी कर के वो पहले जैसी हो जाएँ! खैर, देखेंगे!
मेरा बिज़नेस भी बड़ी अच्छी रफ़्तार से बढ़ रहा था। हमारी शुरुवात छोटी सी थी - लेकिन अब यकीन से कहा जा सकता था, कि कुछ अच्छा ही भविष्य होगा मेरी कंपनी का। कंपनी का टर्न-ओवर काफ़ी बढ़ गया था, और अब वो प्रॉफिट में भी थी! किसी भी स्टार्ट-अप के लिए प्रॉफिटेबल होना एक बड़ा ही अच्छा संकेत होता है। मैं उस कारण से खुश था। कंपनी इतनी बड़ी भी नहीं हुई थी कि अन्य बड़ी कंपनियों की नज़र में आ जाए, और वो मेरा बिज़नेस बिगाड़ने के लिए कोई प्रतिक्रिया दें। मैं अब काम के लिए खुद की जान नहीं निकाले दे रहा था! अपने साथ साथ मैं कुछ और लोगों को रोज़गार भी दे रहा था! और सबसे अच्छी बात यह थी कि मैं घर में उचित समय भी बिता रहा था! और क्या चाहिए?
काजल इस समय तक, प्रक्टिकली, मेरे घर की ‘स्वामिनी’ बन गई थी। घर का पूरा सञ्चालन उसी के हाथ में था। एक तरह से हम सभी के जीवन की बागडोर काजल के हाथ में थी। और यह बड़ी अच्छी बात भी थी। कम से कम मेरा जीवन बड़ा अनुशासित हो गया था - अब खाना पीना तरीके से हो रहा था, और नियमित एक्सरसाइज करने के लिए प्रेरणा भी थी। काजल के साथ मेरी कोई नियमित अंतरंगता नहीं थी - उस पहली बार के बाद, हमने बस दो या तीन और बार ही सेक्स किया होगा। शायद इसलिए कि या तो मैं, या फिर काजल किसी बात से विचलित थे। और सेक्स करने से मन में स्थिरता आती है - बस, और कोई कारण नहीं। हमारा सम्बन्ध अभी भी प्रेम और आदर वाला ही था, रोमांटिक नहीं। दोनों बच्चे भी अब बहुत खुश रहने लगे थे - उनका स्वास्थ्य और शारीरिक विकास, जाहिर तौर पर पहले से बेहतर लग रहा था। एक तरह से जीवन वापस पटरी पर लौट आया था!
उधर सुनील की इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी! जैसा कि मैंने बताया कि ग्रेजुएशन के बाद अपनी नई नौकरी शुरू करने में उसको तीन महीने का समय मिला हुआ था। लिहाज़ा, वो हमारे साथ रहने दिल्ली चला आया। हाँलाकि काजल इतने दिनों से यहाँ रह रही थी, लेकिन फिर भी यह पहली बार था कि सुनील हमसे मिलने आया था!
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एक लम्बा अर्सा हो गया था सुनील को देखे। उसके इंजीनियरिंग के फर्स्ट सेमेस्टर में मिला था शायद उससे आखिरी बार! मतलब कोई साढ़े तीन साल हो गए थे! हे भगवान्! पिछली बार मैंने जब उसको देखा, तो वो बस एक किशोरवय लड़के जैसा ही था। लेकिन अब वो एक सुन्दर, स्वस्थ, और आकर्षक युवक में परिवर्तित हो गया था। उसकी कद-काठी बहुत विकसित हो गई थी, उसके कारण वो अपनी उम्र से दो तीन साल बड़ा भी लगता था। उसके लहज़े में धीरता थी और चेहरे पर आत्मविश्वास झलकता था। उसके बोलने का अंदाज़ भी आकर्षक था - थोड़ी भारी आवाज़, और आत्मविश्वास से भरी। उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर बढ़िया लगता था। सच में - उसे देखकर मुझे बहुत गर्व हुआ। मुझे बिलकुल वैसा ही महसूस हुआ जैसा कि किसी गौरान्वित बाप को हो सकता है! सुनील मुझको अपने पिता समान मानता था, और मैं भी सुनील को अपने बेटे जैसा - अपना बेटा ही मानता था!
मैंने ही उसको हवाई जहाज़ से दिल्ली आने को कहा था। ट्रेन से आने पर खड़गपुर से दिल्ली पूरा दिन ले लेता है। मैं चाहता था, कि वो अधिक से अधिक समय हमारे साथ गुजार सके! उसको लेने काजल, माँ और मैं, तीन लोग एयरपोर्ट गए थे। बच्चे स्कूल में थे - वो उससे बाद में मिल लेते।
मुझे देखते ही उसने सबसे पहले मेरे पैर छुए। मैंने भी उसे बड़े स्नेह से अपने गले से लगा लिया।
“आ गया मेरा बेटा! कैसे हो सुनील?”
“बढ़िया हूँ, भैया! आप कैसे हैं?”
“मैं तो बहुत बढ़िया हो गया तुमको देख कर!”
“तुम्हारी अम्मा हम सभी को सम्हाल रही हैं, तो हम सभी अच्छे ही होंगे न!” माँ ने मद्धिम मद्धिम हँसते हुए कहा, “तुम बताओ बेटे! तुम कैसे हो? सच में, तुम्हारी तरक़्क़ी देख कर हम सभी को बहुत गर्व होता है!”
माँ भी सुनील को शायद कोई ढाई तीन साल बाद ही देख रही थीं। कितना कुछ बदल गया था इतने ही समय में!
सुनील ने उनके पैर छूते हुए कहा, “मैं ठीक हूँ - आप कैसी है?”
“आयुष्मान भव! यशश्वी भव!” माँ ने आशीर्वाद दिया, “हम सब ठीक हैं! तुम आ गए, तो अब और भी अच्छे हो गए!”
सबसे बाद में उसने काजल के पैर छुए। काजल ने उसको कस कर अपने गले से लगा कर इतनी बार चूमा कि वो शर्मसार हो गया। माँ की ममता अपने बच्चे का आकार प्रकार थोड़े ही देखती है।
आखिरकार, इतने लंबे अंतराल के बाद मुझे अपना परिवार एक खुशहाल, बड़े परिवार की तरह लग रहा था! आज मैं बहुत खुश था! आखिरकार, हमारा छः लोगों का खुशहाल संसार मिल गया था!
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सुनील पहले तो अपनी छुट्टियाँ भारत भ्रमण करने में बिताना चाहता था! मुझे थोड़ा सा दुःख तो हुआ। एक मौका मिला था उससे आत्मीयता बढ़ाने का, वो अब जाता रहा - यह सोच कर। लेकिन फिर अचानक ही, उसने अपना वो निर्णय बदल दिया। पहली ही शाम सुनील मुझसे बोला कि वो अपनी पूरी छुट्टी हमारे साथ ही बिताएगा, और फिर अपनी जॉब ज्वाइन करेगा। यह तो बहुत अच्छी बात थी, और उसके निर्णय पर हम सभी को बहुत ही अधिक ख़ुशी हुई। मुझे तो शायद काजल से भी अधिक!
मैंने जब उससे भारत भ्रमण पर न जाने का कारण पूछा तो उसने मुझसे कहा कि वो मेरे बिज़नेस में कुछ दिन इंटर्नशिप करना चाहता है। और इस काम से अगर मेरी कोई मदद हो जाती है, तो और भी बेहतर! मुझे उसकी मदद की आवश्यकता नहीं थी! क्योंकि अब कंपनी जम गई थी। लेकिन हाँ, मेरे साथ काम कर के उसको इंटर्नशिप का बढ़िया अनुभव हो जाता, जो कि उसको अपनी जॉब शुरू करने में बहुत मदद करता। इसलिए, मैंने उसे अपने साथ काम करने के लिए ‘हाँ’ कर दी। मैं भी चाहता था कि हम दोनों कुछ क्वालिटी टाइम साथ में बिताएँ।
एक समय था, जब मैं उसको पढ़ाता था, लिखाता था, और विभिन्न विषयों के बारे में समझाता था। एक बाप के समान ही मैंने उसको भले बुरे का ज्ञान दिया; व्यावहारिक समझ दी; समाज के बारे में समझाया! उस समय हम कितने पास थे! सुनील मुझे बहुत पसंद था - बिलकुल अपने बेटे की ही तरह। और मैं चाहता था कि हमारे बीच वही बाप-बेटे वाली निकटता वापस आ जाय। वैसे भी, इतने दिनों से मैं केवल स्त्रियों के बीच ही रह रहा था। इसलिए थोड़ा परिवर्तन तो मुझे भी चाहिए था! हा हा हा! उसने यह भी कहा कि वो अपनी नई नौकरी पर जाने से पहले, अम्मा और माँ जी के साथ कुछ क्वालिटी टाइम बिताना चाहता था। उनसे दूर रहे बहुत अधिक समय हो चला था। यह भी बहुत अच्छी बात थी।
मैंने सुनील से वायदा किया कि वो जब भी चाहे, मेरी कंपनी में शामिल हो सकता है। यह उसी की कंपनी है। यह बात सच भी है - मेरी कंपनी एक तरीके से फॅमिली बिज़नेस थी। ससुर जी अब कभी कभी ही ऑफिस आते थे। पूरे काम की बागडोर मैंने ही सम्हाल रखी थी। उन्होंने कंपनी मेरे नाम कब की कर दी थी। ससुर जी ने इसको शुरू किया था, फिर मैंने अपनी पूँजी लगा कर इसको तेजी से बढ़ाया था। सुनील एक सुशिक्षित प्रोफेशनल था, और अगर अन्य कम्पनियाँ उस पर अपना काम करने में भरोसा कर सकती हैं, तो मैं भी उस पर भरोसा कर सकता हूँ!
सच में, सुनील के आने के बाद से, घर में रौनक सी आ गई थी! लतिका और आभा उसको देखते ही चहकने लगती थीं - और ‘दादा’ ‘दादा’ कह कर उसके आगे पीछे होने लगती थीं। वो भी दोनों बच्चों के साथ बड़ी नरमी, बड़ी सौम्यता से व्यवहार करता था। उनके साथ वो खुद भी एक छोटा सा बच्चा बन जाता।
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जब उसने आभा को पहली बार देखा तो उससे पूरे दिन भर अलग ही नहीं हो पाया। उसने इतना प्यार, इतना दुलार उस छोटी सी बच्ची पर बरसाया कि पूछो मत!
“आभा!” जब उसने आभा का ये नाम सुना तो बड़े नाटकीय अंदाज़ में बोला, “ये कैसा नाम है!”
उसकी बात सुन कर आभा के होंठ और गाल फूलने लगे - वैसे ही जब नन्हे बच्चे किसी से नाराज़ होने लगते हैं।
बात बहुत बिगड़ जाती, कि उस से पहले ही उसने बात सम्हाल ली, “इतनी मीठी मीठी बिटिया है मेरी! है कि नहीं? मेरी इतनी मीठी मीठी बिटिया का नाम तो ‘मिश्री’ होना चाहिए! बोलो? अच्छा नाम है कि नहीं?” वो आभा को अपनी गोदी में लिए, उसको दुलार करते हुए बोला।
उसकी बात पर आभा की बाँछे खिल गईं! तुरंत! साथ ही साथ वो उसको घोर आश्चर्य से देख भी रही थी - आखिर ये कौन है जो उस पर इतना प्यार बरसा रहा है! सुनील अभी भी उसके लिए अपरिचित और नया व्यक्ति था। लेकिन आभा को समझ में आ रहा था कि वो ‘मित्र’ है! इसलिए जब सुनील आभा की टी-शर्ट थोड़ा ऊपर उठा कर, और उसकी निक्कर थोड़ा नीचे सरका कर जब उसने आभा का पेड़ू खोला, तो आभा ने बिना चिल्लम चिल्ली किए उसको वो करने दिया, यह देखने के लिए कि वो आगे क्या करता है! फिर अचानक ही सुनील ने अपने होंठों को उसके पेड़ू पर सटाया, और ‘फ़ुर्र’ कर के आवाज़ निकाली। उसके होंठों के कम्पन से उठने वाली गुदगुदी से आभा खिलखिला कर हँसने लगी।
इन दोनों का ये खेल तब शुरू हुआ था - कोई बीस साल पहले, और आज भी जारी है! आभा अपने दादा के साथ सब तरह के नखरे कर सकती है, और करती भी है। और सुनील उसकी हर जायज़, नाजायज़ माँग पूरी करता है - बिना कुछ पूछे (वो अलग बात है कि आभा कोई नाजायज़ मांग नहीं करती)! कुछ बातें नहीं बदलतीं! कभी नहीं! बदलनी भी नहीं चाहिए!
“दादा, और मैं?” लतिका ने ठुनकते हुए कहा। आभा और सुनील के इस मज़ेदार एपिसोड में वो पीछे नहीं रहना चाहती थी।
“अरे, तू तो मेरी पुचुकी है ही! मेरी खट्टी मीठी चटपटी पुचुकी!” सुनील ने लतिका के पेट में गुदगुदी करते हुए कहा।
“हा हा हा!” लतिका उसकी हरकत पर खिलखिला कर हँसने लगी, फिर बोली, “लेकिन दादा, मिश्री तो खूब कड़ी कड़ी होती है। आभा तो खूब सॉफ्ट सॉफ्ट है! उसका नाम भी तो उसके जैसा ही सॉफ्ट सॉफ्ट होना चहिए न?”
कितनी सयानी और बुद्धिमत्ता भरी बात थी ये तो!
“हाँ! बात तो सही है! ये बिटिया तो खूब सॉफ्ट सॉफ्ट है! उम्म्म… तो फिर क्या करें?” सुनील ने कुछ देर सोचा, और फिर जैसे निर्णय सुनाते हुए बोला, “हम हमारी बिटिया को ‘मिष्टी’ कहेंगे!” सुनील ने जैसे निर्णय सुनाते हुए कहा, “मिष्टी! क्यों, ठीक है न मेरी बिटिया? तुमको ये नाम पसंद आया?”
“हाँ! मिष्टी! ये बढ़िया नाम है!” लतिका ने भी इस नए नाम का समर्थन किया।
आभा, जो अभी सुनील से ठीक से परिचित भी नहीं थी, उसकी मीठी मीठी बात पर मुस्कुराने लगी, और उत्साह से ‘हाँ’ में सर हिलाने लगी। जब लतिका ने किसी बात के लिए हाँ कर दी, तो आभा भी वो बात मान लेती। लतिका उसकी सबसे चहेती जो थी!
तो उस दिन से आभा को घर में हमेशा मिष्टी के ही नाम से पुकारा जाने लगा। और तो और, कुछ ही दिनों में मैं भी उसको मिष्टी कह कर बुलाने लगा। आभा नाम का इस्तेमाल बस बच्ची को ‘खबरदार’ करने के लिए केवल मैं ही इस्तेमाल करता था।
बाकी के सभी लोग माँ जैसे ही हो गए थे - कोई किसी से ऊँची आवाज़ में न तो बात करता, न कोई झगड़ा, न कोई डाँट, और न कोई क्रोध! सभी बड़े शांत शांत और स्नेही! बस मैं ही एक अपवाद था, और घर में सभी लोग मेरी इस बात को नज़रअंदाज़ भी कर देते थे।
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सुनील के आने के बाद और भी अनेक सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगे!
घर में अब गाने बजते थे। खूब सारे! सुबह से शाम तक संगीत ही संगीत! पहले तो केवल माँ ही कभी कभी अपने कमरे में रेडियो सुनती थीं। लेकिन अब लगभग पूरे समय, मधुर संगीत सुन सकते थे। यह संगीत शास्त्रीय से ले कर फ़िल्मी - कुछ भी हो सकता था। सुनील ने इंजीनियरिंग करते करते गिटार बजाना सीख लिया था - और वो अक्सर देसी और विदेशी धुनें निकाल कर बजाया करता था। बढ़िया बजाता था! वो गाने भी गाता था - उसके साथ साथ माँ भी कभी कभी गाने लगतीं। और तो और, बच्चों के खेल में अब बड़े भी शामिल होने लग गए - लतिका और आभा के साथ साथ सुनील, काजल और माँ भी सब प्रकार के बचकाने खेल खेलने लगे थे। सब खूब खेलते, खूब हँसते और फिर अपने ही बचकानेपन पर खूब हँसते! मुझको जब फुर्सत मिलती, तो मुझको भी जबरदस्ती कर के बच्चों के खेल में शामिल कर लिया जाता। मुझको समय कम मिलता था, लेकिन सच में, यह सब करने में मुझे भी आनंद आता!
और भी एक परिवर्तन देखने को मिला, जो बड़ा ही आनंददायक था।
मुझे अब अचानक ही ऐसा लगने लगा था कि माँ अब खुश खुश रहने लगी थीं।
जब सुनील मेरी मदद नहीं कर रहा होता था, तो वो माँ और काजल के साथ अच्छा और क्वालिटी टाइम बिताता था। सच कहूँ, तो वो मेरे साथ बहुत कम, लेकिन घर में अधिक समय बिताता था। यह अच्छी बात थी, और इसको ले कर मुझे कोई शिकायत भी नहीं थी। वो उन दोनों को अपने कॉलेज की कहानियाँ सुनाता था, और अपने भविष्य की योजनाओं के बारे में बताता था। एक इंजीनियरिंग छात्र के छात्रावास जीवन के बारे में माँ को कुछ कुछ मालूम था, लेकिन सुनील के अनुभव मेरे अनुभवों से थोड़े अलग थे। उसने मुझसे लगभग एक दशक के बाद स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी, इसलिए जाहिर सी बात है कि उसके अनुभव मेरे अनुभवों से अलग थे।
दोपहर में इत्मीनान से लम्बी लम्बी, गपशप करना माँ, काजल और सुनील की सबसे पसंदीदा गतिविधि बन गई थी। उसके आने से बड़ी रौनक हो गई थी। काजल भी खुश थी और माँ भी! सच में, दोनों औरतों में यह बदलाव देख कर, ख़ास कर माँ में इस सकारात्मक बदलाव को देखकर मैं बहुत खुश था, और बड़ी राहत महसूस कर रहा था। ऐसा लगने लगा था कि आखिरकार, उनके डिप्रेशन की दीवार अब टूटने लगी थी, और वो डिप्रेशन से बाहर आने लगी थीं।
जब उनकी दोपहर की गपशप चल रही होती, तो काजल उससे बोलती कि उसका आगे का क्या प्लान है! तो सुनील अक्सर कहता कि वो एक ‘अच्छी सी लड़की’ के साथ शादी करना चाहता है। उसकी यह बात माँ और काजल, दोनों को ही खूब पसंद आती। दोनों महिलाओं की भी यही राय थी कि लोगों को जल्दी से जल्दी शादी कर लेनी चाहिए... सही व्यक्ति से शादी करने में जीवन का आनंद कई गुना बढ़ जाता है। एक लंबा और सुखी वैवाहिक जीवन, किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे अच्छा उपहार होता है।
माँ अक्सर अपने वैवाहिक जीवन के शुरुआती दिनों की कहानियाँ बड़े प्यार से सुनाया करती थीं। अपने वैवाहिक जीवन की बातें करते हुए, उनकी आँखों में कैसी अनूठी चमक आ जाती थी - वो चमक न तो काजल से ही छुपी थी, और न ही सुनील से! काजल और माँ दोनों का मानना था कि शादी की कानूनी उम्र पहुंचते ही लोगों को अपनी पसंद के साथी से शादी कर लेनी चाहिए।
माँ और काजल अक्सर उत्साह और उत्सुकता से उससे पूछते थे कि वो किस तरह की लड़की से शादी करना पसंद करेगा। और सुनील हमेशा मजाकिया अंदाज में कहता, कि वो एक ऐसी लड़की से शादी करना चाहता है जो उससे प्यार करे, उसका सहारा बने - जैसे कि कोई चट्टान हो, उसके बच्चों को खूब प्यार करे और उनका पालन-पोषण करे - ठीक वैसे ही जैसे माँ जी ने ‘भैया’ का किया है, या जैसे काजल ने उसका और लतिका का किया है। अब यह विवरण तो बड़ा ही अस्पष्ट था, लेकिन दोनों महिलाओं को वो सब सुन कर अच्छा लगता। कम से कम ये लड़का किसी लड़की के रंग-रूप जैसे सतही बातों का दीवाना नहीं था!
“ईश्वर करें, कि तुम्हारी अभीष्ट पत्नी की मनोकामना पूरी हो!” माँ ने उसको आशीर्वाद दिया, “और तुमको तुम्हारी मन-पसंद लड़की मिले!”
“हाँ दीदी! ऐसी बहू मिल जाए, तो मैं तो तर गई समझो!” काजल भी माँ के समर्थन में बोली।
‘हम्म्म तो तेरे लिए जल्दी ही एक अच्छी सी दुल्हन ढूंढ के लानी पड़ेगी अब तो!’
उनका गप्प सेशन हर बार काजल और माँ के इसी वायदे पर ख़तम होता!
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सुनील के आने के दो ही सप्ताह में माँ के ऊपर उसका सकारात्मक प्रभाव साफ़ दिखने लग गया था। उसके आने से पहले तक माँ घर से बाहर केवल अपनी ब्रिस्क वाकिंग के लिए ही निकलती थीं, और वो भी समझिए मुँह अँधेरे। मुझे उनको ले कर डर भी लगा रहता - आप सभी जानते ही हैं कि हमारे शहर में महिला सुरक्षा की क्या हालत है! तब भी खराब थी, और अब भी खराब है। खैर, सुनील सवेरे सवेरे उठ जाता, और अपने साथ ही माँ को भी जॉगिंग के लिए जाने लगा। पास के पार्क में दोनों अपनी अपनी एक्सरसाइज करते। वो उनके इर्द गिर्द ही रहता। मुझे भी थोड़ा सुकून हुआ - सुनील के साथ होने से, माँ कम से कम सुरक्षित तो थीं।
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nice update..!!अंतराल - स्नेहलेप - Update #5
एक दिन सुनील ने मुझसे कहा,
“भैया, मैं आज सबको कहीं बाहर घुमा लाना चाहता हूँ!”
“अरे हाँ, तो घुमा लाओ न। ऐसी बातों के लिए मुझसे परमिशन लेने की क्या ज़रुरत है।”
“नहीं नहीं। मेरा वो मतलब नहीं है। मतलब... माँ जी को भी। उनको भी साथ में ले कर…”
माँ घर से बाहर - घूमने फिरने - जाती ही नहीं थीं। एक अलग ही तरीके की हिचक उनके मन में पैदा हो गई थी - हिचक या फिर यह कह लीजिए कि विरक्ति! लेकिन अगर वो बाहर जा सकें, तो इससे अच्छी क्या बात हो सकती? भला हो सुनील का, जो वो उनके बारे में इतना सोच रहा है!
“अरे ये तो बहुत अच्छी बात है। इस बात पर इतना हेसिटेट क्यों कर रहे हो? तुम उनको मना सको तो बहुत बढ़िया! मैं तो हार गया कह कह कर, लेकिन माँ हैं कि सुनती ही नहीं। घर से बाहर निकलती ही नहीं!” मैंने खुश होते हुए कहा, “देखो, अगर तुमसे मान जाएँ!”
“कोशिश करता हूँ, भैया!”
“बहुत अच्छी बात है, बेटा!” मैंने कहा और बटुए से कुछ पैसे निकालते हुए मैंने कहा, “ये कुछ रुपए रख लो।”
“भैया, मेरे पास पैसे हैं।” सुनील ने झिझकते हुए कहा।
“अरे सुनील! मुझसे शरमाएगा तू अब? बचपन में कितनी सारी चवन्नियाँ ली हैं तुमने मुझसे! ठीक है, ठीक है - समझ रहा हूँ, कि अब तुम बड़े हो गए हो, और जल्दी ही अपने पैसे भी कमाने लगोगे! फिलहाल, इसको तुम लोन समझ कर ले लो। जब कमाना शुरू करना, तब वापस कर देना। ओके? फिलहाल ये रखो!” मैंने कहा और जबरदस्ती उसके हाथ में सौ सौ के कुछ, और पाँच पाँच सौ के कुछ नोट्स थमा दिया, और बोला, “खूब मज़े करना सभी! ठीक है?”
“और आप? आप नहीं चलेंगे साथ?”
“नहीं बेटा, फुर्सत ही नहीं है। लेकिन मैं रात में टाइम पर घर पहुँच आऊँगा। हो सके तो मेरे लिए भी कुछ खाने को लेते आना।” मैंने हँसते हुए कहा, “नहीं तो आज मैगी के भरोसे जीना पड़ेगा!”
“जी ठीक है!” वो हँसते हुए बोला।
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उसी दोपहर :
“अम्मा! आज कहीं घूमने चलें?” दोपहर में होने वाले गपशप सेशन के समय सुनील ने कहा, “मुझे इतने दिन हो गए दिल्ली आए, और हम कहीं बाहर घूमने भी नहीं गए!”
“अरे हाँ! बात तो सही है! चलते हैं न! कहाँ चलना है?”
“कहीं भी! उम्म्म... कनाट प्लेस?”
“ठीक है! चलो। दीदी, तुम चलोगी न?”
“तुम लोग हो आओ,” माँ ने अपने ढर्रे वाले अंदाज़ में कहा, “मैं कहाँ जाऊँगी!”
“देखिए, चलेंगे तो हम सभी लोग चलेंगे, नहीं तो कोई नहीं जाएगा!” सुनील ने भी ठुनकने की एक्टिंग करी।
यह एक नई बात थी। सुनील एक निहायत ही शरीफ़ लड़का था और वो कभी भी अपने से बड़े किसी भी व्यक्ति से बहस नहीं करता था। माँ से तो कभी भी नहीं। लेकिन आज उसके बोलने के अंदाज़ में माँ के लिए सम्मान के साथ साथ एक अलग ही बात सुनाई दे रही थी - जैसे कि यारों दोस्तों में होती है।
“हा हा हा! अरे ये तो बहुत ज्यादती है। तुम दोनों का प्लान बन गया है, तो घूम आओ न। मुझे क्यों फँसा रहे हो?”
“ना!”
“अरे सुनील, मैं कहीं बाहर नहीं जाती। मेरा मन घबराने लगता है।”
“हम लोग रहेंगे न आपके साथ!”
“ज़िद मत करो बेटा!”
“अच्छी बात है। फिर तो मुझे भी नहीं जाना! वैसे भी आप लोगों के साथ बैठना मुझे अच्छा लगता है! अम्मा, प्रोग्राम कैंसिल! आज यहीं घर पर ही रहेंगे, और गप्पें लड़ाएँगे।” सुनील बैठ गया, “अम्मा, चाय पकौड़े का प्रोग्राम करते हैं, तो!”
“अरे, अब तुम ये क्या ज़िद ले कर बैठ गए! जाओ, काजल को घुमा लाओ न। वो भी मेरे चक्कर में कहीं बाहर नहीं निकल पाती। बेचारी दिन भर घर में ही रह जाती है!”
“तो फिर चलिए न! कुछ नया करेंगे, तो मज़ा आएगा!”
“हाँ दीदी, चलो न!” काजल ने भी मनुहार करी, “एक बार बाहर चले चलेंगे, तो कोई हर्ज़ा नहीं है।”
ऐसे ही कुछ देर मनाने के बाद माँ मान गईं।
“चलो फिर, जल्दी से तैयार हो जाओ दीदी!” काजल ने कहा, “मैं तुम्हारे साथ ही कपड़े चेंज कर लूँ?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“सुनील, तू बाहर हमारा इंतज़ार कर। हम दोनों तैयार हो जाती हैं। उस बीच तू पुचुकी और मिष्टी को भी तैयार कर दे?”
“ठीक है अम्मा!”
तो जब तक काजल और माँ तैयार हुए, तब तक सुनील ने दोनों लड़कियों को भी तैयार कर दिया।
सुनील को मालूम नहीं था, लेकिन कमरे के अंदर काजल के बड़ी देर तक मनुहार के बाद, आज माँ ने थोड़ी रंगीन साड़ी पहनी थी। डैड के जाने के इतने महीनों बाद आज पहली बार उन्होंने फ़ीकी साड़ी के बजाय एक रंगीन साड़ी पहनी थी। उनको बहुत झिझक हो रही थी, और इसलिये उनको बहुत मनाना पड़ा। लेकिन जब वो तैयार हुईं, तो कितनी सुन्दर सी लग रही थीं! जब लतिका और सुनील ने उनको देखा, तो दोनों बस देखते ही रह गए।
“मम्मा,” लतिका बड़े लाड़ से बोली, “आप कितनी सुन्दर लग रही हैं!”
“हाँ!” आभा माँ के पैरों से लिपटती हुई बोली, “खूब सुन्दर!”
आभा वैसे भी लतिका की ‘पूँछ’ थी - जो उसकी दीदी कह दे, वही उसके लिए सत्य होता था। उसको पुचुकी (मतलब लतिका) की बात में हाँ में हाँ मिलाना आवश्यक था।
“आS मेरे बच्चों,” माँ ने दोनों को अपने आलिंगन में समेटते हुए कहा - उनकी जान बसती थी उन दोनों में, “तुम दोनों तो मेरी आँखों के तारे हो! एक मेरा हीरा, और एक मेरा मोती!”
“कौन हीरा है, दादी,” आभा अपने बालपन की सुलभ चंचलता और तोतली सी बोली बोलते हुए कही, “और कौन मोती?”
“मैं हूँ हीरा,” लतिका ने आभा को छेड़ते हुए कहा, “और तुम मोटी!”
लतिका की बात पर आभा के होंठ और गाल फूलने लगे - इसलिए नहीं कि हीरा लतिका है, बल्कि इसलिए कि वो “मोटी” है।
उसको ऐसे करते देख कर लतिका ने उसको अपने आलिंगन में भर लिया और उसका मुँह चूमते हुए बोली, “और मेरा हीरा हो तुम! समझी?”
लतिका की इस बात पर आभा तुरंत ही चहकने लगी।
सुनील दोनों बच्चों की बातों पर मुस्कुराया। ये तो बड़ा ही धर्म संकट में डालने वाला प्रश्न था!
वो कुछ कहता या कि माँ कुछ कहतीं, कि इतने में काजल बोली, “अरे चलो चलो! जल्दी निकलते हैं! रास्ते में बताएँगे कि कौन हीरा है और कौन मोती! अभी मौज मस्ती करते हैं कुछ!”
चूँकि घर के सभी लोग घूमने जा रहे थे, इसलिए मैंने सवेरे अपनी गाड़ी घर पर ही छोड़ दी थी, और खुद ऑटो-रिक्शा ले कर ऑफिस चला गया था। सुनील ने मुझे अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाया था और बताया था कि वो गाड़ी चला लेता है। बढ़िया बात थी। चूँकि दोनों बच्चे चंचल थे, इसलिए काजल पीछे उनके साथ बैठी, कि वो माँ को बहुत परेशान न कर दें। माँ आगे वाली सीट पर थीं। रास्ते में इधर उधर की बातों में दिल्ली के ट्रैफिक का दर्द महसूस नहीं हुआ।
खैर, कनाट प्लेस में एक जगह पार्किंग कर के, चारों पैदल ही घूमने लग गए - उसी बीच में थोड़ी बहुत ख़रीददारी भी हो गई। सब ख़रीददारी के पैसे सुनील ने ही दिए। साड़ियों की एक दुकान में जा कर उसने माँ से और अपनी अम्मा से अपने अपने लिए साड़ी खरीदने का आग्रह किया। लेकिन काजल और माँ में यहाँ पर भी मान मनौव्वल शुरू हो गई,
“देख बेटा, अगर दीदी नहीं लेंगी, तो मुझे भी नहीं चाहिए!”
“अरे काजल, तू क्या ऐसे ज़िद कर रही है। अब कहाँ पहनूँगी मैं ये सब!”
“क्यों क्या हो गया? थोड़ा सा रंगीन कपड़ा पहन लोगी, तो ऐसा क्या हो जाएगा दीदी?”
“अम्मा ठीक ही तो कह रही हैं। वैसे भी मैं आप सभी के लिए कुछ न कुछ लेना चाहता था। इसीलिए तो सभी को बाहर घुमाने लाया हूँ!” सुनील ने विनोदपूर्वक आग्रह किया।
माँ ने उसको विनती वाली नज़रों से देखा।
उत्तर में सुनील ने भी उनको आग्रह करते हुए कहा, “प्लीज!”
सुनील का ये कहना ही था कि माँ ने हथियार डाल दिए, “तुम लोग मेरी सुनते ही नहीं!” उन्होंने कहा तो सही, लेकिन वो केवल एक शांत विरोध था।
काजल ने खिल कर मुस्कुराते हुए कहा, “अरे वाह! सुनील, अब से तो भई तू ही ले जाया कर दीदी को बाहर! तेरे कहने से हर बात मान जाती हैं! मैं और अमर तो बस - समझो घर की मुर्गी दाल बराबर वाली हालत है हमारी!”
सुनील अपनी अम्मा की बात सुन कर मंद मंद हँसने लगा। माँ जाहिर सी बात है, काजल की इस बात पर झेंप गईं। उन्होंने काजल की बात का कमज़ोर विरोध किया, लेकिन काजल की बात में भारी सच्चाई थी। सुनील का कुछ प्रभाव तो था उन पर!
खैर, माँ ने अपने लिए रंग-बिरंगी तो नहीं, लेकिन बेहद हलके लिनन (सन का कपड़ा) की एक हलके गुलाबी रंग की साड़ी पसंद करी। उसमें गोल्ड कलर के बूटे बने थे, और उसी रंग का बॉर्डर, आँचल और ब्लाउज पीस था! सत्य बात तो यह थी कि माँ की पसंद से अधिक, वो सुनील की पसंद थी! और सच में, वो साड़ी पहन कर माँ बहुत ही सुन्दर लगतीं। काजल ने अपने लिए गहरे नीले रंग की रेशमी साड़ी पसंद की। दोनों साड़ियों के लिए खर्च सुनील ने ही किया। उसने अपनी छात्रवृत्ति, विभिन्न इंटेर्नशिप्स, और प्रोजेक्ट्स की कमाई से पैसे बचा कर रखे हुए था - ऐसे ही किसी ख़ास मौके के लिए! यह जान कर दोनों महिलाओं को बहुत ख़ुशी भी मिली और सुनील पर गर्व भी हुआ। लतिका और आभा को फिलहाल कपड़ों का कोई ख़ास शौक नहीं था - उनको तो बस मौज मस्ती ही करने का मन था। लेकिन बच्चों के लिए भी उनकी पसंद के खिलौने लिए सुनील ने।
खरीददारी कर के बाहर निकले तो सड़क के किनारे दो मेहँदी आर्टिस्ट दिख गए।
“मेहँदी लगवाओगी, अम्मा?” सुनील ने काजल से पूछा!
काजल कुछ कहती, उसके पहले ही लतिका ‘हाँ हाँ’ करने लगी और उछलने लगी! उसकी ही देखा-देखी आभा भी ‘हाँ हाँ’ करने लगी। बच्चे बड़े अद्भुत होते हैं! उनमे खुश रहने की एक सहज वृत्ति होती है। वैसे, अच्छी बात यह भी है कि सुनील में एक नैसर्गिक कला है - कोई भी बच्चा उसके संपर्क में आता तो बस उसी का हो कर रह जाता है!
“देख सुनील, आज तो मैं जो जो करूँगी, वो सब कुछ दीदी को भी करना पड़ेगा!” काजल ने बच्चों की भोली भाली बात पर हँसते हुए कहा।
माँ इतने ही समय में बार बार काजल से बहस करने की हालत में नहीं थीं - और वैसे भी हर बार उनको ही हार माननी पड़ रही थी। लिहाज़ा, उन्होंने भी हाथों पर मेहँदी लगवाने के लिए हामी भर दी। अब ऐसे में लतिका और आभा ही क्यों पीछे रह जातीं? तो चारों ने एक साथ ही मेहँदी लगवाई। वो अलग बात है कि सभी को मेहँदी लगवाने के बाद याद आया कि सबसे ज़रूरी बात तो रह ही गई - गोलगप्पे और चाट खाने की! बिना हाथ के खाना कैसे खाएँगे! वैसे भी खाना खाने में अभी देर थी। आभा और लतिका को गोलगप्पे खाने थे। माँ को अवश्य ही इन सब का शौक नहीं था, लेकिन काजल के आग्रह के सामने उनकी एक नहीं चलने वाली थी। इसलिए जैसे ही गोलगप्पों का ज़िक्र शुरू हुआ, सुनील ने एक बढ़िया सी जगह ढूंढ कर चारों को बैठाया और पाँच प्लेट गोलगप्पे आर्डर किए। अब चूँकि चारों ही लड़कियों में से कोई भी अपना हाथ गोलगप्पे या कुछ भी खाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकती थीं, तो सुनील ही सभी के मुँह में बारी बारी से मीठे, चटपटे, मसालेदार मटर से भरे गोलगप्पे खिलाने लगा।
सुनील के हाथों से गोलगप्पे खाते समय माँ शुरू के दो बार तो शरमाईं, लेकिन फिर सहज हो कर वो भी इस अनुभव का आनंद उठाने लगीं। जब गोलगप्पों का एक राउंड हो जाता है, तो अंत में गोलगप्पे वाला एक सूखी वाली मसाला पापड़ी देता है - एक पतली सी पापड़ी पर प्याज, टमाटर और सूखे मसाले छिड़क कर! सुनील ने चुपके से इशारा कर के सभी के लिए खट्टी-मीठी चटनी वाली सूखी पापड़ी बनवाई। सबसे पहले उसने लतिका को पापड़ी खिलाई, फिर काजल को। तीसरे नंबर पर माँ को - लेकिन इस समय वो खट्टी-मीठी चटनी न जाने कैसे ढलक कर माँ के होंठों के कोने से निकल कर बहने लगी। सुनील ने मुस्कुराते हुए अपने अंगूठे के पिछले हिस्से से माँ के होंठ के कोने से चटनी पोंछ कर खुद चाट ली!
उसकी इस हरकत पर काजल हँसने लगी, तो माँ ने उसको कोहनी मार कर चुप रहने को कहा।
फिर आभा का नंबर आया - आभा का मुँह उन सभी में सबसे छोटा था, इसलिए सारी चटनी उसके मुँह के इर्द गिर्द लिपट गई। सुनील ने बड़े दुलार से आभा को अपनी गोदी में उठा कर उसका मुँह चूम लिया और चाट भी लिया - इससे उसके मुँह पर लगी चटनी पुँछ गई। आभा भी इस हरकत पर ज़ोर ज़ोर से खिलखिला कर हँसने लगी।
“ये तो मस्त है,” काजल बोली, “दीदी का मुँह भी ऐसे ही चाट लेता!”
“धत्त!” माँ ने संकोच करते हुए काजल की इस बात पर अपनी आपत्ति जताई, “बत्तमीज़!”
सुनील आभा के गालों को चूम चूम कर बस हँसने लगा। आभा सबकी दुलारी थी - सबकी आँखों का तारा थी। सुनील तो उस पर जैसे अपनी जान छिड़कता था। उधर सबकी नज़र बचा कर लतिका ने सुनील के हिस्से की सूखी पापड़ी खुद निबटा ली, और ऐसा भोला चेहरा बनाया कि किसी को भनक भी न लगे।
“अरे यार दीदी,” काजल ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “मज़ाक कर रही हूँ! टेक इट इजी!”
“इसीलिए कुछ नहीं कह रही हूँ!” माँ ने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा।
हाथों पर मेहँदी कम से कम तीन चार घण्टे तो लगा कर रखना ही पड़ता है, नहीं तो उसका रंग नहीं चढ़ता। जल्दी हाथ धो लो, तो जो पैसे दिए, जो समय गँवाया, वो सब नष्ट! इस कारण से चारों लड़कियाँ अपने हाथ से रात का खाना भी नहीं खा सकीं। इसलिए, रात के खाने पर भी सुनील की ही जिम्मेदारी बनी कि वो सभी को अपने ही हाथों से खिलाए। और उसने बड़ी हँसी ख़ुशी से चारों को खिलाया और खुद भी खाया। हाँ, लेकिन खाना फिर से इधर उधर न गिरने टपकने लगे, इसलिए माँ ने उसको छोटे छोटे कौर ही खिलाने की हिदायद पहले से ही दे दी थी। सबको खिलाने के चक्कर में बहुत समय लगा, और उनको घर आते आते देर भी हो गई। वापस आते समय वो मेरे लिए खाना पैक करवाना नहीं भूला। काजल को आइसक्रीम खाने का मन था, लेकिन सुनील ने कहा कि वो सभी को एक एक कर के आइसक्रीम नहीं खिला पाएगा। इसमें बहुत देर लगेगी, और घर पर भैया (मैं) भूखे बैठे सभी का इंतज़ार कर रहे होंगे! उसकी इस बात पर काजल मन मसोस कर रह गई। लेकिन माँ ने सुझाया कि कहीं रास्ते में ब्रिक्स वाली आइसक्रीम तो ली ही जा सकती है। सभी लोग घर पर ही आराम से, मस्ती करते हुए खा लेंगे। ये बात सभी को जँची।
वापस आते समय पहले की ही भाँति, काजल ने माँ को कार की आगे वाली सीट पर - सुनील के बगल बैठने को कहा। सुनील ने माँ की सीट पर सीट-बेल्ट खुद ही पहनाई। सुनील को अपने इतने करीब महसूस कर के माँ को संकोच हुआ, लेकिन वो क्या करतीं? लेकिन सुनील बड़ी सज्जनता से सीट बेल्ट बाँध रहा था - कुछ इस तरह कि वो माँ को अनुचित तरीके से न छुए। ये काम पूरा होने के बाद वो पीछे भी सभी को सीट-बेल्ट पहनाने वाला था, लेकिन काजल ने कहा कि वैसे भी इतने ट्रैफिक में वो लोग तेज नहीं जा सकते। इसलिए सीट-बेल्ट की कोई आवश्यकता नहीं है।
रात में जब सभी घर वापस आ गए, तब मेरे लिए डाइनिंग टेबल पर खाना सजाया गया। तब तक सभी लड़कियों ने अपने अपने हाथ धो लिए थे। सबने बड़े उत्साह से शाम के अपने अपने अनुभव मेरे साथ शेयर किए। लतिका और आभा तो चिड़ियों की तरह चहक चहक कर शाम के बारे में बता रही थीं, और अपनी मेहंदी मुझे दिखा रही थीं। सबसे अच्छा तब लगा जब माँ भी मुस्कुरा मुस्कुरा कर बता रही थीं कि उनको आज कितना अच्छा लगा!
बढ़िया!
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nice update..!!अंतराल - स्नेहलेप - Update #6
अगली दोपहर :
आज शनिवार था - मेरे ऑफिस में छुट्टी का दिन। कुछ महीने पहले तक मैं शनिवार और रविवार दोनों ही दिन काम करता रहता था, लेकिन अब नहीं। तो उन तीनों की मैटिनी गपशप सभा में मैं भी शामिल हो गया।
वैसे तो जश्न-ए-गपशप मनाने सभी माँ के कमरे में जमा होते थे, लेकिन आज चूँकि अधिक लोग थे, इसलिए हम सभी कॉमन हॉल में बैठे थे। दोनों बच्चे कुछ न कुछ खेलने में व्यस्त थे, और रह रह कर चिल्ल पों मचा रहे थे। अपने परिवार को यूँ साथ में देख कर बहुत सुकून का अनुभव हो रहा था मुझको। कुछ शुरुआती बातों के बाद, हमारी चर्चा जल्द ही रिलेशनशिप और शादी के विषय पर आ कर रुक गई। काजल और माँ मेरे सामने इसकी बातें नहीं करते थे, क्योंकि मेरे लिए यह थोड़ा दुःख साधक विषय था! हाँलाकि अब मैं पहले की भांति प्रतिक्रिया नहीं देता था, लेकिन फिर भी, इस विषय को मेरे सामने अवॉयड ही किया जाता था।
लेकिन आज इस पर खुले आम चर्चा हो रही थी। और मज़े की बात यह थी कि इस चर्चा में मैं बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा था।
“सुनील,” मैंने उसको छेड़ते हुए कहा, “यार, अब तो तुम साढ़े पाँच लाख रुपया कमाने जा रहे हो! तो भई, उसको खर्च करने वाली भी तो चाहिए न?”
[सुधी पाठक इस बात का संज्ञान लें, कि उस समय का साढ़े पाँच लाख, आज के बीस लाख के बराबर है - केवल इन्फ्लेशन एडजस्ट कर के! आज भी ढेरों आईआईटी स्नातकों को इतनी सैलरी नहीं मिलती!]
“क्या भैया?!” सुनील थोड़ा शर्मिंदा होते हुए बोला।
“अरे, सुनो तो पूरी बात! तुम्हारा खर्चा तो लाख - दो लाख में निकल जायेगा। फिर बचे हुए पैसों का क्या करोगे?”
“क्या करेगा,” माँ ने कहा, “सेव करेगा न! अपने बच्चों के लिए। अपने लिए!”
“हाँ - लेकिन बच्चों से पहले बीवी भी तो चाहिए न माँ?” मैं विनोद के मूड में था, “हवा से थोड़े न टपकेंगे बच्चे!”
मेरी बात पर काजल ठठा कर हँसने लगी। उधर सुनील और भी अधिक शर्माने लगा।
“अभी तो इतना शर्मा रहा है... और हम दोनों को दिन भर लंबे लम्बे किस्से सुनाता रहता है!” काजल ने कहा।
“अरे, ऐसा है क्या? तो कोई है नज़र में?” मैंने उसे चिढ़ाया।
सुनील मुस्कुराया। उसने न तो इकरार किया, और न ही इनकार किया! बल्कि उसने आगे जो कहा, उसने पूरी चर्चा को एक अलग ही दिशा दे दी,
“भैया, हम सब... मेरा मतलब है कि हम चारों को शादी कर लेनी चाहिए।”
उसके कहने का अंदाज़ ऐसा था कि हम सभी एक पल के लिए खामोश हो गए, “आपको भी...” [उसने मेरी ओर इशारा किया], “आपको भी...” [उसने माँ की ओर इशारा किया], “... और अम्मा तुमको भी!”
माँ चुप रही, साथ ही मैं भी। गैबी, देवयानी, और डैड की याद बिजली की रफ़्तार से दिमाग में कौंध गई।
“अरे,” काजल ने मजाकिया अंदाज में कहा, “अब मुझे इस बात में घसीट रहे हो! हम तो तेरे बारे में बात कर रहे थे न! उसका जवाब दे पहले! बात को मत पलट!”
“और हाँ,” मैंने जैसे तैसे दुःख का कड़वा घूँट पी कर, विनोदपूर्वक कहा, “यह मत भूलो, कि हम सभी शादी-शुदा ज़िन्दगी का आनंद ले चुके हैं! अब तो तुम्हारी बारी है भई!”
“ऐसा नहीं है भैया! हाँ आपकी ठीक है! लेकिन हम सभी को खुश रहने का हक़ है!”
“अरे हमारे बच्चे खुश रहें, तो हम भी हैं!” काजल बात को सम्हालते हुए बोली!
“हाँ न! अब बताओ, तुम किस तरह की लड़की से शादी करना चाहोगे?” मैं खुश था कि काजल ने सही समय पर बात सम्हाल ली थी - डर था कि माँ को फिर से डिप्रेशन न महसूस होने लगे, “बताओगे, तो वैसी ही लड़की ढूंढनी पड़ेगी न?”
“क्या भैया!”
“अरे! तुम इसको मज़ाक में मत लो। ऑफिस में बड़ी अच्छी अच्छी, और सुन्दर सुन्दर लड़कियाँ हैं। कोई सही लगी तो बात करते हैं!”
सुनील बोला, “हाँ - अच्छी लड़कियाँ तो हैं, भैया। लेकिन उनमें से कोई नहीं!”
“अच्छा जी! मतलब कुछ सोचा तो हुआ है आपने। अरे बताओ बताओ!”
“हा हा हा! हाँ भैया, कुछ थॉट्स तो हैं!”
मैंने खुश होते हुए कहा, “हाँ, तो बताओ न!”
“अच्छा... सबसे पहली बात तो यह कि मुझे कोई बचकानी टाइप की लड़की नहीं चाहिए... चंचल होना अच्छी बात है, लेकिन थोड़ी गंभीर होनी चाहिए! गंभीर मतलब - सीरियस नहीं। चुपचाप रहने वाली नहीं, हँसती खेलती हो, चंचल हो - लेकिन उसके विचारों में गंभीरता होनी चाहिए! ठहराव होना चाहिए। इस बात की समझ होनी चाहिए कि शादी ब्याह कोई खेल नहीं है, बल्कि एक सीरियस कमिटमेंट है! तो ये है सबसे पहली बात! थोड़ी ज़िम्मेदार हो... शालीन हो... सौम्य हो! घरेलू टाइप की हो! कोई ऐसी, जो मुझे मन से प्यार करे... और दृढ़ चट्टान के जैसे मेरे हर सुख दुःख में मेरे साथ खड़ी हो!”
“हम्म्म,” उसकी बातें मुझे अच्छी लगीं, “घरेलू क्यों?”
“भैया, मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं!” उसने जब यह बात कही, तब मैं उसकी आँखों में वात्सल्य की चमक साफ़ देख सका, “और मैं चाहता हूँ कि जब हमारे बच्चे हों, तब मेरी बीवी उनका ठीक से ध्यान रख सके! उनको अपने सारे गुण सिखाए। बाहर काम करेगी, तो फिर वो पॉसिबल नहीं है न!”
“लेकिन बच्चे पालने की तुम्हारी भी तो ज़िम्मेदारी है?” काजल बोली।
“बिलकुल है अम्मा! और मैंने कब उस ज़िम्मेदारी को निभाने से मना किया?” सुनील बोला, “मैं बिलकुल उसको सपोर्ट करूँगा। घर का काम करूँगा। खाना पकाना मैं देख लूँगा!”
“हा हा हा!” मैं हँसने लगा, “यार, तुमने तो पूरा प्लान कर रखा है!”
“हा हा हा हा! भैया - आपने इतना ज़ोर दिया, इसलिए मैंने कह दिया। मुझको तो ऐसी ही लड़की चाहिए। नौकरी करना चाहे, तो किसी स्कूल कॉलेज में करे! कम से कम बच्चे तो उसी के साथ रहेंगे!”
“हम्म्म!” मैंने कहा, “यार यह सब तो मैंने कभी सोचा ही नहीं!”
और सच में मैंने यह सब सोचा नहीं। गैबी और डेवी दोनों ही करियर वीमेन थीं। उनसे होने वाली संतान हमारे प्रेम का द्योतक थीं। हम बच्चे चाहते थे, लेकिन बच्चों के लिए हमने प्रेम / शादी नहीं करी थी। इस तरह से मेरे और सुनील के बीच में अंतर था। लेकिन यह बात भी सच है कि सुनील की कोई प्रेमिका नहीं थी - या फिर थी? मुझे नहीं मालूम। पूछना पड़ेगा।
सुनील बोल रहा था, “तो मेरे लिए आइडियल लड़की वो है, तो मेरे बच्चों के लिए एक अच्छी माँ बने - जैसे आप [उसने माँ की तरफ संकेत दिया] और आप [उसने काजल की तरफ संकेत दिया] हैं।”
मैंने हँसते हुए कहा, “अच्छा... तो सुनील, तुमने तो भई अपने बच्चों के लिए भी पूरा प्लान कर रखा है... ठीक है! अच्छी बात है! लेकिन यार, इस बात से मुझे अंदेशा हो रहा है कि तुम्हारे मन में कोई तो है! लेकिन कौन, वो समझ नहीं आ रहा! गर्ल फ्रेंड है? या फिर कोई लड़की देख रखी है?”
मेरी बात पर सुनील मुस्कुराया।
काजल ने यह देखा।
“है क्या कोई मन में?” काजल मातृ-सुलभ उत्साह से बोली।
सुनील फिर से केवल मुस्कुराया।
“है? अरे नालायक, तो इतनी पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है? जल्दी से उसका नाम और पता बता दे न! मैं आज ही उसके पेरेंट्स से बात कर लेंगे!” काजल ने बड़े उत्साह से कहा।
“अरे अम्मा!” सुनील झिझकते हुए बोला, “रुक तो जाओ थोड़ा!”
काजल खुश होते हुए बोली, “यह सब भी छुपा कर रखेगा, तो कैसे चलेगा? अच्छा, कम से कम मेरी होने वाली बहू का नाम तो बता दे!”
“अम्मा... थोड़ा रुक तो जाओ! कम से कम पहले मुझे तो उसको बता लेने दो!”
“है राम, तो क्या तूने अभी तक उसको बताया भी नहीं?”
“नहीं... लेकिन मैं उसे जल्दी ही बता दूँगा!”
“ये लो, हमको ख्वाब दिखा कर, खुद ही उस पर पानी फेर दिया!”
सुनील मुस्कुराया।
“अच्छा, रहती कहाँ है?”
“यहीं, दिल्ली में!”
“बढ़िया है फिर - कॉलेज में साथ थी?”
“अम्मा!” सुनील ने परेशान होते हुए कहा।
“अच्छा ठीक है बाबा! माँ हूँ न, इसलिए खुद पर काबू नहीं कर पाती!” काजल ने हाथ झाड़ते हुए कहा, “अपने बेटे बेटी का घर बसते हुए देखना तो एक माँ का सबसे बड़ा सपना होता है!”
“ये बात सही कही काजल,” बहुत देर के बाद माँ कुछ बोलीं, “उसी में हमारा सबसे बड़ा सुख है!”
“हाँ न दीदी!” काजल सुनील से मांडवली करते हुए बोली, “अच्छा दिल्ली में रहती है, वो मालूम हो गया। नाम तू बता नहीं रहा। ये तो बता दे, कैसी दिखती है?”
सुनील मुस्कुराया, “बहुत सुंदर है अम्मा... मेरा उसका कोई साथ नहीं बैठता!”
“अरे, तो क्या इसलिए उसको नहीं बोला अभी तक?”
“सुनील बेटा,” माँ बोलीं, “अभी तक तुमने जितना बताया - अगर वो लड़की उतनी ही सौम्य और गंभीर है न, तो उसको तुम्हारे गुण ज़रूर पसंद आएँगे। अपने को किसी से कम न समझना! तुम हीरा हो हमारे। हमारे परिवार का गौरव हो!”
सुनील शर्म से मुस्कुराया।
“सुना तूने?” काजल बोली, “तो यह झिझक छोड़ दे। और कह दे उसको अपने दिल की बात!”
“हाँ भई!” मैंने भी अपना मंतव्य रखा, “बिना कहे तो कुछ नहीं होना। और यह कोई मुश्किल काम भी नहीं है। अगर सच्चा प्रेम करते हो, तो डरना मत। सच्चे प्रेम में आदर होता है। अगर वो न भी मानी, तो भी तुमको कम से कम एक अच्छी दोस्त तो मिल जाएगी!”
“पता नहीं भैया!”
“क्यों?”
“भैया, कह तो दूँ... पर इस बात का डर है... कि कहीं आपकी बात सच न हुई तो क्या होगा?”
“अरे, ऐसे कैसे?”
“भैया, कहीं ऐसा न हो जाए कि जो दोस्ती अभी है, वो ही न टूट जाए!”
“हम्म! ऑल ऑर नथिंग? हाँ, पॉसिबल तो है!” मैंने कहा, “लेकिन तुम्हारे दिल का बोझ तो कम हो जाएगा न!”
“अच्छा एक काम कर ले न,” काजल बोली, “क्यों न हम तीनों जा कर, उसके माँ बाप से बात कर लें?”
“नहीं काजल,” मैंने कहा, “इसने प्यार किया है, तो कहने की हिम्मत तो होनी ही चाहिए! ऐसे चोरी छुपे उस लड़की का ‘अपहरण’ नहीं करेंगे हम!”
“चोरी छिपे कहाँ? हमेशा से माँ बाप ही तो रिश्ते की बातें करते आए हैं!”
“हाँ, लेकिन इसकी बात अलग है!”
“हम्म्म! मानती हूँ तुम्हारी बात!” काजल बोली, फिर थोड़ा रुक कर, “अच्छा बेटा... तू हमको सच सच बता... तू ‘अपनी वाली’ को कितना चाहता है?”
“बहुत चाहता हूँ अम्मा... बहुत... शायद... उसके जैसी लड़की मुझे फिर कभी न मिले... वो मिल गई, तो लाइफ कम्पलीट हो जाएगी...”
“इतनी अच्छी है?”
सुनील धीर गंभीर बना, चुप बैठा रहता है!
“तो बेटा, ऐसी लड़की को पाने के लिए थोड़ी हिम्मत तो करनी पड़ेगी! तेरे भैया सही कह रहे हैं। तू कम से कम एक बार तो उससे अपने दिल का हाल कह! फिर अगर हमारी ज़रुरत पड़ी, तब हम ज़रूर सामने आएँगे!”
“थैंक्यू अम्मा...” सुनील ने बड़े आभार से कहा।
“अच्छा, तो तू इतना बड़ा हो गया कि अपनी अम्मा को थैंक्यू बोलता है...”
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nice update..!!अंतराल - स्नेहलेप - Update #7
इतवार :
प्राकृतिक दुःखों की बात छोड़ दें, तो मुझे अक्सर अन्य लोगों ने बताया है कि आपकी फैमिली तो सूरज बाड़जात्या की पिक्चरों जैसी है - हँसती, खेलती, मुस्कुराती। उसका कारण है। परिवार स्नेही हो, उसके सभी सदस्य सरल और सच्चे हों, और मिथ्याभिमानी न हों, तो ऐसे परिवार में बड़ा आनंद आता है। अहोभाग्य मेरे, कि मेरा परिवार ऐसा ही है। और जो भी अभी तक हमसे आत्मीय सम्बन्ध बना सका, सभी ऐसे ही हैं। इस बात से मुझे अक्सर ही आश्चर्य भी होता है!
खैर, शनिवार से ही दोनों बच्चे कह रहे थे कि इतवार के लिए कोई स्पेशल प्लान करें - जैसे कहीं बाहर घूम आएँ या नहीं तो कहीं मूवी देखने चलें। तो घूमने के लिए मैंने कहा कि चूँकि दोनों के स्कूल गर्मियों के लिए बस बंद होने ही वाले हैं, तो थोड़ा इंतज़ार कर लें। हाँ, मूवी के लिए ज़रूर जाया जा सकता है। बात शुरू हुई कि बच्चों के लिए क्या फ़िल्में लगी हैं, लेकिन सच में, घर और बाहर हर जगह केवल बच्चों की ही फ़िल्में, और उनके ही प्रोग्राम देख कर दिमाग थोड़ा तो पकने ही लगता है। इसलिए निर्णय हुआ कि एक नई रिलीज़्ड फ़िल्म देखने चलेंगे।
फिल्म कुछ इस प्रकार थी कि फिल्म में दो नायक हैं - एक को फिल्म की नायिका से बड़ा प्रेम है, लेकिन वो उसको बता नहीं पाता। लिहाज़ा, नायिका दूसरे नायक से शादी करने को होती है। शादी से एक दो दिन पहले ही नायिका समझती है कि वो पहले नायक से ही पूरे जीवन भर प्यार करती आई थी, लेकिन उसने कभी इस बात को नहीं समझा, और पहले नायक बस अपने सबसे अच्छे दोस्त के रूप में ही माना। दूसरे नायक का इस बात पर दिल टूट जाता है। खैर, अंत में दोनों में दोनों एक दूसरे के लिए अपने प्रेम की भावना व्यक्त कर ही देते हैं। फिल्म की पटकथा, नायक, और फ़िल्म तीनों ही चौपट थे, लेकिन चूँकि परिवार साथ था, इसलिए फिल्म खराब नहीं लगी। हाँ, वो अलग बात है कि पुचुकी और मिष्टी, दोनों ही फिल्म शुरू होने के आधे घण्टे बाद ही गहरी नींद सो गए। अच्छी बात थी - कम से कम दो घण्टे दोनों आराम से तो रहे। घर जा कर धमाचौकड़ी मचाने की एनर्जी दोनों की बनी रही।
काजल की ही ज़ोर जबरदस्ती पर वापस आ कर हमने घर में ही तहरी और रायता खाया। यह सामान्य सा भोजन भी बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही छोटी छोटी बातों का आनंद लेते हुए सप्ताहांत समाप्त हो गया!
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अगला दिन - सोमवार :
सुनील लतिका और आभा को उनके स्कूल से ले कर घर आता है। आभा रोज़ की ही तरह सुनील के गोदी में चढ़ी हुई थी, और लतिका अपने नाम के ही अनुसार सुनील से लिपटी हुई थी।
रोज़ की बात थी यह - दोनों बच्चे अपने दादा की संगत में खुश रहने लगे थे। और मुझे इस बात का मलाल बना रहता कि पाँच सप्ताह में वो मुंबई चला जाएगा अपनी जॉब पर, तब काजल का, इन दोनों बच्चों का, और माँ का क्या होगा। इतने कम समय में अपने लिए मोह को पाल पोस कर बड़ा कर के, यूँ चले जाना - कैसी निष्ठुरता है! मेरा भी मन होता कि उसको रोक लूँ! लेकिन उसके मतलब की नौकरी यहाँ दिल्ली में अभी तक नहीं थी। हाँ - एक बात संभव थी कि अगर मैं ही सपरिवार मुंबई शिफ़्ट हो जाता, तो सुनील भी पास ही रहता। लेकिन ऐसे जल्दबाज़ी में, इतना बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता। मेरा काम जम तो गया था, लेकिन इतना पक्का नहीं था कि बिना किसी सक्रीय नेतृत्व के चलता रहता। खैर!
माँ और काजल, दोनों ही देखती हैं कि अन्य दिनों के अपेक्षा आज लतिका खूब मुस्कुरा रही होती है, चहक रही होती है। स्कूल की क़ैद से घर की आज़ादी में आने पर बच्चों को तो स्वाभाविक रूप से ख़ुशी होती ही है, लेकिन आज कुछ ख़ास बात लग रही थी।
“बताओ न दादा, प्लीईईज़!” लतिका बार बार सुनील से कुछ बताने को कह रही थी।
“हा हा हा! अरे बाबा! बताता हूँ... बताता हूँ! पहले हाथ मुँह तो धो लो!” सुनील मुस्कुराते हुए कहता है।
सुनील की बात पर लतिका भाग कर बाथरूम में जाती है। सुनील रोज़ की ही भाँति दोनों बच्चों के घर के कपड़े ले आता है। पिछले कुछ दिनों से दोनों बच्चों की कई सारी ज़िम्मेदारियाँ उसने अपने कंधे पर उठा ली थीं। अद्भुत था सुनील का धैर्य! दो दो बच्चों को सम्हालना, और वो भी उसकी उम्र में, कठिन काम है! आभा अभी भी अपनी देखभाल करने में आत्मनिर्भर नहीं हुई थी, इसलिए सुनील एक मग में पानी ला कर उसके हाथ मुँह धो देता है और उसके कपड़े उतार कर उसके शरीर को भी गीले कपड़े से पोंछ देता है। उनको घमौरी न हो जाए, इसलिए वो बच्चों को घमौरी से बचाने का पाउडर भी लगा देता है। गर्मी और धूप में बाहर खेलने, और पानी पीना भूल जाने से बच्चों को अक्सर घमौरी हो जाती है। सुनील को इस बात का ध्यान था, इसलिए वो वैसी नौबत ही नहीं आने देना चाहता था।
जब तक लतिका वापस आती, तब तक सुनील ने आभा के शरीर पर पाउडर लगा दिया। पाउडर की सफेदी उसके पूरे शरीर पर लिपटी हुई थी, और सुनील उसको ‘नागा बाबा’ ‘नागा बाबा’ कह कर छेड़ रहा था, और आभा इस छेड़खानी पर खिलखिला कर हँस रही थी। उसको यूँ देख कर काजल भी हँस दी, लेकिन उसने सुनील को कहा कि पाउडर से नहलाना नहीं है। बस, लगा देना है कि स्किन को राहत रहे। वहाँ से छुट्टी पा कर आभा काजल की गोदी में बैठ कर स्तनपान करने लगती है।
उधर लतिका न जाने किस उत्साह से जल्दी से हाथ मुँह धो कर सुनील के पास वापस आती है और उसकी गोदी में कूद कर बैठ जाती है।
“अब बताओ, जल्दी जल्दी!” वो चहकते हुए बोली।
सुनील लतिका की इस हरकत पर बहुत हँसता है, और उसको अपनी गोदी में बैठा कर, उसके स्कूल के कपड़े उतारते उतारते, उसके कान में दबी आवाज़ में कुछ बातें करता है। दोनों भाई बहन के चेहरों के भाव अनोखे रूप से चढ़ और उतर रहे थे। सुनील के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उसको अपना कोई राज़दार मिल गया हो, और लतिका के चेहरे पर आश्चर्य, ख़ुशी, और अविश्वास के भाव थे।
“क्या सच में दादा?” किसी बात पर अचानक ही लतिका तेजी से बोल पड़ी।
“शह्ह्ह्ह!” सुनील ने उसको चुप रहने को कहा, “अरे धीरे धीरे!”
“ओ माय गॉड! हा हा हा!” लेकिन लतिका की ख़ुशी देखते ही बन रही थी, “वाओ वाओ!”
“अरे शांत शांत! तू सब गुड़ गोबर कर देगी!” सुनील ने लतिका की चड्ढी उतारते हुए शिकायत करी।
“नहीं दादा! बट, आई ऍम सो सो मच हैप्पी!” लतिका नंगू पंगू हो कर, सुनील के कन्धों को पकड़ कर उसके सामने उछलते कूदते हुए बोली।
सच में - बच्ची बड़ी हो रही थी, लेकिन उसका बचपना नहीं जा रहा था। और हम में से किसी का मन नहीं था कि पुचुकी या मिष्टी, दोनों का ही बचपना चला जाए! कम से कम मैं तो यही चाहता था कि जब तक संभव है, दोनों ऐसे ही स्वच्छंद बन कर हमारे स्नेह का सुख भोगें!
“थैंक यू बेटा!” सुनील ने बड़े स्नेह से, बड़े सौम्य तरीके से कहा।
“आई ऍम सच में वैरी हैप्पी, दादा!” कह कर लतिका सुनील से लिपट गई, “ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो!”
उधर माँ और काजल, भाई बहन के इस वार्तालाप को दूर से देख कर मुस्कुराए बिना न रह सकीं।
“सुनील कितना जेंटल तरीके से बिहैव करता है न बच्चों के साथ?” उन्होंने काजल से कहा।
“हाँ न दीदी! बहुत जेंटल! बहुत अफ़ेक्शनेट! और कितना पेशेंस भी है उसको! बिलकुल डैडी मैटीरियल है वो!” काजल ने गर्व से कहा।
गर्व वाली बात तो थी ही। न केवल उसके बेटे में अनेकों गुण थे, वो अच्छा पढ़ा लिखा, और अपने पैरों पर खड़ा हुआ था, बल्कि एक बेहद बढ़िया इंसान भी था।
“हा हा हा हा!” माँ इस बात पर दिल खोल कर हँसने लगीं, “हाँ काजल! बात तो सही है! डैडी मैटेरियल तो है वो! बच्चों से बहुत प्यार है सुनील को! इसके बच्चे बहुत लकी होंगे - ऐसे प्यार करने वाले पापा को पा कर!”
“है न? ये लड़का जल्दी से शादी कर ले बस!” काजल ने खुश होते हुए कहा, “इसका घर बस जाए और मैं जल्दी से अपने पोते पोतियों के मुँह देख लूँ! बस, समझो गंगा नहाऊँ!”
“तुम भी न काजल - क्या जल्दी जल्दी लगाए बैठी हो!”
“अरे दीदी, देर करने से क्या फायदा? हम सभी ने शादी की ऐज होते ही शादी कर ली थी! अब ये भी तो इक्कीस का हो ही गया है न! और फिर इसको कोई लड़की भी तो पसंद है न! इसको भी कर लेनी चाहिए।” काजल उत्साह से बोली, “बहू आ जाए, फिर हमको भी सुख मिले थोड़ा! लाइफ में थोड़ा अपग्रेड तो मुझे भी चाहिए!”
“हा हा! हाँ! वो बात तो है! अगर उसको अपनी पसंद की लड़की मिल जाय, तो शादी कर ही लेनी चाहिए! ख़ुशी लम्बी रहे, तो क्या ही आनंद! देर से शादी करने से क्या फायदा?”
माँ ने देखा कि सुनील लतिका को पाउडर लगा रहा है। उसे दोनों बच्चों की इस तरह से देखभाल करते देख कर माँ को बहुत अच्छा लगा। सुनील का आचरण उनको हमेशा से ही अच्छा लगता था। सवेरे बाहर जाने में और एक्सरसाइज करने में अब उनको कितना अच्छा लगता है! सुरक्षित भी! वरना दिल्ली का हाल तो... और वो सभी को कितना हँसाता भी है।
‘कितना जेंटल है सुनील, और कितना अफ़ेक्शनेट भी! सुनील और लतिका दोनों कितने अच्छे बच्चे हैं!’
“हाँ न! शुभ कामों में देर नहीं करनी चाहिए।”
“सही बात है!” माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, “लेकिन एक बात तो है काजल, बच्चे तो बच्चे - जो लड़की सुनील को मिलेगी न, वो भी बहुत लकी होगी! कितना जेंटल है, कितना अफ़ेक्शनेट!” माँ के मन की बात उनकी ज़ुबाँ पर आ ही गई।
“हाँ! और हो भी क्यों न? मेरा बेटा है ही ऐसा - लाखों में एक!”
“हाँ, सच में!” माँ मुस्कुराईं, “लाखों में एक तो है!”
कुछ देर के बाद लतिका सुनील की गोद से उठ कर माँ के पास आ गई, और उनके पीछे से उनके गले में बाहें डाल कर झूल गई।
“क्या बातें हो रही थीं दादा से?” माँ ने उससे मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा, “बड़ा हँसी आ रही थी आपको!”
“ओह मम्मा! आई ऍम सो हैप्पी!”
“हाँ वो तो दिख ही रहा है! लेकिन किस बात पर?”
लतिका ने माँ के गालों को कई बार चूमते हुए कहा, “नो मम्मा, मैं आपको अभी बता नहीं सकती!” लतिका ने बड़े लाड़ से, बच्चों जैसी चंचलता से इठलाते हुए कहा, “मैंने दादा को प्रॉमिस किया है न! अभी ये बात सीक्रेट है। लेकिन मैं सच में बहोत, बहोत, बहोत खुश हूँ!” लतिका ने बड़े नाटकीय, लेकिन भोले अंदाज़ में अपनी बात कह दी, “एंड मम्मा, आई लव यू सो मच! मच मच मोर!”
“अरे भई - अपनी मम्मा पर इतना प्यार, लेकिन उनको उस प्यार का रीज़न भी नहीं बताओगी?”
“प्यार तो आपको मैं हमेशा से ही खूब करती हूँ, लेकिन आज से और भी अधिक करूँगी! खूब अधिक!”
“अच्छा?” माँ ने मुस्कुराते हुए बड़े दुलार से कहा, “अरे हमको भी बताओ! ऐसा क्या हो गया?”
“आल इन गुड टाइम, मम्मा! आल इन गुड टाइम!” लतिका ने बड़ों के, सयानों के अंदाज़ में कहा।
“हाँ, ठीक है ठीक है! रखे रहो अपने सीक्रेट्स!”
“कभी कभी सरप्राइज भी अच्छा होता है मम्मा!” लतिका ने कहा और फिर से माँ के दोनों गालों को चूम कर, वो उनकी गोदी में आ गई।
“हम्म! अच्छा दादी अम्मा!” माँ ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “देखेंगे आप दोनों का सीक्रेट! अच्छा चलो, अपनी डायरी तो दिखाओ। आज का होमवर्क देख लें?”
“क्या मम्मा! आप भी न स्पॉइल स्पोर्ट हो रही हैं! मैं इतनी खुश हूँ, और आपको डायरी देखनी है! टू वीक्स में मेरी समर हॉलीडेज शुरू हो रही हैं! अब क्या होमवर्क!”
“ओ दादी माँ! पढ़ाई लिखाई में नो मस्ती!” माँ ने प्यार से उसके गालों को खींचते हुए कहा, “अंडरस्टुड?”
“यस मम्मा! बट आई नीड माय डेली दूधू फर्स्ट!” पुचुकी ने कहा, और माँ के ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
“हा हा हा हा!”
माँ की ब्लाउज के दोनों पट जब अलग हुए, तो वो उनके आँचल के अंदर छुप कर उनके स्तन से जा लगी!
“मम्मा?” माँ के स्तन पीते हुए उसने पूछा।
“हाँ बेटा?”
“जब आपको दूधू आएगा, तो आप मुझे पिलाओगी?”
“अले मेला बच्चा,” माँ ने लतिका को लाड़ करते हुए कहा, “तुझे नहीं तो और किसको पिलाऊँगी मेरी बेटू?” माँ ने लतिका पर लाड़ बरसाते हुए कहा, “तू ही तो मेरी बिटिया रानी है!”
“थैंक यू सो मच मम्मा! लेकिन मैं ज्यादा नहीं पियूँगी। सो दैट आपके बच्चे भूखे न रह जाएँ!”
“मेरे बच्चे?” माँ ने चौंकते हुए कहा।
“हाँ! बिना आपके बच्चे हुए आपके ब्रेस्ट्स में दूधू कैसे आएगा?”
“क्या?” माँ को विश्वास ही नहीं हुआ कि उनकी पुचुकी इतना कुछ जानती है, “हा हा हा हा! दादी माँ! आपकी नॉलेज तो बहुत बढ़ती जा रही है!” माँ ने लतिका का एक गाल प्यार से खींचते हुए कहा।
काजल माँ की बात पर हँसने लगी। उसका दूध पीती आभा को समझ नहीं आया कि जोक क्या था।
“क्या मैंने कुछ रांग बोला, मम्मा?”
“नहीं बेटू, कुछ भी रांग नहीं बोला! यू आर राइट, टू बी ऑनेस्ट! लेकिन मुझको बच्चे क्यों होंगे मेरी बेटू?”
“अरे, आपकी शादी होगी, तो आपके बच्चे भी तो होंगे!”
“मेरी शादी?”
“हाँ बेटा,” उधर काजल अपनी बेटी की बात सुन कर, बड़े विनोदपूर्वक बोली, “बात तो तुम्हारी बिलकुल सही है! तुम्हारी मम्मा की शादी का इंतजाम करना चाहिए जल्दी ही!”
माँ ने इस बात पर कुछ कहा नहीं।
कोई दस मिनट बाद जब उसका पेट (?) भर गया, तब वो माँ की गोदी से उठी, और काजल के स्तनों में जो दूध बचा हुआ था, उसको पी कर, अपनी पुस्तकें लेती आई। फिर माँ लतिका को पढ़ाने में व्यस्त हो गईं और काजल घर के बाकी के कामों में। सुनील तो कब का अपने कमरे में जा चुका था।
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nice update..!!अंतराल - स्नेहलेप - Update #8
अगले दिन :
सप्ताहांत में जैसा मज़ा किया था सभी ने, उसके बाद माँ, काजल, और सुनील का मैटिनी गपशप वाला सेशन थोड़ा सा फीका हो गया। आज वैसे भी थोड़ी अधिक गर्मी थी, इसलिए सभी को आलस्य भी बहुत आ रहा था। माँ न्यूज़पेपर में ख़बरें पढ़ पढ़ कर दोनों को सुना रही थीं, और सभी उन ख़बरों पर ही चर्चा कर रहे थे।
“दीदी,” काजल ने अचानक ही कहा, “आज क्या पका दूँ?”
“अरे यार, इतनी गर्मी है!” माँ बोलीं, “तुम भी थोड़ी राहत पाओ! आज लंच मैं तैयार करती हूँ!”
“अरे, मेरे रहते हुए तुम क्यों करोगी?”
“क्यों? मैं कोई रानी हूँ क्या?”
“रानी नहीं, तो मालकिन तो हो!”
“थप्पड़ मारूँगी तुझे, अगर ऐसा फिर कभी बोली तो!” माँ ने काजल को धमकाया - वो अलग बात थी कि काजल पर कोई असर नहीं पड़ा, “इस घर का दिल हो तुम! तुम ही मालकिन भी। हम सभी तुम्हारे सहारे ज़िंदा हैं। समझी?”
सुनील माँ की बात पर मुस्कुराया। यह बात कितनी सही भी तो थी।
“अरे दीदी, तुम ऐसे इमोशनल मत हो जाओ! मज़ाक करती रहती हूँ न मैं तो!” काजल माँ को अपने आलिंगन में भरते हुए बोली, “अच्छा चलो! हम दोनों कर देते हैं।”
“हाँ, ठीक है! लेकिन क्या करें?”
“इतनी गर्मी में गरम गरम नहीं खाएँगे।” फिर कुछ सोच कर, “सलाद बना लेते हैं। तरबूज़ है, और वो चीज़ भी - तो उसका सलाद बन जाएगा। और, बेल का शरबत? और वेजिटेबल सैंडविच?”
“हम्म्म इंटरेस्टिंग!” माँ ने मज़ाक करते हुए कहा, “आज तो ठाठ हैं सभी के! कॉन्टिनेंटल लंच! हा हा हा!”
“हाँ न, अब क्या रोज़ रोज़ वही खाना पकाना?”
“ठीक है!”
कह कर काजल और माँ दोनों उठीं, और रसोई की तरफ़ चल दीं। काम कम था, और दो जने थे पकाने वाले, इसलिए अन्य दिनों की अपेक्षा आज लंच पकाने से जल्दी ही छुट्टी मिल गई। काजल नहाने चली गई, और माँ अपने कमरे में। सुनील अभी भी वहीं था, और कोई मैगज़ीन पढ़ रहा था।
माँ आ कर अपने बिस्तर पर लेट गईं - करवट में, और अपने सर को अपने हाथ पर टिकाए हुए। कुछ देर दोनों ने कुछ नहीं कहा। यह चुप्पी सुनील ने ही तोड़ी,
“आपसे एक बात पूछूँ? आप बुरा तो नहीं मानेंगी?”
“हाँ? बोलो न? बुरा नहीं मानूँगी!”
“आप... आप शादी क्यों नहीं कर लेतीं?”
“ओह्हो! अब तुम भी शुरू हो गए? क्या हो गया है? सभी आज कल यही बात बोल रहे हैं!”
“मैंने क्या कर दिया?!”
“काजल, अमर दोनों मेरे पीछे ही पड़ गए हैं। हर हफ़्ते उन दोनों के मुँह से यह सवाल सुन लेती हूँ। और अब तुम भी!”
“उन दोनों के बारे में नहीं पता। मैं तो बस क्यूरिऑसिटी के कारण पूछ रहा था।” सुनील रक्षात्मक होते हुए बोला, “आई ऍम रियली वैरी सॉरी, अगर मेरे कारण आपको दुःख पहुँचा! मेरा वो इंटेंशन नहीं था।”
“आई नो! एंड डोंट से सॉरी!”
“लेकिन सच में - आप शादी क्यों नहीं करना चाहतीं?”
“इट इस टू कॉम्प्लिकेटेड!”
“आई हैव अ लॉट ऑफ़ टाइम इन माय हैंड्स ऐट प्रेजेंट!” वो मुस्कुराते हुए बोला, “सो इफ यू वांट, यू कैन लेट मी नो!”
“सुनील, तुम अभी बहुत छोटे हो। हमारा समाज बहुत काम्प्लेक्स है, और उसमें औरतों की हालत दयनीय है। मर्दों का चल जाता है। लेकिन औरतों को छूट नहीं है ऐसी बातों की। हम - हमारी फ़ैमिली जिस तरह रहती है, वो नॉर्म नहीं है - बल्कि एक ऐबरेशन (अपवाद) है। इतना तो तुम भी समझते होंगे। और जहाँ तक मेरी बात है, अब मैं दादी माँ हूँ। मुझको यह सब करना शोभा नहीं देता। कौन सी दादी तुमने देखी है, जो शादी करती है - या जिसने शादी करी है?”
“आप दादी हैं - यह बात सही है। लेकिन आप दादी माँ की उम्र की नहीं है। यह बात भी सही है। और आज कल तो आपकी उम्र में आ कर लड़कियाँ अपनी पहली शादी करती हैं! तो अगर आपका सवाल यह है कि ‘कौन सी चालीस साल की लड़की तुमने देखी है, जो शादी करती है - या जिसने शादी करी है’ तो मेरा जवाब होगा - कई सारी!”
“तैंतालीस, चालीस नहीं!” माँ ने सुनील की बात में सुधार किया।
“चालीस तैंतालीस - क्या फ़र्क़ है?”
“फ़र्क़ है बेटा... बिलीव मी, फ़र्क़ है! कुछ बातें जवान लोगों पर ही शोभा देती हैं।” माँ किसी गहरी सोच में चली गईं, “इसीलिए तो मैं अमर और काजल से कहती हूँ कि शादी कर लो!”
“लेकिन अम्मा भी कोई जवान नहीं बैठी हैं - वो भी तो आपकी ही उम्र की हैं!”
“लेकिन अमर तो अभी कम उम्र ही है। और उसकी दो शादियाँ हो चुकीं। अब तो शायद ही उसको कोई मिले!”
“तो इसलिए आपको लगता है कि दोनों को शादी कर लेनी चाहिए?”
“नहीं नहीं! मुझे ऐसे गलत न समझो। दोनों बहुत पहले से ही एक दूसरे से प्रेम करते हैं। यह बात तो किसी से नहीं छुपी है!”
“हाँ - प्रेम बड़ी बात है! है न? और अगर वो दोनों शादी कर लेते हैं, तो मुझसे अधिक खुश शायद ही कोई और होगा!” सुनील तपाक से बोला, “तो अगर आपको भी कोई प्रेम करने वाला मिले तो?”
“अरे, अब इस उम्र में मैं प्रेम व्रेम के चक्कर में नहीं पड़ने वाली!” माँ ने विनोदपूर्वक कहा।
“आप तो ऐसे कह रही हैं कि जैसे न जाने क्या उम्र हो गई हो! और एक बात बताइए, प्रेम करने की कोई उम्र तय है क्या?”
“नहीं! लेकिन...” माँ से कुछ और कहते नहीं बना, “हमारे समाज का यह नियम नहीं है! एक समय के बाद हमको संयम से काम लेना चाहिए!”
“समाज हमको नहीं खिलाता; उससे हमको सुख दुःख में साथ नहीं मिलता - हाँ, हमारे सुख में वो हिस्सा लेने आता तो है, लेकिन दुःख में तो अपने ही आते हैं! ऐसे समाज का भला क्या मोल?”
“ठीक बात है! लेकिन मैं अब कोई लड़की थोड़े न हूँ!”
“प्रेम करना लड़कियों की बपौती है?” सुनील थोड़े पैशन से बोला, “वैसे भी आपसे लड़कियों जैसे बिहैव करने को कौन कह रहा है? आप अपने नेचुरल तरीके से बिहैव कीजिए न!”
“हाँ, ठीक है! तो मेरे उम्र की औरतें शादियाँ करती नहीं फिरतीं!” माँ ने थोड़ी उदासी से कहा, “कुछ तमन्नाएँ होती हैं, जो अधूरी रह जाती हैं! इस बात को स्वीकार लेना चाहिए!”
“क्यों अधूरी रह जाए आपकी तमन्नाएँ? ऐसी क्या बात हो गई? ऐसी क्या उम्र हो गई? आपको तो अभी भी बच्चे हो ही सकते हैं!”
“बच्चे? हा हा हा हा!”
“हाँ! क्यों?”
“सुनील - अब मैं क्या बोलूँ? तुम अभी नादान हो! एक मर्यादा वाली रेखा होती है - उसको पार नहीं करनी चाहिए। मैं वैसी कोशिश नहीं करने वाली!” माँ ने कहा, “वैसे भी जहाँ तक तमन्नाएँ पूरी करने की बात है, मैं समय का पहिया पीछे की तरफ़ घुमा नहीं सकती!”
“मुझे लगता है कि आप आवश्यकता से अधिक सोच रही हैं। आपका परिवार देखिए - कितना सपोर्टिव है; कितना प्यार है सभी में! ऐसा परिवार हो किसी का, तो सब संभव है। और आपको समय का पहिया पीछे घुमाने को कह ही कौन रहा है? जैसा कि मैंने कहा, कितनी ही सारी औरतें अपने चालीसवें में आ कर शादी कर ही रही हैं आज कल!” सुनील ने फिर से पैशन से कहा, “मैं आपको देखता हूँ, तो बस गुण ही गुण दिखाई देते हैं। आपको लगता है कि अगर लड़की कम उम्र हो, तभी उसको शादी करनी चाहिए। मैं इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता। मैं यह ज़रूर कहूँगा कि अगर कोई हो, जो आप जैसी हैं, आपको वैसी मान कर, वैसी होने का आदर दे कर, आपसे प्यार करे, तो उसको अपनाने में क्यों संकोच हो? आई ऍम श्योर कि ऐसे लोग होंगे... हैं!”
“अच्छा जी? तो किधर हैं ऐसे लोग?” माँ ने तपाक से कहा। शायद वो भी इस तर्क वितर्क से परेशान हो गई थीं।
सुनील थोड़ा सा हिचकिचाया, “ज़रूर हैं! समय बताएगा! लेकिन कम से कम आप ऐसी सम्भावना के लिए अपना मन तो खोलिए! अगर इस सम्भावना पर आपका विश्वास ही नहीं है, तो फिर कोई हिम्मत भी कैसे करेगा?”
“ओह सुनील... तुम कुछ समझ ही नहीं रहे हो!”
“समझने को कुछ है ही नहीं! अब जैसे आप मैडोना को ही ले लीजिए - उन्होंने जब शादी करी, तब वो कितने की थीं? शायद बयालीस की? और वो, जूलिआना मूर, उनको जब अपना बेबी हुआ तब वो शायद इकतालीस की थीं? सुसान सारंडोंन को पैंतालीस में बेबी हुआ! मेरिल स्ट्रीप को बयालीस में!”
“हाँ हाँ और वो सभी एक्ट्रेसेस हैं - सेलेब्रिटीज़!”
“और आप मेरे लिए सेलेब्रिटी हैं,” सुनील ने कहा, और फिर बात को सम्हालते हुए बोला, “वो एक्ट्रेस हैं तो क्या? हेल्थ, फिटनेस, यह सब कोई चीज़ होती है।”
लेकिन माँ अचानक ही कही गई बात पर अटक गईं, ‘क्या कहा इसने?’
उधर सुनील जारी रहा, “और हमारे गाँव वाले घर की बगल वाली चाची जी - उनको भी तो पैंतालीस में भी बेटी हुई थी! है कि नहीं?”
हाँ बात तो सही थी।
“यह समाज केवल लेन देन के लिए ही अच्छा है। उसी में खुश है। आप अपने तरीके से जियें अपनी ज़िन्दगी। समाज यह सब नहीं निर्धारित कर सकता! अगर आप फिर से शादी करना चाहती हैं, तो समाज आपको रोक नहीं सकता। अगर आप अपने और बच्चे चाहती हैं, तो समाज आपको रोक नहीं सकता। अगर आप खुश रहना चाहती हैं, तो समाज आपको रोक नहीं सकता। यह छोटी छोटी ख़्वाहिशें हैं - कोई पाप नहीं, कोई अपराध नहीं! वैसे भी आपकी उम्र नहीं है कि आप, ऐसे, विधवा के जैसे रहें! मैं सोचता हूँ कि यह अपराध है। यह अन्याय है। आपको प्रेम पाने का अधिकार है! कम से कम खुद के मन में इस सम्भावना से इंकार न कीजिए!”
सुनील जिस तरह से अपनी बातें कह रहा था, उसमे भावनात्मक जोश साफ़ सुनाई दे रहा था, “और इसका यह मतलब बिलकुल भी नहीं कि आप बाबू जी की यादें अपने मन से निकाल फेंकें। उनकी यादें तो हमारे दिल में, हमारे मन में सुरक्षित हैं। आप खुद ही सोचिए, क्या वो नहीं चाहते थे कि आप खुश रहें? मुझे उनकी जो भी यादें हैं, उनमें मैंने कभी यह नहीं देखा कि वो हमारी ख़ुशियाँ न चाहते हों! उन्होंने हमेशा बस यही सुनिश्चित किया। वो खुद भी तो कितने खुश रहते थे। उनके साथ जो भी आता, उसके भी दुःख दूर हो जाते थे। उनकी यादें अमिट हैं। उनके लिए मेरे मन में जो आदर सम्मान है, वो कभी नहीं जाने वाला।”
दोनों को यह ध्यान भी नहीं रहा कि पिछले कुछ मिनटों से काजल भी कमरे में आ कर उनकी बातें सुन रही थी। अवश्य ही उसने सारी बातें नहीं सुनी, लेकिन उसको मोटा मोटा समझ में आ रहा था कि चर्चा का विषय दीदी की शादी का था।
लिहाज़ा, उसने भी सुनील की बात की अनुशंसा करी, “हाँ बेटा, बात तो तुम्हारी पूरी तरह से सही है। मैं भी तो दीदी से कहती रहती हूँ कि शादी कर लो! इतनी लम्बी ज़िन्दगी है! और इसकी उम्र भी क्या हुई है? ऐसे अकेले थोड़े न बिताई जा सकती है पूरी लाइफ!”
“अरे तो मैं अकेली ही कहाँ हूँ,” माँ ने चर्चा की दिशा बदल दी, “अमर है, तुम हो, मेरी पोती है, मेरी बिटिया है!”
माँ ने बोल तो दिया, लेकिन उनकी आवाज़ में वो दृढ़ विश्वास नहीं था। अपने दिल में वो जानती थीं कि हम अगर उनको दोबारा शादी करने को कह रहे थे, वो उसमें कुछ गलत नहीं था। हम उनके शुभचिंतक थे, इसीलिए यह सब कहते थे। फिर भी, हठ भी कोई चीज़ होती है,
“तुम क्यों नहीं कर लेती अमर से शादी?”
“ओह दीदी, मैंने तुमको और अमर को कितनी बार कहा तो है यह सब! मैं उनके लायक नहीं हूँ!”
“तुमको उससे प्रेम नहीं है?”
“बहुत है! यह बात तुम सभी जानते हो। लेकिन शादी नहीं हो पाएगी। मानती हूँ कि प्रेम से बहुत कुछ साध्य है, लेकिन केवल प्रेम से सब कुछ नहीं हो सकता न! मैं अनपढ़ हूँ - जैसे तैसे कुछ कुछ बोलने की तमीज आई है। और अमर अपने बिज़नेस में जिस मुकाम पर हैं, और जहाँ जा रहे हैं, वहाँ ले जाने के लिए मैं सही साथी नहीं हूँ। अमर की वाइफ ऐसी होनी चाहिए, जो उनके पाँव की बेड़ी न बने। जो उनको सपोर्ट कर सके। जो उनके काम में हाथ बँटा सके। उनको घर सम्हालने वाली वाइफ नहीं चाहिए - उनको एक डायनामिक, पढ़ी लिखी, और तेज़ बीवी चाहिए, जो उनसे प्यार भी करती हो!”
काजल की बातें पूरी तरह सही थीं।
लेकिन ऐसी बातों पर बहस नहीं हो सकती।
उस दिन और शादी ब्याह की बातें नहीं की गईं। लेकिन ऐसा नहीं था कि किसी को किसी से मन-मुटौव्वल हो गया हो। सभी इस तरह की चर्चा कर भी पा रहे थे, यह बात इस बात का संकेत थी, कि माँ का डिप्रेशन अब तक बहुत कम हो गया था। हाँ, वो डैड के जाने से उदास अवश्य थीं, लेकिन अवसाद के बादल उनके लगभग छँट गए थे।
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nice update..!!अंतराल - स्नेहलेप - Update #9
अगले दिन, रात को :
काजल रात में सुनील के कमरे में गई। वैसे तो अपने बेटे से उसकी हमेशा ही बातें होती रहती थीं, लेकिन न जाने क्यों, उसको लगता था कि पिछले कुछ दिनों में उससे उस तरह, खुल कर बातें नहीं हो पा रही थीं।
कितना लम्बा अरसा हो गया था उसको सुनील के कमरे में गए हुए। आज से पहले वो तब गई थी जब सुनील इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा देने वाला था। फिर उसके बाद, इंजीनियरिंग के समय तो वो जैसे कोई सन्यासी हो गया हो। चार सालों में वो कुल जमा केवल एक महीने के लिए ही घर आया होगा - वो भी केवल पूजा के समय। उन चार सालों में उसने कड़ी मेहनत करी थी - हर छुट्टी में वो या तो किसी कंपनी में, या फिर किसी प्रोफेसर के साथ कोई न कोई प्रोजेक्ट में लगा रहता। इसी कड़े परिश्रम का फल था, कि इंजिनीरिंग में वो अपने ब्रांच में टॉप पर था और उसको इतनी बढ़िया नौकरी मिली थी!
कमरे में आई, तो उसने देखा कि सुनील कंप्यूटर पर मेरी कंपनी से ही संबंधित एक प्रोजेक्ट पर तल्लीन हो कर काम कर रहा था। अपनी अम्मा को देख कर वो मुस्कुराया,
“अम्मा, तुम अभी तक सोई नहीं हो?” उसने काजल को देख कर वैसे ही मुस्कुराते हुए कहा।
काजल मुस्कुराई, “नहीं रे! नींद नहीं आ रही थी, सोचा तेरे पास आ कर बैठ जाती हूँ!”
“अच्छा किया,” उसने मुस्कुराते हुए, लेकिन स्क्रीन से ध्यान न हटाते हुए कहा, “बैठो न!”
काजल बैठ गई। कुछ देर तक दोनों ने कुछ नहीं कहा, फिर,
“भैया सो गए?” सुनील ने बड़ी सहजता से पूछा।
उसके प्रश्न पर काजल शर्मा गई लेकिन फिर भी उसने सहजता से उत्तर दिया, “हाँ!”, फिर सम्हलते हुए बोली, “क्या कर रहे हो, बेटा?”
“भैया के लिए कुछ काम कर रहा हूँ, अम्मा। अगर कोई एजेंसी यह काम करती, तो बहुत पैसे भी लेती और टाइम भी! लेकिन मैं इसे बस तीन चार दिनों में ही कर सकता हूँ और वो भी फ्री में!” वो फिर से मुस्कुराया।
‘कितना सुन्दर लगता है सुनील, जब वो ऐसे मुस्कुराता है!’ काजल ने सोचा और उसका दिल गर्व से भर गया, ‘सपने देखे थे कि वो अच्छा पढ़ लिख ले, और खूब तरक्की करे! वो सपने पूरे हो गए!’
“बहुत अच्छी बात है बेटा। अमर के लिए जितना हो सके, जो भी कुछ हो सके, वो सब कर दिया करो!”
सुनील मुस्कुराया, और बोला, “अम्मा, ये सब कोई कहने की बात है! यह तो मेरा सौभाग्य है कि मैं उनके लिए कुछ भी कर सकूँ!”
वो कुछ और देर तक काम करता रहा। काजल ने जब उसे अपने काम में इतना तल्लीन देखा, तो वह वहाँ से जाने लगी। लेकिन सुनील ने उसे रोक दिया,
“बैठो ना अम्मा। कहाँ जा रही हो? बैठो न! साथ में बात करो! मुझे अच्छा लगता है तुम्हारे साथ बतियाना।”
तो काजल उसके साथ बैठ गई। वो उससे बात करना तो चाहती थी।
जैसा कि सभी भारतीय माताएँ चाहती हैं, काजल भी उसके भावी जीवन के बारे में बहुत उत्सुक थी। वो चाहती थी कि उसका बेटा जल्दी ही सेटल हो जाए, और अपनी गृहस्थी जमाए। काजल की तपस्या का एक भाग पूर्ण हो गया था - उसका बेटा खूब अच्छा पढ़-लिख लिया था, और उसके पास एक बढ़िया नौकरी थी। अब बस एक भाग और बचा हुआ था। इसलिए वो अपनी होने वाली बहू के आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी।
“बेटा, एक बात पूछूँ?”
“अम्मा, बोलो ना। इतनी भूमिका क्यों बनाती हो? तुम्हारी बात को कभी मना किया है मैंने?”
काजल मुस्कुरा दी। हाँ - ऐसा आज्ञाकारी, संस्कारी, बुद्धिमान, सुन्दर और सुशील बेटा - न जाने किस तपस्या का फल था सुनील! अपने जवान बेटे को देख कर उसका दिल गर्म हो गया। ऐसा अद्भुत युवक! ऐसा लगता है कि जैसे अभी कल तक ही तो वो तोतली बोली बोलता था! अभी कल तक ही तो वो घर में नंगा नंगा घूमा करता था... लेकिन अब देखो, कितना जवान... कितना सुंदर... कितना आकर्षक हो गया है!
उसने ममतामई मधुरता से कहा, “बेटा, तू हमको बताया था न... कि... कि तुझे कोई लड़की पसंद है?”
“हाँ अम्मा…” वो मुस्कुराते हुए बोला, “पसंद तो बहुत है।”
“क्या तू उसे पसंद है?” काजल आनंद से बोली!
“पता नहीं!”
“अरे? ऐसे कैसे?”
“अभी तक उसे मालूम नहीं है अम्मा, कि मैं उसे पसंद करता हूँ।”
“हे भगवान! मतलब एक तरफ़ा प्यार! अरे बेटा, ऐसे कैसे चलेगा?”
“तो क्या करूँ अम्मा? उसको कहना तो चाहता हूँ!”
“तो हिचकना किस बात का? बता दे ना उसको! उसे जब तक तेरे मन की बात नहीं पता चलेगी, वो भी क्या करेगी?”
“और अगर कहीं बुरा मान गई, तो?”
“बुरा मानना है तो माने - वो उसका निर्णय है! वो निर्णय लेने का हक़ है उसको। और उस निर्णय का सम्मान भी करना चाहिए हमें! हम उस पर कोई जबरदस्ती तो नहीं कर सकते। अब ये तो नहीं है कि जिसको हम चाहें, जिसको हम प्यार करें, वो भी हमसे प्यार करे! है न?” काजल उसको समझाते हुए बोली, “लेकिन मेरा बेटा ऐसा है ही नहीं कि कोई उससे बुरा मान जाए। हाँ ठीक है, शादी करना, न करना उस लड़की का अपना निर्णय है, लेकिन बुरा तो नहीं मानेगी! इस बात का मुझे यकीन है!”
“हा हा हा! हर माँ को अपना बेटा अच्छा ही लगता है।”
“क्यों नहीं अच्छा लगेगा? नौ महीने तक पेट में पाला, फिर उसके बाद इतने सालों तक सेवा कर के इतना बड़ा किया! अच्छे संस्कार दिए! इतना अच्छा पढ़ा लिखा है मेरा बेटा। क्यों अच्छा नहीं लगेगा?”
“हा हा हा! अम्मा, तुम बहुत स्वीट हो।”
“वो सब मैं नहीं जानती... लेकिन जल्दी से उसको अपने मन की बात बता दो। अगर वो सीधा मना कर देती है, तो उसकी बात का मान रखना, इज़्ज़त करना, और ज़िद ना करना। लेकिन अगर उसको कोई संशय है, तो उसको दूर करने की कोशिश करना। खुद से न बात बने, तो मुझसे कहना... मैं उससे बात करूँगी... अपनी झोली फ़ैला कर तेरे लिए उसका हाथ माँग लूंगी!”
“क्या अम्मा... तुम हिंदी फिल्में देखना थोड़ा कम कर दो! कैसे कैसे डायलॉग मारती हो! हा हा हा हा!”
“हा हा हा! पिटेगा तू अब।” काजल ने हँसते हुए कहा, फिर बड़ी उम्मीद से बोली, “अच्छा एक बात तो बता, कैसी है तेरी वाली?”
“कैसी है? मतलब देखने में, या कि उसका नेचर?” सुनील ने काजल को छेड़ा।
“अरे दोनों रे!”
“बहुत अच्छी है अम्मा। बहुत ही अच्छी!” सुनील ने मुस्कुराते हुए और सोचते हुए कहा, “बहुत सुन्दर है - देखने में तो जैसे अप्सरा है... लेकिन रहती वो ऐसे है कि उसको जैसे यह बात मालूम ही नहीं है! अपने रूप का उसको न कोई घमंड है, और न ही कोई ज्ञान! नेचर में बहुत ही स्वीट है, बहुत ही केयरिंग! बेहद सुशील है! गोल्डन हार्ट! किसी से ऊँची आवाज़ में बात करते नहीं देखा मैंने उसको! और गुण तो इतने सारे हैं, कि क्या कहूँ! देवी है वो पूरी, अम्मा, देवी!”
“हाय भगवान! ऐसी बढ़िया लड़की! अरे तू क्यों पहेलियाँ बुझा रहा है। बता दे न मुझे, कौन है तेरी वाली? नाम क्या है उसका?”
“बताऊँगा न अम्मा… तुमको नहीं बताऊँगा, तो और किसको बताऊँगा? लेकिन मुझे दो-तीन दिन का समय और दे दो, उससे बात करने के लिए। एक बार उससे अपने मन की बात कह दूँ, फिर देखते हैं।”
“हाँ! ठीक है फिर। भगवान् करें कि तेरा घर जल्दी से बस जाए! मैं तो समझो गंगा नहाऊँ!”
“हा हा हा हा!”
“अरे, ये कोई हँसी ठठ्ठा वाली बात थोड़े ही है!”
“नहीं,” सुनील मुस्कुराया, “अच्छा अम्मा, एक बात बताओ ना... तुम भैया से शादी क्यों नहीं कर लेती हो?”
“नहीं रे। तू नहीं समझेगा। मैं तो अनपढ़, गँवार हूँ! उनके गले नहीं पड़ना चाहती... उन्होनें सब कुछ दिया है मुझे - मुझे तो यही सब सुख है! तुम पढ़ लिख लिए... किसके कारण? पुचुकी पढ़ लिख रही है... किसके कारण? यह सब कुछ उन्ही का तो दिया हुआ है। है न? हमको ना तो रहने की चिंता है, ना खाने पीने की... और समाज में हमारी इतनी इज़्ज़त है! वो एक कोठरी की झोपड़ी में रहते, तो कोई हमको देखता भी? कौन करता है इतना सब? वो भी आज कल के ज़माने में!”
“अम्मा… बात तो तुम्हारी पूरी सही है। लेकिन प्यार तो सबसे बड़ी चीज है न! कहीं तुम इस कारण से तो उनसे शादी नहीं कर रही हो कि तुम उनसे उम्र में उनसे बहुत बड़ी हो?”
“अरे नहीं रे… शादी ब्याह में उम्र का महत्त्व होता है, लेकिन उम्र ही कोई बड़ी बात नहीं होती। अब देखो ना... गैबी दीदी उनसे दो तीन साल बड़ी थी... और... देवयानी दीदी शायद नौ या दस साल! उम्र का क्या है? उम्र कम होना तब ज़रूरी है, जब पति-पत्नी को बच्चे चाहिए होते हैं। और वो भी कई सारे! चालीस पैंतालीस की औरत को बच्चे हो ही जाते हैं! अगर केवल पति पत्नी का साथ चाहिए, तो उम्र का कोई मतलब नहीं। लेकिन प्यार होना चाहिए। तू सही कह रहा है। प्यार सबसे बड़ी चीज़ है। मैं भी बहुत प्यार करती हूँ अमर से... और मानती भी हूँ कि प्यार संसार की सबसे बड़ी चीज है! लेकिन उसके अलावा बाकी और कोई गुण नहीं है मुझमें! वो क्या काम करते हैं, वो मुझे समझ ही नहीं आता। मैं कैसे उनकी मदद करूँगी? जीवनसाथी तो ऐसा होना चाहिए जो जीवन के हर पहलू पर अपने पति के साथ खड़ी हो! मेरे अंदर कोई और गुण नहीं है। बस। यही कारण है! इसीलिए मैं उनसे शादी नहीं कर सकती।”
“हम्म... लेकिन अगर उन्हें कोई लड़की ना मिली तो?”
“तो मैं हूँ ही ना। उनका साथ कैसे छोड़ दूँगी?”
काजल मस्कुरा रही थी, और उसकी आँखों में आँसू भी झिलमिला रहे थे। सुनील अपनी माँ की हालत देख रहा था... सच में, हम दोनो का प्यार देख कर वो दंग था। काजल ने देखा कि सुनील उसे देख रहा है। उसे झटपट से अपने आँसू पोंछे, और बोली,
“बस, मुझे फिलहाल सबसे बड़ी चिंता किसी की है, तो वो बस दीदी की ही है। वो पहले कितनी बिंदास रहती थीं! कितना हँसती बोलती थीं। कितने भी कष्ट हों, उनको उफ़ करते नहीं देखा - सब कुछ मुस्कुराते मुस्कुराते झेल लिया। सोचा था कि अमर के साथ जो हो रहा है, कोई बात नहीं - मैं उनको सम्हाल लूँगी। लेकिन देखो! किस्मत ने दीदी को भी नहीं छोड़ा! पहले देवयानी दीदी, फिर बाबू जी और अब…” काजल ने गहरा निःश्वास छोड़ते हुए कहा, “अब... जैसे उनका पूरा जीवन बिलकुल वीरान हो गया हो! हँसना बोलना कितना कम हो गया है उनका!”
सुनील बस फीकी मुस्कान दे सका।
“लेकिन एक बात कहूँ? तेरे आने के बाद से उसके चेहरे पर रौनक आई है बेटा!”
“सच में?”
“हाँ रे! तू हमारे साथ बैठता है, हमसे बातें करता है, बच्चों के संग खेलता है, गाने गाते बजाते रहता है, दीदी को सवेरे बाहर ले जाता है - मेरे ख़याल से यह सब पॉसिटिव हो रहा है।”
“अरे, ये सब तो कुछ भी नहीं है अम्मा!”
“अरे क्यों नहीं है कुछ भी? अब देख न! उस दिन वो तेरे कहने से ही तो इतने महीनों में बाहर निकली कहीं! कितना मज़ा आया था उस दिन!”
“हाँ अम्मा!”
“और ले जाया कर बाहर उसको!” काजल ने सुझाया, “कभी शॉपिंग कराने, कभी मंदिर में, नहीं तो ऐसे ही!”
“जी अम्मा!”
“उसको एक साथी मिल जाए, तो फिर यह सब कितना आसान हो जाए!”
“हाँ अम्मा... मेरे खयाल से उनको शादी कर लेनी चाहिए।”
“हाँ न? लेकिन वो मेरी बात ही नहीं सुनती।”
“कैसे सुनेंगी? केवल ‘शादी कर लो’ ‘शादी कर लो’ कहने से ही तो वो शादी नहीं कर लेंगी न! कोई लड़का लाए आप लोग अभी तक उनके लिए?”
“हाँ रे! बात तो तेरी सही है! लेकिन उनके लायक लड़का लाएँ कहाँ से? इतनी सुन्दर सी दीदी है! इतनी गुणी!”
“तुम कहो तो मैं उनके लिए एक अच्छा सा लड़का ढूंढ़ देता हूँ!”
“सुनील बेटा, ये सब बातें मज़ाक में मत बोला करो।” काजल ने गंभीर होते हुए कहा।
“नहीं अम्मा.. कोई मज़ाक नहीं है। मैं सच में उनके लिए एक अच्छा लड़का ढूंढ़ने की बात कह रहा था!”
“कोई है नज़र में क्या तेरे?” काजल ने खुश होते हुए कहा।
“हाँ अम्मा! है तो एक… लड़का अच्छा तो है, लेकिन ख़ैर, उनके गुणों के सामने कोई क्या खड़ा हो सकेगा? लेकिन मुझे मालूम है कि वो लड़का उनको बहुत प्यार करेगा! उनको बहुत सुख से रखेगा।” सुनील कुछ सोचते हुए बोला - उसकी आवाज़ बहुत धीमी हो गई थी, जैसे कहीं बहुत दूर से आ रही हो, “एक बार अपनी वाली को प्रपोज कर दूँ, फिर उनके लिए भी लड़का सामने ला कर खड़ा कर दूंगा।”
“सच में बेटा?” काजल ने उत्साह से कहा, “अगर ऐसा हो जाए तो क्या आनंद आए! तू ख़ूब दीर्घायु हो बेटा!” काजल ने कहा।
सुनील मुस्कुराया - जैसे न जाने कितने गहरे जा कर सोच रहा हो।
काजल भी थोड़ी देर के लिए चुप हो गई; जैसे कुछ सोच रही हो। फिर सोचते सोचते अचानक ही उसके होंठों पर एक ममता भरी मुस्कान आ जाती है। वो मुस्कुराते हुए बोली,
“सुनील बेटा - अगर तेरी वाली लड़की वैसी गुणी हो, जैसा तूने बताया, तो बिलकुल भी संकोच मत करना। एक पल के लिए भी नहीं। तुम्ही ने बोला था न - वो लड़की शालीन है, संस्कारी है, गंभीर है, जिम्मेदार है, सुशील है, घरेलू है, स्निग्ध है, अपने पति का साथ न छोड़ने वाली है... ऐसे गुणों वाली लड़की बहुत बड़े भाग्य से किसी को मिलती है, कसम से! और अगर सच में ऐसी लड़की हमारे घर आ जाए तो कैसी बढ़िया किस्मत होगी हमारी!”
फ़िर वो बड़ी ममता के साथ उसके बालों को सहलाते हुए बोली, “लाखों में एक होगी ऐसी लड़की तो! है न? और हो भी क्यों ना? मेरा बेटा भी तो लाखों में एक है…”
उसने बड़े प्यार से सुनील का माथा चूमा, और कहना जारी रखा, “वैसे इतने गुणों वाली एक लड़की मैं जानती हूँ! और सोचती हूँ न, तो उस तरह की, उसके गुणों वाली, केवल एक ही लड़की को जानती हूँ! ऐसी दूसरी लड़की न देखी है मैंने! इसलिए तेरी वाली से मिलने का इंतजार करूंगी…”
सुनील ने चौंक कर अपनी माँ की तरफ देखा। लेकिन काजल ने ऐसा कोई भाव नहीं दिखाया जिससे उसके मन की बात बाहर दिखती; वो बोलती रही,
“मैं तो उसे अपने सीने से लगा कर अपने घर में उसका स्वागत करूंगी। अपनी बेटी की तरह उसे प्यार करूंगी। नहीं… नहीं, बेटी नहीं, अपनी बेटी से भी बढ़ कर! तुम किसी भी तरह की चिंता मत करना। न उसकी उम्र की, और न ही किसी और बात की! मेरी तरफ से कोई अड़चन नहीं आएगी तेरे और उसके ब्याह में! तू जिसे प्यार करेगा, मैं भी उसे बहुत प्यार करूंगी। समझ गया न?”
काजल ने कहा, और सुनील का माथा चूम कर कमरे से बाहर निकल गई।
सुनील सकपका गया। न जाने उसे क्यों ऐसा लगा कि जैसे उसकी अम्मा ने उसकी आत्मा को देखा लिया हो। उसने जैसे उसके मन की बात पढ़ ली हो!
माँ तो बच्चों की बातें तब समझ लेती है, जब उनको बोलना भी नहीं आता। यहाँ तो जवान बेटे के मन की बात थी… काजल कैसे न जान ले उसके मन की बात?
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nice update..!!अंतराल - स्नेहलेप - Update #10
अगली दोपहर :
रोज़ ही की तरह, माँ, काजल और सुनील की तिकड़ी के कमरे में बैठे हुए, घर में एक बड़ी पार्टी का आयोजन करने पर चर्चा कर रही थी, और सामान्य गप-शप में मशगूल थी। घर में कोई पार्टी किए हमको कुछ समय हो गया था। काजल का मानना था कि कुछ रागरंग हो, नृत्य संगीत हो, बढ़िया खाना पीना हो - तो मज़ा आए। माँ भी इस विचार की उत्साहपूर्वक सराहना कर रही थीं - वो भी चाहती थीं कि सुनील के ग्रेजुएशन, उसकी हालिया नौकरी, और व्यापार में मेरी सफलता का जश्न जाए।
जब यह सब चर्चा चल रही थी, काजल ने टीवी चालू कर दिया... किसी चैनल पर हेमा मालिनी की एक फिल्म दिखा रहे थे। माँ और काजल दोनों ही हेमा की बड़ी फैन थीं - इसलिए उन्होंने फिल्म को चालू रखा। यह उसकी अन्य फिल्मों से थोड़ी अलग थी। फिल्म की कहानी एक युवक (कमल हासन) के बारे में थी जो हेमा मालिनी वाले किरदार को लुभाने की कोशिश कर रहा था, जो कि उम्र में उससे बहुत बड़ी थी। जहाँ हेमा, कमल हासन को हर संभव तरीके से मना करने की कोशिश कर रही थी, वहीं कमल के काफी प्रयत्नों के बाद वो भी बदले में उससे प्यार करने लगती है।
यह एक जटिल कहानी थी, लेकिन जो बात सभी के दिल को छू गई वह यह थी कि यह एक बड़ी उम्र की महिला की कहानी थी, और उसके फिर से प्यार पाने की संभावना की कहानी थी। माँ और काजल दोनों एक ही नाव में सवार थीं - और यह फिल्म उन दोनों को बहुत अलग तरीके से छू गई। जहाँ काजल के पास मेरे रूप में एक वास्तविक विकल्प था, वहीं माँ के पास कोई विकल्प नहीं था। दोनों महिलायें एक दूसरे को शादी करने के लिए प्रोत्साहित करती रहतीं, लेकिन दोनों ही कोई भी संकल्प न लेतीं।
हेमा और कमल के बीच कुछ संवादों के दौरान, माँ और सुनील आँखों ही आँखों में अपनी बातों का आदान-प्रदान कर रहे थे - सुनील मानों जैसे कमल के संवादों के साथ अपनी बात बोल रहा था, वहीं माँ हेमा के संवादों के जरिए अपनी बात रख रही थी। लेकिन अंत में, जब हेमा के विरोध का किला ढह जाता है, और जब वो महमूद के सामने स्वीकार करती है - संवाद के साथ नहीं बल्कि आंखों में आंसू के साथ - कि वो कमल के साथ प्यार में थी, तब माँ ने सुनील की ओर नहीं देखा। कहानी का ऐसा मोड़ आ जाएगा, वो उसने सोचा भी नहीं था। वो दृश्य देख कर माँ के अंदर एक उथल-पुथल मच गई।
काजल ने तभी कहा, “वो एक्स-मेन वाला हीरो है ना... उसकी बीवी भी तो उससे उम्र में बहुत बड़ी है।”
“कौन? ह्यूग जैकमैन?” सुनील ने कहा।
“हाँ! वो ही। उसी के हाथ से चाकू निकलता है न?” काजल ने हँसते हुए कहा।
“क्या बात है अम्मा! तुमको तो याद है!”
“और नहीं तो क्या।” काजल ने कहा, “वैसे ठीक भी है। शादी में हमेशा पत्नी ही कम उम्र की क्यों होनी चाहिए? ये कोई जरूरी तो नहीं है। क्यों दीदी?”
“समाज भी तो कुछ होता है, काजल!”
“अरे दीदी, लेकिन यह कोई नियम भी तो नहीं है न, दीदी! शादी ब्याह में उम्र का क्या मतलब है? उससे पहले तो प्रेम का स्थान है। पति पत्नी के बीच प्रेम है, आदर है, तभी तो सुखी परिवार की नींव पड़ती है। बच्चे वच्चे तो बाद में होते हैं।”
शायद काजल कुछ और कहती - मेरे और देवयानी के बारे में, लेकिन चुप हो गई। मेरी शादी का ज़िक्र घर में थोड़ा वर्जित माना जाता है। माँ ने भी काजल की बात पर कुछ नहीं कहा।
उस दिन और कुछ खास नहीं हुआ।
अगली रात :
रात की ख़ामोशी में सुनील किन्ही कामुक विचारों में खोया हुआ, बिस्तर पर नग्न पड़ा हुआ था, और अपने लिंग को हाथ में थामे, उसको धीरे धीरे सहलाते हुए हस्तमैथुन कर रहा था! रह रह कर उसके मन में कई सारे विचार आ-जा रहे थे। अपनी सम्भाविक प्रेमिका और पत्नी को अपने ख्यालों में ही निर्वस्त्र करते हुए वो उसके साथ प्रेम सम्बन्ध बना रहा था, और दूसरे हाथ हस्तमैथुन करते हुए, वो उन विचारों की उमंगों का अनुभव भी कर रहा था। एक अकेले, जवान आदमी के पास अपनी काम-पिपासा संतुष्ट करने का इससे अच्छा और सुरक्षित अन्य कोई तरीका नहीं हो सकता। न जाने कितने ख़्वाब, न जाने कितनी ही तमन्नाएँ, न जाने कितनी ही फंतासी - सब रह रह कर उसके दिमाग में आ जा रहे थे और उन्ही की ताल पर उसका हाथ अपने लिंग पर फिसल रहा था!
अपने विचारों में वो इतना खोया हुआ था कि उसको ध्यान ही नहीं रहा कि दरवाज़े पर उसकी अम्मा खड़ी हो कर, उसे विस्मय से घूर रही थी। वैसे, ध्यान भी कैसे आता? कमरे में एक तो केवल जीरो वाट का बल्ब जल रहा था, दूसरा वो हस्तमैथुन से उत्पन्न होने वाली कामुक गुदगुदी का आनंद, अपनी आँखें बंद कर के ले रहा था। वैसे भी, इतनी रात में वो किसी को अपने कमरे में आने की उम्मीद नहीं कर रहा था। अचानक ही सुनील की नज़र काजल पर पड़ी - वो भी अपनी अम्मा को वहाँ खड़ी देख कर हैरान रह गया।
“क्या कर रहा है, सुनील?” काजल फुसफुसाती हुई बोली!
बहुत से लोग हस्तमैथुन को स्वस्थ क्रिया नहीं मानते। काजल भी उनमें से ही थी। उसका मानना था कि सम्भोग से सम्बंधित सभी क्रियाएँ, किसी अंतरंग साथी के साथ ही करनी चाहिए। वही तरीका एक स्वस्थ तरीका है। हस्तमैथुन काम संतुष्टि का एक अस्वस्थ तरीका है - ऐसा काजल का मानना था।
“अम्मा?!” सुनील हड़बड़ा कर बस इतना ही बोल पाया।
काजल कुछ देर ऐसे खड़ी रही कि जैसे सोच रही हो कि वो क्या करे क्या नहीं, और फिर कुछ सोच कर वो कमरे से बाहर चली गई, और जाते जाते धीरे से अपने पीछे दरवाज़ा बंद कर गई। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जो नुकसान होना था, वो हो चुका था - सुनील की अम्मा ने उसको हस्तमैथुन करने हुए पकड़ लिया था! सुनने में कितना हास्यास्पद लगता है न - उसकी अम्मा ने उसको हस्तमैथुन करने हुए पकड़ लिया था! जीवन के पूरे इक्कीस साल ऐसे ही बीत गए, और उन इक्कीस सालों में ने अनगिनत बार उसकी अम्मा ने उसको नंगा देखा था। लेकिन हस्तमैथुन करते हुए पहली बार पकड़ा था... पकड़ा था! सच में, हस्तमैथुन जैसी क्रिया करते हुए ‘पकड़े जाने’ पर शर्म की जैसी अनुभूति होती है, वो बहुत ही कम अवसरों पर होती है।
वो चिंतित हो गया, ‘न जाने अम्मा क्या सोचेंगीं!’
उसका उत्तेजित लिंग शीघ्रता से शांत हो गया। कोई दो मिनट बीता होगा कि उसने दरवाज़े पर दस्तक सुनी। सुनील ने अभी भी कपड़े नहीं पहने हुए थे। लेकिन उसको कुछ करना नहीं पड़ा। दस्तक के तुरंत बाद, बिना किसी उत्तर की प्रतीक्षा किये, काजल ने दरवाज़े से कमरे के भीतर झाँक कर कहा,
“मैं अंदर आ जाऊँ?”
“अम्मा, मैं बस एक सेकंड में कपड़े पहन लेता हूँ! क्या तुम रुक सकती हो?”
“सुनील, तुम मेरे बेटे हो। तुमको मुझसे शर्माने की ज़रुरत नहीं है!” काजल ने कहा और वो अंदर आ गई।
अंदर आ कर उसने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और अपने बेटे की ओर मुड़ी, जो अभी भी बिस्तर पर नग्न तो लेटा हुआ था, लेकिन संकोच में - जिससे उसका शरीर थोड़ा छुपा रहे।
“क्या बात है, अम्मा?”
“तू हैंडल क्यों मार रहा था रे?” काजल ने यथासंभव कोमल आवाज़ में पूछा। वो नहीं चाहती थी कि सुनील को बुरा लगे।
“क्या अम्मा!” सुनील ने झेंपते हुए कहा।
“क्या अम्मा क्या? तुझे मैंने समझाया था न, कि गन्दी आदतें मत पालना! लेकिन मेरी सुननी कहाँ है नवाब को? अरे सोच, कहीं तेरी बिची पर चोट लग गई तो? फिर तेरे बच्चे कैसे होंगे रे? सोचा है क्या कभी?”
“अरे, ऐसे नहीं चोट लगती अम्मा! और यह मैं आज पहली बार नहीं कर रहा हूँ!” सुनील को अपनी अम्मा के सामने ऐसे नग्न बैठे हुए थोड़ा शर्मनाक लग रहा था। एक वो कारण, और दूसरा अपनी अम्मा की बेवकूफी भरी बात से वो थोड़ा झुंझला भी गया था।
“अरे लेकिन तू ये करता ही क्यों है?”
“अम्मा, मैं भी तो आदमी ही हूँ! मेरा भी मन होता है सेक्स करने का। और मेरे पास कोई लड़की थोड़े ही है!”
“तो तूने पहले कभी किसी लड़की को...?”
“नहीं अम्मा!” सुनील ने झेंपते हुए कहा।
“अपनी वाली को भी नहीं?”
“अम्मा, आपने उसको और मुझको क्या समझा है?” उसने तैश में आ कर कहा, “और बिना उसको अपने दिल की बात कहे, और बिना उसकी रज़ामंदी के मैं ये सब कैसे कर लूँगा? और आपको लगता है कि वो ये सब कर लेगी - किसी के साथ भी?”
“हाँ! वो बात भी ठीक है! माँ हूँ न, इसलिए बेवकूफ़ी भरी बातें सोचने लगती हूँ! सॉरी!” फिर कुछ सोच कर, “ठीक है... तू जो कर रहा था, वो कर ले। मैं जाती हूँ!”
“लेकिन तुम आई क्यों थी, अम्मा?”
“कुछ नहीं! नींद नहीं आ रही थी, इसलिए चली आई। तू अक्सर देर तक काम करता है न, तो मुझे लगा कि तू जाग रहा होगा! सोचा, हम दोनों कुछ देर बातें करेंगे!”
“भैया सो गए?”
काजल ने शर्मा कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।
सुनील मुस्कुराया, “अम्मा, तुमको और भैया को साथ में देख कर, सोच कर बहुत अच्छा लगता है!”
काजल मुस्कुराई, लेकिन उसने बात बदल दी, “चल, तू कर ले अपना। मैं जाती हूँ! लेकिन सम्हाल कर करना!”
कह कर काजल कमरे से बाहर जाने लगी।
“अम्मा, मत जाओ। आज यहीं सो जाओ? मेरे पास?”
“सच में? तुम्हारे साथ यहाँ?”
“हाँ! वैसे भी अब मुझे कुछ करने का मन नहीं होगा!”
काजल ने कुछ सोचा, और फिर आ कर सुनील के बगल ही, उसके बिस्तर पर लेट गई। वो बिस्तर सिंगल बेड था, इसलिए दोनों बहुत अगल बगल ही लेट सकते थे।
“अच्छा एक बात बता, किसकी याद आ रही थी तुझको? अपनी वाली की?”
सुनील मुस्कुराया, “अम्मा, और किसकी याद आएगी?”
“जब उसके लिए तू इतना तरसता रहता है, तो उसको बोल क्यों नहीं देता?”
“डर लगता है अम्मा! कि कहीं इंकार न कर दे!”
“अरे, ये क्या बात हुई! चाहे वो इंकार करे, या चाहे इक़रार - बोलना तो पड़ेगा ही न! कम से कम तुझको मालूम तो हो जाएगा कि वो भी तुझे चाहती है या नहीं!”
“हम्म!”
“उसको बोल दे। जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी!”
“ठीक है अम्मा! बोल दूँगा! बहुत जल्दी! थैंक यू!”
“डरना मत!”
“नहीं डरूँगा!”
“मेरे दूध का मान रखना! डरना मत, सच में!”
“प्रॉमिस, अम्मा!”
सुनील ने आत्मविश्वास से कहा और करवट हो कर अपनी अम्मा को अपने आलिंगन में बाँध कर किसी सोच में डूब गया।
“क्या सोच रहा है?”
“कुछ नहीं अम्मा!”
फिर कुछ देर चुप्पी।
“अच्छा एक बात तो बता! तुझे सेक्स करना आता है?” काजल ने अचानक ही पूछ लिया।
“क्या अम्मा! अब तुमसे ये सब बातें कैसे डिसकस करूँ! तुम भी न!”
“अरे! सीधा सादा सवाल तो पूछा। उसके लिए इतना नाटक!”
“हाँ, आता है अम्मा!” सुनील ने हथियार डालते हुए कहा।
“अभी बोल रहा था कि कभी किया नहीं, तो कैसे आता है?”
“अम्मा - सब कुछ करने से ही नहीं आता! सीखने के और भी कई तरीके हैं!”
“हम्म! बात तेरी ठीक है। वैसे अगर नहीं आता है, तो शरमाना मत! पूछ लेना!” काजल ने आत्मविश्वास से कहा, “माँ हूँ तेरी! सब कुछ सिखाया है तुझको... ये भी सिखा दूँगी!”
“आता है अम्मा! किया नहीं है, लेकिन आता है कि कैसे करना है।” सुनील ने झेंपते हुए कहा।
“अच्छी बात है!”
सुनील अपनी माँ की बातों से बुरी तरह झेंप गया था। लेकिन उसको अच्छा भी लगा कि ऐसे नाज़ुक समय में उसकी माँ उसके साथ है। अपनी अम्मा के वात्सल्य भरे आलिंगन में बंध कर, उसके सारे कामुक विचार जाते रहे। कुछ देर दोनों खामोश लेटे रहे, फिर सुनील ही बोला,
“अम्मा?”
“हाँ बेटा?”
“....”
“क्या? बोल न?”
“दूधू पी लूँ?” सुनील ने हिचकिचाते हुए कहा।
“क्या? ओमोर माईये?”
सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“अरे तो ऐसे बोल न कि ‘अम्मा, अपना दूध पिला दो’! ऐसे शर्मा क्यों रहा है? तुझे दूध पिला कर इतना बड़ा किया है! तेरे फर्स्ट ईयर तक अपना दूध पिलाया है। ऐसे ही इतना बड़ा हो गया क्या तू?”
सुनील कुछ नहीं बोला। सच बात पर कैसी चर्चा?
“अरे बोल न! ये लड़का भी न! अरे अगर तू मुझसे ऐसे शरमाएगा, तो अपनी बीवी के सामने क्या करेगा?”
“हा हा हा! क्या अम्मा - माँ और बीवी में कुछ अंतर होता है!”
“हाँ - अंतर तो होता है! एक अपने बेटे को अपने अंदर से निकालती है, और दूसरी उसी बेटे को अपने अंदर लेती है!” काजल ने सुनील की टाँग खिंचाई करते हुए कहा, “अंतर तो होता है भई!”
“हा हा हा हा! अम्मा तुम बहुत शरारती हो!”
“और अंदर लेने वाली ज्यादा लुभाती है!”
“अम्मा! दूध पिलाने को पूछा, और तुमने पूरी गाथा कह दी!”
“जब तक तू ठीक से पूछेगा नहीं, तब तक तुझे दूधू नहीं मिलेगा!”
“मेरी प्यारी अम्मा, मुझे अपना दूध पिला दो!” सुनील ने मनुहार करते हुए कहा।
“हाँ, ये ठीक है! आ जा मेला बेटू, अपनी अम्मा का मीठा मीठा दूधू पी ले!” काजल ने उसको दुलारते हुए कहा तो सही, लेकिन कुछ किया नहीं। सुनील ने कुछ क्षणों तक इंतज़ार किया, फिर बोला,
“अम्मा, अब तो बोल भी दिया। पिलाओगी नहीं?”
“ब्लाउज खोलना आता है?”
सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“तो खोल न!”
“क्या?” आश्चर्य की बात थी।
“हाँ, इस घर में कोई भी बच्चा अपनी माँ का इंतज़ार थोड़े ही करता है। सभी खुद ही ब्लाउज खोल कर पी लेते हैं!”
“ओह,” सुनील ने कहा, और काजल की ब्लाउज के बटन खोलने लगा। वो आराम से लेटी रही। कुछ देर में ब्लाउज के दोनों पट अलग हो गए, और उसके दोनों स्तन अनावृत हो गए।
उसने काजल का एक चूचक अपने मुँह में लिया और उसको चूसने लगा। थोड़ी देर में मीठे दूध की पतली धारा सुनील के मुँह को भरने लगी। काजल का मातृत्व आह्लादित हो गया। एक माँ के स्तनों में जब दूध बनता है, तब उसकी यही इच्छा होती है कि उसकी संतान उसका दूध पिए। सुनील द्वारा स्तनपान का आग्रह किए जाने से काजल आनंदित भी हुई, और गौरान्वित भी! अपने जवान बेटे को स्तनपान कराना आनंद का विषय तो है ही, साथ ही साथ गौरव का विषय भी है।
कोई एक मिनट के बाद काजल बोली,
“एक सेकंड, सुनील!”
जैसे ही सुनील ने उसका चूचक छोड़ा, काजल बिस्तर से उठ खड़ी हुई। फिर उसने अपनी ब्लाउज उतार दी, और अपनी साड़ी भी। वो केवल अपनी पेटीकोट पहने हुए ही, वापस, बिस्तर पर आ गई।
“आ जा!” सुनील की तरफ करवट कर के काजल ने उसको आमंत्रित किया।
सुनील वापस उसके चूचक से जा लगा। उधर काजल उसके लिंग को धीरे धीरे सहलाने लगी।
“आखिरी बार जब तुझको नंगा तब देखा था जब तू फर्स्ट ईयर में था... है न?”
सुनील ने हाँ में सर हिलाया।
“और दीदी तुझे तब भी नहलाती थीं! हा हा!”
“क्या अम्मा!” वो झेंपते हुए बोला।
“कल नहला दूँ तुझे - पहले के ही जैसे?”
“नहला दो न अम्मा!” सुनील सम्मान के साथ बोला, “तुम मेरी माँ हो! तुम्हारा पूरा अधिकार है कि तुम जैसा चाहो, करो!”
“दीदी को बोल दूँगी!”
“अरे वो क्यों? वो मेरी माँ नहीं हैं!”
“हाँ, वो तेरी माँ नहीं है!” काजल सोचती हुई बोली, “वैसे, सुन्दर लगती है न, दीदी?”
“हाँ अम्मा! बहुत!” सुनील जैसे कहीं दूर जा कर बोला।
“फिगर भी अच्छा सा है! जवान लड़की जैसी ही तो लगती है!”
“हाँ!” सुनील स्वतः बोल पड़ा।
“तुझको लगती कैसी है वो?”
“बहुत अच्छी!”
“हमेशा सोचती हूँ कि वो जिस घर जाएगी न, वो बहुत भाग्यशाली घर होगा!”
“वो शादी करेंगी न?”
“अरे क्यों नहीं करेगी शादी! मैं करवाऊँगी उसकी शादी, हाँ नहीं तो! लेकिन कोई अच्छा सा वर भी तो मिले!”
“उनके लिए एक अच्छा वर कैसा होगा अम्मा?”
“अरे, ये कोई पूछने वाली बात है? इतनी अच्छी सी तो है दीदी! तो बढ़िया पढ़ा लिखा हो, अच्छा कमाऊ हो, उसको खूब प्यार दे सके! अच्छा संस्कारी लड़का हो। शान्त स्वभाव का हो। अच्छे शरीर वाला हो - स्वस्थ, सुन्दर! इतना सब तो होना ही चाहिए!”
काजल ने आकार में बढ़ते हुए उसके लिंग को दबाते सहलाते हुए कहा।
“हाँ अम्मा, यह सब तो चाहिए ही!”
काजल कुछ सोच कर फिर आगे बोली, “तूने अच्छा किया - अच्छी आदतें पालीं। अच्छा खाया पिया! एक्सरसाइज करता है। अच्छा लगता है तू भी!”
“हा हा! थैंक यू अम्मा!”
“हाँ! बुरी आदतें पालने से आदमियों का नुनु और बिची कमज़ोर हो जाता है! इतने सालों तक जो मैंने तुझे दूध पिलाया है, उसका लाभ न मिलता!”
“क्या अम्मा! आज कैसी कैसी बातें कर रही हो तुम?”
“देख सुनील, मैं तेरी माँ हूँ! तेरे भले के लिए ही सोचती हूँ! अब देख - अभी तक समझ हम सभी की तपस्या हो गई तुझे पाल पोस कर बड़ा करने में। तेरी अच्छी सी पढ़ाई, तेरा उत्तम कैरियर, तेरी बढ़िया सी जॉब - यह सब हम सभी की तपस्या का फल है! अब एक ही काम रह गया है बस - और वो है तेरी शादी का!”
काजल ने कहा, और फिर कुछ सोच कर आगे बोली, “शादी ब्याह कोई मज़ाक बात नहीं है। शादी में अगर औरत को बहुत सैक्रिफाइस करना पड़ता है, तो आदमी को भी करना पड़ता है। शादी जिम्मेदारी लेने का नाम है। उसमे जहाँ अपने परिवार होने का आनंद मिलता है, वहीं अनगिनत जिम्मेदारियाँ भी लेनी पड़ती है! और, अपनी बीवी को खुश रखना, उसको हर प्रकार का सुख देना, एक आदमी की सबसे पहली जिम्मेदारी होती है।”
“हाँ, मैं ये सब बातें मानता हूँ अम्मा। लेकिन तुम्हारा पॉइंट क्या है?”
“पॉइंट ये है कि अपनी बीवी को शारीरिक सुख देने के लिए आदमी के पास मज़बूत नुनु होना चाहिए। है कि नहीं?” काजल ने उसके लिंग की लम्बाई पर हाथ फिराते हुए कहा।
सुनील ने झुँझलाते हुए बोला, “तुम्हारे सामने ये थोड़े ही खड़ा होगा अम्मा।”
“क्यों?”
“तुम तो मेरी अम्मा हो न।”
“हाँ! वो बात भी ठीक है। मुझे गर्व है कि मेरा बेटा मेरा इतना सम्मान करता है! लेकिन लास्ट टाइम जब तुझे देखा था, तब तो दीदी के सामने तेरा नुनु खड़ा था!”
“क्या अम्मा!!”
“हाँ ठीक है, ठीक है! वो तेरी माँ थोड़े ही है! वैसे अभी जितना है, वो भी बढ़िया लग रहा है!”
“अम्मा, तुम्हारे दूध का कमाल फिर कभी दिखाऊँगा। बस अभी इतना जान लो कि अभी जितना है, उससे भी बड़ा हो जाता है।”
“सच में?”
“हाँ अम्मा! आई प्रॉमिस!”
“बढ़िया है फिर तो! मेरी बहू की रक्षा करना भगवान!”
“हा हा हा!”
“अच्छा सुन, मेरे मन में एक बात है। मैं सोच रही थी, कि अगर तुम अपनी जॉइनिंग के पहले ही शादी कर लो, तो बहू को अपने साथ ही लिए जाओ! बढ़िया एक साथ ही, नए शहर में, नया नया जीवन शुरू करो!”
“इतनी जल्दी अम्मा?”
“अरे, इसमें क्या जल्दी है रे? हम सभी ने तो लीगल ऐज का होते ही शादी कर ली थी - मैंने भी, दीदी ने भी, और अमर ने भी! तू भी लीगल ऐज का हो गया है। कर ले। अच्छा साथी मिल जाता है तो जीवन में बस आनंद ही आनंद आ जाता है! अगर तेरी वाली ‘हाँ’ कर दे, तो तुरंत शादी कर लो। हम हैं न - बिना किसी देरी के तुम दोनों की शादी करवा देंगे। और, बिना कारण इंतज़ार करने की कोई ज़रुरत नहीं, और न ही कोई लाभ। एक लम्बा वैवाहिक जीवन बिताओ साथ में!”
“हम्म!”
“जितनी जल्दी हो, उसको प्रोपोज़ कर दे! और, अगर वो मान जाए तो तुरंत शादी कर ले! बिना वजह इंतज़ार मत कर। हमारे पास ज़रुरत के हिसाब से पैसे हैं! इतने दिनों तक पैसे जोड़े हैं मैंने। इसलिए तुम चिंता न करना। अमर और मैं, तुम्हारा घर जमाने में पूरी मदद करेंगे। और फिर तू कुछ ही दिनों में अपनी जॉब भी शुरू कर लेगा। सब बढ़िया बढ़िया हो जाएगा!” काजल आनंदित होते हुए बोली।
“हम्म... सच में अम्मा, प्रोपोज़ कर दूँ?”
“हाँ! अब और देर न कर! बिना हिचके, बिना झिझके, और बिना डरे प्रोपोज़ कर दे बहू को!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “लेकिन पूरे मान सम्मान के साथ! वो अगर मना कर दे, तो ज़िद न करना। लेकिन सच कहूँ - मेरा दिल कहता है कि सब अच्छा अच्छा होगा!”
“ठीक है अम्मा!” सुनील मुस्कुराया, “थैंक यू अम्मा!”
काजल ने उसके ‘थैंक यू’ पर आँखें तरेरीं, और आगे बोली, “और वो मान जाए, तो तुरंत शादी कर लेना!”
“ठीक है अम्मा!”
“चल, अब जाती हूँ मैं! मेरी छातियाँ भी खाली हो गईं अब! तू सो जा! यहाँ जगह कम है। न तो तू ठीक से सो पाएगा और न ही मैं! और सवेरे मेरी लाडो रानियाँ मुझे अपने साथ नहीं देखेंगी, तो परेशान होने लगेंगी। गुड नाईट बेटा!”
“गुड नाईट अम्मा!”
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nice update..!!अंतराल - पहला प्यार - Update #1
सोमवार :
सुबह दौड़ते समय माँ ने महसूस किया कि सुनील आज अपने सामान्य एनर्जी में नहीं दौड़ रहा था। रोज़ तो वो दौड़ते समय माँ से आगे निकल जाता था, लेकिन आज वो माँ के साथ साथ ही दौड़ रहा था। माँ कम समय के लिए दौड़ती थीं - अधिकतर ब्रिस्क वाक ही करती थीं। लेकिन आज सुनील धीरे दौड़ रहा था, और उसके कारण माँ भी दौड़ने लगीं। माँ ने उसकी तरफ़ देखा - ऐसा लगा कि जैसे सुनील किसी गहरी तन्द्रा में डूबा हुआ हो। माँ ने उसको बहुत देर तक कुछ नहीं कहा। लेकिन अंततः उनको कहना ही पड़ा,
“अब बस करें?”
“हम्म?” सुनील जैसे नींद से उठा हो।
“मैंने कहा अब बस करें?” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा - उनका चेहरा पसीने से लथपथ हो गया था, और रक्त संचार के कारण थोड़ा लाल भी, “रोज़ दस चक्कर लगाते हैं! अभी बारह हो गए!”
“ओह! हाँ हाँ!” सुनील ने शरमाते हुए कहा।
“सब ठीक है?”
“हहहाँ! सब ठीक है!” वो बुदबुदाते हुए बोला।
माँ को सब ठीक तो नहीं लग रहा था, लेकिन उन्होंने इस बात को तूल नहीं दिया। शीघ्र ही दोनों वापस घर आ गए।
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दोपहर :
सुबह से ही सुनील थोड़ा गंभीर मुद्रा में था। थोड़ा चुप चुप, थोड़ा गुमसुम! देख कर ही लगता था कि वो किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था। काजल को मालूम था कि उसके दिमाग में क्या उथल पुथल चल रही है। सुनील की सोच में थोड़ी बहुत आग तो उसने भी लगाई हुई थी! काजल जानती थी कि उसने सुनील पर एक तरीके से दबाव बनाया था, लेकिन संकोच करते रहने से बात आगे नहीं बढ़ती।
‘अच्छी बात है! शादी ब्याह जैसे मामले में कोई भी निर्णय, गंभीरता से, पूरी तरह से सोच समझ कर ही लेने चाहिए।’
काजल ने सोचा और सुनील को किसी तरह से छेड़ा नहीं।
काजल और सुनील के बीच सामान्य तरीके से ही बातचीत होती रही। वो अलग बात है कि सुनील अनमने ढंग से बर्ताव कर रहा था। माँ ने भी सुनील को इस तरह से उसके अपने प्राकृतिक प्रवृत्ति के विपरीत धीर गंभीर बने हुए देखा। लेकिन जहाँ काजल को इस बात से कोई चिंता होती प्रतीत नहीं हो रही थी, वहीं माँ को यह सब देख कर चिंता हुई।
“क्या बात है बेटा? तबियत तो ठीक है?” उन्होंने पूछा।
उत्तर में सुनील केवल एक फीकी सी मुस्कान में मुस्कुराया। कुछ बोला नहीं।
“अरे, क्या हो गया?” माँ वाकई चिंतित हो गईं; उनका ममतामय पहलू सामने आ गया, “सवेरे से ही ऐसे हो!”
उन्होंने अपनी हथेली के पिछली साइड से उसका माथा छू कर देखा कि कहीं उसको बुखार तो नहीं चढ़ा हुआ है। सुनील का तापमान थोड़ा तो बढ़ा हुआ अवश्य था, लेकिन इतना नहीं कि उसको बुखार कहा जा सके। लेकिन माँ की प्रवृत्ति ऐसी थी कि इतने पर ही उनको चिंता होने लगी।
“बुखार जैसा लग तो रहा है!”
“नहीं,” सुनील ने खिसियाए हुए कहा, “कोई बुखार नहीं है। आप चिंता मत कीजिए!” सुनील माँ की पूछ-ताछ से जैसे तैसे पीछा छुड़ाना चाहता था।
“ऐसे कैसे चिंता नहीं करूँगी? रुको, मैं अदरक वाली चाय बना लाती हूँ तुरंत! अगर थोड़ी बहुत हरारत है शरीर में, तो वो निकल जाएगी! उसके बाद सो जाना आराम से!”
“आप तो नाहक ही परेशान हो रही हैं!” सुनील ने लगभग अनुनय विनय करते हुए कहा!
लेकिन माँ उसकी कहाँ सुनने वाली थीं। वो सीधा रसोईघर पहुँचीं।
“क्या हुआ दीदी?” काजल ने माँ को रसोई में देख कर पूछा।
“सुनील को बुखार जैसा लग रहा है। मैंने सोचा कि उसके लिए अदरक वाली चाय बना दूँ!”
“अरे, तो मुझसे कह देती! तुम क्यों आ गई?”
“काजल, तुम सब काम तो करती हो घर के! मुझे भी कर लेने दिया करो!”
“हा हा हा! अरे दीदी, तुम तो इस घर की मालकिन हो! जैसा मन करे, करो। तुम पर कोई रोक टोक है क्या?”
“मैं नहीं, तुम हो मालकिन!” माँ ने मुस्कुराते हुए, और ईमानदारी से कहा, “सच में काजल! इस घर की मालकिन तो तुम ही हो। लेकिन, इतना सारा काम अकेले न किया करो। छोटे मोटे काम तो मुझको भी कर लेने दिया करो! कुछ काम कर लूंगी, तो घिस नहीं जाऊँगी!”
“हा हा हा! अरे बाबा कर लो, कर लो! घिस जाऊँगी! हा हा हा हा! तुम भी न दीदी! अच्छा - बना ही रही हो, तो फिर मेरे लिए भी बना लेना चाय!”
“हाँ, मैं हम तीनों के लिए चाय बना लाती हूँ!”
माँ ने कहा, और चाय बनाने में व्यस्त हो गईं।
“सोचती हूँ,” काजल ने भूमिका बनाते हुए कहा, “अपनी बहू आ जाती, तो इन सब कामों से थोड़ा आराम मिल जाता!”
“हा हा हा! तुम भी न काजल! बहू आएगी, तो इसके साथ जाएगी न! वो तुम्हारी सेवा कैसे करेगी फिर? तुमको कैसे आराम मिलेगा?” माँ बिना सोचे बोलने लगीं, “या फिर, तुम हमको छोड़ कर अपने बेटे बहू के साथ चली जाना चाहती हो?”
माँ ने मज़ाक में कह तो दिया, लेकिन यह कहते कहते ही उनका दिल बैठने लगा। अपनी सबसे करीबी सहेली का साथ छूटने का विचार कितना अकेला कर देने वाला था उनके लिए!
लेकिन काजल ने बात सम्हाल ली, “अरे नहीं दीदी! मेरा तुमसे वायदा है कि मेरा तुम्हारा साथ नहीं छूटेगा कभी! इतनी आसानी से पीछा नहीं छुड़ा पाओगी मुझसे! हाँ नहीं तो! बहू आती है, तो आती रहे; अपने पति के संग जाती है, तो जाती रहे; उसको अपने पति के संग रहना है, तो रहती रहे! लेकिन मैं रहूँगी हमेशा तुम्हारे साथ! समझी?”
काजल ने बड़े लाड़ से, माँ को गले से लगाते हुए और उनको चूमते हुए कहा। माँ काजल के द्वारा खुद को ऐसे लाड़ किए जाने पर आनंद से मुस्कुरा दीं। काजल हमेशा ही उनका मूड अच्छा कर देती थी। ऐसी ही बातों में चाय बन गई और माँ ही सबके लिए प्याले में चाय ले कर आईं और सुनील और काजल को उनकी उनकी चाय थमा कर, साथ में बैठ कर, पीने लगीं।
“किस्मत वाले हो बेटा,” काजल ने ठिठोली करते हुए कहा, “तुमको तो दीदी के हाथ की स्पेशल, अदरक वाली चाय भी मिल गई! मुझे तो आज तक नहीं पिलाई!”
“अच्छा? कभी नहीं पिलाई? झूठी!” माँ ने काजल की बात का विनोदपूर्वक विरोध करते हुए कहा, “जब से यहाँ आई है, तब से मुझे एक तिनका तक उठाने नहीं देती। और अब ये सब शिकायतें करती है!”
न जाने क्यों ऐसा लगा कि माँ अपना बचाव कर रहीं हों।
“मेरे रहते हुए भी तुमको काम करना पड़े, तो मेरे होने का क्या फायदा?” काजल ने लाड़ से कहा।
“हाँ, यही कह कह कर तुमने मुझे पूरी तरह से बेकार कर दिया है!” माँ ने कहा, फिर सुनील की तरफ देखते हुए कहा, “चाय ठीक लगी, बेटा?”
सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“अदरक का स्वाद आ रहा है?” माँ ने फिर से कुरेदा।
सुनील ने फिर से केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“ये देखो! अभी भी गुमसुम है! तबियत अंदर ही अंदर खराब हो रही लगती है लगता है!” माँ ने चिंतित होते हुए कहा, “सच में सुनील, चाय पी कर सो जाओ!”
“मुझे तो ठीक लग रहा है!” काजल ने अर्थपूर्वक सुनील को देखा, “क्या तबियत ख़राब है भला? चाय पी लो! क्या टेस्टी बनी है! आज से दीदी को ही कहूँगी, तुम्हारे लिए चाय बनाने को!”
“हाँ! कहने की क्या ज़रुरत है!” माँ ने तपाक से कहा, “मैं ही बनाऊँगी अब से!”
सुनील माँ की बात पर मुस्कुराया। कुछ बोला नहीं।
“क्या यार!” इस बार माँ ने हथियार डालते हुए कहा, “ऐसे चुप चुप तुम अच्छे नहीं लगते सुनील! क्या हो गया बेटा तुमको?”
“जी कुछ नहीं! बस कुछ सोच रहा था।”
“आआआआह! किसके बारे में?” अब माँ ने भी सुनील को छेड़ना शुरू कर दिया।
“और किसके बारे में सोचेगा ये, दीदी? उसी के बारे में, जिसके बारे में हम दोनों को रोज़ रोज़ गोली देता रहता है!” काजल ने मुस्कुराते हुए कहा, “रोज़ अपने प्रेम व्रेम के किस्से सुनाता है, तो मैं भी इसके पीछे पड़ गई - मैंने इसको कहा कि बहुत हुआ! अब अपने मन की बात बोल दे, मेरी होने वाली बहू को! कम से कम मुझे मालूम तो पड़े कि मुझे उसका मुँह देखने को मिलेगा भी या नहीं!”
“अम्मा, तुम भी हर बात का न, बतंगड़ बना देती हो!” सुनील ने हँसते हुए कहा, “मैं तो बस यही सोच रहा था कि अपनी बात उससे कैसे कहूँ! बस, और कुछ नहीं!”
“अच्छा! तो ये बात है?” माँ ने भी उसकी टाँग खींचते हुए कहा, “स्ट्रेटेजी बन रही है अपनी होने वाली ‘मैडम’ को प्रोपोज़ करने की! हम्म?”
सुनील मुस्कुराया! तब तक माँ की चाय ख़तम हो गई।
“बनाओ भई, स्ट्रेटेजी बनाओ! लेकिन बहुत देर तक मत बनाना! दिल की बातें हैं, दिमाग से नहीं करी जातीं। बहुत अधिक सोचने से ये बातें खराब हो जाती हैं। जल्दी से बता दो अपनी मैडम को अपने दिल की बातें! ठीक ही तो कह रही है काजल! तुम्हारी शादी हो, कुछ गाना बजाना नाचना हो यहाँ! कुछ खुशियाँ आएँ इस घर में!” माँ ने गहरी साँस भरी, और फिर उठते हुए कहा, “अच्छा - अब मैं ज़रा आज का अखबार पढ़ लूँ!”
**
अखबार पढ़ना माँ का दैनिक काम था - एक हिंदी और एक अंग्रेजी अखबार वो पूरा पढ़ डालती थीं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि कोई उनको डिस्टर्ब नहीं कर सकता था। दरअसल सबसे अधिक गप्पें अखबार पढ़ते समय ही लड़ाई जाती थीं। अख़बार में लिखी किसी न किसी बात को ले कर तीनों बड़े मज़े करते, और खूब हँसते! माँ का अखबार पढ़ना मतलब, तीनों की गप्पों का मैटिनी शो शुरू होना!
जब सुनील ने माँ के कमरे में प्रवेश किया, तो वहाँ रेडियो पर गाना बज रहा था,
“ये दिल दीवाना है, दिल तो दीवाना है
दीवाना दिल है ये दिल दीवाना
आ हा हा
आ हा हा
ये दिल दीवाना है, दिल तो दीवाना है
दीवाना दिल है ये दिल दीवाना
आ हा हा”
“मस्त गाना!” सुनील कमरे के अंदर आते हुए बोला।
माँ ने अखबार से नज़र हटा कर सुनील की तरफ देखा, और मुस्कुराईं, “बन गई स्ट्रेटेजी, या मैं कोई सजेशन दूँ?”
सुनील भी मुस्कुराया, लेकिन बिना कोई उत्तर दिए गाने से साथ लय मिला कर गाने लगा,
“कैसा बेदर्दी है
कैसा बेदर्दी है, इसकी तो मर्ज़ी है
जब तक जवानी है, ये रुत सुहानी है
नज़रें जुदा ना हों, अरमां खफ़ा ना हों
दिलकश बहारों में, छुपके चनारों में
यूं ही सदा हम तुम, बैठे रहें गुमसुम
वो बेवफ़ा जो कहे हमको जाना है
ये दिल
ये दिल दीवाना है, दिल तो दीवाना है
दीवाना दिल है ये दिल दीवाना
आ हा हा”
सुनील ने गाने का यह ‘अंतरा’ गा कर माँ को अगला ‘अंतरा’ गाने के लिए इशारा किया। सुनील ने समां बाँध दिया था, और गाना भी बड़ा मस्त था, इसलिए माँ से भी रहा नहीं गया, और वो भी गाने लगीं,
“बेचैन रहता है
बेचैन रहता है, चुपके से कहता है
मुझको धड़कने दो, शोला भड़कने दो
काँटों में कलियों में, साजन की गलियों में
फ़ेरा लगाने दो, छोड़ो भी जाने दो
खो तो न जाऊंगा, मैं लौट आऊंगा
देखा सुना समझे अच्छा बहाना है
ये दिल
ये दिल दीवाना है, दिल तो दीवाना है
दीवाना दिल है ये दिल दीवाना
आ हा हा”
माँ बहुत ही मीठा गाती थीं। लेकिन देवयानी की मृत्यु के बाद उनके संगीत पर जैसे ताला पड़ गया हो! और फिर, डैड के जाने के बाद तो उन्होंने शायद ही कभी गुनगुनाया भी हो! इसलिए यह बात कि वो इतने दिनों बाद गा रही थीं, एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी! काजल से यह बात छुपी न रह सकी। कमरे के बाहर से उन दोनों के गाने की आवाज़ें आ रही थीं और जब उसने दोनों को गाते हुए सुना तो वो बहुत खुश हुई। अपनी सबसे अच्छी सखी, और अपने एकलौते बेटे को साथ में यूँ हँसते गाते सुन कर उसको बहुत अच्छा लगा। लेकिन कुछ सोच कर वो आज माँ के कमरे के अंदर नहीं गई।
आखिरी वाला अंतरा दोनों ने मिल कर गाया,
“सावन के आते ही
सावन के आते ही
बादल के छाते ही
फूलों के मौसम में
फूलों के मौसम में
चलते ही पुरवाई, मिलते ही तन्हाई
उलझा के बातों में, कहता है रातों में
यादों में खो जाऊं, जल्दी से सो जाऊं
क्योंकि सँवरिया को सपनों में आना है
ये दिल
ये दिल
ये दिल दीवाना है
दिल तो दीवाना है
दीवाना दिल है ये दिल दीवाना
आ हा हा”
गाना ख़तम होने पर दोनों ही साथ में खिलखिला कर हँसने लगे।
“हा हा हा हा! मुझसे रफ़ी साहब वाला पोर्शन गवा दिया!” माँ ने हँसते हुए कहा।
“हा हा! अरे, तो मैंने भी तो लता जी वाला गाया!” सुनील ने कहा, “आप बहुत सुन्दर गाती हैं! मन करता है कि बस आपका गाना सुनते रहा जाए, बिना रुके!”
माँ कुछ कहतीं, कि काजल ने अंदर से चिल्ला कर कहा, “हाँ! बहुत अच्छा गाती हैं दीदी! आज तेरे कारण इतने सालों बाद इनका गाना सुनने को मिला!”
“हा हा हा हा! काजल, आ न इधर!” माँ ने हँसते हुए कहा, “दिन भर रसोई में ही रहोगी क्या?”
“आती हूँ, दीदी! आती हूँ! तुम दोनों ऐसे ही साथ में गाते रहो, मैं आती हूँ! थोड़ा सा समय दे दो!”
“तबियत ठीक हो गई, बेटा?” माँ ने पूछा।
“कभी खराब ही नहीं थी!” सुनील ने कहा, “आप यूँ ही परेशान हो रही थीं!”
गाते गाते सुनील माँ के बिस्तर पर ही बैठ गया था, और उनके पैरों के साइड में आधा लेट गया था। माँ भी तकिए का सहारा ले कर अखबार के साथ लेटी हुई थीं। रेडियो पर ऐसे ही, एक के बाद एक, रोमांटिक गाने बज रहे थे। कभी कभी सुनील उन गानों पर गुनगुना भी ले रहा था। और साथ ही साथ बड़ी देर से वो बड़े ध्यान से माँ के पैर / तलवे देख रहा था।
“तुम जानते हो, तुम्हे क्या चाहिए?” माँ ने न जाने किस प्रेरणा से कहा।
“क्या?”
“तुम्हे चाहिए एक अच्छी सी बीवी!” माँ ने हँसते हुए कहा, “काजल सही कहती है!”
“हाँ! चाहिए तो! ये बात आपने सही कही!”
“हा हा हा! अच्छा, एक बात तो बताओ - ‘अपनी मैडम’ को प्रोपोज़ करने के लिए जो स्ट्रेटेजी बना रहे थे अभी, वो बन गई?”
“पता नहीं!”
“क्यों?”
“बिना ट्राई किए पता नहीं चलेगा न!”
“हम्म्म! तो जल्दी से ट्राई कर लो न!”
सुनील ने कुछ नहीं कहा, बस रेडियो पर बजते गानों के साथ गुनगुनाने लगा। उसका माँ के पैर और तलवे को देखना बंद नहीं हुआ। माँ ने उसको देखते हुए देखा - यह एक नई बात थी। माँ ने कुछ देर तक कुछ नहीं कहा, लेकिन फिर उन्होंने विनोदी भाव से कहा,
“क्या देख रहे हो?”
जैसे उसकी तन्द्रा टूटी हो - सुनील अपने ख़यालों से वापस धरातल पर आते हुए बोला, “आपके पाँव देखे... बहुत हसीन हैं... इन्हें जमीन पर मत उतारिएगा... मैले हो जाएँगे!”
बड़ी मेहनत से उसने अपने बोलने में अभिनेता राजकुमार की अदा डालने की कोशिश करी, लेकिन असफ़ल रहा। सुनील की आवाज़, अभी तक राजकुमार के जैसी पकी हुई नहीं थी। सुनील की कोशिश क्या थी, यह नहीं मालूम, लेकिन अंत में यह केवल एक मज़ाकिया डायलाग बन कर रह गया।
“हा हा हा हा हा हा!” माँ ठठ्ठा मार कर हँसने लगीं।
आज बहुत दिनों के बाद माँ इस तरह खुल कर हँसी थीं। शायद सुनील की यही कोशिश रही हो! क्या पता! रसोई के अंदर से काजल ने भी माँ की हँसी सुनी। वो वहीं से चिल्ला कर बोली,
“मुझे भी सुनना है जोक़! जब आऊँगी, तो फिर से सुनाना!”
काजल की इस बात पर माँ और ज़ोर से हँसने लगीं।
“अरे मैंने कोई जोक नहीं कहा। जो भी बोला, सब कुछ सच सच बोला।” सुनील ने अपनी सफ़ाई में माँ से कहा।
“हा हा हा हा! हाँ हाँ!” माँ ने कहा।
“अरे, आपको मेरी बात मज़ाक क्यों लग रही है? आपके पाँव केवल हसीन ही नहीं, बहुत भाग्यशाली भी हैं!”
“अच्छा?” माँ अभी भी हँस रही थीं।
“हाँ, ये जैसे यहाँ देखिए,” उसने उनके एक तलवे पर एक जगह अपनी ऊँगली से वृत्त बनाते हुए इंगित किया, “यहाँ, आपके इस पैर में चक्र का निशान है, और इस पैर में,” उसने उनके दूसरे तलवे पर अपनी ऊँगली से इंगित करते हुए कहना जारी रखा, “यहाँ पर, स्वास्तिक का निशान है। चक्र और स्वास्तिक - ये दोनों ही चिह्न हैं आपके पैरों में!”
“हम्म अच्छा? और उससे होता क्या है?”
“इसका मतलब ये है कि आपके पति को राजयोग मिलेगा। वो हमेशा एक राजा की तरह रहेगा, और उसके जीवन में धन की कोई कमी नहीं रहेगी।”
“हह!” माँ ने उलाहना देते हुए कहा, “सुनील, तुमको ऐसा मज़ाक नहीं करना चाहिए। तुमसे कोई बात छुपी है क्या?” माँ, डैड की आर्थिक स्थिति का हवाला दे रहीं थीं। घर में सम्पन्नता आई थी, लेकिन बहुत देर से। और उसका आनंद लेने से पहले ही डैड चल बसे।
“कोई ग़लत नहीं कहा मैंने।” सुनील थोड़ी देर चुप रहा, और फिर बहुत नाप-तौल कर आगे बोला, “बाबू जी अगर राजा नहीं थे, तो किसी राजा से कम भी नहीं थे। सम्पन्नता केवल रुपए पैसे और प्रॉपर्टी की ही नहीं होती है। उन्होंने इतना सुन्दर घर बनाया; गाँव में इतने सारे काम करवाए; प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कराया; कितने सारे लोगों की नौकरी लगवाई; कितनों को उनके काम में मदद दी - यह सब बड़े पुण्य वाले काम हैं! राजाओं जैसे काम हैं! उन्होंने हम सबको सहारा दिया, और आश्रय दिया; भैया को इतना पढ़ाया लिखाया... ज्यादातर लोग तो इसका दसवाँ हिस्सा भी नहीं कर पाते हैं, अपनी पूरी लाइफ में!” सुनील ने कहा।
सुनील की बात में दम तो था! वो रुका, और फिर आगे बोला,
“और ये, यहाँ पर - ये वाली लाइन इस उँगली की तरफ़ जा रही है!” उसने माँ के तलवे पर कोमलता से उंगली फिराई।
उसकी उंगली की कोमल छुवन की गुदगुदी के कारण माँ के पैर का अंगूठा और उँगलियाँ ऊपर नीचे हो गईं। सुनील को यह प्रतिक्रिया बड़ी प्यारी सी लगी।
“अच्छा, और उससे क्या होगा?” माँ ने विनोदपूर्वक पूछा।
“इसका मतलब है कि आप, अपने पति के लिए बहुत भाग्यशाली हैं... बहुत भाग्यशाली रहेंगी। आप जीवन भर अपने पति के प्रति समर्पित रहेंगी, और आपके पति का जीवन हमेशा खुशहाल रहेगा।”
माँ ने उपेक्षापूर्ण ढंग से अपना सर हिलाया; लेकिन कुछ कहा नहीं। उनके होंठों पर एक फीकी सी मुस्कान आ गई। पुरानी कुछ बातें याद हो आईं। लेकिन उनको भी आश्चर्य हुआ कि उन यादों में दर्द नहीं था। ऐसा अनुभव उनको पहली बार हुआ था।
“बाबूजी का भी जीवन खुशहाल था, और…” वो कहते कहते रुक गया।
“और?” माँ से रहा नहीं गया।
“और... आपके होने वाले पति का भी रहेगा!”
“धत्त!” कह कर माँ ने अपना पैर समेट लिया, “कुछ भी बोलते रहते हो!”
न जाने क्यों उनको सुनील की बात पर शर्म आ गई।
लेकिन सुनील ने वापस उसके पैरों को पकड़ कर अपनी तरफ़ लगभग खींच लिया। न जाने क्यों? इस छीना झपटी में माँ की साड़ी का निचला हिस्सा उनके पैरों पर से थोड़ा उठ गया, और उनके टखने के ऊपर लगभग छः इंच का हिस्सा दिखने लगा। सुनील का व्यवहार अचानक ऐसा हो गया, जैसे उसने कोई अद्भुत वस्तु देख ली हो। उसने बड़े प्यार से, बड़ी कोमलता से माँ के पैरों के उघड़े हुए हिस्से को सहलाया। सहलाते हुए जब उसकी उंगलियाँ माँ की साड़ी के निचले हिस्से पर पहुँचीं, तो वो रुकी नहीं, बल्कि वे उसको थोड़ा थोड़ा कर के और ऊपर की तरफ सरकाने लगीं। इससे माँ के पैरों का और हिस्सा उघड़ने लगा।
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यह मधुर गीत फिल्म "इश्क़ पर ज़ोर नहीं" (1970) से है। गीतकार हैं, आनंद बक्शी साहब; गायक : लता जी और रफ़ी साहब; संगीतकार : शंकर जयकिशन जी
nice update..!!अंतराल - पहला प्यार - Update #2
माँ के लिए यह सब कुछ बहुत अप्रत्याशित और अपरिचित सा था। वो ठिठक गईं और संदेह से बोलीं,
“क्या कर रहे हो सुनील?”
सुनील बिना विचलित हुए केवल मुस्कुराया और बोला, “आप अपनी आँखें बंद कर के, जो मैं कर रहा हूँ, उसका आनंद लेने की कोशिश कीजिए!” और माँ के पैरों के पिछले हिस्से को सहलाना जारी रखा।
लेकिन ऐसे कैसे आनंद आता है? माँ की छठी इन्द्रिय काम करने लगी। सुनील जो कुछ कर रहा था वो सही तो नहीं लग रहा था। लेकिन अपना ही लड़का था, इसलिए माँ ने कुछ नहीं कहा! हाँ, उनको बहुत अजीब सा लगा अवश्य।
माँ के कोई विरोध न करने पर सुनील थोड़ा निर्भीक हो गया, और उनकी टांगों को सहलाता रहा! सहलाते सहलाते, ऐसे ही बीच बीच में वो कभी-कभी उनकी साड़ी को थोड़ा ऊपर खिसका देता। कमरे में बहुत सन्नाटा था - दोनों में से कोई भी कुछ बोल नहीं रहा था, और खिड़की के बाहर छोटी-छोटी चिड़ियाँ चहक रही थीं! यही एकमात्र आवाज़ थी को कमरे में आ रही थी, और जिसे कोई भी सुन सकता था। माँ के लिए, और सुनील के लिए भी यह सब बहुत ही नया और अनोखा अनुभव था। सुनील की परिचर्या का माँ पर बेहद अपरिचित और अजीब सा प्रभाव पड़ने लग गया था।
माँ का दिल तेजी से धड़कने लग गया; उनकी सांसें भारी और तेज हो गईं। जब कोई महिला उत्तेजित होती है, तो यही प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं। लेकिन यही लक्षण तब भी प्रकट होते हैं, जब कोई महिला नर्वस होती है, घबराई होती है। थोड़ा-थोड़ा करके खिसकने के कारण, उनकी साड़ी का निचला हिस्सा अब माँ के घुटनों के ऊपर हो गया था, जिसके कारण उनकी जाँघों का निचला, लगभग एक इंच हिस्सा दिख रहा था। मैं यह गारण्टी के साथ कह सकता हूँ कि डैड के बाद सुनील ही दूसरा आदमी होगा, जिसने माँ की टाँगें देखी होंगी [मैंने तो देखे ही हैं, लेकिन मैं उनका बेटा हूँ]।
माँ एक अजीब सी उलझन में थीं। उनको समझ में नहीं आ रहा था कि सुनील जो कुछ कर रहा था, क्यों कर रहा था... उसका इतना दुस्साहस! आखिर वो ये सब कर क्यों रहा है? क्या है उसके मन में? क्या चाहता है वो? कहीं उसके मन में कोई ‘ऐसे वैसे’ विचार तो नहीं हैं? माँ को अधिक समय तक इंतज़ार नहीं करना पड़ा - उनको कुछ ही पलों में अपनी बात का जवाब मिल गया।
“सुमन,” सुनील ने मेरी माँ को उनके नाम से पुकारा - पहली बार, “मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ!” जैसे यंत्रवत, सुनील ने माँ की जाँघों के निचले हिस्से को सहलाते हुए, और अपनी नज़रें उनकी आँखों से मिलाए हुए, अपने प्रेम की घोषणा की।
यह एक अनोखी बात है न - हम अपने माता-पिता की ‘माता-पिता’ वाली पहचान का इतना प्रयोग करते हैं कि हम उनके नाम लगभग भूल ही जाते हैं। हम अपनी माँ को माँ, अम्मा, मम्मी इत्यादि नामों से बुलाते हैं, लेकिन उनके नाम से नहीं। इसी तरह हम अपने पिता को, पापा, डैडी, डैड इत्यादि नामों से बुलाते हैं, लेकिन उनके नाम से नहीं। हमारे लिए वो हमेशा हमारे माता पिता ही रहते हैं, और कुछ नहीं। अगर आप लोगों को याद नहीं है, तो बता दूँ - मेरी माँ का नाम सुमन है।
अपने प्रेम की उद्घोषणा करने के बाद, सुनील ने बहुत धीरे से, बहुत स्नेह से, बहुत आदर से एक-एक करके उनके दोनों पैर चूमे। माँ हतप्रभ, सी हो कर सुनील की बातों और हरकतों को देख रही थीं, और आश्चर्यचकित थीं। कुछ क्षण तो उनको समझ ही नहीं आया कि वो क्या कहें! फिर जब वो थोड़ा सम्हली, तो बोलीं,
“प… पागल हो गए हो क्या तुम?” माँ ने उसकी बकवास को चुनौती देते हुए, फुसफुसाते हुए कहा, “यह क्या क्या बोल रहे हो तुम? शर्म नहीं आती तुमको? तुम्हारी दो-गुनी उम्र की हूँ मैं... तुम्हारी अम्मा जैसी! तुम्हारी अम्मा से भी बड़ी!”
“तो?”
“तो? अरे, पागल हो गए हो क्या? बेटे जैसे हो तुम मेरे! तुमको ये सब करने को किसने कहा? हाँ? क्या काजल ने तुमको मेरे साथ ऐसा करने को कहा?” माँ ने थोड़ा क्रोधित होते हुए कहा!
वो क्रोध में थीं, लेकिन फिर भी उनकी आवाज़ तेज़ नहीं हुई।
सुनील ने कुछ कहा नहीं। माँ की प्रतिक्रिया अप्रत्याशित नहीं थी।
माँ का आक्रोश जारी रहा, “सिर्फ इसलिए कि मैं अब अकेली हूँ... इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे किसी आदमी की ज़रुरत है। अकेली हूँ, विधवा हूँ, इसका मतलब यह नहीं है कि कोई भी यह सोच सकता है कि मैं उसके लिए अवेलेबल (उपलब्ध) हूँ।”
माँ ने महसूस किया कि उनका गुस्सा बढ़ रहा था।
माँ आमतौर पर ऐसा व्यवहार नहीं करती थी। आमतौर तो क्या, वो कभी भी ऐसा व्यवहार नहीं करती थीं। उनको केवल हँसते मुस्कुराते ही देखा है मैंने। आज वो अचानक ही अपने व्यवहार के विपरीत जा कर यह सब कह रही थीं। माँ ने शायद यह महसूस किया होगा, इसलिए वो थोड़ा रुक कर साँस लेने लगीं, और खुद को नियंत्रित करने लगीं।
लेकिन माँ ने जो कुछ कहा, उससे सुनील स्वाभाविक रूप से आहत हो गया था।
“सुमन,” माँ की बात से आहत होकर सुनील ने बहुत ही शांत तरीके से कहना शुरू किया, “आपसे एक रिक्वेस्ट है - आप मेरे प्यार का इस तरह से मज़ाक न उड़ाइए, प्लीज! मेरे प्यार को एक्सेप्ट करना, या रिजेक्ट करना, वो आपका अधिकार है! इस बात से मुझे कोई इंकार नहीं है। बिलकुल भी नहीं। लेकिन प्लीज़, मेरे प्यार का यूँ मजाक तो न उड़ाइए। आप प्लीज़ यह तो मत सोचिए कि किसी के कहने पर ही मैं आपसे प्यार करूँगा! यह तो मेरे प्यार की, उसकी सच्चाई की तौहीन है!”
सुनील आहत था, लेकिन वह माँ को बताना चाहता था कि उसके मन में माँ के लिए कैसी भावनाएँ थीं। अब बात तो बाहर आ ही गई थी, इसलिए कुछ छुपाने का कोई औचित्य नहीं था,
“आप... आप... मैं आप से प्यार करता हूँ... बहुत प्यार करता हूँ! लेकिन मैंने आपको ले कर, हमारे रिश्ते के बारे में कोई धारणा नहीं बनाई हुई है! मुझे नहीं मालूम कि आप मेरे साथ कोई रिश्ता रखना चाहती भी हैं, या नहीं। वो आपका अधिकार है। लेकिन मैं आपसे प्यार करता हूँ। यही मेरी सच्चाई है। और मैं यह बात आपसे कह देना चाहता था! सो मैंने कह दिया! अब मेरा मन हल्का हो गया!”
“तो, किसी ने तुम को यह सब करने या कहने के लिए नहीं कहा?” माँ को भी बुरा लग रहा था कि उन्होंने सुनील की भावनाओं को ठेस पहुँचा दी थी। वो ऐसी महिला नहीं हैं। फिर भी, उनके मन में एक बात तो थी कि कहीं मैंने, या काजल ने तो सुनील को ये सब करने को उकसाया नहीं था!
“किसी ने भी नहीं। प्लीज़, आप मेरा विश्वास कीजिए। किसी ने भी कुछ नहीं कहा। आपको क्यों ऐसा लगता है कि मैं किसी के कहने पर ही आपसे प्यार कर सकता हूँ? क्या मैं आपको अपनी मर्ज़ी से प्यार नहीं कर सकता?”
उसने माँ की जाँघों को सहलाते हुए कहा, और इस प्रक्रिया में माँ की साड़ी का निचला हिस्सा और भी ऊपर खिसक गया। माँ ने घबरा कर थूक गटका।
“यदि तुम मुझसे प्यार करते हो, तो ये जो कर रहे हो, पहले वो करना बंद करो।” माँ जैसे तैसे कह पाईं।
सुनील के अवचेतन में यह बात तो थी कि वो जो कुछ सुमन के साथ कर रहा था, वो किसी स्त्री के यौन-शोषण करने जैसा व्यवहार था, और शुद्ध प्रेम में इसका कोई स्थान नहीं है। एक प्रेमी अवश्य ही अपनी प्रेमिका को निर्वस्त्र कर सकता है, लेकिन केवल तभी जब प्रेमिका ने स्पष्ट रूप से इसके लिए सहमति दी हुई हो। सुनील ने अपनी गलती को महसूस किया, और वो रुक गया। उसने पूरे सम्मान समेत माँ की साड़ी को उनके घुटनों के नीचे तक खींच दिया, जिससे उनकी टाँगें ढँक जाएँ।
“मुझे माफ़ कर दीजिए, सुमन। मुझे तो बस आपके पैरों को देखना अच्छा लगा... इसलिए मैं बहक गया। आई ऍम सॉरी! मैंने जो किया, वो गलत था। लेकिन मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि मैं क्या कर रहा था। ऑनेस्ट! माय मिस्टेक! मैं माफी चाहता हूँ! मुझे सच में अपने किए पर बहुत अफ़सोस है।” उसने माँ से माफ़ी माँगी।
सुनील के रुकने पर माँ ने राहत की सांस ली। वो अब इस स्थिति पर थोड़ा और नियंत्रण महसूस कर रही थीं। अचानक ही उनका मातृत्व वाला पहलू हावी होने लगा। शायद वो इस युवक का ‘मार्गदर्शन’ करना चाहती थीं। उनको लग रहा था कि यह संभव है कि सुनील ने उनके प्रति अपने आकर्षण को ‘प्रेम’ समझने की ‘भूल’ कर दी होगी।
“सुनील,” माँ ने मातृत्व भाव से कहा, “अभी तुम बहुत छोटे हो। मैं यह नहीं कह रही हूँ कि तुम मुझसे या किसी और से प्यार नहीं कर सकते। तुम कैसे सोचते हो, क्या महसूस करते हो, इसको कोई और कण्ट्रोल नहीं कर सकता है, और करना भी नहीं चाहिए… लेकिन एक इंटिमेट रिलेशनशिप में लड़का और लड़की - मेरा मतलब है, दोनों के बीच में कुछ स्तर की अनुकूलता तो होनी चाहिए… कोई तो कम्पेटिबिलिटी होनी चाहिए न?” माँ समझा रही थीं सुनील को, और वो मूर्खों के समान उनके चेहरे को ही देखता जा रहा था।
“तुम्हारे और मेरे बीच में कोई समानता नहीं है! उम्र में मैं तो तुम्हारी अम्मा से भी बड़ी हूँ। ऐसे कैसे चलेगा? ऐसे कहीं शादी होती है? हाँ? और तो और, अमर - मेरा बेटा और तुम्हारी अम्मा प्रेमी हैं... मैं तो उनकी शादी करवाने की भी सोच रही हूँ। सोचो! तुम समझ रहे हो न कि मैं क्या कह रही हूँ?”
“ओह... तो क्या आप वाकई सोचती हैं कि अम्मा और भैया एक दूसरे के लिए एक अच्छा मैच हो सकते हैं? बढ़िया! मैं तो कब से सोच रहा हूँ कि दोनों शादी कर लें! मुझे उनकी खुशी के अलावा और कुछ नहीं चाहिए... लेकिन वो लोग मुझे आपसे प्यार करने से क्यों रोकेंगे?”
“हाय भगवान्! इस घर के लड़कों को क्या हो गया है! वे अपनी ही उम्र की लड़कियों के साथ सरल, सीधे संबंध क्यों नहीं रख सकते?”
“अच्छी लड़कियों से प्यार करने में क्या गलत है?”
“कुछ गलत नहीं है! मैं भी तो यही कह रही हूँ! कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन, लड़कियों से करो न प्यार! किसने मना किया है तुमको लड़कियों से प्यार करने को? लड़कियों से करो! औरतों से नहीं! ख़ास तौर पर ऐसी औरतों से, जो तुम्हारी माँ की उम्र की हैं!”
“सुमन, पहली बात तो यह है कि मैं ‘औरतों’ से नहीं, केवल एक ‘औरत’ से प्यार करता हूँ - आपसे! उम्र में चाहे आप कुछ भी हों, लेकिन आप पच्चीस, छब्बीस से अधिक की तो लगती नहीं! और, प्लीज अब आप इसको ऐसे तो मत ही बोलिए कि जैसे मैं आपसे प्यार करके कुछ गलत कर रहा हूँ …”
“लोग हँसेंगे सुनील। तुम पर भी, और मुझ पर भी। और ये - ये शादी ब्याह - ये सब - करने की अब उम्र है क्या मेरी?” माँ ने परेशान होते हुए कहा, “चलो, मानो मैं इसके लिए राज़ी भी हो जाऊँ! मगर तुमसे? तुमसे कैसे? तुम तो मेरे बेटे जैसे हो। मैंने तुमको इतने सालों तक पाला पोसा है! बड़ा किया है!” माँ कुछ और बोलतीं, उसके पहले सुनील ने उनकी बात काट दी।
“हाँ किया है आपने वो सब! लेकिन मैं आपका बेटा नहीं हूँ… हमारा कोई रिश्ता भी नहीं हैं… और, और बाकी लोगों की परवाह ही कौन करता है? हमारे सबसे कठिन दौर में, हमारे सबसे कठिन समय में, एक भैया ही थे, जो हमारे पीछे एक चट्टान की तरह मज़बूती से खड़े थे… और फिर आप लोग थे! आप लोगों ने हमारे लिए सब कुछ किया… जब हम बेघर थे, तब आप लोगों ने हमारी मदद करी, हमें प्यार दिया, सहारा दिया, और हमारी देखभाल करी। मुझे तो नहीं याद पड़ता कि हमारे सबसे कठिन समय में किसी और ने हमारी तरफ़ हमदर्दी से देखा भी हो! तो बाकी लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, क्या करेंगे, मुझे इन बातों की एक ढेले की भी परवाह नहीं है।”
सुनील की बात तो पूरे सौ फ़ीसदी सही थी। इसलिए माँ ने कुछ नहीं कहा।
“दूसरे क्या कहते हैं, और दूसरे क्या कहते हैं, और क्या सोचते हैं, इन सब बातों का मेरे लिए कोई मूल्य नहीं है। लेकिन हाँ, आप क्या कहती हैं, अम्मा क्या कहती हैं, पुचुकी क्या कहती है, मिष्टी क्या कहती है, और भैया क्या कहते हैं, इन बातों का मेरे लिए बहुत अधिक मूल्य है। आप सब मेरे लिए मायने रखते हैं! केवल आप सब! आप सभी मेरा परिवार हैं! आप लोग मेरे लिए मूल्यवान हैं - आप लोग मेरे भगवान हैं। आप लोगों के अलावा किसी का कोई मोल नहीं मेरी लाइफ में। मुझे दूसरों की कोई परवाह नहीं!”
“सुनील,” माँ ने तड़पते हुए कहा, “न जाने क्या क्या सोच रहे हो तुम! ठीक है, मैं तुम्हारी माँ नहीं, लेकिन पाला है मैंने तुमको! पाल पोस कर बड़ा किया है तुमको! पालने वाली भी तो माँ ही होती है! और तो और, तुमको मैंने कभी ऐसे... ऐसी नज़र से देखा भी नहीं!”
“हाँ! पालने वाली तो अपने स्नेह में माँ समान ही होती है! मैंने कहाँ इंकार किया इस बात से?” सुनील ने थोड़ा भावुक होते हुए कहा, “आपने तो मेरे पूरे परिवार को अपने स्नेह से सींचा है! हम तीनों तो कटी पतंग समान थे! आपने हमको सहारा दिया। हमको घर दिया! आज हम जो कुछ भी हैं, जो कुछ भी अचीव कर पाए हैं, वो सब आपके कारण हैं! ये सब बातें सही हैं। लेकिन मैं अपने दिल का क्या करूँ? हर समय जो आपकी चाहत इसमें बसी हुई है, उसका मैं क्या करूँ? कैसे समझाऊँ इसको जो ये आपको अपनी पत्नी के रूप में देखता है? आप ही बताइए मैं ऐसा क्या करूँ कि ये आपको अपनी पत्नी न माने? कैसे रोकूँ इसे?”
“ये तो एक-तरफ़ा वाली बात हो गई सुनील!” माँ बहस कर के थक गई थीं।
“एक तरफ़ा बात? हाँ, शायद है! शायद क्या - बिलकुल ही है ये एक तरफ़ा वाली बात! लेकिन, मुझे अपने मन की बात कहनी थी, सो मैंने आपसे कह दी- मैंने अपने प्यार का इज़हार कर दिया! अम्मा ने कहा था, और आपने भी कहा था कि ‘अपनी वाली’ ‘अपनी मैडम’ को अपने प्यार की बात तो बोल दे - सो मैंने बोल दी! क्या पता अब दो-तरफ़ा वाली बात भी हो जाए!” सुनील ने कहा, “मेरे मन की बात अगर मैं न कहता तो मेरा दिल सालता रहता हमेशा! अब बात बाहर आ गई है। मैंने रिस्क ले लिया है - रिस्क इस बात का, कि मुझे मालूम है, कि आज के बाद - अभी के बाद - हम दोनों पहले जैसा व्यवहार नहीं कर सकेंगे! हम दोनों के बीच में कुछ बदल गया है, और यह बदलाव अब परमानेंट है! हो सकता है कि आप मुझसे गुस्सा हो जाएँ, या फिर मुझसे नफरत भी करने लगें! लेकिन मैं केवल इसी बात के डर से आप के लिए अपना प्यार छुपा कर तो नहीं रख सकता न! मैं आपके लिए जो सोचता हूँ, उससे अलग व्यवहार तो नहीं कर सकता न? यह तो सरासर धोखा होता - आपके साथ भी, और मेरे साथ भी! मैंने आपसे कभी झूठ नहीं बोला और न ही आपको धोखा दिया! और ये बात मैं कभी बदलने वाला नहीं!”
सुनील की बातें बड़ी भावुक करने वाली थीं : माँ भी भावुक हो गईं, लेकिन उन्होंने स्पष्ट रूप से दर्शाया नहीं, और लगभग सुनील को चुनौती देते हुए बोलीं,
“तुमको क्या लगता है? क्या अमर हमारे रिश्ते के लिए राजी हो जाएगा? काजल राज़ी हो जाएगी?”
“भैया और अम्मा ने एक दूसरे से प्यार करने के लिए तो मुझसे या आपसे कभी परमिशन नहीं माँगी! माँगी है क्या कभी कोई परमिशन?” सुनील ने भी तपाक से कहा - माँ उसके इस तथ्य पर चुप हो गईं।
सच में प्यार करने के लिए किसी तीसरे की इज़ाज़त की आवश्यकता नहीं होती। मियाँ बीवी की रज़ामंदी के बीच में किसी भी क़ाज़ी का कोई काम नहीं होता। उसने फिर आगे कहा,
“तो फिर मुझे आप से प्यार करने के लिए उनकी परमिशन की ज़रुरत क्यों है?”
सुनील की बातों में बहुत दम था। माँ कुछ कह न सकीं। लेकिन फिर भी यह सब इतना आसान थोड़े ही होता है।
“मैं यह सब नहीं जानती, सुनील! यह सब बहुत गड़बड़ है। तुम अभी छोटे हो, जवान हो। तुमको अभी समझ नहीं है। इस प्रकार के संबंधों को हमारे समाज में वर्जित माना जाता है। कुछ भी कह लो, हमें इसी समाज में रहना है। प्लीज़ जाओ यहाँ से! मुझे अकेला छोड़ दो। जब तुम इस विचार को अपने दिमाग से निकाल देना, तब ही वापस आना मेरे पास।”
माँ ने सोच सोच कर, रुक रुक कर कहा, लेकिन दृढ़ता से कहा। इस नए घटनाक्रम पर अपनी ही प्रतिक्रिया को ले कर वो खुद ही निश्चित नहीं थी! लेकिन उनको ऐसा लग रहा था कि सुनील जो कुछ सोच रहा था वो ठीक नहीं था। उसको सही मार्ग पर वापस लाना उनको अपना कर्त्तव्य लग रहा था। ऐसे तो वो अपने जीवन को बर्बाद कर देगा! और तो और, इसमें सभी की बदनामी भी कितनी होगी!
माँ और सुनील, दोनों के ही मन में खलबली सी मच गई थी।
माँ की प्रतिक्रिया पर सुनील के दिल में दर्द सा हुआ - एक टीस सी! वो कुछ और कहना चाहता था, लेकिन कह न सका। उसने माँ को गौर से देखा, और फिर मुड़ कर कमरे से बाहर निकल गया। उसकी आँखों में आँसू आ गए - वो चाहता था कि उन आँसुओं को जल्दी से छुपा ले - कि कहीं सुमन उनको देख न ले।
लेकिन माँ ने उसकी आँखों से ढलते हुए आँसुओं को देख लिया। यह देख कर उनका भी दिल खाली सा हो गया। लेकिन यह घटनाक्रम इतना अप्रत्याशित था, कि उनसे सामान्य तरीके से कोई प्रतिक्रिया देते ही न बनी। उनके दिमाग में एक बात तो बिजली के जैसे कौंध गई और वो यह कि पिछले कुछ समय में उनके होंठों पर मुस्कान, चेहरे पर जो रौनक, और सोच में ठहराव आए थे, उन सब में सुनील का एक बड़ा योगदान था। उन्होंने अपने दिल पर हाथ रख कर सोचा तो उनको आभास हुआ कि जब से सुनील वापस आया है, वो उसको एक पुत्र के रूप में कम, बल्कि एक पुरुष के रूप में अधिक देखती हैं! यह दिल दहला देने वाला विचार था। लेकिन सच्चा विचार तो यही था।
मूर्खता होगी अगर वो यह कहें कि उनको सुनील की चेष्टाओं को ले कर अंदेशा नहीं था। वो भोली अवश्य थीं, लेकिन मूर्ख नहीं। स्त्री-सुलभ ज्ञान उनको था। सुनील जिस तरह से उनके आस पास रहता था वो उसकी उम्र के लड़कों के लिए सामान्य बात नहीं थी। और तो और, वो जिस तरह से उनको देखता था, जिस तरह से उनसे बर्ताव करता था, और खुद उनकी प्रतिक्रिया - जब सुनील उनके पास होता, उनसे बात करता - ऐसी थी कि माँ बेटे के बीच में हो ही नहीं सकती। कम से कम इस झूठ का आवरण तो उतार देना चाहिए! हाँ, वो उससे उम्र में बड़ी अवश्य थीं।
‘हाँ, उसको यही बात समझानी चाहिए!’ माँ को राहत हुई कि उनके पास सुनील को ‘समझाने’ के लिए एक उचित तर्क है।
सुनील के बाहर आने के पाँच मिनट बाद काजल जब कमरे में आई, तो उसको समझ नहीं आया कि माँ उदास सी क्यों बैठी हैं। उसको और भी आश्चर्य हुआ कि जहाँ बस कुछ ही देर पहले दोनों साथ में गा रहे थे, खिलखिला कर हँस रहे थे, वहीं अब दोनों एक दूसरे से बात भी नहीं कर रहे हैं! काजल चुप ही रही, लेकिन दोनों पूरे दिन भर उदास व अन्यमनस्क से क्यों रहे; दोनों एक दूसरे से परहेज़ क्यों कर रहे थे - उसको इन बातों का कोई उत्तर नहीं मिल रहा था। उसने एक दो बार पूछा भी, लेकिन कोई उचित जवाब नहीं मिला।
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nice update..!!अंतराल - पहला प्यार - Update #3
शाम को :
शाम की चाय काजल ने बनाई। माँ ‘मन अच्छा न होने’ का बहाना बना कर अपने ही कमरे में बैठी हुई थीं, लेकिन काजल ने लतिका को भेजा कि ‘मम्मा’ को बाहर लिवा लाए। वैसे तो माँ किसी से भी नाराज़ नहीं होतीं, लेकिन अगर कभी उनका मन दुःखी होता, तो लतिका ही भेजी जाती थी उनको मनाने के लिए।
लतिका उनकी इतनी अधिक चहेती थी कि उसकी कोई भी बात वो कभी टाल ही नहीं सकती थीं! न जाने क्या जादू था लतिका में! वो अगर उनको इतना कह भर दे कि ‘मम्मा, दसवीं मंज़िल से कूद जाओ’, तो माँ कूद जातीं। पूछती भी न कि लतिका ने उनसे वैसा करने को क्यों कहा। इतना प्यार और इतना विश्वास था उनको अपनी पुचुकी पर! उम्मीद के अनुसार ही, कुछ ही देर के बाद वो लतिका के साथ अपने कमरे से बाहर आ गईं और उससे स्कूल और होमवर्क इत्यादि के बारे में बातें करने लगीं।
माँ को देख कर काजल उनको छेड़ते हुए बोली, “क्या दीदी, मुझको कह रही थी कि अब से सुनील के लिए चाय तुम ही बनाओगी - लेकिन देखो, यहाँ तो मुझे ही बनानी पड़ रही है!”
माँ ने खाली आँखों से काजल को देखा, जैसे कह रही हों, ‘छोड़ दो न मुझे दो पल के लिए!’
काजल ने भी माँ के मन की बात को समझ लिया और अपनी गलती मान भी ली।
“ओह सॉरी सॉरी!” फिर कुछ देर बाद वो चाय के कपों में चाय छानती हुई बोली, “सुनील बेटा, मैं सोच रही थी कि तुम्हारे जॉब ज्वाइन करने से पहले हम सभी कहीं घूम आते हैं!”
“आईडिया तो अच्छा है अम्मा, लेकिन कहाँ?” सुनील ने सामान्य होते हुए कहा, “तुम्हारे मन में कोई जगह है बढ़िया घूमने वाली?”
“अरे, कहीं भी चल सकते हैं न आज कल तो! मसूरी, नैनीताल, कौसानी - कहीं भी! कितनी सारी तो सुन्दर सुन्दर जगहें हैं पास में! और पहाड़ों पर मौसम भी तो कितना अच्छा है आज कल!”
“हाँ अम्मा, पहाड़ों पर जाने के लिए मौसम अच्छा तो है!” सुनील ने उत्साह से कहा।
“क्या कहती हो, दीदी?”
“अ ह हाँ?” माँ अपनी सोच की गहराईयों से निकलते हुए कहा।
“मैंने कहा कि हम लोग कहीं घूमने चलते हैं! तुम सुन भी रही हो मेरी बात? क्या हुआ दीदी?” काजल ने मनुहार करते हुए कहा, “अभी भी गुस्सा हो क्या?”
“क कुछ नहीं। कुछ भी तो नहीं हुआ! नहीं गुस्सा वुस्सा नहीं हूँ!” माँ ने अचकचाते हुए कहा, “घूम आओ तुम सभी!”
“घूम आओ तुम सभी का क्या मतलब है? तुम नहीं चलोगी?”
“पता नहीं!” माँ ने बात को टालते हुए कहा।
“क्या अम्मा, पहले प्लान तो बन जाने दो! अभी तो जगह का नहीं मालूम है, डेट्स का नहीं मालूम है। वो सब प्लान कर लेते हैं, फिर हम सभी चलेंगे!” सुनील ने माँ की तरफ़ बड़े अधिकार से देखा, और उत्साह से कहा।
माँ ने अपनी नज़रें चुरा लीं।
“हाँ, कुछ ही दिनों में मिष्टी और पुचुकी का स्कूल भी बंद हो जाएगा, फिर चल सकते हैं! क्यों, ठीक है न दीदी?”
“अब मैं क्या कहूँ! तुम लोग देख लो।” माँ इस समय बहस में नहीं पड़ना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने हथियार डाल दिए।
“क्या हो गया तुमको दीदी? दोपहर से ही ऐसे उखड़ी उखड़ी हो?”
“क... कुछ नहीं। कुछ भी तो नहीं!” माँ ने अचकचाते हुए कहा, “कहाँ उखड़ी उखड़ी हूँ! ठीक तो हूँ!”
“बात तो अम्मा तुम ठीक कह रही हो। उखड़ी उखड़ी तो हैं!” सुनील ने कहा और मौके पर अपना दाँव फेंका, “आप चाय पी लीजिए, उसके बाद मैं आपके सर की मालिश कर देता हूँ!”
“न... नहीं नहीं! उसकी कोई ज़रुरत नहीं। मैं ठीक हूँ।” माँ सुनील की बात से ही घबरा गईं।
“अरे कहाँ ठीक हो! बोल रहा है न - कर देगा न तुम्हारे सर की मालिश। तो उसको कर लेने दो न! तुम भी न दीदी!” फिर काजल ने व्यंग्य का पुट देते हुए सुनील से कहा, “कभी कभी मेरे सर की भी मालिश कर दिया कर! या सारी कला दीदी के लिए ही बचा रखी है?”
अपनी अम्मा की बात पर सुनील झेंप गया, लेकिन लतिका खिलखिला कर हंसने लगी।
“हाँ मम्मा! दादा खूब बढ़िया मालिश करते हैं!” लतिका ने भी सिफारिश लगा दी, “करवा लीजिए!”
अगर लतिका नामक ब्रम्हास्त्र चल गया, तो माँ की पराजय निश्चित है! उसके बाद उनसे विरोध करते नहीं बनता था। माँ ने कुछ नहीं कहा - न तो हामी भरी और न ही विरोध!
तो, चाय के बाद सुनील माँ के सर की मालिश करने लगा - उनके कमज़ोर विरोध करने के बावज़ूद। अच्छी बात यह थी कि पास ही में पुचुकी भी मौज़ूद थी, इसलिए माँ थोड़ा अधिक सुरक्षित, थोड़ी अधिक आश्वासित महसूस कर रही थीं। अब उनको सुनील के साथ अकेले रहने में थोड़ा कम असहज महसूस हो रहा था। पुचुकी एक तरह का सुरक्षा कवच थी उनका! लेकिन माँ को अभी तक अंदाजा भी नहीं था कि सुनील उनको किस किस तरह से अचंभित कर सकता है। माँ ने अपने बालों को जूड़े में बाँध रखा था। उसने मालिश करते हुए उनका जूड़ा खोल दिया। न जाने क्यों, माँ का दिल उसकी इस हरकत से तेजी से धड़कने लगा।
“मम्मा,” पुचुकी की आवाज़ सुन कर उनको थोड़ी राहत हुई, “इस चैप्टर का मीनिंग समझा दीजिए?” कह कर उसने अपनी अंग्रेजी की किताब माँ की ओर बढ़ा दी।
पुचुकी की इस बात से माँ को बड़ी राहत मिली - कम से कम अब उनका ध्यान सुनील की हरकतों से हट सकता था। उन्होंने किताब हाथ में ली, और पुचुकी को हर लाइन का अर्थ समझाने लगीं।
सुनील बड़े प्रेम से सुमन और पुचुकी के वार्तालाप को सुन और देख रहा था। सुमन कितने अंतर्भाव और कितने प्रेम से पुचुकी को समझाती है! कुछ चीज़ें पुचुकी एक बार में नहीं समझ पाती, और कई कई बार पूछती है, लेकिन फिर भी सुमन को उसके प्रश्नों से ऊब नहीं होती। वो उतने ही धीरज से, अलग अलग तरीके से, अलग अलग उदाहरण दे कर उसको समझाती!
मालिश करते हुए सुनील पुचुकी और सुमन की आपस में तुलना किए बिना न रह सका। उन दोनों को देख कर वाकई ऐसा लगता था कि जैसे पुचुकी, सुमन का छोटा रूप ही हो - शायद सुमन की ही बेटी। सच में - पुचुकी अम्मा की बेटी कम, और सुमन की बेटी अधिक लगती थी। हाँ, पुचुकी रंग में साँवली ज़रूर थी, लेकिन उसका व्यवहार बिलकुल उसकी सुमन जैसा था - बिलकुल सुमन का ही भोलापन, निश्छलता, निष्कपटता, दयालुता, मृदुभाषा, ममता, स्नेह, और न जाने कौन कौन से गुण! और लगती थी वो खूब प्यारी - बड़ी हो कर वो बहुत सुन्दर सी लड़की होने वाली थी, यह बात कोई भी कह सकता था! सुमन उसकी देखभाल अपनी खुद की ही बेटी के जैसी ही कर रही थी, और उसकी पूरी छाया पुचुकी पर पड़ी थी। कोई भी अगर दोनों से अलग अलग बातें कर ले, तो उसको ऐसा ही लगता कि दोनों माँ बेटी हैं! सुमन के सारे गुण पुचुकी में आ गए थे! कैसा सौभाग्य है!
‘किसी बड़े ही किस्मत वाले को मिलेगी मेरी बहन!’ सोच कर वो मन ही मन आह्लादित हो गया।
सुनील लतिका के लिए बड़ा भाई कम, और उसके पिता समान अधिक था। लेकिन इस समय वो एक प्रेमी भी था - सुमन का प्रेमी। तो अगर वो पुचुकी के पिता समान था और तो सुमन उसकी माता समान थी! कितनी अच्छी बात हो अगर वो और सुमन दोनों सचमुच के विवाह बंधन में बंध जाएँ! यह सोच कर सुनील मुस्कुराने लगा।
बस कुछ दिनों पहले ही सुनील ने अपने मन के राज़ अपनी नन्ही सी बहन के सामने खोल दिए थे। जब लतिका ने सुना कि उसके दादा को उसकी मम्मा प्रेम है, और उनसे शादी करने की इच्छा है, तो वो ख़ुशी से फूली न समाई! अपनी मम्मा को अपनी बोऊ-दी (भाभी) के रूप में पाना कितना सुखद अनुभव होगा! ऐसी बोऊ दी किसको नहीं चाहिए होती, जो अपनी ननद को अपनी बेटी के जैसा प्यार और दुलार दे, उसके साथ खेले, उसको अच्छे संस्कार दे? संसार भर में भाभी-ननद, सास-बहू के बीच की कलह प्रसिद्ध है। लेकिन उसकी मम्मा तो सौम्यता की देवी हैं! मन तो लतिका का था कि सबको ये बात बता दे! लेकिन सुनील से उसने वायदा किया था कि वो किसी से ये बात नहीं कहेगी, जब तक सुनील उसको कहने को नहीं कहता। ठीक है - राज़ को राज़ बनाए रखा जा सकता है, लेकिन फिर भी, वो मम्मा और दादा को साथ में बैठा तो सकती ही है न?
उधर सुमन, पुचुकी को वो चैप्टर अनुवाद कर के ठीक से समझा रही थी।
सुनील सोचते हुए मुस्कुराने लगा, ‘अम्मा पुचुकी को ले कर कैसी आश्वस्त है! यहाँ रहते हुए उनको कभी किसी बात की चिंता ही नहीं हुई!’
काजल ने कई बार सुमन और बाबूजी के बारे में, उनके संघर्ष, उनके त्याग की कई सारी कहानियाँ सुनील को सुनाई थीं। सुनील को बस यही समझ में आता कि कैसे दोनों ने ही दूसरों के हित के लिए कभी अपनी परवाह नहीं करी। ऐसे लोगों को तो दुनिया जहान का सुख मिलना चाहिए! है न? लेकिन देखो - बाबूजी को यूँ अचानक ही ईश्वर के पास जाना पड़ा! और सुमन इतनी कम उम्र में विधवा हो गई! ये भी कोई न्याय हुआ भला?
‘हे प्रभु, कुछ करें! अपना आशीर्वाद मुझे दें! सुमन तो आपकी सबसे प्रिय पुत्री है। यदि आपको लगता है कि मैं उसके लायक हूँ, तो मुझे उसका जीवनसाथी बनने का मौका दें, सुख दें, और आशीर्वाद दें!’ उसने मन ही मन प्रार्थना की।
“मम्मा,” पुचुकी ने पूछा, “इसको कैसे प्रोनाउन्स करते हैं? पिसीचे?”
पुचुकी की बात पर सुनील हँसने लगा - अंग्रेजी होती भी तो है बड़ी भ्रामक!
सुमन पुचुकी की भोली सी बात पर बड़े प्रेम से मुस्कुराई, “नहीं बेटा, इसको साइके कहते हैं - और इसका मतलब होता है, मानसिकता!” और सुनील को चुप कराने की गरज से आगे कहती हैं, “अपने दादा के हँसने पर ध्यान मत दो!”
“नो प्रॉब्लम मम्मा! आप भी तो दादा के जोक्स पर खूब हंसतीं हैं!”
माँ से इस विषय पर और कुछ कहा नहीं गया, और वो वापस उसको समझाने लगीं।
सुनील ने कुछ देर सुमन को पुचुकी को इस तरह, प्रेम से, दुलार से समझाते हुए देखा, तो उससे रहा नहीं गया। उसके भी मन में ‘अपनी’ सुमन के लिए दुलार आने लगा! वो जल्दी ही माँ की आशंकाओं के अनुरूप ही काम करने लगा,
“सुमन,” सुनील ने माँ के कान के पास फुसफुसाते हुए कहा, “आपके बाल भी बहुत सुन्दर हैं... बिलकुल आपके ही के जैसे!”
उसकी बात पर माँ ने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन अंदर ही अंदर वो सकुचाने लगीं, और वहाँ से खिसकने की सोचने लगीं।
“इनको खुला रखा करो न!” उसने इस बार थोड़ा ऊंची आवाज़ में कहा, जिससे पुचुकी भी सुन ले।
पुचुकी तो सुनील की राज़दार थी।
“हाँ, मम्मा, आप अपने बाल खुले रखा करिए न!” पुचुकी ने चहकते हुए कहा, “दादा बिलकुल ठीक कह रहे हैं! आप खूब सुन्दर लगती हैं! खूब शुन्दोर!” उसने अपनी बाल-सुलभ चंचलता और भोलेपन से कहा।
लेकिन इस बार पुचुकी की बात उनको संयत न कर सकी।
“मैं जाती हूँ!” माँ ने सकुचाते हुए, धीमी आवाज़ में कहा, “बाकी का बाद में पढ़ा दूँगी!” और उठने लगीं।
“सुमन...” सुनील ने आहत होते हुए कहा, “रुकिए न! प्लीज्!” उसने माँ को कन्धों से पकड़ कर बैठे रहने को कहा, “अगर मैंने आप से कोई बदतमीज़ी की हो, तो उसके लिए माफ़ी माँगता हूँ। लेकिन आप ऐसे उखड़ी उखड़ी मत रहिए प्लीज!”
“नहीं रहूँगी!” माँ ने दीर्घश्वास लिया और कहा, “लेकिन, अभी मुझे जाने दो!”
सुनील के कोमल मन में कचोट सी उठी - लेकिन उसको इस दिशा में पहला कदम लेने से पहले ही मालूम था कि अपने प्यार के लिए माँ की ‘हाँ’ पाना कठिन काम रहेगा। चाहता तो लतिका का सहारा वो ले सकता था माँ वो वहीं बैठाए रखने के लिए। लेकिन वो चाहता था कि माँ उसके प्रेम की शक्ति के कारण उसके साथ रहें, किसी ज़ोर जबर्दस्ती के कारण नहीं!
उसने पीछे से ही माँ के गले में अपनी बाहें डालीं और उनके सर को चूम लिया!
“आई लव यू!” वो उनके कान में फुसफुसाया।
माँ ने गहरी साँस भरी, और उठ कर चली गईं।
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