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nice update..!!अंतराल - पहला प्यार - Update #4
अगली रात को :
लोग कहते हैं न कि किसी बात पर उनकी रातों की नींद उड़ गई।
तो वही माँ के साथ भी हो रहा था। सुनील की बातों से उनकी नींद ही उड़ गई। शाम से ही उनको अजीब सा लग रहा था। पेट में एक अजीब सी अनुभूति हो रही थी, कि जैसे कोई गाँठ पड़ गई हो। कल तक जिस सुनील को देख कर उनको मुस्कराहट आ रही थी, अब उसी सुनील को देख कर उनको घबराहट होने लगती - उसकी उपस्थिति से उनकी साँसे उखड़ने लगतीं। जब भी वो सुनील को अपनी तरफ देखते देखतीं, वो झट से अपनी नज़रें या तो नीचे झुका लेतीं या फिर नज़रें फ़िरा लेतीं। कोशिश उनकी यही रहती कि सुनील के संग अकेली न रहें - कोई न कोई साथ में रहे अवश्य। लेकिन यह आँख-मिचौली का खेल बेहद थकाऊ था। ऐसे एक दूसरे को नज़रअंदाज़ करते हुए एक छत के नीचे रहा नहीं जा सकता था।
सुनील की प्रेम उद्घोषणा ने माँ के विचारों को हिला कर रख दिया। पिछले कई घंटों से सुनील को ले कर उनके विचारों में द्वन्द्व छिड़ गया था। जितनी बार भी वो उसके बारे में सोचतीं, हर बार वो एक पुरुष के रूप में ही दिखाई देता - पुत्र के रूप में नहीं। उनको खुद पर शर्म आ रही थी कि न जाने कब और कैसे सुनील उनके लिए ‘बेटा’ न रह गया। एक गहरी कश्मकश चल रही थी उनके मन में!
इसी कश्मकश के चलते, आज दिन भर माँ का दैनिक कार्यक्रम अस्त-व्यस्त रहा। जानबूझ कर वो सवेरे ब्रिस्क वाकिंग करने नहीं गईं। नाश्ता और लंच भी ऐसे वैसे ही रहा। बहाना कर के मैटिनी वाली गपशप भी नहीं होने दी। आज का डिनर भी उनसे ठीक से नहीं हो पाया।
मैंने माँ को ऐसे देखा : एक पल के लिए मुझे लगा कि शायद उनका डिप्रेशन वाला एपिसोड चल रहा है। लेकिन बहुत सारे लक्षण अलग थे। मुझे भी यही दिखाई दिया कि सुनील के अतिरिक्त सभी के साथ वो सामान्य तरीके से ही व्यवहार कर रही थीं। वैसे भी, मुझे नहीं लगा कि कुछ सीरियस है, इसलिए मैंने कुछ कहा नहीं। काजल और सुनील के कारण ही माँ का डिप्रेशन समाप्त हुआ था - इसलिए मुझे उनके मामले में दख़लअंदाज़ी का कोई औचित्य नहीं सूझा। मुझे कल जल्दी ऑफिस के लिए निकलना था, इसलिए जल्दी से खा पी कर सो गया।
उधर माँ को नींद नहीं आ रही थी। बिस्तर पर आधे लेटी हुई वो आज की ही बातों को ले कर किसी उधेड़बुन में उलझी हुई थीं।
‘कैसे हो गया ये सब?’
‘क्या कर दिया मैंने कि वो मेरे बारे में ऐसा सोचने लगा?’
‘कहीं मैंने ऐसा कुछ बोल तो नहीं दिया कि वो मुझको ऐसे देखने लगा?’
‘कहीं उसने मुझे ऐसी वैसी हालत में तो नहीं देख लिया कभी?’
‘कहीं कॉलेज में उसका ऐसे वैसे लोगों के साथ उठना बैठना तो नहीं होने लगा?’
माँ ने बहुत सोचा, बहुत ज़ोर डाला अपने दिमाग पर, लेकिन उनको कोई वाज़िब उत्तर नहीं मिल सका। डेढ़ दो घंटे के गहन विचार के बाद न तो वो अपने व्यवहार में ही कोई कमी ढूंढ सकीं और न ही सुनील के। कोई अगर किसी को पसंद करता हो, तो उस पर किसी अन्य का ज़ोर थोड़े ही चलता है! इसमें किसी में कोई कमी होने का सवाल ही नहीं उठता। जब वो इस तर्क वितर्क से थक गईं तो उनका दिमाग अब किसी और दिशा में चलने लगा।
‘कैसा हो अगर वो फिर से शादी कर लें?’
‘अमर और काजल भी तो यही चाहते हैं!’
‘एक विधवा के जैसे इतनी लम्बी लाइफ अकेले कैसे जियूँगी?’
‘इस बार अमर या काजल कहेंगे तो मैं शादी के लिए हाँ कह दूँगी!’
‘कम से कम इस शर्मिंदगी से तो छुटकारा मिलेगा!’
‘लेकिन केवल शर्मिंदगी से बचने के लिए किसी से भी तो शादी नहीं की जा सकती!’
‘शर्मिंदगी? कैसी शर्मिंदगी?’
‘सुनील के संग होने से शर्मिंदगी क्यों होने लगी?’
‘सुनील में कमी ही क्या है?’
‘मुझमें क्या कमी है?’
‘अच्छा ख़ासा लड़का तो है! देखा समझा हुआ भी है! नोन डेविल इस बेटर दैन एन अननोन डेविल!’
‘लेकिन उसको मुझमें क्यों इंटरेस्ट है? मैंने तो माँ के जैसे उसको पाला है!’
माँ यही सब सोच सोच कर हलकान हुई जा रही थीं कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। माँ ने घड़ी देखी - रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे!
‘इस समय कौन?’ उन्होंने सोचा, और प्रत्यक्षतः कहा, “आ जाओ!”
लेकिन कहते ही उनके दिल में धमक उठी कि कहीं सुनील न हो दरवाज़े पर! अगर वो हुआ, तो वो क्या करेंगीं - माँ यही सोच रही थीं कि दरवाज़ा खुलने पर काजल को देख कर उनको राहत की साँस आई।
“दीदी, अभी तक सोई नहीं?” जाहिर सी बात थी, कि नींद तो काजल को भी नहीं आ रही थी।
“ओह काजल? नहीं! नींद ही नहीं आ रही है!”
“क्या हो गया?”
“तुम क्यों नहीं सोई?”
“पता नहीं!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “न जाने क्यों तुम्हारे पास आने का मन हुआ! इसलिए इधर चली आई - देखा तो लाइट ऑन थी!”
हाँ - कमरे की बत्ती जल तो रही थी। माँ को ध्यान भी न रहा।
“थैंक यू काजल!” माँ ने बड़ी सच्चाई से कहा - उनको सच में किसी दोस्त की आवश्यकता थी, और काजल से अच्छी दोस्त उनकी कोई और नहीं थी।
“अरे दीदी! तुम भी न!” कहते हुए काजल माँ के निकट, उनके बिस्तर पर आ कर लेट गई।
“अमर सो गया?” माँ ने मुस्कुराते हुए पूछा।
“हाँ, बहुत पहले!”
“जानती है, तुम दोनों को साथ में देखती हूँ तो बहुत अच्छा लगता है मुझको!”
काजल ने कुछ कहा नहीं - वो बस मुस्कुराई।
“तुम दोनों एक हो जाओ - मेरी तो बस यही तमन्ना है अब!”
“हा हा! दीदी! तुम फिर से शुरू हो गई! बताया तो है तुमको!”
“हाँ हाँ! बताया है! बताया है! लेकिन मैं अपने मन का क्या करूँ?”
“जैसा अभी है, वैसे में क्या गड़बड़ है?”
“कुछ गड़बड़ तो नहीं है! लेकिन मन में होता है न कि तू हमेशा मेरे में साथ रहे!” माँ की आँखें भरने लगीं, “तुमने हमारे लिए इतना कुछ किया है कि अब तुम्हारे बिना मैं सोच भी नहीं सकती!”
सुबकते हुए वो बोलीं, “बहुत सेल्फ़िश हूँ मैं शायद! डर लगता है कि कहीं ऐसा वैसा कुछ न हो जाए, और तुमसे मेरा साथ छूट जाए!”
“क्या दीदी! ऐसे क्यों सोचती हो? और, मैंने क्या ही किया है? और जो तुमने किया है हमारे लिए? वो? वो कम है क्या?” काजल भी भावुक हो कर बोली, “मैं कहाँ चली जा रही हूँ?”
माँ ने कुछ कहा नहीं; बस उनकी आँखों से तीन चार आँसू टपक पड़े।
“ओ मेरी दीदी! क्या हो गया तुमको?”
माँ ने कुछ देर कुछ नहीं कहा, लेकिन फिर सिसकते हुए, लगभग फ़रियाद करते हुए बोली, “काजल तुम हमेशा मेरे साथ रहना!”
“हमेशा दीदी!!” काजल ने माँ को आलिंगन में भरते हुए कहा, “क्या सोच रही हो? देखो, मेरी तरफ देखो! दीदी, चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगी!”
काजल के पास होने मात्र से माँ को बड़ी राहत मिल गई। उनके मस्तिष्क में जो झंझावात चल रहे थे, वो शांत होने लगे।
“थैंक यू काजल!”
“अरे बस बस! चलो, अभी लेट जाओ!” कह कर काजल ने माँ को बिस्तर पर लिटा दिया, “और सोने की कोशिश करो!”
माँ भी किसी आज्ञाकारी लड़की की तरह काजल की बात मान कर लेट गईं। कुछ देर तक काजल माँ को थपकी दे कर सुलाने की कोशिश करती रही, लेकिन जब माँ को अभी भी नींद नहीं आई, तो काजल ने ही कहा,
“और मुझे तो शादी करने को हमेशा बोलती रहती हो! खुद क्यों नहीं करने की कहती? जैसी तुम हो, वैसी मैं भी तो हूँ?!”
“हा हा हा हा! अभी तो बोल रही थी कि कभी मेरा साथ नहीं छोड़ोगी! और अभी कह रही हो शादी कर लो!”
“अरे हाँ न! शादी करने से क्या हुआ? तुम्हारे दहेज़ में आऊँगी न तुम्हारे साथ ही! हा हा हा हा!”
दोनों स्त्रियाँ दिल खोल कर हँसने लगीं। माँ का मन बहुत हल्का हो गया।
“सच में दीदी! कर लो न शादी! मैं रही हूँ अकेली - मुझे मालूम है! अच्छा नहीं लगता! खालीपन सा रहता है। एक मनमीत होना चाहिए साथ!”
“अच्छा! कुछ भी कहेगी अब तू! अमर ने कब अकेला छोड़ा तुमको?”
“दीदी!!” काजल ने बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “तुम भी न! हम दोनों के बीच में ‘वो सब’ बहुत कम होता है अब! मेरा उनको देखने का नज़रिया बहुत चेंज हो गया है।”
“अरे, ऐसा क्या हो गया?” माँ को आश्चर्य हुआ।
“हाँ न! और आज से नहीं, बहुत दिनों से! अब वो पहले वाली बात नहीं रही। ऐसा नहीं है कि हम दोनों एक दूसरे से प्यार नहीं करते! बहुत करते हैं। लेकिन उस प्यार का रंग बदल गया है, रूप बदल गया है। हमने सेक्स भी केवल तीन चार बार ही किया होगा पिछले चार पाँच महीनों में। वो भी इसलिए कि या तो वो या फिर मैं बहुत परेशान थे उस समय, इसलिए बस, एक दूसरे को शांत करना ज़रूरी था।”
माँ को इस खुलासे पर बेहद आश्चर्य हुआ, “सही में काजल?”
काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
माँ ने निराशा में सर हिलाते हुए कहा, “अरे यार! मैं तो तुम दोनों के ब्याह के सपने देख रही थी, और यहाँ ये सब...”
“अरे कर लूँगी ब्याह! थोड़ी मेहनत कर के कोई और दूल्हा लाओ मेरे लिए!” काजल हँसते हुए बोली, “अमर जैसा कहाँ मिलेगा, लेकिन उसके आस पास भी फटकने वाला कोई मिल गया, तो कर लूँगी!”
“हम्म!” माँ सोच में पड़ गईं।
काजल थोड़ा ठहरी, फिर आगे बोली, “और मैं ही क्या, तुमको भी शादी करनी चाहिए। हम दोनों की कोई उम्र है, यूँ ही, अकेले अकेले रहने की?” काजल ने फिर से अपनी बात में मज़ाक घोलते हुए कहा, “दो दो बच्चे जनने की ताकत तो अभी भी है हम दोनों में! क्या दीदी?”
“हा हा हा!”
“झूठ कह रही हूँ क्या!”
“तू भी न काजल!”
“तुम सीरियसली नहीं लेती मेरी बातों को! देखो दीदी, मैं इसीलिए कह रही हूँ, कि जवान शरीर की ज़रूरतें होती हैं!”
काजल ने अर्थपूर्ण तरीके से कहा - हाँ शरीर की ज़रूरतें तो होती ही हैं। दो साल हो गए थे माँ को सम्भोग का आनंद लिए हुए। इन दो सालों में केवल दुःख ही दुःख मिले। उनकी चहेती बहू को कैंसर हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। उसके सदमे से उनके पति भी चल बसे! माँ ने अपने दिनों को बच्चों की देखभाल में स्वाहा कर दिया, लेकिन रात में, जब अकेलापन सालता, तो बहुत ही बुरी तरह! शरीर की आवश्यकताएँ तो होती हैं!
माँ ने मन ही मन काजल को कोसा उन आवश्यकताओं को याद दिलाने के लिए! लेकिन वो यह सब प्रत्यक्ष रूप से कह नहीं सकती थीं।
“हट्ट, बड़ी आई शरीर की ज़रूरतों वाली!”
“और बात केवल सेक्स की ही नहीं है,” काजल बोली जैसे उसने माँ की बात ही न सुनी हो, “कोई मनमीत तो मिलना चाहिए! है न? इतनी लाइफ पड़ी हुई है! उसको जीने के लिए अच्छे साथी की ज़रूरत तो होती ही है - जो तुम्हे अच्छी तरह समझे, तुमसे खूब प्यार करे! तुम्हारी लाइफ में खुशियों के नए नए रंग भर दे!”
“हाँ हाँ! और कहाँ है मेरा मनमीत? सब बातें कविताओं में अच्छी लगतीं हैं!”
“कोई एक तो होगा ही न दीदी?”
“एक जो था, उसको तो भगवान ने वापस बुला लिया!” माँ ने उदास होते हुए कहा।
“दीदी, ऐसे मत दुःखी होवो! भगवान तो सभी की सुध लेते हैं! तो उन्होंने कुछ तो सोचा ही होगा न तुम्हारे लिए?”
“न जाने क्या सोचा है, री!”
“बताऊँ?”
“हाँ, बताओ?”
“मुझे तो लगता है उन्होंने यह सोचा हुआ है कि मेरी दीदी की फिर से शादी हो; और उसकी गोद फिर से भर जाए!”
“हा हा हा हा! गधी है तू पूरी की पूरी!”
“अरे यार, शादी होगी तो बच्चे भी तो होंगे न!”
“हा हा हा! हाँ हाँ! बच्चे होंगे! हा हा हा! गाँव बसा नहीं, लुटेरे पहले ही आ गए!”
“बस जाएगा दीदी! बस जाएगा जल्दी ही! मेरा मन करता है। और लुटेरे भी आ जाएँगे, अगर भगवान की कृपा रही! और मुझे यकीन है कि मेरी दीदी पर भगवान की कृपा ज़रूर बनेगी! वो मेरी दीदी से रूठ ही नहीं सकते! इतनी अच्छी है मेरी दीदी!”
कहते हुए काजल ने माँ के दोनों गाल चूम लिए।
“हा हा हा! बड़ा मस्का लगाया जा रहा है आज? क्या बात है?” माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरी बच्ची को दुद्धू चाहिए क्या?” माँ ने काजल को दुलारते हुए कहा।
काजल ने खींसें निपोरते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“हा हा हा हा!” माँ को काजल की नटखट अदा पर हँसी आ गई, “तो फिर उसके लिए इतनी भूमिका क्यों बाँधी! इतनी बड़ी हो गई है, लेकिन बचपना नहीं गया तेरा!”
“तुम्हारा हस्बैंड पिए, और फिर तुम्हारे बच्चे पिएँ, उसके पहले मैं तो अपना हिस्सा ले लूँ!” कह कर काजल जल्दी जल्दी माँ के ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
“हा हा हा! हिस्सा ही चाहिए सभी को! अरे तो किसने कहा था कि मेरी बहन बन जाओ? बच्ची ही बनी रहती मेरी! हमेशा तुमको अपने सीने से लगा कर रखती!!”
माँ ने बड़े प्यार से कहा।
“सीने तो से मैं तुम्हारे अभी भी लगी ही हुई हूँ - कोई आज से थोड़े ही! सात साल से!” काजल ने माँ के ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा।
थोड़ी ही देर में माँ का ब्लाउज उनके सीने से हट गया।
काजल ने उनके स्तनों को सहलाते हुए कहा, “बहुत दिन हो गए न दीदी?”
माँ मुस्कुरा दीं।
“कामकाज में इतना फँसी रहती हूँ कि ये सब भी नहीं कर पाती!” कह कर काजल ने माँ का एक चूचक अपने मुँह में ले लिया और उसको प्रेम से चुभलाने चूसने लगी।
“तो किसने कहा कि कामकाज में ऐसे फँसी रहो!” माँ ने उसका सर सहलाते हुए कहा, “कितनी बार तो समझाया कि एक फुल-टाइम कामवाली रख लेते हैं! लेकिन तुमको तो सब कुछ खुद ही करना रहता है!”
दो महीने पहले हमारी कामवाली हमारा काम छोड़ कर चली गई थी। तब से घर का सब काम काजल ही देख रही थी।
काजल माँ के स्तनों को पीने का सुख छोड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने कुछ कहा नहीं।
“अच्छा, पुचुकी को दुद्धू पिलाया?”
काजल को मन मार कर माँ का चूचक छोड़ना ही पड़ा, “नहीं दीदी! आज कल वो बहुत कम पीती है! इसलिए अधिकतर समय केवल मेरी मिष्टी को पिलाती हूँ!”
“हम्म!” माँ ने कुछ सोचते हुए कहा, “लेकिन दोनों बच्चे पिएँगे तो दूध अधिक बनेगा न?”
“क्या करूँ! जबरदस्ती भी तो नहीं पिलाया जा सकता है न!” फिर थोड़ा रुक कर, “और अधिक दूध बन भी जाए, तो किसको पिलाऊँ?”
“अमर भी नहीं पीता क्या?”
“नहीं न! बताया तो तुमको!” काजल ने दुःखी होते हुए कहा, “और उनको मौका भी तो मिलना चाहिए न? बेचारे दिन भर तो काम में व्यस्त रहते हैं!”
“हम्म! मैं अमर से कहूँगी!” माँ ने बोला, “और पुचुकी से भी कहूँगी, कि मेरे ही सूखे सीने से न लगी रहा करे! तुम्हारा दूध पीना ज़रूरी है!”
“अरे ऐसे न करो... पीने दिया करो!” काजल बोली, “तुम दोनों में माँ-बेटी वाला रिश्ता है। मैंने देखा है कि तुम दोनों को ही सुकून मिलता है। इसलिए पिलाया करो।” फिर कुछ सोच कर, “सच में दीदी, जब बच्चे दूध छोड़ते हैं न, तो माँ को ही सबसे बुरा लगता है!”
कुछ देर दोनों ने कुछ नहीं कहा। फिर काजल ही बोली, “पता है, पिछले हफ़्ते सुनील को पिलाया!”
सुनील का नाम सुनते ही माँ का दिल धमक उठा। समझ नहीं आया कि वो क्या बोलें। चुप ही रहीं, यह सोच कर कि बताने वाली और बात होगी, तो काजल खुद ही बताएगी! उनका संदेह सही साबित हुआ।
काजल जैसे उस समय को याद करते हुए बोली, “जब उसने मेरे दूध को मुँह लगाया न, सच कहूँ, आनंद आ गया। ऐसा लगा कि जैसे मेरा बेटा वापस मिल गया हो मुझको।” फिर कुछ सोचते हुए, “सोच रही हूँ कि उसकी पसंद की लड़की से उसकी शादी करा दूँ - जिससे वो बहू को साथ ही लेता जाए मुंबई!”
माँ का गला सूख गया इस बात पर।
‘काजल को कोई संशय ही नहीं है कि कैसी समस्या आन पड़ी है मुझ पर,’ उन्होंने सोचा!
“फिर तो तुम अकेली रह जाओगी,” माँ के मुँह से बेसाख़्ता निकल गया - अनजाने ही।
माँ की बात सही थी, और प्रासंगिक भी। हास्यास्पद बात है कि अपने धुर विरोध के बाद भी उनके मुँह से ऐसी बात निकल गई थी।
“क्यों?”
“अ..म..म्मममेरा मतलब है, बहू उसके साथ रहेगी तो...” उन्होंने अपनी बात को सम्हालने की अनगढ़ कोशिश की।
“अरे तो पत्नी को अपने पति के साथ ही तो रहना चाहिए! सास के साथ थोड़े ही। बहू है, नौकरानी थोड़े ही!” काजल ने हँसते हुए कहा।
माँ को लगा कि बात बदल देनी चाहिए।
“हम्म!” माँ ने कुछ सोचा और बोलीं, “आज कल तुम खाने पीने पर ध्यान नहीं दे रही हो लगता है!”
“अरे ऐसे कैसे?”
“हमेशा घर के काम में फँसी रहती हो! क्या गलत कहा मैंने?”
कुछ देर तक दोनों कुछ नहीं बोलीं... फिर, “कम से कम एक साफ़ सफाई करने वाली रख लेते हैं न?” माँ ने जैसे मनुहारते हुए कहा।
काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। जैसे उसने इस बात की अनुमति दे दी हो। माँ मुस्कुराईं।
कुछ देर स्तनपान करने के बाद काजल ने माँ से अलग होते हुए कहा, “सच में दीदी, आनंद आ गया!”
फिर कुछ सोच कर, “तुम कुछ उल्टा पुल्टा मत सोचा करो। अगर तुम मुझसे अपने दिल की बातें नहीं कर पाओगी, तो और कौन कर पाएगा? कभी परेशान हुआ करो, तो बेहिचक मुझसे कहो! मैं हूँ न!”
“मालूम है काजल! तुम तो मेरी सबसे अच्छी और सबसे पक्की सहेली हो!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा। उनका दिल अपने अंदर उठते बैठते भावों से भर गया।
“दीदी, जैसी मेरी तमन्ना सुनील का घर आबाद होने की है, वैसी ही तमन्ना तुम्हारे लिए भी है। चाहती हूँ कि तुम फिर से सुहागिन बन जाओ और तुम्हारी कोख फिर से आबाद हो जाए!”
“चल!” माँ के चेहरे पर शर्म की रंगत उतर आई, “इस उम्र में ये सब होता है भला?”
“फिर उम्र की बात ले कर बैठ गई! अरे, क्यों नहीं होता?” काजल ने बहस वाले अंदाज़ में कहा, “और क्या उम्र हो गई है तुम्हारी? मैं तो भगवान से यही प्रार्थना कर रही हूँ कि तुम्हारी जल्दी से जल्दी शादी हो जाए! तुमको भी थोड़ा सुख मिले!”
“हा हा हा!”
“और नहीं तो क्या!” काजल ने माँ के स्तनों को हलके से दबाते हुए कहा, “इन ठोस ठोस बूनियों पर किसी जवाँ मर्द का हाथ चाहिए। देखो न - कैसे घमंड से अकड़ी हुई हैं दोनों! कोई होना चाहिए जो इनकी सारी अकड़ निकाल दे!”
माँ काजल की बात पर शर्म से हँसने लगीं, “तो क्या चाहती है तू, दोनों लटक जाएँ?”
“बिलकुल भी नहीं! लटकें तुम्हारे दुश्मन! अरे मेरी दीदी अभी भी जवान है! उसके शरीर में जवानी की अकड़ है! उसकी तो अलग ही शान होती है! इसीलिए तो तुमको जवानी के खेल खेलने के लिए कहती हूँ न दीदी!”
“हा हा हा!”
“सच में, एक बढ़िया सा, हैंडसम सा, तगड़ा सा, अच्छा पढ़ा लिखा हस्बैंड मिल जाए तुम्हारे लिए! बस!” काजल बोली।
काजल की बात पर माँ के मानस पटल पर अनायास ही सुनील का चित्र आ गया। बहुत कोशिश करने पर भी वो चित्र हट नहीं सका।
“सोचो न! तुम्हारे सैयां जी आएँगे, तुम्हारी बूनियों को तुम्हारी ब्लाउज की क़ैद से आज़ाद करेंगे, इनको चूमेंगे, चूसेंगे, और इनको मसलेंगे, तब निकलेगी इनकी सारी अकड़! और फिर आएगा तुमको मज़ा!” काजल ने चटकारे लेते हुए कहा।
माँ के साथ इस तरह की बातें, उनके साथ ऐसा मज़ाक, केवल काजल ही कर सकती थी। भगवान का शुक्र था कि ऐसे समय में काजल उनके साथ थी। नहीं तो न जाने माँ का डिप्रेशन उनको कैसी गहराइयों में लिए चला जाता! उधर सुनील द्वारा अपने स्तनों का मर्दन किए जाने का दृश्य सोच कर माँ की हालत खराब हो गई। अकल्पनीय दृश्य था वो!
“हट्ट! बद्तमीज़!” माँ ने उसके हाथ पर हलकी सी चपत लगाते हुए प्यार भरी झिड़की दी। लेकिन उनकी आवाज़ कामुकता से भर्राने लगी थी।
“अच्छा जी, हम कर रहे हैं तो बद्तमीज़ी, आपके ‘वो’ करेंगे, तो प्यार?”
“ठीक है मेरी माँ! तू ही कर ले जो मन करे वो!”
“अरे नहीं नहीं! मैं कैसे कर दूँ यह सब? तुम्हारी बूनियों की मरम्मत तुम्हारे ‘वो’ करेंगे, और मेरी बूनियों की मरम्मत मेरे ‘वो’!” काजल ने माँ के स्तनों को सहलाते हुए कहा, “और फिर मस्त चुदाई भी तो होगी!”
‘क्या? सुनील? सुनील के साथ सम्भोग!’ महा अकल्पनीय दृश्य! माँ अंदर ही अंदर सिहर गईं।
काजल की इस बात पर माँ ने फिर से उसको चपत लगाई, “आह! हट्ट गन्दी, बेशर्म, बद्तमीज़!”
“हाँ हाँ! दे लो मुझे गालियाँ!”
माँ की बातों का काजल पर कोई असर ही नहीं होता था। दोनों ऐसी अंतरंग, ऐसी घनिष्ठ थीं कि सगी बहनें - जुड़वाँ बहनें भी नहीं हो सकतीं। उसने हाथ बढ़ा कर माँ के नितम्बों को दबाया।
“दुद्धू तो दुद्धू, ये पुट्ठे भी क्या बढ़िया ठोस ठोस हैं!”
“हा हा हा!”
उसने माँ की साड़ी और पेटीकोट को साथ ही में पकड़ कर नीचे सरकाना शुरू कर दिया।
“क्या कर रही है काजल! क्या हो गया तुझे?” माँ की हालत भी खराब हो रही थी - एक तरफ तो कामुकता का प्रहार हो रहा था, वहीं दूसरी तरफ सरकता हुआ वस्त्र उनके नितम्बों को कुचलते हुए उतर रहा था। इसलिए उनको तकलीफ भी हो रही थी।
लेकिन काजल को इस बात की कोई परवाह नहीं थी। कुछ ही देर में माँ कमर से नीचे पूरी तरह से नग्न हो गईं। शरीर के ऊपरी हिस्से पर उन्होंने ब्लाउज पहना हुआ था, जो पूरी तरह से खुला हुआ था। काजल ने उनकी जाँघों और योनि को सहलाया।
माँ सिहर गईं!
काजल पहले भी माँ की मालिश इत्यादि करती रही थी। तब उनको ऐसा अनुभव नहीं हुआ था... लेकिन आज! कहीं सुनील का ही तो असर नहीं है!
“दीदी, तुम्हारी जवानी में कोई कमी नहीं है!” उधर काजल माँ की योनि में अपनी उंगली थोड़ा सा प्रविष्ट करते हुए बोली, “देखो न, कैसे ज़ोर से मेरी उंगली को पकड़े हुए है तुम्हारी चूत!”
“हट्ट काजल! तू बदतमीज हो गई है बहुत!” माँ विरोध करने की हालत में नहीं थीं, लेकिन उन्होंने जैसे तैसे अपना विरोध दर्ज किया।
“होने दो! दीदी, समझा करो! तुम्हारी चूत को चाहिए एक मज़बूत लण्ड! तुम्हारी बूनियों को चाहिए कड़क हाथ! और तुमको चाहिए एक बहुत बहुत बहुत प्यार करने वाला हस्बैंड! ये तो तुम्हारे खेलने खाने के दिन हैं! क्या यूँ ही गुमसुम सी बनी रहती हो! तुमको तो आनंद उठाना चाहिए, उमंग में रहना चाहिए! हँसते गाते रहना चाहिए।”
“हा हा हा हा! तू पूरी गधी है काजल! विधवा हूँ मैं!”
“पाप हो गया क्या विधवा होना? वैसे, न जाने क्यों मेरे मन में आता है कि बहुत दिन नहीं रहोगी!” काजल ने अचानक ही गंभीर होते हुए कहा, “सच में दीदी! तुम्हारी शादी हो जाए न, तो समझो मैं भगीरथ नहाई!”
“भग यहाँ से!” माँ अब तक शर्म से पानी पानी हो चली थीं।
“हाँ हाँ! भगा लो मुझे! लेकिन अपने ‘उनको’ तो खुद से यूँ लपेट कर रखोगी!” काजल बोली, और हँसते हुए वहाँ से चली गई।
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nice update..!!अंतराल - पहला प्यार - Update #4
अगली रात को :
लोग कहते हैं न कि किसी बात पर उनकी रातों की नींद उड़ गई।
तो वही माँ के साथ भी हो रहा था। सुनील की बातों से उनकी नींद ही उड़ गई। शाम से ही उनको अजीब सा लग रहा था। पेट में एक अजीब सी अनुभूति हो रही थी, कि जैसे कोई गाँठ पड़ गई हो। कल तक जिस सुनील को देख कर उनको मुस्कराहट आ रही थी, अब उसी सुनील को देख कर उनको घबराहट होने लगती - उसकी उपस्थिति से उनकी साँसे उखड़ने लगतीं। जब भी वो सुनील को अपनी तरफ देखते देखतीं, वो झट से अपनी नज़रें या तो नीचे झुका लेतीं या फिर नज़रें फ़िरा लेतीं। कोशिश उनकी यही रहती कि सुनील के संग अकेली न रहें - कोई न कोई साथ में रहे अवश्य। लेकिन यह आँख-मिचौली का खेल बेहद थकाऊ था। ऐसे एक दूसरे को नज़रअंदाज़ करते हुए एक छत के नीचे रहा नहीं जा सकता था।
सुनील की प्रेम उद्घोषणा ने माँ के विचारों को हिला कर रख दिया। पिछले कई घंटों से सुनील को ले कर उनके विचारों में द्वन्द्व छिड़ गया था। जितनी बार भी वो उसके बारे में सोचतीं, हर बार वो एक पुरुष के रूप में ही दिखाई देता - पुत्र के रूप में नहीं। उनको खुद पर शर्म आ रही थी कि न जाने कब और कैसे सुनील उनके लिए ‘बेटा’ न रह गया। एक गहरी कश्मकश चल रही थी उनके मन में!
इसी कश्मकश के चलते, आज दिन भर माँ का दैनिक कार्यक्रम अस्त-व्यस्त रहा। जानबूझ कर वो सवेरे ब्रिस्क वाकिंग करने नहीं गईं। नाश्ता और लंच भी ऐसे वैसे ही रहा। बहाना कर के मैटिनी वाली गपशप भी नहीं होने दी। आज का डिनर भी उनसे ठीक से नहीं हो पाया।
मैंने माँ को ऐसे देखा : एक पल के लिए मुझे लगा कि शायद उनका डिप्रेशन वाला एपिसोड चल रहा है। लेकिन बहुत सारे लक्षण अलग थे। मुझे भी यही दिखाई दिया कि सुनील के अतिरिक्त सभी के साथ वो सामान्य तरीके से ही व्यवहार कर रही थीं। वैसे भी, मुझे नहीं लगा कि कुछ सीरियस है, इसलिए मैंने कुछ कहा नहीं। काजल और सुनील के कारण ही माँ का डिप्रेशन समाप्त हुआ था - इसलिए मुझे उनके मामले में दख़लअंदाज़ी का कोई औचित्य नहीं सूझा। मुझे कल जल्दी ऑफिस के लिए निकलना था, इसलिए जल्दी से खा पी कर सो गया।
उधर माँ को नींद नहीं आ रही थी। बिस्तर पर आधे लेटी हुई वो आज की ही बातों को ले कर किसी उधेड़बुन में उलझी हुई थीं।
‘कैसे हो गया ये सब?’
‘क्या कर दिया मैंने कि वो मेरे बारे में ऐसा सोचने लगा?’
‘कहीं मैंने ऐसा कुछ बोल तो नहीं दिया कि वो मुझको ऐसे देखने लगा?’
‘कहीं उसने मुझे ऐसी वैसी हालत में तो नहीं देख लिया कभी?’
‘कहीं कॉलेज में उसका ऐसे वैसे लोगों के साथ उठना बैठना तो नहीं होने लगा?’
माँ ने बहुत सोचा, बहुत ज़ोर डाला अपने दिमाग पर, लेकिन उनको कोई वाज़िब उत्तर नहीं मिल सका। डेढ़ दो घंटे के गहन विचार के बाद न तो वो अपने व्यवहार में ही कोई कमी ढूंढ सकीं और न ही सुनील के। कोई अगर किसी को पसंद करता हो, तो उस पर किसी अन्य का ज़ोर थोड़े ही चलता है! इसमें किसी में कोई कमी होने का सवाल ही नहीं उठता। जब वो इस तर्क वितर्क से थक गईं तो उनका दिमाग अब किसी और दिशा में चलने लगा।
‘कैसा हो अगर वो फिर से शादी कर लें?’
‘अमर और काजल भी तो यही चाहते हैं!’
‘एक विधवा के जैसे इतनी लम्बी लाइफ अकेले कैसे जियूँगी?’
‘इस बार अमर या काजल कहेंगे तो मैं शादी के लिए हाँ कह दूँगी!’
‘कम से कम इस शर्मिंदगी से तो छुटकारा मिलेगा!’
‘लेकिन केवल शर्मिंदगी से बचने के लिए किसी से भी तो शादी नहीं की जा सकती!’
‘शर्मिंदगी? कैसी शर्मिंदगी?’
‘सुनील के संग होने से शर्मिंदगी क्यों होने लगी?’
‘सुनील में कमी ही क्या है?’
‘मुझमें क्या कमी है?’
‘अच्छा ख़ासा लड़का तो है! देखा समझा हुआ भी है! नोन डेविल इस बेटर दैन एन अननोन डेविल!’
‘लेकिन उसको मुझमें क्यों इंटरेस्ट है? मैंने तो माँ के जैसे उसको पाला है!’
माँ यही सब सोच सोच कर हलकान हुई जा रही थीं कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। माँ ने घड़ी देखी - रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे!
‘इस समय कौन?’ उन्होंने सोचा, और प्रत्यक्षतः कहा, “आ जाओ!”
लेकिन कहते ही उनके दिल में धमक उठी कि कहीं सुनील न हो दरवाज़े पर! अगर वो हुआ, तो वो क्या करेंगीं - माँ यही सोच रही थीं कि दरवाज़ा खुलने पर काजल को देख कर उनको राहत की साँस आई।
“दीदी, अभी तक सोई नहीं?” जाहिर सी बात थी, कि नींद तो काजल को भी नहीं आ रही थी।
“ओह काजल? नहीं! नींद ही नहीं आ रही है!”
“क्या हो गया?”
“तुम क्यों नहीं सोई?”
“पता नहीं!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “न जाने क्यों तुम्हारे पास आने का मन हुआ! इसलिए इधर चली आई - देखा तो लाइट ऑन थी!”
हाँ - कमरे की बत्ती जल तो रही थी। माँ को ध्यान भी न रहा।
“थैंक यू काजल!” माँ ने बड़ी सच्चाई से कहा - उनको सच में किसी दोस्त की आवश्यकता थी, और काजल से अच्छी दोस्त उनकी कोई और नहीं थी।
“अरे दीदी! तुम भी न!” कहते हुए काजल माँ के निकट, उनके बिस्तर पर आ कर लेट गई।
“अमर सो गया?” माँ ने मुस्कुराते हुए पूछा।
“हाँ, बहुत पहले!”
“जानती है, तुम दोनों को साथ में देखती हूँ तो बहुत अच्छा लगता है मुझको!”
काजल ने कुछ कहा नहीं - वो बस मुस्कुराई।
“तुम दोनों एक हो जाओ - मेरी तो बस यही तमन्ना है अब!”
“हा हा! दीदी! तुम फिर से शुरू हो गई! बताया तो है तुमको!”
“हाँ हाँ! बताया है! बताया है! लेकिन मैं अपने मन का क्या करूँ?”
“जैसा अभी है, वैसे में क्या गड़बड़ है?”
“कुछ गड़बड़ तो नहीं है! लेकिन मन में होता है न कि तू हमेशा मेरे में साथ रहे!” माँ की आँखें भरने लगीं, “तुमने हमारे लिए इतना कुछ किया है कि अब तुम्हारे बिना मैं सोच भी नहीं सकती!”
सुबकते हुए वो बोलीं, “बहुत सेल्फ़िश हूँ मैं शायद! डर लगता है कि कहीं ऐसा वैसा कुछ न हो जाए, और तुमसे मेरा साथ छूट जाए!”
“क्या दीदी! ऐसे क्यों सोचती हो? और, मैंने क्या ही किया है? और जो तुमने किया है हमारे लिए? वो? वो कम है क्या?” काजल भी भावुक हो कर बोली, “मैं कहाँ चली जा रही हूँ?”
माँ ने कुछ कहा नहीं; बस उनकी आँखों से तीन चार आँसू टपक पड़े।
“ओ मेरी दीदी! क्या हो गया तुमको?”
माँ ने कुछ देर कुछ नहीं कहा, लेकिन फिर सिसकते हुए, लगभग फ़रियाद करते हुए बोली, “काजल तुम हमेशा मेरे साथ रहना!”
“हमेशा दीदी!!” काजल ने माँ को आलिंगन में भरते हुए कहा, “क्या सोच रही हो? देखो, मेरी तरफ देखो! दीदी, चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगी!”
काजल के पास होने मात्र से माँ को बड़ी राहत मिल गई। उनके मस्तिष्क में जो झंझावात चल रहे थे, वो शांत होने लगे।
“थैंक यू काजल!”
“अरे बस बस! चलो, अभी लेट जाओ!” कह कर काजल ने माँ को बिस्तर पर लिटा दिया, “और सोने की कोशिश करो!”
माँ भी किसी आज्ञाकारी लड़की की तरह काजल की बात मान कर लेट गईं। कुछ देर तक काजल माँ को थपकी दे कर सुलाने की कोशिश करती रही, लेकिन जब माँ को अभी भी नींद नहीं आई, तो काजल ने ही कहा,
“और मुझे तो शादी करने को हमेशा बोलती रहती हो! खुद क्यों नहीं करने की कहती? जैसी तुम हो, वैसी मैं भी तो हूँ?!”
“हा हा हा हा! अभी तो बोल रही थी कि कभी मेरा साथ नहीं छोड़ोगी! और अभी कह रही हो शादी कर लो!”
“अरे हाँ न! शादी करने से क्या हुआ? तुम्हारे दहेज़ में आऊँगी न तुम्हारे साथ ही! हा हा हा हा!”
दोनों स्त्रियाँ दिल खोल कर हँसने लगीं। माँ का मन बहुत हल्का हो गया।
“सच में दीदी! कर लो न शादी! मैं रही हूँ अकेली - मुझे मालूम है! अच्छा नहीं लगता! खालीपन सा रहता है। एक मनमीत होना चाहिए साथ!”
“अच्छा! कुछ भी कहेगी अब तू! अमर ने कब अकेला छोड़ा तुमको?”
“दीदी!!” काजल ने बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “तुम भी न! हम दोनों के बीच में ‘वो सब’ बहुत कम होता है अब! मेरा उनको देखने का नज़रिया बहुत चेंज हो गया है।”
“अरे, ऐसा क्या हो गया?” माँ को आश्चर्य हुआ।
“हाँ न! और आज से नहीं, बहुत दिनों से! अब वो पहले वाली बात नहीं रही। ऐसा नहीं है कि हम दोनों एक दूसरे से प्यार नहीं करते! बहुत करते हैं। लेकिन उस प्यार का रंग बदल गया है, रूप बदल गया है। हमने सेक्स भी केवल तीन चार बार ही किया होगा पिछले चार पाँच महीनों में। वो भी इसलिए कि या तो वो या फिर मैं बहुत परेशान थे उस समय, इसलिए बस, एक दूसरे को शांत करना ज़रूरी था।”
माँ को इस खुलासे पर बेहद आश्चर्य हुआ, “सही में काजल?”
काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
माँ ने निराशा में सर हिलाते हुए कहा, “अरे यार! मैं तो तुम दोनों के ब्याह के सपने देख रही थी, और यहाँ ये सब...”
“अरे कर लूँगी ब्याह! थोड़ी मेहनत कर के कोई और दूल्हा लाओ मेरे लिए!” काजल हँसते हुए बोली, “अमर जैसा कहाँ मिलेगा, लेकिन उसके आस पास भी फटकने वाला कोई मिल गया, तो कर लूँगी!”
“हम्म!” माँ सोच में पड़ गईं।
काजल थोड़ा ठहरी, फिर आगे बोली, “और मैं ही क्या, तुमको भी शादी करनी चाहिए। हम दोनों की कोई उम्र है, यूँ ही, अकेले अकेले रहने की?” काजल ने फिर से अपनी बात में मज़ाक घोलते हुए कहा, “दो दो बच्चे जनने की ताकत तो अभी भी है हम दोनों में! क्या दीदी?”
“हा हा हा!”
“झूठ कह रही हूँ क्या!”
“तू भी न काजल!”
“तुम सीरियसली नहीं लेती मेरी बातों को! देखो दीदी, मैं इसीलिए कह रही हूँ, कि जवान शरीर की ज़रूरतें होती हैं!”
काजल ने अर्थपूर्ण तरीके से कहा - हाँ शरीर की ज़रूरतें तो होती ही हैं। दो साल हो गए थे माँ को सम्भोग का आनंद लिए हुए। इन दो सालों में केवल दुःख ही दुःख मिले। उनकी चहेती बहू को कैंसर हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। उसके सदमे से उनके पति भी चल बसे! माँ ने अपने दिनों को बच्चों की देखभाल में स्वाहा कर दिया, लेकिन रात में, जब अकेलापन सालता, तो बहुत ही बुरी तरह! शरीर की आवश्यकताएँ तो होती हैं!
माँ ने मन ही मन काजल को कोसा उन आवश्यकताओं को याद दिलाने के लिए! लेकिन वो यह सब प्रत्यक्ष रूप से कह नहीं सकती थीं।
“हट्ट, बड़ी आई शरीर की ज़रूरतों वाली!”
“और बात केवल सेक्स की ही नहीं है,” काजल बोली जैसे उसने माँ की बात ही न सुनी हो, “कोई मनमीत तो मिलना चाहिए! है न? इतनी लाइफ पड़ी हुई है! उसको जीने के लिए अच्छे साथी की ज़रूरत तो होती ही है - जो तुम्हे अच्छी तरह समझे, तुमसे खूब प्यार करे! तुम्हारी लाइफ में खुशियों के नए नए रंग भर दे!”
“हाँ हाँ! और कहाँ है मेरा मनमीत? सब बातें कविताओं में अच्छी लगतीं हैं!”
“कोई एक तो होगा ही न दीदी?”
“एक जो था, उसको तो भगवान ने वापस बुला लिया!” माँ ने उदास होते हुए कहा।
“दीदी, ऐसे मत दुःखी होवो! भगवान तो सभी की सुध लेते हैं! तो उन्होंने कुछ तो सोचा ही होगा न तुम्हारे लिए?”
“न जाने क्या सोचा है, री!”
“बताऊँ?”
“हाँ, बताओ?”
“मुझे तो लगता है उन्होंने यह सोचा हुआ है कि मेरी दीदी की फिर से शादी हो; और उसकी गोद फिर से भर जाए!”
“हा हा हा हा! गधी है तू पूरी की पूरी!”
“अरे यार, शादी होगी तो बच्चे भी तो होंगे न!”
“हा हा हा! हाँ हाँ! बच्चे होंगे! हा हा हा! गाँव बसा नहीं, लुटेरे पहले ही आ गए!”
“बस जाएगा दीदी! बस जाएगा जल्दी ही! मेरा मन करता है। और लुटेरे भी आ जाएँगे, अगर भगवान की कृपा रही! और मुझे यकीन है कि मेरी दीदी पर भगवान की कृपा ज़रूर बनेगी! वो मेरी दीदी से रूठ ही नहीं सकते! इतनी अच्छी है मेरी दीदी!”
कहते हुए काजल ने माँ के दोनों गाल चूम लिए।
“हा हा हा! बड़ा मस्का लगाया जा रहा है आज? क्या बात है?” माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरी बच्ची को दुद्धू चाहिए क्या?” माँ ने काजल को दुलारते हुए कहा।
काजल ने खींसें निपोरते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“हा हा हा हा!” माँ को काजल की नटखट अदा पर हँसी आ गई, “तो फिर उसके लिए इतनी भूमिका क्यों बाँधी! इतनी बड़ी हो गई है, लेकिन बचपना नहीं गया तेरा!”
“तुम्हारा हस्बैंड पिए, और फिर तुम्हारे बच्चे पिएँ, उसके पहले मैं तो अपना हिस्सा ले लूँ!” कह कर काजल जल्दी जल्दी माँ के ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
“हा हा हा! हिस्सा ही चाहिए सभी को! अरे तो किसने कहा था कि मेरी बहन बन जाओ? बच्ची ही बनी रहती मेरी! हमेशा तुमको अपने सीने से लगा कर रखती!!”
माँ ने बड़े प्यार से कहा।
“सीने तो से मैं तुम्हारे अभी भी लगी ही हुई हूँ - कोई आज से थोड़े ही! सात साल से!” काजल ने माँ के ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा।
थोड़ी ही देर में माँ का ब्लाउज उनके सीने से हट गया।
काजल ने उनके स्तनों को सहलाते हुए कहा, “बहुत दिन हो गए न दीदी?”
माँ मुस्कुरा दीं।
“कामकाज में इतना फँसी रहती हूँ कि ये सब भी नहीं कर पाती!” कह कर काजल ने माँ का एक चूचक अपने मुँह में ले लिया और उसको प्रेम से चुभलाने चूसने लगी।
“तो किसने कहा कि कामकाज में ऐसे फँसी रहो!” माँ ने उसका सर सहलाते हुए कहा, “कितनी बार तो समझाया कि एक फुल-टाइम कामवाली रख लेते हैं! लेकिन तुमको तो सब कुछ खुद ही करना रहता है!”
दो महीने पहले हमारी कामवाली हमारा काम छोड़ कर चली गई थी। तब से घर का सब काम काजल ही देख रही थी।
काजल माँ के स्तनों को पीने का सुख छोड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने कुछ कहा नहीं।
“अच्छा, पुचुकी को दुद्धू पिलाया?”
काजल को मन मार कर माँ का चूचक छोड़ना ही पड़ा, “नहीं दीदी! आज कल वो बहुत कम पीती है! इसलिए अधिकतर समय केवल मेरी मिष्टी को पिलाती हूँ!”
“हम्म!” माँ ने कुछ सोचते हुए कहा, “लेकिन दोनों बच्चे पिएँगे तो दूध अधिक बनेगा न?”
“क्या करूँ! जबरदस्ती भी तो नहीं पिलाया जा सकता है न!” फिर थोड़ा रुक कर, “और अधिक दूध बन भी जाए, तो किसको पिलाऊँ?”
“अमर भी नहीं पीता क्या?”
“नहीं न! बताया तो तुमको!” काजल ने दुःखी होते हुए कहा, “और उनको मौका भी तो मिलना चाहिए न? बेचारे दिन भर तो काम में व्यस्त रहते हैं!”
“हम्म! मैं अमर से कहूँगी!” माँ ने बोला, “और पुचुकी से भी कहूँगी, कि मेरे ही सूखे सीने से न लगी रहा करे! तुम्हारा दूध पीना ज़रूरी है!”
“अरे ऐसे न करो... पीने दिया करो!” काजल बोली, “तुम दोनों में माँ-बेटी वाला रिश्ता है। मैंने देखा है कि तुम दोनों को ही सुकून मिलता है। इसलिए पिलाया करो।” फिर कुछ सोच कर, “सच में दीदी, जब बच्चे दूध छोड़ते हैं न, तो माँ को ही सबसे बुरा लगता है!”
कुछ देर दोनों ने कुछ नहीं कहा। फिर काजल ही बोली, “पता है, पिछले हफ़्ते सुनील को पिलाया!”
सुनील का नाम सुनते ही माँ का दिल धमक उठा। समझ नहीं आया कि वो क्या बोलें। चुप ही रहीं, यह सोच कर कि बताने वाली और बात होगी, तो काजल खुद ही बताएगी! उनका संदेह सही साबित हुआ।
काजल जैसे उस समय को याद करते हुए बोली, “जब उसने मेरे दूध को मुँह लगाया न, सच कहूँ, आनंद आ गया। ऐसा लगा कि जैसे मेरा बेटा वापस मिल गया हो मुझको।” फिर कुछ सोचते हुए, “सोच रही हूँ कि उसकी पसंद की लड़की से उसकी शादी करा दूँ - जिससे वो बहू को साथ ही लेता जाए मुंबई!”
माँ का गला सूख गया इस बात पर।
‘काजल को कोई संशय ही नहीं है कि कैसी समस्या आन पड़ी है मुझ पर,’ उन्होंने सोचा!
“फिर तो तुम अकेली रह जाओगी,” माँ के मुँह से बेसाख़्ता निकल गया - अनजाने ही।
माँ की बात सही थी, और प्रासंगिक भी। हास्यास्पद बात है कि अपने धुर विरोध के बाद भी उनके मुँह से ऐसी बात निकल गई थी।
“क्यों?”
“अ..म..म्मममेरा मतलब है, बहू उसके साथ रहेगी तो...” उन्होंने अपनी बात को सम्हालने की अनगढ़ कोशिश की।
“अरे तो पत्नी को अपने पति के साथ ही तो रहना चाहिए! सास के साथ थोड़े ही। बहू है, नौकरानी थोड़े ही!” काजल ने हँसते हुए कहा।
माँ को लगा कि बात बदल देनी चाहिए।
“हम्म!” माँ ने कुछ सोचा और बोलीं, “आज कल तुम खाने पीने पर ध्यान नहीं दे रही हो लगता है!”
“अरे ऐसे कैसे?”
“हमेशा घर के काम में फँसी रहती हो! क्या गलत कहा मैंने?”
कुछ देर तक दोनों कुछ नहीं बोलीं... फिर, “कम से कम एक साफ़ सफाई करने वाली रख लेते हैं न?” माँ ने जैसे मनुहारते हुए कहा।
काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। जैसे उसने इस बात की अनुमति दे दी हो। माँ मुस्कुराईं।
कुछ देर स्तनपान करने के बाद काजल ने माँ से अलग होते हुए कहा, “सच में दीदी, आनंद आ गया!”
फिर कुछ सोच कर, “तुम कुछ उल्टा पुल्टा मत सोचा करो। अगर तुम मुझसे अपने दिल की बातें नहीं कर पाओगी, तो और कौन कर पाएगा? कभी परेशान हुआ करो, तो बेहिचक मुझसे कहो! मैं हूँ न!”
“मालूम है काजल! तुम तो मेरी सबसे अच्छी और सबसे पक्की सहेली हो!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा। उनका दिल अपने अंदर उठते बैठते भावों से भर गया।
“दीदी, जैसी मेरी तमन्ना सुनील का घर आबाद होने की है, वैसी ही तमन्ना तुम्हारे लिए भी है। चाहती हूँ कि तुम फिर से सुहागिन बन जाओ और तुम्हारी कोख फिर से आबाद हो जाए!”
“चल!” माँ के चेहरे पर शर्म की रंगत उतर आई, “इस उम्र में ये सब होता है भला?”
“फिर उम्र की बात ले कर बैठ गई! अरे, क्यों नहीं होता?” काजल ने बहस वाले अंदाज़ में कहा, “और क्या उम्र हो गई है तुम्हारी? मैं तो भगवान से यही प्रार्थना कर रही हूँ कि तुम्हारी जल्दी से जल्दी शादी हो जाए! तुमको भी थोड़ा सुख मिले!”
“हा हा हा!”
“और नहीं तो क्या!” काजल ने माँ के स्तनों को हलके से दबाते हुए कहा, “इन ठोस ठोस बूनियों पर किसी जवाँ मर्द का हाथ चाहिए। देखो न - कैसे घमंड से अकड़ी हुई हैं दोनों! कोई होना चाहिए जो इनकी सारी अकड़ निकाल दे!”
माँ काजल की बात पर शर्म से हँसने लगीं, “तो क्या चाहती है तू, दोनों लटक जाएँ?”
“बिलकुल भी नहीं! लटकें तुम्हारे दुश्मन! अरे मेरी दीदी अभी भी जवान है! उसके शरीर में जवानी की अकड़ है! उसकी तो अलग ही शान होती है! इसीलिए तो तुमको जवानी के खेल खेलने के लिए कहती हूँ न दीदी!”
“हा हा हा!”
“सच में, एक बढ़िया सा, हैंडसम सा, तगड़ा सा, अच्छा पढ़ा लिखा हस्बैंड मिल जाए तुम्हारे लिए! बस!” काजल बोली।
काजल की बात पर माँ के मानस पटल पर अनायास ही सुनील का चित्र आ गया। बहुत कोशिश करने पर भी वो चित्र हट नहीं सका।
“सोचो न! तुम्हारे सैयां जी आएँगे, तुम्हारी बूनियों को तुम्हारी ब्लाउज की क़ैद से आज़ाद करेंगे, इनको चूमेंगे, चूसेंगे, और इनको मसलेंगे, तब निकलेगी इनकी सारी अकड़! और फिर आएगा तुमको मज़ा!” काजल ने चटकारे लेते हुए कहा।
माँ के साथ इस तरह की बातें, उनके साथ ऐसा मज़ाक, केवल काजल ही कर सकती थी। भगवान का शुक्र था कि ऐसे समय में काजल उनके साथ थी। नहीं तो न जाने माँ का डिप्रेशन उनको कैसी गहराइयों में लिए चला जाता! उधर सुनील द्वारा अपने स्तनों का मर्दन किए जाने का दृश्य सोच कर माँ की हालत खराब हो गई। अकल्पनीय दृश्य था वो!
“हट्ट! बद्तमीज़!” माँ ने उसके हाथ पर हलकी सी चपत लगाते हुए प्यार भरी झिड़की दी। लेकिन उनकी आवाज़ कामुकता से भर्राने लगी थी।
“अच्छा जी, हम कर रहे हैं तो बद्तमीज़ी, आपके ‘वो’ करेंगे, तो प्यार?”
“ठीक है मेरी माँ! तू ही कर ले जो मन करे वो!”
“अरे नहीं नहीं! मैं कैसे कर दूँ यह सब? तुम्हारी बूनियों की मरम्मत तुम्हारे ‘वो’ करेंगे, और मेरी बूनियों की मरम्मत मेरे ‘वो’!” काजल ने माँ के स्तनों को सहलाते हुए कहा, “और फिर मस्त चुदाई भी तो होगी!”
‘क्या? सुनील? सुनील के साथ सम्भोग!’ महा अकल्पनीय दृश्य! माँ अंदर ही अंदर सिहर गईं।
काजल की इस बात पर माँ ने फिर से उसको चपत लगाई, “आह! हट्ट गन्दी, बेशर्म, बद्तमीज़!”
“हाँ हाँ! दे लो मुझे गालियाँ!”
माँ की बातों का काजल पर कोई असर ही नहीं होता था। दोनों ऐसी अंतरंग, ऐसी घनिष्ठ थीं कि सगी बहनें - जुड़वाँ बहनें भी नहीं हो सकतीं। उसने हाथ बढ़ा कर माँ के नितम्बों को दबाया।
“दुद्धू तो दुद्धू, ये पुट्ठे भी क्या बढ़िया ठोस ठोस हैं!”
“हा हा हा!”
उसने माँ की साड़ी और पेटीकोट को साथ ही में पकड़ कर नीचे सरकाना शुरू कर दिया।
“क्या कर रही है काजल! क्या हो गया तुझे?” माँ की हालत भी खराब हो रही थी - एक तरफ तो कामुकता का प्रहार हो रहा था, वहीं दूसरी तरफ सरकता हुआ वस्त्र उनके नितम्बों को कुचलते हुए उतर रहा था। इसलिए उनको तकलीफ भी हो रही थी।
लेकिन काजल को इस बात की कोई परवाह नहीं थी। कुछ ही देर में माँ कमर से नीचे पूरी तरह से नग्न हो गईं। शरीर के ऊपरी हिस्से पर उन्होंने ब्लाउज पहना हुआ था, जो पूरी तरह से खुला हुआ था। काजल ने उनकी जाँघों और योनि को सहलाया।
माँ सिहर गईं!
काजल पहले भी माँ की मालिश इत्यादि करती रही थी। तब उनको ऐसा अनुभव नहीं हुआ था... लेकिन आज! कहीं सुनील का ही तो असर नहीं है!
“दीदी, तुम्हारी जवानी में कोई कमी नहीं है!” उधर काजल माँ की योनि में अपनी उंगली थोड़ा सा प्रविष्ट करते हुए बोली, “देखो न, कैसे ज़ोर से मेरी उंगली को पकड़े हुए है तुम्हारी चूत!”
“हट्ट काजल! तू बदतमीज हो गई है बहुत!” माँ विरोध करने की हालत में नहीं थीं, लेकिन उन्होंने जैसे तैसे अपना विरोध दर्ज किया।
“होने दो! दीदी, समझा करो! तुम्हारी चूत को चाहिए एक मज़बूत लण्ड! तुम्हारी बूनियों को चाहिए कड़क हाथ! और तुमको चाहिए एक बहुत बहुत बहुत प्यार करने वाला हस्बैंड! ये तो तुम्हारे खेलने खाने के दिन हैं! क्या यूँ ही गुमसुम सी बनी रहती हो! तुमको तो आनंद उठाना चाहिए, उमंग में रहना चाहिए! हँसते गाते रहना चाहिए।”
“हा हा हा हा! तू पूरी गधी है काजल! विधवा हूँ मैं!”
“पाप हो गया क्या विधवा होना? वैसे, न जाने क्यों मेरे मन में आता है कि बहुत दिन नहीं रहोगी!” काजल ने अचानक ही गंभीर होते हुए कहा, “सच में दीदी! तुम्हारी शादी हो जाए न, तो समझो मैं भगीरथ नहाई!”
“भग यहाँ से!” माँ अब तक शर्म से पानी पानी हो चली थीं।
“हाँ हाँ! भगा लो मुझे! लेकिन अपने ‘उनको’ तो खुद से यूँ लपेट कर रखोगी!” काजल बोली, और हँसते हुए वहाँ से चली गई।
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sunil ne aakhirkar PNI gandi soch samne rakh hi di..mai aisa kyun bol raha hu iska ek reason hai kyunki sunil jo suman ke pairo ke sath wahiyat harkat kar raha tha woh galat thi aur aisi harkat ke sath kisi ko propose karna bahot hi galat hai..!! suman ne sahi kaha ki usne kabhi sunil ko uss najar se dekha hi nahi..woh toh bas sunil ko apne bachhe jaisa pali hai..aur sunil ne uski mamta ka galat matlab nikal liya aur ab pyaar ka ijhar kar diya..!! suman agar zindagi bhar apne pati ke pyaar ke sath rehkar khush hai toh usko dubara shaadi karne ke liye bolna galat hai..aisi aurte bhi hoti hai jo apne pati ke siwa kisi aur ke bare me sochti bhi nahi waisi hi suman hai..usne ek baar hi apne pati se pyaar kiya aur ab woh unhi yaado ke sath khush hai toh usse aise dusri shaadi ke liye bolte rehna galat hai..!! abhi woh isliye dukhi hai ki uske pati mar gaye hai..lekin iska matlab yeh nahi ki dusri shaadi ke kar ke woh khush ho jayegi..yahi ek option nahi hai..woh dhire dhire apne bachho me ghul milkar bhi aage khushi se zindagi gujar sakti hai..!! main baat suman ne kabhi sunil ko uss najariye se nahi dekha aur dekhegi bhi nahi..usne amar aur gaby ke sambhog ke time sirf amar ko hi uss najar se dekha tha aur yeh kahani amar ki hai toh sunil ka chapter jaldi close kar do..aur main baat sunil aur suman me 10-12 saal ka nahi 22 saal ka difference hai..aur main yaha pe samaj kya kahega iski baat nahi kar raha hu balki logically aisa rishta ho hi nahi sakta aur suman kabhi pregnant bhi nahi hosakti..aur samaj ki baat chhodo khud suman ne uss ladke sunil ko bete ki tarah bada kiya woh hi aisi gandi soch rakhega toh galat hi hai..!! bhai meri baat ka bura mat manana lekin muze yeh pasand nahi aaya..baki aapki marji hai..!!
nice update..!!
bhai mai firse wahi kahunga ki sunil jo kar raha hai aur soch raha hai woh galat hai..aur sabse badi galat baat hai ki apni chhoti behen ko isme shamil karna..woh bichari jisko mumma kehti hai usko apne bhai ke sath dekhne ke liye khush hai lekin aisi baate puchki ke dimag me sunil ko nahi dalni chahiye thi..sunil jo bhi kar raha hai bahot galat kar raha hai..suman ko uske pati ne itna pyaar diya hai ki woh puri zindagi gujar sakti hai iss pyaar ke sahare lekin uski feelings ke sath aisa khelkar sunil galat kar raha hai..aur yeh baat kajal aur amar ko sunil ko samjhani chahiye..aur bhai sunil jo chahta hai waisa kabhi nahi hona chahiye mai bas itna hi kahunga..!!
nice update..!!
are yaar kyun yeh kajal suman par shaadi ki zabardasti kar rahi hai..usko apne pati se bahot pyaar mila hai aur woh ussi pyaar ke sath khush hai toh kyun usko bhadka rahi hai..kajal janti hai uska beta suman ke pichhe pada hai isliye hi toh woh apne bete ko pyaar dilwane ke liye suman ko bhadka rahi hai lekin yeh bahot galat baat hai..aise kisi par apni baat thopne ke liye uski kamagni jagrut karna bahot galat baat hai..!! bhai pichhle bahot sare updates me amar aur suman ka kuchh scene hi nahi bana hai..amar main lead hai kahani ka aur woh hi missing hai..aisa nahi hona chahiye..amar aur suman dono pehle kaise ek dusre ke liye jite the..amar jab pehli chudayi ki thi tab bhi suman hi uske sath thi aur amar ko achhese samjha bhi rahi thi..dono ka kitna gehra bond tha..ab yeh sunil aur kajal ke aane ki wajah se amar aur suman ka bond kahi kho gaya hai..amar kabhi suman ki baat ko talta nahi tha lekin ab kuchh aur hi chal raha hai..bhai mai apne dil ki baat bol raha hu ki amar aur suman dono ko thoda akele me ek dusre ke sath time bitana chahiye..dono ko sukun milega..aur iss sunil ko thodi akal do aur usko suman se dur kar do yaar..muze yeh bahot galat lag raha hai..!! aur yeh kajal baar baar suman ko maa banane ki baat kyun bol rahi hai kyunki aapne pehle hi clear diya tha ki suman aur uske pati ne ek hi bachhe par stop laga diya tha aur suman ka operation kar diya tha..toh bachha hone ka sawal hi paida nahi hota..!! aur amar jo yeh soch palkar baitha hai ki sunil aur kajal dono ki wajah se suman depression se bahar nikal rahi hai yeh galat hai..woh abhi bhi apne pati ki judayi me hai aur usse sach me apne bete amar ke sahare ki jarurat hai..amar hi hai jo suman aur uske pati ki nishani hai aur woh hi apni maa suman ko firse hasta khelta bana sakta hai..yeh jald se jald amar ko samajh jana chahiye..!! sunil ko suman ka pyaar pana hai isliye uske sath ghul mil kar reh raha hai isme sunil ka swarth hi hai..kajal jo apne bete ko uska pyaar mil jaye isliye suman ki kamagni bhadka rahi hai yeh kajal ka swarth hai..lekin suman ke dil ke halat koi jan hi nahi raha hai..bas dusre shaadi ki rat lagaye baithe hai..suman apne pati ke jane se dukhi hai iska matlab yeh nahi ki woh dusri shaadi kar le..suman ko inn sab se amar hi nikal sakta hai kyunki amar ka koi swarth nahi hai..amar ko bhi samajhna chahiye ki uske maa ko uske sath ki jarurat hai..suman nahi chahti hai ki kisi se shaadi karna toh isme kuchh galat nahi hai..woh apne pati ke yaadon me hi apni zindagi bitana chahti hai toh yeh uski khud ki marji hai..aur amar ko apni maa ke ichha ki respect karte huye hi usko sambhalna chahiye aur apne pyaar se usko khush karna chahiye..muze lagta hai suman ko lekar aman kahi ghum aaye aur uske sath khushi ke pal bitaye toh suman bhi depression se apne aap bahar aayegi..bas ab sunil ka chapter close kar do aur usko suman se dur rakho..!!
nice update..!!
are yaar kyun yeh kajal suman par shaadi ki zabardasti kar rahi hai..usko apne pati se bahot pyaar mila hai aur woh ussi pyaar ke sath khush hai toh kyun usko bhadka rahi hai..kajal janti hai uska beta suman ke pichhe pada hai isliye hi toh woh apne bete ko pyaar dilwane ke liye suman ko bhadka rahi hai lekin yeh bahot galat baat hai..aise kisi par apni baat thopne ke liye uski kamagni jagrut karna bahot galat baat hai..!! bhai pichhle bahot sare updates me amar aur suman ka kuchh scene hi nahi bana hai..amar main lead hai kahani ka aur woh hi missing hai..aisa nahi hona chahiye..amar aur suman dono pehle kaise ek dusre ke liye jite the..amar jab pehli chudayi ki thi tab bhi suman hi uske sath thi aur amar ko achhese samjha bhi rahi thi..dono ka kitna gehra bond tha..ab yeh sunil aur kajal ke aane ki wajah se amar aur suman ka bond kahi kho gaya hai..amar kabhi suman ki baat ko talta nahi tha lekin ab kuchh aur hi chal raha hai..bhai mai apne dil ki baat bol raha hu ki amar aur suman dono ko thoda akele me ek dusre ke sath time bitana chahiye..dono ko sukun milega..aur iss sunil ko thodi akal do aur usko suman se dur kar do yaar..muze yeh bahot galat lag raha hai..!! aur yeh kajal baar baar suman ko maa banane ki baat kyun bol rahi hai kyunki aapne pehle hi clear diya tha ki suman aur uske pati ne ek hi bachhe par stop laga diya tha aur suman ka operation kar diya tha..toh bachha hone ka sawal hi paida nahi hota..!! aur amar jo yeh soch palkar baitha hai ki sunil aur kajal dono ki wajah se suman depression se bahar nikal rahi hai yeh galat hai..woh abhi bhi apne pati ki judayi me hai aur usse sach me apne bete amar ke sahare ki jarurat hai..amar hi hai jo suman aur uske pati ki nishani hai aur woh hi apni maa suman ko firse hasta khelta bana sakta hai..yeh jald se jald amar ko samajh jana chahiye..!! sunil ko suman ka pyaar pana hai isliye uske sath ghul mil kar reh raha hai isme sunil ka swarth hi hai..kajal jo apne bete ko uska pyaar mil jaye isliye suman ki kamagni bhadka rahi hai yeh kajal ka swarth hai..lekin suman ke dil ke halat koi jan hi nahi raha hai..bas dusre shaadi ki rat lagaye baithe hai..suman apne pati ke jane se dukhi hai iska matlab yeh nahi ki woh dusri shaadi kar le..suman ko inn sab se amar hi nikal sakta hai kyunki amar ka koi swarth nahi hai..amar ko bhi samajhna chahiye ki uske maa ko uske sath ki jarurat hai..suman nahi chahti hai ki kisi se shaadi karna toh isme kuchh galat nahi hai..woh apne pati ke yaadon me hi apni zindagi bitana chahti hai toh yeh uski khud ki marji hai..aur amar ko apni maa ke ichha ki respect karte huye hi usko sambhalna chahiye aur apne pyaar se usko khush karna chahiye..muze lagta hai suman ko lekar aman kahi ghum aaye aur uske sath khushi ke pal bitaye toh suman bhi depression se apne aap bahar aayegi..bas ab sunil ka chapter close kar do aur usko suman se dur rakho..!!
congratulations for 100 pages..!!
waiting for next update..!!
Thank you bhai sahab.Story is going great... Keep it up... Just one request... Sunil aur suman ki shadi karwao.. Aur shadi mein aur baad mein suman sunil ke paon sparsh kare aur 1 adarsh patni bane
bhai aap maine jo bola hai uska galat matlab na nikale..maine jo kaha usse me sahi hi manta hu aur meri yeh hi soch hai ki agar aurat aur uss ladke me 22 saal ka antar hai toh unka shaadi karna bahot hi galat baat hai aur same chiz mai mard ke liye bhi kahunga ki agar mard uss ladki se 22 saal se bada hai toh unko bhi shaadi karna galat hi hai..aur mai iss baat pe kabhi sehmat nahi hu ki sunil suman se shaadi kare kyunki sunil abhi sirf 21 saal ka hai..usko suman ne ek maa ki tarah pala hai..aapne pehle point me jaise bola ki sunil ne suman ko bachpan se dekha hai aur uske gun janta hai toh kyun sunil suman se shaadi nahi kar sakta..toh hum sab bhi apne liye aisi ladki dhundhate hai ki woh humari maa ki tarah guni aur sanskari ho lekin iska matlab yeh nahi ki hum apni maa se hi shaadi kare..bhale sunil aur suman ka blood relation nahi hai lekin sunil jis aurat ko bachpan se maaji kehke pukara ho aaj usse hi usko shaadi karni hai..yeh toh galat hai..suman ki mamta ka toh yeh apman hi hai..!! muze toh yahi lagta hai ki sunil ne apne education ke douran sirf padhayi pe hi focus kiya aur jab woh ghat aaya toh usne suman ko dekha aur uski taraf aatract hogaya hai..aur yeh baat sunil ko jald se jald samajh aani chahiye..!!भाई साहब - सबसे पहले आपका तमाम शुक्रिया, कि इतने दिनों के बाद मेरी कहानी पर आए और साथ ही सारे के सारे नए अपडेट पढ़ कर उन पर अपने विचार भी रख दिए!
आप जैसे पाठकों के ही साथ से लिखते रहने की प्रेरणा मिलती रहती है - इसलिए आपसे निवेदन है कि साथ में यूँ ही बने रहे
कुछ अन्य पाठकों की ही तरह आपके विचार भी सुनील को ले कर संदेहास्पद हैं, जो की मेरे लिए बोधगम्य हैं!
हमारे समाज में प्रौढ़ स्त्री, और युवा पुरुष के बीच सामान्य सम्बन्ध की परिकल्पना ही नहीं है। हाँ, प्रौढ़ या वृद्ध पुरुष हो और युवा स्त्री हो, तो उसको बिना किसी हील हुज्जत के, बिना किसी तर्क वितर्क के स्वीकार कर लिया जाता है। मेरे ख्याल से वही यहाँ भी हो रहा है। इस फोरम पर देखता हूँ -- माँ बेटा के बीच सम्भोग की कहानियों को चटकारे ले कर लिखा और पढ़ा जाता है। वो स्वीकार्य है सभी को। लेकिन एक विधवा स्त्री से एक युवा पुरुष का "प्रेम" स्वीकार्य होता नहीं प्रतीत हो रहा है।
यहाँ पर मेरा मत आपसे बहुत भिन्न है। सबसे पहली बात तो यह है कि मेरा मानना है कि सुनील के विचार सुमन के लिए प्रायः प्रेम वाले ही हैं।
- सबसे पहली बात, उसने अपने किशोरावस्था से सुमन को देखा है, उसके गुणों को देखा है, और उससे लाभान्वित भी हुआ है। तो अगर वो वही सभी गुण अपनी होने वाली पत्नी में चाहता है, तो उसमे हर्ज़ ही क्या है, वो मेरी समझ से तो बाहर है। यह सभी बातें आगे आने वाले अपडेट में उल्लेखनीय रहेंगीं!
- दूसरा, सुमन का पति अभी जीवित नहीं है। समाज के बनाये हुए उसूलों के चक्कर में वो पुनर्विवाह से कतरा रही है - इसका मतलब यह नहीं है कि वो फिर से विवाह नहीं करना चाहती, या फिर अपने पहले (पूर्व) पति की ही यादों के सहारे जीवित रहना चाहती है। उसकी उम्र भी ऐसी कुछ नहीं हुई है। ऐसे में उसकी हिचक के ही आधार पर यह अनुमान लगाना कि वो शादी नहीं करना चाहती, यह एक उतावलेपन से भरा निष्कर्ष है।
- तीसरा, उसके लायक कोई वर अभी तक अमर उसके सम्मुख नहीं ला पाया है। वो स्वयं भी व्यस्त है - खुद भी अपने दुःख से दो-चार होना सीख रहा है। बिना कोई ऑप्शन दिए, सुमन से किसी भी तरह की पहल की उम्मीद करना अमर के लिए मूर्खतापूर्ण बात है। सुमन शायद इस बात को लेकर भी हिचक रही है कि वो अब एक दादी-माँ है। इसमें उसकी क्या गलती है? चौदह में शादी, पंद्रह में माँ, और उन्तालीस में दादी बनना - यह उसने तो नहीं कहा! उसने तो अपने माँ बाप से नहीं कहा कि उसकी शादी इतनी जल्दी कर दो, या अपने बेटे से नहीं कहा कि इतनी जल्दी बच्चे कर लो। तो फिर इस बात का खामियाज़ा वो क्यों भरे? फैक्ट तो बस यह है कि वो एक तैंतालीस साल की सुन्दर और गुणी महिला है, जो अकेली है। विधवा महिला या कोई भी महिला किसी की जागीर नहीं होती।
- चौथा, यह बात बताना आवश्यक है कि काजल सच में सुमन की पक्की सहेली है, जो उसका भला बुरा शायद उससे भी अच्छी तरह जानती है। और केवल सुमन का ही नहीं, वो इस पूरे घर का भी भला जानती है और चाहती है। यही कारण है कि अवसाद के गहरे गड्ढे से वो सुमन को बाहर निकाल लाई। अब इस बात में काजल का भला क्या स्वार्थ हो सकता है? वो तो बेचारी सैलरी भी नहीं लेती - न ही अपने जॉइंट अकाउंट से पैसे ही लेती है। अगर काजल को अपनी स्वार्थ सिद्धि करनी होती, तो वो बड़े आराम से अमर से शादी कर लेती, और घर की मालकिन बन कर, सुमन को बाहर निकाल फेंकती! आभा की सौतेली माँ बन कर उसके जीवन का सर्वनाश कर देती। अपनी बेटी को वो सभी सुख देती, जिनसे वो स्वयं वंचित रही है। है कि नहीं? ऐसे में अमर या सुमन क्या कर लेते? इसलिए कम से कम काजल पर संदेह करना तो बंद कीजिए - उससे अधिक स्वार्थहीन किरदार शायद ही कोई हो इस कहानी में! देखा जाए तो अमर और सुमन ने अपने स्वार्थ के लिए काजल को बुलाया।
- पांचवां, सुनील के पास भी विकल्पों की क्या कमी है? बढ़िया आई आई टी से पढ़ा हुआ छात्र है। उसकी बढ़िया नौकरी है! वो गुणी है। हैंडसम है। कोई भी जवान लड़की मिल जायेगी उसको। नहीं? लेकिन उसको सुमन से प्रेम है। और वो इसलिए कि वो सुमन के गुणों से प्रभावित है।
ऐसे में केवल एक बात उन दोनों के बीच में आ कर अटकती है, और वो है सुमन की उम्र! लेकिन, प्रेम करने वाले उम्र, वर्ण, जाती, धर्म - यह सब कहाँ देखते हैं? अगर सुनील को सच में सुमन से सच्चा प्रेम है, तो क्या ही हर्ज़ है? उसके प्रेम को मानना या न मानना सुमन के हाथ में है। लेकिन सुनील अपनी बात तो कर ही सकता है न? अगर सुमन मान जाए और वो दोनों विधिपूर्वक शादी कर लें, तो इसमें बुराई क्या है, मेरी समझ से तो बहुत बाहर है। केवल इसलिए कि सुमन उससे दो-गुनी उम्र की है, वो उससे अपने प्रेम का इज़हार न करे?
प्रेम और वासना में अंतर है - यह आपने सही लिखा है! लेकिन क्या सच में सुनील की भावना वासनामय है? इस हिसाब से तो सभी प्रेमियों की भावना में वासना होती है। अपनी प्रेमिका से, अपनी पत्नी से ही तो आदमी प्रेम सम्बन्ध बनाता है। तभी तो उनका संसार बनता है! तभी तो उसके बच्चे होते हैं। क्या यह गलत है? क्या हम सभी वासना की उपज हैं?
आपने किसी जगह लिखा कि सुमन ने ऑपरेशन करवा लिया था - नहीं ऐसे नहीं था। सुमन के पति ने नसबंदी कराई थी। वो भी इसलिए क्योंकि वो आर्थिक रूप से संपन्न नहीं थे। यह बात आप किसी पुराने अपडेट में पढ़ सकते हैं।
जहाँ तक बात सुमन और अमर की है - तो भाई, जिस व्यक्ति ने अपनी दो पत्नियाँ और दो बच्चे, और अपना पिता इतने कम समय के अंतराल में खो दिया हो, वो अपना मानसिक और भावनात्मक संतुलन बनाए हुए है, वही बड़ी बात है। यहाँ अमर तो अपना बिज़नेस भी जमाने पर लगा हुआ है। ऐसे में सुमन का अतिरिक्त भार उस पर होना, अत्याचार की ही श्रेणी में माना जाना चाहिए।
उम्मीद है कि मैंने आपके अनेकों प्रश्नों और संदेहों का निवारण कर दिया है। थोड़ा समय दीजिए। सुनील और सुमन के बीच अभी भी बहुत कुछ बाकी है।
इतनी जल्दी से काजल / सुनील / अमर पर आक्षेप या लांछन मत लगाईये। सबकी अपनी अपनी मजबूरियाँ और अपने अपने कारण हैं।
और अंतिम बार -- अमर इस कहानी का कोई हीरो वीरो नहीं है। वो इस कहानी का मुख्य किरदार है। उसके इर्द गिर्द उसका पूरा संसार है, जिनके जीवन की कहानी लिखी गई है यहाँ। समय समय पर इस कहानी में कोई भी किरदार महत्वपूर्ण हो जाएगा।
bhai aap maine jo bola hai uska galat matlab na nikale..maine jo kaha usse me sahi hi manta hu aur meri yeh hi soch hai ki agar aurat aur uss ladke me 22 saal ka antar hai toh unka shaadi karna bahot hi galat baat hai aur same chiz mai mard ke liye bhi kahunga ki agar mard uss ladki se 22 saal se bada hai toh unko bhi shaadi karna galat hi hai..aur mai iss baat pe kabhi sehmat nahi hu ki sunil suman se shaadi kare kyunki sunil abhi sirf 21 saal ka hai..usko suman ne ek maa ki tarah pala hai..aapne pehle point me jaise bola ki sunil ne suman ko bachpan se dekha hai aur uske gun janta hai toh kyun sunil suman se shaadi nahi kar sakta..toh hum sab bhi apne liye aisi ladki dhundhate hai ki woh humari maa ki tarah guni aur sanskari ho lekin iska matlab yeh nahi ki hum apni maa se hi shaadi kare..bhale sunil aur suman ka blood relation nahi hai lekin sunil jis aurat ko bachpan se maaji kehke pukara ho aaj usse hi usko shaadi karni hai..yeh toh galat hai..suman ki mamta ka toh yeh apman hi hai..!! muze toh yahi lagta hai ki sunil ne apne education ke douran sirf padhayi pe hi focus kiya aur jab woh ghat aaya toh usne suman ko dekha aur uski taraf aatract hogaya hai..aur yeh baat sunil ko jald se jald samajh aani chahiye..!!
second point me aap bol rahe hai ki suman apne pati ki yaadon me gum hai toh koi bhi aurat pati ke marne ke baad dukhi hona toh banta hai..iska matlab yeh nahi nikalta ki uska yeh dukh sirf dusri shaadi kar ke hi jayega..aapne jaise badi aaurat aur unse umar me chhote pati ke examples diye hai waise hi mai bhi aapko bahot sare examples de sakta hu jo aurte apne pati ke marne ke baad uski pyaar bhari yaadon ke sath hi jina chahti hai..yeh unki choice hai ki woh kaise jina chahti hai..!!
aapka tisra point hai ki suman ne nahi kaha ki uski 14 me shaadi kar do aur 15 me bachha..lekin suman itni chhoti hone ke bawjood bhi uske pati ne usko beintaha pyaar diya aur woh pyaar 28 saal tak kayam raha..koi bhi aurat ho iss baat ke liye raaji nahi hogi ki abhi uska pati mara hai aur jis ladke ko usne apni mamta se bada kiya usse hi shaadi kar le..suman ke mann se sirf khela ja raha hai..!! mai firse yahi kahunga ki suman 43 saal ki widhwa hai toh usko sukhi rehne ke liye shaadi hi karni chahiye..kajal ki baat alag hai woh dubara shaadi kar sakti hai kyunki usko pati ka pyaar mila hi nahi kyunki uska pati harami tha..lekin suman ko 28 saal tak apne pati ka beintaha pyaar mila hai aur agar woh iss pyaar bhari yaadon ke sath jina chahti hai toh isme kuchh galat nahi hai..!!
chouthe point me aapne bataya ki mai kajal ko bura bol raha hu..lekin aisi baat nahi hai..!! kajal ne bahot kuchh kiya hai amar ki family ke liye aur same chiz amar ne bhi bahot kuchh kiya hai kajal ki family ke liye..!! mai kajal ka swarth apne bete ke liye jo hai wahi baya raha hu..kajal jo suman ke andar janbujh kar kamagni bhadka rahi hai jiske chalte sunil ko suman ha bol de toh yeh bahot galat hai..mai sirf iske liye kajal ko swarthi bola aur suman ko kajal ke roop me ek dost ki jarurat hai lekin kajal toh suman ki kamagni bhadka rahi hai..baki kajal ne kabhi apna swarth nahi dikhaya hai..!! sunil ko bhi apna swarth hi mukammal karna hai suman ka pyaar pakar..lekin sunil ne apni maa ji suman jaise gun kisi aur ladki me dekhne ki koshish hi nahi ki hai kyunki woh padhayi me hi itna busy tha..lekin ab uska mind free hai toh woh suman ki taraf attract hogaya hai aur ab usse pana chahta hai..lekin sunil ne yeh nahi socha ki uski iss harkat se suman pe kya bitegi kyunki suman toh ek bete ki tarah hi sunil ko pal poskar bada kiya hai..!!
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aur aapne ek baat boli ki iss forum pe incest pe jyada focus diya jata hai toh yeh baat sach hai..lekin maine suman aur amar ko lekar jo baat boli hai woh iss forum ke hisab se nahi boli,,maine yeh baat iss story ke hisab se hi boli hai..kyunki jab gaby aur amar ki shaadi aur suhaagraat huyi thi tab hi suman amar ko khud ke liye imagine kar chuki thi aur amar bhi apni maa suman ko khud ke liye imagine kar chuka tha..isliye maine suman aur amar ke pyaar ke liye yeh baat boli thi..aap bhi sochiye ki pehle jo amar aur suman ka bond tha waisa bond amar ka kabhi kisi ke sath nahi bana lekin ab kahani me aisa lagta hai ki amar aur suman ek dusre se bahot dur hogaye hai..unka pehle jaisa bond muze dekhna hai..uske baad amar aur suman ka pyaar kis mukam pe jayega yeh unki taqdir hi hogi..amar ko suman ke sath akele me tim bitana chahiye..bhale hi kajal suman ko kitna bhi khush rakhe lekin suman ko amar ke sath khushi milegi woh alag hi hogi..isliye maine bola ki amar suman ki taraf dhyaan de aur uske sath akele me samay bitaye..!!
aur ek mai example deta hu aapko..ek bachhe ko dono pati patni apne khud ke bachhe ki tarah paal poskar badha karte hai lekin bich me hi uss aurat ka pati mar jata hai toh iska matlab yeh nahi ki woh jo bachha hai jisko inhone bada kiya ek maa baap ki tarah toh woh khud hi apne baap ki jagah lene ka soche kyunki uska blood relation nahi hai uss aurat ke sath..yeh toh galat hai na bhai..yahi haal suman ke sath huva hai kyunki usne bhi ek bete ki tarah hi sunil ko bada kiya lekin sunil ab galat hi raah pakad raha hai..sunil apni zindagi me suman jaise gunwali ladki chahta hai yeh sach baat hai lekin ab suman akeli hai toh usko hi apni biwi bana lo toh yeh soch toh galat hai na bhai..!! mai sunil ko bhala bura nahi bol raha hu..woh ek achha ladka hai aur zindagi me bahot aage jayega..mai bas sunil ki ab jo soch hai usko galat bol raha hu..!! mai toh kabhi bhi nahi chahunga ki suman aur sunil me aisa rishta bane..shaadi me sirf pyaar hi nahi dekha jyata..future ki aur bahot si chize dekhi jati hai jisko shayad sunil nahi dekh raha hai aur suman akeli hai isliye uski taraf attract hokar usko pyaar samajh baitha hai..!! kajal ko mai kabhi swarthi nahi bolunga kyunki woh niswarth aurat hai..maine bas yahi bola hai woh apne bete ke liye swarthi bani hai aur suman ki aag bhadka rahi hai..baki kajal toh bahot achhi aurat hai..!!
muze bas yahi lagta hai ki amar apni maa suman ke sath time spend kare akele me aur uske mann ki baat jane aur khush rakhe..kyunki amar jaise apne bachho ka time dene k soch raha hai waise hi suman ko bhi time de..suman amar ke sath se bahot hi khush rahegi yeh baat amar samajh hi nahi raha hai..!! pehle jaise amar suman ko apne dil ki baat khulkar batata tha aur suman bhi amar se khulkar baat karti thi yeh bonding kahi kho gayi hai..issi bond ko mai dekhna chahta hu..!! muze sunil jo kar raha hai woh galat lagta hai toh lagta hai..kyunki ye galat hi hai..!!
bhai meri baat ka aapko bura laga ho toh please maaf kar dijiyega..maine sirf apna point of view rakha hai baki aapki marji hai..!!