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nice update..!!अंतराल - पहला प्यार - Update #5
अगले दिन :
कल माँ की जॉगिंग और ब्रिस्क वाकिंग मिस हो गई थी। लिहाज़ा आज उन्हें वो करना ही था। माँ जब तक तैयार हो कर सेटी पर बैठ कर जूते पहन रही थीं, तब तक भी सुनील उनको नहीं दिखाई दिया। ऐसा होता नहीं था। हमेशा वो ही तैयार हो कर माँ का इंतज़ार करता था। माँ से रहा नहीं गया - एक तो उनको सुनील के साथ की आदत हो गई थी, और दूसरे, हाल ही में, लड़कियों के साथ मनचलों की बदमाशी की घटनाएँ बढ़ने लगी थीं। इसलिए यूँ अकेले जाने में माँ को डर और असुरक्षा भी महसूस होती थी। उन्होंने सुनील के कमरे पर दस्तक दी।
“हाँ?” सुनील जगा हुआ था।
“जॉगिंग के लिए नहीं चलना है?” माँ ने धीरे से पूछा।
कुछ देर तक सुनील का कोई उत्तर नहीं आया।
माँ ने ही आगे कहा, “अब से मुझे अकेले अकेले जाना पड़ेगा?” माँ ने फिर से कहा।
उनके बात करने का अंदाज़ अलग था आज - अन्य दिनों के मुक़ाबले।
सुनील दो क्षणों के लिए चुप रहा, फिर बोला, “दो मिनट रुकिए, मैं आता हूँ!”
अगले पाँच मिनटों बाद, दोनों सड़क पर थे। आज भी सुनील माँ के साथ ही चल / दौड़ रहा था। कुछ कह नहीं रहा था। न जाने क्या सोच कर माँ हलके से मुस्कुरा दीं।
सुनील के साथ होना, उसके आस पास होना ऐसा भी बोझिल कर देने वाला नहीं था!
**
जब दोनों दौड़ भाग कर वापस आए तब मैं ऑफिस निकलने ही वाला था। आज मुझे थोड़ी जल्दी थी। माँ और सुनील को साथ में वापस आते देख कर अच्छा और सामान्य सा लगा। यह बढ़िया बात थी। लेकिन चूँकि आज दोनों को वापस आते हुए कुछ अधिक ही समय लग गया था, मतलब दोनों देर से निकले थे।
“क्या भई,” मैंने उसको देखते ही कहा, “तबियत तो ठीक है? आज इतनी देर में उठे?”
“भैया, गुड मॉर्निंग! कल रात काफी देर में सोया।”
“अरे इतना काम न किया करो!”
“काम नहीं भैया, मैं बस कुछ सोच रहा था!”
माँ को अच्छी तरह से मालूम था कि सुनील रात भर क्या सोच रहा था। उन्होंने कुछ कहा नहीं, लेकिन वहाँ, हमारी उपस्थिति में बैठे रहने में उनको संकोच होने लगा। बुरा नहीं - बस संकोच!
“अरे जवान आदमी हो के क्या क्या सोचते रहते हो?” मैंने ठिठोली करी, “तुमको तो मैन ऑफ़ एक्शन होना चाहिए!”
मेरी बात पर सुनील हँसने लगा।
“अच्छा, कल या परसों मेरे साथ ऑफिस चलोगे?”
“बिलकुल भैया! कोई काम है क्या?”
“हाँ, नए कम्युनिकेशन सिस्टम के लिए एक वेंडर को बुलाया है। वो प्रेजेंटेशन और कोट देने वाला है। तुम भी मिल लो उससे! देख लो, कि वो कैसा है! रिलाएबल है या नहीं!”
“ठीक है भैया!”
“आज वो बता देगा। उसने मुझसे दो तीन दिनों के लिए अलग अलग स्लॉट्स मांगे थे। तो आज मालूम हो जाएगा!”
“ठीक है भैया! कोई प्रॉब्लम नहीं!”
“और, दिन भर तुम सभी घर पर ही न बैठे रहा करो। सभी को घुमा लाया करो कभी कभी!” मैंने धीरे से कहा, और चुपके से सुनील को कुछ रुपए थमाता हुआ बोला।
वो मुस्कुराया, “क्या भैया!”
“अरे अपने लिए भी ले लिया कर कुछ! जल्दी ही जॉइनिंग है। नए कपड़े, जूते, टाई वगैरह तो चाहिए ही न!”
“ठीक है भैया, मैं ले लूँगा! थैंक यू!”
“थैंक यू के बच्चे! ठीक है, अब चलता हूँ! बाय माँ! बाय काजल! बाय सुनील!” मैंने सभी से विदा ली।
“बाय बेटा!” माँ बोलीं।
“बाय भैया!” सुनील ने कहा।
“बाय!” काजल ने कहा।
“बाय मम्मा! बाय दादा! बाय अम्मा!” पुचुकी ने सभी से कहा।
“बाय दादी! बाय दादा! बाय अम्मा!” मिष्टी ने सभी से कहा।
“बाय बाय बच्चों!” सभी ने दोनों से कहा।
हमारे निकलते ही सुनील अचानक से मुस्कुराया और,
“दिल को तुमसे प्यार हुआ... पहली बार हुआ... तुमसे प्यार हुआ
मैं भी आशिक यार हुआ... पहली बार हुआ... तुमसे प्यार हुआ
छाई है, बेताबी... मेरी जान कहो मैं क्या करूँ...
छाई है, बेताबी... मेरी जान कहो मैं क्या करूँ…”
सुनील एक बहुत ही हिट फिल्म का गाना गुनगुना रहा था।
“क्या बात है!” काजल ने कहा, “कोई बड़े बढ़िया मूड में है आज तो!”
उसकी बात पर सुनील गाते हुए ही मुस्कुराया,
“आरज़ू है मेरे सपनों की... बैठा रहूँ तेरी बाहों में... सिर्फ तू मुझे चाहे अब... इतना असर हो मेरी आहों में
तू कह दे हँस के तो... तोड़ दूँ मैं रस्मों को... मर के भी ना भूलूँ... मैं तेरी कसमों को
मैं तो आया हूँ यहाँ पे बस तेरे लिए... तेरा तन-मन सब है मेरे लिए
क्या हसीं नजारा, समां है प्यारा-प्यारा... गले लगा ले यारा यारा यारा यारा यारा
मैं भी आशिक यार हुआ…”
सुनील गाते गाते काजल के दोनों हाथों को थाम कर रॉक एंड रोल जैसा नृत्य करने लगा।
“क्या बात है भई! अपनी होने वाली को प्रोपोज़ कर दिया क्या?” काजल ने ठिठोली करी।
काजल की बात सुन कर माँ के दिल में धमक सी उठी, और उनका दिल ज़ोर जोर से धड़कने लगा। न जाने सुनील अपनी अम्मा से क्या कह दे, यह सोच कर वो उन दोनों से अलग हट कर अपने कमरे में आ गईं। नहाने भी जाना था उनको, इसलिए बाहर आते आते समय लगता। कम से कम किसी अप्रत्याशित, शर्मनाक स्थिति का सामना तो नहीं करना पड़ेगा! जाते जाते उनको अपने पीछे सुनील की उन्मुक्त, निष्छल हँसी सुनाई दी।
“मैं बहुत खुश हूँ अम्मा! फिलहाल तो मैं तुमसे बस यही कहना चाहता हूँ!” सुनील ने इतनी ऊँची आवाज़ में कहा जिससे माँ को सुनाई दे जाए।
“वो तो दिख ही रहा है! लेकिन इस ख़ुशी का कारण भी तो बताओ!”
“बताऊँगा अम्मा! बस, एक दो दिन और इंतज़ार कर लो! अब कोई डाउट नहीं है मेरे मन में!”
“सच में? मान गई क्या?” काजल ने चहकते हुए कहा, “हे प्रभु! ऐसे ही कृपा बनाये रखना!”
उसके बाद की और कोई बात सुनने से पहले माँ अपने कमरे में आ गईं।
“हा हा हा हा! क्या अम्मा! तुम्हारी सुई तो एक जगह ही अटक गई लगती है!” सुनील हँसा, “अच्छा, थोड़ा ठहरो। मैं नहा कर आता हूँ!”
“कहो तो मैं नहला दूँ तुझे?”
“अम्मा! नेकी और पूछ पूछ?”
“अरे वाह!” काजल ने खुश होते हुए कहा, “तू तो तुरंत मान गया!”
“मेरी अम्मा की इच्छा उनका आदेश है! क्यों नहीं मानूंगा?”
“आ जा फिर,” कह कर काजल सुनील का हाथ पकड़ कर आँगन की ओर ले जाने लगी।
“अरे! यहाँ, खुले में?”
“हाँ! तो? और कौन है यहाँ? बस दीदी! वो भी नहा रही होगी।” काजल ने पसीने से लथपथ सुनील के कपड़े उतारते हुए कहा, “और वो यहाँ होती भी तो भी क्या? उसने भी तो तुझे देखा ही है न नंगा!”
“हा हा हा! अम्मा! तुम भी न!”
सुनील इस समय केवल चड्ढी पहने काजल के सामने खड़ा था।
“सुन्दर लगता है मेरा बेटा! तेरे लिए तो तेरे टक्कर की बहू चाहिए! हाँ!” उसने सुनील की चड्ढी उतारते हुए कहा, “सुन्दर सी, और सर्वगुण सम्पन्न! उससे कम में नहीं मानने वाली मैं!”
“बिलकुल भी नहीं अम्मा! उम्मीद तो यही है कि तुम्हारी सारी विशेस पूरी हो!” सुनील मुस्कुराया।
“अरे अरे मेरे भोले बेटे, मेरी विशेस! हा हा हा!” काजल सुनील की बात पर हँसने लगी, “जैसे तुम्हारी तो कोई विश ही नहीं है!”
सुनील भी उस हँसी में शामिल हो गया।
व्यायाम करने से शरीर में एंडोर्फिन्स निकलते हैं। उससे शरीर और मन को एक अलग ही तरह का आनंद और सुकून मिलता है। दस किलोमीटर दौड़ने से शरीर में रक्तसंचार वैसे भी बढ़ा हुआ था। लिहाज़ा, उसके प्रभाव से और अपने मन में सुमन के मानसिक चित्रण से सुनील का लिंग तेजी से स्तंभित होने लगा।
काजल आश्चर्यपूर्वक प्रकृति की उस अद्भुत घटना को देख रही थी। सुनील के यौन स्वस्थ्य को ले कर उसके मन में जो थोड़ा सा संशय था, वो जाता रहा। उसको अपने बेटे पर और भी गर्व हो आया। सही में - उसका बेटा सभी आवश्यक गुणों में संपन्न था, और सामान्य से बढ़ कर भी था। और क्या चाहिए? लेकिन काजल सभी से चुहलबाज़ी और हंसी मज़ाक कर लेती थी। लिहाज़ा, उसने सुनील को भी छेड़ा,
“अरे बस बस! सम्हालो इसे! बहू ने इसको देख लिया, तो शादी नहीं करेगी तुझसे!”
“अम्मा!” सुनील झेंप गया।
“हा हा हा! अरे मज़ाक कर रही हूँ! सच में! मुझे अपने दूध की ताकत पर आज बहुत घमंड है! खूब आशीर्वाद मिले तुमको! भगवान तुमको खूब लम्बी आयु, खूब यश, और खूब बल दें!”
सुनील ने प्रसन्न हो कर काजल के पाँव छू लिए!
“जीते रहो बेटा, जीते रहो!” माँ अपने पुत्र को सदैव लम्बी आयु ही देना चाहती है, “खूब सुखी रहो!”
काजल उसको नहलाने लगी।
“याद है? जब तू अपना छोटा सा नुनु लिए पूरे घर भर में दौड़ता कूदता रहता था? और आज देखो - इतना बड़ा हो गया! तू भी, और ये भी!”
“हा हा हा! अम्मा! अब तो दोनों बच्चे वो सब कर रहे हैं!”
“हाँ न! जल्दी ही तेरे बच्चे भी करेंगे!” काजल आनंदित होते हुए बोली, “तूने प्रोपोज़ कर दिया है न?”
“हाँ अम्मा! कर दिया।”
“बढ़िया! क्या बोली वो?”
“थोड़ा ठहरो अम्मा! अनएक्सपेक्टेड था न, इसलिए तुरंत कुछ बता न सकी। मुझे लगता है कि एक दो दिन में बता ही देगी।”
“बहुत बढ़िया बेटे! अगर वो हाँ कह दे, तो जल्दी से जल्दी तेरी शादी करा दूँगी!”
“हा हा हा!”
“तुझे धूमधाम चाहिए, या जल्दी, या दोनों?”
“क्या अम्मा! आप सब मेरे आस पास हों, कुछ दोस्त साथ हों, तो धूमधाम ही है!”
“वैरी गुड बेटा! मुझे यही सुनना था!” काजल खुश थी, “चिंता मत करना! तेरी अम्मा के पास काफी पैसे हैं!”
“ओह अम्मा!”
“नहीं रे! ऐसे शर्माओ मत! माँ बाप का यह सपना होता है कि वो अपने बच्चों का ब्याह कर सकें! उनका घर बसा सकें! मैं भी तो बस वही चाहती हूँ न! इसलिए मुझे रोकना मत!”
“ठीक है अम्मा!”
“मेरा राजा बेटा!”
**
माँ सुनील से थोड़ा दूरी अवश्य रखना चाहती थीं। लेकिन, उनका रोज़ का नियम था ‘अड्डेबाज़ी’ का! और आज तो सुनील और काजल दस बजते बजते ही, उनके कमरे में ‘अड्डेबाज़ी’ करने चले आए। माँ उनको मना तो नहीं कर सकतीं थीं। लेकिन आज वो संकोची या कह लीजिए कि औपचारिक तरीके से व्यवहार कर रही थीं। कमरे में आ कर तीनों बातें कर रहे थे। काजल सुनील से बार बार उसके प्रेम के इज़हार के बारे में पूछ रही थी, और सुनील बार बार टाल रहा था। काजल कभी कभी अपने अति-उत्साह के कारण दूसरों को परेशान कर देती थी।
माँ मूक सी हो कर उन दोनों की बातें सुन रही थीं। हाँलाकि वो सब कुछ समझ रही थीं, और सुनील के प्रपोजल के कारण उनके मन में उथल-पुथल मच गई थी, लेकिन वो अभी भी इस तथ्य से दो चार नहीं हो पाई थीं कि सुनील ने उनको प्रोपोज़ किया था - कि उसके ‘सपनों की रानी’ वो हैं - कि अपनी प्रेमिका, और अपनी पत्नी के रूप में सुनील उनको देखता है - कि वो उनके साथ भविष्य के सपने सँजोए बैठा है - कि वो उनके साथ अपना परिवार बनाना चाहता है!
सुनील और काजल की बातें हो रही थीं, माँ बीच बीच में केवल हाँ / ना में ही अपनी बातें कह रही थीं। लेकिन उनका संकोच साफ़ साफ़ दिख रहा था। वो उस दिन की तरह बिस्तर पर लेटी हुई नहीं थी, बल्कि बैठी हुई थी - पालथी मार कर - पैरों को ढँक कर! दो दिन पहले तक वो सुनील की बातों पर, उसकी कहानियों पर दिल खोल कर हँस रही थी, लेकिन आज वो उस खुलेपन से हँस नहीं रही थीं। उनको संकोच हो रहा था। बस, शायद दिखाने के लिए कभी कभी मुस्कुरा रही थीं। काजल ने माँ के व्यवहार में अंतर देखा, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं।
कुछ देर तक उन तीनों की गप्पें चलीं। फिर, रोज़ की ही तरह काजल दोपहर का खाना पकाने के लिए कमरे से बाहर निकल गई। सुनील और माँ दोनों कुछ समय के लिए अकेले हो गए। शायद माँ इसी मौके की तलाश में थीं।
काजल के कमरे से बाहर निकलते ही माँ बोली,
“सुनील, मैंने उस दिन जैसा बिहैव किया उसके लिए मैं सच में सॉरी हूँ! मैंने बहुत ही असभ्य तरीके से…”
माँ की बात को बीच में ही काटते हुए सुनील ने कहा, “सुमन, आप ऐसा क्यों कहती हैं? आपके कहने में कैसी भी असभ्यता नहीं थी… न ही कोई असभ्यता थी, और न ही उसमे कुछ गलत था! हाँ, लेकिन आपकी बात में दृढ़ता थी। मैं इस बात का सम्मान करता हूँ। मैं चाहता हूँ, कि मेरी पत्नी अपनी बात में दृढ़ हो!”
“गेट आउट ऑफ़ इट!” उस भावनात्मक रूप से भारी अवस्था में भी माँ हँसी, “तुम पूरे बेवक़ूफ़ हो! पागल हो तुम! मैं तुम्हे क्या समझाने की कोशिश कर रही हूँ, और तुम क्या बोल रहे हो!” माँ के कहने का अंदाज़ बड़ा कोमल था, “अरे कुछ तो सोचा करो! मुझसे ऐसी बातें करते हो! कितनी बड़ी हूँ मैं तुमसे! माँ की उम्र की हूँ मैं तुम्हारी! शादी करने के लिए तुमको मैं बुढ़िया ही मिली हूँ? तुमको तो बहुत सारी लड़कियाँ मिली होंगी कॉलेज में, जो तुमको पसंद करती होंगी, या जिनको तुम पसंद करते होंगे?”
“लड़कियाँ तो थीं वहाँ, लेकिन उनमे से कोई भी, किसी भी गुण में आपके सामने रत्ती भर भी नहीं ठहरती!” सुनील ने बनावटी उदासी दिखाते हुए कहा।
उसकी बात में बनावट माँ ने भी महसूस करी। जाहिर सी बात है, सुनील को इस बात का कोई ग़म नहीं था कि कॉलेज में की कोई लड़की नहीं मिली। कॉलेज जाने से पहले ही वो एक लम्बे अर्से से माँ को ही चाहता रहा था। उनको ही अपनी पत्नी के रूप में देखता रहा था - और बहुत संभव है कि उसने उनके अलावा किसी और लड़की के साथ का सोचा भी न हो! और यदि उसकी इस कही हुई बात में कोई सच्चाई थी, तो इस बात ने उसको माँ के साथ अपना जीवन व्यतीत करने के निर्णय को और भी आसान कर दिया था।
कहीं न कहीं माँ को यह महसूस कर के अच्छा भी लगा। लेकिन फिर भी उनका युद्ध जारी रहा।
“ओह सुनील! अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ?” माँ ने विरुक्ष होते हुए कहा।
“मुझे क्या समझना है सुमन? यदि आप मुझसे यह कहती हैं कि आपको मेरे प्रोपोज़ल पर निर्णय लेने के लिए समय चाहिए, तो मैं इस बात को समझूंगा। यदि आप मेरे प्रोपोज़ल को अस्वीकार करती हैं, या अस्वीकार करना चाहती है, तो मैं इस बात को समझूंगा। लेकिन अगर आप मुझसे यह कहती हैं कि मैं तर्कहीन हूँ, बेवक़ूफ़ हूँ, या मैं पागल हूँ, तो मुझे यह सब समझ में नहीं आएगा। अगर आप मुझसे यह कहती हैं कि मुझे इस बात की समझ नहीं है कि मैं किस से प्यार करूँ, या मुझे किससे प्यार करना चाहिए, तो मुझे यह समझ में नहीं आएगा।”
“सुनील... लेकिन ज़रा सोचो तो! अगर मैं इस उम्र में शादी कर लूँ - और वो भी तुमसे - तो कैसा लगेगा? तुम्हारी अम्मा क्या सोचेगी? मैं तो अपनी उम्र के आस पास के आदमियों से शादी करने के विचार पर भी झिझक रही हूँ... जबकि काजल और अमर मुझे दोबारा शादी करने के लिए इतनी बार बोल चुके हैं। लेकिन हर बात का एक समय होता है। शादी का भी अपना समय होता है। मेरा समय बीत चुका है।” माँ ने उदास होकर कहा।
माँ की बात पर दोनों ही कुछ देर के लिए चुप हो गए। सुनील ने ही चुप्पी तोड़ी,
“सुमन, मैं आपकी बात समझ रहा हूँ... आप मेरा विश्वास कीजिए कि मुझे आपकी समस्या, आपकी उलझन समझ में आती है। लेकिन प्लीज... मैं आपको अपना साइड बताना चाहता हूँ... मेरा रीज़न... मेरी सोच... मैं क्यों आपको चाहता हूँ, क्यों आपसे शादी करना चाहता हूँ... क्या आप वो सब नहीं जानना चाहती?”
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“आप प्लीज मेरी बात सुन लीजिए, और उसके बाद जो कुछ भी आप तय करेंगीं, वो मुझे स्वीकार्य है।”
माँ सुनील की बात के विरोध में कुछ कहना चाहती थी, लेकिन फिर उन्होंने उस इच्छा पर काबू पा लिया, और सुनील के अपनी बात कहने का इंतज़ार करने लगी। सुनील ने कहना शुरू किया,
“थैंक यू!” सुनील ने मुस्कान के साथ माँ की अनुमति स्वीकार की और एक लम्बी साँस भर कर कहा, “आप का और बाबूजी का वैवाहिक जीवन लंबा और सुखी था। मुझे यकीन है कि अगर वो जीवित रहते, तो आपका वैवाहिक जीवन खुशहाल बना रहता। लेकिन फिलहाल हमारी वस्तुस्थिति बदल गई है।”
डैड का ज़िक्र आने पर माँ के दिल में टीस उठी, लेकिन उन्होंने खुद पर और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखा। लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ ही गए। सुनील ने यह देखा, और डैड को अपनी चर्चा में लाने के लिए खेद महसूस किया! लेकिन उसके लिए, बिना डैड को चर्चा में लाए, अपना पक्ष रख पाना संभव नहीं था।
“मुझे मालूम है कि घर में सभी ने आपसे एक नया जीवन शुरू करने का आग्रह किया है। नया जीवन मतलब, फिर से शादी करना - घर बसाना! मुझे पता है कि भैया इस विचार को लेकर बहुत उत्साहित हैं, और अम्मा भी। लेकिन न जाने क्यों सभी यही सोचते हैं कि आपको अपनी उम्र के या अपने से बड़ी उम्र के आदमी से शादी करनी चाहिए। क्यों, इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। क्यों न हम इस छोटी सी सोच से आगे बढ़ें, और किसी बड़ी उम्र के आदमी से शादी करने के सामान्य विचार को तोड़ने पर विचार करें। आप खुद ही सोचिए, किसी बड़ी उम्र के आदमी के बीमार होने की सम्भावना अधिक होती है। वैसे भी ज्यादातर लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर गंभीर नहीं रहते। मानों, आपने किसी पचास पचपन साल के आदमी से शादी कर ली, और उसकी तबियत बिगड़ गई, तो आपको तो अपना पूरा जीवन उसके नर्स के रूप में बिताना पड़ेगा! है कि नहीं? अब मुझे ले लीजिए - मैं उम्र में कम हूँ, और स्वस्थ हूँ, मज़बूत शरीर वाला हूँ। उम्मीद है कि मुझे एक लंबे समय तक किसी बीमारी से परेशान नहीं होना पड़ेगा, और मेरे कारण आपको भी परेशान नहीं होना पड़ेगा!”
सुनील की बात पर माँ मुस्कराई। उनसे रहा ही नहीं गया। सुनील की बात बिलकुल सही थी। लेकिन जिस तरीके से उसने यह कहा, अगर कोई और समय होता, तो माँ ठहाके मार कर हँसती। लेकिन फिलहाल, वो अपनी हँसी दबा रही थीं; उसके बावजूद उनके होठों पर एक स्निग्ध मुस्कान उभर आई।
सुनील ने कहना जारी रखा,
“इसके अलावा, बूढ़े आदमी अपने सोचने, समझने, और करने के तरीके में स्थापित हो चुके होते हैं। उनमे बदलाव की गुंजाईश नहीं होती। उनके मुकाबले मैं नए विचारों, नए एक्सपीरियंसेस के लिए बहुत ओपन हूँ। अगर मेरी पत्नी मुझसे उम्र में बड़ी है, तो मुझे इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है। आप अगर चाहें, तो मैं आपके सब-ऑर्डिनेट के जैसा रहूँगा। आप चाहें तो आप मेरी बॉस जैसे बिहैव कर सकती हैं…”
बॉस और सब-ऑर्डिनेट वाली बात इतनी हास्यास्पद थी! माँ ने फिर से एक हल्की मुस्कान दी - उधर सुनील ने कहना जारी रखा, “…और वास्तविक अर्थों में फ्री हो सकती हैं।”
सुनील रुक गया।
माँ ने इंतज़ार किया।
जब उसने और कुछ नहीं कहा, तो माँ ने कहा, “बस, इतना ही? इतना ही कहना है तुमको?”
“नहीं... और भी है... बहुत सी बातें हैं! लेकिन मुझे मालूम नहीं है कि आप वह सब सुनना चाहेंगी या नहीं।”
“अगर तुम कुछ कहना चाहते हो, तो बस यही मौका है तुम्हारे पास। जो कहना है कह डालो... अभी के अभी। मैं फिर कभी भी इतनी पेशेंट (धैर्यवान) नहीं रहूँगी, जितनी इस समय हूँ।”
nice update..!!अंतराल - पहला प्यार - Update #6
सुनील ने समझते हुए सर हिलाया और फिर कहना शुरू किया, “सुमन,” [इस बार सुनील के स्वर में एक अलग ही तरह की गंभीरता, एक अलग ही तरह का साहस था], “मेरे मन में तुम्हारे लिए प्यार कोई जुम्मे जुम्मे चार दिन पहले का नहीं है! यह समझ लो, कि मैं तुमको तब से चाहता हूँ, तब से प्यार करता हूँ, जब से मैंने होश सम्हाला है!”
माँ को विश्वास नहीं हुआ कि उन्होंने क्या सुना! आज तक उनसे किसी ने इस तरह डायरेक्ट बात नहीं करी थी।
‘जब से होश सम्हाला है?’
‘लेकिन क्या इतनी कम उम्र का प्यार सिर्फ एक शारीरिक आकर्षण नहीं होता? केवल एक क्रश? शरीर से प्रेम करना, व्यक्ति से प्रेम करना तो नहीं होता न!’ माँ को संदेह हुआ।
मानो उनके विचार पढ़ते हुए सुनील ने कहा,
“मुझे पता है कि अब तुम कहोगी कि मैं सिर्फ तुम्हारे रूप से, तुम्हारे शरीर से आकर्षित हूँ... और सच कहूँ, तो मैं इस बात से इनकार भी नहीं करूंगा कि मैं तुम्हारे रूप से आकर्षित हूँ। और मैं तुमसे आकर्षित क्यों नहीं होऊँगा? तुम एक बहुत ही खूबसूरत लड़की हो... मैं कोई अँधा तो नहीं हूँ, जो तुम्हारी सुंदरता न देख सकूँ, उसको अप्रिशिएट न कर सकूँ!”
अपने लिए ‘लड़की’ शब्द का प्रयोग सुन कर माँ थोड़ा असहज तो हुई, लेकिन कहीं न कहीं, मन की किसी गहराई में उनको अच्छा भी लगा।
सुनील ने प्यार भरे जोश के साथ कहा, थोड़ा इंतजार किया, और फिर आगे जोड़ा,
“हाँ! मैं तुम्हारी सुंदरता देखना चाहता हूँ, उसका आनंद उठाना चाहता हूँ! और वो सब करना चाहता हूँ जो हस्बैंड और वाइफ करते हैं! वो एक अलग बात है। लेकिन मैं तुमसे प्यार - और तुम्हारा आदर - मैं तुम्हारे गुणों के कारण करता हूँ। तुम एक खूबसूरत लड़की होने के साथ-साथ एक बहुत ही अच्छी, बहुत ही गुणी लड़की भी हो। तुमको देख कर, तुमसे बात कर, तुम्हारा व्यवहार देख कर ऐसा लगता है कि जैसे दुनिया जहान की सारी अच्छाई भगवान् ने तुम्हारे अंदर ही डाल दी है! तुम बहुत ग्रेसफुल हो... तुम्हारी मुस्कान पूरे कमरे का मिजाज़ रोशन कर देती है!” उसने माँ की बढ़ाई करते हुए कहा।
“और सबसे बड़ी बात यह है सुमन, कि तुम्हारे अंदर इतना प्यार भरा हुआ है, और तुम सबको इतना प्यार देती हो... मैं कैसे भूल जाऊँ कि तुमने अम्मा और हमको अपने परिवार के रूप में माना और अपने परिवार में हमारा स्वागत किया... और तो और तुम और अम्मा तो सगी बहनों से भी अधिक करीब हैं! पुचुकी तो तुमसे ही चिपकी रहती है! अम्मा को कम और तुमको अपनी माँ अधिक समझती है, और वैसा ही मान सम्मान और प्यार देती है! हम जैसे बाहरी लोगों को अपने परिवार में स्वागत करने के लिए बहुत ही बड़े दिल की जरूरत होती है। हम सभी तो तुम्हारी देख-रेख में ही पले बढ़े हैं।”
सुनील इमोशनल हो रहा था, लेकिन वो जो कह रहा था, उसमें केवल सच्चाई थी।
“तुम्हारी देखभाल के बिना, और तुम्हारे सहारे के बिना मेरा या अम्मा का, या लतिका का क्या ही भविष्य था? मैं अभी जो कुछ भी हूँ... जो कुछ भी बन सका, और जो कुछ भी बनूँगा, मैं उस सब का सारा श्रेय भैया को, तुम्हारे प्रेम को तुम्हारे सहारे को, और फिर अम्मा की मेहनत को दूँगा... हाँ, इसी क्रम में! मैंने तुम्हें बाबूजी की अटूट, अविचल पत्नी के रूप में देखा है। मुझे भी अपनी पत्नी से तुम्हारी ही तरह का सपोर्ट चाहिए!”
सुनील ने घोषणा की, और चुपके से अपनी आँखों के कोने में बन रहे आँसू को पोंछा।
उसकी यह हरकत माँ से छिपी नहीं रह सकी। सुनील की माँ के लिए अपने प्यार की उसकी घोषणा, अब माँ के दिल को छू रही थी। सुनील ने कहना जारी रखा,
“... और तुम भैया के लिए एक अद्भुत माँ रही हो! सबसे पहले, तुमने उनकी परवरिश करते हुए समाज के मानदंडों की परवाह नहीं की... तुमने उनको अपने तरीके से फलने-फूलने दिया, और हर समय उनको सहारा दिया। मैं भी अपने बच्चों के लिए तुम्हारे जैसी माँ चाहता हूँ।” सुनील ने कहा और माँ की तरफ़ देखा, और पूरी शिष्ट आवाज़ लहज़े में कहा, “अगर तुम साथ दो, तो तुम्हारी जैसी नहीं, तुम्हे चाहता हूँ!”
वो थोड़ा रुका। माँ कुछ कह नहीं रही थीं। जो कुछ सुनील ने कह डाला था, वो भावनात्मक रूप से बहुत भारी था उनके लिए।
“क्या हुआ सुमन? कुछ बोलो न?”
माँ अभी भी कुछ न बोलीं! तो सुनील ने कहना जारी रखा,
“तुम... कैसा अमेजिंग हो अगर तुम मेरी बन जाओ! मेरी यही चाहत है बस! तुम मेरी बन जाओ - मेरी सब कुछ - मेरा संसार, मेरा प्यार, मेरी बीवी... मेरे बच्चों की माँ!”
माँ का मुँह आश्चर्य और सदमें से खुला रह गया।
‘बच्चे!’
‘मुझसे!’
‘ये मुझसे बच्चे करना चाहता है!’
‘ये... लेकिन, ये तो मेरे बेटे जैसा है?’
‘मेरे बच्चे!’
‘मेरे ‘और’ बच्चे!!’
माँ के लिए यह अब एक अनजान, अपरिचित सा क्षेत्र था। पुनः माँ बनने के बारे में उन्होंने काफ़ी समय पहले ही सोचना बंद कर दिया था। और तो और, सुनील का यह संवेदनशील पक्ष देख कर और जान कर माँ हैरान थी! पहले तो उन्होंने सोचा था कि सुनील केवल किसी किशोरवय फंतासी को जीने की कोशिश कर रहा था... और शायद यह सब जल्द ही खत्म हो जाएगा। लेकिन स्पष्ट रूप से, वह कुछ और ही सोच रहा था! यह सब कोई किशोरवय फंतासी नहीं थी... बल्कि, उसका व्यवहार परिपक्व था। वो उनके साथ अपना परिवार, अपना भविष्य बनाने के सपने देख रहा था!
सुनील द्वारा उनको प्रोपोज़ किया जाना, और कल देर रात कही गई काजल की बातें! और अब सुनील का संजीदा पहलू! माँ का दिमाग अब एक अलग ही दिशा में दौड़ने लगा।
एक बात तो माँ भी अपने मन में स्वीकार करती थीं - यह सुनील का ही असर था कि उनका डिप्रेशन इतने कम समय में लगभग न के बराबर रह गया। अन्धकार की न जाने कौन सी गहराइयाँ थीं, जहाँ से सुनील उनको बाहर निकाल लाया था। और उनको भी एक बात समझ में आ रही थी कि वो अवश्य ही सुनील को अपने बेटे जैसा मानती थीं, लेकिन उसकी धीरता, गंभीरता को देख कर वो उसको एक पुरुष के जैसे भी देखती थीं! और अब, उनके लिए अपने प्रेम की उद्घोषणा कर के, सुनील ने उनके मन में उनके रिश्ते को लेकर वो सारे पुराने समीकरण उलट पलट कर दिए थे।
“मैं तुमसे प्यार क्यों न करूँ? तुम बिल्कुल परफेक्ट हो! मोस्ट परफेक्ट गर्ल ऑफ़ दिस वर्ल्ड!” सुनील बोला, और फिर कुछ सोच कर आगे जोड़ा, “अब मेरे पास एक अच्छी, रेस्पेक्टेबल नौकरी है! मेरी सैलरी भी बहुत अच्छी है। मैं बस कुछ ही हफ्तों में अपने पैरों पर पूरी तरह से खड़ा हो जाऊँगा... और, जैसा कि मैंने तुमको कई बार बताया है, मैं अब एक... मैं अपने लिए एक परफेक्ट बीवी चाहता हूँ… और तुम मेरे लिए बिलकुल परफेक्ट हो! एंड आई होप कि मैं भी तुम्हारे लिए ठीक ठाक तो हूँ!”
सुनील बोलते बोलते रुक गया; उसने माँ को कुछ देर बड़े स्नेह से देखा, और फिर कहना जारी रखा, “जब मैं अपने लिए एक परफेक्ट बीवी की इमेज देखता हूँ तो... तो मैं बस तुम्हारे बारे में सोचता हूँ। मेरे लिए परफेक्ट बीवी बस तुम हो! माय आइडियल वुमन! माय ड्रीम गर्ल! ... जब मैं अपने होने वाले बच्चों के लिए एक आइडियल मदर के बारे में सोचता हूँ, तो मैं बस तुम्हारे बारे में सोचता हूँ। तुम मेरे लिए आइडियल गर्ल हो! तुम मेरे लिए परफेक्ट हो!”
माँ फिर से घबरा गई।
मुझे पैदा हुए एक लम्बा अर्सा हो गया था - बहुत लम्बा अर्सा - इतना लम्बा अर्सा कि माँ यह भी भूल चुकी थीं कि गर्भाधान का अनुभव कैसा होता है; गर्भावस्था का अनुभव कैसा होता है; प्रसव का अनुभव कैसा होता है; संतान पालन का अनुभव कैसा होता है! और तो और, अब तो माँ भी इस बात को भी भूल गई थी - कि वो अभी भी माँ बन सकती है! यह बात उनके दिमाग में अब आती ही नहीं थी! मेरे जन्म के कुछ समय बाद डैड ने नसबंदी का ऑपरेशन करवा लिया था। उसके बाद तो उनके और बच्चे होने का विकल्प ही समाप्त हो गया। माँ कम से कम एक और बच्चा पैदा करना चाहती थी। लेकिन उनके वैवाहिक जीवन के शुरुआती दशक में से अधिकांश समय वित्तीय बाधाओं से दो-चार होते हुए बीता। और उसके बाद मुझे सर्वोत्तम संभव तरीके से पालने के उनके निर्णय के कारण उन्हें सिर्फ एक बच्चे के साथ संतुष्ट होने के लिए मजबूर होना पड़ा।
सुनील ने अभी अभी जो कुछ कहा, उससे माँ को एहसास हुआ कि सुनील का उनके प्रति आकर्षण किसी अल्पकालिक, किशोरवय, और अनैतिक फंतासी के कारण नहीं था... बल्कि इस कारण था कि वो उनके साथ एक गंभीर, दीर्घकालिक, सामाजिक, और नैतिक संबंध बना सके - जिसमें वो उसकी पत्नी होंगी, और उसके बच्चों माँ होंगी। उसके बच्चे! सुनील के बच्चे! सुनील के बच्चों की माँ! वो! सुनील माँ को बता रहा था और आश्वस्त कर रहा था कि उसकी पत्नी के रूप में उनको आर्थिक तंगी का बोझ नहीं उठाना पड़ेगा, जैसा कि उनको तब करना पड़ा जब वो डैड के साथ थी। सुनील के साथ वो और बच्चे पैदा करने की अपनी इच्छा को पूरा कर सकती है। एक बेहद लंबे समय तक माँ ने इस परिवार के पालक की भूमिका निभाई थी। सुनील उनको अपनी प्रेमिका... और अपनी पत्नी बनाने की पेशकश कर रहा था!
यह एक दुस्साहसिक प्रस्ताव था। यह एक अवास्तविक प्रस्ताव था। यह एक स्थाई प्रस्ताव था। लेकिन ये एक प्रस्ताव था - जो उनके सामने था! यह एक ऐसा प्रस्ताव था जो माँ की जिंदगी को हमेशा हमेशा के लिए बदल देगा... सुनील उनको यह प्रस्ताव दे रहा था... पूरी स्पष्टता के साथ! पूरी शिष्टता के साथ! पूरी गंभीरता के साथ! सुनील माँ को फिर से सुहागिन बनने का एक मौका दे रहा था… सुनील माँ को फिर से माँ बनने का एक मौका दे रहा था… यह एक ऐसा सपना था जिसे माँ ने बहुत पहले ही देखना छोड़ दिया था।
“तुम मेरी देवी हो... और... मेरे दिल की रानी हो।”
जब आप एक भँवर में फंस जाते हैं, तो आप ऐसी किसी भी चीज़ को पकड़ने की कोशिश करते हैं जो आपको स्थिर कर सके। डैड की मौत के बाद माँ भी अवसाद भँवर में फंस गई थीं। अब उनके जीवन में सुनील आया था, और उनको स्थिरता देने का प्रयास कर रहा था। स्थिरता ही क्या, उसने तो माँ के अवसाद की धारा ही मोड़ दी... और अपने अथक प्रयासों से उसने उस धारा को निर्मल बना दिया। और अब वो उनको एक नए और आनंदमय भविष्य और एक नई पहचान देने का वचन दे रहा था! ऐसा भविष्य जो इंद्रधनुषी रंग लिए हुए हो! जहाँ केवल खुशियाँ ही खुशियाँ हों! माँ के सामने एक कोमल भविष्य की सम्भावना प्रस्तुत थी - वो एक नई दुल्हन, एक नई पत्नी, और एक नई माँ हो सकती हैं!
अब ऐसी प्रस्तुत सम्भावना के बारे में माँ विचार करने पर बाध्य हो ही गईं!
“तुम्हारी हर बात अनोखी है, सुमन!” सुनील माँ के बहुत पास आ कर, और बहुत धीमी, लगभग फुसफुसाती लेकिन स्पष्ट आवाज़ में बोल रहा था, “तुम्हारी महक! ओह, तुम्हारी महक मुझे बिलकुल तरोताज़ा कर देती है!”
माँ के चेहरे पर पसीने की एक पतली सी परत दिखाई देने लगती है। वो निश्चित रूप से बेचैन और घबराई हुई थीं।
“दिल में समां जाती है!” सुनील मंत्रमुग्ध सा बोले जा रहा था।
उससे रहा नहीं गया - वो झुका और उसने माँ के कंधे पर से एक हल्का सा चुम्बन ले दिया। माँ को लगा जैसे उनके कंधे से एक मीठी सी तरंग उभर कर उनके पूरे शरीर में दौड़ गई हो। कितने दिन हो गए थे उनको किसी पुरुष के स्पर्श के बिना!
अचानक ही, उनके मन में सुनील एक लड़का न हो कर, एक पुरुष हो गया था। माँ का दिमाग सुनील की बातों पर भावनात्मक रूप से तेजी से विचार कर रहा था, और उनको उसकी कही हुई बहुत सी बातें अब सुनाई भी नहीं दे रही थीं।
“मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, सुमन! बहुत प्यार! इतना, कि मुझे खुद को नहीं मालूम!” सुनील बहुत मंद मंद बोल रहा था, लेकिन माँ को सब कुछ स्पष्ट सुनाई दे रहा था; उसकी उँगलियाँ माँ के एक गाल को बड़ी कोमलता से स्पर्श कर रही थीं,
“अगर तुम नहीं मिली, तो मैं किसी और से इतना प्यार तो नहीं कर पाऊँगा! ये बात मुझे मालूम है!” सुनील अपने प्रेम की शिद्दत में कुछ भी बोल रहा था, “तुम मेरा पहला प्यार हो, और मेरा सच्चा प्यार हो! इसी प्यार के साथ मैं जवान हुआ हूँ! और इसी प्यार के साथ मैं बूढ़ा होना चाहता हूँ!”
सुनील सोच रहा था कि माँ कुछ बोलेंगी, लेकिन माँ की ज़ुबान पर तो जैसे ताला पड़ गया था।
“प्लीज सुमन! मेरी बन जाओ!”
माँ के दिमाग में जैसे कोई झंझावात चल रहा हो - वो अचानक ही खुद को बड़ा अकेला महसूस कर रहीं थीं। उनको ऐसा लगा कि जैसे वो एक बेहद बड़े से मैदान में खड़ी हैं, और वहाँ उनके और सुनील के अतिरिक्त कोई और नहीं है। उसकी उपस्थिति के कारण उनको डर लग रहा था और असहज भी! लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, सुनील के पास होने से उनको आश्वासन भी महसूस हो रहा था। कैसा विरोधाभास था ये? जिसके कारण अकेलापन महसूस हो रहा था, जिसके कारण डर लग रहा था, उसी के कारण आश्वासन भी महसूस हो रहा था! ये कैसे होता है?
माँ को बिजली का झटका तब लगा जब अचानक ही सुनील के होंठ, उनके होंठों से छू गए।
‘ये क्या कर दिया!’
होंठों पर चुम्बन एक ऐसा अंतरंग कार्य है जो सीधा आत्मा को छू लेता है - अगर उसको पूरी सच्चाई से किया जाए तो। नहीं तो वो केवल अश्लीलता है। चुम्बन करने वाले की होंठों को चूमने की तत्परता, इस बात का प्रतीक है कि वो अपने प्रेमी को स्वीकार करने को पूरी तरह से इच्छुक और तत्पर है।
सुनील तो इच्छुक और तत्पर है, लेकिन क्या माँ भी...?
bhai mai iss kahani se bahot jud gaya hu..isliye maine bada reply kiya..kyunki muze lagta hai ki kahani ke sath mai aapse bhi ek dost ki tarah jud chuka hu..toh aapko meri baat samjhane ke liye itna likhna pada..!!भाई साहब - आपने कितनी बढ़िया तरीके से अपनी बातें रखी हैं! अद्भुत! इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
अब जा कर मुझे आपका मत सही तरह से समझ में आया। और इसमें बुरा भला मानने वाली बात ही नहीं उठती, मेरे भाई!
आपकी कई सारी बातें अपने स्थान पर सही हैं, और उस पर बहस करना मेरी मूर्खता होगी। इसलिए फिलहाल यही कहना चाहता हूँ कि यह कहानी कुछ imperfect लोगों की कहानी है, जो परिस्थितियों के हिसाब से अपने आपको ढाल कर एक दूसरे के लिएर परफेक्ट बन गए।
सारे रिलेशन्स इस कहानी में वैसे ही हैं -- काजल-अमर / गैबी-अमर / डेवी-अमर -- ये सारे ही imperfect हैं, लेकिन उनकी कहानी रोचक बन पड़ी।
सही कह रहे हैं आप - शायद काजल सुमन की भावनाओं को भड़का रही है। लेकिन शायद यह भी हो सकता है कि वो उसको याद दिला रही है कि उसकी 'वो' भावनाएँ अभी भी जीवित हैं, और वो उन भावनाओं की तिलांजलि न दे। वो संभवतः उसे समझा रही है कि उसके लिए खुशहाल, वैवाहिक जीवन संभव है।
आपकी यह बात भी सही है कि न जाने कैसे अमर और उसकी माँ के बीच में एक अनजान तरह की दूरी बन गई है। स्वजनों और अपने प्रेम की हानि का अमर के मन पर भी बुरा असर हुआ है। आखिर वो भी एक मानुष ही है। इसलिए उसने अपने आप को काम में झोंक दिया है। काजल के आने से कम से कम, वो वापस जीवन की तरफ़ लौट आया है! उसकी माँ की भी यही हालत हुई - वो भी गहरे अवसाद में डूब गई। जब आपस में बात चीत कम हो जाए तो इस तरह की दूरियाँ बन ही जाती हैं।
संभव है कि आपका बताया तरीका उन दोनों को पास ले आए।
सही है - सुमन और उसके पति के बीच प्रेम तो बहुत था। लम्बे अर्से का प्रेम। और उस प्रेम को भुला बैठना बेहद कठिन काम है।
सुनील अगर सुमन के सामने अपना केस सही तरह से रख पाता है, तो ठीक है! नहीं तो उसका पलड़ा तो कमज़ोर ही है।
इसीलिए तो यह एपिसोड लिखना बहुत कठिन है मेरे लिए!
सुनील के लिएअंतराल - पहला प्यार - Update #5
अगले दिन :
कल माँ की जॉगिंग और ब्रिस्क वाकिंग मिस हो गई थी। लिहाज़ा आज उन्हें वो करना ही था। माँ जब तक तैयार हो कर सेटी पर बैठ कर जूते पहन रही थीं, तब तक भी सुनील उनको नहीं दिखाई दिया। ऐसा होता नहीं था। हमेशा वो ही तैयार हो कर माँ का इंतज़ार करता था। माँ से रहा नहीं गया - एक तो उनको सुनील के साथ की आदत हो गई थी, और दूसरे, हाल ही में, लड़कियों के साथ मनचलों की बदमाशी की घटनाएँ बढ़ने लगी थीं। इसलिए यूँ अकेले जाने में माँ को डर और असुरक्षा भी महसूस होती थी। उन्होंने सुनील के कमरे पर दस्तक दी।
“हाँ?” सुनील जगा हुआ था।
“जॉगिंग के लिए नहीं चलना है?” माँ ने धीरे से पूछा।
कुछ देर तक सुनील का कोई उत्तर नहीं आया।
माँ ने ही आगे कहा, “अब से मुझे अकेले अकेले जाना पड़ेगा?” माँ ने फिर से कहा।
उनके बात करने का अंदाज़ अलग था आज - अन्य दिनों के मुक़ाबले।
सुनील दो क्षणों के लिए चुप रहा, फिर बोला, “दो मिनट रुकिए, मैं आता हूँ!”
अगले पाँच मिनटों बाद, दोनों सड़क पर थे। आज भी सुनील माँ के साथ ही चल / दौड़ रहा था। कुछ कह नहीं रहा था। न जाने क्या सोच कर माँ हलके से मुस्कुरा दीं।
सुनील के साथ होना, उसके आस पास होना ऐसा भी बोझिल कर देने वाला नहीं था!
**
जब दोनों दौड़ भाग कर वापस आए तब मैं ऑफिस निकलने ही वाला था। आज मुझे थोड़ी जल्दी थी। माँ और सुनील को साथ में वापस आते देख कर अच्छा और सामान्य सा लगा। यह बढ़िया बात थी। लेकिन चूँकि आज दोनों को वापस आते हुए कुछ अधिक ही समय लग गया था, मतलब दोनों देर से निकले थे।
“क्या भई,” मैंने उसको देखते ही कहा, “तबियत तो ठीक है? आज इतनी देर में उठे?”
“भैया, गुड मॉर्निंग! कल रात काफी देर में सोया।”
“अरे इतना काम न किया करो!”
“काम नहीं भैया, मैं बस कुछ सोच रहा था!”
माँ को अच्छी तरह से मालूम था कि सुनील रात भर क्या सोच रहा था। उन्होंने कुछ कहा नहीं, लेकिन वहाँ, हमारी उपस्थिति में बैठे रहने में उनको संकोच होने लगा। बुरा नहीं - बस संकोच!
“अरे जवान आदमी हो के क्या क्या सोचते रहते हो?” मैंने ठिठोली करी, “तुमको तो मैन ऑफ़ एक्शन होना चाहिए!”
मेरी बात पर सुनील हँसने लगा।
“अच्छा, कल या परसों मेरे साथ ऑफिस चलोगे?”
“बिलकुल भैया! कोई काम है क्या?”
“हाँ, नए कम्युनिकेशन सिस्टम के लिए एक वेंडर को बुलाया है। वो प्रेजेंटेशन और कोट देने वाला है। तुम भी मिल लो उससे! देख लो, कि वो कैसा है! रिलाएबल है या नहीं!”
“ठीक है भैया!”
“आज वो बता देगा। उसने मुझसे दो तीन दिनों के लिए अलग अलग स्लॉट्स मांगे थे। तो आज मालूम हो जाएगा!”
“ठीक है भैया! कोई प्रॉब्लम नहीं!”
“और, दिन भर तुम सभी घर पर ही न बैठे रहा करो। सभी को घुमा लाया करो कभी कभी!” मैंने धीरे से कहा, और चुपके से सुनील को कुछ रुपए थमाता हुआ बोला।
वो मुस्कुराया, “क्या भैया!”
“अरे अपने लिए भी ले लिया कर कुछ! जल्दी ही जॉइनिंग है। नए कपड़े, जूते, टाई वगैरह तो चाहिए ही न!”
“ठीक है भैया, मैं ले लूँगा! थैंक यू!”
“थैंक यू के बच्चे! ठीक है, अब चलता हूँ! बाय माँ! बाय काजल! बाय सुनील!” मैंने सभी से विदा ली।
“बाय बेटा!” माँ बोलीं।
“बाय भैया!” सुनील ने कहा।
“बाय!” काजल ने कहा।
“बाय मम्मा! बाय दादा! बाय अम्मा!” पुचुकी ने सभी से कहा।
“बाय दादी! बाय दादा! बाय अम्मा!” मिष्टी ने सभी से कहा।
“बाय बाय बच्चों!” सभी ने दोनों से कहा।
हमारे निकलते ही सुनील अचानक से मुस्कुराया और,
“दिल को तुमसे प्यार हुआ... पहली बार हुआ... तुमसे प्यार हुआ
मैं भी आशिक यार हुआ... पहली बार हुआ... तुमसे प्यार हुआ
छाई है, बेताबी... मेरी जान कहो मैं क्या करूँ...
छाई है, बेताबी... मेरी जान कहो मैं क्या करूँ…”
सुनील एक बहुत ही हिट फिल्म का गाना गुनगुना रहा था।
“क्या बात है!” काजल ने कहा, “कोई बड़े बढ़िया मूड में है आज तो!”
उसकी बात पर सुनील गाते हुए ही मुस्कुराया,
“आरज़ू है मेरे सपनों की... बैठा रहूँ तेरी बाहों में... सिर्फ तू मुझे चाहे अब... इतना असर हो मेरी आहों में
तू कह दे हँस के तो... तोड़ दूँ मैं रस्मों को... मर के भी ना भूलूँ... मैं तेरी कसमों को
मैं तो आया हूँ यहाँ पे बस तेरे लिए... तेरा तन-मन सब है मेरे लिए
क्या हसीं नजारा, समां है प्यारा-प्यारा... गले लगा ले यारा यारा यारा यारा यारा
मैं भी आशिक यार हुआ…”
सुनील गाते गाते काजल के दोनों हाथों को थाम कर रॉक एंड रोल जैसा नृत्य करने लगा।
“क्या बात है भई! अपनी होने वाली को प्रोपोज़ कर दिया क्या?” काजल ने ठिठोली करी।
काजल की बात सुन कर माँ के दिल में धमक सी उठी, और उनका दिल ज़ोर जोर से धड़कने लगा। न जाने सुनील अपनी अम्मा से क्या कह दे, यह सोच कर वो उन दोनों से अलग हट कर अपने कमरे में आ गईं। नहाने भी जाना था उनको, इसलिए बाहर आते आते समय लगता। कम से कम किसी अप्रत्याशित, शर्मनाक स्थिति का सामना तो नहीं करना पड़ेगा! जाते जाते उनको अपने पीछे सुनील की उन्मुक्त, निष्छल हँसी सुनाई दी।
“मैं बहुत खुश हूँ अम्मा! फिलहाल तो मैं तुमसे बस यही कहना चाहता हूँ!” सुनील ने इतनी ऊँची आवाज़ में कहा जिससे माँ को सुनाई दे जाए।
“वो तो दिख ही रहा है! लेकिन इस ख़ुशी का कारण भी तो बताओ!”
“बताऊँगा अम्मा! बस, एक दो दिन और इंतज़ार कर लो! अब कोई डाउट नहीं है मेरे मन में!”
“सच में? मान गई क्या?” काजल ने चहकते हुए कहा, “हे प्रभु! ऐसे ही कृपा बनाये रखना!”
उसके बाद की और कोई बात सुनने से पहले माँ अपने कमरे में आ गईं।
“हा हा हा हा! क्या अम्मा! तुम्हारी सुई तो एक जगह ही अटक गई लगती है!” सुनील हँसा, “अच्छा, थोड़ा ठहरो। मैं नहा कर आता हूँ!”
“कहो तो मैं नहला दूँ तुझे?”
“अम्मा! नेकी और पूछ पूछ?”
“अरे वाह!” काजल ने खुश होते हुए कहा, “तू तो तुरंत मान गया!”
“मेरी अम्मा की इच्छा उनका आदेश है! क्यों नहीं मानूंगा?”
“आ जा फिर,” कह कर काजल सुनील का हाथ पकड़ कर आँगन की ओर ले जाने लगी।
“अरे! यहाँ, खुले में?”
“हाँ! तो? और कौन है यहाँ? बस दीदी! वो भी नहा रही होगी।” काजल ने पसीने से लथपथ सुनील के कपड़े उतारते हुए कहा, “और वो यहाँ होती भी तो भी क्या? उसने भी तो तुझे देखा ही है न नंगा!”
“हा हा हा! अम्मा! तुम भी न!”
सुनील इस समय केवल चड्ढी पहने काजल के सामने खड़ा था।
“सुन्दर लगता है मेरा बेटा! तेरे लिए तो तेरे टक्कर की बहू चाहिए! हाँ!” उसने सुनील की चड्ढी उतारते हुए कहा, “सुन्दर सी, और सर्वगुण सम्पन्न! उससे कम में नहीं मानने वाली मैं!”
“बिलकुल भी नहीं अम्मा! उम्मीद तो यही है कि तुम्हारी सारी विशेस पूरी हो!” सुनील मुस्कुराया।
“अरे अरे मेरे भोले बेटे, मेरी विशेस! हा हा हा!” काजल सुनील की बात पर हँसने लगी, “जैसे तुम्हारी तो कोई विश ही नहीं है!”
सुनील भी उस हँसी में शामिल हो गया।
व्यायाम करने से शरीर में एंडोर्फिन्स निकलते हैं। उससे शरीर और मन को एक अलग ही तरह का आनंद और सुकून मिलता है। दस किलोमीटर दौड़ने से शरीर में रक्तसंचार वैसे भी बढ़ा हुआ था। लिहाज़ा, उसके प्रभाव से और अपने मन में सुमन के मानसिक चित्रण से सुनील का लिंग तेजी से स्तंभित होने लगा।
काजल आश्चर्यपूर्वक प्रकृति की उस अद्भुत घटना को देख रही थी। सुनील के यौन स्वस्थ्य को ले कर उसके मन में जो थोड़ा सा संशय था, वो जाता रहा। उसको अपने बेटे पर और भी गर्व हो आया। सही में - उसका बेटा सभी आवश्यक गुणों में संपन्न था, और सामान्य से बढ़ कर भी था। और क्या चाहिए? लेकिन काजल सभी से चुहलबाज़ी और हंसी मज़ाक कर लेती थी। लिहाज़ा, उसने सुनील को भी छेड़ा,
“अरे बस बस! सम्हालो इसे! बहू ने इसको देख लिया, तो शादी नहीं करेगी तुझसे!”
“अम्मा!” सुनील झेंप गया।
“हा हा हा! अरे मज़ाक कर रही हूँ! सच में! मुझे अपने दूध की ताकत पर आज बहुत घमंड है! खूब आशीर्वाद मिले तुमको! भगवान तुमको खूब लम्बी आयु, खूब यश, और खूब बल दें!”
सुनील ने प्रसन्न हो कर काजल के पाँव छू लिए!
“जीते रहो बेटा, जीते रहो!” माँ अपने पुत्र को सदैव लम्बी आयु ही देना चाहती है, “खूब सुखी रहो!”
काजल उसको नहलाने लगी।
“याद है? जब तू अपना छोटा सा नुनु लिए पूरे घर भर में दौड़ता कूदता रहता था? और आज देखो - इतना बड़ा हो गया! तू भी, और ये भी!”
“हा हा हा! अम्मा! अब तो दोनों बच्चे वो सब कर रहे हैं!”
“हाँ न! जल्दी ही तेरे बच्चे भी करेंगे!” काजल आनंदित होते हुए बोली, “तूने प्रोपोज़ कर दिया है न?”
“हाँ अम्मा! कर दिया।”
“बढ़िया! क्या बोली वो?”
“थोड़ा ठहरो अम्मा! अनएक्सपेक्टेड था न, इसलिए तुरंत कुछ बता न सकी। मुझे लगता है कि एक दो दिन में बता ही देगी।”
“बहुत बढ़िया बेटे! अगर वो हाँ कह दे, तो जल्दी से जल्दी तेरी शादी करा दूँगी!”
“हा हा हा!”
“तुझे धूमधाम चाहिए, या जल्दी, या दोनों?”
“क्या अम्मा! आप सब मेरे आस पास हों, कुछ दोस्त साथ हों, तो धूमधाम ही है!”
“वैरी गुड बेटा! मुझे यही सुनना था!” काजल खुश थी, “चिंता मत करना! तेरी अम्मा के पास काफी पैसे हैं!”
“ओह अम्मा!”
“नहीं रे! ऐसे शर्माओ मत! माँ बाप का यह सपना होता है कि वो अपने बच्चों का ब्याह कर सकें! उनका घर बसा सकें! मैं भी तो बस वही चाहती हूँ न! इसलिए मुझे रोकना मत!”
“ठीक है अम्मा!”
“मेरा राजा बेटा!”
**
माँ सुनील से थोड़ा दूरी अवश्य रखना चाहती थीं। लेकिन, उनका रोज़ का नियम था ‘अड्डेबाज़ी’ का! और आज तो सुनील और काजल दस बजते बजते ही, उनके कमरे में ‘अड्डेबाज़ी’ करने चले आए। माँ उनको मना तो नहीं कर सकतीं थीं। लेकिन आज वो संकोची या कह लीजिए कि औपचारिक तरीके से व्यवहार कर रही थीं। कमरे में आ कर तीनों बातें कर रहे थे। काजल सुनील से बार बार उसके प्रेम के इज़हार के बारे में पूछ रही थी, और सुनील बार बार टाल रहा था। काजल कभी कभी अपने अति-उत्साह के कारण दूसरों को परेशान कर देती थी।
माँ मूक सी हो कर उन दोनों की बातें सुन रही थीं। हाँलाकि वो सब कुछ समझ रही थीं, और सुनील के प्रपोजल के कारण उनके मन में उथल-पुथल मच गई थी, लेकिन वो अभी भी इस तथ्य से दो चार नहीं हो पाई थीं कि सुनील ने उनको प्रोपोज़ किया था - कि उसके ‘सपनों की रानी’ वो हैं - कि अपनी प्रेमिका, और अपनी पत्नी के रूप में सुनील उनको देखता है - कि वो उनके साथ भविष्य के सपने सँजोए बैठा है - कि वो उनके साथ अपना परिवार बनाना चाहता है!
सुनील और काजल की बातें हो रही थीं, माँ बीच बीच में केवल हाँ / ना में ही अपनी बातें कह रही थीं। लेकिन उनका संकोच साफ़ साफ़ दिख रहा था। वो उस दिन की तरह बिस्तर पर लेटी हुई नहीं थी, बल्कि बैठी हुई थी - पालथी मार कर - पैरों को ढँक कर! दो दिन पहले तक वो सुनील की बातों पर, उसकी कहानियों पर दिल खोल कर हँस रही थी, लेकिन आज वो उस खुलेपन से हँस नहीं रही थीं। उनको संकोच हो रहा था। बस, शायद दिखाने के लिए कभी कभी मुस्कुरा रही थीं। काजल ने माँ के व्यवहार में अंतर देखा, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं।
कुछ देर तक उन तीनों की गप्पें चलीं। फिर, रोज़ की ही तरह काजल दोपहर का खाना पकाने के लिए कमरे से बाहर निकल गई। सुनील और माँ दोनों कुछ समय के लिए अकेले हो गए। शायद माँ इसी मौके की तलाश में थीं।
काजल के कमरे से बाहर निकलते ही माँ बोली,
“सुनील, मैंने उस दिन जैसा बिहैव किया उसके लिए मैं सच में सॉरी हूँ! मैंने बहुत ही असभ्य तरीके से…”
माँ की बात को बीच में ही काटते हुए सुनील ने कहा, “सुमन, आप ऐसा क्यों कहती हैं? आपके कहने में कैसी भी असभ्यता नहीं थी… न ही कोई असभ्यता थी, और न ही उसमे कुछ गलत था! हाँ, लेकिन आपकी बात में दृढ़ता थी। मैं इस बात का सम्मान करता हूँ। मैं चाहता हूँ, कि मेरी पत्नी अपनी बात में दृढ़ हो!”
“गेट आउट ऑफ़ इट!” उस भावनात्मक रूप से भारी अवस्था में भी माँ हँसी, “तुम पूरे बेवक़ूफ़ हो! पागल हो तुम! मैं तुम्हे क्या समझाने की कोशिश कर रही हूँ, और तुम क्या बोल रहे हो!” माँ के कहने का अंदाज़ बड़ा कोमल था, “अरे कुछ तो सोचा करो! मुझसे ऐसी बातें करते हो! कितनी बड़ी हूँ मैं तुमसे! माँ की उम्र की हूँ मैं तुम्हारी! शादी करने के लिए तुमको मैं बुढ़िया ही मिली हूँ? तुमको तो बहुत सारी लड़कियाँ मिली होंगी कॉलेज में, जो तुमको पसंद करती होंगी, या जिनको तुम पसंद करते होंगे?”
“लड़कियाँ तो थीं वहाँ, लेकिन उनमे से कोई भी, किसी भी गुण में आपके सामने रत्ती भर भी नहीं ठहरती!” सुनील ने बनावटी उदासी दिखाते हुए कहा।
उसकी बात में बनावट माँ ने भी महसूस करी। जाहिर सी बात है, सुनील को इस बात का कोई ग़म नहीं था कि कॉलेज में की कोई लड़की नहीं मिली। कॉलेज जाने से पहले ही वो एक लम्बे अर्से से माँ को ही चाहता रहा था। उनको ही अपनी पत्नी के रूप में देखता रहा था - और बहुत संभव है कि उसने उनके अलावा किसी और लड़की के साथ का सोचा भी न हो! और यदि उसकी इस कही हुई बात में कोई सच्चाई थी, तो इस बात ने उसको माँ के साथ अपना जीवन व्यतीत करने के निर्णय को और भी आसान कर दिया था।
कहीं न कहीं माँ को यह महसूस कर के अच्छा भी लगा। लेकिन फिर भी उनका युद्ध जारी रहा।
“ओह सुनील! अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ?” माँ ने विरुक्ष होते हुए कहा।
“मुझे क्या समझना है सुमन? यदि आप मुझसे यह कहती हैं कि आपको मेरे प्रोपोज़ल पर निर्णय लेने के लिए समय चाहिए, तो मैं इस बात को समझूंगा। यदि आप मेरे प्रोपोज़ल को अस्वीकार करती हैं, या अस्वीकार करना चाहती है, तो मैं इस बात को समझूंगा। लेकिन अगर आप मुझसे यह कहती हैं कि मैं तर्कहीन हूँ, बेवक़ूफ़ हूँ, या मैं पागल हूँ, तो मुझे यह सब समझ में नहीं आएगा। अगर आप मुझसे यह कहती हैं कि मुझे इस बात की समझ नहीं है कि मैं किस से प्यार करूँ, या मुझे किससे प्यार करना चाहिए, तो मुझे यह समझ में नहीं आएगा।”
“सुनील... लेकिन ज़रा सोचो तो! अगर मैं इस उम्र में शादी कर लूँ - और वो भी तुमसे - तो कैसा लगेगा? तुम्हारी अम्मा क्या सोचेगी? मैं तो अपनी उम्र के आस पास के आदमियों से शादी करने के विचार पर भी झिझक रही हूँ... जबकि काजल और अमर मुझे दोबारा शादी करने के लिए इतनी बार बोल चुके हैं। लेकिन हर बात का एक समय होता है। शादी का भी अपना समय होता है। मेरा समय बीत चुका है।” माँ ने उदास होकर कहा।
माँ की बात पर दोनों ही कुछ देर के लिए चुप हो गए। सुनील ने ही चुप्पी तोड़ी,
“सुमन, मैं आपकी बात समझ रहा हूँ... आप मेरा विश्वास कीजिए कि मुझे आपकी समस्या, आपकी उलझन समझ में आती है। लेकिन प्लीज... मैं आपको अपना साइड बताना चाहता हूँ... मेरा रीज़न... मेरी सोच... मैं क्यों आपको चाहता हूँ, क्यों आपसे शादी करना चाहता हूँ... क्या आप वो सब नहीं जानना चाहती?”
माँ ने कुछ नहीं कहा।
“आप प्लीज मेरी बात सुन लीजिए, और उसके बाद जो कुछ भी आप तय करेंगीं, वो मुझे स्वीकार्य है।”
माँ सुनील की बात के विरोध में कुछ कहना चाहती थी, लेकिन फिर उन्होंने उस इच्छा पर काबू पा लिया, और सुनील के अपनी बात कहने का इंतज़ार करने लगी। सुनील ने कहना शुरू किया,
“थैंक यू!” सुनील ने मुस्कान के साथ माँ की अनुमति स्वीकार की और एक लम्बी साँस भर कर कहा, “आप का और बाबूजी का वैवाहिक जीवन लंबा और सुखी था। मुझे यकीन है कि अगर वो जीवित रहते, तो आपका वैवाहिक जीवन खुशहाल बना रहता। लेकिन फिलहाल हमारी वस्तुस्थिति बदल गई है।”
डैड का ज़िक्र आने पर माँ के दिल में टीस उठी, लेकिन उन्होंने खुद पर और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखा। लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ ही गए। सुनील ने यह देखा, और डैड को अपनी चर्चा में लाने के लिए खेद महसूस किया! लेकिन उसके लिए, बिना डैड को चर्चा में लाए, अपना पक्ष रख पाना संभव नहीं था।
“मुझे मालूम है कि घर में सभी ने आपसे एक नया जीवन शुरू करने का आग्रह किया है। नया जीवन मतलब, फिर से शादी करना - घर बसाना! मुझे पता है कि भैया इस विचार को लेकर बहुत उत्साहित हैं, और अम्मा भी। लेकिन न जाने क्यों सभी यही सोचते हैं कि आपको अपनी उम्र के या अपने से बड़ी उम्र के आदमी से शादी करनी चाहिए। क्यों, इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। क्यों न हम इस छोटी सी सोच से आगे बढ़ें, और किसी बड़ी उम्र के आदमी से शादी करने के सामान्य विचार को तोड़ने पर विचार करें। आप खुद ही सोचिए, किसी बड़ी उम्र के आदमी के बीमार होने की सम्भावना अधिक होती है। वैसे भी ज्यादातर लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर गंभीर नहीं रहते। मानों, आपने किसी पचास पचपन साल के आदमी से शादी कर ली, और उसकी तबियत बिगड़ गई, तो आपको तो अपना पूरा जीवन उसके नर्स के रूप में बिताना पड़ेगा! है कि नहीं? अब मुझे ले लीजिए - मैं उम्र में कम हूँ, और स्वस्थ हूँ, मज़बूत शरीर वाला हूँ। उम्मीद है कि मुझे एक लंबे समय तक किसी बीमारी से परेशान नहीं होना पड़ेगा, और मेरे कारण आपको भी परेशान नहीं होना पड़ेगा!”
सुनील की बात पर माँ मुस्कराई। उनसे रहा ही नहीं गया। सुनील की बात बिलकुल सही थी। लेकिन जिस तरीके से उसने यह कहा, अगर कोई और समय होता, तो माँ ठहाके मार कर हँसती। लेकिन फिलहाल, वो अपनी हँसी दबा रही थीं; उसके बावजूद उनके होठों पर एक स्निग्ध मुस्कान उभर आई।
सुनील ने कहना जारी रखा,
“इसके अलावा, बूढ़े आदमी अपने सोचने, समझने, और करने के तरीके में स्थापित हो चुके होते हैं। उनमे बदलाव की गुंजाईश नहीं होती। उनके मुकाबले मैं नए विचारों, नए एक्सपीरियंसेस के लिए बहुत ओपन हूँ। अगर मेरी पत्नी मुझसे उम्र में बड़ी है, तो मुझे इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है। आप अगर चाहें, तो मैं आपके सब-ऑर्डिनेट के जैसा रहूँगा। आप चाहें तो आप मेरी बॉस जैसे बिहैव कर सकती हैं…”
बॉस और सब-ऑर्डिनेट वाली बात इतनी हास्यास्पद थी! माँ ने फिर से एक हल्की मुस्कान दी - उधर सुनील ने कहना जारी रखा, “…और वास्तविक अर्थों में फ्री हो सकती हैं।”
सुनील रुक गया।
माँ ने इंतज़ार किया।
जब उसने और कुछ नहीं कहा, तो माँ ने कहा, “बस, इतना ही? इतना ही कहना है तुमको?”
“नहीं... और भी है... बहुत सी बातें हैं! लेकिन मुझे मालूम नहीं है कि आप वह सब सुनना चाहेंगी या नहीं।”
“अगर तुम कुछ कहना चाहते हो, तो बस यही मौका है तुम्हारे पास। जो कहना है कह डालो... अभी के अभी। मैं फिर कभी भी इतनी पेशेंट (धैर्यवान) नहीं रहूँगी, जितनी इस समय हूँ।”
सुनील और सुमनअंतराल - पहला प्यार - Update #6
सुनील ने समझते हुए सर हिलाया और फिर कहना शुरू किया, “सुमन,” [इस बार सुनील के स्वर में एक अलग ही तरह की गंभीरता, एक अलग ही तरह का साहस था], “मेरे मन में तुम्हारे लिए प्यार कोई जुम्मे जुम्मे चार दिन पहले का नहीं है! यह समझ लो, कि मैं तुमको तब से चाहता हूँ, तब से प्यार करता हूँ, जब से मैंने होश सम्हाला है!”
माँ को विश्वास नहीं हुआ कि उन्होंने क्या सुना! आज तक उनसे किसी ने इस तरह डायरेक्ट बात नहीं करी थी।
‘जब से होश सम्हाला है?’
‘लेकिन क्या इतनी कम उम्र का प्यार सिर्फ एक शारीरिक आकर्षण नहीं होता? केवल एक क्रश? शरीर से प्रेम करना, व्यक्ति से प्रेम करना तो नहीं होता न!’ माँ को संदेह हुआ।
मानो उनके विचार पढ़ते हुए सुनील ने कहा,
“मुझे पता है कि अब तुम कहोगी कि मैं सिर्फ तुम्हारे रूप से, तुम्हारे शरीर से आकर्षित हूँ... और सच कहूँ, तो मैं इस बात से इनकार भी नहीं करूंगा कि मैं तुम्हारे रूप से आकर्षित हूँ। और मैं तुमसे आकर्षित क्यों नहीं होऊँगा? तुम एक बहुत ही खूबसूरत लड़की हो... मैं कोई अँधा तो नहीं हूँ, जो तुम्हारी सुंदरता न देख सकूँ, उसको अप्रिशिएट न कर सकूँ!”
अपने लिए ‘लड़की’ शब्द का प्रयोग सुन कर माँ थोड़ा असहज तो हुई, लेकिन कहीं न कहीं, मन की किसी गहराई में उनको अच्छा भी लगा।
सुनील ने प्यार भरे जोश के साथ कहा, थोड़ा इंतजार किया, और फिर आगे जोड़ा,
“हाँ! मैं तुम्हारी सुंदरता देखना चाहता हूँ, उसका आनंद उठाना चाहता हूँ! और वो सब करना चाहता हूँ जो हस्बैंड और वाइफ करते हैं! वो एक अलग बात है। लेकिन मैं तुमसे प्यार - और तुम्हारा आदर - मैं तुम्हारे गुणों के कारण करता हूँ। तुम एक खूबसूरत लड़की होने के साथ-साथ एक बहुत ही अच्छी, बहुत ही गुणी लड़की भी हो। तुमको देख कर, तुमसे बात कर, तुम्हारा व्यवहार देख कर ऐसा लगता है कि जैसे दुनिया जहान की सारी अच्छाई भगवान् ने तुम्हारे अंदर ही डाल दी है! तुम बहुत ग्रेसफुल हो... तुम्हारी मुस्कान पूरे कमरे का मिजाज़ रोशन कर देती है!” उसने माँ की बढ़ाई करते हुए कहा।
“और सबसे बड़ी बात यह है सुमन, कि तुम्हारे अंदर इतना प्यार भरा हुआ है, और तुम सबको इतना प्यार देती हो... मैं कैसे भूल जाऊँ कि तुमने अम्मा और हमको अपने परिवार के रूप में माना और अपने परिवार में हमारा स्वागत किया... और तो और तुम और अम्मा तो सगी बहनों से भी अधिक करीब हैं! पुचुकी तो तुमसे ही चिपकी रहती है! अम्मा को कम और तुमको अपनी माँ अधिक समझती है, और वैसा ही मान सम्मान और प्यार देती है! हम जैसे बाहरी लोगों को अपने परिवार में स्वागत करने के लिए बहुत ही बड़े दिल की जरूरत होती है। हम सभी तो तुम्हारी देख-रेख में ही पले बढ़े हैं।”
सुनील इमोशनल हो रहा था, लेकिन वो जो कह रहा था, उसमें केवल सच्चाई थी।
“तुम्हारी देखभाल के बिना, और तुम्हारे सहारे के बिना मेरा या अम्मा का, या लतिका का क्या ही भविष्य था? मैं अभी जो कुछ भी हूँ... जो कुछ भी बन सका, और जो कुछ भी बनूँगा, मैं उस सब का सारा श्रेय भैया को, तुम्हारे प्रेम को तुम्हारे सहारे को, और फिर अम्मा की मेहनत को दूँगा... हाँ, इसी क्रम में! मैंने तुम्हें बाबूजी की अटूट, अविचल पत्नी के रूप में देखा है। मुझे भी अपनी पत्नी से तुम्हारी ही तरह का सपोर्ट चाहिए!”
सुनील ने घोषणा की, और चुपके से अपनी आँखों के कोने में बन रहे आँसू को पोंछा।
उसकी यह हरकत माँ से छिपी नहीं रह सकी। सुनील की माँ के लिए अपने प्यार की उसकी घोषणा, अब माँ के दिल को छू रही थी। सुनील ने कहना जारी रखा,
“... और तुम भैया के लिए एक अद्भुत माँ रही हो! सबसे पहले, तुमने उनकी परवरिश करते हुए समाज के मानदंडों की परवाह नहीं की... तुमने उनको अपने तरीके से फलने-फूलने दिया, और हर समय उनको सहारा दिया। मैं भी अपने बच्चों के लिए तुम्हारे जैसी माँ चाहता हूँ।” सुनील ने कहा और माँ की तरफ़ देखा, और पूरी शिष्ट आवाज़ लहज़े में कहा, “अगर तुम साथ दो, तो तुम्हारी जैसी नहीं, तुम्हे चाहता हूँ!”
वो थोड़ा रुका। माँ कुछ कह नहीं रही थीं। जो कुछ सुनील ने कह डाला था, वो भावनात्मक रूप से बहुत भारी था उनके लिए।
“क्या हुआ सुमन? कुछ बोलो न?”
माँ अभी भी कुछ न बोलीं! तो सुनील ने कहना जारी रखा,
“तुम... कैसा अमेजिंग हो अगर तुम मेरी बन जाओ! मेरी यही चाहत है बस! तुम मेरी बन जाओ - मेरी सब कुछ - मेरा संसार, मेरा प्यार, मेरी बीवी... मेरे बच्चों की माँ!”
माँ का मुँह आश्चर्य और सदमें से खुला रह गया।
‘बच्चे!’
‘मुझसे!’
‘ये मुझसे बच्चे करना चाहता है!’
‘ये... लेकिन, ये तो मेरे बेटे जैसा है?’
‘मेरे बच्चे!’
‘मेरे ‘और’ बच्चे!!’
माँ के लिए यह अब एक अनजान, अपरिचित सा क्षेत्र था। पुनः माँ बनने के बारे में उन्होंने काफ़ी समय पहले ही सोचना बंद कर दिया था। और तो और, सुनील का यह संवेदनशील पक्ष देख कर और जान कर माँ हैरान थी! पहले तो उन्होंने सोचा था कि सुनील केवल किसी किशोरवय फंतासी को जीने की कोशिश कर रहा था... और शायद यह सब जल्द ही खत्म हो जाएगा। लेकिन स्पष्ट रूप से, वह कुछ और ही सोच रहा था! यह सब कोई किशोरवय फंतासी नहीं थी... बल्कि, उसका व्यवहार परिपक्व था। वो उनके साथ अपना परिवार, अपना भविष्य बनाने के सपने देख रहा था!
सुनील द्वारा उनको प्रोपोज़ किया जाना, और कल देर रात कही गई काजल की बातें! और अब सुनील का संजीदा पहलू! माँ का दिमाग अब एक अलग ही दिशा में दौड़ने लगा।
एक बात तो माँ भी अपने मन में स्वीकार करती थीं - यह सुनील का ही असर था कि उनका डिप्रेशन इतने कम समय में लगभग न के बराबर रह गया। अन्धकार की न जाने कौन सी गहराइयाँ थीं, जहाँ से सुनील उनको बाहर निकाल लाया था। और उनको भी एक बात समझ में आ रही थी कि वो अवश्य ही सुनील को अपने बेटे जैसा मानती थीं, लेकिन उसकी धीरता, गंभीरता को देख कर वो उसको एक पुरुष के जैसे भी देखती थीं! और अब, उनके लिए अपने प्रेम की उद्घोषणा कर के, सुनील ने उनके मन में उनके रिश्ते को लेकर वो सारे पुराने समीकरण उलट पलट कर दिए थे।
“मैं तुमसे प्यार क्यों न करूँ? तुम बिल्कुल परफेक्ट हो! मोस्ट परफेक्ट गर्ल ऑफ़ दिस वर्ल्ड!” सुनील बोला, और फिर कुछ सोच कर आगे जोड़ा, “अब मेरे पास एक अच्छी, रेस्पेक्टेबल नौकरी है! मेरी सैलरी भी बहुत अच्छी है। मैं बस कुछ ही हफ्तों में अपने पैरों पर पूरी तरह से खड़ा हो जाऊँगा... और, जैसा कि मैंने तुमको कई बार बताया है, मैं अब एक... मैं अपने लिए एक परफेक्ट बीवी चाहता हूँ… और तुम मेरे लिए बिलकुल परफेक्ट हो! एंड आई होप कि मैं भी तुम्हारे लिए ठीक ठाक तो हूँ!”
सुनील बोलते बोलते रुक गया; उसने माँ को कुछ देर बड़े स्नेह से देखा, और फिर कहना जारी रखा, “जब मैं अपने लिए एक परफेक्ट बीवी की इमेज देखता हूँ तो... तो मैं बस तुम्हारे बारे में सोचता हूँ। मेरे लिए परफेक्ट बीवी बस तुम हो! माय आइडियल वुमन! माय ड्रीम गर्ल! ... जब मैं अपने होने वाले बच्चों के लिए एक आइडियल मदर के बारे में सोचता हूँ, तो मैं बस तुम्हारे बारे में सोचता हूँ। तुम मेरे लिए आइडियल गर्ल हो! तुम मेरे लिए परफेक्ट हो!”
माँ फिर से घबरा गई।
मुझे पैदा हुए एक लम्बा अर्सा हो गया था - बहुत लम्बा अर्सा - इतना लम्बा अर्सा कि माँ यह भी भूल चुकी थीं कि गर्भाधान का अनुभव कैसा होता है; गर्भावस्था का अनुभव कैसा होता है; प्रसव का अनुभव कैसा होता है; संतान पालन का अनुभव कैसा होता है! और तो और, अब तो माँ भी इस बात को भी भूल गई थी - कि वो अभी भी माँ बन सकती है! यह बात उनके दिमाग में अब आती ही नहीं थी! मेरे जन्म के कुछ समय बाद डैड ने नसबंदी का ऑपरेशन करवा लिया था। उसके बाद तो उनके और बच्चे होने का विकल्प ही समाप्त हो गया। माँ कम से कम एक और बच्चा पैदा करना चाहती थी। लेकिन उनके वैवाहिक जीवन के शुरुआती दशक में से अधिकांश समय वित्तीय बाधाओं से दो-चार होते हुए बीता। और उसके बाद मुझे सर्वोत्तम संभव तरीके से पालने के उनके निर्णय के कारण उन्हें सिर्फ एक बच्चे के साथ संतुष्ट होने के लिए मजबूर होना पड़ा।
सुनील ने अभी अभी जो कुछ कहा, उससे माँ को एहसास हुआ कि सुनील का उनके प्रति आकर्षण किसी अल्पकालिक, किशोरवय, और अनैतिक फंतासी के कारण नहीं था... बल्कि इस कारण था कि वो उनके साथ एक गंभीर, दीर्घकालिक, सामाजिक, और नैतिक संबंध बना सके - जिसमें वो उसकी पत्नी होंगी, और उसके बच्चों माँ होंगी। उसके बच्चे! सुनील के बच्चे! सुनील के बच्चों की माँ! वो! सुनील माँ को बता रहा था और आश्वस्त कर रहा था कि उसकी पत्नी के रूप में उनको आर्थिक तंगी का बोझ नहीं उठाना पड़ेगा, जैसा कि उनको तब करना पड़ा जब वो डैड के साथ थी। सुनील के साथ वो और बच्चे पैदा करने की अपनी इच्छा को पूरा कर सकती है। एक बेहद लंबे समय तक माँ ने इस परिवार के पालक की भूमिका निभाई थी। सुनील उनको अपनी प्रेमिका... और अपनी पत्नी बनाने की पेशकश कर रहा था!
यह एक दुस्साहसिक प्रस्ताव था। यह एक अवास्तविक प्रस्ताव था। यह एक स्थाई प्रस्ताव था। लेकिन ये एक प्रस्ताव था - जो उनके सामने था! यह एक ऐसा प्रस्ताव था जो माँ की जिंदगी को हमेशा हमेशा के लिए बदल देगा... सुनील उनको यह प्रस्ताव दे रहा था... पूरी स्पष्टता के साथ! पूरी शिष्टता के साथ! पूरी गंभीरता के साथ! सुनील माँ को फिर से सुहागिन बनने का एक मौका दे रहा था… सुनील माँ को फिर से माँ बनने का एक मौका दे रहा था… यह एक ऐसा सपना था जिसे माँ ने बहुत पहले ही देखना छोड़ दिया था।
“तुम मेरी देवी हो... और... मेरे दिल की रानी हो।”
जब आप एक भँवर में फंस जाते हैं, तो आप ऐसी किसी भी चीज़ को पकड़ने की कोशिश करते हैं जो आपको स्थिर कर सके। डैड की मौत के बाद माँ भी अवसाद भँवर में फंस गई थीं। अब उनके जीवन में सुनील आया था, और उनको स्थिरता देने का प्रयास कर रहा था। स्थिरता ही क्या, उसने तो माँ के अवसाद की धारा ही मोड़ दी... और अपने अथक प्रयासों से उसने उस धारा को निर्मल बना दिया। और अब वो उनको एक नए और आनंदमय भविष्य और एक नई पहचान देने का वचन दे रहा था! ऐसा भविष्य जो इंद्रधनुषी रंग लिए हुए हो! जहाँ केवल खुशियाँ ही खुशियाँ हों! माँ के सामने एक कोमल भविष्य की सम्भावना प्रस्तुत थी - वो एक नई दुल्हन, एक नई पत्नी, और एक नई माँ हो सकती हैं!
अब ऐसी प्रस्तुत सम्भावना के बारे में माँ विचार करने पर बाध्य हो ही गईं!
“तुम्हारी हर बात अनोखी है, सुमन!” सुनील माँ के बहुत पास आ कर, और बहुत धीमी, लगभग फुसफुसाती लेकिन स्पष्ट आवाज़ में बोल रहा था, “तुम्हारी महक! ओह, तुम्हारी महक मुझे बिलकुल तरोताज़ा कर देती है!”
माँ के चेहरे पर पसीने की एक पतली सी परत दिखाई देने लगती है। वो निश्चित रूप से बेचैन और घबराई हुई थीं।
“दिल में समां जाती है!” सुनील मंत्रमुग्ध सा बोले जा रहा था।
उससे रहा नहीं गया - वो झुका और उसने माँ के कंधे पर से एक हल्का सा चुम्बन ले दिया। माँ को लगा जैसे उनके कंधे से एक मीठी सी तरंग उभर कर उनके पूरे शरीर में दौड़ गई हो। कितने दिन हो गए थे उनको किसी पुरुष के स्पर्श के बिना!
अचानक ही, उनके मन में सुनील एक लड़का न हो कर, एक पुरुष हो गया था। माँ का दिमाग सुनील की बातों पर भावनात्मक रूप से तेजी से विचार कर रहा था, और उनको उसकी कही हुई बहुत सी बातें अब सुनाई भी नहीं दे रही थीं।
“मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, सुमन! बहुत प्यार! इतना, कि मुझे खुद को नहीं मालूम!” सुनील बहुत मंद मंद बोल रहा था, लेकिन माँ को सब कुछ स्पष्ट सुनाई दे रहा था; उसकी उँगलियाँ माँ के एक गाल को बड़ी कोमलता से स्पर्श कर रही थीं,
“अगर तुम नहीं मिली, तो मैं किसी और से इतना प्यार तो नहीं कर पाऊँगा! ये बात मुझे मालूम है!” सुनील अपने प्रेम की शिद्दत में कुछ भी बोल रहा था, “तुम मेरा पहला प्यार हो, और मेरा सच्चा प्यार हो! इसी प्यार के साथ मैं जवान हुआ हूँ! और इसी प्यार के साथ मैं बूढ़ा होना चाहता हूँ!”
सुनील सोच रहा था कि माँ कुछ बोलेंगी, लेकिन माँ की ज़ुबान पर तो जैसे ताला पड़ गया था।
“प्लीज सुमन! मेरी बन जाओ!”
माँ के दिमाग में जैसे कोई झंझावात चल रहा हो - वो अचानक ही खुद को बड़ा अकेला महसूस कर रहीं थीं। उनको ऐसा लगा कि जैसे वो एक बेहद बड़े से मैदान में खड़ी हैं, और वहाँ उनके और सुनील के अतिरिक्त कोई और नहीं है। उसकी उपस्थिति के कारण उनको डर लग रहा था और असहज भी! लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, सुनील के पास होने से उनको आश्वासन भी महसूस हो रहा था। कैसा विरोधाभास था ये? जिसके कारण अकेलापन महसूस हो रहा था, जिसके कारण डर लग रहा था, उसी के कारण आश्वासन भी महसूस हो रहा था! ये कैसे होता है?
माँ को बिजली का झटका तब लगा जब अचानक ही सुनील के होंठ, उनके होंठों से छू गए।
‘ये क्या कर दिया!’
होंठों पर चुम्बन एक ऐसा अंतरंग कार्य है जो सीधा आत्मा को छू लेता है - अगर उसको पूरी सच्चाई से किया जाए तो। नहीं तो वो केवल अश्लीलता है। चुम्बन करने वाले की होंठों को चूमने की तत्परता, इस बात का प्रतीक है कि वो अपने प्रेमी को स्वीकार करने को पूरी तरह से इच्छुक और तत्पर है।
सुनील तो इच्छुक और तत्पर है, लेकिन क्या माँ भी...?
सुमन अब भावनाओ के बवंडर में फंस चुकी है। ना वो सुनील को अवॉइड कर सकती है और ना एक्सेप्ट। मगर कहीं ना कहीं सुनील से इंप्रेस्ड ज़रूर हो चुकी है। सुनील ने तो अपने दिल की बात भी कह दी है और किस करके उस पर मोहर भी लगा दी है। अब सुमन इस बात को किस तरह लेती है और क्या वो अपना निर्णय बदलती है वो देखना होगा। क्योंकि कहीं ना कहीं शादी करके अपने परिवार से दूर जाने का डर भी होगा इसके दिल में। शानदार अपडेटअंतराल - पहला प्यार - Update #6
सुनील ने समझते हुए सर हिलाया और फिर कहना शुरू किया, “सुमन,” [इस बार सुनील के स्वर में एक अलग ही तरह की गंभीरता, एक अलग ही तरह का साहस था], “मेरे मन में तुम्हारे लिए प्यार कोई जुम्मे जुम्मे चार दिन पहले का नहीं है! यह समझ लो, कि मैं तुमको तब से चाहता हूँ, तब से प्यार करता हूँ, जब से मैंने होश सम्हाला है!”
माँ को विश्वास नहीं हुआ कि उन्होंने क्या सुना! आज तक उनसे किसी ने इस तरह डायरेक्ट बात नहीं करी थी।
‘जब से होश सम्हाला है?’
‘लेकिन क्या इतनी कम उम्र का प्यार सिर्फ एक शारीरिक आकर्षण नहीं होता? केवल एक क्रश? शरीर से प्रेम करना, व्यक्ति से प्रेम करना तो नहीं होता न!’ माँ को संदेह हुआ।
मानो उनके विचार पढ़ते हुए सुनील ने कहा,
“मुझे पता है कि अब तुम कहोगी कि मैं सिर्फ तुम्हारे रूप से, तुम्हारे शरीर से आकर्षित हूँ... और सच कहूँ, तो मैं इस बात से इनकार भी नहीं करूंगा कि मैं तुम्हारे रूप से आकर्षित हूँ। और मैं तुमसे आकर्षित क्यों नहीं होऊँगा? तुम एक बहुत ही खूबसूरत लड़की हो... मैं कोई अँधा तो नहीं हूँ, जो तुम्हारी सुंदरता न देख सकूँ, उसको अप्रिशिएट न कर सकूँ!”
अपने लिए ‘लड़की’ शब्द का प्रयोग सुन कर माँ थोड़ा असहज तो हुई, लेकिन कहीं न कहीं, मन की किसी गहराई में उनको अच्छा भी लगा।
सुनील ने प्यार भरे जोश के साथ कहा, थोड़ा इंतजार किया, और फिर आगे जोड़ा,
“हाँ! मैं तुम्हारी सुंदरता देखना चाहता हूँ, उसका आनंद उठाना चाहता हूँ! और वो सब करना चाहता हूँ जो हस्बैंड और वाइफ करते हैं! वो एक अलग बात है। लेकिन मैं तुमसे प्यार - और तुम्हारा आदर - मैं तुम्हारे गुणों के कारण करता हूँ। तुम एक खूबसूरत लड़की होने के साथ-साथ एक बहुत ही अच्छी, बहुत ही गुणी लड़की भी हो। तुमको देख कर, तुमसे बात कर, तुम्हारा व्यवहार देख कर ऐसा लगता है कि जैसे दुनिया जहान की सारी अच्छाई भगवान् ने तुम्हारे अंदर ही डाल दी है! तुम बहुत ग्रेसफुल हो... तुम्हारी मुस्कान पूरे कमरे का मिजाज़ रोशन कर देती है!” उसने माँ की बढ़ाई करते हुए कहा।
“और सबसे बड़ी बात यह है सुमन, कि तुम्हारे अंदर इतना प्यार भरा हुआ है, और तुम सबको इतना प्यार देती हो... मैं कैसे भूल जाऊँ कि तुमने अम्मा और हमको अपने परिवार के रूप में माना और अपने परिवार में हमारा स्वागत किया... और तो और तुम और अम्मा तो सगी बहनों से भी अधिक करीब हैं! पुचुकी तो तुमसे ही चिपकी रहती है! अम्मा को कम और तुमको अपनी माँ अधिक समझती है, और वैसा ही मान सम्मान और प्यार देती है! हम जैसे बाहरी लोगों को अपने परिवार में स्वागत करने के लिए बहुत ही बड़े दिल की जरूरत होती है। हम सभी तो तुम्हारी देख-रेख में ही पले बढ़े हैं।”
सुनील इमोशनल हो रहा था, लेकिन वो जो कह रहा था, उसमें केवल सच्चाई थी।
“तुम्हारी देखभाल के बिना, और तुम्हारे सहारे के बिना मेरा या अम्मा का, या लतिका का क्या ही भविष्य था? मैं अभी जो कुछ भी हूँ... जो कुछ भी बन सका, और जो कुछ भी बनूँगा, मैं उस सब का सारा श्रेय भैया को, तुम्हारे प्रेम को तुम्हारे सहारे को, और फिर अम्मा की मेहनत को दूँगा... हाँ, इसी क्रम में! मैंने तुम्हें बाबूजी की अटूट, अविचल पत्नी के रूप में देखा है। मुझे भी अपनी पत्नी से तुम्हारी ही तरह का सपोर्ट चाहिए!”
सुनील ने घोषणा की, और चुपके से अपनी आँखों के कोने में बन रहे आँसू को पोंछा।
उसकी यह हरकत माँ से छिपी नहीं रह सकी। सुनील की माँ के लिए अपने प्यार की उसकी घोषणा, अब माँ के दिल को छू रही थी। सुनील ने कहना जारी रखा,
“... और तुम भैया के लिए एक अद्भुत माँ रही हो! सबसे पहले, तुमने उनकी परवरिश करते हुए समाज के मानदंडों की परवाह नहीं की... तुमने उनको अपने तरीके से फलने-फूलने दिया, और हर समय उनको सहारा दिया। मैं भी अपने बच्चों के लिए तुम्हारे जैसी माँ चाहता हूँ।” सुनील ने कहा और माँ की तरफ़ देखा, और पूरी शिष्ट आवाज़ लहज़े में कहा, “अगर तुम साथ दो, तो तुम्हारी जैसी नहीं, तुम्हे चाहता हूँ!”
वो थोड़ा रुका। माँ कुछ कह नहीं रही थीं। जो कुछ सुनील ने कह डाला था, वो भावनात्मक रूप से बहुत भारी था उनके लिए।
“क्या हुआ सुमन? कुछ बोलो न?”
माँ अभी भी कुछ न बोलीं! तो सुनील ने कहना जारी रखा,
“तुम... कैसा अमेजिंग हो अगर तुम मेरी बन जाओ! मेरी यही चाहत है बस! तुम मेरी बन जाओ - मेरी सब कुछ - मेरा संसार, मेरा प्यार, मेरी बीवी... मेरे बच्चों की माँ!”
माँ का मुँह आश्चर्य और सदमें से खुला रह गया।
‘बच्चे!’
‘मुझसे!’
‘ये मुझसे बच्चे करना चाहता है!’
‘ये... लेकिन, ये तो मेरे बेटे जैसा है?’
‘मेरे बच्चे!’
‘मेरे ‘और’ बच्चे!!’
माँ के लिए यह अब एक अनजान, अपरिचित सा क्षेत्र था। पुनः माँ बनने के बारे में उन्होंने काफ़ी समय पहले ही सोचना बंद कर दिया था। और तो और, सुनील का यह संवेदनशील पक्ष देख कर और जान कर माँ हैरान थी! पहले तो उन्होंने सोचा था कि सुनील केवल किसी किशोरवय फंतासी को जीने की कोशिश कर रहा था... और शायद यह सब जल्द ही खत्म हो जाएगा। लेकिन स्पष्ट रूप से, वह कुछ और ही सोच रहा था! यह सब कोई किशोरवय फंतासी नहीं थी... बल्कि, उसका व्यवहार परिपक्व था। वो उनके साथ अपना परिवार, अपना भविष्य बनाने के सपने देख रहा था!
सुनील द्वारा उनको प्रोपोज़ किया जाना, और कल देर रात कही गई काजल की बातें! और अब सुनील का संजीदा पहलू! माँ का दिमाग अब एक अलग ही दिशा में दौड़ने लगा।
एक बात तो माँ भी अपने मन में स्वीकार करती थीं - यह सुनील का ही असर था कि उनका डिप्रेशन इतने कम समय में लगभग न के बराबर रह गया। अन्धकार की न जाने कौन सी गहराइयाँ थीं, जहाँ से सुनील उनको बाहर निकाल लाया था। और उनको भी एक बात समझ में आ रही थी कि वो अवश्य ही सुनील को अपने बेटे जैसा मानती थीं, लेकिन उसकी धीरता, गंभीरता को देख कर वो उसको एक पुरुष के जैसे भी देखती थीं! और अब, उनके लिए अपने प्रेम की उद्घोषणा कर के, सुनील ने उनके मन में उनके रिश्ते को लेकर वो सारे पुराने समीकरण उलट पलट कर दिए थे।
“मैं तुमसे प्यार क्यों न करूँ? तुम बिल्कुल परफेक्ट हो! मोस्ट परफेक्ट गर्ल ऑफ़ दिस वर्ल्ड!” सुनील बोला, और फिर कुछ सोच कर आगे जोड़ा, “अब मेरे पास एक अच्छी, रेस्पेक्टेबल नौकरी है! मेरी सैलरी भी बहुत अच्छी है। मैं बस कुछ ही हफ्तों में अपने पैरों पर पूरी तरह से खड़ा हो जाऊँगा... और, जैसा कि मैंने तुमको कई बार बताया है, मैं अब एक... मैं अपने लिए एक परफेक्ट बीवी चाहता हूँ… और तुम मेरे लिए बिलकुल परफेक्ट हो! एंड आई होप कि मैं भी तुम्हारे लिए ठीक ठाक तो हूँ!”
सुनील बोलते बोलते रुक गया; उसने माँ को कुछ देर बड़े स्नेह से देखा, और फिर कहना जारी रखा, “जब मैं अपने लिए एक परफेक्ट बीवी की इमेज देखता हूँ तो... तो मैं बस तुम्हारे बारे में सोचता हूँ। मेरे लिए परफेक्ट बीवी बस तुम हो! माय आइडियल वुमन! माय ड्रीम गर्ल! ... जब मैं अपने होने वाले बच्चों के लिए एक आइडियल मदर के बारे में सोचता हूँ, तो मैं बस तुम्हारे बारे में सोचता हूँ। तुम मेरे लिए आइडियल गर्ल हो! तुम मेरे लिए परफेक्ट हो!”
माँ फिर से घबरा गई।
मुझे पैदा हुए एक लम्बा अर्सा हो गया था - बहुत लम्बा अर्सा - इतना लम्बा अर्सा कि माँ यह भी भूल चुकी थीं कि गर्भाधान का अनुभव कैसा होता है; गर्भावस्था का अनुभव कैसा होता है; प्रसव का अनुभव कैसा होता है; संतान पालन का अनुभव कैसा होता है! और तो और, अब तो माँ भी इस बात को भी भूल गई थी - कि वो अभी भी माँ बन सकती है! यह बात उनके दिमाग में अब आती ही नहीं थी! मेरे जन्म के कुछ समय बाद डैड ने नसबंदी का ऑपरेशन करवा लिया था। उसके बाद तो उनके और बच्चे होने का विकल्प ही समाप्त हो गया। माँ कम से कम एक और बच्चा पैदा करना चाहती थी। लेकिन उनके वैवाहिक जीवन के शुरुआती दशक में से अधिकांश समय वित्तीय बाधाओं से दो-चार होते हुए बीता। और उसके बाद मुझे सर्वोत्तम संभव तरीके से पालने के उनके निर्णय के कारण उन्हें सिर्फ एक बच्चे के साथ संतुष्ट होने के लिए मजबूर होना पड़ा।
सुनील ने अभी अभी जो कुछ कहा, उससे माँ को एहसास हुआ कि सुनील का उनके प्रति आकर्षण किसी अल्पकालिक, किशोरवय, और अनैतिक फंतासी के कारण नहीं था... बल्कि इस कारण था कि वो उनके साथ एक गंभीर, दीर्घकालिक, सामाजिक, और नैतिक संबंध बना सके - जिसमें वो उसकी पत्नी होंगी, और उसके बच्चों माँ होंगी। उसके बच्चे! सुनील के बच्चे! सुनील के बच्चों की माँ! वो! सुनील माँ को बता रहा था और आश्वस्त कर रहा था कि उसकी पत्नी के रूप में उनको आर्थिक तंगी का बोझ नहीं उठाना पड़ेगा, जैसा कि उनको तब करना पड़ा जब वो डैड के साथ थी। सुनील के साथ वो और बच्चे पैदा करने की अपनी इच्छा को पूरा कर सकती है। एक बेहद लंबे समय तक माँ ने इस परिवार के पालक की भूमिका निभाई थी। सुनील उनको अपनी प्रेमिका... और अपनी पत्नी बनाने की पेशकश कर रहा था!
यह एक दुस्साहसिक प्रस्ताव था। यह एक अवास्तविक प्रस्ताव था। यह एक स्थाई प्रस्ताव था। लेकिन ये एक प्रस्ताव था - जो उनके सामने था! यह एक ऐसा प्रस्ताव था जो माँ की जिंदगी को हमेशा हमेशा के लिए बदल देगा... सुनील उनको यह प्रस्ताव दे रहा था... पूरी स्पष्टता के साथ! पूरी शिष्टता के साथ! पूरी गंभीरता के साथ! सुनील माँ को फिर से सुहागिन बनने का एक मौका दे रहा था… सुनील माँ को फिर से माँ बनने का एक मौका दे रहा था… यह एक ऐसा सपना था जिसे माँ ने बहुत पहले ही देखना छोड़ दिया था।
“तुम मेरी देवी हो... और... मेरे दिल की रानी हो।”
जब आप एक भँवर में फंस जाते हैं, तो आप ऐसी किसी भी चीज़ को पकड़ने की कोशिश करते हैं जो आपको स्थिर कर सके। डैड की मौत के बाद माँ भी अवसाद भँवर में फंस गई थीं। अब उनके जीवन में सुनील आया था, और उनको स्थिरता देने का प्रयास कर रहा था। स्थिरता ही क्या, उसने तो माँ के अवसाद की धारा ही मोड़ दी... और अपने अथक प्रयासों से उसने उस धारा को निर्मल बना दिया। और अब वो उनको एक नए और आनंदमय भविष्य और एक नई पहचान देने का वचन दे रहा था! ऐसा भविष्य जो इंद्रधनुषी रंग लिए हुए हो! जहाँ केवल खुशियाँ ही खुशियाँ हों! माँ के सामने एक कोमल भविष्य की सम्भावना प्रस्तुत थी - वो एक नई दुल्हन, एक नई पत्नी, और एक नई माँ हो सकती हैं!
अब ऐसी प्रस्तुत सम्भावना के बारे में माँ विचार करने पर बाध्य हो ही गईं!
“तुम्हारी हर बात अनोखी है, सुमन!” सुनील माँ के बहुत पास आ कर, और बहुत धीमी, लगभग फुसफुसाती लेकिन स्पष्ट आवाज़ में बोल रहा था, “तुम्हारी महक! ओह, तुम्हारी महक मुझे बिलकुल तरोताज़ा कर देती है!”
माँ के चेहरे पर पसीने की एक पतली सी परत दिखाई देने लगती है। वो निश्चित रूप से बेचैन और घबराई हुई थीं।
“दिल में समां जाती है!” सुनील मंत्रमुग्ध सा बोले जा रहा था।
उससे रहा नहीं गया - वो झुका और उसने माँ के कंधे पर से एक हल्का सा चुम्बन ले दिया। माँ को लगा जैसे उनके कंधे से एक मीठी सी तरंग उभर कर उनके पूरे शरीर में दौड़ गई हो। कितने दिन हो गए थे उनको किसी पुरुष के स्पर्श के बिना!
अचानक ही, उनके मन में सुनील एक लड़का न हो कर, एक पुरुष हो गया था। माँ का दिमाग सुनील की बातों पर भावनात्मक रूप से तेजी से विचार कर रहा था, और उनको उसकी कही हुई बहुत सी बातें अब सुनाई भी नहीं दे रही थीं।
“मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, सुमन! बहुत प्यार! इतना, कि मुझे खुद को नहीं मालूम!” सुनील बहुत मंद मंद बोल रहा था, लेकिन माँ को सब कुछ स्पष्ट सुनाई दे रहा था; उसकी उँगलियाँ माँ के एक गाल को बड़ी कोमलता से स्पर्श कर रही थीं,
“अगर तुम नहीं मिली, तो मैं किसी और से इतना प्यार तो नहीं कर पाऊँगा! ये बात मुझे मालूम है!” सुनील अपने प्रेम की शिद्दत में कुछ भी बोल रहा था, “तुम मेरा पहला प्यार हो, और मेरा सच्चा प्यार हो! इसी प्यार के साथ मैं जवान हुआ हूँ! और इसी प्यार के साथ मैं बूढ़ा होना चाहता हूँ!”
सुनील सोच रहा था कि माँ कुछ बोलेंगी, लेकिन माँ की ज़ुबान पर तो जैसे ताला पड़ गया था।
“प्लीज सुमन! मेरी बन जाओ!”
माँ के दिमाग में जैसे कोई झंझावात चल रहा हो - वो अचानक ही खुद को बड़ा अकेला महसूस कर रहीं थीं। उनको ऐसा लगा कि जैसे वो एक बेहद बड़े से मैदान में खड़ी हैं, और वहाँ उनके और सुनील के अतिरिक्त कोई और नहीं है। उसकी उपस्थिति के कारण उनको डर लग रहा था और असहज भी! लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, सुनील के पास होने से उनको आश्वासन भी महसूस हो रहा था। कैसा विरोधाभास था ये? जिसके कारण अकेलापन महसूस हो रहा था, जिसके कारण डर लग रहा था, उसी के कारण आश्वासन भी महसूस हो रहा था! ये कैसे होता है?
माँ को बिजली का झटका तब लगा जब अचानक ही सुनील के होंठ, उनके होंठों से छू गए।
‘ये क्या कर दिया!’
होंठों पर चुम्बन एक ऐसा अंतरंग कार्य है जो सीधा आत्मा को छू लेता है - अगर उसको पूरी सच्चाई से किया जाए तो। नहीं तो वो केवल अश्लीलता है। चुम्बन करने वाले की होंठों को चूमने की तत्परता, इस बात का प्रतीक है कि वो अपने प्रेमी को स्वीकार करने को पूरी तरह से इच्छुक और तत्पर है।
सुनील तो इच्छुक और तत्पर है, लेकिन क्या माँ भी...?
भाई साहब -- आपकी बातें अपने स्थान पर ठीक हैं।bhai mai iss kahani se bahot jud gaya hu..isliye maine bada reply kiya..kyunki muze lagta hai ki kahani ke sath mai aapse bhi ek dost ki tarah jud chuka hu..toh aapko meri baat samjhane ke liye itna likhna pada..!!
bhai mai abhi yahi kahunga ki sukan ne apne pati ke sath 28 saal bitaye aur yeh saal dono ne bahot pyaar se kaate hai..agar suman apni pati ki yaadon me, ehsas me hi apni zindagi gujarna chahti hai toh isme kuchh galat nahi hai..!! kyun suman ko baar baar dusri shaadi ke liye bola ja raha hai..kyun usko bachhe ke bare me bolkar uska sapna jivit karne ki koshish ki ja rahi hai..agar woh apne pati ke sath bitaye yaadon me, unn haseel palo ke sath zindagi gujarni chahti hai toh kyun uske mann ke sath itna khela ja raha hai..!! aapke hisab se kajal aur sunil apni jagah thik hai lekin muze unki soch galat lagti hai..khaskar sunil ki..kyunki suman ne usko maa ki tarah pala hai, bada kiya hai..suman jaisi sangini sunil chahta hai isme kuchh galat nahi hai lekin suman ko hi sangini banana yeh bahot galat soch hai mere hisab se..aur sunil ka palda hamesha kamjor hi rahega mere hisab se..!!
asal me amar aur suman ke bich jo duriya ban gayi hai woh kam honi chahiye..aisa mera manana hai..aur ek baat Bhai amar-kajal, amar-gaby aur amar-devi Inke rishte jaise bane hai waisa hi rishta Suman aur uske pati ka tha..aur sabse badhiya rishta tha Suman aur amar ka jo suruwat se dekhne ko mila hai lekin ab kahi kho gaya hai..kyunki ab yeh Sunil ka alag hi chapter chal raha hai jo galat hai..kuchh aisa hojaye ki amar aur Suman ko apni duri ka ehsas ho aur firse paas aajaye..kyunki Bhai meri ek baat aap samjhiye..Sunil ko Suman ne hamesha apna beta hi mana aur uske aane ke baad Suman depression se bahar aayi aur isme Sunil ka swarth bhi tha lekin Sunil ne jo Kiya wahi amar apni maa ke sath time spend karke karta aur apni maa ko khush rakhne ki koshish karta toh Suman pehle hi iss depression se bahar aajati..iss bare me amar ko sochna chahiye..!!
bhai please meri baat ka bura mat maniyega kyunki muze jo galat laga maine bol diya..baki aapki marji hai..!!